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एडवाइजरी

किसान भाई ध्यान दें, खरीफ की फसलों की बुवाई के लिए नई एडवाइजरी जारी

किसान भाई ध्यान दें, खरीफ की फसलों की बुवाई के लिए नई एडवाइजरी जारी

नई दिल्ली। खरीफ की फसलों की बुवाई के लिए नई एडवाइजरी जारी हो गई है। किसान भाई ध्यान से इस नई एडवाइजरी के बारे में विस्तार से जानें. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने किसानों को चारे और सब्जियों की फसल की अच्छी खेती को लेकर एडवाइजरी जारी की है। 

एडवाइजरी के अनुसार यह समय चारे की फसल ज्वार की बुवाई के लिए उपयुक्त है। खेत में पर्याप्त नमी को ध्यान में रखते हुए किसान पूसा चरी-9, पूसा चरी-6 या अन्य सकंर किस्मों की बुवाई तत्काल शुरू कर सकते है। 

इसके बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर 40 किलोग्राम से 42 किलोमग्राम तक होनी चाहिए। लोबिया की बुवाई का भी यह ठीक समय है। 

कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक इस मौसम में किसान खरीफ प्याज, सेम, पालक, लोबिया, भिंडी, चौलाई आदि सब्जियों की बुवाई कर सकते हैं। 

लेकिन ध्यान रहे कि खेत में पर्याप्त नमी रहे। इसके साथ ही बीज किसी प्रमाणित स्रोत से ही खरीदें, ताकि नकली बीज होने की गुंजाइश कम हो।

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कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो कद्दूवर्गीय सब्जियों की वर्षाकालीन फसल की बुवाई शुरू हो जानी चाहिए। लौकी की उन्नत किस्में पूसा नवीन और पूसा समृद्वि हैं। 

सीताफल की पूसा विश्वास, करेला की पूसा विशेष, पूसा दो मौसमी, पूसा विकास, तुरई की पूसा चिकनी धारीदार, पूसा नसदार तथा खीरा की पूसा उदय, पूसा बरखा आदि किस्मों की बुवाई शुरू कर सकते हैं। हालांकि यह ध्यान रहे कि मिट्टी ऐसी हो जिसमें बीज का जमाव बेहतर ढंग से हो सके।

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बाग लगाने वाले गड्ढ़ों में गोबर की खाद डालें

- जिन गड्ढ़ों में फसल उगाने की तैयारी चल रही है। उनमें गोबर की खाद जरूर डालें, ताकि दीमक तथा सफेद लट से बचा जा सके। 

गोबर की सड़ी-गली खाद के प्रयोग करने से भूमि जल धारण और पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है। मिट्टी जांच के बाद उर्वरकों की संतुलित मात्रा का उपयोग करें।

पोटाश की मात्रा जरूर बढ़ाएं

इन फसलों को पानी की आवश्यकता होती है। फसल में पानी की कमी और सूखा से लड़ने के लिए पोटाश (Potash) की मात्रा अधिक होनी चाहिए। वर्षा आधारित एवं बारानी क्षेत्रों में भूमि में नमी के लिए पलवार का प्रयोग करना लाभदायक होगा।

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बारिश की आशंका को देखते हुए सभी किसानों को सलाह दी जाती है कि फसलों पर किसी प्रकार का छिड़काव न करें। साथ ही खड़ी फसलों व सब्जियों एवं नर्सररियों में उचित प्रबंध करें। ------ लोकेन्द्र नरवार

पूसा कृषि वैज्ञानिकों की एडवाइजरी इस हफ्ते जारी : इन फसलों के लिए आवश्यक जानकारी

पूसा कृषि वैज्ञानिकों की एडवाइजरी इस हफ्ते जारी : इन फसलों के लिए आवश्यक जानकारी

पूसा कृषि वैज्ञानिकों की एडवाइजरी इस हफ्ते जारी : धान, मक्का व सब्जियों की फसल के लिए उपयोगी जानकारी

समय-समय पर भारतीय कृषि मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले कृषि वैज्ञानिक, अपनी एडवाइजरी के जरिए भारत के किसानों को फायदा पहुंचाने का कार्य बखूबी करते रहते हैं। इसी कड़ी में, इस सप्ताह के लिए इन्होंने अपनी एक नई एडवाइजरी जारी कर दी है। इस एडवाइजरी में बताई गई सलाह को जानने से पहले, आप यह समझ लें कि वैज्ञानिकों के द्वारा जारी की गई एडवाइजरी पूर्णतया किसानों के फायदे के लिए ही की जाती है और इसका सही तरीके से पालन करने पर आप की फ़सल की उत्पादकता और यील्ड बहुत ही तेजी से ग्रोथ करती हुई दिखाई देगी। दिल्ली में स्थित पूसा इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (Pusa Institute Of Technology, DSEU Pusa campus) के द्वारा जारी की गई एडवाइजरी में कहा गया है कि, जिस समय
धान की रोपाई की जाए उस समय, एक पंक्ति और दूसरी पंक्ति के बीच 20 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए और दो छोटे पौधों के बीच की दूरी 10 सेंटीमीटर से अधिक होनी चाहिए। इस एडवाइजरी के अनुसार कहा गया है कि, जिन किसानों ने अपनी फसल का रोपण बारिश की पहली श्रंखला में ही कर दिया था, वह अपनी फसलों की निराई गुड़ाई का कार्य जल्दी से जल्दी करने की कोशिश करें, क्योंकि, इसमें देरी हो जाने पर फसल की जितनी अनुमानित उत्पादकता होगी, वास्तविक उत्पादकता उससे काफी कम प्राप्त हो सकती हैं। यह बात तो आप जानते ही हैं, कि भारत की मिट्टी में कई जगहों पर नाइट्रोजन की कमी देखी जाती है और इसी की पूर्ति करने के लिए, भारत सरकार सॉइल हेल्थ कार्ड (Soil Health Card) के जरिए किसानों को समय-समय पर यूरिया की सप्लाई करती रहती है। सब्सिडी पर मिलने वाले यूरिया को बहुत ही सीमित मात्रा में इस्तेमाल करना चाहिए, यदि आपने अपने खेतों में एक बार नाइट्रोजन की मात्रा का छिड़काव कर दिया है, तो अति शीघ्र दूसरे छिड़काव की तैयारी भी कर लें।

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इस समय यह ध्यान रखें कि बारिश आने में और यूरिया के छिड़काव के बीच में थोड़े समय का अंतराल होना अनिवार्य है, क्योंकि यदि यूरिया के छिड़काव के तुरंत बाद ही बारिश आ जाती है, तो बारिश के पानी के द्वारा पूरे न्यूट्रिएंट्स को बहाकर ले जाया जा सकता है, जिससे कि आप की मेहनत और पैसा दोनों ही बर्बाद हो सकते हैं। यदि आपकी फ़सल समय से पहले पक कर तैयार हो चुकी है, तो उनके उचित प्रबंधन का भी ध्यान रखें।

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सॉइल हेल्थ कार्ड के द्वारा बताई गई माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी को दूर करने के लिए उसी के अनुसार नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और जिंक सल्फेट को मिलाना चाहिए। यदि एक औसत निकाला जाए तो आपको अपने खेत में प्रति हेक्टेयर के अनुसार 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल करना चाहिए। पोटाश (Potash) का इस्तेमाल मुख्यतया फर्टिलाइजर के रूप में किया जाता है और इसका इस्तेमाल फसल के थोड़े से बड़े होने के बाद ही करना चाहिए, छोटे पौधों में इसका इस्तेमाल करने से उनकी ग्रोथ में रुकावट भी पैदा हो सकती है। इस समय मक्का, फूल गोभी, बैंगन और मिर्च इत्यादि की खेती करने का वक्त भी शुरू हो चुका है। यदि आप मक्का की खेती करना चाहते हैं, तो पूसा के वैज्ञानिकों के द्वारा बताई गई हाइब्रिड किस्में एएच-401 और एएच- 58 के साथ ही पूसा कम्पोसिट- 4 का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। बुवाई के दौरान आपको ध्यान रखना होगा कि प्रति हेक्टेयर के अनुसार 20 किलोग्राम तक के बीज का ही इस्तेमाल करना चाहिए। मक्का की खेती में पंक्ति के बीच में दूरी को 70 से 80 सेंटीमीटर के बीच में रखना चाहिए और जैसे ही मक्का की पौध जमीन से थोड़ी सी बाहर निकले, तो साथ में उगे खरपतवार को खत्म करने के लिए एट्राजिन (Atrazine) नाम के एक खरपतवार नाशी का इस्तेमाल कर सकते हैं।

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यदि आप मिर्च, फूलगोभी और बैंगन की तैयार पौध का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो अपने खेत में एक बार हार्वेस्टर के इस्तेमाल के बाद में उथली हुई क्यारियों पर ही इनकी पौध को लगाना चाहिए। इस समय किसान भाइयों को ध्यान रखना चाहिए, कि खेत में ज्यादा पानी को रुकने ना दें। यदि थोड़ा भी ज्यादा पानी रह गया हो, तो तुरंत उसको खेत से बाहर निकालने का प्रयास करें, क्योंकि आजकल नर्सरी में तैयार की गई पौध पहले के जैसे नहीं बनाई जाती और उनमें हाइब्रिड गुणों का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे कि हानिकारक कीट और बीमारियां लग सकती हैं। इसके अलावा पूसा के वैज्ञानिकों ने एक और खास एडवाइजरी जारी की है, जिसमें उन्होंने बताया है कि बदलते वक्त के साथ ही आपके द्वारा उगाई गई पालक, चौलाई और भिंडी जैसी फसलों पर होपर अटैक होने की संभावनाएं भी बढ़ती जाएगी। इसलिए यदि आपने अभी तक बीज नहीं बोयें हैं, तो किसी भी सर्टिफाइड सेंटर से ही बीजों को खरीदें और उन्हें पूरी तरीके से उपचारित करके ही अपने खेत में इस्तेमाल करें।

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इस समय उगाई जाने वाली धनिया और पालक जैसी फसलों में माइट और होपर की निगरानी पर पूरा ध्यान दें। यदि आपको पता चलता है कि आप के खेत में माइट जैसे हानिकारक जीव पाए जाते हैं (जो कि आप की खेती का नुकसान कर सकते हैं), तो इसके निदान के लिए फॉस्माइट (FOSMITE) का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह ध्यान रहे कि फॉस्माइट का इस्तेमाल केवल मौसम साफ होने पर ही करें और 1 लीटर पानी में 2 मिलीलीटर से ज्यादा फॉसमाइट को ना मिलाएं। आशा करते हैं कि हमारे प्लेटफार्म Merikheti.com के माध्यम से आपको भारतीय कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा जारी की गई एडवाइजरी के बारे में पूरी जानकारी मिल चुकी होगी और अति शीघ्र ही आप इस एडवाइजरी का पूरी तरह से पालन करते हुए अपनी फसल की अच्छी ग्रोथ को प्राप्त कर सकेंगे।
प्राकृतिक खेती के साथ देसी गाय पालने वाले किसानों को 26000 दे रही है सरकार

प्राकृतिक खेती के साथ देसी गाय पालने वाले किसानों को 26000 दे रही है सरकार

भोपाल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्राकृतिक खेती (Natural Farming) को बढ़ावा देने के लिए पूरे देश में मुहिम छेड़ दी है। कई राज्यों में पीएम की इस मुहिम को आगे बढाने के लिए तेजी से काम किया जा रहा है। इसी क्रम में मध्यप्रदेश सरकार ने एक अहम फैसला लिया है। इस फैसले से प्रदेश के 26000 किसानों को फायदा मिलेगा। प्राकृतिक खेती के साथ-साथ देसी गाय पालने वाले मध्यप्रदेश के 26000 किसानों को प्रतिमाह 900 रु की आर्थिक मदद मिलेगी। नेचुरल फार्मिंग योजना को बढ़ावा देने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने सबसे अच्छी पहल की है।

पहले चरण के लिए जारी हुई एडवाइजरी

- प्राकृतिक खेती के साथ-साथ देसी गाय पालने पर मध्यप्रदेश से 26000 किसानों की आर्थिक मदद करेगी। इस योजना को सफल बनाने के लिए पहले चरण की 28 करोड़ 08 लाख रु खर्च करने की मंजूरी मिल चुकी है।

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5200 गांव के किसानों को मिलेगा लाभ

- सरकार की इस योजना में प्रदेश के 26000 किसानों तक लाभ पहुंचेगा। इसके लिए प्रदेश के 5200 गांवों को इस योजना में शामिल किया जाएगा। सरकार की मंत्री-परिषद की बैठक में निर्णय लिया गया है कि प्राकृतिक खेती के साथ एक देसी गाय पालने वाले पशुपालक को अनुदान के रूप में 26000 रूपए दिए जाएंगे। योजना में 52 जिले के 5200 गांवों के किसानों को जोड़ा जाएगा। प्रत्येक जिले से 100 गांव होंगे।

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योजना में शामिल किसानों को दी जाएगी ट्रेनिंग

- मध्यप्रदेश सरकार ने इस योजना के अंतर्गत प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को ट्रेनिंग देने की योजना बनाई गई है। प्राधिक्षण में शामिल होने वाले प्रत्येक किसान को 400 प्रति दिन का खर्चा मिलेगा। जिसके लिए सरकार ने 39 करोड़ 50 लाख रु अलग से वहन करने की बात कही है। साथ ही प्राकृतिक कृषि किट लेने वाले किसानों को 75 फीसदी छूट का प्रावधान है और मास्टर ट्रेनर को 1000 रु प्रतिदिन मिलेंगे।
अकेले कीटों पर ध्यान देने से नहीं बनेगी बात, साथ में करना होगा ये काम: एग्री एडवाइजरी

अकेले कीटों पर ध्यान देने से नहीं बनेगी बात, साथ में करना होगा ये काम: एग्री एडवाइजरी

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद यानी इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रीसर्च (ICAR) के अनुसार, सोयाबीन, मक्का व हरी सब्जियों की खेती करने वाले किसानों को खरपतवार नियंत्रण के प्रति जागरुक होने की आवश्यकता है। दरअसल, खरीफ फसल की बुवाई के लिए सही वक्त पर, सही बीज का, सही तरीके से‌ इस्तेमाल करना आवश्यक होता है। वैसे धान और खरीफ के फसल की‌ बुवाई करीब-करीब आस-पास ही होती है।

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हरे भरे खेतों में छोटे छोटे पौधों का तीव्र गति से पुष्पित पल्लवित होना किसान भाईयों के हृदय में एक नयी उर्जा का संचार करता है। लहलहाते पौधों को देख कर खुशी से उनका मन मयूर नाच उठता है। इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रीसर्च ने कृषकों के हित में एक एग्रो एडवाइजरी बोर्ड (Agro Advisory Board) का गठन किया है। एडवाइजरी बोर्ड का कहना है कि धान व खरीफ की फसलों के दौरान एक ऐसी स्थिति आती है, जब धान व खरीफ के पौधों में पत्ता मरोंड या फिर तना छेदक कीटें अपनी जड़ें जमा लेती हैं। तना छेदक कीटों से बचाव के लिए किसान को एडवाइजरी बोर्ड द्वारा जारी की गयी दवाइयों का बढ़-चढ़ कर इस्तेमाल करना चाहिए। किसानों को पौधों के‌ निचले भागों में जाकर समय समय पर निरीक्षण करते रहना चाहिए। कीटाणु पौधों के निचले हिस्से ही में अक्सर अपनी जड़ें जमाए बैठे रहते हैं। कीटाणु नाशक दवाइयों का छिड़काव भी समय-समय पर करते रहना चाहिए। सोयाबीन व सब्जियों ‌वाले किसानों को खरपतवार नियंत्रण के दौरान निराई व गुड़ाई‌ की सख्त आवश्यकता है। देशी खाद व फास्फोरस नामक उर्वरक के प्रयोग की भी हिदायतें दी गयी हैं। सब्जियों की खेती करने वाले किसानों, बेशुमार फल देने वाले‌ पौधों व शीर्ष छेदक कीटों से पौधों की सुरक्षा का निर्देश भी दिया गया है।

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फूल गोभी व पत्ता गोभी में फिरोमोन प्रपंच का छिड़काव जारी‌ करने का आदेश दिया गया है। बैगन, टमाटर, हरी मिर्च, फूल गोभी व पत्ता गोभी के पौधों को मिट्टी के मेड़ों पर बोवाई करने की सलाह दी गयी है। कृषक एडवाइजरी बोर्ड के अनुसार किसानों को किसी भी प्रकार के बीज व खाद की खरीददारी किसी प्रमाणित स्रोत से ही करनी चाहिए। हरे भरे मौसमी सब्जियों की बुवाई को तथाकथित ऊंची मेड़ों पर करने से फसल बेहतर होती हैं। किंतु, यहाँ पर ध्यान देने की आवश्यकता यह है कि फसल कितनी भी अच्छी क्यों ना हो, अगर‌ प्रत्येक दो तीन दिन के अंतराल में खरपतवार व साफ सफाई का ध्यान नहीं रखा जाए तो उसमें कीटें प्रवेश करने से बाज नहीं आते हैं। सारे किये कराए पर तब पानी फिर जाता है। इसलिए समय समय पर खरपतवार को बारीकी से निकाल कर पौधों को स्वच्छता पूर्वक सामान्य ढंग से पनपने के लिए छोड़ना होगा।

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इस प्रकार मात्र थोड़ी सी सावधानी बरतने से किसान भाइयों की मेहनत अवश्य रंग लाएगी। मेहनत का फल हमेशा मीठा होता है।
मध्य प्रदेश सरकार ने लंपी रोग को लेकर जारी की एडवाइजरी

मध्य प्रदेश सरकार ने लंपी रोग को लेकर जारी की एडवाइजरी

डॉ. आर.के. मेहिया ने बताया कि शासन और प्रशासन की लगातार सतर्कता और ग्रामीणों को दी जा रही समझाइश से लम्पी (LSD – Lumpy Skin Disease) प्रकरणों में स्थिति नियंत्रण में है। उन्होंने कहा कि संतोष की बात है कि प्रकरण बढ़े नहीं है, कुछ हद तक घटे हैं। प्रदेश में लम्पी के विरूद्ध अब तक एक लाख 2 हजार से अधिक गौ-वंश का टीकाकरण किया जा चुका है।


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डॉ. मेहिया ने बताया कि लगातार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पशुपालन विभाग के संभागीय और जिला स्तरीय अधिकारी और लैब प्रभारी को विषय-विशेषज्ञों द्वारा मार्गदर्शन दिया जा रहा है। स्थिति की लगातार समीक्षा कर गौ-वंश में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, निदान और उपचार जारी है।

लक्षण एवं सुझाव

लम्पी रोग से पशुओं को शुरू में बुखार आता है और वे चारा खाना बंद कर देते हैं। इसके बाद चमड़ी पर गाँठें दिखाई देने लगती है, पशु थका हुआ और सुस्त दिखाई देता है, नाक से पानी बहना एवं लंगड़ा कर चलता है। यह लक्षण दिखाई देने पर पशुपालक तुरंत अपने नजदीकी पशु चिकित्सालय या पशु औषधालय से संपर्क कर बीमार पशुओं का उपचार कराएँ। पशु सामान्यत: 10 से 12 दिन में स्वस्थ हो जाता है।


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क्या करें, क्या न करें

संक्रमित पशु को स्वस्थ पशु से तत्काल अलग करें। पशु चिकित्सक से तत्काल उपचार आरंभ कराएँ। संक्रमित क्षेत्र के बाजार में पशु बिक्री, पशु प्रदर्शनी, पशु संबंधी खेल आदि पूर्णत: प्रतिबंधित करें। संक्रमित पशु प्रक्षेत्र, घर, गौ-शाला आदि जगहों पर साफ-सफाई, जीवाणु एवं विशाणु नाशक रसायनों का प्रयोग करें। पशुओं के शरीर पर होने वाले परजीवी जैसे- किलनी, मक्खी, मच्छर आदि को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करें। स्वस्थ पशुओं का टीकाकरण कराएँ और पशु चिकित्सक को आवश्यक सहयोग भी करें।
रबी सीजन की गेहूं और सरसों की फसल हेतु पूसा वैज्ञानिकों का दिशा निर्देशन

रबी सीजन की गेहूं और सरसों की फसल हेतु पूसा वैज्ञानिकों का दिशा निर्देशन

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है, ि तापमान को मंदेनजर रखते हुए कृषकों को सलाह दी कि वे पछेती गेहूं की बुजाई अतिशीघ्रता से करें। बीज दर–125 िलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखें। नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाश उर्वरकों की मात्रा 80, 40 40 िलोग्राम प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए।  पूसा के कृषि वैज्ञानिकों ने रबी सीजन की प्रमुख फसल गेहूं की खेती के िए निर्देश िए हैं। इसमें बताया गया है, ि जिन कृषकों की गेहूं की फसल 21-25 दिन की हो गई हो, वे आगामी पांच दिनों तक मौसम की संभावना को देखते हुए प्रथम सिंचाई करें। सिंचाई के 3-4 दिन उपरांत उर्वरक की दूसरी मात्रा डालें। तापमान को मंदेनजर रखते हुए कृषकों को सलाह है, कि वे पछेती गेहूं की बुवाई अतिशीघ्रता से करें। बीज दर–125 िलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक रखें। इसकी उन्नत प्रजातियां- एचडी 3059, एचडी 3237, एचडी 3271, एचडी 3369, एचडी 3117, डब्ल्यूआर 544 और पीबीडब्ल्यू 373 हैं।

बीज उपचार अवश्य करें 

बिजाई से पूर्व बीजों को बाविस्टिन @ 1.0 ग्राम अथवा थायरम @ 2.0 ग्राम प्रति िलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। बतादें, कि जिन खेतों में दीमक का संक्रमण हो किसान क्लोरपाईरिफास (20 ईसी) @ 5.0 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से पलेवा के साथ अथवा सूखे खेत में छिड़क दें। नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश उर्वरकों की मात्रा 80, 40 40 िलोग्राम प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए। 

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सरसों की फसल मुख्य रूप से िरलीकरण का कार्य संपन्न करें 

विलंभ से बोई गई सरसों की फसल में विरलीकरण और खरपतवार नियंत्रण का कार्य करें। औसत तापमान में कमी को मंदेनजर रखते हुए सरसों की फसल में सफेद रतुआ रोग की नियमित ढ़ंग से निगरानी करें। इस मौसम में तैयार खेतों में प्याज की रोपाई से पूर्व बेहतरीन तरीके से सड़ी हुई गोबर की खाद और पोटास उर्वरक का इस्तेमाल जरूर करें। हवा में ज्यादा नमी की वजह आलू एवं टमाटर में झुलसा रोग आने की संभावना है। इस वजह से फसल की नियमित ढ़ंग से निगरानी करें। लक्षण दिखाई देने पर डाईथेन-एम-45 को 2.0 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

किसान भाई पत्ती सेवन करने वाले कीटों की निगरानी करें 

बतादें कि जिन कृषकों की टमाटर, फूलगोभी, बन्दगोभी एवं ब्रोकली की पौधशाला तैयार है। वह मौसस को मंदेनजर रखते हुए पौधों की रोपाई कर सकते हैं। गोभी वर्गीय सब्जियों में पत्ती खाने वाले कीटों की लगातार निगरानी करते रहें। अगर संख्या ज्यादा हो तो बी. टी.@ 1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी अथवा स्पेनोसेड दवा @ 1.0 एमएल प्रति 3 लीटर पानी में घोल कर स्प्रे करें। इस मौसम में किसान सब्जियों की निराई-गुड़ाई के जरिए खरपतवारों को समाप्त करें, सब्जियों की फसल में सिंचाई करें और उसके पश्चात उर्वरकों का बुरकाव करें।  

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कृषक पराली का कैसे प्रबंधन करें

कृषकों को सलाह है, कि खरीफ फसलों (धान) के बचे हुए अवशेषों (पराली) को जलाएं। क्योंकि इससे वातावरण में प्रदूषण काफी ज्यादा होता है। इससे उत्पन्न धुंध के कारण सूर्य की किरणें फसलों तक कम पहुचती हैं। इससे फसलों में प्रकाश संश्लेषण तथा वाष्पोत्सर्जन की प्रकिया अत्यंत प्रभावित होती है। ऐसा होने से भोजन निर्माण में कमी आती है। इस वजह से फसलों की उत्पादकता और गुणवत्ता प्रभावित होती है। किसानों को सलाह है, कि धान की बची पराली को भूमि में मिला दें, इससे मृदा की उर्वरकता में वृद्धि होती है।