पीएम कुसुम योजना में पंजीकरण करने का दावा कर रहीं फर्जी वेबसाइट को लेकर नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने जारी की अपनी एडवाइजरी नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ( एमएनआरई ) ( Ministry of New and Renewable Energy (MNRE) ) ने अपना सुझाव देते हुए कहा है कि अपने व्हाट्सएप/एसएमएस पर ऐसी किसी भी लिंक पर क्लिक ना करें जो प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (पीएम-कुसुम) योजना के लिए पंजीकरण का दावा करते हैं अन्यथा इससे आपको भरी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
ये भी पढ़ें: मुख्यमंत्री लघु सिंचाई योजना में लाभांवित होंगे हजारों किसान
जिससे आपको अधिक रुपए खर्च करने की जरूरत नहीं होगी। लेकिन इस योजना के लागू होने के बाद से ही कई सारी फर्जी वेबसाइट पीएम कुसुम योजना में पंजीकरण करने दावा कर रहीं हैं जिसका नुकसान कई बार आम लोगों को उठाना पड़ता है।
इन फर्जी वेबसाइट के माध्यम से आम जनता को नुकसान ना हो इसके लिए मंत्रालय-एमएनआरआई परामर्श जारी किया गया है।
ये भी पढ़ें: प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना
ऐसी वेबसाइट लोगों को आर्थिक नुकसान पहुंचा रही हैं जो लोग इन वेबसाइट में रुचि लेते हैं उन लोगों से यह वेबसाइट धन की वसूली कर रही हैं और उनके बारे में जानकारी एकत्र कर रही हैं।
नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा वेबसाइटों से होने वाले नुकसान को टालने के लिए पहले भी सार्वजनिक नोटिस जारी करके लोगों को सलाह दी थी कि वे इस तरह की वेबसाइटों में पंजीकरण फीस न जमा करें और ना ही उन्हें अपनी जानकारी दें।
जिसके चलते शिकायतें प्राप्त होने पर इन फर्जी वेबसाइटों के खिलाफ कार्रवाई की गई है और अनेक पंजीकरण पोर्टलों को ब्लॉक कर दिया गया है, लेकिन इसके बावजूद भी व्हाट्सएप और अन्य साधनों के द्वारा लाभार्थियों को बहकाया जा रहा है।
इसलिए मंत्रालय यह परामर्श देता है कि इस योजना में रुचि रखने वाले लोग ऐसी किसी भी फर्जी वेबसाइट में जाकर व्यक्तिगत जानकारी देने या धन जमा करने से बचें और वेबसाइट के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करके उसकी प्रमाणिकता की जांच करें।
ये भी पढ़ें: अब सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों को मिलेगा सरकार की योजनाओं का लाभ
मंत्रालय प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा और उत्थान महाअभियान योजना लागू कर रहा है जिसके अंतर्गत कृषक को सोलर पंप स्थापित करने और कृषि पंपों के सौरकरण के लिए सब्सिडी दी जाती है।
किसान 2 मेगावाट तक ग्रिड से जुड़े सौर विद्युत संयंत्रों को भी स्थापित कर सकते हैं। यह योजना राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित विभागों के द्वारा लागू की जा रही है जिसकी संपूर्ण जानकारी एमएनआरआई की वेबसाइट www.nmre.gov.in. पर उपलब्ध है।
योजना में भाग लेने के लिए पात्रता और क्रियान्वयन प्रक्रिया संबंधी जानकारी प्राप्त करने के लिए मंत्रालय द्वारा जारी की गई वेबसाइट http://www.mnre.gov.in या पीएम-कुसुम सेंट्रल पोर्टल https://pmkusum.mnre.gov.in पर उपलब्ध है और अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए टोल फ्री नंबर 1800-180-3333 डायल करके इस योजना संबंधी संपूर्ण जानकारी आप प्राप्त कर सकते हैं।
नई दिल्ली। गोवंश पालकों के लिए खुशखबरी है। अब गोवंश का गोबर बेकार नहीं जाएगा। सात समुंदर पार भी गोवंश के गोबर को अब तवज्जो मिलेगी। अब पशुपालकों को गाय के गोबर की उपयोगिता समझनी पड़ेगी। पहली बार देश से 192 मीट्रिक टन गोवंश का गोबर कुवैत में खेती के लिए जाएगा। गोबर को पैक करके कंटेनर के जरिए 15 जून से भेजना शुरू किया जाएगा। सांगानेर स्थित श्री पिंजरापोल गौशाला के सनराइज ऑर्गेनिक पार्क (sunrise organic park) में इसकी सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं।
भारतीय जैविक किसान उत्पादक संघ (Organic Farmer Producer Association of India- OFPAI) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अतुल गुप्ता ने बताया कि जैविक खेती उत्पादन गो सरंक्षण अभियान का ही नतीजा है। जिसकी शुरुआत हो चुकी है। पहली खेप में 15 जून को कनकपुरा रेलवे स्टेशन से कंटेनर रवाना होंगे। श्री गुप्ता ने बताया कि कुवैत के कृषि विशेषज्ञों के अध्ययन के बाद फसलों के लिए गाय का गोबर बेहद उपयोगी माना गया है। इससे न केवल फसल उत्पादन में बढ़ोतरी होती है, बल्कि जैविक उत्पादों में स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर देखने को मिलता है। सनराइज एग्रीलैंड डवलेपमेंट को यह जिम्मेदारी मिलना देश के लिए गर्व की बात है।
ये भी पढ़ें: हरी खाद मृदा व किसान को देगी जीवनदान
- गाय के गोबर को उपयोग में लेने के लिए राज्य सरकारों को भी पहल करनी चाहिए। जिससे खेती-किसानी और आम नागरिकों को फायदा होगा। साथ ही स्वास्थ्यवर्धक फसलों का उत्पादन होगा। प्राचीन युग से पौधों व फसल उत्पादन में खाद का महत्वपूर्ण उपयोग होता हैं। गोबर के एंटीडियोएक्टिव एवं एंटीथर्मल गुण होने के साथ-साथ 16 प्रकार के उपयोगी खनिज तत्व भी पाए जाते हैं। गोबर इसमें बहुत महत्वपूर्ण है। सभी राज्य सरकारों को इसका फायदा लेना चाहिए।
- प्रोडक्ट विवरण पारंपरिक भारतीय घरों में गाय के गोबर के केक का उपयोग यज्ञ, समारोह, अनुष्ठान आदि के लिए किया जाता है। इसका उपयोग हवा को शुद्ध करने के लिए किया जाता है क्योंकि इसे घी के साथ जलते समय ऑक्सीजन मुक्त करने के लिए कहा जाता है। गाय के गोबर को उर्वरक के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।
ये भी पढ़े : सीखें वर्मी कंपोस्ट खाद बनाना
1- बायोगैस, गोबर गैस : गैस और बिजली संकट के दौर में गांवों में आजकल गोबर गैस प्लांट लगाए जाने का प्रचलन चल पड़ा है। पेट्रोल, डीजल, कोयला व गैस तो सब प्राकृतिक स्रोत हैं, किंतु यह बायोगैस तो कभी न समाप्त होने वाला स्रोत है। जब तक गौवंश है, अब तक हमें यह ऊर्जा मिलती रहेगी। एक प्लांट से करीब 7 करोड़ टन लकड़ी बचाई जा सकती है जिससे करीब साढ़े 3 करोड़ पेड़ों को जीवनदान दिया जा सकता है। साथ ही करीब 3 करोड़ टन उत्सर्जित कार्बन डाई ऑक्साइड को भी रोका जा सकता है। 2- गोबर की खाद : गोबर गैस संयंत्र में गैस प्राप्ति के बाद बचे पदार्थ का उपयोग खेती के लिए जैविक खाद बनाने में किया जाता है। खेती के लिए भारतीय गाय का गोबर अमृत समान माना जाता था। इसी अमृत के कारण भारत भूमि सहस्रों वर्षों से सोना उगलती आ रही है। गोबर फसलों के लिए बहुत उपयोगी कीटनाशक सिद्ध हुए हैं। कीटनाशक के रूप में गोबर और गौमूत्र के इस्तेमाल के लिए अनुसंधान केंद्र खोले जा सकते हैं, क्योंकि इनमें रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभावों के बिना खेतिहर उत्पादन बढ़ाने की अपार क्षमता है। इसके बैक्टीरिया अन्य कई जटिल रोगों में भी फायदेमंद होते हैं।
ये भी पढ़े : सीखें नादेप विधि से खाद बनाना
3- गौमूत्र अपने आस-पास के वातावरण को भी शुद्ध रखता है। कृषि में रासायनिक खाद्य और कीटनाशक पदार्थ की जगह गाय का गोबर इस्तेमाल करने से जहां भूमि की उर्वरता बनी रहती है, वहीं उत्पादन भी अधिक होता है। दूसरी ओर पैदा की जा रही सब्जी, फल या अनाज की फसल की गुणवत्ता भी बनी रहती है। जुताई करते समय गिरने वाले गोबर और गौमूत्र से भूमि में स्वतः खाद डलती जाती है। 4- कृषि में रासायनिक खाद्य और कीटनाशक पदार्थ की जगह गाय का गोबर इस्तेमाल करने से जहां भूमि की उर्वरता बनी रहती है, वहीं उत्पादन भी अधिक होता है। दूसरी ओर पैदा की जा रही सब्जी, फल या अनाज की फसल की गुणवत्ता भी बनी रहती है। जुताई करते समय गिरने वाले गोबर और गौमूत्र से भूमि में स्वतः खाद डलती जाती है। 5- प्रकृति के 99% कीट प्रणाली के लिए लाभदायक हैं। गौमूत्र या खमीर हुए छाछ से बने कीटनाशक इन सहायक कीटों को प्रभावित नहीं करते। एक गाय का गोबर 7 एकड़ भूमि को खाद और मूत्र 100 एकड़ भूमि की फसल को कीटों से बचा सकता है। केवल 40 करोड़ गौवंश के गोबर व मूत्र से भारत में 84 लाख एकड़ भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है। 6- गाय के गोबर का चर्म रोगों में उपचारीय महत्व सर्वविदित है। प्राचीनकाल में मकानों की दीवारों और भूमि को गाय के गोबर से लीपा-पोता जाता था। यह गोबर जहां दीवारों को मजबूत बनाता था वहीं यह घरों पर परजीवियों, मच्छर और कीटाणुओं के हमले भी रोकता था। आज भी गांवों में गाय के गोबर का प्रयोग चूल्हे बनाने, आंगन लीपने एवं मंगल कार्यों में लिया जाता है। 7- गोबर के कंडे या उपले : वैज्ञानिक कहते हैं कि गाय के गोबर में विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है। आम मान्यता है कि गाय के गोबर के कंडे से धुआं करने पर कीटाणु, मच्छर आदि भाग जाते हैं तथा दुर्गंध का नाश हो जाता है। कंडे पर रोटी और बाटी को सेंका जा सकता है। 8- गोबर का पाउडर के रूप में खजूर की फसल में इस्तेमाल करने से फल के आकार में वृद्धि के साथ-साथ उत्पादन में भी बढ़ोतरी होती है।
- भारत में 30% गोबर से उपले बनते हैं। जो अधिकांश ग्रामीण अंचल में तैयार किए जाते हैं। इन उपलों को आग जलाने के लिए उपयोग में लिया जाता है। जबकि ब्रिटेन में हर वर्ष 16 लाख यूनिट बिजली का उत्पादन किया जाता है। वहीं चीन में डेढ़ करोड़ परिवारों को घरेलू ऊर्जा के लिए गोबर गैस की आपूर्ति की जाती है। अमेरिका, नेपाल, फिलीपींस तथा दक्षिणी कोरिया ने भारत से जैविक खाद मंगवाना शुरू कर दिया है। -------- लोकेन्द्र नरवार
खरीफ सीजन की बुआई के साथ ही पुरे देश में फसलों का बीमा की प्रक्रिया शुरू हो गयी है। फसलों का बीमा कराने के लिए पंजीयन करने का काम शुरू हो गया है। फसल बीमा योजना का लाभ किसानो को अधिक से अधिक मिले, इसके लिये सरकारी स्तर पर प्रयास किये जा रहे हैं। अधिक से अधिक किसान योजना के तहत अपनी फसलों का बीमा करवाएँ, इसी को लेकर विभिन्न राज्य सरकारों के साथ ही केंद्र सरकार द्वारा जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। फसल बीमा योजना (Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana - PMFBY) को लेकर जागरूकता अभियान के तहत ही देशभर में 7 जुलाई तक फसल बीमा सप्ताह मनाया जा रहा है।
शुक्रवार को राजस्थान के कृषि मंत्री श्री लालचंद कटारिया ने 35 फसल बीमा वाहनों को हरी झण्ड़ी दिखाकर रवाना किया। मौके पर कृषि मंत्री श्री कटारिया नें कहा कि इस वैन केम्पेन द्वारा राज्य के दूर-दराज के गांवों एवं किसानों तक कृषक बीमा पॉलिसी का प्रचार-प्रसार किया जायेगा और जानकारी पहुंचाई जाएगी।
कृषि मंत्री श्री कटारिया ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अन्तर्गत पिछले साढे तीन वर्षों में अनावृष्टि, अतिवृष्टि और बाढ़ के कारण फसलों को भारी नुकसान हुआ था, जिसकी भरपाई के लिए 149 लाख फसल बीमा पॉलिसी धारक किसानों को तकरीबन 15 हजार 800 करोड़ रूपये का फसल बीमा क्लेम वितरित किये गये हैं। फसल बीमा क्लेम में खरीफ 2021 में 39 लाख 56 हजार तथा रबी 2021-22 में 25 लाख कृषक बीमा पॉलिसियों का वितरण किया गया है।
कृषि मंत्री श्री कटारिया ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा खरीफ 2021 में गांव-गांव में कैम्प लगाकर पॉलिसी वितरित करने के निर्णय लिया गया था।
ये भी पढ़ें: भारत सरकार द्वारा लागू की गई किसानों के लिए महत्वपूर्ण योजनाएं (Important Agricultural schemes for farmers implemented by Government of India in Hindi)
इसकी प्रशंसा करते हुए केन्द्र सरकार ने भी पूरे देश में फसल पॉलिसियां वितरण करने के लिये एक अभियान शुरू करने का निर्णय लिया है। इस अभियान का नाम ‘‘मेरी पॉलिसी मेरे हाथ‘‘ ('Meri Policy Mere Haath' Campaign) है। उन्होंने बताया कि 2022 खरीफ में कुल 284 वाहनों के माध्यम से राज्य के सभी गाँव और तहसीलों में किसानों को फसल बीमा की जानकारियां दी जायेंगी। इसी अभियान के तहत सभी जिलों कलेक्टरों द्वारा 204 फसल बीमा रथों को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया है। बीमा रथ के माध्यम से किसानों को सरल भाषा में पॉलिसी के बारे में बताया जाएगा। वहीँ किसान पाठशाला के माध्यम से भी प्रचार-प्रसार किया जायेगा। अभियान के दौरान 1 से 31 जुलाई तक किसानों को बीमा राशि, बीमित फसलों के प्रकार तथा कुल बीमित क्षेत्र आदि की जानकारी दी जाएगी।
ज्ञात हो कि फसल बीमा योजना को लेकर किसान भी बहुत जागरूक हैं और चाहते हैं की फसल बीमा करायें। क्योंकि जलवायु के बदलते मिजाज और बाढ़ और सुखा से फसलों को होने वाली क्षति की भरपाई के लिये फसल बीमा बहुत जरूरी है। पिछले वर्ष अतिवृष्टि और अनावृष्टि के कारण फसलों को काफी क्षति हुई थी ऐसे में फसल बीमा किसानो का सबसे बड़ा सहारा बना।
ये भी पढ़ें: गन्ना किसानों को दिवाली के तोहफे के रूप में मिलेंगे सरकार से ९०० रूपए प्रति हेक्टेयर
ये भी पढ़ें: ऐसे करें असली और नकली खाद की पहचान, जानिए विशेष तरीका
पशुओं की यूआईडी टैगिंग सहित वैक्सीनेशन हेतु पशुपालन विभाग की तरफ से फिलहाल पशुओं हेतु 12 नंबर के टैग निर्मित हो रहे हैं। जो कि पशुओं हेतु आधार कार्ड की भाँति कार्य करेंगे। भारत सरकार द्वारा प्रत्येक देशवासी को पहचान हेतु आधार कार्ड व पहचान पत्र अनिवार्य किए हैं।
प्रत्येक आधार कार्ड पर 12 अंक का एक नंबर लिखा होता है, जो कि व्यक्ति विशेष की पहचान प्रस्तुत करता है। इसी क्रम में पशुओं हेतु भी आधार कार्ड बांटे जा रहे हैं एवं इन पशुओं की पहचान करने हेतु 12 अंक का टैग भी निर्मित किया जा रहा है, इसके लिए पशु के मालिक से 5 रुपये का शुल्क लिया जाता है।
हम आपको बतादें, कि 12 नंबर के इस Identification tag के माध्यम से पशुओं की पहचान व उनका समयानुसार टीकाकरण करवाना बेहद सुगम हो गया है। यह पहल पशुपालन विभाग द्वारा की गयी है, जिसको राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान के तहत समस्त पशुओं की टैगिंग करने एवं उनका पहचान पत्र के निर्माण हेतु चालू किया गया है।
भारत में अधिकाँश मवेशियों को बीमारियों अथवा दुर्घटनाओं से जान-माल का खतरा होता है। बहुत बार तो पशुओं की पहचान करना बेहद कठिन होता है। इस तरह की परिस्थितियों में पशुओं की टैगिंग कर पहचान पत्र (12 अंकों का नंबर) प्रदान किया जाता है, इसकी सहायता से वर्तमान में पशुओं की पूर्ण जानकारी ऑनलाइन प्राप्त होगी।
इस अभियान के अंतर्गत मवेशियों को एफएमडी वैक्सीनेशन होगा। साथ ही, मिशन पशु आरोग्य योजना के माध्यम से पशुओं की पहचान हेतु कान में पीले रंग का 12 अंको का टैग होना भी बेहद आवश्यक है। अब हर पशुपालक को अपने पशु की यूआईडी टैगिंग करवानी होगी।
पशु चिकित्सक के पास जाके स्वयं आधार कार्ड एवं रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर दें, उसके कुछ समय बाद आपके पशु का पंजीयन कर दिया जाएगा।
सरकार के निर्देशानुसार, अब से उन्हीं पशुओं का टीकाकरण कराया जाएगा, जिनके पास आधार कार्ड (12 अंकों का यूआईडी टैग) होगा।
ये भी पढ़ें: लम्पी स्किन डिजीज (Lumpy Skin Disease)
राजस्थान राज्य के कोटा जनपद में पशुओं के टीकाकरण से संबंधित यह शर्त रखी गई है, कि यहां तकरीबन 2.5 लाख गौवंश एवं भैंस है, उन सबका टीकाकरण कराना अति आवश्यक है।
अभी तक 20,000 पशुओं का टीकाकरण किया जा चुका है। लंपी के संक्रमण की वजह से पशुओं के टीकाकरण के अधूरे लक्ष्य को जल्द पूर्ण किया जायेगा।
अब इसी तरह मवेशियों की यूआईडी टैगिंग करके 12 अंक का आधार नंबर उपलब्ध करवाया जा रहा है। आपको बतादें कि इसके आधार पर पशुपालक को खुद के पशुओं का कृत्रिम गर्भाधान मतलब Artificial insemination की व्यवस्था की जाती है।
इसके अलावा इस टैगिंग के माध्यम से पशुओं के अगले-पिछले टीकाकरण की पूर्ण जानकारी पशुपालकों को फोन पर ही प्राप्त हो जाएगी एवं पशुपालन से संबंधित बहुत सारी सरकारी योजनाओं से फायदा लेना भी आसान रहेगा।
ये भी देखें: भारत सरकार ने मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किये तीन नए उत्कृष्टता केंद्र