ब्राह्मी का नियमित सेवन मानसिक शांति और एकाग्रता बढ़ाने में सहायक होता है। यह तनाव और अनिद्रा जैसी समस्याओं को कम करने के लिए भी प्रभावी मानी जाती है। ब्राह्मी का अर्क त्वचा रोगों और सूजन को ठीक करने में सहायक है।
इसके एंटीऑक्सीडेंट गुण शरीर की कोशिकाओं को क्षति से बचाते हैं और उम्र बढ़ने के लक्षणों को धीमा करते हैं।
ब्राह्मी का उपयोग चाय और स्वास्थ्यवर्धक टॉनिक के रूप में भी किया जाता है, जो समग्र स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करता है। इस लेख में हम आपको इसकी खेती से जुडी सम्पूर्ण जानकारी देंगे।
यह पौधा विभिन्न प्रकार की मिट्टी और जलवायु परिस्थितियों में उगाया जा सकता है। यह खराब जल निकासी वाली मिट्टी और जल-जमाव वाले क्षेत्रों में उपोष्णकटिबंधीय परिस्थितियों में अत्यधिक अच्छी तरह से बढ़ता है।
पौधे 33-40°C के उच्च तापमान और 65-80% की आर्द्रता पर तेजी से वृद्धि करते हैं। इसे गर्मी और बरसात के मौसम की फसल के रूप में उगाना सर्वोत्तम है, क्योंकि इस समय अनुकूल परिस्थितियां इसे अच्छा विकास प्रदान करती हैं।
ये भी पढ़ें: शतावरी की खेती कैसे करें?
इसके लिए रेतीली, दोमट और चिकनी मिट्टी अधिक उपयुक्त होती है। पौधे की वृद्धि और उत्पादकता मिट्टी की संरचना और जल धारण क्षमता पर निर्भर करती है।
फसल की बेहतर पैदावार के लिए भूमि की अच्छी तैयारी आवश्यक है। खेत को गहरी जुताई कर खरपतवार रहित बनाना चाहिए। मिट्टी को भुरभुरी बनाने के लिए 2-3 बार जुताई करनी चाहिए।
रोपाई से एक दिन पहले सिंचाई कर मिट्टी की नमी को बढ़ाना चाहिए, ताकि पौधों की कटिंग आसानी से स्थापित हो सके।
रोपाई के समय जैविक खाद या कंपोस्ट का उपयोग करना लाभकारी होता है। भूमि की सतह समतल होनी चाहिए, जिससे जल निकासी सही हो सके।
आदर्श रोपाई के लिए 4-5 से.मी. लंबी कटिंग का उपयोग करें, जिनमें कुछ पत्तियां, गांठें और जड़ें मौजूद हों। इन कटिंग को गीली मिट्टी में 40 से.मी. x 40 से.मी. की दूरी पर रोपित करें।
रोपाई के तुरंत बाद बाढ़ सिंचाई करें। रोपाई का सही समय मार्च से जून के बीच होता है।
यह पौधे मानसून के गर्म और आर्द्र महीनों में तेजी से बढ़ते हैं। इसे बहुवर्षीय अवस्था में भी बनाए रखा जा सकता है। इस अवस्था में, जून और मानसून के बाद अक्टूबर में दो बार कटाई की जाती है।
ये भी पढ़ें: सर्पगन्धा की खेती - जड़ से जीवन रक्षक दवा तक की पूरी जानकारी
सिंचाई फसल की अच्छी वृद्धि और उपज के लिए महत्वपूर्ण है। रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई करना आवश्यक होता है। इसके बाद 7-8 दिन के अंतराल पर आवश्यकता अनुसार बाढ़ सिंचाई करें।
मानसून के दौरान सामान्यतः सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि पर्याप्त वर्षा जल उपलब्ध होता है। फसल की जल आवश्यकता मिट्टी की जल धारण क्षमता और मौसम पर निर्भर करती है।
प्रारंभिक चरण में हर 5-20 दिनों पर हाथ से खरपतवार निकालना अनिवार्य है। पौधों की बढ़त के बाद, जब वे गाढ़ी चटाई जैसी बनावट बना लेते हैं, तो खरपतवार नियंत्रण की आवश्यकता काफी कम हो जाती है।
खरपतवार रहित वातावरण फसल की बेहतर वृद्धि सुनिश्चित करता है और उत्पादन क्षमता को बढ़ाता है।
फसल में फूल आने का समय रोपाई के 3 महीने बाद शुरू होता है। कटाई का सही समय अक्टूबर-नवंबर के बीच होता है।
पौधे को जड़ से 4-5 से.मी. ऊपर से काटा जाता है, और शेष भाग को पुनर्जनन के लिए छोड़ दिया जाता है। कटाई के बाद पौधों को छाया में या 80°C तापमान पर ओवन में सुखाना चाहिए।
सुखाई से पौधे की जैविक मात्रा और बैकोसाइड की गुणवत्ता बनी रहती है। बहुवर्षीय फसल के रूप में इसे बनाए रखने के लिए हर साल कटाई की जाती है।
फसल से ताजी जड़ी-बूटी की उपज लगभग 300 क्विंटल/हेक्टेयर होती है, जबकि सूखी जड़ी-बूटी की उपज 60 क्विंटल/हेक्टेयर होती है। बैकोसाइड-ए की उपज प्रति हेक्टेयर 85 कि.ग्रा. होती है।
पहली कटाई के बाद लगभग 40 क्विंटल सूखी जड़ी-बूटी प्राप्त होती है। वार्षिक कुल उपज 100 क्विंटल सूखी जड़ी-बूटी तक हो सकती है।
ये भी पढ़ें: टपिओका फसल की खेती - भूमि की तैयारी, किस्में और उपज की जानकारी
ब्राह्मी से विभिन्न आयुर्वेदिक औषधियां बनाई जाती हैं, जैसे ब्राह्मीघृतम, सरस्वतारिष्टम, ब्राह्मीतैलम, मिश्रकस्नेहम, मेमोरी प्लस, और मेगामाइंड प्लस।
यह उत्पाद मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने और स्मरणशक्ति को बढ़ाने में सहायक होते हैं। ब्राह्मी के औषधीय गुण इसे एक अत्यंत महत्वपूर्ण औषधीय पौधा बनाते हैं।