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लोबिया

अब हरे चारे की खेती करने पर मिलेंगे 10 हजार रुपये प्रति एकड़, ऐसे करें आवेदन

अब हरे चारे की खेती करने पर मिलेंगे 10 हजार रुपये प्रति एकड़, ऐसे करें आवेदन

हरा चारा (green fodder) पशुओं के लिए महत्वपूर्ण आहार है, जिससे पशुओं के शरीर में पोषक तत्वों की कमी दूर होती है। इसके अलावा पशु ताकतवर भी होते हैं और इसका प्रभाव दुग्ध उत्पादन में भी पड़ता है। जो किसान अपने पशुओं को हरा चारा खिलाते हैं, उनके पशु स्वस्थ्य रहते हैं तथा उन पशुओं के दुग्ध उत्पादन में वृद्धि होती है। हरे चारे की खेती करके किसान भाई अपनी आमदनी को बढ़ा सकते हैं, क्योंकि इन दिनों गौशालाओं में हरे चारे की जबरदस्त डिमांड है, 

जहां किसान भाई हरे चारे को सप्प्लाई करके अपने लिए कुछ अतिरिक्त आमदनी का प्रबंध कर सकते हैं। इन दिनों गावों में पशुपालन और दुग्ध उत्पादन एक व्यवसाय का रूप ले रहा है। ज्यादातर किसान इसमें हाथ आजमा रहे हैं, लेकिन किसानों द्वारा पशुओं के आहार पर पर्याप्त ध्यान न देने के कारण पशुओं की दूध देने की क्षमता में कमी देखी जा रही है। इसलिए पशुओं के आहार के लिए हरा चारा बेहद मत्वपूर्ण हो जाता है, जिससे पशु सम्पूर्ण पोषण प्राप्त करते हैं और इससे दुग्ध उत्पादन में भी बढ़ोत्तरी होती है। 

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हरे चारे की खेती ज्यादातर राज्यों में उचित मात्रा में होती है जो वहां के किसानों के पशुओं के लिए पर्याप्त है। लेकिन हरियाणा में हरे चारे की कमी महसूस की जा रही है, जिसके बाद राज्य सरकार ने हरे चारे की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए 'चारा-बिजाई योजना’ की शुरुआत की है। इस योजना के तहत किसानों को हरे चारे की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा, ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान हरे चारे की खेती करना प्रारम्भ करें। 

इस योजना के अंतर्गत सरकार हरे चारे की खेती करने पर किसानों को 10 हजार रुपये प्रति एकड़ की सब्सिडी प्रदान करेगी। यह राशि एक किसान के लिए अधिकतम एक लाख रुपये तक दी जा सकती है। यह सब्सिडी उन्हीं किसानों को मिलेगी जो अपनी जमीन में हरे चारे की खेती करके उत्पादित चारे को गौशालाओं को बेंचेंगे। इस योजना को लेकर हरियाणा सरकार के ऑफिसियल ट्विटर अकाउंट MyGovHaryana से ट्वीट करके जानकारी भी साझा की गई है। https://twitter.com/mygovharyana/status/1524060896783630336

हरियाणा सरकार ने बताया है कि यह सब्सिडी की स्कीम का फायदा सिर्फ उन्हीं किसानों को मिलेगा जो ये 3 अहर्ताएं पास करते हों :

  1. सब्सिडी का लाभ लेने वाले किसान को हरियाणा का मूल निवासी होना चाहिए।
  2. किसान को अपने खेत में हरे चारे के साथ सूखे चारे की भी खेती करनी होगी, इसके लिए उसको फॉर्म में अपनी सहमति देनी होगी।
  3. उगाया गया चारा नियमित रूप से गौशालाओं को बेंचना होगा।

जो भी किसान इन तीनों अहर्ताओं को पूर्ण करता है वो सब्सिडी पाने का पात्र होगा।

कौन-कौन से हरे चारे का उत्पादन कर सकता है किसान ?

दुधारू पशुओं के लिए बहुत से चारों की खेती भारत में की जाती है। इसमें से कुछ चारे सिर्फ कुछ महीनों के लिए ही उपलब्ध हो पाते हैं। जैसे कि ज्वार, लोबिया, मक्का और बाजरा वगैरह फसलों के चारे साल में 4-5 महीनों से ज्यादा नहीं टिकते। इसलिए इस समस्या से निपटने के लिए ऐसे चारा की खेती की जरुरत है जो साल में हर समय उपलब्ध हो, ताकि पशुओं के लिए चारे के प्रबंध में कोई दिक्कत न आये। भारत में किसान भाई बरसीम, नेपियर घास और रिजका वगैरह लगाकर अपने पशुओं के लिए 10 से 12 महीने तक चारे का प्रबंध कर सकते हैं। 

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बरसीम (Berseem (Trifolium alexandrinum))  एक बेहतरीन चारा है जो सर्दियों से लेकर गर्मी शुरू होने तक किसान के खेत में उपलब्ध हो सकता है। यह चारा दुधारू पशुओं के लिए ख़ास महत्व रखता है क्योंकि इस चारे में लगभग 22 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है। इसके अलावा यह चारा बेहद पाचनशील होता है जिसके कारण पशुओं के दुग्ध उत्पादन में साफ़ फर्क देखा जा सकता है। इस चारे को पशुओं को देने से उन्हें अतिरिक्त पोषण की जरुरत नहीं होती। बरसीम के साथ ही अब भारत में नेपियर घास (Napier grass also known as Pennisetum purpureum (पेन्नीसेटम परप्यूरियम), elephant grass or Uganda grass) या हाथी घास  आ चुकी है। 

यह किसानों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही है, क्योंकि यह मात्र 50 दिनों में तैयार हो जाती है। जिसके बाद इसे पशुओं को खिलाया जा सकता है। यह एक ऐसी घास है जो एक बार लगाने पर किसानों को 5 साल तक हरा चारा उपलब्ध करवाती रहती है, जिससे किसानों को बार-बार चारे की खेती करने की जरुरत नहीं पड़ती और न ही इसमें सिंचाई की जरुरत पड़ती है। नेपियर घास की यह विशेषता होती है कि इसकी एक बार कटाई करने के बाद, घास के पेड़ में फिर से शाखाएं निकलने लगती हैं। 

घास की एक बार कटाई के लगभग 40 दिनों बाद घास फिर से कटाई के लिए उपलब्ध हो जाती है। यह घास पशुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाती है। रिजका (rijka also called Lucerne or alfalfa (Medicago sativa) or purple medic) एक अलग तरह की घास है जिसमें बेहद कम सिंचाई की जरुरत होती है। यह घास किसानों को नवंबर माह से लेकर जून माह तक हरा चारा उपलब्ध करवा सकती है। इस घास को भी पशुओं को देने से उनके पोषण की जरुरत पूरी होती है और दुग्ध उत्पादन में वृद्धि होती है।

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सब्सिडी प्राप्त करने के लिए आवेदन कहां करें

जो भी किसान भाई अपने खेत में हरा चारा उगाने के इच्छुक हैं उन्हें सरकार की ओर से 10 हजार रूपये प्रति एकड़ के हिसाब से सब्सिडी प्रदान की जाएगी। इस योजना के अंतर्गत अप्प्लाई करने के लिए हरियाणा सरकार की ऑफिसयल वेबसाइट 'मेरी फसल मेरा ब्यौरा' पर जाएं और वहां पर ऑनलाइन माध्यम से आवेदन भरें। आवेदन भरते समय किसान अपने साथ आधार कार्ड, निवास प्रमाण पत्र, बैंक खाता डिटेल, आधार से लिंक मोबाइल नंबर और पासपोर्ट साइज का फोटो जरूर रखें। ये चीजों किसानों को फॉर्म के साथ अपलोड करनी होंगी, जिसके बाद अपने खेतों में हरे चारे की खेती करने वाले किसानों को सब्सिडी प्रदान कर दी जाएगी। सब्सिडी प्राप्त करने के बाद किसानों को अपने खेतों में उत्पादित चारा गौशालाओं को सप्प्लाई करना अनिवार्य होगा।

लोबिया की खेती: किसानों के साथ साथ दुधारू पशुओं के लिए भी वरदान

लोबिया की खेती: किसानों के साथ साथ दुधारू पशुओं के लिए भी वरदान

लोबिया को बहुत ही पोषक फसल माना जाता है। इसको पूरे भारत भर में उगाया जाता है। लोबिया के बहुआयामी उपयोग है। जैसे खाद्य, चारा, हरी खाद और सब्जी के रूप में होता है।

लोबिया मनुष्य के खाने का पौष्टिक तत्व है तथा पशुधन चारे का अच्छा स्रोत भी है| ये दुधारू पशुओं में दूध बढ़ाने का भी अच्छा जरिया बनता है तथा इसके खाने से पशु का दूध भी पौष्टिक होता है| 

इसके दाने में 22 से 24 प्रोटीन, 55 से 66 कार्बोहाईड्रेट, 0.08 से 0.11 कैल्शियम और 0.005 आयरन होता है| इसमे आवश्यक एमिनो एसिड जैसे लाइसिन, लियूसिन, फेनिलएलनिन भी पाया जाता है| 

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लोबिया की खेती के लिए खेत की तैयारी:

जैसा की आमतौर पर सभी फसलों के लिए गोबर की बनी हुई खाद बहुत आवश्यक होती है उसी तरह से लोबिया की फसल के लिए भी गोबर की सड़ी खाद बहुत आवश्यक होती है. 

इसके खेत में बुवाई से पहले नाइट्रोजन की मात्रा 20 kg पर एकड़ के हिसाब से मिला देना चाहिए. गोबर की 20-25 टन मात्रा बुवाई से 1 माह पहले खेत में डाल दें। जिससे की खाद में जो भी खरपतवार हो वो उग जाये और नष्ट हो सके| 

खाद डालने के बाद इसमें हैरो से 2 बार जुताई कर दें तथा 1 बार कल्टीवेटर निकाल दें जिससे की मिटटी मिलाने के साथ साथ इसमें गहराई भी आ सके| 

मिटटी और उर्वरक:

इसको किसी भी तरह की मिटटी में उगाया जा सकता है. वैसे इसके लिए रेतीली और दोमट मिटटी उपयुक्त रहती है. जल निकासी की सामान्य व्यवस्था होनी चाहिए. खेत में पानी रुकना नहीं चाहिए. 

लोबिया एक दलहनी फसल है, इसलिए नत्रजन की 20 कि.ग्रा, फास्फोरस 60 किग्रा तथा पोटाष 50 किग्रा/हेक्टेयर खेत में अंतिम जुताई के समय मिट्टी में मिला देना चाहिए तथा 20 किग्रा नत्रजन की मात्रा फसल में फूल आने पर प्रयोग करें। 

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मौसम और बोने का समय:

मौसम की अगर हम बात करें तो इसके लिए गर्म और नमी वाला मौसम अच्छा रहता है. इसको फ़रवरी,-मार्च और जून,-जुलाई में उगाया जा सकता है. 

इसके लिए 20 से 30 डिग्री तक का तापमान उचित रहता जो की इसके बीज को अंकुरित होने में सहायता करता है. 17 डिग्री से कम के तापमान पर इसे उगाना संभव नहीं है. 

लोबिया की उन्नत प्रजातियां:

हमारे कृषि वैज्ञानिक लगातार अपनी फसलों में उन्नत किस्में लेन के लिए मेहनत करते रहते हैं. लोबिया के लिए भी कुछ अच्छी पैदावार वाली किस्में विकसित की हैं. लोबिया की कुछ उन्नत प्रजातियां हैं जो निचे दी गई हैं|

  1. पूसा कोमल: लोबिया की यह किस्म रोग प्रतिरोधक है. इसमें आसानी से रोग नहीं आता है. इस किस्म की बुवाई बसंत, ग्रीष्म और बारिश, तीनों मौसम में आसानी से की जा सकती है. इसकी फलियों का रंग हल्का हरा होता है. यह मोटा गुदेदार होता है, जो कि 20 से 22 सेमी लम्बा होता है. इस किस्म की बुवाई से प्रति हेक्टेयर 100 से 120 क्विंटल पैदावार मिल जाती है|
  2. पूसा बरसाती: जैसा की नाम से ही पता चलता है इसको बरसात के मौसम में यानि जुलाई के महीने में लगाना ज्यादा सही रहता है. इसकी फलियों का रंग हल्का हरा होता है, जो कि 26 से 28 सेमी लंबी होती है. खास बात है कि यह किस्म लगभग 45 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इससे प्रति हेक्टेयर लगभग 70 से 75 क्विंटल पैदावार मिल जाती है.
  3. अर्का गरिमा: अर्का गरिमा पौधे ऊँचे और लम्बे होते है तथा ये पशु चारे के लिए भी उपयुक्त होते हैं। फलियाँ हल्की हरी, लंबी, मोटी, गोल, माँसल और रेशे-रहित हैं। सब्जी बनाने के लिए उत्तम हैं। ताप और कम नमी के प्रति सहनशील है।
  4. पूसा फालगुनी: जैसा की नाम से विदित हो रहा है इसको फ़रवरी और मार्च के महीने में लगाया जाता है. इसका पौधा छोटा तथा झाड़ीनुमा किस्म के होते है| इसकी फली का रंग गहरा हरा होता है. इनकी लंबाई 10 से 20 सेमी होती है. खास बात है कि यह लगभग 60 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं. इससे प्रति हेक्टेयर लगभग 70 से 75 क्विंटल पैदावार मिल सकती है.
  5. पूसा दोफसली: किस्म को फ़रवरी से लेकर जुलाई, अगस्त तक लगाया जा सकता है, ये तीनों मौसम में लगाई जाती है. इसकी फली का रंग हल्का हरा पाया जाता है. यह लगभग 17 से 18 सेमी लंबी होती है. यह 45 से 50 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं. इससे प्रति हेक्टेयर 75 से 80 क्विंटल पैदावार मिल सकती है.
लोबिया दाल में सेहत के लिए बेहद फायदेमंद पोषक तत्व विघमान रहते हैं

लोबिया दाल में सेहत के लिए बेहद फायदेमंद पोषक तत्व विघमान रहते हैं

लोबिया के अंदर काफी ज्यादा मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है, जिसकी वजह से इसे प्रोटीन का पावरहाउस भी कहा जाता है। लोबिया केवल इंसान के लिए ही नहीं बल्कि पशुओं की सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद होती है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि लोबिया में प्रोटीन, फाइबर, विटामिन, खनिज, एंटीऑक्सीडेंट एवं बहुत सारे अन्य पोषक तत्व भी भरपूर मात्रा में मौजूद होते हैं। हमारे शरीर को दीर्घकाल तक स्वस्थ बनाए रखने के लिए प्रोटीन एक जरूरी तत्व होता है, जो शरीर की मांसपेशियों को सशक्त और विभिन्न प्रकार के रोगों से लड़ने में भी सहायता करता है। जब भी प्रोटीन की बात होती है, तो इसका मुख्य स्त्रोत दूध, घी इत्यादि को माना जाता है। परंतु, क्या आपको मालूम है, कि इन सब से भी कहीं ज्यादा प्रोटीन की मात्रा लोबिया में होती है। लोबिया में काफी अच्छी मात्रा में प्रोटीन होता है। लोबिया को सुपरफूड भी कहा जाता है। क्योंकि यह प्रोटीन का पावर हाउस होता है। यह केवल इंसानों के लिए ही नहीं बल्कि पशुओं के शरीर के लिए भी बेहद लाभकारी होता है। पशुओं के लिए लोबिया हरा चारा होता है, जिससे खाने से दुधारू पशुओं में दूध उत्पादन की क्षमता बढ़ काफी हद तक बढ़ जाती है। लोबिया के अंदर प्रोटीन, फाइबर, विटामिन, खनिज, एंटीऑक्सीडेंट तथा विभिन्न अन्य पोषक तत्वों की मात्रा भी ज्यादा पाई जाती है। यह हरे रंग के दानेदार आकार में होता है। आज हम आपको लोबिया के फायदे और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी के विषय में बताऐंगे।

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लोबिया में पोषक तत्व कितनी मात्रा में पाए जाते हैं

  • प्रोटीन की मात्रा- 100 ग्राम लोबिया में तकरीबन 25-30 ग्राम प्रोटीन होता है।
  • फाइबर की मात्रा- 16-25 ग्राम लोबिया में लगभग 100 ग्राम तक फाइबर पाया जाता है।
  • कॉम्प्लेक्स कार्ब्सस की मात्रा- 60-65% कार्बोहाइड्रेट लोबिया में होती है।
  • आयरन की मात्रा- लोबिया के अंदर भरपूर मात्रा में आयरन होता है। इसके अतिरिक्त इसमें विटामिन C और फोलेट की भी भरपूर मात्रा उपलब्ध होती है।
  • ये ही नहीं बल्कि लोबिया की शुरुआती ताजी पत्तियों एवं डंठल में भी पोषक तत्व विघमान होते हैं। इसमें कुछ फीसदी कच्चा प्रोटीन, 3.0% ईथर का अर्क और 26.7% कच्चा फाइबर इत्यादि होता है।
  • लोबिया का सेवन करने से क्या-क्या लाभ होते हैं
  • यदि आप नियमित तौर पर लोबिया का सेवन करते हैं तो निश्चित तौर पर आपका वजन जल्दी से कम होने लगेगा।
  • लोबिया के सेवन से पाचन तंत्र काफी मजबूत बनता है।
  • यदि आप ह्रदय संबंधित किसी भी रोग से ग्रसित हैं, तो आप लोबिया का सेवन करें।
  • रात को सटीक समय पर नींद ना आने की बीमारी और इससे संबंधित अन्य बीमारी के लिए भी लोबिया बेहद फायदेमंद है।
  • लोबिया इम्युनिटी को बूस्ट करने में काफी सहयोग करता है।
  • लोबिया ब्लड शुगर लेवल को काबू में करता है। यदि आप मधुमेह यानी डायबिटीज की बीमारी से जूझ रहे हैं, तो लोबिया का सेवन जरूर करें।
लोबिया की इन पांच किस्मों से किसानों को मिलेगा बेहतरीन मुनाफा

लोबिया की इन पांच किस्मों से किसानों को मिलेगा बेहतरीन मुनाफा

लोबिया की उन्नत किस्मों को खेत में उगाने से किसान 50 दिनों के अंतर्गत तकरीबन 100 से 125 क्विंटल तक शानदार उत्पादन हांसिल कर सकते हैं। बाजार में ऐसी विभिन्न तरह की लोबिया की किस्में उपलब्ध हैं। परंतु, बेहतरीन उत्पादन अर्जित करने के लिए पंत लोबिया, लोबिया 263, अर्का गरिमा, पूसा बारसाती एवं पूसा ऋतुराज किस्मों का चुनाव करें। किसान भाई लोबिया की फसल से शानदार मुनाफा उठाने के लिए किसान को अपने खेत में शानदार और उम्दा किस्मों को लगाना चाहिए। लोबिया एक दलहनी फसल की श्रेणी के अंतर्गत आने वाली फसल है, जिसकी खेती भारत के छोटे और सीमांत किसानों के द्वारा सबसे ज्यादा की जाती है। क्योंकि यह फसल कम भूमि में भी अच्छी उत्पादन देती है। लोबिया की खेती खरीफ एवं जायद दोनों ही सीजन में की जाती है। परंतु, इसकी उन्नत किस्मों से किसान हर एक सीजन में लोबिया की बढ़िया पैदावार अर्जित कर सकते हैं। इसी क्रम में आज हम आपके लिए लोबिया की पांच उन्नत किस्मों की जानकारी लेकर आए हैं, जिसे लगाने के पश्चात आप प्रति एकड़ 100 से 125 क्विंटल उपज हांसिल कर सकते हैं। साथ ही यह किस्में 50 दिनों के सामान्यतः पककर पूरी तरह से तैयार हो जाती है।

लोबिया की पांच शानदार उन्नत किस्में

पंत लोबिया किस्म

लोबिया की इस प्रजाति के पौधे तकरीबन डेढ़ फीट तक ऊंचे होते हैं। पंत लोबिया को खेत में बोने के 60 से 65 दिन पककर तैयार होने में लग जाते हैं। लोबिया की यह किस्म प्रति हेक्टेयर 15 से 20 क्विंटल तक उपज प्रदान करती है।

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लोबिया 263 किस्म

लोबिया की यह किस्म अगेती फसल है, जो खेत में 40 से 45 दिनों के समयांतराल में पक जाती है। लोबिया 263 किस्म से किसान प्रति हेक्टेयर लगभग 125 क्विटंल तक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।

अर्का गरिमा किस्म

लोबिया की अर्का गरिमा किस्म बारिश व बसंत ऋतु के दौरान शानदार उत्पादन देती है। अर्का गरिमा किस्म 40-45 दिनों के समयांतराल में पक जाती है। बतादें, कि प्रति हेक्टेयर तकरीबन 80 क्विंटल तक पैदावार देती है।

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पूसा बरसाती किस्म

लोबिया की इस किस्म के नाम से ही ज्ञात हो जाता है, कि किसान इसे अपने खेत में बारिश के समय लगाएं, तो उन्हें बेहतरीन पैदावार मिलेगी। लोबिया की पूसा बरसाती किस्म की फलियां हल्के हरे रंग की होती है। यह किस्म लगभग-लगभग 26 से 28 सेमी लंबी होती है। साथ ही, यह खेत में 45-50 दिन के भीतर पक जाती है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर 85-100 क्विंटल तक उत्पादन देती है।

पूसा ऋतुराज किस्म

इस किस्म की लोबिया खाने में बेहद ही ज्यादा अच्छी मानी जाती है। इसकी किस्म की फलियां हरे रंग की होती हैं। साथ ही, यह प्रति हेक्टेयर लगभग 75 से 80 क्विंटल तक उपज प्राप्त होती है।
गर्मियों की हरी सब्जियां आसानी से किचन गार्डन मे उगाएं : करेला, भिंडी, घीया, तोरी, टिंडा, लोबिया, ककड़ी

गर्मियों की हरी सब्जियां आसानी से किचन गार्डन मे उगाएं : करेला, भिंडी, घीया, तोरी, टिंडा, लोबिया, ककड़ी

गर्मियों का मौसम हालांकि हर किसी को पसंद नहीं आता है लेकिन गर्मी के मौसम मे बनने वाली कुछ ऐसी सब्जियां हमें जरूर पसंद आती हैं। भारत के कई ऐसे इलाके हैं जहां पर गर्मियों के समय मे इन सभी सब्जियों की बड़े पैमाने पर खेती की जाती हैं और गर्मियों के मौसम मे इनकी बिक्री भी काफी तेजी पर होती है। गर्मियों की हरी सब्जियां हर जगह उपलब्ध भी नहीं हो पाती हैं। ऐसे मे हर समय गर्मी के मौसम मे बाजार से इन सब्जियों को लाने मे हम सभी को कई परेशानियां होती हैं। इन सभी परेशानियों का समाधान आप अपने घर के किचन के गार्डन के अंदर ही इन सभी सब्जियों को आसानी से लगा सकते हैं। तो आज हम आपको ऐसी ही कुछ अच्छी सब्जियों के बारे मे बताने वाले है, जिन्हें आप गर्मियों के समय मे अपने घर के गार्डन मे बड़ी ही आसानी से लगा सकते है । साथ ही साथ स्वादिष्ट ताजा सब्जी खाने का लुत्फ भी उठा सकते है । तो आईये जानते हैं गर्मियों की हरी सब्जियां जो आसानी से उगाई जा सकती हैं। 

किचन गार्डन में उगाई जाने वाली सब्जियां:

  1. करेला :

kerala करेले को तो आप सभी जानते ही होंगे लेकिन ,जितना यह कड़वा होता है अपने स्वाद मे उतना ही हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक भी होता है। गर्मियों के मौसम मे आप किचन के गार्डन मे करेले को बड़ी ही आसानी से उगा सकते है, इसे या तो आप बीज के द्वारा लगवा सकते है या फिर आप सीधे पौधे की रोपाई भी कर सकते है। 

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 तो चलिए चलिए अब हम आपको बताते है, की आप किस प्रकार गर्मियों की हरी सब्जियां में प्रथम करेली की सब्जी को अपने गार्डन मे उगा सकते है: -

  • सबसे पहले आपको मिट्टी तैयार करनी होगी करेले को उगाने के लिए।
  • इसके लिए आप 50% मिट्टी 30% खाद और 20% रेत डाल दीजिए।
  • उसके बाद आप अपने हाथों से बीज की बुवाई कर सकते है या फिर सीधे पौधे की रोपाई।
  • करेले को उगाने के लिए सबसे अच्छा समय फरवरी से लेकर मार्च माह तक का होता है।
  • किचन के गार्डन मे करेले को लगाने के लिए आप एक बड़े आकार के गमले का इस्तेमाल करें क्योंकि यह बेलदार सब्जी है।
  • करेले को गर्मी का मौसम सबसे ज्यादा पसंद आता है ऐसे मे आप ज्यादा पानी की सिंचाई ना करे।
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करेले को हमेशा कम पानी की आवश्यकता होती है,चाहे गर्मी का मौसम हो या सर्दी का आप केवल दो-तीन दिन में एक बार पानी जरूर सींचे। 

  1. गर्मियों की हरी सब्जियां : भिंडी

bhindi 

 हर घर मे एक ऐसी सब्जी होती है, जो सबकी पसंदीदा होती है और वह है भिंडी। भिंडी हमारे शरीर को कई सारी बीमारियों से बचाती है और हमारे इम्यूनिटी सिस्टम को मजबूत बनाए रखती है। भिंडी को भी आप अपने किचन के गार्डन मे काफी आसानी से लगा सकते है, जिसके लिए आपको कुछ टिप्स को जानना जरूरी होगा। भिंडी मे बहुत सारे विटामिन और कार्बोहाइड्रेट भी पाए जाते है जो हमारे शरीर मे कोलेस्ट्रॉल और मधुमेह जैसी बीमारियों को कंट्रोल करने के काम आते हैं। 

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तो चलिए जानते है आप किस प्रकार भिंडी को अपने किचन के बाग बगीचे मे लगा सकते है :-

  • भिंडी को यदि आप गमले मे उगाना चाहते है तो इसके लिए आपको बड़ी साइज का गमला लेना होगा।
  • इसके बाद आप अच्छी क्वालिटी के भिंडी के बीजों को 3 इंच की गहराई तक गमले के अंदर बुवाई कर दें।
  • भिंडी के पौधे का बीज बोने के बाद आप गमले को ज्यादा देर तक कभी भी धूप मे ना रखें क्योंकि यह ज्यादा धूप सहन नहीं कर पाता है और पौधा मुरझा कर नष्ट हो जाता है।
  • जब भिंडी का पौधा थोड़ा बड़ा हो जाए तो नियमित रूप से इसकी सिंचाई करें और पानी की बिल्कुल भी कमी ना आने दे।
  • कीड़े मकोड़ों और अन्य बीमारियों से बचाने के लिए भिंडी के पौधों पर समय समय पर कीटनाशकों का छिड़काव अवश्य करें।
  • भिंडी के पौधों को खाद देने के लिए आप अपने घर के अच्छी क्वालिटी वाले खाद का ही इस्तेमाल करें।
  • बीजों को अच्छे से अंकुरित होने के लिए आप थोड़ी देर पानी मे जरूर भिगो दें ताकि पौधे को विकसित होने मे ज्यादा समय ना लगे।
  1. घीया

गर्मियों की हरी सब्जियां : घीया [ghiya] 

 लौकी जिसे कई जगहों पर गिया के नाम से भी जाना जाता है। लौकी की सब्जी खाने मे बहुत ही स्वादिष्ट होती है। इसलिए हर किसी की पसंद यही होती है कि वह ताजा और फ्रेश लौकी की सब्जी खाएं। ऐसे मे लौकी हमारे शरीर के लिए भी काफी फायदेमंद होती हैं। 

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लौकी खाने से हमारा मस्तिष्क तनाव मुक्त रहता है और हृदय रोगी यानी कि मधुमेह रोगियों के लिए भी यह काफी लाभदायक साबित होती है। इसके अलावा लड़कियों में लौकी खाने से उनके बाल काले मोटे और घने होते हैं और सफेद बालों से भी छुटकारा मिल जाता। तो चलिए आज हम आपको बताते है ,की आप किस प्रकार लौकी को अपने घर के गार्डन में किस प्रकार लगा सकते हैं: -

  • इसके लिए सबसे पहले आप बड़े कंटेनर या गमले के अंदर मिट्टी का भराव कर लें और बीज को आधे इंच से ज्यादा गहराई मे ना लगाए।
  • आधे इंच की गहराई मे बीज को लगाने के बाद आप नियमित रूप से मिट्टी को पानी देते रहें और नमी बनाए रखें।
  • लौकी का बीज चार-पांच दिनों मे अंकुरित होने लगता है और इसके बाद पौधे मे विकसित होता है।
  • जब पौधा लग जाए तो उसके बाद आप यह जरूर ध्यान रखें कि लौकि को ज्यादा पानी ना डालें क्योंकि यह ज्यादा पानी के साथ सड़ने लगता है।
  • लौकी को ऊगाने के लिए सबसे अच्छा समय सितंबर से फरवरी के बीच मे होता है।
  • लौकी के पौधे को समय-समय पर अच्छी खाद और कीटनाशकों का अवश्य से छिड़काव करें।
  • पौधे की समय समय पर जरूर जांच कर देखें क्योंकि इन पर कीट पतंगे बहुत जल्दी लगने लग जाते हैं।
  1. तोरई :toori गर्मियों की हरी सब्जियां : तोरी

भारत के कई इलाकों जैसे उत्तर प्रदेश और बिहार में तोरई की सब्जी बहुत ही चाव से बनाई और परोसी जाती है। तोरी की सब्जी बहुत ही ज्यादा स्वादिष्ट और लाभदायक भी होती हैं। इसके अंदर विटामिन ए, विटामिन सी, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और मिनरल फाइबर जैसे कई सारे फायदेमंद पोषक तत्व होते है। हालांकि तोरई की खेती पूरे देश मे होती हैं लेकिन इसे आप अपने घर के गार्डन बगीचे मे भी बड़ी ही आसानी से लगा सकते हैं। तो चलिए जानते हैं कि, आप किस प्रकार तोरी की सब्जी को अपने घर मे लगा सकते हैं :-
  • इसके लिए आप सबसे पहले एक बड़ा गमला लेवे और उसके अंदर खाद ,उर्वरक और मिट्टी को अच्छे से डाल दें।
  • अब बीजों को आधे से 1 इंच के भीतर भीतर मिट्टी के अंदर इसकी बुवाई कर दें।
  • तोरई के पौधे को फलदार बनने में 40 से 45 दिनों का समय लगता है , ऐसे मे आप इसकी नियमित रूप से सिंचाई करना ना भूलें।
  • घर के बगीचे मे लगाने वाले पौधे जैसे तोरी के लिए आप कभी भी रासायनिक खाद उर्वरकों का इस्तेमाल ना करें।
  • कीटों और अन्य बीमारियों से बचाने के लिए सप्ताह मे दो तीन बार अच्छे से छिड़काव करें।
  • एक बार तोरई का पौधा बड़ा हो जाने के बाद आप इसे ज्यादा पानी ना देवे क्योंकि ज्यादा पानी के प्रति तोरई का पौधा काफी संवेदनशील माना जाता है।
  • तोरई को उगाने के लिए सबसे अच्छा समय फरवरी से मार्च माह के मध्य मे होता है।
  1. गर्मियों की हरी सब्जियां : टिंडा

गर्मियों की हरी सब्जियां : टिंडा [tinda] 

 उत्तरी भारत के कई सारे इलाकों मे टिंडे गर्मियों की सबसे अच्छी सब्जी मानी जाती है ,और काफी स्वादिष्ट भी होती है। हम आपको बता देते है, कि टिंडे का मूल स्थान भारत ही है। भिंडी की सब्जी बनाने के लिए इसके कच्चे फलों का इस्तेमाल किया जाता है ना कि इसके पके हुए फलों का। टिंडे के पके हुए फलों मे बीज काफी बड़े और अंकुरित होते हैं ।लेकिन आप इसे अपने घर के बगीचे में बड़े ही आसानी से लगा सकते हैं और ताजा और फ्रेश सब्जी का लुफ्त उठा सकते हैं। तो चलिए जानते तो चलिए जानते है, कि आप किस प्रकार टिंडे की सब्जी को लगा सकते हैं :-

  • टिंडे को लगाने के लिए सबसे अच्छी मिट्टी रेतीली दोमट मिट्टी मानी जाती है, जिसे आप अपने बड़े से गमले मे खाद के साथ तैयार कर लेवे।
  • इसके बाद बीजों को 2 इंच की गहराई तक अंदर बुवाई कर ले और चार-पांच दिन तक पानी की सिंचाई करते रहे।
  • टिंडे का पौधा 1 सप्ताह के भीतर - भीतर अंकुरित हो जाता है।
  • एक बार पौधा बड़ा हो जाने पर आप इसकी नियमित रूप से अच्छे से सिंचाई करना ना भूलें और इसी के साथ-साथ कीटनाशकों का छिड़काव जरूर करें।
  • टिंडे की बीमारियों से बचने के लिए आप खाद्य उर्वरक का इस्तेमाल जरूर करें और साथ ही साथ समय-समय पर इसकी जांच भी करें।
  • टिंडे की सब्जी को लगाने के लिए सबसे अच्छा समय मार्च से अप्रैल माह के बीच मे होता है।
  1. गर्मियों की हरी सब्जियां : लोबिया

Lobia 

 लोबिया की फली बहुत ही ज्यादा स्वादिष्ट होती है, जिसे भारत के कई इलाकों मे सब्जी के रूप मे भी बनाते है। भारत के कई राज्यों में लोबिया की खेती बड़े पैमाने पर होती है, लेकिन यदि आप अपने घर पर छोटी सी बागबानी करना चाहते हैं, तो आप बड़ी ही आसानी से लोबिया को अपने घर के गार्डन मे लगा सकते है। यह स्वादिष्ट होने के साथ-साथ हमारे शरीर के लिए काफी लाभदायक भी होती है। यह हमें कई प्रकार की हृदय संबंधी और जोड़ों मे दर्द होने जैसी परेशानियों से छुटकारा दिलाती है। इसकी सबसे अच्छी बात यह है कि इसे आप कहीं पर भी लगा सकते है अपने घर के आंगन मे छत मे।

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  • इसको लगाने के लिए सबसे पहले आप मिट्टी को अच्छी तरह से तैयार कर लीजिए खाद और उर्वरक के साथ।
  • अब इसके अंदर लोबिया के बीजों को लगा दीजिए और इसकी नियमित रूप से सिंचाई करते रहे।
  • जब लोबिया का पौधा विकसित हो जाए तो उसको प्रति सप्ताह दिन मे दो से तीन बार पानी जरूर डालें।
  • लोबिया मे कई सारी अलग-अलग बीमारियां होती हैं जो मौसम के परिवर्तन और कीट पतंगों के कारण लग जाती हैं।
  • इन बीमारियों और कीट पतंगों से बचने के लिए आप समय-समय पर कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव अवश्य करें।
  • जब इसकी फलियां पूर्ण रूप से विकसित हो जाती हैं तो इसे आप अपने हाथों द्वारा तोड़ लें और उसके बाद आप इसकी सब्जी या फिर किसी भी प्रकार की औषधि रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
  • सबसे अच्छा समय लोबिया को लगाने के लिए सितंबर से नवंबर माह के बीच का होता है।
  1. गर्मियों की हरी सब्जियां : ककड़ी

गर्मियों की हरी सब्जियां ककड़ी kakdi 

 दरअसल, ककड़ी की उत्पत्ति हमारे देश भारत से ही हुई है और यह तोरई के समान सब्जी बनाने के काम मे आती हैं। खासकर गर्मियों के समय मे ककड़ी का सेवन करना हमारे शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होता है, क्योंकि यह हमारे शरीर में डिहाइड्रेशन की कमी को पूर्ण करती हैं। इसी के साथ साथ यह हमारे मस्तिष्क को तनावमुक्त रखती है, और  कोलेस्ट्रॉल और उच्च रक्तचाप को भी सामान्य रखती है। ककड़ी की स्वादिष्ट सब्जी हर किसी की पसंदीदा होती है, ऐसे में हर कोई इसे अपने घर के अंदर बगीचे में लगाना जरूर पसंद करेगा। तो चलिए जानते हैं, कि आप किस प्रकार ककड़ी की सब्जी को अपने बगीचे में लगा सकते हैं :-

  • ककड़ी को लगाने के लिए आप सबसे पहले एक बड़े आकार का गमला लें और उसमें ककड़ी के बीजों के अंकुरण के लिए अच्छी खाद और मिट्टी तैयार कर लेवे।
  • मिट्टी तैयार हो जाने के बाद आप इसमें ककड़ी के बीज को लगा देवें और उसको चार-पांच दिनों तक नियमित रूप से थोड़ा-थोड़ा पानी देवे।
  • ककड़ी के बीज को अंकुरित होने मे 1 सप्ताह का समय लगता है उसके बाद आप ककड़ी को नियमित रूप से पानी जरूर देवे।
  • ककड़ी की बेल थोड़ी लंबी हो सकती हैं इसके लिए आप इसे किसी दीवार या फिर घर की छत पर भी लगा सकते हैं।
  • इसमें कई सारी बीमारियां और फलियों के सड़ने की परेशानी आ सकती हैं ऐसे मे आप इस पर समय-समय पर कीटनाशकों और उर्वरकों का छिड़काव करें।
  • ककड़ी को जरूरत से ज्यादा पानी ना देवे क्योंकि यह कम पानी में भी अच्छे से विकसित हो जाती हैं।
  • पौधे के पूर्ण रूप से विकसित होने के बाद ककड़ी को 40 से 50 दिन का समय लगता है फलियों को तैयार करने मे।
अतः जैसा कि हमने आपको ऊपर इन सात सब्जियों के बारे मे बताया है जिन्हें आप गर्मियों के मौसम मे बड़ी ही आसानी से लगा सकते हैं। इन सब्जियों को लगाने के लिए आपको जितनी भी जानकारियां जाननी थी वह सभी हमने ऊपर बता दी हैं और इसके अलावा आप इसे अपने घर पर आसानी से लगा सकते हैं।

लोबिया की खेती से किसानों को होगा दोहरा लाभ

लोबिया की खेती से किसानों को होगा दोहरा लाभ

लोबिया की खेती से किसान काफी लाभ कमा सकते हैं। दलहन फसल की श्रेणी के लोबिया की खेती (Lobia Farming) से दो तरीके से लाभ होता है। लोबिया की फलियों की सब्जी होती है। इसका प्रयोग पशुचारा और हरी खाद के रूप में किया जाता हैं। इसे बोड़ा, चौला या चौरा, करामणि, काऊपीस - (cowpea) भी कहा जाता है। यह सफेद रंग का और बड़ा पौधा होता है। इसकी फलियां पतली, लंबी होती हैं और इसके फल एक हाथ लंबे और तीन अंगुल तक चौड़े और कोमल होते है।

लोबिया की खेती के लिए जलवायु:

गर्म व आर्द्र जलवायु में 24-27 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान में लोबिया की खेती होती है।

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लोबिया की खेती कैसी जमीन में करनी चाहिये ?

  • लोबिया की खेती वैसे जमीन में करनी चाहिये, जिसमें जल निकास की उचित व्यवस्था हो।
  • क्षारीय भूमि इसकी खेती के लिये के उपयुक्त नहीं होता है।
  • इसके मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 6.5 के बीच होना चाहिए।

लोबिया की खेती कब करनी चाहिये ?

लोबिया की बुआई बरसात के मौसम में जून के अंत से लेकर जुलाई माह तक और गर्मी के मौसम में फरवरी-मार्च में की जाती है।

लोबिया की उन्नत किस्में :

लोबिया की कई उन्नत किस्में हैं। आवश्यकता के अनुसार किस्म का चयन करना चाहिये।

  • दाने के लिए लोबिया की उन्नत किस्मों में सी- 152, पूसा फाल्गुनी, अम्बा (वी- 16), स्वर्णा (वी- 38), जी सी- 3, पूसा सम्पदा (वी- 585) और श्रेष्ठा (वी- 37) आदि प्रमुख है।
  • चारे के लिए लोबिया की उन्नत किस्मों में जी एफ सी- 1, जी एफ सी- 2 और जी एफ सी- 3 आदि अच्छी किस्में हैं।
  • खरीफ और जायद दोनों मौसम में उगाये जाने वाले किस्मों में बंडल लोबिया- 1, यू पी सी- 287, यू पी सी- 5286 रशियन ग्रेन्ट, के- 395, आई जी एफ आर आई (कोहीनूर), सी- 8, यू पीसी- 5287, यू पी सी- 4200, यू पी सी- 628, यू पी सी- 628, यू पी सी- 621, यू पी सी- 622 और यू पी सी- 625 आदि हैं।
  • लोबिया की बुवाई के लिए 12-20 कि.ग्रा. बीज/हेक्टेयर उपयुक्त होता है। जबकि बेलदार लोबिया की बीज कम मात्रा में ली जा सकती है।

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लोबिया बुवाई के समय ध्यान रखना चाहिए कि इनके बीच की दूरी सही हो:

  • लोबिया की झाड़ीदार किस्मों के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45-60 सेमी. तथा बीज से बीज की दूरी 10 सेमी. रखनी चाहिए।
  • बेलदार लोबिया के पंक्ति से पंक्ति की दूरी 80-90 सेमी. रखना सही होता है।

लोबिया की खेती में खाद, खर पतवार नियंत्रण व सिंचाई:

  • बुवाई के पूर्व लोबिया के बीज का राजजोबियम नामक जीवाणु से उपचार जरूरी होता है।
  • खेत में गोबर या कम्पोस्ट की 20 टन मात्रा बुवाई से एक माह पहले डालनी चाहिए। नत्रजन 20 किग्रा, फास्फोरस 60 कि.ग्रा. तथा पोटाश 50 कि.ग्रा. की मात्र प्रति हेक्टेयर की दर से जुलाई के अंत में मिट्टी में मिलानी चाहिए।
  • फसल में फूल आने के समय नत्रजन की 20 कि.ग्रा. की मात्रा फसल में देनी चाहिए।
  • लोबिया के पौधों की दो-तीन निराई व गुड़ाई करनी चाहिए ताकि खर पतवार पर नियंत्रण रह सके।
  • गर्मी में इसकी फसल को पर 5 से 6 सिंचाई की जरूरत होती है। इसकी सिंचाई 10 से 15 दिनों के अंतर पर करनी चाहिए।

लोबिया की तुड़ाई/कटाई कब करें ?

  • लोबिया के हरी फलियों की तुडाई बुवाई के 45 से 90 दिन बाद किस्म के आधार पर करनी चाहिये।
  • चारे के लिये फसल की कटाई बुवाई के 40 से 45 दिन बाद की जाती है।
  • दाने की फसल के लिए कटाई, बुवाई फलियों के पुरे पक जाने पर 90 से 125 दिन बाद करनी चाहिए।
  • लोबिया की नर्म व कच्ची फलियों की तुड़ाई 4-5 दिन के अंतराल पर की जा सकती है।
  • झाड़ीदार प्रजातियों में 3-4 तुड़ाई तथा बेलदार प्रजातियों में 8-10 तुड़ाई की जा सकती है।

लोबिया की फसल से दाना व चारा की प्राप्ति :

  • लोबिया की एक हेक्टेयर की फसल से करीब 12 से 17 क्विंटल दाना व 50 से 60 क्विंटल भूसा प्राप्त किया जा सकता है।
  • जबकि 250 से 400 क्विंटल तक हरा चारा प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त किया जा सकता है।

लोबिया - Cowpea (Lobia/Karamani) Mandi Bhav मंडी भाव :

30 जून 2022 को मुंबई मंडी में लोबिया मूल्य 7128 रुपए प्रति क्विंटल था।

दलहनी फसलों पर छत्तीसढ़ में आज से होगा अनुसंधान

दलहनी फसलों पर छत्तीसढ़ में आज से होगा अनुसंधान

विकास के लिए रायपुर में आज से जुटेंगे, देश भर के सौ से अधिक कृषि वैज्ञानिक

रायपुर। छत्तीसगढ़ में वर्तमान समय में लगभग 11 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में दलहनी फसलें ली जा रहीं है, जिनमें अरहर, चना, मूंग, उड़द, मसूर, कुल्थी, तिवड़ा, राजमा एवं मटर प्रमुख हैं। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर में दलहनी फसलों पर अनुसंधान एवं प्रसार कार्य हेतु तीन
अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजनाएं - मुलार्प फसलें (मूंग, उड़द, मसूर, तिवड़ा, राजमा, मटर), चना एवं अरहर संचालित की जा रहीं है जिसके तहत नवीन उन्नत किस्मों के विकास, उत्पादन तकनीक एवं कृषकों के खतों पर अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन का कार्य किया जा रहा है। विश्वविद्यालय द्वारा अब तक विभिन्न दलहनी फसलों की उन्नतशील एवं रोगरोधी कुल 25 किस्मों का विकास किया जा चुका है, जिनमें मूंग की 2, उड़द की 1, अरहर की 3, कुल्थी की 6, लोबिया की 1, चना की 5, मटर की 4, तिवड़ा की 2 एवं मसूर की 1 किस्में प्रमुख हैं।


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छत्तीसगढ़ राज्य गठन के उपरान्त पिछले 20 वर्षों में प्रदेश में दलहनी फसलों के रकबे में 26 प्रतिशत, उत्पादन में 53.6 प्रतिशत तथा उत्पादकता में 18.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसके बावजूद प्रदेश में दलहनी फसलों के विस्तार एवं विकास की असीम संभावनाएं हैं। इसी के तहत देश में दलहनी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अनुसंधान एवं विकास हेतु कार्य योजना एवं रणनीति तैयार करने, देश के विभिन्न राज्यों के 100 से अधिक दलहन वैज्ञानिक, 17 एवं 18 अगस्त को कृषि विश्वविद्यालय रायपुर में जुटेंगे। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के सहयोग से यहां दो दिवसीय रबी दलहन कार्यशाला एवं वार्षिक समूह बैठक का आयोजन किया जा रहा है। कृषि महाविद्यालय रायपुर के सभागृह में आयोजित इस कार्यशाला का शुभारंभ प्रदेश के कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे करेंगे। शुभारंभ समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रदेश के कृषि उत्पादन आयुक्त डॉ. कमलप्रीत सिंह, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के उप महानिदेशक डॉ. टी.आर. शर्मा, सहायक महानिदेशक डॉ. संजीव शर्मा, भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर के निदेशक डॉ. बंसा सिंह तथा भारतीय धान अनुसंधान संस्थान हैदराबाद के निदेशक डॉ. आर.एम. सुंदरम भी उपस्थित रहेंगे। समारोह की अध्यक्षता इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल करेंगे। इस दो दिवसीय रबी दलहन कार्यशाला में चना, मूंग, उड़द, मसूर, तिवड़ा, राजमा एवं मटर का उत्पादन बढ़ाने हेतु नवीन उन्नत किस्मों के विकास एवं अनुसंधान पर विचार-मंथन किया जाएगा।


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भारत आज मांग से ज्यादा कर रहा अनाज का उत्पादन

उल्लेखनीय है कि भारत में हरित क्रांति अभियान के उपरान्त देश ने अनाज उत्पादन के क्षेत्र में आत्म निर्भरता हासिल कर ली है और आज हम मांग से ज्यादा अनाज का उत्पादन कर रहे हैं। लेकिन, आज भी हमारा देश दलहन एवं तिलहन फसलों के उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर नहीं बन सका है और इन फसलों का विदेशों से बड़ी मात्रा में आयात करना पड़ता हैै। वर्ष 2021-22 में भारत ने लगभग 27 लाख मीट्रिक टन दलहनी फसलों का आयात किया है। देश को दालों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लगातार प्रयास किये जा रहें हैं। केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा किसानों को दलहनी फसलें उगाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। वैसे तो भारत विश्व का प्रमुख दलहन उत्पादक देश है और देश के 37 प्रतिशत कृषि क्षेत्र में दलहनी फसलों की खेती की जाती है। विश्व के कुल दलहन उत्पादन का एक चौथाई उत्पादन भारत में होता है, लेकिन खपत अधिक होने के कारण प्रतिवर्ष लाखों टन दलहनी फसलों का आयात करना पड़ता है।

यह समन्वयक करेंगे चर्चा

इस दो दिवसीय कार्यशाला में इन संभावनाओं को तलाशने तथा उन्हें मूर्त रूप देने का कार्य किया जाएगा। कार्यशाला में अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना चना के परियोजना समन्वयक डॉ. जी.पी. दीक्षित, अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना मुलार्प के परियोजना समन्वयक डॉ. आई.पी. सिंह, सहित देश में संचालित 60 अनुसंधान केन्द्रों के कृषि वैज्ञानिक शामिल होंगे।
गर्मियों के मौसम में करें लोबिया की खेती, जल्द हो जाएंगे मालामाल

गर्मियों के मौसम में करें लोबिया की खेती, जल्द हो जाएंगे मालामाल

लोबिया एक महत्वपूर्ण फसल है, जिसे बोड़ा के नाम से भी जाना जाता है। यह एक दलहनी पौधा है जिसकी खेती मैदानी इलाकों में मार्च से अक्टूबर के मध्य की जाती है। इसके पौधे में पतली, लम्बी  फलियां होती हैं। जिनको कच्ची अवस्था में तोड़ लिया जाता है और उनका उपयोग सब्जी बनाने में किया जाता है। यह अफ्रीकी मूल की फसल है, जिसे साल भर भारत के हर राज्य में उगाया जाता है। लोबिया की फलियों को भारत में बोड़ा चौला या चौरा की फलियों के नाम से जाना जाता है। खेत में इस फसल को उगाने के कारण खेत की मिट्टी में नमी मौजूद रहती है। इसके साथ ही यह विषम परिस्थियों में उगने वाली फसल है जो सूखे को सहन करने की क्षमता रखती है। इस फसल के कारण खेत में खरपतवार पैदा नहीं हो पाते। इसकी खेती ज्यादातर पंजाब के मैदानी इलाकों में की जाती है। आजकल बाजार में इसकी जबरदस्त डिमांड है, ऐसे में किसान भाई लोबिया की खेती करके अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं।

लोबिया की खेती के लिए जलवायु

समशीतोष्ण जलवायु लोबिया की खेती के लिए सबसे उत्तम मानी गई है। गर्मी के मौसम में इसके पौधे तेजी से विकास करते हैं, लेकिन जरूरत से ज्यादा गर्मी इन पौधों के लिए नुकसानदेह भी हो सकती है। लोबिया की खेती के लिए सर्दियों का मौसम अनुकूल नहीं है। इस मौसम में पौधे ज्यादा विकास नहीं कर पाते हैं। साथ ही ज्यादा बरसात भी लोबिया की खेती को बुरी तरह से प्रभावित करती है। शुरूआत में लोबिया के बीजों को अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है। इसके बाद 35 डिग्री तक के तापमान पर लोबिया के पौधे आसानी से विकसित हो जाते हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि इस फसल के विकास के लिए शुष्क जलवायु सबसे उत्तम होती है।

इस मौसम में की जाती है लोबिया की खेती

लोबिया की खेती मुख्यतः गर्मियों के मौसम में की जाती है। इसके अलावा इसकी खेती बरसात के मौसम में भी की जाती है। गर्मियों के मौसम के लिए इसकी बुवाई मार्च और अप्रैल माह में की जाती है। जबकि बरसात के मौसम के लिए इसकी बुवाई जून-जुलाई माह में की जाती है। लोबिया के पौधे लता और झाड़ीदार दोनों रूप में पाए जाते हैं।

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लोबिया की फसल एक लिए ये मिट्टी होती है सबसे उपयुक्त

वैसे तो लोबिया की फसल हर प्रकार की मिट्टी में बेहद आसानी से उगाई जा सकती है, लेकिन इसके लिए मटियार या रेतीली दोमट मिट्टी को सबसे अच्छा माना गया है। देश के कई राज्यों में इस फसल को लाल, काली और लैटराइटी मिट्टी में भी उगाया जाता है। लोबिया की फसल के लिए मिट्टी का परीक्षण अवश्य करवाना चाहिए। कार्बनिक पदार्थो से युक्त उपजाऊ मिट्टी इस फसल के लिए उपयुक्त मानी जाती है। ध्यान रखें कि खेत में जल निकासी का उचित प्रबंध हो। लोबिया की खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 6 से 8 बीच होना चाहिए। इसकी खेती अधिक लवणीय और क्षारीय मृदा में नहीं करनी चाहिए। ऐसी मृदा में इसकी खेती करने पर अपेक्षाकृत परिणाम प्राप्त नहीं होते।

लोबिया की उन्नत किस्में

वैसे तो बाजर में लोबिया की बहुत सारी किस्में उपलब्ध हैं। लेकिन हम आपको ऐसी किस्मों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनकी मदद से कम समय में ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है। पंत लोबिया : लोबिया की इस किस्म के पौधे डेढ़ फीट ऊंचे होते हैं। इस किस्म की खेती अगेती फसल के रूप में की जाती है। यह फसल बुवाई के मात्र 60 दिन बाद तैयार हो जाती है। इसमें आधा फीट लंबी फलियां होती हैं, जिसके दाने सफेद होते हैं। लोबिया की इस किस्म की बुवाई करने पर एक हेक्टेयर में 15 से 20 क्विंटल लोबिया का उत्पादन किया जा सकता है। लोबिया 263 : यह ऐसी किस्म है जिसे खरीफ के साथ साथ रबी में भी उगाया जा सकता है। इसकी फसल तेजी से तैयार होती है। बुवाई के मात्र 45 दिनों के बाद यह तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इस किस्म में रोग का प्रकोप भी कम होता है। लोबिया 263 किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 125 किवंटल तक होता है। पूसा कोमल : इस किस्म की बुवाई बसंत, गर्मी और बरसात में की जाती है। इसकी फलियां 20 सेंटीमीटर लंबी होती हैं। साथ ही फलियों का रंग हल्का हरा होता है। इस किस्म की पैदावार 100 से 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है। पूसा बरसाती : लोबिया की इस किस्म की बुवाई बरसात के मौसम में की जाती है। इसकी फलियों की लंबाई 22 से 26 सेंटीमीटर तक होती है और फलियों का रंग हल्का होता है। यह फसल बुवाई के 40 दिनों बाद तैयार हो जाती है। इस किस्म की बुवाई करके किसान भाई 80 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। अर्का गरिमा : लोबिया की इस किस्म की बुवाई बरसात के मौसम में की जाती है। इसके पौधों की ऊंचाई 6 से 8 फीट तक होती है। यह फसल रोपाई के 40 से 45 दिन बाद तक तैयार हो जाती है। इस किस्म की खेती में एक हेक्टेयर में 80 क्विंटल तक का उत्पादन हो सकता है। पूसा ऋतुराज : लोबिया की यह किस्म ज्यादा तापमान सहन नहीं कर पाती। इसकी फलियां 20 से 25 सेंटीमीटर लंबी होती हैं। साथ ही इसका उत्पादन एक हेक्टेयर में 80 क्विंटल तक हो सकता है।

लोबिया की बुवाई

गर्मियों के मौसम में लोबिया की बुवाई समतल भूमि में की जा सकती है, जबकि बरसात के मौसम में 15 सेंटीमीटर ऊंचे मिट्टी के बेड पर बुवाई करनी चाहिए। लोबिया की बुवाई के लिए एक हेक्टेयर में लगभग 30 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है। बुवाई के पहले बीजों को उपचारित कर लेना चाहिए। ऐसा करने पर 95 प्रतिशत बीजों का अंकुरण अच्छे से होता है। साथ ही फसल में रोग लगने की संभावना न के बराबर होती है। लोबिया के बीजों को उपचारित करने के लिए थीरम दवा का प्रयोग कर सकते हैं। लोबिया की बुवाई पक्तियों में करनी चाहिए।

खाद एवं उर्वरक की मात्रा

लोबिया के लिए खेत तैयार करने के पहले ही खेत में 10-15 टन तक गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए। इसके अलावा खेत में 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से डाल सकते हैं। साथ ही अगर किसान भाई जिंक सल्फेट का प्रयोग करते हैं तो उनकी लोबिया की फसल ज्यादा तेजी से बढ़ेगी।

रोग नियंत्रण एवं कीट प्रबंधन

लोबिया की फसल में बीज गलन की बीमारी सबसे ज्यादा देखी जाती है। इस बीमारी की वजह से बीज सिकुड़ जाते हैं और बेरंग हो जाते हैं। कई बार देखा गया है कि बीजों का अंकुरण होने के पहले ही वो नष्ट हो जाते हैं। इससे निपटने के लिए बुवाई से पहले 'थीरम दवा' या 'बवास्टिन 50 डब्ल्यू पी' से बीजों को उपचारित करें। इसके अलावा जीवाणु झुलसा रोग भी लोबिया की खेती में देखा जाता है। यह रोग ज्यादातर नवजात पौधों में देखने को मिलता है। इसके रोकथाम के लिए 'ब्लाईटाक्स' का छिडक़ाव कर सकते हैं। एक अन्य रोग इस फसल में देखा जाता है, जिसे लोबिया मोजैक के नाम से जानते हैं। यह सफेद मक्खी द्वारा फैलती है। इस बीमारी से सबसे ज्यादा पौधे की पत्तियां प्रभावित होती हैं। इस बीमारी की रोकथाम के लिए 'मेटासिस्टॉक्स' या 'डाइमेथोएट' का छिडक़ाव करना चाहिए।

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जैविक पध्दति द्वारा जैविक कीट नियंत्रण के नुस्खों को अपना कर आप अपनी कृषि लागत को कम कर सकते है अगर लोबिया की फसल में कीटों की बात करें तो सबसे ज्यादा प्रकोप रोमिल सूंडी का देखा जाता है। यह कीट इस फसल को भारी नुकसान पहुंचाता है। इस कीट के नियंत्रण के लिए फसल में 'मिथाइल पेराथियानद' का छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा तेला और काला चेपा कीटों का भी लोबिया की फसल पर जबरदस्त हमला होता है। इसके प्रबंधन के लिए 'मैलाथियॉन 50 ई सी' का पानी में घोलकर छिड़काव किया जा सकता है। लोबिया की फसल में लीफ होपर, जैसिड और एफिड कीटों की भी भारी मात्रा में आक्रमण होता है। ये कीट पौधों का रस चूसते हैं, जिससे पौधे कमजोर हो जाते हैं। इनके नियंत्रण के लिए 'डाईमेथोएट 30 ईसी' या 'मिथाइल डिमेटान 30 ईसी'  का छिड़काव किया जा सकता है।

इतने दिनों में तैयार हो जाती है लोबिया की फसल

यह मैदानी इलाकों में उगाई जाने वाले गर्म एवं आर्द्र जलवायु वाली फसल है। इस फसल को तैयार होने में ज्यादा समय नहीं लगता। भारत के सभी राज्यों में यह फसल 40 से 45 दिन के अंतराल में तैयार हो जाती है।

लोबिया में इन पोषक तत्वों की होती है मौजूदगी

लोबिया पोषक तत्वों से भरपूर होती है। इसमें मुख्य तौर पर प्रोटीन, वसा, कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, थायमीन, राइबोफ्लेविन, नियासीन, फाइबर, एंटीऑक्सीडेन्ट, विटामिन बी 2 और विटामिन सी जैसे पोषक तत्वों की भरमार होती है। इस खाने से शरीर को अतिरिक्त पोषण मिलता है। साथ ही वजन कम करने में, पाचन, दिल को स्वस्थ रखने में और शरीर को डिटॉक्स करने में सहायता मिलती है। भारत के किसान हरी खाद, पशुओं के चारे एवं सब्जी के लिए लोबिया की खेती करते है। इस खेती से किसानों की पशु चारे की समस्या भी हल हो जाती है। साथ ही बाजार में सब्जी बेंचकर किसान बेहद कम समय में अच्छी खासी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।
लोबिया की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

लोबिया की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

खरीफ फसलों की बुवाई का समय चल रहा है। अब ऐसी स्थिति में लोबिया की खेती छोटे किसानों के लिए एक वरदान साबित हो सकती है। यदि आप भी कम भूमि पर खेती-किसानी करते हैं, क्योंकि आज के इस लेख में हम आपको लोबिया की खेती के बारे में बताएंगे। भारत में छोटे और लघु किसानों की तादात काफी ज्यादा है, जिनके पास काफी कम भूमि है। ऐसे कृषकों के लिए लोबिया की खेती काफी फायदेमंद साबित हो सकती है। लोबिया एक दलहनी फसल की श्रेणी में आने वाली एक फसल है। इसकी खेती खरीफ एवं जायद, दोनों सीजनों में की जाती है। इसकी खेती करने से कृषकों को दो तरह के लाभ हो सकते हैं। एक तो किसान इसे सब्जी के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं एवं दूसरा इसको पशुओं के चारे में उपयोग किया जा सकता है। लोबिया एक ऐसी फली होती है, जो कि तिलहन की श्रेणी के अंतर्गत आती है। इसे बोड़ा, चौला या चौरा के नाम से भी जाना जाता है। बतादें कि इसका पौधा सफेद रंग का काफी बड़ा होता है। लोबिया की फलियां पतली, लंबी होती हैं। इसे सब्जी बनाने के लिए या फिर पशुओं के चारे के लिए उपयोग किया जाता है।

लोबिया की खेती करने के लिए निम्नलिखित चीजों का ध्यान रखा जाना बहुत जरुरी है

लोबिया की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु एवं मृदा

लोबिया की खेती करने के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु की जरूरत होती है। बतादें, कि इसकी खेती करने लिए 24-27 डिग्री के मध्य के तापमान की आवश्यकता होती है। अत्यधिक कम तापमान होने के स्थिति में इसकी फसल चौपट हो सकती है। इस वजह से लोबिया की फसल को ज्यादा ठंड से बचाना चाहिए।

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गर्मियों के मौसम में करें लोबिया की खेती, जल्द हो जाएंगे मालामाल लोबिया की खेती करने के लिए यदि मृदा की बात की जाए, तो इसे हर तरह की मिट्टी में उत्पादित किया जा सकता है। मगर एक बात का विशेष ख्याल रखें, कि इसके लिए छारीय मृदा बिल्कुल ठीक नहीं होती।

लोबिया की उन्नत प्रजतियाँ

दरअसल, लोबिया की विभिन्न उन्नत किस्में हैं, जो कि काफी अच्छी पैदावार देती हैं। जैसे कि - सी- 152, पूसा फाल्गुनी, अम्बा (वी- 16), स्वर्णा (वी- 38), जी सी- 3, पूसा सम्पदा (वी- 585) और श्रेष्ठा (वी- 37) आदि प्रमुख हैं।

लोबिया की बुवाई कब की जाती है

लोबिया की बुवाई के बारे में बात की जाए, तो बरसात के मौसम में जून माह के अंत व जुलाई की शुरुआत में इसकी बुवाई की जाती है। वहीं, इसे फरवरी से लेकर मार्च तक बोया जाता है।

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लोबिया की बुवाई हेतु बीज की मात्रा

लोबिया की बुवाई करने के दौरान बीज की मात्रा ज्यादा ना हो इस बात का विशेष ध्यान रखने की जरूरत है। इसकी बुवाई हेतु सामान्यत: 12-20 कि.ग्रा. बीज/हेक्टेयर की दर से पर्याप्त होता है। इसकी बेल वाली किस्म के लिए बीज की मात्रा थोड़ी कम लगती है और मौसम के अनुरूप बीज की मात्रा का निर्धारण करना ज्यादा उचित होता है।

इस तरह करें लोबिया की बुवाई

लोबिया की बुवाई करते समय आपको यह ध्यान देने की जरूरत है, कि इसके बीज के मध्य का फासला सही होना चाहिए। जिससे कि जब इसका पौधा उगे, तो ठीक ढ़ंग से विकास कर सके। दरअसल, लोबिया की बुवाई के दौरान उसकी किस्म के मुताबिक दूरी तय की जाती है। जैसे कि - झाड़ीदार किस्मों के बीज के लिए एक लाइन से दूसरी लाइन का फासला 45-60 सेमी होना चाहिए। बीज से बीज का फासला 10 सेमी होना चाहिए। साथ ही, इसकी बेलदार प्रजातियों के लिए लाइन से लाइन का फासला 80-90 सेमी रखना सही होता है।

लोबिया की खेती में खाद कितनी मात्रा में देना चाहिए

जैसा कि हम जानते हैं, कि किसी भी फसल की खेती करने के लिए खाद की काफी आवश्यक होती है। इसी प्रकार लोबिया की खेती करने के लिए खाद आवश्यक है। लोबिया की फसल में इस प्रकार से खाद डालें। एक महीने पहले खेत में 20-25 टन गोबर अथवा कम्पोस्ट डालें, 20 किग्रा नाइट्रोजन, फास्फोरस 60 कि.ग्रा. और पोटाश 50 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर के अनुरूप खेत में जुलाई के अंत में ही डाल दें। साथ ही, नाइट्रोजन की 20 कि.ग्रा. की मात्रा फसल में फूल आने के समय देनी चाहिए।

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लोबिया की सिंचाई

लोबिया की फसल को खरीफ के सीजन में पानी की ज्यादा आवश्यकता नहीं पड़ती है। इस वजह से खरीफ के सीजन में उतना ही पानी देना चाहिए, जिससे कि मृदा में नमी बनी रहे। साथ ही, अगर हम गर्मी की फसल की बात करें, तो सामान्यतः किसी भी फसल में पानी की अधिक आवश्यकता होती है। लोबिया की फसल में 5 से 6 पानी की आवश्यकता होती है।

लोबिया की कटाई कब की जाती है

लोबिया की हरी फलियों का अगर आप इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो इसकी फलियों को 45 से 90 दिन बाद तोड़ लेना चाहिए। यदि आपने लोबिया की चारे वाली फलियों की फसल की है, तो इसकी फलियों को सामान्य रूप से 40 से 45 दिन में तोड़ लेना चाहिए। साथ ही, यदि आप इसके दाने को अर्जित करना चाहते हैं, तो उसके लिए आपको 90 से 125 दिन के पश्चात ही फलियों को संपूर्ण तौर पर पकने की स्थिति में ही तोड़ना चाहिए।