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कपास की बढ़ती कीमतों पर भी किसान को क्यों नहीं मिल पा रहा लाभ

Published on: 03-Dec-2022

महाराष्ट्र राज्य के जलगांव जनपद के खानदेश में कपास की फसलों पर बड़ी मात्रा में गुलाबी सूंडी कीटों ने आक्रमण कर दिया है। खानदेश में लगभग दो लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में कपास समाप्त हो चुकी है। कीटों के भय से किसान अब खेती खाली कर दूसरी फसलों पर जोर दे रहे हैं। महाराष्ट्र में कपास की कृषि करने वाले किसानों की परेशानी समाप्त होने का नाम नहीं ले रही है। पूर्व में बारिश की वजह से कपास की फसलों का उच्च स्तर पर हानि हुई है, फिर सीजन के आरंभ में ही किसानों को कम मूल्य प्राप्त हुआ। वहीं अब जब कपास के मूल्यों में बेहतरी आने के साथ ही फसलों पर गुलाबी सुंडी कीटों का प्रकोप तीव्रता से बढ़ रही है। महाराष्ट्र के खानदेश में लगभग दो लाख हेक्टेयर कपास का क्षेत्रफल रिक्त हो गया है। गुलाबी सुंडी के प्रकोप, कपास की गुणवत्ता में आयी कमी व मूल्यों में अनिश्चितता की वजह से अधिकाँश किसानों द्वारा अतिशीघ्र इसी सप्ताह फसल काट ली गयी।

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इस वर्ष भी मध्यम भूमि में किसानों द्वारा मात्र चार से पांच क्विंटल प्रति एकड़ ही पैदावार हुई है। किसानों के अनुसार, इस साल मूसलाधार बारिश की वजह से कपास की गुणवत्ता में गिरावट आई थी, उसके बाद किसानों द्वारा पुनः खेती करने पर अब उनकी फसलें कीटों के संक्रमण से बर्बाद हो रही हैं। इसकी वजह से किसान काफी प्रभावित हो रहा है। इसी वजह से किसानों ने खेतों को साफ कर रबी सीजन की बुवाई प्रारंभ कर दी है। .

किसान क्यों नहीं निकाल पा रहे अपनी फसल पर किये गए व्यय को भी

महाराष्ट्र के अधिकाँश जनपद प्रचंड बारिश की वजह से अपनी तैयार फसलों को खो चुके हैं। किसानों के मुताबिक, खरीद खर्च २० रुपये प्रति किलो तक हो चुकी है। प्रत्येक मजदूर २५० रुपये प्रतिदिन देकर पांच से छह किलो कपास चुनता है। खर्च बढ़ोत्तरी के साथ कपास के मूल्य में भी कोई स्थिरता नहीं है। इस वजह से किसान कपास के अतिरिक्त दूसरी फसलों की ओर कदम बढ़ा रहे हैं।

आखिर किस वजह से कपास के मूल्य में वृध्दि के बाद भी किसानों को नहीं मिल पायेगा लाभ

इस वक्त ज्यादातर मंडियों में कपास के भाव में सुधार आया है। परंतु किसानों की मानें तो इसका लाभ अधिकाँश किसानों को प्राप्त नहीं हो पायेगा, क्योंकि बहुत से किसानों के पास कपास बेचने के लिए बचा ही नहीं है। बारिश की वजह से कपास की गुणवत्ता काफी प्रभावित हो गई है, साथ ही, कपास पर कीटों का प्रकोप तीव्रता से बढ़ रहा है। जिसकी वजह से किसानों द्वारा स्वयं ही खेत को खाली करने का निर्णय लिया गया है। किसानों के अनुसार पूर्व के 10 से १२ दिनों में गुलाबी सुंडी वाले कीटों का संक्रमण बढ़ा है, जबकि फसल पर दवाइयों का छिड़काव किया जा चुका है।

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महाराष्ट्र में किस क्षेत्र में सर्वाधिक कपास की खेती की जाती है

बात करें सर्वाधिक कपास की खेती होने वाले क्षेत्रों की तो महाराष्ट्र राज्य के खानदेश में प्रति वर्ष ९ से ९.५ लाख हेक्टेयर रकबे में कपास उत्पादन किया जाता है। इस वर्ष धुले में २.५ लाख हेक्टेयर, नंदुरबार में लगभग १.५ लाख हेक्टेयर और जलगाँव जनपद में ५ लाख ६५ हजार हेक्टेयर में कपास की खेती की गई थी। इसमें लगभग १.५२ लाख हेक्टेयर में प्री-सीजन कपास की फसल है। तकरीबन २ लाख हेक्टेयर रकबा में इस फसल की कटाई हो चुकी है। साथ ही, शुष्क क्षेत्र में कपास की फसल में गुलाबी सुंडी पायी जा रही है। अनुमानुसार इस वर्ष भी उत्पादन में घटोत्तरी होने की संभावना है।

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