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पंजाब

इस राज्य में 24 लाख टन गेहूं की खरीद बढ़ी, क्या इससे किसानों को होगा फायदा

इस राज्य में 24 लाख टन गेहूं की खरीद बढ़ी, क्या इससे किसानों को होगा फायदा

पंजाब राज्य सरकार की तरफ से अंदाजा लगाया जा रहा है, कि प्रदेश में इस वर्ष विगत वर्ष के मुकाबले गेहूं की खरीद में इजाफा किया जाएगा। विगत वर्ष जहां आंकड़ा 96.47 करोड़ के करीब रहा था। इसबार वह आंकड़ा काफी ज्यादा रहेगा। भारत के बहुत सारे राज्यों में गेहूं कटाई चल रही है। किसान गेहूं को काटकर तत्काल मंडी लेकर पहुंच रहे हैं। किसान भाई सर्व प्रथम मौसम के रुझान को भांप रहा है। एक-दो दिन पूर्व आई बरसात ने गेहूं काट रहे किसानों की चिंता को बढ़ा दिया है। उधर, केंद्र एवं राज्य सरकार भी गेहूं खरीद पर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं। केंद्र सरकार एजेंसियों के माध्यम से गेहूं खरीद का डाटा इकठ्ठा कर रही है। साथ ही, राज्य सरकार भी मंडी के स्तर से गेहूं के आंकड़ों की अपडेट ले रही हैं। खरीद केंद्रों पर किसानों को किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत न हो सके। इसका भी विशेष रूप से ध्यान रखा जा रहा है। गेहूं खरीद को लेकर पंजाब से राहत भरा समाचार सुनने को सामने आया है। यहां गेहूं की धुआँधार खरीद होने का अंदाजा लगाया गया है। इससे यह बिल्कुल साफ है, कि किसान भी गेहूं बेचकर अच्छी-खासी आमदनी कर सकते हैं।

पंजाब में इतने करोड़ टन गेहूं की खरीद होने की संभावना

पंजाब की मंडियों में भी गेहूं पहुंचाया जा रहा है। अधिकारी भी गेहूं खरीदने में पूरी तेयारी से जुटे हुए हैं। फिलहाल, पंजाब सरकार के अधिकारी ने कहा है, कि मौजूदा रबी सत्र में गेहूं की खरीद काफी अच्छी होने की संभावना है। खरीद का आंकड़ा 1.2 करोड़ टन पहुंचने का अंदाजा है। जबकि विगत वर्ष गेहूं खरीद 96.47 लाख टन रही थी। लगभग 24 लाख टन का इजाफा दर्ज किया जा रहा है।

पंजाब में लगभग 14 लाख हेक्टेयर फसल को हुई हानि

पंजाब में मौसमिक अनियमितताओं के चलते बेमौसम हुई बारिश से तकरीबन 14 हैक्टेयर फसल पर काफी असर पड़ा है। वर्तमान में सांसद राघव चडढा की तरफ से भी प्रभावित किसानों की सहायता करने के लिए केंद्र सरकार को पत्र लिखा था। प्रदेश सरकार के अधिकारियों ने बताया है, कि राज्य में समकुल 34.90 लाख हेक्टेयर में फसल की बुआई की गई है, वहीं इसमें से 14 लाख हेक्टेयर फसल काफी प्रभावित हो चुकी है। जो कि अपने आप में एक बड़ा हिस्सा है। राज्य के कृषि विभाग द्वारा 47.24 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अथवा 19 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत पैदावार की संभावना व्यक्त की गई है। इसी आधार पर आंकड़ा भी निकाला गया है।

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पंजाब के इन जनपदों को बेमौसम बारिश ने काफी प्रभावित किया है

ओलावृष्टि के साथ तीव्र हवाओं की वजह से पंजाब के मोगा, फाजिल्का, पटियाला और मुक्तसर सहित पंजाब के बहुत से अन्य इलाकों में भी गेंहू के साथ अन्य फसलें भी काफी प्रभावित हुई हैं। हालाँकि, सहूलियत की बात यह है, कि केंद्र सरकार की एजेंसियों के माध्यम से 18 फीसद तक भीगे, सिकुड़े और टूटे गेंहू के लिए छूट दे दी है। नतीजतन कृषकों को अत्यधिक हानि वहन नहीं करनी पड़ेगी। लेकिन, किसान भाइयों की यही अरदास है, कि गेंहू विक्रय से पूर्व बारिश ना हो जाए।
गेहूं की यह नई किस्म मोटापे और डायबिटीज के लिए रामबाण साबित होगी

गेहूं की यह नई किस्म मोटापे और डायबिटीज के लिए रामबाण साबित होगी

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के प्लांट ब्रीडिंग जेनेटिक्स डिपार्टमेंट ने गेंहू की PBW RS1 किस्म को विकसित किया है। इससे किसानों को कम लागत। यह किस्म मोटापे और शुगर के इंसुलेशन के स्तर को बढ़ने नहीं देती है। यह किस्म हमारे शरीर के लिए काफी फायदेमंद साबित होगी। गेंहू रबी सीजन की एक सबसे प्रमुख फसल है। साथ ही, यह खाने के मकसद से काफी पौष्टिक अनाज है। इसको अधिकांश लोग आहार के रूप में उपयोग किया जाता है। ज्यादातर लोग गेंहू के आटे से निर्मित रोटियों का सेवन करते हैं। किसान गेंहू की फसल से काफी अच्छी आमदनी भी कर लेते हैं। साथ ही, लुधियाना स्थित पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के प्लांट ब्रीडिंग एंड जेनेटिक्स डिपार्टमेंट ने गेहूं की एक ऐसी किस्म तैयार की है, जो मोटापे एवं शुगर के इन्सुलिन स्तर को बढ़ने नहीं देगी। इस वजह से गेहूं की ये किस्म सेहत के लिए काफी लाभदायक साबित होगी। इस बार रबी के सीजन में किसानों को यह बीज लगाने के लिए प्रदान किया जाएगा। साथ ही, इसकी फसल को किस तरह तैयार करना है, इसका प्रशिक्षण भी किसान भाइयों को दिया जाएगा।

गेहूं की PBW RS1 किस्म कितने समय में तैयार होती है

सामान्य तौर पर आपने सुना होगा कि जो भी लोग मोटापे से ग्रसित होते हैं, उन्हें गेहूं का सेवन करने के लिए डॉक्टर मना कर देते हैं। परंतु, पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के प्लांट ब्रीडिंग एंड जेनेटिक्स डिपार्टमेंट के कृषि वैज्ञानिकों ने लगभग 8 से 10 साल में गेहूं की बहुत सी किस्मों पर शोध कर के PBW RS1 किस्म तैयार किया है, जिसको खाने से अब डॉक्टर भी मना नहीं करेंगे। क्योंकि गेहूं की ये नई किस्म मोटापे को रोकने में सहायता करेगी।

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PBW RS1 गेहूं के क्या-क्या लाभ हैं

कृषि वैज्ञानिकों द्वारा गेहूं की ये जो स्पेशल किस्म विकसित की है इसके अनेकों लाभ हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी ही फायदेमंद साबित होगा। इस गेहूं का नियमित सेवन करने से मोटापे एवं शुगर जैसी समस्या पर काबू पाया जा सकता है। इस गेहूं की किस्म में न्यूट्रा सिटिकल वैल्यूज अधिक हैं। इसमें रेजिस्टेंस स्टार्च का कॉन्टेंट भी उपलब्ध है।

विकसित की गई गेहूं की यह नवीन किस्म 2024 अप्रैल माह के पश्चात बाजार में मिलेगी

इसके दाने डायबिटिक मरीजों के लिए भी काफी लाभकारी साबित होंगे। यह फाइबर की भांति शीघ्र ही डाइजेस्ट हो जाएगी। यह गेहूं 2024 अप्रैल महीने के बाद से बाजार में मौजूद रहेगी। वहीं, इस नए बीज की फसल तो कम होगी, परंतु बाजार में इसका भाव ज्यादा मिलेगा।
पंजाब के इन क्षेत्रों में कुल आलू उत्पादन का 80 प्रतिशत बीज के लिए उपयोग होता है

पंजाब के इन क्षेत्रों में कुल आलू उत्पादन का 80 प्रतिशत बीज के लिए उपयोग होता है

पंजाब के कपूरथला और जालंधर में होने वाले आलू का सर्वाधिक उपयोग बीजों के लिए किया जाता है। आलू की ये किस्में कुफरी पुखराज और ज्योति हैं। भारत में इनकी सबसे अधिक खरीदारी कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और दिल्ली में की जाती है। विश्व में आलू उत्पादन के संबंध में भारत दूसरे स्थान पर आता है। परंतु, यदि हम खपत की बात करें, तो भारत में ही इसका काफी भाग खाने में उपयोग कर लिया जाता है। परंतु, आज हम आपको आलू की पुखराज और ज्योति किस्म के विषय में बताने जा रहे हैं, जिसकी मांग भारत ही नहीं, बल्कि विश्व भर में है। हम बात कर रहे हैं, पंजाब के कपूरथला-जालंधर जनपद में हो रहे आलू के विषय में। दरअसल यहां होने वाले आलू की मांग इसलिए ज्यादा है, क्योंकि इसका बीज उत्पादन एवं गुणवत्ता के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माने जाने वाला बीज है। 

यहां के समकुल आलू उत्पादन का 85 फीसद बीजों के लिए होता है

कपूरथला और जालंधर में होने वाले इस आलू की बात करें, तो इसकी कुल पैदावार का 85 फीसद तो सिर्फ बीजों के लिए ही निकाल दिया जाता है। एक रिपोर्ट के अनुसार, इन क्षेत्रों में समकुल
आलू उत्पादन का 85 प्रतिशत किसान बीज के लिए ही निकाल देते हैं। इसकी प्रमुख वजह यह है, कि आलू की तुलना में उसके बीजों को बेचने पर किसानों का मुनाफा कई गुना तक बढ़ जाता है। भारत के बहुत से किसान तो इन बीजों की बुकिंग यहां के किसानों से फसल के काटने से पहले ही करा लेते हैं।

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सबसे ज्यादा पुखराज और ज्योति किस्म की खेती की जाती है

आलू के लिए पुखराज और ज्योति की किस्में पंजाब के दोआब क्षेत्र की सबसे ज्यादा बोई जाने वाली किस्मों में सबसे खास हैं। इसकी मुख्य वजह है, कि यह किस्में दोआब क्षेत्र में सबसे ज्यादा देखी जाती हैं। इसके होने वाले बीजों के द्वारा जो उत्पादन मिलता है, वो काफी ज्यादा होता है। यही कारण है, कि इन कि स्मों की खेती इन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा होती है। 

जानें कितने हेक्टेयर में इसकी खेती होती है

पंजाब में आलू की इस फसल को जनपद में बहुत बड़ी मात्रा में बोया जाता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इसकी जनपद में लगभग 10000 हेक्टेयर में बुवाई की जाती है। वहीं, यदि हम इसके उत्पादन की बात करें, तो तकरीबन 2 लाख मैट्रिक टन आलू की उपज की पैदावार जनपद में प्रति वर्ष होती है।

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इन राज्यों में सप्लाई की जाती है

कपूरथला में पैदा होने वाले इस आलू को भारत के विभिन्न राज्यों द्वारा काफी पसंद किया जाता है। परंतु, यदि हम इसकी सबसे अधिक मांग की बात करें, तो यह आलू सर्वाधिक कर्नाटक, पश्चिम बंगाल एवं दिल्ली के द्वारा खरीदा जाता है। इसके अतिरिक्त उत्तराखंड और कुछ मात्रा में उत्तर प्रदेश के अंदर भी खरीदा जाता है।

पंजाब सरकार के इस साल के बजट में किसानों के लिए क्या है? 

पंजाब सरकार के इस साल के बजट में किसानों के लिए क्या है? 

पंजाब में 27 जून को पेश यानी आज के दिन पेश हुआ बजट, जिसमे शिक्षा, कृषि और स्वास्थ्य में फोकस किया गया है.

हरपाल सिंह चीमा जो की पंजाब के वित्त मंत्री है उन्होंने भ्रष्टाचार विरोधी अभियान को लेकर बजट पेश किया. उन्होंने एक जुलाई से मुफ्त बिजली देने का वादा किया और साथ ही अपने मंत्री विजय सिंगला के खिलाफ मान की कार्रवाई का जिक्र किया. 11,000 करोड़ रुपए भगवंत मान सरकार ने कृषि के लिए आवंटित किए है. जिसमे से पराली जलाने की समस्या के लिए 200 करोड़ रुपए आवंटित किए है.

ये भी पढ़ें: पंजाब सरकार बनाएगी पराली से खाद—गैस राज्य में मेडिकल कॉलेज बहुत कम है जिसकी वजह से सरकार ने 16 मेडिकल कॉलेज स्थापित करने का वादा किया है. जिसकी वजह से राज्य में कुल 25 मेडिकल कॉलेज हो जाएंगे. उन्होंने कहा कि वन विधायक वन पेंशन से 19 करोड़ हर साल और पेपरलेस बजट से 21 लाख रुपए बचेंगे. वित्तमंत्री हरपाल चीमा ने कहा कि बजट का एक एक पैसा लोगो पर खर्च होगा. हरपाल चीमा का कहना है कि यह बजट आम जनता की सलाह से बनाया गया है. इस बजट के लिए 20384 सुझाव लोगो ने दिए जिसमे से लगभग 5503 राज्य की महिलाओं ने भी सलाह दी थी. इस बार बजट में कोई नया टैक्स नहीं जोड़ा गया है. 450 करोड़ का प्रावधान सीधी बिजाई के लिए किया है. पिछली बार सरकार ने टैक्स की चोरी को लेकर कोई इंतजाम नही किया था, परंतु इस बार सरकार ने टैक्स की चोरी को रोकने के लिए पहली बार यूनिट बनाने जा रही है. शिक्षा के क्षेत्र में इस बार सरकार ने बड़ा फैसला लिया है. स्कूली व उच्च शिक्षा में 16, तकनीकी शिक्षा में 47 और मेडिकल शिक्षा में 57 फीसदी तक का इजाफा किया गया है। भगवंत मान सरकार ने 2022 - 23 में 55 हजार 860 करोड़ के बजट खर्चे का अनुमान रखा है.
डीएसआर तकनीकी से धान रोपने वाले किसानों को पंजाब सरकार दे रही है ईनाम

डीएसआर तकनीकी से धान रोपने वाले किसानों को पंजाब सरकार दे रही है ईनाम

12 हजार हेक्टेयर जमीन में डीएसआर तकनीकी से धान की खेती करने का शासन ने दिया है लक्ष्य

चंडीगढ़।
पंजाब सरकार कृषि विभाग डीएसआर तकनीकी (डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस तकनीक) या सीधी बिजाई से धान की खेती करने वाले किसानों को ईनाम दे रही है। इस तकनीकी से धान की रोपाई करने से 35 फीसदी पानी की बचत होती है। जिसे ध्यान में रखते हुए शासन द्वारा पूरे राज्य के किसानों को 12 लाख हेक्टेयर जमीन में डीएसआर तकनीकी से धान की फसल करने का लक्ष्य दिया है। हालांकि अभी 77 हजार हेक्टेयर में ही डीएसआर तकनीकी से धान की खेती की जा रही है, जो लक्ष्य से काफी पीछे है। राज्य सरकार ने इस तकनीकी से धान की खेती करने वाले किसानों को प्रति एकड़ 1500 रुपए ईनाम देने की घोषणा की है।

बढ़ा दी गई है डीएसआर से खेती करने की तारीख

- कृषि विभाग ने धान की सीधी बुवाई करने के लिए पहले 30 जून तक का समय दिया था। लेकिन लक्ष्य से पीछे रहने के कारण इसकी तारीख अब 4 जुलाई कर दी गई है। जानकारी मिल रही है कि अभी इसका समय और बढ़ाया जाएगा। ताकि ज्यादा से ज्यादा जमीन पर डीएसआर तकनीकी से धान की फसल हो सके।

जानें क्या है डीएसआर तकनीकी?

- यहां किसानों को यह समझने की जरूरत है कि आखिर डीएसआर तकनीकी क्या है? डीएसआर तकनीकी में धान के बीज को सीधे खेत में लगाया जाता है। इसमें धान की नर्सरी बनाने की आवश्यकता नहीं होती है। जिसे प्रसारण बीज विधि (डीएसआर) कहा जाता है। इसके लिए खेत की जमीन समतल होनी चाहिए।

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'प्रसारण बीज विधि' के फायदे एवं नुकसान

- प्रसारण बीज विधि (डीएसआर) के तहत धान की फसल करने वाले किसानों के लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि इस विधि से खेती करने के कितने फायदे एवं नुकसान हैं।

फायदे

- डीएसआर तकनीकी से धान की फसल को सीधे ड्रिल किया जाता है। इससे पानी की 35% तक बचत होती है। इसमें बासमती किस्म के धान की अच्छी रोपाई होती है। इस विधि से धान की खेती करने पर सरकार से ईनाम दिया जा रहा है।

नुकसान

- डीएसआर तकनीकी से धान की फसल करने से खेत में खरपतवार होने की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है। धान रोपाई की अपेक्षा फसल लेट हो सकती है। किसानों के लिए पानी की सप्लाई भी बेहतर ढंग से करना मुश्किल हो सकता है। ------- लोकेन्द्र नरवार
बौनेपन की वजह से तेजी से प्रभावित हो रही है धान की खेती; पंजाब है सबसे ज्यादा प्रभावित

बौनेपन की वजह से तेजी से प्रभावित हो रही है धान की खेती; पंजाब है सबसे ज्यादा प्रभावित

भारत में खेती का खरीफ सीजन चल रहा है। इस मौसम में उत्पादित की जाने वाली फसलों की बुवाई लगभग भारत भर में पूरी हो चुकी है। कई राज्यों में तो अब खरीफ की फसलें लहलहा रही हैं लेकिन इस बार धान की फसल में एक रोग ने किसानों की रातों की नींद खराब कर दी है। यह धान में लगने वाला बौना रोग (paddy dwarfing)  है जो धान की फसल को बर्बाद कर रहा है। यह बीमारी वर्तमान समय में पंजाब में तेजी से फ़ैल रही है जिससे राज्य के किसान परेशान हो रहे हैं, क्योंकि इस रोग में धान के पौधे अविकसित रह जाते हैं व उनसे धान का उत्पादन नहीं हो पायेगा।


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इस रोग के कारण पंजाब राज्य के कई जिले प्रभावित हो चुके हैं। वहां के किसान इस रोग के कारण बेहद परेशान हैं क्योंकि उन्हें अपनी धान की खेती खराब होने का भय सता रहा है। इस रोग की समस्या मुख्यतः लुधियाना, पठानकोट, गुरदासपुर, होशियारपुर, रोपड़ और पटियाला में है। जहां सैकड़ों हेक्टेयर जमीन में लगी हुई धान की फसल चौपट हो रही है। बौनेपैन का रोग धान की फसलों को पूरी तरह से बर्बाद कर रहा है। इस रोग की वजह से अब तक लुधियाना जिले को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। राज्य में बड़े पैमाने पर धान उगाया जा रहा है, लेकिन अब तक 3,500 हेक्टेयर से अधिक फसल में बौनेपैन का रोग लग चुका है। अगर धान के मूल्य का हिसाब किया जाए, तो सिर्फ लुधियाना में ही अब तक इस रोग के कारण किसानों को 51.35 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो चुका है। यह किसानों के लिए बड़ा झटका है क्योंकि आने वाले दिनों में यदि यह बीमारी नहीं रुकी, तो यह बीमारी और भी ज्यादा धान की फसल को अपने चपेट में ले सकती है। यह सब के चलते धान के उत्पादन में असर पड़ना तय है और इस कारण से किसानों को इस बार धान की खेती में नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।


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जब यह बीमारी तेजी से बढ़ने लगी उसके बाद पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने धान के पौधों में बौनेपन की इस बीमारी पर रिसर्च किया। जिसके बाद पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने बताया कि यह बीमारी सबसे पहले चीन की धान की खेती में देखी गई थी। उसके बाद यह दुनिया में फ़ैली है। पौधों में यह बीमारी डबल-स्ट्रैंडेड आरएनए वायरस के कारण होती है, जिसके मुताबिक इसे बौना रोग कहते हैं। इसके पहले पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने इस बीमारी को अज्ञात बीमारी के तौर पर चिन्हित किया था। पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के साथ पंजाब की सरकार इस बीमारी से निजात पाने के लिए लगातार प्रयासरत है ताकि किसानों की कड़ी मेहनत से उगाये गए धान को बचाया जा सके। इस समस्या का समाधान ढूढ़ने के लिए पंजाब सरकार ने सम्बंधित विभागों को आदेश जारी किये हैं, क्योंकि यदि इस समस्या के समाधान में देरी की गई तो पंजाब के किसानों की हजारों हेक्टेयर में लगी हुई धान की खेती खराब हो सकती है, जो किसानों के लिए बड़ा झटका होगा।
पराली प्रदूषण से लड़ने के लिए पंजाब और दिल्ली की राज्य सरकार एकजुट हुई

पराली प्रदूषण से लड़ने के लिए पंजाब और दिल्ली की राज्य सरकार एकजुट हुई

पराली आज कल देश की विषम परिस्थिति एवं प्रदुषण का कारण बनी हुई है, शासन प्रशासन दोनों ही इस विषय से चिंतित है। पराली के जलाने से वायु प्रदुषण काफी मात्रा मे बढ़ता जा रहा है जो कई बिमारियों को बुलावा दे रहा है। पंजाब और दिल्ली राज्य सरकार इसको लेकर बेहद सजग है एवं इससे निपटने के लिए कदम से कदम मिलाकर साथ आ गए हैं, जिसकी जानकारी पंजाब राज्य सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल (Kuldeep Singh Dhaliwal) ने दी। धालीवाल जी ने अवगत कराया की राज्य सरकार परस्पर सहमति एवं सहयोग से पराली समस्या (यानी फसल अवशेष or Crop residue) से निजात पाने की दिशा में कार्य करने जा रही है। साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार पे भी निशाना साधते हुए कहा की केंद्र सरकार पूर्व में पराली से निपटने के लिए आर्थिक मदद देने के वादे से मुकर गयी है। दिल्ली राज्य सरकार के मुख्यमंत्री श्री अरविन्द केजरीवाल जी ने भी इस समस्या को गहन विचार विमर्श करते हुए प्राथमिकता दी है, क्यूंकि पराली के जलने के कारण दिल्ली का प्रदूषण काफी हद तक प्रभावित होता है। इससे दिल्ली की जनता को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। पूर्व में इस प्रकार के अनुभवों के कारण दिल्ली सरकार इस समस्या को काफी गंभीरता से ले रही है।

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पंजाब व दिल्ली सरकार किसानो के लिए ४५२ करोड़ की राशि, सब्सिडी वाले कृषि यंत्रों पर देने की घोषणा कर चुकी है। आप सरकार ५००० एकड़ जमीन पर पराली के लिए पूसा बायो डीकम्पोज़र के छिड़काव का उपयोग करेगी, जो कि प्रदुषण नियंत्रण में मुख्य भूमिका निभाएगा। सरकार पराली से सम्बंधित समस्या को हर हाल में दूर करने का भरपूर प्रयास कर रही है। सरकार आधुनिक कृषि यन्त्र एवं द्रव्य पदार्धों की सहायता भी लेगी। पंजाब में धान की खेती लगभग २९-३० लाख हेक्टेयर रकबे में होने का अनुमान है, जिससे अंदाजा है की २० मिलियन टन धान की पुआल पैदा हो सकती है। पंजाब सरकार ने इस समस्या को देखते हुए केंद्र सरकार से मदद मांगी थी, जिसमे केंद्र सरकार ने पंजाब और दिल्ली राज्य प्रत्येक को ३७५ करोड़ की मदद देने की बात संयुक्त प्रस्ताव में कही थी, जिसमे पंजाब व दिल्ली सरकार ने केंद्र से ११२५ का परिव्यय माँगा।

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भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI ) के माध्यम से लागू की जाने वाली पायलट परियोजना के अंतर्गत लगभग २०२३ हेक्टेयर भूमि पर सरकार द्वारा बायो डीकम्पोज़र का छिड़काव किया जायेगा, जिसमे धालीवाल जी ने कुछ जगहों पर मुफ्त में छिड़काव करने की भी बात कही। दिल्ली का वातावरण अत्यधिक यातायात व वाहनों के धुएं से प्रदूषित तो होता ही है, पराली जलाने के कारण और भी दूषित हो जाता है। दिल्ली व पंजाब सरकार किसान हित में योजना बनाने की तैयारी में है ,लेकिन इसके लिए राज्य सरकार के पास पर्याप्त धनकोष नहीं है। इसलिए पंजाब व दिल्ली राज्य सरकार को केंद्र से आर्थिक सहायता की आवश्यक्ता है, जिसके लिए केंद्र सरकार इंकार कर देती है। उपरोक्त में धालीवाल जी ने केंद्र पर आर्थिक मदद न करने का आरोप लगाया है।
पंजाब सरकार पराली जलाने से रोकने को ले कर सख्त, कृषि विभाग के कर्मचारियों की छुट्टी रद्द..

पंजाब सरकार पराली जलाने से रोकने को ले कर सख्त, कृषि विभाग के कर्मचारियों की छुट्टी रद्द..

पंजाब के कृषि मंत्री ने पराली जलाने (stubble burning) पर प्रतिबंध को जमीनी स्तर पर लागू करने के लिए पिछले दिनों अधिकारियों के साथ बैठक की। बैठक के दौरान, उन्होंने अधिकारियों को जमीनी स्तर पर किसानों के साथ मिलकर काम करने की सलाह दी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रतिबंध का ठीक से पालन हो। खेती का सीजन जोरों पर है। आने वाले दिनों में धान की फसल कटाई के लिए तैयार हो जाएगी। बहुत जगह फसल तैयार भी हो चुकी हैं और कटाई शुरू हो चुकी है। इसी कड़ी में पंजाब सरकार ने बहुत ही सक्रिय भूमिका निभाई है। पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए इस बार पंजाब सरकार जमीनी स्तर पर सक्रिय भूमिका निभा रही है और इसको ध्यान मे रखते हुए पंजाब सरकार ने एक उल्लेखनीय निर्णय लिया है जिसमे कृषि विभाग सहित सभी कर्मचारियों की छुट्टी रद्द कर दी है। कृषि मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल (Kuldeep Singh Dhaliwal ने इस बारे में जानकारी साझा की है। ये भी पढ़े: पराली जलाने पर रोक की तैयारी

इस तारीख तक छुट्टी रद्द

पंजाब सरकार ने पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए राज्य के कृषि विभाग के कर्मचारियों की 7 नवंबर तक की छुट्टी रद्द करने का फैसला किया है। दरअसल पंजाब के कृषि मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल ने बीते रोज पराली जलाने को रोकने के लिए अधिकारियों के साथ बैठक की और जिला स्तर पर क्रियान्वयन करने के लिए इसके रोडमैप पर चर्चा की। मंत्री महोदय ने कहा कि राज्य में पराली जलाने की प्रथा को रोकने के लिए विभिन्न कदम उठाए जा रहे हैं। इन कदमों में शिक्षा और प्रवर्तन भी शामिल हैं। मंत्री ने कृषि विभाग के सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को जमीनी स्तर पर ध्यान केंद्रित कर काम करने के लिए कहा। उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे 7 नवंबर तक विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को छुट्टी न दें। कृषि मंत्री ने पराली जलाने को रोकने के लिए जागरूकता अभियान चलाने और सभी गतिविधियों की निगरानी के लिए एक राज्य स्तरीय समिति का गठन किया है। सख्त निर्देश देते हुए मंत्री महोदय ने सेंट्रल कंट्रोल रूम बनाने के भी आदेश दिए हैं। ये भी पढ़े: पराली प्रदूषण से लड़ने के लिए पंजाब और दिल्ली की राज्य सरकार एकजुट हुई दिल्ली-एनसीआर में हर साल सर्दी के मौसम में गंभीर वायु प्रदूषण होता है। प्रदूषण की शुरुआत अक्टूबर महीने से हो जाती है। यह वही समय है जब पंजाब और हरियाणा में किसानों द्वारा पराली जलाया जाता है जो की एक गंभीर समस्या का रूप ले लेता है। हाल के वर्षों में पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए तरह-तरह के प्रयास किए जा रहे हैं जिसमे किसानों को जागरूक भी किया जा रहा हैं। इसी समय दिल्ली एनसीआर में पराली के धुएं से होने वाले प्रदूषण का अनुपात 40% से अधिक दर्ज किया है। खुले में पराली को जलाने से वातावरण में बड़ी मात्रा में हानिकारक प्रदूषक निकलते हैं, जिनमें गैसें भी शामिल हैं जो पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं। ये प्रदूषक को वातावरण में फैलने से रोकना चाहिए क्योंकि ये भौतिक और रासायनिक परिवर्तनों से गुजरते हैं और अंततः धुंध की मोटी चादर बना देते हैं। इससे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ये भी पढ़े: पंजाब सरकार बनाएगी पराली से खाद—गैस पराली जलाने से बचने के लिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार राष्ट्रीय पराली नीति बनाई है। राज्यों को इसका सख्ती से पालन करने का दिशा निर्देश भी दिया गया है। आज तक, खेतों में पराली को नष्ट करने के लिए कोई प्रभावी और उपयुक्त तरीके और मिशनरी सामने नहीं आए हैं। हैपीसीडर व एसएमएस सिस्टम से प्रणाली भूसे को खेत में मिलाया जा सकता है, लेकिन यह पूरी तरह से ठोस प्रणाली नहीं है जिससे खेत अगली फसल के लिए पूरी तरह से तैयार हो सके। पराली जलाने की समस्या के समाधान के लिए पिछले चार साल में केंद्र सरकार ने पंजाब पर करोड़ों रुपये खर्च किए हैं, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है। खेतों में अभी भी बड़ी संख्या में पराली जलाई जा रही है।
पंजाब सरकार सिचाईं पर करेगी खर्च कम, लेगी सौर ऊर्जा की मदद

पंजाब सरकार सिचाईं पर करेगी खर्च कम, लेगी सौर ऊर्जा की मदद

पंजाब सरकार ने कृषि सिचाईं के खर्च को कम करने के लिए १५ हॉर्स पावर सौर ऊर्जा यानि सोलर एनर्जी (solar energy) की सहायता लेने के लिए केंद्र सरकार से आर्थिक मदद मांगी है। पी एम कुसुम योजना के तहत केंद्र सरकार किसानों के लिए सौर ऊर्जा चलित पंप सेट प्रदान करती है। इसी के अनुरूप पंजाब सरकार भी राज्य के किसानों के लिए हर सम्भव प्रयास कर रही है, जिससे राज्य के किसानों की बिजली का खर्च कम हो सके। पंजाब एक महत्वपूर्ण फसल उत्पादक राज्य है जो कि कृषि जगत में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसी वजह से खरीफ की फसल के उत्तम उत्पादन के लिए राज्य के किसानों को बीज के साथ साथ अधिक बिजली की भी आवश्यकता पड़ती है। यही कारण है कि पंजाब सरकार बिजली के खर्च को कम करने के लिए पी एम कुसुम योजना से वित्तीय सहायता की मांग की है।

पंजाब राज्य को भी पी एम कुसुम योजना में सम्मिलित करने की मांग

पंजाब सरकार के नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा स्त्रोत मंत्री अमन अरोड़ा जी ने बताया कि उन्होंने केंद्र सरकार को लिखित में पत्र भेजा है, जिसमें पंजाब राज्य को पी एम कुसुम योजना में सम्मिलित करने की मांग की है। साथ ही, पंजाब सरकार इस मांग को औपचारिक रूप से केंद्र के समक्ष प्रस्तुत कर चुकी है। हालाँकि, अमन अरोरा जी ने ये भी कहा कि पंजाब राज्य को इस पी एम कुसुम योजना के लाभ से वंचित रखा गया है। साथ ही पंजाब में ज्यादातर पंप सेट की क्षमता १० से १५ एच पी है, किसान उनको वहन करने के लिए सक्षम नहीं हैं, इसलिए किसानों को सी एफ ए यानि केन्द्रीय वित्तीय सहायता की अत्यधिक आवश्यकता है।


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पंजाब राज्य सरकार ने कितने हॉर्स पावर के पंप सेट के लिए माँगा फंड

केंद्र सरकार १ अगस्त २०२२ को पूर्वोत्तर व पहाड़ी राज्यों के किसानों को १५ एच पी क्षमता वाले कृषि पम्पों के लिए सी एफ ए प्रदान करने का प्रावधान किया है, सिर्फ पंजाब राज्य में ही यह ७.५ एच पी तक है। लेकिन पंजाब राज्य सरकार ने १५ एच पी हॉर्स पावर के सौर ऊर्जा पंप सेट की मांग रखी थी।
मौसम की बदहाली को झेलने के बाद भी पंजाब धान की आवक-खरीद में लहरा रहा है परचम !

मौसम की बदहाली को झेलने के बाद भी पंजाब धान की आवक-खरीद में लहरा रहा है परचम !

पंजाब राज्य में बदहाल मौसम एवं मूसलाधार बरसात के कहर का सामना करते हुए भी चावल का बेहतरीन उत्पादन हुआ है। पंजाब में १०० लाख मीट्रिक टन धान की खरीद हो चुकी है। अतिशीघ्र ही किसानों को डीबीटी के जरिये फसल की भुगतान धनराशि भी प्राप्त हो जायेगी। फिलहाल पुरे देश की मंडियों में धान खरीदी हो रही है। इस सन्दर्भ में पंजाब बेहद अहम भूमिका अदा कर रहा है। पंजाब राज्य की मंडियों में प्रतिदिन ७ लाख मीट्रिक टन धान की खरीद हो रही है। पंजाब खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग ने बताया है कि १५ नवंबर तक धान की खरीदी में पूर्व से अधिक तीव्रता आयेगी। अनुमानुसार पंजाब की मंडियों में ३० अक्टूबर तक १०५ लाख मीट्रिक टन से ज्यादा धान की खरीद हुई थी, जिसमें २९ अक्टूबर तक ९८.५३ लाख मीट्रिक टन धान की खरीद हो चुकी थी। धान की खरीद के उपरांत किसानों को लगभग १५,४०० करोड़ रुपये भुगतान धनराशि दी जा चुकी है। पंजाब राज्य सरकार भी २,००० करोड़ रुपये जारी करने का फैसला कर लिया है।

१५ नवंबर तक रहेगी धान की खरीदी में तीव्रता

दिवाली बाद किसान अपनी धान की पैदावार का मंडी की ओर रुझान करना प्रारंभ कर दिया है। पंजाब राज्य से धान की आवक एवं खरीद चालू है। मीडिया के मुताबिक, पुंजाब में १५ नवंबर तक धान की आवक एवं खरीद अपने रिकॉर्ड स्तर पर रहेगी। इस साल पंजाब ने करीब १९० लाख मीट्रिक टन धान खरीदने का लक्ष्य निर्धारित किया है। प्रारम्भ में मूसलाधार बारिश के चलते कटाई में विलंब होने के कारण इस लक्ष्य को प्राप्त करना असंभव सा महसूस हो रहा था, लेकिन १५ अक्टूबर से ही धान की कटाई में तीव्रता हुई थी।

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चावल मिलों ने जाहिर की अपनी समस्याएँ

अक्टूबर माह में कटाई से पूर्व बारिश होने के चलते धान में गीलेपन की मात्रा में बढ़ोत्तरी हुई है, जिसके कारण धान का वजन लगभग १७% तक बढ़ जाने के चलते मिल मालिकों द्वारा धान खरीदने से इंकार कर दिया गया। इसकी मुख्य वजह यह है कि धान में नमी की मात्रा में बढ़ोत्तरी होने पर धान के मिल मालिकों को कस्टम मिलिंग के उपरांत धान से ६७% चावल लेने में काफी दिक्कत आती है। लेकिन फिलहाल इस समस्या का समाधान मिल गया गया है एवं मिल किसानों से धान की खरीद कर रहे हैं। बतादें कि अभी अनाज की खरीद बाकि है, अब तक के आंकड़ों के मुताबिक पंजाब की मंडियों द्वारा ८०.३३ लाख मीट्रिक टन अनाज लिया जा चुका है। लेकिन अब तक २२.१९ फीसदी अनाज लेना अतिरिक्त बचा हुआ है, यहां लगभग १०५.५३ मीट्रिक टन धान आ चुका है, जिसमें से १०३.२३ लाख मीट्रिक टन धान क्रय संपन्न हो चुका है। अब तक आये हुए धान में से ९७.८३ फीसदी की धान खरीदी हो गयी है।
पंजाब द्वारा लगवाई गई 300 मेगावाट सौर परियोजनाओं से कैसे होगा किसानों को लाभ

पंजाब द्वारा लगवाई गई 300 मेगावाट सौर परियोजनाओं से कैसे होगा किसानों को लाभ

हाल ही में की गई घोषणा के अनुसार पंजाब सरकार द्वारा 300 मेगावाट की सोलर परियोजनाएं लगाई जाएंगी। सोमवार को जारी सरकार की तरफ से घोषणा की गई है, कि यह योजना 2 तरह से बनाई जाएगी, जिसमें 200 मेगावॉट क्षमता की सौर फोटोवोल्टिक परियोजना नहर के ऊपर तथा 100 मेगावॉट क्षमता की परियोजना जल क्षेत्र में लगायी जाएगी। पंजाब के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत मंत्री अमन अरोड़ा की अध्यक्षता में हुई बैठक में यह निर्णय किया गया। अरोड़ा ने कहा कि नहर के ऊपर प्रस्तावित 200 मेगावॉट क्षमता की सौर परियोजना एक चरणबद्ध तरीके से लगायी जाएगी। पहले चरण में 50 मेगावॉट क्षमता की परियोजना लगायी जाएगी। अमन अरोड़ा द्वारा दिए गए बयान को माने तो वायबिलिटी गैप फंडिंग (वीजीएफ) कार्यक्रम जो कि केंद्रीय वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग द्वारा सामने लाया गया था, को इस सोलर परियोजना की स्थापना के लिए फंड देने को कहा जाएगा। यह परियोजना छोटी और संकरी नदियों पर बनाई जाएगी। छोटी नदी पर बनाए जाने के कारण यहां पर हमें कम से कम सिविल निर्माण की जरूरत पड़ेगी।


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क्या होगी प्रति मेगावॉट उर्जा की कीमत

200 मेगावाट परियोजना जो कैनाल-टॉप सौर पीवी परियोजना है, नहर के पानी में होने वाले वाष्पीकरण को रोकेंगी। साथ ही, यह परियोजना बहुत ज्यादा उपजाऊ और मूल्यवान भूमि को भी बचाएगी। इसके अलावा आजकल जो हर राज्य में युवा की समस्या है, रोजगार के अवसर उसको भी यह परियोजना पूरा करेगी। साथ ही इस परियोजना में एक नया विचार भी लाया जा रहा है, जो है फ्लोटिंग सोलर पीवी इसमें झीलों और आसपास के जलाशयों के उपयोगी क्षेत्र को इस्तेमाल में लाया जाएगा। 20% वीजीएफ के हिसाब से फ्लोटिंग सोलर पीवी प्रोजेक्ट्स की कीमत करीब 4.80 करोड़ रुपये प्रति मेगावॉट होगी। बिल्ड-ओन-ऑपरेट (बीओओ) एक प्रोजेक्ट डिलीवरी मॉडल है, जो आमतौर पर बड़े, जटिल पीपीपी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए उपयोग किया जाता है। एक विशिष्ट बीओओ परियोजना में एक सरकारी विभाग शामिल होता है, जो एक निजी कंपनी को समय की एक निर्धारित अवधि के लिए बुनियादी ढांचे का वित्तपोषण, निर्माण और संचालन करने की अनुमति देता है। जिसमें निजी कंपनी के पास बुनियादी ढांचे का स्वामित्व होता है। बीओओ मॉडल देश को निजीकरण के करीब ले जाता है। यह एक इकाई के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए निजी पूंजी का उपयोग करने का एक तरीका है, जबकि अन्य आवश्यक मिशनों के लिए संसाधनों को मुक्त करना है। यह एक प्रोजेक्ट डिलीवरी मॉडल है, जिसका उपयोग बड़ी, जटिल परियोजनाओं के लिए किया जाता है। बीओओ परियोजना एक प्रकार की परियोजना है, जिसमें एक सरकारी विभाग एक निजी कंपनी को एक निर्धारित अवधि के लिए बुनियादी ढांचे के एक हिस्से को वित्त, निर्माण और संचालित करने की अनुमति देता है। निजी कंपनी तब बुनियादी ढांचे की मालिक है और इसे अपने उद्देश्यों के लिए उपयोग कर सकती है। बीओओ मॉडल का मतलब है, कि देश निजीकरण के करीब जा रहा है। निजी पूंजी महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को निधि देने में मदद कर सकती है, जिससे यूनिट के अन्य मिशनों के लिए अन्य संसाधनों को मुक्त किया जा सकता है।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा पराली से निर्मित किया गया बागवानी प्लांटर्स से होंगे ये लाभ

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा पराली से निर्मित किया गया बागवानी प्लांटर्स से होंगे ये लाभ

विशेषज्ञों के अनुसार शहरों में बढ़ रहे बागवानी के शौक के बीच पराली के इन नर्सरी प्लांटर्स का प्रयोग किचन बागवानी अथवा सामान्य पौधरोपण हेतु किया जा सकता है। देश में धान की कटाई के उपरांत पराली को खत्म करना बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य हो जाता है। अधिकाँश किसान इस पराली का समुचित प्रबंधन करने की जगह जलाकर प्रदूषण में भागीदार बनते हैं। इसकी वजह से पर्यावरण प्रदूषण में वृध्दि हुई है व लोगों का स्वास्थ्य बेहद दुष्प्रभावित होता है। इस समस्या को मूल जड़ से समाप्त करने हेतु सरकार व वैज्ञानिक निरंतर कोशिश कर रहे हैं, जिसके बावजूद इस वर्ष भी बेहद संख्या में पराली जलाने की घटनाएं देखने को मिली हैं। बतादें कि, पराली के समुचित प्रबंधन हेतु विभिन्न राज्यों में पराली को पशु चारा बनाने को खरीदा जा रहा है।

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा यह उपाय निकाला गया

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) द्वारा पराली के समुचित प्रबंधन करने हेतु उपाय निकाला गया है। दरअसल, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के डिपार्टमेंट आफ अपैरल एंड टेक्सटाइल ने पराली से नर्सरी प्लांटर्स निर्मित किये हैं। इन प्लांटर्स की सहायता से प्लास्टिक व सीमेंट के प्लांटर्स के आधीन कम रहेंगे व पेड़-पौधे भी उचित तरीके से उन्नति करेंगे। विषेशज्ञों के अनुसार शहरों में तीव्रता से बड़ रहे बागवानी के खुमार के बीच इन नर्सरी प्लांटर्स का प्रयोग किचन बागवानी के लिए भी हो पायेगा। पराली के इन प्लांटर्स में उत्पादित होने वाली सब्जियां स्वास्थ्य हेतु अत्यंत लाभकारी होंगी।


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पराली से निर्मित होंगे प्लांटर्स

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार पराली से निर्मित नर्सरी प्लांटर्स किसानों के एवं किचन बागवानी का शौक रखने वालों हेतु भी लाभकारी है। निश्चित रूप से इससे प्लास्टिक के प्लांटर्स पर निर्भरता में कमी आएगी। पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट आफ अपैरल एंड टेक्सटाइल की रिसर्च एसोसिएट डॉ. मनीषा सेठी जी का कहना है, कि वर्तमान दौर में पेड़-पौधे लगाने का शौक बढ़ रहा है। आज तक लोग पौधे लगाने हेतु प्लास्टिक के प्लांटर्स का प्रयोग कर रहे थे। दरअसल प्लास्टिक प्लांटर्स से प्रदूषण बढ़ता है, इसलिए पराली से बने नर्सरी प्लांटर्स अब प्लास्टिक प्लांटर्स की जगह ले रहे हैं।

किस प्रकार से होगा उपयोग

विशेषज्ञों ने कहा है, कि केवल किचन बागवानी हेतु नहीं, पराली से बने प्लांटर्स को पौधा सहित भूमि में भी लगाया जा सकता है। पूर्ण रूप से पराली निर्मित इस प्लांटर्स में किसी भी अन्य पदार्थ का उपयोग नहीं हुआ है। इसके प्रयोग से भूमि में भी उर्वरक की पूर्ति होगी व खरपतवार से भी निपटा जा सकेगा। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा इन प्लांटर्स में पौधरोपण का परीक्षण भी किया जा चुका है। विशेषज्ञों ने इस पराली के प्लांटर का भाव १० से १५ रुपये करीब है, यदि प्लांटर को मशीन द्वारा निर्मित किया जाये तो २ से ३ रुपये में बन सकता है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा प्रशिक्षण लेकर किसान व युवा प्लांटर बना सकते हैं। किसान खेती करते समय प्लांटर मैनुफैक्चरिंग यूनिट स्थापित कर इनका उत्पादन कर अन्य नर्सरियों को विक्रय कर सकते हैं।