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जाने काजू की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

जाने काजू की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

काजू भारत का एक लोकप्रिय नट है। काजू  लगभग एक इंच मोटा होता ह।  काजू एक प्रकार का पेड़ होता है ,जिसका उपयोग सूखे मेवे के रूप में किया जाता है। काजू दो परतो के साथ एक शेल के अंदर घिरा हुआ होता है ,और यह शेल चिकना और तैलीय होता है। काजू का उत्पादन भारत जैसे देश के कई राज्यों में किया जाता है। जैसे : पश्चिम बंगाल , तमिल नाडू , केरला , उड़ीसा, महाराष्ट्र और गोवा।

कब और कैसे करें काजू की खेती 

काजू की खेती किसानों द्वारा अप्रैल और मई माह में की जाती है। किसानों द्वारा काजू की खेती के लिए सबसे पहले भूमि को तैयार किया जाता है। इसमें भूमि पर होने वाले अनावश्यक पौधे और झाड़ियों को उखाड़ दिया जाता है। इसके बाद खेत में 3 -4  बार जुताई की जाती है , जुताई की जाने के बाद खेत को पाटा लगाकर समतल बनाया जाता है। उसके बाद भूमि को अधिक उपजाऊ बनाने के बाद किसानों द्वारा गोबर खाद का भी प्रयोग किया जाता है। आवश्यकतानुसार , किसानों द्वारा खेत में गोबर की खाद डालकर , खेत की अच्छे से जुताई की जाती है।

कैसे करें बुवाई 

किसानों द्वारा काजू के पौधे की बुवाई के लिए खेत में 15 -20  से मी की दूरी पर खेत में गढ्डे बनाये जाते है। गड्डो को कम से कम 15  -20 दिनों के लिए खाली छोड़ दिया जाता है। उसके बाद गड्डो में डीएपी और गोबर की खाद को ऊपरी मिट्टी में मिलाकर अच्छे से भर दिया जाता है। ध्यान रखे गड्डो के पास की भूमि ऐसी न हो जहाँ  पानी भरने की समस्या उत्पन्न हो , उससे काजू के पौधे पर काफी प्रभाव पड सकता है। 

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काजू के पौधो को वैसे वर्षा काल में लगाना ही बेहतर माना जाता है। बुवाई के बाद खेत में होने वाली खरपतवार को रोकने के लिए किसानों द्वारा समय समय नराई और गुड़ाई का काम किया जाता है। 

काजू की उन्नत किस्में

काजू की विभिन्न किस्में इस प्रकार है , जिनका उत्पादन किसानों द्वारा किया जा सकता है। वेगुरला-4 , उल्लाल -2 , उल्लाल -4 , बी पी पी -1 , बी पी पी -2 , टी -40 यह सब काजू की प्रमुख किस्में है, जिनका उत्पादन कर किसान ज्यादा मुनाफा कमा सकता है।  इन किस्मो का ज्यादातर उत्पादन मध्य प्रदेश , केरला , बंगाल , उड़ीसा और कर्नाटकजैसे राज्यों में किया जाता है।

काजू की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मृदा 

काजू की खेती के लिए वैसे सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। काजू का ज्यादातर उत्पादन वर्षा वाले क्षेत्रों में किया जाता है , इसीलिए काजू की खेती के लिए समुद्र तटीय ,लाल और लेटराइट मिट्टी को बेहतर माना गया है। काजू का मुख़्यत उत्पादन झारखंड राज्य में किया जाता है ,क्योकि यहां की मृदा और जलवायु को काजू की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है।  काजू को उष्णकटिबंधीय फसल माना जाता है , इसीलिए ,इसके उत्पादन के लिए गर्म और उष्ण जलवायु के आवश्यकता होती है।

काजू की खेती में उपयुक्त खाद एवं उर्वरक 

काजू की खेती के अधिक उत्पादन के लिए किसान गोबर खाद के साथ साथ यूरिया , पोटाश और फास्फेट का  उपयोग कर सकते है। पहले वर्ष में किसानों द्वारा 70  ग्राम फॉस्फेट, 200 ग्राम यूरिया और 300 ग्राम यूरिया का प्रयोग किया जाता है।  कुछ समय बाद , फसल के बढ़वार के साथ इसकी मात्रा दुगनी कर देनी चाहिए।  किसानों द्वारा समय पर कीट और खरपतवार की समस्या को भी खेत में देखते रहना चाहिए।

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काजू के अच्छे उत्पादन के लिए किसानों को समय समय पर पेड़ों की काँट-छाँट करते रहना चाहिए। यह सब काजू के पेड़ को अच्छा ढाँचा देने के लिए आवश्यक है। किसानों द्वारा काजू के पेड़ों की जाँच करते रहना चाहिए , और समय समय पर पेड़ में सूखने वाली टहनियों या रोगग्रस्त टहनियों को निकाल दिया जाना चाहिए। काजू की फसल में लगने वाले बहुत से कीट ऐसे होते है , जो काजू के पेड़ में आने वाली नयी कोपलों और पत्तियों  का रस चूसकर पौधे को झुलसा देती है।

काजू की फसल की तुड़ाई कब की जाती है 

काजू की फसल लगभग फेब्रुअरी से अप्रैल माह तक तैयार होती है। काजू की पूरी  फसल की तुड़ाई नहीं की जाती है , केवल गिरे हुए नट को ही इकट्ठा किया जाता है। नट को इकट्ठा करने के बाद , उन्हें धुप में अच्छे से सुखाया जाता है। धुप में अच्छे से सुखाने के बाद किसानो द्वारा उन्हें जूट के बोरों में भर दिया जाता है। इन बोरों को किसी ऊँचे स्थान पर रखा जाता है , ताकि फसल को नमी से दूर रखा जा सके।

काजू का वानस्पातिक नाम अनाकार्डियम ऑक्सिडेंटले एल है।  काजू में पोषक तत्व के साथ बहुत से न्यूट्रिशनल गुण भी पाए जाते है। जो की स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी होते है।  काजू का उपयोग दिमाग की कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिए भी किया जाता है।  जिन व्यक्तियों को हड्डियों , मधुमेह और हीमोग्लोबिन से जुडी समस्याएं है , उनमे भी काजू लाभकारी सिद्ध  हुआ है।

काजू की अब तक 33 किस्मो की पहचान की गयी है , लेकिन सिर्फ 26  प्रकार की ही किस्मो को बाजार में बेचा जाता है। जिनमे से डब्ल्यू -180 की किस्म को "काजू का राजा "माना जाता है , क्योंकि इसमें बहुत से बायोएक्टिव कम्पाउंड पाए जाते है ,जो हमारे शरीर में होने वाले रक्त की कमी को पूरा करते है , कैंसर जैसी बीमारियों से लड़ने में सहायक रहते है , शरीर में होने वाले दर्द और सूजन में लाभकारी होता है।

किसानों के लिए जैविक खेती करना बेहद फायदेमंद, जैविक उत्पादों की बढ़ रही मांग

किसानों के लिए जैविक खेती करना बेहद फायदेमंद, जैविक उत्पादों की बढ़ रही मांग

जैविक खेती से कैंसर दिल और दिमाग की खतरनाक बीमारियों से लड़ने में भी सहायता मिलती है। प्रतिदिन कसरत और व्यायाम के साथ प्राकृतिक सब्जी और फलों का आहार आपके जीवन में बहार ला सकता है।

ऑर्गेनिक फार्मिंग मतलब जैविक खेती को पर्यावरण का संरक्षक माना जाता है। कोरोना महामारी के बाद से लोगों में स्वास्थ्य के प्रति काफी ज्यादा जागरुकता पैदा हुई है। बुद्धिजीवी वर्ग खाने पीने में रासायनिक खाद्य से उगाई सब्जी के स्थान पर जैविक खेती से उगाई सब्जियों को प्राथमिकता दे रहा है।

बीते 4 वर्षों में दो गुना से ज्यादा उत्पादन हुआ है

भारत में विगत चार वर्षों से जैविक खेती का क्षेत्रफल यानी रकबा बढ़ रहा है और दोगुने से भी ज्यादा हो गया है। 2019-20 में रकबा 29.41 लाख हेक्टेयर था, 2020-21 में यह बढ़कर 38.19 लाख हेक्टेयर हो गया और पिछले साल 2021-22 में यह 59.12 लाख हेक्टेयर था।

कई गंभीर बीमारियों से लड़ने में बेहद सहायक

प्राकृतिक कीटनाशकों पर आधारित जैविक खेती से कैंसर और दिल दिमाग की खतरनाक बीमारियों से लड़ने में भी मदद मिलती है। प्रतिदिन कसरत और व्यायाम के साथ प्राकृतिक सब्जी और फलों का आहार आपके जीवन में शानदार बहार ला सकता है।

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भारत की धाक संपूर्ण वैश्विक बाजार में है 

जैविक खेती के वैश्विक बाजार में भारत तेजी से अपनी धाक जमा रहा है। इतनी ज्यादा मांग है कि सप्लाई पूरी नहीं हो पाती है। आने वाले वर्षों में जैविक खेती के क्षेत्र में निश्चित तौर पर काफी ज्यादा संभावनाएं हैं। सभी लोग अपने स्वास्थ को लेकर जागरुक हो रहे हैं। 

जैविक खेती इस प्रकार शुरु करें 

सामान्य तौर पर लोग सवाल पूछते हैं, कि जैविक खेती कैसे आरंभ करें ? जैविक खेती के लिए सबसे पहले आप जहां खेती करना चाहते हैं। वहां की मिट्टी को समझें। ऑर्गेनिक खेती शुरू करने से पहले किसान इसका प्रशिक्षण लेकर शुरुआत करें तो चुनौतियों को काफी कम किया जा सकता है। किसान को बाजार की डिमांड को समझते हुए फसल का चयन करना है, कि वह कौन सी फसल उगाए। इसके लिए किसान अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र या कृषि विश्वविद्यालयों के विशेषज्ञों से मशवरा और राय अवश्य ले लें।

सरसों के फूल को लाही कीड़े और पाले से बचाने के उपाय

सरसों के फूल को लाही कीड़े और पाले से बचाने के उपाय

सरसों की फसल को आम तौर पर बहुत ही आसान, कम खर्चीली व कम देखरेख वाली फसल बताया जाता है लेकिन कोई भी फसल बिना देखरेख वाली नहीं होती है। देखरेख में जरा सी लापरवाही से फसल को भारी नुकसान हो जाता है। किसान भाइयों आपके द्वारा की गयी मेहनत पर पानी भी फिर सकता है, उस वक्त आपके पास पछताने के अलावा कुछ नहीं रह जाता है। इसलिए हमें सरसों की फसल करते समय लापरवाही नहीं बरतना चाहिये यदि हमें सरसों की अच्छी फसल लेनी है तो बुआई से कटाई तक हमें हर समय फसल की हर जरूरत का ध्यान रखना होगा।

सरसों के फूलों को झड़ने से बचाने के उपाय करें

किसान भाइयों, मौजूदा समय में सरसों की फसल में फूलों के आने का समय है। इसके तत्काल बाद इस फसल में फलियों के आने का समय है। जिन किसान भाइयों ने सरसों की अगैती फसल की होगी तो इस समय फूलों के साथ फलियां भी आने लगीं होंगी। इस समय हमें फूलों को सुरक्षित रखने व उनसे अच्छी फलियां बनने के उपाय करने होंगे।

closeup of mustard flower

सरसों के खेती पर की गयी सारी मेहनत पर फिर सकता है पानी

वर्तमान समय में सरसों की फसल में कीट आक्रमण या सिंचाई प्रबंधन की कमी या खाद प्रबंधन की कमी से फूलों का झड़ना शुरू हो जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि फूलों के झड़ने से आपकी फसल कमजोर होने वाली है। दूसरे शब्दों में कहं तो किसान भाइयों आपकी बुआई से लेकर अब तक की गयी मेहनत पर पानी फिरने वाला है और इस समय जरा सी लापरवाही हुई तो आपका उत्पादन गिरने वाला है। इसलिये हमें इस समय कौन-कौन से उपाय करने चाहिये उपन ध्यान देना होगा। आइये हम इन्हीं बातों का जिक्र करते हैं।

सरसों की सिंचाई का करें सही प्रबंधन

किसान भाइयों, सरसों की फसल में सिंचाई जमीन की किस्म के आधार पर की जाती है। यदि आपकी खेत की मिट्टी भारी है तो सरसों की फसल में आपको दो बार सिचांई करने की आवश्यकता होती है। यदि आपके खेत की मिट्टी हल्की है तो आपको सरसों की फसल में तीन बार सिंचाई करनी होती है। इसके अलावा आप सिंचाई प्रबंधन सर्दियों में होने वाले बरसात को भी देखकर आवश्यकतानुसार कर सकते हैं। भारी व हल्की मिट्टी में दूसरी सिंचाई आपको फूलों के आने से पहले या जब खेत में फूल 50 से 60 प्रतिशत आ गये हों तब करना चहिये। इससे आपके खेत में सरसों की फसल के फूल झड़ने से बच जायेंगे और जब फलियां बनेंगी तब खेत में पर्याप्त नमी रहेगी।

गरम पानी से करें सरसों की सिंचाई

सिंचाई करते समय किसान भाइयों को एक बात का ध्यान रखना चाहिये। यदि आप अपने फसल की सिंचाई नहर से कर रहे हों तो कोशिश करें कि आप अपने खेत की सिंचाई दिन में करें। दिन में करने से धूप से पानी गरम रहेगा तो पौधे पर सर्दी से होने वाला तनाव नहीं पड़ेगा। इसके अलावा यदि आपके पास नहर व ट्यूबवेल दोनों से ही सिंचाई की सुविधा है तो आपको अपने खेत की सिंचाई नहर की जगह ट्यूबवेल से करनी चाहिये ताकि पौधों को सर्दी में गरम पानी मिल सके। इससे आपके पौधों को काफी फायदा होगा।

जरूरत पड़ने पर करें सरसों का उर्वरक प्रबंधन

यदि आपने फूल आने से पहले खाद प्रबंधन के दौरान 20 किलो यूरिया और 3 किलो सल्फर प्रति एकड़ के हिसाब से डाला है तो फूल आने बाद आपको कुछ भी नहीं डालना है। खाद के अलावा आपको इस समय किसी तरह के कीट प्रबंधन के पदार्थो का भी प्रयोग नहीं करना है।

स्वस्थ सरसों के फूलों के लिए करें ये उपाय

सरसों के फूलों को मजबूती देने के लिए और स्वस्थ फलियों और उनमें मोटे दाने के लिए आप इस समय फसल में एनपीके 05234 तथा बोरोन का छिड़काव करना चाहिये। किसान भाइयों आप अपनी सरसों की फसल में फूल को अच्छी तरह से विकसित करने के लिए एनपीके 05234 प्रति एकड़ एक किलो और बोरोन 100 ग्राम को 100 से 150 लीटर पानी में डालकर छिड़काव करें तो फूलों के गिरने से बचाव हो सकता है। क्योंकि एनपीके 05234 में 34 प्रतिशत पोटाश होता है जो फूलों को गिरने से बचाने में सहायक होता है। बोरोना में फूल सेटिंग व सीट सेटिंग की अच्छी क्षमता होती है। इससे सरसों की फसल को काफी लाभ होता है।

पोटाश से होता है सरसों के फूलों का बचाव

पोटाश ट्रांसपोर्र्टर का काम करता है यानी यह पौधों के तनों, पत्तों, फूलों को आवश्यकतानुसार क्लोरोफिल, प्रोटीन, फाइबर हाइडेट वर्गरह पहुंचाता है। जो पौधे का मुख्य भोजन होता है। अच्छा भोजन मिलने से जब पौधा स्वस्थ होगा तो उसमें लगने वाले फूल भी स्वस्थ रहेंगे और जल्दी से नहीं गिरेंगे। जब फूल सुरक्षित रहेंगे तो उनसे अच्छी फलियां भी बनेंगी और फलियों में जब अच्छे दाने बनेंगे तो फसल अपने आप ही अच्छी होगी और उत्पादन बढेगा। कहने का मतलब किसान भाइयों को लाभ ही लाभ होगा।

Mustard crop, Sarso



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सरसों की फसल में कीट लगने पर करें ये काम

सरसों की फसल में फूल आने के वक्त एक खास प्रकार के कीट का हमला होता है, जिसे क्षेत्रीय भाषा में अलग अलग नाम से पुकारा जाता है, कोई लहि के नाम से जानता है तो कोई मोइला के नाम से जानता है। इस कीट के लगने से सरसों के फूल कमजोर हो जाते हें और उनका तेजी से झड़ना शुरू हो जाता है। किसान भाइयों को चाहिये कि वह इस कीट का हमला देखते ही सतर्क हो जायें और इसके प्रबंधन का उपाय करने लगें। इस कीट को समाप्त करने के लिए इमिडा क्लोग्रीड का इस्तेमाल करें काफी फायदा होगा। यह इमिडा मार्केट में अनेक कंपनियों की बनायी हुइ आसानी से मिल जाती है। आप अपने क्षेत्र के हिसाब से इसका चयन कर सकते हैं।

कम ओस या सर्दी में किये जाने वाला उपाय

जहां पर्याप्त ओस व ठण्ड न पड्ने से पौधे कमजोर हो जाते हें और उनमें फूल नहीं आता या कम आता है और यदि आता भी है तो झड़ जाता है। तो उसके लिए सिंचाई प्रबंधन व खाद प्रबंधन करना चाहिये। दूसरी सिंचाई के समय यूनिया व सल्फर डालना चाहिये। लेकिन इस बात का ध्यान रहे कि जब खेत में 10 से 15 प्रतिशत फूल आये हों तब सिंचाई खाद नहीं डालनी चाहिये बल्कि जब खेत में 50 से 60 प्रतिशत फूल आ गये हों तभी सिंचाई करके उर्वरक डालने चाहिये।

अधिक ठंड व पाला से बचाव इस प्रकार करें

यदि मौसम का मिजाज बिगड़ जाये तो किसान भाइयों तब भी सरसों की फसल प्रभावित हो जाती है। उसके फूल कम विकसित होते हैं और यदि फूल का विकास हो भी जाता है तो फलियों का विकास सही तरीके से नहीं हो पाता है। फलियां पतली रह जातीं है, उनमें दाने कम बनते हैं और पतले भी बनते हैं। इससे उत्पादन पूरी तरह से प्रभावित होता है। किसान भाइयों को चाहिये कि अंधिक ठंड और पाला से भी सरसों की फसल को बचाना चाहिये। उसके लिए हमें डस्ट वाले सल्फर का प्रयोग करना चाहिये या इसकी जगह आप गुड़ का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। सबसे अच्छा सफेद पाउडर वाले थायो यूरिया का प्रयोग करना चाहिये। किसान भाइयों सल्फर में पाला से बचाने की क्षमता होती है साथ ही साथ 15 प्रतिशत तक फसल पैदावार बढ़ाने की क्षमता होती है। गुड़ गरम होता है तो उसके प्रयोग से पाला से पूरी तरह से बचाव हो जाता है और फसल अच्छी हो जाती है। सर्दी और पाले से बचाव के लिए सबसे अच्छा थायो यूरिया को माना जाता है। सफेद पाउडर के रूप में मिलने वाले थायो यूरिया को 100 ग्राम प्रति एकड़ में 150 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करने से पाला भी बचता है और फसल की पैदावार भी बढ़ती है।  

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ट्रैक्टर(Tractor) किसान का साथी

ट्रैक्टर(Tractor) किसान का साथी

ट्रैक्टर(Tractor) और किसान एक दूसरे के साथी हैं या आप कह सकते है की किसान बिना ट्रेक्टर(Tractor) के अधूरा ही होता है.पुराने समय में लोग हल बैल से खेती करते थे तो सारी जमीं में बुआई नहीं कर पाते थे जिससे की जमीं पड़ी रह जाती थी और उसकी वजह से हम अपने खाद्यान्य के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहते थे. पहले हालत ये थे की एक जोड़ी ( दो बैल ) बैल रखना ही हो पाता था और जिस किसान के पास तीन से चार जोड़ी बैल होते थे वो आज के किसी 70HP ट्रेक्टर से कम नहीं माने जाते थे यानि जिस किसान के पास एक से अधिक बैलों की जोड़ी होती थी वो जमींदार होते थे, पैसे वाले और उन्नत किसानों में उनकी गिनती होती थी. फसल के उत्पादन का आलम ये था की अगर किसी की 100 मन ( 40 कुंतल) पैदावार हो जाये तो लोगों में उसका अलग ही सम्मान होता था. बोलते थे " देखो उसका सेकरा पूज गया" यानि उसके पास 100 मन अनाज हो गया.धीरे धीरे समय बदला और आज 100 मन गेंहूं 10 बीघे ( छोटा बीघा) खेत में ही हो जाते हैं और आज हल बैलों की जगह ट्रैक्टर(Tractor) ने लेली और बड़े से बड़ा काम एक अकेला आदमी करने लगा.

ट्रैक्टर(Tractor) का काम:

आज ये कहना की ट्रैक्टर का क्या काम है तो बहुत ही अलग हो जायेगा, आज हम ये कह सकते हैं की क्या काम नहीं कर सकता. आज हर छोटे या बड़े किसान की जरूरत है एक
ट्रेक्टर(Tractor) के आने से किसान अब सारी जमीन पर खेती करने लगा है और अब तो जो ग्राम समाज की जमीन पर भी कब्ज़ा करके उसमे भी खेती करने लगा है. कई ऐसे किसान होते है जिन पर हकीकत में जमीन न के बराबर होती है और वैसे उनके पास ग्राम समाज की बहुत जमीन होती है. ट्रैक्टर(Tractor) से आप जुताई , बबाई, पानी , नराई, फसल काटना ,भूसा बनाने से लेकर खेत को समतल करना , मेढ़बंदी करना यानि आप जो सोच सकते है वो काम आप ट्रेक्टर से ले सकते है.

किस किसान के लिए कौन सा ट्रेक्टर(Tractor) :

वैसे तो आजकल 35HP से कम का ट्रैक्टर कोई किसान लेना पसंद नहीं करता लेकिन ट्रेक्टर का चुनाव कई बातों को देख कर करना चाहिए, जैसे: जमीन की मिट्टी, फसल , और कितनी जमीन पर काम करना है.मसलन आपके पास 100 बीघा जमीं है तो आपको 35HP से 45HP का ट्रेक्टर काम दे देगा. और आपको पानी भी अपने ट्रैक्टर से निकालना है तो आप 20HP से 25HP तक भी जा सकते हो इसमें आपको ज्यादा खर्चा नहीं पड़ेगा. अगर आपके पास जमीन भी ज्यादा है और आप काम भी उससे ज्यादा लेना चाहते है तो आपको 50HP से 60HP का ट्रेक्टर लेना होगा जिससे आप कटर, रीपर , रोटाबेटर , और कंप्यूटर मांझा चला सकते हो अगर आप इससे ऊपर भी जाना चाहते हो तो आप कंबाइन और JCB चलना चाहते हो तो आपको 60HP के ऊपर का ट्रेक्टर चाहिए होगा. जितने बड़ा हॉर्स पावर उतना ही ज्यादा डीज़ल का खर्चा. मेरा अपना मानना है की अगर आपका ज्यादा बड़ा काम नहीं है तो आप 35HP से 50HP का ट्रैक्टर(Tractor) ले सकते है और अपने सारे छोटे बड़े काम कर सकते हैं. ये भी पढ़े: ट्रैक्टर Tractor खरीदने पर मिलेगी 50 फीसदी सब्सिडी(subsidy), ऐसे उठा सकते हैं इस योजना का लाभ

ट्रेक्टर(Tractor) कैसे लें:

Tractor ट्रैक्टर आप दो तरह से ले सकते है, आप ज्यादा ट्रैक्टर के बारे में नहीं जानते और 8 से 10 साल तक चिंता मुक्त होना चाहते हैं तो नया ट्रैक्टर ही लें और अगर आप थोड़ी भी जानकारी रखते हैं और कोई छोटी मोटी समस्या आती है और उसको अपने आप भी देख सकते हैं तो आप पुराना ट्रैक्टर(Tractor) भी ले सकते हैं. ये भी पढ़े: खेती करो या उठाओ भार,एस्कॉर्टस ट्रैक्टर रहे हमेशा तैयार

लोन(Loan) कहाँ से मिलेगा:

जैसा की सभी जानते है किसान के पास इतना पैसा नहीं होता की वो नगद पैसा से कृषि यंत्र खरीद सके तो उसको लोन(Loan) के लिए जाना ही पड़ता है. ज्यादातर किसान बिचौलियों के चक्कर में आकर प्राइवेट कर्ज ले लेते है जिसे पुराने समय में पूंजीपति के कर्ज में किसान फसता था वही आजकल ये प्राइवेट वाले कर रहे है. किसान को कर्ज देने में सरकार कई योजनाए ला रही है जैसे KCC पर लोन , आप SBI , HDFC , ICICI Bank से भी लोन(Loan) ले सकते है. कोशिश करें की आप किसी सरकारी बैंक से ही लोन लेकर ट्रैक्टर(Tractor) लें.आजकल बैंक किसान को कृषि यंत्रों पर भी कर्ज दे रही है. आप ज्यादा जानकारी के लिए निचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पाता कर सकते हैं या आप हमारे कमेंट बॉक्स में भी पूछ सकते है हम आपकी पूरी सहायता करने की कोशिश करेंगें. SBI: https://sbi.co.in/web/agri-rural/agriculture-banking/farm-mechanization-loan/tractor-loan
आप कृपया कमेंट बॉक्स में बताएं अगली जानकारी किस बारे में चाहते है.
ट्रैक्टर Tractor खरीदने पर मिलेगी 50 फीसदी सब्सिडी(subsidy), ऐसे उठा सकते हैं इस योजना का लाभ

ट्रैक्टर Tractor खरीदने पर मिलेगी 50 फीसदी सब्सिडी(subsidy), ऐसे उठा सकते हैं इस योजना का लाभ

खेती करने के लिए किसानों को ट्रैक्टर (Tractor) की जरूरत होती है। ऐसे में कुछ किसान तो किराए पर ट्रैक्टर(Tractor) लेकर अपनी खेती कर लेते हैं तो कुछ किसान बैलों के जरिए खेती करते हैं। लेकिन वे किसान जो आर्थिक तंगी के कारण ट्रैक्टर नहीं ले पाते हैं और ना ही इन्हें आसानी से बेल की सुविधा मिल पाती है। ऐसे किसानों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक स्पेशल योजना निकाली है जिसके चलते 50% सब्सिडी(subsidy) पर कोई भी किसान ट्रैक्टर खरीद सकता है। जी हां यह सब्सिडी(subsidy) 'पीएम किसान ट्रैक्टर(Tractor) योजना' के जरिए दी जाएगी।

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दरअसल, पीएम किसान के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं जिसके चलते किसान को खेती करने में आसानी हो। इतना ही नहीं बल्कि वे लगातार किसानों के लिए नई-नई योजनाएं लेकर आ रहे हैं। बता दें, पीएम किसानों के खाते में हर साल 6 हजार रुपए भी देते हैं। ताकि हर किसान अपनी खेती के लिए बीज, खाद और इस तरह की मशीनें की जरूरत पूरी कर सके। इसी बीच अब केंद्र सरकार ट्रैक्टर(Tractor) पर भी सब्सिडी(subsidy) दे रही है जो किसानों के लिए काफी लाभदायक होगी। आइए जानते हैं पीएम किसान ट्रैक्टर(Tractor) योजना का लाभ आप कैसे उठा सकते हैं?

किसी भी कंपनी का खरीद सकते हैं ट्रैक्टर

Escort Tractor

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, इस योजना के तहत आप किसी भी कंपनी का ट्रैक्टर(Tractor) खरीद सकते हैं। ट्रैक्टर(Tractor) खरीदने के दौरान आपको आधी कीमत चुकानी होगी जबकि इसका आधा पैसा सरकार सब्सिडी(subsidy) के तौर पर देगी। न सिर्फ केंद्र सरकार बल्कि राज्य सरकार भी किसानों को ट्रैक्टर(Tractor) खरीदने में सहायता करती है। दरअसल, राज्य सरकार अपने अपने स्तर पर ट्रैक्टरों पर 20% से 50% सब्सिडी(subsidy) दे रही है। ऐसे में अब किसानों को ट्रैक्टर(Tractor) खरीदने में आसानी होगी और वे केंद्र सरकार और राज्य सरकार के तहत दोनों ही योजना का लाभ उठा सकते हैं।

 कैसे उठाएं इस योजना का लाभ?

बता दें, इस योजना का लाभ उठाना बेहद ही आसान है। यदि आप भी ट्रैक्टर(Tractor) खरीदना चाहते हैं तो इसके लिए आपको कुछ जरूरी डॉक्यूमेंट की आवश्यकता होगी। खास बात यह है कि, आप सिर्फ इस सब्सिडी(subsidy) का फायदा एक ही ट्रैक्टर(Tractor) खरीदने पर उठा सकते हैं। यदि आप दो ट्रैक्टर(Tractor) की खरीदारी करते हैं तो फिर आपको इस योजना का लाभ नहीं मिलेगा। इस योजना का लाभ उठाने के लिए आप नजदीकी CSC सेंटर जाकर ऑनलाइन फॉर्म भर सकते हैं।

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 जरूरी डाक्यूमेंट्स

  • आधार कार्ड
  • बैंक की डिटेल
  • जमीन के कागज
  • पासपोर्ट साइज फोटो

 कैसे करें आवेदन?

इस योजना का लाभ उठाने के लिए आप ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। देशभर में सभी किसानों के लिए ये योजना है। आप चाहे तो ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों ही तरीके से आवेदन कर सकते हैं। इसके लिए आपको नजदीकी जन सेवा केंद्र जाना होगा या फिर सीएससी डिजिटल सेवा के जरिए भी इसका लाभ उठा सकते हैं। बता दें, इस योजना के तहत सब्सिडी(subsidy) सीधे किसानों के बैंक खातों में डाल दी जाएगी। इस योजना को जारी करने के बाद सरकार का दावा है कि किसानों को खेती करने में आसानी होगी साथ ही खेती में लगने वाली लागत में भी कमी आएगी। ट्रैक्टर(Tractor) और विभिन्न नए कृषि यंत्रों का उपयोग करने से किसान के पास फसल का उत्पादन न सिर्फ अच्छा होता है बल्कि पहले से कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है।

Swaraj Tractor: आ गया खेती का भी Code

Swaraj Tractor: आ गया खेती का भी Code

स्वराज(swaraj) मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और इसे में लेकर रहूँगा. ये वाक्य किसने कहा था हमें नीचे कमेंट करके बताएं किसानों से ज्यादा स्वराज(Swaraj) को कोण समझ सकता है जिसके बेटे सीमा पर और वो खुद खेत में रहता है. swaraj tractor आज हम बात करते हैं स्वराज ट्रेक्टर के नए product Code की. जिसको स्वराज ने अपने किसानों के हिट में बनाया है. स्वराज ट्रेक्टर ( Swaraj Tractor )1974 में शुरू हुआ और आज किसानों के बीच में एक जाना पहचाना नाम बन गया है. हमारे किसान भाइयों को छोटे छोटे काम करने के लिए छोटे tractors की आवश्यकता रहती है. जैसे आलू की फसल में दवाओं का छिड़काव करना हो या सब्जी में निराई गुड़ाई करनी हो या और भी बहुत कुछ. ये भी पढ़े: ट्रैक्टर Tractor खरीदने पर मिलेगी 50 फीसदी सब्सिडी(subsidy), ऐसे उठा सकते हैं इस योजना का लाभ हाथ से चलने वाले यन्त्र को tractor  का रूप दे दिया है Code एक स्मार्ट, बहु-उपयोगी उपकरण है जो कि किसानों को उनकी ज़रूरतों को अत्यंत सक्षमता के साथ पूरा करने में मदद करता है। इसका सुडौल आकार और motorcycle जैसे हैंडल इसे फसल देखभाल के कामकाजों (जैसे कि खरपतवार और छिड़काव) के लिए अतिउत्तम बनाता है। यह किसानों की मजदूरों पर निर्भरता को काफी हद तक घटाता है और कामकाज के खर्चों में काफी कमी लाता है। इससे डीजल और समय की बचत होती है तथा किसान की काफी हद तक मजदूरों पर निर्भरता कम होती है.

प्रोडक्ट स्पेसिफिकेशन्स नीचे दी गई हैं.

swaraj tractor

प्रोडक्ट स्पेसिफिकेशन

इंजन पॉवर 8.28 kW (11.1 HP)
डिस्प्लेसमेंट 389 cm3
रेटेड r/min 3600
सिलिंडर्स की संख्या 1
फ्युअल टाइप पेट्रोल (4स्ट्रोक)
स्टार्टिंग सिस्टम सिर्फ़ रिकॉयल स्टार्ट
या
सेल्फ स्टार्ट + रिकॉयल स्टार्ट टाइप
एयर क्लीनर ड्राई
ट्रांस्मिशन और फ्रंट एक्सल गियर बॉक्स टाइप स्लाइडिंग मेश
क्लच टाइप सिंगल क्लच, ड्राई डायाफ्राम टाइप
स्पीड ऑप्शन्स 6F + 3R
फॉरवर्ड स्पीड रेंज 1.9 km/h से 16.76 km/h
फ्युअल टाइप 2.2 km/h से 5.7 km/h
स्टार्टिंग सिस्टम फिक्स्ड
डिफ्रेन्शियल लॉक Yes
स्टियरिंग मैकेनिकल
वेहिकल स्पेसिफिकेशन ग्राउंड क्लियरेन्स (स्टै.) 266 mm
ग्राउंड क्लियरेन्स (हाई कॉन्फिगुरेशन) 554 mm
बाई-डायरेक्शनल 180 degree
चेसीस लैडर फ्रेम टाइप
पीटीओ व हाइड्रॉलिक्स पीटीओ 1000
हाईड्रॉलिक्स टू-वे हाइड्रॉलिक्स
लिफ्टींग क्षमता 220 kg @ hitch
ब्रेक्स ब्रेक तेल में डूबे हुए ब्रेक्स
वेट व डायमेन्शन अगला टायर 101.6 mm x 228.6 mm (4x9)
पिछला टायर 152.4 mm x 355.6 (6x14)
संपूर्ण उंचाई 1180 mm
संपूर्ण चौड़ाई 890 mm
व्हील बेस 1463 mm
मशीन का वजन 455 kg
कम जोत वाले किसानों के लिए कम दाम और अधिक शक्ति में आने वाले ट्रैक्टर

कम जोत वाले किसानों के लिए कम दाम और अधिक शक्ति में आने वाले ट्रैक्टर

सोनालिका GT20 ट्रैक्टर तीन सिलेंडर के साथ आता है और इसके अंदर 20 हॉर्स पॉवर की शक्ति मौजूद रहती है। इस ट्रैक्टर में समकुल 8 गियर रहते हैं और यह खेती-किसानी से जुड़े लगभग समस्त कार्य कर लेता है। 

एक समय था, जब किसान खेती करने के लिए बैल और हल का उपयोग किया करते थे। लेकिन, आज के समय के किसान ट्रैक्टर जैसे अत्याधुनिक कृषि यंत्रों से कृषि कार्य करते हैं। 

दरअसल, ट्रैक्टर की कीमत अधिक होने की वजह से छोटी जोत करने वाले कृषकों को ट्रैक्टर खरीदने से पहले कई बार विचार करना पड़ता है। ट्रैक्टर आज के समय में कृषि क्षेत्र का सबसे अहम हिस्सा बन चुका है। 

आधुनिकता और कृषि से जुड़े नवीन अविष्कारों के चलते किसान काफी अच्छा उत्पादन कम समय और श्रम खर्च किए बिना उठा रहे हैं। अगर हम बात करें कि छोटी जोत के किसानों को अधिक महंगा ट्रैक्टर खरीदने की आवश्यकता ही नहीं है, तो इस पर आप क्या कहेंगे। 

आज हम आपको कुछ ऐसे ट्रैक्टरों के विषय में बताएंगे जो काफी छोटे हैं और इनकी कीमत भी काफी कम है। छोटे किसान इनको बड़ी आसानी से खरीदकर अपना कृषि कार्य सुगमता से कर सकते हैं।

कैप्टन 283 4WD 8G ट्रैक्टर

बतादें कि इसको मिनी ट्रैक्टर कहा जाता है। यह विशेष रूप से छोटी जोत के किसानों के लिए ही निर्मित किया गया है। 3 सिलेंडर वाला यह ट्रैक्टर दिखने में बेसक छोटा है, परंतु शक्तिशाली है। 

इसमें 27 हॉर्स पॉवर की शक्ति उपस्थित है। यह मिनी ट्रैक्टर हर वह कार्य कर सकता है, जिस कार्य को एक बड़ा ट्रैक्टर कर सकता है। इसमें समकुल 12 गियर होते हैं, जिसमें से 9 आगे की तरफ लगते हैं और 3 पीछे की तरफ लगाए जाते हैं।

750 किलो के इस ट्रैक्टर का बाजार में भाव तकरीबन 4.25 से 4.50 लाख रुपये है। इसे आप कर्ज पर भी खरीद सकते हैं।

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सोनालिका GT20 ट्रैक्टर

सोनालिका GT20 ट्रैक्टर भी तीन सिलेंडर के साथ आता है और इसमें 20 हॉर्स पॉवर की ताकत होती है। इस ट्रैक्टर में कुल 8 गियर होते हैं और यह खेती से जुड़े लगभग वो समस्त कार्य कर लेता है, जो कि एक बड़ा ट्रैक्टर कर सकता है। 

इस ट्रैक्टर में सिंगल क्लिच के साथ ही मैकेनिकल ब्रेक भी दिए गए हैं। इसका वजन 650 किलोग्राम है और यह बाजार में 3 से 3.5 लाख रुपये के मध्य आपको सुगमता से प्राप्त हो जाएगा।

जॉन डियर 3028 EN ट्रैक्टर

जॉन डियर 3028 EN एक मिनी ट्रैक्टर है। लेकिन इसकी डिजाइन इतनी बेहतरीन ढंग से की गई है, कि बड़े-बड़े ट्रैक्टर भी इसके आगे फेल हो जाएं। इस ट्रैक्टर में तीन सिलेंडर होते हैं और इसमें 28 हॉर्स पॉवर की शक्ति उपस्थित होती है।

सबसे विशेष बात यह है, कि इसमें सिंगल क्लिच के साथ डिस्क ब्रेक भी हैं। इतना ही नहीं इसमें कॉलर रिवर्स ट्रांसमिशन भी उपलब्ध है। इस ट्रैक्टर में 8 गियर आगे और 8 गियर पीछे के लिए होते हैं। 

बाजार में यह ट्रैक्टर आपको 5.65 से 6.11 लाख के मध्य आसानी से मिल जाऐंगे। यही वजह है, कि यदि आप छोटी जोत के किसान हैं, तो आपको इन ट्रैक्टरों में से किसी एक का चयन करना चाहिए।

किसान ने बिना डीजल-पेट्रोल और बिजली के उपयोग से चलने वाला ट्रेक्टर तैयार किया

किसान ने बिना डीजल-पेट्रोल और बिजली के उपयोग से चलने वाला ट्रेक्टर तैयार किया

भारत में हम बचपन से एक शब्द सुनते आ रहे हैं, जिसका नाम है जुगाड़। भारतीय लोग जुगाड़ करने के मामले में सबसे ज्यादा माहिर होते हैं। इसी कड़ी में एक किसान ने जुगाड़ करके एक ऐसा ट्रेक्टर बनाया है, जो कि आजकल चर्चा में है। इस ट्रेक्टर का नाम HE ट्रेक्टर है। बतादें कि यह ट्रेक्टर किसान भाइयों के बजट से में आता है। वहीं, इसको चलाना काफी सरल और सहज होता है। जैसा कि हम जानते हैं, कि आज के समय में ट्रेक्टर किसानों के लिए किसी मित्र से कम नहीं है। यह खेत के हर तरह के कार्य को बड़ी ही सुगमता से पूरा करने की शक्ति रखता है। परंतु, आज भी भारत में बहुत सारे ऐसे किसान भी हैं, जो कि एक उत्तम खेती करने के लिए पर्याप्त धन तक नहीं जुटा पा रहे हैं। अब ऐसे में वह खेती-किसानी के लिए ट्रेक्टर कैसे खरीद सकते हैं।

संजीत ने जुगाड़ के जरिए बनाया अद्भुत ट्रेक्टर

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि आर्थिक तौर पर कमजोर किसान भाइयों की सहायता करने लिए बिहार के पश्चिम चंपारण के नौतन ब्लॉक के धुसवां गांव के 28 वर्षीय किसान संजीत ने देसी जुगाड़ के जरिए एक बेहतरीन ट्रेक्टर का निर्माण किया है। इससे किसानों की विभिन्न प्रकार की समस्याओं को मिनटों में दूर किया जा सकता है। अब आप यह सोच रहें होंगे कि इसकी कीमत और लागत भी बाजार में मिलने वाले ट्रैक्टर की भाँति ही होगी। परंतु, ऐसी कोई बात नहीं है। यह ट्रैक्टर किसानों के बजट में आता है। साथ ही, इसको बनाने के लिए आपको ज्यादा खर्चा भी नहीं करना पड़ता। दरअसल, यह ट्रैक्टर संजीत ने कबाड़ के इस्तेमाल से तैयार किया है, जिसे चलाने के लिए डीजल-पेट्रोल और बिजली कुछ भी नहीं लगती है। आपको यह केवल साइकिल की भांति ही चलाना होता है। ये भी देखें: कम जोत वाले किसानों के लिए कम दाम और अधिक शक्ति में आने वाले ट्रैक्टर

संजीत ने इस ट्रेक्टर का नाम HE रखा है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि संजीत द्वारा स्वयं के इस कबाड़ से निर्मित ट्रेक्टर का नाम HE रखा है। HE का अर्थ ह्यूमन एनर्जी ट्रेक्टर होता है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, संजीत ने अपने इस ट्रेक्टर को निर्मित करने हेतु संजीत को लगभग 1 माह का वक्त लगा। फिलहाल, वह इसको किसानों की मदद के लिए उपयोग कर रहे हैं। बतादें कि संजीत के इस आविष्कार के लिए उन्हें अवार्ड भी प्राप्त हो चुका है।

HE ट्रेक्टर की विशेषताएं

  • किसान द्वारा इसमें विभिन्न प्रकार की विशेषताएं दी गई हैं। जो इसको एक बेहतर ट्रेक्टर बनाती हैं।
  • इस ट्रेक्टर के एलईडी बल्बों के लिए 5000 एमएएच पावर की एक चार्जेबल बैटरी की व्यवस्था की गई है।
  • इसके अतिरिक्त इसमें 4 फॉरवर्ड एवं 1 रिवर्स गियर भी होता है। जो इसको खेत के साथ-साथ सड़कों पर भी आसानी से चलाया जा सकता है।
  • इस ट्रेक्टर को कुछ इस प्रकार से तैयार किया गया है, कि यह ट्रैक्टर करीब 600 किलोग्राम तक का वजन आसानी से उठा सकता है।
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HE ट्रेक्टर की खासियत

  • HE ट्रैक्टर की सबसे अच्छी खासियत यह है, कि इसको चलाने के लिए आपको पेट्रोल-डीजल अथवा बिजली की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इसके लिए आपको अपनी खुद की शक्ति लगानी है, जैसे कि आप साइकिल चलाते समय लगाते हैं।
  • यह ट्रैक्टर तकरीबन 5 से 10 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से दौड़ सकता है।
  • यह HE ट्रैक्टर सहजता से खेत में 2.5 से 3 इंच गहराई तक मृदा की जुताई करने हेतु समर्थ है।
आवारा पशुओं से फसल सुरक्षा का तरीका

आवारा पशुओं से फसल सुरक्षा का तरीका

बुन्देलखण्ड में प्रचलित अन्ना प्रथा उत्तर प्रदेश सरीखे कई प्रदेशों के किसानों के जीका जंजाल बन रही है। इसका कारण बन रहे हैं आवारा गौवंशीय नर। इन्हें यहां सांड के रूप में पहचाना जाता है। यूंतो एक सांड 10 से 12 वर्ष के जीवन काल में तकरीबन तीन लाख का सूखा भूसा खा जाता है। किसानों की फसलों का नुकसान इसमें शामिल नहीं है। इतना ही नहीं यह सांड नगरीय क्षेत्रों में डिवायडर आदि के मध्म जब मस्ती में आते हैं तो भीड़भाड़ वाले इलाकों एवं मंडियों आदि में लोगों के लिए दुर्घटना का कारण भी बन जाते हैं। अनेक लोग इनके आतंक के चलते दुर्घटनाओं का शिकार हो काल कवलित भी हो जाते हैं। खेती में इनसे प्रमुख समस्या फसलों को नुकसान पहुंचाने की है। किसान फसलों को बचाने के लिए मोटा पैसा खर्च कर तार फेंसिंग करा रहे हैं लेकिन भूखे जानवर इन तार और खंभों का भी उखाड़ फेंकते हैं। इससे बचाव के कुछ सामान्य तरीके हैं जिनका प्रयोग कर किसान अपनी फसल को सुरक्षित कर सकते हैंं।

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नीलगाय एवं आवारा पशुओं से फसल सुरक्षा के लिए खेत के आसपास गिरे नीलगाय के गोबर एवं आवारा पशुओं के गोबर का आधा एक से दो किलोग्राम अंश लेकर उसे पानी में घोलकर छान लें। इसमें थोड़े बहुत नीम के पत्ते कूटकर मिला लें। दो  तीन दिन में सड़ने के बाद इसको छानकर खेत में छिड़काव करें। प्रयास करें खेत के चारों तरफ पशुओं के घुसने वाले स्थानों पर गहराई तक छिड़काव हो जाए।  कारण यह होता है अपने मल की गंध आने के कारण पशु उस फसल को नहीं खाते। वह फिर ऐसा खेत तलाशने निकलते हैं जहां ​गंध नहो। इधर नीलगाय अपने खाने के लिए जहां फसलें अच्छी होती हैं। उस इलाके का चयन करती है। उस इलाके तक पहुंचने के लिए वहां हर दिन ताजी गोबर छोड़कर आती है। इसकी गंध के आधार पर ही वह दोबारा उस इलाके तक पहुंचती है। लिहाजा खेतों के आस पास जहां भी नीलगाय का गोबर पड़ा हो उसे एकत्र कर गहरे गड्ढे में दबाने से भी वह रास्ता भटक सकती हैं।

जानिए क्या है नए ज़माने की खेती: प्रिसिजन फार्मिंग

जानिए क्या है नए ज़माने की खेती: प्रिसिजन फार्मिंग

नमस्कार किसान भाइयो, आज हम Merikheti.com में आपसे कुछ नई तकनीकी पर आधारित खेती की बात करेंगें. भाइयों अपने देश में जिस तरह से खेती होती है उससे आप सभी परचित हो. यहाँ आपको ज्ञान बांटने की जरूरत नहीं है. आज हम Precision farming के बारे में बात करेंगें. क्या है प्रिसिजन फार्मिंग और कितने किसान भाई इस तकनीक के बारे में जानते हैं? में समझता हूँ की हम में से ज्यादातर किसान भाई इसके बारे में नहीं जानते होंगें. जैसा की आप जानते हैं दिन प्रतिदिन हमारी खेती की जमीन कम होती जा रही है. खेती की जमीन पर अब कंक्रीट के जंगल बनते जा रहे हैं. खेती की जमीन कोई रबर तो है नहीं की उसको खींचा जा सके? अब इसमें सरकार और किसान दोनों को ही टेक्नोलॉजी का प्रयोग करना पड़ेगा तभी जाकर हम अपने देश के लिए पर्याप्त भोजन की व्यवस्था कर सकते हैं. खेती में टेक्नोलॉजी के प्रयोग को हम प्रिसिजन फार्मिंग (Precision agriculture) कहते हैं. हमारे देश में एक बड़ी सोच यह है की हम अपने पडोसी को देख कर काम करते हैं. वो कहते हैं ना जब किसी की बिजली चली जाये तो वो बस पडोसी की बिजली आ रही है या नहीं ये देखेगा और बस कुछ नहीं. अगर उसकी नहीं आ रही है तो कोई बात नहीं है, अगर उसकी आ रही है तो मेरी क्यों नहीं. यही बात हम अपने खेतों में लागू करते हैं. अगर पडोसी ने गेहूं करे हैं तो में भी गेंहूं ही करूँगा आलू या सरसों, सब्जी की फसल नहीं. जो नुकसान फायदा इसका होगा वही मेरा होगा. हमें इस सोच से निकल कर आगे जाना होगा और नई टेक्नोलॉजी को भी अपनी खेती में लाना होगा. इसी को प्रिसिजन फार्मिंग (Precision agriculture) कहते हैं.

क्या है नए ज़माने की खेती प्रिसिजन फार्मिंग?

प्रिसिजन फार्मिंग:

प्रिसिजन फार्मिंग (Precision agriculture) मतलब खेती में शुरुआत से लेकर अंत तक टेक्नोलॉजी का प्रयोग करना ही प्रिसिजन फार्मिंग (Precision agriculture) होता है. इसमें ना तो ज्यादा खाद चाहिए होता है और ना ही ज्यादा पानी. इसमें सेंसर की मदद से हमारी फसलों की जरूरत पता की जाती है उसके बाद उसी चीज को पौधे या फसल को लगाया जाता है. इसको शुरू करने से पहले मिटटी की जाँच कराइ जाती है उसके आधार पर उसमें क्या फसल बोई जाएगी ये तय किया जाता है. फिर मौसम, पानी, बैक्टीरिया आदि सभी बातों को ध्यान में रख के किसान अपनी फसल तय करता है. इससे किसान की लगत भी काम होती है तथा पर्यावरण को भी नुकसान नहीं होता है. इसमें किसान भेड़चाल में आकर अपना पैसा बर्बाद होने से बचाता है. जैसे की अगर पड़ोसी ने 10 किलो बीघा का यूरिआ लगाया है तो वो भी इतना ही खाद अपने खेत में डालेगा. जो की अक्सर किसान भाई करते है. इस तकनीक से पौधे को जब पानी की आवश्यकता होती है तो पानी दिया जाता है, जब खाद की जरूरत होती है तो खाद दिया जाता है और वो भी पौधे की जड़ में पाइप की मदद से. तो इससे किसान की लागत कम आती है और उसका मुनाफा कई गुना बढ़ जाता है. ये भी पढ़ें : ग्रीनहाउस टेक्नोलॉजी में रोजगार की अपार संभावनाएं

कब शुरू हुआ प्रिसिजन फार्मिंग (Precision agriculture) ?

इस तरह की खेती अमेरिका में सन 1980 के दशक में हुई थी.धीरे धीरे अन्य देशों ने भी इसे करना शुरू किया. आज नीदरलैंड में आलू की खेती इसी विधि से की जा रही है. और वो आलू में अच्छा उत्पादन भी ले रहे हैं. हम भी इस तकनिकी का प्रयोग करके कम लागत में ज्यादा उत्पादन ले सकते हैं.

प्रिसिजन फार्मिंग के फायदे:

  1. प्रिसिजन फार्मिंग के बहुत सारे फायदे हैं. इसकी सहायता से हम फसल में रोग आने पर उसकी रोकथाम के लिए सेंसर की सहायता से समय से उपचार कर सकते हैं.
  2. इसकी सहायता से सीधे पौधों के जड़ों में पानी और कीटनाशक दे सकते हैं.
  3. इसकी सहायता से हम अपनी लागत कम कर सकते हैं तथा उत्पादन को बढ़ा सकते हैं. इससे किसान की आमदनी बढाती है तथा उसके जीवन स्तर में सुधार आता है.
  4. पानी का प्रयोग जरूरत के हिसाब से कर सकते हैं. पूरे खेत में पानी देने की आवश्यकता नहीं होती सीधे पेड़ों की जड़ों में पानी दे सकते हैं.
  5. फसल का उत्पादन अच्छी गुणवत्ता वाला होता है. इसके द्वारा उत्पादन की गई फसल के दाने सामान्य तरीके से उगाई गई फसल से ज्यादा चमकदार और अच्छे होते हैं.
  6. मिटटी की गुणवत्ता भी ख़राब नहीं होती है.
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भारत में इसके प्रयोग को लेकर चुनौतियां:

प्रिसिजन फार्मिंग पर किए गए कई रिसर्च से पता चलता है कि इसके लिए सबसे बड़ी चुनौती उचित शिक्षा और आर्थिक स्थिति है. भारत में 80 % छोटे किसान हैं जिनकी जोत आकार बहुत छोटा है. उनकी आर्थिक हैसियत भी उतनी अच्छी नहीं है जिससे की वो किसी भी टेक्नोलॉजी को बिना सरकार की सहायता से अपने खेत में इस्तेमाल कर सकें. एक अनुमान में कहा गया है कि 2050 तक दुनिया की आबादी करीब 10 अरब के पार पहुंच जाएगी. ऐसे में भारत के पास भी मौका है कि कृषि उत्पादन के मामले में अपनी पकड़ और भी ​मौजूद कर लें. इसके लिए सरकार को अपनी तरफ से किसानों को प्रशिक्षण देना होगा जिससे की आने वाली समस्या की तैयारी अभी से की जा सके.
केंद्रीय स्तर से हरियाणा, पंजाब सहित इन राज्यों में भीगे गेहूं की होगी खरीद

केंद्रीय स्तर से हरियाणा, पंजाब सहित इन राज्यों में भीगे गेहूं की होगी खरीद

केंद्र सरकार की तरफ से गेहूं खरीदी चालू कर दी गई है। साथ ही, मार्च में हुई बारिश से अधिकांश किसानों का गेहूं भीग गया था। केंद्र सरकार द्वारा नवीन नियमोें के अंतर्गत 20 प्रतिशत तक भीगा गेहूं खरीदने की छूट दी प्रदान की गई है।

भारत के विभिन्न राज्यों में गेहूं की कटाई चालू हो चुकी है। कटाई के उपरांत मौसम को ध्यान में रखते हुए किसान शीघ्र ही मंडी में गेहूं बेचने के लिए जा रहे हैं। साथ ही, हाल में हुई बारिश और ओलावृष्टि से किसानों का काफी गेहूं भीग गया था।

किसान चिंतिति थे, कि भीगे गेहूं को किस प्रकार मंडी में विक्रय किया जाए। वर्तमान में उसी को लेके केंद्र सरकार की तरफ से कदम पहल की जा रही है। 

गेहूं खरीद को लेकर भीगे गेहूं के लिए जो नियम सख्त थे। अब केंद्र सरकार द्वारा उनमें काफी राहत दे दी गई है। किसानों को गेहूं बेचने के लिए ज्यादा दिक्कत नहीं होगी।

केंद्र के स्तर से कई राज्यों में भीगे गेंहू खरीदी पर राहत

मार्च माह में बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि से पंजाब, राजस्थान और हरियाणा में गेहूं की फसल को काफी मोटी हानि पहुंची थी। किसानों का गेहूं काफी ज्यादा भीग गया था। 

राज्य के किसान केंद्र सरकार से गेहूं खरीद में सहूलियत देने की मांग कर रहे थे। अब तीनों राज्यों के लिए केंद्र सरकार के स्तर से गेहूं खरीद हेतु बनाए गए नियमों में ढ़िलाई की गई है। इसका यह अर्थ है, कि किसान वर्षा से प्रभावित गेहूं को भी एमएसपी पर विक्रय कर पाएंगे।

कितने फीसद तक भीगा गेंहू खरीदेंगी गेंहू एजेंसियां

गेहूं खरीद के संदर्भ में केंद्र सरकार काफी चिंतित है। केंद्र सरकार का यह प्रयास रहा है, कि विगत वर्ष के सापेक्ष में किसी भी परिस्थिति में गेहूं की खरीद न हो पाए। 

इस वजह से सरकार का प्रयास है, कि जैसा भी गेहूं मंडियों में बिक्री के लिए पहुंच रहा है। उसको किसानों से खरीद लिया जाए। नवीन नियमों के अंतर्गत एफसीआई और बाकी एजेंसियों से कहा गया है, कि 20 प्रतिशत तक भीगा गेहूं एजेंसियों द्वारा खरीदा जा सकता है। 

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लाखों हेक्टेयर गेहूं की फसल हुई प्रभावित

एक आंकड़ें के मुताबिक, इस वर्ष मार्च में हुई वर्षा से भारत भर में 11 लाख हेक्टेयर में बोई गई गेहूं की फसल प्रभावित हुई है। इससे 1.82 लाख किसान प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुए हैं। 

फिलहाल, केंद्र सरकार द्वारा राजस्थान में 20 फीसद के भीगे गेहूं के अनुरूप खरीद के लिए कहा गया है। मध्य प्रदेश सरकार भी इसी नियम के आधार पर कार्य कर रही है। वहां भी काफी राहत प्रदान कर दी गई है।

विगत वर्ष की तुलना में गेंहू खरीदी का लक्ष्य कम

देश में गेहूं खरीद शुरू कर दी गई है। केंद्र सरकार द्वारा रबी मार्केर्टिंग सीजन 2023-24 में 341.50 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। जबकि विगत वर्ष यह लक्ष्य 444 लाख मिट्रिक टन था। 

इस बार गेहूं खरीद में अच्छी खासी गिरावट आ रही है। ऐसे में कम गेहूं खरीद से खुद केंद्र सरकार परेशान है। घरेलू खपत का प्रबंधन करना भी केंद्र सरकार के लिए चुनौती होगा।

दिवाली से पहले ही गेहूं की कीमतों में रिकॉर्ड इजाफा दर्ज किया गया

दिवाली से पहले ही गेहूं की कीमतों में रिकॉर्ड इजाफा दर्ज किया गया

दिवाली से आने से पूर्व पुनः एक बार फिर से गेहूं महंगा हो चुका है। बतादें, कि इससे राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में गेहूं की कीमत थोक बाजार में 27,390 रुपये प्रति मीट्रिक टन तक पहुंच चुकी है। ऐसा कहा जा रहा है, कि आगामी दिनों में इसका भाव और बढ़ सकता है। साथ ही, इससे पूर्व जनवरी माह में भी गेहूं की कीमत सातवें आसमान पर पहुँच गई थी। केंद्र सरकार के बहुत सारे प्रयासों के बावजूद भी महंगाई कम ही नहीं हो पा रही है। आलम यह है, कि एक वस्तु सस्ती होती है, तो दूसरी वस्तु महंगी हो जाती है। टमाटर एवं हरी सब्जियों के भाव में गिरावट दर्ज की है। वर्तमान में गेहूं एक बार पुनः महंगा हो गया है। ऐसा बताया जा रहा है, कि त्योहारी सीजन से पूर्व ही गेहूं के भाव 8 माह के अपने सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी है। ऐसी स्थिति में फूड इन्फ्लेशन बढ़ने की संभावना एक बार पुनः बढ़ गई है। साथ ही, व्यापारियों ने बताया है, कि इंपोर्ट ड्यूटी के कारण विदेशों से खाद्य पदार्थों का आयात प्रभावित हो रहा है। इससे सरकार के ऊपर निर्यात ड्यूटी हटाने को लेकर काफी दबाव बढ़ रहा है। ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार को महंगाई पर लगाम लगाने के लिए समय-समय पर सरकारी भंडार से भी गेहूं और चावल जैसे खाद्य पदार्थ को जारी करना पड़ रहा है।

गेंहू की कीमत बढ़ने से इन खाद्यान पदार्थों की कीमत भी बढ़ेगी

कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, त्योहारी दिनों की वजह से बाजार में गेहूं की डिमांड बढ़ गई है। वहीं, मांग में बढ़ोतरी से गेहूं की आपूर्ति काफी प्रभावित हो गई है, जिससे कीमतें 8 माह के अपने सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी हैं। यदि कीमतों में इजाफे का यह हाल रहा तो, आगामी दिनों में खुदरा महंगाई और भी बढ़ सकती है। गेहूं एक ऐसा अनाज है, जिससे विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ तैयार किए जाते हैं। अगर
गेहूं की कीमत में बढ़ोतरी होती है, तो रोटी, बिस्कुट, ब्रेड एवं केक समेत विभिन्न खाद्य पदार्थ काफी महंगे हो जाएंगे।

भारत सरकार द्वारा गेहूं पर 40% फीसद इंपोर्ट ड्यूटी

मुख्य बात यह है, कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में गेहूं के भाव में मंगलवार को 1.6% का इजाफा दर्ज किया गया। इससे गेहूं की कीमत थोक बाजार में 27,390 रुपये प्रति मीट्रिक टन तक पहुंच गई, जोकि 10 फरवरी के बाद का सर्वोच्च स्तर है। ऐसा बताया जा रहा है, कि विगत छह महीनों के दौरान गेहूं का भाव तकरीबन 22% प्रतिशत बढ़ा हैं। साथ ही, रोलर फ्लोर मिलर्स फेडरेशन के अध्यक्ष प्रमोद कुमार एस ने केंद्र सरकार के समक्ष गेहूं के आयात पर से ड्यूटी हटाने की मांग उठाई है। दरअसल, उन्होंने बताया है, कि अगर सरकार गेहूं पर से इंपोर्ट ड्यूटी हटा देती है, तो निश्चित रूप से इसकी कीमत कम हो सकती है। दरअसल, भारत सरकार द्वारा गेहूं पर 40% फीसद आयात ड्यूटी लगाई है, जिसे हटाने को लेकर कोई तत्काल योजना नजर नहीं आ रही है।

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खाद्य पदार्थों की कीमतों में इस तरह गिरावट होगी

साथ ही, 1 अक्टूबर तक सरकारी गेहूं भंडार में केवल 24 मिलियन मीट्रिक टन ही गेहूं का भंडार था। जो पांच वर्ष के औसतन 37.6 मिलियन टन के मुकाबले में बेहद कम है। हालांकि, केंद्र ने फसल सीजन 2023 में किसानों से 26.2 मिलियन टन गेहूं की खरीदारी की है, जो लक्ष्य 34.15 मिलियन टन से कम है। वहीं, केंद्र सरकार का अंदाजा है, कि फसल सीजन 2023-24 में गेहूं उत्पादन 112.74 मिलियन मीट्रिक टन के करीब होगा। इससे खाद्य पदार्थों के भाव में गिरावट आएगी।