कलिहारी की खेती | बुवाई, खाद, सिंचाई और कटाई की पूरी जानकारी

Published on: 21-Feb-2025
Updated on: 21-Feb-2025

कलिहारी एक बहुवर्षीय बेल की फसल हैं। कलिहारी को एक जड़ी-बूटी वाली फ़सल के तौर पर उगाया जाता हैं।

कलिहारी का उपयोग दवाइयों में किया जाता हैं। कलिहारी से तैयार दवाइयों से जोड़ों का दर्द, एंटीहेलमैथिक, ऐंटीपेट्रिओटिक के ईलाज के लिए और पॉलीप्लोइडी को ठीक करने के लिए प्रयोग में लाई जाती है।

आज के इस लेख में हम आपको कलिहारी की खेती के बारे में सम्पूर्ण जानकरी देंगे।

कलिहारी की खेती के लिए मृदा और जलवायु

कलिहारी की खेती के लिए दोमट मिट्टी की आवश्यता होती हैं। इसकी खेती के लिए मिट्टी में उचित पोषक तत्व होने बहुत आवश्यक होती हैं।

मिट्टी में उचित पानी की निकासी की व्यवस्था होनी बहुत जरूरी हैं। इसकी खेती के लिए गर्म तापमान की आवश्यकता होती हैं। इसकी खेती के लिए 25-40°C तापमान की आवश्यकता होती हैं।

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कलिहारी की खेती के लिए खेत की तैयारी

कलिहारी को बीजने के लिए भुरभुरी और समतल मिट्टी चाहिए। मिट्टी को हल के साथ अच्छी तरह से जोड़ें।

पानी को जमा होने से बचाने के लिए निकास को नियंत्रित करें। कलिहारी की पनीरी की आवश्यकताओं के अनुसार एक छोटे से प्लाट में डालें।

कलिहारी की बुवाई किस समय की जाती हैं?

कलिहारी एक गर्मी की फसल हैं, इसकी खेती खरीफ के मौसम में की जाती हैं। इसकी बिजाई आम रूप से जुलाई और अगस्त में की जाती है।

बुवाई के लिए पौधों के अच्छे विकास के लिए 10-12 क्विंटल गांठो का प्रति एकड़ में प्रयोग करें। पनीरी वाले पौधों में 60x45 सै.मी. का फासला होना चाहिए।

बीज को 6-8 सै.मी. गहराई में बोए, इसकी बिजाई पिछली फसल से प्राप्त गांठों से या बीजों से तैयार पौधों की पनीरी लगा कर की जाती है।

कलिहारी की खेती में खाद और उर्वरक प्रबंधन

खेत की तैयारी के दौरान मिट्टी में जैविक खाद (जैसे हरी खाद या रूडी की खाद) मिलाएं। प्रति एकड़ 48 किलो नाइट्रोजन (यूरिया 104 किलो), 20 किलो फास्फोरस (सिंगल सुपर फास्फेट 125 किलो) और 28 किलो पोटाशियम (पोटाशियम म्यूरेट 46 किलो) डालें।

शुरू में, खाद के रूप में बिजाई के दौरान नाइट्रोजन की आधी मात्रा और पूरी मात्रा में फास्फोरस और पोटाश डालें।

दो भागों में नाइट्रोजन बाँटें। बिजाई से 30 दिन बाद पहला भाग और बिजाई से 60 दिन बाद दूसरा भाग डालें।

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कलिहारी की फसल में सिंचाई प्रबंधन

कलिहारी को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती। फसल को बेहतर बनाने के लिए कुछ समय के बाद सिंचाई करते रहें।

अलग-अलग समय पर सिंचाई करें, शुरुआत में चार दिनों के फासलों पर नए पौधों को पानी दें। फल कटते समय सिंचाई न करें; इसके बजाय, फल पकते समय दो बार सिंचाई करें।

पौधों को जरूरत के अधिक पानी नहीं देना चाहिए, वरना फल पकने से पहले ही गिर जाएंगे।

कलिहारी की कटाई

बिजाई से 170-180 दिनों के बाद इसकी कटाई शुरू होती है। जब इसके फल हल्के हरे से गहरे हरे रंग के हो जाते हैं, तो उन्हें काट दिया जाता है।

गांठ बिजाई से 5 से 6 साल के बाद काटी जाती है। बीजों की प्राप्ति करने के लिए पके हुए फूलों को लें और मिट्टी के नीचे गांठों को लगाएं।