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जानें सबसे ज्यादा सरसों की खरीद किस राज्य में हुई है, नाफेड को खुद भी क्यों करनी पड़ी खरीद शुरू

जानें सबसे ज्यादा सरसों की खरीद किस राज्य में हुई है, नाफेड को खुद भी क्यों करनी पड़ी खरीद शुरू

नाफेड ने मार्केटिंग सीजन 2023-24 के लिए सरसों की एमएसपी दर 5450 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। अगर हम राजस्थान की बात करें तो यह भारत का एकमात्र प्रदेश है, जो अकेला 42 फीसदी सरसों की पैदावार करता है। गेहूं समेत भारत के ज्यादातर राज्यों में तिलहन की खरीद भी चालू हो चुकी है। हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान समेत विभिन्न राज्यों में एमएसपी पर सरसों की खरीद की जा रही है। मौसम के गर्म होते-होते सरसों की खरीद में तीव्रता भी होती जा रही है। यही कारण है, कि भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नाफेड) द्वारा अब तक 169217.45 मिट्रिक टन सरसों की खरीद की जा चुकी है। साथ ही, इसके एवज में किसान भाइयों के खाते में करोड़ों रुपये की धनराशि भी भेजी जा चुकी है। इससे सरसों का उत्पादन करने वाले कृषक काफी खुश हैं। ऐसी स्थिति में किसानों को आशा है, कि आगामी दिनों में सरसों खरीदी में और ज्यादा तीव्रता आएगी।

नाफेड ने खुद की सरसों की खरीद शुरू

किसान तक की खबरों के अनुसार, तीन वर्ष बाद ऐसा हुआ है, कि न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दर होने के कारण नाफेड स्वयं सरसों की खरीदी कर रहा है। इससे पूर्व किसान स्वयं मंडियों में जाकर व्यापारियों को एमएसपी से महंगी कीमत पर सरसों विक्रय करते थे। अब तक 84914 किसानों ने एमएसपी पर सरसों विक्रय करते है। इसके एवज उनके खाते में 922.24 रुपये भेजे जा चुके हैं। आहिस्ते-आहिस्ते सरसों खरीद केंद्रों पर किसानों की संख्या काफी बढ़ती जा रही है। हालाँकि, बेमौसम बारिश के कारण से राजस्थान एवं मध्य प्रदेश समेत बहुत से तिलहन उपादक राज्यों में फसल की कटाई में विलंब हो गया था। साथ ही, बरसात से सरसों की फसल को काफी क्षति भी पहुंची है। यह भी पढ़ें: न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद के लिए 25 फरवरी तक करवा सकते हैं, रजिस्ट्रेशन मध्य प्रदेश के किसान

हरियाणा में विगत 20 मार्च से सरसों की खरीद शुरू हो चुकी है

भारत में राजस्थान सरसों का सर्वाधिक उत्पादन करता है। परंतु, इस बार हरियाणा सरसों की खरीद करने के संबंध में राजस्थान से आगे है। नाफेड ने अब तक हरियाणा के अंदर 139226.38 मिट्रिक टन सरसों की खरीद करली है। हालाँकि, हरियाणा राज्य में भी देश के कुल उत्पादन का अकेले 13.5 फीसद सरसों का उत्पादन किया जाता है। इसके बदले में कृषकों को 758.78 करोड़ रुपये दिए गए हैं। विशेष बात यह है, कि हरियाणा में विगत 20 मार्च से सरसों की खरीद शुरू की गई है।

इन राज्यों में इतने मीट्रिक टन सरसों की एमएसपी पर खरीद की जा चुकी है

नाफेड ने मार्केटिंग सीजन 2023-24 हेतु सरसों की एमएसपी दर 5450 रुपये प्रति क्विंटल तय कर दी है। यदि हम राजस्थान की बात करें तो यहां की जलवायु के अनुरूप यह भारत का एकमात्र राज्य है, जो अकेला 42 फसदी सरसों का उत्पादन करता है। इसके बावजूद भी राजस्थान में अब तक 4708.40 मिट्रिक टन ही सरसों की खरीद हो सकती है। साथ ही, सरसों उत्पादन में मध्य प्रदेश भी कोई पीछे नहीं है। यह 12 प्रतिशत सरसों का उत्पादन किया करता है। मध्य प्रदेश में अब तक 9977.74 मीट्रिक टन सरसों की खरीद संपन्न हुई है। इसके उपरांत गुजरात 4.2 फीसद सरसों का उत्पादन करता है।
सरकार के प्रोत्साहन से हरियाणा के मोरनी क्षेत्र में मशरूम की खेती की तरफ बढ़ी रुची

सरकार के प्रोत्साहन से हरियाणा के मोरनी क्षेत्र में मशरूम की खेती की तरफ बढ़ी रुची

मोरनी क्षेत्र के कृषकों के लिए मशरूम की खेती वरदान सिद्ध होते दिख रही है। यहां के युवा भी मशरूम की खेती में अपनी तकदीर चमकाते दिखाई नजर रहे हैं। हरियाणा सरकार मशरूम की खेती के लिए अनुदान देकर कृषकों का होसला बुलंद कर रही है। पंचकूला जनपद के मोरनी इलाके के कृषकों के लिए मशरूम की खेती वरदान सिद्ध हो रही है। यहां के अधिकांश बेरोजगार युवा सरकार से अनुदान हांसिल कर मशरूम की खेती मे अपनी तकदीर चमका रहे हैं। मोरनी क्षेत्र के कृषकों के लिए सर्वाधिक मुनाफा इस खेती से हांसिल हो रहा है। यहां पर पहले किसान परंपरागत ढंग से खेती किया करते थे, जिसमें सरसों, तिल, गेंहू, टमाटर और मक्का के अतिरिक्त बाकी नकदी फसलें उगाई जाती थी। मगर जंगली जानवरों के  भय की वजह से ज्यादातर किसान इन फसलों को उगाना बंद करके मशरूम की खेती पर ज्यादा ध्यान देने लगे। हरियाणा सरकार भी अनुदान देकर कृषकों के हौसलों को बुलंद कर रही है। 

खेती के लिए सबसे उपयुक्त समय कौन-सा होता है 

मोरनी क्षेत्र में मशरूम की खेती के लिए अनुकूल वक्त दिसंबर के प्रथम हफ्ते से शुरू होकर मार्च के आखिर तक होता है। इसी से जागरूक होकर मोरनी गांव के बहलों निवासी युद्ध सिंह परमार कौशिक ने मशरूम की खेती आरंभ कर दी, जिसमें उन्हें काफी शानदार मुनाफा मिलने की आशा है। हरियाणा के मोरनी क्षेत्र में मशरूम की खेती के लिए अनुकूल वातावरण है। इस काम को करने के लिए अधिक भूमि की आवश्यकता नहीं होती। किसान इसको छोटे से कमरे से भी चालू कर सकते हैं। इसके पश्चात सरकार द्वारा अनुदान लेकर बड़ा व्यवसाय भी आरंभ कर सकते हैं। 

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मशरूम उत्पादन का शानदार तरीका

कम्पोस्ट को निर्मित करने के लिए धान की पुआल को भिगोकर एक दिन पश्चात इसमें डीएपी, यूरिया, पोटाश, गेहूं का चोकर, जिप्सम तथा कार्बोफ्यूडोरन मिलाकर इसे सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है। करीब डेढ़ माह के उपरांत कम्पोस्ट तैयार होता है। वर्तमान में गोबर की खाद और मिट्टी को बराबर मिलाकर लगभग डेढ़ इंच मोटी परत बिछाकर उस पर कम्पोस्ट की दो-तीन इंच मोटी परत चढ़ाई जाती है। इसमें नमी स्थिर बनी रहे, इसलिए स्प्रे से मशरूम पर दिन में दो से तीन बार छिड़काव किया जाता है। इसके ऊपर एक-दो इंच कम्पोस्ट की परत और चढ़ाई जाती है। इस प्रकार से मशरूम का उत्पादन आरंभ हो जाता है। 

सरकार कितना अनुदान प्रदान कर रही है 

सरकार ने मशरूम उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए जिन तीन योजनाओं पर अनुदान देने का निर्णय किया है, उसमें मशरूम उत्पादन इकाई, मशरूम स्पॉन इकाई और मशरूम कंपोस्ट उत्पादन इकाई शम्मिलित है। इन तीनों योजनाओं की समकुल लागत 55 लाख रुपये है। इसपर कृषकों को 50 प्रतिशत मतलब 27.50 लाख रुपये का अनुदान प्रदान किया जाता है। यदि किसान भिन्न-भिन्न योजनाओं का फायदा लेना चाहें तो इसकी भी छूट है। किसान किसी भी योजना का आसानी से चयन कर सकते हैं।
इस राज्य सरकार ने सरसों की खेती करने वाले किसानों के हित में उठाया महत्वपूर्ण कदम

इस राज्य सरकार ने सरसों की खेती करने वाले किसानों के हित में उठाया महत्वपूर्ण कदम

सरसों की खेती करने वाले हरियाणा के किसानों के लिए एक खुशखबरी है। राज्य के मुख्य सचिव संजीव कौशल का कहना है, कि रबी सीजन के दौरान सरकार किसानों की सरसों, चना, सूरजमुखी व समर मूंग की निर्धारित एमएसपी पर खरीद करेगी। साथ ही, मार्च से 5 जनपदों में उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से सूरजमुखी तेल की आपूर्ति की जाएगी।

मुख्य सचिव ने फसलों के उत्पादन को लेकर क्या कहा है ?

एक बैठक में मुख्य सचिव ने कहा कि इस सीजन में 50 हजार 800 मीट्रिक टन सूरजमुखी, 14 लाख 14 हजार 710 मीट्रिक टन सरसों, 26 हजार 320 मीट्रिक टन चना और 33 हजार 600 मीट्रिक टन समर मूंग की पैदावार होने की उम्मीद है। मुख्य सचिव ने बताया कि हरियाणा राज्य वेयरहाउसिंग कारपोरेशन, खाद्य एवं आपूर्ति विभाग व हैफेड मंडियों में सरसों, समर मूंग, चना और सूरजमुखी की खरीद प्रारंभ करने के लिए तैयारियां शुरू करने के आदेश भी दिए हैं।

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सरकार कब से सरसों की खरीद चालू करेगी 

सरकार मार्च के अंतिम सप्ताह में 5 हजार 650 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से सरसों की खरीद चालू करेगी। इसी प्रकार 5 हजार 440 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से किसानों का चना खरीदा जाएगा। 15 मई से 8 हजार 558 रुपये प्रति क्विंटल की दर से समर मूंग की खरीद होगी। इसी प्रकार एक से 15 जून तक 6760 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से सूरजमुखी की खरीद होगी।

लापहरवाही करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा 

मुख्य सचिव ने खरीद प्रक्रिया के दौरान किसानों की सुविधा के लिए अधिकारियों को समस्त आवश्यक प्रबंध करने एवं खरीदी गई पैदावार का तीन दिन के अंदर भुगतान करने के लिए कहा है। साथ ही, उन्होंने कहा कि काम में लापरवाही करने वालों को बिल्कुल बख्शा नहीं जाएगा। इस फैसले से किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य भी मिल जाएगा।

गौशालाओं से होगी अच्छी कमाई, हरियाणा सरकार ने योजना बनाई

गौशालाओं से होगी अच्छी कमाई, हरियाणा सरकार ने योजना बनाई

हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने जनपद फतेहाबाद में स्थित स्वामी सदानंद प्रणामी गौ सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट(Swami Sadanand Parnami Charitable Trust) के वार्षिक उत्सव में संबोधन के उपरांत "अपना घर" में रहने वाले दीनहीन बेसहारा लोगों से उनका दुःख दर्द एवं हाल चाल जाना। साथ ही गौ नस्ल की बेहतरी के वैज्ञानिक तरीकों को प्रचलन में लाने का आग्रह किया।

उपमुख्यमंत्री ने कहा कि गौशालाओं में गौवंश के संरक्षण एवं उसके मूत्र व गोबर से उत्पाद निर्मित करने की अत्यंत आवश्यकता है, जिससे गौशालाएं किसी पर निर्भर न रहें। इसी सन्दर्भ में उपमुख्यमंत्री द्वारा लाडवा की गौशाला का जिक्र करते हुए कहा है, कि वहां गोबर एवं मूत्र के प्रयोग से विभिन्न प्रकार के उत्पाद निर्मित किये जा रहे हैं, जो गौशालाओं की आय का स्त्रोत बन रहे हैं। इसी के मध्य चौटाला ने कहा कि गाय के गोबर से पेंट भी बनाया जा सकता है, जिसका पिंजौरा की एक गौशाला उत्तम उदाहरण है।

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हरियाणा राज्य के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने बताया कि समस्त सरकारी संस्थानों में गाय के गोबर से निर्मित पेंट का इस्तेमाल हो, इसके लिए वह हर संभव कोशिश करेंगे। उनकी इस पहल से और भी गौशालाओं को प्रोत्साहन मिलेगा, साथ साथ इसी तरह से गौशालाओं में बायोगैस प्लांट स्थापित कर रसोई गैस बनाई जा सकती है जो आय का प्रमुख स्त्रोत भी बन सकता है, बायोगैस प्लांट स्थापित करने के लिए हरियाणा सरकार सहयोग करेगी।

चौटाला ने की सोलर प्लांट लगवाने की घोषणा

हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने जनपद फतेहाबाद में स्तिथ स्वामी सदानंद प्रणामी गौ सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट के वार्षिक उत्सव में संबोधन के उपरांत "अपना घर" में रहने वाले दीनहीन बेसहारा लोगों से उनका दुःख दर्द एवं हाल चाल जाना। आश्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आये दुष्यंत चौटाला ने रक्तदान शिविर में खुद रक्तदान किया एवं गौसेवा के साथ ही फतेहाबाद के स्वामी सदानंद गौ सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट आश्रम में स्वयं कोष से सोलर प्लांट लगवाने का एलान किया। गौवंश को अच्छे तरीके से रखने के लिए राज्य सरकार सम्पूर्ण प्रयास करेगी।

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दीनहीन लोगों की सहायता कर सराहनीय कार्य किया जा रहा है।

वार्षिक उत्सव के दौरान हरियाणा उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने कहा है, कि संस्थान स्थापित करना बेहद सरल है जबकि, संस्थान को बेहतर तरीके से निरंतर चलाना बेहद कठिन है। श्रीकृष्ण प्रणामी आश्रम गौशाला के साथ-साथ ''अपना घर'' के माध्यम से दीनहीन व असहाय प्राणियों की सेवा की जा रही है। उन्होंने कहा कि गौ संरक्षण हेतु गौशाला निर्माण व वैज्ञानिक तरीकों से गायों की नस्ल बेहतरी के साथ दुग्ध उत्पादन में वृद्धि की अत्यंत आवश्यकता है। दुष्यंत चौटाला ने बताया, कि लगभग 40 वर्ष पूर्व गीर नस्ल के गौवंश को भारत से ही ब्राजिल ले जाया गया था। गीर नस्ल जो अब ब्राजील में ७० से ७२ लीटर तक रोजाना दूध देती हैं, एवं उन लोगों के आय का मुख्य स्त्रोत भी बनी है।

हरियाणा में खेतो की बिजली के समय को बढ़ाकर 7 घंटे कर दिया गया है

हरियाणा में खेतो की बिजली के समय को बढ़ाकर 7 घंटे कर दिया गया है

पानीपत में बिजली के कम सप्लाई के कारण किसान खेत में हरे चार, तिलहन व सब्जी की ठीक से सिंचाई नहीं कर पाते है. ऐसे में किसानों ने खेती फीडर में ज्यादा सप्लाई के लिए कई बार एसडीओ से लेकर एस ई तो से मांग की थी. धर्मवीर छिक्कारा जो कि पनीपत के एस ई है, उन्होंने बताया कि उत्तर हरियाणा बिजली निगम ने खेती फीडर की सप्लाई 5 घंटे से बढ़ाकर 7 घंटे कर दिया है. इसके लिए निगम ने 3 ग्रुप में शेड्यूल तैयार किया है. पहला ग्रुप में देर रात 2 बजे से सुबह 9 बजे तक. दूसरा ग्रुप में सुबह 6 बजे से दोपहर 1 बजे तक. तीसरा ग्रुप दोपहर 1 बजे से शाम 8 बजे तक बिजली सप्लाई रहेगी.

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हर डिवीजन में सहूलियत के हिसाब से फीडरो पर सप्लाई दी जाएगी, परंतु ये निर्धारित शेड्यूल के हिसाब से होगा जिससे किसानों को कोई दिक्कत ना हो. इससे पहले बिजली कम आने के कारण खेती फीडर में सप्लाई दो से तीन घंटे मिलती थी. जिसे बाद में बढ़ाकर पांच घंटे कर दिया गया. अब सात घंटे दी जाएगी. किसान 15 जून से कर पाएंगे धान रोपाई

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15 जून से पहले कृषि और किसान कल्याण विभाग की तरफ से पहले धान की रोपाई पर रोक लगा रखी है. 15 जून के बाद किसान धान रोपाई कर सकेंगे. दूसरी ओर किसान भी समय को नजदीक आता देख तैयारी में जुटे है. धान की पौध भी तैयार हो चुकी है. खेत की जुताई के साथ मेड़ भी बनाई जा रही है. सीजन को देखते हुए बिजली निगम की ओर से सप्लाई को दो घंटे और बढ़ा दिया गया है. एक बार किसान को पूरी सप्लाई मिल जाए फिर किसान को खेत तैयार करने में ज्यादा दिक्कत नही आयेगी.
एशिया की सबसे बड़ी कृषि मंडी भारत में बनेगी, कई राज्यों के किसानों को मिलेगा फायदा

एशिया की सबसे बड़ी कृषि मंडी भारत में बनेगी, कई राज्यों के किसानों को मिलेगा फायदा

नई दिल्ली। अब खेती में भी आधुनिकीकरण के साथ-साथ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, नई तकनीक और नई किस्म इस्तेमाल में लाई जा रहीं हैं। किसान भी अब परंपरागत खेती को छोड़कर स्मार्ट फार्मिंग पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं। भारत में भी कृषि-विस्तार तेजी से चल रहा है। अब जल्दी ही भारत में एशिया की सबसे बड़ी कृषि मंडी शुरू होने जा रही है। जिससे देश के 15 से ज्यादा राज्यों के किसानों को सीधा फायदा मिलेगा। देश में अब तक बड़े पैमाने पर खेती की जाती रही है। बाजार में भाव ज्यादा अच्छा नहीं मिल सका है। लेकिन अब सरकार ने किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए एशिया का सबसे बड़ा बाजार अपने ही देश मे तैयार कर दिया है।

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केन्द्र सरकार ने 14 फसलों की 17 किस्मों का समर्थन मूल्य बढ़ाया एशिया की सबसे बड़ी कृषि मंडी हरियाणा के गन्नौर में बनने जा रही है। जिसमें किसानों को बहुत ही जल्द फल-फूल, सब्जी और अनाजों का एकल बाजार मुहैया कराया जाएगा। इस पहल से देश के 15 से ज्यादा राज्यों के करोड़ों किसान बिना किसी तनाव के अपनी उपज बेचकर अच्छी बचत कर सकेंगे।

कब होगी एशिया की सबसे बड़ी कृषि मंडी की शुरुआत ?

- माना जा रहा है कि साल 2022 के सितंबर माह में एशिया की सबसे बड़ी कृषि मंडी की शुरुआत होने जा रही है। सरकार और प्रशासन की ओर से कृषि मंडी की लगभग सभी औपचारिकताएं पूरी हो चुकी हैं।

कृषि मंडी बनाने में कितनी लागत आई है ?

- हरियाणा में बनने वाली एशिया की सबसे बड़ी कृषि मंडी में करीब 8 हजार करोड़ की लागत आई है। मंडी में मुख्यरूप से बागवानी फसलें जैसे फल-फूल, सब्जियों के साथ-साथ डेयरी उत्पादों को बड़ी मात्रा में खरीदा व बेचा जाएगा।

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कृषि मंडी के प्रमुख उद्देश्य

1- इस कृषि बााजार को सप्लाई चेन, कोल्ड स्टोरेज, वेयर हाउस, रेल परिवहन और ऑनलाइन मार्केटिंग की सुविधाओं से भी जोड़ा जायेगा। 2- बाजार के अंदर ही किसानों और मंडी में काम करने वाले लोगों के लिये ठहरने, लोडिंग वाहनों की पार्किंग, व्यापारियों के लिये सुविधाजनक दुकानें और रेफ्रिजरेटर गाड़ियों का प्रबंधन भी होगा। 3- इस मंडी में अंतर्राष्ट्रीय बाजार मानकों के अनुसार निर्यात के लिये भी कृषि जिंसों की खरीद-बिक्री की जायेगी। 4- करोड़ टन की क्षमता वाली इस मंडी में फल, फूल, सब्जियां, अनाज, डेयरी प्रॉडक्ट्स का व्यापार किया जा सकेगा. इस कृषि बाजार में मछलियों के लिए अलग से एयर कंडिशनिंग बाजार बनाया जायेगा -------- लोकेन्द्र नरवार
कपास की फसल को गुलाबी सुंडी से खतरा, कृषि विभाग ने जारी किया अलर्ट

कपास की फसल को गुलाबी सुंडी से खतरा, कृषि विभाग ने जारी किया अलर्ट

सिरसा। किसानों के लिए वरदान बनी कपास की खेती को गुलाबी सुंडी (Pink bollworm) का खतरा हो सकता है। हरियाणा राज्य में कृषि विभाग ने इसके लिए अलर्ट जारी किया है। 

सरकार ने कपास की खेती करने वाले सभी किसान भाईयों को गुलाबी सुंडी से कपास की फसल को बचाने के लिए निर्देश भी दिए हैं। पिछले दो साल से कपास की खेती किसानों के लिए सफेद सोना साबित हुई है। 

कपास ने किसानों को अच्छा मुनाफा दिया है। जिसके चलते किसानों में लगातार कपास की खेती के प्रति रुचि बढ़ रही है। अकेले सिरसा जिले में 2 लाख 10 हजार हेक्टेयर भूमि पर कपास की खेती की जा रही है।

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क्या है गुलाबी सुंडी?

- कपास की कलियों और बीजकोषों को क्षति का कारण गुलाबी सुंडी (इल्ली) पेक्टिनोफोरा गॉसिपिएला का लार्वा है। वयस्कों का रंग और आकार अलग-अलग होता है लेकिन आम तौर पर वे चित्तीदार धूसर से धूसर-भूरे होते हैं। 

वे दिखने में लंबे पतले और भूरे से होते हैं। अंडाकार पंख झालरदार होते हैं। करीब 4 से 5 दिन में लार्वा अंडे से बाहर निकल आते हैं। और तुरंत ही कपास की कलियों या बीजकोष में घुस जाते हैं। और फिर करीब 12 से 14 दिन तक फसल को खाता है।

कैसे करें गुलाबी सुंडी से बचाव?

1- जैविक नियंत्रण के अनुसार पेक्टिनोफोरा गॉसिपिएला से प्राप्त सेक्स फेरोमोन्स का संक्रमित खेत में छिड़काव करने से गुलाबी सुंडी की क्षमता और तादात कम होती है। 

2- रासायनिक नियंत्रण के अनुसार इन गुलाबी पतंगों को मारने के लिए क्लोरपाइरिफास, एस्फेंवैलेरेट या इंडोक्साकार्ब के कीटनाशक फार्मूलेशन का पत्तियों पर छिड़काव किया जा सकता है।

 3- कीट के लक्षणों को पहचानने के लिए नियमित कपास के पौधों पर निगरानी रखें।

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4- कपास की जल्द परिवक्व होने वाली वैरायटी का उपयोग करें, ताकि सीजन शुरू होने से पहले ही फसल की उपज मिल जाए। आमतौर पर गुलाबी सुंडी सीजन में ज्यादा जोर पकड़ती है।

5- कीटनाशक दवाओं का सावधानी से प्रयोग करें, ताकि कोई नुकसान न हो। 

6- कटाई के तुरंत बाद पौधों को नष्ट कर देना चाहिए। 

7- ध्यान रहे कि कभी भी दो रासायनिक पदार्थों को मिलाकर छिड़काव न करें। इससे फसल को नुकसान संभावना बढ़ जाती है। 8- अधिकांश तौर पर नीम आधारित दवाओं का इस्तेमाल करें। 

 ------- लोकेन्द्र नरवार

खरीफ फसलों की खेती अब जलभराव वाले क्षेत्रों में भी होगी, कृषि मंत्री ने किसानों को दिया आश्वासन

खरीफ फसलों की खेती अब जलभराव वाले क्षेत्रों में भी होगी, कृषि मंत्री ने किसानों को दिया आश्वासन

खरीफ फसलों की खेती अब जलभराव वाले क्षेत्रों में भी होगी, कृषि मंत्री ने किसानों को दिया आश्वासन हरियाणा के ज्यादातर गांव में जलभराव के कारण किसान फसल की पैदावार नहीं कर पाते. ये दिक्कत अक्सर बारिश के मौसम में देखने को मिलती है. सरकार किसानों को खुशहाल करने के लिए खास इसी योजना पर काम कर रही है. सरकार चाहती है कि बारिश के कारण किसानों को दिक्कत न हो जिस वजह से ऐसे क्षेत्रों को पहले कृषि योज्य बनाया जाएगा फिर किसान वहा पर खरीफ फसलों की पैदावार कर पाएंगे. इस संबंध में जेपी दलाल जो की हरियाणा के कृषि एवं पशुपालन मंत्री है उन्होंने ने कहा कि,"प्रदेश में जलभराव से प्रभावित भूमि को कृषि योग्य बना कर किसानों को खुशहाल किया जाएगा". जिसके लिए जलभराव वाले क्षेत्रों में सौर ऊर्जा की मदद से जल निकासी प्रणाली योजना के आधार पर पानी निकालकर पास के किसी नाले में डाला जाएगा.

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जलभराव से 10 लाख हेक्टेयर भूमि प्रभावित हरियाणा सरकार की कोशिश है की हर एक क्षेत्र जिसमे की जलभराव के कारण किसान खेती करने में असमर्थ रहे है उन सभी क्षेत्रों में सौर ऊर्जा जल निकास प्रणाली योजना के द्वारा उन्हें खेती लायक बनाया जाएगा. घुसकानी में करीब 1 करोड़ 10 लाख की लागत से बने हुए सौर ऊर्जा जल निकासी प्रणाली योजना का शुभांरभ करने के लिए कृषि एवं पशुपालन मंत्री आए थे. उन्होंने कहा है कि प्रथम चरण में 1 लाख जलभराव की जमीन को सुधारने का लक्ष्य रखा गया है, जिसकी शुरुआत गांव घुसखानी से की गई है. करीब 10 लाख हेक्टेयर भूमि जलभराव होती है.जिसके लिए पाइप लाइन डालकर पंप सेटअप लगाकर सारा पानी नालों में बहा दिया जाएगा. जिसके बाद किसान उन खेतो में खेती कर पाएंगे. कृषि मंत्री जेपी दलाल ने कहा कि,"हम कुछ समय में इस समस्या से निजात पा लेंगे".
एग्री लोन लें फसल बुवाई पर, चुकाएं किसान कटाई पर : प्रोत्साहन राशि दे रही सरकार उस पर

एग्री लोन लें फसल बुवाई पर, चुकाएं किसान कटाई पर : प्रोत्साहन राशि दे रही सरकार उस पर

फसल बुवाई पर एग्री लोन लेकर कटाई के समय चुकाएं किसान, सरकार देगी प्रोत्साहन राशि

पंचकूला। हरियाणा में सरकार किसानों के लिए एक अच्छी योजना बनाने की तैयारी कर रही है। इस योजना के अंतर्गत किसान फसल बुवाई के समय एग्री लोन लेकर, कटाई के समय उस लोन को चुकता करेंगे। क्योंकि फसल बुवाई के दौरान किसान के हाथ में पैसा कम होता है और खर्चा बहुत ज्यादा, जबकि फसल कटाई के समय किसान के हाथ में पैसा होता है, इसीलिए यह योजना किसानों के लिए फायदेमंद रहेगी। समय पर एग्री लोन लेकर समय से ही जमा करने वाले किसानों को सरकार ने एक प्रतिशत प्रोत्साहन राशि देने का ऐलान किया। हरियाणा के मुख्यमंत्री
मनोहरलाल खट्टर ने हरियाणा स्टेट को-ऑपरेटिव अपेक्स बैंक (हरको) (The Haryana State Co-op Apex Bank Ltd (HARCO)) की समीक्षा में बैठक में यह बातें कहीं। अगर बैंक सीएम का सुझाव मानते हैं तो किसानों को कुछ राहत जरूर मिलेगी।

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पैक्स की जगह वैक्स को करेंगे प्रभावी

- मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की अध्यक्षता वाली बैठक में एक और अहम फैसला लिया गया, जिसमें पैक्स (प्राइमरी एग्रीकल्चर क्रेडिट सोसायटी) (Primary Agricultural Credit Society (PACS)) के एकाधिकार को खत्म करके वैक्स, यानी ग्राम कृषि प्राथमिक सहकारी समितियों (Village Agriculture primary Cooperative Societies (VACS)) को बनाने का फैसला लिया गया है। वैक्स में गांव-देहात के पढ़े-लिखे युवा किसान भी शामिल होंगे, जिनका रजिस्ट्रेशन भी को-ऑपरेटिव सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत किया जाएगा और किसान भाई ही वैक्स का संचालन करेंगे।

हर जिले में खोले जाएं हरको बैंक

- जिला केन्द्रीय सहकारी बैंक की शाखाओं के नियंत्रण हरको बैंक ही रखते हैं। वर्तमान में हरियाणा के चंडीगढ़ व पंचकूला में ही हरको बैंक की शाखाएं संचालित हैं। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली बैठक में अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि प्रदेश के हर जिले में हरको बैंक खोलने की संभावना तलाशी जाएं। भले की हरको बैंक का सीधा संबंध पैक्स से नहीं होता है, लेकिन हरको बैंक केन्द्रीय सहकारी बैंक की शाखाओं पर तो नियंत्रण रखते ही हैं। ----- लोकेन्द्र नरवार
हरियाणा में ऋण माफी योजना की घोषणा, जानिये किन किसानों को मिलेगी 100% छूट

हरियाणा में ऋण माफी योजना की घोषणा, जानिये किन किसानों को मिलेगी 100% छूट

कुल 17,863 मृतक कर्जदार कुल 445.29 करोड़ रुपए बकाया एकमुश्त निपटान योजना में मिलेगा लाभ

हरियाणा राज्य सरकार ने कृ़षकों के हित में एकमुश्त निपटान योजना की घोषणा की है। इस सरकारी स्कीम में किसानों को ब्याज में छूट प्रदान की जाएगी, साथ ही अन्य कृषि खर्चों को भी माफ किया जाएगा। सरकार के द्वारा कृषक एवं किसानी के हित में की गई कर्जमाफी की घोषणा से हरियाणा राज्य के किसानों को व्यापक रूप से लाभ मिलेगा। इस स्कीम से किसानों के एक बड़े वर्ग को राहत मिलने की संभावना है। भारत के कई राज्यों में कर्जमाफी योजना के तहत कृषकों को कर्ज के बोझ से राहत प्रदान की गई है। हरियाणा राज्य सरकार के द्वारा प्रदेश के किसानों के कर्ज माफी प्लान के तहत किसानों को ब्याज में 100 प्रतिशत तक छूट दिए जाने का निर्णय प्रदेश सरकार ने लिया है।

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एकमुश्त निपटान योजना

हरियाणा राज्य सरकार ने इस वर्ष 5 अगस्त को किसान हितैषी एकमुश्त निपटान योजना की घोषणा की थी। इस योजना में किसानों को ब्याज में छूट प्रदान करने के साथ ही अन्य कृषि खर्चों को भी माफ करने का सरकार का प्लान है।

योजना का उद्देश्य

कर्ज के बोझ के कारण किसान आत्मघाती कदम उठाने से बचें एवं अपने किसानी अनुभव से प्रदेश कृषि आय वृद्धि में सहयोग प्रदान करें, कर्ज की चिंता के बजाए किसान अगली फसल की पैदावार पर ध्यान केंद्रित कर सकें, साथ ही कर्ज चुकाने के लिए भी प्रेरित हों इस मकसद से हरियाणा प्रदेश सरकार ने एकमुश्त निपटान योजना के तहत फसल कर्ज ब्याज राशि माफ करने का अहम निर्णय लिया है।

किनको मिलेगा लाभ

हरियाणा सरकार की कर्ज माफी की योजना (karj mafi yojana) का ऐलान एकमुश्त निपटान योजना के तहत किया गया है। एकमुश्त निपटान येाजना का लाभ हरियाणा राज्य के कर्जदार किसानों या जिला कृषि और भूमि विकास बैंक के सदस्यों को प्रदान किया जाएगा।

सहकारी मंत्री ने दी जानकारी

हरियाणा प्रदेश सरकार के सहकारिता मंत्री डॉ. बनवारी लाल ने इस किसान हितैषी योजना के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि, कर्ज लेने वाले किसानों को घोषित योजना के तहत बकाया ब्याज पर 100 प्रतिशत तक की छूट दी जाएगी। उन्होंने बताया कि, कर्जदार किसान का निधन होने की स्थिति में किसान के वारिसों को छूट का लाभ मूलधन जमा करने पर प्रदान किया जाएगा।

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सहकारिता मंत्री डॉ. बनवारी लाल के मुताबिक मृतक कर्जदार किसान के उत्तराधिकारी को पूरी मूलधन राशि ऋण खाते में जमा करने पर प्रदेश सरकार द्वारा अतिदेय ब्याज में सौ फीसदी छूट प्रदान की जाएगी।

लाभ और भी

कर्ज पर ब्याज में छूट के लाभ के अलावा जुर्माना ब्याज एवं अन्य खर्चों को भी माफ करने का सरकार ने फैसला किया है। इस निर्णय के तहत योजना में शामिल कर्जदार किसानों के मृत हो जाने पर उत्तराधिकारियों को एकमुश्त भुगतान पर 31 मार्च 2022 तक का संपूर्ण सरचार्ज, जुर्माना ब्याज व अन्य खर्च प्रदेश सरकार द्वारा माफ कर दिया जाएगा। बाकी अन्य सभी कर्जदार कृषकों को भी कर्ज माफी का लाभ मिल सकेगा। अन्य किसानों का 50 फीसदी ब्याज माफ करने के साथ ही जुर्माना ब्याज व अन्य खर्च भी हरियाणा प्रदेश सरकार द्वारा माफ किए जाएंगे।

मृतक कर्जदार बकाया राशि

मंत्री डॉ. लाल ने योजना में हरियाणा राज्य में बैंक से ऋण लेने वाले मृत कर्जदारों की स्थिति भी स्पष्ट की। उन्होंने बताया कि प्रदेश मेें मृतक कर्जदारों की कुल संख्या 17,863 है। इस श्रेणी के कर्जदारों पर कुल 445.29 करोड़ रुपए की राशि बकाया है। इस बकाया राशि में 174.38 करोड़ रुपए की मूल राशि एवं 241.45 करोड़ रुपए का ब्याज और 29.46 करोड़ रुपए की दंडात्मक ब्याज राशि शामिल है।

ऋण माफी योजना से संबद्ध बैंक

डॉ. बनवारी लाल ने बताया कि, कर्ज माफी संबंधी यह योजना कृषि एवं भूमि विकास बैंक तथा जिला प्राथमिक सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंकों में लागू होगी। इन बैंकों से जुड़े ऋण लेने वाले किसानों और सदस्यों को कर्ज माफी योजना का लाभ प्रदान किया जाएगा। आपको बता दें, हरियाणा राज्य में 19 जिला प्राथमिक सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंकों के कुल 73 हजार 638 कर्जदारों पर 2070 करोड़ रुपए बकाया हैं। इसमें बकाया राशि में मूलधन 845 करोड़ रुपए, ब्याज 1112 करोड़ रुपए तथा 113 करोड़ रुपए की जुर्माना ब्याज राशि शामिल है।

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सभी ऋण समाहित

डॉ. लाल ने बताया कि, ऋण ब्याज माफी योजना सभी प्रकार के ऋण पर लागू की जाएगी। ऋण के भुगतान से वंचित एवं 31 मार्च 2022 तक बैंक द्वारा डिफाल्टर घोषित ऋण धारक भी इस ऋण ब्याज माफी योजना का लाभ ले सकता है।

योजना सीमित समय के लिए

हरियाणा के सहकारिता मंत्री के अनुसार प्रदेश में कर्ज माफी की योजना को सीमित समय के लिए लागू किया गया है। इस कारण पहले आने वाले किसान को पहले लाभ मिलेगा।

यहां मिलेगी जानकारी

योजना के बारे में किसान जिला प्राथमिक सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक एवं इनकी तहसील स्तर की शाखाओं से संपर्क कर अधिक जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

अनिवार्य दस्तावेज

एकमुश्त निपटान योजना के तहत कर्ज ब्याज छूट का लाभ प्राप्त करने के लिए आवेदक को कुछ दस्तावेजों को प्रस्तुत करना होगा। आधार कार्ड, ऋण से संबंधित कागजात, आवेदक का निवास प्रमाण-पत्र, आवेदक आय प्रमाण-पत्र, मृतक किसान की स्थिति में मृत्यु प्रमाण-पत्र, आवेदक का बैंक खाता विवरण, पासपोर्ट साइज फोटो, आधार संख्या से संबद्ध मोबाइल नंबर आदि के बारे में आवेदक को फार्म के साथ जानकारी प्रदान करना होगी।

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सभी ऋण शामिल

कर्ज माफी योजना में सभी प्रकार के ऋणों को शामिल किया गया है। इसमें अल्पकालीन और दीर्घकालीन प्रकृति के ऋण लेने वाले किसान योजना का लाभ प्राप्त कर सकते हैं। चूंकि योजना हरियाणा सरकार ने सीमित समय के लिए लागू की है, अतः कर्ज ब्याज माफी का लाभ लेने किसानों को भी शीघ्रता दिखानी होगी।
हरियाणा में कृषि मेला, किसानों को नई तकनीक से कराया जाएगा अवगत

हरियाणा में कृषि मेला, किसानों को नई तकनीक से कराया जाएगा अवगत

भारत किसानों का देश है और किसान भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़. ऐसे में, केंद्र सरकार समेत तकरीबन हर राज्य सरकार समय-समय पर किसानों की बेहतरी के लिए, उन्हें बेहतर प्रशिक्षण देने, कृषि क्षेत्र में आने वाली नई तकनीकों की जानकारी देने का काम करती है. इसी क्रम में, आने वाले 13-14 सितंबर को हरियाणा के हिसार में एक कृषि मेला का आयोजन होने जा रहा है. इस कृषि मेले में किसानों को नए कृषि मशीनों, कृषि तकनीकों आदि के बारे में जानकारी दी जाएगी.

जल बचाना प्राथमिकता

हरियाणा के हिसार में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय है, जहां 13-14 सितंबर को कृषि मेला का आयोजन किया जाएगा. यूनिवर्सिटी के वाईस चांसलर ने मीडिया को जो जानकारी दी है, उसके अनुसार इस बार के मेले में पानी कैसे बचाना है, इस पर अधिक जोर दिया जा रहा है. इस मेले का थीम भी इस साल पानी बचाने को लेकर ही तैयार किया गया है. यानी, यहाँ आने वाले किसानों को पानी बचाने की तकनीक के बारे में अधिक से अधिक बताने पर ध्यान दिया जाएगा. इसके लिए जल बचाने से संबंधित उपकरण बनाने वाली कंपनियां भी यहाँ अपने उत्पादों का प्रदर्शन करेंगी.


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नई कृषि तकनीक की जानकारी

भारत में खेती का काम अमूमन छोटे जोत के किसान अधिक करते हैं. ऐसे में, कम जमीन से अधिक उपज पाना हमेशा से एक चुनौती रही है. इसके लिए नई तकनीक का इस्तेमाल, वैज्ञानिक विधि से खेती का महत्व बढ़ जाता है. जाहिर है, कृषि मेला जैसे आयोजन इस दिशा में काफी सहायक माने जाते है. इस कृषि मेले में भी किसानों को उन्नत तकनीक से पैदा की गयी खरीफ फसलों से परिचित कराया जाएगा. इस मेले में किसानों को खेती के साथ ही पशुपालन से सबंधित समस्याओं पर सवाल भी पूछने का मौक़ा मिलेगा. इसके अलावा, मेला के दौरान ही किसान अपने खेतों की मिट्टी की भी जांच मुफ्त में करवा सकेंगे. मेले में विभिन्न कंपनियों के स्टाल होंगे और इसके लिए अभी से ही बुकिंग शुरू हो चुकी है. किसानों की सुविधा के लिए और मानसून सीजन को देखते हुए वाटर प्रूफ पंडाल बनाया जा रहा है. गौरतलब है कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय उक्त कृषि मेले का आयोजन प्रति वर्ष सितंबर के महीने में करता रहा है. इस मेले में हरियाणा के अलावा पंजाब, उत्तर प्रदेश से भी हजारों किसान भाग लेते हैं.
भारत सरकार ने मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किये तीन नए उत्कृष्टता केंद्र

भारत सरकार ने मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किये तीन नए उत्कृष्टता केंद्र

भारत दुनिया में मोटे अनाजों (Coarse Grains) का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, इसलिए भारत इस चीज के लिए तेजी से प्रयासरत है कि दुनिया भर में मोटे अनाजों की स्वीकार्यता बढ़े। 

इसको लेकर भारत ने साल 2018 को मिलेट्स ईयर के तौर पर मनाया था और साथ ही अब साल 2023 को संयुक्त राष्ट्र संघ इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (आईवायओएम/IYoM-2023) के तौर पर मनाएगा। इसका सुझाव भी संयुक्त राष्ट्र (United Nations) संघ को भारत सरकार ने ही दिया है, जिस पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने सहमति जताई है।

इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (IYoM) 2023 योजना का सरकारी दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें देश के भीतर मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत सरकार ने देश में तीन नए उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किये हैं, जो देश में मोटे अनाजों के उत्पादन को बढ़ाने में सहायक होंगे, साथ ही ये उत्कृष्टता केंद्र देश में मोटे अनाजों के प्रति लोगों को जागरूक भी करेंगे।

  • इन तीन उत्कृष्टता केंद्रों में से पहला केंद्र बाजरा (Pearl Millet) के लिए  चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार (Chaudhary Charan Singh Haryana Agricultural University, Hisar) में स्थापित किया गया है। यह केंद्र पूरी तरह से बाजरे की खेती के लिए, उसके उत्पादन के लिए तथा उसके प्रचार प्रसार के लिए बनाया गया है, इसके साथ ही यह केंद्र लोगों के बीच बाजरे के फायदों को लेकर जागरूक करने का प्रयास भी करेगा।
  • इसी कड़ी में सरकार ने दूसरा उत्कृष्टता केंद्र भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद (Indian Institute of Millets Research (IIMR)) में स्थापित किया है। यह केंद्र ज्वार (Jowar) की खेती को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है। यह केंद्र देश भर में ज्वार की खेती के प्रति लोगों को जागरूक करेगा, साथ ही लोगों के बीच ज्वार से होने वाले फायदों को लेकर जागरूकता फैलाएगा।
  • इनके साथ ही तीसरा उत्कृष्टता केंद्र कृषि विज्ञान विश्विद्यालय, बेंगलुरु (University of Agricultural Sciences, GKVK, Bangalore) में स्थापित किया गया है। यह उत्कृष्टता केंद्र छोटे मिलेट्स जैसे कोदो, फॉक्सटेल, प्रोसो और बार्नयार्ड इत्यादि के उत्पादन और प्रचार प्रसार के लिए बनाया गया है।
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मोटे अनाजों में मुख्य तौर पर ज्वार, बाजरा, मक्का, जौ, फिंगर बाजरा और अन्य कुटकी जैसे कोदो, फॉक्सटेल, प्रोसो और बार्नयार्ड इत्यादि आते हैं, इन सभी को मिलाकर भारत में मोटा अनाज या मिलेट्स (Millets) कहते हैं। 

इन अनाजों को ज्यादातर पोषक अनाज भी कहा जाता है क्योंकि इन अनाजों में चावल और गेहूं की तुलना में 3.5 गुना अधिक पोषक तत्व पाए जाते हैं। मोटे अनाजों में पोषक तत्वों का भंडार होता है, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद फायदेमंद होते हैं। 

मिलेटस में मुख्य तौर पर बीटा-कैरोटीन, नाइयासिन, विटामिन-बी6, फोलिक एसिड, पोटेशियम, मैग्नीशियम, जस्ता आदि खनिजों के साथ विटामिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। 

इन अनाजों का सेवन लोगों के लिए बेहद फायदेमंद होता है, इनका सेवन करने वाले लोगों को कब्ज और अपच की परेशानी होने की संभावना न के बराबर होती है। 

ये अनाज बेहद चमत्कारिक हैं क्योंकि ये अनाज विपरीत परिस्तिथियों में भी आसानी से उग सकते हैं, इनके उत्पादन के लिए पानी की बेहद कम आवश्यकता होती है। 

साथ ही प्रकाश-असंवेदनशीलता और जलवायु परिवर्तन का भी इन अनाजों पर कोई ख़ास प्रभाव नहीं पड़ता, इसलिए इनका उत्पादन भी ज्यादा होता है और इन अनाजों का उत्पादन करने से प्रकृति को भी ज्यादा नुकसान नहीं होता। 

आज के युग में जब पानी लगातार काम होता जा रहा है और भूमिगत जल नीचे की ओर जा रहा है ऐसे में मोटे अनाजों का उत्पादन एक बेहतर विकल्प हो सकता है क्योंकि इनके उत्पादन में चावल और गेहूं जितना पानी इस्तेमाल नहीं होता। 

यह अनाज कम पानी में भी उगाये जा सकते हैं जो पर्यावरण के लिए बेहद अनुकूल हैं। मोटे अनाजों का उपयोग मानव अपने खाने के साथ-साथ जानवरों के खाने के लिए भी कर सकता है, इन अनाजों का उपयोग भोजन के साथ-साथ, पशुओं के लिए और पक्षियों के चारे के रूप में भी किया जाता है। ये अनाज हाई पौष्टिक मूल्यों वाले होते हैं जो कुपोषण से लड़ने में सहायक होते हैं।

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मोटे अनाजों का उत्पादन देश में कर्नाटक, राजस्थान, पुद्दुचेरी, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश इत्यादि राज्यों में ज्यादा किया जाता है, क्योंकि यहां की जलवायु मोटे अनाजों के उत्पादन के लिए अनुकूल है और इन राज्यों में मिलेट्स को आसानी से उगाया जा सकता है, 

इसके साथ ही इन राज्यों के लोग अब भी मोटे अनाजों के प्रति लगाव रखते हैं और अपनी दिनचर्या में इन अनाजों को स्थान देते हैं। इसके अलावा इन अनाजों का एक बहुत बड़ा उद्देश्य पशुओं के लिए चारे की आपूर्ति करना है। मोटे अनाजों के पेड़ों का उपयोग कई राज्यों में पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है, 

इनके पेड़ों को मशीन से काटकर पशुओं को खिलाया जाता है, इस मामले में हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और पश्चिमी उत्तर प्रदेश टॉप पर हैं, जहां मोटे अनाजों का इस उद्देश्य की आपूर्ति के लिए बहुतायत में उत्पादन किया जाता है। 

मोटे अनाजों के कई गुणों को देखते हुए सरकार लगतार इसके उत्पादन में वृद्धि करने का प्रयास कर रही है। जहां साल 2021 में 16.93 मिलियन हेक्टेयर में मोटे अनाजों की बुवाई की गई थी, 

वहीं इस साल देश में 17.63 मिलियन हेक्टेयर में मोटे अनाजों की बुवाई की गई है। अगर वर्तमान आंकड़ों की बात करें तो देश में हर साल 50 मिलियन टन से ज्यादा मिलेट्स का उत्पादन किया जाता है।

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इन मोटे अनाजों में मक्के और बाजरे का शेयर सबसे ज्यादा है। ज्यादा से ज्यादा किसान मोटे अनाजों की खेती की तरफ आकर्षित हों इसके लिए सरकार ने लगभग हर साल मोटे अनाजों के सरकारी समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी की है। इन अनाजों को सरकार अब अच्छे खासे समर्थन मूल्य के साथ खरीदती है। 

जिससे किसानों को भी इस खेती में लाभ होता है। बीते कुछ सालों में इन अनाजों के प्रचलन का ग्राफ तेजी से गिरा है। आजादी के पहले देश में ज्यादातर लोग मोटे अनाजों का ही उपयोग करते थे, लेकिन अब लोगों के खाना खाने का तरीका बदल रहा है, 

जिसके कारण लोगों की जीवनशैली प्रभावित हो रही है और लोगों को मधुमेह, कैंसर, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियां तेजी से घेर रही हैं। इन बीमारियों की रोकथाम के लिए लोगों को अपनी थाली में मोटे अनाजों का प्रयोग अवश्य करना चाहिए, जिसके लिए सरकार लगातार प्रयासरत है। 

मोटे अनाजों के फायदों को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन्हें 'सुपरफूड' बताया है। अब पीएम मोदी दुनिया भर में इन अनाजों के प्रचार के लिए ब्रांड एंबेसडर बने हुए हैं। 

"अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष 2023 की समयावधि तक कृषि मंत्रालय ने पूर्व में शुरू किए गए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन और प्राचीन तथा पौष्टिक अनाज को फिर से खाने के उपयोग में लाने पर जागरूकता फैलाने की पहल" से सम्बंधित सरकारी प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) रिलीज़ का दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें । 

पीएम नरेंद्र मोदी ने हाल ही में उज्बेकिस्तान के समरकंद में आयोजित हुए शंघाई सहयोग संगठन की बैठक को सम्बोधित करते हुए मोटे अनाजों को 'सुपरफूड' बताया था। 

उन्होंने अपने सम्बोधन में इन अनाजों से होने वाले फायदों के बारे में भी बताया था। पीएम मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन के विभिन्न नेताओं के बीच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलेट्स फूड फेस्टिवल के आयोजन की वकालत की थी। 

उन्होंने बताया था की इन अनाजों के उत्पादन के लिए कितनी कम मेहनत और पानी की जरुरत होती है। इन चीजों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार लगातार मोटे अनाजों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए और प्रचारित करने के लिए प्रयासरत है।