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मधुमक्खी

मधुमक्खी पालन को बनाएं आय का स्थायी स्रोत : बी-फार्मिंग की सम्पूर्ण जानकारी और सरकारी योजनाएं

मधुमक्खी पालन को बनाएं आय का स्थायी स्रोत : बी-फार्मिंग की सम्पूर्ण जानकारी और सरकारी योजनाएं

जब भी हम कभी मधुमक्खी(मधुमक्षी / Madhumakkhi / Honeybee) का नाम सुनते हैं तो हमारे मन में मधु या शहद(अंग्रेज़ी:Honey हनी) का ख्याल जरूर आता है, जैसे की लोकप्रिय वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था- "यदि पृथ्वी से मधुमक्खियां खत्म हो जाएगी तो अगले 3 से 4 वर्षों में मानव प्रजाति भी खत्म हो जाएगी " इसी मंशा को ध्यान में रखते हुए मधुमक्खी पालन करने वाले किसानों की आय में बढ़ोतरी और प्रजाति के संरक्षण के लिए कृषि और पशु वैज्ञानिक निरंतर मधुमक्खी पालन से जुड़ी नई तकनीकों का विकास कर रहे हैं। आर्थिक सर्वेक्षण 2021 (Economic survey 2021-22) के अनुसार भारत में शहद का मार्केट लगभग 21 बिलियन रुपए का है, जो कि 2027 तक 40 बिलियन रुपए होने का अनुमान है। इतने बड़े वैल्यू मार्केट को सही समय पर सही तकनीक का फायदा पहुंचाने के लिए सरकार भी प्रयासरत है।

क्या होता है मधुमक्खी पालन (Bee-Farming) :

भारत के प्राचीन कालीन इतिहास से ही कई जनजातियां एवं जंगलों में रहने वाले किसानों के द्वारा मधुमक्खी पालन किया जा रहा है, हाल ही में शहद की बढ़ती डिमांड की वजह से इस क्षेत्र में कई युवा किसानों की रुचि भी बढ़ी है। मधुमक्खी पालन को 'एपीकल्चर' (Apiculture) के नाम से भी जाना जाता है। वर्तमान में आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर मधुमक्खियों के लिए अलग-अलग डिजाइन के छत्ते (honeycomb / beehive; बीहाइव )  तैयार किए जा रहे हैं और इन्हीं कॉम्ब में मधुमक्खियों को रखा जाता है, जो आस पास में ही स्थित फूलों से शहद इकट्ठा कर छत्ते में जमा करती है, जिसे बाद में एकत्रित कर बाजार में बेचा जाता है।

मधुमक्खी पालन से होने वाले फायदे :

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के अनुसार मधुमक्खी पालन से ना केवल किसानों की आय बढ़ेगी, बल्कि इस मधुमक्खी पालन वाले स्थान के आसपास स्थित खेत में मक्खियों के द्वारा परागण या पोलिनेशन (Pollination) करने की वजह से खेत से उगायी गयी फसल की उपज भी अधिक प्राप्त होती है।

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मधुमक्खी पालन से प्राप्त होने वाले उत्पाद :

मुख्यतः मधुमक्खी पालन शहद प्राप्त करने के लिए ही किया जाता है, मधुमक्खियों से प्राप्त होने वाले प्राकृतिक शहद में कई प्रकार की औषधीय गुण होते हैं और इसे मानवीय शरीर में होने वाली कई प्रकार की बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है। मधुमक्खी पालन से प्राप्त होने वाले अन्य उत्पाद :

  • मधुमक्खी वैक्स (मोम; Beeswax ) :

आपने अपने घर में कई बार मोमबत्ती का इस्तेमाल किया होगा, यह मोमबत्ती मधुमक्खी पालन से ही प्राप्त एक उत्पाद होता है। वर्तमान में बढ़ती मोम की डिमांड भी किसानों को अच्छा मुनाफा दे रही है।

इसके अलावा इस वैक्स का इस्तेमाल कई प्रकार के फार्मास्यूटिकल और कॉस्मेटिक व्यवसाय में भी किया जाता है।

  • मधुमक्खी जहर (Bee-Venom) :

जब मधुमक्खियां अपनी सुरक्षा के लिए डंक मारती है, तो उनके शरीर में पाया जाने वाला वेनम (venom) यानि जहर हमारे शरीर में चला जाता है, जिससे सूजन और मांसपेशियों में दर्द होता है।

आधुनिक तकनीक की मदद से अब इस इस वेनम को भी मधुमक्खियों से प्राप्त किया जा रहा है, इसका इस्तेमाल आर्थराइटिस यानी गठिया (arthritis) जैसी खतरनाक बीमारी के इलाज में किया जाता है और जोड़ों में होने वाले दर्द के लिए होने वाली एपिथेरेपी (Apitherapy) में भी इस उत्पाद का इस्तेमाल किया जाता है।

  • रॉयल जेली (Royal Jelly) :

मधुमक्खी पालन से ही प्राप्त होने वाला यह उत्पाद स्वास्थ्य के लिए काफी लाभप्रद होता है और इससे बनने वाली दवाइयों का इस्तेमाल फर्टिलिटी (Fertility) से जुड़े रोगों के इलाज के लिए किया जाता है।

सुपरफूड के रूप में इस्तेमाल किया जाने वाला यह उत्पाद कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के द्वारा खरीदा जा रहा है।

भारत में आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु क्षेत्र के कई किसान रॉयल जैली को बेचकर अच्छा खासा मुनाफा कमा रहे हैं।

  • मधुमक्खी के द्वारा तैयार किया गया छत्ता गोंद (Propolis) :

इसे मधुमक्खियों के घर के रूप में जाना जाता है। हरियाणा और पंजाब के कुछ आधुनिक किसानों के लिए मधुमक्खी का छत्ता भी आय का अच्छा स्रोत बन कर सामने आया है। इसका इस्तेमाल गोंद बनाने में किया जाता है, जिससे कई बीमारियों का इलाज किया जाता है।

ऊपर बताए गए इन सभी उत्पादों के अलावा भी मधुमक्खियों से कई दूसरे प्रकार के उत्पाद प्राप्त होते हैं, जोकि मधुमक्खियों के संरक्षण में किए जा रहे प्रयासों की सुदृढ़ता तो बढ़ाते ही है, साथ ही लोगों के लिए रोजगार उपलब्ध करवाने के अलावा किसानी परिवार को भी मदद प्रदान करते हैं।

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बड़ी ब्रांड की कंपनियों का शहद वर्तमान में पन्द्रह सौ रुपए प्रति किलो की दर से बिकता है और इसकी मांग भविष्य में और तेजी से बढ़ने की संभावनाएं हैं, इसीलिए समुचित विकास को ध्यान में रखते हुए किसान भाई भी नीचे बताए गए तरीके से मधुमक्खी पालन कर सकते हैं :

कैसे करें मधुमक्खी की प्रजाति का चयन ?

अलग-अलग पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुसार मधुमक्खी की अलग-अलग प्रजातियों का पालन किया जाता है, ऐसी ही कुछ प्रजातियां निम्न प्रकार है :-

  • यूरोपियन मधुमक्खी (European Bees) :

इस प्रकार के मधुमक्खी को पालने पर एक कॉलोनी से लगभग 25 से 30 किलोग्राम शहद इकट्ठा किया जा सकता है।

यह मधुमक्खी मुख्यतः पतझड़ मौसम के समय ज्यादा उत्पादन देती है।

  • भारतीय मधुमक्खी (Indian or Asian Bees ) :

मधुमक्खी पालन की शुरुआत करने वाले व्यक्ति ज्यादातर इसी मधुमक्खी को पालते हैं।

हालांकि इस प्रजाति की एक कॉलोनी में 6 से 8 किलोग्राम शहद ही प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन इसका पालन करना आर्थिक रूप से कम दबाव वाला होता है।

  • स्टिंग्लेस मधुमक्खी (Stingless Bees) :

कम प्रति व्यक्ति आय वाले किसान भाई दवाइयां बनाने में इस्तेमाल आने वाले शहद और छत्ते के उत्पादन के लिए इस मधुमक्खी का पालन करते हैं।

यह मधुमक्खी एक बेहतरीन पोलिनेटर के रूप में भी काम करती है और इसके छत्ते के आसपास उगने वाले पेड़ पौधों और फसलों को फायदा पहुंचाती है।

इसके अलावा मधुमक्खियों की एक कॉलोनी में रहने वाली सभी मक्खियों को अलग-अलग श्रेणी में बांटा गया है, जिनमें रानी मधुमक्खी, ड्रोन मधुमक्खी और वर्कर मधुमक्खी को शामिल किया जाता है। रानी मधुमक्खी अंडे देती है और ज्यादातर समय कॉम्ब के अंदर ही बिताती है, जबकि ड्रोन मधुमक्खी रानी के साथ मेटिंग करने का काम करते हैं। इसके अलावा वर्कर श्रेणी की मधुमक्खियां छाते से बाहर निकल कर फूलों के मधुरस या नेक्टर (Nectar) से शहद का निर्माण करती हैं।

कैसे चुनें मधुमक्खी पालन के लिए सही जगह ?

मधुमक्खी पालन के लिए जगह चुनने से पहले ध्यान रखना चाहिए कि इनके कृत्रिम छत्तों को उसी स्थान पर लगाएं जहां पर पानी का कोई अच्छा स्रोत उपलब्ध हो, जैसे मानव निर्मित तालाब या नदी और झील का तटीय क्षेत्र। इसके अलावा छत्ते के आसपास के क्षेत्र में पर्याप्त मात्रा में वनस्पति होनी चाहिए, जिनमें सूर्यमुखी, मोरिंगा और कई दूसरे प्रकार के फूलों के पौधे हो सकते हैं। जगह को चुनने के बाद उसमें कृत्रिम छत्ते लगाने के उपरांत तुरंत इस जगह को बाहर से आने वाले लोगों के लिए पूरी तरीके से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। मधुमक्खी विकास क्षेत्र में काम कर रहे वैज्ञानिकों के अनुसार किसी सड़क और ध्वनि प्रदूषण वाले क्षेत्रों से मधुमक्खी के छत्तों को हमेशा दूर ही लगाना चाहिए, क्योंकि निरंतर ध्वनि प्रदूषण वर्कर मधुमक्खी की शहद एकत्रित करने की क्षमता को कम करने के अलावा कई प्रकार की बीमारियों के लिए भी जिम्मेदार हो सकता है।

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कैसे करें मधुमक्खी के छत्ते का चुनाव और क्या हो पूरी प्रक्रिया ?

मधुमक्खी पालन के लिए सबसे पहले मधुमक्खी के कृत्रिम छत्ते की आवश्यकता होती है। इस छत्ते का आकार और डिज़ाइन आपके निवेश और बिजनेस की अवधी पर निर्भर कर सकता है। एक एकड़ के क्षेत्र में लगभग 3 से 4 मधुमक्खी के बड़े छत्ते लगाए जा सकते हैं। इन छत्तों को समय पर निरंतर निगरानी करने के लिए और सुरक्षा के लिए एक बॉक्स की आवश्यकता होती है। इस प्रकार के बॉक्स में फ्लोर और बॉटम बोर्ड के अलावा लकड़ी के बने हुए फ्रेम होते है, जो कि एक सुपर चेंबर की तरह कार्य करते हैं। यह बॉक्स ऊपर और नीचे से ढका रहता है, जिसमें मधुमक्खियों के जाने के लिए जगह बनाई रहती है। बड़े स्तर पर व्यवसाय करने के लिए कई दूसरे प्रकार के उपकरण जैसे कि क्वीन गेट, हाउस टूल और शुगर फिटर के अतिरिक्त एक स्मोकर की आवश्यकता होती है। मधुमक्खी के छत्ते/बॉक्स को हमेशा पीले और हल्के हरे रंग से ही रंग किया चाहिए, जिससे मधुमक्खियों को जगह का आसानी से पता चल जाए, कभी भी मधुमक्खी के छत्ते को लाल या काले रंग से नहीं रँगना चाहिए। अब इस बॉक्स रूपी छत्ते में बाहर से लाकर मधुमक्खियों को डाल दिया जाता है। भारतीय मधुमक्खियां खासतौर पर पहले से तैयार किए हुए घर में रहना पसंद करती हैं, हालांकि यूरोपीयन मधुमक्खियां कई बार इस तरह तैयार छत्तों को छोड़कर आसपास में ही अपना खुद का छत्ता भी बना लेती हैं।

मधुमक्खी पालन में आने वाली समस्याएं और लगने वाले रोग :

वैसे तो मधुमक्खियां खुद ही एक बेहतरीन पोलिनेटर के रूप में कार्य करती हैं, इसलिए इनमें ज्यादा बीमारियां नहीं होती है, लेकिन बदलते पर्यावरणीय प्रभाव और कीटनाशकों के अधिक प्रयोग से फूलों में पहुंचे दूषित और केमिकल तत्व मधुमक्खियों के शरीर में चले जाते हैं, जो कि उनके लिए नुकसानदायक हो सकते हैं।

  • वरोआ माइट (Varroa mites) :

यह कीट पिछले कई सालों से मधुमक्खी की कॉलोनियों को नुकसान पहुंचाने में सबसे बड़ी भूमिका निभा रहा है। यह बड़ी से बड़ी मधुमक्खियों को भी नुकसान पहुंचा सकता है।

मुख्यतः यह लार्वा और प्यूपा की मदद से प्रजनन करते हैं और धीरे-धीरे मधुमक्खियों के छत्ते तक अपनी पहुंच बना लेते हैं।

इससे ग्रसित हुई मधुमक्खियां के पंख धीरे-धीरे टूटने लगते हैं और उनके शरीर के कई अंगों को नुकसान होना शुरू हो जाता है।

हॉर्टिकल्चर क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिकों के अनुसार इस रोग के इलाज के लिए एपिवरोल टेबलेट (Apiwarol tablet) का इस्तेमाल किया जा सकता है, जिसे पानी में मिलाकर मधुमक्खी के छाते के ऊपर तीन दिन के अंतराल में चार से पांच बार स्प्रे करना रहता है।

  • होर्नेट कीट (Hornet pest) :

मधुमक्खी पालन के दौरान यह कीट सबसे ज्यादा हानिकारक होता है और यह मधुमक्खी की पूरी कॉलोनी पर ही आक्रमण कर देता है और उन्हें पूरी तरीके से कमजोर बना देता है और धीरे-धीरे मधुमक्खियों को मारते हुए उसके छत्ते पर ही अपना कब्जा कर लेता है।

इस प्रकार की कीट से बचने का सर्वश्रेष्ठ उपाय यह है कि उस पूरे छत्ते को ही नष्ट कर देना चाहिए, जिससे कि यह आसपास में ही स्थित दूसरे छत्तों में ना फैले।

हालांकि इसके अलावा भारतीय मधुमक्खी की प्रजाति में कई दूसरी प्रकार की माइक्रोबियल बीमारियां भी होती है, जोकि बैक्टीरिया के अधिक वृद्धि के कारण होती है। इसके इलाज के लिए एंटीमाइक्रोबॉयल टेबलेट का एक घोल बनाकर उसे कॉलोनी के आसपास के क्षेत्र में समय समय पर स्प्रे करना चाहिए।

कैसे करें मधुमक्खी की कॉलोनी का अच्छे से प्रबंधन ?

जब भी किसी फूल के पौधे से नेक्टर निकलने का समय होता है उस समय तो मधुमक्खियां अपने आप जाकर खाने की व्यवस्था कर लेती है, लेकिन बारिश और ऑक्सीजन के दौरान इनके भोजन के लिए 20 से 25 किलोग्राम शुगर की आवश्यकता होती है। मधुमक्खी पालन के दौरान किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि किसी भी प्रजाति को भूखा नहीं रखना चाहिए और शुगर तथा पोलन सप्लीमेंट को मिलाकर एक पेस्ट तैयार करके इसमें प्रोटीन के कुछ मात्रा के लिए सोयाबीन का आटा मिला सकते हैं। इस तैयार पेस्ट को मधुमक्खियों की कॉलोनी के बाहर रख देना चाहिए, जिसे समय मिलने पर कॉलोनी के सभी सदस्य अपने आप भोजन के रूप में इस्तेमाल कर लेंगे।

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मधुमक्खी पालन बढ़ाने के लिए किए गए सरकारी प्रयास :

मधुमक्खी पालन व्यवसाय की भविष्यकारी सम्भावनाओं को समझते हुए भारत सरकार और कई स्थानीय राज्य सरकारें लोगों को मधुमक्खी पालन के लिए प्रोत्साहित कर रही है। पिछले कुछ समय से भारत सरकार ने 'स्वीटरिवॉल्यूशन' यानी 'मधु क्रांति'(Madhukranti) नाम का पायलट प्रोजेक्ट भी शुरू किया है, जो मुख्यतः मधुमक्खी उत्पादन व्यवसाय में सक्रिय लोगों को नई तकनीकों के बारे में जानकारी देने के अलावा उन्हें बेहतर उत्पादन के लिए अच्छी ट्रेनिंग की सुविधा भी उपलब्ध करवाता है। इसके अलावा राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड(National Bee Board - NBB) के द्वारा लांच किये गए राष्ट्रीय मधुमक्खीपालन और मधु मिशन(नेशनल बीकीपिंग एंड हनी मिशन; National Beekeeping and Honey Mission - NBHM) की मदद से भारत सरकार मधुमक्खी से प्राप्त होने वाले उत्पाद की गुणवत्ता की बेहतर जांच के लिए स्रोत उपलब्ध करवाने के साथ ही किसानों की आय बढ़ाने को मुख्य लक्ष्य के रूप में रखा गया है। बदलते वैश्विक परिदृश्य में शहद के निर्यात में भारत की भागीदारी बढ़ाने के लिए किए जा रहे प्रयासों के तहत 'हनीकॉर्नर' नाम का एक मार्केटिंग टूल भी तैयार किया गया है। "मधुक्रांति पोर्टल" व "हनी कॉर्नर" सहित शहद परियोजनाओं का शुभारंभ कार्यक्रम से सम्बंधित सरकारी प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) रिलीज़ का दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें आत्मनिर्भर भारत स्कीम के तर्ज पर काम करते हुए भारत सरकार मधु क्रांति के लिए साल 2017 से लगातार सब्सिडी उपलब्ध करवा रही है, इस प्रकार के नई सरकारी योजनाओं की अधिक जानकारी के लिए आप अपने राज्य सरकार के कृषि और बागवानी मंत्रालय की वेबसाइट पर जाकर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। शहदमिशन के अंतर्गत खादीऔरग्रामोद्योगआयोग (KVIC) किसानों को मधुमक्खी पालन के लिए जागरूकता के अलावा ट्रेनिंग और छत्ते के रूप में इस्तेमाल होने वाले 'बी-बॉक्स'(Beehive Box) उपलब्ध करवा रहा है। आशा करते हैं कि भविष्य में मधुमक्खी पालन के लिए प्रयासरत किसान भाइयों को MERIKHETI.COM के द्वारा इस व्यवसाय के बारे में संपूर्ण जानकारियां मिल गई होगी और भविष्य में आप भी सरकारी स्कीमों का बेहतर इस्तेमाल करते हुए समुचित विकास की अवधारणा पर चलकर भारत के निर्यात को बढ़ाने के अलावा स्वयं की आर्थिक स्थिति को भी मजबूत कर पाएंगे।

मधुमक्खी पालन को 500 करोड़ देगी सरकार

मधुमक्खी पालन को 500 करोड़ देगी सरकार

आत्मनिर्भर अभियान के तहत सरकार ने मधुमक्खी पालन के लिए 500 करोड़ रुपये का आवंटन किया है।भारत विश्‍व के पांच शीर्ष शहद उत्‍पादकों में शुमार है। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेन्‍द्र सिंह तोमर ने कहा कि किसानों की आय दुगनी करने के अपने लक्ष्‍य के तहत सरकार मधुमक्खी पालन को बढ़ावा दे रही है। 

राष्‍ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी) द्वारा आयोजित वेबिनार को सम्‍बोधित करते हुए श्री तोमर ने कहा कि सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत मधुमक्खी पालन के लिए 500 करोड़ रुपये का आवंटन किया है। उन्‍होंने कहा कि भारत विश्व में शहद के 5 सबसे बड़े उत्पादकों में शुमार है। भारत में वर्ष 2005-06 की तुलना में अब शहद उत्पादन 242 प्रतिशत बढ़ गया है, वहीं इसके निर्यात में 265 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 

 श्री तोमर ने कहा कि बढ़ता शहद निर्यात इस बात का प्रमाण है कि मधुमक्‍खी पालन 2024 तक किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्‍य हासिल करने की दिशा में महत्‍वपूर्ण कारक रहेगा। उन्‍होंने कहा कि राष्‍ट्रीय मधुमक्‍खी बोर्ड ने राष्‍ट्रीय मधुमक्‍खी पालन एवं मधु मिशन (एनबीएचएम) के लिए मधुमक्खी पालन के प्रशिक्षण के लिए चार माड्यूल बनाए गए हैं, जिनके माध्यम से देश में 30 लाख किसानों को प्रशिक्षण दिया गया है। इन्हें सरकार द्वारा वित्‍तीय सहायता भी उपलब्ध कराई जा रही है।  

 श्री तोमर ने बताया कि सरकार मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए गठित की गई समिति  की सिफारिशों का कार्यान्‍वयन कर रही है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी के मार्गदर्शन में सरकार ने  मीठी क्रांति के तहत हनी मिशन की भी घोषणा की है, जिसके चार भाग है, इसका भी काफी लाभ मिलेगा। मधुमक्खी पालन का काम गरीब व्यक्ति भी कम पूंजी में अधिक मुनाफा प्राप्त करने के लिए कर सकता है। इसीलिए, इसे बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री जी द्वारा 500 करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की गई है। इससे मधुमक्खी पालकों के साथ ही किसानों की भी दशा और दिशा सुधारने में मदद मिलेगी।

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 वेबिनार में उत्तराखंड के सहकारिता मंत्री डॉ. धनसिंह रावत ने उत्तराखंड को जैविक शहद उत्पादन की मुख्यधारा में लाने के राज्‍य सरकार के संकल्प पर प्रकाश डाला। उन्होंने हनी मिशन में संशोधन लाने की आवश्यकता का उल्लेख किया। एनसीडीसी के प्रबंध निदेशक  श्री सुदीप कुमार नायक ने महिला समूहों को बढ़ावा देने और एपिकल्चर सहकारी समितियों के विकास में एनसीडीसी की भूमिका पर प्रकाश डाला। शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंस एंड टेक्नोलॉजी के वाइस चांसलर प्रो. नजीर अहमद ने कश्मीर में शहद की अनूठी विशेषताओं के बारे में जानकारी दी। यूएनएफएओ  के प्रतिनिधि श्री तोमियो शिचिरी ने शहद के निर्यात में गुणवत्ता आश्वासन के महत्व पर चर्चा की।

 पश्चिम बंगाल के अपर मुख्य सचिव डॉ. एम.वी. राव ने महिला समूहों द्वारा जैविक शहद व जंगली शहद के उत्पादन, ब्रांडिंग और विपणन को बढ़ावा देने के लिए अपनी सरकार के कदमों के बारे में बताया। बागवानी आयुक्त डॉ. बी.एन.एस. मूर्ति ने नए मिशन में नवाचारों पर प्रकाश डाला। मध्य प्रदेश, कश्मीर, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, बिहार, केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश व झारखंड के सफल मधुमक्खी पालकों और उद्यमियों ने अपने अनुभवों को साझा किया और मीठी क्रांति लाने के लिए आगे के तरीके सुझाए। ‘

’मीठी क्रांति और आत्मनिर्भर भारत’’  विषय पर राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी) ने यह वेबिनार राष्‍ट्रीय मधुमक्‍खी बोर्ड, पश्चिम बंगाल सरकार, उत्तराखंड सरकार और शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कश्मीर के साथ मिलकर आयोजित किया था।  इस आयोजन का उद्देश्य कृषि आय और कृषि उत्पादन बढ़ाने के साधन के रूप में भूमिहीन ग्रामीण गरीब, छोटे और सीमांत लोगों के लिए आजीविका के स्रोत के रूप में वैज्ञानिक मधुमक्खी पालन को लोकप्रिय बनाना है।

मधुमक्खी पालन कारोबार को संबल देगी हरियाणा सरकार की नई योजना

मधुमक्खी पालन कारोबार को संबल देगी हरियाणा सरकार की नई योजना

हरियाणा में बेहतर गुणवत्ता के शहद के उत्पादन एवं व्यापार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने मधुमक्खी पालकों के लिए ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ आर्थिक पैकेज के तहत 32.28 करोड़ रुपये की विभिन्न आधारभूत संरचना विकास परियोजनाएं और प्रशिक्षण कार्यक्रम 1. इनमें एकीकृत मधुमक्खी पालन विकास केंद्र, रामनगर, जिला कुरुक्षेत्र में 20 करोड़ रुपये की लागत से एक गुणवत्ता नियंत्रण परीक्षण प्रयोगशाला स्थापित करना शामिल है।  इसके अलावा, इस केन्द्र में संग्रहण, विपणन एवं भंडारण केन्द्रों, पोस्ट हारवेस्टिंग और मूल्य संवर्धन सुविधाओं की स्थापना के लिए40 करोड़ रुपये निर्धारित किए गए हैं। अन्य घटकों जैसे कि मधुमक्खी छत्तों, मधुमक्खी कॉलोनियों, मधुमक्खी प्रजनकों, प्रशिक्षण कार्यक्रमों और अन्य राज्य कृषि विश्वविद्यालय परियोजनाओं पर 10.88 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रस्ताव है। Bee Farming 2. कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव श्री संजीव कौशल ने आज यहां यह जानकारी देते हुए बताया कि प्रयोगशाला, जिसे मान्यता प्राप्त होगी, की स्थापना मधुमक्खी पालकों एवं शहद उत्पादकों को घरेलू उपभोग के साथ-साथ निर्यात के लिए बेहतर गुणवत्ता के शहद का उत्पादन करने में मदद करेगी। 3. यह प्रयोगशाला हरियाणा के अलावा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड सहित सभी उत्तरी राज्यों की आवश्यकता को भी पूरा करेगी जिनकी शहद उत्पादन में एक बड़ी हिस्सेदारी है।

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4. उन्होंने कहा कि एकीकृत मधुमक्खी पालन विकास केंद्र में पर्याप्त मानव शक्ति सहित अन्य सभी बुनियादी सुविधाएं पहले से ही उपलब्ध हैं। इस प्रयोगशाला के लिए विशेषज्ञों की भर्ती की जाएगी, जो किफायती दरों पर लगातार परीक्षण की मधुमक्खी पालकों और निर्यातकों की आवश्यकताओं को पूरा करेंगे। Bee Farming 5. उन्होंने कहा की हरियाणा सरकार शहद के व्यापार और नीलामी के लिए इस केन्द्र में एक हनी ट्रेड सेंटर स्थापित कर रही है।केंद्र में भंडारण सुविधा भी होगी, जहां मधुमक्खी पालक, उत्पादक, व्यापारी और निर्यातक लेन-देन कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि इससे शहद उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा और उपभोक्ताओं को गुणवत्तापरक शहद उपलब्ध करवाया जा सकेगा। 6. यहां यह उल्लेखनीय होगा की राज्य सरकार ने ‘राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन एवं शहद मिशन’ नामक केंद्रीय योजना के क्रियान्वयन और कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय संचालन समिति के गठन को स्वीकृति प्रदान कर दी है। श्री कौशल ने कहा कि एकीकृत मधुमक्खी पालन विकास केंद्र राज्य में इस मिशन के लिए कार्यान्वयन एजेंसी होगा। 7. ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ के तहत केंद्र सरकार ने एकीकृत मधुमक्खी पालन विकास केंद्रों से संबंधित बुनियादी ढांचे के विकास और संग्रहण, विपणन एवं भंडारण केन्द्रों तथा पोस्ट हारवेस्टिंग एवं मूल्य संवर्धन सुविधाओं की स्थापना के लिए 500 करोड़ रुपये आबंटित किए हैं।
देश में खेती-किसानी और कृषि से जुड़ी योजनाओं के बारे में जानिए

देश में खेती-किसानी और कृषि से जुड़ी योजनाओं के बारे में जानिए

नई दिल्ली। - लोकेन्द्र नरवार देश में खेती-किसानी और कृषि से जुड़ी तमाम योजनाएं संचालित हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वाली कैबिनेट में देश के किसानों की आय दोगुनी करने के लिए किसानों व कृषि के लिए तरह-तरह की योजनाएं बनाई गईं हैं। इन योजनाओं के जरिए फसल उत्पादन में बढ़ोतरी के साथ-साथ किसानों को आर्थिक मदद प्रदान की जा रही है। इसके अलावा देश के किसानों को अपना फसल उत्पादन बेचने के लिए एक अच्छा बाजार प्रदान किया जा रहा है। किसानों के लिए चलाई जा रहीं तमाम कल्याणकारी योजनाओं में समय के साथ कई सुधार भी किए जाते हैं। जिनका प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से किसानों को ही फायदा मिलता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर - ICAR) द्वारा ''आजादी के अमृत महोत्सव'' पर एक पुस्तक का विमोचन किया है। इस पुस्तक में देश के 75000 सफल किसानों की सफलता की कहानियों को संकलित किया गया है, जिनकी आमदनी दोगुनी से अधिक हुई है।


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आइए जानते हैं किसानों के लिए संचालित हैं कौन-कौन सी योजनाएं....

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना ( PM-Kisan Samman Nidhi ) - इस योजना के अंतर्गत किसानों के खाते में सरकार द्वारा रुपए भेजे जाते हैं। ◆ ड्रिप/स्प्रिंकलर सिंचाई योजना - इस योजना के माध्यम से किसान पानी का बेहतर उपयोग करते हैं। इसमें 'प्रति बूंद अधिक फसल' की पहल से किसानों की लागत कम और उत्पादन ज्यादा की संभावना रहती है। ◆ परम्परागत कृषि विकास योजना (Paramparagat Krishi Vikas Yojana (PKVY)) - इस योजना के जरिए जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाता है। ◆ प्रधानमंत्री किसान मान-धन योजना (पीएम-केएमवाई) - इस योजना में किसानों को वृद्धा पेंशन प्रदान करने का प्रावधन है। ◆ प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana - PMFBY) - इस योजना के अंतर्गत किसानों की फसल का बीमा होता है। ◆ न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) - इसके अंतर्गत किसानों को सभी रबी की फसलों व सभी खरीफ की फसलों पर सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मूल्य प्रदान किया जाता है। ◆ मृदा स्वास्थ्य कार्ड- (Soil Health Card Scheme) इसके अंतर्गत उर्वरकों का उपयोग को युक्तिसंगत बनाया जाता है। ◆ कृषि वानिकी - 'हर मोड़ पर पेड़' की पहल द्वारा किसानों की अतिरिक्त आय होती है। ◆ राष्ट्रीय बांस मिशन - इसमें गैर-वन सरकारी के साथ-साथ निजी भूमि पर बांस रोपण को बढ़ावा देने, मूल्य संवर्धन, उत्पाद विकास और बाजारों पर जोर देने के लिए काम होता है। ◆ प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण - इस नई नीति के तहत किसानों को उपज का लाभकारी मूल्य सुनिश्चित कराने का प्रावधान है। ◆ एकीकृत बागवानी विकास मिशन - जैसे मधुमक्खी पालन के तहत परागण के माध्यम से फसलों की उत्पादकता बढ़ाने और आमदनी के अतिरिक्त स्त्रोत के रूप में शहद उत्पादन में वृद्धि होती है। ◆ किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) - इसके अंतर्गत कृषि फसलों के साथ-साथ डेयरी और मत्स्य पालन के लिए किसानों को उत्पादन ऋण मुहैया कराया जाता है। ◆ प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (Pradhan Mantri Krishi Sinchayee Yojana (PMKSY))- इसके तहत फसल की सिंचाई होती है। ◆ ई-एनएएम पहल- यह पारदर्शी और प्रतिस्पर्धी ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफार्म के लिए होती है। ◆ पर्याप्त संस्थागत कृषि ऋण - इसमें प्रवाह सुनिश्चित करना और ब्याज सबवेंशन का लाभ मिलता है। ◆ कृषि अवसंरचना कोष- इसमें एक लाख करोड़ रुपए के आकार के साथ बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए विशेष ध्यान दिया जाता है। ◆ किसानों के हित में 10 हजार एफपीओ का गठन किया गया है। ◆ डिजिटल प्रौद्योगिकी - कृषि मूल्य श्रंखला के सभी चरणों में डिजिटल प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग पर जरूर ध्यान देना चाहिए  
बिहार सरकार की किसानों को सौगात, अब किसान इन चीजों की खेती कर हो जाएंगे मालामाल

बिहार सरकार की किसानों को सौगात, अब किसान इन चीजों की खेती कर हो जाएंगे मालामाल

बिहार सरकार किसानों को एक बड़ी सौगात दे रही है जिसकी खूब चर्चा हो रही है। दरअसल बिहार सरकार का उद्यान विभाग मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना एवं राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत फल और फूलों के बगीचे लगाने के लिए किसानों को 40 से 75 प्रतिशत तक की सब्सिडी प्रदान कर रहा है, जिससे बिहार के किसानों के चेहरे पर खुशी झलक रही है। मौजूदा दौर में देश के कई राज्यों में किसानों के द्वारा मुख्य फसल की जगह पर तरह तरह के फल और फूलों की खेती की जा रही है।  खेती करने की मुख्य वजह फल और फूलों की घरेलू बाजार के साथ-साथ विश्व की बाजारों मे बढ़ती हुई मांग है।  किसानों को उनके द्वारा उगाए गए फूलों का उचित रेट भी मिल रहा है।  उचित मुनाफा होने के कारण किसान भी जोर–शोर से फल और फूलों की खेती कर रहे हैं।


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भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है। यहां के अधिकतर लोग कृषि के कार्यक्षेत्र से जुड़े हुए हैं, जो अपना भरण-पोषण अपने द्वारा उपजाए गए फसलों को बाजारों में बेचकर करते हैं। मुख्य फसलों की जगह पर फल फूलों की खेती करना आज के इस दौर में कृषि के क्षेत्र में एक प्रमुख विकल्प बनकर उभर रहा है। राज्य सरकार और भारत सरकार भी किसानों की आय में बढ़ोतरी और किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए तरह-तरह की स्कीम और नए-नए तकनीक के साथ खेती करने का प्रशिक्षण दे रही है। इसी कड़ी में बिहार सरकार ने भी किसानों को एक बहुत बड़ी सौगात दी है। फलों एवं फूलों की खेती करने के लिए बिहार के किसानों को उद्यान विभाग राष्ट्रीय बागवानी मिशन एवं मुख्यमंत्री मिशन योजनाओं 40 से 75 प्रतिशत का अनुदान दे रही है। सब्सिडी को प्राप्त करने के लिए आवेदन प्रक्रिया को शुरू कर दिया गया है। सरकार सरकार के द्वारा फल और फूलों की खेती करने पर इस तरह से अनुदान देना एक सराहनीय कदम माना जा रहा है।

अभी सिर्फ इन जिले के किसानों को ही मिलेगा लाभ

एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट गवर्नमेंट ऑफ़ बिहार के ट्विटर आईडी पर पूरी जानकारी स्पष्ट रूप से दी गई हुई है जिसमें ऑनलाइन आवेदन करने के बारे में भी बताया गया है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन और मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना के तहत आच्छादित जिलों की सूची भी दी गई है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत आवेदन करने वाले जिले पटना, नालंदा, रोहताश, गया, औरंगाबाद, मुजफ्फर पुर, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, वैशाली, दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, सहरसा, पूर्णिया, कटिहार, अररिया, किशनगंज, मूंगेर, बेगूसराय, जमुई, खगड़िया, बांका और भागलपुर है। वहीं मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना के अंतर्गत आवेदन करने वाले जिले भोजपुर, बक्सर, कैमूर, जहानाबाद, अरवल, नावादा, सारण, सिवान, गोपालगंज, सीतामढी, शिवहर, सुपौल, मधेपुरा, लखीसराय और शेखपुरा है।

जानिए किस फल पर मिल रही है कितनी सब्सिडी

उद्यान विभाग, राष्ट्रीय बागवानी मिशन और मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना के तहत चयनित जिलों के किसानों को ड्रैगन फ्रूट और स्ट्रॉबेरी उपजाने के लिए 40 फीसदी की सब्सिडी दी जा रही है। वहीं अनानास, फूल की खेती जैसे गेंदा और अन्य फूल, मसाले की खेती और सुगंधित पौधे की खेती (मेंथा) पर 50 फीसदी की सब्सिडी दी जा रही है। बिहार सकार मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए भी सब्सिडी का प्रावधान रखा है। केन्द्र सरकार द्वारा नेशनल बीकीपिंग एंड हनी मिशन का भी गठन किया जा रहा है।


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सबसे ज्यादा यानी 75 फ़ीसदी की सब्सिडी पपीते की खेती पर दी जा रही है, जिससे कम लागत में किसान आसानी से उत्पादन कर सकता है। लोगों में इस फल की मांग भी काफी ज्यादा रहती है। अगर आप ड्रैगन फ्रूट्स, स्ट्रॉबेरी, पपीता, गेंदे की फूल की खेती और सुगंधित पौधे (मेंथा) की खेती करना चाहते है और आप सरकार द्वारा चयनित जिले के निवासी हैं, तो आप http://horticulture.bihar.gov.in/ पर जाकर ऑनलाइन आवेदन करके योजनाओं का लाभ पा सकते हैं। अगर आप इन योजनाओं की विस्तृत जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो आप अपने जिले के सहायक निदेशक उद्यान से संपर्क कर सकते हैं और किसान अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र पर जाकर बीज प्राप्त करने कि जानकारी और नए तकनीक के साथ खेती को और बेहतर बनाने के लिए प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं।


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भारत के अनेक राज्यों में फल फूल की खेती लोग तेजी से कर रहे हैं। मुख्य तौर पर लोग अब मुनाफा अर्जित करने के लिए ड्रैगन फ्रूट जैसे फलों की उपज करने पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। यह एक वानस्पतिक फल वाला पौधा है जो आम तौर पर मानसून के दौरान या उसके बाद में फलता है। इसे आमतौर पर रोपने के 18-24 महीने बाद यह फल देना शुरू कर देता है। प्रत्येक फल का वजन लगभग 300 से 1000 ग्राम तक होता है। एक पेड़ में आमतौर पर लगभग 15 से 25 किलो फल लगते हैं, ये फल बाजार में 300 से 400 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिकते हैं, लेकिन सामान्य कृषि दर लगभग रु 125 से 200 प्रति किलो। अगर आप इसकी उपज करते हैं तो आप प्रति एकड़ 5-6 टन की औसत उपज पा सकते हैं।


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भले ही बिहार में बड़े उद्योग लग नहीं पा रहे हैं, लेकिन बावजूद इसके कृषि से जुड़े क्षेत्र में लगातार बेहतर कार्य हो रहे है। बिहार सरकार दूसरी हरित क्रांति लाने के प्रयास में जुट गयी है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने भी बिहार के बारे कहा था की बिहार में दूसरी हरित क्रांति की पूरी संभावना है और जिस तरह से बिहार कृषि के क्षेत्र बढ़ रहा है, इससे अर्थव्यवस्था में काफी हद तक सुधार होगी। बिहार को कृषि में आगे बढ़ने और औद्योगीकरण की ओर बढ़ने के लिए एक बड़ी छलांग की जरूरत है।


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वर्तमान में, हमारे किसान देखते हैं कि पिछले सीजन में किसी विशेष उपज के लिए उन्हें क्या कीमत मिली थी। उदाहरण के लिए, यदि सरसों से उन्हें अच्छी कीमत मिलती है, तो हर कोई उसी की खेती करना पसंद करता है।  लेकिन जिस तरह से सरकार फल फूलों को उपजाने के लिए सब्सिडी दे रही है उससे किसानों का आत्मबल मजबूत हो रहा है और साथ ही बिहार में किसानों कि हालात में भी सुधार हो रहा हैं।
किसान गोष्ठी एवं बीज वितरण कार्यक्रम का अयोजन

किसान गोष्ठी एवं बीज वितरण कार्यक्रम का अयोजन

कृषि विज्ञान संस्थान, काशी हिन्दू विश्विद्यालय वाराणसी में अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन परियोजना, राई एवं सरसों अनुसंधान संस्थान भरतपुर, के तहत किसान गोष्ठी एवं बीज वितरण कार्यक्रम का अयोजन किया गया, जिसमें विशिष्ट अतिथि राई एव सरसों निर्देशालय के निदेशक डॉं. पी के राय, कृषि विज्ञान संस्थान वाराणसी के वैज्ञानिक एवं परियोजना के संचालक डॉक्टर कार्तिकेय श्रीवास्तव, परियोजना के सस्य वैज्ञानिक डॉक्टर राजेश सिंह, पादप रोग विज्ञान के अध्यक्ष डॉक्टर श्याम सरन वैश्य, परियोजना सहायक डॉक्टर अदिती एलिजा तिर्की, अरविंद पटेल शोध छात्र दिव्य प्रकाश ,साहिल गौतम शामकुवर एव वाराणसी मीरजापुर के 100 प्रगतिशील किसान मौजूद रहे। इस कार्यक्रम में डॉक्टर पी के राय ने बताया कि किसान भाई, किसान समूह बना कर तेल निकालने वाली मशीन लगा कर अपने फसल का प्रसंकरण कर, खुद का उत्पाद बना कर बाजार में उसका विपरण करें, जिससे आय को दुगुना किया जा सकता है। इसी के साथ साथ उन्होंने बताया सरसों की फसल को सहफसली न करें, एकल फसल लगाएं। सरसों के साथ मधुमक्खी पालन करें, जिससे 10-15 प्रतिशत उत्पादन में बृद्धि होगी।

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वहीं कृषि विज्ञान संस्थान के परियोजना संचालक डॉक्टर कार्तिकेय श्रीवास्तव ने कहा, सिंचित और असिंचित दशा में समय और देर से बुवाई करने वाली उन्नतिशील प्रजातियों एवं सरसों पंक्ति विधि से बुवाई कर के किसान भाई अधिक उत्पादन कर सकते हैं। इन्होंने समय से बुवाई के लिए गिरिराज (Mustard Giriraj Variety), वरुणा (Varuna), आर. एच् 725 (RH 725), RH-749 । बिलम्ब से बुवाई के लिए बृजराज, एन आर सी एच बी 101 प्रजाति की संतुति की। पादप रोग विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर श्याम सरन वैश्य ने राई एवं सरसो में लगने वाले विभिन्न रोग के लक्षण एवं उसके निदान के बारे में बताया और कृषि विज्ञान संस्थान के सस्य वैज्ञानिक डॉक्टर राजेश सिंह ने सरसों की सस्य क्रियाकलाप सिंचाई एवं कितना रासायनिक और जैव उर्वरक का प्रयोग करें इस पर बल दिया। उपस्थित कुछ प्रगतिशील किसान ने अपनी समस्याओं को बताया और उसका समाधान वहां उपस्थित वैज्ञानिकों ने किया । इस कार्क्रम के उपरांत 100 किसानों को गिरिराज एवं बृजराज प्रजाति का बीज वितरित किया गया।
गन्ने के किसानों के लिए बिहार सरकार की सौगात, मिलेगी 50% तक सब्सिडी

गन्ने के किसानों के लिए बिहार सरकार की सौगात, मिलेगी 50% तक सब्सिडी

भारत गन्ने का बहुत बड़ा उत्पादक देश है। यहां पर काफी राज्यों में गन्ने की खेती की जाती है और बिहार भी उनमें से एक है। इस बार मौसम के चलते खरीफ की फसल में किसानों को बहुत ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा इसलिए इस बार उनका रुझान गन्ने की खेती की ओर बढ़ा है। पहले भी लोग गन्ने की खेती करते रहे हैं, लेकिन कुछ समय से इस में आने वाली लागत बहुत बढ़ गई है, जिसको आम किसान नहीं उठा पा रहे हैं। किसानों की इसी समस्या का समाधान बिहार सरकार ने ढूंढा है और गन्ने की खेती पर जैविक खाद आदि देने के लिए 50% तक सब्सिडी देने की बात कही गई है।

कितने अनुदान का फायदा उठा सकते हैं किसान?

बायोफर्टिलाइजर और कंपोस्ट खाद आदि खरीदने पर बिहार गन्ना उद्योग विभाग की ओर से गन्ने की पैदावार करने वाले किसानों को 50 फीसदी अनुदान दिया जा रहा है। गन्ना की खेती करने वाले किसानों को जैव उर्वरक और कार्बनिक पदार्थों वाली वर्मी कंपोस्ट खाद की खरीद पर 150 रुपये प्रति क्विंटल की दर से अनुदान राशि देने का प्रावधान किया है। एक हेक्टेयर के लिए 25 क्विंटल तक खपत होती है। इस स्कीम का फायदा उन किसानों को मिलेगा जिनके पास अधिकतम 2.5 एकड़ यानी 1 हेक्टेयर जमीन है। इस हिसाब से गन्ना की खेती करने वाला हर किसान अधिकतम 3,750 रुपये का अनुदान ले सकता है।


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इस बार सर्दियों में गन्ने की अच्छी पैदावार होने की है उम्मीद

मध्य सितंबर से लेकर नवंबर के महीने के अंत तक गन्ने की खेती की बुआई की जाती है। इसके बाद सबसे बड़ी समस्या जो किसानों को आती है, वह है फसल को कीड़ों से होने वाला नुकसान। गन्ने की फसल में बेधक कीड़े लग जाते हैं, जो कई बार पूरी तरह से फसल को बर्बाद कर देते हैं। लेकिन इस बार फसल में शुरुआत से ही अच्छी तरह की खाद और फर्टिलाइजर इस्तेमाल करने के लिए सरकार की तरफ से अनुदान दिया जा रहा है। इसी के चलते माना जा रहा है, कि फसल में कीड़े आदि से होने वाली समस्याएं शुरू से ही कम रहेंगी और पैदावार भी बढ़ेगी।

उत्पादन को डबल करने के लिए क्या करें

अगर किसान चाहे तो गन्ने की फसल में दो से 4 गुना अधिक उत्पादन कर सकते हैं। इसके लिए गन्ना की फसल के साथ आलू, चना, राई और सरसों की सह-फसल की खेती और मधुमक्खी पालन करने की सलाह दी जाती है। इस तरह फसलों में खाद-उर्वरक और सिंचाई के लिए अलग से खर्च नहीं करना पड़ता, और साथ में लगाई गई फसलों से ही गन्ने की फसल की सभी तरह की जरूरतों की आपूर्ति हो जाती है। ऐसा माना गया है, कि ट्रेंच विधि से गन्ना की खेती करने वाले किसान यदि फसल की सही देखभाल करें तो 250 से 350 क्विंटल तक उत्पादन ले सकते हैं।
सावधान फलों को ताजा एवं आकर्षक दिखाने हेतु हो रही जहरीली वैक्स की कोटिंग

सावधान फलों को ताजा एवं आकर्षक दिखाने हेतु हो रही जहरीली वैक्स की कोटिंग

आजकल खाद्य पदार्थों में बहुत ज्यादा मिलावटखोरी की जा रही है। फिर चाहे वो आटा हो दूध हो या मसाला यहां तक कि अब फल-सब्जियां भी सुरक्षित नहीं रही हैं। सब्जियों की बात करें तो इनको ताजातरीन व चमकीला बनाए रखने हेतु काफी हानिकारक दवाइयां लगाई जा रही हैं, जिनकी पहचान करना अत्यंत आवश्यक है। प्रत्येक व्यक्ति अच्छे स्वास्थ्य हेतु फलों का उपभोग करता है। इन फलों द्वारा ऐसे पोषक तत्व अर्जित होते हैं, जो कि सामान्य रूप से खाद्य पदार्थों से प्राप्त नहीं हो पाता है। परंतु, क्या आपको पता है कि कभी-कभी इन फलों द्वारा आपका स्वास्थ्य भी खराब हो सकता हैं। आपको जानकर बहुत आश्चर्य होगा कि फलों को चमकाने व ताजा रखने हेतु एक प्रकार की वैक्स अथवा मोम का उपयोग किया जाता है। बाजार में जब यह चमकीले फल आते हैं, तो अपने आकर्षण के कारण हाथों हाथ बिक जाते हैं। लोग बिना किसी जाँच-पड़ताल के इन फलों का सेवन भी कर लेते हैं। परंतु, इन पर फलों पर लगाई गयी नुकसानदायक वैक्स आपके शरीर को अंदरूनी तरीके से काफी हानि पहुंचाती है।


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आगे हम आपको इस इस लेख के माध्यम से बताएंगे कि आखिर क्यों फलों पर वैक्स की कोटिंग की जा रही है। फलों पर चढाई जा रही वैक्स कितने प्रकार की होती है, इससे क्या हानि हैं, कैसे वैक्स की कोटिंग वाले फल को पहचानें एवं खाने से पूर्व फलों से कैसे इस वैक्स को हटाएं।

वैक्स की कोटिंग किस वजह से की जाती है

सर्वाधिक वैक्स सेब के फल पर लगाई जाती है। फल पेड़ों पर लगे हों तो उनकी तुड़ाई से 15 दिन पूर्व रंग लाने हेतु रासायनिक छिड़काव किया जाता है। इसकी वजह से सेब का रंग लाल व चमकीला हो जाता है। रसायन के सूखने के उपरांत सेब के ऊपर प्लास्टिक अथवा मोम जैसी परत निर्मित हो जाती है। जल से धोने की स्थिति में सेब हाथ से भी फिसल जाएगा, परंतु वैक्स नहीं हट पायेगी। इस प्रकार सेब के ऊपर मोम की कोटिंग करने के पीछे भी एक बड़ा कारण है। आमतौर पर फल, सब्जियों की तुड़ाई के उपरांत फलों में शीघ्रता से खराब होने की संभावना बनी रहती है। फल व सब्जियों के विपणन हेतु शहर तक ले जाने में भी काफी वक्त लग जाता है। ऐसे में फल व सब्जियों के संरक्षण एवं आसानी से बाजार तक ले जाने हेतु प्राकृतिक वैक्स का उपयोग किया जाता है, जो बिल्कुल शहद की भाँति मधुमक्खी के छत्ते द्वारा प्राप्त की जाती है। वैक्स के छिड़काव से फलों का प्राकृतिक पोर्स बंद हो जाता है एवं नमी ज्यों की त्यों रहती है। सामन्यतः ऐसा हर फल के साथ में नहीं किया जाता, बल्कि निर्यात होने वाले अथवा महंगे फल-सब्जियों पर ही वैक्स का उपयोग किया जाता है।

इसकी अनुमति किसके माध्यम से प्राप्त होती है

बहुत सारे लोग यह सोचते हैं, कि बहुत सारे दशकों से फलों पर वैक्स का उपयोग किया जा रहा है, तो क्या ये सुरक्षित है? आपको बतादें, कि फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया FSSAI द्वारा एक निर्धारित सीमा तक प्राकृतिक मोम मतलब नेचुरल वैक्स की कोटिंग करने की स्वीकृति देदी है। यह प्राकृतिक मोम शारीरिक हानि नहीं पहुंचाता। विशेषज्ञों के अनुसार फलों पर उपयोग की जा रही वैक्स भी तीन प्रकार की होती है, जिसमें ब्राजील की कार्नाबुआ वैक्स (Queen of Wax), बीज वैक्स एवं शैलेक वैक्स शम्मिलित है।


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अगर फलों पर इनमें से किसी भी वैक्स उपयोग हुई है, तो दुकानदार का यह सबसे बड़ा दायित्व है, कि फलों पर लेबल लगाकर खरीदने वाले को ज्ञात कराए कि इस वैक्स को क्यों लगया गया है। परंतु नेचुरल वैक्स के बहाने कुछ लोग अधिकाँश रासायनिक वैक्स का उपयोग करते हैं। उसका न तो फलों पर लेबल दिखाई देता है व ना ही किसी प्रकार की कोई जानकारी दी गयी होती है। बहुत से शोधों द्वारा पता चला है, कि फलों पर हर प्रकार की वैक्स स्वास्थ्य हेतु काफी नुकसानदायक होती है। इसकी वजह से शरीर में टॉक्सिंस की मात्रा में वृद्धि हो जाती है, जिससे देखते ही देखते बदहजमी, अपच एवं पेट दर्द की समस्या से लेकर आंख, आंत, लीवर, हृदय, आंत में कैंसर, आंतों में छाले अथवा इंफेक्शन उत्पन्न हो जाता है।

वैक्स की आड़ में मिलावट खोर कर रहे धांधली

रिपोर्ट्स के मुताबिक, FSSAI की तरफ से एक सीमित मात्रा में ही नेचुरल वैक्स के उपयोग की अनुमति प्राप्त होती है। जो कि मधुमक्खी के छत्ते से तैयार किया जाता है, जिसको जल में डालते वक्त ही निकल जाती है, साथ ही, यह पूर्णतय सुरक्षित है। परंतु इस प्राकृतिक मोम के अतिरिक्त, बहुत सारे व्यापारी बाजार में जब फलों की मांग बढ़ती है तब कुछ मिलावट-खोर लोग फल एवं सब्जियों को चमकाने हेतु पेट्रोलियम लुब्रिकेंट्स, रसायनयुक्त सिंथेटिक वैक्स, वार्निश का उपयोग भी करते हैं। जो स्वास्थ्य हेतु नुकसानदायक अथवा जानलेवा भी साबित हो सकता है। इनकी पहचान हेतु फल खरीदते वक्त ही रंग, रूप एवं ऊपरी सतह को खुरचकर पहचान की जा सकती है। किसी धारदार चीज अथवा नाखून से फल को रगड़ने तथा खुरचने के उपरांत सफेद रंग की परत या पाउडर निकलने लगे तो समझ जाएं कि वैक्स का उपयोग किया गया है।

वैक्स को हटाने का आसान तरीका

बाजार में मानकों पर आधारित वैक्स की कोटिंग वाले फलों के विक्रय हेतु अनुमति होती है। इस वैक्स को हटाना को ज्यादा मुश्किल काम नहीं होता है, आप फलों को पहले देखभाल करके ही खरीदें एवं घर लाकर गर्म जल से बेहतरीन रूप से धुलकर-कपड़ों से साफ करके खाएं। बतादें, कि गर्म जल की वजह से वैक्स पिघल जाती है साथ ही केमिकल भी फलों से निकल जाता है। यदि आप चाहें तो एक बर्तन में जल लेकर नींबू एवं बेकिंग सोडा डालें और सब्जियों-फलों को इस पानी में छोड़ सकते हैं। कुछ देर के उपरांत सब्जियों को बेहतर तरीके से रगड़कर साफ करें और खाएं। कुल मिलाकर फल-सब्जियों को खरीदते वक्त एवं खाने से पूर्व सावधानियां जरूर बरतें। क्योंकि आजकल बाजार में मिलावटखोर खूब मिलावटी सामान बाजार में शुद्ध बताकर बेच रहे हैं। इसलिए हमें बेहद सावधान और जागरुक होने की आवश्यकता है। यदि आपको कोई गलत पदार्थ बेचता है तो उसकी तुरंत शिकायत की जाए।
मधुमक्खी पालकों के लिए आ रही है बहुत बड़ी खुशखबरी

मधुमक्खी पालकों के लिए आ रही है बहुत बड़ी खुशखबरी

शहद के गुणों के बारे में कौन नहीं जानता है। प्राकृतिक मिठास के लिए इस्तेमाल की जाने वाली यह गुणकारी चीज घर घर में पाई जाती है। आजकल लोग भारी मात्रा में मधुमक्खी पालन करते हैं और इस व्यवसाय से काफी मुनाफा कमा रहे हैं। आपके लिए शायद यह नई बात होगी, लेकिन मधुमक्खी पालन के व्यवसाय में भी काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। क्योंकि, बहुत से ऐसे लोग हैं, जो मधुमक्खी पालन में अड़चन बन जाते हैं। साथी ही, मधुमक्खियों की सेहत के लिए काफी हानिकारक होते हैं। हाल ही में मधुमक्खी पालन संघ के बोर्ड के मेंबर ट्रेवर टॉज़र ने सभी मधुमक्खी पालकों के लिए एक बहुत ही बेहतरीन खबर दी है। उनके अनुसार, नया टीका 'मधुमक्खी पालकों के लिए एक रोमांचक कदम' हो सकता है। उनके द्वारा की गई बातचीत से पता चलता है, कि इस टीके का इस्तेमाल करने के बाद आपको बहुत महंगे उपचार करवाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। आप इस व्यवसाय के बाकी क्षेत्रों पर अच्छी तरह से ध्यान दे सकते हैं। देश दुनिया के सभी मधुमक्खी पालन करने वाले व्यवसायियों के लिए यह खबर बेहद खुशखबरी लेकर आई है। क्योंकि अब उनकी मधुमक्खियां पहले के मुकाबले ज्यादा स्वस्थ रहेगी, जिससे शहद का उत्पादन भी अपने आप ही बढ़ेगा। ये भी देखें: मधुमक्खी पालन को 500 करोड़ देगी सरकार मधुमक्खियों के लिए बने इस टीके के उपयोग के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका ने मंजूरी दे दी है। इस टीके को मधुमक्खी कालोनियों को अमेरिकी फाउलब्रूड रोग से बचाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। दरअसल, फाउलब्रूड एक ऐसा रोग है, जो जीवाणु संक्रमण का एक रूप है और यह सीधा मधुमक्खी के लारवा पर हमला करता है और मधुमक्खियों की पूरी कॉलोनी को कमजोर कर देता है। डालन एनिमल हेल्थ के सीईओ एनेट क्लेसर ने हाल ही में हुई बातचीत में बताया कि, मधुमक्खियां एक ऐसा जीव है जो ईको सिस्टम के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ऐसे में इस टीके को मधुमक्खियों के संरक्षण के लिए भी एक बहुत ही कामयाब पहल मानी जा रही है। इन सबके साथ ही बायोटेक फॉर्म के अनुसार अमेरिकी कृषि विभाग ने इसी सप्ताह ही इस वैक्सीन के लिए लाइसेंस को पूरी तरह से मंजूरी दे दी है। संयुक्त राष्ट्र एफएओ के अनुसार, मधुमक्खियों, पक्षियों और चमगादड़ों जैसे परागणकों का वैश्विक फसल उत्पादन में लगभग एक-तिहाई हिस्सा है।
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रिपोर्ट की मानें तो संयुक्त राज्य अमेरिका में भी साल 2006 से मधुमक्खियों की कॉलोनियों में काफी ज्यादा कमी आई है। इसके लिए बहुत से कारक जिम्मेदार माने गए हैं। यह सभी कारक अंततः जाकर मधुमक्खी के स्वास्थ्य को खतरे में डालते हैं। बहुत से परजीवी और कीट मधुमक्खियों की सेहत के लिए काफी हानिकारक होते हैं। कई बार मधुमक्खियों को इनके कारण इस तरह की बीमारियां हो जाती हैं। इस वैक्सीन का वितरण सभी तरह के मधुमक्खी योजना में एक योजना के अनुसार किया जाएगा
मधुमक्खी के डंक से किसान जल्द हो सकते हैं अमीर, 70 लाख रुपये है कीमत

मधुमक्खी के डंक से किसान जल्द हो सकते हैं अमीर, 70 लाख रुपये है कीमत

मधुमक्खी से प्राप्त शहद के साथ ही अब मधुमक्खी का डंक भी बिकने के लिए तैयार है। बाजार में इसकी कीमत 70 लाख रुपये प्रति किलो तक हो सकती है। इसके लिए मध्य प्रदेश में डंक के प्रोसेसिंग के लिए एक यूनिट की स्थापना की जा रही है। यह यूनिट मुरैना के महात्मा गांधी सेवा आश्रम में लगाई जा रही है। जिस पर चार करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। यहां पर शहद की गुणवत्ता की जांच की जाएगी, साथ ही उसकी पैकिंग और ब्रांडिग भी की जाएगी। मुरैना में शहद की यूनिट लगने से सबसे ज्यादा मधुमक्खी पालकों को फायदा होने वाला है। इस यूनिट के माध्यम से ही मधुमक्खी पालकों को प्रशिक्षित किया जाएगा। साथ ही एक विशेष मशीन के माध्यम से मधुमक्खियों के डंक निकालने का काम भी किया जाएगा। भारतीय बाजार में मधुमक्खियों के डंक की कीमत 70 लाख रुपये प्रति किलो तक बताई जा रही है। मशीन के माध्यम से मधुमक्खी का डंक निकालने से मधुमक्खी को किसी भी प्रकार की हानि नहीं होगी। साथ ही मधुमक्खी पालन से प्राप्त होने वाले शहद से लेकर गोंद तक की बाजार में भारी डिमांड रहती है। इनका उपयोग दवा बनाने के साथ ही कई अन्य चीजों में किया जाता है।

मधुमक्खी पालन से किसानों को होते हैं ये फायदे

मधुमक्खी पालन किसानों के लिए अतिरिक्त आय का स्रोत है, इससे किसानों की आय में तेजी से वृद्धि होती है। साथ ही किसानों की फसल का उत्पादन भी बढ़ जाता है, क्योंकि मधुमक्खियां फसलों का परागकण निकालती हैं, जिससे फसलों की गुणवत्ता में सुधार होता है और लगभग 15 से 30 प्रतिशत तक उत्पादन बढ़ जाता है। मधुमक्खियों के माध्यम से शहद का उत्पादन किया जाता है। इसके साथ ही मधुमक्खी के छत्तों से रायल जेली भी प्राप्त की जाती है। यह जेली मानव शरीर के लिए बेहद लाभप्रद मानी जाती है क्योंकि इसमें उत्तम पौष्टिक पदार्थ पाए जाते हैं। मधुमक्खी पालन के माध्यम से मोम का भी उत्पादन भी किया जाता है। जिसका उपयोग कॉस्मेटिक सामग्री तैयार करने में और मोमी बेस शीट बनाने में किया जाता है।

भारत में मधुमक्खियों की प्रमुख प्रजातियां

भारत में मधुमक्खियों की प्रमुख तौर पर 4 प्रजातियां पाई जाती हैं।

एपिस डोरसेटा (भंवर मधुमक्खी): इसे सब्स ज्यादा गुस्सैल मधुमक्खी माना जाता है। यह आकर में बड़ी होती है तथा लोगों पर खतरनाक रूप से हमला करती है। यह मधुमक्खी एक साल में 20 से 25 किलो शहद देती है। यह भी पढ़ें: मधुमक्खी पालन को बनाएं आय का स्थायी स्रोत : बी-फार्मिंग की सम्पूर्ण जानकारी और सरकारी योजनाएं एपिस मेलिफेरा (इटालियन मधुमक्खी): यह भी आकर में बड़ी होती है। इसकी रानी मधुमक्खी अन्य मधुमक्खियों की अपेक्षा ज्यादा अंडे दे सकती है। इसलिए यह शहद का उत्पादन भी ज्यादा करती है। अगर इसे दो खण्ड के बक्सों में पाला जाए तो यह एक साल में 80 किलो तक शहद का उत्पादन कर सकती है। एपिस फलोरिया (उरम्बी मधुमक्खी): यह बेहद छोटे आकर की मधुमक्खी होती है। यह सुरक्षित जगहों पर अपना छत्ता बनाती है। यह मधुमक्खी साल में 2 किलो तक शहद का उत्पादन कर सकती है। एपिस सेराना इण्डिका (भारतीय मधुमक्खी): यह एक ऐसी मधुमक्खी होती है जो वीरान इलाकों में अपना छत्ता बनाती है, इसके छत्ते ज्यादातर पेडों व गुफाओं में होते हैं। यह पहाड़ी इलाकों में पाई जाती है। यह साल में 6 किलो तक शहद का उत्पादन कर सकती है।

भारत में मधुमक्खी पालन का उपयुक्त समय

चूंकि मधुमक्खी पालन में सबसे ज्यादा महत्व फूलों का होता है, क्योंकि मधुमक्खियां फूलों से मकरंद व पराग एकत्रित करती हैं, जिससे शहद बनता है। इसलिए मधुमक्खी पालन का सबसे उचित समय अक्टूबर से लेकर दिसम्बर तक होता है।
जानें कृषि क्षेत्र से संबंधित व्यवसायों के बारे में जिनसे आप अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं

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मधुमक्खी पालन करने के दौरान आप केवल शहद से ही धन नहीं कमाते। आप रॉयल जैली, विष, मोम, पराग और प्रापलिस के माध्यम से भी आप अच्छा-खासा धन अर्जित कर सकते हैं। सामान्य सी बात है, हर इंसान को मुनाफा चाहिए होता है। फिर चाहे वो खेती से हो अथवा किसी व्यापार से अर्जित हो। दरअसल, अब आप अपने कृषि को ही व्यवसाय बनाकर उसी से अच्छा-खासा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। आज हम आपको ऐसे ही बहुत सारे व्यवसायों के विषय में जानकारी देंगे, जिनसे आप आसानी से अच्छा खासा मुनाफा प्रति माह कर सकते हैं। सबसे बड़ी बात यह है, कि इस व्यवसाय के लिए आपको अत्यधिक धन भी निवेश करने की आवश्यकता नहीं है। तो आइए आपको बताते हैं, बेस्ट कृषि व्यवसायों के विषय में।

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दूध का काम

दूध का काम किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित होता है। यदि आपके पास गांव देहात में अच्छी खासी जमीन है, तो आप दूध का काम चालू कर सकते हैं। दूध के कार्य में काफी धन एवं यह कृषि व्यवसायों में सबसे ज्यादा मुनाफे का व्यवसाय है। इसे आरंभ करने के लिए काफी ज्यादा निवेश की भी आवश्यकता नहीं पड़ती एवं मुनाफा भी काफी जम कर होता है।

शहद का काम यानी मधुमक्खी पालन

दुसरे नंबर पर शहद का काम आता है। शहद का काम जिसको हम मधुमक्खी पालन भी कहते हैं, काफी ज्यादा साफ काम है। मधुमक्खी पालन करने के दौरान आप केवल शहद से ही धन अर्जित नहीं करते हैं। उसके साथ-साथ मोम, पराग, प्रापलिस, रॉयल जैली और विष इत्यादि के माध्यम से भी आप मोटा धन अर्जित कर सकते हैं। इस कार्य को आप काफी कम धन लगा कर भी चालू कर सकते हैं।

फूलों की खेती

बाजार में फूलों की मांग प्रति दिन बढ़ रही है। पहले फूल केवल पूजा पर उपयोग होते थे। परंतु, अब हर फंक्शन में इस्तेमाल होते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि फूलों की कीमत किसानों को काफी अच्छी मिल जाती है। साथ ही, फूलों की पैदावार भी किसी अन्य फसल से कहीं अधिक होती है। एक बार किसी फूल का पौधा लग गया तो वह तीन से चार बार फूल देकर ही जाता है।
मधुमक्खी पालन से आप सालभर में लाखों रूपए की आमदनी कर सकते हैं

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किसान भाई मधुमक्खी पालन कर एवं उसका शहद बेचकर शानदार लाभ उठा सकते हैं। शुद्ध शहद का बाजार में काफी अच्छा भाव मिलता है। अगर आप किसान हैं व फल-सब्जियों की खेती कर के थक गए हैं, तो ये खबर आपके लिए काफी काम की हो सकती है। भारत में तीव्रता से मधुमक्खी पालन बढ़ रहा है। विशेषज्ञ इसे मुनाफा देने वाला कार्य बताते हैं। बड़ी तादात में किसान मधुमक्खी पालन कर मुनाफा उठा रहे हैं। सरकार की तरफ से भी किसानों को मुनाफा देने के लिए प्रोत्साहित करने का कार्य किया जा रहा है। केंद्र सरकार की ओर से मधुमक्खी पालन पर 80 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है। साथ ही, राज्य सरकार भी इस कार्य के लिए किसानों को प्रोत्साहन देती हैं।

मधुमक्खी पालन करने हेतु 90 फीसद अनुदान

बिहार राज्य में सरकार की ओर से मधुमक्खी पालन करने के इच्छुक किसानों को 90 प्रतिशत तक की सब्सिड़ी दी जाती है। शहद के लिए कॉलोनी समेत मधुमक्खी बॉक्स, मधु निष्कासन यंत्र और प्रसंस्करण के लिए सामान्य श्रेणी के कृषकों को 75 प्रतिशत तक सब्सिड़ी दी जाती है। वहीं, एससी-एसटी श्रेणी के कृषकों को 90 प्रतिशत तक का अनुदान दिया जा रहा है। ये भी पढ़े: मधुमक्खी पालन को बनाएं आय का स्थायी स्रोत : बी-फार्मिंग की सम्पूर्ण जानकारी और सरकारी योजनाएं

मधुमक्खी पालन किस प्रकार करें

मधुमक्खियों को रखने के लिए कृषकों को कार्बनिक मोम (डिब्बे) की व्यवस्था करने की आवश्यकता पड़ती है। इसमें 50 हजार से लेकर 60 हजार मधुमक्खियां एक साथ रखी जाती हैं। ये मधुमक्खियां लगभग एक क्विंटल शहद की पैदावार करती हैं।

शहद उत्पादन से शानदार मुनाफा होगा

बाजार में शुद्ध शहद का भाव 700 से लेकर 100 रुपये प्रति किलो तक रहता है। अगर आप प्रति बॉक्स 1000 किलो शहद की पैदावार करते हैं, तो प्रति माह में लाखों रुपये बचा सकते हैं।

मधुमक्खी पालन में कितना खर्चा आता है

विशेषज्ञों की मानें तो 10 पेटी से मधुमक्खी पालन की शुरुआत की जा सकती है। इसमें लगभग 40 हजार रुपये तक की लागत आती है। मधुमक्खियों की तादात भी हर एक साल बढ़ती है। जितनी अधिक मधुमक्खियां बढ़ती हैं, शहद उत्पादन भी उतना ही ज्यादा होता है। साथ ही, मुनाफा उसी हिसाब से कई गुना तक बढ़ जाता है।