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जानें सबसे ज्यादा सरसों की खरीद किस राज्य में हुई है, नाफेड को खुद भी क्यों करनी पड़ी खरीद शुरू

जानें सबसे ज्यादा सरसों की खरीद किस राज्य में हुई है, नाफेड को खुद भी क्यों करनी पड़ी खरीद शुरू

नाफेड ने मार्केटिंग सीजन 2023-24 के लिए सरसों की एमएसपी दर 5450 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। अगर हम राजस्थान की बात करें तो यह भारत का एकमात्र प्रदेश है, जो अकेला 42 फीसदी सरसों की पैदावार करता है। गेहूं समेत भारत के ज्यादातर राज्यों में तिलहन की खरीद भी चालू हो चुकी है। हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान समेत विभिन्न राज्यों में एमएसपी पर सरसों की खरीद की जा रही है। मौसम के गर्म होते-होते सरसों की खरीद में तीव्रता भी होती जा रही है। यही कारण है, कि भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नाफेड) द्वारा अब तक 169217.45 मिट्रिक टन सरसों की खरीद की जा चुकी है। साथ ही, इसके एवज में किसान भाइयों के खाते में करोड़ों रुपये की धनराशि भी भेजी जा चुकी है। इससे सरसों का उत्पादन करने वाले कृषक काफी खुश हैं। ऐसी स्थिति में किसानों को आशा है, कि आगामी दिनों में सरसों खरीदी में और ज्यादा तीव्रता आएगी।

नाफेड ने खुद की सरसों की खरीद शुरू

किसान तक की खबरों के अनुसार, तीन वर्ष बाद ऐसा हुआ है, कि न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दर होने के कारण नाफेड स्वयं सरसों की खरीदी कर रहा है। इससे पूर्व किसान स्वयं मंडियों में जाकर व्यापारियों को एमएसपी से महंगी कीमत पर सरसों विक्रय करते थे। अब तक 84914 किसानों ने एमएसपी पर सरसों विक्रय करते है। इसके एवज उनके खाते में 922.24 रुपये भेजे जा चुके हैं। आहिस्ते-आहिस्ते सरसों खरीद केंद्रों पर किसानों की संख्या काफी बढ़ती जा रही है। हालाँकि, बेमौसम बारिश के कारण से राजस्थान एवं मध्य प्रदेश समेत बहुत से तिलहन उपादक राज्यों में फसल की कटाई में विलंब हो गया था। साथ ही, बरसात से सरसों की फसल को काफी क्षति भी पहुंची है। यह भी पढ़ें: न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद के लिए 25 फरवरी तक करवा सकते हैं, रजिस्ट्रेशन मध्य प्रदेश के किसान

हरियाणा में विगत 20 मार्च से सरसों की खरीद शुरू हो चुकी है

भारत में राजस्थान सरसों का सर्वाधिक उत्पादन करता है। परंतु, इस बार हरियाणा सरसों की खरीद करने के संबंध में राजस्थान से आगे है। नाफेड ने अब तक हरियाणा के अंदर 139226.38 मिट्रिक टन सरसों की खरीद करली है। हालाँकि, हरियाणा राज्य में भी देश के कुल उत्पादन का अकेले 13.5 फीसद सरसों का उत्पादन किया जाता है। इसके बदले में कृषकों को 758.78 करोड़ रुपये दिए गए हैं। विशेष बात यह है, कि हरियाणा में विगत 20 मार्च से सरसों की खरीद शुरू की गई है।

इन राज्यों में इतने मीट्रिक टन सरसों की एमएसपी पर खरीद की जा चुकी है

नाफेड ने मार्केटिंग सीजन 2023-24 हेतु सरसों की एमएसपी दर 5450 रुपये प्रति क्विंटल तय कर दी है। यदि हम राजस्थान की बात करें तो यहां की जलवायु के अनुरूप यह भारत का एकमात्र राज्य है, जो अकेला 42 फसदी सरसों का उत्पादन करता है। इसके बावजूद भी राजस्थान में अब तक 4708.40 मिट्रिक टन ही सरसों की खरीद हो सकती है। साथ ही, सरसों उत्पादन में मध्य प्रदेश भी कोई पीछे नहीं है। यह 12 प्रतिशत सरसों का उत्पादन किया करता है। मध्य प्रदेश में अब तक 9977.74 मीट्रिक टन सरसों की खरीद संपन्न हुई है। इसके उपरांत गुजरात 4.2 फीसद सरसों का उत्पादन करता है।
ई-नाम के माध्यम से नेफेड और एनसीसीएफ ने हजारों टन प्याज बेची

ई-नाम के माध्यम से नेफेड और एनसीसीएफ ने हजारों टन प्याज बेची

नेफेड ने अब तक पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश की कई सारी मंडियों में 3,000 टन से ज्यादा प्याज भेजा है। वहीं, उत्तर प्रदेश की मंडियों में बिक्री शुरू करने के लिए उपभोक्ता मंत्रालय से स्वीकृति मांगी है। सूत्रों का कहना है, कि उत्तर प्रदेश में वाराणसी, प्रयागराज, कानपुर और लखनऊ जैसे प्रमुख शहरों को शुरुआत में कवर किए जाने की संभावना है। राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ एवं राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता फेडरेशन (एनसीसीएफ) ने 30-31 अगस्त को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म ई-नाम के जरिए से 900 टन से ज्यादा प्याज बिक्री की। इसमें अंतर-राज्य लेनदेन के जरिए से 152 टन का व्यापार भी शम्मिलित है। ई-नाम प्लेटफॉर्म के जरिए से प्याज की बिक्री महाराष्ट्र की कुछ मंडियों में व्यापारियों के विरोध पर सरकार की त्वरित प्रतिक्रिया थी। जहां उन्होंने प्याज पर लगाए गए 40 प्रतिशत निर्यात शुल्क के विरोध में नीलामी रोक दी थी। जवाब में, सरकार ने नेफेड और एनसीसीएफ दोनों को प्याज भंडारण जारी करने के लिए वैकल्पिक रास्ते तलाशने का निर्देश दिया था। इस बिक्री का उद्देश्य, प्याज के भाव को न बढ़ने देना था। हालांकि, सरकार के इन प्रयासों से प्याज किसानों को काफी हानि हुई थी। परंतु, सरकार ने किसानों को दरकिनार कर केवल उपभोक्ता के हितों का ध्यान रखा। सरकार नहीं चाहती थी, कि टमाटर के पश्चात अब प्याज की भी महंगाई बढ़े। साथ ही, इसको लेकर कोई हंगामा हो, क्योंकि उसे शीघ्र ही चुनाव का सामना करना है।

ई-नाम के माध्यम से बिक्री बढ़ने की संभावना

नेफेड जिसने ई-नाम के जरिए से प्याज की बिक्री चालू की थी। महाराष्ट्र के लासलगांव से भौतिक स्टॉक लेने के पश्चात एक राज्य के भीतर ही 5,08.11 टन बेचने में सक्षम रहा। राष्ट्रीय उपभोक्ता सहकारी संघ (एनसीसीएफ) ने राज्य के भीतर मंडी एवं अंतर-राज्य लेनदेन दोनों का इस्तेमाल किया। लासलगांव मंडी महाराष्ट्र के नासिक में मौजूद है। यह दावा किया जाता है, कि यह एशिया की सबसे बड़ी प्याज मंडी है। ये भी पढ़े: आखिर किस वजह से प्याज की कीमतों में आई रिकॉर्ड तोड़ गिरावट सूत्रों का कहना है, कि दोनों एजेंसियों को ई-नाम के जरिए से बिक्री बढ़ने की संभावना है। यदि नीलामी के दौरान ज्यादा व्यापारियों को मंच पर लाया जाए और उन्हें गुणवत्ता एवं लॉजिस्टिक मुद्दों के विषय में समझाया जाए तो ऐसा हो सकता है। सरकार ने पूर्व में ही ई-नाम पोर्टल पर कृषि क्षेत्र में लॉजिस्टिक मूल्य श्रृंखला की सुविधा प्रदान कर दी है।

किसान किस वजह से हुए काफी नाराज

केंद्र सरकार ने 17 अगस्त को प्याज के एक्सपोर्ट पर 40 प्रतिशत ड्यूटी लगा दी थी। इसके विरोध में किसानों एवं व्यापारियों ने लासलगांव और पिंपलगांव जैसी मंडियों में हड़ताल करवाकर उसे बंद करवा डाला था। किसानों की नाराजगी को कम करने के लिए सरकार ने 2 लाख टन अतिरिक्त प्याज खरीदने का निर्णय लिया था। परंतु, आम किसानों को इससे कोई विशेष लाभ नहीं मिला। उधर, सरकार द्वारा पहले से निर्मित किए गए 3 लाख टन के बफर स्टॉक से बाजार में प्याज उतारने का निर्णय किया। उसके बाद 2 लाख टन और खरीद का निर्णय लिया गया। उससे पहले एनसीसीएफ ने तकरीबन 21,000 टन और नेफेड ने तकरीबन 15,000 टन प्याज बेच दिया था। केंद्र ने 11 अगस्त को घोषणा की कि वह उन राज्यों अथवा क्षेत्रों के प्रमुख बाजारों को टारगेट करके बफर स्टॉक से खुले बाजार में प्याज जारी करेगा। जहां खुदरा कीमतें काफी ज्यादा हैं।

नेफेड इन बाजारों में उतारेगा प्याज

आधिकारिक सूत्रों का कहना है, कि नेफेड ने अब तक हरियाणा, पंजाब एवं हिमाचल प्रदेश की विभिन्न मंडियों में 3,000 टन से ज्यादा प्याज भेजा है। साथ ही, उत्तर प्रदेश की मंडियों में बिक्री शुरू करने के लिए उपभोक्ता मंत्रालय से स्वीकृति मांगी है। सूत्रों का कहना है, कि उत्तर प्रदेश में लखनऊ, वाराणसी, प्रयागराज एवं कानपुर जैसे प्रमुख शहरों को शुरुआत में कवर किए जाने की संभावना है। उसके पश्चात प्रतिक्रिया के आधार पर अन्य स्थानों को भी शम्मिलित किया जा सकता है।
देश में दलहन और तिलहन का उत्पादन बढ़ाने के प्रयास करेगी सरकार, देश भर में बांटेगी मिनी किट

देश में दलहन और तिलहन का उत्पादन बढ़ाने के प्रयास करेगी सरकार, देश भर में बांटेगी मिनी किट

इस साल देश के कई राज्यों में खरीफ की फसल मानसून की बेरुखी के कारण बुरी तरह से प्रभावित हुई है, जिसके कारण उत्पादन में भारी गिरावट आई है। उत्पादन में यह गिरावट किसानों की कमर तोड़ने के लिए पर्याप्त है, क्योंकि यदि किसान खरीफ की फसल में लाभ नहीं कमा पाए तो उनके लिए नई चुनौतियां खड़ी हो जाएंगी। इसके अलावा अगर किसानों के पास पैसा नहीं रहा तो किसानों के लिए रबी की फसल में बुआई करना मुश्किल हो जाएगा। बिना पैसों के खेती से जुड़ी चीजें जैसे कि खाद, बीज, कृषि उपकरण, डीजल इत्यादि सामान खरीदना किसानों के लिए मुश्किल हो जाएगा। किसानों की इन चुनौतियों को देखते हुए केंद्र सरकार किसानों की मदद करने जा रही है। केंद्र सरकार किसानों के लिए रबी सीजन में दलहन और तिलहन की फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए मुफ्त मिनी किट वितरित करेगी। कृषि मंत्रालय के अधिकारियों और विशेषज्ञों का अनुमान है कि इससे देश भर में दलहन के उत्पादन में लगभग 20-25 फीसदी की वृद्धि की जा सकती है। इसको देखते हुए मिनी किट वितरण की रूप रेखा तैयार कर ली गई है। ये भी पढ़े: दलहनी फसलों पर छत्तीसढ़ में आज से होगा अनुसंधान देश भर में मिनी किट का वितरण भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ लिमिटेड (NAFED) के अंतर्गत आने वाली संस्था राष्ट्रीय बीज निगम - एनएससी (NSC) करेगी। इन मिनी किटों का भुगतान भारत सरकार अंतर्गत आने वाले राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत किया जाएगा। केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय की योजना के अनुसार इन मिनी किटों का वितरण उन्हीं राज्यों में किया जाएगा, जहां दलहन एवं तिलहन का उत्पादन किया जाता है।

इस योजना का उद्देश्य क्या है

केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय की तरफ से दी गई जानकारी के अनुसार, इस योजना का मुख्य उद्देश्य उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के साथ ही किसानों के बीच फसलों की नई किस्मों को लेकर जागरूक करना है, ताकि किसान इन मिनी किटों के माध्यम से नई किस्मों के प्रति आकर्षित हों और ज्यादा से ज्यादा रबी की बुआई में नई किस्मों का इस्तेमाल करें। इस योजना के अंतर्गत किसानों के बीच मिनी किटों में उच्च उत्पादन वाले बीजों का वितरण किया जाएगा। मिनी किटों का वितरण महाराष्ट्र के विदर्भ में रेपसीड और सरसों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए, साथ ही तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक जैसे राज्यों में वहां की प्रमुख तिलहन फसल मूंगफली के उत्पादन को बढ़ाने के लिए तथा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और राजस्थान में अलसी और महाराष्ट्र, कर्नाटक और तेलंगाना में कुसुम (सूरजमुखी) का उत्पादन बढ़ाने के लिए किया जाएगा। ये भी पढ़े: तिलहनी फसलों से होगी अच्छी आय केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय ने इस साल देश भर के 11 राज्यों में दलहन की बुवाई बढ़ाने के लिए, उड़द के 4.54 लाख बीज मिनी किट और मसूर के 4.04 लाख बीज मिनी किट राज्यों को भेज दिए हैं। उत्तर प्रदेश के लिए सबसे ज्यादा 1,11,563 मिनी किट भेजे गए हैं, इसके बाद झारखण्ड के लिए 12,500 मिनी किट और बिहार के लिए 12,500 मिनी किट भेजे गए हैं। इसके अतिरिक्त कृषि मंत्रालय एक और योजना लागू करने जा रही है, जिसके अंतर्गत देश भर के 120 जिलों में मसूर और 150 जिलों में उड़द का उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा। इस योजना को विशेष कार्यक्रम '(TMU 370; टीएमयू 370) 'तूर मसूर उड़द - 370'' के नाम से प्रचारित किया जाएगा।
"केंद्र सरकार के रबी 2022-23 के लिए दलहन और तिलहन के बीज मिनीकिट वितरण" से सम्बंधित 
सरकारी प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) रिलीज़ का दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें।
ये भी पढ़े: किस क्षेत्र में लगायें किस किस्म की मसूर, मिलेगा ज्यादा मुनाफा अगर आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले 3 सालों के दौरान देश में दलहन और तिलहन के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि देखने को मिली है। अगर साल 2018-19 तक अब की तुलना करें तो दलहन के उत्पादन में 34.8% की वृद्धि दर्ज की गई है। जहां साल 2018-19 में दलहन का उत्पादन 727 किग्रा/हेक्टेयर था। जबकि मौजूदा वर्ष मे दलहन का उत्पादन बढ़कर 1292 किग्रा/हेक्टेयर पहुंच गया है।
केंद्र सरकार की मूंग सहित इन फसलों की खरीद को हरी झंडी, खरीद हुई शुरू

केंद्र सरकार की मूंग सहित इन फसलों की खरीद को हरी झंडी, खरीद हुई शुरू

केंद्र सरकार मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत किसानों से फसलों की ताबड़तोड़ खरीददारी कर रही है। कृषि मंत्रालय के अधिकारियों ने जानकारी दी है, कि अब तक केंद्र सरकार 24,000 टन मूंग खरीद चुकी है। इसके साथ ही सरकार आगामी दिनों में 4,00,000 टन खरीफ मूंग की खरीददारी करने जा रही है। इसके लिए सरकार ने अपनी मंजूरी दे दी है। सरकार यह 4,00,000 टन खरीफ मूंग उत्तर प्रदेश, गुजरात, ओडिशा, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, हरियाणा और महाराष्ट्र समेत 10 राज्यों के किसानों से खरीदेगी।


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अधिकारियों ने बताया है, कि मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) को पूरी तरह से केंद्र सरकार का कृषि मंत्रालय नियंत्रित करता है। कृषि मंत्रालय जब देखता है, कि बाजार में फसलों के भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे गिर गए हैं, तब कृषि मंत्रालय मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत किसानों से फसलें खरीदना प्रारंभ कर देता है। ताकि किसानों को अपनी फसलों को औने पौने दामों में बेचने पर मजबूर न होना पड़े। यह खरीददारी कृषि मंत्रालय के आधीन आने वाला भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) करता है। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो इस साल अभी तक 24,000 टन मूंग की खरीदी हो चुकी है, जिसमें से 19,000 टन अकेले कर्नाटक के किसानों से खरीदी गई है। कृषि मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि सरकार लगातार प्रयास कर रही है, जिससे किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिल पाए। इसके लिए खरीदी प्रक्रिया की हर राज्य में सघनता से जांच की जा रही है। ताकि किसानों को अपनी फसलों को बेचने पर किसी भी प्रकार की परेशानी न होने पाए।


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बकौल कृषि मंत्रालय, मूंग के अलावा 2022-23 खरीफ सत्र में उगाई गई 2,94,000 टन उड़द और 14 लाख टन मूंगफली की भी खरीददारी की जाएगी। कृषि मंत्रालय ने इसकी स्वीकृति भी भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) को भेज दी है। भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) ने कृषि मंत्रालय को अपने जवाब में बताया है, कि इस साल अभी तक उड़द और मूंगफली की खरीद नहीं हो सकी है। क्योंकि अभी भी बाजार में इन दोनों फसलों के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य से बहुत ज्यादा ऊपर चल रहे हैं। भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) ने अभी तक जिन फसलों की खरीद की है। उन्हें कृषि मंत्रालय ने राज्य सरकारों को देना शुरू कर दिया है, ताकि इन फसलों को पीडीएस के माध्यम से खपाया जा सके। इसी तरह अगर खरीफ की फसलों के अंतर्गत आने वाले धान की फसल की बात करें, तो अभी तक भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) के माध्यम से सरकार ने 306.06 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी की है। जबकि सरकार का लक्ष्य 775.72 लाख टन धान खरीदने का है।
आखिर किस वजह से NAFED द्वारा कच्चे चना भंडारण हेतु बनाई गई विशेष योजना

आखिर किस वजह से NAFED द्वारा कच्चे चना भंडारण हेतु बनाई गई विशेष योजना

NAFED ने अपने 20% कच्चे चना स्टॉक को चना दाल (चना या बंगाल चना) में परिवर्तित करने और रिटेल बाजार में आपूर्ति करने की योजना तैयार की है। नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (नेफेड) ने अपने 20% प्रतिशत कच्चे चना भंडारण को चना दाल (चना या बंगाल चना) में बदलने एवं रिटेल बाजार में सप्लाई करने की योजना निर्मित की है। दो सरकारी अधिकारियों ने कहा है, कि यह विकास ऐसे वक्त में हुआ है, जब सरकार के पास रणनीतिक बफर जरूरत के मुकाबले भारी मात्रा में चना एवं अन्य दालों का कम भंडार है। आज के समय में NAFED के समीप भंडार में तकरीबन 3.6 मिलियन टन (MT) चना है, जिसमें इस वर्ष एग्रीकल्चर मिनिस्ट्री की तरफ से प्राइस सपोर्ट स्कीम (Price Support Scheme (PSS) के अंतर्गत खरीदा गया 3.3 मिलियन टन शामिल है। रिकॉर्ड तोड़ उत्पादन के चलते बाजार की कम कीमतों की वजह से पिछले दो सालों में ज्यादा खरीद का परिणाम है।

किसान अपनी उपज नेफेड (NAFED) को बेच रहे हैं

कृषि मंत्रालय की तरफ से खाद्य उत्पादन के दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक, 2022-23 (जुलाई-जून) में चना का उत्पादन 13.5 मीट्रिक टन होने का अंदाजा लगाया गया है। जो कि पिछले साल के तकरीबन समान है। इस साल भी ज्यादा पैदावार की वजह चना की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य 5,335 प्रति क्विंटल से नीचे बनी हुई हैं। इससे किसान अपनी पैदावार सरकार की खरीद एजेंसी नेफेड को बेचने के लिए आगे आ रहे हैं, जिससे किसानों को काफी अच्छा-खासा लाभ प्राप्त हो रहा है।

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निफेड ने 2.3 मीट्रिक टन के रणनीतिक मानदंड के तुलनात्मक 4.27 मीट्रिक टन का बफर स्टॉक तैयार किया है। इसके अंतर्गत समस्त 5 घरेलू दालों के साथ-साथ आयातित स्टॉक भी शम्मिलित है। बाजार सूत्रों के अनुसार, दिल्ली के लॉरेंस रोड बाजार में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान की कच्चे चने की प्रजातियां 5,100 से 5,125 रुपए प्रति क्विंटल में बिकीं हैं।

दाल में 20% प्रतिशत कच्चा चना परिवर्तित किया जाएगा

एक सरकारी अधिकारी का कहना है, कि 20% कच्चे चना भंडार को दाल में बदलना एक प्रयोग है। कच्चा चना जारी करने के अतिरिक्त नेफेड (NAFED) कच्चे चने को पीसकर दाल के तौर पर जारी करने पर विचार कर रहा है। इसके पश्चात यह राज्यों को जारी किया जाएगा अथवा खुले बाजार में यह अभी तक सुनिश्चित नहीं है। इसे खुले बाजार में विक्रय किया जा सकता है अथवा खुदरा विक्रेताओं को दिया जा सकता है।

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सालभर से दालों का भंडारण नहीं किया गया

सरकार राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को अपने भंडार को खत्म करने के लिए करीब एक साल से रियायती दर पर चना दे रही है। क्योंकि दालों को एक साल से ज्यादा समय तक स्टोर नहीं किया जा सकता है। हाल ही में ग्राहकों के मामलों के विभाग ने लिक्विडेशन को प्रोत्साहित करने के लिए छूट की दर को 8 रुपए प्रति किलोग्राम से बढ़ाकर 15 रुपए प्रति किलोग्राम कर दिया है। आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने पिछले वर्ष अगस्त में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को 15 लाख टन चना के आवंटन को रियायती दर पर की कई सारी कल्याणकारी योजनाओं के लिए “पहले आओ, पहले पाओ” के आधार पर आवंटित करने की स्वीकृति दी थी।
केंद्र सरकार ने तुअर दाल के लिए वेब पोर्टल लांच किया, किसानों को समय पर मिलेगा दाल का अच्छा भाव

केंद्र सरकार ने तुअर दाल के लिए वेब पोर्टल लांच किया, किसानों को समय पर मिलेगा दाल का अच्छा भाव

भारत के कृषकों को तुअर दाल का समुचित मूल्य मुहैय्या कराने के लिए भारत सरकार ने नई दिल्ली में Tur Dal Procurement Portal को लॉन्च कर दिया। इस वेब पोर्टल में कृषकों की सुविधाओं के लिए विभिन्न भाषाएं सम्मिलित की गई हैं। सरकार ने कृषकों के लिए एक बड़ी खुशखबरी दी है। दरअसल, सरकार ने आज मतलब कि गुरुवार के दिन तुअर दाल की खरीद के लिए वेब पोर्टल की शुरुआत की है। दिल्ली में दलहन की आत्मनिर्भरता पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित किया गया, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के "आत्मनिर्भर भारत" के दृष्टिकोण की दिशा में एक और शानदार कदम उठाते हुए केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने तुअर उत्पादक किसानों के पंजीकरण, खरीद और भुगतान के लिए वेब पोर्टल का लोकार्पण किया गया। अब इससे किसान अपनी दाल की ऑनलाइन बिक्री करके सीधे भुगतान की राशि अपने खाते में प्राप्त कर सकते हैं। इस पोर्टल का नाम Tur Dal Procurement Portal निर्धारित किया गया है। सरकार की इस नवीन कवायद से घरेलू दाल उपज को प्रोत्साहन मिलेगा। साथ ही, आयात निर्भरता में भी कमी देखने को मिलेगी।

Tur Dal Procurement Portal का प्रमुख लक्ष्य क्या है ?

सरकार की इस कवायद का प्रमुख लक्ष्य तुअर दाल उत्पादकों को NAFED एवं NCCF द्वारा खरीद, सुव्यवस्थित प्रक्रियाओं एवं सीधे बैंक हस्तांतरण के जरिए शानदार कीमतों के साथ मजबूत बनाना है, जिससे घरेलू दाल उपज को प्रोत्साहन मिलेगा। साथ ही, आयात निर्भरता काफी कम होगी। इसके अंतर्गत उपभोक्ता मामले विभाग, भारत सरकार के दिशा निर्देशों के मुताबिक नेफेड एवं एनसीसीएफ के पोर्टल पर पंजीकृत कृषकों से दालों के बफर स्टॉक के लिए खरीद की जाऐगी। ये भी पढ़ें: दालों की कीमतों में उछाल को रोकने के लिए सरकार ने उठाया कदम साथ ही, एमएसपी अथवा बाजार मूल्य, जो भी ज्यादा हो उसका भुगतान कृषकों को किया जाऐगा। इस पोर्टल का प्रमुख उद्देश्य कृषकों से सीधे 80% फीसद बफर स्टॉक खरीदकर आयात पर निर्भरता को कम करना है। यह केवल खाद्य उत्पादन को सुरक्षित करेगा बल्कि राष्ट्र की भविष्य की खाद्य सुरक्षा को भी सुनिश्चित करेगा। 

Tur Dal Procurement Portal में कोई भी एजेंसी शामिल नहीं होगी 

सूत्रों से प्राप्त की गई जानकारी के अनुसार, पोर्टल पर पंजीकरण, खरीद एवं भुगतान तक की समस्त प्रक्रिया एक ही जरिए पर उपलब्ध रहेगी। किसान का पोर्टल पंजीकरण सीधा या PACS FPO के जरिए कर सकते हैं। साथ ही, किसान को भुगतान नाफेड द्वारा सीधे उनके लिंक्ड बैंक खाते में किया जाएगा। साथ ही, इस मध्य में किसी भी एजेंसी को शामिल नहीं किया जाऐगा। यह संपूर्ण प्रक्रिया किसान केन्द्रित है, जिसमें पंजीकरण से लेकर भुगतान तक की गतिविधियों को किसान स्वयं ट्रैक कर सकते हैं।