हजारों साल पहले से भारत से वियतनाम पहुँचता रहा है मसाला

By: MeriKheti
Published on: 25-Jul-2023

शोध रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने कहा है, कि ओसी ईओ में पाए जाने वाले समस्त मसालों की खेती यहां पर नहीं होती होगी। क्योंकि यहां की जलवायु इन मसालों के लिए उपयुक्त नहीं है। मसालों के बिना हम स्वादिष्ट व्यंजनों की कल्पना तक भी नहीं कर सकते हैं। ये ऐसे खाद्य उत्पाद हैं, जो खाने को स्वादिष्ट और लजीज बनाते हैं। ऐसे भी दुनिया में सबसे ज्यादा मसालों का उत्पादन भारत में होता है। भारत से पूरी दुनिया में मसालों की आपूर्ति होती है। खास बात यह है, कि भारत से विदेशों में मसालों का निर्यात कोई हाल के वर्षों में आरंभ नहीं हुआ। यह सैंकड़ों साल पहले से चलता आ रहा है। साथ ही, अब एक नए शोध से ज्ञात हुआ है, कि मसालों का व्यापार तकरीबन 2,000 साल प्राचीन है।

करी बनाने के लिए मसाला इस्तेमाल किया जाता था

साइंस एडवांसेज में प्रकाशित एक रिपोर्ट में इस बात का प्रसार हुआ है। इस रिपोर्ट में दक्षिण पूर्व एशिया की सबसे पुरानी ज्ञात करी के इस्तेमाल के प्रमाण मिले हैं। विशेष बात यह है, कि भारत के बाहर मसालों के इस्तेमाल का यह सबसे पुराणा साक्ष्य है। शोधार्थियों ने दक्षिणी वियतनाम में खुदाई में निकले मसालों के ऊपर शोध किया है। ये मसालों दक्षिणी वियतनाम स्थित ओसी ईओ पुरातात्विक परिसर में खुदाई के चलते निकले थे। यहां पर आठ अन्य मसालों के इस्तेमाल के भी सुबूत मिले हैं। कहा जा रहा है, कि इन मसालों का इस्तेमाल करी बनाने में किया जाता होगा। ये भी पढ़े: सब्जियों के साथ-साथ मसालों के बढ़ते दामों से लोगों की रसोई का बिगड़ा बजट

पहले से ही संग्रहालय में उपस्थित थी

शोधकर्ताओं की टीम का शोध प्रारंभ में करी पर केंद्रित नहीं था। इस वजह से टीम ने पत्थर से बने उन यंत्रों का भी विश्लेषण किया, जिनका इस्तेमाल कभी मसाले को पीसने के लिए किया जाता था। विशेष बात यह है, कि ये सारे उपकरण ओसी ईओ साइट से खुदाई में ही निकले हैं। साल 2017 से 2019 तक चली खुदाई के चलते ज्यादातर उपकरण निकले थे। जबकि, कुछ पहले से ही संग्रहालय में उपस्थिति थे।

लगभग 40 उपकरणों का किया विश्लेषण

शोधकर्ताओं की टीम ने ओसीईओ पुरातात्विक परिसर में स्टार्च के दाने की कोशिकाओं के अंतर्गत पाई जाने वाली छोटी संरचनाओं पर भी अध्यन किया। यहां पर टीम ने 40 उपकरणों का विश्लेषण किया, जिसमें फिंगररूट, गैलंगल, जायफल, लौंग, दालचीनी, हल्दी, रेत और अदरक समेत विभिन्न प्रकार के मसाले के अवशेष शम्मिलित हैं। यह समस्त मसाले खुदाई के अंतर्गत ही निकले थे। इससे यह साबित होता है, कि ओसी ईओ पुरातात्विक परिसर में रहने वाले लोग भोजन में मसालों का इस्तेमाल करते होंगे। ये भी पढ़े: बीजीय मसाले की खेती में मुनाफा ही मुनाफा

मसाले 2000 साल पहले वैश्विक स्तर पर आदान प्रदान की जाने वाली कीमती खाद्य सामग्री थी

साथ ही, शोध रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने बताया है कि ओसी ईओ में पाए जाने वाले समस्त मसालों की खेती यहां पर नहीं होती होगी। क्योंकि यहां की जलवायु इन मसालों के उपयुक्त नहीं है। ऐसी स्थिति में भारत अथवा चीन से इन मसालों का निर्यात हुआ होगा। तब प्रशांत महासागर अथवा हिन्द महासागर को पार कर के ही व्यापारी दक्षिणी वियतनाम पहुंचें होंगे। इससे यह स्पष्ट हो जाता है, कि 2000 साल पहले मसाले वैश्विक स्तर पर आदान-प्रदान की जाने वाली सबसे कीमती खाद्य सामाग्री थी। विशेष बात यह है, कि ओसीईओ में पाए जाने वाले समस्त मसाले इस क्षेत्र में प्राकृतिक तौर पर उपलब्ध नहीं रहे होंगे।

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