Published on: 10-Sep-2025
Updated on: 10-Sep-2025
Litchi Cultivation: लीची की उन्नत खेती की विधि
लीची एक स्वादिष्ट और रसीला फल होता है, जिसकी गुणवत्ता उत्कृष्ट होती है। लीची का वैज्ञानिक नाम लीची चिनेंसिस है, वनस्पति रूप से यह सैपिंडेसी (Sapindaceae) परिवार से संबंधित है। लीची की फसल भारत में कई स्थानों पर उगाई जाती है।
लीची की खेती के लिए विशेष जलवायु परिस्थितियों की आवश्यकता होती है, लेकिन यह पौधा मिट्टी को लेकर बहुत अधिक चयनशील नहीं होता। यह पौधा वायरल रोगों से भी बहुत कम प्रभावित होता है। इस लेख में हम आपको लीची की उन्नत खेती की विधि ( Litchi Cultivation )के बारे में जानकारी देंगे।
लीची की फसल के लिए जलवायु की आवश्यकता (Climate Requirement for litchi Cultivation)
लीची उत्पादन के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। फूल आने के लिए इसे एक ठंडी और शुष्क ऋतु से उत्पन्न शाकीय अवधि चाहिए। कुछ आर्द्र क्षेत्रों में तापमान और सापेक्षिक आर्द्रता में हल्की गिरावट फूल आने की प्रक्रिया को प्रोत्साहित कर सकती है। फूलों की बालियों के दिखाई देने से लेकर फसल की कटाई तक नमी की अच्छी उपलब्धता अनिवार्य होती है। लीची ठंड के मौसम में पाला और गर्मी के मौसम में शुष्क गर्मी सहन नहीं कर सकती।
लीची की फसल के लिए मिट्टी की आवश्यकता (Soil Requirement)
लीची की फसल गहरी, अच्छी जल निकासी वाली, जैविक पदार्थों से भरपूर दोमट मिट्टी में अच्छी तरह विकसित होती है, जिसकी pH सीमा 5.0 से 7.0 के बीच होती है। लीची थोड़े समय तक के लिए जल भराव को शान कर सकती है। लेकिन लंबे समय तक जलमग्न रहना हानिकारक होता है। जल निकासी का महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि लीची प्रायः अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों और निचले इलाकों में उगाई जाती है, जहाँ पौधों को हवा से बचाया जाता है।
लीची की किस्में (Varieties of litchi)
लीची की खेती से मुनाफा कमाने के लिए उन्नत किस्मों का चुनाव बहुत आवश्यक है। लीची की किस्में निम्नलिखित दी गयी है -
1. क्वाई मी (मॉरीशस, ताई सो)
- इस किस्म के फल मध्यम आकार (22 से 25 ग्राम) के होते हैं और 12 से 30 के गुच्छों में चमकीले लाल रंग के दिखाई देते हैं।
- फलों की गुणवत्ता अच्छी होती है। यह हिंद महासागर क्षेत्र में सबसे व्यापक रूप से पाई जाने वाली किस्म है। पेड़ मध्यम वृद्धि वाले और पतले आकार के होते हैं।
2. रोज़ सेंटेड
- लीची की इस किस्म के फल मध्यम आकार (16 ग्राम) के होते हैं, गोलाकार और दिल के आकार के दिखाई देते हैं।
- गूदा बहुत मीठा होता है और उसमें गुलाब की सुगंध पाई जाती है, इसी वजह से इसका नाम पड़ा है। यह किस्म मुख्य रूप से भारत के उत्तरांचल में उगाई जाती है।
3. शाही (मुजफ्फरपुर)
- शाही लीची की किस्म के फल मध्यम आकार (20 से 25 ग्राम) के होते हैं और चमकीले गुलाबी रंग के और गुच्छों में पाए जाते हैं। गूदा मीठा होता है।
- यह बिहार राज्य में सबसे आम किस्म है। इसकी निर्यात गुणवत्ता बहुत अच्छी होती है, लेकिन इसमें फटने और धूप से झुलसने की समस्या देखने को मिलती है।
- इस किस्म के पौधे तेज़ी से बढ़ते हैं और नियमित उत्पादन देते हैं (प्रति पौधे 80 से 100 किलोग्राम)।
4. चक्रपद
- यह किस्म बड़े आकार का दिल के आकार का फल देती है (लगभग 32 ग्राम)।
- इसकी त्वचा पतली और लचीली होती है, रंग गहरा लाल होता है जिसमें पीले धब्बे पाए जाते हैं।
- गूदा मध्यम रूप से रसदार होता है और उसमें हल्की खटास बनी रह सकती है।
- इसमें गुठली अपेक्षाकृत बड़ी होती है। पेड़ औसत वृद्धि वाले होते हैं, सीधी बढ़वार के साथ लंबी शाखाएँ और घना पर्णसमूह (पत्तियाँ) पाए जाते हैं।
लीची की उन्नत खेती की विधि (Advanced cultivation method of litchi)
लीची की खेती से लाभ प्राप्त करने के लिए सबसे पहले भूमि की तैयारी की जाती है। यदि खेती का काम मशीनीकरण से किया जा सकता है, तो गहरी जुताई के बाद हल चलाया जाता है, संभवतः गोबर की खाद और फॉस्फेट तथा पोटाश उर्वरक (मृदा परीक्षण के परिणामों के आधार पर) डालने के बाद। जब पौधों को गड्ढों में लगाया जाता है, तो इस चरण पर आवश्यक तत्व (NPK) डाले जाते हैं।
लीची की खेती के लिए पौधे कैसे तैयार करे? (How to prepare plants for litchi cultivation?)
- लीची उत्पादन के लिए पौधों की तैयार सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है, लीची के प्रसार के लिए वायु स्तरीकरण (एयर लेयरिंग) सबसे अधिक प्रचलित तरीका है।
- इसके लिए एक साल पुरानी, स्वस्थ और मजबूत शाखाओं का चयन किया जाता है। चुनी हुई टहनी पर कली के नीचे करीब 2 सेमी चौड़ी छाल उतार दी जाती है। इस घाव वाले हिस्से पर IBA या रूटोन लगाने से जड़ों का विकास तेज और बेहतर होता है।
- इसके बाद उस हिस्से को 2 भाग गीली काई और 1 भाग पुराने लीची वृक्ष के तने के पास की मिट्टी के मिश्रण से बने गोले में लपेटकर पॉलीथीन शीट से अच्छी तरह बांध दिया जाता है, ताकि नमी और वायुरोधक स्थिति बनी रहे।
- करीब 2 महीने में पर्याप्त जड़ें बनने के बाद उस शाखा को नीचे से काटकर नर्सरी में रोपित कर दिया जाता है। यह प्रक्रिया जुलाई से अक्टूबर तक सबसे उपयुक्त रहती है। लगभग 6 महीने तक नर्सरी में पाले गए वायु स्तरीकृत पौधों को मानसून के समय स्थायी खेत में लगाया जाता है।
लीची कैसे उगाएं (How to Grow litchi)
- जब नर्सरी में पौधे लगभग 6 महीने के हो जाते हैं, तब उन्हें खेत में रोपित किया जाता है। इसके लिए 8–10 मीटर की दूरी पर वर्ग पद्धति में 90 × 90 × 90 सेंटीमीटर आकार के गड्ढे तैयार किए जाते हैं।
- इन गड्ढों को भरने के लिए ऊपर की सतही मिट्टी में लगभग 40 किलोग्राम अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद, 2 किलोग्राम नीम या करंज खली, 1 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट तथा 200–300 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश मिलाया जाता है।
- पुराने लीची वृक्षों की जड़ों के पास की लगभग 2 टोकरियाँ मिट्टी मिलाने से माइकोराइजा का विकास बेहतर होता है, जिससे पौधों की बढ़वार और मजबूती में सहायता मिलती है।
लीची की खेती में प्रशिक्षण और छंटाई (Training and pruning in litchi cultivation)
- पौधों के शुरुआती विकास चरण में उन्हें उचित ढांचा देने के लिए प्रशिक्षण आवश्यक होता है। इसमें अवांछित शाखाओं को हटाकर वृक्ष को संतुलित आकार दिया जाता है, जिससे तना और छत्रक (कैनोपी) बेहतर रूप से विकसित हो सके। उपयुक्त ढांचे के लिए पौधे की 60–75 सेमी ऊँचाई पर विपरीत दिशा में 3–4 शाखाएँ रखी जाती हैं।
- भीड़भाड़ वाली, आपस में रगड़ने वाली या संकरी कोण वाली शाखाओं को हटा दिया जाता है, क्योंकि संकरी कोण वाली शाखाएँ आसानी से टूट सकती हैं। परिपक्व वृक्षों की गैर-फलित और अनुपयोगी शाखाएँ, सूखी, रोगग्रस्त और एक-दूसरे को काटती हुई शाखाएँ भी समय-समय पर छाँट दी जानी चाहिए। कटाई के बाद हल्की छंटाई करने से वृक्ष का विकास बेहतर होता है, फलन को बढ़ावा मिलता है और उपज में सुधार होता है।
- फसल की तुड़ाई के दौरान फलों को 8–10 सेमी लंबी टहनी सहित तोड़ना चाहिए। ऐसा करने से पौधे में नई वृद्धि को प्रोत्साहन मिलता है और अगले वर्ष अधिक उत्पादन मिलता है।
लीची की कटाई, तुड़ाई और उपज (Litchi Harvesting, Picking and Yield)
- लीची के फल गुच्छों सहित तोड़े जाते हैं, जिनमें टहनी का कुछ हिस्सा और पत्तियाँ भी शामिल रहती हैं। कटाई के समय केवल पूरी तरह परिपक्व गुच्छों को तोड़ा जाता है। फलों की परिपक्वता का निर्धारण मुख्य रूप से उनके रंग और गूदे के स्वाद से किया जाता है।
- कटाई का समय प्रातःकाल (सुबह) का उपयुक्त माना जाता है, जब तापमान और आर्द्रता फल की भंडारण क्षमता (शेल्फ-लाइफ) को बनाए रखने में सहायक होते हैं। कटाई के दौरान फलों को सावधानीपूर्वक इकट्ठा किया जाता है, ताकि वे जमीन पर न गिरें। बड़े पैमाने पर कटाई के लिए यांत्रिक उपकरणों का भी प्रयोग किया जा सकता है।
- आमतौर पर लीची की फसल मई-जून के बीच पकती है, हालांकि किस्म और क्षेत्र के अनुसार समय थोड़ा बदल सकता है। फसल उत्पादन पर पेड़ की आयु, कृषि-जलवायु परिस्थितियाँ और बाग की देखभाल का सीधा असर पड़ता है। सामान्यत: 14–16 वर्ष पुराने वृक्षों से 80–150 किलोग्राम फल प्रति पेड़ प्राप्त किए जाते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न 1. लीची का वैज्ञानिक नाम क्या है और यह किस परिवार से संबंधित है?
उत्तर: लीची का वैज्ञानिक नाम लीची चिनेंसिस (Litchi chinensis) है और यह सैपिंडेसी (Sapindaceae) परिवार से संबंधित है।
प्रश्न 2. लीची की खेती के लिए किस प्रकार की जलवायु आवश्यक होती है?
उत्तर: लीची की खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु उपयुक्त होती है। फूल आने के लिए ठंडी और शुष्क ऋतु की आवश्यकता होती है। पाला और अत्यधिक गर्मी लीची को नुकसान पहुँचाते हैं।
प्रश्न 3. लीची की खेती के लिए किस प्रकार की मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है?
उत्तर: गहरी, अच्छी जल निकासी वाली, जैविक पदार्थों से भरपूर दोमट मिट्टी जिसकी pH सीमा 5.0 से 7.0 हो, लीची की खेती के लिए सर्वोत्तम है।
प्रश्न 4. भारत में लीची की प्रमुख किस्में कौन-कौन सी हैं?
उत्तर: भारत में लीची की प्रमुख किस्में हैं:
1. क्वाई मी (मॉरीशस, ताई सो)
2. रोज़ सेंटेड
3. शाही (मुजफ्फरपुर)
4. चक्रपद
प्रश्न 5. लीची पौधों की तैयारी के लिए सबसे सामान्य प्रसार विधि कौन-सी है?
उत्तर: लीची पौधों की तैयारी के लिए वायु स्तरीकरण (Air Layering) सबसे सामान्य और सफल विधि है।
प्रश्न 6. लीची के पौधों को खेत में लगाने की उचित दूरी कितनी रखी जाती है?
उत्तर: पौधों को खेत में 8–10 मीटर की दूरी पर वर्ग पद्धति से लगाया जाता है।