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सरसों के फूल को लाही कीड़े और पाले से बचाने के उपाय

सरसों के फूल को लाही कीड़े और पाले से बचाने के उपाय

सरसों की फसल को आम तौर पर बहुत ही आसान, कम खर्चीली व कम देखरेख वाली फसल बताया जाता है लेकिन कोई भी फसल बिना देखरेख वाली नहीं होती है। देखरेख में जरा सी लापरवाही से फसल को भारी नुकसान हो जाता है। किसान भाइयों आपके द्वारा की गयी मेहनत पर पानी भी फिर सकता है, उस वक्त आपके पास पछताने के अलावा कुछ नहीं रह जाता है। इसलिए हमें सरसों की फसल करते समय लापरवाही नहीं बरतना चाहिये यदि हमें सरसों की अच्छी फसल लेनी है तो बुआई से कटाई तक हमें हर समय फसल की हर जरूरत का ध्यान रखना होगा।

सरसों के फूलों को झड़ने से बचाने के उपाय करें

किसान भाइयों, मौजूदा समय में सरसों की फसल में फूलों के आने का समय है। इसके तत्काल बाद इस फसल में फलियों के आने का समय है। जिन किसान भाइयों ने सरसों की अगैती फसल की होगी तो इस समय फूलों के साथ फलियां भी आने लगीं होंगी। इस समय हमें फूलों को सुरक्षित रखने व उनसे अच्छी फलियां बनने के उपाय करने होंगे।

closeup of mustard flower

सरसों के खेती पर की गयी सारी मेहनत पर फिर सकता है पानी

वर्तमान समय में सरसों की फसल में कीट आक्रमण या सिंचाई प्रबंधन की कमी या खाद प्रबंधन की कमी से फूलों का झड़ना शुरू हो जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि फूलों के झड़ने से आपकी फसल कमजोर होने वाली है। दूसरे शब्दों में कहं तो किसान भाइयों आपकी बुआई से लेकर अब तक की गयी मेहनत पर पानी फिरने वाला है और इस समय जरा सी लापरवाही हुई तो आपका उत्पादन गिरने वाला है। इसलिये हमें इस समय कौन-कौन से उपाय करने चाहिये उपन ध्यान देना होगा। आइये हम इन्हीं बातों का जिक्र करते हैं।

सरसों की सिंचाई का करें सही प्रबंधन

किसान भाइयों, सरसों की फसल में सिंचाई जमीन की किस्म के आधार पर की जाती है। यदि आपकी खेत की मिट्टी भारी है तो सरसों की फसल में आपको दो बार सिचांई करने की आवश्यकता होती है। यदि आपके खेत की मिट्टी हल्की है तो आपको सरसों की फसल में तीन बार सिंचाई करनी होती है। इसके अलावा आप सिंचाई प्रबंधन सर्दियों में होने वाले बरसात को भी देखकर आवश्यकतानुसार कर सकते हैं। भारी व हल्की मिट्टी में दूसरी सिंचाई आपको फूलों के आने से पहले या जब खेत में फूल 50 से 60 प्रतिशत आ गये हों तब करना चहिये। इससे आपके खेत में सरसों की फसल के फूल झड़ने से बच जायेंगे और जब फलियां बनेंगी तब खेत में पर्याप्त नमी रहेगी।

गरम पानी से करें सरसों की सिंचाई

सिंचाई करते समय किसान भाइयों को एक बात का ध्यान रखना चाहिये। यदि आप अपने फसल की सिंचाई नहर से कर रहे हों तो कोशिश करें कि आप अपने खेत की सिंचाई दिन में करें। दिन में करने से धूप से पानी गरम रहेगा तो पौधे पर सर्दी से होने वाला तनाव नहीं पड़ेगा। इसके अलावा यदि आपके पास नहर व ट्यूबवेल दोनों से ही सिंचाई की सुविधा है तो आपको अपने खेत की सिंचाई नहर की जगह ट्यूबवेल से करनी चाहिये ताकि पौधों को सर्दी में गरम पानी मिल सके। इससे आपके पौधों को काफी फायदा होगा।

जरूरत पड़ने पर करें सरसों का उर्वरक प्रबंधन

यदि आपने फूल आने से पहले खाद प्रबंधन के दौरान 20 किलो यूरिया और 3 किलो सल्फर प्रति एकड़ के हिसाब से डाला है तो फूल आने बाद आपको कुछ भी नहीं डालना है। खाद के अलावा आपको इस समय किसी तरह के कीट प्रबंधन के पदार्थो का भी प्रयोग नहीं करना है।

स्वस्थ सरसों के फूलों के लिए करें ये उपाय

सरसों के फूलों को मजबूती देने के लिए और स्वस्थ फलियों और उनमें मोटे दाने के लिए आप इस समय फसल में एनपीके 05234 तथा बोरोन का छिड़काव करना चाहिये। किसान भाइयों आप अपनी सरसों की फसल में फूल को अच्छी तरह से विकसित करने के लिए एनपीके 05234 प्रति एकड़ एक किलो और बोरोन 100 ग्राम को 100 से 150 लीटर पानी में डालकर छिड़काव करें तो फूलों के गिरने से बचाव हो सकता है। क्योंकि एनपीके 05234 में 34 प्रतिशत पोटाश होता है जो फूलों को गिरने से बचाने में सहायक होता है। बोरोना में फूल सेटिंग व सीट सेटिंग की अच्छी क्षमता होती है। इससे सरसों की फसल को काफी लाभ होता है।

पोटाश से होता है सरसों के फूलों का बचाव

पोटाश ट्रांसपोर्र्टर का काम करता है यानी यह पौधों के तनों, पत्तों, फूलों को आवश्यकतानुसार क्लोरोफिल, प्रोटीन, फाइबर हाइडेट वर्गरह पहुंचाता है। जो पौधे का मुख्य भोजन होता है। अच्छा भोजन मिलने से जब पौधा स्वस्थ होगा तो उसमें लगने वाले फूल भी स्वस्थ रहेंगे और जल्दी से नहीं गिरेंगे। जब फूल सुरक्षित रहेंगे तो उनसे अच्छी फलियां भी बनेंगी और फलियों में जब अच्छे दाने बनेंगे तो फसल अपने आप ही अच्छी होगी और उत्पादन बढेगा। कहने का मतलब किसान भाइयों को लाभ ही लाभ होगा।

Mustard crop, Sarso



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सरसों की फसल में कीट लगने पर करें ये काम

सरसों की फसल में फूल आने के वक्त एक खास प्रकार के कीट का हमला होता है, जिसे क्षेत्रीय भाषा में अलग अलग नाम से पुकारा जाता है, कोई लहि के नाम से जानता है तो कोई मोइला के नाम से जानता है। इस कीट के लगने से सरसों के फूल कमजोर हो जाते हें और उनका तेजी से झड़ना शुरू हो जाता है। किसान भाइयों को चाहिये कि वह इस कीट का हमला देखते ही सतर्क हो जायें और इसके प्रबंधन का उपाय करने लगें। इस कीट को समाप्त करने के लिए इमिडा क्लोग्रीड का इस्तेमाल करें काफी फायदा होगा। यह इमिडा मार्केट में अनेक कंपनियों की बनायी हुइ आसानी से मिल जाती है। आप अपने क्षेत्र के हिसाब से इसका चयन कर सकते हैं।

कम ओस या सर्दी में किये जाने वाला उपाय

जहां पर्याप्त ओस व ठण्ड न पड्ने से पौधे कमजोर हो जाते हें और उनमें फूल नहीं आता या कम आता है और यदि आता भी है तो झड़ जाता है। तो उसके लिए सिंचाई प्रबंधन व खाद प्रबंधन करना चाहिये। दूसरी सिंचाई के समय यूनिया व सल्फर डालना चाहिये। लेकिन इस बात का ध्यान रहे कि जब खेत में 10 से 15 प्रतिशत फूल आये हों तब सिंचाई खाद नहीं डालनी चाहिये बल्कि जब खेत में 50 से 60 प्रतिशत फूल आ गये हों तभी सिंचाई करके उर्वरक डालने चाहिये।

अधिक ठंड व पाला से बचाव इस प्रकार करें

यदि मौसम का मिजाज बिगड़ जाये तो किसान भाइयों तब भी सरसों की फसल प्रभावित हो जाती है। उसके फूल कम विकसित होते हैं और यदि फूल का विकास हो भी जाता है तो फलियों का विकास सही तरीके से नहीं हो पाता है। फलियां पतली रह जातीं है, उनमें दाने कम बनते हैं और पतले भी बनते हैं। इससे उत्पादन पूरी तरह से प्रभावित होता है। किसान भाइयों को चाहिये कि अंधिक ठंड और पाला से भी सरसों की फसल को बचाना चाहिये। उसके लिए हमें डस्ट वाले सल्फर का प्रयोग करना चाहिये या इसकी जगह आप गुड़ का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। सबसे अच्छा सफेद पाउडर वाले थायो यूरिया का प्रयोग करना चाहिये। किसान भाइयों सल्फर में पाला से बचाने की क्षमता होती है साथ ही साथ 15 प्रतिशत तक फसल पैदावार बढ़ाने की क्षमता होती है। गुड़ गरम होता है तो उसके प्रयोग से पाला से पूरी तरह से बचाव हो जाता है और फसल अच्छी हो जाती है। सर्दी और पाले से बचाव के लिए सबसे अच्छा थायो यूरिया को माना जाता है। सफेद पाउडर के रूप में मिलने वाले थायो यूरिया को 100 ग्राम प्रति एकड़ में 150 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करने से पाला भी बचता है और फसल की पैदावार भी बढ़ती है।  

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गेहूं के साथ सरसों की खेती, फायदे व नुकसान

गेहूं के साथ सरसों की खेती, फायदे व नुकसान

हमारे देश में मिश्रित फसल उगाने की परम्परा बहुत प्राचीन काल से चली आ रही है। पुराने समय में किसान भाई एक खेत में एक समय में एक से अधिक फसल उगाते थे। लेकिन इन फसलों का चयन बहुत सावधानीपूर्वक करना होता है क्योंकि यदि फसलों के चुनाव के बिना किसान भाइयों ने कोई ऐसी दो फसलें एक साथ खेत में उगाई जो होती तो एक समय में ही हैं लेकिन उनके लिए मौसम, सिंचाई, उर्वरक व खाद प्रबंधन आदि अलग-अलग होते हैं । इसके अलावा कभी कभी तो ऐसा होता है कि दो फसलों में एक फसल जल्दी तैयार होती है तो दूसरी देर से तैयार होती है। एक फसल के सर्दी का मौसम फायदेमंद होता है तो दूसरे के लिए नुकसानदायक होता है। एक निश्चित दूरी की पंक्ति व पौधों से पौधों की दूरी पर बोई जाती है तो दूसरी छिटकवां या बिना पंक्ति के ही बोई जाती हैं।

Mustard Farming

फसलों का चयन बहुत सावधानी से करें

वैसे कहा जाता है कि मिश्रित खेती के लिए ऐसी फसलों का चुनाव करना चाहिये कि दोनों फसलों के लिए उस क्षेत्र की भूमि,जलवायु व सिंचाई की आवश्यकता उपयुक्त हों यानी एक जैसी जरूरत होतीं हों। इसके बावजूद जानकार लोगों का मानना है कि अनाज व दलहनी फसलों को मिलाकर बोने से उत्पादन अच्छा होता है लेकिन अनाज व तिलहन की फसल की बुआई से बचना चाहिये।

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एक फसल को फायदा तो दूसरे को नुकसान

wheat cultivation

मौसम के प्रतिकूल प्रभाव से एक फसल को नुकसान होता है तो दूसरी फसल से कुछ अच्छी पैदावार हो जाती है। गेहूं व सरसों की मिलीजुली खेती से वर्षा की कमी से सरसों की फसल को नुकसान हो सकता है जबकि गेहूं की फसल को उतना नुकसान नही होगा वहीं सिंचाई की जल की कमी होने से सरसों की फसल अच्छी होगी जबकि गेहूं की फसल खराब हो सकती है।

क्यों सही नहीं होती एक साथ गेहूं व सरसों की खेती

गेहूं के साथ जौ, चना, मटर की फसल को अच्छा माना जाता है लेकिन गेहूं के साथ सरसों की फसल को अच्छा नहीं माना जाता है क्योंकि इन दोनों फसलों की प्राकृतिक जरूरतें अलग-अलग होतीं हैं। इन दोनों फसलों की खेती के लिए भूमि, खाद, सिंचाई आदि की व्यवस्था भी अलग-अलग की जाती हैं। इनका खाद व उर्वरक प्रबंधन भी अलग अलग होता है। दोनों ही फसलों की बुआई व कटाई का समय भी अलग-अलग होता है। इन दोनों फसलों को एक साथ करने से किसान भाइयों को अनेक दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।

गेहूं की फसल में खरपतवार नियंत्रण

गेहूं की फसल में खरपतवार नियंत्रण

गेहूं उत्तर भारत की मुख्य फसल है और इसमें खरपतवार मुख्य समस्या बनते हैं। खरपतवारों में मुख्य रूप से बथुआ, खरतुआ, चटरी, मटरी, गेहूं का मामा या गुल्ली डंडा प्रमुख हैं। जिन्हें हम खरपतवार कहत हैं उनमें मुख्य रूप से गेहूं का मामा फसल को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है और इसका नियंत्रण ज्यादा बजट वाला है। बाकी खरपतवार बेहद सस्ते रसायनों से और शीघ्र मर जाते हैं। 

समय

Gehu ki fasal 

 विशेषज्ञों की मानें तो खरपतवार नियंत्रण के लिए सही समय का चयन बेहद आवश्यक है। यदि सही समय से नियंत्रण वाली दबाओं का छिड़काव न किया जाए तो उत्पादन पर 35 प्रतिशत तक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। धान की खेती वाले इलाकों में गेहूं की फसल में पहला पानी लगने की तैयारी है और इसके साथ ही खरपतवार जोर पकड़ेंगे। चूंकि किसान पहले पानी के साथ ही उर्वरकों को बुरकाव करते हैं लिहाजा ऐसी स्थिति में खरपतवारों को पूरी तरह से मारना और ज्यादा दिक्कत जदां हो जाता है। विशेषज्ञ 25 से 35 दिन के बीच के समय को खरपतवार नियंत्रण के लिए उपयुक्त मानते हैं। इसके बाद दवाओं का फसल पर दुष्प्रभाव भले ही सामान्य तौर पर न दिखे लेकिन उत्पादन पर प्रतिकूल असर होता है। 

कैसे मरता है खरपतवार

Gehu mai kharpatvar 

 खरपतवार को मारने के लिए बाजार में अनेक दवाएं मौजूद हैं लेकिन इससे पहले यह जान लेना आवश्यक है कि दवाओं से केवल खरपतवार ही मरता है और फसल सुरक्षित रहती है तो कैसे । फसल और खरपतवार की आहार व्यवस्था में थोड़ा अंतर होता है। फसल किसी भी पोषक तत्व का अवशोषण जमीन से सीमित मात्रा में करती है। खरतवारों के पौधों का विकास बहुत तेज होता है और वह कम खुराक से भी अपना काम चला लेते हैं। ऐसे में जो खरपतवारनाशी दवाएं छिड़की जाती हैं उनमें जिंक आदि पोषक तत्वों को मिलाया जाता है। इनका फसल पर जैसे ही छिड़काव होता है खरपतवार के पौधे उसे बेहद तेजी से ग्रहण करते हैं और दवा के प्रभाव से उनकी कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। इधर मुख्य फसल के पौध इन्हें बेहद कम ग्रहण करता है और कम दुष्प्रभाव को झेलते हुए खुद को बचा लेता है।

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खरपतवार की श्रेणी

kharpatvar 

 खरपतवार को दो श्रेणियों में बांटा जाता है। गेहूं में संकरी और चौड़ी पत्ती वाले दो मुख्य खरपतवार पनपते हैं। किसान ऐसी दवा चाहता है जिससे एक साथ चौड़ी और संकरी पत्ती वाले खरपतवार मर जाएं। इसके लिए कई कंपनियों की सल्फोसल्फ्यूरान एवं मैट सल्फ्यूरान मिश्रित दवाएं आती हैं। इस तरह के मिश्रण वाली दवाओं से एक ही छिड़काव में दोनों तरह के खरपतवार मर जाते हैं। केवल चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार मारने के लिए टू फोर डी सोडियम साल्ट 80 प्रतिशत दवा आती है। 250 एमएल दवा एक एकड़ एवं 625 एमएल प्रति हैक्टेयर के लिए उपोग मे लाएं। पानी में मिलाकर 400 से 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करने से तीन दिन में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार मर जाते हैं। केवल संकरी पत्ती वाले गेहूंसा, गेहूं का मामा, गुल्ली डंडा एंव जंगली जई को मारने के लिए केवल स्ल्फोसफल्फ्यूरान या क्लोनिडाफाप प्रोपेरजिल 15 प्रतिशत डब्ल्यूपी 400 ग्राम प्रति एकड़ को पानी में घोलकर छिड़काव करें।

 

सावधानी

kitnashak dawai 

 किसी भी दवा के छिड़काव से पूर्व शरीर पर कोई भी घरेलू तेल लगा लें। दस्ताने आदि पहनना संभव हो तो ज्यादा अच्छा है। दवा को जहां खरपतवार ज्यादा हो वहां आराम से छिड़कें और जहां कम हो वहां गति थोड़ी तेज कर दें ताकि पौधों पर ज्यादा दवा न जाए। दवा छिड़कते समय खेत में हल्का पैर चपकने लायक नमी होनी चाहिए ताकि खेत में नमी सूखने के साथ ही खरपतवार भी सूखता चला जाएगा।

गेहूँ की फसल की बात किसान के साथ

गेहूँ की फसल की बात किसान के साथ

आज हम गेंहूं की खेती के बारे में बात करेंगें. विश्व के 25 से 30% भाग पर प्राय गेहूँ की खेती की जाती है.आज हमारा देश खाद्यान के मामले में किसी के ऊपर आश्रित नहीं है इसमें हमारे वैज्ञानिक, राजनेताओं ( हरितक्रांति) एवं किसानों का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है. एक समय ऐसा था की हम अपने खाने के लिए दूसरे देशों पर आश्रित थे उनका गला सड़ा गेंहूं हमको खाने को मिलता था. घर में पूड़ियाँ या गेंहूं की रोटी किसी विशेष रिश्तेदार के आने पर ही बनती थीं ( शायद आज की पीढ़ी को ये बात थोड़ी अटपटी लगे), पर आज ऐसा नहीं है आज हम अन्य देशों को गेंहूं और दूसरे अनाजों का निर्यात करते हैं.

गेहूँ के लिए खेत की तैयारी:

सामान्यतः गेंहू की जड़ ज्यादा गहरी नहीं जाती है और इसकी पेड़ से पेड़ की दूरी ज्यादा नहीं होती है. इसकी जड़ छतराई होती है तो इन्हें खेत के ऊपर की खाद और उर्बरक ज्यादा फायदेमंद रहती है. इसके खेत में ज्यादा जुताई की जरूरत नहीं रहती है लेकिन ऐसा भी नहीं है की इसके खेत में खरपतवार ही ना खड़ा रहे. अगर खाली खेत में गेंहूं बोना हो तो इसकी लास्ट वाली जुताई में खेत में गोबर का बना हुआ खाद मिला दें और अगर आपको धान के खेत में बोना हो तो सुपरसीड़र से भी बुबाई कर सकते है. खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए, जिससे की पौधे को 20 से 25 दिन तक का समय मिल जाये. धान, बाजरा, या अन्य खरीफ की फसल काटने के बाद खेत की पहली जुताई  मिट्टी पलटने वाले हल (एमबी प्लोऊ) से करनी चाहिए जिससे कि खरीफ फसल के अवशेष और खरपतवार मिट्टी मे दबकर सड़ जायें. इसके  बाद आवश्यकतानुसार 2-3 जुताइयाँ देशी हल-कल्टीवेटर से करनी चाहिए. हरेक जुताई के बाद पाटा/ सुहागा  देकर खेत समतल कर लेना चाहिए, इससे खेत में नमी बनी रहती है तथा खेत भी समतल रहता है तथा इससे खेत में पानी भी सामान मात्रा में लगता है.

उन्नत किस्में तथा उनका चयन:

हमें किस्मों का चुनाव करते समय अपने क्षेत्र एवं जलवायु का विशेष ध्यान रखना चाहिए. हमारे वैज्ञानिक निरंतर किसान कि उपज बढ़ने के लिए प्रयासरत हैं तथा एक से बढ़कर एक किस्म किसानों के लिए विकसित कर रहे हैं.हम नीचे पूसा कृषि संस्थान द्वारा तैयार कि गई किस्मों के जानकारी दे रहे हैं, जो निम्न प्रकार है:

गेहूँ की उन्नत किस्में और उनकी विशेषताएं:

गेहूँ की प्रजाति करीब करीब 300-400 के करीब है लेकिन बहुतायत में प्रयोग की जाने वाली प्रजाति सिर्फ 30-35 ही होती है. हमेशा किसान को नया बीज ही प्रयोग में लाना चाहिए लेकिन कई बार ये संभव नहीं है क्यों की किसान को बीज खरीदने में अच्छा खासा पैसा लगाना होता है. अगर आप नया बीज नहीं ले पते हो तो कोशिश करें की कीड़ा ( घुन और पई) लगा हुआ बीज प्रयोग में ना लाएं. बाकि किस्मों की जानकारी ऊपर दी जा चुकी है.

बुवाई का समय:

गेंहू की बुवाई का सही समय तो प्रजाति पर निर्भर करता है, अगर कोई प्रजाति पकने में ज्यादा समय लेती है तो उसकी बुबाई पहले की जाती है जिससे की ज्यादा गर्मी से पहले गेंहूं की बलि को पकने का समय मिल सके. जब मौसम ज्यादा गर्म हो जाता है तो गेंहूं की बाली को पकने का समय ठीक से नहीं मिल पता है जिससे हमारे उत्पादन पर फर्क पड़ता है. इस तरह से गेंहूं को बोन का सही समय नवंबर का महीना सही होता है जो की अधिकांश प्रजाति के लिए सबसे मुफीद समय होता है. सामान्यतः बुवाई अक्टूबर से दिसंबर तक की जाती है जिससे की हमारी फसल को पकने का सही समय मिल सके तथा अंतिम पानी होली से पहले दिया जा सके जिससे की जब गर्मी का मौसम शुरू होता है तो हवाएं तेज चलने लगती हैं जिससे पानी से गेंहूं के गिरने का डर रहता है. फसल की अच्छी पैदावार प्राप्त करने हेतु उचित मात्रा में खाद, बीज एवं उर्वरकों का प्रयोग होनाआवश्यक है. खेत में अच्छी बनी हुई गोबर या कम्पोस्ट खाद दो या तीन साल में 8 से 10 टन प्रति हैक्टेयर की दर से अवश्य देनी चाहिये। इसके अतिरिक्त गेहूं की फसल को 100 से 120 किग्रा. नाइट्रोजन एवं 60 से 80 किग्रा. फास्फोरस प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती है। नाइट्रोजन की आधी एवं फास्फोरस की समस्त मात्रा बुवाई के समय  देनी चाहिये ।

खाद की मात्रा:

130.50 कि.ग्रा. डी.ए.पी. व 58 किग्रा. यूरिया के द्वारा दी जा सकती है। इसके पश्चात् नाइट्रोजन की आधी मात्रा दो बराबर भागों में देनी चाहिये। जिसे बुवाई के बाद प्रथम व द्वितीय सिंचाई देने के तुरंत बाद छिड़क देनी चाहिये। गेहूँ की फसल में जिंक की कमी भी महसूस की जा रही है अगर धान के खेत में गेंहूं की बुबाई की जा रही है तो उसमे पहले से ही खाद की अच्छी मात्रा होती है,  इसके लिए जिंक सल्फेट की 25 कि.ग्रा. मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि में बुवाई से पूर्व देनी चाहिये लेकिन इससे पहले मृदा परीक्षण आवश्यक है. जो की हमें साल में एक बार करा ही लेनी चाहिए. [embed]https://www.youtube.com/watch?v=wdZnodFWSB8&t[/embed]

कटाई की व्यवस्था :

जैसा की हम जानते हैं आजकल सारा काम मशीनों से हो रहा है और उससे किसान को फायदा भी होता है लेकिन इससे गेंहूं में मिटटी और अन्य खरपतवार भी मिल जाता है उससे फसल की गुणवत्ता कम होती है. अगर किसान को अपना बीज बनाना है तो उसको हाथ से कटाई करा के उसको खेत में सूखने का पर्याप्त समय देना चाहिए. उसके बाद थ्रेसर या ट्रैक्टर से कुचलकर निकालना चाहिए जिससे की कोई भी दाना कटे नहीं और बीज को फफूद नाशक एवं कीटनाशक से उपचारित कर लोहे की टंकी या साफ बोरे में भरकर सुरक्षित जगह भण्डारित कर लेना चाहिये. इस प्रकार उत्पन्न किये गये बीज की किसान अगले वर्ष बुवाई कर सकते है.
जानिए गेहूं की बुआई और देखभाल कैसे करें

जानिए गेहूं की बुआई और देखभाल कैसे करें

भारत में लगभग सभी राज्यों, नगरों, कस्बों,गांवों में रहने वाले लोग अपने भोजन में गेहूं का सबसे अधिक इस्तेमाल करते हैं। रबी सीजन में की जाने वाली गेहूं की फसल मुख्य फसल है। हमारे देश में बढ़ती जनसंख्या और मुख्य खाद्यान्न होने के कारण गेहूं की सबसे ज्यादा डिमांड रहती है। इस कारण गेहूं की कीमतें अब बाजार में तेजी से बढ़ती रहतीं हैं। इसलिये किसान भाइयों के लिए गेहूं की खेती सबसे उत्तम है।

गेहूं की बुआई कैसे करें

गेहूं की बुआई गेहूं की खेती के लिए 20 से 25 डिग्री सेल्शियस के तापमान की आवश्यकता होती है। इससे अधिक तापमान में गेहूं की फसल नहीं की जा सकती है। गेहूं के पौधों के अंकुर निकलने के समय 20 से 22 डिग्री का तापमान अच्छा माना गया है। गेहूं की बढ़वार के लिए 25 से 27 डिग्री सेल्शियस तापमान जरूरी होता है। गेहूं के पौधों में फूल आने के समय अधिक तापमान नहीं होना चाहिये। सिंचित क्षेत्रों में लगभग सभी प्रकार की भूमि पर गेहूं की खेती की जा सकती है लेकिन जलजमाव वाली, लवणीय या क्षारीय भूमि में गेहूं की खेती नहीं की जानी चाहिये। वैसे बलुई दोमट या चिकनी दोमट मिट्टी को गेहूं की खेती के लिए उत्तम मानी जाती है। जहां पर भूमि की परत एक मीटर के बाद सख्त हो, वहां पर भी खेती नहीं करनी चाहिये।

गेहूं के लिए खेत की तैयारी कुछ ऐसे करें

खरीफ की फसल के बाद खेत की मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करें। उसके बाद दो या तीन क्रास जुताई कर मिट्टी को महीन बनायें। यदि खेत में मिट्टी के ढेले दिख रहे हों तो उसमें पाटा चलाकर मिट्टी को एकदम भुरभुरी कर लें। इसके बाद किसान भाइयों को चाहिये कि खेत में आवश्यकतानुसार गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद और उर्वरकों को डालें तथा अंतिम जुताई करें। दीमक,कटवर्म आदि लगते हों तो कीट नाशकों का उपयोग करें। अंतिम जुताई के बाद खेत को एक सप्ताह के लिए खुला छोड़ दें। इसके बाद बुआई करने से पहले खेत की नमी की स्थिति को देखें। नमी कम दिख रही हो तो पलेवा करके बुआई करें।

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भारत में क्षेत्रवार जलवायु अलग-अलग होने के कारण गेहूं की बुआई का समय भी अलग-अलग है। पश्चिमोत्तर क्षेत्रों में गेहूं की बुआई का समय नवम्बर का पूरा महीना उपयुक्त माना गया है। वहीं पूर्वोत्तर क्षेत्र में मध्य नवंबर से लेकर दिसम्बर के पहले पखवाड़े तक सही समय माना गया है। इसके बाद पछैती खेती  के लिए 15 दिसम्बर से 25 दिसम्बर तक बुआई की जा सकती है। इसके बाद बुआई करना जोखिम भरा हो सकता है। गेहूं की अच्छी खेती के लिए बीज भी अच्छा होना चाहिये। अच्छी पैदावार की किस्म वाला गेहूं का बीज होना चाहिये तथा सिकुड़े, छोटे, कटे-फटे दाने नहीं होने चाहिये। आम तौर पर एक हेक्टेयर के लिए 100 किलोग्राम बीजों की आवश्यकता होती है। पछैती खेती या कम उपजाऊ जमीन के लिए 125 किलो बीजों की आवश्यकता होती है। बीज प्रमाणित संस्थानों से लेना चाहिये और तीन वर्ष में गेहूं के बीज की किस्म बदल लेनी चाहिये।

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बुआई से पहले बीज का उपचार किया जाना अत्यावश्यक है। पहले गेहूं के बीज को थाइम या मैन्कोजेब से उपचारित करना चाहिये। इसके लिए प्रतिकिलो गेहूं के बीज के लिए 2 से 2.5 ग्राम थाइम या मैन्कोजेब की आवश्यकता होती है। इसके साथ ही दीमक नियंत्रण के लिए क्लोरोपाइरीफोस से शोधन करें। उसके बाद बीज को छाया में सुखाकर खेत में बोयें। गेहूं की अच्छी पैदावार के लिए बुआई के सर्वश्रेष्ठ तरीके को अपनाया जाना चाहिये। किसान भाइयों बुआई करने का सबसे अच्छा तरीका सीड ड्रिल या देशी हल से किये जाने को माना गया है। इससे कतार से कतार की दूरी व पौधों की दूरी भी नियंत्रित रहती है। इससे निराई गुड़ाई व सिंचाई करने में सुविधा होती है। साथ ही बीज आवश्यक गहराई तक जाता है और बीज भी कम लगता है। छिड़काव विधि से बीज भी अधिक लगता है।असमान पौधों के उगने से फसल प्रभावित होती है। बाद में कई अन्य परेशानियां आतीं हैं।

गेहूं की बुआई

गेहूं की बुआई के बाद फसल की देखभाल करनी जरूरी होती है। किसान भाइयों को चाहिये कि वे खेत की लगातार निगरानी करते रहें। सभी आवश्यक इंतजाम करते रहें। गेहूं की बुआई के बाद सबसे पहले खरपतवार नियंत्रण के लिए दो-तीन दिन में पैन्डीमैथालीन के घोल का छिड़काव करें। अक्सर देखा गया है कि गेहूं की फसल के साथ गोयला, प्याजी,चील, जंगली जई,गुल्ली डंडा व मोरवा जैसे खरपतवार उग आते हैं और वे फसल की बढ़त को रोक देते हैं। गुल्ली डंडा व जंगली जई का अधिक प्रकोप होने पर एक किलो आईसोप्रोटूरोन या मैटाक्सिरान को 500 लीटर पानी में मिलाकर घोल बनाकर छिड़कें।

खाद एवं उर्वरक का प्रबंधन ऐसे करें

किसान भाइयों के लिए उर्वरक प्रबंधन करने से पहले मृदा का परीक्षण कराना सर्वोत्तम रहेगा। इससे उनको खाद एवं उर्वरक प्रबंधन पर उतना ही खर्च लगेगा जितने की जरूरत होगी। अनुमान से खाद व उर्वरक का प्रबंधन करना किसान भाइयों को महंगा भी पड़ सकता है और अपेक्षित परिणाम भी नहीं मिलते हैं। वैसे सिंचित क्षेत्रों में 125 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम पोटाश और 60 किलोग्राम फास्फोरस की आवश्यकता होती है। यदि पछैती फसल लेनी है तो उसके लिए 20 से 40 किलो पोटाश अधिक डालें। असिंचित क्षेत्रों में समय से खेती करने के लिए 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 किलोग्राम फास्फोरस और 25 किलोग्राम पोटाश की जरूरत होती है।  बालियां आने से पहले यदि बरसात हो जाये तो 20 किलो नाइट्रोजन का छिड़काव करना चाहिये। सिंचित क्षेत्रों में बुआई के बाद नाइट्रोजन की दो तिहाई मात्रा जो बुआई के समय बचायी जाती है उसका आधा हिस्सा पहली सिंचाई के बाद और आधा हिस्सा दूसरी सिंचाई के बाद खेतों में डालने से पैदावार अच्छी होती है।

गेहूं की फसल में सिंचाई का बहुत ध्यान रखना पड़ता है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार पूरी फसल में छह बार सिंचाई करनी होती है।

  1. पहली सिंचाई बुआई के 20 से 25 दिन बाद करनी चाहिये
  2. दूसरी सिंचाई 45 दिन के बाद उस समय करनी चाहिये जब कल्ले बनने लगे।
  3. तीसरी सिंचाई 65 दिन बाद उस समय करनी चाहिये जब गांठ बनने लगे।
  4. चौथी सिंचाई 85 से 90 दिन यानी तीन महीने बाद उस समय करनी चाहिये जब बालियां निकलने वाली हों।
  5. पांचवीं सिंचाई उस समय की जानी चाहिये जब दूधिया दाना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति बुआई से 100 से 110 दिन बाद आती है।
  6. छठवीं और अंतिम सिंचाई 115 से 120 दिन बाद उस समय की जानी चाहिये जब दाना पकने वाला हो।

खरपतवार की देखभाल कैसे की जाये

गेहूं की फसल को गोयला, चील, प्याजी, मोरवा, गुल्ली डन्डा, जंगली जई, मंडूसी, कनकी, पोआघास, लोमड़ घास, बथुआ, खरथुआ, जंगली पालक, मैना, मैथा, सांचल,मालवा, मकोय, हिरनखुरी, कंडाई, कृष्णनील, चटरी मटरी जैसे खरपतवार प्रभावित करते हैं। इनको रोकने के लिए खरपतवारनाशी का घोल छिड़कना चाहिये। फसल के बीच में निराई गुड़ाई भी की जानी चाहिये।

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गेहूं की फसल को अनेक प्रकार की कीट व रोग भी लगते हैं। इनके नियंत्रण का भी प्रबंध किसान भाइयों को करना चाहिये।  दीमक, आर्मी वर्म, एफिड व जैसिडस तथा चूहे काफी नुकसान पहुंचाते हैं। इनकी रोकथाम बुआई के समय करनी चाहिये। उस समय एन्डोसल्फान का छिड़काव करना चाहिये। दीमक के लिए क्लोरीपाइरीफोस को सिंचाई के साथ देना होगा। रस चूसने वाले कीटों के नियंत्रण के लिए इकालक्स के घोल का छिड़काव करें। यदि झुलसा पत्ती धब्बा, रोली रोग, कण्डवा, मोल्या धब्बा जैसे रोग गेहूं की फसल में लगे हुए दिखाई दें तो मेन्कोजेब, रोली राग के लि गंधक का चूर्ण, कन्डुवे के लिए थीरम या वीटावैक्स से उपचार करें। चूहों के नियंत्रण के लिए एल्यूमिनियम फास्फाइड या राटाफीन की गोलियों का इस्तेमाल करें।
गेहूं की अच्छी फसल तैयार करने के लिए जरूरी खाद के प्रकार

गेहूं की अच्छी फसल तैयार करने के लिए जरूरी खाद के प्रकार

गेहूं की खेती पूरे विश्व में की जाती है। पुरे विश्व की धरती के एक तिहाई हिस्से पर गेहूं की खेती की जाती है। धान की खेती केवल एशिया में की जाती है जबकि गेहूं विश्व के सभी देशों में उगाया जाता है। 

इसलिये गेहूं की खेती का बहुत अधिक महत्व है और किसान भाइयों के लिए गेहूं की खेती कृषि उपज के प्राण के समान है। इसलिये प्रत्येक किसान गेहूं की अच्छी उपज लेना चाहता है। 

वर्तमान समय में वैज्ञानिक तरीके से खेती की जाती है। इसलिये किसान भाइयों को चाहिये कि वह गेहूं की खेती में खाद की मात्रा उन्नत एवं वैज्ञानिक तरीके से करेंगे तो उन्हें अपने खेतों में अच्छी पैदावार मिल सकती है।

क्यों है अच्छी फसल की जरूरत

किसान भाइयों एक बात यह भी सत्य है कि जमीन का दायरा सिकुड़ता जा रहा है और आबादी बढ़ती जा रही है। मानव का मुख्य भोजन गेहूं पर ही आधारित है। इसलिये गेहूं की मांग बढ़ना आवश्यक है। 

इस मांग को पूरा करने के लिए अधिक से अधिक पैदावार करना होगा। जहां लोगों की जरूरतें  पूरी होंगी और वहीं किसान भाइयों की आमदनी भी बढ़ेगी। किसान भाइयों गेहूं की खेती बहुत अधिक मेहनत मांगती है। 

जहां खेत को तैयार करने के लिए अधिक जुताई, पलेवा, निराई गुड़ाई, सिंचाई के साथ गेहूं की खेती में खाद की मात्रा का भी प्रबंधन समय-समय पर करना होता है। 

आइये देखते हैं कि गेहूं की खेती में किन-किन खादों व उर्वरकों का प्रयोग करके अधिक से अधिक पैदावार ली जा सकती है।

अधिक उत्पादन का मूलमंत्र

गेहूं की खेती की खास बात यह होती है कि इसमें बुआई से लेकर आखिरी सिंचाई तक उर्वरकों और पेस्टिसाइट व फर्टिसाइड का इस्तेमाल किया जाता है। तभी आपको अधिक उत्पादन मिल सकता है।

बुआई के समय करें ये उपाय

गेहूं की अच्छी फसल लेने के लिए किसान भाइयों को सबसे पहले तो अपनी भूमि का परीक्षण कराना चाहिये, मृदा परीक्षण या सॉइल टेस्टिंग भी कहा जाता है। 

परीक्षण के उपरांत कृषि विशेषज्ञों से राय लेकर खेत तैयार करने चाहिये और उनके द्वारा बताई गई विधि से ही खेती करेंगे तो आपको अधिक से अधिक पैदावार मिलेगी।  

क्योंकि फसल की पैदावार बहुत कुछ खाद एवं उर्वरक की मात्रा पर निर्भर करती है। गेहूं की खेती में हरी खाद, जैविक खाद एवं रासायनिक खाद के अलावा फर्टिसाइड और पेस्टीसाइड का भी प्रयोग करना होता है।  

कौन सी खाद कब इस्तेमाल की जाती है, आइये जानते हैं:-

  1. गेहूं की फसल के लिए बुआई से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार किया जाता है। इसके लिए सबसे पहले 35 से 40 क्विंटल गोबर की सड़ी हुई खाद प्रति हेक्टेयर खेत में डालना चाहिये। इसके साथ ही 50 किलोग्राम नीम की खली और 50किलो अरंडी की खली को भी मिला लेना चाहिये। पहले इन सभी खादों के मिश्रण को खेत में बिखेर दें और उसके बाद खेत की जमकर जुताई करनी चाहिये।
  2. किसान भाई गेहूं की अच्छी फसल के लिए अगैती फसल में बुआई के समय 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल करना चाहिये। गेहूं की पछैती फसल के लिए बुआई के समय 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश गोबर की खाद, नीम व अरंडी की खली के बाद डालना चाहिये।
  3. इसमें नाइट्रोजन की आधी मात्रा को बचा कर रख लेना चाहिये जो बाद में पहली व दूसरी सिंचाई के समय डालना चाहिये।

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पहली सिंचाई के समय

बुआई के बाद पहली सिंचाई लगभग 20 से 25 दिन पर की जाती है। गेहूं की खेती में खाद की मात्रा की बात करें तो उस समय किसान भाइयों को गेहूं की फसल के लिए 40 से 45 किलोग्राम यूरिया, 33 प्रतिशत वाला जिंक 5 किलो, या 21 प्रतिशत वाला जिंक 10 किलो, सल्फर 3 किलो का मिश्रण डालना चाहिये। इसके अलावा नैनोजिक एक्सट्रूड जैसे जायद का भी प्रयोग करना चाहिये।

दूसरी सिंचाई के समय

गेहूं की खेती में दूसरी सिंचाई बुआई के 40 से 50 दिन बाद की जानी चाहिये। उस समय भी आपको 40 से 45 किलोग्राम यूरिया डालनी होगी ।

इसके साथ थायनाफेनाइट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्ल्यूपी 500 ग्राम प्रति एकड़, मारबीन डाजिम 12 प्रतिशत, मैनकोजेब 63 प्रतिशत डब्ल्यूपी 500 ग्राम प्रति एकड़ से मिलाकर डालनी चाहिये।

उर्वरकों का इस्तेमाल का फैसला ऐसे करें

मुख्यत: गेहूं की फसल में दो बार सिंचाई के बाद ही उर्वरकों का मिश्रण डालने का प्रावधान है लेकिन उसके बाद किसान भाइयों को अपने खेत व फसल की निगरानी करनी चाहिये। 

इसके अलावा भूमि परीक्षण के बाद कृषि विशेषज्ञों की राय के अनुसार उर्वरकों का इस्तेमाल करना चाहिये। यदि भूमि परीक्षण नहीं कराया है तो आपको अपने खेत की निगरानी अपने स्तर से करनी चाहिये और स्वयं के अनुभव के आधार पर या अनुभवी किसानों से राय लेकर फसल की जरूरत के हिसाब से उर्वरक, फर्टिसाइड व पेस्टीसाइड का इस्तेमाल करना चाहिये।

हल्की फसल हो तो क्या करें

विशेषज्ञों के अनुसार दूसरी सिंचाई के बाद देखें कि आपकी फसल हल्की हो तो आप अपने खेतों में माइकोर हाइजल दो किलो प्रति एकड़ के हिसाब से डालें। 

जिन किसान भाइयों ने बुआई के समय एनपीके का इस्तेमाल किया हो तो उन्हें अलग से पोटाश डालने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि एनपीके में 12 प्रतिशत नाइट्रोजन और 32 प्रतिशत फास्फोरस होता है और 16प्रतिशत पोटाश होता है।

डीएपी का इस्तेमाल करने वाले  क्या करें

जिन किसान भाइयों ने बुआई के समय डीएपी खाद का इस्तेमाल किया हो तो उन्हें पहली सिंचाई के बाद ही 15 से 20 किलो म्यूरेट आफ पोटाश प्रति एकड़ के हिसाब से डालना चाहिये।

क्योंकि डीएपी  में 18 प्रतिशत नाइट्रोजन होता है और 46 प्रतिशत फास्फोरस होता है और पोटाश बिलकुल नहीं होता है।

प्रत्येक सिंचाई के बाद खेत को परखें

गेहूं की फसल में 5-6 बार सिंचाई करने का प्रावधान है। किसान भाइयों को चाहिये कि वो कुदरती बरसात को देख कर और खेत की नमी की अवस्था को देखकर ही सिंचाई का फैसला करें। 

यदि प्रति सिंचाई के बाद यूरिया की खाद डाली जाये तो आपकी फसल में रिकार्ड पैदावार हो सकती है। यूरिया के साथ फसल की जरूरत के हिसाब से फर्टिसाइड और पेस्टीसाइड का भी इस्तेमाल करना चाहिये। 

पहली दो सिंचाई के बाद तीसरी सिंचाई 60 से 70 दिन बाद की जाती है। चौथी सिंचाई 80 से 90 दिन बाद उस समय की जाती है जब पौधों में फूल आने को होते हैं। पांचवीं सिंचाई 100 से 120 दिन बाद करनी चाहिये। 

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खाद सिंचाई से पहले या बाद में डाली जाए?

  1. किसान भाइयों के समक्ष यह गंभीर समस्या है कि गेहूं की खेती में खाद की मात्रा कितनी डालनी चाहिये? हालांकि खाद डालने का प्रावधान सिंचाई के बाद ही का है लेकिन कुछ किसान भाइयों को यह शिकायत होती है कि सिंचाई के बाद खेत की मिट्टी दलदली हो जाती है, जहां खेत में घुसने में पैर धंसते हैं और उससे पौधों की जड़ों को नुकसान पहुंच सकता है। ऐसी स्थिति में किसान भाइयों को परिस्थिति देखकर स्वयं फैसला लेना होगा।
  2. यदि भूमि अधिक दलदली है और सिंचाई के बाद पैर धंस रहे हैं तो आपको खेत के पानी को सूखने का इंतजार करना चाहिये लेकिन पर्याप्त नमी होनी चाहिये तभी खाद डालें। इसके लिए आप सिंचाई से अधिक से अधिक दो दिन के बाद खाद अवश्य डाल देनी चाहिये। यदि यह भी संभव न हो पाये तो इस तरह की भूमि में सिंचाई से 24 घंटे पहले खाद डालनी चाहिये लेकिन ध्यान रहे कि 24 घंटे में सिंचाई अवश्य ही हो जानी चाहिये। तभी खाद आपको लाभ देगी अन्यथा नहीं।
  3. यदि आपके खेत की भूमि बलुई या रेतीली है, जहां पानी तत्काल सूख जाता है और आप खेत में आसानी से जा सकते हैं तो आपको सिंचाई के तत्काल बाद गेहूं की खेती में खाद की मात्रा डालनी चाहिये। ऐसे खेतों में अधिक से अधिक सिंचाई के 24 घंटे के भीतर खाद डालनी चाहिये।
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गेहू की फसल में मुख्य कार्य उर्वरक प्रबंधन एवं सिंचाई का रहता है। ज्यादातर इलाकों में गेहूं में तीसरे एवं चौथे पानी की तैयारी है। तीसरे पानी का काम ज्यादातर राज्यों में पिछले दिनों हुई बरसात से हो गया है। गेहूं में झुलसा रोग से बचाव के लिए डायथेन एम 45 या जिनेब की 2.5 किलोग्राम मात्रा का पर्याप्त पानी में घोलकर छिड़काव करेंं। गेरुई रोग से बचाव के लिए प्रोपिकोनाजोल यानी टिल्ट नामक दवा की 25 ईसी दवा को एक एमएल दवा प्रति लीटर पानी की दर से घोलकर छिडकाव करें। टिल्ट का छिडकाव दानों में चमक एवं वजन बढ़ाने के साथ फसल को फफूंद जनित रोगों से बचाता है। छिडकाव कोथ में बाली निकलने के समय होना चाहिए। फसल को चूहों के प्रकोप से बचाने के लिए एल्यूमिनियम फास्फाइड का प्रयोग करें।

जौ

jau ki kheti

जौ की फसल में कंडुआ जिसे करनाल बंट भी कहा जाता है लग सकता है। यह रोग संक्रमित बीज वाली फसल में हो सकता है। बचाव के लिए किसी प्रभावी फफूंदनाशक दवा या टिल्ट नामक दवा का छिड़काव करें।

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चना

chana ki kheti

चने की खेती में दाना बनने की अवस्था में फली छेदक कीट लगने शुरू हो जाते हैं। बचाव हेतु बीटी एक किलोग्राम या फेनवैलरेअ 20 प्रतिशत ईसी की एक लीटर मात्रा का 500 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करेंं।

मटर

matar ki kheti

मटर में इस सयम पाउड्री मिल्डयू रोग लगता है। रोकथाम के लिए प्रति हैक्टेयर दो किलोग्राम घुलनशील गंधक या कार्बेन्डाजिम नामक फफूंदनाशक की 500 ग्राम मात्रा 500 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से छिडकाव करेंं।

राई सरसों

सरसों की फसल में इस समय तक फूल झड़ चुका होता है। इस समय माहूू कीट से फसल को बचाने के लिए मिथाइल ओ डिमोटान 25 ईसी प्रति लीटर दवा पर्याप्त पानी में घोलकर छिडकाव करेंं।

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मक्का

makka ki kheti

रबी मक्का में सिंचाई का काम मुख्य रहता है । लिहाजा तीसरा पानी 80 दिन बाद एवं चौथा पानी 110 दिन बाद लगाएं। यह समय बसन्तकालीन मक्का की बिजाई के लिए उपयुक्त होने लगता है।

गन्ना

sugarcane farming

गन्ने की बसंत कालीन किस्मों को लगाने के समय आ गया है। मटर, आलू, तोरिया के खाली खेतों में गन्ने की फसल लगाई जा सकती है। गन्ने की कोशा 802, 7918, 776, 8118, 687, 8436 पंत 211 एवं बीओ 91 जैसी अनेक नई पुरानी किस्में मौजूद हैं। कई नई उन्नत किस्तें गन्ना संस्थानों ने विकसित की हैं। इनकी विस्तृत जानकारी लेकर इन्हें लगाया जा सकता है।

फल वाले पौधे

नीबू वर्गीस सिट्रस फल वाले मौसमी, किन्नू आदि के पौधों में विषाणु जनित रोगों के नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोरोपिड 3 एमएल प्रति 10 लीटर पानी में, कार्बरिल 20 ग्राम 10 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। नाशपाती एवं सतालू आदि सभी फलदार पौधों के बागों में सड़ी गोबर की खाद, मिनरल मिक्चर आदि तापमान बढ़ने के साथ ही डालें ताकि पौधों का समग्र विकास हो सके। आम के खर्रा रोग को रोकने के लिए घुलनशील गंधक 80 प्रतिशत डब्ल्यूपी 0.2 प्रतिशत दवा की 2 ग्राम मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से छिडकाव करें। इसके अलावा अन्य प्रभावी फफूंदनाशक का एक छिडकाव करें। कीड़ों से पौधों को सुरक्षत रखने के लिए इमिडाक्लोरोपिड का एक एमएल प्रति तीन लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें।

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फूल वाली फसलें

गुलदाउूजी के कंद लगाएं। गर्मी वाले जीनिया, सनफ्लावर, पोर्चलुका, कोचिया के बीजों को नर्सरी में बोएं ताकि समय से पौध तैयार हो सके।

सब्जी वाली फसलें

aloo ki kheti

आलू की पछेती फसल को झुलसा रोग से बचाने के लिए मैंकोजेब या साफ नामक दवा की उचित मात्रा छिडकाव करें। प्याज एवं लहसुन में संतुलित उर्वरक प्रबधन करें। खादों के अलावा शूक्ष्म पोषक तत्वों का प्रयोग करें। फफूंद जनित रोगों से बचाव एवं थ्रिप्स रोग से बचाव के लिए कारगर दवाओं का प्रयोग करें। भिन्डी के बीजों की बिजाई करें। बोने से पहले बीजों को 24 घण्टे पूर्व पानी में भिगोलें। कद्दू वर्गीय फसलों की अगेती खेती के लिए पॉलीहाउस, छप्पर आदि में अगेती पौध तैयार करें।

पशुधन

पशुओं की बदलते मौसम में विशेष देखभाल करें। रात के समय जल्दी पशुओं को बाडे में बांधें। पशुओं को दाने के साथ मिनरल मिक्चर आवश्यक रूप से दें।

संतुलित आहार के लिए पूसा संस्थान की उन्नत किस्में

संतुलित आहार के लिए पूसा संस्थान की उन्नत किस्में

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली जिसे पूसा संस्थान के नाम से जाना जाता है ने अपने 115 वर्षों के सफर में देश की कृषि को सुधारने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हरित क्रांति के जनक के रूप में पूसा संस्थान में विभिन्न फसलों की बहुत सारी किस्में निकाली हैं जिनसे हम अपने देश की जनता को संतुलित आहार दे सकते हैं और अपने किसानों के लिए खेती को लाभदायक बना सकते हैं। दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए पूसा सस्थान द्वारा निकाली गई कुछ फसलों की मुख्य किस्में व उनकी विशेषताओं के विषय में हम आपको बता रहे हैं।

संतुलित आहार की उन्नत किस्में

धान

Dhan ki kheti 1-पूसा बासमती 1 जिस की पैदावार 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर है 135 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। 2-पूसा बासमती 1121 जिसकी पैदावार 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर है एवं 140  दिन में पक जाती है। पकाने के दौरान चावल 4 गुना लंबा हो जाता है। 3-पूसा बासमती 6 की पैदावार 55 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। आप पकने में 150 दिन का समय लेती है। 4-पूसा बासमती 1509 का उत्पादन 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है. यह पत्नी है 120 दिन का समय लेती है. जल्दी पकने के कारण बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है. 5-पूसा बासमती 1612 का उत्पादन 51 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है . पकने में 120 दिन का समय लेती है . यह ब्लास्ट प्रतिरोधी किस्म है। 6-पूसा बासमती 1592 का उत्पादन 47.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है .यह पकने में 120 दिन का समय लेती है .बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है. ये भी पढ़े: धान की उन्नत खेती कैसे करें एवं धान की खेती का सही समय क्या है 7-पूसा बासमती 1609 का उत्पादन 46 कुंटल पकने का समय 120 दिन व बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रति प्रतिरोधी है। 8-पूसा बासमती 1637 का उत्पादन 42 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अवधि 130 दिन है । यह ब्लाइट प्रतिरोधी है. 9-पूसा बासमती 1728 का उत्पादन 41.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकाव  अवधि 140 दिन है। वह किसी भी बैक्टीरियल ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है। 10-पूसा बासमती 1718 का उत्पादन 46.4 कुंटल प्रति हेक्टेयर बोकारो अवधि 135 दिन है। यह किस्म बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोध ही है। 11-पूसा बासमती 1692 का उत्पादन 52.6 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। यह पकने में 115 दिन का समय लेती है। उच्च उत्पादन जल्दी पकने वाली किस्म है।

 गेहूं

gehu ki kheti 1-एचडी 3059 का उत्पादन 42.6 कुंतल प्रति हेक्टेयर व पकाव अवधि 121 दिन है। यह पछेती की किस्में है। 2-एचडी 3086 का उत्पादन 56.3 कुंटल एवं पकाव अवधि 145 दिन है। 3-एचडी 2967 का उत्पादन 45.5 कुंतल प्रति हेक्टेयर। वह पकने में 145 से लेती है। 4-एच डी सीएसडब्ल्यू 18 का उत्पादन 62.8 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। पीला रतुआ प्रतिरोधी 150 दिन में पकती है। 5-एचडी 3117 से 47.9 कुंटल उत्पादन 110 दिन में मिल जाता है । यह किस्म करनाल बंट रतुआ प्रतिरोधी पछेती किस्म है। 6-एचडी 3226 से 57.5 कुंटल उत्पादन 142 दिन में मिल जाता है। 7-एचडी 3237 से 4 कुंतल उत्पादन 145 दिन में मिलता है। ये भी पढ़े: सर्दी में पाला, शीतलहर व ओलावृष्टि से ऐसे बचाएं गेहूं की फसल 8-एच आई 1620 से 49.1 कुंदन उत्पादन के 40 दिन में मिलता है। यह कंम पानी वाली किस्म है। 9-एच आई 1628 से 50.4 कुंतल उत्पादन 147 में मिलता है। 10-एच आई 1621 से 32.8 कुंतल उत्पादन 102 दिन में मिल जाता है यह पछेती किस्म है। 11-एचडी 3271 किस्म से कुंतल उत्पादन 104 दिन में मिलता है यह अति पछेती किस्म है पीला रतुआ प्रतिरोधी है। 12-एचडी 3298 से 39 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन 104 दिन में मिल जाता है।

मक्का

Makka ki kheti 1-पूसा एच एम 4 संकर किस्म से 64.2 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है । यह पकने में 87 दिन का समय देती है और इसमें प्रोटीन अत्यधिक है। 2-पूसा सुपर स्वीट कॉर्न संकर सै 93 कुंतल उत्पादन 75 दिन में मिल जाता है। 3-पूसा एचक्यूपीएम 5 संकर 64.7 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन 92 दिन में मिलता है। बाजरा (खरीफ) 1-पूसा कंपोजिट 701 से , 80 दिन में 23.5 कुंतल उत्पादन मिलता है। 2-पूसा 1201 संकर से 28.1 कुंतल उत्पादन 80 दिन में मिलता है।

चना

chana ki kheti 1-पूसा 372 से 125 दिन में 19 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है। 2-पूसा 547 से 130 दिन में 18 कुंतल उत्पादन मिलता है।

अरहर

arhar ki kheti 1-अरहर की पूसा 991 किस्म 142 दिन में तैयार होती है व 16.5 कुंदन उत्पादन मिलता है। 2- पूसा 2001 से 18.7 कुंतल उत्पादन 140 दिन में मिलता है। 3- पूसा 2002 किस्म से 143 दिन में 17.7 कुंतल उपज मिलती है। 4-पूसा अरहर 16 से 120 दिन में 19.8 कुंतल उपज मिलती है।

मूंग (खरीफ)

Mung ki kheti 1-पूसा विशाल 65 दिन में 11.5 कुंतल उपज देती है। यह किस्मत एक साथ पकने वाली है। 2- पूसा 9531 से 65 दिन में 11.5 कुंटल उत्पादन मिलता है। यह भी एक साथ पकने वाली किस्म है। 3- पूसा 1431 किस्म से 66 दिन में 12.9 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है।

मसूर

masoor ki dal 1- एल 4076 किस्म 125 दिन में पकने वाली है । इससे 13.5 कुंतल उत्पादन मिलता है। 2- एवं 4147 से ,125 दिन में 15 कुंतल उपज मिलती है। दोनों किस्म  फ्म्यूजेरियम बिल्ट रोग प्रतिरोधी है।

सरसों(रबी)

sarson ki kheti 1-जल्द पकने वाली पीएम 25 किस्म से 105 दिन में 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिलती है। 2-प्रीति बाई के लिए उपयुक्त पीएम 26 किस्म से 126 दिन में 16.4 कुंतल तक उपज मिलती है। 3-41.5% की उच्च तेल मात्रा वाली पीएम 28 किस्म 107 दिन में 19.9 कुंतल तक उपज दे जाती है। 4-कुछ तेल प्रतिशत वाली पीएम 3100 किस्म से 23.3  कुंतल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिलती है ।यह पकने में 142 दिन का समय लेती है। 5- पीएम 32 किस्म से 145 दिन में 27.1 कुंतल उपज दे ती है।

सोयाबीन (खरीफ)

soybean 1-पुसा सोयाबीन 9712 किस्म पीला मोजेक प्रतिरोधी है। 115 दिन में 22.5 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। 2-पूसा 12 किस्म 128 दिन मैं 22.9 कुंतल उपज देती है।

लेखक

राजवीर यादव, फिरोज हुसैन, देवेंद्र के यादव एवं अशोक के सिंह
बंदरगाहों पर फंसे 12 लाख टन गेहूं निर्यात को मंजूरी दे सकती है सरकार

बंदरगाहों पर फंसे 12 लाख टन गेहूं निर्यात को मंजूरी दे सकती है सरकार

नई दिल्ली। देश में गेहूं निर्यात पर पाबंदी लगने के बाद विभिन्न बंदरगाहों पर गेहूं फंस हुआ है। बंदरगाहों पर फंसे लाखों टन गेहूं को सरकार निर्यात की मंजूरी दे सकती है। कई बंदरगाहों पर गेहूं का भंडार लगा हुआ है। इस जिसके खराब होने की पूरी संभावना है। जिसे देखते हुए केन्द्र सरकार 12 लाख टन गेहूं निर्यात की मंजूरी देने जा रही है। सरकार के इस निर्णय से तमाम बड़े व्यापारियों को राहत मिलने के आसार हैं

- 14 मई को लगा थी गेहूं निर्यात पर पाबंदी

- वैश्विक स्तर पर गेहूं के बढ़ते भाव के चलते केन्द्र सरकार ने बीते 14 मई को सरकार ने गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगाई थी। तभी से देश के विभिन्न बंदरगाहों पर कई लाख टन गेहूं पड़ा हुआ है। बारिश और मानसून के खराब मौसम के समय यह गेहूं खराब हो सकता है। जिसके चलते सरकार यह निर्णय लेने जा रही है।

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चीनी निर्यात ने तोड़ा रिकॉर्ड -चीनी निर्यात ने इस बार तमाम रिकॉर्ड तोड़े हैं। मई महीने के अंत तक देश 86 लाख टन चीनी का निर्यात चुका है। पिछले वित्तीय वर्ष 2020-21 में 70 लाख टन चीनी का निर्यात किया गया था। जबकि पिछले वित्तीय वर्ष में 3.11 करोड़ रूपए का निर्यात हुआ था। ----- लोकेन्द्र नरवार
भारत के गेंहू को सड़ा बताकर लौटाने वाला तुर्की, गेहूं के एक-एक दाने को हुआ मोहताज

भारत के गेंहू को सड़ा बताकर लौटाने वाला तुर्की, गेहूं के एक-एक दाने को हुआ मोहताज

नई दिल्ली। तुर्की ने भारत के गेहूं को सड़ा हुआ बताकर वापिस लौटा दिया था। तुर्की द्वारा गेहूं की खेप लौटाए जाने की खबर ने ग्लोबल मार्केट में खूब चर्चा बटोरी। तुर्की ने भारत के गेहूं की क्वालिटी को लेकर सवाल उठाए थे। इसके बाद भारत ने मिस्र के साथ गेहूं खरीद का करार कर लिया था। अब वही तुर्की गेहूं के एक-एक दाने को मोहताज है। रूस और यूक्रेन समेत कई देशों से गेहूं मांग चुका तुर्की, अब गेहूं के लिए मिस्र के आगे गिड़गिड़ा रहा है। लेकिन अभी तक गेहूं खरीद का कोई करार नहीं हो सका है।

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बढ़ गई है गेहूं के इम्पोर्ट की लागत

- रूस यूक्रेन के बीच बीते पांच महीने से ज्यादा समय से जंग चल रही है। इससे गेहूं के इम्पोर्ट की लागत लगातार बढ़ रही है। पहले मिस्र ने भारत से 5 लाख टन गेहूं निर्यात करने पर सहमति जताई थी। भारत ने भी यह डील स्वीकार कर ली थी। लेकिन मिस्र ने सड़ा गेहूं बताकर उस खेप को लौटा दिया। अब मिस्र के सामने भी गेहूं का संकट खड़ा हो गया है।

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फिर से भारत ही करेगा मिस्र को गेहूं की मदद

- भारत सरकार गेहूं निर्यात पर लगे प्रतिबंध को जल्द हटाने जा रही है, जिससे बड़ी मात्रा में बंदरगाहों पर फंसे गेहूं की खेप को निर्यात किया जा सके। आखिर में, भारत ही मिस्र को गेहूं देकर उसकी मदद करेगा। जल्दी ही इस पर करार हो सकता है।
गेहूं के उत्पादन में यूपी बना नंबर वन

गेहूं के उत्पादन में यूपी बना नंबर वन

आपदा को अवसर में कैसे बदला जाता है, यह कोई यूपी से सीखे। कोरोना के जिस भयावह दौर में आम आदमी अपने घरों में कैद था। उस दौर में भी ये यूपी के किसान ही थे, जो तमाम सावधानियां बरतते हुए भी खेत में काम कर रहे थे या करवा रहे थे। नतीजा क्या निकला? यूपी गेहूं के उत्पादन में पूरे देश में नंबर 1 बन गया। कुछ चीजें जब हो जाती हैं और आप उनके बारे में सोचना शुरू करते हैं, तो पता चलता है कि यह तो चमत्कार हो गया। ऐसा कभी सोचा ही नहीं गया था और ये हो गया। कुछ ऐसी ही कहानी है यूपी के कृषि क्षेत्र की। कोरोना के जिस कालखंड में आम आदमी अपनी जिंदगी बचाने के लिए संघर्ष कर रहा था, सावधानियां बरतते हुए चल रहा था, उस यूपी में ही किसानों ने कभी भी अपने खेतों को भुलाया नहीं। क्या धान, क्या गेहूं, क्या मक्का हर फसल को पूरा वक्त दिया। निड़ाई, गुड़ाई से लेकर कटाई तक सब सही तरीके से संपन्न हुआ। यहां तक कि कोरोना काल में भी सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद की। इन सभी का अंजाम यह हुआ कि यूपी गेहूं के क्षेत्र में न सिर्फ आत्मनिर्भर हुआ बल्कि देश भर में सबसे ज्यादा गेहूं उत्पादक राज्य भी बन गया।


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अकेले 32 प्रतिशत गेहूं का उत्पादन करता है यूपी

यूपी के एग्रीकल्चर मिनिस्टर सूर्य प्रताप शाही के अनुसार, यूपी में देश के कुल उत्पादन का 32 फीसद गेहूं उपजाया जाता है। यह एक रिकॉर्ड है, पहले हमें पड़ोसी राज्यों से गेहूं के लिए हाथ फैलाना पड़ता था। अब हमारा गेहूं निर्यात भी होता है, पड़ोसी राज्यों की जरूरत के लिए भी भेजा जाता है। शाही के अनुसार, ढाई साल तक कोरोना में भी हमारे किसानों ने निराश नहीं किया। इन ढाई सालों के कोरोना काल में सिर्फ कृषि सेक्टर की उत्पादकता बढ़ी। किसानों ने दुनिया को निराश नहीं होने दिया। खेतों में अन्न पैदा होता रहा तो गरीबों को मुफ्त में राशन लेने की दुनिया की सबसे बड़ी स्कीम प्रधानमंत्री के नेतृत्व में चलाई गई। आपको तो पता ही होगा कि देश में 80 करोड़ तथा उत्तर प्रदेश में 15 करोड़ लोगों को प्रतिमाह मुफ्त में दो बार राशन दिया गया। राज्य सरकार ने भी किसानों को लागत का डेढ़ गुना एमएसपी देने के साथ ही यह तय किया कि महामारी के चलते किसी के भी रोजगार पर असर न पड़े। कोई भूखा न सोए, एक जनकल्याणकारी सरकार का यही कार्य भी होता है।

21 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि पर मिली सिंचाई की सुविधा

आपको बता दें कि यूपी में पिछले 5 सालों में हर सेक्टर में कुछ न कुछ नया हुआ है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना से पिछले पांच साल में प्रदेश में 21 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि पर सिंचाई की सुविधा मिली है। सरयू नहर परियोजना से पूर्वी उत्तर प्रदेश के 9 जिलों में अतिरिक्त भूमि पर सिंचाई सुनिश्चित हुई है। हर जिले में व्यापक स्तर पर नलकूप की स्कीम चलाने के साथ सिंचाई की सुविधा को बढ़ाने के लिए पीएम कुसुम योजना के तहत किसानों को अपने खेतों में सोलर पंप लगाने की व्यवस्था की जा रही है। तो, अगर गेहूं समेत कई फसलों के उत्पादन में हम लोग आगे बढ़े हैं तो यह सब अचानक नहीं हो गया है। यह सब एक सुनिश्चित योजना के साथ किया जा रहा था, जिसका नतीजा आज सामने दिख रहा है।
गेहूं की फसल का समय पर अच्छा प्रबंधन करके कैसे किसान अच्छी पैदावार ले सकते हैं।

गेहूं की फसल का समय पर अच्छा प्रबंधन करके कैसे किसान अच्छी पैदावार ले सकते हैं।

गेहूं जैसा कि हम जानते हैं, विश्व में सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली अनाज की फसल है। गेंहू विश्व में उत्पादन और सबसे अधिक उगाया जाता है, इसलिए गेहूं को फसलों का राजा कहा जाता है। गेहूं किसी भी अन्य अनाज की तुलना में मिट्टी और जलवायु की अधिक विविधता में खेती करने में सक्षम है और रोटी बनाने, ब्रेड बनाने, मैक्रोनी बनाने और बहुत रूप में उपयोग के लिए भी बेहतर अनुकूल है। गेहूं में एक ग्लूटेन नाम का प्रोटीन जो बेकिंग के लिए आवश्यक होता है। इसलिए ये बेकरी प्रोडक्ट्स बनने के लिए उपयोगी है। हमारे भारत में गेहूं की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। सबसे ज्यादा गेहूं की फसल की खेती उत्तरप्रदेश, हरियाणा और पंजाब में की जाती है। प्रति एकड़ की पैदावार पंजाब में सबसे अधिक है, क्योंकि पंजाब में 100% पानी आधारित खेती होती है।उत्पादन की बात की जाए तो हमें बढ़ती आबादी को देखते हुए 2025 तक गेहूं की मांग को पूरा करने के लिए 117 मिलियन टन गेहूं के उत्पादन करना होगा। इसके लिए हमें उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल करके गेहूं की पैदावार को ज्यादा करना होगा।

खरीफ की फसल की कटाई के बाद कैसे करें जमीन तैयार

खरीफ की फसल कटाई के बाद हमें अपने खेत को हैरो, कल्टीवेटर या रोटावेटर चलाकर अच्छी तरह से जोतना है ताकि भूमि में पिछली फसल के अवशेष खतम हो जाएं। इस के बाद हमें अपने खेत में गोबर की खाद डाल देनी है और, एक बार और हैरो चला देनी है जिस से गोबर की खाद मिट्टी में अच्छी तरह से मिल जाए। गेहूं की फसल बोने से पहले हमें मिट्टी में नमी भी देखनी है, अगर मिट्टी में सही नमी न हो तो हमें खेत में सिंचाई करनी चाहिए ताकि फसल की उपज अच्छी हो। गेहूं की फसल में सीड़ बेड समतल और प्लेन होना चाहिये। गेहूं की फसल में ग्रोथ के लिए 20-25 डिग्री सेल्सियस तापमान चाहिये। गेहूं की फसल के लिए काली या दोमट मिट्टी अच्छी पैदावार देती है और मिट्टी का pH मान 5-7 होना चाहिए।

पोषण व्यवस्था कैसे करें

सब से पहले हमें खेत की मिट्टी की जांच करनी है, उस के आधार पर हमें अपने खेत में पोषण तत्व देने हैं। गेहूं की फसल को 40-50 किलो नाइट्रोजन, 25-30 किलो फॉस्फोरस,15-20 किलो पोटास और 10 किलो जिंक और 10 किलो सल्फर डालने से अच्छी पैदावार होती है।

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नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फास्फोरस, पोटाश व जिंक और सल्फर की पूरी मात्रा तथा गोबर की खाद की पूरी मात्रा खेत तैयार करते समय या अंतिम जुताई के समय खेत में मिला देनी चाहिए। कई बार खड़ी फसल में जिंक की कमी दिखने पर इस का स्प्रे भी कर सकते हैं। नाइट्रोजन की शेष मात्रा को दो भागों में बांटकर पहली सिंचाई 20-25 दिन बाद एवं दूसरी 40-45 दिन के बाद प्रयोग करें।

बिजाई का उत्तम समय और बीज की मात्रा

नवंबर महीने की 15 - 25 तारीख तक बिजायी का उत्तम समय होता है। 25 नवंबर के बाद हम पछेती किस्मों की बिजाई कर सकते हैं। पछेती बिजाई पर बीज और उर्वरक की मात्रा थोड़ी ज्यादा डालनी पड़ती है, जिससे पछेती फसल की भी अच्छी पैदावार हो सकती है। एक अकड़ के लिए 40 किलो बीज पर्याप्त होता है। कम पानी वाली इलाके में 50 किलो बीज प्रति एकड़ और पछेती बिजाई पर भी 20 किलो बीज सामान्य से ज्यादा लगता है। पौधे से पौधे की दुरी 8 -10 CM होनी चाहिये और कतार से कतार की दूरी 22. 5 CM होनी चाइए। बीज 4 से 5 CM मिट्टी की गहराई में डालना चाहिए। इन नई किस्मों, जिन्हें DBW-316, DBW-55, DBW-370, DBW-371 और DBW-372 नाम दिया गया है। भारतीय कृषि परिषद की गेहूं और जौ की प्रजाति पहचान समिति द्वारा अनुमोदित किया गया है। इन किस्मो का चुनाव कर के किसान अच्छी पैदावार ले सकते है।

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सिचाई प्रबंधन

फसल में हल्की मिट्टी में करीब 6 सेंटीमीटर की गहराई तक सिंचाई करनी चाहिए। वहीं दोमट मिट्टी में करीब 8 सेंटीमीटर की गहराई तक सिंचाई करनी चाहिए। अगर हमारी जमीन में पर्याप्त जल उपलब्ध है, तो हमें फसल में 5 से 6 बार सिंचाई करनी चाहिए। सिचाई की अवधियाँ इस प्रकार हैं। पहली सिंचाई मुख्य जड़ विकास (CROWN ROOT INITATION ) - 21 -25 दिन की हो जाने पर फसल में सिंचाई करना बहुत आवश्यक है। इस स्टेज पर फसल में सिंचाई करना बहुत आवश्यक है, क्योंकि इस स्टेज के नाम से ही पता चल रहा है कि 21 दिन बाद फसल में नई जड़ का विकास होता है। अगर इस समय पर फसल को पानी नहीं मिलता है तो फसल की पैदावार बिल्कुल घट जाती है। इस लिए कई स्थानों पर जहाँ पानी की कमी है, केवल एक सिंचाई संभव है, तो किसान इस स्टेज की फसल की सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। दूसरी सिंचाई 40 -45 दिन की फसल हो जाने पर करनी चाहिए। इस समय फसल में टिलर्स बनते हैं, यानि की फसल में फुटाव होता है। तीसरी सिंचाई 60- 65 दिन पर करनी होती है। इस समय फसल पर गेहू का विकास बिंदु भूमि की सतह से ऊपर जाता है और फसल का पूर्ण विकास होता है। चोथी सिंचाई 80 -85 दिन बाद करते हैं। इस समय पर फसल में बालियाँ बननी शुरू हो जाती हैं। इस को बूट चरण भी बोलते हैं, तब शुरू होता है जब फ्लैग लीफ के अंदर बालियाँ बनने लगती हैं । दुग्ध विकास चरण 100 - 105 दिन बाद सिंचाई करते हैं। ये फूल आने के पूरा होने के बाद शुरू होता है और प्रारंभिक गठन चरण होता है। इसे अर्ली, मीडियम और लेट मिल्क में बांटा गया है। विकासशील एंडोस्पर्म एक दूधिया तरल पदार्थ के रूप में शुरू होता है, जो बाद में दाने बन जाते हैं। इस समय पर फसल में पानी देने से दाने मोटे हो जाते हैं, जिससे फसल की पैदावार बढ़ जाती है।

फसल में खरपतवार नियंत्रण

सब से पहले हमें अपने खेत का निरीक्षण करके देखना है, कि हमारे खेत में किस प्रकार के खरपतवार हैं। फिर उस आधार पर हमें दवा का छिड़काव करना है। डोज के आधार पर ही हमें खेत में दवा का छिड़काव करना है। रेकमेंडेड डोज से ज्यादा अगर किसी भी खरपतवार नाशी का प्रयोग किया जाये तो वो फसल को भी जला सकते हैं।

संकरी पत्ती वाले खरपतवार

मंडूसी अथवा गुल्ली डंडा अथवा गेहूं का मामा खरपतवार और जंगली जई को मारने के लिए खरपतवार नासी स्ल्फोसफल्फ्यूरान या क्लोनिडाफाप प्रोपेरजिल 15 प्रतिशत डब्ल्यूपी 400 ग्राम प्रति एकड़ को पानी में घोलकर छिड़काव करें। मेटासुलफूरों 2 किलो डब्ल्यूपी का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार

बथुआ, जंगली पालक, मोथा के लिए टू फोर डी सोडियम साल्ट 80 प्रतिशत दवा आती है। 250 एमएल दवा एक एकड़ एवं 625 एमएल प्रति हैक्टेयर के लिए उपोग मे लाएं। पानी में मिलाकर 400 से 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करने से तीन दिन में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार मर जाते हैं। टू फोर डी ईस्टर साल्ट का प्रयोग भी फसल के 30 - 35 दिन बाद की हो जाने पर करना चाहिये नहीं तो फसल में ग्रेन मलफोर्मेशन की दिक्क्त आ सकती है।

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फसल में रोग प्रबंधन

पूर्ण रतुआ /भूरा रतुआ रोग का पहला लक्षण पत्तियों पर अनियमित रूप से सूक्ष्म, गोल, नारंगी छोटे छोटे गोल दभ्भे का दिखना है। पत्तियों में गंभीर जंग लगने से उपज में कमी आती है, रोग आमतौर पर जनवरी के दूसरे पखवाड़े या फरवरी के पहले सप्ताह में प्रकट होता है। रोग इष्टतम 15-2oC के साथ 2-35oC के तापमान रेंज में दिखायी दे सकता है।

धारीदार रतुआ या पीला रतुआ

रोग मुख्य रूप से पत्तियों पर दिखायी देता है, हालांकि पत्ती के आवरण, डंठल और बालियां भी प्रभावित हो सकती हैं। नींबू के पीले रंग के छोटे-छोटे दाने लंबी पंक्तियों में व्यवस्थित होते हैं, जो धारियों का पैटर्न देते हैं। जो पर्यावरणीय परिस्थितियों के आधार पर दिसंबर या मध्य जनवरी के अंतिम सप्ताह में दिखायी देते हैं। बाद के चरणों में पत्तियों की निचली सतह पर फीकी काली धारियाँ बन जाती हैं। प्रभावित पौधों में दाने हल्के और सिकुड़े हुए हो जाते हैं, जिससे उपज में भारी कमी आती है।

काला रतुआ

रतुआ संक्रमण का पहला लक्षण पत्तियों, पर्णच्छदों, कल्मों और फूलों की संरचनाओं का छिलना है। ये धब्बे जल्द ही आयताकार, लाल-भूरे रंग के रूप में विकसित हो जाते हैं। जब बड़ी संख्या में स्पोर्स फटते हैं और अपने बीजाणु छोड़ते हैं, तो पूरी पत्ती का ब्लेड और अन्य प्रभावित हिस्से दूर से भी भूरे रंग के दिखाई देंगे।

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तीनों रतुआ का उपाय :

  • देर से बुआई करने से बचें।
  • नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों का संतुलित प्रयोग करें।
  • प्लांटवैक्स @ 0.1% के साथ बीज ड्रेसिंग के बाद एक ही रसायन के साथ दो छिड़काव।
  • 15 दिनों के अंतराल पर जिनेब @ 0.25% या मैनकोजेब @ 0.25% या प्लांटावैक्स @ 0.1% के साथ दो या तीन बार छिड़काव करें।
  • रोग के लक्षण दिखाई देते ही 200 मिली. प्रोपीकोनेजोल 25 ई.सी. या पायराक्लोट्ररोबिन प्रति लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।
  • रोग के प्रकोप और फैलाव को देखते हुए दूसरा छिड़काव 10-15 दिन के अंतराल में करें।

करनाल बंट

खेत में करनाल बंट के लक्षणों को पहचानना अक्सर मुश्किल होता है, क्योंकि किसी दिए गए सिर पर संक्रमित गुठली की घटना कम होती है। लक्षण कटाई के बाद बीज पर सबसे आसानी से पाए जाते हैं।

लूज स्मट

यह रोग आंतरिक रूप से संक्रमित बीज से पैदा होता है तथा संक्रमित बीज ऊपर से देखने में बिल्कुल स्वस्थ बीजों की तरह ही दिखाई देता है। इस रोग से प्रति वर्ष उत्तर भारत में गेहूं की उपज में 1-2 प्रतिशत की हानि होती है। बुवाई से पहले बीज को वीटावैक्स 2 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचारित करें। संक्रमित कानों को मिट्टी के अंदर दबा दें |