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कमल

कमल की नवीन किस्म नमो 108 का हुआ अनावरण, हर समय खिलेंगे फूल

कमल की नवीन किस्म नमो 108 का हुआ अनावरण, हर समय खिलेंगे फूल

एनबीआरआई परिसर में कमल की नवीन वैरायटी नमो-108 का अनावरण किया। साथ ही, इस समारोह में लोटस मिशन का भी लॉन्च किया गया। केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) एवं साथ ही पीएमओ, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने शनिवार के दिन 108 पंखुड़ियों वाले कमल के फूल की एक उल्लेखनीय नवीन किस्म का अनावरण किया। ऐसा कहा जा रहा है, कि यह किस्म वनस्पति अनुसंधान के क्षेत्र में बेहद महत्वपूर्ण विकास है।

'नमो 108' कमल पोषक तत्व सामग्री से युक्त है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि यह अनावरण समारोह एनबीआरआई परिसर में हुआ, जहां डॉ. जितेंद्र सिंह ने कमल के फूल एवं संख्या 108 दोनों के धार्मिक और प्रतीकात्मक महत्व पर बल दिया। इस दौरान उन्होंने बताया कि दोनों तत्वों के इस संलयन ने नई किस्म को एक विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण पहचान अदा की है। 'नमो 108' कमल की किस्म मार्च से दिसंबर तक की समयांतराल तक फूलने की अवधि का दावा करती है। साथ ही, यह पोषक तत्व सामग्री की खासियत से युक्त है।

कमल के क्या-क्या उत्पाद हैं

बतादें, कि इस अवसर पर 'नमो-108' कमल किस्म से प्राप्त उत्पादों की एक श्रृंखला भी जारी की गई। इन उत्पादों में कमल के रेशे से निर्मित परिधान एवं 'फ्रोटस' नामक इत्र आदि शम्मिलित हैं, जो कमल के फूलों से निकाला जाता है। इन उत्पादों का विकास एफएफडीसी, कन्नौज की सहायता से आयोजित लोटस रिसर्च प्रोग्राम का हिस्सा था। ये भी देखें: अब कमल सिर्फ तालाब या कीचड़ में ही नहीं खेत में भी उगेगा, जानें कैसे दरअसल, इस विशिष्ट कमल किस्म को 'नमो- 108' नाम देने के लिए सीएसआईआर-एनबीआरआई की तारीफ करते हुए, डॉ. जितेंद्र सिंह ने इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्थायी समर्पण एवं सहज सुंदरता के रूप में देखा। बतादें, कि यह अनावरण प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल के दसवें वर्ष के साथ हुआ, जिससे इस अवसर पर स्मरणोत्सव की भी भावना जुड़ गई।

लोटस मिशन के अनावरण को चिह्नित किया गया है

कार्यक्रम के दौरान ‘लोटस मिशन’ के अनावरण को चिह्नित किया, जो कि लोटस-आधारित उत्पादों एवं अनुप्रयोगों के क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को आगे बढ़ाने के मकसद से एक व्यापक कोशिश है। डॉ. जितेंद्र सिंह ने विभिन्न क्षेत्रों में विकास को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता पर रौशनी डालते हुए इस मिशन की तुलना बाकी प्राथमिकता वाली योजनाओं से की है। उन्होंने इस बात पर विशेष बल दिया कि, प्रधानमंत्री मोदी के मार्गदर्शन में लोटस मिशन जैसी अहम कवायद की प्रभावशीलता एवं प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए सावधानीपूर्वक योजना तैयार की गई थी। अनावरणों में डॉ. जितेंद्र सिंह ने मंदिरों में चढ़ाए गए फूलों से निकाले गए हर्बल रंगों को प्रस्तुत किया। इन सब हर्बल रंगों के विविध अनुप्रयोग हैं, जिनमें रेशम एवं सूती कपड़ों की रंगाई भी शम्मिलित है। इसके अतिरिक्त 'एनबीआरआई-निहार' ('NBRI-NIHAR') नामक एलोवेरा की एक नवीन प्रजाति पेश की गई, जिसमें नियमित एलोवेरा उपभेदों के मुकाबले काफी ज्यादा जेल पैदा होती है। इस किस्म ने बैक्टीरिया फंगल रोगों के विरुद्ध भी लचीलापन प्रदर्शित किया है।
भोपाल में किसान है परेशान, नहीं मिल रहे हैं प्याज और लहसुन के उचित दाम

भोपाल में किसान है परेशान, नहीं मिल रहे हैं प्याज और लहसुन के उचित दाम

वैसे तो मध्य प्रदेश की चर्चा आमतौर पर कृषि के क्षेत्र में कार्य करने हेतु होती रहती है। बार-बार न्यूज़ मीडिया के माध्यम से यह बताया जाता है कि मध्य प्रदेश की सरकार किसानों के हित के लिए कार्य कर रही है। किसान किस तरह से आत्मनिर्भर हो और किसान की आय में किस तरह से बढ़ोतरी हो, इसको लेकर लगातार मध्य प्रदेश सरकार काम करने की कोशिश कर रही है।

भोपाल के किसानों की फसल का अब क्या होगा ?

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में किसानों की हालत बहुत ही खराब हो चुकी है। किसानों को उनकी फसल का उचित रेट भी नहीं मिल पा रहा है, जिससे किसान काफी मायूस है। भोपाल के मंडियों में किसानों को उनके उगाई गई फसल लहसुन और
प्याज का उचित मूल्य भी प्राप्त नहीं हो रहा है, जिससे किसानों में काफी नाराजगी बनी हुई है। किसानों की तो यह स्थिति हो चुकी है कि फसल को बाजार तक लाने का किराया भी जुटा पाना मुश्किल हो गया है। इस बार मौसम ने भी किसानों के साथ शायद अन्याय कर दिया है, क्योंकि जहां देश के कई राज्यों में बारिश नहीं होने के कारण फसलों को भारी नुकसान झेलना पड़ा है, वहीं देश के अन्य राज्यों में अधिक बारिश होने के कारण सारे फसल पानी लग जाने के कारण बर्बाद हो चुके हैं। फसलों का इस तरह से बर्बाद हो जाना किसानों के लिए बहुत ही महंगा साबित हो रहा है। इस बार मौसम की बेरुखी के कारण ऐसे ही फसलों की उपज में कमी पाई गई है, वहीं दूसरी तरफ किसानों ने जो फसल उगाई थे उसका भी उचित मूल्य प्राप्त नहीं हो रहा है।


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कृषि मंत्री का अजीबोगरीब बयान

एक तरफ मध्य प्रदेश सरकार विश्व के बाजारों में अपने उत्पादन को प्रमोट करती हुई दिख रही है, तो दूसरी तरफ मध्य प्रदेश की राजधानी में ही किसानों का यह हाल है कि उनके द्वारा उपजाए गए फसलों का ही उचित मूल्य प्राप्त नहीं हो रहा है। ऐसी स्थिति में किसानों के साथ सरकार का रुख नरम होना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। समस्याओं का समाधान करने के बजाय मध्य प्रदेश सरकार के मंत्री ने कुछ इस तरह का बयान दे दिया जिससे किसानों में भारी नाराजगी देखने को मिल रही है। मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री श्री कमल पटेल समस्याओं का निराकरण करने के बजाय है यह कहते हुए पाए गए कि किसानों को इस तरह की फसल नहीं उगाना चाहिए जिसका मंडियों में उचित मूल्य नहीं मिलता है। अब सवाल यह है कि क्या किसान सिर्फ उन्हीं फसलों की खेती करें जिसका मंडियों में उचित मूल्य मिलता हो?


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यह मामला तब सामने आया जब मध्य प्रदेश के एक किसान ने कृषि मंत्री श्री पटेल को फोन कर किसानों की हालत से अवगत कराया। बातचीत के दौरान कृषि मंत्री श्री पटेल ने यह कहा कि मैं किसानों को उनकी उपज का यानी लहसुन प्याज का उचित मूल्य कहां से दूं, कुछ दिन और रुक जाओ लहसुन के दाम 4 गुना अधिक हो जाएंगे। लेकिन किसानों का कहना है कि कुछ दिन बाद बाजार में नए फसल आ जाएंगे तो फिर लहसुन और प्याज का उचित मूल्य कहां से प्राप्त होगा। साथ में उन्होंने यह भी कहा कि मेरे पास कृषि विभाग है, मेरे अंदर लहसुन और प्याज का विभाग नहीं आता है। कृषि मंत्री का किसानों के प्रति इस तरह का विवादास्पद बयान देना बहुत ही आपत्तिजनक है। इस तरह के बयानों से किसानों को सिर्फ निराशा हाथ लगती है किसान मायूस हो जाते हैं और इसका असर आने वाले समय में व्यापक स्तर पर होने लगता है क्योंकि अगर किसान फसल ही नहीं उगाएंगे तो फिर क्या हालात होगी। ये भी पढ़ें : प्याज़ भंडारण को लेकर सरकार लाई सौगात, मिल रहा है 50 फीसदी अनुदान बात यहीं तक नहीं रुकती है। मंत्री जी ने किसानों को यह सलाह देते हुए कहा कि उन्हें मूंग की खेती करनी चाहिए। कई बार किसानों को उनकी फसल पर दोगुना तिन गुना अधिक रेट मिलता है। इसीलिए किसान को परेशान नहीं होना चाहिए। अगर किसान मूंग की खेती करते हैं तो उन्हें ज्यादा फायदा होगा। लेकिन किसानों का कहना है कि इससे पहले हमने सोयाबीन की खेती की थी उसका भी फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गया। किसी तरह का कोई सर्वे सरकार के द्वारा नहीं कराया गया, अगर हम मूंग (Mung bean) की फसल का उपज करते हैं तो इसकी गारंटी कौन लेगा कि आने वाले समय में इस फसल पर हमें अच्छा रेट मिल पाएगा।


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मूंग का मिल जाएगा अच्छा रेट?

अब यह समझने की भी जरूरत है कि फसलों को उगाने में किसान अपना सब कुछ लगा देते हैं और इन्हीं फसलों को बेचकर अपना उपार्जन करते हैं। फसलों का मौसम की बेरुखी के कारण बर्बाद हो जाना और उसके बाद इनकी समस्याओं को दरकिनार कर विवादास्पद बयान सरकार के मंत्रियों के द्वारा देना क्या किसानों के लिए हितकारी साबित होगा। जमीनी स्तर पर यह किस तरह से संभव हो पाएगा की किसान सिर्फ उन्हीं फसलों की खेती करें जिनका मार्केट वैल्यू यानी बाजार में अच्छे रेट मिल रहे हैं। क्योंकि फसल को उपजाने में मौसम का अहम योगदान होता है, यदि मौसम फसलों के अनुकूल होती है तो अच्छी उपज होती है इसके विपरीत अगर मौसम प्रतिकूल हो तो उपज पर गहरा असर पड़ता है और पैदावार अच्छी नहीं होती है। फसल वृद्धि का मौसम के साथ गहरा संबंध है। कुछ फसलों को अपना अंकुरण शुरू करने से लेकर और आगे विकास जारी रखने तक के लिए एक तापमान की आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में यह सुनिश्चित करना कैसे संभव है कि मौसम के विपरीत जाकर सिर्फ मूंग की खेती करने से किसानों की समस्याओं का हल हो जाएगा। इस समय सरकार को किसानों की समस्याओं को गंभीरता से लेते हुए उनकी समस्याओं पर विचार करते हुए उनके समस्याओं का निराकरण करना चाहिए और किस तरह से किसान बेहतर खेती कर पाए और उसके द्वारा उपजाए गए फसलों को उचित मूल्य बाजार और मंडियों में प्राप्त हो, इसके लिए सरकार को पहल करना चाहिए।


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साथ ही साथ सरकार को किसानों के फसल उगाने के लिए नए तकनीकों के साथ जोड़ने और प्रशिक्षण देना चाहिए, जिससे किसान आने वाले समय में अच्छा उपज करके अपनी फसल को बाजार और मंडियों में बेचकर उचित मूल्य को प्राप्त कर सके और कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की ओर बढ़ सके।
कीचड़ में ही नहीं खेत में भी खिलता है कमल, कम समय व लागत में मुनाफा डबल !

कीचड़ में ही नहीं खेत में भी खिलता है कमल, कम समय व लागत में मुनाफा डबल !

कम लागत में ज्यादा मुनाफा कौन नहीं कमाना चाहता ! लेकिन कम लागत में खेत पर कमल उगाने की बात पर चौंकना लाजिमी है, क्योंकि आम तौर पर सुनते आए हैं कि कमल कीचड़ में ही खिलता है। 

जी हां, कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो कम लागत में ज्यादा उत्पादन, संग-संग ज्यादा कमाई के लिए कृषकों को खेतों में कमल की खेती करनी चाहिए। कृषि वैज्ञानिकों ने कमल को कम लागत में भरपूर उत्पादन और मुनाफा देने वाली फसलों की श्रेणी में शामिल किया है। 

लेकिन यह बात भी सच है -

जमा तौर पर माना जाता है कि तालाब झील या जल-जमाव वाले गंदे पानी, दलदल आदि में ही कमल पैदा होता, पनपता है। लेकिन आधुनिक कृषि विज्ञान का एक सच यह भी है कि, खेतों में भी कमल की खेती संभव है। 

न केवल कमल को खेत में उगाया जा सकता है, बल्कि कमल की खेती में समय भी बहुत कम लगता है। अनुकूल परिस्थितियों में महज 3 से 4 माह में ही कमल के फूल की पैदावार तैयार हो जाता है।

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कमल के फूल का राष्ट्रीय महत्व -

भारत के संविधान में राष्ट्रीय पुष्प का दर्जा रखने वाले कमल का वैज्ञानिक नाम नेलुम्बो नुसिफेरा (Nelumbo nucifera, also known as Indian lotus or Lotus) है। भारत में इसे पवित्र पुष्प का स्थान प्राप्त है। 

भारत की पौराणिक कथाओं, कलाओं में इसे विशिष्ट स्थान प्राप्त है। प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति के शुभ प्रतीक कमल को उनके रंगों के हिसाब से भी पूजन, अनुष्ठान एवं औषथि बनाने में उपयोग किया जाता है। 

सफेद, लाल, नीले, गुलाबी और बैंगनी रंग के कमल पुष्प एवं उसके पत्तों, तनों का अपना ही महत्व है। भारतीय मान्यताओं के अनुसार कमल का उद्गम भगवान श्री विष्णु जी की नाभि से हुआ था। 

बौद्ध धर्म में कमल पुष्प, शरीर, वाणी और मन की शुद्धता का प्रतीक है। दिन में खिलने एवं रात्रि में बंद होने की विशिष्टता के अनुसार मिस्र की पौराणिक कथाओं में कमल को सूर्य से संबद्ध माना गया है।

कमल का औषधीय उपयोग -

अत्यधिक प्यास लगने, गले, पेट में जलन के साथ ही मूत्र संबंधी विकारों के उपचार में भी कमल पुष्प के अंश उत्तम औषधि तुल्य हैं। कफ, बवासीर के इलाज में भी जानकार कमल के फूलों या उसके अंश का उपयोग करते हैं।

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खेत में कमल कैसे खिलेगा ?

हालांकि जान लीजिये कमल की खेती के लिए कुछ खास बातों का ध्यान रखना अनिवार्य है। खास तौर पर नमीयुक्त मिट्टी इसकी पैदावार के लिए खास तौर पर अनिवार्य है। 

यदि भूमि में नमी नहीं होगी तो कमल की पैदावार प्रभावित हो सकती है। मतलब साफ है कि खेत में भी कमल की खेती के लिए पानी की पर्याप्त मात्रा जरूरी है। ऐसे में मौसम के आधार पर भी कमल की पैदावार सुनिश्चित की जा सकती है।

खास तौर पर मानसून का माह खेत में कमल उगाने के लिए पुूरी तरह से मददगार माना जाता है। मानसून में बारिश से खेत मेें पर्याप्त नमी रहती है, हालांकि खेत में कम बारिश की स्थिति में वैकल्पिक जलापूर्ति की व्यवस्था भी रखना जरूरी है।

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खेत में कमल खिलाने की तैयारी :

खेत में कमल खिलाने के लिए सर्व प्रथम खेत की पूरी तरह से जुताई करना जरूरी है। इसके बाद क्रम आता है जुताई के बाद तैयार खेतों में कमल के कलम या बीज लगाने का। इस प्रक्रिया के बाद तकरीबन दो माह तक खेत में पानी भर कर रखना जरूरी है। 

पानी भी इतना कि खेत में कीचड़ की स्थिति निर्मित हो जाए, क्योंकि ऐसी स्थिति में कमल के पौधों का तेजी से सुगठित विकास होता है। भारत के खेत में मानसून के मान से पैदा की जा रही कमल की फसल अक्टूबर माह तक तैयार हो जाती है। 

जिसके बाद इसके फूलों, पत्तियों और इसके डंठल ( कमलगट्टा ) को उचित कीमत पर विक्रय किया जा सकता है। मतलब मानसून यानी जुलाई से अक्टूबर तक के महज 4 माह में कमल की खेती किसान के लिए मुनाफा देने वाली हो सकती है।

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कमल के फूल की खेती की लागत और मुनाफे का गणित :

एक एकड़ की जमीन पर कमल के फूल उगाने के लिए ज्यादा पूंजी की जरूरत भी नहीं। इतनी जमीन पर 5 से 6 हजार पौधे लगाकर किसान मित्र वर्ग भरपूर मुनाफा कमा सकते हैं। 

बीज एवं कलम आधारित खेती के कारण आंकलित जमीन पर कमल उपजाने, खेत तैयार करने एवं बीज खर्च और सिंचाई व्यय मिलाकर 25 से 30 हजार रुपयों का खर्च किसान पर आता है।

1 एकड़ जमीन, 25 हजार, 4 माह -

पत्ता, फूल संग तना (कमलगट्टा) और जड़ों तक की बाजार में भरपूर मांग के कारण कमल की खेती हर हाल में मुुनाफे का सौदा कही जा सकती है। कृषि के जानकारों के अनुसार 1 एकड़ जमीन में 25 से 30 हजार रुपयों की लागत आती है।

इसके बाद 4 महीने की मेहनत मिलाकर कमल की पैदावार से अनुकूल स्थितियों में 2 लाख रुपयों तक का मुनाफा कमाया जा सकता है।

फूलों की खेती से कमा सकते हैं लाखों में

फूलों की खेती से कमा सकते हैं लाखों में

भारत में फूलों की खेती एक लंबे समय से होती आ रही है, लेकिन आर्थिक रूप से लाभदायक एक व्यवसाय के रूप में फूलों का उत्पादन पिछले कुछ सालों से ही शुरू हुआ है. 

समकालिक फूल जैसे गुलाब, कमल ग्लैडियोलस, रजनीगंधा, कार्नेशन आदि के बढ़ते उत्पादन के कारण गुलदस्ते और उपहारों के स्वरूप देने में इनका उपयोग काफ़ी बढ़ गया है. 

फूलों को सजावट और औषधि के लिए उपयोग में लाया जाता है. घरों और कार्यालयों को सजाने में भी इनका उपयोग होता है. 

मध्यम वर्ग के जीवनस्तर में सुधार और आर्थिक संपन्नता के कारण बाज़ार के विकास में फूलों का महत्त्वपूर्ण योगदान है. लाभ के लिए फूल व्यवसाय उत्तम है. 

किसान यदि एक हेक्टेयर गेंदे का फूल लगाते हैं तो वे वार्षिक आमदनी 1 से 2 लाख तक प्राप्त कर सकते हैं. इतने ही क्षेत्र में गुलाब की खेती करते हैं तो दोगुनी तथा गुलदाउदी की फसल से 7 लाख रुपए आसानी से कमा सकते हैं. भारत में गेंदा, गुलाब, गुलदाउदी आदि फूलों के उत्पादन के लिए जलवायु अनुकूल है.

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जहाँ इत्र, अगरबत्ती, गुलाल, तेल बनाने के लिए सुगंध के लिए फूलों का इस्तेमाल किया जाता है, वहीं कई फूल ऐसे हैं जिन का औषधि उपयोग भी किया जाता है. कुल मिलाकर देखें तो अगर किसान फूलों की खेती करते हैं तो वे कभी घाटे में नहीं रहते.

भारत में फूलों की खेती

भारत में फूलों की खेती की ओर किसान अग्रसर हो रहे हैं, लेकिन फूलों की खेती करने के पहले कुछ बातें ऐसे हैं जिन पर ध्यान देना जरूरी हो जाता है. 

यह ध्यान देना आवश्यक है की सुगंधित फूल किस तरह की जलवायु में ज्यादा पैदावार दे सकता है. फिलवक्त भारत में गुलाब, गेंदा, जरबेरा, रजनीगंधा, चमेली, ग्लेडियोलस, गुलदाउदी और एस्टर बेली जैसे फूलों की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. ध्यान रखने वाली बात यह है कि फूलों की खेती के दौरान सिंचाई की व्यवस्था दुरुस्त होनी चाहिए.

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बुआई के समय दें किन बातों पर दें ध्यान

फूलों की बुवाई के दौरान कुछ बातों पर ध्यान देना आवश्यक होता है. सबसे पहले की खेतों में खरपतवार ना हो पाए. ऐसा होने से फूलों के खेती पर बुरा असर पड़ता है. 

खेत तैयार करते समय पूरी तरह खर-पतवार को हटा दें. समय-समय पर फूल की खेती की सिंचाई की व्यवस्था जरूरी होती है. वहीं खेतों में जल निकासी की व्यवस्था भी सही होनी चाहिए. 

ताकि अगर फूलों में पानी ज्यादा हो जाये तो खेत से पानी को निकला जा सके. ज्यादा पानी से भी पौधों के ख़राब होने का दर होता है.

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फूलो की बिक्री के लिये बाज़ार

फूलों को लेकर किसान को बाजार खोजने की मेहनत नहीं करनी पड़ती है, क्योंकि फूलों की आवश्यकता सबसे ज्यादा मंदिरों में होती है. इसके कारण फूल खेतों से ही हाथों हाथ बिक जाते हैं. 

इसके अलावा इत्र, अगरबत्ती, गुलाल और दवा बनाने वाली कंपनियां भी फूलों के खरीदार होती है. फूल व्यवसाई भी खेतों से ही फूल खरीद लेते हैं, और बड़े बड़े शहरों में भेजते हैं.

फूल की खेती में खर्च

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार फूलों की खेती में ज्यादा खर्च भी नहीं आता है. एक हेक्टेयर में अगर फूल की खेती की जाए तो आमतौर पर 20000 रूपया से 25000 रूपया का खर्च आता है, 

जिसमें बीज की खरीदारी, बुवाई का खर्च, उर्वरक का मूल्य, खेत की जुताई और सिंचाई वगैरह का खर्च भी शामिल है, फूलों की कटाई के बाद इसे बड़ी आसानी से बाजार में बेचकर शुद्ध लाभ के रूप में लाखों का मुनाफा लिया जा सकता है

इस किसान ने मिट्टी में उगाए कमल के फूल, चारों तरफ फैल रही है ख्याति

इस किसान ने मिट्टी में उगाए कमल के फूल, चारों तरफ फैल रही है ख्याति

भारतीय किसान खेती में नए नए प्रयास करते रहते हैं। इन प्रयासों के माध्यम से किसान फसलों की उत्पादकता को बढ़ाने के साथ ही अपनी आय को बढ़ाने की कोशिश करते हैं। ऐसी ही एक कोशिश कर रहे हैं, जम्मू और कश्मीर के किसान भाई अबदुल अहद वानी। जो राज्य में 'किसान चाचा' के नाम से मशहूर हैं। 'किसान चाचा' इन दिनों खेती को लेकर नया प्रयोग कर रहे हैं। जिसमें वो मिट्टी में 'कमल ककड़ी' की खेती कर रहे हैं, यह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि पानी के बिना सिर्फ मिट्टी में कमल ककड़ी की खेती करना आसान नहीं है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=JeQ8zGkrOCI&t=243s[/embed] जम्मू और कश्मीर में कमल ककड़ी को नादरू के नाम से जाना जाता है। अगर कमल ककड़ी की बात करें तो जम्मू और कश्मीर में कई स्थान हैं, जहां कमल ककड़ी की खेती बहुतायत में होती है। इनमें डल झील, वुलर झील और अंचर झील प्रसिद्ध है। इन झीलों में किसान भाई हर साल भारी मात्रा में कमल ककड़ी उत्पादित करते हैं। लेकिन अब अबदुल अहद वानी के प्रयासों से कमल ककड़ी को मिट्टी में भी उगाना संभव हो पाया है। अबदुल अहद वानी ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि उन्होंने जिज्ञासावस इस फसल की खेती करना शुरू की थी। उन्होंने प्रारम्भिक तौर पर कमल ककड़ी के बीज मिट्टी में रोप दिए थे। जिसके बाद स्वतः ही इसके पौधे निकाल आए और फसल तैयार हो गई। उन्होंने बताया कि बीजों की रोपाई जून में की थी और अब दिसम्बर में फसल पूरी तरह से तैयार हो चुकी है।


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पारंपरिक खेती की जगह इस फूल की खेती किसानों को कर सकता है मालामाल
अबदुल अहद वानी ने बताया कि उन्होंने मात्र एक कनाल खेत में कमल ककड़ी की रोपाई की थी। जिसके बाद उन्हें लगभग 400 किलोग्राम फसल प्राप्त हो चुकी है। भविष्य में उत्पादन बढ़ सकता है, साथ ही उन्होंने बताया कि इस फसल में सिंचाई बेहद आवश्यक है। जिसके लिए उन्होंने खुद ही नलकूप तैयार किए हैं। जिनसे वो कमल के पौधों को पानी देते हैं। तैयार हुई फसल को अबदुल अहद वानी खुद ही बाजार में बेचने जाते हैं। अबदुल अहद वानी की इस उपलब्धि से उनका नाम चारों ओर फैल रहा है। जिसके बाद लोग उनकी फसल की तरफ आकर्षित हो रहे हैं और कमल ककड़ी की खेती को देखने आ रहे हैं। लोगों का कहना है, कि 'किसान चचा' का यह प्रयास लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बन सकता है। देश के लोग 'किसान चचा' से प्रेरित होकर कमल ककड़ी की खेती मिट्टी में करना शुरू कर सकते हैं। लोग 'किसान चचा' के इस प्रयास की दिल खोलकर तारीफ कर रहे हैं।
इस तरीके से किसान अब फूलों से कमा सकते हैं, अच्छा खासा मुनाफा

इस तरीके से किसान अब फूलों से कमा सकते हैं, अच्छा खासा मुनाफा

भारत में फूलों का अच्छा खासा बाजार मौजूद है। किसान के कुछ किसान फूलों की खेती करके अच्छा खासा लाभ कमाते हैं। साथ ही, कुछ किसान बिना फूलों का उत्पादन किये बेहतरीन आमदनी करते हैं। 

इस तरह के व्यापार से भी बेहतरीन मुनाफा लिया जा सकता है। भारत के किसान रबी, खरीफ, जायद सभी सीजनों में करोड़ों हेक्टेयर में फसलों का उत्पादन करते हैं। उसी से वह अपनी आजीविका को भी चलाते हैं। 

किसानों का ध्यान विशेषकर परंपरागत खेती की ओर ज्यादा होता है। हालाँकि, विशेषज्ञों के अनुसार किसान पारंपरिक खेती के अतिरिक्त फसलों का भी उत्पादन कर सकते हैं। 

वर्तमान में ऐसी ही खेती के संबंध में हम चर्चा करने वाले हैं। हम बात करेंगे फूलों की खेती के बारे में जिनका उपयोग शादी से लेकर घर, रेस्टोरेंट, दुकान, होटल, त्यौहारों समेत और भी भी बहुत से समारोह एवं संस्थानों को सजाने हेतु किया जाता है। 

फूलों की सजावट में प्रमुख भूमिका तो होती ही है, साथ ही अगर फूलों के व्यवसाय को बिना बुवाई के भी सही तरीके से कर पाएं तो खूब दाम कमा सकते हैं।

फूलों के व्यवसाय से अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं

भारत के बाजार में फूलों का अच्छी खासी मांग है। फूलों का व्यापार को आरंभ करने के लिए 50 हजार से एक लाख रुपये का खर्च आता है। मुख्य बात यह है, कि फूलों के इस व्यवसाय को 1000 से 1500 वर्ग फीट में किया जा सकता है।

फूल कारोबार से जुड़े लोगों ने बताया है, कि कृषि की अपेक्षा फूलों के व्यवसाय से जुड़ रहे हैं। तो कम धनराशि की आवश्यकता पड़ती है। 

यदि इसके स्थान की बात की जाए तो 1000 से 1500 वर्ग फीट भूमि ही व्यवसाय करने हेतु काफी है। इसके अतिरिक्त फूलों को तरोताजा रखने हेतु एक फ्रिज की आवश्यकता होती है। 

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फूलों के व्यवसाय में कितने मानव संसाधन की आवश्यकता पड़ेगी

किसान यदि फूलों का व्यवसाय करने के बारे में सोच रहे हैं, तो उसके लिए कुछ मानव संसाधन की आवश्यकता भी होती है। क्योंकि फूलों की पैकिंग व ग्राहकों के घर तक पहुँचाने हेतु लोगों की आवश्यकता पड़ती है। 

फूल की खेती करने वाले किसानों से फूलों की खरीदारी करने के लिए भी सहकर्मियों की जरूरत अवश्य होगी। भिन्न-भिन्न समय पर भिन्न-भिन्न प्रकार के फूलों की आवश्यकता पड़ती है। 

इसलिए समस्त प्रकार के फूलों का प्रबंध व्यवसायी को स्वयं करना होगा। फूलों को काटने, बांधने एवं गुलदस्ता निर्मित करने के लिए भी कई उपकरणों की जरूरत पड़ेगी।

इस प्रकार बढ़ाएं फूलों का व्यवसाय

सामान्यतः हर घर में जन्मदिन, शादी, ब्याह जैसे अन्य समारोह होते रहते हैं। इसके अतिरिक्त प्रतिष्ठान हो अथवा घर लोग सुबह शाम पूजा अर्चना में फूलों का उपयोग करते हैं। 

अगर फूलों का कारोबार करते हैं, तो प्रतिष्ठान एवं ऐसे परिवारों से जुड़कर अपने कारोबार को बढ़ाएं। किसी प्रतिष्ठान, दुकान एवं घरों पर संपर्क करना अति आवश्यक है। 

उनको अवगत कराया जाए कि ऑनलाइन अथवा ऑनकॉल फूल भेजने की सुविधा भी दी जाती है। आप अपने फूलों के व्यापार को सोशल मीडिया जैसे कि व्हाटसएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम इत्यादि के माध्यम से भी बढ़ा सकते हैं। 

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सर्वाधिक मांग वाले फूल कौन से हैं

दरअसल, बाजार में सैंकड़ों प्रकार के फूल उपलब्ध हैं। परंतु, सामान्यतः समारोहों में रजनीगंधा, कार्नेशन, गुलाब, गेंदा, चंपा, चमेली, मोगरा, फूल, गुलाब, कमल, ग्लैडियोलस सहित अतिरिक्त फूलों की मांग ज्यादा होती है।

फूलों से आपको कितनी आमदनी हो सकती है

हालाँकि बाजार में समस्त प्रकार के फूल पाए जाते हैं, इनमें महंगे एवं सस्ते दोनों होते हैं। दरअसल, गुलाब और गेंदा के भाव में ही काफी अंतर देखने को मिल जाता है। कमल का फूल ज्यादा महंगा बिकता है। 

कमल से सस्ता गुलाब व गुलाब से सस्ता गेंदा होता है। जिस कीमत पर आप किसानों से फूल खरीदें, आपको उस कीमत से दोगुने या तिगुने भाव पर अपने फूलों को बेचना चाहिए। 

अगर आप किसी फूल को 2 रुपये में खरीदते हैं, तो उसको आप बाजार में 6 से 7 रुपये के भाव से बाजार में आसानी से बेच सकते हैं। किसी विशेष मौके पर फूल का भाव 10 से 20 रुपये तक पहुँच जाता है। 

गेंदे के फूल का भाव 50 से 70 रुपये प्रति किलो के हिसाब से प्राप्त हो जाता है। साथ ही, गुलाब का एक फूल 20 रुपये में बिक रहा है। 

वहीं मोगरा का फूल 1000 रुपये प्रति क्विंटल तक भाव प्राप्त हो रहा है। जूलियट गुलाब के गुलदस्ते का भाव तकरीबन 90 पाउंड मतलब की 9,134 रुपये के लगभग है।

न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद के लिए 25 फरवरी तक करवा सकते हैं, रजिस्ट्रेशन मध्य प्रदेश के किसान

न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद के लिए 25 फरवरी तक करवा सकते हैं, रजिस्ट्रेशन मध्य प्रदेश के किसान

बहुत से राज्यों में रबी की फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद के लिए रजिस्ट्रेशन शुरू हो गए है। ऐसे में मध्य प्रदेश सरकार ने भी नोटिफिकेशन जारी करते हुए चना, मसूर और सरसों का उत्पादन करने वाले किसानों को इसके लिए रजिस्ट्रेशन करवाने को कहा है। साथ ही, एमपी के कृषि मंत्री कमल पटेल से हुई बातचीत में उन्होंने कहा कि राज्य सरकार किसानों द्वारा उगाए गए एक-एक दाने को समर्थन मूल्य पर खरीदेगा। जिससे किसानों को उनकी मेहनत का सही दाम दिया जा सके।

किस जिले में कितनी होगी खरीद

कृषि मंत्री कमल पटेल ने यह भी बताया है, कि चने की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद मध्य प्रदेश के प्रत्येक जिले में की जाएगी। वही मसूर के लिए 37 जिलों और
सरसों की खरीद के लिए 39 जिलों में केंद्र बनाए गए हैं।

किसान कहां करवा सकते हैं रजिस्ट्रेशन

अगर आप भी मध्य प्रदेश के किसान हैं और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से जुड़ी हुई इस स्कीम का फायदा उठाना चाहते हैं। तो इसके लिए आपको रजिस्ट्रेशन करवाना जरूरी है। रजिस्ट्रेशन करवाने के लिए किसान पंचायत कार्यालय या फिर जनपद पंचायत कार्यालय में जाकर रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया पूरी कर सकती है। इसके अलावा सरकार की तरफ से तहसील कार्यालय में भी यह पंजीकरण करवाने की सुविधा उपलब्ध करवाई गई है। अगर किसान ऑनलाइन या रजिस्ट्रेशन करवाना चाहते हैं, तो वह MP Kisan Mobile App पर जाकर बिना किसी शुल्क के ही अपना पंजीकरण कर सकते हैं।
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इसके अलावा मध्य प्रदेश ऑनलाइन कियोस्क, पब्लिक सर्विस सेंटर और बहुत से साइबर कैफे भी इस स्कीम के तहत रजिस्ट्रेशन की सुविधा उपलब्ध करवा रहे हैं।

क्या है रजिस्ट्रेशन की फीस

अगर आप सरकार की तरफ से स्थापित किए गए सेंटर पर रजिस्ट्रेशन करवाते हैं। अथवा ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कर रहे हैं, तो आपको किसी भी तरह का कोई शुल्क देने की जरूरत नहीं है। लेकिन अगर आप यह प्रक्रिया एमपी ऑनलाइन कियोस्क या फिर किसी साइबर कैफे की मदद से कर रहे हैं। तो आपको इसे भरने की जरूरत पड़ सकती है।
अब कमल सिर्फ तालाब या कीचड़ में ही नहीं खेत में भी उगेगा, जानें कैसे

अब कमल सिर्फ तालाब या कीचड़ में ही नहीं खेत में भी उगेगा, जानें कैसे

किसान भाई एक एकड़ में कमल की खेती का काम करेंगे तो उन्हें 5 से 6 हजार का पौधरोपण करना पड़ेगा। बतादें, कि इसकी खेती काफी सस्ती होती है। एक एकड़ भूमि में केवल 25 से 30 हजार रुपये का खर्चा आता है। लोगों को लगता है, कि कमल सदैव कीचड़ अथवा तालाब में ही पैदा होता है। परंतु, अब ये बात पुरानी हो चुकी है। वर्तमान में प्याज, लहसुन, धान और गेहूं की भांति कमल की खेती भी की जा रही है। इससे किसान भाइयों को काफी अच्छा लाभ प्राप्त हो रहा है। विशेष बात यह है, कि कमल की फसल चार माह के अंदर ही तैयार हो जाती है। अर्थात आप 4 महीने के उपरांत कमल के फूल तोड़कर बाजार में बेच सकते हैं। अब तक बाजार में एक कमल के फूल का भाव 30 रुपये से लगाकर 40 रुपये तक है। इस प्रकार यदि किसान भाई एक एकड़ में कमल की खेती करते हैं, तो लाखों रुपये की आमदनी कर सकते हैं।

कमल की खेती के लिए कौन-सा मौसम उपयुक्त है

कमल की खेती के लिए वर्षा का मौसम उपयुक्त माना गया है। क्योंकि अत्यधिक बरसात होने पर कमल के पौधे तीव्रता के साथ विकास करते हैं। ऐसे भी इस हफ्ते के अंत तक उत्तर भारत में मानसून की दस्तक हो जाएगी। अब ऐसी स्थिति में किसान भाई धान एवं खरीफ फसलों के स्थान पर कमल की भी खेती कर सकते हैं। विशेष बात यह है, कि कमल की खेती भी धान की फसल की भांति ही की जाती है। इसके खेत में भी सदैव जलभराव रखना होता है। जितना ज्यादा खेत में कीचड़ रहेगा, उतना अच्छा उत्पादन भी होगा।

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कमल की खेती के लिए खेत को तैयारी

यदि आप कमल की खेती करना चाहते हैं, तो सर्वप्रथम भुरभुरी मृदा होने तक खेत की जुताई करें। इसके उपरांत पाटा चलाकर खेत को एकसार कर दें। इसके पश्चात आप कमल के कलम या इसके बीज की बिजाई कर सकते हैं। बिजाई करने के उपरांत दो माह तक खेत में जल भरकर रखा जाता है। जिससे कि पौधों को प्रचूर मात्रा में पानी मिलता रहे। साथ ही, खेत में कीचड़ भी निर्मित किया जाता है। इससे फसल तीव्रता के साथ विकास करता है। यदि आप जून के माह में कमल की रोपाई करते हैं, तो अक्टूबर तक फसल पूर्णतय तैयार हो जाएगी। अर्थात आप इससे कमल के फूल तोड़ सकते हैं।

कमल की एक एकड़ खेती के लिए कितने पौधे लगेंगे

किसान भाई एक एकड़ में कमल की खेती करते हैं, तो उनको 5 से 6 हजार पौधे लगाने होंगे। इसकी खेती काफी ज्यादा सस्ती है। एक एकड़ में मात्र 25 से 30 हजार रुपये का खर्चा होता है। साथ ही, फूल, बीज एवं गट्ठे तक बाजार में सहजता से बिक जाते हैं। इस प्रकार किसान भाई इसकी खेती से 2 लाख रुपये की आमदनी कर सकते हैं। यदि किसान भाई चाहें, तो कमल के साथ- साथ मखाना एवं सिंघाड़े की भी कमल के खेत में खेती कर सकते हैं। क्योंकि यह दोनों फसलें भी पानी के अंदर ही तैयार होती हैं।