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सूखाग्रस्त भूमि में भी किया उत्पादन, कमा रहा है लाखों का मुनाफा

सूखाग्रस्त भूमि में भी किया उत्पादन, कमा रहा है लाखों का मुनाफा

महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जनपद निवासी किसान ने बड़ा कमाल किया है, क्योंकि उन्होंने सूखे खेत में भी सीताफल की खेती सफल तरीके से कर लाखों कमाएँ हैं। किसान १२ लाख रुपए का मुनाफा केवल आधा एकड़ भूमि से अर्जित कर लेता है। महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जनपद में पैठण तालुका कुछ क्षेत्रों के किसान पूर्व के कई दिनों से गीला सूखा तो कभी सूखे की मार से ग्रसित हो रहे थे, इस कारण से कृषकों को सिर्फ निराशा और हताशा हासिल हो रही थी। परंतु औरंगाबाद जनपद में धनगॉंव निवासी किसान संजय कांसे ने कठोर परिश्रम एवं द्रढ़ निश्चय से आधा एकड़ भूमि में सीताफल की खेती कर लाखों रूपये कमाए हैं और अब तक करीब उनके बगीचे में लगभग ११ टन सीताफल की बिक्री हो चुकी है।
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धनगांव निवासी संजय कांसे जी एक छोटे किसान हैं। पूर्व पारंपरिक फसल उगाने वाले संजय कांसे ने रचनात्मक सोच व कठोर परिश्रम से वर्ष २०१६ में उन्होंने अपने आधा एकड़ भूमि में सीताफल का उत्पादन किया। इसके साथ ही, अन्य क्षेत्रों में मोसंबी का रोपण किया गया है, जिसमें संजय कांसे ने सोलह बाई सोलह फुट पर ६०० पौधों की रोपाई की। उन्होंने इस दौरान सूखाग्रस्त जैसे संकटों का भी सामना किया। लेकिन उन्होंने इससे निपटने हेतु उचित मार्ग विकसित किया और बाग की साही योजना के अनुरूप भली भांति देख भाल की। अब उनकी अड़िग मेहनत और द्रण निश्चय के परिणामस्वरूप एक पेड़ करीब ३५ से ४० किलो फल प्रदान कर रहा है।
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संजय कांसे को फल का क्या भाव मिल रहा है

महाराष्ट्र का किसान संजय कांसे तीन वर्ष से अच्छी खासी पैदावार उठा रहा है। इस वर्ष उन्होंने आधा एकड़ भूमि में सीताफल की फसल उत्पादित की है, जो कि करीब 20 टन हुई है। पंद्रह दिन पूर्व संजय कांसे के पहले और दूसरे फल की छटाई हुई है। इसमें उन्हें ११० रुपये प्रति किलो के हिसाब से भाव प्राप्त हुआ है। संजय कांसे वार्षिक १२ लाख का लाभ प्राप्त कर रहे हैं। अभी तक करीब ११ टन सीताफल की बिक्री हो चुकी है। साथ ही अन्य फलों का भी उत्पादन करीब ९ से १० टन तक होगा।

कितना आया लागत खर्च

बतादें कि कटाई के चौथे दिन संजय कांसे के खेत में सीताफल बिलकुल तैयार हो चुके थे। सीताफल करीब ५०० से ७०० ग्राम का रहता है। किसान ने इसकी खेती हेतु करीब ८० से ९० रुपये व्यय किये हैं। मिलीबग रोग के अतिरिक्त अन्य किसी कीटों का प्रकोप सीताफल पर नहीं होता है, यह इसकी मुख्य विशेषता है। लेकिन इस वर्ष जब अत्यधिक बारिश के कारण फलीय स्थिरता बेहद डगमगा गयी, परंतु कृषि के क्षेत्र में अच्छी जानकारी रखने वाले लोगों से जानकारी प्राप्त कर संजय कांसे ने सफलतापूर्वक खेती की।
कद्दू की खेती ( Pumpkin Farming) के उन्नत तरीके

कद्दू की खेती ( Pumpkin Farming) के उन्नत तरीके

कद्दू की खेती लगभग पूरे भारत में होती है।कद्दू एक ऐसी सब्जी है जिसे क्षेत्र और राज्य के अनुसार इसके नाम होते हैं। अगर हम उत्तर प्रदेश की बात करते हैं तो कद्दू को काशीफल, सीताफल, कोला या कोयला कई जगह इसे पैठे की सब्जी भी बोला जाता है | इसे English में Pumpkin बोला जाता है | कद्दू की सब्जी को लोग बड़े चाव से खाते हैं तथा इसकी सब्जी को जब भी कोई धार्मिक भंडारा होता है तो इसकी सब्जी जरूर बनाई जाती है. दक्षिण भारत में इसको सांभर में प्रयोग किया जाता है. आज जैसे-जैसे आबादी बढ़ रही है तो लोगों की आवश्यकता भी उसी अनुरूप बढ़ रही है। सब्जी की खेती किसान को भी अच्छी आमदनी दिलाती है, इससे किसान को रोजाना की आमदनी होती है।कहना गलत नहीं होगा कि अगर किसान को अपनी आय बढ़ानी है तो उसे सब्जी की खेती करनी होगी।

कम लागत, अच्छी आमदनी :

सरकार किसानों कि आय दोगुनी करने पर कार्य कर रही है, इसके लिए वो किसानों को नए-नए तरीके से फसल करना, खेती सम्बंधित व्यवसाय करना आदि कि ट्रेनिंग दे रही है | कद्दू कि खेती भी किसानों के लिए एक वरदान का काम कर सकती है | इसकी उपज में लागत कम आती है तथा इसका उत्पादन अच्छा होता है | इसके फल का वजन भी ज्यादा होता है | पके कददू गहरे पीले रंग के होते हैं तथा इसमें कैरोटीन की मात्रा भी बहुतायत में पाई जाती है। इसके बीज का सेवन पुरुषों के लिए बहुत लाभप्रद बताये जाते हैं. Pumpkin Farming

खेत की तैयारी:

सामान्यतः अन्य फसलों की तरह इसकी खेती के लिए भी खेत में पोषक तत्वों की मात्रा भरपूर होनी चाहिए. इसका सबसे सटीक उपाय है की आप खेत में पहली जुताई से पहले गोबर की बनी ( सड़ी) हुई खाद डाल कर उसपर 2 से 3 बार कल्टीवेटर से जुताई लगा दें और ऊपर से पाटा लगा दें जिससे की खेत समतल हो जाये. अगर हो सके तो अपने खेत को कम से कम 3 साल में एक बार हरी खाद जरूर दें.  इससे जमीन को ताकत मिलती है तथा आपकी फसल भी कम से कम रासायनि खादों पर निर्भर रहती है. ये भी पढ़ें : रासायनिक से जैविक खेती की तरफ वापसी

भूमि का चुनाव:

इसकी फसल के लिए भूमि का चुनाव करते समय ध्यान रहे की उस खेत में पानी निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए | यानि की इसकी जमीन में पानी नहीं रुकना चाहिए इससे इसके पौधे और फल दोनों ही गलने लग जाते हैं. इसके लिए रेतीली, भुरभुरी और दोमट मिटटी उपयुक्त रहती है.

जलवायु:

जलवायु की बात करें तो इसके लिए गर्म और बारिश वाला समय उपयुक्त रहता है. इसके बीज को उगाने के लिए दोनों मौसम सहायक होते हैं लेकिन सर्दी के मौसम में इसके बीज को उगाना मुश्किल है | लेकिन आज तो लोग कृत्रिम मौसम देकर इसके बीज को समय से पहले ही उगा लेते हैं | कददू की खेती के लिए सर्दी और कम सर्दी वाली जलवायु भी उपयुक्त होती है इसके लिए 18 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट का सामान्य मौसम होना चाहिए.

कद्दू कितने तरह के होते हैं:

kaddu ki kheti कद्दू की प्रजाति या प्रकार की हम बात करें तो, हमारे कृषि वैज्ञानिक इसकी नई नई किस्में विकसित कर रहें हैं. जो कि निम्न प्रकार हैं:

1- पूसा विशवास:

कद्दू की इस किस्म को उत्तर भारत के ज्यादातर राज्यों में उगाया जाता है क्योकि इस किस्म को थोड़ा ठंडा और गर्म दोनों मौसम के अनुसार पूसा संस्थान ने विकसित किया है. इसके एक फल का वजन 5 से 7  किलो के आसपास जाता है. जबकि इसका कुल उत्पादन 400 से 450 किवंटल प्रति हेक्टेयर के आसपास होता है. इसके फलों का रंग दूसरी किस्मों की अपेक्षा ज्यादा हरा दिखाई देता है. जिन पर सफ़ेद रंग के धब्बे बने होते हैं. इस किस्म के पौधों पर फल बीज रोपाई के 110 से 120 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं.

2- पूसा विकास:

कद्दू की इस किस्म के पौधे बारिश के मौसम में उगाये जाते हैं. इस किस्म के बेल की लम्बाई दो से तीन मीटर के बीच पाई जाती है. इसके फल कच्चे रूप में सब्जी में ज्यादा उपयोग में लिए जाते हैं. इसका फल छोटे आकार का होता है तथा इसके अंदर गूदा भी अच्छा होता है. जिनका वजन दो से तीन किलो के आसपास पाया जाता है. एक हेक्टेयर के इसका उत्पादन 300 - 350 किवंटल के आस पास जाता है.

3 - कल्यानपुर पम्पकिन-1,

4 - नरेन्द्र अमृत,

5 - अर्का सुर्यामुखी,

6 - अर्का चन्दन,

7 - अम्बली,

8 - सी एस 14,

9 - सी ओ1 एवम 2,

इनके साथ-साथ कुछ विदेशी प्रजातियां भी अपने यहाँ उगाई जाती है जो निम्न प्रकार हैं:

विदेशी किस्में:

भारत में पैटीपान , बतर न्ट, ग्रीन हब्बर्ड , गोल्डन हब्बर्ड , गोल्डन कस्टर्ड, और यलो स्टेट नेक नामक किस्में भी बहुत छोटे स्तर पर उगाई जाती है |

बोने का तरीका:

Kaddu ki Buwai इसके बीज को मेंड़ बना कर लगाना उचित रहता है. इसकी मेंड़ से मेंड़ कि दूरी कम से कम 4 फ़ीट की होनी चाहिए. जिससे की इसकी बेल को फैलने के लिए पूरी जगह मिल सके. उचित होगा अगर आप इसकी बेल को ऊपर चढ़ा दें जिससे की मिटटी की वजह से इसके फल को नुकसान नहीं होता है. किसान के घर में औरतें भी इसकी खेती करती हैं. जब बारिश शुरू हो जाती हैं तो वो इसके बीजों को बुर्जी और बिटोरों के पास लगा देती हैं धीरे धीरे ये बेल बुर्जी और बिटोरे पर चढ़ जाती हैं और ऊपर फल लगने लगते हैं जो कि पूरी तरह से ऑर्गनिक फल होते हैं. ये भी पढ़ें : तोरई की खेती में भरपूर पैसा

फसल कि देखरेख:

इसकी फसल कि देखरेख में सबसे ज्यादा जो ध्यान रखने वाली चीज है वो ये है कि अगर आपने इसकी फसल को गर्मी में लगाया है तो इसको हर 8 से 10 दिन में पानी कि आवश्यकता होती है तथा बारिश के मौसम की फसल को खरपतवार से बचाना होता है. इसकी समय समय पर निराई गुड़ाई करते रहें. अगर इसकी फसल में खरपतवार हो गया तो इसको कीट रोग बहुत जल्दी लगेंगे. अगर संभव हो तो शाम के समय में गूगल, धूप डाल के खेत में जगह जगह धुँआ कर दें इससे कीट पतंगें इससे दूर रहेंगें.

कद्दू की फसल में लगने वाले रोग:

कीट एवं रोग नियंत्रण के जैविक तरीके:

  • लालड़ी

पौधों पर दो पत्तियां निकलने पर इस कीट का प्रकोप शुरू हो जाता है यह कीट पत्तियों और फूलों को खाता है इस कीट की सुंडी भूमि के अन्दर पौधों की जड़ों को काटती है जिससे हमारी फसल का पौधा सूख जाता है जिसका नुक्सान हमे उठाना पड़ता है जिससे हमारी पैदावार पर काफी प्रभाव पड़ता है |

रोकथाम

इम से कम 40-50 दिन पुराना 15 लीटर गोमूत्र को तांबे के बर्तन में रखकर 5 किलोग्राम धतूरे की पत्तियों एवं तने के साथ उबालें 7.5 लीटर गोमूत्र शेष रहने पर इसे आग से उतार कर ठंडा करें एवं छान लें मिश्रण तैयार कर 3 ली. को प्रति पम्प के द्वारा फसल में तर-बतर कर छिडकाव करना चाहिए |
  • फल की मक्खी

यह मक्खी फलों में प्रवेश कर जाती है और वहीँ पर अंडे देती है अण्डों से सुंडी बाहर निकलती है वह फल को बेकार कर देती है यह मक्खी विशेष रूप से खरीफ वाली फसल को अधिक हानी पहुंचाती है जिससे हमारी फसल ख़राब हो जाती है | इसकी मक्खी फल के रस को चूस लेती है. इसको रस चूसक भी बोला जाता है.

रोकथाम

इम से कम 40-50 दिन पुराना 15 लीटर गोमूत्र को तांबे के बर्तन में रखकर 5 किलोग्राम धतूरे की पत्तियों एवं तने के साथ उबालें 7.5 लीटर गोमूत्र शेष रहने पर इसे आग से उतार कर ठंडा करें एवं छान लें मिश्रण तैयार कर 3 ली. को प्रति पम्प के द्वारा फसल में तर-बतर कर छिडकाव करना चाहिए |
  • सफ़ेद ग्रब

यह कीट कद्दू वर्गीय पौधों को काफी क्षति पहुंचाती है यह भूमि के अन्दर रहती है और पौधों की जड़ों को खा जाती है जिसके कारण पौधे सुख जाते है |

रोकथाम

इसकी रोकथाम के लिए खेत में नीम का खाद प्रयोग करें |
  • चूर्णी फफूदी

यह रोग ऐरीसाइफी सिकोरेसिएरम नमक फफूंदी के कारण होता है पत्तियों एवं तनों पर सफ़ेद दरदरा और गोलाकार जल सा दिखाई देता है जो बाद में आकार में बढ़ जाता है और कत्थई रंग का हो जाता है पूरी पत्तियां पिली पड़कर सुख जाती है पौधों की बढ़वार रुक जाती है |

रोकथाम

इसकी रोकथाम के लिए देसी गाय का मूत्र 5 लीटर लेकर 15 ग्राम के आकार के बराबर हींग लेकर पिस कर अच्छी तरह मिलाकर घोल बनाना चाहिए प्रति 2 ली. पम्प के द्वारा तर-बतर कर छिडकाव करे ।
  • मृदु रोमिल फफूंदी

यह स्यूडोपरोनोस्पोरा क्यूबेन्सिस नामक फफूंदी के कारण होता है रोगी पत्तियों की निचली सतह पर कोणाकार धब्बे बन जाते है जो ऊपर से पीले या लाल भूरे रंग के होते है |

रोकथाम

इम से कम 40-50 दिन पुराना 15 लीटर गोमूत्र को तांबे के बर्तन में रखकर 5 किलोग्राम धतूरे की पत्तियों एवं तने के साथ उबालें 7.5 लीटर गोमूत्र शेष रहने पर इसे आग से उतार कर ठंडा करें एवं छान लें मिश्रण तैयार कर 3 ली. को प्रति पम्प के द्वारा फसल में तर-बतर कर छिडकाव करना चाहिए |
  • मोजैक

यह विषाणु के द्वारा होता है पत्तियों की बढ़वार रुक जाती है और वे मुड़ जाती है फल छोटे बनते है और उपज कम मिलती है यह रोग चैंपा द्वारा फैलता है |

रोकथाम

इसकी रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा या गोमूत्र तम्बाकू मिलाकर पम्प के द्वारा तर-बतर कर छिडकाव करे ।
  • एन्थ्रेक्नोज

यह रोग कोलेटोट्राईकम स्पीसीज के कारण होता है इस रोग के कारण पत्तियों और फलो पर लाल काले धब्बे बन जाते है ये धब्बे बाद में आपस में मिल जाते है यह रोग बीज द्वारा फैलता है |

रोकथाम

बीज के बोने से पूर्व गौमूत्र या कैरोसिन या नीम का तेल के साथ उपचारित करना चाहिए |
कद्दू उत्पादन की नई विधि हो रही है किसानों के बीच लोकप्रिय, कम समय में तैयार होती है फसल

कद्दू उत्पादन की नई विधि हो रही है किसानों के बीच लोकप्रिय, कम समय में तैयार होती है फसल

सीताफल और काशीफल जैसे लोकप्रिय नाम से प्रचलित कद्दू या कुम्हड़ा (Kaddu, kumharaa or pumpkin) एक ऐसी सब्जी है, जिसे उत्पादन के बाद कोल्ड स्टोरेज में रखने की इतनी आवश्यकता नहीं होती है और लंबे समय तक आसानी से बेचा जा सकता है। सभी पोषक तत्वों की पूर्ति करने वाली यह फसल कई प्रकार की मिठाइयां बनाने के काम में तो आती ही है, साथ ही इसे खाने से उसके बीज में मौजूद विटामिन-सी, आयरन, फास्फोरस, पोटेशियम तथा जिंक जैसे सूक्ष्म तत्वों की कमी को भी दूर किया जा सकता है।

कद्दू की खेती के उपयुक्त जलवायु

वैसे तो कद्दू की खेती के लिए गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है, परंतु फिर भी एक जायद फसल होने के नाते ठंडी और गर्म मिश्रण की जगह पर भी इसे उगाया जा सकता है। किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि कद्दू की फसल को ज्यादा ठंड पड़ने पर पाले से बचाना होगा। कद्दू की अच्छी पैदावार के लिए आपको 18 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच में तापमान को नियंत्रित करना होगा।


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कद्दू की खेती के लिए कैसी मिट्टी चाहिये ?

कद्दू की खेती के लिए मुख्यतया भारत के किसान दोमट या बलुई दोमट मिट्टी का इस्तेमाल करते हैं, हालांकि इसकी खेती बलुई मिट्टी में भी की जाती है। कद्दू की खेती के लिए किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि आपके खेत में पानी निकासी की व्यवस्था अच्छी तरीके से होनी चाहिए।

कद्दू की खेती के लिए खेत की तैयारी व खाद उपचार

किसान भाई यह तो जानते ही होंगे कि कद्दू एक उथली जड़ वाली फसल होती है, इसलिए इसे ज्यादा जुताई की आवश्यकता नहीं होती है। आप एक बार ही कल्टीवेटर से जुताई कर अपने खेत को समतल बनाकर इसके बीजों की बुवाई कर सकते है। खेत के तैयार होने के बाद छोटी-छोटी क्यारियां और नालियां बना कर मेड़ बनानी चाहिए। कद्दू की फसल के दौरान इस्तेमाल में होने वाले ऑर्गेनिक गोबर की खाद को डाला जा सकता है। इसके अलावा आप अरंडी की फसल से तैयार होने वाले चारे को पीसकर भी अंतिम जुताई से पहले खेत में अच्छी तरह बिखेर सकते है।


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यदि बात करें रासायनिक खाद और उर्वरकों की, तो प्रति हेक्टेयर जमीन के अनुसार 70 से 80 किलोग्राम नाइट्रोजन तथा 40 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल किया जा सकता है। इन उर्वरकों का इस्तेमाल आपको अंतिम जुताई से पहले ही अपने खेत में करना होगा और नाइट्रोजन की कुछ मात्रा कद्दू के फूल के 20 से 25 दिन बड़े होने के बाद इस्तेमाल करनी चाहिए। किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि सुबह के समय कद्दू की फसल में कभी भी रसायनिक या जैविक खाद का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

कद्दू की बुवाई में बीज अनुपात व उपचार

कद्दू की फसल को बोने का समय इस बात पर निर्भर करता है कि इसे कहां पर बोया जा रहा है। भारत के मैदानी क्षेत्रों में इसे साल में दो बार उगाया जाता है और पर्वतीय क्षेत्रों में अप्रैल महीने में इसकी बुवाई की जाती है। किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि फसल की दो कतारों के बीच में लगभग 200 से 250 सेंटीमीटर की दूरी होनी अनिवार्य है और दो छोटी पौध के बीच में 45 से 50 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए। बीज को जमीन से 5 से 6 सेंटीमीटर गहराई में बोया जाए तो इसकी कोंपल सही समय पर बाहर निकल आती है। कद्दू की बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर की दर से 1 किलोग्राम से 2 किलोग्राम बीज पर्याप्त होते है। बीज बोने से पहले आप अपने बीज का उपचार भी कर सकते है, जिसके तहत बीज को 1 लीटर पानी में मिलाकर उसमें 2 ग्राम केप्टोन का मिश्रण तैयार किया जा सकता है और फिर इसे अच्छी तरह घोला जाता है, कुछ समय बाद बाहर निकाल कर दो से तीन घंटे छाया में सुखाकर बुवाई के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।


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कद्दू की उन्नत किस्में

पूसा के वैज्ञानिकों के द्वारा कद्दू की फसल की कई उन्नत किस्में भारतीय किसानों के लिए तैयार की गई है, इनमें पूसा-अलंकार, पूसा-विश्वास तथा पूसा-विकास खेतों में इस्तेमाल की जाने वाली उन्नत किस्म है।

कद्दू की फसल में कीट नियंत्रण

किसान भाइयों कद्दू की फसल में लगने वाले रोग जैसे कि लीफ-माइनर और फल-मक्खी से बचाव के लिए घर पर ही कुछ रासायनिक मिश्रण तैयार कर सकते है।इसके लिए आप वर्मी-मैक्स यात्रा की 0.005 प्रतिशत मात्रा को अपने खेत में तीन से चार सप्ताह के अंतराल पर छिड़काव कर सकते है। फल मक्खी कद्दू की फसल में लगने वाले फल की मुलायम अवस्था में ही उसके अंदर अंडे दे देती है और उसे अंदर से खाना शुरु कर देती है, इसके निवारण के लिए फूल के बड़े होने के बाद रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल कम करना चाहिए और नीम की निंबोली का पानी के साथ 5% गोल मिलाकर इस्तेमाल करना चाहिए।

कद्दू के फसल की तुड़ाई

कद्दू की फसल की बुवाई के लगभग 70 से 80 दिनों में यह तैयार हो जाता है और आपके आसपास की मंडी की मांग के अनुसार इसे समय-समय कर तोड़ते रहना चाहिए। भारत के लोगों के द्वारा दोनों समय की सब्जी के रूप में इसका इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए इसकी डिमांड पूरे साल चलती रहती है। यदि आप उपयुक्त बतायी गयी विधि का इस्तेमाल पूरी सावधानी से करते हैं तो एक हेक्टेयर क्षेत्र में लगभग 300 से 400 क्विंटल कद्दू की पैदावार कर सकते है। इसके भंडारण के लिए किसी विशेष शीत-ग्रह की जरूरत नहीं होगी और अपने घर में ही एक कमरे में 20 से 25 दिन तक स्टोर किया जा सकता है, पर ध्यान रहे कि तापमान लगभग 30 डिग्री सेल्सियस से कम ही होना चाहिए। आशा करते हैं कि हमारे किसान भाइयों को वैज्ञानिकों के द्वारा तैयार की गई कद्दू उत्पादन की यह नई विधि पसंद आई होगी और भविष्य में इसी विधि का इस्तेमाल करके अच्छा उत्पादन कर पाएंगे।
गर्मियों में ऐसे करें पेठा की खेती, जल्द ही हो जाएंगे मालामाल

गर्मियों में ऐसे करें पेठा की खेती, जल्द ही हो जाएंगे मालामाल

पेठा को भारत में सफेद कद्दू या धुंधला ख़रबूज़ा भी कहा जाता है। यह शुरुआती दौर में दक्षिण-पूर्व एशिया में उगाया जाता था, बाद में इसे भारत में उगाया जाने लगा। इसका प्रयोग सब्जी बनाने में किया जाता है। इसके साथ ही इससे कई तरह की मिठाइयां भी बनाई जाती हैं। इसमें शुगर की मात्रा बेहद कम होती है, इसलिए इसे मरीजों के लिए एक अच्छा आहार माना जाता है। यह चर्बी, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और रेशे से भरपूर होता है। इसलिए इसे दवाई बनाने में भी प्रयोग किया जाता है। साथ ही इसका प्रयोग कब्ज़ और एसिडिटी के उपचार में भी किया जाता है। पेठा एक ऐसी फसल है जो बहुत कम लागत में अच्छा खास मुनाफा दे सकती है। इसलिए भारत के किसान पेठा की खेती करना पसंद करते हैं।

गर्मियों में पेठा की खेती

इन राज्यों में की जाती है पेठा की खेती

भारत में पेठा की खेती वैसे तो पूरे देश में की जाती है। लेकिन उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और बिहार में इस खेती की प्रचलन ज्यादा है। भारत में सबसे ज्यादा पेठा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उगाया जाता है। जहां इसका प्रयोग ज्यादातर मिठाई बनाने में किया जाता है।

पेठा की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु एवं तापमान

उष्णकटिबंधीय जलवायु में पेठा की खेती के अच्छे परिणाम देखने को मिलते हैं। इसकी खेती ज्यादातर गर्मियों और बरसात में की जाती है। पेठा की खेती सर्दियों के मौसम में संभव नहीं है, क्योंकि सर्दियों के मौसम में इसके पेड़ अच्छे से विकसित नहीं हो पाते। जिसके कारण खर्च अधिक आता है और पैदावार अपेक्षा के अनुरूप नहीं होती है। पेठा के खेती के लिए 30 से 40 डिग्री सेल्सियस तापमान जरूरी होता है। इससे ज्यादा तापमान पेठा की खेती के लिए उपयुक्त नहीं होता। पेठा के बीज 15 से 20 डिग्री सेल्सियस तापमान पर आसानी से अंकुरित हो जाते हैं।

पेठा की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

पेठा की खेती किसी भी मिट्टी में की जा सकती है। लेकिन यदि किसान भाइयों के पास दोमट मिट्टी के खेत हैं तो इसकी पैदावार ज्यादा हो सकती है। पेठा के लिए जमीन का चुनाव करते वक्त ध्यान रखें कि खेत में पानी की उचित निकासी की व्यवस्था हो। खेत में पानी भरने की स्थिति में पौधे पानी में डूबकर नष्ट हो जाएंगे। ये भी पढ़े: छत पर उगाएं सेहतमंद सब्जियां

पेठा की प्रसिद्ध किस्में

सी. ओ. 1 :

यह किसानों द्वारा पसंद की जाने वाली उत्तम किस्म है। इसकी फसल 120 दिन में तैयार हो जाती है। इस किस्म के फल का वजन 7 से 10 किलो तक हो सकता है। अगर पैदावार की बात करें यह किस्म एक हेक्टेयर खेत में 300 क्विंटल तक का उत्पादन दे सकती है।

कोयम्बटूर :

पेठा की इस किस्म के फलों का उपयोग सब्जी बनाने के साथ मिठाई बनाने में भी किया जाता है। इस किस्म के फल का औसत वजन 8 किलो के आस पास होता है। इस किस्म की खेती करने पर किसान 250 से 300 क्विंटल तक का उत्पादन ले सकते हैं।

काशी धवल :

पेठा की यह किस्म भी बुवाई एक 120 दिन के भीतर तैयार हो जाती है। इस किस्म के फल का वजन लगभग 5 किलो होता है। यह किस्म भी प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 250 से 300 क्विंटल का उत्पादन दे देती है |

अर्को चन्दन :

यह किस्म बुवाई के 130 दिनों के बाद तैयार होती है। इसके फलों का उपयोग सब्जी बनाने के लिए किया जाता है। इससे भी किसान एक हेक्टेयर खेत में 350 क्विंटल का उत्पादन ले सकते हैं ।

काशी उज्ज्वल :

पेठा की यह किस्म 110 से 120 दिनों में आसानी से तैयार हो जाती है। इसके फल बेहद बड़े होते हैं। इनका वजन 12 से 13 किलो तक हो सकता है। यह किस्म एक हेक्टेयर खेत में 600 क्विंटल तक का उत्पादन दे सकती है। इनके अलावा भी पेठा की बहुत सारी किस्में बाजार में उपलब्ध हैं जो अलग-अलग जलवायु के हिसाब से उपयुक्त होती हैं।

पेठा की फसल एक लिए खेत की तैयारी

सबसे पहले 1 से 2 बार खेत की गहरी जुताई करें, जिससे खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाएं।  जुताई के दौरान खेत में सड़ी गोबर की खाद अवश्य डालें। इसके बाद खेत में सिंचाई करें। खेत का पानी सूखने के बाद एक बार फिर से खेत की जुताई करें। जुताई के बाद खेत को खुली धूप में 15 दिनों  के लिए छोड़ दें। इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाएगी। इसके बाद खेत में मिट्टी के बेड तैयार कर लें। प्रत्येक बेड के बीच 3 से 4 मीटर की दूरी होनी चाहिए।

पेठा के बीजों की रोपाई

पेठा के बीजों की रोपाई गर्मियों और बरसात में करनी चाहिए। रोपाई के पहले बीजों को थीरम या कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा से उपचारित कर लें। पेठा की बुवाई के लिए एक हेक्टेयर खेत में 8 किलो बीजों की जरूरत होती है। रोपाई करते वक्त ध्यान रखें कि बीज से बीज की दूरी डेढ़ फुट होना चाहिए, जबकि गहराई 2 से 3 सेंटीमीटर होनी चाहिए। पहाड़ी क्षेत्रों में पेठा की रोपाई अप्रैल के बाद की जाती है।

पेठा की सिंचाई

वैसे तो पेठा के पौधों को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है। लेकिन फिर भी तेज गर्मियों के मौसम में सप्ताह में दो बार सिंचाई अवश्य करें। इससे पौधों का विकास तेजी से होगा। अगर पेठा की फसल बरसात में लगाई गई तो सिंचाई न करें।

खरपतवार नियंत्रण

पेठा की फसल के साथ खरपतवार तेजी से खेत में फैलता है। इसलिए इसे नियंत्रित करना बेहद जरूरी है। खरपतवार नियंत्रित न कर पाने की स्थिति में फसल को हानि पहुंचेगी। इसके नियंत्रण के लिए बीजों की रोपाई के 20 से 25 दिन बाद निराई गुड़ाई करें। इसक बाद हर 15 दिन में निराई गुड़ाई करते रहें।

फसल में लगने वाले कीट

इस फसल में कीटों का हमला होता है, जिससे फसल को सुरक्षित करना बेहद जरूरी होता है। नहीं तो फसल का उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित होगा। पेठा की खेती में आमतौर पर लाल कद्‌द भृंग, सफेद मक्खी, चेपा, फल मक्खी और चूर्णिल आसिता कीटों का हमला होता है। जिनसे निपटने के लिए फेनवेलिरेट, क्लोरपाइरीफोस, सायपरमेथ्रिन, इमिडाक्लोप्रिड और एन्डोसल्फान का छिड़काव किया जा सकता है।

फसल की तुड़ाई

पेठा के फल को पकने के ठीक पहले तोड़ लेना चाहिए। इसके बाद इसे गाड़ी में लोड करके मंडी भेज दें। यह फल आमतौर पर जल्दी खराब नहीं होता है, इसलिए इसे वातानुकूलित वाहन में रखने की जरूरत नहीं होती है। इस फल से बहुत सारी चीजें बनाई जाती हैं, इसलिए किसान भाइयों को इस फल का अच्छा खासा भाव मिलता है।
कैसे करें कद्दू की फसल से कमाई; जाने फसल के बारे में संपूर्ण जानकारी

कैसे करें कद्दू की फसल से कमाई; जाने फसल के बारे में संपूर्ण जानकारी

कद्दू एक ऐसी फसल है जो बहुत ही कम समय में पक कर तैयार हो जाती हैं. साथ ही कद्दू में काफी पोषक तत्व मौजूद होते हैं जो इस सब्जी को स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक बना देता है. कद्दू की फसल की बात की जाए तो यह एक पौधों की श्रेणी में आता है और कद्दू के बीज को खाने में इस्तेमाल किया जाता है.

सब्जी बनाने के अलावा कद्दू का इस्तेमाल बहुत सी मिठाइयां बनाने में भी किया जाता है.

कद्दू में प्रोटीन की मात्रा काफी ज्यादा होती है और साथ ही इसमें जेल भी होता है जो इम्यून सिस्टम को बढ़ाने में मदद करता है. डॉक्टर सर्दी जुखाम और वायरल जैसे संक्रमण के समय कद्दू खाने के लिए कहते हैं. इन सबके अलावा अगर किसान कद्दू की खेती करना चाहते हैं तो वह यह फसल उगा कर अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं. इस आर्टिकल के माध्यम से
कद्दू की फसल के बारे में पूरी जानकारी दी जा रही है.

कद्दू की फसल उगाने के लिए कैसी  मिट्टी सही रहती है?

किसी भी फसल की तरह कद्दू की खेती के लिए भी उपजाऊ भूमि होना अनिवार्य है और साथ ही भूमि ऐसी होनी चाहिए जिसमें जल निकासी का उचित प्रबंध हो।  यह फसल गर्म और ठंड दोनों ही तरह की जलवायु में उगाई जा सकती है।  कद्दू की फसल लगाते समय हम एक बात का ध्यान रखने की जरूरत है कि इस फसल को बाकी फसलों के मुकाबले ज्यादा पानी की जरूरत पड़ती है।  फसल में सिंचाई के लिए पानी ज्यादा लगता है लेकिन एक और बात का ध्यान रखने की जरूरत है की फसल में किसी भी समय जलभराव नहीं होना चाहिए वरना यह फसल बर्बाद हो सकती है। कद्दू की अच्छी फसल के लिए जमीन का P.H. मान 5 से 7 के मध्य होना चाहिए |

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कद्दू की खेती के लिए सही जलवायु और तापमान

शीतोषण और समशीतोष्ण जलवायु को कद्दू की फसल के लिए एकदम अनुकूल माना जाता है और यही कारण है कि हमारे देश में कद्दू की फसल बारिश के मौसम में उगाई जाती हैं।  गर्मी का मौसम कद्दू की फसल के लिए एकदम सही माना गया है क्योंकि सर्दियों में जब ज्यादा पाला पड़ता है तो कद्दू के फूल अच्छी तरह से बड़े नहीं हो पाते हैं और कई बार झड़कर गिरने लगते हैं।  इसके अलावा हमें एक और बात ध्यान में रखने की जरूरत है कि एक बार जब फसल पर फूल आ जाए तो उस समय बारिश का मौसम नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे फूलों के खराब होने की संभावना बढ़ जाती है।  इस फसल के बीजों के बनने के लिए तापमान 20 डिग्री सेल्सियस के आसपास होना जरूरी है और वहीं पर अगर आप चाहते हैं कि आप की फसल अच्छी तरह से उत्पादन करें तो तापमान 25 से 30 डिग्री के मध्य होना जरूरी है।

कद्दू की फसल की कुछ किस्म

कद्दू की फसल अच्छी हो और उसका उत्पादन सही रहे इसके लिए कद्दू की कई अलग-अलग किस्म तैयार की गई है और आप उत्पादन क्षमता के आधार पर उनका चुनाव कर सकते हैं।

 पूसा विश्वास किस्म

भारत में उत्तर भारत के कई राज्यों में यह फसल उगाई जाती है और इसमें एक कद्दू का वजन लगभग 5 किलोग्राम तक पहुंच जाता है।  इसमें निकलने वाले फल हरे रंग के होते हैं और साथ ही उन पर छोटे-छोटे सफेद धब्बे बने रहते हैं।  एक बार उगाने के बाद यह फसल लगभग 120 दिन में पक कर तैयार हो जाती है और जमीन में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगभग 40 क्विंटल कद्दू की पैदावार इस किस्म को लगाने के बाद मिल जाती है।

काशी उज्जवल किस्म

उत्तर भारत के साथ-साथ दक्षिण भारत में भी यह कैसे उगाई जाती है और इसमें एक कद्दू का वजन ही 10 से 15 किलो तक होता है।  इसमें कद्दू के 1 पौधे पर चार से पांच फल आ जाते हैं और प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगभग 550 क्विंटल का उत्पादन इस किसी से हो जाता है।  इस फसल को बनने में थोड़ा ज्यादा समय लगता है जो तकरीबन 6 महीने तक हो सकता है।

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डी.ए.जी.एच. 16 किस्म

यह किस्म एक बार उगाने के बाद लगभग 100 से 110 दिन के बीच में पैदावार देती है और इससे उगने वाले फल का रंग भी हरे और सफेद का मिश्रण होता है। इसमें कद्दू का वजन 12 किलोग्राम तक चला जाता है और एक पौधे पर चार से पांच फल आ जाते हैं। अगर पैदावार की बात की जाए तो जमीन में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से यह किस्म 400 से 500 क्विंटल की पैदावार दे देती है।

काशी धवन किस्म

कद्दू की यह किस्म ज्यादातर पहाड़ी और पर्वतीय इलाकों में उगाई जाती है और इसे पककर तैयार होने में लगभग 3 महीने का समय लगता है।  इसमें कद्दू के फल का वजन 12 किलोग्राम तक होता है और प्रति हेक्टेयर में आप लगभग 600  क्विंटल की पैदावार आसानी से कर सकते हैं।

पूसा हाईब्रिड 1

यह कद्दू की एक हाइब्रिड किस्म है और इसे ज्यादातर वसंत ऋतु के मौसम में उगाया जाता है।  इसमें पौधे पर लगने वाले फल का वजन थोड़ा कम होता है जो लगभग 5 किलोग्राम के आस पास होता है और इसमें प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगभग साढे 500 क्विंटल की पैदावार की जा सकती है।

कैसे करें कद्दू की फसल के लिए खेत को तैयार?

बाकी फसल की तरह ही कद्दू की फसल लगाने से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार करना पड़ता है।  सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करने के बाद उसमें पुरानी गोबर की खाद डालकर खेत को थोड़े टाइम के लिए छोड़ दिया जाता है और उसके बाद एक बार और जुताई करते हुए जमीन को भी भुरभुरा कर लिया जाता।  उसके बाद जमीन को समतल करते हुए कद्दू की फसल को क्यारियां बनाकर लगाया जा सकता है।

क्या है कद्दू के बीजों की रोपाई का सही समय और तरीका

कद्दू के बीज ज्यादातर किसान अपने हाथ से ही लगाते हैं और प्रति हेक्टेयर जमीन में 3 से 4 किलो बीज लग जाते हैं। | बीजो को खेत में लगाने से पहले उन्हें थीरम या बाविस्टीन की उचित मात्रा का घोल बना कर उपचारित कर लेना चाहिए | इसके बाद इन बीजो की खेत में तैयार की गई धोरेनुमा क्यारियों में रोपाई कर दे | जब आप क्यारियां बनाते हैं तो एक बात का ध्यान रखें कि क्यारियों के बीच में लगभग 4 से 5 मीटर की दूरी रखी जाए और बीजों के मध्य भी एक से डेढ़ फीट तक की दूरी बना कर रखना अनिवार्य है।  ऐसा करने से पौधे अच्छी तरह से विकसित होते हैं और फसल भी अच्छी मिलती है। अगर आप पर्वतीय इलाकों में है फसल उगाना चाहते हैं तो मार्च या अप्रैल के महीने में यह किया जा सकता है और जहां पर सिंचाई कम की जाती है वहां पर यह फसल बारिश के मौसम में जून के आसपास लगाई जाती हैं। इसके अलावा भारत में बहुत सी जगह है यह फसल अगस्त के महीने में भी उगाई जाती हैं। विभिन्न क्षेत्रों में इसे अगस्त माह में उगाया जाता है |

कैसे करें कद्दू के फसल की सिंचाई

कद्दू की फसल में जब बीजों का अंकुरण हो रहा होता है तब उसे ज्यादा सिंचाई की जरूरत पड़ती है। अगर आप अच्छी तरह से सिंचाई करेंगे तभी आपको अच्छा फल मिलने की संभावना है। जमीन में नमी बरकरार रहे इसीलिए कद्दू के खेत में तीन से चार दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना जरूरी है। इसके अलावा गर्मियों के मौसम में भी एक हफ्ते के अंदर-अंदर इसमें पानी देना जरूरी है। साथ ही अगर आप बारिश के मौसम में है फसल उगा रहे हैं तो जरूरत पड़ने पर ही फसल की सिंचाई करें वरना फसल में पानी ठहर जाने की संभावना बनी रहती है जिसकी वजह से फसल बर्बाद हो सकती हैं।

कद्दू की फसल के लिए कौन से उर्वरक हैं सही?

अगर आप चाहते हैं कि आप की फसल की पैदावार अच्छी हो और साथ ही आपको उन्नत किस्म का फल मिले तो आपको और ध्यान देने की जरूरत।  जैसा कि पहले ही बताया गया है कि जुताई के समय खेत में पुराने गोबर की खाद डाली जाती हैं।  इसके अलावा जैविक खाद के रूप में कंपोस्ट खाद का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।  इसके अलावा अगर आप केमिकल खाद का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो 40KG नाइट्रोजन, 50KG पोटाश और 50KG फास्फोरस की मात्रा को खेत की आखरी जुताई के समय प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़क देना चाहिए|

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कैसे करें कद्दू के खेत में खरपतवार पर नियंत्रण?

किसी भी फसल में खरपतवार का नियंत्रण करना बेहद जरूरी है लेकिन कद्दू के पौधों में आपको इसके बारे में ज्यादा ध्यान रखने की जरूरत है क्योंकि यह फसल एक बेल के रूप में पूरे खेत में फैलती है और इसमें ज्यादा खरपतवार होने की संभावना बनी रहती हैं। समय-समय पर फसल में निराई और गुड़ाई  करते रहना चाहिए। आप इसे हर 2 से 3 दिन के अंतराल पर कर सकते हैं। इसके अलावा एक बार पौधे के बड़े हो जाने के बाद आप यह प्रक्रिया 10 दिन के अंतराल पर करना शुरू कर सकते हैं।

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कद्दू की फसल में लगने वाले रोग और उनसे बचाव? कद्दू की फसल में लगने वाले कुछ रोग इस प्रकार से हैं;

लालड़ी रोग

इस रोग को अंग्रेजी में पंपकिन विटल भी कहा जाता है और अगर एक बार पौधे में यह रोग लग जाता है तो पौधे का विकास होना बंद हो जाता है। यह रोग ज्यादातर पौधे की जड़ों और उसकी पत्तियों को प्रभावित करता है और एक बार यह रोग लग जाने के बाद बत्तियां मुरझाकर सूखने लगती हैं। इसकी रोकथाम ट्राइक्लोफेरान या डाईक्लोरोवास में से किसी एक दवा का उचित मात्रा में छिड़काव करते हुए किया जा सकता है।

फल मक्खी रोग

जैसा कि नाम से ही समझ में आ रहा है यह रोग फसल के फलों को नुकसान पहुंचाता है। इसमें मक्खी फलों के अंदर छेद कर देते हैं और उसमें अंडे देना शुरु कर देते हैं। इसमें आपको फल के अंदर कीड़े नजर आते हैं जो पूरी तरह से फसल को और फलों को बर्बाद कर देते हैं | यह रोग लगने के बाद धीरे-धीरे फल खराब होकर गिरने लगते हैं। कार्बारिल या मैलाथियान का उचित मात्रा में छिड़काव कर इस कीट रोग की रोकथाम की जा सकती है |

सफ़ेद सुंडी रोग

यह रोग जमीन के अंदर से फसल को प्रभावित करता है।  सबसे पहले यह रोग पौधे की जड़ों में फैलता है और धीरे-धीरे पौधे को सुखाकर उसे पूरी तरह से नष्ट कर देता है।  अगर आप इस रोग की रोकथाम चाहते हैं तो जुताई के समय आप नीम का घोल बनाकर जमीन में डाल सकते हैं।

मोज़ैक रोग

यह एक विषाणु से होने वाला रोग है जिसकी वजह से पौधा पूरी तरह से विकसित होना बंद हो जाता है और अगर किसी तरह पौधे का विकास हो भी जाए तो उस पर आने वाला फल बहुत ही छोटे आकार का होता है। इस तरह के रोग से छुटकारा पाने के लिए मोनोक्रोटोफॉस या फास्फोमिडान का उचित मात्रा में छिड़काव किया जाना चाहिए |

एन्थ्रेक्नोज रोग

यह रोग कद्दू की फसल को बारिश के मौसम में ज्यादा प्रभावित करता है और इस रोग के होने से पौधे की पत्तियां काले और भूरे रंग के धब्बों से भर जाती है।  धीरे-धीरे यह सारी फसल में फैल जाता है और पौधे का विकास होना बंद हो जाता है। इस तरह के रोग से बचाव के लिए पौधों पर हेक्साकोनाजोल या प्रोपिकोनाजोल का उचित मात्रा में छिड़काव करे |

फल सड़न रोग

एक बार जब कद्दू की फसल पर फल आ जाते हैं तो कोशिश करें कि उन्हें समय-समय पर पलटते रहे वरना उनमें पल सड़न रोग लगने की संभावना हो जाती हैं।  अगर आप इस रोग से बचाव चाहते हैं तो फसल में टेबुकोनाजोल या वैलिडामाईसीन का छिड़काव करना चाहिए |

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कद्दू की फसल से मिलने वाला लाभ और पैदावार

सामान्यता कद्दू की फसल 100 से 110 दिन के बीच में बनकर तैयार हो जाती है | जब कद्दू हल्के पीले रंग के होने लगे और उसमें बीच-बीच में थोड़ी सफेदी आ जाए तो आप फल को तोड़ सकते हैं। एक हेक्टेयर जमीन पर सामान्यतया 400 क्विंटल तक फसल की पैदावार की जा सकती है और कद्दू मार्केट में 10 से ₹15 प्रति किलो के भाव से बिकता है।  ऐसे में किसान एक बार फसल लगाकर लगभग 5 से ₹6 लाख तक की अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं।