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एकीकृत

गेंदे की खेती के लिए इस राज्य में मिल रहा 70 % प्रतिशत का अनुदान

गेंदे की खेती के लिए इस राज्य में मिल रहा 70 % प्रतिशत का अनुदान

गेंदे के फूल का सर्वाधिक इस्तेमाल पूजा-पाठ में किया जाता है। इसके साथ-साथ शादियों में भी घर और मंडप को सजाने में गेंदे का उपयोग होता है। यही कारण है, कि बाजार में इसकी निरंतर साल भर मांग बनी रहती है। 

ऐसे में किसान भाई यदि गेंदे की खेती करते हैं, तो वह कम खर्चा में बेहतरीन आमदनी कर सकते हैं। बिहार में किसान पारंपरिक फसलों की खेती करने के साथ-साथ बागवानी भी बड़े पैमाने पर कर रहे हैं। 

विशेष कर किसान वर्तमान में गुलाब एवं गेंदे की खेती में अधिक रूची एवं दिलचस्पी दिखा रहे हैं। इससे किसानों की आमदनी पहले की तुलना में अधिक बढ़ गई है। 

यहां के किसानों द्वारा उत्पादित फसलों की मांग केवल बिहार में ही नहीं, बल्कि राज्य के बाहर भी हो रही है। राज्य में बहुत सारे किसान ऐसे भी हैं, जिनकी जिन्दगी फूलों की खेती से पूर्णतय बदल गई है।

बिहार सरकार फूल उत्पादन रकबे को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन दे रही है

परंतु, वर्तमान में बिहार सरकार चाहती है, कि राज्य में फूलों की खेती करने वाले कृषकों की संख्या और तीव्र गति से बढ़े। इसके लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने फूलों के उत्पादन क्षेत्रफल को राज्य में बढ़ाने के लिए मोटा अनुदान देने की योजना बनाई है। 

दरअसल, बिहार सरकार का कहना है, कि फूल एक नगदी फसल है। यदि राज्य के किसान फूलों की खेती करते हैं, तो उनकी आमदनी बढ़ जाएगी। ऐसे में वे खुशहाल जिन्दगी जी पाएंगे। 

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बिहार सरकार 70 % प्रतिशत अनुदान मुहैय्या करा रही है

यही वजह है, कि बिहार सरकार ने एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना के अंतर्गत फूलों की खेती करने वाले किसानों को अच्छा-खासा अनुदान देने का फैसला किया है। 

विशेष बात यह है, कि गेंदे की खेती पर नीतीश सरकार वर्तमान में 70 प्रतिशत अनुदान प्रदान कर रही है। यदि किसान भाई इस अनुदान का फायदा उठाना चाहते हैं, तो वे उद्यान विभाग के आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर आवेदन कर सकते हैं। 

किसान भाई अगर योजना के संबंध में ज्यादा जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, तो horticulture.bihar.gov.in पर विजिट कर सकते हैं।

बिहार सरकार द्वारा प्रति हेक्टेयर इकाई लागत तय की गई है

विशेष बात यह है, कि गेंदे की खेती के लिए बिहार सरकार ने प्रति हेक्टेयर इकाई खर्च 40 हजार निर्धारित किया है। बतादें, कि इसके ऊपर 70 प्रतिशत अनुदान भी मिलेगा। 

किसान भाई यदि एक हेक्टेयर में गेंदे की खेती करते हैं, तो उनको राज्य सरकार निःशुल्क 28 हजार रुपये प्रदान करेगी। इसलिए किसान भाई योजना का फायदा उठाने के लिए अतिशीघ्र आवेदन करें।

एकीकृत कृषि प्रणाली से खेत को बना दिया टूरिज्म पॉइंट

एकीकृत कृषि प्रणाली से खेत को बना दिया टूरिज्म पॉइंट

इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम मॉडल (Integrated Farming System Model) यानी एकीकृत या समेकित कृषि प्रणाली मॉडल (ekeekrt ya samekit krshi pranaalee Model) को बिहार के एक नर्सरी एवं फार्म में नई दशा-दिशा मिली है। पटना के नौबतपुर के पास कराई गांव में पेशे से सिविल इंजीनियर किसान ने इंटीग्रेटेड फार्मिंग (INTEGRATED FARMING) को विलेज टूरिज्म (Village Tourism) में तब्दील कर लोगों का ध्यान खींचा है। कराई ग्रामीण पर्यटन प्राकृतिक पार्क नौबतपुर पटना बिहार (Karai Gramin Paryatan Prakritik Park, Naubatpur, Patna, Bihar) महज दो साल में क्षेत्र की खास पहचान बन चुका है।

लीज पर ली गई कुल 7 एकड़ भूमि पर खान-पान, मनोरंजन से लेकर इंटीग्रेटेड फार्मिंग के बारे में जानकारी जुटाकर प्रेरणा लेने के लिए काफी कुछ मौजूद है। एकीकृत कृषि प्रणाली से खेती किसानी को ग्रामीण पर्यटन (Village Tourism) का केंद्र बनाने के लिए सिविल इंजीनियर दीपक कुमार ने क्या कुछ जतन किए, इसके बारे में जानने से पहले यह समझना जरूरी है कि आखिर इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) यानी एकीकृत या समेकित कृषि प्रणाली (ekeekrt ya samekit krshi pranaalee) क्या है।

एकीकृत या समेकित कृषि प्रणाली (Integrated Farming System)

एकीकृत कृषि प्रणाली किसानी की वह पद्धति है जिसमे, कृषि के विभिन्न घटकों जैसे फसल पैदावार, पशु पालन, फल एवं साग-सब्जी पैदावार, मधुमक्खी पालन, कृषि वानिकी, मत्स्य पालन आदि तरीकों को एक दूसरे के पूरक बतौर समन्वित तरीके से उपयोग में लाया जाता है। इस पद्धति की खेती, प्रकृति के उसी चक्र की तरह कार्य करती है, जिस तरह प्रकृति के ये घटक एक दूसरे के पूरक होते हैं। 

इसमें घटकों को समेकित कर संसाधनों की क्षमता, उत्पादकता एवं लाभ प्रदान करने की क्षमता में वृद्धि स्वतः हो जाती है। इस प्रणाली की सबसे खास बात यह है कि इसमें भूमि, स्वास्थ्य के साथ ही पर्यावरण का संतुलन भी सुरक्षित रहता है। हम बात कर रहे थे, बिहार में पटना जिले के नौबतपुर के नजदीकी गांव कराई की। यहां बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड में कार्यरत सिविल इंजीनियर दीपक कुमार ने समेकित कृषि प्रणाली को विलेज टूरिज्म का रूप देकर कृषि आय के अतिरिक्त विकल्प का जरिया तलाशा है।

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सफलता की कहानी अब तक

जैसा कि हमने बताया कि, इंटीग्रेटेड फार्मिंग में खेती के घटकों को एक दूसरे के पूरक के रूप मेें उपयोग किया जाता है, इसी तर्ज पर इंजीनियर दीपक कुमार ने सफलता की इबारत दर्ज की है। उन्होंने अपनी पुश्तैनी जमीन बेचकर, पिछले साल 2 जून 2021 को 7 एकड़ लीज पर ली गई जमीन पर अपने सपनों की बुनियाद खड़ी की थी। बचपन से कृषि कार्य में रुचि रखने वाले दीपक कुमार इस भूमि पर समेकित कृषि के लिए अब तक 30 लाख रुपए खर्च कर चुके हैं। इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम के उदाहरण के लिए उनका फार्म अब इलाके के साथ ही, देश के अन्य किसान मित्रों के लिए आदर्श मॉडल बनकर उभर रहा है। उनके फार्म में कृषि संबंधी सभी तरह की फार्मिंग का लक्ष्य रखा गया है। 

इस मॉडल कृषि फार्म में बकरी, मुर्गा-मुर्गी, कड़कनाथ, मछली, बत्तख, श्वान, विलायती चूहों, विदेशी नस्ल के पिग, जापानी एवं सफेद बटेर संग सारस का लालन-पालन हो रहा है। मुख्य फसलों के लिए भी यहां स्थान सुरक्षित है। आपको बता दें प्रगतिशील कृषक दीपक कुमार ने इंटीग्रेटेड फार्मिंग के इन घटकों के जरिए ही विलेज टूरिज्म का विस्तार कर कृषि आमदनी का अतिरिक्त जरिया तलाशा है। मछली एवं सारस के पालन के लिए बनाए गए तालाब के पानी में टूरिस्ट या विजिटर्स नौकायन का लुत्फ ले सकते हैं।

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इसके अलावा यहां तैयार रेस्टॉरेंट में वे अपनी पसंद की प्रजाति के मुर्गा-मुर्गी और मछली के स्वाद का भी लुत्फ ले सकते हैं। इस फार्म के रेस्टॉरेंट में कड़कनाथ मुर्गे की चाहत विजिटर्स पूरी कर सकते हैं। इलाके के लोगों के लिए यह फार्म जन्मदिन जैसे छोटे- मोटे पारिवारिक कार्यक्रमों के साथ ही छुट्टी के दिन सैरगाह का बेहतरीन विकल्प बन गया है।

अगले साल से होगा मुनाफा

दीपक कुमार ने मेरीखेती से चर्चा के दौरान बताया, कि फिलहाल फार्म से होने वाली आय उसके रखरखाव में ही खर्च हो जाती है। इससे सतत लाभ हासिल करने के लिए उन्हें अभी और एक साल तक कड़ी मेहनत करनी होगी। नौकरी के कारण कम समय दे पाने की विवशता जताते हुए उन्होंने बताया कि पर्याप्त ध्यान न दिए जाने के कारण लाभ हासिल करने में देरी हुई, क्योंकि वे उतना ध्यान फार्म प्रबंधन पर नहीं दे पाते जितने की उसके लिए अनिवार्य दरकार है।

हालांकि वे गर्व से बताते हैं कि उनकी पत्नी उनके इस सपने को साकार करने में हर कदम पर साथ दे रही हैं। उन्होंने अन्य कृषकों को सलाह देते हुए कहा कि जितना उन्होंने निवेश किया है, उतने मेंं दूसरे किसान लगन से मेहनत कर एकीकृत किसानी के प्रत्येक घटक से लाखों रुपए की कमाई प्राप्त कर सकते हैं।

इनका सहयोग

उन्होंने बताया कि वेटनरी कॉलेज पटना के वीसी एवं डॉक्टर पंकज से उनको समेकित कृषि के बारे में समय-समय पर बेशकीमती सलाह प्राप्त हुई, जिससे उनके लिए मंजिल आसान होती गई। वे बताते हैं कि इस प्रोजेक्ट पर उन्होंने किसी और से किसी तरह की आर्थिक मदद नहीं जुटाई है एवं अपने स्तर पर ही आवश्यक धन राशि का प्रबंध किया।

युवाओं को जोड़ने की इच्छा

समेकित कृषि को अपनाने का कारण वे बेरोजगारी का समाधान मानते हैं। उनका मानना है कि ऐसे प्रोजेक्ट्स के कारण इलाके के बेरोजगारों को आमदनी का जरिया भी प्राप्त हो सकेगा।

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नए प्रयोग

आधार स्थापना के साथ ही अब दीपक कुमार के कृषि फार्म पर गोबर गैस प्लांट ने काम करना शुरू कर दिया है। उन्होंने बताया कि उनके फार्म पर गाय, बकरी, भैंस, सभी पशुओं के प्रिय आहार, सौ फीसदी से भी अधिक प्रोटीन से भरपूर अजोला की भी खेती की जा रही है। इस चारा आहार से पशु की क्षमता में वृद्धि होती है।

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आपको बता दें अजोला घास जिसे मच्छर फर्न (Mosquito ferns) भी कहा जाता है, जल की सतह पर तैरने वाला फर्न है। अजोला अथवा एजोला (Azolla) छोटे-छोटे समूह में गठित हरे रंग के गुच्छों में जल में पनपता है। जैव उर्वरक के अलावा यह कुक्कुट, मछली और पशुओं का पसंदीदा चारा भी है। इसके अलावा समेकित कृषि प्रणाली आधारित कृषि फार्म में हाइड्रोपोनिक्स (Hydroponics) तकनीक द्वारा निर्मित हरा चारा तैयार किया जा रहा है। 

इसमेें गेहूं, मक्का का चारा तैयार होता है। आठ से दस दिन की इस प्रक्रिया के उपरांत चारा तैयार हो जाता है। अनुकूल परिस्थितियों में हाइड्रोपोनिक्स चारे में 9 दिन में 25 से 30 सेंटीमीटर तक वृद्धि दर्ज हो जाती है। इस स्पेशल कैटल डाइट में प्रोटीन और पाचन योग्य ऊर्जा का प्रचुर भंडार मौजूद है। उनके अनुभव से वे बताते हैं कि इस प्रक्रिया में लगने वाला एक किलो गेहूं या मक्का तैयार होने के बाद दस किलो के बराबर हो जाता है। अल्प लागत में प्रोटीन से भरपूर तैयार यह चारा फार्म में पल रहे प्रत्येक जीव के जीवन चक्र में प्राकृतिक रूप से कारगर भूमिका निभाता है।

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हाइड्रोपोनिक्स (Hydroponics) अर्थात जल संवर्धन विधि से हरा चारा तैयार करने में मिट्टी की जरूरत नहीं होती। इसे केवल पानी की मदद से अनाज उगाकर निर्मित किया जा सकता है। इस विधि से निर्मित चारे को ही हाइड्रोपोनिक्स चारा कहते हैं। यदि आप भी इस फार्म के आसपास से यदि गुजर रहे हों तो यहां समेकित कृषि प्रणाली में पलने बढ़ने वाले जीवों और उनके जीवन चक्र को समझ सकते हैं। 

अन्य कृषि मित्र इस तरह की खेती से अपने दीर्घकालिक लाभ का प्रबंध कर सकते हैं। (फार्म संचालक दीपक कुमार द्वारा दूरभाष संपर्क पर दी गई जानकारी पर आधारित, आप इस फार्म के बारे में फेसबुक लिंक पर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।) 

संपर्क नंबर - 8797538129, दीपक कुमार 

फेसबुक लिंक- https://m.facebook.com/Karai-Gramin-Paryatan-Prakritik-Park-Naubatpur-Patna-Bihar-100700769021186/videos/1087392402043515/

यूट्यूब लिंक-https://youtube.com/channel/UCfpLYOf4A0VHhH406C4gJ0A

जानिये PMMSY में मछली पालन से कैसे मिले लाभ ही लाभ

जानिये PMMSY में मछली पालन से कैसे मिले लाभ ही लाभ

खेती किसानी में इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) या एकीकृत कृषि प्रणाली के चलन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारें किसानों को परंपरागत किसानी के अलावा खेती से जुड़ी आय के अन्य विकल्पों को अपनाने के लिए प्रेरित कर रही हैं। मछली पालन भी इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) का ही एक हिस्सा है।

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना

इस प्रोत्साहन की कड़ी में प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (Pradhan Mantri Matsya Sampada Yojana)(PMMSY) भी, किसान की आय में वृद्धि करने वाली योजनाओं में से एक योजना है। इस योजना का लाभ लेकर किसान मछली पालन की शुरुआत कर अपनी कृषि आय में इजाफा कर सकते हैं। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना क्या है, किस तरह किसान इस योजना का लाभ हासिल कर सकता है, इस बारे में जानिये मेरी खेती के साथ। केंद्र और राज्य सरकार की प्राथमिकता देश के किसानों की आय में वृद्धि करने की है। 

खेती, मछली एवं पशु पालन के अलावा जैविक खाद आदि के लिए सरकार की ओर से कृषक मित्रों को उपकरण, सलाह, बैंक ऋण आदि की मदद प्रदान की जाती है। किसानों की आय को बढ़ाने में मछली पालन (Fish Farming) भी अहम रोल निभा सकता है। ऐसे में आय के इस विकल्प को भी किसान अपनाएं, इसलिए सरकारों ने मछली पालन मेें किसान की मदद के लिए तमाम योजनाएं बनाई हैं।

प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के शुभारम्भ अवसर पर प्रधानमंत्री का सम्बोधन

कम लागत में तगड़ा मुनाफा पक्का

मछली पालन व्यवसाय में स्थितियां अनुकूल रहने पर कम लागत में तगड़ा मुनाफा पक्का रहता है। किसान अपने खेतों में मिनी तालाब बनाकर मछली पालन के जरिए कमाई का अतिरिक्त जरिया बना सकते हैं। मछली पालन के इच्छुक किसानों की मदद के लिए पीएम मत्स्य संपदा योजना बनाई गई है। इस योजना का लाभ लेकर किसान मछली पालन के जरिए अपनी निश्चित आय सुनिश्चित कर सकते हैं।

PMMSY के लाभ ही लाभ

पीएमएमएसवाय (PMMSY) यानी प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना में किसानों के लिए फायदे ही फायदे हैं। सबसे बड़ा फायदा ये है कि, इसमें पात्र किसानों को योजना में सब्सिडी प्रदान की जाती है। सब्सिडी मिलने से योजना से जुड़ने वाले पर धन की उपलब्धता का बोझ कम हो जाता है। खास तौर पर अनुसूचित जाति से जुड़े हितग्राही को अधिक सब्सिडी प्रदान की जाती है। इस वर्ग के महिला और पुरुष किसान हितग्राही को PMMSY के तहत 60 फीसदी तक की सब्सिडी प्रदान की जाती है। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से जुड़ने वाले अन्य वर्ग के किसानों के लिए 40 फीसदी सब्सिडी का प्रबंध किया गया है।

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना लोन, वो भी प्रशिक्षण के साथ

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत मछली पालन की शुरुआत करने वाले किसानों को सब्सिडी के लाभ के साथ ही मत्स्य पालन के बारे में प्रशिक्षित भी किया जाता है। अनुभवी प्रशिक्षक योजना के हितग्राहियों को पालन योग्य मुफाकारी मछली की प्रजाति, मत्स्य पालन के तरीकों, बाजार की उपलब्धता आदि के बारे में प्रशिक्षित करते हैं।

कैसे जुड़ें PMMSY योजना से

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत लाभ लेने के इच्छुक किसान मित्र पीएम किसान योजना की अधिकृत वेबसाइटपर आवेदन कर सकते हैं। और अधिक जानकारी के लिए, भारत सरकार की आधिकारिक वेबसाइट को देखें : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के मात्स्यिकी विभाग  मत्स्य पालन विभाग (Department of Fisheries) - PMMSY पीएम मत्स्य संपदा योजना के साथ किसान नाबार्ड से भी मदद जुटा सकता है। मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए लागू पीएम मत्स्य संपदा योजना के अलावा, किसान हितग्राही को मछली पालन का व्यवसाय शुरू करने के लिए सस्ती दरों पर बैंक से लोन दिलाने में भी मदद की जाती है।

आधुनिक तकनीक से बढ़ा मुनाफा

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से जुड़े झारखंड के कई किसानों की आय में उल्लेखनीय रूप से सुधार हुआ है। राज्य के कई किसान इस योजना के तहत बॉयोफ्लॉक (Biofloc) और आरएएस (Recirculating aquaculture systems (RAS)) जैसी आधुनिक तकनीक अपनाकर मछली पालन से भरपूर मुनाफा कमा रहे हैं। राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड (NATIONAL FISHERIES DEVELOPMENT BOARD), भारत सरकार द्वारा जारी लेख "जलकृषि का आधुनिक प्रचलन : बायोफ्लॉक मत्स्य कृषि" की पीडीएफ फाइल डाउनलोड करने के लिये, यहां क्लिक करें - बायोफ्लॉक मत्स्य कृषि 

पीएम मत्स्य संपदा योजना में किसानों को रंगीन मछली पालन के लिए भी अनुदान की मदद प्रदान की जाती है। साथ ही नाबार्ड भी टैंक या तालाब निर्माण के लिए 60 फीसदी अनुदान प्रदान करता है।

ऐसे सुनिश्चित करें मुनाफा

खेत में मछली पालन का जो कारगर तरीका इस समय प्रचलित है वह है तालाब या टैंक में मछली पालन। इन तरीकों की मदद से किसान मुख्य फसल के साथ ही मत्स्य पालन से भी कृषि आय में इजाफा कर सकते हैं। मत्स्य पालन विशेषज्ञों के मान से 20 लाख की लागत से तैयार तालाब या टैंक से किसान बेहतरीन कमाई कर सकते हैं।

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विशेषज्ञों के अनुसार मछली पालन में अधिक कमाई के लिए किसानों को फीड आधारित मछली पालन की विधि को अपनाना चाहिए। इस तरीके से मछलियों की अच्छी बढ़त के साथ ही वजन भी बढ़िया होता है। यदि मछली की ग्रोथ और वजन बढ़िया हो तो किसान की तगड़ी कमाई भी निश्चित है। प्रचलित मान से किसान को एक लाख रुपए के मछली के बीज पर पांच से छह गुना ज्यादा लाभ मिल सकता है। किसान बाजार में अच्छी मांग वाली मछलियों का पालन कर भी अपनी नियमित कमाई में यथेष्ठ वृद्धि कर सकते हैं। किसानों को पंगास या मोनोसेक्स तिलापिया प्रजाति की मछलियों का पालन करने की सलाह मत्स्य पालन के विशेषज्ञों ने दी है।

बांस की खेती लगे एक बार : मुनाफा कमायें बारम्बार

बांस की खेती लगे एक बार : मुनाफा कमायें बारम्बार

भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में बांस (बाँस, Baans, Bamboo) की खेती बड़े पैमाने पर की जाने लगी है. यह एक ऐसी खेती है, जिसे एक बार लगाने के बाद किसान सालों साल लाभ कमा सकते हैं. किसानों की आय को बढ़ाने के लिए सरकार ने भी बांस की खेती (Bans ki kheti) को प्रोत्साहित करने की कई योजनाएं बनाई है. भारत सरकार ने देश में बांस की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए २००६ में राष्ट्रीय बांस मिशन (National Bamboo Mission) शुरू किया था.

मेड़ पर बांस के पौधे लगाएं

किसान के पास खेती के लिए जगह की कमी हो तब भी बांस लगा सकते हैं. उन्हें मुख्य फसल के मेड़ पर भी लगाया जा सकता है. खेत के किनारे किनारे बांस का फसल लगाने से कई लाभ भी है. एक तो इससे मुख्य फसल को कोई नुकसान नहीं होता, वहीं खेत की आवारा पशुओं से सुरक्षा भी होती है. इसके साथ ही किसानों को अधिक मुनाफा भी प्राप्त होता है.

बांस की उपयोगिता

बांस की लकड़ियों के प्रोडक्ट बनाने वाले समूह और कंपनियां, बांस खरीदने के लिए किसानों को अच्छी खासी रकम देती है, क्यूंकि बांस की उपयोगिता कई क्षेत्रों में है. बांस से बल्ली, टोकरी, चटाई, फर्नीचर, खिलौना और सजावट के सामान तैयार किए जाते हैं. कागज बनाने में भी बड़ी मात्रा में बांस का उपयोग होता है. सहफसली तकनीक (Multiple cropping) से भी बांस की खेती कर सकते हैं. बाँस के पौधे बहुत तेजी से बढ़ते हैं, ३ से ४ साल के अंदर बांस पूरी तरह तैयार हो जाता है. तैयार बांस की कटाई कर इसे बाजार में बेचा जा सकता है. यहां बता दें कि सहफसली खेती के लिए बांस सबसे उपयुक्त माना जाता है, क्योंकि बांस के हर पौधों के बीच जगह होती है. इन पेड़ों के बीच में अदरक, हल्दी, अलसी, लहसुन जैसे फसलों को लगाकर मुनाफा कमाया जा सकता है.


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बांस की खेती किसानों को दे अच्छा मुनाफा

बांस को पंक्तियों में दूरी के अनुपात अनुसार, प्रति एकड़ बांस के १५० से २५० पौधे लगाए जा सकते हैं. चूँकि बाँस के पौधे तेजी से बढ़ते हैं, यहां तक की बाँस की कुछ प्रजातियाँ तो दिन में ३ फ़ीट से भी अधिक बढ़ती हैं, ३-४ साल बाद बांस की कटाई करने पर चार लाख तक का मुनाफा आसानी से कमाया जा सकता है. बाँस का पेड़ आमतौर पर ७-१० साल तक और कुछ प्रजातियां १५ साल तक जिंदा रहती हैं. चूँकि, कटाई के बाद भी बांस के जड़ फैलाव से नयी परोह उत्पन्न हो जाती है, वह भी बिना किसी रोपण के, तो ऐसे में एक बार बांस की फसल लगाकर किसान सालों साल तक इससे अच्छी कमाई कर सकते हैं.

बांस की खेती के लिए सरकारी अनुदान और सहायता

राष्ट्रीय बांस मिशन (National Bamboo Mission) के तहत अगर बांस की खेती (bans ki kheti) में ज्यादा खर्चा हो रहा है, तो केंद्र और राज्य सरकार किसानों को आर्थिक राहत प्रदान करेंगी। बांस की खेती के लिए सरकार द्वारा दी जाने वाली सहायता राशि की बात करें तो इसमें ५० प्रतिशत खर्च किसानों द्वारा और ५० प्रतिशत लागत सरकार द्वारा वहन की जाएगी।

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बांस की खेती में ध्यान रखने योग्य बातें किसानों के लिए बांस की खेती मुनाफे का सौदा साबित हो सकती है। लेकिन बांस की खेती में धैर्य रखना बहुत जरूरी होता है। क्योंकि बांस की खेती रबी, खरीफ या जायद सीजन की खेती नहीं होती। इसको फलने-फूलने के लिए लगभग ३-४ साल का समय लग जाता है। हालांकि पहली फसल के कटते ही किसान को अच्छी आमदनी मिल जाती हैं। किसान चाहें तो बांस की खेती के साथ कोई दूसरी फसल भी लगा सकते हैं। बांस की खेती के साथ दूसरी फसलों की एकीकृत खेती करने से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी बनी रहेगी, साथ ही, दूसरी फसलों से किसानों को समय पर अतिरिक्त आय भी मिल जाएगी।

बांस की उन्नत किस्मे

बांस की खेती करने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि बांस की उन्नत किस्मों का चुनाव किया जाए. भारत में बांस की कुल 136 किस्में पाई जाती है। जिसमें सबसे ज्यादा लोकप्रिय प्रजातियां बम्बूसा ऑरनदिनेसी, बम्बूसा पॉलीमोरफा, किमोनोबेम्बूसा फलकेटा, डेंड्रोकैलेमस स्ट्रीक्स, डेंड्रोकैलेमस हैमिलटन, मेलोकाना बेक्किफेरा, ऑकलेन्ड्रा ट्रावनकोरिका, ऑक्सीटिनेनथेरा एबीसिनिका, फाइलोंस्तेकिस बेम्बूसांइडिस, थाइरसोस्टेकिस ऑलीवेरी आदि है। इनकी खेती भारत के अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा एवं पश्चिम बंगाल के अलावा उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, जम्मू कश्मीर, अंडमान निकोबार द्वीप समूह आदि राज्यों में की जा रही है।  

कोल्ड स्टोरेज योजना में सरकारी सहायता पच्चास प्रतिशत तक

कोल्ड स्टोरेज योजना में सरकारी सहायता पच्चास प्रतिशत तक

हर साल भण्डारण की सुविधा नहीं होने के कारण किसानों के लाखों करोड़ों का कृषि उत्पाद नष्ट हो जाता है. किसानों को ही इसका खामियाजा उठाना पड़ता है और काफी आर्थिक क्षति होती है. विगत वर्ष देश के कई क्षेत्रों में किसानों को फल सब्जियां औने पौने दाम में बेचना पड़ा और कई जगहों पर प्याज, टमाटर सहित अन्य फल और सब्जियों को नाले और कूड़े पर फेंकते देखा गया था. इस बर्बादी को बचाने और किसानों के कृषि उत्पाद के सही ढंग से भण्डारण के लिए केंद्र सरकार एक योजना लाई है, जिससे किसानों की आमदनी बढ़ाई जा सके. इस योजना का नाम है एकीकृत बागवानी विकास मिशन (Mission for Integrated Development of Horticulture (MIDH)).

एकीकृत बागवानी विकास मिशन के तहत कोल्ड स्टोरेज अनुदान

एकीकृत बागवानी विकास मिशन के तहत कोल्ड स्टोरेज (Cold Storage) खोलने के लिए सरकार किसानों को 50 फीसदी अनुदान देती है. कृषि व किसान कल्याण विभाग, बागवानी के एकीकृत विकास मिशन (एमआईडीएच) के माध्यम से कोल्ड स्टोरेज की स्थापना सहित विभिन्न बागवानी के कार्यों के लिए सरकार की ओर से वित्तीय सहायता दी जाती है.

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कोल्ड स्टोरेज के लिए सब्सिडी

किसानों में यह भ्रम होता है की कोल्ड स्टोरेज के लिए सरकार लोन देती है. लेकिन यहाँ स्पष्ट करना जरूरी है की सरकार कोल्ड स्टोरेज के लिए कोइ लोन नहीं देती है. इसके लिए क्रेडिट लिंक्ड बैक एंडेड सब्सिडी (Credit Linked Back Ended Subsidy) दी जाती है. इस सब्सिडी में भी क्षेत्रवार अंतर होता है. मैदानी और पहाड़ी क्षेत्रों के लिए सब्सिडी में भिन्नता होती है. मैदानी क्षेत्रों में परियोजना लागत के 35 फीसदी की दर से सब्सिडी दी जाती है, जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में परियोजना लागत के 50 फीसदी की दर से सब्सिडी दी जाती है. पूर्वोत्तर इलाकों में एक हजार मीट्रिक टन से ज्यादा क्षमता वाली परियोजना को भी सब्सिडी का लाभ दिया जाता है.

कोल्ड स्टोरेज के लिए कितना मिलता है अनुदान ?

  • 15 लाख रुपए तक के कोल्ड रूम (स्टेंटिक) यूनिट के लागत पर 5.25 लाख रुपए
  • कोल्ड स्टोरेज टाइप 1 यूनिट लागत 4 करोड़ रुपए पर 1.40 करोड़ रुपए
  • कोल्ड स्टोरेज टाइप-1 (अनुसूचित क्षेत्र) लागत 4 करोड़ रुपए पर 2 करोड़ रुपए
  • कोल्ड स्टोरेज टाइप-2 (वैकल्पिक प्रौद्योगिकी सामान्य क्षेत्र) लागत 35 लाख रुपए पर 12.25 लाख रुपए


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कोल्ड स्टोरेज के लिए पात्रता

  • किसान व्यक्ति,उपभोक्ताओं/उत्पादकों का समूह, किसान उत्पादक संगठन
  • स्वामित्व/ भगीदारी फर्म, गैर सरकारी संगठन, स्वयं सहायता समूह, कम्पनियाँ, निगम.
  • कृषि उत्पादन विपणन समितियां, विपणन बोर्ड/ समितियां, नगर निगम, समितियां, कृषि उद्योग निगम, सहकारी समितियां, सहकारी विपणन संघ एवं अन्य सम्बंधित अनुसंधान एवं विकास संगठन.

कोल्ड स्टोरेज के लिए कहाँ करें आवेदन ?

कोल्ड स्टोरेज की स्थापना के लिए आवेदन हेतु एकीकृत बागवानी विकास मिशन के जिला कार्यालय में पदस्थापित उप संचालक, सहायक संचालक उद्यान से बृहत् जानकारी ली जा सकती है. आवेदन प्रस्ताव जिला कार्यालय में जमा करना होगा. प्राप्त प्रस्ताव आवेदन को 'पहले आओ पहले पाओ ' के आधार पर स्वीकार किया जाता है. योजना में आवेदन के लिए राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड की आधिकारिक वेबसाइट http://nhb.gov.in/OnlineApplication/RegistrationForm.aspx पर जाकर आवेदन किया जा सकता है.

कोल्ड स्टोरेज के लिए आवश्यक दस्तावेज

  • स्व-सत्यापित पैन कार्ड/ वोटर कार्ड
  • स्व-सत्यापित आधार कार्ड
  • कम्पनी/ सोसाईटी/ ट्रस्ट/ पार्टनरशिप फर्म का पंजीकरण प्रमाण पत्र
  • एससी के लिए जाति प्रमाण पत्र और एसटी के लिए स्वप्रमाणित प्रमाण पत्र
  • व्यक्तिगत किसान के लिए परियोजना भूमि आवेदक किसान के नाम से होना आवश्यक होगा.
  • आवेदक परियोजना भूमि में संयुक्त मालिकों में से एक होगा, तो अनापत्ति प्रमाण पत्र
  • साझेदारी फर्म के लिए यदि भूमि की मल्कियत साझेदारों में से किसी एक की हो, तो भूमि मालिक साझेदार की ओर से शपथ पत्र देगा की परियोजना की जमीन वापस नहीं लेगा, बिक्री या हस्तानान्तरण नहीं करेगा.
  • भूमि पर कब्ज़ा प्रमाण पत्र
  • परियोजना की विस्तृत रिपोर्ट
केमिस्ट्री करने वाला किसान इंटीग्रेटेड फार्मिंग से खेत में पैदा कर रहा मोती, कमाई में कई गुना वृद्धि!

केमिस्ट्री करने वाला किसान इंटीग्रेटेड फार्मिंग से खेत में पैदा कर रहा मोती, कमाई में कई गुना वृद्धि!

एकीकृत कृषि प्रणाली (इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम)

जिस तरह मौजूदा दौर के क्रिकेट मेें ऑलराउंड प्रदर्शन अनिवार्य हो गया है, ठीक उसी तरह खेती-किसानी-बागवानी में भी मौजूद विकल्पों के नियंत्रित एवं समुचित उपयोग एवं दोहन का भी चलन इन दिनों देखा जा रहा है। 

क्रिकेट के हरफनमौला प्रदर्शन की तरह, खेती किसानी में भी अब इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) का चलन जरूरी हो गया है। 

क्या कारण है कि प्रत्येक किसान उतना नहीं कमा पाता, जितना आधुनिक तकनीक एवं जानकारियों के समन्वय से कृषि करने वाले किसान कमा रहे हैं। 

सफल किसानों में से किसी ने जैविक कृषि को आधार बनाया है, तो किसी ने पारंपरिक एवं आधुनिक किसानी के सम्मिश्रण के साथ अन्य किसान मित्रों के समक्ष सफलता के आदर्श स्थापित किए हैं। 

ऐसी ही युक्ति है इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) यानी 'एकीकृत कृषि प्रणाली'। यह कैसी प्रणाली है और कैसे काम करती है, जानिये। 

कुछ हट कर काम किसानी करने वालों की फेहरिस्त में शामिल हैं, बिहार के बेगूसराय में रहने वाले 48 वर्षीय प्रगतिशील किसान जय शंकर कुमार भी। 

पहले अपने खेत पर काम कर सामान्य कमाई करने वाले केमिस्ट्री में पोस्ट ग्रेजुएट जय शंकर की सालाना कमाई में अब इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) से किसानी करने के कारण आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि हुई है।

साधारण किसानी करते थे पहले

सफलता की नई इबारत लिखने वाले जय शंकर सफल होने के पहले तक पारंपरिक तरीके से पारंपरिक फसलों की पैदावार करते थे। 

इन फसलों के तहत वे मक्का, गेहूं, चावल और मोटे अनाज आदि की फसलें ही अपने खेत पर उगाते थे। इन फसलों से हासिल कम मुनाफे ने उन्हें परिवार के भरण-पोषण के लिए बेहतर मुनाफे के विकल्प की तलाश के लिए प्रेरित किया।

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ऐसे मिली सफलता की राह

खेती से मुनाफा बढ़ाने की चाहत में जय शंकर ने कई प्रशिक्षण एवं जागरूकता कार्यक्रमों में सहभागिता की। इस दौरान उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके), बेगूसराय के वैज्ञानिकों से अपनी आजीविका में सुधार करने के लिए सतत संपर्क साधे रखा।

पता चली नई युक्ति

कृषि सलाह आधारित कई सेमिनार अटैंड करने के बाद जय शंकर को इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) के बारे में पता चला।

इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम क्या है ?

इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) यानी एकीकृत कृषि प्रणाली खेती की एक ऐसी पद्वति है, जिसके तहत किसान अपने खेत से सम्बंधित उपलब्ध सभी संसाधनों का इस्तेमाल करके कृषि से अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करता है। 

कृषि की इस विधि से छोटे व मझोले किसानों को अपनी घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ कृषि से अत्यधिक लाभ प्राप्त होता है। 

वहीं दूसरी ओर फसल उत्पादन और अवशेषों की रीसाइकलिंग (recycling) के द्वारा टिकाऊ फसल उत्पादन में मदद मिलती है। इस विधि के तहत मुख्य फसलों के साथ दूसरे खेती आधारित छोटे उद्योग, पशुपालन, मछली पालन एवं बागवानी जैसे कार्यों को किया जाता है।

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पकड़ ली राह

जय शंकर को किसानी का यह फंडा इतना बढ़िया लगा कि, उन्होंने इसके बाद इस विधि से खेती करने की राह पकड़ ली। एकीकृत प्रणाली के तहत उन्होंने मुख्य फसल उगाने के साथ, बागवानी, पशु, पक्षी एवं मत्स्य पालन, वर्मीकम्पोस्ट बनाने पर एक साथ काम शुरू कर दिया। उन्हें केवीके ने भी तकनीकी रूप से बहुत सहायता प्रदान की।

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मोती का उत्पादन (Pearl Farming)

खेत पर लगभग 0.5 हेक्टेयर क्षेत्र में मछली पालने के लिये बनाए गए तालाब के ताजे पानी में, वे मोती की भी खेती कर रहे हैं।

वर्मीकम्पोस्ट के लिए मदद

जय शंकर की वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन में रुचि और समर्पण के कारण कृषि विभाग, बिहार सरकार ने उन्हें 25 लाख रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की है। वे अब हर साल 3000 मीट्रिक टन से ज्यादा वर्मीकम्पोस्ट उत्पादित कर रहे हैं।

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बागवानी में भी आजमाए हाथ

बागवानी विभाग ने भी जय शंकर की लगन को देखकर पॉली हाउस और बेमौसमी सब्जियों की खेती के अलावा बाजार में जल्द आपूर्ति हेतु पौधे लगाने के लिए जरूरी मदद प्रदान की। 

केवीके, बेगूसराय से भी उनको तकनीकी रूप से जरूरी मदद मिली। केवीके वैज्ञानिकों ने एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल में उन्हें सुधार और अपडेशन के लिए समय-समय पर जरूरी सुझाव देकर सुधार करवाए।

कमाई में हुई वृद्धि

एक समय तक जय शंकर की पारिवारिक आय तकरीबन 27000 रुपये प्रति माह या 3.24 लाख रु प्रति वर्ष थी। अब एकीकृत कृषि प्रणाली से खेती करने के कारण यह अब कई गुना बढ़ गयी है। 

मोती की खेती, मत्स्य पालन, वर्मीकम्पोस्ट, बागवानी और पक्षियों के पालन-विक्रय के समन्वय से अब उनकी यही आय प्रति माह 1 लाख रुपये या प्रति वर्ष 12 लाख से अधिक हो गई है।

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खेत में मोती की चमक बिखेरने वाले जय शंकर अब दूसरों की तरक्की की राह में भी उजाला कर रहे हैं। वे अब बेगूसराय जिले के केवीके से जुड़े ग्रामीण युवाओं की मेंटर ट्रेनर के रूप में मदद करते हैं। 

साधारण नजर आने वाला उनका खेत अब 'रोल मॉडल' के रूप में कृषि मित्रों की राह प्रशस्त कर रहा है। उनका मानना है, दूसरे किसान भी उनकी तरह अपनी कृषि कमाई में इजाफा कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए उनको, उनकी तरह समर्पण, लगन, सब्र एवं मेहनत भी करनी होगी।

Natural Farming: प्राकृतिक खेती में छिपे जल-जंगल-जमीन संग इंसान की सेहत से जुड़े इतने सारे राज

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जीरो बजट खेती की दीवानी क्यों हुई दुनिया? नुकसान के बाद दुनिया लाभ देख हैरान ! नीति आयोग ने किया गुणगान

भूमण्डलीय ऊष्मीकरण या आम भाषा में ग्लोबल वॉर्मिंग (Global Warming) से हासिल नतीजों के कारण पर्यावरण संरक्षण (Environmental protection), संतुलन व संवर्धन के प्रति संवेदनशील हुई दुनिया में नेट ज़ीरो एमिशन (net zero emission) यानी शुद्ध शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के लिए देश नैचुरल फार्मिंग (Natural Farming) यानी प्राकृतिक खेती का रुख कर रहे हैं। प्राकृतिक खेती क्या है? इसमें क्या करना पड़ता है? क्या प्राकृतिक खेती बहुत महंगी है? जानिये इन सवालों के जवाब।

खेत और किसान की जरूरत

इसके लिए यह समझना होगा कि, किसी खेत या किसान के लिए सबसे अधिक जरूरी चीज क्या है? उत्तर है खुराक और स्वास्थ्य देखभाल।मतलब, यदि किसी खेत के लिए जरूरी खुराक यानी उसके पोषक तत्व और पादप संरक्षण सामग्री का प्रबंध प्राकृतिक तरीके से किया जाए, तो उसे ही प्राकृतिक खेती (Natural Farming) कहते हैं।

प्राकृतिक खेती क्या है?

प्राकृतिक खेती, प्रकृति के द्वारा स्वयं के विस्तार के लिए किए जाने वाले प्रबंधों का मानवीय अध्ययन है। इसमें कृषि विज्ञान ने किसानी में उन तरीकों कोे अपनाना श्रेष्यकर समझा है, जिसे प्रकृति खुद अपने संवर्धन के लिए करती है। प्राकृतिक खेती में किसी रासायनिक पदार्धों के अमानक प्रयोग के बजाए, प्रकृति आधारित संवर्धन के तरीके अपनाए जाते हैं। इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) या एकीकृत कृषि प्रणाली, प्राकृतिक खेती का वह तरीका है, जिसकी मदद से प्रकृति के साथ, प्राकृतिक तरीके से खेती किसानी कर किसान कृषि आय में उल्लेखनीय वृद्धि कर सकता है।


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प्राकृतिक संसाधनों के प्रति देशों की सभ्यता का प्रमाण तय करने वाले नेट ज़ीरो एमिशन (net zero emission) यानी शुद्ध शून्य उत्सर्जन अलार्म, के कारण देशों और उनसे जुड़े किसानों को कृषि के तरीकों में बदलाव करना होगा। COP26 summit, Glasgow, में भारत ने 2070 तक, अपने नेट ज़ीरो एमिशन को शून्य करने का वादा किया है। इसी प्रयास के तहत भारत में केंद्र एवं राज्य सरकार, इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) को अपनाने के लिए किसानों को प्रेरित कर रही हैं। प्राकृतिक खेती में सिंचाई, सलाह, संसाधन के प्रबंध के लिए किसानों को प्रोत्साहन योजनाओं के जरिए लाभान्वित किया जा रहा है।


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प्राकृतिक खेती के लाभ

प्राकृतिक खेती के लाभों की यदि बात करें, तो इसमें घरेलू संसाधनों से आवश्यक पोषक तत्व और पादप संरक्षण सामग्री तैयार की जा सकती है। किसान इस प्रकृति के साथ वाली किसानी की विधि से कृषि उत्पादन लागत में भारी कटौती कर कृषि उपज से होने वाली साधारण आय को अच्छी-खासी रिटर्न में तब्दील कर सकते हैं। प्राकृतिक खेती से खेत में उर्वरक और अन्य रसायनों की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।

प्राकृतिक खेती की जरूरत

एफएओ 2017, खाद्य और कृषि का भविष्य – रुझान और चुनौतियां शीर्षक आधारित रिपोर्ट के अनुसार नीति आयोग (NITI Aayog) ने मानवीय जीवन क्रम से जुड़े कुछ अनुमान, पूर्वानुमान प्रस्तुत किए हैं। नीति आयोग द्वारा प्रस्तुत जानकारी के अनुसार, विश्व की आबादी वर्ष 2050 तक लगभग 10 अरब तक हो जाने का पूर्वानुमान है। मामूली आर्थिक विकास की स्थिति में, इससे कृषि मांग में वर्ष 2013 की मांग की तुलना में 50% तक की वृद्धि होगी। नीति आयोग ने खाद्य उत्पादन विस्तार और आर्थिक विकास से प्राकृतिक पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव पर चिंता जताई है। बीते कुछ सालों में वन आच्छादन और जैव विविधता में आई उल्लेखनीय कमी पर भी आयोग चिंतित है। रिपोर्ट के अनुसार, उच्च इनपुट, संसाधन प्रधान खेती रीति के कारण बड़े पैमाने पर वनों की कटाई, पानी की कमी, मृदा क्षरण और ग्रीनहाउस गैस का उच्च स्तरीय उत्सर्जन होने से पर्यावरण संतुलन प्रभावित हुआ है। वर्तमान में बेमौसम पड़ रही तेज गर्मी, सूखा, बाढ़, आंधी-तूफान जैसी व्याथियों के समाधान के लिए कृषि-पारिस्थितिकी, कृषि-वानिकी, जलवायु-स्मार्ट कृषि और संरक्षण कृषि जैसे ‘समग्र’ दृष्टिकोणों पर देश, सरकार एवं किसानों को मिलकर काम करना होगा। खेती किसानी की दिशा में अब एक समन्वित परिवर्तनकारी प्रक्रिया को अपनाने की जरूरत है।

भविष्य की पीढ़ियों का ख्याल

हमें स्वयं के साथ अपनी आने वाली पीढ़ियों का भी यदि ख्याल रखना है, धरती पर यदि भविष्य की पीढ़ी के लिए जीवन की गुंजाइश शेष छोड़ना है तो इसके लिए प्राकृतिक खेती ही सर्वश्रेष्ठ विचार होगा।


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यह वह विधि है, जिसमें कृषि-पारिस्थितिकी के उपयोग के परिणामस्वरूप भावी पीढ़ियों की जरूरतों से समझौता किए बगैर, बेहतर पैदावार हासिल होती है। एफएओ और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने भी प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए तमाम सहयोगी योजनाएं जारी की हैं।

प्राकृतिक खेती (Natural Farming) के लाभों को 9 भागों में रखा जा सकता है :

1. उपज में सुधार 2. रासायनिक आदान अनुप्रयोग उन्मूलन 3. उत्पादन की कम लागत से आय में वृद्धि 4. बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चितिकरण 5. पानी की कम खपत 6. पर्यावरण संरक्षण 7. मृदा स्वास्थ्य संरक्षण एवं बहाली 8. पशुधन स्थिरता 9.रोजगार सृजन

नो केमिकल फार्मिंग

प्राकृतिक खेती को रासायनमुक्त खेती ( No Chemical Farming) भी कहा जाता है। इसमें केवल प्राकृतिक आदानों का उपयोग किया जाता है। कृषि-पारिस्थितिकी तंत्र पर आधारित, यह एक विविध कृषि प्रणाली है। इसमें फसलों, पेड़ों और पशुधन एकीकृत रूप से कृषि कार्य में प्रयुक्त होते हैं। इस समन्वित एकीकरण से कार्यात्मक जैव विविधता के सर्वोत्तम उपयोग में किसान को मदद मिलती है।


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प्रकृति आधारित विधि

अपने उद्भव से मौजूद प्रकृति संवर्धन की वह विधि है जिसे मानव ने बाद में पहचान कर अपनी सुविधा के हिसाब से प्राकृतिक खेती का नाम दिया। कृषि की इस प्राचीन पद्धति में भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखा जाता है। प्राकृतिक खेती में रासायनिक कीटनाशक का उपयोग वर्जित है। जो तत्व प्रकृति में पाए जाते है, उन्हीं को खेती में कीटनाशक के रूप में अपनाया जाता है। एक तरह से चींटी, चीटे, केंचुए जैसे जीव इस खेती की सफलता का मुख्य आधार होते हैं। जिस तरह प्रकृति बगैर मशीन, फावड़े के अपना संवर्धन करती है ठीक उसी युक्ति का प्रयोग प्राकृतिक खेती में किया जाता है।

ये चार सिद्धांत प्राकृतिक खेती के आधार

प्राकृतिक कृषि के सीधे-साधे चार सिद्धांत हैं, जो किसी को भी आसानी से समझ में आ सकते हैं। ये चार सिद्धांत हैं:
  • हल का उपयोग नहीं, खेत पर जुताई-निंदाई नहीं, बिलकुल प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र की तरह की जाने वाली इस खेती में जुताई, निराई की जरूरत नहीं होती।
  • किसी तरह का कोई रासायनिक उर्वरक या फिर पहले से तैयार की हुई खाद का उपयोग नहीं
  • हल या शाक को नुकसान पहुंचाने वाले किसी औजार द्वारा कोई निंदाई, गुड़ाई नहीं
  • रसायनों पर तो किसी तरह की कोई निर्भरता बिलकुल नहीं।

जीरो बजट खेती (Zero Budget Farming)

अब जिस खेती में निराई गुड़ाई की जरूरत न हो, तो उसे जीरो बजट की खेती ही कहा जा सकता है। प्राकृतिक खेती को ही जीरो बजट खेती भी कहा जाता है। प्राकृतिक खेती में प्रकृति प्रदत्त संसाधनों को लाभकारी बनाने के तरीके निहित हैं। किसी बाहरी कृत्रिम तरीके से निर्मित रासायनिक उत्पाद का उपयोग प्राकृतिक खेती में वर्जित है। जीरो बजट वाली प्राकृतिक खेती में गाय के गोबर एवं गौमूत्र का उपयोग कर भूमि की उर्वरता बढ़ाई जाती है। शून्य उत्पादन लागत की प्राकृतिक खेती पद्धति के लिए अलग से कोई इनपुट खरीदना जरूरी नहीं है। जापानियों द्वारा प्रकाश में लाई गई इस विधि की खेती में पारंपरिक तरीकों के विपरीत केवल 10 प्रतिशत पानी की दरकार होती है।
एकीकृत जैविक खेती से उर्वर होगी धरा : खुशहाल किसान, स्वस्थ होगा इंसान

एकीकृत जैविक खेती से उर्वर होगी धरा : खुशहाल किसान, स्वस्थ होगा इंसान

जैविक खेती मतलब निर्णय फायदे भरा, ऑर्गेनिक खेती का बढ़ रहा चलन दिन प्रतिदिन डिजिटल होती लाइफ के बीच कृषि में तकनीक एवं रसायन आधारित उपयोग के नुकसान के बाद, किसानों को जैविक खेती (Jaivik Kheti/Organic Farming) के फायदों के बारे में जागरूक कर, इसके उपयोग के लिए प्रेरित किया जा रहा है। यूरिया जैसे रासायनिक विकल्पों के बजाए केंचुआ (Earthworm) एवं सूक्ष्म जीव (microbe) आधारित जैविक खादों के उपयोग के लिए किसान भी प्रेरित हुए हैं। ऑर्गेनिक फार्मिंग या जैविक खेती (Organic Farming/Jaivik Kheti) क्या है, इसे कैसे करते हैं, कौन सा तरीका जैविक खेती के लिए कारगर है। इससे जुड़े लाभ के बारे में जानते हैं मेरी खेती के साथ

जैविक खेती क्या है

जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है जैव आधारित कृषि पद्धति को ही ऑर्गेनिक फार्मिंग (Organic Farming) या फिर जैविक खेती (Jaivik Kheti) के नाम से जाना जाता है।

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सूक्ष्म जीवों पर आधारित इस कृषि व्यवस्था में जैविक माध्यम से की जाने वाली प्राकृतिक व्यवस्था की युक्ति अपनाई जाती है। जिस तरह प्रकृति छोटे-छोटे जीव जंतुओं की मदद से बीजारोपण, पौध संरक्षण, भूमि उर्वरता का काम लेती है उसी महत्व को पहचान कर ऑर्गेनिक खेती (Organic Farming) या फिर जैविक खेती (Jaivik Kheti) का खाका बुना गया है। सोचिये आधुनिक कृषि तरीकों में जिस मट्ठर भूमि को उर्वर बनाने के लिए कई हॉर्स पॉवर वाले ट्रैक्टरों की दरकार होती है, उस भूमि को लिजलिजा केंचुआ (Earthworm) समूह कैसे रेंगकर बगैर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए शांत तरीके से अंकुरण के लायक बना देता है।

जैविक खेती में इनका प्रयोग वर्जित

कृषि की जैविक खेती आधारित विधि में संश्लेषित उर्वरक (synthetic fertilizers) एवं संश्लेषित कीटनाशक (synthetic insecticide) का प्रयोग वर्जित है। जरूरत होने पर इनका नाममात्र मात्रा में प्रयोग किया जाता है। भूमि की उर्वरा शक्ति के संतुलन के लिए जैविक खेती में फसल चक्र, हरी खाद, कम्पोस्ट जैसी युक्तियों को अपनाया जाता है।

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वैश्विक स्तर पर जैविक उत्पादों का बाजार इन दिनों काफी तेजी से अपनी पहचान बना रहा है। अजैविक खेती के भूमि और जनस्वास्थ्य पर पड़ रहे प्रतिकूल असर के कारण कृषक अब स्वयं भी “जैविक खेती” (Organic farming) के तरीके को अपना रहे हैं। जैविक खेती के राष्ट्रीय केंद्र, राष्ट्रीय जैविक एवं प्राकृतिक खेती केंद्र (National Centre for Organic and Natural Farming - NCONF) की देखरेख में भारतीय “जैविक खेती” का विकास हो रहा है। इस विधि के विकास में एकीकृत जैविक खेती खासी मददगार है।

एकीकृत जैविक खेती (Integrated organic farming)

अंतर्राष्ट्रीय जैविक नियंत्रण संगठन (The International Organization for Biological and Integrated Control) या आईओबीसी (IOBC), यूएनआई 11233-2009 (UNI 11233: 2009) यूरोपीय मानक ने एकीकृत खेती को एक कृषि प्रणाली माना है। किसानी की यह वह प्रणाली है जिसमें उच्च गुणवत्ता से पूर्ण जैविक भोजन, चारा, फाइबर आदि का उत्पादन होता है। इसके साथ ही मिट्टी, पानी, वायु आदि प्राकृतिक विकल्पों के उपयोग से इस प्रणाली में नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन भी संभव है।

एकीकृत जैविक खेती प्रणाली

आईओएफएस (IOFS) यानी इंटीग्रेटेड ऑर्गेनिक फार्मिंग सिस्टम (Integrated Organic Farming System/IOFS/आईओएफएस) को हिंदी में एकीकृत जैविक खेती प्रणाली के तौर पर पहचाना जाता है। कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने एकीकृत जैविक खेती प्रणाली (आईओएफएस/IOFS) भारतीय कृषि परिप्रेक्ष्य में विकसित की है ।

एकीकृत जैविक खेती आज की अनिवार्यता

कृषि के समग्र दृष्टिकोण वाली एकीकृत जैविक खेती (Integrated organic farming) से भूमि की उत्पादकता में स्थायी रूप से वृद्धि होती है। धरती के प्रत्येक जीव के मंगल की कामना करने वाले भारत देश के लिए एकीकृत जैविक खेती (Integrated organic farming) का विकल्प नया नहीं है, हालांकि इंडिया में तब्दील होते फार्मर्स ने कम समय में ज्यादा लाभ कमाने के चक्कर में कुछ समय के लिए इस बेशकीमती पुस्तैनी रीति की किसानी को बिसरा जरूर दिया।

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प्रकति प्रदत्त गौधन से अलंकृत भारत में गाय के गोबर एवं गौमूत्र एवं भैंस, बकरी, भेड़ के गोबर, लेंड़ी, लीद आधारित किसानी का यह पुराना तरीका सिंथेटिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अंधाधुंध चलन के कारण स्मृतियों में कैद होकर रह गया।

एकीकृत जैविक खेती क्या है

एकीकृत जैविक खेती का अर्थ खेत में उपलब्ध खेती किसानी के विकल्पों का पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना सर्वोत्तम उपयोग कर उपभोग की वस्तुएं निर्मित करने से है। इसमें पशुधन जैसे गाय-भैंस, भेड़-बकरी, फसल का आपसी समन्यवय एक दूसरे के लिए खाद, चारा, पानी का प्रबंध करने में मददगार होता हैं। एक तरह से यह प्रकृति प्रदत्त संसाधनों का प्रकृति के विस्तार में सहयोगी किसानी का तरीका है। मतलब पशुधन से जहां जैविक खाद आदि का प्रबंध होता है, वहीं खेत से मानव एवं पशुओं के लिए अनिवार्य पोषक खाद्य पदार्थों की प्राप्ति होती है।

पैदावार के साथ बढ़ी मुसीबतें

कृषि भूमि पर रसायनिक पदार्थों के धड़ल्ले से हुए उपयोग के कारण अनाज का उत्पादन ज्यादा जरूर हुआ लेकिन इसके बुरे परिणाम के रूप में मिट्टी और इंसान की सेहत भी प्रभावित हुई।

कृत्रिम खेती के नुकसान

मौसमी चक्र के विपरीत कम समय में फसल की पैदावार से लेकर उसके भंडारण में उपयोग किए जाने वाले रासायनिक पदार्थों के कारण जल, जंगल, जमीन के साथ मानव के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ने के वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध हैं। रासायनिक खादों के अमानक उपयोग से जहां भूमि की उर्वरता प्रभावित हो रही है, वहीं रासायनिक खाद की उपज से निर्मित खाद्य पदार्थों के सेवन से शारीरिक विन्यास क्रम पर भी बुरा असर देखा गया है।

जैविक खेती का विकल्प

सिंथेटिक खाद के निर्माण एवं उसके उपयोग के कारण पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य पर पड़ रहे कुप्रभावों के मद्देनजर, जैविक खेती को अपनाना सख्त अनिवार्य हो गया है।

बाजार में अच्छी है मांग

इंटरनेशनल मार्केट में जैविक उत्पाद की डिमांड एवं दाम भी इस प्रणाली की खेती के पक्षधर है। देश के किसान बड़ी संख्या में एकीकृत जैविक खेती का तरीका अपना रहे हैं। खास तौर पर देश के उत्तर पूर्वी राज्यों में इस विधि से किसानी की जा रही है।

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एकीकृत जैविक खेती के लाभ

एकीकृत जैविक खेती से मृदा का अच्छा स्वास्थ्य बरकरार रहता है एवं इसकी उर्वरता में वृद्धि होती जाती है। सब्जियों और फलों संबंधी बीमारियों को कम करने में भी इससे मदद मिलती है।

इस प्रणाली की खेती से उच्च गुणवत्ता के जैविक उत्पादों का निर्माण संभव है।

मिट्टी की उर्वरता और खेती के लिए अधिक उपजाऊ भूमि बढ़ाने के अवसर भी इंटीग्रेटेड ऑर्गेनिक फार्मिंग में निहित हैं। फसल पैदावार के दौरान कीट एवं रोग प्रबंधन में जैविक खेती के जैविक उपचार तरीकों के प्रयोग के कारण कीटनाशकों का चलन कम होगा। अंत में कहा जा सकता है कि, एकीकृत जैविक खेती से उर्वर होगी धरा, खुशहाल होगा किसान, स्वस्थ होगा इंसान।

भारत सरकार ने एकीकृत योजना का अनावरण किया, जानें इससे किसानों को क्या फायदा होगा

भारत सरकार ने एकीकृत योजना का अनावरण किया, जानें इससे किसानों को क्या फायदा होगा

भारत सरकार द्वारा एकीकृत योजना लॉन्च की गई है। किसानों के हित में आए दिन केंद्र एवं राज्य सरकारें अपने अपने स्तर से योजनाएं जारी करती रहती हैं। इस बार किसानों के लिए केंद्र सरकार ने UPAg लॉन्च की है। आज हम अपने इस लेख में जानेंगे कि क्या एकीकृत योजना से किसानों की आमदनी पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। सरकार द्वारा हर संभव प्रयास किया जा रहा है, कि किसी तरह से किसानों की आय दोगुनी की जाए। कृषि मंत्रालय द्वारा लॉन्च एकीकृत पोर्टल UPAg में कृषि से संबंधित जानकारियां मौजूद होंगी। यह एक डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर का एक महत्वपूर्ण अंग बनेगा। भारत सरकार ने देश के किसानों के लिए कृषि से जुड़ा एक यूनिफाइड पोर्टल लॉन्च किया है। यह एकीकृत पोर्टल (UPAg) कृषि के लिए डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर का एक महत्वपूर्ण घटक है। खेती से संबंधित आकड़ों को इकट्ठा कर यह पोर्टल एक सुचारु सुविधा प्रदान करेगा।

यूनिफाइड पोर्टल का काम क्या है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इस पोर्टल का प्रमुख उद्देश्य खेती से संबंधित मानकीकृत एवं सत्यापित आंकड़ों की कमी से जुड़ी चुनौतियों को दूर करना एवं उससे संबंधित सही-सटीक आंकड़ों को प्रस्तुत करना है। यह नीति निर्माताओं, शोधकर्ताओं एवं अंशधारकों के लिए खेती से संबंधित समस्याओं को कम करेगा। भारत सरकार ने UPAg (कृषि सांख्यिकी के लिए एकीकृत पोर्टल) का अनावरण किया है। कृषि मंत्रालय के मुताबिक, कृषि क्षेत्र में डेटा प्रबंधन को कारगर बनाने एवं खेती से जुड़ी कई तरह की सूचनाओं को सावधानीपूर्वक तैयार किया गया है। यह पोर्टल एक ज्यादा कुशल एवं उत्तरदायी कृषि नीति ढांचे की स्थापना की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम प्रदान करता है।

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एकीकृत स्त्रोत का होगा डेटा

भारत सरकार के पास कृषि से जुड़े किसी डेटा की एकीकृत जानकारी नहीं है। साथ ही, खेती से संबंधित विभिन्न स्रोत भी बिखरे हुए हैं। ऐसी स्थिति में इस यूनिफाइड पोर्टल का उद्देश्य डेटा को एक मानकीकृत प्रारूप में समेकित कर इसको ठीक करना है। ताकि उपयोगकर्ताओं के लिए इसे सुगमता से पहुंचाया जा सके। साथ ही, खेती से संबंधित विभिन्न कार्यो की सही और सटीक सुनिश्चित समझ विकसित की जा सके।
एकीकृत कृषि प्रणाली के तहत खेती करने से कितना लाभ मिलेगा ?

एकीकृत कृषि प्रणाली के तहत खेती करने से कितना लाभ मिलेगा ?

खेती-किसानी का तरीका आज के समय में काफी बदल गया है। आधुनिक दौर में कृषि करने के तरीके अब बदल चुके हैं। वर्तमान में किसान नए-नए तरीकों और तकनीकों का उपयोग कर कृषि से मोटा मुनाफा हाँसिल कर रहे हैं। इसी तरह का एक तरीका है, समेकित कृषि प्रणाली, जिसके माध्यम से किसान सीमित संसाधनों एवं कम लागत के साथ अधिक आय कर सकते हैं। भारत में किसानी इस समय नए दौर से गुजर रही है। इस जमाने में किसान भी कृषि के नए तौर तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। जहां एक तरफ कुछ किसान खेती छोड़ शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं, तो उधर कुछ किसान नवीन तकनीक अथवा तरीके को अपना कर मोटा मुनाफा हांसिल कर रहे हैं। ऐसा ही एक तरीका है समेकित कृषि प्रणाली जिसके माध्यम से एक किसान फसल उत्पादन के साथ-साथ बाकी सह कारोबार भी कर सकता है। इसका सबसे बड़ा लाभ यह है, कि किसान सीमित संसाधनों एवं कम लागत के साथ अधिक कमाई के नए साधन खड़े कर सकता है। यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि यह किसानों की आमदनी दोगुना करने का एक सशक्त जरिया है।

समेकित कृषि प्रणाली क्या होती है

समेकित कृषि प्रणाली खेती किसानी की एक ऐसी विधि है, जिसमें किसान फसल पैदावार के साथ-साथ बाकी सह व्यवसाय भी कर सकता है। समेकित कृषि प्रणाली तहत कृषि के कम से कम दो घटक और उससे ज्यादा घटकों का समायोजन इस तरह करते हैं, कि एक के समायोजन से दूसरे की लागत में काफी कमी आती है। इसके साथ-साथ उत्पादकता में काफी इजाफा होता है। स्वरोजगार का सृजन होता है और जीवन स्तर में भी काफी सुधार होता है।

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कृषि को पशुधन के साथ एकीकृत करें

एक उदाहरण के रूप में देखते हैं, कि किसान सीमित भूमि पर कृषि को पशुधन के साथ एकीकृत कर सकते हैं। जैसे कि मुर्गीपालन और मछली पालन को एक ही स्थान पर किया जा सकता है। इसके साथ ही आप उसी जमीन पर खेती भी कर सकते हैं, ताकि साल भर रोजगार पैदा हो सके और अतिरिक्त आय भी प्राप्त हो सके। उदाहरण के लिए मुर्गीपालन के दौरान निकलने वाले वेस्ट (मलमूत्र) का इस्तेमाल आप खाद के रूप में भी कर सकते हैं। मछली पालन में तालाब के बचे हुए पानी का इस्तेमाल कृषि एवं फसलों की पैदावार के लिए किया जा सकता है। इस प्रकार से आप मुर्गीपालन, मछली पालन के साथ-साथ खेती और खाद उत्पादन से भी आमदनी कर सकते हैं।


 

समेकित कृषि प्रणाली के क्या-क्या फायदे हैं

समेकित कृषि प्रणाली की वजह से प्रति इकाई क्षेत्रफल से अधिक उत्पादन इसके साथ ही उत्पादन लागत में कमी के साथ अधिक फायदा होता। सन्तुलित पोषण आहार की उपलब्धता होना है। फसल अवशेषों का पुनः चक्रणं होना। वर्ष भर लगातार आय सृजन, स्वरोजगार के अवसर में बढ़ोतरी, पर्यावरण सुरक्षा आदि जैसे लाभ हो सकते हैं।

इस राज्य में पपीते की खेती के लिए 75 % प्रतिशत अनुदान दिया जाऐगा

इस राज्य में पपीते की खेती के लिए 75 % प्रतिशत अनुदान दिया जाऐगा

बिहार सरकार की ओर से पपीते की खेती करने वाले कृषकों को अनुदान प्रदान किया जाएगा। इसका फायदा किसान भाई आधिकारिक साइट पर जाकर ले सकते हैं। भारत भर में बहुत सारे फलों की खेती की जाती है।बिहार में भी विभिन्न तरह के फलों की खेती की जाती है, जिसमें लीची काफी ज्यादा खास है। परंतु, फिलहाल सरकार ने पपीते की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए किसान भाइयों को अनुदान देना शुरू कर दिया है।इसकी खेती करने वाले किसानों को बम्पर अनुदान दिया जाऐगा। दरअसल, पपीता की खेती काफी ज्यादा फायदेमंद व्यवसाय है।पपीता एक स्वादिष्ट एवं पौष्टिक फल है, जिसका उपभोग वर्ष भर किया जाता है।बागवानी क्षेत्र में पपीता की खेती की काफी शानदार आय की संभावना को देखते हुए बिहार सरकार प्रदेश के किसानों को प्रोत्साहित कर रही है।इसके अंतर्गत सरकार किसानों को पपीते के बाग लगाने के लिए अच्छा खासा अनुदान देती है।

एकीकृति बागवानी मिशन योजना के तहत मिलेगा लाभ 

एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना के अंतर्गत किसानों को पपीता की खेती के लिए 75 फीसद अनुदान दिया जाता है। राज्य सरकार ने पपीता की खेती के लिए प्रतिहेक्टेयर 60,000 रुपये की इकाई लागत तय की है।कृषकों को इस पर 75% (45,000) रुपये का अनुदान मिलेगा। एक हेक्टेयर में पपीता की खेती के लिए केवल 15 हजार रुपये की लागत आऐगी। 

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किसान भाई यहाँ आवेदन करें 

किसान भाई राज्य में पपीते की खेती करने के इच्छुक हैं। साथ ही, सरकार की योजना का लाभ पाना चाहते हैं। ऐसे कृषक आधिकारिक साइट horticulture.bihar.gov.in पर जाकर आवेदन करना पड़ेगा। बतादें, कि अधिक जानकारी के लिए किसान भाई आधिकारिक साइट अथवा नजदीकी उद्यान विभाग के कार्यालय पर जाकर भी संपर्क साध सकते हैं।

पपीते की खेती को प्रोत्साहन दे रही बिहार सरकार

पपीते की खेती को प्रोत्साहन दे रही बिहार सरकार

किसान भाई पपीते की खेती कर तगड़ा मुनाफा हांसिल कर सकते हैं। बिहार में सरकार की तरफ से भारी अनुदान दिया जा रहा है। भारत के अंदर पपीते की खेती काफी बड़े स्तर पर की जाती है। 

पपीता एक ऐसा फल है, जो ना सिर्फ स्वादिष्ट होता है, बल्कि लोगों की सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद होता है। बिहार सरकार की तरफ से एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना के अंतर्गत पपीते की खेती करने के लिए कृषकों को अनुदान प्रदान कर रही है। 

अगर आप एक किसान हैं, बिहार में आपके पास जमीन है तो आप पपीते की खेती शुरू कर सकते हैं और शानदार कमाई कर सकते हैं।

बिहार सरकार ने पपीते की खेती करने के लिए इकाई लागत 60 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर निर्धारित की गई है। बतादें, कि इस पर सरकार की तरफ से किसानों को अनुदान भी दिया जाएगा। 

पपीते की खेती करने पर सरकार की तरफ से किसान भाइयों को 75 प्रतिशत मतलब की 45 हजार रुपये सब्सिडी के तौर पर मिलेंगे। इसका अर्थ यह है, कि किसानों को पपीते की खेती करने के लिए केवल 15 हजार रुपये ही खर्च करने पड़ेंगे।

किसानों को काफी अच्छा मुनाफा हांसिल होगा 

विशेषज्ञों की मानें तो पपीते की खेती करने वाले कृषकों के लिए लाभ ही लाभ है। एक एकड़ भूमि में लगभग 1 हजार के आसपास पौधे रोपे जा सकते हैं। इनसे 50 हजार से लेकर 75 हजार किलो के बीच पपीते का उत्पादन होगा। 

पपीता बाजार में काफी शानदार कीमतों पर बिकता है। इसकी मांग साल भर बनी रहती है, जिससे आपको तगड़ा मुनाफा हो सकता है। पपीते के पौधे की नियमित रूप से सिंचाई करने की आवश्यकता होती है। 

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साथ ही, रोग एवं कीटों से सुरक्षा करने के लिए आवश्यक प्रबंधन करना भी जरूरी है। पपीते के पौधे 8-12 महीने के अंदर फल देने लगते हैं। फल को पकने पर तोड़कर बाजार में बेचा जा सकता है।

किसान भाई यहां अप्लाई कर सकते हैं

अगर आप बिहार राज्य के किसान हैं और पपीते की खेती करने में अपनी रूचि रखते हैं तो ये योजना आपके लिए बेहद शानदार रहेगी। योजना का फायदा उठाने के लिए किसान भाई आधिकारिक साइट horticulture.bihar.gov.in पर जाकर आवेदन कर सकते हैं। 

साथ ही, किसान योजना से संबंधित ज्यादा जानकारी के लिए पास के उद्यान विभाग के कार्यालय पर संपर्क साध सकते हैं। यदि आप भी बेहतरीन मुनाफा अर्जित करना चाहते हैं, तो आज ही पपीते की खेती कर अपना व्यवसाय शुरू कर दें।