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भारतीय वैज्ञानिकों ने मूंगफली के फेंके हुए छिलकों से ऊर्जा के मामले में दक्ष स्मार्ट स्क्रीन विकसित की

भारतीय वैज्ञानिकों ने मूंगफली के फेंके हुए छिलकों से ऊर्जा के मामले में दक्ष स्मार्ट स्क्रीन विकसित की

भारतीय वैज्ञानिकों ने मूंगफली के छिलकों से पर्यावरण के अनुकूल एक स्मार्ट स्क्रीन विकसित की है, जो न केवल गोपनीयता को बनाए रखने में मदद कर सकती है बल्कि इससे गुजरने वाले प्रकाश एवं गर्मी को नियंत्रित करके ऊर्जा संरक्षण और एयर कंडीशनिंग लोड को कम करने में भी मदद कर सकती है। 

प्रोफेसर एस. कृष्णा प्रसाद के नेतृत्व में शोधकर्ताओं के एक समूह ने सेंटर फॉर नैनो एंड सॉफ्ट मैटर साइंसेज (सीईएनएस), बैंगलोर, जो कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार का एक स्वायत्त संस्थान है, के डॉ. शंकर राव के साथ मिलकर मूंगफली के फेंके हुए छिलकों से इस तरह के एक सेलूलोज़-आधारित स्मार्ट स्क्रीन को विकसित करने में एक अहम उपलब्धि हासिल की है।   peanut

इस स्मार्ट स्क्रीन के अनुप्रयोग में, तरल क्रिस्टल अणुओं को एक बहुलक सांचे में ढाला गया। इस सांचे का निर्माण सेलुलोज नैनोक्रिस्टल (सीएनसी) का उपयोग करके किया गया। 

ये सेलुलोज नैनोक्रिस्टल आईआईटी रुड़की में प्रोफेसर युवराज सिंह नेगी की टीम द्वारा मूंगफली के छोड़े हुए छिलकों से तैयार किए गए थे। 

तरल क्रिस्टल अणुओं के अपवर्तनांक को एक विद्युतीय क्षेत्र के अनुप्रयोग के जरिए एक खास दिशा की ओर मोड़ दिया गया। विद्युतीय क्षेत्र की अनुपस्थिति में, बहुलक और तरल क्रिस्टल के अपवर्तनांकों के बेमेल होने की वजह से प्रकाश का प्रकीर्णन हुआ। 

कुछ वोल्ट के एक विद्युतीय क्षेत्र के अनुप्रयोग से, तरल क्रिस्टल अणु दिशा परिवर्तन की एक प्रक्रिया से गुजरे, जिसके परिणामस्वरूप अपवर्तनांकों में मेल हुआ और उपकरण लगभग तुरंत ही पारदर्शी हो उठा। 

जैसे ही विद्युतीय क्षेत्र का प्रयोग बंद किया गया, यह प्रणाली प्रकीर्णन वाली अवस्था में वापस लौट आई। बटन दबाने पर उपलब्ध दो अवस्थाओं के बीच यह उत्क्रमणीय बदलाव हजारों चक्रों में हुआ। इस उत्क्रमणीय बदलाव के दौरान अनिवार्य रूप से व्यतिरेक या बटन दबाने की गति में कोई परिवर्तन नहीं होने दिया गया।

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इन वैज्ञानिकों द्वारा विकसित इस उपकरण ने, जिसका जिक्र एप्लाइड फिजिक्स लेटर्स के हाल के अंक में किया गया है, उसी सिद्धांत का अनुसरण किया जिसकी वजह से सर्दियों में सुबह के समय कोहरा पैदा होता है। 

ऐसा केवल तभी होता है जब पानी की बूंदें सही आकार की होती हैं, और वह हवा के साथ मौजूद रहती हैं। प्रकाश की आने वाली किरणें इन दोनों को अलग-अलग अपवर्तनांकों वाली वस्तुओं के रूप में देखती हैं और इस तरह से उनका प्रकीर्णन हो जाता है 

जिसके परिणामस्वरुप कोहरे का नजारा उपस्थित होताहै। इसी तरह, बहुलक और तरल क्रिस्टल को सही आकार में सह-अस्तित्व में होना चाहिए ताकि स्मार्ट स्क्रीन के लिए आवश्यक प्रकाशीय गुण निर्मित हो सकें। 

इस उपकरण पर काम करने वाले छात्र, सुश्री प्रज्ञा और डॉ. श्रीविद्या, इस बात पर जोर देते हैं किवाणिज्यिक स्रोतों से उपलब्ध सीएनसी के मुकाबले आईआईटी रूड़कीकी सामग्री के बेहतर प्रदर्शन के साथ इस उपकरण के व्यतिरेक को नियंत्रित करने में सीएनसी के निर्माण का प्रोटोकॉल एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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इन वैज्ञानिकों ने बताया कि सैद्धांतिक रूप से इस उपकरण को किसी भी सेल्यूलोज या कृषि जनित अपशिष्ट से विकसित किया जा सकता है। 

मूंगफली के कचरे के कुछ खास गुणों के कारण, मूंगफली के कचरे से विकसित स्मार्ट स्क्रीन को सबसे अधिक कारगर पाया गया है। 

लक्षित गोपनीयता निर्माण के मूल इरादे के अलावा, इस उपकरण को व्यापक संभावित अनुप्रयोगों, खासकर अवरक्त प्रकाश की मात्रा और खिड़की को नियंत्रित करके इसे अनुमन्य सीमा तक गुजारते हुए ऊर्जा संरक्षण के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। 

उदाहरण के लिए, इस तकनीक लैस एक खिड़की पूरे दृश्य क्षेत्र के लिए पारदर्शी रहेगी, पूरे प्रांगण को ठंडा रखते हुए गर्मी के विकिरण के अवांछनीय स्तर को काफी कम किया जा सकता है।

तितली मटर (अपराजिता) के फूलों में छुपे सेहत के राज, ब्लू टी बनाने में मददगार, कमाई के अवसर अपार

तितली मटर (अपराजिता) के फूलों में छुपे सेहत के राज, ब्लू टी बनाने में मददगार, कमाई के अवसर अपार

रंगबिरंगी तितली किसके मन को नहीं भाती, लेकिन हम बात कर रहे हैं, प्रमुख दलहनी फसलों में से एक तितली मटर के बारे में। आमतौर पर इसे अपराजिता (butterfly pea, blue pea, Aprajita, Cordofan pea, Blue Tea Flowers or Asian pigeonwings) भी कहा जाता है। 

इंसान और पशुओं के लिए गुणकारी

बहुउद्देशीय दलहनी कुल के पौधोंं में से एक तितली मटर यानी अपराजिता की पहचान उसके औषधीय गुणों के कारण भी दुनिया भर में है। इंसान और पशुओं तक के लिए गुणकारी इस फसल की खेती को बढ़ावा देकर, किसान भाई अपनी कमाई को कई तरीके से बढ़ा सकते हैं। 

ब्लू टी की तैयारी

तितली मटर के फूल की चाय (Butterfly pea flower tea)

बात औषधीय गुणों की हो रही है तो आपको बता दें कि, चिकित्सीय तत्वों से भरपूर अपरजिता यानी तितली मटर के फूलों से अब ब्लू टी बनाने की दिशा में भी काम किया जा रहा है।

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ब्लू टी से ब्लड शुगर कंट्रोल

जी हां परीक्षणों के मुताबिक तितली मटर (अपराजिता) के फूलों से बनी चाय की चुस्की, मधुमेह यानी कि डायबिटीज पीड़ितों के लिए मददगार होगी। जांच परीक्षणों के मुताबिक इसके तत्व ब्लड शुगर लेवल को कम करते हैं।

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पशुओं का पोषक चारा

इंसान के स्वास्थ्य के लिए मददगार इसके औषधीय गुणों के अलावा तितली मटर (अपराजिता) का उपयोग पशु चारे में भी उपयोगी है। चारे के रूप में इसका उपयोग भूसा आदि अन्य पशु आहार की अपेक्षा ज्यादा पौष्टिक, स्वादिष्ट एवं पाचन शील माना जाता है। तितली मटर (अपराजिता) के पौधे का तना बहुत पतला साथ ही मुलायम होता है। इसकी पत्तियां चौड़ी और अधिक संख्या में होने से पशु आहार के लिए इसे उत्तम माना गया है।

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अनुभवों के मुताबिक अपेक्षाकृत रूप से दूसरी दलहनी फसलों की तुलना में इसकी कटाई या चराई के बाद अल्प अवधि में ही इसके पौधों में पुनर्विकास शुरू हो जाता है। 

एशिया और अफ्रीका में उत्पत्ति :

तितली मटर (अपराजिता) की खेती की उत्पत्ति का मूल स्थान मूलतः एशिया के उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र एवं अफ्रीका में माना गया है। इसकी खेती की बात करें तो मुख्य रूप से अमेरिका, अफीका, आस्ट्रेलिया, चीन और भारत में इसकी किसानी का प्रचलन है। 

मददगार जलवायु

  • इसकी खेती मुख्यतः प्रतिकूल जलवायु क्षेत्रों में प्रचलित है। मध्यम खारी मृदा इलाकों में इसका पर्याप्त पोषण होता है।
  • तितली मटर प्रतिकूल जलवायु जैसे–सुखा, गर्मी एवं सर्दी में भी विकसित हो सकती है।
  • ऐसी मिट्टी, जिनका पी–एच मान 4.7 से 8.5 के मध्य रहता है में यह भली तरह विकसित होने में कारगर है।
  • मध्यम खारी मिट्टी के लिए भी यह मित्रवत है।
  • हालांकि जलमग्न स्थिति के प्रति यह बहुत संवेदनशील है। इसकी वृद्धि के लिए 32 डिग्री सेल्सियस तापमान सेहतकारी माना जाता है।

तितली मटर के बीज की अहमियत :

कहावत तो सुनी होगी आपने, बोए बीज बबूल के तो फल कहां से होए। ठीक इसी तरह तितली मटर (अपराजिता) की उन्नत फसल के लिए भी बीज अति महत्वपूर्ण है। कृषक वर्ग को इसका बीज चुनते समय अधिक उत्पादन एवं रोग प्रतिरोध क्षमता का विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए।

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तितली मटर की कुछ उन्नत किस्में :

तितली मटर की उन्नत किस्मों की बात करें तो काजरी–466, 752, 1433, जबकि आईजीएफआरआई की 23–1, 12–1, 40 –1 के साथ ही जेजीसीटी–2013–3 (बुंदेलक्लाइटोरिया -1), आईएलसीटी–249 एवं आईएलसीटी-278 इत्यादि किस्में उन्नत प्रजाति में शामिल हैं। 

तितली मटर की बुवाई के मानक :

अनुमानित तौर पर शुद्ध फसल के लिए बीज दर 20 से 25 किलोग्राम मानी गई है। मिश्रित फसल के लिए 10 से 15 किलोग्राम, जबकि 4 से 5 किलोग्राम बीज स्थायी चरागाह के लिए एवं 8 से 10 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर अल्पावधि चरण चरागाह के लिए आदर्श पैमाना माना गया है। तय मान से बुवाई 20–25 × 08 – 10 सेमी की दूरी एवं ढ़ाई से तीन सेमी की गहराई पर करनी चाहिए। कृषि वैज्ञानिक उपचारित बीजों की भी सलाह देते हैं। अधिक पैदावार के लिए गर्मी में सिंचाई का प्रबंधन अनिवार्य है। 

तितली मटर की कटाई का उचित प्रबंधन :

मटर के पके फल खेत में न गिर जाएं इसलिए तितली मटर की कटाई समय रहते कर लेना चाहिए। हालांकि इस बात का ध्यान भी रखना अनिवार्य है कि मटर की फसल परिपक्व हो चुकी हो। जड़ बेहतर रूप से जम जाए इसलिए पहले साल इससे केवल एक कटाई लेने की सलाह जानकार देते हैं।

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तितली मटर के उत्पादन का पैमाना :

उपज बरानी की दशा में स्थितियां अनुकूल रहने पर लगभग 1 से 3 टन सूखा चारा और 100 से 150 किलो बीज प्रति हेक्टेयर मिल सकता है। इतनी बड़ी ही सिंचित जमीन पर सूखा चारा 8 से 10 टन, जबकि बीज पांच सौ से छह सौ किलो तक उपज सकता है। 

पोषक तत्वों से भरपूर खुराक :

तितली मटर में प्रोटीन की मात्रा 19-23 फीसदी तक मानी गई है। क्रूड फ़ाइबर 29-38, एनडीफ 42-54 फीसदी तो फ़ाइबर 21-29 प्रतिशत पाया जाता है। पाचन शक्ति इसकी 60-75 फीसदी तक होती है।

आलू की फसल को झुलसा रोग से बचाने का रामबाण उपाय

आलू की फसल को झुलसा रोग से बचाने का रामबाण उपाय

भारत में बदले मौसम के तेवर रबी फसलों से प्रत्यक्ष तौर पर जुड़े होते हैं। आलू की फसल झुलसा रोग के मामले में काफी संवेदनशील है। बतादें, कि कोहरा, बादल और बूंदाबांदी मौसम के बदले मिजाज में आलू की फसल झुलसा रोग के प्रति संवेदनशील होती है। आलू की खेती में लगने वाली ज्यादा लागत एवं रोग से संभावित भारी नुकसान के मद्देनजर कृषक रोकथाम के उपाय करें। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि बारिश, बादल और तापमान में आई अप्रत्याशित गिरावट एवं कोहरे के कारण महज आलू की ही नहीं बल्कि अन्य फसलों जैसे कि टमाटर, लहसुन और प्याज की फसल को भी नुकसान संभव है। बढ़वार रुकने के साथ-साथ रोगों के प्रति संवेदनशीलता भी बढ़ जाती है। वर्तमान में आलू की फसल पछेती झुलसा (लेट ब्लाइट) के प्रति संवेदनशील है। इसका प्रकोप ऊपर की पत्तियों से चालू होता है। प्रारंभिक समय में किनारे की पत्तियां काली होती हैं। तीव्रता से इसका संक्रमण संपूर्ण पत्तियों और तने से होकर कंद तक पहुंच जाता है। ये अगैती झुलसा से ज्यादा खतरनाक है। समय रहते इसकी रोकथाम ना होने पर 2-3 दिन में पूरी फसल चौपट हो सकती है।

झुलसा रोग की इस तरह रोकथाम करें 

किसान मैंकोजेब के साथ कार्बेडाजिम का छिड़काव करें। प्रति लीटर पानी में दवा का अनुपात 2.5 से 3 ग्राम तक रखें। पहले रक्षात्मक छिड़काव के पश्चात आवश्यकता हो तो दो सप्ताह के पश्चात दूसरा भी छिड़काव करें।

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माहू का नियंत्रण कैसे करें 

आज के मौसम में सब्जियों के साथ-साथ सरसों में भी माहू और इससे होने वाले विषाणु जनित रोगों के संक्रमण की संभावना होती है। प्रकोप होने पर पत्तियां मुड़कर मोटी और कड़ी हो जाती हैं। पौध का विकास और बढ़वार रुक जाता है एवं पैदावार प्रभावित हो जाती है। इसके नियंत्रण के लिए मेटासिस्टाक्स 1.5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिश्रित कर छिड़काव करें। पाले से संरक्षण करने के लिए खेत में नमी बनाए रखें। आप मैंकोजेब का भी छिड़काव कर सकते हैं।

सब्जियों की अन्य फसलों पर भी मौसम का असर होगा 

अगर मौसम खराब रहा तो ऐसे में प्याज, लहसुन का विकास रुक जाता है। अधिकतर प्याज की रोपाई हो चुकी है अथवा नर्सरी में है। यदि प्याज की रोपाई करनी है, तो बेसल ड्रेसिंग में बाकी उर्वरकों के साथ प्रति एकड़ 10 किग्रा गंधक का भी इस्तेमाल करें। इफ्को का बेंटानाइट सल्फर एक शानदार उत्पाद है। नर्सरी में यदि गलन की दिक्कत है, तो मैंकोजेब, कार्बेडाजिम एवं सल्फर का छिड़काव करें। विशेषज्ञों के मुताबिक 18:18:18 (घुलनशील उर्वरक) का छिड़काव भी बेहतर बढ़वार में मददगार है। कम तापमान के चलते लहसुन के कंद छोटे हो सकते हैं। इसके लिए 13:0: 45 का छिड़काव करें। एक लीटर पानी में 10 ग्राम खाद डालें। इसमें 6 मिलीग्राम स्टीकर मिलाने से नतीजे बेहतर होंगे। सब्जियों में ऐसे मौसम में आए फल-फूल गिर जाते हैं। ये बने रहें इसके लिए सूक्ष्म पोषक तत्वों का छिड़काव करें।
आलू उत्पादक अपनी फसल को झुलसा रोग से कैसे बचाएं ?

आलू उत्पादक अपनी फसल को झुलसा रोग से कैसे बचाएं ?

किसानों को खेती किसानी के लिए मजबूत बनाने में कृषि वैज्ञानिक और कृषि विज्ञान केंद्र की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसी कड़ी में ICAR की तरफ से आलू की खेती करने वाले कृषकों के लिए एडवाइजरी जारी की है। कृषकों को सर्दियों के समय अपनी फसलों का संरक्षण करने के उपाय और निर्देश दिए गए हैं। 

आलू की खेती करने वाले कृषकों के लिए महत्वपूर्ण समाचार है। यदि आप भी आलू का उत्पादन करते हैं, तो इस समाचार को भूल कर भी बिना पढ़े न जाऐं।  क्योंकि, यह समाचार आपकी फसल को एक बड़ी हानि से बचा सकता है। दरअसल, सर्दियों के दौरान कोहरा कृषकों के लिए एक काफी बड़ी चुनौती बन जाता है। विशेष रूप से जब कड़ाकड़ाती ठंड पड़ती है। इस वजह से केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान मोदीपुरम मेरठ (ICAR) ने आलू की खेती करने वाले किसानों के लिए एक एडवाइजरी जारी की है।

ICAR की एडवाइजरी में क्या क्या कहा गया है ?

ICAR की इस एडवाइजरी में कृषकों को यह बताया गया है, कि वे अपनी फसलों को किस तरह से बचा कर रख सकते हैं। कुछ ऐसे तरीके बताए गए हैं, जो कि सहज हैं और जिनसे आप अपनी फसलों को काफी सुरक्षित रख सकेंगे। यदि किसान के पास सब्जी की खेती है, तो उसे मेढ़ पर पर्दा अथवा टाटी लगाकर हवा के प्रभाव को कम करने पर कार्य करना चाहिए। ठंडी हवा से फसल को काफी ज्यादा हानि पहुंचती है। इसके अतिरिक्त कृषि विभाग की तरफ से जारी दवाओं की सूची देखकर किसान फसलों पर स्प्रे करके बचा सकते हैं। सर्दियों में गेहूं की फसल को कोई हानि नहीं होती है। हालांकि, सब्जियों की फसल काफी चौपट हो सकती है। ऐसी स्थिति में कृषकों को सलाह मशवरा दिया गया है, कि वह वक्त रहते इसका उपाय कर लें।

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किसान भाई आलू की फसल में झुलसा रोग से सावधान रहें 

ICAR के एक प्रवक्ता का कहना है, कि आलू की खेती करने वाले कृषकों के लिए विशेष सलाह जारी की गई है। इसकी वजह फंगस है, जो कि झुलसा रोग या फाइटोथोड़ा इंफेस्टेस के रूप में जाना जाता है। यह रोग आलू में तापमान के बीस से पंद्रह डिग्री सेल्सियस तक रहने पर होता है। अगर रोग का संक्रमण होता है या वर्षा हो रही होती है, तो इसका असर काफी तीव्रता से फसल को समाप्त कर देता है। आलू की पत्तियां रोग के चलते किनारे से सूख जाती हैं। किसानों को हर दो सप्ताह में मैंकोजेब 75% प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। अगर इसकी मात्रा की बात करें तो यह दो किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के तौर पर होनी चाहिए।

आलू की खेती में इन चीजों का स्प्रे करें

प्रवक्ता का कहना है, कि संक्रमित फसल का संरक्षण करने के लिए मैकोजेब 63% प्रतिशत व मेटालैक्सल 8 प्रतिशत या कार्बेन्डाजिम व मैकोनेच संयुक्त उत्पाद का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी या 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर में 200 से 250 लीटर पानी में घोल बनाकर स्प्रे करें। इसके अतिरिक्त, तापमान 10 डिग्री से नीचे होने पर किसान रिडोमिल 4% प्रतिशत एमआई का इस्तेमाल करें। 

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अगात झुलसा रोग अल्टरनेरिया सोलेनाई नामक फफूंद की वजह से होता है। इसकी वजह से पत्ती के निचले भाग पर गोलाकार धब्बे निर्मित हो जाते हैं, जो रिंग की भांति दिखते हैं। इसकी वजह से आंतरिक हिस्से में एक केंद्रित रिंग बन जाता है। पत्ती पीले रंग की हो जाती है। यह रोग विलंब से पैदा होता है और रोग के लक्षण प्रस्तुत होने पर किसान 75% प्रतिशत विलुप्तिशील चूर्ण, मैंकोजेब 75% प्रतिशत विलुप्तिशील पूर्ण या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% प्रतिशत विलुप्तिशील चूर्ण को 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर पर पानी में घोलकर छिड़काव कर सकते हैं। 

Fasal ki katai kaise karen: हाथ का इस्तेमाल सबसे बेहतर है फसल की कटाई में

Fasal ki katai kaise karen: हाथ का इस्तेमाल सबसे बेहतर है फसल की कटाई में

किसान भाईयों, आपने आलू, खीरा और प्याज की फसल पर अपने जानते खूब मेहनत की। फसल भी अपने हिसाब से बेहद ही उम्दा हुई। गुणवत्ता एक नंबर और क्वांटिटी भी जोरदार। लेकिन, आप अभी भी पुराने जमाने के तौर-तरीके से ही अगर फसल निकाल रहे हैं, उसकी कटाई कर रहे हैं तो ठहरें। हो सकता है, आप जिन प्राचीन विधियों का इस्तेमाल करके फसल निकाल रहे हैं, उसकी कटाई कर रहे हैं, वह आपकी फसल को खराब कर दे। संभव है, आप पूरी फसल न ले पाएं। इसलिए, कृषि वैज्ञानिकों ने जो तौर-तरीके बताएं हैं फसल निकालने के, हम आपसे शेयर कर रहे हैं। इस उम्मीद के साथ कि आप पूरी फसल ले सकें, शानदार फसल ले सकें। तो, थोड़ा गौर से पढ़िए इस लेख को और उसी हिसाब से अपनी फसल निकालिए।

प्याज की फसल

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प्याज देश भर में बारहों माह इस्तेमाल होने वाली फसल है। इसकी खेती देश भर में होती है। पूरब से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक। अब आपका फसल तैयार है। आप उसे निकालना चाहते हैं। आपको क्या करना चाहिए, ये हम बताते हैं। जब आप प्याज की फसल निकालने जाएं तो सदैव इस बात का ध्यान रखें कि प्याज और उसके बल्बों को किसी किस्म का नुकसान न हो। आपको बेहद सावधानी बरतनी पड़ेगी। हड़बड़ाएं नहीं। धैर्य से काम लें। सबसे पहले आप प्याज को छूने के पहले जमीन के ऊपर से खींचे या फिर उसकी खुदाऊ करें। बल्बों के चारों तरफ से मिट्टी को धीरे-धीरे हिलाते चलें। फिर जब मिट्टी हिल जाए तब आप प्याज को नीचे, उसकी जड़ से आराम से निकाल लें। आप जब मिट्टी को हिलाते हैं तब जो जड़ें मिट्टी के संपर्क में रहती हैं, वो धीरे-धीरे मिट्टी से अलग हो जाती हैं। तो, आपको इससे साबुत प्याज मिलता है। प्याज निकालने के बाद उसे यूं ही न छोड़ दें। आपके पास जो भी कमरा या कोठरी खाली हो, उसमें प्याज को सुखा दें। कम से कम एक हफ्ते तक। उसके बाद आप प्याज को प्लास्टिक या जूट की बोरियों में रख कर बाजार में बेच सकते हैं या खुद के इस्तेमाल के लिए रख सकते हैं। प्याज को कभी झटके से नहीं उखाड़ना चाहिए।

आलू

aalu ki kheti आलू देश भर में होता है। इसके कई प्रकार हैं। अधिकांश स्थानों पर आलू दो रंगों में मिलते हैं। सफेद और लाल। एक तीसरा रंग भी हैं। धूसर। मटमैला धूसर रंग। इस किस्म के आलू आपको हर कहीं दिख जाएंगे।

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आपका आलू तैयार हो गया। आप उसे निकालेंगे कैसे। कई लोग खुरपी का इस्तेमाल करते हैं। यह नहीं करना चाहिए क्योंकि अनेक बार आधे से ज्यादा आलू खुरपी से कट जाते हैं। कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि इसके लिए बांस सबसे बेहतर है, बशर्ते वह नया हो, हरा हो। इससे आप सबसे पहले तो आलू के चारों तरफ की मिट्टी को ढीली कर दें, फिर अपने हाथ से ही आलू निकालें। आप बांस से आलू निकालने की गलती हरगिज न करें। बांस, सिर्फ मिट्टी को साफ करने, हटाने के लिए है।

नए आलू की कटाई

नए आलू छोटे और बेहद नरम होते हैं। इसमें भी आप बांस वाले फार्मूले का इस्तेमाल कर सकते हैं। आलू, मिट्टी के भीतर, कोई 6 ईंच नीचे होते हैं। इसिलए, इस गहराई तक आपका हाथ और बांस ज्यादा मुफीद तरीके से जा सकता है। बेहतर यही हो कि आप हाथ का इस्तेमाल कर मिट्टी को हटाएं और आलू को निकाल लें।

गाजर

gajar ki kheti गाजर बारहों मास नहीं मिलता है। जनवरी से मार्च तक इनकी आवक होती है। बिजाई के 90 से 100 दिनों के भीतर गाजर तैयार हो जाता है। इसकी कटाई हाथों से सबसे बेहतर होती है। इसे आप ऊपर से पकड़ कर खींच सकते हैं। इसकी जड़ें मिट्टी से जुड़ी होती हैं। बेहतर तो यह होता कि आप पहले हाथ अथवा बांस की सहायता से मिट्टी को ढीली कर देते या हटा देते और उसके बाद गाजर को आसानी से खींच लेते। गाजर को आप जब उखाड़ लेते हैं तो उसके पत्तों को तोड़ कर अलग कर लेते हैं और फिर समस्त गाजर को पानी में बढ़िया से धोकर सुखा लिया जाता है।

खीरा

khira ki kheti खीरा एक ऐसी पौधा है जो बिजाई के 45 से 50 दिनों में ही तैयार हो जाता है। यह लत्तर में होता है। इसकी कटाई के लिए चाकू का इस्तेमाल सबसे बेहतर होता है। खीरा का लत्तर कई बार आपकी हथेलियों को भी नुकसान पहुंचा सकता है। बेहतर यह हो कि आप इसे लत्तर से अलग करने के लिए चाकू का ही इस्तेमाल करें।

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कुल मिलाकर, फरवरी माह या उसके पहले अथवा उसके बाद, अनेक ऐसी फसलें होती हैं जिनकी पैदावार कई बार रिकार्डतोड़ होती है। इनमें से गेहूं और धान को अलग कर दें तो जो सब्जियां हैं, उनकी कटाई में दिमाग का इस्तेमाल बहुत ज्यादा करना पड़ता है। आपको धैर्य बना कर रखना पड़ता है और अत्यंत ही सावधानीपूर्वक तरीके से फसल को जमीन से अलग करना होता है। इसमें आप अगर हड़बड़ा गए तो अच्छी-खासी फसल खराब हो जाएगी। जहां बड़े जोत में ये वेजिटेबल्स उगाई जाती हैं, वहां मजदूर रख कर फसल निकलवानी चाहिए। बेशक मजदूरों को दो पैसे ज्यादा देने होंगे पर फसल भी पूरी की पूरी आएगी, इसे जरूर समझें। कोई जरूरी नहीं कि एक दिन में ही सारी फसल निकल आए। आप उसमें कई दिन ले सकते हैं पर जो भी फसल निकले, वह साबुत निकले। साबुत फसल ही आप खुद भी खाएंगे और अगर आप उसे बाजार अथवा मंडी में बेचेंगे, तो उसकी कीमत आपको शानदार मिलेगी। इसलिए बहुत जरूरी है कि खुद से लग कर और अगर फसल ज्यादा है तो लोगों को लगाकर ही फसलों को बाहर निकालना चाहिए। (देश के जाने-माने कृषि वैज्ञानिकों की राय पर आधारित)
गेहूं की यह नई किस्म मोटापे और डायबिटीज के लिए रामबाण साबित होगी

गेहूं की यह नई किस्म मोटापे और डायबिटीज के लिए रामबाण साबित होगी

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के प्लांट ब्रीडिंग जेनेटिक्स डिपार्टमेंट ने गेंहू की PBW RS1 किस्म को विकसित किया है। इससे किसानों को कम लागत। यह किस्म मोटापे और शुगर के इंसुलेशन के स्तर को बढ़ने नहीं देती है। यह किस्म हमारे शरीर के लिए काफी फायदेमंद साबित होगी। गेंहू रबी सीजन की एक सबसे प्रमुख फसल है। साथ ही, यह खाने के मकसद से काफी पौष्टिक अनाज है। इसको अधिकांश लोग आहार के रूप में उपयोग किया जाता है। ज्यादातर लोग गेंहू के आटे से निर्मित रोटियों का सेवन करते हैं। किसान गेंहू की फसल से काफी अच्छी आमदनी भी कर लेते हैं। साथ ही, लुधियाना स्थित पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के प्लांट ब्रीडिंग एंड जेनेटिक्स डिपार्टमेंट ने गेहूं की एक ऐसी किस्म तैयार की है, जो मोटापे एवं शुगर के इन्सुलिन स्तर को बढ़ने नहीं देगी। इस वजह से गेहूं की ये किस्म सेहत के लिए काफी लाभदायक साबित होगी। इस बार रबी के सीजन में किसानों को यह बीज लगाने के लिए प्रदान किया जाएगा। साथ ही, इसकी फसल को किस तरह तैयार करना है, इसका प्रशिक्षण भी किसान भाइयों को दिया जाएगा।

गेहूं की PBW RS1 किस्म कितने समय में तैयार होती है

सामान्य तौर पर आपने सुना होगा कि जो भी लोग मोटापे से ग्रसित होते हैं, उन्हें गेहूं का सेवन करने के लिए डॉक्टर मना कर देते हैं। परंतु, पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के प्लांट ब्रीडिंग एंड जेनेटिक्स डिपार्टमेंट के कृषि वैज्ञानिकों ने लगभग 8 से 10 साल में गेहूं की बहुत सी किस्मों पर शोध कर के PBW RS1 किस्म तैयार किया है, जिसको खाने से अब डॉक्टर भी मना नहीं करेंगे। क्योंकि गेहूं की ये नई किस्म मोटापे को रोकने में सहायता करेगी।

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इस रबी सीजन में किसान काले गेहूं की खेती से अच्छी-खासी आय कर सकते हैं

PBW RS1 गेहूं के क्या-क्या लाभ हैं

कृषि वैज्ञानिकों द्वारा गेहूं की ये जो स्पेशल किस्म विकसित की है इसके अनेकों लाभ हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी ही फायदेमंद साबित होगा। इस गेहूं का नियमित सेवन करने से मोटापे एवं शुगर जैसी समस्या पर काबू पाया जा सकता है। इस गेहूं की किस्म में न्यूट्रा सिटिकल वैल्यूज अधिक हैं। इसमें रेजिस्टेंस स्टार्च का कॉन्टेंट भी उपलब्ध है।

विकसित की गई गेहूं की यह नवीन किस्म 2024 अप्रैल माह के पश्चात बाजार में मिलेगी

इसके दाने डायबिटिक मरीजों के लिए भी काफी लाभकारी साबित होंगे। यह फाइबर की भांति शीघ्र ही डाइजेस्ट हो जाएगी। यह गेहूं 2024 अप्रैल महीने के बाद से बाजार में मौजूद रहेगी। वहीं, इस नए बीज की फसल तो कम होगी, परंतु बाजार में इसका भाव ज्यादा मिलेगा।
धान की फसल के बाद भी किसान कर सकते हैं आलू की खेती, जाने सम्पूर्ण जानकारी

धान की फसल के बाद भी किसान कर सकते हैं आलू की खेती, जाने सम्पूर्ण जानकारी

आलू की खेती रबी के मौसम में बड़े पैमाने पर की जाती है। उत्तर प्रदेश में आलू की खेती सबसे ज्यादा की जाती है। आलू की खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। आलू की बुवाई का कार्य छोटे किसानों द्वारा हाथ से किया जाता हैं वही बड़े किसानों द्वारा मशीन से  बुवाई का कार्य किया जाता हैं। अब किसानों द्वारा आलू की खेती धान की कटाई के बाद भी की जा सकती हैं। इस लेख में हम आपको आलू की खेती के बारे में सम्पूर्ण जानकरी देंगे।

आलू की बुवाई के लिए भूमि की तैयारी 

आलू की बुवाई के लिए सबसे पहले भूमि की अच्छे तरीके से जुताई होनी चाहिए। खेत की जुताई के बाद आलू की रोपाई से पहले उसमे जैविक खाद को भी मिलाया जाता हैं ताकि आलू की उर्वरकता अच्छे से हो सके। आलू की खेती करने से पहले भूमि की कम से कम दो से तीन बार जुताई करनी चाहिए। अंतिम जुताई से पहले खेत में 4 से 5 ट्राली गोबर की खाद डालनी चाहिए और बाद में जुताई करके उसे खेत में अच्छी तरीके से मिला दे, ताकि पूरे खेत में खाद फ़ैल जाये और भूमि को ज्यादा उपजाऊ बनाया जा सके। इस खाद के प्रयोग से खेत की उर्वरा शक्ति भी बनी रहेगी और आलू के उत्पादन में भी इजाफा होगा।

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आलू की बुवाई का सबसे अच्छा समय क्या हैं

आलू की बुवाई के लिए सबसे अच्छा समय सितम्बर से अक्टूबर के बीच का महीना माना जाता है।  यानी जब धान की कटाई पूरी हो जाती हैं इसके तुरत बाद यदि किसान आलू की खेती करना चाहे तो कर सकता है।  15 सितम्बर से 15अक्टूबर के बीच का समय आलू की बुवाई के लिए बेहतर माना जाता हैं। साल में आलू की बुवाई दो बार की जाती हैं। सितम्बर माह से आलू की बुवाई को अगेती बुवाई माना जाता है। किसान नवंबर से दिसंबर के महीने में भी आलू की पछेती रोपाई करते है।

आलू की फसल में कितनी बार सिंचाई की जानी चाहिए

आलू की बुवाई के बाद खेत में 3 - 4 सिंचाई की जानी चाहिए। यदि आलू की फसल में ज्यादा पानी लगाया जायेगा तो फसल खराब भी हो सकती है। आलू की फसल में हमेशा हल्की से माध्यम सिंचाई ही करनी चाहिए। आलू की खुदाई के कुछ दिन पहले से ही सिंचाई को रोक देना   चाहिए। अगर सिंचाई का कार्य रोका नहीं जाता हैं तो इससे फसल को भारी नुक्सान पहुंच सकता हैं। आलू के खेत में सिर्फ इतना ही पानी देना चाहिए जिससे मिट्टी में नमी रह सके। यदि आपको लगता हैं की आलू के पौधे पीले पड रहे हैं, तो उसी समय खेत में पानी देना बंद कर दे।

क्या आलू की खेती में ज्यादा लागत आती हैं

आलू की खेती में अन्य फसलों के मुकाबले ज्यादा लागत नहीं आती हैं।आलू की खेती छोटे किसान भी लाभ उठाने के लिए कर सकते है। आलू की खेती भारत के बहुत से राज्यों में सामान्य रूप से करी जाती है। आलू की फसल का उत्पादन किसान द्वारा साल में दो बार किया जा सकता हैं आलू की खेती में बहुत ही कम पानी की आवश्कता रहती है।  यदि किसान रासायनिक पदार्थो का उपयोग करके उत्पादन नहीं करना चाहते हैं तो वो जैविक खाद का भी उपयोग कर सकते हैं या फिर गोबर खाद का भी उपयोग किसानो द्वारा किया जा सकता है।

आलू की खुदाई कब की जाती हैं

आलू की खुदाई मध्य मार्च के महीने में करी जाती हैं। आलू की खुदाई का सही समय मध्य मार्च  ही माना जाता है। आलू की फसल लगभग 60 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं, लेकिन ज्यादा से ज्यादा समय 90-110 दिन का समय आलू की फसल को पकने में लगता है। आलू की खुदाई के बाद कम से कम आलू को कुछ दिनों के लिए सूखने के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए ताकि आलू को विभिन्न रोगों से बचाया जा सके। आलू की फसल को कई प्रकार के रोगों से बचाने के लिए किसानों द्वारा आलू को कोल्ड स्टोर जैसी जगहों पर स्टॉक कर दिया जाता हैं, ताकि आलू की कीमत बढ़ने पर आलू को स्टोर से निकाला जा सके और उन्हें अच्छी कीमतों पर बेचा जा सकें। 

विश्व का सबसे महंगा आलू कहाँ उगाया जाता है ?

विश्व का सबसे महंगा आलू कहाँ उगाया जाता है ?

आज हम आपको बताऐंगे आलू की बेहतरीन किस्म के बारे में। विश्व का सबसे महंगा आलू फ्रांस का ले बोनोटे अपने अलहदा स्वाद की वजह से विश्व के सबसे महंगे आलू के तौर पर जाना जाता है। यह 50,000 से लेकर 90,000 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिकता है। आलू को सब्जियों का राजा कहा जाता है। क्योंकि, यह स्वाद में अव्वल स्थान पर आता है। आलू हम सबकी जिंदगी में विशेष स्थान रखता है। बतादें, कि कभी सब्जी तो कभी स्नैक्स के तौर पर इसका भर-भरकर उपयोग होता है।  सामान्यतः आलू का पूरी साल उपभोग किया जाता है। क्योंकि, इसकी कीमत कम होती है। साथ ही, हर किसी व्यंजन के साथ यह घुलमिल सकता है। फिलहाल, फुटकर में इसकी कीमत 10 से 15 रुपये प्रति किलो है। साथ ही, वर्ष भर यह अधिक से अधिक 20 से 50 रुपये के मध्य ही बिकता है। परंतु, क्या आपको जानकारी है, कि आलू की एक ऐसी भी किस्म है, जो सोने-चांदी की कीमत पर आती है। 

ले बोनोटे आलू की पैदावार किस देश में की जाती है

हम जिस आलू की बात कर रहे हैं, उस किस्म का नाम
ले बोनोटे Le Bonnotte है। यह किस्म केवल फ्रांस के अंदर ही उगाया जाता है। इस एक किलो आलू की कीमत इतनी अधिक है, कि किसी भी मध्यमवर्गीय परिवार के घर का वर्षभर का राशन जाए। यह 50,000 रुपये से लेकर 90,000 रुपये प्रति किलोग्राम की कीमत पर बिक्रय किया जाता है। अब इसमें चकित करने वाली बात यह है, कि इतना महंगा होने के बावजूद ले बोनोटे की खूब खरीदारी होती रहती है। इसकी वजह है, इसकी कम पैदावार। वर्षभर में इसका उत्पादन मई एवं जून के मध्य ही होता है। बेशक इसकी कीमत सातवें आसमान पर है। परंतु, तब भी लोग इसको खरीदकर खाने के लिए सदैव तैयार रहते हैं। 

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आलू की पैदावार कितनी होती है

आलू की इस किस्म के आलू के स्वाद को जो चीज सबसे हटकर बनाती है। वह है, इसकी विशेष प्रकार की खेती, जो कि केवल 50 वर्ग मीटर की रेतीली जमीन पर की जाती है। इसको उगाने के लिए खाद के तौर पर समुद्री शैवाल का उपयोग किया जाता है। पारंपरिक तौर पर अटलांटिक महासागर के लॉयर क्षेत्र के तट के फ्रांसीसी द्वीप नोइमोर्टियर पर इसका उत्पादन होता है। खेती के उपरांत आलू का चयन करने के लिए लगभग 2500 लोग सात दिन तक लगे रहते हैं।10,000 टन आलू की फसल में से केवल 100 टन ही ला बोनेटे उत्पादित होते हैं।

इस किस्म का आलू कैसा होता है ?

यदि हम ला बोनेटे के स्वाद पर नजर डालें तो इसमें नींबू के साथ नमक एवं अखरोट का भी स्वाद होता है, जो और किसी आलू के अंदर नहीं पाया जाता है। यह काफी मुलायम एवं नाज़ुक होते हैं। ऐसा कहा जाता है, कि इसको सामान्य तौर पर उबालकर ही निर्मित किया जाता है। इसको मक्खन और समुद्री नमक के साथ परोसा जाता है। यह आकार में काफी छोटे होते हैं। साथ ही, गोल्फ की गेंद के आकार से बड़े नहीं होते। वहीं, अगर इनके गूदे की बात करें, तो मलाईदार सफेद होता है। इस आलू की कीमत इसकी उपलब्धता के अनुरूप प्रति वर्ष होती है। परंतु, आज तक यह 50,000 से 90,000 रुपये प्रति किलो के बीच ही बिक्रय किया गया है।
हर सब्जी के साथ उपयोग होने वाले आलू को घर पर उगाने का आसान तरीका क्या है?

हर सब्जी के साथ उपयोग होने वाले आलू को घर पर उगाने का आसान तरीका क्या है?

कोई भी व्यक्ति अपने घर में आलू का उत्पादन करके काफी धन की बचत कर सकता है। ये एक ऐसी सब्जी है, जिसका इस्तेमाल प्रत्येक सब्जी में किया जाता है। आलू एक ऐसी सब्जी है, जिसका उपयोग हर घर में किया जाता है। ये भारत के घरों में सबसे ज्यादा इस्तेमाल में आने वाली सब्जी भी है। आलू की सब्जी घरों में विभिन्न प्रकार से बनती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आप इसे घर में भी उगा सकते हैं। इसे घर पर लगाने के बाद बाजार से आलू खरीदकर लाने का झंझट ही खत्म हो जाएगा, आइए जानते हैं इसे घर में लगाने का आसान तरीका। 

आलू उगाने के समय इन बातों का विशेष ध्यान रखें 

यदि आप अपने घर पर ही आलू उगाना चाहते हैं, तो आप अच्छे बीजों का चुनाव करें। आलू उगाने के लिए आप सर्टिफाइड बीजों का ही चयन करें। इसके अतिरिक्त आप आलू को भी बीज के तोर पर उपयोग कर सकते हैं। अगर आप आलू का उपयोग कर रहे हैं, तो आप सफेद बड्स अथवा फिर स्प्राउट्स नजर आने वाले बीजों को इस्तेमाल में लें। इस कारण से शीघ्र ही पौधे निकल आऐंगे। ये भी पढ़ें:
आलू की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी आलू या फिर किसी भी बाकी फसल की खेती में मृदा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसके लिए आप शानदार मृदा लें उसमें बेहतर ढंग से खाद डालें। आप इसके लिए 50 प्रतिशत मिट्टी, 30 प्रतिशत वर्मी कम्पोस्ट एवं 20 फीसदी कोको पीट का उपयोग कर सकते हैं। आप इन समस्त चीजों को मिलाकर एक बड़े गमले में लगा दें।

आलू को घर पर बेहतर ढ़ंग से उगाऐं 

आलू के अंकुरों को गमले, कंटेनर अथवा क्यारी में मृदा के नीचे 5-6 इंच नीचे दबा दें। ऊपर से सही ढक कर पानी डाल दें। आप बाजार में बड़े गमले, ग्रो बैग, घर पर कोई पुरानी बाल्टी अथवा कंटेनर का भी उपयोग कर सकते हैं। आलू के अंकुरों को गमले, कंटेनर या क्यारी में मृदा के नीचे 5-6 इंच नीचे दबा दें। ऊपर से सही तरीके से पानी डाल दें। आप बाजार में उपलब्ध ग्रो बैग, बड़े गमले, घर पर कोई पुरानी बाल्टी अथवा कंटेनर भी उपयोग कर सकते हैं। 
आलू बीज उत्पादन से होगा मुनाफा

आलू बीज उत्पादन से होगा मुनाफा

आलू को सब्ज़ियों का राजा माना जाता है। राजा इसलिए क्योंकि इसका अधिकांश सब्जियों में प्रयोग होता है।आलू उत्पादक प्रदेशों की बात करें तो उत्तर प्रदेश इसमें प्रमुख है। यहां के अलावा पश्चिम बंगाल, बिहार, गुजरात, पंजाब आसाम एवं मध्य प्रदेश में आलू की खेती होती है। आलू उत्पादन में यूपी का तकरीबन 40 प्रतिशत योगदान रहता है। यहां के किसान आलू की उन्नत खेती के लिए जाने जाते हैं लेकिन बीज उत्पादन के क्षेत्र में जो स्थान पंजाब के किसानों ने हासिल किया है वह यहां के किसान नहीं कर पाए हैं । अब जरूरत आलू के उत्पादन के साथ बीज उत्पादन के क्षेत्र में आगे बढ़ने की है। आलू की खेती मोटी लागत चाहती है। इसे सामान्य किसान नहीं कर सकते। बाजारू गिरावट की स्थिति में कई किसानों को मोटा नुकसान भी उठाना पड़ता है। नुकसान के झटके को कई किसान झेल भी नहीं पाते। यूंतो सामान्य तरीके से किसान बीज तैयार करते हैं इसे प्रमाणित कराकर बेचने की बात ही कुछ और है। बीज उत्पादन और आलू उत्पादन में मूलतः ज्यादा फर्क नहीं होता। इस लिए आलू उत्पादन के साथ किसान बीज उत्पादन को समझें और खुद के लिए बीज तैयार करना शुरू करें।   

   aloo 

 आलू की अभी तक करीब तीन दर्जन किस्में विकसित हो चुकी हैं। इनमें कई कम समय में तैयार होने वाली हाइब्रिड किस्में भी किसानों में खूब भा रही हैं। आलू भी दो तरह का होता है। सब्जी वाला और प्रसंस्करण के लिए उपयोग में आने वाला। 

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 सब्जी वाली किस्मों में कुफरी चंद्रमुखी किस्म 70 से 80 दिन में तैयार हो जाती है। इससे 200 से 250 कुंतल प्रति हैक्टेयर उत्पादन प्राप्त होता है। इसमें पछेती अंगमारी रोग आता है। कुफरी बहार जिसे 3797 नंबर दिया गया है, करीब 100 दिन में तैयार होती है और उपज 250 से 300 कुंतल मिलती है। इसे पक्का आलू माना जाता है। कुफरी अशोका अगेती किस्म है। यह संपूर्ण सिन्धु एवं गंगा क्षेत्र के लिए उपयुक्त है। अधिकतत 80 दिन में तैयार होकर 300 कुंतल तक उपज देती है। कुफरी बादशाह पकने में लम्बा समय लेती है। यह पछेती अंगमारी रोग रोधी है। जल्दी खुदाई करने पर भी अच्छा उत्पादन रहता है। अधिकतम 120 दिन में तैयार होकर 400 कुंतल तक उपज देती है। कुफरी लालिमा जल्दी तैयार होने वाली किस्म है। छिलका गुलाबी होता है। यह अगेती झुलसा रोग के लिए मध्यम अवरोधी है। 100 दिन में 300 कुंतल, कुफरी पुखराज 100 दिन में 400 कुंतल, कुफरी सिंदूरी 120 से 140 दिन में पकती है। यह मैदानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्म है। 400 कुंतल, कुफरी सतलुज 110 दिन में पकती है। सिंधु, गंगा मैदानी तथा पठारी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। उपज 300 कुंतल, कुुफरी आनंद 120 दिन में 400 कुंतल तक उपज देती है। आलू का उपयोग प्रसंस्करण इकाईयों में बहुत हो रहा है। चाहे आलू भुजिया हो, चिप्स या फिर पापड़ आदि। इसके लिए हिमाचल स्थित कुफरी संस्थान ने अन्य किस्में विकसित की हैं। इनमें प्रमुख रूप से कुफरी चिपसोना-1, 110 दिन में तैयार होकर 400 कुंतल तक उपज देती है। कुफरी चिपसोना-2 किस्म 110 दिन में तैयार होकर 350 कुंतल तक उपज देती है। 

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 कुफरी चिप्सोना-3, कुफरी सदाबहार, कुफरी चिप्सोना-4, कुफरी पुष्कर के पकने की अवधि 90 से 110 दिन है। कुफरी मोहन नई किस्म है। इनका उत्पादन भी 300 कुंतल से ज्यादा ही आता है। किस्मों की कमी नहीं और आलू की खेती जागरूक किसान ही ज्यादा करते हैं। उन्हें अपने इलाके के लिए उपयुक्त किस्मों की जानकारी रहती है। यह इस लिए भी आसान होता है क्योंकि किसान समूह में ही बीज खरीदकर लाते हैं और बेचने का काम भी समूह में होता है। 

आलू के बीज उत्पादन के लिए हर जनपद स्तर पर हर साल आधारीय बीज आता है। इस बीज के कट्टों पर सफेद रंगा का टैग लगा होता है। आधारीय बीज भी दो तरह का होता है आधारीय प्रथम एवं आधारीय द्वितीय। यदि किसानों को दो साल तक खुद के बीज को प्रयोग करना है तो आधारीय प्रथम बीज खरीदें। इससे पहले साल आधारीय द्वितीय बीज तैयार होता। अगले साल उस बीज से प्रमाणित बीज बनेगा। बीज तैयार करने के लिए फसल में 15 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देनी चाहिए। इसके अलावा माहू कीट फसल पर दिखने लगे तभी पाल को काटकर छोड़ देना चाहिए। बीज के लिए लगने वाले आलू की बिजाई समय से करनी चाहिए। पाल की कटाई थोड़ा जल्दी इस लिए की जाती ताकि कंद का आकार बड़ा नहो। बीज के आलू का आकार छोटा ही रखा जाता है। कई किसान पूरे समय में ही आलू को निकालते हैं। उसमें से सीड और खाने के लिए आलू को साइज के हिसाब से अलग-अलग छांट लेते हैं।

बीज की बेहद कमी

  aloo seed 

 देष में आलू के बीज की बेहद कमी है। बीज कोई भी हो उत्पादन आम फसल की तरह ही होता है लेकिन कीमतों में बहुुत अंतद होता है। गेहूं यदि फसल के समय 1500 रुपए कुंतल होता है तो छह माह बाद ही वह 3000 रुपए प्रति कुंतल बिकता है। यह बात आम बीजों की है। हाईब्रिड बीजों की कीमत तो लाखों लाख रुपए प्रति किलोग्राम तक होती है और इनका उत्पान सामान्य आदमी के बसका भी नहीं लेकिन आम किस्मों का बीज कोई भी तैयार कर सकता है। पंजीकरण जरूरी हर राज्य में बीज प्रमाणीकरण संस्था होती है। बीज उत्पादन के लिए कट्टों पर लगे टैग, बीज खरीद वाली संस्था की रषीद के आधार पर पंजीकरण कराया जा सकता है।

इस तरह करें अगेती आलू की खेती

इस तरह करें अगेती आलू की खेती

आज हम आपको जानकारी देने जा रहे है सब्जियों के "राजा साहब" आलू की. आलू एक ऐसी सब्जी है जो की किसी भी सब्जी के साथ मिल जाती है, आलू के व्यंजन भी बनाते है जिनकी गिनती करने लगो तो समय कम पड़ जाये. क्षेत्र के हिसाब से इसके भांति भांति के व्यंजन बनते हैं सब्जी के साथ साथ आलू की भुजिआ , नमकीन , जिप्स, टिक्की, पापड़, पकोड़े, हलुआ आदि. आलू एक ऐसी सब्जी है जब घर में कोई सब्जी न हो तो भी अकेले आलू की सब्जी या चटनी बनाई जा सकती है. सबसे खास बात ये किसान के लिए सबसे बर्वादी वाली फसल है और सबसे ज्यादा आमदनी वाली फसल भी है. सामान्यतः किसानों में एक कहावत प्रचलित है की आलू के घाटे को आलू ही पूरा कर सकता है. इससे इसकी अहमियत पता चलती है.

खेत की तैयारी:

किसी भी जमीन के अंदर वाली फसल के लिए खेत की मिटटी भुरभुरी होनी चाहिए जिससे की फसल को पनपने के लिए पर्याप्त जगह मिल सके, क्योकि किसी ठोस या कड़क मिटटी में वो पनप नहीं पायेगी. हमेशा आलू के खेत की मिटटी को इतना भुरभरा बना दिया जाता है की इसमें से कोई भी आदमी दौड़ के पार न कर सके. इसका मतलब इसको बहुत ही गहराई के साथ जुताई की जाती है. अभी का समय आलू के खेत को तैयार करने का सही समय है. सबसे पहले हमको खेत में बनी हुई
गोबर की खाद दाल देनी चाहिए और खाद की मात्रा इतनी होनी चाहिए जिससे की खेत की मिटटी का रंग बदल जाये, कहने का तात्पर्य है की अगर हमें 100 किलो खाद की जरूरत है तो हमें इसमें 150 किलो खाद डालना चाहिए इससे हमें रासायनिक खाद पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा और हमारा आलू भी अच्छी क्वालिटी का पैदा होगा.

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आलू की बुबाई से पहले खेत में जिंक आदि मिलाने की सोच रहे हैं तो पहले मिटटी की जाँच कराएं उसके बाद जरूरत के हिसाब से ही जिंक या पोटाश मिलाएं. ऐसा न करें की आपका पडोसी क्या लाया है वही आप भी जाकर खरीद लाएं किसी भी दुकानदार के वाहकावें में न आएं. आप जो भी पैसा खर्च करतें है वो आपकी खून पसीने की कमाई होती है. किसी को ऐसे ही न लुटाएं.

अगेती आलू की खेती का समय:

अगेती आलू की खेती का समय क्षेत्र के हिसाब से अलग अलग होता है. इसको लगाने के समय मौसम के हिसाब से होता है. इसको विकसित होने के लिए हलकी ठण्ड की आवश्यकता होती है. अगर हम उत्तर भारत की बात करें तो ध्यान रहे की इसकी फसल दिसंबर तक पूरी हो जानी  चाहिए. इसकी बुवाई लगभग सितम्बर/अक्टूबर में शुरू हो जाती है. आलू दो तरह का बोया जाता है एक फसल इसकी कोल्ड स्टोरेज में रखी जाती है उसकी खुदाई फरबरी और मार्च में होती है और जो कच्ची फसल होती है उसको स्टोर नहीं किया जा सकता उसकी खुदाई दिसंबर में हो जाती है. सितम्बर से कच्चा आलू देश के अन्य हिस्सों से आना शुरू हो जाता है.

जमीन और मौसम:

आलू के लिए दोमट और रेतीली मिटटी ज्यादा मुफीद होती है, याद रखें की पानी निकासी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए जिससे की आलू के झोरा के ऊपर पानी न जा पाए. आलू में पानी भी कम देना होता है जिससे की उसके आस पास की मिटटी गीली न हो बस उसको नीचे से नमी मिलती रहे. जिससे की आलू को फूलने में कोई भी अवरोध न आये. आलू पर पानी जाने से उसके ऊपर दाग आने की संभावना रहती है, तो  आलू में ज्यादा पानी देने से बचना चाहिए.

अगेती आलू की खेती के बीज का चुनाव:

  • किसी भी फसल के लिए उसके बीज का चुनाव सबसे महत्वपूर्ण होता है. आलू में कई तरह के बीज आते हैं इसकी हम आगे बात करेंगें.आलू के बीज के लिए कोशिश करें की नया बीज और रोगमुक्त बीज प्रयोग में लाएं. इससे आपके फसल की पैदावार के साथ साथ आपकी पूरे साल की मेहनत और मेहनत की कमाई दोनों ही दाव पर लगे होते हैं.
  • कई बार आलू के बीज की प्रजाति उसके क्षेत्र के हिसाब से भी बोई जाती है. इसके लिए अपने ब्लॉक के कृषि अधिकारी से संपर्क किया जा सकता है या जो फसल अच्छी पैदावार देती है उसका भी प्रयोग कर सकते हैं. ज्यादा जानकारी के लिए आप हमें लिख सकते हैं.
  • आलू का बीज लेते समय ध्यान रखें रोगमुक्त और बड़ा साइज वाला आलू प्रयोग करें, लेकिन ध्यान रहे की बीज इतना भी महगा न हो की आपकी लागत में वृद्धि कर दे. ज्यादातर देखा गया है की छोटे बीज में ही रोग आने की संभावना ज्यादा होती है.


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बुवाई का तरीका:

वैसे तो आजकल आलू बुबाई की अतिआधुनिक मशीनें आ गई है लेकिन बुवाई करते समय ध्यान रखना चाहिए की लाइन में पौधे से पौधे की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर होनी चाहिए और झोरा से झोरा की दूरी 50 सेंटीमीटर होनी चाहिए. इससे से पौधे को भरपूर रौशनी मिलती है और उसे फैलाने और फूलने के लिए पर्याप्त रोशनी और हवा मिलती है. पास पास पौधे होने से आलू का साइज छोटा रहता है तथा इसमें रोग आने की संभावना भी ज्यादा होती है. [video width="640" height="352" mp4="https://www.merikheti.com/assets/post_images/m-2020-08-aloo-1.mp4" autoplay="true" preload="auto"][/video]

खाद का प्रयोग:

  • जैसा की हम पहले बता चुके हैं की आलू के खेत में बानी हुई गोबर की खाद डालनी चाहिए इससे रासायनिक खादों से बचा जा सकता है.
  • पोटाश 50 से 75 किलो और जिंक ७.५  पर एकड़ दोनों को मिक्स कर लें और 50 किलो पर एकड़ यूरिया मिला के खेत में बखेर दें, और DAP खाद 200 किलो एकड़ खेत में डाल के ( जिंक और DAP को न मिलाएं) ऊपर से कल्टिवेटर से जुताई करके पटेला/साहेल/सुहागा लगा दें.उसके बाद आलू की बुबाई कर सकते है. इसके 25 दिन बाद हलकी सिचाईं करें उसके बाद यूरिआ 50 से 75 किलो पर एकड और 10 किलो पर एकड़  जाइम मिला कर बखेर दें. पहले पानी के बाद फपूँदी नाशक का स्प्रे करा दें.

मौसम से बचाव:

इसको पाले से पानी के द्वारा ही बचाया जा सकता है. जब भी रात को पाला पड़े तो दिन में आपको पानी लगाना पड़ेगा. ज्यादा नुकसान होने पर 5 से 7 किलो पर एकड़ सल्फर बखेर दें जिससे जाड़े का प्रकोप काम होगा.

आलू की प्रजाति:

3797, चिप्सोना, कुफऱी चंदरमुखी, कुफरी अलंकार, कुफरी पुखराज, कुफरी ख्याती, कुफरी सूर्या, कुफरी अशोका, कुफरी जवाहर, जिनकी पकने की अवधि 80 से 100 दिन है
आलू की पछेती झुलसा बीमारी एवं उनका प्रबंधन

आलू की पछेती झुलसा बीमारी एवं उनका प्रबंधन

मनोज कुमार1, मेही लाल1, एव संजीव शर्मा2 
1आई सी ए आर-केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान क्षेत्रीय केंद्र, मोदीपुरम, मेरठ
2आई सी ए आर- केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान,शिमला, हिमाचल प्रदेश
आलू भारतवर्ष की एक प्रमुख सब्जी की फसल है। इस फसल का उत्पादन भारत में लगभग 53.0 मिलियन टन, 2.25 मिलियन हेक्टयर क्षेत्र से होता है। आलू की फसल मे बीमारी मुख्तया कवक, बीजाणु, विषाणु, नेमटोड आदि के द्वारा होती है। पछेती झुलसा बीमारी फाइटोफ्थोरा इन्फेस्टान्स नामक फफूंद जैसे जीव द्वारा होती है। पछेती झुलसा का अतिक्रमण आयरलैंड में 1845-1846 के बीच हुआ था, जो इतिहास में आयरिश फेमीन के नाम से जानी जाती है, जिसके फलस्वरूप 2 मिलियन जनसंख्या मर गयी थी और 1.2 मिलियन जनसंख्या दूसरे देश में पलायन कर गये थे।

आलू की पछेती झुलसा रोग एवं उपाय

भारत में इस रोग का आगमन 1870-1880 के बीच नीलगिरी पहाड़ी पर हुआ था, तदुपरांत यह बीमारी लगभग सभी आलू उत्पादन करने वाले क्षेत्र में कम या ज्यादा तीव्र रूप में दिखती रहती है और ज्यादा तीव्र होने पर लगभग 75 प्रतिशत तक उपज में कमी आ जाती है, यद्यपि यह उगायी जाने वाली किस्म विशेष, अपनाये गये फसल सुरक्षा उपायों, एवं रोग की तीव्रता पर निर्भर करता है। यदि मौसम बीमारी के बहुत ही अनुकूल है, तो बीमारी पूरे खेत को 3-5 दिनों मे बहुत ज्यादा नुकसान कर देती और किसान की आर्थिक स्थिति पर प्रभाव डालती है। आजकल विशेष रूप से उतर भारत मे वर्षा एक दिन के अंतराल या लगातार हो रही है, और आगे आने वाले दिनों मे भी वर्षा होने का पूर्वानुमान मौसम विभाग दवारा लगाया जा रहा है। साथ ही साथ वर्षा के कारण वातावरण का पछेती झुलसा के अनुकूल बन रहा है। इस अवस्था मे पछेती झुलसा आने की संभावना और अधिक बढ़ जाती है। अत: किसानो एव आलू उत्पादको को इस समय और अधिक
आलू की खेत की निगरानी बढ़ा देनी चाहिए।

बीमारी के लक्षणः

इस बीमारी के लक्षण पत्तियो, तनो एवं कन्दो पर दिखाई देते है। पत्तियों पर छोटे, हल्के पीले-हरे अनियमित धब्बे दिखाई देते हैं। शुरू में ये धब्बे पत्तियों के सिरे तथा किनारों पर पाये जाते हैं। जो शीघ्र ही बढ़कर बड़े गीले धब्बे बन जाते हैं। बाद में पत्तियों की निचली सतह पर धब्बों के चारों ओर रूई सी बारीक सफेद फफूंद दिखाई देती है। मौसम में आर्द्रता की कमी होने पर पत्तियों का गीला भाग सूखकर भूरे रंग का हो जाता है। डण्ठलों पर बीमारी के प्रकोप होने पर हल्के भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं, जो बाद में लम्बाई में बढ़कर डण्ठल के चारों ओर फैल जाते हैं। पिछेता झुलसा बीमारी से प्रभावित कन्दों पर छिछला, लाल-भूरे रंग का शुष्क गलन देखा जा सकता है, जो असंयमित रूप में कन्द की सतह से कन्द के गूदे में पहुंच जाता है। इससे प्रभावित हिस्से सख्त हो जाते हैं तथा कन्द का गूदा बदरंग हो जाता है।

झुलसा बीमारी के प्रकट होने के लिये मौसम:

इस बीमारी का प्रकट होना एवं फैलाव पूरी तरह मौसम की अनुकूलता पर निर्भर करता है। यदि वातावरण का तापमान 10 से 20 डिग्री सेल्सियस, सापेक्षिक नमी 85 प्रतिशत से अधिक हो, बादल छाये हो, हल्की एवं रूक-रूक कर वर्षा हो रही हो साथ ही कोहरा छाया रहे तो समझना चाहिये कि बीमारी प्रकट होने की सम्भावना है।

बीमारी का फैलावः

मैदानी इलाकों के शीतगृहों में भंडारित रोगी कन्दों पर रोग कारक जीवित रहते हैं जो ग्रसित बीज कन्दों द्वारा स्वस्थ पौधे पर अनूकूल मौसम आते ही बीमारी के लक्षण प्रकट होने लगते हैं। बीमारी के लक्षण डण्ठल के निचले भाग और निचली पत्तियों पर सर्वप्रथम प्रकट होते हैं। रोगकारक के बीजाणु हवा अथवा वर्षा के जल/सिचाई द्वारा एक पौधे से दूसरे पौधे या एक खेत से दूसरे खेत तक पहुंच जाते हैं। ये भी पढ़े: इस तरह करें अगेती आलू की खेती

प्रबन्धनः

आई सी ए आर- केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (सी.पी.आर.आई.) द्वारा 2000 में पछेती झुलसा के पूर्वानुमान के लिए “झुल्साकास्ट” नामक मॉडल विकसित किया गया था, जो कि केवल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए था। बाद में इसी को आधार रखते हुए पंजाब, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल के लिए भी मॉडल बनाये गए। लेकिन ये सभी मॉडल क्षेत्रिय आधार पर है। वर्ष 2013 में सी०पी०आर०आई द्वारा “इंडोब्लटकास्ट” नामक मॉडल विकसित किया गया है जो पूरे भारतवर्ष में कार्य कर रह है। इससे आलू उत्पादक व किसान को समय -समय पर बीमारी आने से पहले सूचना मिल जाती है और वे समयानुसार उचित प्रबंधन कर सकते है।

बीमारी के प्रकोप से बचने हेतु सावधानियां:

सदैव रोग मुक्त स्वस्थ बीज आलू का ही प्रयोग करे और इसकी बीजाई का कार्य अक्टूबर माह में पूरा कर लें। गूलों को उंचा बनायें ताकि कन्द मिट्टी से अच्छी तरह ढ़के रहे ताकि फफूंद कन्दां तक न पहुंच पाये। आकाश में बादल छाये हों तो सिंचाई बन्द कर दें। साथ ही रोगरोधी किस्मों की बीजाई करें। जैसे ही आस-पास के क्षेत्रों में बीमारी आने की सूचना प्राप्त हो तो मैन्कोजैब/प्रोपीनेब/क्लारोथैलोनील युक्त फफूदनाशक दवा 0.2 प्रतिशत का सुरक्षात्मक छिड़काव करने की व्यवस्था करें ताकि आपके खेतों में बीमारी का प्रकोप न हो सके। यदि 85 प्रतिशत से अधिक संक्रमण हो जाये तो डण्ठलों की कटाई् कर दे ताकि कन्दों में संक्रमण न होने पाये। यह भी सावधानी रखनी चाहिए है कि आलू की खुदाई पश्चात ढेर की छंटाई करते समय पछेती झुलसा बीमारी से ग्रसित कन्दों की छंटाई करके उन्हें गड्ढों में दबा दें इससे शीत भण्डार में रखें जाने वाले आलू बीज कन्द बीमारी से मुक्त रहेंगे तथा बीज की शुद्धता बनी रहेगी।

बीमारी के प्रति रोगरोधी किस्मेः

देश के अलग-अलग क्षेत्रों में उगाने हेतु पछेती झुलसा रोग के प्रति रोगरोधी किस्में विकसित की जा चुकी हैं। मैदानी क्षेत्रों हेतु रोग रोधी किस्मों में कुफरी बादशाह, कुफरी ज्योती, कुफरी सतलज, कुफरी गरिमा, कुफ़री मोहन, कुफरी ख्याति, कुफरी चिप्सोना-1, कुफरी चिप्सोना-2, कुफरी चिप्सोना-3 कुफरी चिप्सोना-4,एवं कुफ़री फ्राईओम प्रमुख किस्में हैं। हिमाचल एवं उत्तराखंड की पहाड़ियों हेतु कुफरी शैलजा, कुफरी हिमालनी, कुफ़री कर्ण एंव कुफरी गिरधारी और नीलगिरी की पहाड़ियों हेतु कुफरी स्वर्णा, कुफरी थैन्मलाई एवं कुफ़री सहादरी। दार्जलिंग की पहाड़ियों हेतु कुफरी कंचन और खासी पहाड़ियों हेतु कुफरी मेघा, कुफरी हिमालनी तथा कुफरी गिरधारी प्रमुख रोगरोधी किस्में हैं। ये भी पढ़े: सर्दी में पाला, शीतलहर व ओलावृष्टि से ऐसे बचाएं गेहूं की फसल

बीमारी से फसल को बचाने के लिये फफूंदनाशक दवा का छिड़कावः

पछेती झुलसा प्रबंधन हेतु लगभग २5 फफूंदनाशक केन्द्रीय इन्सेक्टीसाइड बोर्ड एव रेजिस्ट्रेशन कमेटी  के तहत रेजिस्टर्ड है, परंतु कुछ ही उनमे से प्रयोग हेतु लाये जाते है। इन फफूंदनाशक को एक हेक्टयर छिड़काव हेतु 500-1000 ली पानी की आवश्यकता पडती है, और यह फसल की अवस्था एवं छिड़काव किए जाने वाले यंत्र पर निर्भर करता है। पिछेता झुलसा प्रबंधन हेतु सुरक्षात्मक छिड़काव सही समय पर सही मात्रा में बहुत ही आवश्यक है। कभी- कभी देखा जाता है, कि किसान भाई दो दवाए जो अलग-अलग समय पर छिड़की जाती है। एक ही साथ मिलाकर छिड़काव कर देते है, बिना बीमारी के एंटिबयोटिक्स जैसी दवाओ का छिड़काव करते है, जो कि उचित नहीं है। जैसे ही पछेती झुलसा रोग के आगमन के लिये अनुकूल मौसम हो जाये तो मैनकोजैब/प्रोपीनेब/क्लोरोथलोनील युक्त (0.2 प्रतिशत) फफूंदनाशक रसायन का सुरक्षात्मक छिडकाव करें। इसके उपरान्त भी अगर मौसम में परिवर्तन न हो या बीमारी के फैलाव की आशंका का हो तो डाईमेथोमोर्फ़+मैंकोजैब 0.3 प्रतिशत या साइमोक्सनिल युक्त (0.3 प्रतिशत) फफूंदनाशक का छिड़काव करें। यदि आवश्यकता हो तो ऊपर बताये गये फफूंदनाशकों का पुनः 7 से 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव दोहरायें।

फफूंदनाशकों का छिड़काव करते समय सावधानियां:

बीमारी की रोकथाम हेतु फफूंदनाशकों का छिड़काव करते समय किसान भाईयों को सलाह दी जाती है कि छिड़काव करते समय मुंह पर आवरण (मास्क) तथा घोल बनाते समय हाथ में रबड के दस्तानें होने चाहिए। छिड़काव पौधे की पत्तियों की निचली एवं ऊपरी दोनों सतहों पर ठीक प्रकार से करें। वर्षा होने की आशंका होने पर फफूंदनाशकों के घोल में स्टिकर (चिपकाने वाले पदार्थ) 0.1 प्रतिशत का प्रयोग करे । ऐसा करने से किया गया छिड़काव अधिक प्रभावी होगा। pacheti aloo rog 1                                  pacheti aloo rog पछेती झुलसा ग्रसित खेत                         पती के पिछले सतह पर पिछेता झुलसा के लक्षण pacheti aloo 1       pacheti aloo पछेती झुलसा से ग्रसित डण्ठल                             पछेती झुलसा से ग्रसित कंद