बाजरे की खेती खरीफ के मौसम में की जाती हैं। जरे की फसल मुख्य रूप से मोटे अनाज के रूप में उगाई जाती है। बाजरे की फसल का प्रयोग पशुओं के चारे के रूप में भी किया जाता है।
बाजरे की फसलों को बहुत कम पानी की आवश्यकता होती हैं इसकी खेती में किसानों को कई बातो का ध्यान रखना चाहिए इस लेख में हम आपको कुछ सुझाव देंगे जिनसे की आप बाजरे की फसल से अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।
वैसे तो बाजरे की खेती हर प्रकार की मिट्टी में आसानी से की जा सकती हैं। कम सिंचाई वाली फसल का नाम लेते हैं तो बाजरे की फसल का नाम सबसे पहले आता हैं।
बाजरे की खेती के लिए रेतीली ,रेतीली दोमट मिट्टी बहुत उत्तम होती है। जलभराव वाली मिट्टी की स्थिति में यह अच्छी तरह से उपज नहीं देता।
अच्छी पैदावार लेने के लिए खेती की अच्छे से जुताई करें। हैरो या कल्टीवेटर से खेत की एक या दो बार जुताई करके खेत को समतल करके बाद में बुवाई करे।
अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए अच्छी और उन्नत किस्मों का चुनाव करना बहुत आवश्यक होता हैं। अधिकांश बाजरा क्षेत्र में संकर किस्मों के उगाई जाती है जबकि सूखे इलाके में देशी किस्मों को प्राथमिकता दी जाती है। बाजरे की उच्च उपज देने वाली किस्में निम्नलिखित है -
Nandi 70, Nandi 72, 86M64 , HHB 234, Bio 70, HHB-226, RHB-177, KBH 108, GHB 905, 86M89, MPMH 17, Kaveri Super Boss, Bio 448, MP 7872,
MP 7792, 86M86, 86M66, RHB-173, HHB 67 आदि किस्में अधिक पैदावार देती हैं।
ये भी देखें: बाजरे की खेती (Bajra Farming information in hindi)
देश के उत्तर और मध्य भागों मेंखरीफ बाजरा की बुआई मानसून के आगमन के साथ अर्थात जुलाई के प्रथम पखवाड़े में कर देनी चाहिए। रोगों से बचाव के लिए बीज उपचार करना बहुत आवश्यक होता हैं। बाजरे की बुवाई के लिए 1 – 1. 5 किलोग्राम बीज काफी है।
जैव कीटनाशकों से बीज उपचार (ट्राइकोडर्मा हर्जियानम @ 4 ग्राम किग्रा) या थीरम 75% धूल प्रति 3 ग्राम किलो बीज के हिसाब से करें इससे मिट्टी में पैदा होने वाली बीमारियों के खिलाफ मदद मिलेगी।
40 किलोग्राम नाइट्रोजन + 20 किलोग्राम फॉस्फोरस /हेक्टेयर और शुष्क क्षेत्रों के लिए 60 किलोग्राम नाइट्रोजन/हेक्टेयर + 30 किलोग्राम फॉस्फोरस /हेक्टेयर का इस्तेमाल करे। अर्ध-शुष्क क्षेत्रों को एकमात्र बाजरा के साथ-साथ इंटरक्रॉपिंग सिस्टम के लिए अनुशंसित किया जाता है।
वैसे तो बाजरे की फसल को कम पानी की आवश्यकता होती हैं। इसकी खेती वर्षा आधारित स्थिति में की जाती हैं। अगर लंबे समय तक सूखे के दौर बने रहे तो फसल के महत्वपूर्ण चरणों में सिंचाई की जानी चाहिए। यदि जल उपलब्ध हो तो वृद्धि अर्थात कल्ले निकलना, पुष्पन और दानों के विकास की अवस्था में सिंचाई करें।