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बन्नी नस्ल की भैंस देती है 15 लीटर दूध, जानिए इसके बारे में

बन्नी नस्ल की भैंस देती है 15 लीटर दूध, जानिए इसके बारे में

बन्नी भैंस पाकिस्तान के सिंध प्रान्त की किस्म है, जो भारत में गुजरात प्रांत में दुग्ध उत्पादन के लिए मुख्य रूप से पाली जाती है। बन्नी भैंस का पालन गुजरात के सिंध प्रांत की जनजाति मालधारी करती है। जो दूध की पैदावार के लिए इस जनजाति की रीढ़ की हड्डी मानी जाती है। बन्नी नस्ल की भैंस गुजरात राज्य के अंदर पाई जाती है। गुजरात राज्य के कच्छ जनपद में ज्यादा पाई जाने की वजह से इसे कच्छी भी कहा जाता है। यदि हम इस भैंस के दूसरे नाम ‘बन्नी’ के विषय में बात करें तो यह गुजरात राज्य के कच्छ जनपद की एक चरवाहा जनजाति के नाम पर है। इस जनजाति को मालधारी जनजाति के नाम से भी जाना जाता है। यह भैंस इस समुदाय की रीढ़ भी कही जाती है।

भारत सरकार ने 2010 में इसे भैंसों की ग्यारहवीं अलग नस्ल का दर्जा हांसिल हुआ

बाजार में इस भैंस की कीमत 50 हजार से लेकर 1 लाख रुपये तक है। यदि इस भैंस की उत्पत्ति की बात की जाए तो यह भैंस पाकिस्तान के सिंध प्रान्त की नस्ल मानी जाती है। मालधारी नस्ल की यह भैंस विगत 500 सालों से इस प्रान्त की मालधारी जनजाति अथवा यहां शासन करने वाले लोगों के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण पशुधन के रूप में थी। पाकिस्तान में अब इस भूमि को बन्नी भूमि के नाम से जाना जाता है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि भारत के अंदर साल 2010 में इसे भैंसों की ग्यारहवीं अलग नस्ल का दर्जा हांसिल हुआ था। इनकी शारीरिक विशेषताएं अथवा
दुग्ध उत्पादन की क्षमता भी बाकी भैंसों के मुकाबले में काफी अलग होती है। आप इस भैंस की पहचान कैसे करें।

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बन्नी भैंस की कितनी कीमत है

दूध उत्पादन क्षमता के लिए पशुपालकों में प्रसिद्ध बन्नी भैंस की ज्यादा कीमत के कारण भी बहुत सारे पशुपालक इसे खरीद नहीं पाते हैं। आपको बता दें एक बन्नी भैंस की कीमत 1 लाख रुपए से 3 लाख रुपए तक हो सकती है।

बन्नी भैंस की क्या खूबियां होती हैं

बन्नी भैंस का शरीर कॉम्पैक्ट, पच्चर आकार का होता है। इसके शरीर की लम्बाई 150 से 160 सेंटीमीटर तक हो होती है। इसकी पूंछ की लम्बाई 85 से 90 सेमी तक होती है। बतादें, कि नर बन्नी भैंसा का वजन 525-562 किलोग्राम तक होता है। मादा बन्नी भैंस का वजन लगभग 475-575 किलोग्राम तक होता है। यह भैंस काले रंग की होती है, लेकिन 5% तक भूरा रंग शामिल हो सकता है। निचले पैरों, माथे और पूंछ में सफ़ेद धब्बे होते हैं। बन्नी मादा भैंस के सींग ऊर्ध्वाधर दिशा में मुड़े हुए होते हैं। साथ ही कुछ प्रतिशत उलटे दोहरे गोलाई में होते हैं। नर बन्नी के सींग 70 प्रतिशत तक उल्टे एकल गोलाई में होते हैं। बन्नी भैंस औसतन 6000 लीटर वार्षिक दूध का उत्पादन करती है। वहीं, यह प्रतिदिन 10 से 18 लीटर दूध की पैदावार करती है। बन्नी भैंस साल में 290 से 295 दिनों तक दूध देती है।
अपने दुधारू पशुओं को पिलाएं सरसों का तेल, रहेंगे स्वस्थ व बढ़ेगी दूध देने की मात्रा

अपने दुधारू पशुओं को पिलाएं सरसों का तेल, रहेंगे स्वस्थ व बढ़ेगी दूध देने की मात्रा

पशुपालन या डेयरी व्यवसाय एक अच्छा व्यवसाय माना जाता है। पशुपालन करके लोग को अच्छा लाभ मिल रहा हैं। गाय भैंस के दूध से पनीर मक्खन आदि सामग्री बनती है, जिनका बाजार में काफी अच्छा पैसा मिलता है। कई बार आपके पशु बीमार हो जाते हैं, जिसके कारण उनमें दूध देने की क्षमता कम हो जाती है। आपका पशु स्वस्थ होगा तभी वह अच्छी मात्रा में दूध दे सकेगा। पशु के अच्छे स्वास्थ्य के लिए पशु के अच्छे आहार का होना जरूरी है।


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सरसों का तेल ऊर्जा बढ़ाने में सहायक

डॉक्टर के अनुसार, जब आपके पशु बीमार हो तो उन्हें सरसों का तेल पिलाना चाहिए। क्योंकि सरसों के तेल में वसा की मात्रा अधिक होती है  तथा वह उनके शरीर को पर्याप्त ऊर्जा व ताक़त प्रदान करती है‌।

पशुओं को कब देना चाहिए सरसों का तेल ?

गाय भैंस के बच्चे होने के बाद भी उन्हें सरसों का तेल पिलाया जा सकता है, जिससे कि उनके अंदर आई हुई कमजोरी को दूर किया जा सके। पशु चिकित्सकों के अनुसार, गर्मियों में पशुओं को सरसों का तेल पिलाना चाहिए, जिससे कि लू लगने की संभावना कम हो तथा उनमें लगातार ऊर्जा का संचार होता रहे। इसके अलावा, सर्दियों में भी पशुओं को सरसों का तेल पिलाया जा सकता है, जिससे कि उनके अंदर गर्मी बनी रहे।

पशुओं के दूध देने की बढ़ेगी क्षमता

सरसों का तेल पिलाने से पशुओं में पाचन प्रक्रिया दुरूश्त रहती है। इससे पशु को एक अच्छा आहार मिलता है। पशु का स्वास्थ्य सही रहता है तथा स्वस्थ दुधारू पशु, दूध भी अच्छी मात्रा में देते हैं।

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क्या पशुओं को रोज पिलाना चाहिए सरसों का तेल ?

पशु चिकित्सकों के अनुसार, रोज सरसों का तेल पिलाना पशुओं के लिए फायदेमंद नहीं होगा। पशुओ को सरसों का तेल तभी देना चाहिए जब वे अस्वस्थ हो, ताकि उनके अंदर ऊर्जा का संचार हो सके।

क्या गैस बनने पर भी पिलाना चाहिए सरसों का तेल ?

यदि आपके पशुओं के पेट में गैस बनी है, तो उन्हें सरसों का तेल अवश्य पिलाना चाहिए। सरसों का तेल पीने से उनका पाचन प्रक्रिया या डाइजेशन सही होगा, जिससे कि वह स्वस्थ रहेंगे।
जानें कैसे आप बिना पशुपालन के डेयरी व्यवसाय खोल सकते हैं

जानें कैसे आप बिना पशुपालन के डेयरी व्यवसाय खोल सकते हैं

किसान भाई बिना गाय-भैंस पालन के डेयरी से संबंधित व्यवसाय चालू कर सकते हैं। इस व्यवसाय में आपको काफी अच्छा मुनाफा होगा। अगर आप भी कम पैसे लगाकर बेहतरीन मुनाफा कमाने के इच्छुक हैं, तो यह समाचार आपके बड़े काम का है। आज हम आपको एक ऐसे कारोबार के विषय में जानकारी देंगे, जिसमें आपकी मोटी कमाई होगी। परंतु, इसके लिए आपको परिश्रम भी करना होगा। भारत में करोड़ो रुपये का डेयरी व्यवसाय है। यदि आप नौकरी छोड़कर व्यवसाय करना चाहते हैं, तो हमारा यह लेख आपके लिए बेहद फायदेमंद है। दरअसल, हम अगर नजर डालें तो डेयरी क्षेत्र में विभिन्न तरह के व्यवसाय होते हैं। इसमें आप डेयरी प्रोडक्ट का व्यवसाय शुरू कर सकते हैं या गाय-भैंस पालकर दूध सप्लाई कर अच्छा मुनाफा कमा सकते है। परंतु, आप गाय-भैंस नहीं पालना चाहते हैं और डेयरी बिजनेस करना चाहते हैं तो भी आपके लिए अवसर है। आप मिल्क कलेक्शन सेंटर खोल सकते हैं।

दूध कलेक्शन की विधि

बहुत सारे गांवों के पशुपालकों से दूध कंपनी पहले दूध लेती है। ये दूध भिन्न-भिन्न स्थानों से एकत्रित होकर कंपनियों के प्लांट तक पहुंचता है। वहां इस पर काम किया जाता है, जिसमें पहले गांव के स्तर पर दूध जुटाया जाता है। फिर एक स्थान से दूसरे शहर या प्लांट में भेजा जाता है। ऐसे में आप दूध कलेक्शन को खोल सकते हैं। कलेक्शन सेंटर गांव से दूध इकट्ठा करता है और फिर इसको प्लांट तक भेजता है। विभिन्न स्थानों पर लोग स्वयं दूध देने आते हैं। वहीं बहुत सारे कलेक्शन सेंटर स्वयं पशुपालकों से दूध लेते हैं। ऐसे में आपको दूध के फैट की जांच-परख करनी होती है। इसे अलग कंटेनर में भण्डारित करना होता है। फिर इसे दूध कंपनी को भेजना होता है।

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कीमत इस प्रकार निर्धारित की जाती है

दूध के भाव इसमें उपस्थित फैट और एसएनएफ के आधार पर निर्धारित होते हैं। कोऑपरेटिव दूध का मूल्य 6.5 प्रतिशत फैट और 9.5 प्रतिशत एसएनएफ से निर्धारित होता है। इसके उपरांत जितनी मात्रा में फैट कम होता है, उसी तरह कीमत भी घटती है।

सेंटर की शुरुआत इस प्रकार से करें

सेंटर खोलने के लिए आपको ज्यादा रुपयों की जरूरत नहीं होती है। सबसे पहले आप दूध कंपनी से संपर्क करें। इसके पश्चात दूध इकट्ठा कर के उन्हें देना होता है। बतादें, कि यह कार्य सहकारी संघ की ओर से किया जाता है। इसमें कुछ लोग मिलकर एक समिति गठित करते हैं। फिर कुछ गांवों पर एक कलेक्शन सेंटर बनाया जाता है। कंपनी की ओर से इसके लिए धनराशि भी दी जाती है।
बिहार डेयरी एंड कैटल एक्सपो 2023 में 10 करोड़ के भैंसे ने लूटी महफिल

बिहार डेयरी एंड कैटल एक्सपो 2023 में 10 करोड़ के भैंसे ने लूटी महफिल

गुरुवार से बिहार की राजधानी पटना में बिहार डेयरी एंड कैटल एक्सपो 2023 की तीन दिवसीय प्रदर्शनी लगाई गई थी। इस एक्सपो में डेयरी एवं पशुपालन से संबंध रखने वाली दर्जनों कंपनियों के स्टॉल स्थापित किए गए हैं। इसी बीच एक भैंसा भी काफी चर्चा में बन गया है। सोशल मीडिया पर अब इसकी तस्वीर भी बड़ी तेजी से वायरल होती जा रही है। इस भैंसे की कीमत 10 करोड़ रुपये के आसपास तय की गई है। हरियाणा से पटना पहुंचा भैसा गोलू -2 अपने डेयरी फॉर्म में एसी रूम में रहता है। खाने के साथ-साथ गोलू पांच किलो सेब, पांच किलो चना तथा बीस किलो दूध हर रोज पीता है। दो लोग हर रोज इसका मसाज करते हैं। हरियाणा से आए किसान ने इस बात की जानकारी भी दी है।

गोलू भैंसा मुख्य रूप से कहा से आया था 

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस गोलू नाम का यह भैंसा हरियाणा से पटना लाया गया है। यह
भैंसा मुर्रा नस्ल का है। भैंसे के मालिक का कहना है, कि भैंसे की कीमत 10 करोड़ रुपये के आसपास है। इसके लिए भैंस के मालिक नरेंद्र सिंह को राष्ट्रपति से पद्मश्री भी मिल चुका है। इस भैंस का इस्तेमाल प्रजनन के लिए किया जाता है। 10 करोड़ रुपये की कीमत वाले भैंसे के मालिक नरेंद्र सिंह ने कहा है, कि वह भैंसा को प्रतिदिन साधारण चारा खिलाते हैं। भैंसा पर हर महीने करीब 50 से 60 हजार रुपये खर्च होते हैं। ये कीमती भैंसा पहले भी कई किसान मेलों में जा चुका है।

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गोलू-2 भैंसा उनके घर की तीसरी पीढ़ी माना जाता है 

किसान ने बताया कि 6 वर्ष का भैंसा गोलू-2 उनके घर की तीसरी पीढ़ी है। इसके दादा पहली पीढ़ी थे, जिसका नाम गोलू था। उसका बेटा बीसी 448-1 को गोलू-1 कहा जाता था। यह गोलू का पोता है, जिसका नाम गोलू- 2 रखा गया है। किसान ने बताया- हमारी कोशिश है कि देश भर के किसान ऐसे भैंसे से लाभ उठा सकें। सोशल मीडिया पर अब इस भैंसे की खूब चर्चा है। 
शेर से भी लड़ सकती है यह भैंस, साधारण भैंस से कहीं ज्यादा देती है दूध।

शेर से भी लड़ सकती है यह भैंस, साधारण भैंस से कहीं ज्यादा देती है दूध।

देश की सुदृढ़अर्थव्यवस्था के लिए खेती करने के साथ-साथ पशुपालन का भी बहुत ही अहम योगदान होता है। किसान खेती के साथ-साथ बड़ी संख्या में गाय भैंस और बकरी का पालन करके अच्छी खासी आमदनी प्राप्त करते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालन से किसानों को बहुत ही फायदा होता है। किसान गाय, भैंस और बकरी का दूध बेचकर बढ़िया मुनाफा अर्जित करते हैं। जाफराबादी नस्ल की भैंस आजकल किसानों के बीच बेहद लोकप्रिय है, यह भैंस अपनी ताकत और दूध देने की क्षमता के लिए काफी प्रसिद्ध है। मजबूत कद काठी वाली यह भैंस अधिक मात्रा में दूध देती है, इस के दूध में 8% से भी अधिक पोषण होता है, जिससे पीने वाले के शरीर को मजबूती मिलती है। माना तो यह भी जाता है, कि इस भैंस के अंदर इतनी ताकत होती है, कि यह शेरों से भी भिड़ सकती है।


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इस नस्ल की भैंस मुख्य तौर पर गुजरात में पाई जाती हैं।

गुजरात के गिर जंगलों से ताल्लुक रखने वाला जफराबादी नस्ल की यह भैंस रोजाना 30 से 35 लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती है यानी हर महीने यह भैंस हजार लीटर से भी ज्यादा दूध देती है। दूध का व्यापार करने वाले किसानों के लिए जाफराबादी भैंस काफी उपयुक्त मानी जाती है। जो किसान डेयरी का काम करते हैं, उनके लिए इस नस्ल की भैंस अच्छी कमाई का स्रोत बन सकती है। पशु पालन करने वाले किसानों के लिए सरकार के द्वारा आर्थिक सहायता भी दी जाती है। यह भैंस सबसे अधिक दुग्ध उत्पादन के लिए जानी जाती है, इस के दूध में रोग प्रतिरोधक क्षमता भी होती है। डेरी फार्मिंग छोटे/सीमांत किसानों और खेतिहर मजदूरों के लिए सहायक आय का एक अनिवार्य स्रोत है। दूध के अलावा जानवरों की खाद मिट्टी की उर्वरकता और फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए कार्बनिक पदार्थों का एक अच्छा स्रोत माना जाता है। भैंस फार्म का संचालन करना लगभग सभी मसौदा शक्ति की आपूर्ति करते हैं, क्योंकि कृषि अधिकतर आवधिक होती है। इसीलिए भैंस डेयरी फार्मिंग के माध्यम से अनेक व्यक्तियों को रोजगार मिलने की संभावना अधिक रहती है। जो किसान इस नस्ल की भैंस का पालन करके डेयरी व्यवसाय के माध्यम से अच्छी खासी आय अर्जित करना चाहते हैं। उन्हें अपने नजदीकी डेयरी फार्म और कृषि विश्वविद्यालय/ सैनी डेयरी फार्मों का दौरा करना चाहिए और डेयरी फार्मिंग की लाभप्रदता पर चर्चा करनी चाहिए। क्योंकि इस तरह के नस्लों वाली भैंस को पालने के लिए एक अच्छा व्यवहारिक प्रशिक्षण और विशेषज्ञता अत्यधिक जरूरी होती है।


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जाफराबादी भैंस का विशेष तौर पर ख्याल रखना होता है, इसके आहार और आराम का ख्याल रखना बेहद जरूरी माना जाता है। जो किसान इस नस्ल की भैंस का पालन करते हैं, उन्हें इसके आहार में संतुलन बनाए रखना अनिवार्य होता है। तोजो किसान पशुपालन में अपनी रुचि रखते हैं, उन्हें जाफराबादी नस्ल के भैंस को जरूर पालना चाहिए। मजबूत कद काठी वाली यह भैंस 1 महीने में हजार लीटर से भी ज्यादा दूध देती है। किसान इस भैंस का दूध निकाल कर डायरेक्ट बाजार में बेचकर बढ़िया मुनाफा कमा सकते हैं, इसके बच्चे भी बहुत ही जल्दी तैयार हो जाते है। इन्हें भी बेचकर किसान बढ़िया मुनाफा अर्जित कर सकते हैं, कुल मिलाकर बात करें तो जाफराबादी भैंस के पालने से आप लाखों का मुनाफा अर्जित कर सकते हैं।
हरियाणा की रेशमा भैंस ने 34 किलो दूध देकर बनाया सबसे ज्यादा दूध देने का रिकॉर्ड

हरियाणा की रेशमा भैंस ने 34 किलो दूध देकर बनाया सबसे ज्यादा दूध देने का रिकॉर्ड

ये भैंस हरियाणा के कैथल जिले के बूढ़ा खेड़ा गांव के तीन भाइयों संदीप, नरेश और राजेश की है | आपको बता दें की रेशमा का नाम सबसे ज्यादा दूध देने वाली भैंसो मैं शामिल हैरेशमा को सरकार की तरफ से मिल चुके है कई इनाम, नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड की तरफ से रेशमा नाम की भैंस को 33.8 लीटर दूध देने का रिकॉर्ड कायम करने का सर्टिफिकेट मिल चूका है | रेशमा रोजाना 33.8 लीटर दूध देकर एक नया कीर्तिमान स्थापित कर चुकी है रेश्मा से पहले हरियाणा के हिसार जिले के किसान सुखवीर ढांडा की भैंस सरस्वती ने 33 लीटर दूध दे कर ये रिकॉर्ड बनाया था | इस रिकॉर्ड को कैथल जिले की रेशमा भैंस ने 33.8 लीटर दूध दे कर खुद के नाम कर लिया है | चौथी बार 2022 में रेशमा को मां बनने पर नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड ने सबसे ज्यादा दूध देने वाली भैंस का सर्टिफिकेट भी दिया.| 

रेशमा भैंस के दूध में कितना फैट है और किस बयात में कितना दूध दिया आइये जानते है |

  • इसके दूध की फैट की गुणवत्ता 10 में से 9.31 है
  • रेशमा भैंस के मालिक संदीप बताते हैं कि रेशमा ने पहली बार जब बच्चे को जन्म दिया तो 19-20 लीटर दूध दिया था
  • दूसरी बार उसने 30 लीटर दूध दिया.जब तीसरी बार 2020 में रेशमा मां बनी तब भी रेशमा ने 33.8 लीटर दूध देकर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया था.|
  • इसके बाद चौथी बार रेशमा 2022 में मां बनी तब उसे नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड ने सबसे ज्यादा दूध देने वाली भैंस का सर्टिफिकेट भी दिया


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क्या खाती है रेश्मा भैंस जाने डाइट के बारे में ?

  • रेश्मा भैंस के मालिक संदीप कहते हैं कि वह ज्यादा भैंसों का पालन नहीं करते हैं.| फिलहाल उनके पास तीन भैंसे ही हैं इन्हीं भैंसों की वह अच्छे तरीके से देखभाल करते हैं और उनसे बढ़िया दूध उत्पादन लेते हैं |
  •  रेशमा की डाइट के बारे में बताते हुए संदीप कहते हैं कि उसे एक दिन में 20 किलो पशु दाना खाने के लिए दिया जाता है साथ ही अच्छी मात्रा में हरा चारा भी उसकी डाइट में शामिल है
  • इसके अलावा अन्य जानवरों की तरह उसे दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए  मिनरल मिक्सचर को दाने में मिला कर दिया जाता है
  • रेशमा को तेल और गुड़ भी भोजन के तौर पर दिया जाता है

पाँचवे बयात में भी रेशमा का रिकॉर्ड है कायम |

संदीप के मुताबिक रेशमा भैंस 5 बार बच्चों को जन्म दे चुकी है.| 5 बयात में अभी भी उसकी दूध देने की क्षमता अच्छी-खासी बनी हुई है | हालांकि, अभी तक रेशमा का रिकॉर्ड टूट नहीं पाया है.कोशिश है ये रिकॉर्ड आगे भी बरकरार रहे| संदीप का कहना है की रेशमा 5 बच्चों को जन्म दे चुकी है. उसके बच्चे भी ऊंची कीमत पर बिकते हैं.
अब पशु पालक 10 किलोमीटर के दायरे तक कर पाएंगे अपने जानवरों की लोकेशन ट्रैक; जाने कैसे काम करता है डिवाइस

अब पशु पालक 10 किलोमीटर के दायरे तक कर पाएंगे अपने जानवरों की लोकेशन ट्रैक; जाने कैसे काम करता है डिवाइस

नई-नई तकनीकों के जरिए खेती का आधुनिकीकरण हो रहा है और इससे हम पूरी तरह से अवगत हैं. बहुत से ऐसे गैजेट्स और तकनीक आ गई है जिसकी मदद से किसानों की मेहनत, समय, पैसा और पानी सभी चीजों की बचत हो रही है. लेकिन अब एक नई चीज पशु पालकों की जिंदगी को आसान बनाने के लिए सामने आई है. वैज्ञानिकों ने पशु पालन को भी आसान बनाने के लिए एक बहुत ही बेहतरीन तकनीक खोज निकाली है और इसका नाम है काउ मॉनिटर सिस्टम. इस सिस्टम को भारतीय डेयरी मशीनरी कंपनी (IDMC) ने बनाकर तैयार किया है.

जाने क्या है काउ मॉनिटर सिस्टम??

इसमें आप के मवेशी के गले में एक बेल्ट जैसी चीज पहनाई जाती है और इसकी मदद से
पशु पालक अपने पशुओं की लोकेशन को जान सकते हैं. इसके अलावा लोकेशन बताने के साथ-साथ इस बेल्ट के जरिए पशु के फुट स्टेप और उनकी गतिविधियों से उनमें होने वाली संभव बीमारियों के बारे में भी पहले से ही पता लगाया जा सकता है. माना जा रहा है कि पशु पालकों को लंबी जैसी महामारी या फिर किसी भी तरह की दुर्घटनाओं से बचने में यह तकनीक अच्छी खासी मदद करने वाली है. नेशनल डेहरी डेवलपमेंट बोर्ड के अधीन आने वाली भारतीय डेयरी मशीनरी कंपनी  का यह अविष्कार किसानों और पशु पालकों के लिए बहुत ही लाभदायक साबित होने वाला है.

काउ मॉनिटर सिस्टम को इस्तेमाल करने का तरीका?

इसमें आपको अपने गाय या भैंस के गले में एक बेल्ट नुमा डिवाइस बांध लेना है जिसमें जीपीएस लगा हुआ है. अगर आपके पशु घूमते घूमते कहीं दूर निकल जाते हैं तो आप इस बेल्ट की मदद से उन को ट्रैक कर सकते हैं. इसमें सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें आप लगभग 10 किलोमीटर तक के दायरे में अपने पशुओं को ट्रैक कर सकते हैं. इसके अलावा यह बेल्ट पशुओं के गर्भधान के बारे में भी पालक को अपडेट देगी जो काफी लाभदायक है. ये भी पढ़ें: इस राज्य के पशुपालकों को मिलेगा भूसे पर 50 फीसदी सब्सिडी, पशु आहार पर भी मिलेगा अब ज्यादा अनुदान

कितनी रहेगी डिवाइस की कीमत?

भारतीय डेयरी मशीनरी कंपनी यानी आईडीएमसी के काउ मॉनीटरिंग सिस्टम की बैटरी लाइफ 3 से 5 साल तक बताई गई है और इसकी कीमत 4,000 से 5,000 रुपये है. रिपोर्ट की मानें तो माना जा रहा है कि अगले 3 से 4 महीने के अंदर अंदर यह बेल्ट पशुपालक द्वारा खरीदने के लिए उपलब्ध करवा दी जाएगी.
नेपियर घास को खिलाने से बढ़ती है पशुओं की दूध देने की क्षमता

नेपियर घास को खिलाने से बढ़ती है पशुओं की दूध देने की क्षमता

पशुओं की दूध की क्षमता बढ़ाने के लिए किसान एवं पशुपालक काफी प्रयासरत रहते हैं। इसी विषय से संबंधित हम आज आपको बताने जा रहे हैं, नेपियर घास के बारे में। इस घास को पशुओं को खिलाते ही पशुओं में दूध देने की क्षमता 10 से 15 फीसद तक बढ़ जाती है। इस परिस्थिति में पशुपालक अत्यधिक दूध विक्रय कर अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं। जैसा कि हम जानते हैं, कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां पर 75 फीसद जनसँख्या आज तक भी गांव में ही रहती है, जो कि खेती एवं पशुपालन से संबंधित हुई है। इसका जीवन यापन भी कृषि एवं पशुपालन के माध्यम से ही चलता है। साथ ही, बहुत सारे किसान गांव में ऐसे भी मौजूद होते हैं, जो पूर्णतय भूमिहीन होते हैं। ऐसी स्थिति में वह पशुपालन करके स्वयं के घर का खर्च चलाते हैं। इसके लिए वह दूध सहित मक्खन एवं घी विक्रय करते हैं, जिससे उनको मोटी आय होती है। विशेष बात यह है, कि पशुपालन से संबंधित बेहतरीन आय तभी की जा सकती है, जब उनके पशु ज्यादा दूध दें। इसके लिए पशुओं से अधिक दूध निकालने हेतु उन्हें बेहतरीन एवं पौष्टिक आहार भी देना आवश्यक होगा। ऐसी स्थिति में हरी- हरी घासें पशुओं की सेहत और दूध वृद्धि में कारगार भूमिका निभाएंगी। आपको बतादें कि, हरी- हरी घास का सेवन करने से पशुओं की दूध देने की क्षमता में बढ़ोत्तरी हो जाती है। इस वजह से बरसीम, जिरका, गिनी एवं पैरा जैसी घास पशुओं को खिलाना उत्तम रहता है। हालाँकि, इन समस्त घासों में नेपियर घास सर्वाधिक अच्छी मानी जाती है।

निरंतर पांच वर्ष तक घास की कटाई कर सकते हैं

जानकारों के अनुसार, नेपियर घास की खेती हर प्रकार की मृदा में की जा सकती है। इस वजह से अत्यधिक परिश्रम करने की भी आवश्यकता नहीं होती है। विशेष बात यह है, कि इसकी सिंचाई भी काफी कम करनी पड़ती है। इस वजह से इसकी लागत में काफी कमी आती है। नेपियर की सबसे बड़ी विशेषता यह है, कि इसकी एक बार रोपाई के उपरांत आप पांच वर्ष तक हरा चारा काट सकते हैं। इसकी प्रथम कटाई खेती शुरू करने के 65 दिन उपरांत की जाती है। इसके उपरांत आप 35- 40 दिनों के समयांतराल पर निरंतर पांच वर्ष तक कटाई की जा सकती है। यह भी पढ़ें: जाने कैसे लेमन ग्रास की खेती करते हुए किसानों की बंजर जमीन और आमदनी दोनों में आ गई है हरियाली

किसान दूध विक्रय से बेहतर आय अर्जित कर सकते हैं

आपको बतादें कि नेपियर घास को हम बंजर भूमि पर भी उगा सकते हैं। साथ ही, किसान खेत की मेढ़ पर भी इसको रोप सकते हैं। जानकारी के लिए बतादें कि नेपियर की रोपाई फरवरी से जुलाई माह के मध्य की जाती है। इसके खेत में जल निकासी हेतु बेहतरीन सुविधा होनी आवश्यक है । मीडिया खबरों के अनुसार, इस घास में 10 फीसद तक प्रोटीन रहता है। साथ ही, रेशा 30 प्रतिशत, जबकि कैल्सियम 0.5 फीसद होता है। इसको दलहन के चारे सहित मिश्रण कर पशुओं को खिलाना चाहिए। इसके सेवन से पशुओं में दूध देने की क्षमता 10 से 15 फीसद तक वृद्धि हो जाती है। ऐसी स्थिति में पशुपालक अधिक दूध विक्रय कर बेहतरीन आय अर्जित कर सकते हैं।
पशुओं की जान ले सकता है लंगड़ा बुखार, इस तरह से पहचानें लक्षण

पशुओं की जान ले सकता है लंगड़ा बुखार, इस तरह से पहचानें लक्षण

भारत के किसान खेती-किसानी के साथ-साथ पशुपालन भी करते हैं ताकि उन्हें कुछ अतिरिक्त आमदनी होती रहे। इसके लिए सरकार भी किसानों को पशुपालन के प्रति जागरुक करती है तथा समय-समय पर पशुपालन के लिए प्रोत्साहित करती रहती है। पशुपालन के लिए सरकार समय-समय पर किसानों को सब्सिडी भी देती है। हालांकि इस प्रकार की सहायता से भी पशुपालन में किसानों की चुनौतियां कम नहीं होती। कई बार दुधारू पशुओं में ऐसी बीमारियां लग जाती हैं जिनके कारण किसानों को काफी परेशान होना पड़ता है, इसके साथ ही कई बार किसानों को पशुपालन में घाटा भी लग जाता है। इन दिनों दुधारू पशुओं के बीच लंगड़ा बुखार का कहर देखने को मिल रहा है। पशुओं को होने वाली यह बीमारी जानलेवा हो सकती है, जिसके कारण पशुओं की मौत भी हो सकती है। यह बीमारी भैंस और गाय के साथ-साथ अन्य दूध देने वाले पशुओं में भी फैल जाती है। इस बीमारी के लिए क्लोस्टरीडियम चौवई नामक जीवाणु उत्तरदायी है, जो पशुओं में घाव के माध्यम से तथा दूषित चारागाह में चरने के दौरान चारे के माध्यम से फैलते हैं।

यह होते हैं लंगड़ा बुखार के लक्षण

यह एक जीवाणु जनित बीमारी है जिसके कारण पशु को तेज बुखार आता है। इसके साथ ही पशु के पिछली व अगली टांगों के ऊपरी भाग में भारी सूजन आ जाती है। सूजन वाली जगह सूख कर उनकी चमड़ी कड़ी हो जाती है। कुछ समय बाद इसी जगह पर घाव हो जाता है। धीरे-धीरे जीवाणुओं की मदद से यह रोग पूरे शरीर में फैल जाता है। इस बीमारी का जल्द से जल्द इलाज करवाना बहुत जरूरी है अन्यथा पशुओं की मृत्यु भी हो सकती है। इस बीमारी की रोकथाम में प्रोकेन पेनिसिलीन के टीके काफी उपयोगी पाए गए हैं। इसलिए बीमारी की रोकथाम में प्रोकेन पेनिसिलीन के टीकों का बहुतायत से उपयोग किया जाता है। ये भी पढ़े: गर्मियों में हरे चारे के अभाव में दुधारू पशुओं के लिए चारा

ऐसे करें लंगड़ा बुखार से पशुओं का बचाव

एक बार किसी भी पशु के लंगड़ा बुखार की जद में आने पर उसके बचने की संभावना बहुत कम हो जाती है। फिर भी कुछ उपाय करके इस रोग को अन्य पशुओं तक पहुंचने से रोका जा सकता है, साथ ही पशुओं की बचाया भी जा सकता है। एक बार बीमार होने पर बीमार पशु को अन्य पशुओं से अलग कर देना चाहिए। इसके साथ ही समय पर टीकाकरण करवा दें। सूजन में चीरा मारकर खोल देना चाहिए ताकि जीवाणु हवा के संपर्क में आ सकें। इससे जीवाणुओं का प्रभाव काफी कम हो जाता है। बीमारी के लक्षण दिखाई देते ही पशु का चिकित्सक से पशु का इलाज कराना चाहिए।
दुधारू पशु खरीदने पर सरकार देगी 1.60 लाख रुपये तक का लोन, यहां करें आवेदन

दुधारू पशु खरीदने पर सरकार देगी 1.60 लाख रुपये तक का लोन, यहां करें आवेदन

भारत सरकार किसानों की आय बढ़ाने को लेकर नए प्रयास करती रहती है। जिसके अंतर्गत किसानों को खेती बाड़ी के अलावा पशुपालन के लिए भी प्रोत्साहित करती है। इसी कड़ी में अब हरियाणा की सरकार किसानों को दुधारू गाय और भैंस पालने पर लोन तथा सब्सिडी की सुविधा प्रदान कर रही है। जिसको देखते हुए सरकार ने पशु क्रेडिट कार्ड योजना की शुरुआत की है। इस योजना के माध्यम से पशुपालन के इच्छुक किसानों को बिना कुछ गिरवी रखे 1.60 लाख रुपये तक का लोन दिया जा रहा है। पशु क्रेडिट कार्ड के माध्यम से गाय या भैंस खरीदने पर किसानों को 7 फीसदी ब्याज देना होता है। यदि किसान समय से अपना ब्याज चुकाते हैं तो इन 7 फीसदी में 3 फीसदी ब्याज सरकार वहन करती है। किसानों को वास्तव में मात्र 4 फीसदी ब्याज का ही भुगतान करना होता है। जिसे किसान अगले 5 साल तक चुका सकते हैं। जिन किसानों के पास खुद की जमीन है और उसमें वो पशु आवास या चारागाह बनाना चाहते हैं, वो भी इस योजना के अंतर्गत लोन प्राप्त कर सकते हैं। ये भी पढ़े: ये राज्य सरकार दे रही है पशुओं की खरीद पर भारी सब्सिडी, महिलाओं को 90% तक मिल सकता है अनुदान हरियाणा की सरकार ने भिन्न-भिन्न पशुओं पर भिन्न-भिन्न लोन की व्यवस्था की है। कृषि वेबसाइट के अनुसार, पशु किसान क्रेडिट कार्ड का उपयोग करके गाय खरीदने पर 40,783 रुपये, भैंस खरीदने पर 60,249 रुपये, सूअर खरीदने पर 16,237 रुपये और भेड़ या बकरी खरीदने पर 4,063 रुपये का लोन मुहैया करवाया जाएगा। इसके साथ ही मुर्गी खरीदने पर प्रति यूनिट 720 रुपये का लोन प्रदान किया जाएगा। इस योजना के अंतर्गत लोन लेने के लिए किसानों को किसी भी प्रकार की कोई चीज गिरवी नहीं रखनी होगी। साथ ही किसान भाई पशु क्रेडिट कार्ड का उपयोग बैंक के भीतर डेबिट कार्ड के रूप में भी कर सकते हैं। इस योजना के अंतर्गत अभी तक हरियाणा के 53 हजार से ज्यादा किसान लाभ प्राप्त कर चुके हैं। इन किसानों को सरकार के द्वारा 700 करोड़ रुपये से ज्यादा का लोन मुहैया करवाया जा चुका है। योजना के अंतर्गत दुधारू पशु खरीदने के लिए अभी तक 5 लाख किसान आवेदन कर चुके हैं, जिनमें से 1 लाख 10 हजार किसानों के आवेदनों को मंजूरी मिल चुकी है। जिन किसानों को हाल ही में मंजूरी दी गई है उन्हे भी जल्द से जल्द पशु क्रेडिट कार्ड उपलब्ध करवा दिया जाएगा।

पशु क्रेडिट कार्ड योजना के अंतर्गत ये बैंक देते हैं लोन

किसानों को 'पशु क्रेडिट कार्ड योजना' का लाभ देने के लिए सरकार ने कुछ बैंकों का चयन किया है। जिनके माध्यम से किसान जल्द से जल्द अपना 'पशु क्रेडिट कार्ड' बनवा सकते हैं। इनमें सरकार ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक, एचडीएफसी बैंक, एक्सिस बैंक, बैंक ऑफ़ बड़ौदा और आईसीआईसीआई बैंक को शामिल किया है।

पशु क्रेडिट कार्ड योजना के लिए आवश्यक दस्तावेज

आवेदक हरियाणा राज्य का स्थायी निवासी  होना चाहिए, इसके साथ ही लोन लेने के लिहाज से सिविल ठीक होना चाहिए। आवेदक के पास आधार कार्ड ,पेन कार्ड ,वोटर आईडी कार्ड, बैंक खाता डिटेल, मोबाइल नंबर और पासपोर्ट साइज फोटो होना चाहिए। ये भी पढ़े: यह राज्य सरकार किसानों को मुफ़्त में दे रही है गाय और भैंस

ऐसे करें 'पशु क्रेडिट कार्ड' बनवाने के लिए आवेदन

जो भी व्यक्ति 'पशु क्रेडिट कार्ड' बनवाना चाहता है उसे ऊपर बताए गए किसी भी बैंक की नजदीकी शाखा में जाना चाहिए। इसके बाद वहां पर आवेदन पत्र लेकर आवेदन को सावधानी पूर्वक भरें। साथ ही आवेदन के साथ दस्तावेजों की फोटो कॉपी चस्पा करें। ये सभी दस्तावेज बैंक अधिकारी के पास जमा कर दें। आवेदन सत्यापन के एक महीने बाद किसान को पशु केडिट कार्ड दे दिया जायेगा।
NDRI करनाल ने IVF क्लोनिंग तकनीक के जरिए पैदा किए मुर्रा भैंस के दो क्लोन

NDRI करनाल ने IVF क्लोनिंग तकनीक के जरिए पैदा किए मुर्रा भैंस के दो क्लोन

वैज्ञानिक निरंतर रूप से किसानों को अच्छी आय कराने के लिए नए नए शोध करते रहते है। साथ ही, एनडीआरआई द्वारा आईवीएफ क्लोनिंग तकनीक के माध्यम से मुर्रा भैंस के दो क्लोन पैदा किए जा चुके हैं जो कि हाइजेनिक मटेरियल युक्त हैं। इसके माध्यम से पैदा होने वाली भैंस में अधिक दूध की क्षमता और दूध उत्पादन भी काफी ज्यादा रहता है। इससे अच्छी गुणवत्ता वाली भैंस पैदा होती हैं। बढ़ती जनसँख्या के चलते देश में दूध की मांग में निरंतर बढ़ोत्तरी होती जा रही है, इसी वजह से समय-समय पर दूध के दाम बढ़ने की खबर भी सुनने को मिलती हैं। ऐसी स्थितियों को देखते हुए भारत में सफेद क्रांति एवं दुग्ध उत्पादन को बढ़ाने के लिए विभिन्न कदम उठाए जा रहे हैं। किसान और पशुपालकों की आमदनी को अच्छी करने के लिए पशुपालन योजनाओं के जरिए आर्थिक एवं तकनीकी सहायता मुहैय्या कराई जाती हैं। इसी कड़ी में किसानों को दुग्ध उत्पादन हेतु प्रोत्साहित किया जा रहा है। यह भी पढ़ें : हरियाणा की रेशमा भैंस ने 34 किलो दूध देकर बनाया सबसे ज्यादा दूध देने का रिकॉर्ड साथ ही, पशुपालकों को भी खूब सारी सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं। वैज्ञानिकों द्वारा शोध करके बेहतरीन नस्लें विकसित करली गई हैं। जिसकी सहायता से अच्छी दूध देने वाली भैंस की नस्लों में सुधार करने पर कार्य किया जाएगा। इसी कड़ी में विभिन्न राज्यों में नस्ल सुधार कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं जिससे कि अच्छी दूध देने की क्षमता वाले एवं गुणवत्तापूर्ण पशुओं की तादात में वृद्धि की जा सके। भारत की बहुत सी बड़ी संस्थाएं इस पर कार्य कर रही हैं। वहीं, राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान ने आईवीएफ क्लोनिंग तकनीक से सर्वाधिक दूध उत्पादन वाली मुर्रा भैंस के दो क्लोन पैदा किए हैं।

पशुओं की दूध उत्पादन क्षमता काफी बढ़ जाएगी

मीडिया खबरों के अनुसार, एनडीआरआई करनाल द्वारा आईवीएफ क्लोनिंग तकनीक से मुर्रा भैंस की उत्पादकता बढ़ाने की कोशिशों में सफलता प्राप्त कर ली गई है। शीघ्र ही मध्य प्रदेश का पशुधन एवं कुक्कुट विकास निगम भी क्लोनिंग की इस तकनीक को राज्य में लेके जा रही है। फिलहाल, निगम के अधिकारियों ने भी यह मान लिया है, कि यह तकनीक पशु उत्पादकता को बढ़ाने में सहायक भूमिका निभा सकती है। राज्य में इस प्रोजेक्ट को भोपाल के मदरबुल फार्म की आईवीएफ लैब से संचालित किया जाएगा। यहां गाय-भैंस की नस्ल सुधार हेतु इस आईवीएफ तकनीक को उपयोग में लाने की योजना है।

आईवीएफ लैब में होल्सटीन फ्रीजियन नस्ल की गाय का बछड़ा ने जन्म लिया

आपको इस बात से रूबरू करादें कि मध्य प्रदेश में पशुओं की नस्ल सुधारने हेतु पहली बार आईवीएफ क्लोनिंग तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। हालाँकि, इससे पूर्व एक आईवीएफ लैब में एंब्रियो के माध्यम होल्सटीन फ्रीजियन नस्ल की गाय का बछड़ा पैदा हो चुका है। वर्तमान में भोपाल में मौजूद मदरबुल फार्म में जिस तकनीक का उपयोग किया जाना है। इसके क्लोन हाइजेनिक मटेरियल वाले बताए गए हैं। यह पशु की नस्ल सुधार, गुणवत्ता एवं दूध उत्पादन क्षमता को अधिक करने हेतु बड़ी अहम भूमिका निभाएंगे। यह भी पढ़ें : अब खास तकनीक से पैदा करवाई जाएंगी केवल मादा भैंसें और बढ़ेगा दुग्ध उत्पादन

आखिर क्लोनिंग तकनीक क्या होती है

पशु वैज्ञानिकों की लगन, मेहनत व सोच का ही परिणाम है, कि आज के समय आने वाली पशुओं से संबंधित चुनौतियों से आधुनिक तकनीक को शस्त्र बनाकर लड़ सकते हैं। इन तकनीकों में क्लोनिंग का नाम भी शामिलित है। अब आप सोच रहे होंगे कि यह क्लोनिंग तकनीक आखिर होती क्या है ? आपको जानकारी के लिए बतादें कि क्लोनिंग तकनीक में एक विशेष नस्ल के पशु की कोशिकाओं का आईवीएफ लैब में संवर्धन किया जाता है। इसको सेल कल्चर भी कहा जाता हैं। वर्तमान में संवर्धित कोशिका का मिलान स्लॉटर हाउस से मिली ओवरी केंद्रक रहित अंडाणु से कराया जाता है। इस प्रक्रिया के 8 वें दिन भ्रूण बनकर तैयार हो जाता है। इसके उपरांत भ्रूण को भैंस के गर्भाशय के अंदर हस्तांतरित कर दिया जाता हैं। इसके उपरांत क्लोन बच्चे पैदा होते हैं, जो कि बिल्कुल साधारण भैंस की भांति दिखाई देते हैं। जैसा कि हम जानते हैं, कि मुर्रा भैंस की दूध उत्पादन क्षमता की मिसाल पूरी दुनिया देती है। यहां तक कि ब्राजील जैसे देश भी आज मुर्रा भैंस की तर्ज पर बड़ी मात्रा में दूध उत्पादन कर रहे हैं। अगर दूध की बात करें तो एक साधारण मुर्रा भैंस प्रतिदिन 15-16 लीटर दूध देती है। यही वजह है, कि मध्य प्रदेश से लेकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के डेयरी किसान मुर्रा भैंस को अपनी पहली पसंद मानते हैं।
जानें दुनिया के सबसे महंगे भैंसे के बारे में

जानें दुनिया के सबसे महंगे भैंसे के बारे में

विश्व के सर्वाधिक महंगे भैंसे का नाम होरिजोन है। जो कि साउथ अफ्रिका में है। इसके सिंघों की लंबाई 56 इंच तक है। लेकिन, आम भैंसों के सिंघों की लंबाई मुश्किल से 35 से 40 इंच तक ही होती है। दरअसल, हम जब किसानों का जिक्र करते हैं, तो उसमें उनके द्वारा पाले जा रहे मवेशी भी शम्मिलित हैं। इस वजह से आज हम आपको एक ऐसे भैंसे के विषय में बताने जा रहे हैं, जिसे विश्व का सर्वाधिक महंगा भैंसा कहा जाता है। इसकी कीमत इतनी अधिक है, कि आप इतने में 100 से अधिक ऑडी कार खरीद सकते हैं। सबसे मुख्य बात यह है, कि इस भैंसे को कोई आम किसान रख भी नहीं सकता है। इसके लिए किसान का भी धनी होना आवश्यक है। इसके पीछे की वजह इस भैंसे की खुराक है। यह भैंसा ऐसे ही इतना ज्यादा कीमती नहीं है। इसको विश्व का सबसे बड़ा भैंसा भी माना जाता है। तो आइए आपको इस विशेष भैंसे के संदर्भ में बताते हैं।

विश्व का सबसे महंगा भैंसा कैसा होता है

मीडिया खबरों के मुताबिक, विश्व के सबसे महंगे भैंसे का नाम होरिज़ोन है। यह साउथ अफ्रिका में पाया जाता है। इसके सिंघों की लंबाई 56 इंच तक होती है। वहीं, आम भैंसों के सिंघों की लंबाई अधिकतम 35 से 40 इंच ही होती है। इसके सिंघों की लंबाई से आप समझ गए होंगे कि यह भैंसा कितना बड़ा होगा। इस भैंसे के माध्यम से इसे पालने वाला किसान प्रति वर्ष करोड़ों रुपये की आमदनी कर लेता है। दरअसल, प्रत्येक किसान यह चाहता है, कि उसके घर में इसी जीन की भैंस हो एवं इसके लिए इस भैंसे के शुक्राणुओं को भारत भर के किसान अपनी भैंसों के गर्भ में प्लांट कराते हैं। होरिजोन के मालिक इसी का चार्ज करते हैं।

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भारत का सबसे महंगा भैंसा भीम है

भारत का सर्वाधिक महंगा भैंसा भीम होता है। इस भैंसे का भाव 24 करोड़ रुपये है, इसके मालिक अरविंद जांगिड़ हैं। इसका वजन तकरीबन 1500 किलो है। अरविंद जांगिड़ मीडिया से कहते हैं, कि वह इसे अपने बेटे की भांति ही पालते हैं। साथ ही, इसको खाने में प्रतिदिन एक किलो घी, 15 लीटर दूध एवं काजू बादाम खिलाते हैं। दरअसल, इससे पूर्व भारत के सबसे दमदार भैंसे का खिताब सुल्तान के पास था। परंतु, कुछ समय पूर्व हार्ट अटैक की वजह से सुल्तान की मृत्यु हो गई। इसके बाद भीम भारत का सबसे दमदार भैंसा बन गया।