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बकरियों पर पड़ रहे लंपी वायरस के प्रभाव को इस तरह रोकें

बकरियों पर पड़ रहे लंपी वायरस के प्रभाव को इस तरह रोकें

लंपी वायरस एक संक्रामक रोग है। यह पशुओं के लार के माध्यम से फैलता है। लंपी वायरस गाय बकरी आदि जैसे दूध देने वाले पशुओं पर प्रकोप ड़ालता है। इस वायरस के प्रकोप से बकरियों के शरीर पर गहरी गांठें हो जाती हैं। साथ ही, यह बड़ी होकर घाव के स्वरूप में परिवर्तित हो जाती हैं। इसको सामान्य भाषा में गांठदार त्वचा रोग के नाम से भी जाना जाता है। बकरियों के अंदर यह बीमारी होने से उनका वजन काफी घटने लगता है। सिर्फ यही नहीं बकरियों के दूध देने की क्षमता भी कम होनी शुरू हो जाती है। 

लंपी वायरस के क्या-क्या लक्षण होते हैं

इस रोग की वजह से बकरियों को बुखार आना शुरू हो जाता है। आंखों से पानी निकलना, लार बहना, शरीर पर गांठें आना, पशु का वजन कम होना, भूख न लगना एवं शरीर पर घाव बनना इत्यादि जैसे लक्षण होते हैं। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि लंपी रोग केवल जानवरों में होता है। यह लंपी वायरस गोटपॉक्स एवं शिपपॉक्स फैमिली का होता है। इन कीड़ों में खून चूसने की क्षमता काफी अधिक होती है।

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लंपी वायरस से बकरियों के शरीर पर क्या प्रभाव पड़ेगा

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इस वायरस की चपेट में आने के पश्चात बकरियों में इसका संक्रमण 14 दिन के अंदर दिखने लगता है। जानवर को तीव्र बुखार, शरीर पर गहरे धब्बे एवं खून में थक्के पड़ने लगते हैं। इस वजह से बकरियों का वजन कम होने लग जाता है। साथ ही, इनकी दूध देने की क्षमता भी काफी कम होने लगती है। दरअसल, इसके साथ-साथ पशु के मुंह से लार आनी शुरू हो जाती है। गर्भवती बकरियों का गर्भपात होने का भी खतरा बढ़ जाता है। 

लंपी वायरस की शुरुआत किस देश से हुई है

विश्व में पहली बार लंपी वायरस को अफ्रीका महाद्वीप के जाम्बिया देश के अंदर पाया गया था। हाल ही में यह पहली बार 2019 में चीन में सामने आया था। भारत में भी यह 2019 में ही आया था। भारत में पिछले दो सालों से इसके काफी सारे मामले सामने आ रहे हैं। 

बकरियों का दूध पीयें या नहीं

लंपी वायरस मच्छर, मक्खी, दूषित भोजन एवं संक्रमित पाशुओं के लार के माध्यम से ही फैलता है। इस वायरस को लेकर लोगों के भीतर यह भय व्याप्त हो गया है, कि क्या इस वायरस से पीड़ित पशुओं के दूध का सेवन करना चाहिए अथवा नहीं करना चाहिए। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि पशुओं के दूध का उपयोग किया जा सकता है। परंतु, आपको दूध को काफी अच्छी तरह से उबाल लेना चाहिए। इससे दूध में विघमान वायरस पूर्णतय समाप्त हो जाए।

किसानों की आय बढ़ाने का फॉर्मूला लेकर आई हरियाणा सरकार, किया 100 करोड़ का निवेश

किसानों की आय बढ़ाने का फॉर्मूला लेकर आई हरियाणा सरकार, किया 100 करोड़ का निवेश

गत वर्ष किसान आंदोलन ने केंद्र सरकार को हिला दिया था। वजह साफ थी कि किसान अपनी आय को लेकर बेहद परेशान है और वह MSP को किसी हाल में नहीं छोड़ना चाहता। लेकिन इससे भी जरूरी बात है कि किसानों की आय दूसरे स्रोतों से बढ़े। इन्हीं चीज़ों को ध्यान में रखते हुए हरियाणा सरकार ने घोषणा की है कि वे अब पारंपरिक फसलों के मुकाबले बागवानी फसलों की तरफ अपना रुख कर रहे हैं। इस कदम का मकसद किसानों की आमदनी बढ़ाना है।


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प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर का कहना है कि प्रदेश में किसानों के बीच बागवानी और पशुपालन पहले के मुकाबले बढ़ा है और आने वाले दिनों में इसे और बढ़ाने का लक्ष्य है। बागवानी को तरजीह देने की वजह फसल विविधीकरण नीति को बताया गया है। इस नीति के अंतर्गत फसलों के लिए जमीन हमेशा बेहतर बनी रहेगी। मौजूदा समय में हरियाणा की 7 प्रतिशत कृषि भूमि पर बागवानी होती है। साल 2030 तक बागवानी का प्रतिशत 30 तक करने की संभावनाएं हैं। इसके लिए सरकार ने 14 सेंटर ऑफ एक्सिलेंस बनाए हैं जो बागवानी में इस्तेमाल होने वाली नवीनतम टेक्नॉलजी के बारे में जानकारी देगी। इसमें निवेश की बात करें तो अब तक 100 करोड़ से ज्यादा की राशि सरकार इन्वेस्ट कर चुकी है। इसके अलावा सरकार ने पशुपालन को भी बढ़ावा दिया है। मुख्यमंत्री का कहना है कि वे दूध के उत्पादन में हरियाणा को नंबर 1 बनाना चाहते हैं।


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प्रदेश के पशुओं में इस समय लंपी बीमारी का प्रकोप (Lumpy Skin disease) बढ़ा है जिसके चलते पशुपालक खासे परेशान हैं। लेकिन इसको लेकर सरकार किसानों के साथ खड़ी है और सरकार ने कहा है कि वे 20 लाख पशुओं का वैक्सिनेशन कराएंगे। अभी उनके पास 3 लाख वैक्सीन उपलब्ध हैं जबकि 17 लाख वैक्सीन का ऑर्डर किया गया है। हाल ही में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने पशुपालन और बागवानी के दो नए केंद्रों को लॉन्च किया है।


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ये अनुसंधान केंद्र खरकड़ी में हैं जिनके नाम क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र व पशुविज्ञान केंद्र हैं। गौर करने वाली बात है कि इन केंद्रों को बनाने के लिए ग्राम पंचायत खरकड़ी ने 120 एकड़ जमीन दी है। इन केंद्रो को बनने में 39 करोड़ रुपये लगेंगे और पूरा प्रोजेक्ट 2 सालों में बनकर तैयार हो जाएगा। इन केंद्रों में आपको देश विदेश की सब्जियों, फलों, औषधीय और सुगंधित पौधों, मसालों की वैराइटी से संबंधित हर चीज उपलब्ध होगी। आप सोच रहे होंगे कि आखिर इन केंद्रों से आपको क्या फायदा होगा, तो आपको बता दें इन केंद्रों में बागवानी फसलों की सबसे बेहतरीन किस्मों का विकास किया जाएगा जो कीटों को लगने नहीं देंगी और फसलों का विकास बेहतरीन ढंग से होगा। साथ ही किसान यहां से बढ़िया क्वालिटी वाले पौधे व बीज ले सकेंगे जिससे उन्हें फसलों में फायदा होगा। साथ ही नई तकनीक को बढ़ाने में भी काम होगा।
लंपी स्किन बीमारी को लेकर राजस्थान सरकार ने कसी कमर, भर्ती होंगे अस्थाई डॉक्टर

लंपी स्किन बीमारी को लेकर राजस्थान सरकार ने कसी कमर, भर्ती होंगे अस्थाई डॉक्टर

लंपी स्किन बीमारी जिस तरह से पूरे देश में कहर बरपा रही है, उसे देखते हुए राज्य सरकारें तुरफ फुरत में फैसले ले रही हैं ताकि इस जानलेवा बीमारी से पशुओं को बचाया जा सके। पिछले दिनों राजस्थान और हरियाणा सरकार ने अपने-अपने राज्यों में वैक्सिनेशन की प्रक्रिया तेज कर दी थी। लेकिन जिस तरह से मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, उन्हें और बेहतर तरीके से नियंत्रण करने के लिए राजस्थान सरकार ने एक और महत्वपूर्ण फैसला लिया है। दरअसल, इस काम को मिशन मोड में खत्म करने के लिए राजस्थान सरकार ने 200 डॉक्टरों की अस्थायी तौर पर भर्ती करने का फैसला लिया है। ये डॉक्टर मवेशियों के टीकाकरण में तेजी लाने में अहम भूमिका निभाएंगे।


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इस बात की जानकारी राजस्थान के पशुपालन मंत्री लालचन्द कटारिया ने दी है। उन्होंने कहा है कि राज्य सरकार पशुओं को इस रोग से निजात दिलाने के लिए सभी तरह के प्रयास कर रही है। यही वजह है कि जिस क्षेत्र में ज्यादा रोगों की जानकारी मालूम पड़ रही है, वहां के लिए अस्थायी डॉक्टर नियुक्त किए गए हैं ताकि रोगों के मामलों में रोकथाम लाई जा सके। साथ उन्होंने कहा कि डॉक्टरों को और मुस्तैदी से काम करने की जरूरत है ताकि पशुपालकों का किसी तरह कोई नुकसान न हो। उन्होंने कहा कि राजस्थान में जब भी इस तरह की आपदा आती है, तो स्वयंसेवी संस्थाओं से लेकर समाज के लोगों का खूब सहयोग मिलता है। प्राप्त जानकारी के अनुसार अभी तक राज्य में करीब ढाई लाख पशुओं को वैक्सीन लगाई जा चुकी हैं। डॉक्टर भर्ती के बारे में विस्तार से बताते हुए पशुपालन मंत्री लालचंद कटारिया ने कहा कि राज्य में पशुओं की बेहतरी को देखते हुए 1 हजार 436 पशुध सहायकों की भर्ती की जाएगी। इसके अलावा तत्काल अस्थायी आधार पर 300 पशुधन सहायक होंगे। साथ ही 200 वेटरनरी डॉक्टर अस्थायी तौर पर भर्ती किए जाएंगे।


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मौजूदा हालातों को देखते हुए सभी पशु विभाग के दफ्तरों को छुट्टी के दिनों में भी खुले रहने के आदेश जारी कर दिए गए हैं, ताकि छुट्टी के दिन भी किस तरह की दिक्कत होने पर पशुओं के मालिक डॉक्टरों से संपर्क कर सकें। साथ ही कहा गया है कि इस बीमारी के बारे में हर गांव को जागरूक किया जाए। साथ ही अधिकारियों को कहा गया है कि हर रोज प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करें, ताकि हर तरह की समस्या को हल किया जा सके।


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साथ ही अधिकारियों को कहा गया है कि वे गौशाला वालों को बोलें कि पशुओं के आस-पास जितनी हो सके सफाई रखें, क्योंकि वातावरण अशुद्ध होने की वजह से यह बीमारी ज्यादा फैलती है। प्रदेश में अब तक सबसे ज्यादा संक्रमित पशु जोधपुर से सामने आए हैं, जहां इसकी संख्या 1 लाख के करीब है और करीब 2800 पशुओं की मौत हो चुकी है। ऐसे में ज्यादा प्रभावित जिलों पर प्रशासन ज्यादा ध्यान दे रहा है।
दिल्ली सरकार ने की लम्पी वायरस से निपटने की तैयारी, वैक्सीन खरीदने का आर्डर देगी सरकार

दिल्ली सरकार ने की लम्पी वायरस से निपटने की तैयारी, वैक्सीन खरीदने का आर्डर देगी सरकार

देश में लम्पी वायरस ( Lumpy Virus ) कहर मचा रहा है। इस बीमारी के कारण देश में अब तक लाखों मवेशी मारे जा चुके हैं। लम्पी वायरस का सबसे ज्यादा कहर राजस्थान में देखने को मिला है, जहां पर इस वायरस की वजह से रातों रात लाखों गायों ने दम तोड़ दिया। इसके साथ ही राजस्थान की सीमा से लगने वाले राज्यों में भी इस वायरस का प्रकोप देखा जा रहा है। इस वायरस ने दिल्ली को भी अपनी चपेट में ले लिया है, जिससे दिल्ली के किसान बेहद चिंतित हैं। इसके समाधान के लिए अब दिल्ली सरकार ने पहल शुरू कर दी है। इसके तहत दिल्ली सरकार 60 हजार गोट पॉक्स वैक्सीन ( Goat Pox Vaccine ) खरीदने जा रही है। इसकी जानकारी दिल्ली सरकार में कैबिनेट मंत्री गोपाल राय ने दी थी। उन्होंने बताया कि लम्पी वायरस दिल्ली में तेजी से फ़ैल रहा है। अभी तक दिली में इस वायरस के 173 मामले दर्ज किये जा चुके हैं जो बेहद चिंता का विषय है। दिल्ली में लम्पी वायरस के सभी मामले दक्षिण-पश्चिम दिल्ली से सामने आये हैं जहां इस वायरस का प्रकोप दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। सरकारी पशु चिकित्स्कों के साथ दिल्ली सरकार की टीम ने गोयला डेयरी, घुम्मनहेड़ा, नजफगढ और रेवला खानपुर इलाके से लम्पी वायरस के ये मामले दर्ज किये हैं। इन इलाकों में बहुत सारी गौशालाएं मौजूद हैं जहां पर हजारों की तादाद में गायें रहती हैं।


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दिल्ली सरकार में कैबिनेट मंत्री गोपाल राय ने बताया कि दिल्ली में लगभग 80 हजार गायें हैं। इस हिसाब से सरकार ने कैलकुलेशन करके 60 हजार गोट पॉक्स वैक्सीन खरीदने की योजना बनाई है। ताकि जल्द से जल्द राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की गायों को लम्पी वायरस से सुरक्षित किया जा सके। गोपाल राय ने बताया कि वैक्सीन खरीददारी अपने अंतिम दौर में है और दवा कम्पनी की तरफ से जल्द से जल्द दिल्ली सरकार को वैक्सीन उपलब्ध करवा दी जाएंगी। गोपाल राय ने बताया कि सरकार इस वायरस से निपटने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। इसके तहत दिल्ली सरकार ने वायरस की रोकथाम में के लिए सैम्पल लेने प्रारम्भ कर दिए हैं और सैम्पलों की जांच जल्दी से जल्दी की जा रही है ताकि समय रहते गायों में वायरस का पता लगाया जा सके। इसके लिए सरकार ने वायरस के नमूने इकट्ठे करने के लिए दो मोबाइल पशु चिकित्सालय भी तैनात किए हैं जो जगह-जगह पर जाकर पशुओं से सैंपल एकत्रित करके जांच के लिए भेज रहे हैं। इसके साथ ही सरकार ने वायरस से निपटने के लिए ग्यारह रैपिड रिस्पांस टीमों का गठन किया है। साथ ही कई अन्य लोगों को नियुक्त किया है जो समूह में जाकर गौ पालकों को लम्पी वायरस से होने वाले नुकसान के बारे में जागरुक करेंगे। गोपाल राय ने बताया कि सरकार ने इस बीमारी से सम्बंधित गौ पालकों और किसानों की समस्याओं को सुनने के लिए एक हेल्पलाइन नंबर भी जारी किया है। किसान 8287848586 में फ़ोन करके वायरस से सम्बंधित अपनी शंकाओं का समाधान कर सकते हैं। इसके लिए सरकार ने एक अलग से कार्यालय बनाया है जहां पर इसका कॉल सेंटर स्थापित किया गया है।


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पशुओं में फैलने वाला यह लम्पी रोग देश के कई राज्यों में तेजी से पैर पसार रहा है। अभी तक देश के 12 से अधिक राज्यों में 15 लाख से ज्यादा पशु इस रोग से संक्रमित हो चुके हैं। साथ ही हजारों पशुओं की इस वायरस की वजह से मौत हो चुकी है। इसका कहर मुख्यतः राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश और दिल्ली में देखने को मिल रहा है। हालांकि कई प्रदेशों की सरकारों ने वैक्सीनेशन की रफ़्तार तेज करके इस रोग पर काबू पाने का भरसक प्रयास किया है। फिलहाल सबसे ज्यादा वैक्सीनेशन राजस्थान में किया जा रहा है क्योंकि इस वायरस की वजह से राजस्थान सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य है।

क्या है लम्पी वायरस और यह कैसे फैलता है ?

विशेषज्ञों ने बताया है कि लम्पी वायरस एक त्वचा रोग है। यह पशुओं के बीच तेजी से फैलता है। इस वायरस के माध्यम से स्वस्थ्य पशु, संक्रमित पशु के संपर्क में आने के बाद तुरंत ही संक्रमित हो जाता है। इसके अलावा यह वायरस मच्छरों, मक्खियों, जूं और ततैया के माध्यम से भी फैलता है, क्योंकि इनकी वजह से स्वस्थ्य पशुओं का बीमार पशुओं के साथ संपर्क स्थापित हो जाता है। इसके अलावा यह वायरस पशुओं के एक ही पात्र में पानी पीने से भी तेजी से फैलता है। इस वायरस से संक्रमित होने के बाद मवेशियों में तेज बुखार, आंखों से पानी आना, नाक से पानी निकलना, त्वचा की गांठें और दुग्ध उत्पादन में कमी हो जाना जैसे लक्षण आसानी से देखे जा सकते हैं जो बेहद चिंता का विषय है, क्योंकि इस वायरस से संक्रमित होने के बाद पशु बहुत जल्दी दम तोड़ देते हैं।


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लम्पी वायरस के बढ़ते प्रकोप के कारण देश में हजारों मवेशी प्रतिदिन मारे जा रहे हैं, जिससे देश में जानवरों की कमी हो सकती है। इसका सीधा असर देश में दुग्ध उत्पादन पर पड़ेगा। अगर ऐसा ही चलता रहा तो कुछ दिनों बाद भारत में दूध की कमी महसूस की जाने लगेगी, जो सरकार के लिए एक नया सिरदर्द साबित हो सकती है। क्योंकि दुग्ध उत्पादन में कमी के बाद दूध के दामों में तेजी से बढ़ोत्तरी संभव है और यह बाजार में ग्राहकों को प्रभावित करेगी।
आने वाले दिनों में ऐसा रहेगा आगरा का मौसम, कुछ महत्वपूर्ण सलाहें

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कृषि विज्ञान केन्द्र बिचपुरी आगरा को भारत मौसम विज्ञान विभाग नई दिल्ली से प्राप्त मौसम के पूर्वानुमान के आधार पर आगामी पांच दिनों में बादल न रहने व वर्षा नहीं होने का अनुमान है। हवा लगभग 4.2 से 10.7 किमी प्रतिघंटा की औसत गति से मुख्यतः पूरव - उत्तर से पश्चिम - उत्तर से बहने की संभावना है। अधिकतम तापमान 26.9 से 30.2 व न्यूनतम तापमान 11.7 से 14.7 डिग्री सेल्सियस के लगभग रहने की संभावना है। आपेक्षिक आर्द्रता सुबह 33 से 46 व शाम को 18 से 24 प्रतिशत के बीच रहने का अनुमान है।


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किसानों को सलाह है, कि खरीफ फसलों (धान) के बचे हुए अवशेषों (पराली) को ना जलाऐं। क्योंकि इससे वातावरण में प्रदूषण होता है, जिससे स्वास्थय सम्बन्धी बीमारियों की संभावना बढ जाती है। इस कारण फसलों की उत्पादकता व गुणवत्ता प्रभावित होती है। किसानों को सलाह है, कि धान के बचे हुए अवशेषों (पराली) को जमीन में मिला दें। इससे मृदा की उर्वरकता बढ़ती है, साथ ही यह पलवार का भी काम करती है। धान के अवशेषों को सड़ाने के लिए पूसा डीकंपोजर कैप्सूल का उपयोग @ 4 कैप्सूल/हैक्टेयर किया जा सकता है। किसानों को सलाह दी जाती है, कि वह स्थानीय कृषि रसायन विक्रेताओं की सलाह पर कृषि कार्य ना करें कृषि विज्ञान केंद्र से सलाह लेकर ही कृषि कार्य करें।

फसल सम्बंधित महत्वपूर्ण सलाहें

गेंहू की बुवाई हेतू खाली खेतों को तैयार करें तथा उन्नत बीज व खाद की व्यवस्था करें। उन्नत प्रजातियाँ-सिंचित परिस्थिति- (एच. डी. 3226), (एच. डी. 2967), (एच. डी. 3086), (एच. डी. 2851)। बीज की मात्रा 100 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर। जिन खेतों में दीमक का प्रकोप हो तो क्लोरपाईरिफाँस 20 ईसी @ 5 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से पलेवा के साथ दें। नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश उर्वरकों की मात्रा 120, 50 व 40 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर होनी चाहिये।


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बरसीम की बुवाई के लिए खेत की तैयारी करें। बुवाई का समय मध्य अक्टूबर से मध्य नवंबर तक उचित रहता है, प्रजातियां- वरदान, मेस्कावी, J.H.B-146, J.H.T.B-146. बीज दर: प्रति हैक्टेयर 25-30 किग्रा० बीज बोते है। पहली कटाई मे चारा की उपज अधिक लेने के लिए 1 किग्रा० /हे० चारे वाली टा -9 सरसों का बीज बरसीन में मिलाकर बोना चाहियें। उर्वरक: 20 किग्रा० नत्रजन एंव 80 किग्रा० फास्फोरस प्रति हैक्टेयर की दर से बोते समय खेत में छिड़क कर मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें।

बागवानी (अमरुद) सम्बंधित सलाह

अमरूद में शीत ऋतु के फल बन चुके हैं। आवश्यकता आधारित सिंचाई के माध्यम से मिट्टी में उचित नमी बनाए रखें। कलम के नीचे से निकल रहे कल्लों को तोड़ते रहें। वृक्ष के थाले को खरपतवार मुक्त रखें। यदि ड्रिप प्रणाली से उर्वरकोंका कों प्रयोग किया जा रहा है, तो पानी में घुलनशील उर्वरकों को 7 दिनों के अंतराल पर प्रयोग करें। इस स्तर पर, फलों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए पोटेशियम का प्रयोग महत्वपूर्ण है।

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पशु सम्बंधित सलाह

किसान भाइयो लम्पी स्किन रोग की रोकथाम के लिए जनपद में "गोट पॉक्स वैक्सीन" उपलब्ध है। स्वस्थ पशु का वैक्सीनेसन कराएं। रोग से प्रभावित पशु को देखते ही नजदीकी पशुचिकित्सक को सूचना दें। लंपी स्किन रोग का घरेलू उपचार-1 kg नीम की पत्तियों को 4 लीटर पानी मे हल्की आग पर उबालें और जब पानी आधा रह जाये तब उसे ठंडा करके छान लें, और रोग से प्रभावित पशु के शरीर को शूती कपड़े से पोछदें। यह प्रक्रिया पशु के ठीक होने तक करते रहें।
इस राज्य में विगत 15 दिनों में लंपी से 7 हजार पशुओं की हुई मृत्यु

इस राज्य में विगत 15 दिनों में लंपी से 7 हजार पशुओं की हुई मृत्यु

महाराष्ट्र राज्य में लंपी स्किन डिजीज (Lumpy skin disease) ने फिर से दस्तक दे दी है, विगत कुछ दिनों में ७ हजार पशुओं की मृत्यु हो चुकी है। प्रदेश में वर्तमान में ९९ फीसद टीकाकरण का कार्य संपन्न हो गया है। प्रदेश में लंपी स्किन डिजीज की तबाही में कोई कमी नहीं आ रही है। विगत १५ दिनों में ७ हजार से ज्यादा पशुओं की मृत्यु चिंता का विषय है। साथ ही, सरकार का कहना है, कि प्रदेश में ९९.७९ फीसदी टीकाकरण का कार्य संपन्न हो गया है, परंतु इसके उपरांत भी लंपी त्वचा रोग नियंत्रण में नहीं आ पा रहा है। लंपी स्किन डिजीज के बढ़ते संक्रमण से पशुपालक बेहद चिंतित हैं। पशुपालन विभाग इस रोग के रोकथाम का दावा कर रहा है, लेकिन मृत पशुओं की तादाद में बढ़ोत्तरी हुई है। बतादें कि, लंपी स्किन डिजीज उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हरियाणा में दस्तक देने के उपरांत सितंबर माह में महाराष्ट्र में आया था। इस रोग का संक्रमण शुरुआत में प्रदेश के १२ जनपदों में था, उसके बाद २४ फिलहाल प्रदेश के तकरीबन समस्त ३५ जनपदों के पशुपालकों में लंपी स्किन रोग के मामले देखने को मिल रहे हैं। नगर, जलगांव, बुलढाणा, अमरावती, अकोला आदि जिले सर्वाधिक प्रभावित माने जा रहे हैं। किसानों ने बताया है, कि दुग्ध उत्पादन में भी गिरावट आयी है।


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किन जनपदों में अनुदान दिया जायेगा

पशुपालन आयुक्तालय के मुताबिक, कुल ३९०८ संक्रमण केंद्रों में लंपी स्किन डिजीज के मामले आए हैं। मध्य सितंबर माह के समय ८९ पशुओं की मृत्यु हुई थी। साथ ही, अब ७५ दिनों के उपरांत प्रदेश में २३ हजार ४९३ पशुओं को लंपी रोग ने मौत के हवाले कर दिया है। पशुपालन आयुक्तालय ने बताया है, कि १० हजार ४५५ पशुपालकों को मरे हुए पशुओं की हानि के मुआवजे के तौर पर २६ करोड़ ६१ लाख रुपये प्रदान किये गए हैं। सर्वाधिक १ हजार ४०३ पशुधन को अमरावती में ३ करोड़ ६५ लाख ६५ हजार रुपये, बुलढाणा जिले में १ हजार २३०, जलगांव जिले में ३ करोड़ १८ लाख १३ हजार रुपये की सहायता दी गई है।


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कितना हुआ टीकाकरण

महाराष्ट्र में ३ लाख ३६ हजार ९५८ रोगग्रस्त मवेशिओं में से २ लाख ५५ हजार ५३५ पशु अब तक उपचारोपरांत स्वस्थ हो चुके हैं। साथ ही, इसके अतिरिक्त भी रोगग्रसित मवेशियों का उपचार किया जा रहा है। प्रदेश के विभिन्न जनपदों में अबतक कुल १ करोड़ ४४ लाख १२ हजार से ज्यादा वैक्सीन की खुराक उपलब्ध की जा चुकी है। उसमें से १ करोड़ ३९ लाख २३ हजार निःशुल्क टीकाकरण किया जा चुका है। यह आंकड़ा तकरीबन ९९.७९ प्रतिशत है, व्यक्तिगत चरवाहे, निजी संस्थान, सहकारी दुग्ध संघ सभी इस टीकाकरण के अंतर्गत आते हैं।
इस राज्य के एक गांव में आज तक नहीं जलाई गयी पराली बल्कि कर रहे आमदनी

इस राज्य के एक गांव में आज तक नहीं जलाई गयी पराली बल्कि कर रहे आमदनी

बीते खरीफ सीजन की कटाई के दौरान जलने वाली पराली से जनता का सांस तक लेने में दिक्क्त पैदा करदी थी। परंतु फिर भी एक गांव में एक भी पराली नहीं  जलाई गयी थी। बल्कि इस गांव में पराली द्वारा बहुत सारी समस्याओं का निराकरण किया गया है। अक्टूबर-नवंबर माह के दौरान खरीफ फसलों की कटाई उपरांत देश में पराली जलाने की परेशानी चिंता का विषय बन जाती है। यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा एवं पंजाब से लेकर के बहुत सारे गांव में किसान धान काटने के उपरांत बचे-कुचे अवशेष को आग के हवाले कर देते हैं, इस वजह से बड़े स्तर पर पर्यावरण प्रदूषित होता है। यह धुआं हवा में उड़ते हुए   शहरों में पहुंच जाता है एवं लोगों के स्वास्थ्य पर अपना काफी प्रभाव डालता है। साथ ही, खेत में अवशेष जलने की वजह से खेती की उर्वरक ताकत कम हो जाती है। इन समस्त बातों से किसानों में सजगता एवं जागरुकता लाई जाती है, इतना करने के बाद भी बहुत सारे किसान मजबूरी के चलते पराली में आग लगा देते हैं। अब हम बात करेंगे उस गांव के विषय में, जहां पर पराली जलाने का एक भी मामला देखने को नहीं मिला है। इस गांव में किसान पूर्व से ही सजग एवं जागरूक हैं एवं खुद से कृषि से उत्पन्न फसल अवशेषों को जलाने की जगह पशुओं के चारे एवं मल्चिंग खेती में प्रयोग करते हैं। इसकी सहायता से गांव में ना तो पशु चारे का कोई खतरा होता है एवं ना ही प्रदूषण, साथ ही, पशुओं के दुग्ध के और फसल की पैदावार भी बढ़ जाती है। किसानों को बेहतर आय अर्जन में बेहद सहायता मिलती है।

किसानों की पहल काबिले तारीफ है

किसान तक की खबर के अनुसार, झारखंड राज्य भी धान का एक प्रमुख उत्पादक राज्य माना जाता है। झारखंड के किसानों द्वारा भी खरीफ सीजन में धान का उत्पादन करते हैं। परंतु इस राज्य में पराली जलाने के अत्यधिक कम मामले देखने को मिले हैं। यहाँ बहुत से गांवों में बहुत वर्षों से पराली जलाने की एक भी घटना नहीं हुई है। अब यह किसानों की समझदारी और जागरुकता का परिचय देती है। खबरों के मुताबिक, झारखंड राज्य के अधिकाँश किसानों द्वारा धान की कटाई-छंटाई हेतु थ्रेसिंग उपकरणों का प्रयोग किया गया है। इसके उपरांत पराली को खेत में ही रहने दिया जाता है, जिससे कि यह मृदा में गलने के बाद खाद में तब्दील हो जाए अथवा सब्जी की खेती हेतु मल्चिंग के रूप में पराली का समुचित प्रयोग किया जा सके। हालांकि, कई सारे किसान इस पराली को घर भी उठा ले जाते हैं।

पराली से बनाया जा रहा है पशु चारा

बतादें, कि केवल झारखंड के गांव ही नहीं बल्कि देश में बहुत सारे गांव ऐसे हैं, जिन्होंने शून्य व्यर्थ नीति को अपनाया है। मतलब कि, फसल अवशेषों में आग नहीं लगाई जाती है, बल्कि उसको पशुओं के चारे हेतु तथा पुनः खेती में ही प्रयोग किया जाता है। बहुत सारे गांव में इस पराली द्वारा पशुओं हेतु सूखा चारा निर्मित किया जाता है, जिसको भुसी अथवा कुटी के नाम से जाना जाता है।


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पराली से निर्मित चारे में मवेशियों के लिए काफी पोषक तत्व एवं देसी आहार विघमान होते हैं, जिससे कि पशु भी चुस्त दुरुस्त व स्वस्थ रहते हैं। साथ ही, बेहतर दूध भी प्राप्त हो पायेगा। भारत में चारे की बढ़ती कीमतों की सबसे मुख्य वजह यह है, कि जिस पराली को पूर्व में पश चारे के रूप में उपयोग किया जाता था।  विडंबना की बात यह है, कि आज पराली को जला दिया जाता है। बहुत सारे स्थानों पर पशुपालन की जगह मशीनों का उपयोग बढ़ रहा है, इस वजह से चारे और दूध दोनों के दाम बढ़ रहे हैं । विशेषज्ञों का कहना है, कि बहुत सारे गांव में लंपी के बढ़ते संक्रमण के मध्य पशुपालन में बेहद कमी देखने को मिली है। फिलहाल, चारे को खाने के लिए पशु ही नहीं होंगे, तो पराली भी किसी कार्य की नहीं है। इसलिए ही किसान पराली को आग लगा देते हैं, हालाँकि किसान यदि चाहें तो अन्य राज्यों में अथवा अन्य चारा निर्माण करने वाली इकाइयों को पराली विक्रय कर आय कर सकते हैं।

पराली से इस प्रकार होती है आमदनी

झारखंड राज्य में रहने वाले किसान रामहरी उरांव का कहना है, कि पूर्व में किसान पारंपरिक तौर से कृषि करते थे। फसल कटाई के उपरांत जो अवशेष बचते थे, उसे पशुओं को चारे के रूप में खिलाया जाता था। खेत में ही इन अवशेषों को सड़ाकर खाद में तब्दील किया जाता था। उनका कहना है, कि वर्तमान में भी उनके गांव में पराली से पशुओं हेतु कुटी निर्मित की जाती है, जिसमें चोकर इत्यादि का मिश्रण कर पशुओं को खिलाते हैं। बहुत सारे किसान फसल अवशेषों को मल्चिंग के रूप में उपयोग करते हैं। यह पूर्णतया पर्यावरण के अनुकूल एवं जैविक है, जिसे खेत में फैलाने से मृदा को बहुत सारे लाभ अर्जित होते हैं। इसी वजह से बहुत सारे किसान पराली को जलाने की जगह फसल की पैदावार में वृद्धि हेतु खेती में प्रयोग करते हैं।