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बीजीय मसाले की खेती में मुनाफा ही मुनाफा

बीजीय मसाले की खेती में मुनाफा ही मुनाफा

कहते हैं, मसालों की खोज सबसे पहले भारत में ही हुई, भारत से ही मसाले दुनिया भर में फैले। ये ऐसे मसाले हैं, जिनकी खुशबू से ही लोगों के चेहरे खिल उठते हैं। आपने पढ़ा ही होगा कि मसाले बेच कर एक तांगावाला इस देश में मसाला किंग के नाम से फेमस हो गया।
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मसाले हर किसी को भाते हैं, किसी को ज्यादा, किसी को कम। मसालों की खेती विदेशी पूंजी को भारत में लाने का एक बड़ा जरिया है। हमारे यहां जो मसाले तैयार होते हैं, उनकी विदेशों में जबरदस्त डिमांड है। दुनिया का शायद ही कोई देश ऐसा हो, जहां मसालों की खपत हो और वे भारतीय मसाला नहीं खाते हों। भारतीय मसालों का डंका हर तरफ बज रहा है, ये आज से नहीं सैकड़ों सालों से है।

रायपुर में शोध

रायपुर स्थित कृषि विश्वविद्यालय में इन दिनों बीजीय मसालों (seed spices) पर शोध चल रहा है। दर्जनों शोधार्थी बीजीय मसालों पर शोध कर रहे हैं, वो एक नए मसाले की तलाश में हैं। वो हींग, मेथी, जीरा, जायफल, धनिया, सरसों के इतर कुछ ऐसे बीजीय मसालों की तलाश में हैं, जो सबसे अलग हो। मजे की बात यह है कि इन बीजीय मसालों को ही कॉकटेल कर वे कोई नया मसाला तैयार करने की नहीं सोच रहे हैं। वो सच में कुछ नया करना चाह रहे हैं, यही कारण है कि पिछले 9-10 महीनों से वो शोध कर रहे हैं। लेकिन अभी तक किसी परिणाम पर नहीं पहुंचे हैं, शोध जारी है।

भारत है नंबर 1

आपको पता ही होगा कि भारत मसाला उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान पर है। भारत को तो मसालों की भूमि के नाम से भी जाना जाता है, इन मसालों के औषयधी गुणों के कारण देश-दुनिया में इनकी डिमांड निरंतर बढ़ती जा रही है। दुनिया भर के व्यापारी हमारे देश में आते हैं, भारत के नक्शे को देखें तो जम्मू-कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक विभिन्न प्रकार के मसालों का उत्पादन होता है। इन सभी मसालों का अपना अलग मिजाज है, कोई बीमारी में काम आता है तो कोई रोगों से लड़ने की ताकत देता है। तो कोई स्वाद को बहुत ज्यादा बढ़ा देता है, तो कोई मसाला ऐसा भी होता है जो आपकी पाचन क्रिया को दुरुस्त कर देता है। इन मसालों के रहते अब नए मसालों की खोज इसलिए की जा रही है ताकि चार मसालों के स्थान पर एक ही मसाला भोजन में डाला जाए और उसका कोई साइड इफेक्ट न हो।
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परंपरागत मसाले

अगर बात करें मुख्य बीजीय मसाले की तो वो परंपरागत हैं। जैसे जीरा, धनिया, मेथी, सौंफ, अजवायन, सोवा, कलौंजी, एनाइस, सेलेरी, सरसों तथा स्याहजीरा। इन सभी की खेती देश के उन इलाकों में की जाती है, जहां इनके लायक मौसम बढ़िया होता है। दरअसल, बीजीय मसाले अर्धशुष्क और शुष्क इलाकों में ही उगाए जा सकते हैं। जहां बहुत ज्यादा गर्मी होगी या बहुत ज्यादा ठंड पड़ती हो, वहां मसाले नहीं उगाए जा सकते। फसल ही चौपट हो जाएगी, दरअसल शुष्क व अर्धशुष्क क्षेत्रों में जल की कमी होती है और जो उपलब्ध भूजल होता है, वह सामान्यतः लवणीय होता है। आपको पता ही होगा कि बीजीय मसाला फसलों को धान या गेहूं अथवा मक्के की तरह पानी की जरूरत नहीं होती। इनका काम कम जल में भी चल जाता है।
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अनुदान की योजना

सरकार उन इलाकों में, जहां भूजल कम है, बीजीय मसाले की खेती करने वाले किसानों को अनुदान भी देने की योजना बना रही है। हालांकि, ये हार्ड कोर कैश क्राप्स हैं, ये तैयार होते ही बिक जाते हैं और देश-विदेश से इनके ग्राहक भी आते हैं। आपको बता दें कि भारत में जिन मसालों का उत्पादन होता है, वे सबसे ज्यादा मात्रा में अमेरिका, जापान, कनाडा, आस्ट्रेलिया और यूरोपीय देशों में निर्यात होता है। यहां से ठीक-ठाक विदेशी मुद्रा भी आ जाती है। अगर आप भी बीजीय मसालों की खेती करना चाहते हैं, तो पूरे पैटर्न को समझ लें। इस खेती में पैसे तो हैं पर रिस्क भी कम नहीं है, उस रिस्क को अगर आप सहन कर सकते हैं, तो बीजीय मसालों की खेती में बहुत पैसा है और आप उससे मुनाफा कमा सकते हैं।
जानें मसालों से संबंधित योजनाओं के बारे में जिनसे मिलता है पैसा और प्रशिक्षण

जानें मसालों से संबंधित योजनाओं के बारे में जिनसे मिलता है पैसा और प्रशिक्षण

भारत की 45.28 लाख हेक्टेयर भूमि पर लाखों टन मसाले उत्पादित किये जा रहे हैं। मसाले के क्षेत्रफल में वृद्धि एवं कृषकों की आमंदनी को दोगुना करने हेतु बहुत सारी मसालों से संबंधित योजनाएं लागू की जा रही हैं। 

भारतीय व्यंजनों के स्वाद में चार चाँद लगाने वाले मसालों की विदेश में बहुत मांग हो रही है। वर्ष दर वर्ष मसालों के निर्यात में भी वृद्धि हो रही है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भी भारतीय मसालों की मांग में बहुत बढ़ोत्तरी सामने आ रही है। 

बतादें, कि केंद्र एवं राज्य सरकारों की बहुत सारी योजनाएं बेहद सहायक हो रही हैं। ऐैसी योजनाओं का ही प्रभाव है, कि वर्तमान में विभिन्न मृदा एवं जलवायु में कुल 63 प्रकार के मसाले उत्पादित किये जा रहे हैं, जिनमें से 21 मसालों की व्यावसायिक कृषि की जा रही है। 

ऐैसे मसालों में इलायची (छोटी और बड़ी), धनिया, जीरा, सौंफ, मेथी, अजवाइन, सोआ बीज, जायफल, लौंग, दालचीनी, इमली, केसर, वेनिला, करी पत्ता, काली मिर्च से लेकर लाल मिर्च, पुदीना, हल्दी, लहसुन और अदरक हैं।

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फिलहाल लहसुन उत्पादन के रूप में भारत सबसे अग्रणीय तो है, ही साथ में मिर्च की पैदावार में दूसरे एवं अदरक के उत्पादन में तीसरे तथा हल्दी की पैदावार करने में चौथे स्थान पर है। भारतीय कृषि भूमि के बहुत बड़े रकबे में जीरे की खेती हो रही है।

मसालों की खेती के लिए कृषि योजनाएं

किसान आगामी समय में मसालों की कृषि करने के बारे में सोच रहे हैं, तो सरकार की ओर से प्रशिक्षण, अनुदान व उसकी बेहतरीन सुविधा दी जाती है। 

सरकार द्वारा इनमें से कुछ योजनाएं पूरे देश में जारी हैं, तो कुछ योजनाएं राज्य स्तर पर चलाई जाती हैं। इनके अंतर्गत एकीकृत बागवानी विकास मिशन (MIDH), राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY), परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) एवं प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) भी आते हैं। 

इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश की राज्य सरकार भी मसाला क्षेत्र विस्तार योजना चला रही है।

राष्ट्रीय बागवानी मिशन

पारंपरिक फसलों में दिनोंदिन हो रही हानि को देखते हुए किसानों को बागवानी फसलों के उत्पादन करने हेतु प्रोत्साहित किया जा रहा है। 

मसाला भी उनमें से एक विशेष बागवानी फसल है, जिसकी कृषि से लेकर कटाई, छंटाई करने ग्रेडिंग, शॉर्टिंग, भंडारण एवं प्रोसेसिंग हेतु भी सरकार कृषकों को आर्थिक रूप से सहायता प्रदान करती है। 

राष्ट्रीय बागवानी मिशन के चलते मसालों की जैविक खेती करने वाले कृषकों को 50% अनुदान के साथ-साथ तकनीकी प्रशिक्षण का भी प्रावधान है। सरकार द्वारा मसाला भंडारण हेतु कोल्ड स्टोरेज निर्माण के लिए 4 करोड़ तक का अनुदान प्रदान करती है।

मसालों का प्रोसेसिंग यूनिट बनाने हेतु सरकार 40% फीसद मतलब 10 लाख रुपये तक का अनुदान प्रदान करती है।

मसालों की छंटाई करने ग्रेडिंग, शॉर्टिंग के लिए भी किसानों को 35% फीसद अनुदान प्रदान किया जाता है, इसकी यूनिट स्थापित करने के लिए 50 लाख रुपये तक का व्यय आ सकता है। 

मसालों की पैकिंग यूनिट बनाने हेतु 15 लाख रुपये तक व्यय हो जाता है, जिसमें 40% फीसद तक अनुदान मिल सकता है।

मसालों की खेती के लिए सब्सिडी

राष्ट्रीय बागवानी मिशन के जरिये आवेदन करने पर समस्त नियमों, शर्तों एवं योग्यता की जाँच पड़ताल कर कृषकों को मसालों की खेती हेतु आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। 

विभिन्न क्षेत्रों में मसालों का उत्पादन करने हेतु 40% अनुदान मतलब 5,500 रुपये प्रति हेक्टेयर का अनुदान प्रदान किया जाता है। अधिक जानकारी हेतु ऑफिशियल पोर्टल https://midh.gov.in/ या https://hortnet.gov.in/NHMhome पर भी जा सकते हैं। 

मसालों की अच्छी खासी पैदावार पाने हेतु कृषकों को सिंचाई हेतु अनुदान दिया जाता है। किसान चाहें तो प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के जरिये फव्वारा एवं बूंद- बूंद सिंचाई हेतु अनुदान प्राप्त कर सकते हैं, इसके हेतु Pradhan Mantri Krishi Sinchayee Yojana (pmksy.gov.in) पर आवेदन कर अनुदान का लाभ प्राप्त सकते हैं। 

साथ ही, अगर मसाले की फसल में कीट-रोग संक्रमण होता है, तो प्रबंधन हेतु 30% फीसद मतलब 1200 रुपये प्रति हेक्टेयर के अनुदान का प्रावधान है।

मसाला क्षेत्र विस्तार योजना

राज्य सरकारें मसाले की खेती व उसके उत्पादन को बढ़ाने के लिए हर संभव योजनाएं चलाती हैं। मसालों के उत्पादन में वृद्धि हेतु जारी की गयी योजनाओं में से एक है, मसाला क्षेत्र विस्तार योजना। 

इस योजना के चलते मध्य प्रदेश उद्यानिकी विभाग कुछ गिने-चुने मसालों की कृषि, क्षेत्र विस्तार एवं उत्पादन बढ़ाने हेतु कृषकों की आर्थिक सहायता करता है। 

इस योजना के अंतर्गत मसालों के बीज एवं प्लास्टिक क्रेट्स खरीदने हेतु 50 से 70 फीसद तक का अनुदान देने का प्रावधान है। इसके अतिरिक्त, जड़ या कंद वाली फसल जैसे- लहसुन, हल्दी, अदरक हेतु भी 50,000 प्रति हेक्टेयर अनुदान का प्रावधान है। 

इस योजना के अंतर्गत एक किसान को अधिकतम 0.25 हेक्टेयर से 2 हेक्टेयर तक कृषि हेतु अनुदान दिया जाता है। इससे संबंधित और अधिक जानकारी हेतु https://hortnet.gov.in/NHMhome वेबसाइट पर भी जा सकते हैं।

जानें किस वजह से धनिया के भाव में हुई 36 रुपए की बढ़ोत्तरी, फिलहाल क्या हैं मंडी भाव

जानें किस वजह से धनिया के भाव में हुई 36 रुपए की बढ़ोत्तरी, फिलहाल क्या हैं मंडी भाव

जानकारों ने बताया है, कि फिलहाल बाजार में मजबूती के रुख और उत्पादक क्षेत्रों से सीमित आपूर्ति की वजह से विशेष रूप से धनिया वायदा भावों में वृद्धि हुई है । वर्तमान बाजार में मजबूती के रुख के चलते हुए सटोरियों ने अपने सौदों का आकार बढ़ाने से वायदा कारोबार में सोमवार को धनिया की कीमत 36 रुपये की वृद्धि के साथ 6,942 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंचा दिया है । एनसीडीईएक्स में धनिया के अप्रैल माह में आपूर्ति वाले अनुबंध का मूल्य 36 रुपये या 0.52 फीसद की वृद्धि के साथ 6,942 रुपये प्रति क्विंटल पहुंच गया है । इसमें 11,095 लॉट के लिए कारोबार हुआ है । बाजार जानकारों ने बताया है, कि हाजिर बाजार में मजबूती के रुख तथा उत्पादक क्षेत्रों से सीमित आपूर्ति की वजह मुख्यत: धनिया वायदा कीमतों में वृद्धि हुई है । साथ ही, इंदौर में मौजूद स्थानीय खाद्य तेल बाजार में सोमवार को पाम तेल की कीमत में पांच रुपये प्रति 10 किलोग्राम की गिरावट शनिवार की तुलना में हुई है। आज सरसों 100 रुपये प्रति क्विंटल सस्ती बेची गई है ।

तिलहन की मंडी में कितनी कीमत है

  • सरसों (निमाड़ी) 5800 से 5900 रुपये प्रति क्विंटल ।
  • सोयाबीन 4800 से 5400 रुपये प्रति क्विंटल ।

तेल

  • मूंगफली तेल 1690 से 1700 रुपये प्रति 10 किलोग्राम ।
  • सोयाबीन रिफाइंड तेल 1105 से 1110 रुपये प्रति 10 किलोग्राम ।
  • सोयाबीन साल्वेंट 1075 से 1080 रुपये प्रति 10 किलोग्राम ।
  • पाम तेल 1025 से 1030 रुपये प्रति 10 किलोग्राम ।


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कपास्या खली

  • कपास्या खली इंदौर 1800 60 किलोग्राम बोरी ।
  • कपास्या खली देवास 1800 60 किलोग्राम बोरी ।
  • कपास्या खली खंडवा 1775 60 किलोग्राम बोरी ।
  • कपास्या खली बुरहानपुर 1775 रुपये प्रति 60 किलोग्राम बोरी ।
  • कपास्या खली अकोला 2700 रुपये प्रति क्विंटल ।
विश्व की सर्वाधिक तीखी मिर्च ने गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में नाम दर्ज किया

विश्व की सर्वाधिक तीखी मिर्च ने गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में नाम दर्ज किया

आजकल एक ही फसल की विभिन्न किस्में देश में मौजूद हैं। कृषि वैज्ञानिक एवं कृषि विशेषज्ञ निरंतर नवीन किस्मों को विकसित करने के प्रयास में जुटे रहते हैं। उसी तरह लाल मिर्च की एक किस्म भूत जोलोकिया आजकल गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज होने की वजह से चर्चा में है। सामान्यतः मिर्च का इस्तेमाल सब्जी में तीखापन लाने, महक और स्वाद को बढ़ाने हेतु किया जाता है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि नागालैंड की भूत जोलोकिया मिर्च विश्व की सर्वाधिक तीखी मिर्च मानी जाती है। दरअसल, मिर्च का नाम कान में पड़ते ही तीखेपन का स्वाद मन में आ जाता है। आमतौर पर मिर्च का उपयोग सब्जी में सलाद एवं स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता है। लाल मिर्च तुलनात्मक काफी ज्यादा तीखी होती है। इसको पीसकर मसाले के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। मिर्च उपयोग से सब्जी का रंग लाल होने के साथ-साथ इसके स्वाद में भी परिवर्तन आ जाता है। आज ऐसी मिर्च के विषय में जानने का प्रयास करेंगे, जिसको विश्व की सबसे ज्यादा तीखी मिर्च के रूप में जाना जाता है। अच्छी विशेषताओं वाली यह मिर्च महिलाओं के सुरक्षा कवच का कार्य करती है।

भूत जोलोकिया मिर्च गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में हुई शामिल

भूत जोलोकिया मिर्च को दुनिया की सर्वाधिक तीखी मिर्च के रूप में जानी जाती है। इसका उत्पादन भारत के नागालैंड में किया जाता है। इसके तीखेपन स्वाद की वजह से भूत जोलोकिया मिर्च को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल है। वर्ष 2007 में इसे रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया है। नागालैंड में अधिकाँश किसान इसकी खेती किया करते हैं। साथ इसको विश्व के विभिन्न देशों में मिर्च को निर्यात किया जाता है। भारत की भूत जोलोकिया की मांग विदेशों तक से भी रहती है। यह भी पढ़ें: यहां के किसान मिर्च की खेती से हो रहे हैं मालामाल, सरकार भी कर रही है मदद

भूत जोलोकिया मिर्च कितने दिन में तैयार हो जाती है

भारत के नागालैंड की यह प्रसिद्ध भूत जोलोकिया मिर्च 75 से 90 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। अगर हम आकार की बात करें तो मिर्च की ऊंचाई 50 से 120 सेंटीमीटर तक होती है। इसका उत्पादन पहाड़ों पर काफी अच्छी तरह से होता है। सामान्य मिर्च की तुलना में लाल मिर्च लंबाई में छोटी होती है। अगर इसकी लंबाई की बात की जाए तो यह 3 सेंटीमीटर तक होती है। वहीं चौड़ाई 1 से 1. 2 सेंटीमीटर तक होती है।

भूत जोलोकिया महिलाओं की सुरक्षा करने हेतु भी काम आती है

भूत जोलोकिया की एक और सबसे बड़ी खासियत है। इसका उपयोग सुरक्षा बल एजेंसियों द्वारा आँसू गैस गोला इत्यादि उत्पाद बनाने के लिए भी किया जाता है। साथ ही, इसके तीखी होने की विशेषता के चलते इस मिर्च से स्प्रे भी तैयार की जाती है। इससे महिलाओं के साथ होने वाली बदसलूकी और छेड़खानी में संरक्षण के तौर पर उपयोग करती हैं। बतादें, कि स्प्रे से गले एवं आंखों में जलन होनी चालू हो जाती है। व्यक्ति की खांसी नहीं रुकती और बेहाल हो जाता है।
दालचीनी की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी (How to Grow Cinnamon)

दालचीनी की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी (How to Grow Cinnamon)

आज हम आपको मसालों में सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली दालचीनी के बारे में बताने जा रहे हैं। दालचीनी के अंदर विघमान कई सारे औषधीय गुण लोगों के स्वास्थ्य के लिए काफी लाभकारी होते हैं। बतादें, कि कोरोना काल में दालचीनी का इस्तेमाल काफी बढ़ गया। दालचीनी की मांग विगत कई सालों से बाजार में सदैव अच्छी-खासी बनी रहती है। अब ऐसी स्थिति में किसान इसकी खेती से काफी अच्छा लाभ उठा सकते हैं। चलिए आपको दालचीनी की खेती से संबंधित कुछ अहम जानकारी देते हैं। दालचीनी दक्षिण भारत का एक प्रमुख पेड़ है। इस वृक्ष की छाल का दवाई और मसालों के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। दालचीनी एक छोटा सदाबहार पेड़ होता है, जो कि 10–15 मीटर ऊँचा होता है। दालचीनी की खेती दक्षिण भारत के तमिलनाडू एवं केरल में इसका उत्पादन किया जाता है। दालचीनी के छाल का इस्तेमाल हम मसालों के तौर पर करते हैं। इस पौधे की पत्तियों का इस्तेमाल हम तेजपत्ते के तौर पर करते हैं।

दालचीनी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु एवं मृदा

दालचीनी एक उष्णकटिबंधीय पेड़ की श्रृंखला में आता है। यह पौधा ग्रीष्म एवं आर्द्र जलवायु को आसानी से झेलने की क्षमता रखता है। इस जलवायु की वजह से पौधे का विकास और छाल की नकल बेहतर होती है। इस वजह से इसे नारियल एवं सुपारी के बागों में उत्पादित किया जा सकता है। परंतु, आवश्यकता से अधिक छाया दालचीनी को प्रभावित कर देती है। साथ ही, पेड़ भी कीटों की बली चढ़ जाते हैं। इस फसल को मध्यम जलवायु में खुले मैदान में अलग से भी पैदा किया जा सकता है। यह भी पढ़ें: इस औषधीय पेड़ की खेती से किसान जल्द ही हो सकते हैं मालामाल, लकड़ी के साथ छाल की मिलती है कीमत

दालचीनी की खेती के लिए भूमि की तैयारी एवं रोपण

दालचीनी के रोपण हेतु जमीन को साफ करके 50 से.मी.X50 से.मी. के गड्ढे 3 मी.X 3मी. के फासले पर खोदना चाहिए। इन गड्ढों में रोपण से पूर्व कम्पोस्ट और ऊपरी मिट्टी को भर देते हैं। दालचीनी के पौधों को जून-जुलाई में रोपित करना अच्छा होता है, क्योंकि पौधे को स्थापित होने में मानसून का फायदा मिल जाता है। 10-12 माह पुराने बीज द्वारा उत्पादित पौधे, अच्छी तरह मूल युक्त कतरनें अथवा एयर लेयर का उपयोग रोपण में करना चाहिए। 3-4 बीज द्वारा उत्पादित पौधे, मूल युक्त कतरनें या एयर लेयर पति गड्ढे में रोपण करना चाहिए। कुछ मामलों में बीजों को सीधे गड्ढे में डाल कर उसे कम्पोस्ट और मृदा से भर देते हैं । शुरूआती सालों में पौधों के अच्छे स्वास्थ्य और उपयुक्त विकास के लिए आंशिक छाया प्रदान करनी चाहिए। जून, जुलाई माह में तैयार किए गए गड्ढों के मध्य में दालचीनी का पौधरोपण करना चाहिए। इस दौरान एक बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि रोपण के पश्चात बारिश का पानी बंधा में इकठ्ठा ना हो।

दालचीनी की किस्में

अगर हम दालचीनी की किस्मों की बात करें तो कोंकण कृषि विश्वविद्यालय द्वारा साल 1992 में कोंकण तेज की खोज और प्रचार-प्रसार किया है। यह किस्म छाल और पत्तियों से तेल निकालने के लिए बेहतर मानी जाती है। दालचीनी में 6.93 प्रतिशत यूजेनॉल, 3.2 प्रतिशत तेल और 70.23 प्रतिशत सिनामोल्डेहाइड मौजूद होता है। यह भी पढ़ें: चंदन के समान मूल्यवान इन पेड़ों की लकड़ियां बेचकर होश उड़ाने वाला मुनाफा हो सकता है

दालचीनी के पेड़ के लिए उर्वरक

दालचीनी के पेड़ में प्रथम वर्ष 5 किलो खाद या कम्पोस्ट, 20 ग्राम नाइट्रेट (40 ग्राम यूरिया), 18 ग्राम फास्फोरस (115 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट), 25 ग्राम पोटाश (45 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश) ड़ाली जाए। इस उर्वरक की मात्रा प्रति वर्ष इसी प्रकार बढ़ानी चाहिए एवं 10 वर्ष के पश्चात 20 किलो खाद अथवा कम्पोस्ट, 200 ग्राम नाइट्रोजन (400 ग्राम यूरिया), 180 ग्राम फॉस्फोरस (सिंगल सुपर फास्फेट का 1 किलो 100 ग्राम) डालें। , 250 ग्राम पोटाश (पोटाश का 420 ग्राम म्यूरेट) देना उचित होता है।

दालचीनी के पेड़ों लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम

बीजू अगंमारी

यह रोग डिपलोडिया स्पीसीस द्वारा पौधों में पौधशाला के दौरान होता है। कवक के द्वारा तने के चहुंओर हल्के भूरे रंग के धब्बे हो जाते हैं। अत: पौधा बिल्कुल नष्ट हो जाता है। इस रोग की रोकथाम करने के लिए 1% प्रतिशत बोर्डियो मिश्रण का छिड़काव किया जाता है।

भूरी अगंमारी

यह रोग पिस्टालोटिया पालमरम की वजह से होता है। इसके प्रमुख लक्षणों में छोटे सफेद रंग का धब्बा होता है, जो कुछ समय के पश्चात स्लेटी रंग का होकर भूरे रंग का किनारा बन जाता है। इस रोग पर सहजता से काबू करने के लिए 1% प्रतिशत बोर्डियो मिश्रण का छिड़काव करना चाहिए। यह भी पढ़ें: वरुण नामक ड्रोन 6 मिनट के अंदर एक एकड़ भूमि पर छिड़काव कर सकता है

कीट दालचीनी तितली

दालचीनी तितली (चाइलेसा कलाईटिया) नवीन पौधों एवं पौधशाला का प्रमुख कीट माना जाता है। आमतौर पर यह मानसून काल के पश्चात नजर आता है। इस का लार्वा कोमल और नई विकसित पत्तियों को खाता है। अत्यधिक ग्रसित मामलों में पूरा पौधा पत्ती विहीन हो जाता है और केवल पत्तियों के मध्य की उभरी हुई धारी ही बचती है। इसकी वयस्क बड़े आकर की तितली होती है एवं यह दो तरह की होती है। पहले बाहरी सतह पर सफेद धब्बे नुमा काले भूरे रंग के पंखों और दूसरी के नील सफेद निशान के काले रंग के पंख उपस्थित होते हैं। पूरी तरह से विकसित लार्वा तकरीबन 2.5 से.मी. लम्बे पार्श्व में काली धारी समेत हल्के पीले रंग का होता है। इस कीट को काबू में करने के लिए कोमल और नई विकसित पत्तियों पर 0.05% क्वानलफोस का छिड़काव करना फायदेमंद होता है।

लीफ माइनर

लीफ माइनर (कोनोपोमोरफा सिविका) मानसून काल के दौरान पौधशाला में पौधों को काफी ज्यादा नुकसान पहुँचाने वाला प्रमुख कीट माना जाता है। इसका वयस्क चमकीला स्लेटी रंग का छोटा सा पतंगा होता है। इसका लार्वा प्रावस्था में हल्के स्लेटी रंग का उसके उपरांत गुलाबी रंग का 10 मि.मीटर लम्बा होता है। यह कोमल पत्तियों की ऊपरी और निचली बाह्य आवरण (इपिडरमिस) के उतकों को खाकर उस पर छाले जैसा निशान छोड़ देते हैं। ग्रसित पत्ती मुरझाकर सिकुड़ जाती हैं एवं पट्टी पर बड़ा सा छेद भी बन जाता है। इस कीट पर नियंत्रण पाने हेतु नवीन पत्तों के निकलने पर 0.05% क्वनालफोस का छिड़काव करना काफी अच्छा होता है। सुंडी और बीटल भी दालचीनी के नए पत्तों को प्रभावी तौर पर खाते हैं। क्वनालफोस 0.05% को डालने से इसको भी काबू में कर सकते हैं।

पर्ण चित्ती एवं डाई बैंक

पर्ण चित्ती और डाई बैक रोग कोलीटोत्राकम ग्लोयोस्पोरियिड्स की वजह से होता है। पत्तियों की पटल पर छोटे गहरे सफेद रंग के धब्बे आ जाते हैं, जो नाद में एक दूसरे से मिलके अनियमित धब्बा तैयार करते हैं। कई बार देखा गया है, कि पत्तों के संक्रमित हिस्से पर छेड़ जैसा निशान नजर आता है। इसके पश्चात संपूर्ण पत्ती भाग संक्रमित हो जाता है। इतना ही नहीं यह संक्रमण तने तक फैलकर डाई बैक की वजह बनता है। इस रोग की रोकथाम करने के लिए संक्रमित शाखाओंं की कटाई-छटाई एवं 1% बोर्डियो मिश्रण का छिड़काव किया जाता है।
राजस्थान सरकार किसानों को फल और मसालों की खेती के लिए प्रोत्साहन राशि दे रही है।

राजस्थान सरकार किसानों को फल और मसालों की खेती के लिए प्रोत्साहन राशि दे रही है।

राजस्थान सरकार राष्ट्रीय बागवानी मिशन और कृषि विकास योजना के अंतर्गत किसानों को अनुदान प्रदान करेगी। दरअसल, राज्य में किसानों को पारंपरिक फसलें जैसे कि मक्का, गेहूं और सरसों आदि की खेती से अच्छी आमदनी नहीं हो पा रही है। राजस्थान में किसान अब बागवानी और मसालों की खेती करेंगे। इसके लिए किसानों को राज्य सरकार की तरफ से अच्छी खासी सब्सिडी मुहैय्या कराई जाएगी। मुख्य बात यह है, कि सब्सिडी पाने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार द्वारा करोड़ों रुपये की धनराशि स्वीकृत कर दी है। अगर राजस्थान के किसान फल और मसालों की खेती करते हैं, तो उन्हें 40 प्रतिशत तक अनुदान मिलेगा। इसके लिए उन्हें राजकिसान साथी पोर्टल पर जाकर आवेदन करना पड़ेगा।

राजस्थान के किसानों को पारंपरिक फसलों से कोई लाभ नहीं मिला

राजस्थान सरकार राष्ट्रीय बागवानी मिशन और कृषि विकास योजना के अंतर्गत किसानों को अनुदान देगी। दरअसल, राज्य सरकार का यह मानना है, कि प्रदेश में किसान भाइयों को गेहूं, सरसों एवं मक्का जैसी पारंपरिक फसलों की खेती से अच्छी आय नहीं हो पा रही है। अगर प्रदेश के किसान आधुनिक विधि से बागवानी और मसालों की खेती करते हैं, तो किसानों की आमदनी में काफी बढ़ोतरी हो सकती है। यही कारण है, कि राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बागवानी और मसाले के क्षेत्रफल में विस्तार करने के लिए 23.79 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है। ये भी पढ़े: दालचीनी की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी (How to Grow Cinnamon)

राजस्थान सरकार 7609 हेक्टेयर में फल के बगीचे तैयार कर रही है

सरकारी अधिकारियों के अनुसार, राजस्थान सरकार ने वर्ष 2023-24 में 7609 हेक्टेयर भूमि में फल के बगीचे तैयार करने की योजना तैयार की है। इसके ऊपर सरकार सब्सिडी के तौर पर 22.40 करोड़ रुपये खर्च करेगी। साथ ही, मसाले के रकबे के विस्तार पर अनुदान धनराशि के रूप में 1.39 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। मुख्यमंत्री कार्यालय के अनुसार, सीएम गहलोत द्वारा मंजूर किए गए 23.79 करोड़ रुपये में से 17.24 करोड़ रुपये की धनराशि राजस्थान कृषक कल्याण कोष में से प्रदान की जाएगी। साथ ही, 6.55 करोड़ रुपये राष्ट्रीय बागवानी मिशन एवं राष्ट्रीय कृषि विकास योजना से खर्च किए जाएंगे।

राजस्थान सरकार कितना अनुदान प्रदान कर रही है

मुख्य बात यह है, कि राजस्थान में सरकार पूर्व से ही मसालों की खेती पर अनुदान मुहैय्या कर रही है। साथ ही, किसानों को आधुनिक विधि से मसालों की खेती करने के लिए प्रशिक्षण भी दिया जाता है। लेकिन, इस योजना के अंतर्गत ज्यादा से ज्यादा 4 हेक्टेयर एवं कम से कम 0.50 हेक्टेयर में मसालों की खेती करने वाले किसान अनुदान का फायदा उठा सकते हैं। किसानों को 40 प्रतिशत अनुदानित धनराशि दी जाएगी। मतलब कि उन्हें प्रति हेक्टेयर 5500 रुपये अनुदान के रूप में मिलेंगे।

अनुदान का फायदा लेने के लिए आवश्यक दस्तावेज

अगर किसान भाई अनुदान का फायदा उठाना चाहते हैं, तो नजदीकी ई-मित्र केंद्र अथवा राजकिसान साथी पोर्टल पर जाकर आवेदन कर सकते हैं। आवेदन करते समय किसान के पास खुद की खेत की जमाबंदी, आधार कार्ड, खेती योग्य जमीन, इलेक्ट्रिसिटी बिल, बैंक पासबुक की कॉपी और स्थानीय आवासीय प्रमाण पत्र होना काफी अनिवार्य है।
सब्जियों के साथ-साथ मसालों के बढ़ते दामों से लोगों की रसोई का बिगड़ा बजट

सब्जियों के साथ-साथ मसालों के बढ़ते दामों से लोगों की रसोई का बिगड़ा बजट

बेमौसम बारिश के चलते राजस्थान और गुजरात में जीरे की फसल को काफी क्षति पहुंची थी। ऐसी स्थिति में पैदावार प्रभावित होने से इसकी कीमतों में निरंतर वृद्धि हो रही है। भारत में महंगाई से हड़कंप मचा हुआ है। हरी सब्जियों से लगाकर खाने- पीने के ज्यादातर चीजें महंगाई की चरम सीमा पर हैं। परंतु, लोगों की निगाह सिर्फ टमाटर पर ही अटकी हुई है। आम जनता को को ऐसा लग रहा है, कि केवल टमाटर ही महंगा हुआ है। अन्य खाद्य पदार्थ पहले के भाव पर ही बिक रहे हैं। परंतु, इस तरह की कोई बात नहीं है। टमाटर के अलावा भी बहुत सारे ऐसे खाद्य पदार्थ हैं, जिनकी कीमतों में अच्छी खासी बढ़ोत्तरी हुई है। ये खाद्य पदार्थ ऐसे हैं, जिसके बिना स्वादिष्ट एवं लजीज व्यंजन बन ही नहीं सकते हैं। अर्थात भोजन स्वादहीन हो जाएगा।

अदरक, टमाटर और हरी मिर्च के बढ़ते दामों से लोग परेशान

दरअसल, हम मसालों की बात कर रहे हैं।
अदरक, टमाटर और हरी मिर्च के बढ़ते दामों की वजह से महंगे हो रहे मसालों पर किसी का ध्यान ही नहीं जा रहा है। जबकि, मसालों के भाव में भी काफी ज्यादा वृद्धि होने से रसोई का बजट ड़गमगा गया है। विशेष बात यह है, कि मसालों के अंतर्गत सर्वाधिक जीरा महंगा हो गया है। इसकी कीमत थोक भाव से लेकर रिटेल बाजार में भी महंगी हो गई है। इससे सब्जी एवं दाल में तड़का लगाने वालों का बजट ड़गमगा गया है। ये भी पढ़े: जानें अदरक की कीमत में इतना ज्यादा उछाल किस वजह से आया है

लोगों ने सब्जी व दाल में जीरे का तड़का लगाना तक बंद कर दिया है

हालांकि, जीरे के अतिरिक्त अजवाइन एवं सौंफ की कीमतें भी बढ़ गई हैं। ऐसी स्थिति में लोग इनकी खरीदारी करने से पूर्व एक बार भाव जरूर पूछ रहे हैं। वहीं, महंगाई की वजह से कई लोगों ने सब्जी और दाल में जीरे का तड़का लगाना भी बंद कर दिया है। जानकारों ने बताया है, कि विगत मार्च माह में हुई बेमौसम बारिश के चलते राजस्थान और गुजरात में जीरे की फसल को हानि पहुंची था। अब ऐसी स्थिति में पैदावार प्रभावित होने से इसकी कीमतों में निरंतर वृद्धि हो रही है। इसके अतिरिक्त काजू और बादाम भी काफी महंगे हो गए हैं।

मसाले कितने महंगे हो गए हैं

बतादें, कि पहले जीरे की कीमत 500 से 600 रुपये किलो थी। जो अब बढ़कर 700 से 750 रुपये हो गया है। इसी प्रकार अजवाइन 250 से 300 रुपये किलो बिकता था। लेकिन, फिलहाल इसकी कीमत 400 रुपये तक पहुँच गई है। साथ ही, सौंफ भी 100 रुपये तक महंगा हो गया है। अब एक किलो सौंफ का भाव 360 रुपये किलो तक पहुँच गया है, जो कि पहले 250 रुपये था।
हजारों साल पहले से भारत से वियतनाम पहुँचता रहा है मसाला

हजारों साल पहले से भारत से वियतनाम पहुँचता रहा है मसाला

शोध रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने कहा है, कि ओसी ईओ में पाए जाने वाले समस्त मसालों की खेती यहां पर नहीं होती होगी। क्योंकि यहां की जलवायु इन मसालों के लिए उपयुक्त नहीं है। मसालों के बिना हम स्वादिष्ट व्यंजनों की कल्पना तक भी नहीं कर सकते हैं। ये ऐसे खाद्य उत्पाद हैं, जो खाने को स्वादिष्ट और लजीज बनाते हैं। ऐसे भी दुनिया में सबसे ज्यादा मसालों का उत्पादन भारत में होता है। भारत से पूरी दुनिया में मसालों की आपूर्ति होती है। खास बात यह है, कि भारत से विदेशों में मसालों का निर्यात कोई हाल के वर्षों में आरंभ नहीं हुआ। यह सैंकड़ों साल पहले से चलता आ रहा है। साथ ही, अब एक नए शोध से ज्ञात हुआ है, कि मसालों का व्यापार तकरीबन 2,000 साल प्राचीन है।

करी बनाने के लिए मसाला इस्तेमाल किया जाता था

साइंस एडवांसेज में प्रकाशित एक रिपोर्ट में इस बात का प्रसार हुआ है। इस रिपोर्ट में दक्षिण पूर्व एशिया की सबसे पुरानी ज्ञात करी के इस्तेमाल के प्रमाण मिले हैं। विशेष बात यह है, कि भारत के बाहर मसालों के इस्तेमाल का यह सबसे पुराणा साक्ष्य है। शोधार्थियों ने दक्षिणी वियतनाम में खुदाई में निकले मसालों के ऊपर शोध किया है। ये मसालों दक्षिणी वियतनाम स्थित ओसी ईओ पुरातात्विक परिसर में खुदाई के चलते निकले थे। यहां पर आठ अन्य मसालों के इस्तेमाल के भी सुबूत मिले हैं। कहा जा रहा है, कि इन मसालों का इस्तेमाल करी बनाने में किया जाता होगा। ये भी पढ़े: सब्जियों के साथ-साथ मसालों के बढ़ते दामों से लोगों की रसोई का बिगड़ा बजट

पहले से ही संग्रहालय में उपस्थित थी

शोधकर्ताओं की टीम का शोध प्रारंभ में करी पर केंद्रित नहीं था। इस वजह से टीम ने पत्थर से बने उन यंत्रों का भी विश्लेषण किया, जिनका इस्तेमाल कभी मसाले को पीसने के लिए किया जाता था। विशेष बात यह है, कि ये सारे उपकरण ओसी ईओ साइट से खुदाई में ही निकले हैं। साल 2017 से 2019 तक चली खुदाई के चलते ज्यादातर उपकरण निकले थे। जबकि, कुछ पहले से ही संग्रहालय में उपस्थिति थे।

लगभग 40 उपकरणों का किया विश्लेषण

शोधकर्ताओं की टीम ने ओसीईओ पुरातात्विक परिसर में स्टार्च के दाने की कोशिकाओं के अंतर्गत पाई जाने वाली छोटी संरचनाओं पर भी अध्यन किया। यहां पर टीम ने 40 उपकरणों का विश्लेषण किया, जिसमें फिंगररूट, गैलंगल, जायफल, लौंग, दालचीनी, हल्दी, रेत और अदरक समेत विभिन्न प्रकार के मसाले के अवशेष शम्मिलित हैं। यह समस्त मसाले खुदाई के अंतर्गत ही निकले थे। इससे यह साबित होता है, कि ओसी ईओ पुरातात्विक परिसर में रहने वाले लोग भोजन में मसालों का इस्तेमाल करते होंगे। ये भी पढ़े: बीजीय मसाले की खेती में मुनाफा ही मुनाफा

मसाले 2000 साल पहले वैश्विक स्तर पर आदान प्रदान की जाने वाली कीमती खाद्य सामग्री थी

साथ ही, शोध रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने बताया है कि ओसी ईओ में पाए जाने वाले समस्त मसालों की खेती यहां पर नहीं होती होगी। क्योंकि यहां की जलवायु इन मसालों के उपयुक्त नहीं है। ऐसी स्थिति में भारत अथवा चीन से इन मसालों का निर्यात हुआ होगा। तब प्रशांत महासागर अथवा हिन्द महासागर को पार कर के ही व्यापारी दक्षिणी वियतनाम पहुंचें होंगे। इससे यह स्पष्ट हो जाता है, कि 2000 साल पहले मसाले वैश्विक स्तर पर आदान-प्रदान की जाने वाली सबसे कीमती खाद्य सामाग्री थी। विशेष बात यह है, कि ओसीईओ में पाए जाने वाले समस्त मसाले इस क्षेत्र में प्राकृतिक तौर पर उपलब्ध नहीं रहे होंगे।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत योगी सरकार बागवानी फसलों की खेती के लिए सब्सिडी प्रदान कर रही है

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत योगी सरकार बागवानी फसलों की खेती के लिए सब्सिडी प्रदान कर रही है

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत लहसुन, प्याज, मिर्च, गेंदा, लीची, शिमला मिर्च, अमरूद, कद्दू और रंजनीगंधा की खेती करने के लिए किसानों को अनुदान दिया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में बागवानी की खेती करने वाले कृषकों के लिए अच्छी खबर है। बीजेपी सरकार हरी सब्जी, मसाले और फलों की खेती करने वाले कृषकों को अनुदान मुहैय्या करा रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार यह मानती है, कि पारंपरिक खेती की तुलना में बागवानी फसलों की खेती में ज्यादा मुनाफा होता है। यदि उत्तर प्रदेश के किसान मसाले, फल और सब्जियों का उत्पादन करते हैं, तो मोटी आमदनी अर्जित कर सकते हैं।

हापुड़ जनपद में बागवानी हेतु 50 प्रतिशत अनुदान

वर्तमान में हापुड़ जनपद के किसान अनुदान का लाभ उठा सकते हैं। जिला उद्यान विभाग राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत सब्जी, फल, फूल और मसालों की खेती करने पर अनुदान प्रदान कर रही है। विशेष बात यह है, कि यदि किसान भाई इनकी खेती करना चाहते हैं, तो विद्यान विभाग उनको 50 प्रतिशत तक सब्सिडी प्रदान करेगा। यदि किसान भाई अनुदान का फायदा लेना चाहते हैं, तो वह घर बैठे ही ऑनलाइन माध्यम से आवेदन कर सकते हैं।

कृषकों को अन्य फसलों का उत्पादन करने के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि हापुड़ जनपद में किसान पारंपरिक खेती के साथ-साथ बागवानी फसलों की भी खेती करते हैं। परंतु, सरकार जनपद में बागवानी का क्षेत्रफल और बढ़ाना चाहती है। यही कारण है, कि राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत अनुदान देने का निर्णय लिया गया है। जिला उद्यान अधिकारी डॉ. हरित कुमार ने बताया है, कि जनपद में कृषकों को गेहूं एवं गन्ने के अतिरिक्त दूसरी फसलों की खेती करने के लिए भी बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे कि प्रत्येक वर्ग के किसानों को पहले की तुलना में अधिक आय अर्जित हो सके।

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जानें कितने प्रतिशत अनुदान मिलेगा

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत कद्दू, लहसुन, प्याज, मिर्च, गेंदा, रंजनीगंधा, लीची, शिमला मिर्च और अमरूद की खेती करने के लिए किसानों को अनुदान दिया जा रहा है। उद्यान अधिकारी ने बताया कि राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत यदि कृषक भाई 30 हेक्टेयर क्षेत्रफल में आम, ड्रेगन फ्रूट, अमरूद और पपीता की खेती करते हैं, तो उन्हें 50 प्रतिशत अनुदान प्रदान किया जाएगा। यदि किसान भाई 30 हेक्टेयर में रजनीगंधा, ग्लेडियोलस और गेंदा जैसे फूलों की खेती करते हैं, तो उन्हें 40 प्रतिशत अनुदान मिलेगा।

कृषक भाई अनुदान हेतु यहां करें ऑनलाइन आवेदन

बतादें, कि इसके अतिरिक्त लौकी, करेला, शिमला मिर्च, तोरई, खीरे, पत्तागोभी, टमाटर और फूलगोभी की बुवाई 205 हेक्टेयर में करते हैं, तो इस पर कृषक भाइयों को 40 प्रतिशत अनुदान दिया जाएगा। इसी प्रकार 245 हेक्टेयर में लहसुन, प्याज और मिर्च की खेती करने पर 40 फीसदी तक अनुदान मिलेगा। यदि इच्छुक कृषक भाई चाहें, तो अनुदान का लाभ उठाने के लिए www.rkvy.nic.in पर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं।
Spices or Masala price hike: पहले सब्जी अब दाल में तड़का भी हो गया महंगा, मसालों की कीमतों में हुई रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी

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जैसा कि हम जानते हैं, कि चरम सीमा पर महंगाई होने की वजह से आम जनता की रसोई का बजट खराब हो गया है। टमाटर और हरी सब्जियों के उपरांत फिलहाल मसालों ने भी लोगों की परेशानियां बढ़ाना शुरू कर दिया है। इनकी कीमतों में कई गुना इजाफा दर्ज किया गया है। बारिश के चलते देश में महंगाई सातवें आसमान पर पहुंच गई है। इससे आम जनता के साथ- साथ खास लोगों के किचन का भी बजट डगमगा चुका है। हरी सब्जियों के पश्चात यदि किसी खाद्य पदार्थ की कीमतों में सबसे ज्यादा बढ़वार हुई है, तो वो हैं मसालें। पिछले एक महीने में मसालों के भाव में कई गुना वृद्धि दर्ज की गई है। विशेष बात यह है, कि विगत 15 दिन में ही कुछ मसालों की कीमत में दोगुनी वृद्धि हुई है। इससे प्रत्येक वर्ग की जेब पर बोझ बढ़ गया है।

दूध, मसाले, हरी सब्जियों सहित कई सारे खाद्य पदार्थों की कीमत बढ़ी हैं

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बारिश की वजह से केवल हरी सब्जियां ही नहीं बल्कि दूध, मसाले और अन्य खाद्य उत्पाद की कीमतें भी बढ़ गई हैं। महंगाई का आंकलन इस बात से किया जा सकता है, कि जो जीरा थोक भाव में विगत वर्ष 300 रुपये किलो था, अब उसकी कीमत 700 रुपये से भी ज्यादा हो गई है। साथ ही, खुदरा बाजार में यह 1000 रुपये लेकर 1200 रुपये किलो बिक रहा है। इससे ग्राहक के साथ-साथ व्यापारी भी चिंता में आ गए हैं।

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लाल मिर्च की कीमतों में दोगुना उछाल

इसी संदर्भ में व्यापारियों का कहना है, कि जीरा इतना ज्यादा महंगा हो जाएगा, उन्हें ऐसी कभी आशंका ही नहीं थी। साथ ही, कृषि विशेषज्ञ की माने तो इस वर्ष फरवरी और मार्च महीने में हुई बेमौसम बारिश ने जीरे की फसल को काफी ज्यादा प्रभावित किया है। यही वजह है, कि 2 महीने की समयावधि में जीरा बहुत ज्यादा महंगा हो गया। परंतु, मानसून के आगमन के पश्चात अचानक दूसरे मसाले भी महंगे हो गए। विशेष कर हल्दी एवं लाल मिर्च की कीमत दोगुनी से भी ज्यादा बढ़ गई है।

मसालों की कीमत में एक वर्ष दौरान कितना उछाल आया (मसालों की कीमत किलो में है)

मसाले बीते वर्ष का रेट होलसेल रेट रिटेल प्राइस
जीरा ₹300 ₹700 ₹1000-1200
हल्दी ₹80-90 ₹160 ₹300
लाल मिर्च ₹110-120 ₹260 ₹400
लौंग ₹600 ₹1100 ₹1500-1800
दालचीन ₹500  ₹700 ₹1100-1400
सौंठ ₹130 ₹500 ₹700-800
आप अपने बगीचे के अंदर इन महकते मसालों के पौधे उगाकर अपनी रसोई में उपयोग कर सकते हैं

आप अपने बगीचे के अंदर इन महकते मसालों के पौधे उगाकर अपनी रसोई में उपयोग कर सकते हैं

आपने मसालों की खेती के विषय में तो काफी सुना होगा। परंतु, आज हम आपको इन्हीं में से कुछ चुनिन्दा मसालों को अपने बगीचे में लगाने के संबंध में बताने वाले हैं। चलिए आपको आगे इस लेख में बताऐंगे कि किन मसाला पौधों का इस्तेमाल घर के बगीचे में किया जा सकता है। आज हम आपको बागवानी के कुछ ऐसे विशेष टिप्स बताने जा रहे हैं, जो आपके इस शौक को और भी ज्यादा बढ़ा देंगे। बिल्कुल, यदि आपको भी बागवानी का शौक है और आप भी कुछ विशेष पौधों को अपने बगीचे की शान बनाना चाहते हैं, तो आपको मसालों की दुनिया में भी एक कदम रखना चाहिए। जो आपके बगीचे को तो सुगंधित करेंगे। साथ ही, आपके स्वाद को भी खूब बढ़ाएंगे। चलिए जानते हैं, कि किन मसाला पौधों को हम अपने बगीचे में उगा सकते हैं।

मिर्च एवं शिमला मिर्च के पौधे

मिर्च हो अथवा शिमला मिर्च दोनों ही हमारे बगीचे में ऐसे मसाले का कार्य करते हैं, जो कम जगह में अधिक पैदावार देने में सक्षम होते हैं। इतना ही नहीं मिर्च ही एक ऐसा मसाला है, जो खाने को सबसे अधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

धनिया के पौधे

यदि आप अपने बगीचे को खुशबू से महकाना चाहते हैं, तो धनिया के पौधे इस दिशा में काफी महत्वपूर्ण होते हैं। आप इस पौधे का इस्तेमाल मसाले और पत्तियों दोनों प्रकार से कर सकते हैं। आप इसे जरा सी जगह में ज्यादा मात्रा में पैदा कर सकते हैं।

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सरसों के पौधे

आम तौर पर इस पौधे का इस्तेमाल हम खाने के तेल के स्वरूप में करते हैं। परंतु, इसका इस्तेमाल मसाला के तौर पर भी किया जाता है। आज हम विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट पकवानों को निर्मित करने के लिए सरसों के बीजों का इस्तेमाल करते हैं। आप मसाले के उपयोग के लिए इन्हें घर में भी पैदा कर सकते हैं। आरंभिक दिनों में यह पौधे फूलों और बाद में यह मसाले के तौर पर कार्य करते हैं।

अदरक के पौधे

अदरक एक ऐसा पौधा है, जिसके अंदर काफी ज्यादा औषधीय गुण मौजूद होते हैं। हम अदरक का इस्तेमाल सब्जी के मसाले के तौर पर करने के साथ-साथ अन्य भी विभिन्न उपयोगी कामों में भी करते हैं। यदि आप पौधों को अपने घर में लगाना पसंद करते हैं, तो आपको भी इन पौधों को एक बार अवश्य होम गार्डनिंग में शम्मिलित करना चाहिए। अगर आपके समीप ज्यादा भूमि नहीं है, तो आप इन पौधों के लिए गमले अथवा घर की छत को भी बगीचे की भाँति उपयोग में ला सकते हैं।
जायफल की खेती किसान प्राकृतिक विधि से करके दोगुनी आय कर सकते हैं

जायफल की खेती किसान प्राकृतिक विधि से करके दोगुनी आय कर सकते हैं

जायफल एक नगदी फसल है। प्राकृतिक ढ़ंग से इसकी खेती कर किसान काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। भारत देश में हर तरह की फसलों की खेती की जाती है। इस बदलते खेती के युग में फिलहाल किसान नगदी फसल की खेती की तरफ अधिक रुझान कर रहे हैं। इस नगदी फसल की खेती से मुनाफा अर्जित कर किसान संपन्न हो रहे हैं। आगे इस लेख में हम आपको ऐसी ही एक फसल जायफल की खेती के विषय में जानकारी देने जा रहे हैं। इसे नकदी फसल के रूप में ही उगाया जाता है। आज कल किसान इसकी खेती प्राकृतिक ढ़ंग से कर काफी मोटा मुनाफा कमा रहे हैं।

जायफल की खेती हेतु उपयुक्त मृदा

विशेषज्ञों के मुताबिक, जायफल के लिए बलुई दोमट एवं लाल लैटेराइट मृदा सबसे अच्छी होती है। इसका पीएच मान 5 से 6 के मध्य होना चाहिए। इसके बीज की बुवाई के पहले खेत की गहरी जुताई की आवश्यकता होती है। ये भी पढ़े:
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जायफल की खेती हेतु उपयुक्त जलवायु

जायफल एक सदाबहार पौधा होता है। इसकी बिजाई करने के लिए 22 से 25 डिग्री के तापमान की आवश्यकता होती है। अत्यधिक गर्मी वाले क्षेत्रों में इसकी खेती अच्छे से नहीं हो पाती है। जायफल के बीज अंकुरित ही नहीं हो पाते हैं।

खेत की तैयारी किस प्रकार करें

बीज की बुवाई के उपरांत खेत की बेहतर ढ़ंग से सिंचाई कर दें। इसके लिए खेत में गड्डे भी तैयार किए जाते हैं। खेत की मिट्टी पलटने के लिए हल से गहरी जुताई करें। 4 से 6 दिन गुजरने के उपरांत खेत में कल्टीवेटर की सहायता से 3 से 4 बार जुताई करें।

जायफल की फसल में आर्गेनिक खाद का उपयोग

जायफल के पौधों की बुवाई के पश्चात खेतों में लगातार उचित अंतराल पर खाद देते रहना चाहिए। खेत में गोमूत्र एवं बाविस्टीन के मिश्रण को डाल देना चाहिए। जायफल की पौध तैयार करने के लिए आर्गेनिक खाद, गोबर, सड़ी गली सब्जियों का उपयोग करना चाहिए। ये भी पढ़े: बीजीय मसाले की खेती में मुनाफा ही मुनाफा

जायफल से कितनी पैदावार होती है

जायफल का उत्पादन 4 से 6 साल बाद चालू हो जाती है। इसका वास्तविक लाभ 15 से 18 वर्ष उपरांत मिलना शुरू होता है। इसके पौधों में फल जून से अगस्त माह के मध्य लगते हैं। यह पकने के पश्चात पीले रंग के हो जाते हैं। इसके उपरांत जायफल के बाहर का आवरण फट कर बाहर निकल जाता है। अब आपको इसकी तुड़ाई कर लेनी चाहिए।