मल्टी लेयर फार्मिंग: एक आधुनिक और लाभकारी खेती प्रणाली

Published on: 06-May-2025
Updated on: 06-May-2025
Green maize crop growing in rows on a farm field
फसल

भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां अधिकांश जनसंख्या खेती पर निर्भर है। खेती में तकनीकी बदलाव और परंपरागत विधियों का मिश्रण अब किसानों के लिए आय बढ़ाने का साधन बन चुका है। 

इसी कड़ी में मल्टी लेयर फार्मिंग एक प्रभावी और टिकाऊ खेती प्रणाली के रूप में उभर रही है। यह विधि एक ही खेत में एक साथ कई फसलों को अलग-अलग ऊंचाई पर उगाने की अनुमति देती है। 

इस लेख में हम मल्टी लेयर फार्मिंग का महत्व, लाभ, कार्यप्रणाली, उपयुक्त फसलें, वेजिटेबल फार्मिंग मॉडल और इससे जुड़े सामान्य पहलुओं की जानकारी प्राप्त करेंगे।

मल्टी लेयर फार्मिंग क्या है?

मल्टी लेयर फार्मिंग की शुरुआत यूरोप से हुई और अब यह एक प्रगतिशील कृषि तकनीक बन चुकी है। इसमें किसान एक ही समय पर एक ही खेत में विभिन्न स्तरों (लेयर) पर फसलें उगाते हैं, जिससे भूमि का अधिकतम उपयोग होता है। यह तरीका सुरक्षित, स्थायी और लाभदायक है, जो उत्पादन और आय दोनों बढ़ाने में मदद करता है।

मल्टी लेयर फार्मिंग शुरू करने के मुख्य चरण

1. खेत का चयन और तैयारी  

ऐसे खेत का चयन करें जहां पानी निकासी अच्छी हो और पर्याप्त धूप मिलती हो। गहरी जुताई करें और जैविक खाद जैसे गोबर, वर्मी कम्पोस्ट या कम्पोस्ट मिलाएं। मिट्टी की जांच कर पोषक तत्वों के अनुसार उर्वरक डालें।

2. बीजों का चयन और उपचार  

एक साथ उगाई जा सकने वाली फसलों का चुनाव करें। जैसे – नीचे हल्दी/अदरक, बीच में टमाटर/बैंगन, ऊपर मक्का/मिर्च, और सबसे ऊपर बेल वाली फसलें जैसे लौकी, करेला आदि। बीजों को जैविक तरीके से उपचारित करें ताकि बीमारियों से बचाव हो।

3. बुवाई और रोपाई  

सभी फसलों की बुवाई उनके स्थान और जरूरत के अनुसार करें। ऊंची फसलें कोनों या पीछे की ओर लगाएं ताकि अन्य पौधों को पर्याप्त धूप मिल सके। बेल वाली फसलों को सहारा देना जरूरी है।

4. सिंचाई प्रबंधन  

मल्टी लेयर सिस्टम में ड्रिप या स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली सबसे बेहतर रहती है। इससे सभी फसलों को उचित मात्रा में पानी मिलता है और पानी की भी बचत होती है।

5. खरपतवार नियंत्रण  

समय-समय पर निराई-गुड़ाई करें। मल्चिंग के प्रयोग से खरपतवार कम होते हैं और मिट्टी की नमी भी बनी रहती है।

6. रोग व कीट नियंत्रण  

जैविक कीटनाशकों जैसे नीम का अर्क, लहसुन-अदरक का घोल उपयोग करें। फसलों की नियमित निगरानी जरूरी है ताकि समय पर उपचार हो सके।

7. कटाई और तुड़ाई  

हर लेयर की फसल अपने समय पर तैयार होती है। जैसे ही कोई फसल पक जाए, उसे तुरंत काट लें ताकि अन्य फसलों को पर्याप्त पोषक तत्व मिल सकें।

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मल्टी लेयर फार्मिंग में उपयुक्त फसलों का चयन

फसल चयन इस प्रणाली की सफलता की कुंजी है। नीचे एक चार-स्तरीय प्रणाली का उदाहरण दिया गया है:

1. पहली लेयर (भूमिगत फसलें)  

  • स्थान: मिट्टी के अंदर  
  • फसलें: हल्दी, अदरक, गाजर, मूली, शकरकंद, मूंगफली  
  • विशेषता: भूमि के भीतर विकास, ऊपरी फसलों से कोई टकराव नहीं।

2. दूसरी लेयर (नीची सब्जियां)  

  • स्थान: भूमि की सतह पर  
  • फसलें: पालक, धनिया, मेथी, भिंडी, बैंगन, टमाटर  
  • विशेषता: मध्यम ऊंचाई, सीधी धूप की आवश्यकता होती है।

3. तीसरी लेयर (मध्यम ऊंचाई वाले फलदार पौधे)  

  • स्थान: दूसरी लेयर के ऊपर  
  • फसलें: पपीता, केला, अमरूद, नींबू  
  • विशेषता: लम्बी अवधि में आय देने वाले, नीचे की फसलों को छांव मिलती है।

4. चौथी लेयर (बेल वाली फसलें)  

  • स्थान: सबसे ऊपरी परत, मचान या जाल पर  
  • फसलें: लौकी, करेला, खीरा, ककड़ी, तोरई  
  • विशेषता: ऊपर फैलने वाली फसलें, जमीन नहीं घेरतीं और अतिरिक्त आय देती हैं।

महत्वपूर्ण सुझाव

  • फसलें ऐसी चुनें जिनकी जड़ें एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा न करें।  
  • ऊंची फसलें पूर्व-पश्चिम दिशा में लगाएं ताकि नीचे की फसलों को भरपूर धूप मिले।  
  • बेल वाली फसलों को मजबूत सहारा अवश्य दें।  
  • पूरे वर्ष नियमित रूप से आय पाने के लिए फसलों की योजना बनाएं।