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मेथी

मेथी की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

मेथी की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

किसान भाइयों आप मेहनत करने के बाद भी वो चीजें नहीं हासिल कर पाते हो जिनके लिए आप पूरी तरह से हकदार हो। आपने वो कहावत तो सुनी होगी कि हिम्मते मर्दा मददे खुदा। जो अपनी मदद करता है, खुदा उसकी मदद करता है। यह बात सही है लेकिन खुदा या ईश्वर साक्षात प्रकट होकर आपकी मदद करने नहीं आयेंगे। इसके बावजूद यदि आप अपने जीवन की तरक्की की बातों को खोजना शुरू कर देंगे तो आपको वो सारे रास्ते मिल जायेंगे जिन्हें आप चाहेंगे। इस विश्वास के साथ आप अपनी मौजूदा माली हालत को देखिये और अपने परिवार की ओर देखिये। उनकी समस्यायें क्या हैं आप खेती करके कितनी जरूरतें पूरी कर पा रहे हैं और कितनी अधूरी रह जा रहीं हैं। इन सभी बातों पर विचार करेंगे तो आपको रास्ता अवश्य दिख जायेगा। चाहे आप फसल का चक्रानुक्रम बढ़ायें अथवा वो फसलें खेतों में पैदा करें जो अब पारंपरिक फसलों से अधिक आमदनी दे सकें। इस बारे में विचार करें। सरकारी और गैर सरकारी विशेषज्ञों से सम्पर्क करें और कम समय में और कम लागत में अधिक आमदनी देने वाली फसलों को पैदा करने की योजना बनायें तो कोई भी शक्ति आपको आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती। क्योंकि कहा गया है कि चरण चूम लेतीं हैं खुद चलके मंजिल। मुसाफिर अगर हिम्मत न हारे। इसलिये हिम्मत करके आप व्यापारिक फसलों पर अपना फोकस करें। मेथी ऐसी ही फसल है, जो कम लागत में और कम समय में दोहरा या इससे ज्यादा लाभ देने वाली है। जानिये मेथी की खेती के बारे में। ये भी पढ़े: पालक की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

मेथी के खास-खास गुण

मेथी को लिग्यूमनस फेमिली का पौधा कहा जाता है। इसका पौधा झाड़ीदार एवं छोटा ही होता है। मेथी के पौधे की पंत्तियां और बीज दोनों का ही इस्तेमाल किया जाता है। मेथी की पत्तियों का साग बनाया जाता है और उसके बीज को मसाले के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा पत्तियों को सुखा कर महंगे दामों पर बेचा जा सकता है। मेथी के बीज को औषधीय प्रयोग किया जाता है। इससे आयुर्वेदिक दवाएं बनतीं हैं। मेथी के लड्डू खाने से शुगर डायबिटीज, ब्लेड प्रेशर कंट्रोल होता है। शरीर के जोड़ों के दर्द व अपच की बीमारी में मेथी के बीज फायदेमंद होता है।

मिट्टी व जलवायु

किसान भाइयों वैसे तो मेथी की खेती प्रत्येक प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। लेकिन इसके लिए बलुई व रेतीली बलुई मिट्टी सबसे ज्यादा अच्छी होती है। मिट्टी का पीएच मान 6 से 8 के बीच होना चाहिये। मेथी की खेती के लिए ठंडी जलवायु अधिक अच्छी होती है क्योंकि इस के पौधे में अन्य पौधों की अपेक्षा पाला सहने की शक्ति अधिक होती है। किसान भाइयों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि मेथी की खेती उन स्थानों पर की जानी चाहिये जहां पर बारिश अधिक न होती है क्योंकि मेथी का पौधा अधिक वर्षा को सहन नहीं कर पाता है। इसलिये जल जमाव वाला खेत भी मेथी की खेती के लिए नुकसानदायक है।

खेत की तैयारी

मेथी की खेती करने वाले किसान भाइयों को चाहिये की खेत को तब जुतवायें जब तक मिट्टी भुरभुरी न हो जाये यानी कंकड़ या ढेला न रहे। इसके लिए पाटा का इस्तेमाल करना चाहिये। आखिरी जुताई करने से पहले गोबर की खाद का मिश्रण डालना चाहिये। जिससे खाद मिट्टी में अच्छी तरह से मिल जाये। उसके बाद खेत बिजाई के लिए तैयार हो जाता है। बिजाई के लिए 3 गुणा दो मीटर की समतल बैड तैयार करना चाहिये। मेथी खेत की तैयारी

बिजाई का समय व अन्य जरूरी बातें

किसान भाइयों आपको बता दें कि मेथी की खेती के लिए बिजाई का समय मैदानी और पहाड़ी इलाकों के लिए अलग-अलग होता है। मैदानी इलाकों में  मेथी की बिजाई सितम्बर-अक्टूबर तक हो जानी चाहिये। पहाड़ी इलाकों में मेथी की बिजाई जुलाई व अगस्त के महीने में की जानी चाहिये। इसकी बिजाई हाथों से छींट करके की जाती है। बिजाई करते समय पौधों की दूरी का ध्यान रखना पड़ता है। लाइन से लाइन की दूरी लगभग एक फुट होनी चाहिये। पौधों से पौधों की दूरी किस्म के अनुसार तय की जाती है। बीज को एक इंच तक गहराई में बोना चाहिये। एक एकड़ में लगभग 12 किलोग्राम मेथी के बीजों की जरूरत होती है। बिजाई से पहले मेथी के बीजों को उपचारित करना जरूरी होता है। उपचारित करने के लिए बीजों को बुवाई करने से लगभग 10 घंटे पानी में भिगो देना चाहिये। फंगस व कीट आदि से बचाने के लिए कार्बेनडजिम, डब्ल्यूपी से बीजों को उपचारित करें। इसके साथ एजोसपीरीलियम ट्राइकोडरमा के मिक्स घोल से बीजों का उपचार करने से किसी भी प्रकार की शंका नहीं रहती है। यदि कोई किसान भाई मेथी की बुवाई ताजा साग बेचने के लिए करना चाहते हैं तो आपको प्रत्येक 8-10 दिन के अंतर से बुवाई करते रहना होगा। मैदानी इलाके में यह बुवाई सितम्बर से लेकर नवम्बर तक की जा सकती है। इसके बाद बीजों के लिए नवम्बर के अंत में बुवाई करके  छोड़ देंगे तो आपको अच्छी पैदावार मिल जायेगी।

खाद व रासायनिक उपचार का प्रबंधन

मेथी की खेती में खाद और बूस्टर रासायनिक का प्रबंधन बहुत ही लाभकारी होता है। किसान भाई जितना अच्छा इन का प्रबंधन कर लेंगे उतनी ही अच्छी पैदावार ले सकेंगे। इसके लिये समय-समय पर आवश्यक उर्वरकों को सही मात्रा में डालना होगा। साथ ही समय-समय पर बूस्टर रासायनिक डोज भी देनी होगी। इससे तेजी से फसल बढ़ती है। बुवाई करने के समय एक एकड़ में 12 किलो यूरिया, 8 किलो पोटेशियम, 50 किलो सुपर फास्फेड और 5 किलो नाइट्रोजन मिलाकर डालनी चाहिये। पौधों में तेजी से बढ़वार देने के लिए 10 दिनों के बाद ही ट्राइकोटानॉल हारमोन को पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिये। इसके दस दिन बाद एनपीके का समान मिश्रण करके छिड़काव करने से जल्द ही फसल तैयार हो जाती है। अच्छी फसल के लिए डेढ़ महीने के बाद ब्रासीनोलाइड को पानी मिलाकर घोल का छिड़काव करना चाहिये। इसके दस दिन बाद दुबारा इसी तरह के घोल का छिड़काव करने से फसल तेजी से बढ़ती है। पाला व कोहरे से बचाने के लिएथाइयूरिया का छिड़काव करें।

सिंचाई प्रबंधन

मेथी की खेती में सिंचाई का प्रबंध करना भी जरूरी होता है। समय-समय पर सिंचाई करने से साग का स्तर काफी अच्छा होता है वरना पौधे कड़े हो जाते हैं फिर उनकी भाजी बेचने योग्य नहीं रह जाती है। बिजाई से पहले ही सिंचाई करनी चाहिये। हल्की नमी के समय ही बिजाई करनी चाहिये ताकि उनका अंकुरन जल्दी हो सके। बिजाई के एक माह बाद सिंचाई करनी चाहिये। उसके बाद मिट्टी के पीएच मान के अनुसार दो महीने के आसपास सिंचाई करनी चाहिये। इसके बाद तीन महीने और चौथे महीने में सिंचाई करनी चाहिये। साग वाली मेथी की खेती में सिंचाई जल्दी-जल्दी करनी चाहिये। इसके अलावा जब पौधे मेंं फूल के बाद फली आने लगती है तब सिंचाई पर विशेष ध्यान देना होता है। क्योंकि पानी की कमी से पैदावार पर काफी असर पड़ सकता है।

खरपतवार नियंत्रण कैसे करें

किसान भाइयों किसी भी फसल के लिए खरपतवार का नियंत्रण करना अति आवश्यक होता है। मेथी की खेती में खरपतवार के नियंत्रण के लिए दो बार गुड़ाई-निराई करनी होती है। पहली गुड़ाई-निराई एक महीने के बाद और दूसरे महीने के बाद दूसरी गुड़ाई निराई की जानी चाहिये। इसके साथ ही खरपतवार के कीट यानी नदीनों की रोकथाम के लिए फ्लूक्लोरालिन, पैंडीमैथालिन का छिड़काव बिजाई एक दो दिनों बाद ही करना चाहये। जब पौधा दस सेंटीमीटर का हो जाये तो उसको बिखरने से रोकने के लिए बांध दें। ताकि छोटी झाड़ी बन सके और अधिक पत्तियां दे सके।

मेथी की उन्नत व लाभकारी किस्में

मेथी की खेती के लिए वैज्ञानिकों ने जलवायु और मिट्टी के अनुसार अनेक उन्नत किस्में तैयार कीं हैं। किसान भाइयों को चाहिये कि वो अपने क्षेत्र की मृदा व जलवायु के हिसाब से किस्मों को छांट कर खेती करेंगे तो अधिक लाभ होगा। इन उन्नत किस्मों में कुछ इस प्रकार हैं:-
  • कसूरी मेथी: इस किस्म के पौधे की पत्तियां छोटी और हंसिये की तरह होतीं हैं। इस किस्म के पौधे से पत्तियों की 2 से 3 बार कटाई की जा सकती है। इस किस्म की फसल देर से पकती है। इसकी महक अन्य मेथी से अलग और अच्छी होती है। इसकी औसत फसल 60 से 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
  • पूसा अर्ली बंचिंग: मेथी की यह किस्म जल्दी तैयार होने वाली किस्म है। इसकी भी दो-तीन बार कटाई की जा सकती है। इसकी फलियां आठ सेंटीमीटर तक लम्बी होतीं हैं। इसकी फसल चार महीने में पक कर तैयार हो जाती है।
  • लाम सिलेक्शन: भारत के दक्षिणी राज्यों के मौसम के अनुकूल यह किस्म खोजी गयी है। इसका पौधा झाड़ीदार होता है। साग और बीज के अच्छे उत्पादन के लिये यह अच्छी किस्म है।
  • कश्मीरी मेथी: पहाड़ी क्षेत्रों के लिए खोजी गयी इस नस्ल की मेथी के पौधे की खास बात यह है कि यह सर्दी को अधिक बर्दाश्त कर लेता है। इसके फूल सफेद रंग के होते हैं। इसकी फसल पकने में थोड़ा अधिक समय लगता है।
  • हिसार सुवर्णा, हिसार माधवी और हिसार सोनाली: जैसे नाम से ही मालूम होता है कि मेथी की इन किस्मों की खोज हरियाणा के हिसार कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा की गयी है। इस किस्मों की खास बात यह है कि इनमें धब्बे वाला रोग नहीं लगता है। बीज व साग के लिए बहुत ही अच्छी किस्में हैं। राजस्थान और हरियाणा में इसकी खेती होती है, जहां किसानों को अच्छी पैदावार मिलती है।
सहफसली तकनीक से किसान अपनी कमाई कर सकते हैं दोगुना

सहफसली तकनीक से किसान अपनी कमाई कर सकते हैं दोगुना

किसानों को परंपरागत खेती में लगातार नुकसान होता आ रहा है, जिसके कारण जहाँ किसानों में आत्महत्या की प्रवृति बढ़ रही है, वहीं किसान खेती से विमुख भी होते जा रहे हैं. इसको लेकर सरकार भी चिंतित है. लगातार खेती में नुकसान के कारण किसानों का खेती से मोहभंग होना स्वभाविक है, इसी के कारण सरकार आर्थिक तौर पर मदद करने के लिए कई योजनाओं पर काम कर रही है. सरकार की तरफ से किसानों को खेती में सहफसली तकनीक (multiple cropping or multicropping or intercropping) अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. विशेषज्ञों की मानें, तो ऐसा करने से जमीन की उत्पादकता बढ़ती है, साथ ही एकल फसली व्यवस्था या मोनोक्रॉपिंग (Monocropping) तकनीक की खेती के मुकाबले मुनाफा भी दोगुना हो जाता है.


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सहफसली खेती के फायदे

परंपरागत खेती में किसान खरीफ और रवि के मौसम में एक ही फसल लगा पाते हैं. किसानों को एक फसल की ही कीमत मिलती है. जो मुनाफा होता है, उसी में उनकी मेहनत और कृषि लागत भी होता है. जबकि, सहफसली तकनीक में किसान मुख्य फसल के साथ अन्य फसल भी लगाते हैं. स्वाभाविक है, उन्हें जब दो या अधिक फसल एक ही मौसम में मिलेगा, तो आमदनी भी ज्यादा होगी. किसानों के लिए सहफसली खेती काफी फायदेमंद होता है. कृषि वैज्ञानिक लंबी अवधि के पौधे के साथ ही छोटी अवधि के पौधों को लगाने का प्रयोग करने की सलाह किसानों को देते हैं. किसानों को सहफसली खेती करनी चाहिए, ऐसा करने से मुख्य फसल के साथ-साथ अन्य फसलों का भी मुनाफा मिलता है, जिससे आमदनी दुगुनी हो सकती है.


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धान की फसल के साथ लगाएं कौन सा पौधा

सहफसली तकनीक के बारे में कृषि विशेषज्ञ डॉक्टर दयाशंकर श्रीवास्तव सलाह देते हैं, कि धान की खेती करने वाले किसानों को खेत के मेड़ पर नेपियर घास उगाना चाहिए. इसके अलावा उसके बगल में कोलस पौधों को लगाना चाहिए. नेपियर घास पशुपालकों के लिए पशु आहार के रूप में दिया जाता है, जिससे दुधारू पशुओं का दूध उत्पादन बढ़ता है और उसका लाभ पशुपालकों को मिलता है, वहीं घास की अच्छी कीमत भी प्राप्त की जा सकती है. बाजार में भी इसकी अच्छी कीमत मिलती है.


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गन्ना, मक्की, अरहर और सूरजमुखी के साथ लगाएं ये फसल

पंजाब हरियाणा और उत्तर भारत समेत कई राज्यों में किसानों के बीच आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है और इसका कारण लगातार खेती में नुकसान बताया जाता है. इसका कारण यह भी है की फसल विविधीकरण नहीं अपनाने के कारण जमीन की उत्पादकता भी घटती है और साथ हीं भूजल स्तर भी नीचे गिर जाता है. ऐसे में किसानों के सामने सहफसली खेती एक बढ़िया विकल्प बन सकता है. इस विषय पर दयाशंकर श्रीवास्तव बताते हैं कि सितंबर से गन्ने की बुवाई की शुरुआत हो जाएगी. गन्ना एक लंबी अवधि वाला फसल है. इसके हर पौधों के बीच में खाली जगह होता है. ऐसे में किसान पौधों के बीच में लहसुन, हल्दी, अदरक और मेथी जैसे फसलों को लगा सकते हैं. इन सबके अलावा मक्का के फसल के साथ दलहन और तिलहन की फसलों को लगाकर मुनाफा कमाया जा सकता है. सूरजमुखी और अरहर की खेती के साथ भी सहफसली तकनीक को अपनाकर मुनाफा कमाया जा सकता है. कृषि वैज्ञानिक सह्फसली खेती के साथ-साथ इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) यानी ‘एकीकृत कृषि प्रणाली’ की भी सलाह देते हैं. इसके तहत खेतों के बगल में मुर्गी पालन, मछली पालन आदि का भी उत्पादन और व्यवसाय किया जा सकता है, ऐसा करने से कम जगह में खेती से भी बढ़िया मुनाफा कमाया जा सकता है.
बीजीय मसाले की खेती में मुनाफा ही मुनाफा

बीजीय मसाले की खेती में मुनाफा ही मुनाफा

कहते हैं, मसालों की खोज सबसे पहले भारत में ही हुई, भारत से ही मसाले दुनिया भर में फैले। ये ऐसे मसाले हैं, जिनकी खुशबू से ही लोगों के चेहरे खिल उठते हैं। आपने पढ़ा ही होगा कि मसाले बेच कर एक तांगावाला इस देश में मसाला किंग के नाम से फेमस हो गया।
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मसाले हर किसी को भाते हैं, किसी को ज्यादा, किसी को कम। मसालों की खेती विदेशी पूंजी को भारत में लाने का एक बड़ा जरिया है। हमारे यहां जो मसाले तैयार होते हैं, उनकी विदेशों में जबरदस्त डिमांड है। दुनिया का शायद ही कोई देश ऐसा हो, जहां मसालों की खपत हो और वे भारतीय मसाला नहीं खाते हों। भारतीय मसालों का डंका हर तरफ बज रहा है, ये आज से नहीं सैकड़ों सालों से है।

रायपुर में शोध

रायपुर स्थित कृषि विश्वविद्यालय में इन दिनों बीजीय मसालों (seed spices) पर शोध चल रहा है। दर्जनों शोधार्थी बीजीय मसालों पर शोध कर रहे हैं, वो एक नए मसाले की तलाश में हैं। वो हींग, मेथी, जीरा, जायफल, धनिया, सरसों के इतर कुछ ऐसे बीजीय मसालों की तलाश में हैं, जो सबसे अलग हो। मजे की बात यह है कि इन बीजीय मसालों को ही कॉकटेल कर वे कोई नया मसाला तैयार करने की नहीं सोच रहे हैं। वो सच में कुछ नया करना चाह रहे हैं, यही कारण है कि पिछले 9-10 महीनों से वो शोध कर रहे हैं। लेकिन अभी तक किसी परिणाम पर नहीं पहुंचे हैं, शोध जारी है।

भारत है नंबर 1

आपको पता ही होगा कि भारत मसाला उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान पर है। भारत को तो मसालों की भूमि के नाम से भी जाना जाता है, इन मसालों के औषयधी गुणों के कारण देश-दुनिया में इनकी डिमांड निरंतर बढ़ती जा रही है। दुनिया भर के व्यापारी हमारे देश में आते हैं, भारत के नक्शे को देखें तो जम्मू-कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक विभिन्न प्रकार के मसालों का उत्पादन होता है। इन सभी मसालों का अपना अलग मिजाज है, कोई बीमारी में काम आता है तो कोई रोगों से लड़ने की ताकत देता है। तो कोई स्वाद को बहुत ज्यादा बढ़ा देता है, तो कोई मसाला ऐसा भी होता है जो आपकी पाचन क्रिया को दुरुस्त कर देता है। इन मसालों के रहते अब नए मसालों की खोज इसलिए की जा रही है ताकि चार मसालों के स्थान पर एक ही मसाला भोजन में डाला जाए और उसका कोई साइड इफेक्ट न हो।
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परंपरागत मसाले

अगर बात करें मुख्य बीजीय मसाले की तो वो परंपरागत हैं। जैसे जीरा, धनिया, मेथी, सौंफ, अजवायन, सोवा, कलौंजी, एनाइस, सेलेरी, सरसों तथा स्याहजीरा। इन सभी की खेती देश के उन इलाकों में की जाती है, जहां इनके लायक मौसम बढ़िया होता है। दरअसल, बीजीय मसाले अर्धशुष्क और शुष्क इलाकों में ही उगाए जा सकते हैं। जहां बहुत ज्यादा गर्मी होगी या बहुत ज्यादा ठंड पड़ती हो, वहां मसाले नहीं उगाए जा सकते। फसल ही चौपट हो जाएगी, दरअसल शुष्क व अर्धशुष्क क्षेत्रों में जल की कमी होती है और जो उपलब्ध भूजल होता है, वह सामान्यतः लवणीय होता है। आपको पता ही होगा कि बीजीय मसाला फसलों को धान या गेहूं अथवा मक्के की तरह पानी की जरूरत नहीं होती। इनका काम कम जल में भी चल जाता है।
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अनुदान की योजना

सरकार उन इलाकों में, जहां भूजल कम है, बीजीय मसाले की खेती करने वाले किसानों को अनुदान भी देने की योजना बना रही है। हालांकि, ये हार्ड कोर कैश क्राप्स हैं, ये तैयार होते ही बिक जाते हैं और देश-विदेश से इनके ग्राहक भी आते हैं। आपको बता दें कि भारत में जिन मसालों का उत्पादन होता है, वे सबसे ज्यादा मात्रा में अमेरिका, जापान, कनाडा, आस्ट्रेलिया और यूरोपीय देशों में निर्यात होता है। यहां से ठीक-ठाक विदेशी मुद्रा भी आ जाती है। अगर आप भी बीजीय मसालों की खेती करना चाहते हैं, तो पूरे पैटर्न को समझ लें। इस खेती में पैसे तो हैं पर रिस्क भी कम नहीं है, उस रिस्क को अगर आप सहन कर सकते हैं, तो बीजीय मसालों की खेती में बहुत पैसा है और आप उससे मुनाफा कमा सकते हैं।
इस तकनीक के जरिये किसान एक एकड़ जमीन से कमा सकते है लाखों का मुनाफा

इस तकनीक के जरिये किसान एक एकड़ जमीन से कमा सकते है लाखों का मुनाफा

भारत के बहुत सारे किसानों पर कृषि हेतु भूमि बहुत कम है। उस थोड़ी सी भूमि पर भी वह पहले से चली आ रही खेती को ही करते हैं, जिसे हम पारंपरिक खेती के नाम से जानते हैं। लेकिन इस प्रकार से खेती करके जीवन यापन भी करना एक चुनौतीपूर्ण हो जाता है। परन्तु आज के समय में किसान स्मार्ट तरीकों की सहायता से 1 एकड़ जमीन से 1 लाख रूपये तक की आय अर्जित कर सकते हैं। वर्तमान में प्रत्येक व्यवसाय में लाभ देखने को मिलता है। कृषि विश्व का सबसे प्राचीन व्यवसाय है, जो कि वर्तमान में भी अपनी अच्छी पहचान और दबदबा रखता है। हालाँकि, कृषि थोड़े समय तक केवल किसानों की खाद्यान आपूर्ति का इकलौता साधन था। लेकिन वर्त्तमान समय में किसानों ने सूझ-बूझ व समझदारी से सफलता प्राप्त कर ली है। आजकल फसल उत्पादन के तरीकों, विधियों एवं तकनीकों में काफी परिवर्तन हुआ है। किसान आज के समय में एक दूसरे के साथ सामंजस्य बनाकर खेती किसानी को नई उचाईयों पर ले जाने का कार्य कर रहे हैं। आश्चर्यचकित होने वाली यह बात है, कि किसी समय पर एक एकड़ भूमि से किसानों द्वारा मात्र आजीविका हेतु आय हो पाती थी, आज वही किसान एक एकड़ भूमि से बेहतर तकनीक एवं अच्छी फसल चयन की वजह से लाखों का मुनाफा कमा सकता है। यदि आप भी कृषि से अच्छा खासा मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो आपको भूमि पर एक साथ कई सारी फसलों की खेती करनी होगी। सरकार द्वारा भी किसानों की हर संभव सहायता की जा रही है। किसानों को आर्थिक मदद से लेकर प्रशिक्षण देने तक सरकार उनकी सहायता कर रही है।

वृक्ष उत्पादन

किसान पेड़ की खेती करके अच्छा खासा लाभ अर्जित कर सकते हैं। लेकिन उसके लिए किसानों को अपनी एकड़ भूमि की बाडबंदी करनी अत्यंत आवश्यक है। जिससे कि फसल को जंगली जानवरों की वजह से होने वाली हानि का सामना ना करना पड़े। पेड़ की खेती करते समय किसान अच्छी आमदनी देने वाले वृक्ष जैसे महानीम, चन्दन, महोगनी, खजूर, पोपलर, शीशम, सांगवान आदि के पेड़ों का उत्पादन कर सकते हैं। बतादें, कि इन समस्त पेड़ों को बड़ा होने में काफी वर्ष लग जाते हैं। किसान भूमि की मृदा एवं तापमान अनुरूप फलदार वृक्ष का भी उत्पादन कर सकते हैं। फलदार वृक्षों से फल उत्पादन कर अच्छी कमाई की जा सकती है।

पशुपालन

पेड़ लगाने के व खेत की बाडबंदी के उपरांत सर्वप्रथम गाय या भैंस की बेहतर व्यवस्था करें। क्योंकि गाय व भैंस के दूध को बाजार में बेचकर अच्छा मुनाफा कमाया जाता है। साथ ही, इन पशुओं के गोबर से किसान अपनी फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिए खाद की व्यवस्था भी कर सकते हैं। किसान चाहें तो पेड़ उत्पादन सहित खेत के सहारे-सहारे पशुओं हेतु चारा उत्पादन भी कर सकते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि बहुत से पशु एक दिन के अंदर 70-80 लीटर तक दूध प्रदान करते हैं। किसान बाजार में दूध को विक्रय कर प्रतिमाह हजारों की आय कर सकते हैं।


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मौसमी सब्जियां

किसान अपनी एक एकड़ भूमि का कुछ भाग मौसमी सब्जियों का मिश्रित उत्पादन कर सकते हैं। यदि किसान चाहें तो वर्षभर मांग में रहने वाली सब्जियां जैसे कि अदरक, फूलगोभी, टमाटर से लेकर मिर्च, धनिया, बैंगन, आलू , पत्तागोभी, पालक, मेथी और बथुआ जैसी पत्तेदार सब्जियों का भी उत्पादन कर सकते हैं। इन सब सब्जियों की बाजार में अच्छी मांग होने की वजह से तीव्रता से बिक जाती हैं। साथ इन सब्जिओं की पैदावार भी किसान बार बार कटाई करके प्राप्त हैं। किसान आधा एकड़ भूमि में पॉलीहाउस के जरिये इन सब्जियों से उत्पादन ले सकते हैं।

अनाज, दाल एवं तिलहन का उत्पादन

देश में प्रत्येक सीजन में अनाज, दाल एवं तिलहन का उत्पादन किया जाता है, सर्वाधिक दाल उत्पादन खरीफ सीजन में किया जाता हैं। बाजरा, चावल एवं मक्का का उत्पादन किया जाता है, वहीं रबी सीजन के दौरान सरसों, गेहूं इत्यादि फसलों का उत्पादन किया जाता है। इसी प्रकार से फसल चक्र के अनुसार प्रत्येक सीजन में अनाज, दलहन अथवा तिलहन का उत्पादन किया जाता है। किसान इन तीनों फसलों में से किसी भी एक फसल का उत्पादन करके 4 से 5 माह के अंतर्गत अच्छा खासा लाभ अर्जित कर सकते हैं।

सोलर पैनल

आजकल देश में सौर ऊर्जा के उपयोग में वृध्दि देखने को मिल रही है। बतादें, कि बहुत सारी राज्य सरकारें तो किसानों को सोलर पैनल लगाने हेतु धन प्रदान कर रही हैं। सोलर पैनल की वजह से किसानों को बिजली एवं सिंचाई में होने वाले खर्च से बचाया जा सकता है। साथ ही, सौर ऊर्जा से उत्पन्न विघुत के उत्पादन का बाजार में विक्रय कर लाभ अर्जित किया जा सकता है। जो कि प्रति माह किसानों की अतिरिक्त आय का साधन बनेगी। विषेशज्ञों द्वारा किये गए बहुत सारे शोधों में ऐसा पाया गया है, सोलर पैनल के नीचे रिक्त स्थान पर सुगमता से कम खर्च में बेहतर सब्जियों का उत्पादन किया जा सकता है।
जानें मेथी की इन टॉप पांच उन्नत किस्मों के बारे में

जानें मेथी की इन टॉप पांच उन्नत किस्मों के बारे में

मेथी की यह टॉप पांच उन्नत प्रजतियाँ पूसा कसूरी, आर.एस.टी 305, राजेंद्र क्रांति, ए.एफ.जी 2 एवं हिसार सोनाली प्रजाति किसानों को कम समय में ही प्रति एकड़ लगभग 6 क्विंटल तक उपज देती हैं। बाजार में इन किस्मों कीमत भी काफी अधिक है। मेथी एक प्रकार की पत्तेदार वाली फसल है, जिसका उत्पादन भारत के तकरीबन समस्त किसान अपने खेत में कर बेहतरीन व शानदार कमाई कर रहे हैं। दरअसल, मेथी हमारे शरीर के लिए बेहद लाभकारी होती है। क्योंकि, इसके अंदर प्रोटीन, सूक्ष्म तत्त्व विटामिन विघमान होते हैं। इसलिए बाजार में इसकी मांग सबसे ज्यादा होती है। ऐसी स्थिति में यदि आप मेथी की उन्नत किस्मों की खेती करते हैं, तो आप कम वक्त में भी शानदार उपज हांसिल कर सकते हैं। मेथी की ये टॉप पांच उन्नत किस्में पूसा कसूरी, आर.एस.टी 305, राजेंद्र क्रांति, ए.एफ.जी 2 और हिसार सोनाली प्रजाति हैं, जो प्रति एकड़ में तकरीबन 6 क्विंटल तक उत्पादन देने में सक्षम हैं।

मेथी की टॉप पांच उन्नत किस्में निम्नलिखित हैं

मेथी की राजेंद्र क्रांति किस्म

मेथी की राजेंद्र क्रांति प्रजाति से किसान प्रति एकड़ तकरीबन 5 क्विंटल तक शानदार पैदावार हांसिल कर सकते हैं। मेथी की यह किस्म खेत में तकरीबन 120 दिनों के अंदर पककर तैयार हो जाती है।

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मेथी की पूसा कसूरी किस्म

मेथी की पूसा कसूरी किस्म में फूल काफी विलंभ से आते हैं। किसान इस किस्म की एक बार बिजाई करने के बाद लगभग 5-6 बार उपज प्राप्त कर सकते हैं। मेथी की इस किस्म के दाने छोटे आकार के होते हैं। किसान पूसा कसूरी से प्रति एकड़ 2.5 से 2.8 क्विंटल उपज आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।

मेथी की आर.एम.टी. 305 किस्म

मेथी की यह किस्म बेहद शीघ्रता से पककर तैयार हो जाती है। मेथी की आर.एम.टी. 305 किस्म में चूर्णिल फफूंद रोग और मूल गांठ सूत्रकृमि रोग नहीं लगते हैं। किसान इस प्रजाति से प्रति एकड़ लगभग 5.2 से 6 क्विंटल तक उत्पादन हांसिल कर सकते हैं।

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मेथी की ए.एफ.जी 2 किस्म

मेथी की इस प्रजाति के पत्ते बेहद चौड़े होते हैं। किसान मेथी की ए.एफ.जी 2 किस्म की एक बार बिजाई करने के पश्चात लगभग 3 बार कटाई कर उत्पादन हांसिल कर सकते हैं। इस किस्म के दाने छोटे आकार में होते हैं। किसान मेथी की इस प्रजाति से प्रति एकड़ 7.2 से 8 क्विंटल पैदावार अर्जित कर सकते हैं।