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जौ की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

Published on: 27-Aug-2023

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि जौ कई उत्पाद निर्मित करने में काम आता है, जैसे दाने, पशु आहार, चारा और अनेक औद्यौगिक उपयोग (शराब, बेकरी, पेपर, फाइबर पेपर, फाइबर बोर्ड जैसे उत्पाद) बनाने के काम आता है। जौ रबी मौसम में बोई जाने वाली प्रमुख फसलों में से एक है, विगत कुछ वर्षों में बाजार में जौ की मांग बढ़ने से किसानों को इसकी खेती से मुनाफा भी हो रहा है। भारत में बिहार, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश और जम्मू व कश्मीर में जौ की खेती की जाती है। भारत में आठ लाख हेक्टेयर भूमि में प्रति वर्ष तकरीबन 16 लाख टन जौ का उत्पादन होता है।

जौ का इस्तेमाल कई प्रकार के उत्पादों को बनाने में किया जाता है

जैसा कि हम सब जानते हैं, कि जौ कई उत्पादों में काम आता है। जैसे कि दाने, पशु आहार, चारा और अनेक औद्यौगिक उपयोग (शराब, बेकरी, पेपर, फाइबर पेपर, फाइबर बोर्ड जैसे उत्पाद) निर्माण के काम आता है। जौ की खेती ज्यादातर कम उर्वरा शक्ति वाली भूमियों में क्षारीय एवं लवणीय भूमियों में और पछेती बुवाई की परिस्थितियों में की जाती है। परंतु, उन्नत विधियों द्वारा जौ की खेती करने से औसत उत्पादन ज्यादा प्राप्त किया जा सकता है। ज्यादा पैदावार पाने के लिए अपने क्षेत्र के हिसाब से विकसित किस्मों का चुनाव करें। जौ की प्रजातियों में उत्तरी मैदानी क्षेत्रों के लिए ज्योति, आजाद, के-15, हरीतिमा, प्रीति, जागृति, लखन, मंजुला, नरेंद्र जौ-1,2 और 3, के-603, एनडीबी-1173 जौ की प्रमुख प्रजातियां हैं। यह भी पढ़ें: खरीफ सीजन क्या होता है, इसकी प्रमुख फसलें कौन-कौन सी होती हैं

जौ की बुवाई का उपयुक्त समय

जौ के लिए वक्त पर बुवाई करने से 100 किग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती है। अगर बुवाई विलंभ से की गई है तो बीज की मात्रा में 25 प्रतिशत का इजाफा कर देना चाहिये। जौ की बुवाई का वक्त नवम्बर के पहले सप्ताह से आखिरी सप्ताह तक होता है। लेकिन, विलंभ होने पर बुवाई मध्य दिसम्बर तक की जा सकती है। बुवाई पलेवा करके ही करनी चाहिये और पंक्ति से पंक्ति का फासला 22.5 सेमी. और देरी से बुवाई की स्थिति में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25 सेमी. रखनी चाहिये।

बीजोपचार और बेहतरीन गुणवत्ता वाले बीज की पैदावार में भूमिका

बीजोपचार ज्यादा पैदावार प्राप्त करने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले बीज की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। बहुत से कीट एवं बीमारियों के प्रकोप को रोकने के लिए बीज का उपचारित होना बेहद जरूरी है। कंडुआ व स्मट रोग पर लगाम लगाने के लिए बीज को वीटावैक्स या मैन्कोजैब 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिये। दीमक पर नियंत्रण के लिए 100 किग्रा. बीज को क्लोरोपाइरीफोस (20 ईसी) की 150 मिलीलीटर या फोरमेंथियोन (25 ईसी) की 250 मिलीलीटर द्वारा बीज को उपचारित करके बिजाई करनी चाहिये। भूमि और उसकी तैयारी जौ की खेती अनेक प्रकार की भूमियों जैसे बलुई, बलुई दोमट या दोमट जमीन में की जा सकती है। परंतु, दोमट भूमि जौ की खेती के लिए सबसे अच्छी होती है। क्षारीय व लवणीय भूमियों में सहनशील किस्मों की बुवाई करनी चाहिये। खेत में जल निकासी की बेहतर व्यवस्था होनी चाहिये। यह भी पढ़ें: जौ की खेती में फायदा ही फायदा

जौ की खेती हेतु भूमि व उसकी तैयारी

जौ की अत्यधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए भूमि को बेहतर ढ़ंग से तैयार करना चाहिये। खेत में खरपतवार नहीं रहना चाहिये और अच्छी प्रकार से जुताई करके मृदा भुरभुरी बना देनी चाहिये। खेत में पाटा लगाकर खेत समतल एवं ढेलों रहित कर देनी चाहिये। खरीफ फसल की कटाई के उपरांत डिस्क हैरो से जुताई करनी चाहिये। इसके उपरांत दो क्रोस जुताई हैरो से करके पाटा लगा देना चाहिये। आखिरी जुताई से पूर्व खेत में 25 किलो. एन्डोसल्फॅान (4 प्रतिशत) या क्यूनालफॉस (1.5 प्रतिशत) या मिथाइल पैराथियोन (2 प्रतिशत) चूर्ण को समान रूप से छिड़कना चाहिये। सिंचाई जौ की बेहतरीन पैदावार प्राप्त करने के लिए चार-पांच सिंचाई पर्याप्त होती है। पहली सिंचाई बुवाई के 25-30 दिन पश्चात करनी चाहिये। इस वक्त पौधों की जड़ों की उन्नति होती है। दूसरी सिंचाई 40-45 दिन उपरांत देने से बालियां अच्छी लगती हैं। इसके उपरांत तीसरी सिंचाई फूल आने पर और चौथी सिंचाई दाना दूधिया अवस्था में आने की स्थिति पर करनी चाहिये।

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