जायद में बैंगन की इन किस्मों से मिलेगा तगड़ा मुनाफा

Published on: 02-Apr-2024

रबी की फसलों की कटाई के बाद अब जायद का सीजन शुरू हो गया है। अधिकांश किसान बैंगन की खेती जायद सीजन में करते हैं। क्योंकि, यह एक ग्रीष्मकालीन नकदी फसल है। 

बैंगन की खेती मिश्रित फसल के रूप में भी की जाती है। बैंगन शुष्क और गर्म जलवायु में बेहतरीन रूप से बढ़ता है। बैंगन की खेती से मोटा मुनाफा कमा सकते हैं। 

लेकिन, इसके लिए आपको बैंगन की बेहतरीन किस्मों को जान लेना चाहिए। इसके बाद आप बैंगन की खेती (Brinjal Farming) कर काफी मोटा मुनाफा कमा सकते हैं। 

बैंगन की उन्नत किस्में निम्नलिखित हैं

बैंगन की उन्नत किस्में जैसे कि- पूसा क्लस्टर, पूसा क्रांति, पंजाब जामुनी गोला, नरेंद्र बागन-1, आजाद क्रांति, पंत ऋतुराज, पंत सम्राट, टी-3, पूसा हाइब्रिड-5, पूसा हाइब्रिड-9, विजय हाइब्रिड, पूसा पर्पिल लौंग आदि प्रमुख हैं।

बैंगन की खेती कब और कैसे की जाती है

ग्रीष्मकालीन बैंगन की खेती करने के लिए सबसे पहले बेहतर जल निकास वाली बलुई दोमट मृदा उपयुक्त है। मिट्टी का पी.एच मान 6 से 7 के बीच सही रहता है। 

किसान भाई ग्रीष्मकालीन बैंगन के लिए नर्सरी में बीज की बुवाई करें। ग्रीष्मकालीन बैंगन में खाद और उर्वरक की मात्रा प्रजाति, स्थानीय वातारण और मिट्टी के प्रकार पर निर्भर करती है।

बेहतरीन फसल के लिए 15-20 टन सड़ी गोबर की खाद खेत को तैयार करते समय और पोषक तत्वों के तोर पर रोपाई से पूर्व 60 किग्रा फॉस्फोरस, 60 किग्रा पोटाश और 150 किग्रा नाइट्रोजन की आधी मात्रा आखिरी जुलाई के वक्त मिट्टी में मिला दें। 

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साथ ही, शेष आधी नाइट्रोजन की मात्रा को फूल आने के दौरान प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें। क्यारियों में लंबे फल वाली प्रजातियों के लिए 70-75 सेमी और गोल फल वाली प्रजातियों के लिए 90 सेमी के फासले पर पौध रोपण करें। एक हेक्टेयर भूमि में फसल रोपण के लिए 250-300 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

इस तरह करें खरपतवार पर नियंत्रण

आईसीएआर की रिपोर्ट के अनुसार, खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडीमिथालिन या स्टाम्प नामक खरपतवारनाशी की 3 लीटर मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से पौध रोपाई से पहले उपयोग करें। 

इस बात का विशेष ख्याल रखें कि छिड़काव से पूर्व भूमि में नमी होनी चाहिए। निराई और गुड़ाई द्वारा भी खेत में खरपतवार की रोकथाम करनी संभव है। फसल की आवश्यकता के अनुरूप ही खेत में सिंचाई का प्रबंध करें।

तनाछेदक कीटों से बचाना जरूरी

तनाछेदक कीट की सूंडी पौधों के प्ररोह को नुकसान करती है और बाद में मुख्य तने में घुस जाती है। छोटे ग्रसित पौधे मुरझाकर सूख जाते हैं। बड़े पौधे मरते नहीं, ये बौने रह जाते हैं और इनमें फल कम लगते हैं।

प्ररोह व फलछेदक कीट से बचाव

प्ररोह व फलछेदक कीट की सूंडी पौधे के प्ररोह व फल को काफी हानि पहुंचाती है। ग्रसित प्ररोह मुरझाकर सूख जाते हैं। फलों में सूंडियां टेढ़ी-मेढ़ी सुरंगे बनाती हैं। 

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फल का ग्रसित हिस्सा काला पड़ जाता है या लगते ही नहीं। तनाछेदक, प्ररोह व फलछेदक के नियंत्रण के लिए रेटून फसल न लें, इसमें फलछेदक का प्रकोप काफी ज्यादा होता है। ग्रसित प्ररोहों व फलों को निकालकर मृदा के अंदर दबा दें।

फलछेदक की निगरानी के लिए 5 फेरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टेयर लगाएं। नीम बीज अर्क (5 फीसदी) या बी.टी. 1 ग्राम प्रति लीटर या स्पिनोसेड 45 एस.सी 1 मिली प्रति 4 लीटर या कार्बेरिल, 50 डब्ल्यू.पी 2 ग्राम प्रति लीटर या डेल्टमेथ्रिन 1 मिली प्रति लीटर का फूल आने से पहले इस्तेमाल करें।

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