कटहल को अंग्रेज़ी में Jackfruit कहा जाता है, भारत में एक लोकप्रिय फल है जो स्वाद में लाजवाब और पोषण से भरपूर होता है। इसकी सुगंध, स्वाद, और उपयोगिता ने इसे “गरीबों का मीट” भी बना दिया है।
कटहल की खेती न केवल स्वास्थ्यप्रद फल प्रदान करती है, बल्कि किसानों को अच्छा मुनाफ़ा भी देती है। आज हम इस लेख के माध्यम से जानेंगे भारत में कटहल की खेती से जुड़ी हर ज़रूरी जानकारी — जलवायु, मिट्टी, किस्में, खाद, सिंचाई से लेकर कटाई और उपज आदि तक।
भारत में कटहल की खेती बहुत पुरानी है। यह फल पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, केरल, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में बहुतायत से उगाया जाता है। इसके अलावा, यह पहाड़ों में भी अच्छा उत्पादन देता है।
कटहल ताजे फलों के अलावा अचार, सब्ज़ी, चिप्स और मिठाई बनाने में भी खाया जाता है। कटहल की बाजार मांग आजकल तेजी से बढ़ रही है क्योंकि इससे जैम, जैली और प्रोसेस्ड खाना भी बनाया जाता है। इसकी खेती करना किसानों के लिए लाभदायक हो सकता है।
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कटहल की खेती उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में की जाती है। इसकी अच्छी पैदावार के लिए गर्म और नम मौसम उपयुक्त होता है।
सामान्यत कटहल की खेती की खेती के लिए 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान वाला क्षेत्र इसके लिए सबसे अनुकूल है। कटहल को अधिक सर्दी को सहन नहीं कर सकता है, अधिक ठंड में पौधे को नुकसान पहुंच सकता है। अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में जहां जल निकासी की उचित व्यवस्था होती है इसकी खेती की जा सकती है।
वैसे तो कटहल की खेती लगभग सभी प्रकार की ज़मीन में की जा सकती है, लेकिन कटहल के लिए उपजाऊ, अच्छी जल निकासी वाली दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है।
मिट्टी का pH मान 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए। क्षारीय या जल-जमाव वाली मिट्टी से बचना चाहिए क्योंकि यह पौधों की जड़ सड़न का कारण बन सकती है।
भारत में कटहल की कई उन्नत किस्मे पाई जाती है जिनमें से कुछ प्रमुख किस्मे निम्नलिखित दी गयी है -
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कटहल की खेती के लिए खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए ताकि मिट्टी नरम हो जाए और जड़ों को फैलने में आसानी हो। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें, फिर 2-3 बार देशी हल या रोटावेटर से जुताई करें।
खेत को समतल बनाएं और जल निकासी की उचित व्यवस्था करें। पौधे लगाने के लिए 1 मीटर x 1 मीटर x 1 मीटर आकार के गड्ढे तैयार करें, जिन्हें गोबर की खाद और मिट्टी के मिश्रण से भरें।
कटहल की खेती बीजों से या ग्राफ्टिंग से की जाती है। बीजों से पौधे तैयार करने में समय अधिक लगता है और गुणवत्ता में भिन्नता हो सकती है।
इसलिए आजकल कलम (ग्राफ्टेड) पौधों का उपयोग ज्यादा किया जाता है, क्योंकि ये जल्दी फल देते हैं और गुणवत्ता सुनिश्चित होती है। बीज बोने के 6-8 महीने बाद पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं।
कटहल की रोपाई मानसून की शुरुआत में, यानी जून से जुलाई के बीच करनी चाहिए। पौधे के बीच की दूरी 8 मीटर x 8 मीटर रखनी चाहिए, जिससे प्रत्येक पौधे को पर्याप्त धूप और जगह मिले। रोपाई के समय गड्ढों में गोबर की खाद, नीम खली और थोड़ी सी मिट्टी मिलाकर भरें और पौधों को सावधानी से रोपें।
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अच्छी पैदावार के लिए संतुलित उर्वरकों का प्रयोग ज़रूरी है। एक सामान्य उर्वरक योजना इस प्रकार हो सकती है:
इनकी मात्रा पौधे की आयु के अनुसार बढ़ाई जाती है। इसके अलावा हर साल 10-20 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद भी डालनी चाहिए। खाद और उर्वरक को पौधों के चारों ओर गोलाई में डालें और हल्की सिंचाई करें।
कटहल की खेती में शुरुआती वर्षों में सिंचाई महत्वपूर्ण है। गर्मियों में 15 से 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें। फल बनने के दौरान अधिक नमी की आवश्यकता होती है, जिससे फल का आकार और गुणवत्ता बढ़ता है। वर्षा ऋतु में जल निकासी का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है ताकि पौधे जल-जमाव से प्रभावित नहीं हों।
खरपतवार पौधों से पोषक तत्वों की प्रतियोगिता करते हैं, इसलिए इनका नियमित रूप से नियंत्रण आवश्यक है। पौधों के आसपास खरपतवार निकालें।
खरपतवारों को जैविक तरीके से नियंत्रित करने के लिए घास या पत्तों की परत का उपयोग करें। ग्लायफोसेट जैसे रासायनिक खरपतवारनाशी का उपयोग सिर्फ विशेषज्ञ की सलाह से किया जा सकता है।
4-5 वर्षों बाद कटहल का पेड़ फल देना शुरू करता है। मार्च से जून के बीच फल आमतौर पर पकते हैं। फल को तोड़ना चाहिए जब उससे हल्की मीठी गंध आने लगे और बाहरी खोल पीला हो जाए।
परिपक्व पेड़ से प्रति वर्ष 100 से 250 कटहल मिल सकते हैं, जिनका वजन 5 से 20 किलो हो सकता है। एक हेक्टेयर भूमि से लगभग 15 से 25 टन उपज मिल सकती है।
कटहल की खेती एक ऐसी खेती है जो कम खर्च में अधिक लाभ दे सकती है। इसकी खेती करने वाले किसान न केवल अपनी उपज को बढ़ा सकते हैं, बल्कि इसकी प्रसंस्करण और बिक्री के माध्यम से अतिरिक्त पैसे भी कमाएंगे। भारत में कटहल की मांग लगातार बढ़ रही है, इसलिए कटहल की खेती एक लाभदायक विकल्प बन गई है।