भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां अधिकांश जनसंख्या खेती पर निर्भर है। खेती में तकनीकी बदलाव और परंपरागत विधियों का मिश्रण अब किसानों के लिए आय बढ़ाने का साधन बन चुका है।
इसी कड़ी में मल्टी लेयर फार्मिंग एक प्रभावी और टिकाऊ खेती प्रणाली के रूप में उभर रही है। यह विधि एक ही खेत में एक साथ कई फसलों को अलग-अलग ऊंचाई पर उगाने की अनुमति देती है।
इस लेख में हम मल्टी लेयर फार्मिंग का महत्व, लाभ, कार्यप्रणाली, उपयुक्त फसलें, वेजिटेबल फार्मिंग मॉडल और इससे जुड़े सामान्य पहलुओं की जानकारी प्राप्त करेंगे।
मल्टी लेयर फार्मिंग की शुरुआत यूरोप से हुई और अब यह एक प्रगतिशील कृषि तकनीक बन चुकी है। इसमें किसान एक ही समय पर एक ही खेत में विभिन्न स्तरों (लेयर) पर फसलें उगाते हैं, जिससे भूमि का अधिकतम उपयोग होता है। यह तरीका सुरक्षित, स्थायी और लाभदायक है, जो उत्पादन और आय दोनों बढ़ाने में मदद करता है।
ऐसे खेत का चयन करें जहां पानी निकासी अच्छी हो और पर्याप्त धूप मिलती हो। गहरी जुताई करें और जैविक खाद जैसे गोबर, वर्मी कम्पोस्ट या कम्पोस्ट मिलाएं। मिट्टी की जांच कर पोषक तत्वों के अनुसार उर्वरक डालें।
एक साथ उगाई जा सकने वाली फसलों का चुनाव करें। जैसे – नीचे हल्दी/अदरक, बीच में टमाटर/बैंगन, ऊपर मक्का/मिर्च, और सबसे ऊपर बेल वाली फसलें जैसे लौकी, करेला आदि। बीजों को जैविक तरीके से उपचारित करें ताकि बीमारियों से बचाव हो।
सभी फसलों की बुवाई उनके स्थान और जरूरत के अनुसार करें। ऊंची फसलें कोनों या पीछे की ओर लगाएं ताकि अन्य पौधों को पर्याप्त धूप मिल सके। बेल वाली फसलों को सहारा देना जरूरी है।
मल्टी लेयर सिस्टम में ड्रिप या स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली सबसे बेहतर रहती है। इससे सभी फसलों को उचित मात्रा में पानी मिलता है और पानी की भी बचत होती है।
समय-समय पर निराई-गुड़ाई करें। मल्चिंग के प्रयोग से खरपतवार कम होते हैं और मिट्टी की नमी भी बनी रहती है।
जैविक कीटनाशकों जैसे नीम का अर्क, लहसुन-अदरक का घोल उपयोग करें। फसलों की नियमित निगरानी जरूरी है ताकि समय पर उपचार हो सके।
हर लेयर की फसल अपने समय पर तैयार होती है। जैसे ही कोई फसल पक जाए, उसे तुरंत काट लें ताकि अन्य फसलों को पर्याप्त पोषक तत्व मिल सकें।
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फसल चयन इस प्रणाली की सफलता की कुंजी है। नीचे एक चार-स्तरीय प्रणाली का उदाहरण दिया गया है: