Ad

cucumber

खीरे की उन्नत खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

खीरे की उन्नत खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

कद्दूवर्गीय फसलों में खीरा का अपना एक विशेष स्थान है। क्योंकि भोजन के साथ सलाद के रूप में खीरा सबसे ज्यादा उपयोग होने वाली फसल है। इस वजह से खीरा का उत्पादन देश के सभी हिस्सों में किया जाता है। गर्मियों में खीरे की बाजार में प्रचंड मांग बनी रहती है। इसे मुख्यत: भोजन के साथ सलाद के तौर पर कच्चा खाया जाता है। ये शरीर को गर्मी से शीतलता प्रदान करता है और हमारे शरीर में पानी की कमी को भी पूरा करता है। इसलिए गर्मियों में इसका सेवन करना बेहद लाभकारी बताया गया है। खीरे की गर्मियों में बाजार मांग को मद्देनजर रखते हुए जायद सीजन में इसकी खेती करके शानदार मुनाफा अर्जित किया जा सकता है।

खीरे की फसल में पाएं जाने वाले पोषक तत्व

खीरे का वानस्पतिक नाम कुकुमिस स्टीव्स है। यह एक बेल की भाँति लटकने वाला पौधा है। खीरे के पौधे का आकार बड़ा, पत्ते बेलों वाले और त्रिकोणीय आकार के होते है और इसके फूल पीले रंग के होते हैं। खीरे में 96 फीसद पानी होता है, जो गर्मी के मौसम में लाभकारी होता है। खीरा एम बी (मोलिब्डेनम) और विटामिन का एक शानदार स्त्रोत है। खीरे का प्रयोग दिल, त्वचा और किडनी की दिक्कतों के इलाज और अल्कालाइजर के तौर पर किया जाता है।

खीरे की विभिन्न प्रकार की उन्नत किस्में

खीरे की कुछ उन्नत भारतीय किस्में- पंजाब सलेक्शन, पूसा संयोग, पूसा बरखा, खीरा 90, कल्यानपुर हरा खीरा, कल्यानपुर मध्यम, स्वर्ण अगेती, स्वर्ण पूर्णिमा, पूसा उदय, पूना खीरा और खीरा 75 आदि प्रमुख हैं।

खीरे की नवीनतम किस्में- पीसीयूएच- 1, पूसा उदय, स्वर्ण पूर्णा और स्वर्ण शीतल आदि प्रमुख है।

खीरे की संकर किस्में- पंत संकर खीरा- 1, प्रिया, हाइब्रिड- 1 और हाइब्रिड- 2 आदि प्रमुख है।

खीरे की विदेशी किस्में- जापानी लौंग ग्रीन, चयन, स्ट्रेट- 8 और पोइनसेट आदि प्रमुख है।

खीरे की उन्नत खेती के लिए जलवायु व मृदा

सामान्य तौर पर खीरे को रेतीली दोमट व भारी मृदा में उत्पादित किया जाता है। परंतु, इसकी खेती के लिए एक बेहतर जल निकास वाली बलुई एवं दोमट मृदा उपयुक्त रहती है। खीरे की खेती के लिए मृदा का पीएच मान 6-7 के मध्य होना चाहिए। क्योंकि, यह पाला सहन नहीं कर सकता है। इसकी खेती उच्च तापमान में काफी बेहतरीन होती है। इसलिए जायद सीजन में इसकी खेती करना अच्छा रहता है।

मार्च-अप्रैल में इन टॉप सब्जियों की खेती से मिलेगा मोटा मुनाफा

मार्च-अप्रैल में इन टॉप सब्जियों की खेती से मिलेगा मोटा मुनाफा

आजकल रबी की फसल की कटाई का समय चल रहा है। मार्च-अप्रैल में किसान सब्जियों की बुवाई करना शुरू कर देते हैं। लेकिन किसान कौन सी सब्जी का उत्पादन करें इसका चयन करना काफी कठिन होता है। किसानों को अच्छा मुनाफा देने वाली सब्जियों के बारे में हम आपको जानकारी देने वाले हैं। 

दरअसल, आज हम भारत के कृषकों के लिए मार्च-अप्रैल के माह में उगने वाली टॉप 5 सब्जियों की जानकारी लेकर आए हैं, जो कम वक्त में बेहतरीन उपज देती हैं। 

भिंडी की फसल (Okra Crop)

भिंडी मार्च-अप्रैल माह में उगाई जाने वाली सब्जी है। दरअसल, भिंडी की फसल (Bhindi Ki Fasal) को आप घर पर गमले अथवा ग्रो बैग में भी सुगमता से लगा सकते हैं। 

भिंडी की खेती के लिए तापमान 25-35 डिग्री सेल्सियस उपयुक्त माना जाता है। आमतौर पर भिंडी का इस्तेमाल सब्जी बनाने में और कभी-कभी सूप तैयार करने में किया जाता है।

खीरा की फसल (Cucumber Crop)

किसान भाई खीरे की खेती (Cucumber cultivation) से काफी अच्छा लाभ कमा सकते हैं। दरअसल, खीरा में 95% प्रतिशत पानी की मात्रा होती है, जो गर्मियों में स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होती है। गर्मियों के मौसम में खीरा की मांग भी बाजार में काफी ज्यादा देखने को मिलती है। 

ये भी पढ़ें: जायद में खीरे की इन टॉप पांच किस्मों की खेती से मिलेगा अच्छा मुनाफा

अब ऐसी स्थिति में अगर किसान अपने खेत में इस समय खीरे की खेती करते हैं, तो वह काफी शानदार कमाई कर सकते हैं। खीरा गर्मी के सीजन में काफी अच्छी तरह विकास करता है। इसलिए बगीचे में बिना किसी दिक्कत-परेशानी के मार्च-अप्रैल में लगाया जा सकता है। 

बैंगन की फसल (Brinjal Crop)

बैंगन के पौधे (Brinjal Plants) को रोपने के लिए दीर्घ कालीन गर्म मौसम की आवश्यकता होती है। साथ ही, बैंगन की फसल के लिए तकरीबन 13-21 डिग्री सेल्सियस रात का तापमान अच्छा होता है। क्योंकि, इस तापमान में बैंगन के पौधे काफी अच्छे से विकास करते हैं।

ये भी पढ़ें: मार्च-अप्रैल में की जाने वाली बैंगन की खेती में लगने वाले कीट व रोग और उनकी दवा

ऐसी स्थिति में यदि आप मार्च-अप्रैल के माह में बैंगन की खेती (baingan ki kheti) करते हैं, तो आगामी समय में इससे आप अपनी आमदनी को बढ़ा सकते हैं। 

धनिया की फसल (Coriander Crop)

एक अध्यन के अनुसार, हरा धनिया एक प्रकार से जड़ी-बूटी के समान है। हरा धनिया सामान्य तौर पर सब्जियों को और अधिक स्वादिष्ट बनाने के कार्य करता है। 

इसे उगाने के लिए आदर्श तापमान 20 से 30 डिग्री सेल्सियस काफी अच्छा माना जाता है। ऐसे में भारत के किसान धनिया की खेती (Coriander Cultivation) मार्च-अप्रैल के माह में सुगमता से कर सकते हैं।

प्याज की फसल (Onion Crop)

प्याज मार्च-अप्रैल में लगाई जाने वाली सब्जियों में से एक है। प्याज की बुवाई के लिए 10-32 डिग्री सेल्सियस तापमान होना चाहिए। प्याज के बीज हल्के गर्म मौसम में काफी अच्छे से विकास करते हैं। इस वजह से प्याज रोपण का उपयुक्त समय वसंत ऋतु (Spring season) मतलब कि मार्च- अप्रैल का महीना होता है। 

बतादें, कि प्याज की बेहतरीन प्रजाति के बीजों की फसल लगभग 150-160 दिनों में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। हालांकि, हरी प्याज की कटाई (Onion Harvesting) में 40-50 दिन का वक्त लगता है।

खीरा की यह किस्म जिससे किसान सालों तक कम लागत में भी उपजा पाएंगे खीरा

खीरा की यह किस्म जिससे किसान सालों तक कम लागत में भी उपजा पाएंगे खीरा

हम लोग सलाद में सबसे महत्वपूर्ण खीरा (cucumber ; kheera) को मानते हैं, इसके अलावा भी आजकल खीरा का उपयोग बहुत बढ़ गया है। देश ही नहीं विदेश में भी खीरा की मांग बढ़ती जा रही है, जिसके लिए खीरा निर्यात के मामलों पर भी काफी ऊपर है। अब देखा जा रहा है, कुछ दिनों से किसान बिना सीजन में खीरा को उगाने के लिए परेशान हैं। लेकिन अब जो हम आपको बताने जा रहे हैं, उसको जानकर आप काफी आश्चर्यचकित हो जाएंगे, क्योंकि किसान को अब खीरा उगाने के लिए बहुत सारी समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा। आईसीएआर (ICAR) के वैज्ञानिकों ने अब ऐेसे खीरे की किस्म को विकसित किया है, जिसमें ना ही किसी मौसम की बाधा आती है, नहीं बीज की टेंशन। आईसीएआर के वैज्ञानिकों के अनुसार यह बीज रहित खीरा (seedless cucumber) जिसका नाम डीपी-6 (DP-6) है, वह साल में 4 बार उग सकता है। इस खीरे की किस्म डीपी-6 बुवाई के 45 दिन बाद फलों का प्रोडक्शन करने लगता है। इतना ही नहीं जब एक बार फलना शुरू करता है, तो 3 से 4 महीने तक लगातार बीज रहित खीरा का फलन होते रहता है। आपको बता दें कि यह किस्म आईसीएआर आईएआरआई, पूसा इंस्टीट्यूट के सफल प्रयास से किसानों को मिला है।


ये भी पढ़ें: भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान कि सुझाई इस वैज्ञानिक तकनीक से करें करेले की बेमौसमी खेती

वैज्ञानिकों के कई सालों का सफल प्रयास

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार बीज रहित खीरा की किस्म कई सालों के मेहनत का परिणाम है। वैज्ञानिकों के अनुसार इसका छिलका भी काफी पतला होता है, जिससे इसका उपयोग करने वाले बिना छीले भी इस डीपी 6 नामक खीरा को खा सकते हैं। आपको यह भी जान कर काफी आश्चर्य होगा कि इस डीपी 6 नामक खीरे के नस्ल में कड़वाहट बिल्कुल भी नहीं है। यह किस्म बिना परागण के ही बहुत अच्छा पैदावार दें सकती है। लेकिन इस बेमौसमी किस्म के खीरे को लेकर एक ये भी अनुमान लगाया जा रहा है की इसको खुले में लगाने से कीट-रोग लगने की संभावना काफी ज्यादा है। किसानों के मन में यह भी प्रश्न है की इसको या तो पॉलीहाउस या संरक्षित ढांचे में ही उगाया जायेगा।

क्या है खासियत

आपको बता दें कि किसी भी खीरे के बेल की हर गांठ पे मादा पुष्प निकलते हैं, लेकिन यह जान कर आपको काफी खुशी होंगी की इस डीपी-6 किस्म के बेल पर जितने ही मादा पुष्प निकलेंगे उतना ही फल का उत्पादन होगा। आपको ये बता दें कि 100 वर्गमीटर खेत में डीपी-6 किस्म के खीरे की तकरीबन 400 पौधे लगाए जा सकते हैं, जिसके हर एक पौधों से लगभग 4 किलो तक खीरे का उत्पादन हो सकता है।


ये भी पढ़ें: बागवानी की तरफ बढ़ रहा है किसानों का रुझान, जानिये क्यों?

कितना है लागत व कैसे करें खेती

वैज्ञानिकों के मुताबिक यह डीपी -6 किस्म के खीरे का उत्पादन कमर्शियल जगहों जैसे होटल या फिर घर में आसानी से किया जा सकता। आपको बता दें कि इस डीपी-6 किस्म का खीरे जिसे आईसीएआर-आईएआरआई पूसा इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों के द्वारा किया गया है, वह समान खीरे के किस्म के बीज से लगभग 15 रुपए अधिक कीमत में मिलेगा। वैज्ञानिकों के अनुसार किसान भी इस किस्म के खीरे की खेती कर अच्छा मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो वो भी इस बीज को लगा सकते हैं। लेकिन इस अच्छे बीज के लिए किसानों को दिल्ली स्थित पूसा इंस्टीट्यूट के सब्जी विज्ञान केंद्र से जाकर लाना होगा। आपको यह भी बता दें की किसानों को इस डीपी-6 किस्म के खीरे की संरक्षित खेती के लिए, केंद्र सरकार के संरक्षित खेती योजना का लाभ लेकर, अच्छा उत्पादन कर बढ़िया मुनाफा कमा सकते हैं। इस किस्म के खीरे की खेती में किसान को कम लागत में भी अच्छा मुनाफा मिलेगा, आपको यह जान कर भी हैरानी होगी की किसान के इस डीपी-6 किस्म के खीरे के खेती के लिए एक एकड़ में तकरीबन 20 हजार रुपए लगाने पड़ेगा।
किसान सुबोध ने दोस्त की सलाह से खीरे की खेती कर मिशाल पेश करी है

किसान सुबोध ने दोस्त की सलाह से खीरे की खेती कर मिशाल पेश करी है

बिहार के इस किसान ने पारंपरिक खेती छोड़ शुरु की खीरे की खेती। आज वह हर सीजन में लाखों की आमदनी कर रहे हैं। भारत में किसान अब परंपरागत खेती को छोड़कर नई तकनीक को अपना रहे हैं। किसान सब्जी एवं मेडिसिनल प्लांट की खेती कर आर्थिक हालातों को बेहतर कर रहे हैं। इस वक्त बिहार के भिन्न-भिन्न जनपदों में युवा किसान सब्जी और औषधीय पौधों की खेती कर काफी मोटी आमदनी कर रहे हैं। इसके लिए बिहार सरकार भी किसानों को बड़े पैमाने पर सब्सिड़ी उपलब्ध करा रही है।

किसान सुबोध खीरे की खेती करते हैं

बिहार के सहरसा जनपद के युवा किसान सुबोध झा ने अपनी 4 एकड़ की भूमि में नेट हाउस पद्धति से
खीरे की खेती की चालू करी। उसके लिए उन्होंने बिहार सरकार से सब्सिड़ी भी ली है। किसान सुबोध का कहना है, कि केवल 3 से 4 महीनों में ही उन्हें चार से पांच लाख रुपए का मुनाफा हुआ। इस आमदनी से उन्होंने फिलहाल औषधीय पौधों की भी खेती चालू कर दी है। ये भी पढ़े: पॉली हाउस तकनीक से खीरे की खेती कर किसान कमा रहा बेहतरीन मुनाफा

सुबोध को खीरे की खेती के लिए किसने सलाह दी

किसान सुबोध का कहना है, कि वह काफी वर्षों से खेती-किसानी कर रहे हैं। परंतु, खीरे की खेती के संदर्भ में उनके एक दोस्त ने जानकारी दी, जो कि बिहार के कृषि विभाग में नौकरी करते हैं। उनकी सलाह के पश्चात उन्होंने इसकी खेती की शुरुआत करी है। सुबोध अपने खीरे की खेती के लिए केवल जैविक खाद का उपयोग करते हैं, जिस कारण उनके खीरे की मांग बाजार में काफी ज्यादा रहती है।

सुबोध से अन्य किसान भी तकनीकी गुर सीख रहे हैं

सुबोध का कहना है, कि उनकी खीरे की खेती की सफलता को ध्यान में रखते हुए उनके आस पास के साथी किसान भी बेहद प्रभावित हुए हैं। साथ ही, उन्होंने भी खीरे और औषधीय पौधे की खेती शुरु कर दी है। सुबोध ने बताया है, कि वह समय-समय पर अपने जनपद के कृषि वैज्ञानिकों से खेती से जुड़ी जानकारी से जुड़ी सलाह लेते हैं। वह बताते हैं, कि नेट हाउस में सब्जी की खेती करने से उनको काफी अच्छा उत्पादन हांसिल हुआ है। देखा देखी उनकी राह पर अन्य युवा किसान भी चलने लगे हैं।
ककड़ी की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

ककड़ी की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां विभिन्न प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं। आज हम आपको ककड़ी की फसल के बारे में जानकारी देंगे, तो आपको सबसे पहले बतादें, कि ककड़ी कुकरबिटेसी परिवार से संबंधित है और इसका वानस्पतिक नाम कुकुमिस मेलो है और भारत इसका मूल स्थान है। यह हल्के हरे रंग की होती है, जिसका छिल्का नर्म और गुद्दा सफेद होता है। इसका मुख्य रूप से सलाद के रूप में नमक और काली मिर्च के साथ सेवन किया जाता है। इसके फल में ठंडा प्रभाव होता है। इसलिए इसे मुख्य तौर पर गर्मियों के मौसम में खाया जाता है।

ककड़ी की खेती के लिए मृदा एवं भूमि  

ककड़ी का उत्पादन मिट्टी की विभिन्न किस्मों में बड़ी ही आसानी से किया जा सकता है, जैसे रेतीली दोमट से भारी मिट्टी जो कि अच्छी जल निकासी वाली हो। इसकी खेती के लिए मिट्टी का pH 5.8-7.5 होना चाहिए। इसके साथ-साथ जमीन की तैयारी भी करना बहुत जरूरी है। ककड़ी की खेती के लिए अच्छी तरह से तैयार जमीन की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए हैरो से 2-3 बार जोताई करना काफी जरूरी है।

बिजाई का समय और विधि क्या है?

बीजों की बिजाई के लिए फरवरी-मार्च का महीना सबसे उपयुक्त माना जाता है। बीजों के मध्य फासला खालियों के बीच 200-250 सैं.मी. और मेंड़ों के बीच 60-90 सैं.मी. रखना फायदेमंद साबित होगा। फसल के शानदार विकास के लिए दो बीजों को एक जगह पर बोयें। बीज की गहराई की बात करें तो बीजों को 2.5-4 सैं.मी गहराई में बोयें। बिजाई का तरीका बीजों को बैड या मेंड़ पर सीधे बोया जाता है। बीज की मात्रा की बात करें तो आप प्रति एकड़ में 1 किलो बीजों का इस्तेमाल करें।

बीजोपचार व खाद 

मिट्टी से होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए बैनलेट या बविस्टिन 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें। वहीं, खाद की बात करें तो नर्सरी बैड से 15 सैं.मी. दूरी पर फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन का 1/3 भाग बिजाई के समय डालें। बाकी की बची हुई नाइट्रोजन बिजाई से एक महीना बाद में डालें।

ये भी पढ़ें: घर पर करें बीजों का उपचार, सस्ती तकनीक से कमाएं अच्छा मुनाफा

खरपतवार नियंत्रण व सिंचाई 

खरपतवार नियंत्रण के लिए बेलों के फैलने से पहले इनकी ऊपरी परत की कसी से हल्की गुड़ाई करें। सिंचाई की बात करें तो बिजाई के तुरंत पश्चात सिंचाई करना बेहद जरूरी है। गर्मियों में, 4-5 सिंचाइयों की काफी जरूरत होती है और बारिश के मौसम में सिंचाई जरूरत के मुताबिक करें। 

ककड़ी के पौधे में लगने वाले हानिकारक कीट और उनकी रोकथाम

  • चेपा और थ्रिप्स: ये कीट पत्तों का रस चूसते हैं, जिससे पत्ते पीले पड़ जाते हैं और गिर जाते हैं। थ्रिप्स के कारण पत्ते मुड़ जाते हैं, जिससे पत्ते कप के आकार के और ऊपर की तरफ मुड़े हुए होते हैं। 

उपचार: इसका हमला फसल में दिखाई दे तो, थायामैथोकस्म 5 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी की स्प्रे फसल पर करें।

  • भुण्डी:  भुंडी कीट के कारण फूल, पत्ते और तने नष्ट हो जाते हैं।

उपचार: यदि इसका हमला दिखाई दें तो, मैलाथियोन 2 मि.ली. या कार्बरिल 4 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें यह भुंडी की रोकथाम में सहायक है। 

फल की मक्खी

  • फल की मक्खी: यह ककड़ी की फसल का गंभीर कीट है। नर मक्खी फल की बाहरी परत के नीचे अंडे देती है उसके बाद ये छोटे कीट फल के गुद्दे को अपना भोजन बनाते हैं उसके बाद फल गलना शुरू हो जाता है और गिर जाता है।

उपचार: फसल को फल की मक्खी से बचाने के लिए नीम के तेल में 3.0% फोलियर स्प्रे करें।

ये भी पढ़ें: ककड़ी की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

पत्तों पर सफेद धब्बे वाली बीमारियां और उनकी रोकथाम

  • सफेद फफूंदी: पत्तों के ऊपरी सतह पर सफेद रंग के धब्बे पड़ जाते हैं ये धब्बे प्रभावित पौधे के मुख्य तने पर भी दिखाई देते हैं। इसके कीट पौधे को अपने भोजन के रूप में प्रयोग करते हैं। इनका हमला होने पर पत्ते गिरते हैं और फल पकने से पहले ही गिर जाते हैं।

उपचार: सफेद फफूँदी का हमला खेत में दिखे तो पानी में घुलनशील सल्फर 20 ग्राम को 10 लीटर पानी में डालकर 10 दिनों के अंतराल पर 2-3 बार स्प्रे करें।

एंथ्राकनोस

  • ऐंथ्राक्नोस: यह पत्तों पर हमला करता है, जिसके कारण पत्ते झुलसे हुए दिखाई देते हैं।

उपचार: एंथ्राकनोस की रोकथाम के लिए कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें। यदि इसका हमला खेत में दिखाई दे तो, मैनकोजेब 2 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

पत्तों के निचले धब्बे

  • पत्तों के निचली ओर धब्बे: यह रोग स्यिूडोपरनोस्पोरा क्यूबेनसिस के कारण होता है। इससे पत्तों की निचली सतह पर छोटे और जामुनी रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।

उपचार: यदि इसका प्रभाव दिखाई दे तो डाइथेन एम-45 या डाइथेन Z-78 का प्रयोग इस बीमारी से बचने के लिए करें।

ककड़ी का मुरझाना

  • मुरझाना: यह पौधे के वेस्कुलर टिशुओं पर प्रभाव डालता है, जिससे पौधा तुरंत ही मुरझा जाता है।

उपचार: फुजारियम सूखे से बचाव के लिए कप्तान या हैक्सोकैप 0.2-0.3%का छिड़काव करें।

  • कुकुरबिट फाइलोडी: इस बीमारी के कारण पोर छोटे और पौधे की वृद्धि रूक जाती है, जिसके कारण फसल फल पैदा नहीं करती।

उपचार: इस बीमारी से बचाव के लिए बिजाई के समय फुराडन 5 किलोग्राम बिजाई के समय प्रति एकड़ में डालें। यदि इसका हमला दिखे तो डाईमेक्रोन 0.05 % 10 दिनों के अंतराल पर करें।

ये भी पढ़ें: फसलों में पोषक तत्वों की कमी की जाँच करने का तरीका

ककड़ी फसल की कटाई कब करें

ककड़ी के फल 60-70 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। कटाई मुख्य तौर पर फल के पूरी तरह विकसित होने और नर्म होने पर की जाती है। कटाई मुख्य रूप से फूल निकलने के मौसम में 3-4 दिनों के अंतराल पर की जाती है।

ककड़ी का बीज उत्पादन कैसे करें ?

ककड़ी को अन्य किस्मों जैसे कि स्नैप मैलन, वाइल्ड मैलन, खरबूजा और ककड़ी आदि से 1000 मीटर की दूरी पर रखें। खेत में से प्रभावित पौधों को हटा दें। जब फल पक जायें जैसे उनका रंग बदलकर हल्का हो जाये तब उन्हें ताजे पानी में रखकर हाथों से तोड़ें और गुद्दे से बीजों को अलग कर लें। बीज जो नीचे स्तर पर बैठ जाते हैं, उन्हें बीज उद्देश्य के लिए एकत्रित किया जाता है।

जायद में खीरे की इन टॉप पांच किस्मों की खेती से मिलेगा अच्छा मुनाफा

जायद में खीरे की इन टॉप पांच किस्मों की खेती से मिलेगा अच्छा मुनाफा

किसान भाइयों अब जायद का सीजन आने वाला है। किसान अनाज, दलहन, तिलहन फसलों की खेती की जगह कम वक्त में पकने वाली सब्जियों की खेती से भी अच्छी आमदनी कर सकते हैं।

सब्जी की खेती की मुख्य बात यह है, कि इसकी बाजार में अच्छी कीमत मिल जाती है। दीर्घकालीन फसलों की तुलना में किसान सब्जी की खेती से मोटा मुनाफा उठा सकते हैं। 

वर्तमान में बहुत सारे किसान परंपरागत फसलों के साथ ही सब्जियों की खेती कर अपनी आय बढ़ा रहे हैं। अब ऐसी स्थिति में आप भी फरवरी-मार्च के जायद सीजन में खीरे की खेती करके काफी ज्यादा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं।

खीरे की बाजार मांग काफी अच्छी है और इसके भाव भी बाजार में काफी अच्छे मिल जाते हैं। अगर खीरे की उन्नत किस्मों का उत्पादन किया जाए तो इस फसल से काफी शानदार लाभ हांसिल किया जा सकता है।

खीरे की स्वर्ण पूर्णिमा किस्म 

खीरे की स्वर्ण पूर्णिमा किस्म की विशेषता यह है, कि इस प्रजाति के फल लंबे, सीधे, हल्के हरे और ठोस होते हैं। खीरे की यह प्रजाति मध्यम अवधि में तैयार हो जाती है। 

ये भी पढ़ें: खीरे की उन्नत खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

इसकी बुवाई के लगभग 45 से 50 दिन में इसकी फसल पककर तैयार हो जाती है। किसान इसके फलों की आसानी से तुड़ाई कर सकते हैं। इस किस्म से प्रति हैक्टेयर 200 से 225 क्विंटल तक उपज अर्जित की जा सकती है।

खीरे की पूसा संयोग किस्म 

यह खीरे की हाइब्रिड किस्म है। इसके फल करीब 22 से 30 सेंटीमीटर लंबे होते हैं। इसका रंग हरा होता है। इसमें पीले कांटे भी पाए जाते हैं। इनका गुदा कुरकुरा होता है। खीरे की यह किस्म करीब 50 दिन में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इस किस्म की खेती से प्रति हैक्टेयर 200 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।

पंत संकर खीरा- 1 किस्म 

यह खीरे की संकर किस्म है। इसके फल मध्यम आकार के होते हैं। इसके फलों की लंबाई तकरीबन 20 सेंटीमीटर की होती है ओर इसका रंग हरा होता है। यह किस्म बुवाई के लगभग 50 दिन उपरांत ही तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। खीरे की इस प्रजाति से प्रति हैक्टेयर 300 से 350 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

खीरे की स्वर्ण शीतल किस्म 

खीरे की इस प्रजाति के फल मध्यम आकार के होते हैं। इनका रंग हरा और फल ठोस होता है। इस किस्म से प्रति हैक्टेयर 300 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। खीरे की यह किस्म चूर्णी फफूंदी और श्याम वर्ण रोग के प्रति अत्यंत सहनशील मानी जाती है।

ये भी पढ़ें: खीरा की यह किस्म जिससे किसान सालों तक कम लागत में भी उपजा पाएंगे खीरा

खीरे की स्वर्ण पूर्णा किस्म 

यह किस्म मध्यम आकार की किस्म है। इसके फल ठोस होते हैं। इस किस्म की खास बात यह है, कि यह किस्म चूर्णी फफूंदी रोग की प्रतिरोधक क्षमता रखती है। इसकी खेती से प्रति हैक्टेयर 350 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।

खीरे की उन्नत किस्मों की बुवाई की प्रक्रिया 

खीरे की उन्नत किस्मों को बुवाई के लिए कार्य में लेना चाहिए। इसके बीजों की बुवाई से पूर्व इन्हें उपचारित कर लेना चाहिए, जिससे कि फसल में कीट-रोग का संक्रमण ना हो। 

बीजों को उपचारित करने के लिए बीज को चौड़े मुंह वाले मटका में लेना चाहिए। इसमें 2.5 ग्राम थाइरम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से मिलाकर घोल बना लें। अब इस घोल से बीजों को उपचारित करें। 

इसके बाद बीजों को छाया में सूखने के लिए रख दें, जब बीज सूख जाए तब इसकी बुवाई करें। खीरे के बीजों की बुवाई थाला के चारों ओर 2-4 बीज 2 से 3 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए। 

इसके अलावा नाली विधि से भी खीरे की बुवाई की जा सकती है। इसमें खीरे के बीजों की बुवाई के लिए 60 सेंटीमीटर चौड़ी नालियां बनाई जाती है। इसके किनारे पर खीरे के बीजों की बुवाई की जाती है। 

ये भी पढ़ें: नुनहेम्स कंपनी की इम्प्रूव्ड नूरी है मोटल ग्रीन खीरे की किस्म

दो नालियों के बीच में 2.5 सेंटीमीटर की दूरी रखी जाती है। इसके अलावा एक बेल से दूसरे बेल के नीचे की दूरी 60 सेमी रखी जाती है। ग्रीष्म ऋतु की फसल के लिए बीजों की बुवाई व बीजों को उपचारित करने से पहले उन्हें 12 घंटे पानी में भिगोकर रखना चाहिए। 

इसके बाद बीजों को दवा से उपचारित करने के बाद इसकी बुवाई करनी चाहिए। बीज की कतार से कतार की दूरी 1 मीटर और पौधे से पौधे की दूरी 50 सेमी रखनी चाहिए। 

किसान खीरे की खेती से कितना कमा सकते हैं ?  

कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, एक एकड़ जमीन में खीरे की खेती करके 400 क्विंटल तक उपज प्राप्त की जा सकती है। सामान्य तौर पर बाजार में खीरे का भाव 20 से 40 रुपए प्रति किलोग्राम के मध्य होता है। 

ऐसे में खीरे की खेती से एक सीजन में तकरीबन प्रति एकड़ 20 से 25 हजार की लागत लगाकर इससे तकरीबन 80 से एक लाख रुपए तक की आमदनी आसानी से की जा सकती है। 

खीरे की खेती बन रही है मोटी कमाई का जरिया , इस तकनीक की सहायता से किसान कर रहे दुगुना उत्पादन

खीरे की खेती बन रही है मोटी कमाई का जरिया , इस तकनीक की सहायता से किसान कर रहे दुगुना उत्पादन

गर्मियों में खीरे की खेती से किसान कमा रहे है मोटा मुनाफा। आइये आज के इस आर्टिकल में जानते है, किस प्रकार की तकनीक का उपयोग कर किसान खीरे से मोटी कमाई कर रहे है। 

यह कहानी है उतार प्रदेश के किसान दिलीप कुमार की जिन्होंने ड्रिप तकनीक की सहायता से खीरे की खेती कर भारी मुनाफा कमाया है। 

दिलीप कुमार ने बताया ड्रिप विधि से खीरे की खेती करने के लिए सबसे पहले खेत की अच्छे से जुताई कर लेनी चाहिए। जुताई करने के बाद पुरे खेत में मेढ़ बनाते है और उन सभी मेढ़ों को पन्नी के जरिये अच्छे से ढक देते है। 

सभी मेढ़ों पर खीरे के बीज की बुवाई लगभग डेढ फ़ीट पर होनी चाहिए। खेत की मेढ़ों पर ड्रिप बिछा दी जाती है, और जब खीरे का पौधा बढ़ने लग जाता है तो इसी ड्रिप के द्वारा पौधों में सिंचाई की जाती है। ऐसा करने के बाद पौधों को बांस के जरिये सीधा डोरी या रस्सी से बाँध दिया जाता है। 

ऐसा करने से पौधा सीधा बढ़ता है और फसल अच्छी और ज्यादा रहती है। फलों को तोड़ने में भी आसानी होती है। खीरा की बुवाई के 60 से 65 दिन बाद ही पौधों पर फल निकलना शुरू हो जाते है। 

इन फलों को रोजाना तोड़कर बाजारों में बेचा जा सकता है। खीरे की फसल लगभग 2 महीने तक फल प्रदान करती है , इसके फलों को तोड़कर बाजार में कई बार बेचा जा सकता है।

किसानों द्वारा खीरे की खेती मुनाफे के तौर पर की जा रही है। यदि किसान खीरे की खेती वैज्ञानिक तौर से करें तो ज्यादा मुनाफा कमा सकता है। लेकिन इसके लिए किसान को खीरे की बुवाई से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना होगा।

बाराबंकी में स्थित कुतलूपुर गांव के दिलीप कुमार ने बताया वो पिछले तीन वर्ष से एक बीघे जमीन पर खीरे की खेती कर रहे है। 

उन्होंने खीरे की खेती ड्रिप विधि की सहायता से शुरू की आज वो खीरे के खेती लगभग 4 बीघे जमीन पर कर रहे है। इसके अलावा उन्होंने ये भी बताया खीरे की खेती से वो सालाना 3 से 4 लाख रुपए सालाना कमा रहे है। 

खीरा बहुत जल्दी तैयार होने वाली फसल 

खीरा की फसल लगभग 60 से 65 दिन के अंदर पककर तैयार हो जाती है। यह बहुत जल्दी तैयार होनी वाली फसल है। दीलिप कुमार ने बताया खीरे की एक बीघे खेती में लगभग 15 से 20 हजार का खर्चा आता है। 

खीरे की ड्रिप विधि द्वारा खेती में बीज, बांस, डोरी, पन्नी, ड्रिप, लेबर और कीटनाशक दवाइयों का खर्चा आता है। लेकिन इससे मुनाफा भी 3 से 4 लाख रुपए सालाना कमाए जा सकते है। 

खीरा बहुत जल्दी तैयार होने वाली फसल है। भोजन के साथ सलाद के अलावा खीरे को कच्चा भी खाया जा सकता है। इस फसल की बुवाई कर छोटे किसान भी इससे मुनाफा कमा सकते है। प्रति हेक्टेयर में खीरे का उत्पादन 100 से 150 क्विंटल होती है। 

एक एकड़ खेत में बीज की कितनी मात्रा होनी चाहिए ?

खीरे की बुवाई करते वक्त याद रहे, प्रति हेक्टेयर खेत में बीज की 1 किलोग्राम मात्रा की आवश्यकता रहती है। बीज की बुवाई से पहले बीज का उपचार करना आवश्यक है।  

यह भी पढ़ें: जायद में खीरे की इन टॉप पांच किस्मों की खेती से मिलेगा अच्छा मुनाफा

बिना उपचार के बीजो की खेतों में बुवाई करने से फसल में रोग लगने की ज्यादा आशंकाए रहती है। इसीलिए बुवाई से पहले बीज को 2 ग्राम कप्तान से उपचारित करना चाहिए। 

कच्ची अवस्था में तोड़े खीरे के फल 

खीरे के फलों को कच्ची अवस्था में ही तोड़ लेना चाहिए, कच्चे फलों की बाजार में अच्छी कीमत होती है। फलों को एक दिन बाद छोड़कर तोडना चाहिए। 

फलों को तेज धार वाले चाकू से काटना चाहिए ताकि खीरे की बैल को कोई नुक्सान न पहुंचे। खीरे को पीला पड़ने से पहले ही तोड़ लेना चाहिए , फल को तोड़ते समय फल नरम होना चाहिए। 

आलू के बाद ककड़ी की खेती दे कम समय में अच्छा पैसा

आलू के बाद ककड़ी की खेती दे कम समय में अच्छा पैसा

ककड़ी की खेती, आलू के खाली हुए खेतों में की जाए तो 40 से 50 दिन बाद उत्पादन देना शुरू कर देती है। इसकी खेती मण्डियों में खीरे की फसल की बड़ी आवक से पूर्व आने के कारण किसानों की अच्छी आय का जरिया बन सकती है। किसान इसके लिए बस तत्काल खेतों की अच्छे से जुताई करके बीज रोपदें और प्लास्टिक सीट से कूंड़ों को ढ़क दें ताकि बीज का अंकुरण ठंड के समय में ही हो जाए। प्लास्टिक सीट को लोटनल पॉलीहाउस के रूप में प्रयोग न कर पाने वाले किसान दिसंबर के अंत में या फिर फरबरी के प्रारंभ में तापमान सामान्य होने पर खेतों में बीजों की रोपाई करें।

ककड़ी की किस्में

ककडी की सरकारी संस्थानों के साथ-साथ प्राईवेट कंपनियों की किस्में बाजार में बेहद प्रचलित हैं। कारण यह है कि सरकारी संस्थानों तक मेहतनी किसानों की पहुंच बहुत ज्यादा नहीं है। वह नजदीकी दुकानदारों पर ही निर्भर रहते हैं। ककड़ी की खेती कैसे करें यह जानने के लिए इसकी हर तकनीकी जानकारी होना आवश्यक है। इसकी चंद्रा कंपनी की सुपर चंद्रप्रभा चंद्रा, ग्लोवल, डाक्टर नामक कंपनियों की ककड़ी के अलावा एग्रो कंपनी की ककड़ी बहुतायत में लगाई जाती है। पंजाब लान्गमेलन, करनाल सलेक्सन, अर्काशीतल जैसी अनेक किस्में सरकारी संस्थानों ने विकसित की हैं। इन सभी का उत्पादन 100 कुंतल प्रति एकड़ से ज्यादा बैठता है। किस्म का चयन कम समय में फल देने वाली का करना चाहिए।

आलू के खेतों के खाली होने के साथ ही किसान अच्छे से खेत तैयार कर इसके बीज को रोप सकते हैं। इकसे लिए खेत में नाली बनाई जाती है और नाली के किनारों पर ककड़ी बीज रोपा जाता है। आलू के खेतों में किसान कम्पोस्ट और रासायनिक खाद भरपूर डालते हैं। इस लिए ककड़ी के लिए कम उर्वरकों का प्रयोग करें। बीज को बुबाई से पूर्व कार्बन्डाजिम जैसे किसी फफूंदनाशक से दो ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दस से उपचारित करके बोएं।

ककडी की अच्छे फलन के लिए क्या करें

ककड़ी की फसल

सब्जी वाली फसलों में अच्छा फल बनाने के लिए कई तरह के प्रयोग वैज्ञानिकों ने किए हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण प्रयोग खरपतवारनाशी टू4डी का है। इसकी दो पीपीएम मात्रा यानी की 100 लीटर पानी में मात्र 2 एमएल दवा घोलकर बीज से अंकुर निकलने और दो पत्ते का होने की अवस्था में ही कर देना चाहिए। इससे फल बनने के समय नर फूलों की संख्या अधिक नहीं होगी। मादा फूल प्रचुर मात्रा में होंगे और हर फूल पर फल बनेंगे।

ककड़ी की खेती के लिए मिट्टी की सेहत

ककड़ी की खेती के लिए जमीन का पीएच मान 5.8 से 7.5 के बीच होना चाहिए। जमीन अच्छी जल धारण क्षमता वाली एवं भुरभुरी होनी चाहिए।

फसल की बुबाई का समय

किसी भी फसल को यदि अगेती लगाया जाता है तो मण्डियों में अच्छा पैसा मिलता है लेकिन इसके लिए प्लास्टिक सीट का लो टनल पॉलीहाउस बनाना पड़ता है। इसमें पौध को प्लग ट्रे, दौने या छोटे ग्लासों में तैयार किया जाता है या फिर खेत में ही बीज रोपकर पालीथिन से ढ़कना पड़ता है। सामान्य तरीके से खेती करने के लिए फरवरी से मार्च तक ककड़ी की खेती के लिए बीज खेत में रोपे जा सकते हैं।

जरूरी क्रियाएं

हर फसल के लिए कुछ क्रियाएं आवश्यक होती हैं। ककड़ी की खेती के लिए प्रति एकड़ एक किलोग्राम बीज की जरूरत होती है। कतार से कतार के मध्य डेढ़ से दो मीटर की दूरी रखें। एक स्थान पर कमसे कम दो बीज चोभें। ककड़ी की खेती के लिए चार से पांच पानी की आवश्यकता होती है।  बीज को ढ़ाई से चार सेण्टीमीटर गहरा बोना चाहिए।

ककड़ी की खेती में कीट एवं रोग

ककड़ी की खेती में कई तरह के कीट एवं रोग लगते हैं। इन्हें समुचित सिंचाई, बीजोपचार, उर्वरक प्रबंधन से रोका जा सकता है। इसमें लगने वाला कीट चेंपा होता है। यह सरसों की फसल से आता है। इसे मारने के लिए किसी भी सामान्य कीटनाशनक का छिड़काव फसल पर करें। भुण्डी के कारण फूल, पत्ते और तना प्रभावित होता है। इसके लक्षण दिखते ही कार्बरिल 4 ग्राम प्रति लीटर के हिसाब से छिड़काव करें। फल मक्खी से फसल को बचाने के​ लिए नीम के तेल का प्रयोग तीन प्रतिशत के हिसाब से करें। फफूंदजनित बीमारियों की रोकथाम के लिए कार्बन्डाजिम की उचित मात्रा का छिड़काव करें।

उचित क्रियाओं और रोगों की निगरानी व निदान करते हुए अधिकतम 60—70 दिन में फल लगने लगता है। इसकी ठीक तरह से ग्रेडिंग—पैकिंग करके बाजार ले जाएं। प्रारंभिक तौर पर ककड़ी की बेहद अच्छी कीमत मिलती है।

क्यों है मार्च का महीना, सब्जियों का खजाना : पूरा ब्यौरा ( Vegetables to Sow in the Month of March in Hindi)

क्यों है मार्च का महीना, सब्जियों का खजाना : पूरा ब्यौरा ( Vegetables to Sow in the Month of March in Hindi)

मार्च का महीना किसानों के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है। किसान इस महीने विभिन्न प्रकार की सब्जियों की बुवाई करते है तथा धन की उच्च दर पर प्राप्ति करते हैं। 

इस महीने किसान तरह तरह की सब्जियों की बुवाई करते है जैसे: खीरा, ककड़ी, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, खरबूजे, तरबूजे, भिंडी, ग्वारफल्ली आदि। मार्च के महीने में बोई जाने वाली सब्जियों की जानकारी:

खीरे की फसल कि पूर्ण जानकारी ( Cucumber crop complete information) in Hindi

खीरे की सब्जियों की टोकरी Cucumber crop

खीरे की खेती के लिए खेतों में आपको क्यारियां बनानी होती है। इसकी बुवाई लाइन में ही करें।  लाइन की दूरी 1.5 मीटर रखें और पौधे की दूरी 1 मीटर। 

बुवाई के बाद 20 से 25 दिन बाद गुड़ाई करना चाहिए। खेत में सफाई रखें और तापमान बढ़ने पर हर सप्ताह हल्की सिंचाई करे, खेत से खरपतवार हटाते रहें।

ककड़ी की फ़सल की पूर्ण जानकारी ( Cucumber crop complete information) in Hindi

ककड़ी सब्जियां की बेल kakdi ki kheti

ककड़ी की फसल आप किसी भी उपजाऊ जमीन पर उगा सकते हैं।ककड़ी की बुवाई के लिए मार्च का समय बहुत ही फायदेमंद होता है। या सिर्फ 1 एकड़ भूमि में 1 किलो ग्राम बीज के आधार पर उगना शुरू हो जाती है। 

खेत को आपको तीन से चार बार जोतना होता है ,उसके बाद आपको खेतों में गोबर की खाद डालनी होती है। ककड़ी की बीजों को किसान 2 मीटर चौड़ी क्यारियों में किनारे किनारे पर लगाते है। इनकी दूरी लगभग 60 सेंटीमीटर होती है।

करेले की फ़सल की पूर्ण जानकारी ( Bitter gourd crop complete information) in Hindi

karele ki kheti

करेले की खेती दोमट मिट्टी में की जाती है। करेले को आप दो तरह से बो सकते हैं। पहले बीच से दूसरा पौधों द्वारा ,आपको करेले की खेती के लिए दो से तीन दिन की जरूरत पढ़ती है। 

इसकी बीच की दूरियों को 2.5 से लेकर 5 मीटर तक की दूरी पर रखना चाहिए।किसान करेले के बीज को बोने से पहले  लगभग 24 घंटा पानी में डूबा कर रखते हैं। ताकि उसके अंकुरण जल्दी से फूट सके। 

पहली जुताई किसान हल द्वारा करते हैं उसके बाद किसान तीन से चार बार हैरो या कल्टीवेटर द्वारा खेत की जुताई करते हैं।

लौकी की फ़सल की पूर्ण जानकारी ( Gourd crop complete information) in Hindi

lauki ki kheti

लौकी की खेती आप हर तरह की मिट्टी में कर सकते हैं लेकिन दोमट मिट्टी इसके लिए बहुत ही उपयोगी है। लौकी की खेती करने से पहले आपको इसके बीज को 24 घंटे पानी में डूबा कर रखना है अंकुरण आने तक, एक हेक्टेयर में आपको 4.5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है।

तुरई फसल की पूर्ण जानकारी ( Full details of turai crop) in Hindi

turai ki fasal

तोरई की फसल को हल्की दोमट मिट्टी में लगाना चाहिए। किसानों द्वारा प्राप्त जानकारियों से यह पता चला है।कि नदियों के किनारे वाली भूमि पर खेती करना बहुत ही अच्छा होता है। 

खेती करने से पहले जमीन को अच्छे से जोत लेना चाहिए। पहले हल द्वारा उसके बाद दो से तीन बार हैरो या कल्टीवेटर  से जुताई करना चाहिए। एक हेक्टेयर भूमि में कम से कम 4 से 5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

पेठा फसल की पूर्ण जानकारी( Complete information about Petha crop)

पेठा सब्जियों की बेल Petha crop

पेठा यानी कद्दू को दोमट मिट्टी में बोना बहुत ही  फायदेमंद होता है। पेठा की खेती के लिए दो से तीन बार कल्टीवेटर से जुताई करें। मिट्टियों को भुरभुरा बनाएं तथा खेतों की अच्छे ढंग से जुताई करें। एक हेक्टेयर में लगभग 7 से 8 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है। 

ये भी पढ़े: छत पर उगाएं सेहतमंद सब्जियां

खरबूजे की फसल (melon crop) in Hindi

melon crop

मार्च के महीने में खरबूजा बहुत ही फायदेमंद तथा पसंदीदा फलों में से एक है। किसान इसकी खेती नदी तट पर करते हैं। खेती करने से पहले बालू में एक थाला बनाते हैं और बीज बोने से थोड़ी देर पहले खेत को अपने हल के जरिए जोतते हैं। खरबूजे की फसल बोने के बाद इसकी सिंचाई को कम से कम 2 या 3 दिन बाद से करना शुरू कर देना चाहिए।

तरबूजे की फसल ( watermelon crop) in Hindi

watermelon crop

गर्मी में तरबूज को बहुत ही शौक से खाया जाता है।तरबूज में पानी की मात्रा बहुत ही ज्यादा होती है, इसको खाने से आप ताजगी का अनुभव करते हैं। इस फसल में लागत बहुत कम लगती है लेकिन मुनाफा उससे कई गुना होता है। 

तरबूज की फसल बहुत ही कम समय में उग जाती है, जिससे किसानों को काफी मुनाफा भी मिलता है। लेकिन इस बात का ध्यान रखें ,कि तरबूज में कीट और रोग का प्रकोप काफी बड़ा रहता है। किसानों को चाहिए कि वैज्ञानिकों के मुताबिक तरबूज की फसलों की देखरेख करें। तरबूज की फसलें 75 से 90 दिनों के अंदर पूर्ण रुप से तैयार हो जाती है।

भिंडी की फसल( okra harvest) in Hindi

भिंडी सब्जियां bhindi ki kheti

किसान भिंडी की फसल फरवरी से मार्च के दरमियान जोतना शुरू कर देते हैं। भिंडी की खेती हर तरह की मिट्टी में की जाती है। खेती से पूर्व दो तीन बार खेतों की जुताई करें। 

जिससे मिट्टियों में भुरभुरा पन आ जाए, जमीन को समतल कर दे। खेतों में लगभग 15 से 20 दिन पहले इनकी निराई-गुड़ाई करें। खरपतवार नियंत्रण रहे इसके लिए कई प्रकार का रासायनिक प्रयोग भी किसान करते हैं।

ग्वार फली की फसल( guar pod crop) in Hindi

गुआर सब्जियों की फसल guar ki kheti

ग्वार फली किसानों कि आय का बहुत महत्वपूर्ण साधन होता है। किसान ग्वार फली का इस्तेमाल हरी खाद ,हरा चारा ,हरी फली , दानों आदि के लिए करते है। ग्वार फली में प्रोटीन तथा फाइबर का बहुत ही अच्छा स्त्रोत होता है। 

इनके अच्छे स्त्रोत के कारण इनको पशुओं के चारे के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। जिससे पशुओं को विभिन्न प्रकार के प्रोटीन की प्राप्ति हो सके। किसान ग्वार फली की खेती दो मौसम में करते हैं पहला बहुत गर्मी के मौसम में तथा दूसरा  बारिश के मौसम में। 

ग्वार फली की बुवाई किसान मार्च के महीने में 15 से लेकर 25 तारीख के बीच खेती करना शुरू कर देते हैं। ग्वार फली की फसलें 60 से 90 दिन के अंदर पूर्ण रूप से तैयार हो जाती है तथा यहां कटाई के लायक़ हो जाती हैं। 

ग्वार फली में बहुत तरह के पौष्टिक तत्व भी मौजूद होते हैं इनका उपयोग विभिन्न प्रकार की सब्जियों को बनाने तथा सलातो के रूप में किया जाता है। हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारी इस पोस्ट द्वारा मार्च के महीने में उगाई जाने वाली सब्जियों की पूर्ण जानकारी पसंद आई होगी। 

आपने इन सब्जियों के विभिन्न प्रकार के लाभ को जान लिया होगा। यदि आप हमारी दी गई जानकारी से संतुष्ट हैं तो आप हमारी इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा सोशल मीडिया पर शेयर करें धन्यवाद।

ऐसे करें खीरे की खेती, मिलेगा मुनाफा ही मुनाफा

ऐसे करें खीरे की खेती, मिलेगा मुनाफा ही मुनाफा

गर्मियों के मौसम में लोगों को खीरा सबसे ज्यादा पसंद आता है. इससे ना सिर्फ प्यास बुझती है, बल्कि यह शरीर को अंदर से तरोताजा कर देता है. खीरे से हेल्थ को बहुत फायदा होता है, साथ ही यह स्किन के लिए काफी अच्छा माना जाता है. अनगिनत गुणों वाले खीरे की खास तरह से खेती करके किसान भाई मुनाफा ही मुनाफा कमा सकते हैं. बात जब खीरे की खेती करने की आती है तो इसकी खेती खरीफ और जायद दो सीजन में सबसे ज्यादा की जाती है. इसके अलावा खीरे की खेती ग्रीन हाउस में पूरे साल भर बड़ी ही आसानी के साथ की जा सकती है. हालांकि खीरे की डिमांड बसे ज्यादा गर्मियों के मौसम में होती है. क्योंकि इसकी तासीर काफी ठंडी होती है. इस वजह से इसका सेवन गर्मियों में सबसे ज्यादा किया जाता है. गर्मियों में खीरा खाने से पेट से जुड़ी समस्याएं दूर रहती हैं. खीरे में 95 प्रतिशत पानी होता है जो गर्मियों में शरीर को डी-हाईड्रेट होने से बचाता है. खीरे में कई तरह के विटामिन मौजूद होते हैं जो स्किन और बालों के लिए काफी अच्छे होते हैं. सलाद, सब्जी या फिर कच्चा किसी भी तरह से खीरे का सेवन किया जा सकता है.

खीरे से जुड़ी खास जानकारी

खीरे का नाम कुकुमिस स्टीव्स है. इसे खास रूप से भारत में उगाया जाता है. खीरे की बेल होती है, जिसमें इसके फल लटकते हैं. खीरे के बीजों का इस्तेमाल तेल निकालने के लिए भी किया जा सकता है. जो शरीर और दिमाग दोनों के लिए ही काफी अच्छा होता है. खीरे के पौधे का आकार लंबा और इसके फूल पीले रंग के होते हैं. खीरे का इस्तेमाल स्किन, किडनी और दिल से जुड़ी समस्याओं के निदान के लिए किया जाता है.

क्या हैं खीरे की उन्नत किस्में?

भारतीय किस्में

स्वर्ण अगेती, स्वर्ण पूर्णिमा, पूसा उदय, पूना खीरा, कल्यानपुर मध्यम, खीर 90, पूसा खीरे जैसी करीब 75 किस्में हैं.

नवीनतम किस्में

स्वर्ण शीतल, पूसा उदय, स्वर्ण पूर्णा आदि. ये भी देखें: खीरा की यह किस्म जिससे किसान सालों तक कम लागत में भी उपजा पाएंगे खीरा

संकर किस्में

पंत संकर खीरा, प्रिया, हाइब्रिड 1, हाइब्रिड 2 आदि.

विदेशी किस्में

जापानी लौंग ग्रीन, स्ट्रेट 8, पोइनसेट आदि.

खीरे की खेती के लिए क्या हो जलवायु और मिट्टी?

खीरे की उन्नत खेती के लिए रेतीली दोमट और भारी मिट्टी में उगाया जाता है. इसकी खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली बलुई और दोमट मिट्टी दोनों की जरूरत होती है. खीरे की अच्छी खेती के लिए मिट्टी का पीएच मां कम से कम 5 से 7 के बीच में होना चाहिए. अगर आप खीरे की खेती करना चाहते हैं, तो इसके लिए अच्छे तापमान की जरूरत होती है.

क्या है खेती का सही समय?

खीरे की खेती पाले से खराब हो सकती है. इसलिए इसकी खेती के लिए जायद सीजन सबसे अच्छा होता है. गर्मियों के मौसम में खेती के बीजों की बुवाई फरवरी और मार्च के महीने में होती है. बारिश के मौसम में इसकी बुवाई जून से जुलाई में की जाती है. वहीं पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी बुवाई मार्च और अप्रैल के महीने में की जाती है.

कैसे करें जमीन तैयार?

खीरे की खेती करने से पहले जमीन को अच्छे से तैयार करना बेहद जरूरी है. इसके लिए पहली जुताई मिट्टी को पलटने वाले हल से करके इसकी दो से तीन बार जुताई देसी हल से करनी चाहिए. ये भी देखें: भूमि विकास, जुताई और बीज बोने की तैयारी के लिए उपकरण

कितनी हो बीज की सही मात्रा?

अगर किसी किसान का खेत एक एकड़ है तो उसके लिए कम से कम एक किलो खीरे के बीजों की मात्रा काफी है. इस बात का ध्यान रखें कि, बिजाई से पहले फसल को कीड़ों और रोगों से बचाने के लिए जरूरी उपचार करें. बुवाई से पहले बीजों का कम से कम दो से तीन ग्राम कप्तान के साथ उपचार किया जाना चाहिए. इसके बीज बोने के लिए ढ़ाई मीटर चौड़े बैड का चुनाव करें. हर जगह दो बीजों की बुवाई करें औए उनके बीच कम से कम 50 से 60 सेमी. का फासला जरूर रखें.

कैसा हो बुवाई का सही ढ़ंग?

खीरे के बीजों की बुवाई छोटी सुरंग विधि से की जा सकती है. इस विधि से खीरे की पैदावार जल्दी होती है. इसके लिए गड्ढे को खोदकर बुवाई करनी चाहिए. इसके साथ ही खालियां बनाकर बुवाई और गोलाकार गड्ढे खोदकर भी बुवाई की जा सकती है.

कितनी हो खाद की मात्रा?

खीरे की खेती से पहले खेत तैयार करते वक्त 40 किलो नाइट्रोजन, 20 किलो फास्फोरस और 20 किलो पोटेशियम को शुरुआत में खाद के तौर पर डालें. बुवाई के समय नाइट्रोजन का एक तिहाई हिस्सा और पोटेशियम और सिंगल सुपर फास्फेट को मिलाकर डालें. बुवाई के लगभग एक महीने के बाद बची हुई खाद का भी इस्तेमाल कर लें.

कैसे करें खरपतवार को नियंत्रित?

खीरे की खेती के दौरान हो रही खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए गोड़ाई और रसायनों की मदद ली जा सकती है. इसके अलावा आधा लीटर ग्लाइफोसेट को हर 150 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव किया जाता है. इसका छिड़काव मुक्य फसल पर ना करें.

कैसे करें सिंचाई?

खीरे की खेती गर्मियों के मौसम में की गयी है, तो इसकी सिंचाई बार बार की जानी चाहिए. हालांकि बारिश के मौसम में इसे सिंचाई की जरूरत नहीं होती. इसमें बुवाई से पहले एक बार सिंचाई की जानी चाहिए. जिसके बाद तीन से चार दिनों के गैप पर सिंचाई की जाती है. वहीं दूसरी बुवाई के बाद 5 से 6 दिनों पर सिंचाई की जाती है. ये भी देखें: मुख्यमंत्री लघु सिंचाई योजना में लाभांवित होंगे हजारों किसान

कैसे करें पौधे की देखभाल, बिमारी और रोकथाम

एन्थ्राक्नोस नाम की बिमारी में फल गलने लगते हैं. यह बिमारी खीरे के सारे हिस्सों को बुरी तरह से प्रभावित करती है. खासतौर से वो हिस्से जो जमीन के ऊपर होते हैं. इसमें पुराने पत्तों पर पीले रंग के दाग धब्बे और फलों पे गहरे गोल धब्बे नजर आते हैं. इस बिमारी की रोकथाम के लिए क्लोरोथैलोनिल और बेनोमाइल का इस्तेमाल किया जाता है.

अगर पौधा मुरझाए

इर्विनिया नाम की इस बिमारी से पौधे की नाड़ी प्रभावित होने लगती है. जिस वजह से पौधा मुरझा या सूख जाता है. पौधे को इस बीमारी से बचाने के लिए कीटनाशक स्प्रे का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.

पत्तों में दिखे सफेद धब्बे

अगर आपको पत्तों के ऊपर पाउडर वाले सफ़ेद धब्बे नजर आएं, तो सतर्क होने की जरूरत है. इससे पौधों को बचाने के लिए बैनोमाइल या क्लोरोथैलोनिल का स्प्रे किया जा सकता है.

अगर हो जाए चितकबरा रोग

अगर पौधे को चितकबरा रोग जाए तो पौधों का विकास रुक जाता है. इसके अलावा पत्ते मुरझा जाते हैं और निचले हिस्से में पीलापन हो जाता है. इसकी रोकथाम के लिए डियाजीनॉन का स्प्रे किया जाता है.

अगर लग जाए फल की मक्खी

खीरे की फसल में लगने वाला यह बेहद गंभीर रोग है. इसमें फल गलने शुरू हो जाते हैं और टूटकर नीचे गिर जाते हैं. इसकी रोकथाम के लिए पत्तों पर नीम के तेल का स्प्रे किया जाना चाहिए.

कैसे करें फसल की कटाई?

बुवाई के करीब एक से डेढ़ महीने में पौधे में फल लगाना शुरू हो जाते हैं. खीरे की कटाई खास तौर पर बीज के नरम होने, फल छोटे और हरे होने पर करें. इसकी कटाई के लिए धारदार चाकू या किसी नुकीली चीज का इस्तेमाल करें. इसकी पैदावार प्रति एकड़ 33 से 42 क्विंटल तक होती है. ये भी देखें: खरीफ की फसल की कटाई के लिए खरीदें ट्रैक्टर कंबाइन हार्वेस्टर, यहां मिल रही है 40 प्रतिशत तक सब्सिडी

कैसा हो बीज का उत्पादन

खीरे के उत्पादन के लिए भूरे रंग के बीज अच्छे होते हैं. बीज निकालने के लिए फलों के गुदे को कम दे कम दो दिनों तक पानी में रखें, ताकि बीज आसानी से अलग किये जा सकें. उसके बाद उन्हें हाथों से जोर से रगड़ा जाता है. जो बीज पानी में भारी होने के कारण नीचे बैठ जाते हैं, उनका इस्तेमाल कई और कामों में किया जाता है. इस तरह से खीरे की खेती करने से किसान भाइयों को अच्छा खासा मुनाफा हो सकता है.
डबल मुनाफा कराएगी ककड़ी की खेती, इस तरह करें खेती

डबल मुनाफा कराएगी ककड़ी की खेती, इस तरह करें खेती

खीरे के बाद अगर गर्मियों में सबसे ज्यादा पसंद की जाती है, तो वो है ककड़ी. जी हां, ककड़ी बेहद कम लागत में अच्छा मुनाफा दे सकती है. देखा जाए तो, देश में लगभग सभी क्षेत्रों में ककड़ी की खेती की जाती है. गर्मियों का सीजन आते ही बाजार में इसकी डिमांड दोगुनी हो जाती है. जिसे देखते हुए अगर इसकी खेती की जाए तो, डबल मुआफा आराम से कमाया जा सकता है. देश में किसान ककड़ी की खेती नगदी फसल के तौर पर करते हैं. 

ककड़ी की खेती करने के लिए बेहद कम लागत में की जा सकती है. जिसमें अच्छा खासा मुनाफा मिलता है. इसे भारतीय मूल की फसल कहा जाता है, जिसे जायद के सीजन में उगाया जाता है. ककड़ी के पौधे में लगभग एक फीट तक फल लगते हैं. इसे सब्जी या सलाद के रूप में खाया जा सकता है. 

ये भी पढ़े: खीरे की खेती कब और कैसे करें? 

ककड़ी की खेती अगर वैज्ञानिक तरीके से की जाए तो इस्ससे डबल मुनाफा कमाया जा सकता है. अगर आप भी ककड़ी की खेती करना चाहते हैं, तो इससे जुड़ी हर तरह की जानकारी के बारे में आपको जान लेना जरूरी है.

कैसे करें ककड़ी की खेती?

ककड़ी का साइंटिफिक नाम कुकुमिस मेलो वैराइटी यूटिलिसिमय है. यह जायद के सीजन में बोई जाती है. तरोई की तरह ही इसकी खेती भी की जाती है. फरवरी से मार्च के बीच में इसकी बुवाई की जाती है. बलुई दुमट जमीनों से इसकी फसल अच्छी होती है. हफ्ते में दो बार इसकी फसल को सिंचाई की जरूरत होती है. ककड़ी की सबसे अच्छी फसल गरम और शुष्क मौसम में होती है. दो जातियों वाली इस ककड़ी में एक का रंग हल्का हरा होता है, तो वहीं दूसरे में गहरे हरे रंग की होती है. इन दोनों जातियों में से पहली जाति को लोग ज्यादा खाना पसंद करते हैं. दो सौ प्रति क्विंटल के हिसाब से उसकी उपज होती है.

क्या है उपयुक्त जलवायु?

गर्म और शुष्क जलवायु ककड़ी की खेती के लिए अच्छी मानी जाती है. इसलिए गर्मियों के मौसम में इसकी पैदावार ज्यादा और अच्छी होती है. वहीं टंडी जलवायु में इसकी खेती करना मुश्किल हो सकता है. ककड़ी की फसल खासतौर पर गर्मियों की फसल है. 20 से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच इसके बीज बढ़ते हैं. अगर तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से कम है तो, कम के बीज नहीं लगते. लेकिन ज्यादा तापमान भी ककड़ी की खेती के लिए हानिकारक होता है.

कैसी हो जमीन?

ककड़ी की खेती आमतौर पर सरलता से सभी क्षेत्रों में की जा सकती है. अगर मिट्टी उपजाऊ है, तो इसकी खेती करने में आसानी हो सकती है. अगर इसकी अच्छी खासी पैदावार चाहते हैं, तो कार्बनिक पदार्थ युक्त बलुई दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है. जहां पर इसकी खेती कर रहे हैं, उस जगह की जमीन की पानी की निकासी अच्छी होनी चाहिए. अगर जल भराव वाली जगह पर खेती की जाएगी, तो फसल बर्बाद हो जाएगी.पीएच 6 से 7.5 मां वाली मिट्टी ककड़ी की खेती के लिए जरूरी होती है.

कैसे करें खेत की तैयारी?

अगर आप ककड़ी की कहती से उसकी ज्यादा पैदावार चाहते हैं, तो इसके खेत को पहले अच्छे से तैयार कर लें. खेत को तैयार करने के लिए खेत में पहले से मौजूद गंदगी को अच्छे से साफ़ कर लें, और खेत की अच्छे जुताई कर लें. जिसके बाद खेत को पलेव कर दें. इसके तीन से चार दिनों के बाद जब मिट्टी ऊपर से थोड़ी सूखने लगे तो उसे भुरभुरी बला लें. समतल जमीन पर मेड़ बनाकर ककड़ी के बीजों की बुवाई की जाती है. बुवाई से पहले तैयार खेत में नाली जरुर बना लें. ताकि जब भी मिट्टी में नमी हो तो बुवाई का काम शुरू किया जा सके. क्योंकि नम मिट्टी में बीजों का अंकुरण भी तेज होता है, और विकास भी अच्छा होता है. 

ये भी पढ़े: घर पर करें बीजों का उपचार, सस्ती तकनीक से कमाएं अच्छा मुनाफा

क्या हैं उन्नत किस्में?

वैसे तो ककड़ी की उन्नत किस्में काफी कम होती हैं. लेकिन कुछ संकर किस्मों की मदद से किसान ज्यादा से ज्यादा ककड़ी की पैदावार कर सकते हैं.
  • जैनपुरी ककड़ी की उन्नत किस्म में उत्पादन का समय 80 से 85 दिनों के बाद होता है. वहीं इसका उत्पादन 150 से 180 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मिलता है.
  • अर्का शीतल की उन्नत किस्म 90 से 100 दिन बाद लगभग 2 सौ क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उत्पादन मिलता है.
  • पंजाब स्पेशल की उन्नत किस्मों का उत्पादन समय 90 से 95 दिन के बाद होता है. जिसमें 2 सौ क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उत्पादन मिलता है.
  • दुर्गापुरी ककड़ी की उन्नत किस्म में उत्पादन का समय 90 से 100 दिनों का होता है. जिसमें उत्पादन 2 सौ क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उत्पादन मिलता है.
  • लखनऊ अर्ली की उन्नत किस्म में उत्पादन का समय 75 से 80 दिन का होता है, इसमें 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का हिसाब से उत्पादन मिलता है.
  • 708 की उन्नत किस्म में इसका उत्पादन 80 दिनों के बाद होता है. वहीं 140 से 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से इसका उत्पादन होता है.

कितनी मात्रा में करें बीज की बुवाई?

ककड़ी के बीजों की रोपाई आपके तरीके पर भी निर्भर करता है. इसके लिए कम से कम एक हेक्टेयर के खेत में लगभग दो से तीन किलोग्राम बीज काफी होते हैं. अगर आप चाहते हैं, कि मिट्टी को किसी तरह का रोग ना हो तो, उसके लिए बुवाई से पहले बैनलेट या दो से तीन ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें. अगर आप ककड़ी के पौधों को नर्सरी में तैयार कर सकते हैं, या किसी नर्सरी से खरीद भी सकते हैं. ककड़ी के बीजों की रोपाई करने के लिए कम से 20 से 30 सेंटीमीटर चौड़ी नालियां बनाएं. जिसके दोनों किनारे 30 से 40 सेंटीमीटर की दूरी पर बुवाई करें.

कितनी को खाद की मात्रा?

ककड़ी की खेती से पहले जमीन पर गोबर की सड़ी खाद को 200 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाया जाता है. यह ककड़ी की खेती के लिए काफी अच्छा माना जाता है. इसके अलावा अगर रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो उसके रूप में 80 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फास्फोरस, 60 किलो पोटाश का इस्तेमाल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से कर सकते हैं. फास्फोरस और पोटाश को आपस में मिलाकर उसमें एक तिहाई नाइट्रोजन मिला दें. फिर बुवाई करने वाली नालियों की जगह पर डालकर उसमें मिट्टी मिला दें और मेंड़ बना दें. बाकी के बचे हुए नैत्रोजं को दो बराबर हिसों में मिलाकर एक महीन के बाद नालियों में डालकर गुड़ाई कर दें.

कैसे करें पौधों की सिंचाई?

ककड़ी के पौधों को ज्यादा सिंचाई की जरूरत होती है. इसकी शुरुआती सिंचाई को पौधे रुपाई के तुरंत बाद करना होता है. वहीं गर्मियों के सीजन में ककड़ी के पौधों को हफ्ते में दो बार सिंचाई की जरूरत होती है. अगर जमीन में नमी कम है तो, पैदावार पर इसका असर हो सकता है. इसलिए पौधों पर बनने वक्त उनकी हल्की सिंचाई करते रहना जरूरी होता है.

कैसे करें रोग नियंत्रण?

बेल के रूप में विकास करने वाला ककड़ी का पौधे में खरपतवार से बचाना बेहद जरूरी है. इसे कंट्रोल करने के लिए निराई गुड़ाई तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. जो 20 से 30 दिनों के बाद की जाती है. इसके अलावा इसके रोग को कैसे नियंत्रित कर सकते हैं, ये भी जान लेते हैं.
  • ककड़ी की फसल में फल मक्खी का प्रकोप तेजी से होता है. इसे ककड़ी को ज्यादा नुकसान होता है. इसकी रोकथाम के लिए मैलाथियान 50 ई एक मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए.
  • ककड़ी की फसल में बरुथी नाम का कीट पत्तियों के निचले हिस्से में रहता है. यह उसके तने और पत्तियों का रस चूसता है. इससे बचाव के लिए इथियान 50 ई सी 0.6 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए.
  • ककड़ी की फसल में दिखने वाला लाल भृंग नई पत्तियों को खा लेता है. इसकी वजह से पत्ते झुलसे हुए नजर आते हैं. इससे फसल को बचाने के लिए कार्बारिल का 3 से 5 फीसद चूरण का 15 से 20 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर की से प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें.
ये भी पढ़े: जैविक पध्दति द्वारा जैविक कीट नियंत्रण के नुस्खों को अपना कर आप अपनी कृषि लागत को कम कर सकते है

कैसे करें फलों की तुड़ाई?

ककड़ी की फसल की तुड़ाई में बिलकुल भी जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए. आपको इस बात का ख्याल रखना जरूरी है, कि फल हरे और मुलायम हो तभी तुड़ाई का काम करना चाहिए. अगर आपने समय से पहले या समय के बाद फलों की तुड़ाई करेंगे तो, फल अपना आकर्षण और गुण खो देते हैं. इस वजह से बाजार में इसके भाव भी घट जाते हैं.

तो कुछ इस तरह से ककड़ी की खेती करके आप भी मोटा मुनाफा कम सकते हैं.

नुनहेम्स कंपनी की इम्प्रूव्ड नूरी है मोटल ग्रीन खीरे की किस्म

नुनहेम्स कंपनी की इम्प्रूव्ड नूरी है मोटल ग्रीन खीरे की किस्म

गर्मियों का सीजन शुरू हो चुका है. ऐसे में लोगों को गर्मी में कुछ रिफ्रेशिंग और नेचुरल चीजे खाने की सलाह दी जाती है. बात रोफ्रेशिंग और नेचुरल चीजों की हो तो कोई भला खीरे को कैसे भूल सकता है. जिसकी तासीर तो ठंडी होती ही है, साथ में शरीर के लिए भी बेहद फायदेमंद है. 

पहले के समय में खीरे की खेती किसी ख़ास सीजन में हुआ करती थी. लेकिन पिछले कुछ सालों में उन्नत किस्मों के बीज और पाली हाउस जैसे जरिये की मदद से अब लोगों को साल भर तक खीरे खाने को मिलता है. तभी तो पूरी दुनिया भर में भारत खीरे के सबसे बड़ा निर्यातक बनकर उबर चुका है. 

ज्यादातर मामलों में खीरे की बुवाई फरवरी से मार्च के महीने में की जाती है. खीरे की फसल गर्म और शुष्क वातावरण में की जाती है. साथ ही अच्छी जल निकाली वाली मिट्टी खीरे की फसल के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है. खीरा उन्हीं फसलों में से एक है, जिससे किसान भाइयों का अच्छा खासा मुनाफा हो सकता है.

कहां से हुई निर्यात की शुरुआत

भारत में खीरे का निर्यात साल 1990 के दशक में कर्नाटक से शुरू हुआ था. जिसका स्तर काफी छोटा था. बाद में तमिलनाडु के साथ आंध्र प्रदेश एयर तेलंगाना में भी निर्यात का काम शुरू हो गया. पूरी दुनिया भर में सिर्फ भारत में 15 फीसद खीरे का उत्पादन किया जाता है. 

भारत से लगभग 20 देशों से भी ज्यादा खीरे का निर्यात किया जाता है, जिसमें अमेरिका, फ्रांस, आस्ट्रेलिया, जर्मनी, स्पेन, दक्षिण कोरिया, कनाडा, जापान, चीन, रूस, श्री लंका और इजरायल जैसे देश हैं. 

ये भी पढ़ें: ऐसे करें खीरे की खेती, मिलेगा मुनाफा ही मुनाफा

जानिए खीरे की उन्नत किस्मों के बारे में

वैसे तो खीरे की उन्नत किस्मों की भारत में भरमार है. जिनकी बुवाई से किसानों को भरपूर मुनाफा होता है. जिनमें पूसा संयोग और बरखा, स्वर्ण पूर्णिमा, स्वर्ण अनेति, पंजाब सलेक्शन जैसी ये सभी खीरे की अच्छी किस्मों में मानी जाती है.

इनके अलावा खीरे की एक और किस्म भी है. जिसका नाम इम्प्रूव्ड नूरी है. जिसे नुनहेम्स कंपनी ने तैयार किया है. इस खास किस्म के चलते किसानों को डबल मुनाफा होता है. किसानों को अच्छी और उपजाऊ फसलों के लिए बीज और नये नये किस्मों को उपलब्ध करवाने का काम नुनहेम्स कंपनी करती है. 

इसके अलावा यह कंपनी हरी सब्जियों और फलों की खेती के लिए बीज के साथ खेती करने का सही ढ़ंग भी किसानों को सिखाती है. ताकि उन्हें अच्छी और उन्नत फसलों का फायदा मिल सके. मोटल ग्रीन खीरे की किस्म इम्प्रूव्ड नूरी भी नुनहेम्स कंपनी की देन है. जिसकी उपज, आकार, परिपक्वता के साथ अन्य जानकारी भी जान लेनी चाहिए.

खीरे की किस्म है इम्प्रूव्ड नूरी

  • नुनहेम्स कंपनी इस खीरे की किस्म की स्रोत है.
  • लगभग 30 से 40 दिनों में यह पककर तैयार हो जाते हैं.
  • इस किस्म के खीरे का आकार बेलनाकार होता है.
  • इम्प्रूव्ड नूरी किस्म के खीरे की लम्बाई लगभग 18 से 22 सेंटीमीटर होती है.
  • कुछ वायरस के लिए इस किस्म में प्रतिरोधी किस्म है.
  • इस खीरे का रंग मीडियम हरा होता है.
  • इस किस्म के खीरे में भी संतुलित पोषक तत्व होते हैं.
  • इसकी उपज की बात की जाए तो इसमें काफी अच्छी उपज किसानों को मिलती है.