लूसर्न की खेती: चारा फसलों की रानी के साथ उच्च उत्पादन कैसे प्राप्त करें

Published on: 26-Jan-2025
Updated on: 26-Jan-2025
A lush green field of plants illuminated by sunlight, showcasing healthy growth
फसल पशु चारा

लूसर्न को 'चारा फसलों की रानी' के रूप में जाना जाता है। इसको रिजका के नाम से भी जाना जाता है।

भारत में, लूसर्न मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और लद्दाख के लेह क्षेत्र के सिंचित क्षेत्रों में उगाई जाती है।

इसे आमतौर पर रबी मौसम में एक महत्वपूर्ण चारा फसल के रूप में उगाया जाता है।

खासकर उन क्षेत्रों में जहां पानी की आपूर्ति बरसीम के लिए पर्याप्त नहीं होती और सर्दियों का समय छोटा होता है।

इसकी गहरी जड़ प्रणाली इसे सिंचाई सुविधा वाले शुष्क क्षेत्रों के लिए बहुत अनुकूल बनाती है। यह उच्च जलस्तर वाले क्षेत्रों में वर्षा आधारित या बिना सिंचाई वाली फसल के रूप में भी अच्छी तरह उगती है।

लूसर्न की खेती के लिए जलवायु

यह एक बहुवर्षीय स्थायी, उत्पादक और सूखा सहनशील चारा फसल है, जिसमें 15% कच्च प्रोटीन और 72% सूखा पदार्थ पाचनशीलता होती है।

यह बरसीम (दिसंबर - अप्रैल) की तुलना में लंबे समय तक (नवंबर - जून) हरा चारा प्रदान करती है।

हालांकि लूसर्न समशीतोष्ण क्षेत्र की मूल फसल है, लेकिन इसे उष्णकटिबंधीय देशों में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। यह काफी कम तापमान को भी अच्छी तरह सहन कर सकती है।

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लूसर्न की खेती के लिए मिट्टी की आवश्यकता

लूसर्न की खेती कई प्रकार की मिट्टी में आसानी से की जा सकती है। हालांकि, लूसर्न की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली उपजाऊ मिट्टी, जिसका pH तटस्थ हो अच्छी मानी जाती है। 

यह क्षारीय मिट्टी में नहीं उगाया जा सकता, लेकिन चूने के पर्याप्त उपयोग के साथ इसे अम्लीय मिट्टी पर उगाया जा सकता है। यह बहुत भारी और जल-जमाव वाली मिट्टी पर अच्छी तरह से विकसित होता है।

लूसर्न की बुवाई के लिए भूमि की तैयारी

लूसर्न को एक अच्छा, समतल और नमीयुक्त बीज-बिस्तर की आवश्यकता होती है।

उचित बीज-बिस्तर तैयार करने के लिए, एक बार मोल्ड बोर्ड हल से और 3-4 बार देशी हल से खेत की जुताई करना, और प्रत्येक बार पाटा लगाना पर्याप्त होता है।

एक अच्छा बीज-बिस्तर बीजों और मिट्टी के कणों के बीच बेहतर संपर्क सुनिश्चित करता है और तेज व बेहतर अंकुरण में सहायक होते है।

लूसर्न की उन्नत किस्में

लूसर्न की कई किस्में है जो कि अच्छी उपज देती है। लूसर्न की उन्नत किस्में निम्नलिखित है -

  • Sirsa-8
  • Anand-2
  • Anand-3
  • RL 88
  • CO-1
  • T-9

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लूसर्न बुवाई का समय

लूसर्न की बुवाई के लिए अक्टूबर का मध्य सबसे उपयुक्त समय है। हालांकि, इसे सितंबर के अंत से दिसंबर की शुरुआत तक बोया जा सकता है।

लूसर्न की खेती के लिए बीज मात्रा और बुवाई का तरीका 

यदि इसे छिड़काव विधि से बोया जाए तो 20-25 कि.ग्रा./हेक्टेयर बीज पर्याप्त है, जबकि पंक्तिबद्ध बुवाई के लिए 12-15 कि.ग्रा./हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है।

बुवाई का तरीका

इसे सीड ड्रिल या देशी हल से ठोस बुवाई या पंक्तियों में 25-30 सेंटीमीटर की दूरी पर बोया जा सकता है। बीज को 1.5 सेंटीमीटर से अधिक गहराई में नहीं बोना चाहिए।

छिड़काव विधि में ध्यान दें

छिड़काव विधि से बुवाई करने पर बीज को जल्द से जल्द मिट्टी से ढक देना बहुत जरूरी है। यह ध्यान रखना चाहिए कि बीज 1 सेंटीमीटर से अधिक गहराई में न जाए क्योंकि लूसर्न के बीज का आकार बहुत छोटा होता है।

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लूसर्न की कटाई 

पहली कटाई

पहली कटाई बुवाई के 50-55 दिन बाद की जाती है। इसके बाद, प्रत्येक कटाई 25-30 दिनों के अंतराल पर की जाती है, जब फसल मिट्टी की सतह से 60 सेंटीमीटर की ऊंचाई प्राप्त कर लेती है।

वार्षिक कटाई और उत्पादन

अक्टूबर से अप्रैल के बीच, एक वर्ष में 8-10 बार कटाई की जा सकती है। इससे प्रति हेक्टेयर 80-120 टन हरे चारे और 18-20 टन सूखे चारे का उत्पादन होता है।