सेब की फसल में लगने वाले रोग, लक्षण और नियंत्रण के उपाय

Published on: 29-May-2025
Updated on: 29-May-2025
Fresh Spiny Gourd (Kakora) with Seeds
फसल बागवानी फसल फल

सेब की खेती पहाड़ी इलाकों में ज्यादा की जाती हैं। सेब की खेती के लिए ठन्डे तापमान की आवश्यकता होती हैं। सेब की खेती में किसानों को बहुत सारी कठनाइयों का सामना करना पड़ता हैं। 

जिमसे से सेब की फसल में लगने वाले रोग सबसे प्रमुख हैं। आज के इस लेख में हम आपको सेब की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगो के बारे में जानकारी देंगे जिससे की फसल में समय रहते इन रोगों का नियंत्रण आसानी से हो सकें।

सेब के प्रमुख रोग, लक्षण और नियंत्रण के उपाय   

वैसे तो सेब की फसल कई रोगों से प्रभावित होती हैं, निचे हमने कुछ प्रमुख रोगों के लक्षण  और नियंत्रण के उपाय दिए हैं जिससे आसनी से रोगों को नियंत्रित किया जा सकता हैं - 

1. स्कैब रोग (पत्तियों और फलों पर लक्षण)         

सेब का यह रोग पत्तियों और फलों पर दिखाई देता है। पत्तियों के निचले भाग पर जैतूनी रंग के धब्बे बनते हैं जो बाद में गहरे भूरे से काले रंग के हो जाते हैं और मखमली दिखाई देते हैं। 

नई पत्तियों पर धब्बों के किनारे पंख जैसे (feathery) होते हैं। पुरानी पत्तियों पर धब्बे स्पष्ट रूप से सीमित होते हैं। कुछ धब्बों में पत्ती की सतह उभरी हुई (convex) हो सकती है और दूसरी तरफ धंसी हुई (concave) दिखाई देती है। 

गंभीर संक्रमण में पत्तियाँ मुड़ जाती हैं, बौनी और विकृत हो जाती हैं। फलों पर छोटे, खुरदरे, काले गोल धब्बे बनते हैं। परिपक्व फलों पर इन धब्बों के चारों ओर पीला घेरा बन जाता है। 

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रोग नियंत्रण के उपाय   

सेब के बाग में साफ-सफाई रखें, गिरी हुई पत्तियों और छांटी गई टहनियों को सर्दियों में इकट्ठा कर जलाएं ताकि रोग की यौन अवस्था न पनप सके।

  • फूल आने से पहले Tridemorph 0.1% का छिड़काव करें।
  • फल आने की अवस्था में Mancozeb 0.25% का छिड़काव करें।
  • पतझड़ में पत्तियों के गिरने से पहले 5% यूरिया और कली निकलने से पहले 2% यूरिया का छिड़काव करें ताकि पत्तियाँ जल्दी सड़ जाएं।

2. पाउडरी मिल्ड्यू (Powdery Mildew)

यह रोग कलियों, फूलों, पत्तियों, टहनियों और फलों पर पाया जा सकता है। वसंत में संक्रमित कलियाँ सामान्य से 5-8 दिन देर से खिलती हैं, कलियाँ मुरझा जाती हैं या विकृत हो जाती हैं। 

सबसे पहले पत्तियों की निचली सतह पर सफेद, रुई जैसे फफूंद के धब्बे बनते हैं जो जल्द ही पूरी पत्ती को ढक लेते हैं। संक्रमित पत्तियाँ संकरी, सिकुड़ी हुई, अविकसित और भुरभुरी हो जाती हैं और सूख कर झड़ जाती हैं। 

यह रोग टहनियों तक फैलता है जिससे उनकी वृद्धि रुक जाती है और वे मर भी सकती हैं। संक्रमित कलियों से अगली वसंत में भी रोगग्रस्त पत्तियाँ और फूल निकलते हैं। 

संक्रमित फूल मुरझा जाते हैं और फल नहीं बनता। जब रोग अधिक फैल जाता है तो फल छोटे, असामान्य रंग के और विकृत हो जाते हैं। 

यह रोग पौधों को कमजोर कर देता है और अन्य कीटों या सर्दी से नुकसान की संभावना बढ़ जाती है। यह एकमात्र फंगल रोग है जो बारिश या ओस के बिना भी फैल सकता है।

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रोग नियंत्रण के उपाय   

  • रोग से प्रभावित टहनियों को काट कर पेड़ से अलग कर देना चाहिए। 
  • पाउडरी मिल्ड्यू की रोकथाम के लिए सेब की फसल में Dinocap 0.05% या Chinomethionate 0.1% का छिड़काव करें।

3. तीव्र झुलसा रोग (Blight) 

शुरुआती लक्षण पत्तियों पर दिखाई देते हैं जो पानी जैसे धब्बों के साथ दिखती हैं, फिर सिकुड़ कर भूरी से काली हो जाती हैं और गिर जाती हैं या पेड़ पर ही लटकी रह जाती हैं। यह रोग टहनियों तक फैल जाता है। 

ऊपरी टहनियाँ ऊपर से नीचे की ओर मुरझा जाती हैं और यह शाखाओं तक भी फैल सकता है। फल पानी जैसे धब्बे लिए हुए हो जाते हैं, फिर सिकुड़ते हैं, काले हो जाते हैं और मर जाते हैं। संक्रमित भाग से कभी-कभी रस (ooze) भी निकल सकता है।

रोग नियंत्रण के उपाय   

  • इस रोग को नियंत्रण करने के लिए संक्रमित भागों और झुलसी हुई टहनियों को काट कर नष्ट करें। 
  • अगर रोग के लक्षण फसल में दिखाई दें, तो Streptomycin 500 ppm का छिड़काव करें।

4. फल का सड़न रोग (Fruit Rot / Blue mold)

शुरुआती धब्बे फल के डंठल (stem end) से शुरू होते हैं जो हल्के भूरे, पानी जैसे सड़न के रूप में दिखाई देते हैं। फल के पकने के साथ यह सड़न फैलती है और छिलका सिकुड़ जाता है। 

एक विशेष सड़ी हुई गंध आती है। यदि मौसम नम हो तो नीले-हरे रंग का फफूंद विकसित हो सकता है। यह रोग फलों की त्वचा पर घाव (जैसे कीड़े के काटने या परिवहन में चोट) के कारण फैलता है।

रोग नियंत्रण के उपाय   

  • फलों को सावधानी से संभालें ताकि घाव न बने।
  • फलों को Aureofungin sol 500 ppm में 20 मिनट तक डुबोएं, यह सबसे अच्छा नियंत्रण देता है।