मक्का की खेती करने के लिए किसान इन किस्मों का चयन कर अच्छा मुनाफा उठा सकते हैं
आज हम आपको इस लेख में मक्के की खेती के लिए चयन की जाने वाली बेहतरीन किस्मों के बारे में बताने वाले हैं। क्योंकि मक्के की अच्छी पैदावार लेने के लिए उपयुक्त मृदा व जलवायु के साथ-साथ अच्छी किस्म का होना भी बेहद महत्वपूर्ण होता है।
आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि खरीफ सीजन में मक्का उत्पादक कृषकों के लिए खुशखबरी है। आज हम मक्का उत्पादक किसानों के लिए मक्के की ऐसी प्रजाति लेकर आए हैं, जिसकी खेती से किसान कम खर्चे में अधिक लाभ उठा सकते हैं।
साथ ही, उनको मक्के की इन प्रजातियों की सिंचाई भी कम करनी पड़ेगी। मुख्य बात यह है, कि विगत वर्ष ICAR का लुधियाना में मौजूद भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान द्वारा इन किस्मों को विकसित किया था।
इन किस्मों में रोग प्रतिरोध क्षमता काफी ज्यादा है एवं पौष्टिक तत्वों की भी प्रचूर मात्रा है। यदि किसान भाई मक्के की इन प्रजातियों की खेती करते हैं, तो उनको अच्छी-खासी उपज मिलेगी।
मक्का की IMH-224 किस्म
IMH-224 किस्म: IMH-224 मक्के की एक उन्नत प्रजाति है। इसको वर्ष 2022 में भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित किया गया था। यह एक प्रकार की मक्के की संकर प्रजाति होती है।अब ऐसे में झारखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडिशा के किसान खरीफ सीजन में इसकी बिजाई कर सकते हैं। क्योंकि IMH-224 एक वर्षा आधारित मक्के की प्रजाति होती है। IMH-224 मक्के की किस्म में सिंचाई करने की जरूरत नहीं होती है।
बारिश के जल से इसकी सिंचाई हो जाती है। इसका उत्पादन 70 क्टिंल प्रति हेक्टेयर के करीब होता है। मुख्य बात यह है, कि इसकी फसल 80 से 90 दिनों के समयांतराल में तैयार हो जाती है।
रोग प्रतिरोध होने के कारण से इसके ऊपर चारकोल रोट, मैडिस लीफ ब्लाइट एवं फुसैरियम डंठल सड़न जैसे रोगों का प्रभाव नहीं पड़ता है।
यह भी पढ़ें: मक्का की खेती के लिए मृदा एवं जलवायु और रोग व उनके उपचार की विस्तृत जानकारी
मक्का की IQMH 203 किस्म
IQMH 203 किस्म: मक्के की इस प्रजाति को वैज्ञानिकों द्वारा वर्ष 2021 में इजात किया गया था। यह एक प्रकार की बायोफोर्टिफाइड प्रजाति होती है। वैज्ञानिकों ने राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के मक्का उत्पादक किसानों को ध्यान में रखते हुए विकसित किया था।IQMH 203 प्रजाति 90 दिनों की समयावधि में पककर कटाई हेतु तैयार हो जाती है। जैसा कि हम जानते हैं, कि मक्का एक खरीफ फसल है। कृषक मक्का की IQMH 203 किस्म का उत्पादन खरीफ सीजन में कर सकते हैं।
इसके अंदर प्रोटीन इत्यादि पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इतना ही नहीं मक्के की इस किस्म को कोमल फफूंदी, चिलोपार्टेलस एवं फ्युजेरियम डंठल सड़न जैसे रोगों से भी अधिक क्षति नहीं पहुँचती है।
मक्का की PMH-1 LP किस्म
PMH-1 LP किस्म: पीएमएच-1 एलपी मक्के की एक कीट और रोग रोधी प्रजाति है। मक्का की इस प्रजाति पर चारकोल रोट एवं मेडिस लीफ ब्लाइट रोगों का प्रभाव बेहद कम होता है।पीएमएच-1 एलपी किस्म को दिल्ली, उत्तराखंड, हरियाणा एवं पंजाब के किसानों को ध्यान में रखते हुए इजात किया गया है। यदि इन प्रदेशों में किसान इसका उत्पादन करते हैं, तो प्रति हेक्टेयर 95 क्विंटल की पैदावार मिल सकती है।
मक्का की खेती से किसान भाई अच्छी-खासी आय कर सकते हैं। मक्का की खेती कृषकों के किए काफी फायदेमंद साबित होती है।
ये भी पढ़े:
केले की फसल 13-14 से लेकर 40 डिग्री तापमान तक हो सकती है लेकिन इसके लिए इससे ज्यादा तापमान फसल को झुलसा सकता है तो गर्मी में इसके विशेष देखभाल की जरूरत होती है. अच्छी बारिश की जगह पर ये अपने पूरे लय में होती है या कह सकते हो की बारिश वाली जगह इनके फलने फूलने के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त होती है.
केला की फसल लम्बी अवधी के लिए होती है तो उसके ध्यान भी उसी तरह रखना चाहिए जैसे उसकी हवा पानी, और निराई गुड़ाई का विशेष ध्यान रखें. कई किसान केले में मल्चिंग तकनीक को अपना रहे है इससे निराई गुड़ाई मजदूरों से नहीं करानी पड़ती है. लेकिन जो किसान सीधे खेत में रोपाई करवा रहे हैं वो रोपाई के ४-५ महीने बाद पौधों पर मिटटी जरूर चढ़ाएं.
अगर पानी की निकासी का उचित प्रबंध नहीं होगा तो उससे पौधे को नुकसान हो सकता है इस स्थिति में ड्राप से सिंचाई का तरीका अपनाएं इससे आपको पानी पर भी ज्यादा खर्चा नहीं करना पड़ेगा.