कद्दू उत्पादन की नई विधि हो रही है किसानों के बीच लोकप्रिय, कम समय में तैयार होती है फसल - Meri Kheti

कद्दू उत्पादन की नई विधि हो रही है किसानों के बीच लोकप्रिय, कम समय में तैयार होती है फसल

0

सीताफल और काशीफल जैसे लोकप्रिय नाम से प्रचलित कद्दू या कुम्हड़ा (Kaddu, kumharaa or pumpkin) एक ऐसी सब्जी है, जिसे उत्पादन के बाद कोल्ड स्टोरेज में रखने की इतनी आवश्यकता नहीं होती है और लंबे समय तक आसानी से बेचा जा सकता है।

सभी पोषक तत्वों की पूर्ति करने वाली यह फसल कई प्रकार की मिठाइयां बनाने के काम में तो आती ही है, साथ ही इसे खाने से उसके बीज में मौजूद विटामिन-सी, आयरन, फास्फोरस, पोटेशियम तथा जिंक जैसे सूक्ष्म तत्वों की कमी को भी दूर किया जा सकता है।

कद्दू की खेती के उपयुक्त जलवायु

वैसे तो कद्दू की खेती के लिए गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है, परंतु फिर भी एक जायद फसल होने के नाते ठंडी और गर्म मिश्रण की जगह पर भी इसे उगाया जा सकता है।

किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि कद्दू की फसल को ज्यादा ठंड पड़ने पर पाले से बचाना होगा। कद्दू की अच्छी पैदावार के लिए आपको 18 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच में तापमान को नियंत्रित करना होगा।

ये भी पढ़ें: सीजनल सब्जियों के उत्पादन से करें कमाई

कद्दू की खेती के लिए कैसी मिट्टी चाहिये ?

कद्दू की खेती के लिए मुख्यतया भारत के किसान दोमट या बलुई दोमट मिट्टी का इस्तेमाल करते हैं, हालांकि इसकी खेती बलुई मिट्टी में भी की जाती है।

कद्दू की खेती के लिए किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि आपके खेत में पानी निकासी की व्यवस्था अच्छी तरीके से होनी चाहिए।

कद्दू की खेती के लिए खेत की तैयारी व खाद उपचार

किसान भाई यह तो जानते ही होंगे कि कद्दू एक उथली जड़ वाली फसल होती है, इसलिए इसे ज्यादा जुताई की आवश्यकता नहीं होती है। आप एक बार ही कल्टीवेटर से जुताई कर अपने खेत को समतल बनाकर इसके बीजों की बुवाई कर सकते है। खेत के तैयार होने के बाद छोटी-छोटी क्यारियां और नालियां बना कर मेड़ बनानी चाहिए।

कद्दू की फसल के दौरान इस्तेमाल में होने वाले ऑर्गेनिक गोबर की खाद को डाला जा सकता है। इसके अलावा आप अरंडी की फसल से तैयार होने वाले चारे को पीसकर भी अंतिम जुताई से पहले खेत में अच्छी तरह बिखेर सकते है।

ये भी पढ़ें: जैविक खेती में किसानों का ज्यादा रुझान : गोबर की भी होगी बुकिंग

यदि बात करें रासायनिक खाद और उर्वरकों की, तो प्रति हेक्टेयर जमीन के अनुसार 70 से 80 किलोग्राम नाइट्रोजन तथा 40 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल किया जा सकता है। इन उर्वरकों का इस्तेमाल आपको अंतिम जुताई से पहले ही अपने खेत में करना होगा और नाइट्रोजन की कुछ मात्रा कद्दू के फूल के 20 से 25 दिन बड़े होने के बाद इस्तेमाल करनी चाहिए।

किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि सुबह के समय कद्दू की फसल में कभी भी रसायनिक या जैविक खाद का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

कद्दू की बुवाई में बीज अनुपात व उपचार

कद्दू की फसल को बोने का समय इस बात पर निर्भर करता है कि इसे कहां पर बोया जा रहा है। भारत के मैदानी क्षेत्रों में इसे साल में दो बार उगाया जाता है और पर्वतीय क्षेत्रों में अप्रैल महीने में इसकी बुवाई की जाती है।

किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि फसल की दो कतारों के बीच में लगभग 200 से 250 सेंटीमीटर की दूरी होनी अनिवार्य है और दो छोटी पौध के बीच में 45 से 50 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए।

बीज को जमीन से 5 से 6 सेंटीमीटर गहराई में बोया जाए तो इसकी कोंपल सही समय पर बाहर निकल आती है।

कद्दू की बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर की दर से 1 किलोग्राम से 2 किलोग्राम बीज पर्याप्त होते है।

बीज बोने से पहले आप अपने बीज का उपचार भी कर सकते है, जिसके तहत बीज को 1 लीटर पानी में मिलाकर उसमें 2 ग्राम केप्टोन का मिश्रण तैयार किया जा सकता है और फिर इसे अच्छी तरह घोला जाता है, कुछ समय बाद बाहर निकाल कर दो से तीन घंटे छाया में सुखाकर बुवाई के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

ये भी पढ़ें: पूसा कृषि वैज्ञानिकों की एडवाइजरी इस हफ्ते जारी : इन फसलों के लिए आवश्यक जानकारी

कद्दू की उन्नत किस्में

पूसा के वैज्ञानिकों के द्वारा कद्दू की फसल की कई उन्नत किस्में भारतीय किसानों के लिए तैयार की गई है, इनमें पूसा-अलंकार, पूसा-विश्वास तथा पूसा-विकास खेतों में इस्तेमाल की जाने वाली उन्नत किस्म है।

कद्दू की फसल में कीट नियंत्रण

किसान भाइयों कद्दू की फसल में लगने वाले रोग जैसे कि लीफ-माइनर और फल-मक्खी से बचाव के लिए घर पर ही कुछ रासायनिक मिश्रण तैयार कर सकते है।इसके लिए आप वर्मी-मैक्स यात्रा की 0.005 प्रतिशत मात्रा को अपने खेत में तीन से चार सप्ताह के अंतराल पर छिड़काव कर सकते है।

फल मक्खी कद्दू की फसल में लगने वाले फल की मुलायम अवस्था में ही उसके अंदर अंडे दे देती है और उसे अंदर से खाना शुरु कर देती है, इसके निवारण के लिए फूल के बड़े होने के बाद रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल कम करना चाहिए और नीम की निंबोली का पानी के साथ 5% गोल मिलाकर इस्तेमाल करना चाहिए।

कद्दू के फसल की तुड़ाई

कद्दू की फसल की बुवाई के लगभग 70 से 80 दिनों में यह तैयार हो जाता है और आपके आसपास की मंडी की मांग के अनुसार इसे समय-समय कर तोड़ते रहना चाहिए। भारत के लोगों के द्वारा दोनों समय की सब्जी के रूप में इसका इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए इसकी डिमांड पूरे साल चलती रहती है।

यदि आप उपयुक्त बतायी गयी विधि का इस्तेमाल पूरी सावधानी से करते हैं तो एक हेक्टेयर क्षेत्र में लगभग 300 से 400 क्विंटल कद्दू की पैदावार कर सकते है।

इसके भंडारण के लिए किसी विशेष शीत-ग्रह की जरूरत नहीं होगी और अपने घर में ही एक कमरे में 20 से 25 दिन तक स्टोर किया जा सकता है, पर ध्यान रहे कि तापमान लगभग 30 डिग्री सेल्सियस से कम ही होना चाहिए।

आशा करते हैं कि हमारे किसान भाइयों को वैज्ञानिकों के द्वारा तैयार की गई कद्दू उत्पादन की यह नई विधि पसंद आई होगी और भविष्य में इसी विधि का इस्तेमाल करके अच्छा उत्पादन कर पाएंगे।

Leave A Reply

Your email address will not be published.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More