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 इस राज्य में पान की खेती के लिए 50% प्रतिशत अनुदान दिया जा रहा है

इस राज्य में पान की खेती के लिए 50% प्रतिशत अनुदान दिया जा रहा है

पान का स्वाद बहुत लोगों को पसंद होता है। पान के लोकप्रिय होने की वजह से बिहार सरकार ने मगही पान की खेती के लिए अनुदान देने की घोषणा की है। मगही पान की खेती की अगर हम कुल लागत की बात करें तो वह 70,500 रु होती है। इसके लिए 50% प्रतिशत मतलब कि 32,250 रुपये का अनुदान सरकार की तरफ से मिलेगा। 

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि भारत में कृषकों को लेकर सरकार भिन्न भिन्न तरह की योजनाएं चलाती है। इससे कृषकों भाइयों को काफी लाभ दिया जा सके। कृषकों के लिए सरकार विभिन्न प्रकार की फसलों पर सब्सिडी की सुविधा मुहैय्या कराती है। बिहार राज्य में खेती करने वाले कृषकों के लिए बिहार सरकार ने एक काफी बड़ी सौगात दी है। बिहार में पान को लेकर काफी ज्यादा रूचि देखी जाती है। इसके चलते बिहार सरकार ने पान की खेती के लिए अनुदान देने की घोषणा कर दी है। पान की खेती के लिए सरकार द्वारा इस प्रकार सब्सिड़ी मिलेगी।

पान की खेती पर मिलेगा 32,250 रुपये तक अनुदान

पान को एक प्राकृतिक माउथ फ्रेशनर कहा जाता है। सामान्य तौर पर संपूर्ण भारत में काफी पान के शौकीन हैं। लेकिन बिहार राज्य की बात कुछ हटकर है। बिहार राज्य का मगही पान कुछ ज्यादा ही मशहूर है। इसको जियोग्राफिकल आइडेंटिफिकेशन का टैग भी हांसिल हो चुका है। बाजार में इसकी काफी ज्यादा मांग होती है।

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इन्ही सब बातों को मन्देनजर रखते हुए बिहार सरकार ने मगही पान की खेती के लिए अनुदान देने की घोषणा कर दी है। मगही पान की खेती की कुल लागत 70,500 रु के आसपास होती है। अब इसके लिए 50 प्रतिशत का अनुदान सरकार की तरफ से मिलेगा। मतलब कि कोई अगर मगही पान की खेती करता है तो उसको 32,250 रुपये तक की सब्सिडी बिहार सरकार की तरफ से प्रदान की जाऐगी।

किसान भाई इस योजना का कैसे लाभ उठा सकते हैं ?

किसानों को विशेष फसल योजना के अंतर्गत बिहार सरकार के कृषिमंत्रालय के विभाग ने मगही पान के लिए अनुदान देने की घोषणा कर दी है। बिहार सरकार द्वारा वर्तमान में संचालित इस योजना के अंतर्गत अनुदान का लाभ लेने के लिए आधिकारिक वेबसाइट https://horticulture.bihar.gov.in पर जाऐं।  बतादें कि इसके पश्चात पान विकास योजना पर क्लिक करें। अब इसके बाद आवेदन करें लिंक पर क्लिक करें। इसके उपरांत समस्त आवश्यक डीटेल्स भरने के पश्चात आवेदन सबमिट कर सकते हैं।

बाजार भेजने से पूर्व केले को कैसे तैयार करें की मिले अधिकतम लाभ?

बाजार भेजने से पूर्व केले को कैसे तैयार करें की मिले अधिकतम लाभ?

आभासी तने से केले की कटाई के उपरांत , केले को बंच से अलग अलग हथ्थे में अलग करते है। इसके बाद इन हथ्थों को फिटकरी के पानी की टंकी में डालें @ 1 ग्राम फिटकरी प्रति 2.5 लीटर पानी की दर से मिलाते है। केले के इन हथ्थों को लगभग 3 मिनट के लिए डुबाने के बाद निकल लें। फिटकरी के घोल की वजह से केले के छिलकों के ऊपर के प्राकृतिक मोम हट जाती है एवं साथ साथ फल के ऊपर लगे कीड़ों के कचरे भी साफ हो जाते हैं। यह एक प्राकृतिक कीटाणुनाशक के रूप में कार्य करता है। इसके बाद दूसरे टैंक में एंटी फंगल लिक्विड हुवा सान (Huwa San), जिसके अंदर लिक्विड सिल्वर कंपोनेंट्स के साथ हाइड्रोजन पेरोक्साइड होता है जो एंटीफंगल के रूप में काम करता है,जो फंगस को बढ़ने नहीं देता है।

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विदेशों में बढ़ी देसी केले की मांग, 327 करोड़ रुपए का केला हुआ निर्यात हुवा सान एक बायोसाइड है एवं सभी प्रकार के बैक्टीरिया, वायरस, खमीर, मोल्ड और बीजाणु बनाने वालों के खिलाफ प्रभावी है। लीजियोनेला न्यूमोफिला के खिलाफ भी प्रभावी है। पर्यावरण के अनुकूल - व्यावहारिक रूप से पानी और ऑक्सीजन के लिए 100% अपघट्य हो जाता है। इसके प्रयोग से गंध पैदा नहीं होता है , उपचारित खाद्य पदार्थों के स्वाद को नहीं बदलता है। बहुत अधिक पानी के तापमान पर भी प्रभावशीलता और दीर्घकालिक प्रभाव देखे जाते हैं। अनुशंसित खुराक दर पर खपत के लिए सुरक्षित के रूप में मूल्यांकन किया गया। कोई कार्सिनोजेनिक या उत्परिवर्तजन प्रभाव नहीं, अमोनियम-आयनों के साथ प्रतिक्रिया नहीं करता है। इसे लम्बे समय तक भंडारित किया जा सकता है। 3% अनुशंसित दर पर प्रयोग करने से किसी भी प्रकार का कोई भी दुष्प्रभाव नहीं देखा गया है। इस घोल में केला के हथ्थों को 3 मिनट के लिए डूबाते है। हुवा सान @ 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर , घोल बनाते है। इस तरह से 500 लीटर पानी के टैंक में 250 मिलीलीटर हुवा सैन तरल डालते है । इन घोल से केले को निकालने के बाद केले से अतिरिक्त पानी निकालने के लिए केले को उच्च गति वाले पंखे से अच्छे ड्रेनेज फ्लोर पर जाली की सतह पर रखें। इस प्रकार से केले की प्रारंभिक तैयारी करते है। विशेष तौर से तैयार डिब्बों में पैक करते है। इस प्रकार से तैयार केलो को आसानी से दुरस्त या विदेशी बाज़ार में भेजते है।

हुवा-सैन क्या है?

हाइड्रोजन पेरोक्साइड और सिल्वर स्टेबलाइजर के संयोजन की प्रक्रिया दुनिया भर में अद्वितीय है और मूल हुवा-सैन तकनीक पर आधारित है, जिसे पिछले 15 वर्षों में रोम टेक्नोलॉजी में और विकसित किया गया था।

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यह तकनीक अद्वितीय है क्योंकि पेरोक्साइड को स्थिर करने के लिए एसिड जैसे किसी अन्य स्थिरीकरण एजेंट की आवश्यकता नहीं होती है। यह सब Huwa-San Technology के उत्पादों को गैर-अवशिष्ट और अत्यंत शक्तिशाली कीटाणुनाशक बनाता है।हुवा-सैन एक वन स्टॉप बायोसाइडल उत्पाद है जो बैक्टीरिया, कवक, खमीर, बीजाणुओं, वायरस और यहां तक ​​कि माइकोबैक्टीरिया के खिलाफ प्रभावी है और इसलिए इस उत्पादों को वाष्पीकरण के माध्यम से पानी, सतहों, औजारों और यहां तक ​​कि बड़े खाली क्षेत्रों को कीटाणुरहित करने के लिए कई क्षेत्रों में उपयोग किया जा सकता है। पिछले 15 वर्षों में, हुवा-सैन उत्पादों का प्रयोगशाला पैमाने पर और दुनिया भर में कई फील्ड परीक्षणों पर बड़े पैमाने पर परीक्षण किया गया था। तकनीकी ज्ञान के साथ हुवा-सैन के व्यापक अनुप्रयोग स्पेक्ट्रम के भीतर जानकारी की प्रचुरता विश्वव्यापी सफलता की कुंजी रही है। Huwa-San को लैब और फील्ड टेस्ट सेटिंग्स में पूरी तरह से शोध और विकसित किया गया है ,यह पूर्णतया सुरक्षित है और ये नतीजतन, हुवा-सैन उत्पाद कीटाणुशोधन के लिए नवीनतम मानकों को पूरा करते हैं ।

टिश्यू कल्चर तकनीक से इस राज्य में केले की खेती हो रही है

टिश्यू कल्चर तकनीक से इस राज्य में केले की खेती हो रही है

किसान भाई टिश्यू कल्चर तकनीक की सहायता से केले उगा सकते हैं। इससे कृषकों की आमदनी में काफी इजाफा होगा। साथ ही, फसल की गुणवत्ता भी अच्छी होगी। भारत के अंदर प्रमुख तोर पर बड़े पैमाने पर केले की खेती की जाती है। सब्जी से लगाकर चिप्स निर्मित करने तक केले की बेहद मांग है। अब ऐसी स्थिति में किसान भाई इसकी खेती कर काफी शानदार मुनाफा हांसिल कर सकते हैं। परंतु, किसान भाई केला उत्पादन के लिए टिश्यू कल्चर तकनीक का उपयोग कर सकते हैं।

टिश्यू कल्चर तकनीक से केला उत्पादन 

टिश्यू कल्चर तकनीक से
केले की खेती करना एक बेहद फायदेमंद व्यवसाय सिद्ध हो सकता है। इस तकनीक के माध्यम से निर्मित किए गए पौधे रोगमुक्त और एक जैसे ही होते हैं, जिससे फसल की गुणवत्ता के साथ-साथ पैदावार में सुधार होता है। इसमें पौधे के एक छोटे टुकड़े को एक खास माध्यम में उत्पादित किया जाता है। इस माध्यम में पोषक तत्व एवं हार्मोन होते हैं जो पौधे की कोशिकाओं को बड़ी तीव्रता से विभाजित करने में सहयोग करते हैं। कुछ ही, माह में पौधे पर्याप्त ढ़ंग से विकसित हो जाते हैं एवं उन्हें खेत के अंदर लगाया जा सकता है। ये भी पढ़ें: केले की खेती के लिए सबसे महत्वपूर्ण पोषक तत्व पोटाश की कमी के लक्षण और उसे प्रबंधित करने की तकनीक

बिहार में टिश्यू कल्चर तरीके से खेती हो रही है 

बिहार राज्य के कृषक भाई भी टिश्यू कल्चर ढ़ंग से केले का उत्पादन कर रहे हैं, जिससे बिहार में केला उत्पादन में गुणवत्ता के साथ आमदनी बढ़ोतरी हो रही है। केले के पौधे का उत्पादन बेहतर तरीके से सूखा हुआ और रेतीली दोमट मिट्टी में सबसे शानदार होता है। मृदा को अच्छे तरीके से ढीला करें और खरपतवार को पूरी तरह से हटा दें। 

टिश्यू कल्चर तकनीक के क्या लाभ होते हैं ?

  • टिश्यू कल्चर तकनीक से निर्मित किए गए पौधे रोग से मुक्त होते हैं, जिससे फसल को बीमारियों से संरक्षण देने में सहयोग मिलता है।
  • टिश्यू कल्चर तकनीक से तैयार किए गए पौधे एक जैसे आकार के होते हैं, जिससे फसल की गुणवत्ता में काफी सुधार होता है।
  • टिश्यू कल्चर तकनीक से निर्मित किए गए पौधे आम तरीके से तैयार किए गए पौधों के मुकाबले में शीघ्र फल देने लगते हैं।
  • टिश्यू कल्चर तकनीक से तैयार किए गए पौधे परंपरागत तरीके से तैयार किए गए पौधों के मुकाबले में ज्यादा उत्पादन देते हैं।
गेंदे की खेती के लिए इस राज्य में मिल रहा 70 % प्रतिशत का अनुदान

गेंदे की खेती के लिए इस राज्य में मिल रहा 70 % प्रतिशत का अनुदान

गेंदे के फूल का सर्वाधिक इस्तेमाल पूजा-पाठ में किया जाता है। इसके साथ-साथ शादियों में भी घर और मंडप को सजाने में गेंदे का उपयोग होता है। यही कारण है, कि बाजार में इसकी निरंतर साल भर मांग बनी रहती है। 

ऐसे में किसान भाई यदि गेंदे की खेती करते हैं, तो वह कम खर्चा में बेहतरीन आमदनी कर सकते हैं। बिहार में किसान पारंपरिक फसलों की खेती करने के साथ-साथ बागवानी भी बड़े पैमाने पर कर रहे हैं। 

विशेष कर किसान वर्तमान में गुलाब एवं गेंदे की खेती में अधिक रूची एवं दिलचस्पी दिखा रहे हैं। इससे किसानों की आमदनी पहले की तुलना में अधिक बढ़ गई है। 

यहां के किसानों द्वारा उत्पादित फसलों की मांग केवल बिहार में ही नहीं, बल्कि राज्य के बाहर भी हो रही है। राज्य में बहुत सारे किसान ऐसे भी हैं, जिनकी जिन्दगी फूलों की खेती से पूर्णतय बदल गई है।

बिहार सरकार फूल उत्पादन रकबे को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन दे रही है

परंतु, वर्तमान में बिहार सरकार चाहती है, कि राज्य में फूलों की खेती करने वाले कृषकों की संख्या और तीव्र गति से बढ़े। इसके लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने फूलों के उत्पादन क्षेत्रफल को राज्य में बढ़ाने के लिए मोटा अनुदान देने की योजना बनाई है। 

दरअसल, बिहार सरकार का कहना है, कि फूल एक नगदी फसल है। यदि राज्य के किसान फूलों की खेती करते हैं, तो उनकी आमदनी बढ़ जाएगी। ऐसे में वे खुशहाल जिन्दगी जी पाएंगे। 

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बिहार सरकार 70 % प्रतिशत अनुदान मुहैय्या करा रही है

यही वजह है, कि बिहार सरकार ने एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना के अंतर्गत फूलों की खेती करने वाले किसानों को अच्छा-खासा अनुदान देने का फैसला किया है। 

विशेष बात यह है, कि गेंदे की खेती पर नीतीश सरकार वर्तमान में 70 प्रतिशत अनुदान प्रदान कर रही है। यदि किसान भाई इस अनुदान का फायदा उठाना चाहते हैं, तो वे उद्यान विभाग के आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर आवेदन कर सकते हैं। 

किसान भाई अगर योजना के संबंध में ज्यादा जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, तो horticulture.bihar.gov.in पर विजिट कर सकते हैं।

बिहार सरकार द्वारा प्रति हेक्टेयर इकाई लागत तय की गई है

विशेष बात यह है, कि गेंदे की खेती के लिए बिहार सरकार ने प्रति हेक्टेयर इकाई खर्च 40 हजार निर्धारित किया है। बतादें, कि इसके ऊपर 70 प्रतिशत अनुदान भी मिलेगा। 

किसान भाई यदि एक हेक्टेयर में गेंदे की खेती करते हैं, तो उनको राज्य सरकार निःशुल्क 28 हजार रुपये प्रदान करेगी। इसलिए किसान भाई योजना का फायदा उठाने के लिए अतिशीघ्र आवेदन करें।

लीची : लीची के पालन के लिए अभी से करे देखभाल

लीची : लीची के पालन के लिए अभी से करे देखभाल

सन;1780 मे पहली बार भारत देश मे दस्तक देने वाला फल लीची , जिसकी जरूरत आज भी शहरी और ग्रामीण बाजारों में काफी तेज़ी मे है। 

लीची एक मात्र ऐसा फल है जो हमारे शरीर को डी हाइड्रेशन यानी की पानी की कमी की पूर्ति करता है।इसी कारण भारत के पश्चिमी इलाको मे इसकी मांग बहुत है। 

इसी के साथ साथ इसमें विटामिन सी होता है, जो हमारे शरीर मे कैल्शियम की कमी की पूर्ति करता है। इसमें केरोटिन और नियोसीन भी होता है जो शरीर मे इम्यूनिटी को बढ़ाता हैं। 

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भारत मे लीची का उत्पादन सबसे ज्यादा त्रिपुरा मे होता है। इसके अलावा अन्य राज्य झारखंड , पश्चिम बंगाल , बिहार , उतरप्रदेस और पंजाब मे। 

भारत मे किसानों के लिए लीची की फसल से अच्छा मुनाफा होता है ,लेकिन साथ ही साथ अच्छी देखभाल भी करनी पड़ती है।

लीची की फसल को तैयार होने मे काफी समय लगता है, इसलिए किसानों को काफी परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है । ऐसे मे किसानों को संपूर्ण फसल को तैयार करने मे लागत खर्चा भी ज्यादा लगता है।

लीची के पालन के लिए सिंचाई और खाद उर्वरक का इस प्रकार करे इस्तेमाल :

insect pest in litchi

लीची की फसल के लिए हमेशा आपको थाला विधि से ही सिंचाई करनी चाहिए। हमें केवल तब तक सिंचाई करनी है ,जब तक पौधों मे फूल आना न लग जाए। 

उसके बाद हमें नवंबर माह से फरवरी माह तक लीची की फसल की सिंचाई नहीं करनी चाहिए। लीची के पौधों को पानी देने का सबसे अच्छा समय शाम का होता है, क्योंकि इससे दिन की गर्मी की वजह से वाष्पीकरण भी नहीं होता है और पौधों को अच्छी तरह से जल की पूर्ति भी होती हैं। 

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इसके अलावा अच्छी खाद और उर्वरक का इस्तेमाल करें और साथ ही साथ पौधे के आस पास बिल्कुल भी खरपतवार ना रहने दे। खरपतवार सभी प्रकार की फसलों के लिए सबसे खतरनाक होता है। 

इस से बचाव के लिए समय समय पर लीची के पौधों के आस पास ध्यान रखे और खरपतवार बिल्कुल भी न रहने दे। जब पौधे 6 से 7 माह के हो जाते है, तो उसके बाद आप पौधों मे फव्वारे के द्वारा पानी की छटाई अवस्य रूप से करे। 

अप्रैल महीने से लेकर नवंबर महीने तक लीची के पौधे की पूर्ण रूप से सिंचाई करे । इस समय तेज गर्मी के कारण पौधों को पानी की पूर्ति सही ढंग से नहीं करवाने पर संपूर्ण फसल पर बहुत असर पड़ता है।

लीची के पौधों की इस प्रकार करे कांट - छांट और रख - रखाव :

production of litchi crops

लीची के पौधों की रख - रखाव करना सबसे महत्वपूर्ण काम होता है ,क्योंकि इसके बिना पूरी फसल भी खराब हो सकती है। 

इसके लिए आप गर्मी और सर्दी की ऋतू मे जब पोधा 4-5 साल का होता है, तो इस समय उसकी अवांछित टहनियों और साखाओ को हटा देना चाहिए । इससे जो भी कीट पतंग और मकड़िया बिना धूप पहुंचने के कारण शाखाओं में छिप जाती हैं वे नष्ट हो जाएंगी। 

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इससे पौधे का अच्छे से भरण-पोषण होगा और फसल की उपज भी अच्छी होगी। फलों की तुड़ाई करने के बाद आप पौधे की जितनी भी रोग ग्रसित ,अवांछित, खराब टहनियों और पत्तियों को हटा दे। 

संपूर्ण खेत के चारों तरफ से बाढ करना बहुत जरूरी है,इससे आसपास के पशु फसल को नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे। साथ ही साथ इससे फसल की उपज मे भी इजाफा होगा।

लीची की फसल मे आने वाली समस्याओं का इस प्रकार करे समाधान :

litchi farming

लीची की फसल का सही से रखरखाव और अच्छी उपज के लिए किसानों को काफी समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है, जिनके बारे मे आज हम आपको बताएंगे की किस प्रकार आप इन समस्याओं से निदान पा सकते है। एक अच्छी फसल का उत्पादन कर सकते हैं तो चलिए जानते है इनके बारे मे

  1. लीची के फलों का फटना और छोटा होने से बचाव :- लीची के पौधों को गर्म और तेज हवाओं के कारण इनके फलों पर इसका सबसे ज्यादा असर दिखाई देता है क्योंकि इससे फल फटना तथा छोटा होना शुरू हो जाते है। ऐसे मे आप  बोरेक्स  ( 5ग्राम लिटर ) या बोरिक अम्ल (4 ग्रा./ली.) के घोल का 2-3 बार छिड़काव करें । इससे फसल की अच्छी पैदावार होगी।फलों के फटने की समस्या भी दूर हो जायेगी ।
  2. लीची मे मकड़ी का लग जाने से बचाव : लीची मे अगर एक बार मकड़ी लग जाती है, तो पूरी फसल को बर्बाद कर देती है। यह मकड़ी लीची के पौधों की टहनियां ,पत्ते और फलों को चुस्ती रहती है। जिसके कारण पूरा पौधा कमजोर पड़ जाता है और नष्ट हो जाता है। इससे बचाव के लिए आप सितंबर और अक्टूबर माह मे केलथेन या फ़ॉसफामिडान (1.25 मि.ली./लीटर) का घोल बनाकर 10- 15 दिन का अंतराल लेकर छिड़काव करें।
  3. लीची के फलों को झड़ने से रोकने के सुझाव :लीची के फलों का झड़ना संपूर्ण फसल के लिए काफी नुकसानदायक होता है। ऐसा पानी की कमी और किटों के कारण होता है।इससे बचाव के लिए आप पौधे मे फल लगने के मात्र सप्ताह भर के अंदर - अंदर क्रॉनिक्सएक्स 2 मिलीलीटर / 4. 8 लीटर या फिर आप ए एन ए 20 मिलीग्राम प्रति लीटर के घोल का बारी-बारी से छिड़काव करें। इससे फलों का झड़ना बंद हो जाएगा।

लीची के पौधे का पूर्ण विकास और प्रबंध इस प्रकार करें :

Litchi farmers

लीची के पौधे का संपूर्ण तरह से विकास होने मे 15 से 20 साल तक का समय लगता है। ऐसे मे पौधे का पूर्ण विकास और सही रखरखाव होना बहुत ही जरूरी होता है।अच्छी उपजाऊ जमीन और अच्छी जलवाष्प का होना भी काफी आवश्यक होता है। 

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लीची के पौधों को लगाते समय प्रति पौधे के बीच मे 5 मीटर की दूरी होनी चाहिए। किसान भाई प्रत्येक एक हेक्टर में 90 से 200 लीची के पौधे लगाएं। 

लीची के पौधों का अच्छे से विकास करने के लिए उनको क्रमबद्ध कतारों मे जरूर लगाए। नियमित रूप से सिंचाई और समय-समय पर पौधों की जरूरत के अनुसार खाद और उर्वरक का छिड़काव करना ना भूलें।

भारत मे लीची का बढ़ता हुआ आयात इस प्रकार :

litchi production in india

भारतीय बाजार की तुलना मे अंतरराष्ट्रीय बाजार मे नवंबर माह से लेकर मार्च माह तक काफी ज्यादा लीची की मांग होती है। भारत मे लीची का फल जुलाई महीने तक संपूर्ण रूप से तैयार होकर बाजार मे उपलब्ध होता है। 

ऐसे समय पर अंतरराष्ट्रीय बाजार मे लीची की मांग बढ़ जाती है। भारत से निर्यात को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा एपीडी कार्यक्रम की भी प्रमुख भूमिका है। 

भारत से सबसे ज्यादा लीची का निर्यात सऊदी अरेबिया संयुक्त अरब अमीरात, ओमान , कुवैत  ,बेल्जियम  ,बांग्लादेश और नार्वे जैसे देशों को होता है। 

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भारतीय बाजार मे लीची की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार की तुलना में काफी कम है , लेकिन पिछले कुछ सालों मे इसकी कीमत मे इजाफा हुआ है। 

साथ ही साथ भारत सरकार द्वारा किसान भाइयों के लिए फसलों की रखरखाव और जानकारी के लिए कई सारे कार्यक्रम भी किए जाते हैं। 

इसके अलावा लॉकडाउन लगने के कारण किसानों को लीची की फसल को भारतीय बाजार मे बेचने के लिए काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा लेकिन आने वाले सालों मे लीची का आयात बहुत ज्यादा बढ़ने वाला है। 

अतः हमारे द्वारा बताए गए इन सभी सुझाव समस्याओं एवं उनके निदान जो की लीची की फसल के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होते है। साथ ही साथ इसके अलावा किसान भाई समय-समय पर लीची के पौधों का उचित रखरखाव और खाद रूप का छिड़काव करते रहे।

सिंघाड़े की खेती से किसान वार्षिक लाखों की आमदनी कर रहा है

सिंघाड़े की खेती से किसान वार्षिक लाखों की आमदनी कर रहा है

आज हम आपको एक सफल सिंघाड़े किसान साहेब जी के बारे में। बतादें, कि किसान साहब पहले किराये की जमीन में प्याज, गेहूं और धान की खेती करते थे। परंतु, उन्हें उतना मुनाफा नहीं हो पा रहा था। बहुत बार तो उन्हें हानि भी उठाना पड़ा। ऐसी स्थिति में उन्होंने सिंघाड़े की खेती चालू कर दी। वर्तमान में वह लाखों में आमदनी कर रहे हैं। समयचक्र के साथ-साथ खेती करने का तरीका भी परिवर्तित हो गया है। अब किसानों के पास खेती करने के बहुत सारे विकल्प उपलब्ध हैं। यदि एक फसल की खेती में नुकसान होता है, तो किसान अगले वर्ष से दूसरी फसल की खेती चालू कर देते हैं, जिससे पैदावार बढ़ने के साथ-साथ आमदनी भी बढ़ जाती है। आज हम एक ऐसे किसान के विषय में चर्चा करेंगे, जिन्हें प्याज की खेती में काफी घाटा हुआ तो उसने सिंघाड़े की खेती चालू कर दी। वर्तमान में ये सिंघाड़े की खेती से वर्ष भर में लाखों रुपये की आमदनी कर रहे हैं, इससे इनकी संपूर्ण जनपद में चर्चा हो रही है।

धान और प्याज की खेती में हानि होने पर सिंघाड़े की खेती की

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि किसान साहेब उदयनी गांव जनपद पटना के निवासी हैं। साहेब जी पहले धान और प्याज की खेती किया करते थे। इससे उन्हें काफी अच्छा मुनाफा नहीं हो रहा था। लागत की तुलना उन्हें घाटा ही उठाना पड़ रहा था। ऐसी स्थिति में उन्होंने पारंपरिक फसलों की खेती छोड़ सिंघाड़े की खेती चालू कर दी, जिससे वह एक वर्ष में ही लखपति बन गए। विशेष बात यह है, कि वह 10 बीघा भूमि किराए पर लेकर सिंघाड़े की खेती कर रहे हैं। इससे उनको प्रति वर्ष 15 लाख रुपये की आमदनी हो रही है। यह भी पढ़ें: इस राज्य में धान की खेती के लिए 80 फीसद अनुदान पर बीज मुहैय्या करा रही राज्य सरकार

सिंघाड़े की फसल को काफी समय में तैयार होती है

किसान साहेब का कहना है, कि सिंघाड़े की खेती करने से पूर्व उन्होंने इसकी बारीकियों को सीखा। उन्होंने बताया है, कि सिंघाड़े की फसल तैयार होने में अन्य फसलों की तुलना में ज्यादा समय लेती है। ऐसी स्थिति में इसकी खेती करने वाले किसान भाइयों को थोड़ा धैर्य के साथ कार्य करना पड़ेगा।

किसी फसल में हानि हो तो दूसरी फसल शुरू करदें

प्रगतिशील किसान साहेब अपने गांव में लगभग दो वर्ष से सिंघाड़े की खेती कर रहे हैं। इनका कहना है, कि रबी सीजन के दौरान ये गेहूं एवं चना की भी खेती करते हैं। इससे भी उन्हें काफी मोटी आय हो जाती है। 55 वर्षीय साहेब जी ने बताया है, कि यदि आधुनिक विधि से खेती की जाए, तो आप कम खर्चे में अच्छी आमदनी कर सकते हैं। बस इसके लिए आपको थोड़ा परिश्रम करना पड़ेगा। उनकी मानें तो यदि किसी एक फसल की खेती में बार-बार हानि हो रही है, तो किसान को तुरंत दूसरी फसल की खेती शुरू कर देनी चाहिए।
सेवानिवृत फौजी महज 8 कट्ठे में सब्जी उत्पादन कर प्रति माह लाखों की आय कर रहा है

सेवानिवृत फौजी महज 8 कट्ठे में सब्जी उत्पादन कर प्रति माह लाखों की आय कर रहा है

राजेश कुमार का कहना है, कि उन्होंने वीएनआर सरिता प्रजाति के कद्दू की खेती की है। बुवाई करने के एक माह के उपरांत इसकी पैदावार शुरू हो गई। नौकरी से सेवानिवृत होने के उपरांत अधिकतर लोग विश्राम करना ज्यादा पसंद करते हैं। उनकी यही सोच रहती है, कि पेंशन के सहयोग से आगे की जिन्दगी आनंद और मस्ती में ही जी जाए। परंतु, बिहार में सेना के एक जवान ने रिटायरमेंट के उपरांत कमाल कर डाला है। उसने गांव में आकर हरी सब्जियों की खेती चालू कर दी है। इससे उसको पूर्व की तुलना में अधिक आमदनी हो रही है। वह वर्ष में सब्जी बेचकर लाखों रुपये की आमदनी कर रहे हैं। 

राजेश कुमार पूर्वी चम्पारण की इस जगह के निवासी हैं

सेवानिवृत फौजी पूर्वी चम्पारण जनपद के पिपरा कोठी प्रखंड मोजूद सूर्य पूर्व पंचायत के निवासी हैं। उनका नाम राजेश कुमार है, उन्होंने रिटायरमेंट लेने के पश्चात विश्राम करने की बजाए खेती करना पसंद किया। जब उन्होंने खेती आरंभ की तो गांव के लोगों ने उनका काफी मजाक उड़ाया। परंतु, राजेश ने इसकी परवाह नहीं की और अपने कार्य में लगे रहे। परंतु, जब मुनाफा होने लगा तो समस्त लोगों की बोलती बिल्कुल बंद हो गई। 

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कद्दू की बिक्री करने हेतु बाहर नहीं जाना पड़ता

विशेष बात यह है, कि राजेश कुमार को अपने उत्पाद की बिक्री करने के लिए बाजार में नहीं जाना पड़ता है। व्यापारी खेत से आकर ही सब्जियां खरीद लेते हैं। सीतामढ़ी, शिवहर, गोपालगंज और सीवान से व्यापारी राजेश कुमार से सब्जी खरीदने के लिए उनके गांव आते हैं। 

कद्दू की खेती ने किसान को बनाया मालामाल

किसान राजेश कुमार की मानें तो 8 कट्ठा भूमि में कद्दू की खेती करने पर 10 से 20 हजार रुपये की लागत आती थी। इस प्रकार उनका अंदाजा है, कि लागत काटकर इस माह वह 1.30 लाख रुपये का मुनाफा हांसिल कर लेंगे।

 

किसान राजेश ने 8 कट्ठे खेत में कद्दू का उत्पादन किया है

विशेष बात यह है, कि पूर्व में राजेश कुमार ने प्रयोग के रूप में पपीता की खेती चालू की थी। प्रथम वर्ष ही उन्होंने पपीता विक्रय करके साढ़े 12 लाख रुपये की आमदनी कर डाली। इसके पश्चात सभी लोगों का मुंह बिल्कुल बंद हो गया। मुनाफे से उत्साहित होकर उन्होंने आगामी वर्ष से केला एवं हरी सब्जियों की भी खेती शुरू कर दी। इस बार उन्होंने 8 कट्ठे भूमि में कद्दू की खेती चालू की है। वह 300 कद्दू प्रतिदिन बेच रहे हैं, जिससे उनको 4 से 5 हजार रुपये की आय अर्जित हो रही है। इस प्रकार वह महीने में डेढ़ लाख रुपये के आसपास आमदनी कर रहे हैं।

बिहार में धान की दो किस्में हुईं विकसित, पैदावार में होगी बढ़ोत्तरी

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बेगूसराय जनपद में 17061 हेक्टेयर के करीब बंजर जमीन है। वहीं, 11001 हेक्टेयर पर किसान खेती नहीं करते हैं। अब ऐसी स्थिति में इन जगहों पर किसान राजेंद्र विभूति प्रजाति की खेती कर सकते हैं। बतादें कि धान बिहार की मुख्य फसल है। नवादा, औरंगाबाद, पटना, गया, नालंदा और भागलपुर समेत तकरीबन समस्त जनपदों में धान की खेती की जाती है। मुख्य बात यह है, कि समस्त जनपदों में किसान मृदा के अनुरूप भिन्न-भिन्न किस्मों के धान की खेती किया करते हैं। सबका भाव एवं स्वाद भी भिन्न-भिन्न होता है। पश्चिमी चंपारण जनपद में सर्वाधिक मर्चा धान की खेती की जाती है। विगत अप्रैल महीने में इसको जीआई टैग भी मिला था। इसी प्रकार पटना जनपद में किसान मंसूरी धान अधिक उत्पादित करते हैं। यदि बेगूसराय के किसान धान की खेती करने की तैयार कर रहे हैं। तो उनके लिए आज हम एक शानदार समाचार लेकर आए हैं, जिसकी खेती चालू करते ही उत्पादन बढ़ जाएगा।

बेगूसराय जनपद की मृदा एवं जलवायु के अनुरूप दो किस्में विकसित की गईं

मीड़िया खबरों के अनुसार, कृषि विज्ञान केंद्र पूसा ने बेगूसराय जनपद की मृदा एवं जलवायु को ध्यान में रखते हुए धान की दो बेहतरीन प्रजातियों को विकसित किया है। जिसका नाम राजेन्द्र श्वेता एवं राजेन्द्र विभूति है। इन दोनों प्रजातियों की विशेषता यह है, कि यह कम वक्त में पक कर तैयार हो जाती है। मतलब कि किसान भाई इसकी शीघ्र ही कटाई कर सकते हैं। इसकी पैदावार भी शानदार होती है। साथ ही, कृषि विज्ञान केंद्र खोदावंदपुर के कृषि वैज्ञानिक डॉ. रामपाल ने बताया है, कि जून के प्रथम सप्ताह से बेगूसराय जनपद में किसान इन दोनों धान की नर्सरी को तैयार कर सकते हैं।

यहां राजेंद्र विभूति की खेती की जा सकती है

खोदावंदपुर के कृषि विशेषज्ञ अंशुमान द्विवेदी ने राजेंद्र श्वेता व राजेंद्र विभूति धान की प्रजाति का बेगूसराय में परीक्षण किया है। दोनों प्रजातियां ट्रायल में सफल रहीं। इसके उपरांत कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को इसकी रोपाई करने की सलाह दी है। यदि किसान भाई राजेन्द्र श्वेता एवं राजेन्द्र विभूति की खेती करना चाहते हैं, तो नर्सरी तैयार कर सकते हैं। साथ ही, कृषि विज्ञान केंद्र खोदावंदपुर में आकर खेती करने का प्रशिक्षण भी ले सकते हैं। विशेषज्ञों के बताने के मुताबिक, बेगूसराय जनपद के ग्रामीण क्षेत्रों में राजेंद्र विभूति की खेती की जा सकती है।

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विकसित दो किस्मों से प्रति हेक्टेयर चार क्विंटल उत्पादन बढ़ जाता है

बतादें, कि बेगूसराय जनपद में 17061 हेक्टेयर बंजर भूमि पड़ी है। वहीं, 11001 हेक्टेयर भूमि पर किसान खेती नहीं करते हैं। अब ऐसी स्थिति में इन जमीनों पर किसान राजेंद्र विभूति प्रजाति की खेती कर सकते हैं। इस किस्म की विशेषता यह है, कि यह पानी के बिना भी काफी दिनों तक हरा भरा रह सकता है। मतलब कि इसके ऊपर सूखे का उतना प्रभाव नहीं पड़ेगा। साथ ही, यह बेहद कम पानी में पककर तैयार हो जाती है। तो उधर राजेंद्र श्वेता प्रजाति को खेतों में पानी की आवश्यकता होती है। परंतु, इतना भी ज्यादा नहीं होती। दोनों प्रजाति की खेती से प्रति हेक्टेयर चार क्विंटल उत्पादन बढ़ जाता है।
बारिश की वजह से इस राज्य में बढ़े सब्जियों के भाव

बारिश की वजह से इस राज्य में बढ़े सब्जियों के भाव

ज्यादा बारिश की वजह से फसलों को काफी क्षति हुई है। इसके चलते परवल, मूली, फूलगोभी और बैंगन समेत कई प्रकार की सब्जियों की पैदावार में गिरावट आई है। बतादें, कि बारिश से मंडियों में सब्जियों की आवक बेहद प्रभावित होने के चलते सब्जियों का भाव एक बार पुनः बढ़ गया है। बिहार में विगत बहुत दिनों से रूक-रूक कर हो रही बरसात ने एक बार पुनः महंगाई बढ़ा दी है। विशेष कर सब्जियों के भाव में आग लग चुकी है। महंगाई का मामला यह है, कि गुरुवार शाम को बहुत सारी सब्जियों का भाव 100 रुपये किलो के लगभग हो चुका है। ऐसी स्थिति में आम आदनी की थाली से हरी सब्जियां विलुप्त हो गई हैं। साथ ही, व्यापारियों का कहना है, कि बारिश के साथ-साथ जितिया पर्व की वजह से भी सब्जियों की कीमत में इतनी ज्यादा वृद्धि दर्ज की गई है।

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परंपरागत खेती छोड़ हरी सब्जी की खेती से किसान कर रहा अच्छी कमाई दरअसल, राजधानी पटना सहित संपूर्ण बिहार राज्य में विगत चार- पांच दिन से थम-थम कर बारिश हो रही है। इसकी वजह से हरी सब्जियों की कीमत सातवें आसमान पर पहुंच चुकी है। ऐसा कहा जा रहा है, कि खराब मौसम के कारण मंडियों में सब्जियों की आवक भी काफी प्रभावित हुई है। इससे इनकी कीमत में 10 से 20 रुपये प्रति किलो की वृद्धि दाखिल की गई है।

कितनी कीमत पर बिक रही सब्जियां

पटना के स्थानीय सब्जी दुकानदारों का कहना है, कि विगत चार से पांच दिनों में सब्जियों की कीमत में अत्यधिक वृद्धि देखने को मिली है। चार दिन पूर्व जो फूलगोभी 40 रुपये किलो थी, अब वह 60 से 80 रूपये किलो रुपए किलो बिक रही है। इसी प्रकार टमाटर एवं नेनुआ भी काफी महंगे हो गए हैं। ये दोनों ही सब्जियां 30 रुपये किलो तक बिक रही हैं।

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नवरात्री के दिनों में कीमतें बढ़ेंगी

विशेष बात यह है, कि सरपुतिया (तुरई) सबसे अधिक लोगों को रूला रही है। गुरुवार शाम को यह 200 रुपये किलो हो गई थी, जब कि ऐसी स्थिति में यह 10 से 20 रुपये किलो बिकती थी। साथ ही, बहुत सारे लोग 10 रुपये पीस भी सरपुतिया (तुरई) खरीद रहे थे। साथ ही, किसानों का कहना है कि अक्टूबर माह में हुई मूसलाधार बारिश की वजह से सब्जियों के फूल झड़ गए हैं। वहीं, बैंगन, गोभी और मूली समेत बाकी सब्जियों की फसल खेत में ही खराब हो गई। ऐसे में सब्जियों की पैदावार में गिरावट देखने को मिली है। पटना बाजार समिति के फल सब्जी संघ के उपाध्यक्ष जय प्रकाश वर्मा ने बताया है, कि फलों की कीमत फिलहाल स्थिर है। परंतु, नवरात्र के दौरान इनकी कीमतों में भी उछाल देखने को मिल सकता है।
एकीकृत कृषि प्रणाली से खेत को बना दिया टूरिज्म पॉइंट

एकीकृत कृषि प्रणाली से खेत को बना दिया टूरिज्म पॉइंट

इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम मॉडल (Integrated Farming System Model) यानी एकीकृत या समेकित कृषि प्रणाली मॉडल (ekeekrt ya samekit krshi pranaalee Model) को बिहार के एक नर्सरी एवं फार्म में नई दशा-दिशा मिली है। पटना के नौबतपुर के पास कराई गांव में पेशे से सिविल इंजीनियर किसान ने इंटीग्रेटेड फार्मिंग (INTEGRATED FARMING) को विलेज टूरिज्म (Village Tourism) में तब्दील कर लोगों का ध्यान खींचा है। कराई ग्रामीण पर्यटन प्राकृतिक पार्क नौबतपुर पटना बिहार (Karai Gramin Paryatan Prakritik Park, Naubatpur, Patna, Bihar) महज दो साल में क्षेत्र की खास पहचान बन चुका है।

लीज पर ली गई कुल 7 एकड़ भूमि पर खान-पान, मनोरंजन से लेकर इंटीग्रेटेड फार्मिंग के बारे में जानकारी जुटाकर प्रेरणा लेने के लिए काफी कुछ मौजूद है। एकीकृत कृषि प्रणाली से खेती किसानी को ग्रामीण पर्यटन (Village Tourism) का केंद्र बनाने के लिए सिविल इंजीनियर दीपक कुमार ने क्या कुछ जतन किए, इसके बारे में जानने से पहले यह समझना जरूरी है कि आखिर इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) यानी एकीकृत या समेकित कृषि प्रणाली (ekeekrt ya samekit krshi pranaalee) क्या है।

एकीकृत या समेकित कृषि प्रणाली (Integrated Farming System)

एकीकृत कृषि प्रणाली किसानी की वह पद्धति है जिसमे, कृषि के विभिन्न घटकों जैसे फसल पैदावार, पशु पालन, फल एवं साग-सब्जी पैदावार, मधुमक्खी पालन, कृषि वानिकी, मत्स्य पालन आदि तरीकों को एक दूसरे के पूरक बतौर समन्वित तरीके से उपयोग में लाया जाता है। इस पद्धति की खेती, प्रकृति के उसी चक्र की तरह कार्य करती है, जिस तरह प्रकृति के ये घटक एक दूसरे के पूरक होते हैं। 

इसमें घटकों को समेकित कर संसाधनों की क्षमता, उत्पादकता एवं लाभ प्रदान करने की क्षमता में वृद्धि स्वतः हो जाती है। इस प्रणाली की सबसे खास बात यह है कि इसमें भूमि, स्वास्थ्य के साथ ही पर्यावरण का संतुलन भी सुरक्षित रहता है। हम बात कर रहे थे, बिहार में पटना जिले के नौबतपुर के नजदीकी गांव कराई की। यहां बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड में कार्यरत सिविल इंजीनियर दीपक कुमार ने समेकित कृषि प्रणाली को विलेज टूरिज्म का रूप देकर कृषि आय के अतिरिक्त विकल्प का जरिया तलाशा है।

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सफलता की कहानी अब तक

जैसा कि हमने बताया कि, इंटीग्रेटेड फार्मिंग में खेती के घटकों को एक दूसरे के पूरक के रूप मेें उपयोग किया जाता है, इसी तर्ज पर इंजीनियर दीपक कुमार ने सफलता की इबारत दर्ज की है। उन्होंने अपनी पुश्तैनी जमीन बेचकर, पिछले साल 2 जून 2021 को 7 एकड़ लीज पर ली गई जमीन पर अपने सपनों की बुनियाद खड़ी की थी। बचपन से कृषि कार्य में रुचि रखने वाले दीपक कुमार इस भूमि पर समेकित कृषि के लिए अब तक 30 लाख रुपए खर्च कर चुके हैं। इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम के उदाहरण के लिए उनका फार्म अब इलाके के साथ ही, देश के अन्य किसान मित्रों के लिए आदर्श मॉडल बनकर उभर रहा है। उनके फार्म में कृषि संबंधी सभी तरह की फार्मिंग का लक्ष्य रखा गया है। 

इस मॉडल कृषि फार्म में बकरी, मुर्गा-मुर्गी, कड़कनाथ, मछली, बत्तख, श्वान, विलायती चूहों, विदेशी नस्ल के पिग, जापानी एवं सफेद बटेर संग सारस का लालन-पालन हो रहा है। मुख्य फसलों के लिए भी यहां स्थान सुरक्षित है। आपको बता दें प्रगतिशील कृषक दीपक कुमार ने इंटीग्रेटेड फार्मिंग के इन घटकों के जरिए ही विलेज टूरिज्म का विस्तार कर कृषि आमदनी का अतिरिक्त जरिया तलाशा है। मछली एवं सारस के पालन के लिए बनाए गए तालाब के पानी में टूरिस्ट या विजिटर्स नौकायन का लुत्फ ले सकते हैं।

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इसके अलावा यहां तैयार रेस्टॉरेंट में वे अपनी पसंद की प्रजाति के मुर्गा-मुर्गी और मछली के स्वाद का भी लुत्फ ले सकते हैं। इस फार्म के रेस्टॉरेंट में कड़कनाथ मुर्गे की चाहत विजिटर्स पूरी कर सकते हैं। इलाके के लोगों के लिए यह फार्म जन्मदिन जैसे छोटे- मोटे पारिवारिक कार्यक्रमों के साथ ही छुट्टी के दिन सैरगाह का बेहतरीन विकल्प बन गया है।

अगले साल से होगा मुनाफा

दीपक कुमार ने मेरीखेती से चर्चा के दौरान बताया, कि फिलहाल फार्म से होने वाली आय उसके रखरखाव में ही खर्च हो जाती है। इससे सतत लाभ हासिल करने के लिए उन्हें अभी और एक साल तक कड़ी मेहनत करनी होगी। नौकरी के कारण कम समय दे पाने की विवशता जताते हुए उन्होंने बताया कि पर्याप्त ध्यान न दिए जाने के कारण लाभ हासिल करने में देरी हुई, क्योंकि वे उतना ध्यान फार्म प्रबंधन पर नहीं दे पाते जितने की उसके लिए अनिवार्य दरकार है।

हालांकि वे गर्व से बताते हैं कि उनकी पत्नी उनके इस सपने को साकार करने में हर कदम पर साथ दे रही हैं। उन्होंने अन्य कृषकों को सलाह देते हुए कहा कि जितना उन्होंने निवेश किया है, उतने मेंं दूसरे किसान लगन से मेहनत कर एकीकृत किसानी के प्रत्येक घटक से लाखों रुपए की कमाई प्राप्त कर सकते हैं।

इनका सहयोग

उन्होंने बताया कि वेटनरी कॉलेज पटना के वीसी एवं डॉक्टर पंकज से उनको समेकित कृषि के बारे में समय-समय पर बेशकीमती सलाह प्राप्त हुई, जिससे उनके लिए मंजिल आसान होती गई। वे बताते हैं कि इस प्रोजेक्ट पर उन्होंने किसी और से किसी तरह की आर्थिक मदद नहीं जुटाई है एवं अपने स्तर पर ही आवश्यक धन राशि का प्रबंध किया।

युवाओं को जोड़ने की इच्छा

समेकित कृषि को अपनाने का कारण वे बेरोजगारी का समाधान मानते हैं। उनका मानना है कि ऐसे प्रोजेक्ट्स के कारण इलाके के बेरोजगारों को आमदनी का जरिया भी प्राप्त हो सकेगा।

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नए प्रयोग

आधार स्थापना के साथ ही अब दीपक कुमार के कृषि फार्म पर गोबर गैस प्लांट ने काम करना शुरू कर दिया है। उन्होंने बताया कि उनके फार्म पर गाय, बकरी, भैंस, सभी पशुओं के प्रिय आहार, सौ फीसदी से भी अधिक प्रोटीन से भरपूर अजोला की भी खेती की जा रही है। इस चारा आहार से पशु की क्षमता में वृद्धि होती है।

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आपको बता दें अजोला घास जिसे मच्छर फर्न (Mosquito ferns) भी कहा जाता है, जल की सतह पर तैरने वाला फर्न है। अजोला अथवा एजोला (Azolla) छोटे-छोटे समूह में गठित हरे रंग के गुच्छों में जल में पनपता है। जैव उर्वरक के अलावा यह कुक्कुट, मछली और पशुओं का पसंदीदा चारा भी है। इसके अलावा समेकित कृषि प्रणाली आधारित कृषि फार्म में हाइड्रोपोनिक्स (Hydroponics) तकनीक द्वारा निर्मित हरा चारा तैयार किया जा रहा है। 

इसमेें गेहूं, मक्का का चारा तैयार होता है। आठ से दस दिन की इस प्रक्रिया के उपरांत चारा तैयार हो जाता है। अनुकूल परिस्थितियों में हाइड्रोपोनिक्स चारे में 9 दिन में 25 से 30 सेंटीमीटर तक वृद्धि दर्ज हो जाती है। इस स्पेशल कैटल डाइट में प्रोटीन और पाचन योग्य ऊर्जा का प्रचुर भंडार मौजूद है। उनके अनुभव से वे बताते हैं कि इस प्रक्रिया में लगने वाला एक किलो गेहूं या मक्का तैयार होने के बाद दस किलो के बराबर हो जाता है। अल्प लागत में प्रोटीन से भरपूर तैयार यह चारा फार्म में पल रहे प्रत्येक जीव के जीवन चक्र में प्राकृतिक रूप से कारगर भूमिका निभाता है।

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हाइड्रोपोनिक्स (Hydroponics) अर्थात जल संवर्धन विधि से हरा चारा तैयार करने में मिट्टी की जरूरत नहीं होती। इसे केवल पानी की मदद से अनाज उगाकर निर्मित किया जा सकता है। इस विधि से निर्मित चारे को ही हाइड्रोपोनिक्स चारा कहते हैं। यदि आप भी इस फार्म के आसपास से यदि गुजर रहे हों तो यहां समेकित कृषि प्रणाली में पलने बढ़ने वाले जीवों और उनके जीवन चक्र को समझ सकते हैं। 

अन्य कृषि मित्र इस तरह की खेती से अपने दीर्घकालिक लाभ का प्रबंध कर सकते हैं। (फार्म संचालक दीपक कुमार द्वारा दूरभाष संपर्क पर दी गई जानकारी पर आधारित, आप इस फार्म के बारे में फेसबुक लिंक पर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।) 

संपर्क नंबर - 8797538129, दीपक कुमार 

फेसबुक लिंक- https://m.facebook.com/Karai-Gramin-Paryatan-Prakritik-Park-Naubatpur-Patna-Bihar-100700769021186/videos/1087392402043515/

यूट्यूब लिंक-https://youtube.com/channel/UCfpLYOf4A0VHhH406C4gJ0A

बिहार के इस किसान ने मधु उत्पादन से शानदार कमाई कर ड़ाली है

बिहार के इस किसान ने मधु उत्पादन से शानदार कमाई कर ड़ाली है

बिहार राज्य के मुजफ्फरपुर जनपद के मूल निवासी किसान आत्मानंद सिंह मधुमक्खी पालन के जरिए वार्षिक लाखों रुपये का मुनाफा उठा रहे हैं। उन्होंंने बताया कि मधुमक्खी पालन उनका खानदानी पेशा है। उनके दादा ने इस व्यवसाय की नीम रखी थी, जिसके पश्चात उनके पिता ने इस व्यवसाय में प्रवेश किया और आज वह इस व्यवसाय को काफी सफल तरीके से चला रहे हैं।

कुछ ही दिन पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने देश के किसानों को खेती के नए तरीके सीखने की सलाह दी थी। उन्होंने कहा था कि खेती में कुछ नया करके किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। उनकी यह बात बिहार के एक किसान पर पूर्णतय सटीक बैठती है। उन्होंने फसलों की अपेक्षा मधुमक्खी पालन को आमदनी का जरिया बनाया और आज वे वार्षिक लाखों का मुनाफा अर्जित कर रहे हैं। दरअसल, हम बात कर रहे हैं, बिहार के किसान आत्मानंद सिंह की जो कि मुजफ्फरपुर जनपद के गौशाली गांव के निवासी हैं। वह एक मधुमक्खी पालक हैं और इसी के माध्यम से अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं। अगर शिक्षा की बात करें तो उन्होंने स्नातक तक पढ़ाई की है। 

मधु उत्पादक किसान आत्मानंद के पास मधुमक्खी के कितने बक्से हैं ?

उन्होंने बताया कि मधु उत्पादन के क्षेत्र में अपने काम और योगदान के लिए उन्हें बहुत सारे पुरस्कार भी हांसिल हो चुके हैं। उन्होंने बताया कि वैसे तो वार्षिक उनके पास 1200 बक्से तक हो जाते हैं। परंतु, वर्तमान में उनके पास 900 ही बक्से हैं। उन्होंने बताया कि इस बार मानसून और मौसम की बेरुखी के चलते मधुमक्खियों को भारी हानि हुई है। इस वजह से इस बार उनके पास केवल 900 डिब्बे ही बचे हैं। उन्होंने बताया कि मधुमक्खी पालन एक सीजनल व्यवसाय है, जिसमें मधुमक्खी के बक्सों की कीमत बढ़ती है। उन्होंने बताया कि मधुमक्खी पालन के इस व्यवसाय को चालू करने में किसी ने भी उनकी सहायता नहीं की। उन्होंने स्वयं ही इस व्यवसाय को खड़ा किया और आज बड़े पैमाने पर मधुमक्खी पालन कर रहे हैं।

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किसान आत्मानंद वार्षिक कितना मुनाफा कमा रहा है 

उन्होंने बताया कि मधुमक्खी पालन की वार्षिक लागत बहुत सारी चीजों पर निर्भर करती है। वैसे तो इसमें वन टाइम इन्वेस्टमेंट होती है, जो शुरुआती वक्त में मधुमक्खियों के बॉक्स पर आती है। इसके अतिरिक्त लागत में मेंटेनेंस और लेबर कॉस्ट भी शम्मिलित होती है। उन्होंने बताया कि ये सब बाजार पर निर्भर करता है। मधुमक्खियों के बॉक्स की कीमत सीजन के अनुरूप बढ़ती घटती रहती हैं। इसी प्रकार वर्षभर विभिन्न तरह की चीजों को मिलाकर उनकी लागत 15 लाख रुपये तक पहुँच जाती है। वहीं, उनकी वार्षिक आमदनी 40 लाख रुपये के करीब है, जिससे उन्हें 10-15 लाख रुपये तक का मुनाफा प्राप्त हो जाता है।

अब सरकार बागवानी फसलों के लिए देगी 50% तक की सब्सिडी, जानिए संपूर्ण ब्यौरा

अब सरकार बागवानी फसलों के लिए देगी 50% तक की सब्सिडी, जानिए संपूर्ण ब्यौरा

देश की बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण के कारण बागवानी फसलों अर्थात फलों और सब्जियों की मांग में तेजी से वृद्धि हुई है। जिसके फलस्वरूप किसानों का ध्यान बागवानी फसलों के उत्पादन की ओर ज़्यादा हो गया है। 

किसान इनके उत्पादन में रुचि भी ले रहे हैं। जिसके चलते केंद्र सरकार एसे किसानों की मदद करने, किसानों की आय बढ़ाने और बागवानी उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अनेक प्रकार की योजनाएं चला रही है। 

इसी बीच बिहार सरकार द्वारा बागवानी फसल उत्पादन करने वाले किसानों के लिए एक योजना चलाई गई है। जिसके अंतर्गत किसानों को बागवानी उत्पादन के लिए सब्सिडी की व्यवस्था की गई है।

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ने विभिन्न प्रकार के फलों और सब्जियों के उत्पादन में 50% की सब्सिडी एवं पपीता की खेती करने वाले किसानों को उत्पादन लागत का सिर्फ 25% खर्च करना होगा। मतलब किसानों को पपीता खेती पर 75% तक की मदद दी जा रही है।

बागवानी फसलें जिन पर सब्सिडी का प्रावधान :-

इस योजना के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की बागवानी फसलों में सब्सिडी का प्रावधान है जैसे पपीता की खेती करने में कृषक को 75% तक की सब्सिडी दी जाती है।

इसके साथ ही कुछ अन्य फसलें जैसे आंवला, जामुन, कटहल, अनानास, आम, लीची, अमरूद आडियानेक प्रकार की बागवानी करने वाले किसानों के लिए 50% की सब्सिडी का प्रावधान है।

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इस योजना का लाभ उठाने के लिए निम्न नियमों का पालन करना होगा :-

इस योजना में किसान को 50% लगभग 62 हजार रुपए सब्सिडी के तौर पर दी जाती है। जिसके कारण बिहार बागवानी विभाग इस योजना का लाभ कुछ नियमों के अंतर्गत दे रही है। 

जैसे जो भी किसान स्ट्रॉबेरी की खेती करना चाहते हैं उन्हें 1 एकड़ में 2500 स्ट्रॉबेरी पौधे लगाने होंगे और शर्त यह है कि उन्हें 2 मीटर की दूरी पर स्ट्रॉबेरी का पौधा लगाना होगा। इसके लिए विभाग द्वारा 1.25 लाख रुपए की लागत रखी गई है जिसका 50% रुपए सरकार किसान को सब्सिडी के तौर पर देगी। 

अगर किसान इन नियमों का पालन करते हैं तो वे इस योजना का लाभ उठाने के लिए आवेदन कर सकते हैं। इसके बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए बिहार बागवानी विभाग में संपर्क कर सकते हैं।

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आवेदन करने की तिथि :-

इस योजना में आवेदन करने की आखिरी तिथि 7 जुलाई रखी गई है। अर्थात जो किसान इस योजना का लाभ उठाना चाहते हैं वे इस योजना में 7 जुलाई तक आवेदन कर सकते हैं। 

लेकिन इसके पूर्व जो शर्तें इस योजना के अंतर्गत रखी गई है वह पूरी होना आवश्यक है इसके लिए किसानों का नियमानुसार खेत तैयार होना चाहिए। 

इस योजना में ऑनलाइन आवेदन करने के लिए बिहार सरकार ने ऑनलाइन आवेदन मांगे हैं जिसके लिए उनके द्वारा एक लिंक तैयार की गई है। horticulture.bihar.gov.in पर जाकर आप इस योजना के लिए आवेदन कर सकते हैं।