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कैसे डालें धान की नर्सरी

कैसे डालें धान की नर्सरी

किसी भी फसल की नर्सरी डालना सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है क्योंकि अनेक तरह के रोग संक्रमण नर्सरी से शुरू होकर आखरी फसल पकने तक परेशान करते हैं। इनमें मुख्य रूप से जीवाणु और विषाणु जनित रोग प्रमुख हैं। 

धान की नर्सरी (paddy nursery)

एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए महीन धान 30 किलोग्राम,मध्यम धान 35 किलोग्राम और मोटे धान का 40 किलोग्राम बीज को तैयार करने हेतु पर्याप्त होता है। एक हेक्टेयर की नर्सरी से लगभग 15 हेक्टेयर क्षेत्रफल की रोपाई हो जाती है। 

धान की नर्सरी डालने से पहले पौधों वाली क्यारी को खेत से 1 से 2 इंची ऊंचा उठा लें ताकि गर्मी के समय में यदि क्यारी में पानी ज्यादा लग जाए तो उसे निकाला जा सके।

क्यारी उपचार


धान की नर्सरी डालने से पूर्व एक कुंतल सड़े हुए गोबर की खाद में एक किलोग्राम ट्राइकोडरमा मिला लें और उसे पेड़ की छांव में पानी के छींटे मार कर रखते हैं। 

7 दिन तक पानी के छींटे मारते हुए स्थान को पलटते रहें। इसके बाद धान की नर्सरी जिस क्यारी में डालनी है उसमें इसे मिला दें। ऐसा करने से जमीन में मौजूद सभी हानिकारक फफूंदियां नष्ट हो जाएंगी। 

उर्वरक प्रबंधन

एक हेक्टेयर नर्सरी डालने के लिए खेत में 100 किलोग्राम नत्रजन एवं 50 किलोग्राम फास्फोरस का प्रयोग करें।ट्राइकोडरमा का एक छिड़काव नर्सरी लगने के 10 दिन के अंदर पर कर देना चाहिए।

मौत के 10 से 15 दिन का होने पर एक सुरक्षात्मक छिड़काव खैरा सहित विभिन्न रोगों से सुरक्षा के लिए कर देना चाहिए। पांच किलोग्राम जिंक सल्फेट, 20 किलोग्राम यूरिया, या ढाई किलोग्राम बुझे हुए चूने के साथ 1000 लीटर पानी के साथ प्रति हेक्टेयर की दर से पहला छिड़काव बुवाई के 10 दिन बाद दूसरा 20 दिन बाद करना चाहिए। 

सफेदा रोग का नियंत्रण करने के लिए 4 किलोग्राम फेरस सल्फेट का 20 किलो यूरिया के घोल के साथ मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। झोंका रोग की रोकथाम के लिए 500 ग्राम कार्बन डाई, 50% डब्ल्यूपी का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। 

भूरा धब्बा रोग से बचाव के लिए दो किलोग्राम जिंक मैग्नीस कार्बोमेट का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। नर्सरी में लगने वाले कीड़ों से पौधों को बचाने के लिए 1 लीटर फेनीट्रोथियान 50 ईसी, 1. 25 लीटर क्नायूनालफास 25 ईसी या 1.5 लीटर क्लोरो पायरी फास 20 ईसी का छिड़काव प्रति हेक्टेयर की दर से करें। 

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समय-समय पर पद की क्यारी में पानी लगाते रहे और इस बात का जरूर ध्यान रखें की पानी शाम को लगाएं। सुबह तक क्यारी पानी को पी जाए इतना ही पानी लगाएं। ज्यादा पानी लगाने और पानी के क्यारी में ठहर जाने से पौध मर सकती है।

बीज का भिगोना

धान के बीज को अंकुरण के लिए भिगोने से पूर्व 100 किलो पानी में 2 किलो नमक डालकर बीज को उसमें डालें। इससे संक्रमित थोथा और खराब बीज ऊपर तैर आएगा। 

खराब बीज को फेंक दें। अच्छे बीज को नमक के घोल से निकाल कर तीन चार बार साफ पानी में धो लें ताकि नमक का कोई भी अंश बीज पर ना रहे।

टमाटर की खेती : अगस्त क्यों है टमाटर की खेती के लिए वरदान

टमाटर की खेती : अगस्त क्यों है टमाटर की खेती के लिए वरदान

बारिश में आम तौर पर खाने में सब्जियों के विकल्प कम हो जाते हैं। खास तौर पर टमाटर (Tomato) के भाव बारिश में अधिक रहने से किसानो के लिए बरसात में टमाटर की खेती (Barsaat Mein Tamatar Ki Kheti), मुनाफे का शत प्रतिशत सफल सौदा कही जा सकती है।

सड़ने गलने का खतरा

बारिश के दिनों में फसलों के सड़ने-गलने का खतरा रहता है। अल्प काल तक स्टोर किए जा सकने के कारण टोमैटो कल्टीवेशन (Tomato Cultivation) यानी टमाटर की खेती (tamaatar kee khetee) बारिश में और भी ज्यादा परेशानी का सौदा हो जाती है।



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ऐसे में सबसे अहम सवाल यह उठता है कि, बरसात में टमाटर की खेती कैसे करें (barsaat mein tamatar ki kheti kaise karen) या फिर बारिश के मौसम में टमाटर की खेती प्रारंभ करने का उचित समय क्या है, या फिर बरसाती टमाटर की खेती करते समय किन बातों का खास तौर पर ध्यान रखना चाहिए आदि, आदि। लेकिन याद रखें कि, अति बारिश की स्थिति में टमाटर की सुकुमार फसल के खराब होने का खतरा जरा ज्यादा बढ़ जाता है। हालांकि यह भी सत्य है कि, बरसात में टमाटर की खेती कठिन जरूर है, लेकिन असंभव कतई नहीं।

मेरीखेती पर करें टमाटर की खेती से सम्बंधित जिज्ञासा का समाधान

चिंता न करें मेरीखेती पर हम बताएंगे टमाटर की ऐसी किस्मों के बारे में, जिन्हें वैज्ञानिक तरीके से खास तौर पर बारिश में टमाटर की किसानी के लिए ईजाद किया गया है। साथ करेंगे आपकी सभी जिज्ञासाओं का समाधान भी।

बारिश में टमाटर की नर्सरी की तैयारी अहम

बारिश में टमाटर की खेती के लिए उसकी पौध तैयार करना किसान मित्रों के लिए सबसे अहम कारक है। टमाटर की पौध को प्रोट्रे या फिर सीधे खेत में तैयार किया जा सकता है। सीधे तौर पर खेत में टमाटर की पौध की तैयारी के वक्त, सबसे ज्यादा ध्यान रखने वाली बात यह है कि जहां टमाटर की नर्सरी बनाई जा रही है, वह भूमि बारिश के पानी में न डूबती हो। साथ ही इस स्थान पर कम से कम 4 घंटे तक धूप भी आती हो। टमाटर की पौध की तैयारी करने वाला स्थान, भूमि से यदि एक से दो फीट की ऊंचाई पर हो तो तेज या अति बारिश की स्थिति में भी टमाटर की पौध सुरक्षित रहती है।

टोमैटो नर्सरी की नापजोख का गणित

टोमैटो नर्सरी (Tomato Nursery) में क्यारियों का गणित सबसे अधिक अहम होता है। किसानों को क्यारी बनाते समय यह ध्यान रखना चाहिए, कि इनकी चौड़ाई 1 से 1.5 मीटर हो। इसकी लंबाई 3 मीटर तक हो सकती है। इस नापजोख की 4 से 6 क्यारियों की तैयारी के उपरांत बारी आती है टमाटर के बीजारोपण की।

टमाटर का बीजारोपण

टमाटर के बीजों के बीजारोपण के पहले कृषि वैज्ञानिक एवं अनुभवी किसान टमाटर बीजों को बाविस्टिन या थिरम से उपचारित करने की सलाह देते हैं।

टमाटर के पौधों की रोपाई में पानी की भूमिका

बीजारोपण के बाद नर्सरी एक महीने से लेकर 40 दिन में तैयार हो जाती है। नर्सरी में तैयार टमाटर की पौध को इच्छित भूमि में रोपने के 10 दिन पहले, नर्सरी में तैयार किए जा रहे टमाटर के पौधों को पानी देना बंद करने से टमाटर के पौधे तंदरुस्त एवं विकास के लिए पूरी तरह तैयार हो जाते हैं। इस विधि से टमाटर रोपने के कारण, रोपाई के बाद टमाटर के पौधों के सूखने का खतरा भी कम हो जाता है।

टमाटर की रोपाई के लिए अगस्त है खास

महीना अगस्त का चल रहा है, एवं यह समय किसानो के लिए टमाटर की खेती के लिए सबसे मुफीद माना जाता है। अगस्त में रोपाई करने के लिए किसान को जुलाई में टमाटर की नर्सरी तैयार करनी होती है। हालांकि, जुलाई में टमाटर की पौध तैयार करने से चूक जाने वाले किसान अगस्त में भी टमाटर की नर्सरी तैयार कर सकते हैं, क्योंकि भारत में बरसाती टमाटर की पैदावार के लिए सितंबर माह में भी टमाटर की पौध की रोपाई किसान करते हैं। हालांकि, ज्यादा मुनाफा हासिल करने के लिए कृषि वैज्ञानिक जुलाई में टमाटर की नर्सरी तैयार करने और अगस्त में रोपाई करने की सलाह देते हैं।



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टमाटर की खेती साल भर खास-खास

भारतीय रसोई में टमाटर की मांग साल भर बनी रहती है। दाल से लेकर सब्जी, सूप सभी में टमाटर अपनी रंगत एवं स्वाद से जायके का लुत्फ बढ़ा देता है। भारत में आम तौर पर टमाटर की खेती साल भर की जाती है। शरद यानी सर्दी के मौसम के लिए टमाटर की फसल की तैयारी हेतु किसान के लिए जुलाई से सितम्बर का मौसम खास होता है। इस कालखंड की फसल में किसान को टमाटर की पौध की बारिश से रक्षा करना अनिवार्य होता है। बसंत अर्थात गर्मी में टमाटर की पैदावार के लिए साल में नवम्बर से दिसम्बर का समय खास होता है। पहाड़ी इलाकों में मार्च से अप्रैल के दौरान भी टमाटर के बीजों को लगाया जा सकता है। जुलाई-अगस्त माह में रोपण आधारित टमाटर की खेती पर किसान को फरवरी से मार्च तक ध्यान देना होता है। इसी तरह नवंबर-दिसंबर में टमाटर रोपण आधारित किसानी मेें किसान जून-जुलाई तक व्यस्त रहता है।

एक हेक्टेयर का गणित

जीवांशयुक्त दोमट मिट्टी टमाटर की पौध के लिए सहायक होती है। मिट्टी की ऐसी गुणवत्ता वाले एक हेक्टेयर खेत में किसान टमाटर के 15 हजार पौधे लगाकर अपना मुनाफा पक्का कर सकता है।

देसी के बजाए संकर की सलाह

जुलाई के माह में तैयार की जाने वाली बारिश के टमाटर की खेती के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने टमाटर की सहायक किस्में सुझाई हैं। जुलाई माह में टमाटर की बुवाई के इच्छुक किसानों को वैज्ञानिक, कुछ देसी को किस्मों से बचने की सलाह देते हैं। इन देसी किस्म के टमाटर के पौधों में बारिश के दौरान मौसमी प्रकोेप का असर देखा जाता है। कीट लगने या दागी फल ऊगने से किसान की कृषि आय भी प्रभावित हो सकती है।



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ऐसे में सलाहकार टमाटर की देसी किस्म के बजाए संकर प्रजाति के बीजों का इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं। टमाटर के संकर प्रजाति के बीजों की खासियत यह है, कि यह बीज किसी भी तरह की जमीन पर पनपने में सक्षम होते हैं। साथ ही देसी प्रजाति के बजाए संकर किस्म की टमाटर की खेती किसान के लिए अनुकूल परिस्थितियों में फायदे का शत प्रतिशत सौदा साबित होती है।

टमाटर की कुछ खास प्रजातियां

भारत के किसान, कृषि भूमि की गुणवत्ता के लिहाज से अपने अनुभव के आधार पर, स्थानीय तौर पर प्रचलित किस्मों के टमाटर की खेती करते हैं। हालांकि, टमाटर की ऐसी कुछ किस्में प्रमुख हैं जिनकी भारत में मुख्य तौर पर खेती की जाती है।

टमाटर की कुछ संकर प्रजातियां :

  • पूसा सदाबहार
  • स्वर्ण लालिमा
  • स्वर्ण नवीन
  • स्वर्ण वैभव (संकर)
  • स्वर्ण समृद्धि (संकर)
  • स्वर्ण सम्पदा (संकर)

टमाटर की कुछ खास उन्नत देसी किस्में :

  • पूसा शीतल
  • पूसा-120
  • पूसा रूबी
  • पूसा गौरव
  • अर्का विकास
  • अर्का सौरभ
  • सोनाली

हाइब्रिड टोमैटो (Hybrid Tomato) की खासे प्रचलित किस्में :

  • पूसा हाइब्रिड-1
  • पूसा हाइब्रिड-2
  • पूसा हाइब्रिड-4
  • रश्मि और अविनाश-2
  • अभिलाष
  • नामधारी इत्यादि

बरसाती टमाटर की प्रचलित किस्म

बरसाती टमाटर की उमदा किस्मों की बात करें तो बारिश में अभिलाष टमाटर के बीज बोने की सलाह कृषि विशेषज्ञ एवं सलाहकार देते हैं। इसकी वजह, इसकी कम लागत में होने वाली अधिक पैदावार बताई जाती है। बारिश के टमाटर की उम्मीद से अधिक पैदावार के लिए जुलाई से लेकर सितंबर तक अभिलाष टमाटर के बीज रोपकर नर्सरी तैयार करने की सलाह दी जाती है।

अभिलाष किस्म की खासियत

कम लागत में किसान की भरपूर कमाई की अभिलाषा पूरी करने वाला, अभिलाष किस्म का टमाटर कई खूबियों से भरपूर है। बरसाती टमाटर की खेती के लिए अभिलाष टमाटर का बीज उपयुक्त माना गया है। इस प्रजाति का टमाटर भारत के विभिन्न राज्यों में रबी, खरीफ दोनों सीजन में उगाया जाता है। इस संकर प्रजाति के बीज की खासियत यह भी है कि, इसके पौधे में पनपने वाले फल आकार में एक समान होते हैं। अपने जीवन के अंतिम वक्त तक समान आकार के टमाटर उगाने में सक्षम, अभिलाष प्रजाति के टमाटर के बीज से किसान को बारिश में भी टमाटर की अच्छी पैदावार प्राप्त होती है।



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बाजार में मिलने वाले अभिलाष टमाटर बीज की दर 50 से 60 ग्राम प्रति एकड़ मानी जाती है। इससे हासिल टमाटर के फल का रंग आकर्षक लाल तथा आकार गोल होता है। दी गई जानकारी के अनुसार, नर्सरी की तैयारी से लेकर 65 से 70 दिनों के समय काल में अभिलाष प्रजाति के टमाटर की पहली तुड़ाई संभव हो जाती है। वजन की बात करें, तो इस प्रजाति के टमाटर के फलों का औसत वजन अनुकूल परिस्थितियों में 75 से 85 ग्राम अनुमानित है।

अभिलाष टमाटर की खेती का इन राज्यों में प्रचलन

अभिलाष प्रजाति के टमाटर की खेती मूल रूप से राजस्थान, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, पंजाब, बिहार, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र राज्य के किसान करते हैं।

मानसून की आहट : किसानों ने की धान की नर्सरी की तैयारी की शुरुआत

मानसून की आहट : किसानों ने की धान की नर्सरी की तैयारी की शुरुआत

मानसून की आहट : मथुरा के नौहझील क्षेत्र में धान की नर्सरी तैयार करते किसान

मानसून की आहट देख किसानों ने धान की नर्सरी की तैयारी शुरू कर दी है। धान-बीज विक्रेताओं की दुकानों पर धान का बीज खरीदने को किसानों की भीड़ लगने लगी है। नर्सरी में पौध तैयार होते ही धान (Rice Paddy) की रोपाई शुरू हो जाएगी। 

किसानों को इस बार भी अच्छी वर्षा की उम्मीद है। जिसे देखकर किसान धान की पैदावार करने के लिए सक्रिय हो गए हैं। हालांकि धान की फसल की रोपाई में अभी वक्त बाकी है, लेकिन धान की रोपाई के लिए किसानों ने नर्सरी की तैयारी शुरू कर दी है। 

सिंचाई साधन मौजूद होने पर कुछ किसानों ने तो धान की पौध तैयार करने के लिए खेत तैयार कर लिए हैं। नौहझील ब्लॉक के गांव भालई निवासी किसान जितेन्द्र सिंह ने बताया कि धान की रोपाई समय से होने पर अच्छी उपज की संभावना बनी रहती है। जिससे समय से नर्सरी (पौध) की तैयारी की जा रही है। 

मथुरा के गांव मरहला मुक्खा निवासी किसान लेखराज सिंह का कहना है कि धान की उपज के लिए बाजार में विभिन्न प्रजातियों के बीज दुकानदारों द्वारा बेचे जा रहे हैं। अच्छा बीज भी पैदावार के लिए महत्वपूर्ण होता है।

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कैसे तैयार करें धान की नर्सरी

ऐसे लगाएं धान की नर्सरी: - धान की नर्सरी लगाने से पहले खेत की 2-3 बार अच्छे से जुताई कर लें। - खेत में छोटी-छोटी क्यारियां बनाकर 50-55 सेमी ऊंची मेंड़बंदी कर लें। - धान की बीजाई से पहले बीजों को अंकुरित कर लेना चाहिए।

पौध के अच्छे विकास के लिए धान नर्सरी में प्रति 500 वर्गमीटर क्षेत्र में 5 किलो नाइट्रोजन, 1.60 किलो फास्फोरस, 2.1 किलो पोटाश मिट्टी में डालकर अच्छे से मिला लें। - पौधों के अच्छे अंकुरण के लिए पानी की बेहद जरूरत होती है। शाम के समय नियमित पानी लगाएं - समय-समय पर पौधों पर कीटनाशक छिड़काव भी जरूरी है।

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नर्सरी के लिए बीज की आवश्यकता

- खेत में क्यारियां तैयार करने के बाद उपचारित धान के बीज का प्रति 100 वर्ग मीटर 500 से 800 ग्राम बीज का छिड़काव करना चाहिए। - विभिन्न किस्मों के अनुसार बीज की मात्रा थोड़ी बहुत कम या ज्यादा हो सकती है। - अत्यधिक ज्यादा बीज से पौधों की ग्रोथ (बढ़वार) कम होने की संभावना रहती है। अतः नर्सरी में तय दर के हिसाब से बीज डालना चाहिए।

नर्सरी का समय और धान रोपाई का समय

धान की कई किस्में जल्दी पककर तैयार हो जाती हैं। उनकी नर्सरी जून के दूसरे सप्ताह में शुरू हो जानी चाहिए। वहीं कुछ किस्में देर से पककर तैयार होतीं हैं, उनकी नर्सरी जून के तीसरे सप्ताह में शुरू हो जानी चाहिए। - धान रोपाई के लिए जलाई माह का दूसरा व तीसरा सप्ताह उत्तम रहता है।

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अगर किसान भाई धान की फसल की करें उचित देखभाल, तो हो जायेंगे मालामाल। ------- लोकेन्द्र नरवार

पालड़ी राणावतन की मॉडल नर्सरी से मरु प्रदेश में बढ़ी किसानों की आय, रुका भूमि क्षरण

पालड़ी राणावतन की मॉडल नर्सरी से मरु प्रदेश में बढ़ी किसानों की आय, रुका भूमि क्षरण

ग्रामीण सहभागी नर्सरी बनी आदर्श, दो साल में दो गुनी हो गई इनकम

वर्तमान में पंजीकृत कृषि विकास नर्सरी की सुविधाओं को देश के हर इलाके में विस्तार देने के मकसद को नई दिशा मिली है।

पालड़ी राणावतन की मॉडल नर्सरी

भाकृअनुप - केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, (ICAR - Central Arid Zone Research Institute) जोधपुर, राजस्थान ने इस दिशा में अनुकरणीय पहल की है। संस्थान की ओर से भोपालगढ़ तहसील के ग्राम पालड़ी में 0.02 हेक्टेयर क्षेत्र में एक मॉडल नर्सरी विकसित की गयी है, इससे न केवल रोजगार के साधन विकसित हुए हैं, बल्कि भूमि का क्षरण (भू-क्षरण) रोकने में भी मदद मिली है।

क्यों पड़ी जरूरत

भाकृअनुप-केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, जोधपुर, राजस्थान स्रोत से ज्ञात जानकारी के अनुसार, निवर्तमान रजिस्टर्ड नर्सरी के मान से किसान मित्रों को गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री प्रदान करने संबंधी महज 1/3 मांग पूरी की जा रही है। असंगठित क्षेत्र के मुकाबले संगठित क्षेत्र में इस कमी की पूर्ति के लिए जरूरी, अधिक नर्सरी की स्थापना के लिए यह मॉडल नर्सरी विकसित की गई है।

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मॉडल नर्सरी का यह है मॉडल

भाकृअनुप-केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, जोधपुर, राजस्थान ने इस मॉडल तंत्र में 10 कृषि महिला-पुरुषों को मिलाकर एक मॉडल ग्रुप का गठन किया। इस गठित समूह को संस्थान की ओर से कार्यक्रम के जरिये वाणिज्यिक नर्सरी प्रबंधन पर कौशल प्रशिक्षण देकर दक्षता में संवर्धन किया गया।

दी गई यह जानकारी

समूह के चयनित सदस्यों समेत अन्य किसानों को कार्यक्रम में रूटस्टॉक और स्कोन का विकास करने का प्रशिक्षण प्रदान किया गया। इसके अलावा नर्सरी में जरूरी कटिंग, बडिंग और ग्राफ्टिंग तकनीक, कीट और रोग प्रबंधन के बारे में भी गूढ़ जानकारियां कृषि वैज्ञानिकों ने प्रदान कीं।

ये भी पढ़ें: कैसे डालें धान की नर्सरी रिकॉर्ड कीपिंग के साथ ही आवश्यक बुनियादी ढांचे, जैसे, बाड़ लगाने, छाया घर, मदर प्लांट, पानी की सुविधा और अन्य इनपुट जैसे नर्सरी उपकरण, बीज, नर्सरी मीडिया, उर्वरक, पॉली बैग भी समूह को प्रदान किए गए।

नर्सरी के माध्यम से हुआ सुधार

प्राप्त आंकड़़ों के मान से राजस्थान में कुल परिचालन भूमि जोत का पैमाना 7.7 मिलियन है। गौरतलब है कि पिछले तीन दशकों के दौरान कृषि संबंधी जानकारियां किसानों तक पहुंचाने के कारण शुद्ध सिंचित क्षेत्र में 140 प्रतिशत की बढ़त हासिल हुई है। इसमें खास बात यह है कि, सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि इसमें कारगर साबित हुई है। इससे नई कृषि वानिकी और बागवानी प्रणालियों को राज्य में विकसित करने में मदद मिली है।

इस मामले में सफलता

कृषि वानिकी एवं बागवानी प्रणालियों के विस्तार में सब्जियों के साथ पेड़ों की खेती का विस्तार हुआ है। जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से किसानों के बीच क्वालिटी प्लांटिंग मटेरियल (क्यूपीएम/QPM) यानी गुणवत्ता रोपण सामग्री को प्रदान कर उन्हें इस्तेमाल में लाया गया। आपको बता दें, क्यूपीएम यानी गुणवत्ता रोपण सामग्री, कृषि और वानिकी में राजस्व में वृद्धि, प्रतिकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों संबंधी अनुकूलन क्षमता में सुधार के साथ ही बाजार में गुणवत्ता पूर्ण कच्चा माल संबंधी जरूरतों की पूर्ति के लिए एक प्राथमिक एवं अनिवार्य इकाई है। किचन गार्डन में कई सब्जियों जबकि बाग के कुछ पेड़ों संबंधी सिद्ध तरीकों के लिए गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री की मांग देखी गई है। यह भी देखा गया है कि, स्थानीय स्तर पर किसानों या पर्यावरण प्रेमियों को वास्तविक और रोग मुक्त रोपण सामग्री न मिलने के कारण इसे हासिल करने के लिए लंबी दूरी पाटनी पड़ती थी।

नर्सरी में हुआ यह कार्य

नर्सरी में मांग आधारित फल, सब्जी और कृषि-वानिकी प्रजाति आधारित बीजों को विकसित करना शुरू किया।

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दो साल में दोगुनी से अधिक हुई आय

विकसित बीजों एवं उनके विकास के बारे में व्यापक जानकारी प्रदान करने का परिणाम यह हुआ कि मात्र 2 साल के अंदर ही समूह सदस्यों की कमाई डबल से भी ज्यादा हो गई। दी गई जानकारी के अनुसार समूह सदस्यों के पास कुल मिलाकर, 870 मानव दिवस का रोजगार था। इसका आधार यह था कि, इसके लिए उन्होंने 77 हजार से अधिक संवर्धित बीज पैदा किए और 2.98 के बी:सी (B:C) अनुपात के साथ कई रोपों को बेचकर 6, 83,750 रुपये अर्जित किए। बताया गया कि समूह में शामिल होने के पहले तक एक महिला सदस्य की वार्षिक आय 20 हजार रुपये तक थी। नर्सरी में शामिल होने के बाद हर साल 120 दिन काम करने से उसे 40 हजार रुपये कमाने में मदद मिली है। इस समय व्यक्तिगत समूह के सदस्य 30 से 40 हजार रुपये कमा रहे हैं। जिनके पास हर साल 100 से 150 दिनों का रोजगार है।

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दुर्बल खेती

नर्सरी की गतिविधियाँ जनवरी से जून तक दुर्बल खेती के मौसम से मेल खाती हैं। इससे रोजगार सृजन का एक अतिरिक्त लाभ भी सदस्यों को मिला है। अब इससे प्रेरित होकर अन्य साथी किसान, पर्यावरण मित्र एवं घरेलू बागवानी के शौकीन लोग भी इससे जुड़ रहे हैं। इसका कारण यह है कि इसके सदस्यों को आस-पास के ग्रामीण अंचलों के साथ ही शहरों के साथ ही पड़ोसी जिलों तक अपना अंकुर पहुंचाने के लिए प्रशिक्षित करने से भी लाभ हुआ है।

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भारत के इस गांव में 80 फीसदी लोग करते हैं 1500 किस्मों के पौधों की होलसेल मार्किट

भारत के इस गांव में 80 फीसदी लोग करते हैं 1500 किस्मों के पौधों की होलसेल मार्किट

अहमदाबाद। भारत में एक ऐसा गांव है जिसमें 80 फीसदी लोग 1500 किस्मों के पौधों की होलसेल मार्केट करते हैं और अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं। गुजरात के नवसारी जिले के दोलधा गांव में एक अध्यापक अमृत भाई पटेल ने लोगों को खेती से बिजनेस करने का तरीका समझाया। साल 1991-92 में शुरू हुई यह पहल आज बड़ी क्रांति बनकर दुनियां के सामने आई है। आज गांव के न केवल 80 फीसदी से ज्यादा लोग इस बिजनेस को कर रहे हैं, बल्कि शहरों से आकर भी लोग इस गांव में पौधशाला बना रहे हैं और व्यवसाय कर रहे हैं। अब यहां 1500 किस्मों के पौधे मिलते हैं।


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पर्यावरण प्रेमी हैं अमृत पटेल

गुजरात के गांव दोलधा के रहने वाले अमृत पटेल शुरू से ही पर्यावरण के प्रेमी रहे हैं। वह पेड़-पौधों एवं प्रकृति से हमेशा प्रेम करते रहे हैं। यही वजह है कि उन्होंने नौकरी के साथ-साथ कुछ पौधे बेचना शुरू किया। कुछ दिनों बाद यही काम अच्छा चलने लगा और अमृत पटेल ने नौकरी छोड़कर अपना पूरा ध्यान नर्सरी बिजनेस (Doldha Nursery) पर ही लगा दिया। उन्ही से प्रेरणा लेकर गांव के दूसरे लोग भी नर्सरी बिजनेस करने लगे।

नर्सरी बिजनेस से जुड़ गया है पूरा गांव

साल 1991 में शुरू हुई नर्सरी की बिजनेस ने आज पूरे गांव में विस्तार कर लिया है। इसकी शुरुआत अमृतभाई पटेल ने की। करीब 6 साल बाद साल 1997 में गांव के कई और किसान भाई भी नर्सरी बिजनेस से जुड़ गए और गांव में छोटी-बड़ी करीब 200 से ज्यादा नर्सरियां बन गईं। आज गांव की आबादी का 80 फीसदी हिस्सा नर्सरी बिजनेस कर रहा है।


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दोलधा गांव की जमीन है उपजाऊ

गुजरात के दोलधा गांव की जमीन काफी उपजाऊ है और पौध के लिए बेहद उपयोगी है। यहां पौधों के साथ लॉन घास भी काफी अच्छा परिणाम देती है। यहां का वातावरण भी पौधे उगाने के लिए बहुत अच्छा है। पानी भी यहां काफी मीठा है, इसीलिए यहां के पौधों की नर्सरी लोगों को काफी पसंद है। दिल्ली, मुम्बई, पुणे के अलावा राजस्थान व मध्यप्रदेश में भी यहां से पौधे जाते हैं।
पढ़िए बिहार के MBA पास किसान की बेमिसाल कहानी, अब तक बांट चुके हैं 15 लाख पौधे

पढ़िए बिहार के MBA पास किसान की बेमिसाल कहानी, अब तक बांट चुके हैं 15 लाख पौधे

पटना। आज हम आपके लिए लेकर आये हैं, पढ़े-लिखे किसान की बेमिसाल कहानी। आमतौर पर यह धारणा रहती है कि खेती-किसानी करने वाले किसान पढ़े-लिखे नहीं होते हैं। लेकिन आज पढ़िए एक ऐसे किसान की कहानी, जो MBA की पढ़ाई पास करके 40 एकड़ से ज्यादा जमीन में करता है खेती और अब तक देश के विभिन्न स्थानों पर 15 लाख से ज्यादा पौधे बांट चुका है।


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जी हां, हम बात कर रहे हैं कि बिहार के मधुबनी जिले के बिरौल गांव के रहने वाले कपिल देव झा (Kapil Dev Jha) की, जिन्होंने MBA की पढ़ाई पूरी करके 17 साल तक एक फाइनेंस कंपनी में काम किया, लेकिन नौकरी छोड़कर आज खेती किसानी का काम कर रहे हैं। साधारण कद-काठी वाले कपिल इन दिनों 40 एकड़ जमीन पर पेड़-पौधों की नर्सरी (Nursery) लगाते हैं और अब तक देश के विभिन्न स्थानों पर 15 लाख से ज्यादा पौधे बांट चुके हैं।

40 एकड़ का घना जगंल बना है फार्म हाउस

गांव के निकट ही सड़क किनारे कपिल ने 40 एकड़ में एक फार्म हाउस बना रखा है। इसमें कुछ पौधे फलों व कुछ लकड़ियों के लिए लगाए गए हैं, जिनको देखकर पूरा फार्म हाउस एक घने जंगल की तरह दिखाई देता है।

आम की बीजू वैरायटी संजोये हुए हैं कपिल

कपिल ने अपने फार्म हाउस में 3500 से अधिक आम के पेड़ लगाए हुए हैं। वर्तमान स्थिति में अधिकांश किसान ग्राफ्टेड आम पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। कपिल देव लगातार वर्षों पुरानी बीजू वैरायटी को संजोये हुए हैं, जबकि अधिकांश किसान बीजू आम को वरीयता नहीं दे रहे हैं। हालांकि आज भी अच्छी सेहत और लकड़ी के मामले में बीजू आम का कोई मुकाबला नहीं है।


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खेतों की मेड़ पर लगा रखे हैं पोपलर के पेड़

पूरे फार्म हाउस में अच्छी पैदावार के लिए जमीन को कई छोटे-बड़े खेतों में बांट रखा है और खेतों की मेड़ पर पोपलर के पेड़ लगा रखे हैं, जो काफी फायदेमंद साबित हो रहे हैं।

मिनी फारेस्ट बनाने वाले कपिल को ग्रामीण बोलते हैं मालिक

कपिल देव निरंतर निस्वार्थ रूप से अपना पूरा जीवन पर्यावरण और जल संरक्षण में लगाकर मानव-जाति के कल्याण में जुटे हुए हैं और लोगों की जिंदगी में प्रेम का भाव जागृत कर रहे हैं। यही वजह है कि स्थानीय लोग कपिल देव को मालिक कहकर पुकारते हैं।

वाटर कंजर्वेशन में किया है काम

कपिल देव के 40 एकड़ मिनी फॉरेस्ट में 5 एकड़ का एक तालाब है। इसी तालाब में वाटर कंजर्वेशन का काम कर रहे हैं, जिसमें वह मछ्ली पालन के साथ-साथ मखाने की खेती भी करते हैं। इन्ही खूबियों के कारण आज उनकी गांव में अलग ही पहचान बन गई है।
वैज्ञानिक विधि से करें बेहतर पौधशाला प्रबंधन

वैज्ञानिक विधि से करें बेहतर पौधशाला प्रबंधन

बेहतर पौधशाला प्रबंधन के फायदे और उत्पादन से बढ़ेगी आय

किसान भाइयों को यह बात पता ही है कि किसी भी फसल के बेहतर उत्पादन के लिए एक स्वस्थ पौध का होना अनिवार्य है। केवल बेहतर बीज से तैयार हुई स्वस्थ और गुणकारी पौध समय पर गुणवत्ता युक्त फसल उत्पादन कर सकती है। कुछ सब्जी जैसे कि
बैंगन, मिर्च, टमाटर तथा पत्तागोभी जैसी फसलों में स्वस्थ पौधरोपण के बिना किसी भी हालत में बेहतर उत्पादन नहीं हो सकता है और किसी भी स्वस्थ पौध को तैयार करने के लिए एक बेहतर पौधशाला (nursery; paudhshala) की आवश्यकता होती है।

कैसे तैयार करें बेहतर पौधशाला ?

कृषि क्षेत्र में काम कर रहे कृषि वैज्ञानिक समय-समय पर पौधशाला के बेहतर प्रबंधन के लिए एडवाइजरी जारी करते हैं। पौधशाला के क्षेत्र की भूमि को हमेशा मुलायम और आसानी से पानी सोखने के लायक बनाया जाना चाहिए। नई तकनीकों का इस्तेमाल करने वाले किसान भाई दोमट मिट्टी का इस्तेमाल कर फसल पर पड़ने वाले अम्लीयता और क्षारीयता के प्रभाव से होने वाले नुकसान को कम करने में भी सफल हुए हैं। दोमट मिट्टी के प्रयोग से मृदा में जल धारण की क्षमता बढ़ने के साथ ही जैविक कार्बन की मात्रा भी बढ़ती है।

कैसे करें बेहतर शोधन मृदा ?

वर्तमान में पौधशाला में इस्तेमाल की जाने वाली मृदा को बेहतर उत्पादन और रोग प्रतिरोधक बनाने के लिए 'मृदा सौरीकरण विधि' (मृदा सूर्यीकरण; Soil Solarization; सॉयल सोलराइजेशन) का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस विधि में पौधशाला की मृदा को सूर्य के प्रकाश की मदद से बेहतर उपज वाली बनाया जाता है। सबसे पहले पौध उगाने के लिए काम में आने वाली मिट्टी की बड़ी-बड़ी क्यारियां बनाकर, जुताई करने के बाद सीमित मात्रा में सिंचाई करते हुए, मृदा की नमी को बरकरार रखने से बेहतर उपज प्राप्त होती है।


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पॉलिथीन की चादर से ढक कर मिट्टी को दबा कर अंदर की हवा और नमी को ट्रैप करके करके रखा जाना चाहिए, इस विधि की बेहतर सफलता के लिए पॉलिथीन की परत को अगले 7 से 10 सप्ताह तक वैसे ही लगा रहने देना चाहिए। अधिक समय तक पॉलिथीन लगी रहने से उसके अंदर के क्षेत्र में स्थित मृदा का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, जिससे मृदा में उपलब्ध कई हानिकारक बैक्टीरिया स्वतः ही नष्ट हो जाते हैं और पौधशाला को भविष्य में होने वाले रोगों से आसानी से बचाया जा सकता है। इसके अलावा दक्षिणी भारत के राज्य और तटीय क्षेत्रों में 'जैविक विधि' की मदद से भी मृदा शोधन किया जाता है। इस विधि का इस्तेमाल मुख्यतः मृदा में उगने वाली फसल में होने वाले आर्द्र-गलन रोग से बचाने के लिए किया जाता है। इस विधि में 'ट्राइकोडरमा' की अलग-अलग प्रजातियों का बीज के बेहतर उपचार करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। कंपोस्ट और उचित कार्बनिक खाद की मात्रा वाले जैविक पदार्थों का उपयोग मृदा के शोधन को और बेहतर बना देता है। वर्तमान में कई किसान भाई जैव पदार्थों का इस्तेमाल भी करते हैं, ऐसे पदार्थों के प्रयोग से पहले ध्यान रखना चाहिए कि उस पदार्थ में जीवित और सक्रिय बीजाणु पर्याप्त मात्रा में होने चाहिए। जैविक पदार्थों के प्रयोग के बाद पौधशाला को ऊपर से ढक देना चाहिए क्योंकि मृदा को बारिश एवं धूप से बचाने की आवश्यकता होती है। जैविक विधि का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें किसी भी तरह के रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, इसलिए किसानों की लागत में भी कमी देखने को मिलती है।


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इसके अलावा 'रासायनिक विधि' की मदद से भी मृदा शोधन किया जाता है, जिसमें फार्मएल्डिहाइड और फॉर्मलीन जैसे रसायनिक उर्वरकों का एक घोल तैयार किया जाता है, जिसे समय-समय पर मृदा के ऊपर अच्छी तरह छिड़का जाता है। इस विधि में भी पॉलिथीन की चादर का इस्तेमाल करके वाष्पीकरण और नमी को ट्रैप किया जाता है। [caption id="attachment_11392" align="alignnone" width="600"]एक पौधशाला का दृष्य एक पौधशाला का दृष्य  (Source-Wiki; Author-NB flickr)[/caption]

पौधशाला प्रबंधन से किसानों को होने वाले लाभ :

खुले खेत की तुलना में पौधशाला में किसी भी फसल की पौध जल्दी तैयार होती है और उसकी गुणवत्ता बेहतर होने के साथ ही उपज भी अधिक प्राप्त होने की संभावना होती है। इसके अलावा पौधशाला में फसल उगाना आर्थिक रूप से कम खर्चीला होता है, इससे किसानों को होने वाला मुनाफा अधिक हो सकता है। पौधशाला प्रबंधन का एक और फायदा यह भी है कि इसमें बीज की बुवाई करने से लेकर अंकुरण तक पौधे के विकास के लिए आवश्यक जलवायु और तापमान को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है, इससे फसल में होने वाले रोगों से भी बचा जा सकता है। पौधशाला की मदद से घर पर ही पौध तैयार करने से भूमि की जुताई में होने वाले खर्चे को कम किया जा सकता है, साथ ही श्रम पर होने वाला खर्चा भी बचाया जा सकता है। इसीलिए कृषि वैज्ञानिकों की राय में छोटे और सीमांत किसानों को खुले खेत की तुलना में पौधशाला विधि की मदद से ही फसल उत्पादन करना चाहिए। तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के क्षेत्रों में पौधशाला विधि से खेती करने वाले किसानों की राय में उन्हें पूरी फसल से होने वाले मुनाफे से भी ज्यादा फायदा केवल पौधशाला में तैयार नर्सरी से ही हो जाता है।


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कई सब्जी की फसलों के बेहतर उत्पादन के लिए कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा तैयार संकर किस्म के बीज बाजार में काफी महंगे बिकते हैं, इसलिए पौधशाला में ही नर्सरी की मदद से बुवाई कर बीजों को भी बचाया जा सकता है। पौधशाला प्रणाली में किसानों को किसी भी प्रकार के बीजों को चुनने की स्वतंत्रता होती है, क्योंकि इस विधि में बीज उपचार के माध्यम से सस्ते बीजों को भी बेहतर उत्पादन लायक बनाया जा सकता है। रासायनिक उर्वरकों का ज्ञान रखने वाले कई किसान भाई फफूंद नाशक और कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल कर बीजों का बेहतर उपचार कर नर्सरी से होने वाली उपज को बढ़ाने में सफल हुए हैं। आशा करते हैं हमारे किसान भाइयों को पौधशाला प्रणाली की मदद से क्यारियां बनाने और बेहतर उपज वाली मृदा और बीज उपचार के बारे में सम्पूर्ण जानकारी मिल गई होगी और Merikheti.com द्वारा उपलब्ध करवाई गई इस जानकारी से, आप भी भविष्य में वैज्ञानिकों के द्वारा बताई गई गुणवत्ता युक्त सब्जी उत्पादन की बेहतर तकनीक का इस्तेमाल कर अच्छा मुनाफा कमा पाएंगे।
उत्तर प्रदेश के उत्कृष्ट ने CRPF की सरकारी नौकरी छोड़ बने सफल किसान

उत्तर प्रदेश के उत्कृष्ट ने CRPF की सरकारी नौकरी छोड़ बने सफल किसान

उत्तर प्रदेश राज्य के उत्कृष्ट पांडेय व उनके पिता जी ने एकसाथ मिलकर के 60 हजार चंदन की नर्सरी तैयार कर डाली है। सरकारी नौकरी को त्याग उन्होंने सफेद चंदन एवं काली हल्दी की फसल उत्पादन करने का निर्णय लिया है। केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल मतलब CAPF's के एक अधिकारी ने स्वयं की अच्छी खाशी नौकरी छोड़ सफेद चंदन एवं काली हल्दी का उत्पादन आरंभ किया है। इस कदम का एक उद्देश्य उत्तर भारत में इन उत्पादों की कृषि आरंभ कर ग्रामीण युवाओं हेतु रोजगार के नवीन अवसर प्रदान करना भी है। उत्तर प्रदेश राज्य के उत्कृष्ट पांडेय ने 2016 में सशस्त्र सीमा बल यानी SSB में Assistant Commandant की स्वयं की नौकरी छोड़ दी। लखनऊ से लगभग 200 किलोमीटर दूरस्थ प्रतापगढ़ के भदौना गांव में स्वयं की कंपनी मार्सेलोन एग्रोफार्म प्रारंभ की।


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उत्कृष्ट पांडेय ने बताया है, कि मैं चाहता हूं कि युवा देश को आत्मनिर्भर करने में सहायता करें। उन्होंने 2016 में नौकरी त्याग दी एवं विभिन्न विकल्पों पर विचार विमर्श करने के उपरांत सफेद चंदन एवं काली हल्दी का उत्पादन करने का निर्णय लिया गया है।

उत्कृष्ट पांडेय ने कहाँ से की है अपनी पढ़ाई

उत्कृष्ट पांडेय ने बताया है, कि सब सोचते थे, कि चंदन का उत्पादन केवल दक्षिण भारत में ही किया जा सकता है। लेकिन मैंने अत्यधिक गहनता से अध्ययन कर पाया कि हम उत्तर भारत में भी इसका उत्पादन कर सकते हैं। इसके बाद उन्होंने बेंगलुरु स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ वुड साइंस एंड टेक्नोलॉजी (Institute of Wood Science and Technology ) में पढ़ाई की। उत्कृष्ट का दावा है, कि एक किसान तकरीबन 250 पेड़ों को 14-15 वर्ष में पूर्ण रूप से तैयार होने पर दो करोड़ रुपये से ज्यादा आय कर सकता है। इसी प्रकार काली हल्दी का भाव 1,000 रुपये प्रति किलोग्राम तक बढ़ गया है।

किसकी सहायता से की उत्कृष्ट ने नर्सरी

उत्कृष्ट पांडेय स्वयं के पिता के साथ साझा तौर पर 60 हजार चंदन की नर्सरी तैयार करदीं हैं। साथ ही, 300 चंदन के पौधे अब पेड़ में तब्दील हो चुके हैं। फिलहाल चंदन का वृक्ष तकरीबन 7, 8 फीट तक के हो गए हैं। सेवानिवृत्त असिस्टेंट कमांडेंट द्वारा काली हल्दी की भी कई बीघे में की जा रही है। काली हल्दी का उपयोग औषधियाँ बनाने के लिए किया जाता है, इसी वजह से इसका अच्छा खासा मूल्य मिल जाता है। पूर्व अफसर ने नौकरी छोड़के बेहद कीमती चंदन एवं हल्दी का बड़े स्तर पर उत्पादन करने की वजह से प्रत्येक व्यक्ति उनकी सराहना करता हुआ नजर आ रहा है।
किसान कर लें ये काम, वरना पपीते की खेती हो जाएगी बर्बाद

किसान कर लें ये काम, वरना पपीते की खेती हो जाएगी बर्बाद

फरवरी का महिना पपीते की खेती करने वाले किसनों के लिए बेहद जरूरी हो सकता है. जिस वजह से इस समय पपीते पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है. अगर ध्यान नहीं दिया तो दूसरी खतरनाक बीमारियां फलों के लगने से पहले ही बर्बाद कर देंगी. एक्सपर्ट्स के मुताबिक पपीते कुछ खास विधि से करेंगे तो इससे अच्छी पैदावार मिल सकती है. जो किसान अक्टूबर में पपीते की खेती करते हैं, उनके पौधा का विकास सर्दियों की वजह से धीमा हो जाता है. जिस वजह से निराई और गुड़ाई की ज्यादा जरूरत होती है. जिसके बाद प्रति पौधे में लगभग 100 ग्राम यूरिया, 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्टेट, 50 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश का इस्तेमाल पौधे के तने से करीब एक से डेढ़ फीट की रूडी पर गोला बना क्र करना चाहिए. इसके बाद जरूरत के हिसाब से हल्की हल्की सिंचाई करते रहें. पपीते के पौधे के पास बनाया गया पपीता रिंग में नीम का का तेल 2 फीसद करीब आधे लीटर स्टीकर में मिलाकर एक एक महीने के अंतराल में करीब 8 महीनों तक स्प्रे करते रहें.

ऐसे करें इलाज, नहीं होगा नुकसान

एक्सपर्ट्स कहते हैं कि, हाई क्वालिटी के फल और पपीतों के पौधों में रोगों से लड़ने के गुण होने जरूरी हैं. इन गुणों को बढ़ाने के लिए दस ग्राम यूरिया के साथ पांच ग्राम जिंक सल्फेट और पांच ग्राम बोरान को प्रति लीटर पानी के हिसाब से अच्छे से घोलकर एक एक महीने के गैप में स्प्रे करें. ऐसा आपको अगले आठ महीने तक करना होगा. इस बात का ध्यान रखें कि, जिंक सल्फेट और बोरोन एक साथ ना घोलें. इन्हें अलग-अलग ही घोलें. क्योंकि ये जमने लगते हैं. ये भी देखें: पपीते की खेती कर किसान हो रहे हैं मालामाल, आगे चलकर और भी मुनाफा मिलने की है उम्मीद

फरवरी का महीना सबसे जरूरी

जड़ गलन अब तक की पपीते में लगने वाली सबसे भयानक बीमारियों में से एक है. इससे निपटने के लिए जरूरी है कि, हेक्साकोनाजोल की लगभग दो मिली दवा को प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोलकर एक एक महीने के गैप में मिट्टी में खूब अच्छी तरह से डालें. ताकि मिट्टी अच्छी तरह से भींग जाए. आपका ऐसा आठ महीनों तक करते रहना है. इसका मतलब इस घोल से मिट्टी को लगातार भिगोते रहना है. अगर आपके पपीते का पौधा बड़ा है तो उसके लिए लगभग पांच से छह लीटर दवा के घोल को डालने की जरूरत होती है. पपीते लगाने का सबसे अच्छा समय मार्च से लेकर अप्रैल तक का होता है. इसलिए फरवरी के महीने में पपीते की नर्सरी लगाने की सलाह दी जाती है.
शिक्षक की नौकरी छोड़ शुरू किया नर्सरी का व्यवसाय, आय में हुआ इजाफा

शिक्षक की नौकरी छोड़ शुरू किया नर्सरी का व्यवसाय, आय में हुआ इजाफा

आज हम आपको ऐसे दो भाईयों के बारे में बताऐंगे जो कि राजस्थान के करौली जनपद के रहने वाले हैं। एक का नाम सुरजन सिंह है, तो दूसरे का नाम मोहर सिंह है। दोनों पहले प्राइवेट स्कूल में नौकरी करते थे। खेती में मेहनत ज्यादा और फायदा कम होने के चलते लोग नौकरी करना अधिक पसंद कर रहे हैं। यहां तक कि प्राइवेट नौकरी करने के लिए लोग लाइन में कतारबद्ध खड़े रहते हैं। परंतु, आज हम ऐसे दो भाइयों के संबंध में बात करेंगे, जिनमें खेती से संबंधित व्यवसाय करने की इच्छा के चलते अच्छी- खासी प्राइवेट नौकरी छोड़ दी। अब यह दोनों भाई फूल, फल और सब्जियों की नर्सरी लगाकर प्रति माह मोटी आमदनी कर रहे हैं। इन दोनों भाइयों का कहना है, कि नर्सरी का बिजनेस शुरू करते ही उनकी आमदनी पहले की तुलना में दोगुनी हो गई है। अब ये दोनों भाई बाकी युवाओं के लिए भी मिसाल बन चुके हैं।

आमदनी के साथ-साथ पर्यावरण भी स्वच्छ हो रहा है

ये दोनों भाई राजस्थान के करौली जनपद के रहने वाले हैं। एक का नाम सुरजन सिंह है तो दूसरे का नाम मोहर सिंह। हालाँकि, पहले दोनों प्राइवेट स्कूल में ही नौकरी करते थे। इससे उनके घर का खर्चा नहीं चलता था। ऐसे में दोनों ने कुछ अलग हटकर व्यवसाय शुरू करने की योजना बनाई। तभी दोनों भाइयों के दिमाग में नर्सरी का व्यवसाय शुरू करने का आइडिया आया। मुख्य बात यह है, कि दोनों भाइयों ने किराए पर जमीन लेकर दो महीने पहले ही नर्सरी का व्यवसाय शुरू किया है। दोनों भाइयों का कहना है, कि यह एक ऐसा व्यवसाय है, जिससे आमदनी तो हो ही रही है, साथ में पर्यावरण भी स्वच्छ हो रहा है।

प्राइवेट स्कूल में शिक्षक की नौकरी किया करते थे

सुरजन सिंह का कहना है, कि पहले वे प्राइवेट स्कूल में टीचर की नौकरी करते थे। दरअसल, इससे उनको अच्छी आमदनी नहीं हो रही थी। इस वजह से उन्होंने नर्सरी का बिजनेस चालू करने की योजना बनाई। इसके पश्चात उन्होंने ट्रायल के रूप में एक छोटी सी नर्सरी लगाकर अपना व्यवसाय शुरू किया। इससे उनको काफी ज्यादा फायदा हुआ। इसके उपरांत दोनों भाइयों ने किराए पर भूमि लेकर बेहद बड़े इलाके में नर्सरी लगानी चालू कर दी। अब उनकी नर्सरी में काफी बड़ी तादात में लोग पौधे खरीदने आ रहे हैं। ये भी पढ़े: मैनेजर की नौकरी छोड़ की बंजर जमीन पर खेती, कमा रहे हैं लाखों

हजारों रुपए के पौधे इनकी नर्सरी में हैं

साथ ही, मोहर सिंह का कहना है कि इस नर्सरी में विभिन्न किस्मों के पौधे हैं। इनमें से कई पौधों को हमने कोलकाता से मंगवाया है, जिसकी अच्छी बिक्री हो रही है। इसके अतिरिक्त वह देसी पौधों को स्वयं ही नर्सरी में तैयार कर रहे हैं। फिलहाल, उनकी नर्सरी में 20 रुपए से लेकर 1200 रुपए तक के पौधे हैं। इससे आप यह आंकलन कर सकते हैं, कि किस किस तरह के पौधे इनकी नर्सरी में मौजूद हैं।
केंद्र सरकार द्वारा चलाया जा रहा ऑयल पाम प्लांटेशन अभियान 12 अगस्त तक जारी रहेगा

केंद्र सरकार द्वारा चलाया जा रहा ऑयल पाम प्लांटेशन अभियान 12 अगस्त तक जारी रहेगा

केंद्र सरकार के मिशन के अंतर्गत राज्य सरकारों ने ऑयल पाम प्रोसेसिंग कंपनियों के साथ मिलकर भारत में ऑयल पाम की खेती को और प्रोत्साहन देने के लिए 25 जुलाई 2023 से एक मेगा ऑयल पाम प्लांटेशन अभियान जारी किया है। पाम तेल उत्पादन क्षेत्र को 10 लाख हेक्टेयर तक बढ़ाने एवं 2025-26 तक कच्चे पाम तेल की पैदावार को 11.20 लाख टन तक पहुँचाने के मकसद से भारत सरकार ने अगस्त 2021 में राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन- ऑयल पाम जारी किया है। मिशन खाद्य तेलों की पैदावार में वृद्धि के अतिरिक्त आयात बोझ को कम करके भारत को 'आत्मनिर्भर भारत' की दिशा में भी सफलतापूर्वक लेकर जा रहा है।

ये कंपनियां भी सक्रिय प्रचार और हिस्सेदारी कर रही हैं

मिशन के अंतर्गत राज्य सरकारों ने ऑयल पाम प्रोसेसिंग कंपनियों के साथ मिलकर भारत में ऑयल पाम की खेती को और प्रोत्साहन देने के लिए 25 जुलाई 2023 से एक मेगा ऑयल पाम प्लांटेशन अभियान चालू किया है। तीन प्रमुख ऑयल पाम प्रोसेसिंग कंपनियां- पतंजलि फूड प्राइवेट लिमिटेड, गोदरेज एग्रोवेट एवं 3एफ (3F) विस्तार के लिए अपने-अपने राज्यों में किसानों के साथ सक्रिय तौर से प्रचार और हिस्सेदारी कर रहे हैं।

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मेगा प्लांटेशन अभियान कब तक जारी रहेगा

मेगा प्लांटेशन अभियान की शुरुआत 25 जुलाई 2023 से हो चुकी है। बतादें, कि यह अभियान 12 अगस्त 2023 तक सुचारू रहेगा। इस पहल के अंतर्गत प्रमुख तेल पाम उत्पादक राज्यों जैसे कि ओडिशा, कर्नाटक, गोवा, असम, त्रिपुरा, नागालैंड, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु भागीदारी करेंगे। यह अभियान 25 जुलाई 2023 को रेस्ट ऑफ इंडिया (ROI) मतलब कि ओडिशा, गोवा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु में शुरू हुआ और 08-08-2023 तक सुचारू रहेगा। यह तकरीबन 7000 हेक्टेयर क्षेत्रफल को कवर करेगा, जिसमें से 6500 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र आंध्र प्रदेश और तेलंगाना को कवर करने का संकल्प है।

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पूर्वोत्तर क्षेत्र (NER) के राज्यों जैसे कि त्रिपुरा, मिजोरम, नागालैंड, असम और अरुणाचल प्रदेश में यह अभियान 27 जुलाई 2023 को आरंभ हुआ और 12 अगस्त 2023 तक 19 जनपदों में 750 हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्रफल को कवर करते हुए जारी रहेगा।

असम सरकार ने कितने हेक्टेयर रकबे को कवर करने का लक्ष्य तय किया

असम सरकार 75 हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्रफल को कवर करने का लक्ष्य निर्धारित कर रही है। बतादें, कि 27 जुलाई 2023 से 05 अगस्त 2023 तक मेगा प्लांटेशन अभियान 8 जनपदों में चलेगा। इस अभियान में हिस्सेदारी लेने वाली कंपनियां पतंजलि फूड्स प्राइवेट लिमिटेड, गोदरेज एग्रोवेट लिमिटेड, 3एफ ऑयल पाम लिमिटेड एवं विभिन्न कल्टीवेशन शम्मिलित हैं। अरुणाचल प्रदेश सरकार तकरीबन 700 हेक्टेयर रकबे को कवर करने का लक्ष्य तय कर रही है। 29 जुलाई 2023 से 12 अगस्त 2023 तक अभियान के दौरान 6 जनपदों में अभियान जारी रहेगा। राज्य के लिए इस अभियान में हिस्सा लेने वाली कंपनियां 3F प्राइवेट लिमिटेड और पतंजलि फूड्स प्रा. लिमिटेड हैं।