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घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां (Summer herbs to grow at home in hindi)

घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां (Summer herbs to grow at home in hindi)

दोस्तों, आज हम बात करेंगे जड़ी बूटियों के विषय में ऐसी जड़ी बूटियां जो ग्रीष्मकालीन में उगाई जाती है और इन जड़ी बूटियों से हम विभिन्न विभिन्न प्रकार से लाभ उठा सकते हैं। यह जड़ी बूटियों को हम अपने घर पर उगा सकते हैं, यह जड़ी बूटियां कौन-कौन सी हैं जिन्हें आप घर पर उगा सकते हैं, इसकी पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहें।

ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां

पेड़ पौधे मानव जीवन के लिए एक वरदान है कुदरत का यह वरदान मानव जीवन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। विभिन्न प्रकार से यह पेड़-पौधे जड़ी बूटियां मानव शरीर और मानव जीवन काल को बेहतर बनाते हैं। पेड़ पौधे मानवी जीवन का एक महत्वपूर्ण चक्र है। विभिन्न प्रकार की ग्रीष्म कालीन जड़ी बूटियां  रोग निवारण करने के लिए इन जड़ी बूटियों का उपयोग किया जाता है। इन जड़ी-बूटियों के माध्यम से विभिन्न प्रकार की बीमारियां दूर होती है अतः या जड़ी बूटियां मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां, औषधि पौधे न केवल रोगों से निवारण अपितु विभिन्न प्रकार से आय का साधन भी बनाए रखते हैं। औषधीय पौधे शरीर को निरोग बनाए रखते हैं। विभिन्न प्रकार की औषधि जैसे तुलसी पीपल, और, बरगद तथा नीम आदि की पूजा-अर्चना भी की जाती है। 

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घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां :

ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां जिनको आप घर पर उगा सकते हैं, घर पर इनको कुछ आसान तरीकों से उगाया जा सकता है। यह जड़ी बूटियां और इनको उगाने के तरीके निम्न प्रकार हैं: 

नीम

नीम का पौधा गर्म जलवायु में सबसे अच्छा पनपता है नीम का पेड़ बहुत ही शुष्क होता है। आप घर पर नीम के पौधे को आसानी से गमले में उगा सकते हैं। इसको आपको लगभग 35 डिग्री के तापमान पर उगाना होता है। नीम के पौधे को आप घर पर आसानी से उगा सकते हैं। आपको ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं होती, नीम के पेड़ से गिरे हुए फल को  आपको अच्छे से धोकर उनके बीच की गुणवत्ता  तथा खाद मिट्टी में मिला कर पौधों को रोपड़ करना होता है। नीम के अंकुरित लगभग 1 से 3 सप्ताह का टाइम ले सकते हैं। बगीचों में बड़े छेद कर युवा नीम के पौधों को रोपण किया जाता है और पेड़ अपनी लंबाई प्राप्त कर ले तो उन छिद्रों को बंद कर दिया जाता है। नीम चर्म रोग, पीलिया, कैंसर आदि जैसे रोगों का निवारण करता है।

तुलसी

तुलसी के पौधे को घर पर उगाने के लिए आपको घर के किसी भी हिस्से या फिर गमले में बीज को मिट्टी में कम से कम 1 से 4 इंच लगभग गहराई में तुलसी के बीज को रोपण करना होता है। घर पर तुलसी के पौधा उगाने के लिए बस आपको अपनी उंगलियों से मिट्टी में इनको छिड़क देना होता है क्योंकि तुलसी के बीज बहुत ही छोटे होते हैं। जब तक बीच पूरी तरह से अंकुरित ना हो जाए आपको मिट्टी में नमी बनाए रखना है। यह लगभग 1 से 2 सप्ताह के बीच उगना शुरू हो जाते हैं। आपको तुलसी के पौधे में ज्यादा पानी नहीं देना है क्योंकि इस वजह से पौधे सड़ सकते हैं तथा उन्हें फंगस भी लग सकते हैं। घर पर तुलसी के पौधा लगाने से पहले आपको 70% मिट्टी तथा 30 प्रतिशत रेत का इस्तेमाल करना होता है। तुलसी की पत्तियां खांसी, सर्दी, जुखाम, लीवर की बीमारी मलेरिया, सास से संबंधित बीमारी, दांत रोग इत्यादि के लिए बहुत ही उपयोगी होती है।

बेल

बेल का पौधा आप आसानी से गमले या फिर किसी जमीन पर उगा सकते हैं। इन बेल के बीजों का रोपण करते समय अच्छी खाद और मिट्टी के साथ पानी की मात्रा को नियमित रूप से देना होता है। बेल के पौधे विभिन्न प्रकार की बीमारियों को दूर करने के काम आते हैं। जैसे: लीवर की चोट, यदि आपको वजन घटाना हो या फिर बहुत जादा दस्त हो, आंतों में विभिन्न प्रकार की गड़बड़ी, कब्ज की समस्या तथा चिकित्सा में बेल की पत्तियों और छालों और जड़ों का प्रयोग कर विभिन्न प्रकार की औषधि का निर्माण किया जाता है। 

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आंवला

घर पर  किसी भी गमले या जमीन पर आप आंवले के पौधे को आसानी से लगा सकते हैं। आंवले के पेड़ के लिए आपको मिट्टी का गहरा और फैलाव दार गमला लेना चाहिए। इससे पौधों को फैलने में अच्छी जगह मिलती है। गमले या फिर घर के किसी भी जमीन के हिस्से में पॉटिंग मिलाकर आंवले के बीजों का रोपण करें। आंवले में विभिन्न प्रकार का औषधि गुण मौजूद होता है आंवले में  विटामिन की मात्रा पाई जाती है। इससे विभिन्न प्रकार के रोगों का निवारण होता है जैसे: खांसी, सांस की समस्या, रक्त पित्त, दमा, छाती रोग, मूत्र निकास रोग, हृदय रोग, क्षय रोग आदि रोगों में आंवला सहायक होता है।

घृत कुमारी

घृतकुमारी  जिसको हम एलोवेरा के नाम से पुकारते हैं। एलोवेरा के पौधे को आप किसी भी गमले या फिर जमीन पर आसानी से उगा सकते हैं। यह बहुत ही तेजी से उगने वाला पौधा है जो घर के किसी भी हिस्से में उग सकता है। एलोवेरा के पौधे आपको ज्यादातर भारत के हर घर में नजर आए होंगे, क्योंकि इसके एक नहीं बल्कि अनेक फायदे हैं। एलोवेरा में मौजूद पोषक तत्व त्वचा के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होते हैं। त्वचा के विभिन्न प्रकार के काले धब्बे दाने, कील मुहांसों आदि समस्याओं से बचने के लिए आप एलोवेरा का उपयोग कर सकते हैं। यह अन्य समस्याओं जैसे  जलन, डैंड्रफ, खरोच, घायल स्थानों, दाद खाज खुजली, सोरायसिस, सेबोरिया, घाव इत्यादि के लिए बहुत सहायक है।

अदरक

अदरक के पौधों को घर पर या फिर गमले में उगाने के लिए आपको सबसे पहले अदरक के प्रकंद का चुनाव करना होता है, प्रकंद के उच्च कोटि को चुने करें। घर पर अदरक के पौधे लगाने के लिए आप बाजार से इनकी बीज भी ले सकते हैं। गमले में 14 से 12 इंच तक मिट्टी को भर ले, तथा खाद और कंपोस्ट दोनों को मिलाएं। गमले में  अदरक के टुकड़े को डाले, गमले का जल निकास नियमित रूप से बनाए रखें। 

अदरक एक ग्रीष्मकालीन पौधा है इसीलिए इसको अच्छे तापमान की बहुत ज्यादा आवश्यकता होती है। यह लगभग 75 से लेकर 85 के तापमान में उगती  है। अदरक भिन्न प्रकार के रोगों का निवारण करता है, सर्दियों के मौसम में खांसी, जुखाम, खराश गले का दर्द आदि से बचने के लिए अदरक का इस्तेमाल किया जाता है। अदरक से बैक्टीरिया नष्ट होते हैं, पुरानी बीमारियों का निवारण करने के लिए अदरक बहुत ही सहायक होती है। 

दोस्तों हम यह उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा यह आर्टिकल घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां पसंद आया होगा। हमारे आर्टिकल में घर पर उगाई जाने वाली  जड़ी बूटियों की पूर्ण जानकारी दी गई है। जो आपके बहुत काम आ सकती है यदि आप हमारी जानकारी से संतुष्ट है। तो हमारी इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्त और सोशल मीडिया पर  शेयर करें। 

धन्यवाद।

मिल गई किसानों की समृद्धि की संजीवनी बूटी, दवाई के साथ कमाई, भारी सब्सिडी दे रही है सरकार

मिल गई किसानों की समृद्धि की संजीवनी बूटी, दवाई के साथ कमाई, भारी सब्सिडी दे रही है सरकार

भारत एक कृषि प्रधान देश है। कृषि प्रधान देश होने के बावजुद भारत के किसानों की आय बेहतर नहीं हो पाती। प्रधानमंत्री भी किसानों की आय को लेकर हर संभव प्रयास कर रहे हैं, जिसका लाभ किसानों को भी मिल रहा है। केंद्र सरकार किसानों के लिए बहुत सारी योजना चला रही है, ताकि किसान की आय को बढाया जा सके। इसी दिशा में जड़ी बूटी की खेती करने वाले किसानों के लिए सरकार एक खास योजना लेकर आई है। सरकार ऐसे किसानों को 75% की सब्सिडी देगी। पूरी दुनिया आज भारत की आयुर्वेद विज्ञान, जड़ी-बूटियां और आयुष पद्धतियों को अपना रही है। इसका कारण यह है कि देश-विदेश में औषधीय पौधे और जड़ी-बूटियों की मांग तेजी से बढ़ती जा रही है। जाहिर है, यह भारत के किसानों के लिए सुनहरा मौका है, क्योंकि भारत की धरती औषधीय पौधे या जड़ी-बूटियों की खेती के लिये सबसे उपयुक्त है। यहां पौराणिक काल से ही जड़ी-बूटियों के भंडार मौजूद रहे हैं।
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किसानों को औषधीय खेती के प्रति प्रोत्साहित करने के लिये केंद्र और राज्य सरकार मिलकर कई योजनाओं पर काम कर रही हैं। इन योजनाओं के तहत किसानों को अलग-अलग जड़ी-बूटियां उगाने के लिये 75 प्रतिशत तक अनुदान दिया जाता है। भारत में औषधीय पौधों और जड़ी-बूटियों का उत्पादन बढ़ाने के लिये राष्ट्रीय आयुष मिशन (एनएएम; National AYUSH Mission - NAM) एक योजना चला रही है। इस योजना के तहत 140 जड़ी-बूटियां और हर्बल प्लांट्स की खेती के लिये किसानों को अलग-अलग हिसाब से सब्सिडी प्रदान की जाती है। इस योजना के तहत आवेदन करने वाले लाभार्थी किसानों को औषधीय पौधों की खेती की लागत पर 30 प्रतिशत से लेकर 50 और 75 फीसदी तक आर्थिक अनुदान दिया जा रहा है। आयुष मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, राष्ट्रीय आयुष मिशन के तहत औषधीय पौधों और जड़ी-बूटी उत्‍पादन के लिये करीब 59,350 से ज्यादा किसानों को आर्थिक सहायता मिल चुकी है।

बड़े काम का ई-चरक ऐप

राष्ट्रीय आयुष मिशन पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को बढ़ावा दे रहा है। साथ ही यह किसानों को भी कम लागत में औषधीय खेती करने के लिये प्रोत्साहित करता है ताकि किसानों की आय बढ़ सके। योजना के तहत आर्थिक अनुदान का तो प्रावधान है ही, खेती के साथ-साथ उत्पाद को बाजार तक पहुंचाने में भी सरकार इन किसानों की मदद करती है।


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भारत में ज्यादातर किसान औषधीय पौधों की खेती के लिये दवा कंपनियों के साथ कांट्रेक्ट करते हैं। दरअसल औषधीय पौधों की उपज और इनकी बिक्री के बाजार की जानकारी ना होने के कारण किसान कांट्रेक्ट फार्मिंग करना पसंद करते हैं। अब किसान चाहें तो ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के जरिये भी जड़ी-बूटियों की खरीद-बिक्री कर सकते हैं। इसके लिये केंद्र सरकार ने ई-चरक मोबाइल एपलिकेशन भी लॉन्च किया है। इस ऐप का कमाल यह है कि अब किसान सीधे ई-चरक ऐप से आसानी से जड़ी-बूटियों की खरीदारी और बिक्री कर सकते हैं। जाहिर है, भारत की परंपरागत जड़ी-बूटी की खेती कर के किसान प्रधानमंत्री मोदी का वह सपना पूरा कर सकते हैं, जिसमें उन्होंने किसानों की ये दोगुनी करने की बात कही थी।
इन व्यवसायों से आप शहरों के दूषित पर्यावरण से दूर गांव में भी कर सकते हैं अच्छी कमाई

इन व्यवसायों से आप शहरों के दूषित पर्यावरण से दूर गांव में भी कर सकते हैं अच्छी कमाई

शहर की भागमभाग के साथ नौकरी और पूरे दिन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर कार्य करना अब ऐसे में जिंदगी में चैन व शांति नहीं मिल पाती है। इस वजह से लोगों का रुझान गांव वापसी की तरफ बढ़ता जा रहा है क्योंकि गाँव की शुद्ध वायु में अजीब सा चैन, सुकून और आमदनी भी होती है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन जीवन में कृषि एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह केवल कृषकों का ही कार्य नहीं होता है यदि कोई भी व्यक्ति चाहे तो स्वयं के घर पर भी बागवानी कर सकता है। इस प्रकार वह भी अर्बन कृषि की श्रेणी में आता है, हालाँकि देश की बहुत बड़ी जनसंख्या कृषि पर ही आश्रित रहती है। परंतु यदि हम बात करें कृषि उत्पादों की तो इनपर पूर्ण विश्व आश्रित रहता है। भारत में उत्पादित कृषि उत्पाद वर्तमान में विदेशों में निर्यात हो रहे हैं, याद कीजिए कोरोना महामारी का वो दौर जब प्रत्येक व्यवसाय-नौकरी बिल्कुल बंद हो गई थी। उस भयानक घड़ी में सिर्फ खेती व किसानों ने ही देश की अर्थव्यवस्था को संभाला था। उस बात को देशवाशियों ने समझा एवं कृषि के महत्त्व को भी जान पाए हैं। इसलिए शहरों की थकानयुक्त जीवन को पीछे छोड़ खेती-किसानी संबंधित किसी ना किसी गतिविधि में शामिल हो गए हैं। यह सब मामला आज तक सुचारु है, बहुत सारे लोग गांव में आकर कृषि एवं कृषि व्यवसाय से जुड़ना चाहते हैं। परंतु यह नहीं समझ पा रहे हैं कि किस व्यवसाय में सर्वाधिक सफलता एवं बेहतरीन आमदनी हो सके। इसलिए आज हम उन कृषि व्यवसायों के बारे में बताने जा रहे हैं जो आपको ना केवल वर्तमान में बल्कि भविष्य में भी बेहतरीन आमदनी कराएगा।

ऑर्गेनिक फल-सब्जियों का उत्पादन कर कमाएं मुनाफा

भारत की मृदा में उत्पादित फल-सब्जियों की माँग देश ही नहीं विदेशों में भी हो रही है। रसायनों से उत्पादित किए गए फल-सब्जिओं से स्वास्थ्य को काफी हानि पहुंच रही है। इसलिए भारत एवं विश्व की एक बड़ी जनसँख्या जैविक फल व सब्जियों का सेवन करती है। बतादें, कि भविष्य में जैविक फल-सब्जियों की मांग और ज्यादा होगी, इसलिए आप जैविक फल-सब्जियों के उत्पादन के साथ-साथ शहरों में इसका विपणन व्यवसाय कर सकते हैं। इस काम के लिए आपको सरकार से ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन एवं FSSAI से भी एक प्रमाणपत्र लेना होगा। उसके उपरांत यदि आप अपने ऑर्गेनिक फल एवं सब्जियों को विदेश में भी निर्यात कर पाएंगे। खुशी की बात यह है, कि ऑर्गेनिक कृषि हेतु सरकार द्वारा बहुत सारी योजनाओं के माध्यम से परीक्षण, तकनीकी सहायता एवं आर्थिक मदद प्रदान करते हैं।

पशुपालन और डेयरी व्यवसाय से होगा खूब फायदा

स्वास्थ्य के प्रति लोग सजग एवं जागरूक होते जा रहे हैं। बेहतर स्वास्थ्य हेतु प्रोटीन को आहार में शम्मिलित करना अत्यंत आवश्यक है। दूध इसका सबसे बेहतरीन एवं प्राकृतिक स्त्रोत है। देश में दूध-डेयरी का व्यवसाय अच्छा खासा चलता है, साथ ही शहरों में गाय-भैंस के दुग्ध से निर्मित सेहतमंद उत्पादों की बेहद मांग होती है। गांव में सामान्यतः पर्यावरण स्वच्छ एवं शुद्ध रहता है, इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में पशु व डेयरी का कार्य बेहद ही आसान होता है। पशुपालन के लिए काफी जगह होना बहुत ही जरूरी है, इसलिए आप इच्छानुसार भैंस, बकरी एवं गाय पालन एवं दूध उत्पादन कर सकते हैं। साथ ही, स्वयं की दूध प्रोसेसिंग व डेयरी फार्म भी आरंभ कर सकते हैं, लोग स्वयं आकर आपसे दूध खरीदेंगे। यदि आप अपना ब्रांड बनाकर दूध एवं इससे निर्मित उत्पादों की आपूर्ति कर सकते हैं।

जड़ी बूटियों की खेती से होगा लाभ

कोरोना महामारी के उपरांत लोगों ने आयुर्वेद की तरफ अपना रुझान किया है। लोगों का आयुर्वेदिक दवाइयों के प्रति विश्वास और बढ़ गया है। वर्तमान में लोग बीमारियों में सुबह-शाम दवाईयां लेने की जगह औषधियों एवं जड़ी-बूटियों का उपयोग करने लगे हैं। बहुत सारी बड़ी-बड़ी कंपनियां औषधियों एवं जड़ी-बूटियों से देसी दवाओं के साथ सेहतमंद खाद्य उत्पाद निर्मित कर विक्रय कर रही हैं। भारत की उच्च स्तरीय दवा कपंनियां हिमालया हर्ब्स एवं पतंजली जैसी अन्य भी आयुर्वेद की दिशा में कार्य करती हैं।


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इन कंपनियां द्वारा किसानों के साथ कांट्रेक्ट किया जाता है। खेती पर किये गए व्यय को आपस में विभाजित कर कृषकों से समस्त जड़ी-बूटी अथवा औषधी क्रय करली जाती है। औषधीय कृषि की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है, कि इसमें खर्च नाममात्र के बराबर होता है। किसान चाहें तो ऊसर या बंजर भूमि पर भी औषधियां उत्पादित कर सकते हैं। बीमारियों के सीजन में औषधीय कृषि एवं इसकी प्रोसेसिंग का व्यवसाय भी किसानों को कम लागात में अत्यधिक मुनाफा दिला सकता है।
इस औषधीय पौधे की खेती करने के लिए सरकार देती है 75 फीसदी सब्सिडी, योजना का लाभ उठाकर किसान बनें मालामाल

इस औषधीय पौधे की खेती करने के लिए सरकार देती है 75 फीसदी सब्सिडी, योजना का लाभ उठाकर किसान बनें मालामाल

देश के साथ दुनिया में इन दिनों औषधीय पौधों की खेती की लगातार मांग बढ़ती जा रही है। इनकी मांग में कोरोना के बाद से और ज्यादा उछाल देखने को मिला है क्योंकि लोग अब इन पौधों की मदद से अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखना चाहते हैं। 

जिसको देखेते हुए केंद्र सरकार ने इस साल 75 हजार हेक्टेयर में औषधीय पौधों की खेती करने का लक्ष्य रखा है। सरकारी अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि पिछले ढ़ाई साल में औषधीय पौधों की मांग में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है जिसके कारण केंद्र सरकार अब औषधीय पौधों की खेती पर फोकस कर रही है। 

किसानों को औषधीय पौधों की खेती की तरफ लाया जाए, इसके लिए सरकार अब सब्सिडी भी प्रदान कर रही है। राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में औषधीय पौधों की खेती पर राज्य सरकारें भी अलग से सब्सिडी प्रदान कर रही हैं।

75 फीसदी सब्सिडी देती है केंद्र सरकार

सरकार ने देश में औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा देने के लिए एक योजना चलाई है, जिसे 'राष्ट्रीय आयुष मिशन' का नाम दिया गया है। 

इस योजना के अंतर्गत सरकार  औषधीय पौधों और जड़ी बूटियों के उत्पादन को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। इस मिशन के अंतर्गत सरकार 140 जड़ी-बूटियों और हर्बल प्लांट्स की खेती के लिए अलग-अलग सब्सिडी प्रदान कर रही है।

यदि कोई किसान इसकी खेती करना चाहता है और सब्सिडी के लिए आवेदन करता है तो उसे 30 फीसदी से लेकर 75 फीसदी तक की सब्सिडी प्रदान की जाएगी। 

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अगर किसान भाई किसी औषधीय पौधे की खोज रहे हैं तो वह करी पत्ता की खेती कर सकते हैं। करी पत्ता का इस्तेमाल हर घर में मसालों के रूप में किया जाता है। 

इसके साथ ही इसका इस्तेमाल जड़ी-बूटी के तौर पर किया जाता है, साथ ही इससे कई प्रकार की दवाइयां भी बनाई जाती हैं। जैसे वजन घटाने की दवाई, पेट की बीमारी की दवाई और एंफेक्शन की दवाई करी पत्ता से तैयार की जाती है।

इस प्रकार की जलवायु में करें करी पत्ता की खेती

करी पत्ता की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु सबसे बेहतर मानी जाती है। इसकी खेती ऐसी जगह पर करनी चाहिए जहां सीधे तौर पर धूप आती हो। इसकी खेती छायादार जगह पर नहीं करना चाहिए।

करी पत्ता की खेती के लिए इस तरह से करें भूमि तैयार

करी पत्ता की खेती के लिए PH मान 6 से 7 के बीच वाली मिट्टी उपयुक्त होती है। इस खेती में किसान को खेत से उचित जल निकासी की व्यवस्था कर लेनी चाहिए। इसके साथ ही चिकनी काली मिती वाले खेत में इन पौधों की खेती नहीं करना चाहिए। 

सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करना चाहिए, इसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल कर दें। इसके बाद हर चार मीटर की दूरी पर पंक्ति में गड्ढे तैयार करें। गड्ढे तैयार करने के बाद बुवाई से 15 दिन पहले गड्ढों में जैविक खाद या गोबर की सड़ी खाद भर दें। 

इसके बाद गड्ढों में सिंचाई कर दें। भूमि बुवाई के लिए तैयार है। करी पत्ता के पौधों की रोपाई वैसे तो सर्दियों को छोड़कर किसी भी मौसम में की जा सकती है। लेकिन मार्च के महीने में इनकी रोपाई करना सर्वोत्तम माना गया है। 

करी पत्ता की बुवाई बीज के साथ-साथ कलम से भी की जा सकती है। अगर किसान बीजों से बुवाई करने का चयन करते हैं तो उन्हें एक एकड़ में बुवाई करने के लिए करी पत्ता के 70 किलो बीजों की जरूरत पड़ेगी। 

यह बीज खेत में किए गए गड्ढों में बोए जाते हैं। इन बीजों को गड्ढों में 4 सेंटीमीटर की गहराई में लगाने के बाद हल्की सिंचाई की जाती है। इसके साथ ही जैविक खाद का भी प्रयोग किया जाता है।

आने वाले दिनों में औषधीय खेती से बदल सकती है किसानों को तकदीर, धन की होगी बरसात

आने वाले दिनों में औषधीय खेती से बदल सकती है किसानों को तकदीर, धन की होगी बरसात

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि आज भी दुनिया के विकासशील देशों में 80 फीसदी लोग अपने इलाज के लिए प्राकृतिक जड़ी बूटियों पर निर्भर हैं। इन देशों में जड़ी बूटियों के माध्यम से आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी जैसी पद्धतियों द्वारा इलाज किया जाता है। इसके साथ ही होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति में भी पौधों के रसों का इस्तेमाल बहुतायत में किया जाता है। इसलिए पिछले कुछ सालों में देखा गया है कि दुनिया भर में औषधीय और सुगंधित पौधों की मांग में तेजी से वृद्धि हुई है। इसका एक बहुत बड़ा कारण एलोपैथी दवाओं से होने वाले दुष्प्रभाव भी हैं, जिनके कारण हर्बल औषधियों की मांग तेजी से बढ़ी है। दुनिया के विशेषज्ञों का कहना है की आगामी समय में साल 2050 तक हर्बल दवाइयों का बाजार 5 लाख करोड़ डॉलर तक पहुंच सकता है। यह किसानों के लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी। भारत में जड़ी-बूटियों का भंडार है जिससे आगामी समय में भारत का महत्व बढ़ने वाला है और दवाइयों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भारत की भागीदारी बढ़ती हुई दिखाई देगी। भारत एक जैव विविधिता वाला देश है जहां 960 प्रकार से ज्यादा जड़ी बूटियां पाई जाती हैं। अगर दुनिया भर में जैव विविधिता वाले क्षेत्रों की गणना करें तो इनकी संख्या 18 है। जिनमें से 2 भारत में पाए जाते हैं। भारत में पर्यावरण के हिसाब से औषधीय वनस्पतियां स्वतः ही उगने लगती हैं यह भारत एक लिए सबसे बड़ी सकारात्मक बात है। ये भी पढ़े: बिना लागात लगाये जड़ी बूटियों से किसान कमा रहा है लाखों का मुनाफा राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी ने अपने दस्तावजों में बताया है कि भारत सरकार अब व्यावसायिक रूप से हर्बल खेती को बढ़ावा दे रही है, ताकि देश के किसान भी इस विकास के मुख्य भागीदार बन सकें। इसके लिए सरकार के द्वारा औषधीय और सुगंधित पौधों के संरक्षण और उनके उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है। राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी का कहना है कि जड़ी बूटियों को जंगलों से लूटने के बजाय इन्हें खेतों में उगाया जाना चाहिए ताकि जैव विविधिता बरकरार रह सके। जिससे आगामी पीढ़ियों को भी इस प्रकार की जड़ी बूटियां मिल सकें। सरकार अपनी योजनाओं के तहत मेंथा, ईसबगोल, सनाय और पोस्तदाना जैसी हर्बल दवाइयों की खेती को बढ़ावा दे रही है। सरकार के प्रयासों से देश भर में करीब 5 लाख किसान मेंथा की खेती कर रहे हैं। भारत में इसका कारोबार 3500 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। किसानों की कड़ी मेहनत से भारत दुनिया में मेंथा का सबसे बड़ा उत्पादक बन चुका है, इसके साथ ही भारत इसका सबसे बाद निर्यातक भी है। राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी का कहना है कि देश के किसानों को औषधीय पौधों के उत्पादन के साथ ही उनके अंतिम उत्पाद बनाकर बाजार में बेंचना चाहिए। इससे किसानों की आमदनी तेजी से बढ़ सकती है। औषधीय पौधों के उत्पादन के लिए सरकार ने देश में कई क्लस्टरों का चयन किया है जहां सभी प्रकार की सहूलियतें उपलब्ध कारवाई जा रही हैं। देश में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु और पूर्वोत्तर राज्यों में हर्बल खेती व्यापक पैमाने पर की जा सकती है। खेती के लिए सभी प्रकार की प्राकृतिक संभावनाएं इन राज्यों में मौजूद हैं। फिलहाल इन राज्यों में लेवेंडर, मेहंदी, नींबू घास, अश्वगंधा, सतावर और दूसरी कई जड़ी-बूटियों की खेती व्यापक पैमाने पर की जा रही है। आगामी समय में यदि किसान उन्नत तकनीक से हर्बल खेती करना शुरू करेंगे तो निश्चित ही उनके ऊपर धन की बरसात हो सकती है।
सेहत के लिए अत्यंत गुणकारी आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां इस प्रकार हैं

सेहत के लिए अत्यंत गुणकारी आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां इस प्रकार हैं

भारत ने आयुर्वेद को संपूर्ण विश्व में फैलाया है। आयुर्वेद का जिक्र हमारे पुराणों एवं कथाओं में रहा है और आज के इस वैज्ञानिक युग में भी इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। आज की फार्मास्युटिकल एवं एफएमसीजी कंपनियां जो हमारे लिए औषधियां एवं सौंदर्य प्रसाधन की सामग्रियां निर्मित करती है। इनका भी रुझान आयुर्वेद की दिशा में काफी तीव्रता से बढ़ा है। आयुर्वेद हमारे शरीर को रोगों के उपचार एवं स्वस्थ मन के लिए काफी विशेष माना जाता है। आज हम आपको इस आधुनिक युग में इस्तेमाल किए जाने वाले कुछ आयुर्वेदिक औषधियों के विषय में बताने जा रहे हैं।

शतावरी

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इस जड़ी-बूटी का उपयोग वजन घटाने के लिए किया जाता है। शतावरी एक प्रमुख कैंसर रोधी दवा होती है, जो कैंसर के उपचार में बेहद सहायक साबित होता है। इसका इस्तेमाल महिलाओं के गर्भ से संबंधित बीमारी, माहवारी में समस्याएं जैसी परेशानियों के लिए रामबाण साबित होती है।

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तुलसी

जैसा कि हम सब जानते हैं, कि तुलसी घर-घर में पाये जाने वाला पौधा होता है। इसके रस का उपयोग साइनस, कान, सिर एवं नाक दर्द के लिए उपयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त यह सूजन, रतौंधी और गले में होने वाली समस्याओं के लिए एक रामबाण का कार्य करता है।

अश्वगंधा

अश्वगंधा हमारे शरीर की दुर्बलता को कम करने का कार्य करता है और यह पाच्य क्षमता को भी बढ़ाता है। यह हमारे शरीर की हड्डियों को बेहद मजबूती प्रदान करता है। इसके एंटी कैंसर एवं एंटी ट्यूमर युक्त गुणों की वजह से इसका बेहद ही अधिक उपयोग किया जाता है। इसका प्रतिदिन सेवन करने से तनाव, अनिद्रा, ब्लड प्रेशर एवं मधुमेह जैसी बीमारियों से बचा जा सकता है।

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ब्राह्मी

ब्राह्मी जड़ी बूटी का इस्तेमाल डायबिटीज, दिल की बीमारी, तनाव, सिरदर्द एवं आंखों में पड़ने वाली सूजन के लिए किया जाता है। इसे स्तनपान करने वाली महिलाओं एवं शतावरी के दौरान महिलाओं को सेवन के लिए दिया जाता है। यह महिलाओं को गर्भ के दौरान दी जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण जड़ी बूटी है। आयुर्वेद में इन सभी जड़ी बूटियों को सीरप और चूर्ण दोनों रूप से इस्तेमाल किया जाता है। इसका सेवन दवाओं की भांति सुबह-शाम गर्म पानी दूध के साथ किया जाता है। आयुर्वेद में बीमार आदमी के इलाज के लिए जड़ी बूटियों का उपयोग किया जाता है। एक आदमी की दीर्घ आयु और बेहतर जीवन के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।