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एमएसपी

सरसों की फसल को एमएसपी पर खरीदने की तैयारी पूरी करने का निर्देश

सरसों की फसल को एमएसपी पर खरीदने की तैयारी पूरी करने का निर्देश

केंद्र सरकार इस बार एमएसपी पर सरसों की खरीद करेगी। सरकार ने इसकी संपूर्ण तैयारियां कर ली हैं। केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने बुधवार को इस बात की जानकारी दी है। भारत में इस बार सरसों की काफी शानदार पैदावार हुई है, जिस पर केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने किसानों का आभार प्रकट किया है। 

कृषि मंत्री का कहना है, कि इस साल किसानों ने भारी मात्रा में सरसों की पैदावार की है। इसके लिए समस्त किसान भाई-बहन बधाई के पात्र हैं। मुंडा ने कहा कि उन्होंने संबंधित विभागों को सरसों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीदने के लिए कहा है। ताकि किसानों को उपज बेचने में कोई कठिनाई न आए और उन्हें उपज की समुचित धनराशि मिल सके।

MSP पर सरसों की खरीद की जाएगी 

मीडिया को एक ब्रीफिंग में मुंडा ने आगे बताया कि सरकार ने रबी फसलों के विपणन सीजन के दौरान मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत सरसों की खरीद की तैयारी की है। उन्होंने कहा, "सरकार के लिए किसानों का हित सर्वोपरि है। अगर सरसों की कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे जाती हैं, तो सरकार किसानों से एमएसपी पर सरसों खरीदेगी। उन्होंने बताया कि इसके लिए आवश्यक व्यवस्थाएं भी की गई हैं।"

खरीद की सारी तैयारियां पूर्ण करने का निर्देश दिया है 

उन्होंने कहा कि रबी विपणन सीजन (आरएमएस) के लिए केंद्रीय नोडल एजेंसियों को पहले से ही पीएसएस के तहत सरसों की खरीद के लिए तैयार रहने का निर्देश दिया गया है, ताकि किसानों को किसी भी तरह की कठिनाई का सामना न करना पड़े। उन्होंने कहा, "रबी विपणन सीजन-2023 के दौरान गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और असम राज्यों से पीएसएस के तहत खरीद की मंजूरी 28.24 एलएमटी सरसों थी।"

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कृषकों को अधिक समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा 

आरएमएस-2024 के लिए भी सभी सरसों उत्पादक राज्यों को सूचित किया गया है, कि यदि राज्य में सरसों का वर्तमान बाजार मूल्य अधिसूचित एमएसपी से कम है, तो पीएसएस के तहत सरसों की खरीद का प्रस्ताव समय रहते भेजें। उन्होंने कहा कि आरएमएस-2024 के लिए सरसों का एमएसपी 5,650 रुपये प्रति क्विंटल है। उन्होंने कहा कि सरकार का प्रयास है, कि किसानों को उनकी उपज का सही भाव मिल सके और उन्हें अपने उत्पाद को बेचने में कोई समस्या न आए।

पिछले साल की अपेक्षा बढ़ सकती है, गेहूं की पैदावार, इतनी जमीन में हो चुकी है अभी तक बुवाई

पिछले साल की अपेक्षा बढ़ सकती है, गेहूं की पैदावार, इतनी जमीन में हो चुकी है अभी तक बुवाई

भारत के साथ दुनिया भर में गेहूं खाना बनाने का एक मुख्य स्रोत है। अगर वैश्विक हालातों पर गौर करें, तो इन दिनों दुनिया भर में गेहूं की मांग तेजी से बढ़ी है। जिसके कारण गेहूं के दामों में तेजी से इजाफा देखने को मिला है। दरअसल, गेहूं का उत्पादन करने वाले दो सबसे बड़े देश युद्ध की मार झेल रहे हैं, जिसके कारण दुनिया भर में गेहूं का निर्यात प्रभावित हुआ है। अगर मात्रा की बात की जाए तो दुनिया भर में निर्यात होने वाले गेहूं का एक तिहाई रूस और यूक्रेन मिलकर निर्यात करते हैं। पिछले दिनों दुनिया में गेहूं का निर्यात बुरी तरह से प्रभावित हुआ है, जिसके कारण बहुत सारे देश भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं।


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दुनिया में घटती हुई गेहूं की आपूर्ति के कारण बहुत सारे देश गेहूं खरीदने के लिए भारत की तरफ देख रहे थे। लेकिन उन्हें इस मोर्चे पर निराशा हाथ लगी है। क्योंकि भारत में इस बार ज्यादा गर्मी पड़ने के कारण गेहूं की फसल बुरी तरह से प्रभावित हुई थी। अन्य सालों की अपेक्षा इस साल देश में गेहूं का उत्पादन लगभग 40 प्रतिशत कम हुआ था। जिसके बाद भारत सरकार ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। कृषि विभाग के अधिकारियों ने इस साल रबी के सीजन में एक बार फिर से गेहूं के बम्पर उत्पादन की संभावना जताई है।


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आईसीएआर आईआईडब्लूबीआर के डायरेक्टर ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा है, कि इस साल देश में पिछले साल के मुकाबले 50 लाख टन ज्यादा गेहूं के उत्पादन की संभावना है। क्योंकि इस साल गेहूं के रकबे में भारी बढ़ोत्तरी हुई है। साथ ही इस साल किसानों ने गेहूं के ऐसे बीजों का इस्तेमाल किया है, जो ज्यादा गर्मी में भी भारी उत्पादन दे सकते हैं। आईसीएआर आईआईडब्लूबीआर गेहूं की फसल के उत्पादन एवं रिसर्च के लिए शीर्ष संस्था है। अधिकारियों ने इस बात को स्वीकार किया है, कि तेज गर्मी से भारत में अब गेहूं की फसल प्रभावित होने लगी है, जिससे गेहूं के उत्पादन पर सीधा असर पड़ता है।

इस साल देश में इतना बढ़ सकता है गेहूं का उत्पादन

कृषि मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले आईसीएआर आईआईडब्लूबीआर के अधिकारियों ने बताया कि, इस साल भारत में लगभग 11.2 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन हो सकता है। जो पिछले साल हुए उत्पादन से लगभग 50 लाख टन ज्यादा है। इसके साथ ही अधिकारियों ने बताया कि इस साल किसानों ने गेहूं की डीबीडब्लू 187, डीबीडब्लू 303, डीबीडब्लू 222, डीबीडब्लू 327 और डीबीडब्लू 332 किस्मों की बुवाई की है। जो ज्यादा उपज देने में सक्षम है, साथ ही गेहूं की ये किस्में अधिक तापमान को सहन करने में सक्षम हैं।


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इसके साथ ही अगर गेहूं के रकबे की बात करें, तो इस साल गेहूं की बुवाई 211.62 लाख हेक्टेयर में हुई है। जबकि पिछले साल गेहूं 200.85 लाख हेक्टेयर में बोया गया था। इस तरह से पिछली साल की अपेक्षा गेहूं के रकबे में 5.36 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। आईसीएआर आईआईडब्लूबीआर के अधिकारियों ने बताया कि इस साल की रबी की फसल के दौरान राजस्थान, बिहार और उत्तर प्रदेश में गेहूं के रकबे में सर्वाधिक बढ़ोत्तरी हुई है।

एमएसपी से ज्यादा मिल रहे हैं गेहूं के दाम

अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों को देखते हुए इस साल गेहूं के दामों में भारी तेजी देखने को मिल रही है। बाजार में गेहूं एमएसपी से 30 से 40 प्रतिशत ज्यादा दामों पर बिक रहा है। अगर वर्तमान बाजार भाव की बात करें, तो बाजार में गेहूं 30 रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है। इसके उलट भारत सरकार द्वारा घोषित गेहूं का समर्थन मूल्य 20.15 रुपये प्रति किलो है। बाजार में उच्च भाव के कारण इस साल सरकार अपने लक्ष्य के अनुसार गेहूं की खरीदी नहीं कर पाई है। किसानों ने अपने गेहूं को समर्थन मूल्य पर सरकार को बेचने की अपेक्षा खुले बाजार में बेचना ज्यादा उचित समझा है। अगर इस साल एक बार फिर से गेहूं की बम्पर पैदावार होती है, तो देश में गेहूं की सप्लाई पटरी पर आ सकती है। साथ ही गेहूं के दामों में भी कमी देखने को मिल सकती है।
दिवाली से पूर्व केंद्र सरकार गेहूं सहित 23 फसलों की एमएसपी में इजाफा कर सकती है

दिवाली से पूर्व केंद्र सरकार गेहूं सहित 23 फसलों की एमएसपी में इजाफा कर सकती है

लोकसभा चुनाव से पूर्व ही केंद्र सरकार किसानों को काफी बड़ा तोहफा दे सकती है। ऐसा कहा जा रहा है, कि सरकार शीघ्र ही गेहूं समेत विभिन्न कई फसलों की एमएसपी बढ़ाने की स्वीकृति दे सकती है। वह गेहूं की एसएमसपी में 10 प्रतिशत तक भी इजाफा कर सकती है। लोकसभा चुनाव से पूर्व केंद्र सरकार द्वारा किसानों को बहुत बड़ा गिफ्ट दिए जाने की संभावना है। ऐसा कहा जा रहा है, कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार रबी फसलों के मिनिमम सपोर्ट प्राइस में वृद्धि कर सकती है। इससे देश के करोड़ों किसानों को काफी फायदा होगा। सूत्रों के अनुसार, केंद्र सरकार गेहूं की एमएसपी में 150 से 175 रुपये प्रति क्विंटल की दर से इजाफा कर सकती है। इससे विशेष रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, बिहार और पंजाब के किसान सबसे ज्यादा लाभांवित होंगे। इन्हीं सब राज्यों में सबसे ज्यादा गेहूं की खेती होती है।

केंद्र सरकार गेंहू की अगले साल एमएसपी में 3 से 10 प्रतिशत वृद्धि करेगी

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार आगामी वर्ष के लिए गेहूं की एमएसपी में 3 प्रतिशत से 10 प्रतिशत के मध्य इजाफा कर सकती है। अगर केंद्र सरकार ऐसा करती है, तो गेहूं का मिनिमम सपोर्ट प्राइस 2300 रुपए प्रति क्विंटल तक पहुंच सकता है। हालांकि, वर्तमान में गेहूं की एमएसपी 2125 रुपए प्रति क्विंटल है। इसके अतिरिक्त सरकार मसूर दाल की एमएसपी में भी 10 प्रतिशत तक का इजाफा कर सकती है।

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यह निर्णय मार्केटिंग सीजन 2024- 25 के लिए लिया जाएगा

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि सरसों और सूरजमुखी (Sunflower) की एमएसपी में 5 से 7 प्रतिशत की बढ़ोतरी की जा सकती है। दरअसल, ऐसी आशा है कि आने वाले एक हफ्ते में केंद्र सरकार रबी, दलहन एवं तिलहन फसलों की एमएसपी बढ़ाने के लिए स्वीकृति दे सकती है। मुख्य बात यह है, कि एमएसपी में वृद्धि करने का निर्णय मार्केटिंग सीजन 2024-25 के लिए लिया जाएगा।

एमएसपी में समकुल 23 फसलों को शम्मिलित किया गया है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की सिफारिश पर केंद्र मिनिमम सपोर्ट प्राइस निर्धारित करती है। एमएसपी में 23 फसलों को शम्मिलित किया गया है। 7 अनाज, 5 दलहन, 7 तिलहन और चार नकदी फसलें भी शम्मिलित हैं। आम तौर पर रबी फसल की बुवाई अक्टूबर से दिसंबर महीने के मध्य की जाती है। साथ ही, फरवरी से मार्च एवं अप्रैल महीने के मध्य इसकी कटाई की जाती है।

जानें एमएसपी में कितनी फसलें शामिल हैं

  • अनाज- गेहूं, धान, बाजरा, मक्का, ज्वार, रागी और जो
  • दलहन- चना, मूंग, मसूर, अरहर, उड़द,
  • तिलहन- सरसों, सोयाबीन, सीसम, कुसुम, मूंगफली, सूरजमुखी, निगर्सिड
  • नकदी- गन्ना, कपास, खोपरा और कच्चा जूट
दिवाली से पहले ही गेहूं की कीमतों में रिकॉर्ड इजाफा दर्ज किया गया

दिवाली से पहले ही गेहूं की कीमतों में रिकॉर्ड इजाफा दर्ज किया गया

दिवाली से आने से पूर्व पुनः एक बार फिर से गेहूं महंगा हो चुका है। बतादें, कि इससे राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में गेहूं की कीमत थोक बाजार में 27,390 रुपये प्रति मीट्रिक टन तक पहुंच चुकी है। ऐसा कहा जा रहा है, कि आगामी दिनों में इसका भाव और बढ़ सकता है। साथ ही, इससे पूर्व जनवरी माह में भी गेहूं की कीमत सातवें आसमान पर पहुँच गई थी। केंद्र सरकार के बहुत सारे प्रयासों के बावजूद भी महंगाई कम ही नहीं हो पा रही है। आलम यह है, कि एक वस्तु सस्ती होती है, तो दूसरी वस्तु महंगी हो जाती है। टमाटर एवं हरी सब्जियों के भाव में गिरावट दर्ज की है। वर्तमान में गेहूं एक बार पुनः महंगा हो गया है। ऐसा बताया जा रहा है, कि त्योहारी सीजन से पूर्व ही गेहूं के भाव 8 माह के अपने सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी है। ऐसी स्थिति में फूड इन्फ्लेशन बढ़ने की संभावना एक बार पुनः बढ़ गई है। साथ ही, व्यापारियों ने बताया है, कि इंपोर्ट ड्यूटी के कारण विदेशों से खाद्य पदार्थों का आयात प्रभावित हो रहा है। इससे सरकार के ऊपर निर्यात ड्यूटी हटाने को लेकर काफी दबाव बढ़ रहा है। ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार को महंगाई पर लगाम लगाने के लिए समय-समय पर सरकारी भंडार से भी गेहूं और चावल जैसे खाद्य पदार्थ को जारी करना पड़ रहा है।

गेंहू की कीमत बढ़ने से इन खाद्यान पदार्थों की कीमत भी बढ़ेगी

कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, त्योहारी दिनों की वजह से बाजार में गेहूं की डिमांड बढ़ गई है। वहीं, मांग में बढ़ोतरी से गेहूं की आपूर्ति काफी प्रभावित हो गई है, जिससे कीमतें 8 माह के अपने सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी हैं। यदि कीमतों में इजाफे का यह हाल रहा तो, आगामी दिनों में खुदरा महंगाई और भी बढ़ सकती है। गेहूं एक ऐसा अनाज है, जिससे विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ तैयार किए जाते हैं। अगर
गेहूं की कीमत में बढ़ोतरी होती है, तो रोटी, बिस्कुट, ब्रेड एवं केक समेत विभिन्न खाद्य पदार्थ काफी महंगे हो जाएंगे।

भारत सरकार द्वारा गेहूं पर 40% फीसद इंपोर्ट ड्यूटी

मुख्य बात यह है, कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में गेहूं के भाव में मंगलवार को 1.6% का इजाफा दर्ज किया गया। इससे गेहूं की कीमत थोक बाजार में 27,390 रुपये प्रति मीट्रिक टन तक पहुंच गई, जोकि 10 फरवरी के बाद का सर्वोच्च स्तर है। ऐसा बताया जा रहा है, कि विगत छह महीनों के दौरान गेहूं का भाव तकरीबन 22% प्रतिशत बढ़ा हैं। साथ ही, रोलर फ्लोर मिलर्स फेडरेशन के अध्यक्ष प्रमोद कुमार एस ने केंद्र सरकार के समक्ष गेहूं के आयात पर से ड्यूटी हटाने की मांग उठाई है। दरअसल, उन्होंने बताया है, कि अगर सरकार गेहूं पर से इंपोर्ट ड्यूटी हटा देती है, तो निश्चित रूप से इसकी कीमत कम हो सकती है। दरअसल, भारत सरकार द्वारा गेहूं पर 40% फीसद आयात ड्यूटी लगाई है, जिसे हटाने को लेकर कोई तत्काल योजना नजर नहीं आ रही है।

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खाद्य पदार्थों की कीमतों में इस तरह गिरावट होगी

साथ ही, 1 अक्टूबर तक सरकारी गेहूं भंडार में केवल 24 मिलियन मीट्रिक टन ही गेहूं का भंडार था। जो पांच वर्ष के औसतन 37.6 मिलियन टन के मुकाबले में बेहद कम है। हालांकि, केंद्र ने फसल सीजन 2023 में किसानों से 26.2 मिलियन टन गेहूं की खरीदारी की है, जो लक्ष्य 34.15 मिलियन टन से कम है। वहीं, केंद्र सरकार का अंदाजा है, कि फसल सीजन 2023-24 में गेहूं उत्पादन 112.74 मिलियन मीट्रिक टन के करीब होगा। इससे खाद्य पदार्थों के भाव में गिरावट आएगी।
तीनों कृषि कानून वापस लेने का ऐलान,पीएम ने किसानों को दिया बड़ा तोहफा

तीनों कृषि कानून वापस लेने का ऐलान,पीएम ने किसानों को दिया बड़ा तोहफा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए 14 महीने से विवादों में घिरे चले आ रहे तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान करके पूरे राष्ट्र को चौंका दिया। इन तीनों कृषि कानूनों को लेकर किसान लगातार आंदोलन करते चले आ रहे हैं। किसान लगातार  कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। इसके लिए दिल्ली सीमा पर भारी संख्या में किसान पिछले साल सितम्बर माह से आंदोलन कर रहे हैं। इस आंदोलन को लेकर सैकड़ों किसानों की जाने तक चलीं गयीं हैं। किसान इन कृषि कानूनों को लेकर सरकार से कोई भी समझौता करने को तैयार नहीं हो रहे थे। हालांकि सरकार ने यह समझाने की बहुत कोशिश की कि ये कानून छोटे किसानों के हितों के लिए हैं क्योंकि देश में 100 में से 80 किसान छोटे हैं।  लेकिन आंदोलनरत किसानों ने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की जिद पकड़ ली है। किसानों की जिद के आगे सरकार को हथियार डालते हुए इन कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला लेना पड़ा।

किसानों के कल्याण के लिए ईमानदारी से कोशिश की थी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए कहा कि हमने हमेशा किसानों की समस्याओं और उनकी चिंताओं का ध्यान रखा और उन्हें दूर करने का प्रयास किया जब आपने हमें 2014 में सत्ता सौंपी तो हमें यह लगा कि किसानों के कल्याण, उनकी आमदनी बढ़ाने का कार्य करने का निश्चय किया। हमने कृषि वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों आदि से सलाह मशविरा करके कृषि के विकास व कृषि करने की आधुनिक तकनीक को अपना कर किसानों का हित करने का प्रयास किया।  काफी विचार-विमर्श करने के बाद हमने देश के किसानों खासकर छोटे किसानों को उनकी उपज का अधिक से अधिक दाम दिलाने, उनका शोषण रोकने एवं उनकी सुविधाएं बढ़ाने के प्रयास के रूप में तीन नये कृषि कानून लाये गये। उन कृषि कानूनों को लागू किया गया।

किसानों को पूरी तरह से समझा नहीं पाये

राष्ट्र के नाम अपने संदेश में प्रधानमंत्री ने कहा कि हमने सच्चे मन एवं पवित्र इरादे से देश हित व किसान हित के सारे नियमों को समेट कर ये तीन कानून बनाये।  देश के कोटि-कोटि किसानों, अनेक किसान संगठनों ने इन कृषि कानूनों का स्वागत किया एवं समर्थन दिया। इसके बावजूद किसानों का एक वर्ग इन कृषि कानूनों से नाखुश हो गया। उन्होंने कहा कि हमने इन असंतुष्ट किसानों से लगातार एक साल तक  विभिन्न स्तरों पर बातचीत करने का प्रयास किया उन्हें सरकार की मंशा को समझाने का प्रयास किया । इसके लिए हमने व्यक्तिगत व सामूहिक रूप से किसानों को समझाने का प्रयास किया।  किसानों के असंतुष्ट वर्ग को समझाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों, मार्केट विशेषज्ञों एवं अन्य जानकार लोगों की मदद लेकर पूर्ण प्रयास किया किन्तु सरकार के प्रयास सफल नहीं हो पाये। प्रधानमंत्री ने अपने संदेश में कहा कि सरकार ने दीपक के सत्य प्रकाश जैसे कृषि कानूनों के बारे में किसानों को समझाने का पूरा प्रयास किया लेकिन हमारी तपस्या में कहीं कोई अवश्य ही कमी रह गयी होगी जिसके कारण हम किसानों को पूरी तरह समझा नहीं पाये। कृषि कानून

किसानों को मनाने का पूरा प्रयास किया

18 मिनट के राष्ट्र के नाम संदेश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि आज गुरु नानक जयंती जैसे प्रकाशोत्सव पर किसी से कोई गिला शिकवा नहीं है और न ही हम किसी में कोई दोष ठहराने की सोच रहे हैं बल्कि हमने जिस तरह से देश हित और किसान हित में ये कृषि कानून लाये थे। भले ही देश के अधिकांश किसानों ने इन कृषि कानूनों का समर्थन किया हो लेकिन किसान का एक वर्ग नाखुश रहा और हम उसे नही समझा पाये हैं। उन्होंने कहा कि हमने किसानों को हर तरह से मनाने का प्रयास किया।

किसानों को अनेक प्रस्ताव भी दिये

आंदोलनकारी किसानों ने कृषि कानूनों के जिन प्रावधानों पर ऐतराज जताया था, सरकार उनको संशोधित करने को तैयार हो गयी थी। इसके बाद सरकार ने इन कृषि कानूनों को दो साल तक स्थगित करने का भी प्रस्ताव दिया था। इसके बावजूद यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया था।  इन सब बातों को पीछे छोड़ते हुए सरकार ने नये सिरे से किसान हितों और देश के कल्याण के बारे में सोचते हुए प्रकाश पर्व जैसे अवसर पर इन कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला लिया है।\

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पिछली बातों को छोड़कर आगे बढ़ें

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने संबोधन में आंदोलनकारी किसानों का आवाहन करते हुए कहा कि हम सब पिछली बातों को भूल जायें और नये सिरे से आगे बढ़ें और देश को आगे बढ़ाने का काम करें। उन्होंने कहा कि सरकार ने कृषि कानूनों को वापस करने का फैसला ले लिया है।  उन्होंने कहा कि में आंदोलनकारी किसानों से आग्रह करता हूं कि वे आंदोलन को समाप्त करके अपने घरों को अपने परिवार के बीच वापस लौट आयें। अपने खेतों में लौट आयें । अपने संदेश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि इसी महीने के अंत में होने वाले संसद के सत्र में इन तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की सभी विधिक कार्यवाही पूरी की जायेंगी।

किसान हित के लिए और बड़ा प्रयास करेंगे

प्रधानमंत्री का कहना है कि सरकार अब इससे अधिक बड़ा प्रयास करेगी ताकि किसानों का कल्याण उनकी मर्जी के अनुरूप किया जा सके। उन्होंने कहा कि सरकार ने छोटे किसानों का कल्याण करने, एमएसपी को अधिक प्रभावी तरीके से लागू करने सहित सभी प्रमुख मांगों पर आम राय बनाने के लिए एक कमेटी के गठन का फैसला लिया है। जिसे शीघ्र ही गठित करके नये सिरे से इससे भी बड़ा प्रयास किया जायेगा। कृषि कानून

छोटे किसानों का कल्याण करना सरकार की प्राथमिकता

प्रधानमंत्री ने दोहराया कि हम लगातार छोटे किसानों के कल्याण के लिये प्रयास करते रहेंगे। देश में 80 प्रतिशत छोटे किसान हैं।  इन छोटे किसानों के पास दो हेक्टेयर से भी कम खेती है। इस तरह के किसानों की संख्या 10 करोड़ से भी अधिक है। हमारी सरकार ने फसल बीमा योजना को अधिक से अधिक प्रभावी बनाया। 22 करोड़ किसानों को मृदा परीक्षण कार्ड देकर उनकी कृषि करने की तकनीक में मदद की। उन किसानों की कृषि लागत कम हो गयी तथा उनका लाभ बढ़ गया है। उन्होंने कहा कि छोटे किसानों को ताकत देने के लिए सरकार ने हर संभव मदद देने का प्रयास किया और आगे भी ऐसे ही प्रयास करते रहेंगे।

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सितम्बर, 2020 में शुरू हो गया था आंदोलन

लोकसभा से तीनों कृषि कानून 17 सितम्बर, 2020 को पास हो गये थे और राष्ट्रपति ने दस दिन बाद  इन कृषि कानूनों पर अपनी मुहर लगाकर लागू कर दिया था। इसके बाद ही किसानों ने अपना आंदोलन शुरू कर दिया था। ये तीन कृषि कानूनों में पहला कानून कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020, दूसरा कानून कृषक (सशक्तिकरण-संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करारा विधेयक 2020 तथा तीसरा आवश्यक वस्तु (संशोधन) 2020 नाम से तीसरा कानून था।

किन प्रावधानों पर थे किसान असंतुष्ट

किसानों को सबसे ज्यादा पहले कानून कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020 के कई प्रावधानों में ऐतराज था।  मंडी के बाहर फसल बेचने की आजादी, एमएसपी और कान्टेक्ट फार्मिंग के प्रावधानों पर कड़ी आपत्ति जतायी गयी थी । सरकार ने अनेक स्तरों से सफाई दी और अनेक तरह के आश्वासन दिये लेकिन आंदोलनकारी किसानों को कुछ भी समझ में नहीं आया और उन्होंने किसान से इन तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग की जिद ठान ली।  किसानों की जिद के सामने सरकार को आखिर झुकना पड़ा भले ही इसके लिए किसानों को 14 महीने का लम्बा समय अवश्य लगा।
उत्तर प्रदेश के इन जनपदों में शुरू हो चुकी है MSP पर धान की खरीद

उत्तर प्रदेश के इन जनपदों में शुरू हो चुकी है MSP पर धान की खरीद

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि पूर्वी जोन में रायबरेली, उन्नाव, चित्रकूट और कानपुर समेत विभिन्न जनपदों में 1 नवंबर से धान की खरीद चालू हो जाएगी। जो कि अगले वर्ष 28 फरवरी तक चलती रहेगी। साथ ही, धान की बिक्री करने के लिए संपूर्ण राज्य में अब तक 1 लाख 66 हजार 645 किसानों ने पंजीकरण करवाया है। उत्तर प्रदेश में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान की खरीद शुरू हो गई है। सरकार की ओर से धान क्रय केंद्र पर पुख्ता व्यवस्थाऐं की गई हैं। हालांकि, क्रेय केंद्र पर धान बिक्री के लिए बहुत कम तादात में किसान आ रहे हैं। अब ऐसी स्थिति में कहा जा रहा है, कि अगले एक सप्ताह के उपरांत धान की खरीद में तीव्रता आएगी। क्योंकि इस बार मानसून विलंब से आने के कारण किसानों ने धान की रोपाई विलंभ से आरंभ की थी। दरअसल, अब तक कई क्षेत्रों में धान की फसल पक कर पूरी तरह से तैयार नहीं हो पायी है। वहीं, पश्चमी उत्तर प्रदेश में किसान अगेती धान की रोपाई करने में कामयाब हो गए थे। अब ऐसी स्थिति में वे धान विक्रय के लिए क्रय केंद्रों पर पहुंच रहे हैं।

धान खरीद के लिए राज्यभर में 4000 क्रय केंद्र स्थापित किए गए हैं

साथ ही, क्रय केंद्रों पर किसान भाइयों को किसी प्रकार की कोई दिक्कत न हो पाए इसके लिए प्रशासन की ओर से पूरी तैयारी की गई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार के मुताबिक, फसल सीजन 2023- 24 के लिए किसानों से 2 केटेगरी के धान खरीदे जाएंगे। इसमें ‘धान कॉमन’ और ‘ग्रेड ए’ धान शम्मिलित हैं। विशेष बात यह है, कि ‘धान कॉमन’ की एमएसपी 2183 रुपये प्रति कुंतल निर्धारित की गई है। वहीं, ‘ग्रेड ए’ को 2203 रुपये प्रति कुंतल की दर से खरीदा जाएगा। विशेष बात यह है, कि धान खरीदने के लिए पूरे राज्य में 4000 क्रय केंद्र निर्मित किए गए हैं।

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किसानों को पंजीकरण करवाना ही पड़ेगा

यदि किसान भाई एमएसपी पर धान की बिक्री करना चाहते हैं, तो उनको पहले आधिकारिक वेबसाइट https://fcs.up.gov.in/ अथवा मोबाइल एप UP KISAN MITRA पर जाकर पंजीकरण करवाना होगा।

एमएसपी पर धान खरीदी की अंतिम तिथि

साथ ही, किसानों को जानकारी के लिए बतादें कि यूपी सरकार भिन्न-भिन्न जोन में दो फेज में धान की खरीद करेगी। प्रथम फेज के अंतर्गत पश्चिमी जोन में धान की खरीद की जाएगी। इसमें लखनऊ मंडल के बरेली, आगरा, मुरादाबाद, सहारनपुर अलीगढ़, मेरठ, हरदोई, सीतापुर, लखीमपुर और झांसी मंडल के समस्त जनपद शम्मिलित हैं। इन जनपदों में 1 अक्टूबर से 31 जनवरी तक एमएसपी पर धान की खरीद की जाएगी।
आलू के बाद अब गेहूं का समुचित मूल्य ना मिलने पर किसानों में आक्रोश

आलू के बाद अब गेहूं का समुचित मूल्य ना मिलने पर किसानों में आक्रोश

उत्तर प्रदेश में आलू का बेहद कम दाम मिलने की वजह से किसानों में काफी आक्रोश है। ऐसी हालत में फिलहाल गेहूं के दाम समर्थन मूल्य से काफी कम प्राप्त होने पर शाजापुर मंडी के किसान काफी भड़के हुए हैं, उन्होंने सरकार को चेतावनी देते हुए परेशानियों पर ध्यान देने की बात कही गई है। आलू के उपरांत फिलहाल यूपी के किसान गेहूं के दाम कम मिलने से परेशान हैं। प्रदेश के किसान गेहूं का कम भाव प्राप्त होने पर राज्य की भारतीय जनता पार्टी की सरकार से गुस्सा हैं। प्रदेश की शाजापुर कृषि उत्पादन मंडी में उपस्थित किसानों ने सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन व नारेबाजी की है। किसानों ने बताया है, कि कम भाव मिलने के कारण उनको हानि हो रही है एवं यदि गेहूं के भाव बढ़ाए नहीं गए तो आगे भी इसी तरह धरना-प्रदर्शन चलता रहेगा। कृषि उपज मंडी में जब एक किसान भाई अपना गेहूं बेचने गया, जो 1981 रुपये क्विंटल में बिका। किसान भाई का कहना था, कि केंद्र सरकार द्वारा गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2125 रुपये क्विंटल निर्धारित किया गया है। इसके बावजूद भी यहां की मंडी में समर्थन मूल्य की अपेक्षा में काफी कम भाव पर खरीद की जा रही है। उन्होंने चेतावनी देते हुए बताया है, कि सरकार को अपनी आंखें खोलनी होंगी एवं मंडियों पर कार्रवाई करनी चाहिए। उन्होंने बताया है, कि सरकार किसानों की दिक्कत परेशानियों को समझें। ये भी देखें: केंद्र सरकार का गेहूं खरीद पर बड़ा फैसला, सस्ता हो सकता है आटा आक्रोशित एवं क्रोधित किसानों का नेतृत्व किसानों के संगठन भारतीय किसान संघ के जरिए किया जा रहा है। संगठन का मानना है कि, सरकार को किसानों की मांगों की ओर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। खून-पसीना एवं कड़े परिश्रम के उपरांत भी किसानों को उनकी फसल का समुचित भाव नहीं मिल पा रहा है।

आलू किसानों की परिस्थितियाँ काफी खराब हो गई हैं

उत्तर प्रदेश में आलू उत्पादक किसान भाइयो की स्थिति काफी दयनीय है। आलू के दाम में गिरावट आने की वजह से किसान ना कुछ दामों में अपनी फसल बेचने पर मजबूर है। बहुत से आक्रोशित किसान भाइयों ने तो अपनी आलू की फसल को सड़कों पर फेंक कर अपना गुस्सा व्यक्त किया है। ऐसी परिस्थितियों में विरोध का सामना कर रही उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 650 रुपये प्रति क्विंटल के मुताबिक आलू खरीदने का एलान किया है। परंतु, किसान इसके उपरांत भी काफी गुस्सा हैं। कुछ किसानों द्वारा आलू को कोल्ड स्टोर में रखना चालू कर दिया है। दामों में सुधार होने पर वो बेचेंगे, परंतु अब कोल्ड स्टोर में भी स्थान की कमी देखी जा रही है। ऐसी स्थितियों के मध्य किसान हताश और निराश हैं।
इस राज्य ने 40 टन आलू को ओमान निर्यात किया, आलू की एमएसपी भी निर्धारित की गई

इस राज्य ने 40 टन आलू को ओमान निर्यात किया, आलू की एमएसपी भी निर्धारित की गई

प्रदेश सरकार निरंतर किसानों के फायदे में कदम उठाती आ रही है। राज्य सरकार की तरफ से अब निर्यात को बढ़ाने पर अधिक बल दिया है। इससे प्रदेश के किसानों की आमदनी में भी अच्छी-खासी बढ़ोत्तरी भी हो पाएगी। प्रत्येक किसान का यही प्रयास और उम्मीद रहती है, कि उसको प्रत्येक फसल से आमदनी मिल सके। हर उत्पादन से उसको मुनाफा हो भी जाती है। आलू, सब्जी की ऐसी पैदावार होती है, कि इससे किसान काफी हद तक आमदनी कर लेते हैं। आलू की पैदावार भी उन्हीं में से एक है। मुख्य बात यह है, कि आलू की ऐसी विशेष किस्में विकसित की जा रही हैं इससे किसान प्रत्यक्ष रूप से लाभ उठा सकते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से आलू उत्पादन से जुड़ी बड़ी कार्रवाई की गई है। फिलहाल, उत्तर प्रदेश सरकार आलू की पैदावार को लेकर बड़ी कार्रवाई कर रही है। बतादें, कि आलू के साथ-साथ बाकी बागवानी फल सब्जियों को सड़क पर फेंकने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

किसानों ने मजबूरन अपना आलू सड़कों पर फेंका

इस वर्ष भारत में आलू की बुरी हालत रही है। भारत के विभिन्न हिस्सों में
आलू का भाव काफी ज्यादा गिर गया है। इसके प्रभाव से किसानों को अपने आलू को सड़कों पर फेंकते हुए देखा गया है। किसानों के आलू की कीमत 1 रुपये से 2 रुपये प्रति किलो तक गिर गई। किसानों का मंड़ी तक आलू ले जाने का खर्चा तक भी नहीं निकल पा रहा था। यह भी पढ़ें : शिमला मिर्च, बैंगन और आलू के बाद अब टमाटर की कीमतों में आई भारी गिरावट से किसान परेशान

उत्तर प्रदेश से 40 टन आलू ओमान निर्यात किया है

उत्तर प्रदेश सरकार किसानों के फायदे के लिए निरंतर कदम उठा रही है। प्रदेश के किसानों का आलू सरकारी मदद से विदेश निर्यात किया जा रहा है। मीडिया खबरों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश के उद्यान कृषि विपणन द्वारा लुलु ग्रुप की मदद से ओमान को 40 टन अनाज निर्यात किया गया है। इसी कड़ी में प्रदेश सरकार का कहना है, कि अन्य उत्पादों को प्रोत्साहन देने के लिए भी सरकार निरंतर कार्य कर रही है। इससे किसानों की आमदनी में भी इजाफा होना निश्चित है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने आलू का एमएसपी प्राइस निर्धारित किया है

किसानों के कहने के मुताबिक, उत्तर प्रदेश सरकार आलू के मिनीमम प्राइस निर्धारित करने में लगी हुई है। उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से आलू का मिनीमम प्राइस रेट 650 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया है। दरअसल, किसान अपने आलू को उतनी कीमत पर बेच नहीं पा रहे हैं। मंडी में कीमत 800 रुपये प्रति किलो तक पहुंच चुकी है। यहां कीमत कम करना वास्तविकता में परेशान करने वाला है।
कृषि, परिवर्तन को चाहिए तंत्र

कृषि, परिवर्तन को चाहिए तंत्र

अभी तक सरकार केवल किसानों की आय दोगुनी करने का मंत्र दे रही है। सरकार को लग रहा है कि तीन कृषि कानूनों से खेती-किसानी की तसबीर और तकदीर बदल जाएगी लेकिन ऐसा संभव नहीं दिखता। इसके लिए जरूरी तंत्र सरकार के पास नहीं है, यदि होता तो हर जिले के कृषि विज्ञान केन्द्र पर उस मॉडल की झलक मिल जाती जिससे किसानों की आय दोगुनी हो सकती।

आय दोगुनी करने का नहीं कोई मॉडल

इस मॉडल का प्रचार-प्रसार भी मन की बात से लेकर दूर दर्शन तक खूब होता। इसी लिए सरकार अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कारोबारी समझ वाले लोगों को माध्यम बनाकर किसानों की तकदीर बदलना चाहती है, लेकिन किसान कारोबारी सोच को सात दशकों से देखते आ रहे हैं। कारोबारी अपने मुनाफे में किसी तरह की कमी नहीं होने देते। वहीं किसान को उचित कीमत या घोषित एमएसपी देने के लिए न तो खुद प्रतिबद्ध है ना सरकार इसके लिए किसी को पावंद करती है।

गेहूं 15, आटा 35 रुपए किलो क्यों

छोटे से उदाहरण से कारोबारी सोच को समझाने का प्रयास करता हूं। वर्तमान में मंडियों में गेहूं कहीं भी 1700 रुपए कुंतल से ज्यादा नहीं है। बाजार में निकलिए इसी गेहूं का आटा बढ़िया स्लोगनों वाले पैकिटों में 30 से 35 रुपए प्रति किलोग्राम बिक रहा है। इस आटे में अलग से नतो बादाम का पाउडर मिलया गया है ना विटामिन न मिनरल। इसके बाद भी अधिकतम दो रुपए प्रति किलोग्राम की पिसाई, चार से पांच रुपए की पैकिंग में पैक होकर इतना कीमती हो जाता है। वह आटा एमपी के गेहूं का भले नहो लेकिन बिकता इसी लेबिल से है। बात करें लाइसेंसिंग अथॉरिटी यानी एफएसएसआई की तो उसकी बेवसाइट पर साफ लिखा दिखता है कि देश में दूध उत्पादन से 76 प्रतिशत अधिक है। यानी बाजार मिलावटी दूध से अटा पड़ा है और सरकार का तंत्र चंद जगह सेंपिलिंग करके कर्तब्य की इतिश्री किए हुए है। इसी गेहूं का दलिया सामान्य से सामान्य पैकिंग में भी 50 रुपए प्रति किलोग्राम से नीचे नहीं है। चंद पैसे की दलाई और छनाई के बाद दलिया इतना महंगा कैसे हो जाता है।

कोरोनाकाल की आर्थिक राहत किसे मिली

किसान को भगवान न मानने वाला कोई व्यक्ति कह सकता है कि किसान गेहूं क्यों बेचता है। वह आटा, सूजी, दलिया बनाकर बेचे। हां बात बिल्कुल ठीक है लेकिन कोरोना काल में सरकार द्वारा रोजगार श्रजन के लिए उठाए गए कदमों में करोड़ों करोड़ की मदद वही लोग डकार गए जो पहले से इस तरह के कारोबार कर रहे थे। यह अलग बात है कि उन्होंने इसके लिए नाम भर बदल दिया। बैंकर्स को भी इन्हें फंडिंग करना आसान रहता है। धन की वापसी की गारंटी रहती है। नए आदमी के कारोबार के चलने न चलने की कोई गारंटी नहीं रहती।

कूडे के भाव बिका धान, अब महंगा

दूसरा उदाहरण देखिए। धान के ज्यादातर निर्यातक करनाल में रहते हैं या यहां से काम करते हैं। वह सीजन से पूर्व एक होटल में मीटिंग करते हैं। जमकर एन्ज्वाय करते हैं और यहीं डिसाइड कर लेते हैं कि किस मंडी से किस श्रेणी का धान किस भाव खरीदना है। इस बार गुजरे फसल सीजन में गेहूं 1800 रुपए कुंतल बिका। सीजन जाते जाते सरकार ने एफसीआई के गेहूं कीमतें कम कर दीं। दूसरी तरफ कोराना काल में लोगों का पेट भरने के लिए निःशुल्क गेहूं बांटना शुरू कार दिया। तीसरा अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में भी गेहूं सस्ता हो गया। राशन में गेहूं मुफ्त मिलने से गेहूं का उठान बंद हो गया और गेहूं 1600 रुपए कुंतल तक गिर गया। धान के कारोबारियों ने इस गिरावट का संज्ञान लिया और धान का सीजन आते ही गुजरे सालों में 3000 रुपए कुंतल के पार बिक चुके बासमती श्रेणी के धान को 1500 रुपए कुंतल के नीचे खरीदना शुरू कर दिया। अब कितनी भी गिरावट हो उन्हें कोई फर्क नहीं पडे़गा। किसान के पास से धान निकलने के एक पखवाडे़ बाद ही इसकी कीमतें बढ़ गई हैं।

काबू में नहीं आई आज तक प्याज

तीसरा उदाहरण देखिए। मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल के आते आते एक मात्र प्याज की कीमतें नियंत्रित नहीं कर पाई। कारोबारी सोच से साफ झलकता है कि देश में प्याज की किल्ललत पैदा करके कीमतें बढ़ाई जाती हैं। कीमतें बढ़ने के बाद महीनों लगता है निर्यात की प्रक्रिया पूरा करने में। इसके बाद कहीं कीमतें नियंत्रित होना शुरू होती हैं। इस दुरावस्था को नियंत्रित करने के लिए तंत्र चाहिए। ना जमीन की कमी है न प्याज लगाने वाले क्षेत्र की कमी है फिर बार बार आम आदमी को प्याज रुलाती है और सरकार भी महीनों की चीख चिल्लाहट के बाद इसे सुन पाती है।

नए कानूनों से विकसित होगा तंत्र

कोई ज्ञानी कह सकता है कि सरकार तीन नए कानूनों के माध्यम से इसी तंत्र को विकसित करना चाहती है लेकिन चंद राजैनैतिक दल भोले भाले किसानों को बरगलाकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। अरे भाई सरकार स्वाइल हेल्थ कार्ड बनवा चुकी है। उसे पता है कि किस इलाके में कौनसी फसल अच्छी हो सकती है। हमारी देश की मांग कितनी है और कितना निर्यात किया जा सकता है। इसी के अनुरूप फसलें लगाने के लिए किसानों को प्रेरित और प्रोत्साहित किया जाए। गुजरे सीजन में हरियाणा सरकार ने धान की खेती छोड़ने वाले किसानों को प्रोत्साहित किया। इसके परिणाम भी संतोशजनक हैं। छत्तीसगढ़ सरकार गोबर खरीदकर बर्मी कम्पोस्ट बनाने की दिशा में किसानों को प्रेरित कर रही है। इससे लोगों की माली हालत तो सुधरी ही है सरकार की छवि भी सुधरी है। इधर उत्तर प्रदेश सरकार ने गो आश्रय सदनों के अलावा गो शालाओं को करोड़ों करोड़ दिए हैं इसके बाद भी गाय भूखों मर रही हैं। दूसरे राज्यों की अच्छी योजनाओं को अपनाने में भी लोग तौहीन समझते हैं। उन्हें राज्य के लोगों के हितों से ज्यादा खुद के अहं की रखवाली करना ठीक लगता है।

कृषि और किसान को नहीं कोई गारंटी

कृषि क्षेत्र एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहां किसी तरह की गारंटी नहीं। सरकार ने प्रयास किए हैं कि किसानों के पाल्यों को भी गारंटी मिले लेकिन हर मामले में यह संभव नहीं हो पाता। मसलन खाद के साथ बीमा फ्री। इफको कंपनी के 25 बैग यूरिया लेने पर बैग खरीदने के एक माह बाद से किसान  दुर्घटना बीमा का हकदार हो जाता है। एक लाख रुपए तक के इस बीमे की जानकारी किसान को नहीं। वह खेत के लिए खाद लेने जाता है । जो मिला सो ठीक बीमा वाला खाद कहां खोजता फिरे। एक चपरासी के परिवार को उसके जीवित रहते और मर  जाने के बाद भी अनुकम्पा के आधार पर नौकरी, पेंशन आदि की गारंटी होती है लेकिन किसानी के मामले में ऐसा कुछ नहीं। किसान अब अपने बच्चों को किसान नहीं बनाना चाहता। चंद पढ़े लिखे लोग नौकरी छोड़कर बने किसान जैसी भ्रामक खबरें हम देखते हैं लेकिन हकीकत यही है कि हर किसान इनके जितना काबिल नहीं। कारोबारी सोच वाला नहीं कि अपने माल की उचित कीमत पा सके।

सड़कों पर किसान दिवस

आप सभी को किसान दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। कृषि क्षेत्र में किसानों के हक की लडाई के लिए चैधरी चरण सिंह को सदैय याद किया जाएगा। वह देश के प्रधानमंत्री तक बने। 23 दिसंबर को उनके जन्मदिन को किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है। आजादी के बाद यह पहला किसान दिवस होगा जिस पर किसान अपनी ही सरकार के निर्णय को पलटने के लिए सड़कों पर हैं। कई मौसम की मार से काल कबलिति हो चुके हैं। यह अलग बात है कि इनमें ज्यादातर हरियाणा और पंजाब के हैं। इन दोनों राज्यों को ही किसानी के मामले में अग्रणी माना जाता है। किसी भी गाड़ी में इंजन एक दो ही होते हैं। बाकी तो डब्बे ही होते हैं। दो राज्य रेलगाड़ी के डिब्बे का काम कर रहे हैं तो बुरा क्या है। बाकी राज्य भी डिब्बों की भूमिका में हैं। किसानों को सम्मान दिए बगैर इस देश को आगे नहीं बढाया जा सकता। देश की 80 प्रतिशत आबादी परोक्ष या अपरोक्ष रूप से खेती से ही जुड़ी है। चिंताजनक बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हठधर्मितावादी नीति ‘मैं जो करूंगा सही करूंगा’ के खिलाफ जारी किसानों की जंग देश को किस ओर ले जाएगी कहा नहीं जा सकता।
MSP को छोड़ बहुत कुछ है किसानों के लिए इस बजट में

MSP को छोड़ बहुत कुछ है किसानों के लिए इस बजट में

अब गंगा के पांच किलोमीटर इलाके में आर्गेनिक खेती को बढ़ावा 2025 तक देश के सभी गांवों को आप्टिकल फाइबर नेटवर्क से जोड़ा जाएगा ड्रोन के इस्तेमाल से खेती कराने की पेशकश, किसानों को फायदा होने का दावा कृषि विश्वविद्यालय खोलने के लिए राज्य सरकारों को प्रोत्साहन टिकैत ने कहा, MSP पर तो कुछ बोला ही नहीं

कृषि विशेषज्ञ मानते हैं, खेती के लिए बेहतरीन बजट

मंगलवार को 2022-23 के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने किसानों को लेकर कई बातें कीं। वैसे, माना यह जा रहा था कि 13 महीनों तक किसानों के विरोध के बाद सरकार दो कदम आगे बढ़ कर MSP पर कोई फैसला करेगी लेकिन इस पर कुछ हुआ नहीं। माना जा रहा था कि MSP बढ़ाई जाएगी और किसानों का दिल जीतने की कोशिश होगी। इसके पीछे बड़ा कारण यह माना जा रहा था कि पांच राज्यों में चुनाव हैं। सो, वित्त मंत्री किसानों के लिए MSP बढ़ाने की घोषणा करेंगी। लेकिन, ऐसा हो न सका। पूरे
बजट में MSP बढ़ाने को लेकर कोई घोषणा नहीं हुई। हां, यह जरूर बताया गया कि किसानों को MSP के मद में 2.37 लाख करोड़ रुपये देने का इरादा है।

किसानों के लिए बहुत कुछ है इस बजट में

लेकिन, इसका अर्थ यह भी नहीं हुआ कि किसानों के खाते में इस बार वित्तमंत्री ने कुछ भी नहीं दिया। किसानों की झोली दूसरे तरीकों से भरने की कोशिश की गई है। इसमें बड़ा तथ्य है 2.37 लाख करोड़ रुपये MSP  में खर्च करने की योजना। यह धनराशि सीधे किसानों के खाते में जाएगी, फसल के एवज में।

ड्रोन की मदद से खेती

kisan drones गौर से देखें तो खेती-बाड़ी करने वालों के लिए इस बजट में ऐसी बहुत सारी व्यवस्थाएं हैं जिन पर अमल करके वे काफी आगे बढ़ सकते हैं। जैसे, अब खेती में ड्रोन का इस्तेमाल होगा। वित्त मंत्री की यह मान्यता रही है कि अगर ड्रोन आधारित खेती हुई तो निश्चित तौर पर किसानों का वक्त बचेगा और खेती की जो एक्यूरेसी है, वह बढ़ेगी। मतलब यह हुआ कि अब ड्रोन की मदद से किसान कम समय में ही यह जान सकेंगे कि उनकी फसलों की स्थिति क्या है और यह भी कि फसलों को दवा कब देनी है, कितनी देनी है, उसकी एक्यूरेसी क्या होनी चाहिए, यह सब ड्रोन की मदद से बेहद आसानी के साथ किया जाएगा।

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कृषि विश्वविद्यालय खोलने को राज्यों को प्रोत्साहन

agricultural university इसके साथ ही वित्तमंत्री ने कृषि विश्वविद्यालयों की संख्या बढ़ाने पर भी जोर दिया है। पिछले बजट में भी उन्होंने कहा था कि जब तक किसानी को पढ़ाई से नहीं जोड़ा जाएगा, किसानों को शिक्षित नहीं किया जाएगा, तब तक किसानों की आय बढ़ नहीं सकती। पिछले साल का संकल्प इस साल पूरा करते हुए उन्होंने कई कृषि विश्वविद्यालय खोलने की बातें अपने बजट भाषण में कही हैं। माना जाता है कि जब ये कृषि विश्वविद्यालय खुल जाएंगे तो किसानों को जमीन की उर्वरकता, खेती के तौर-तरीके आदि को आधुनिक रूप में समझने में बेहद मदद मिलेगी। वित्त मंत्री का कृषि विश्वविद्यालयों पर जोर इस बात का भी संकेतक है कि वह किसानों को खेती-बाड़ी की पढ़ाई करती हुई देखना चाहती हैं। यह जरूरी भी है।

आर्गेनिक खेती (Organic Farming) पर जोर

organic farming इस बजट में एक बड़ी बात आर्गेनिक खेती को लेकर भी हुई है। वित्त मंत्री ने कहा है कि अभी पहले चरण में गंगा नदी के पांच किलोमीटर के इलाके में आर्गेनिक खेती की जाएगी। इससे आर्गेनिक खेती को तो बढ़ावा मिलेगा ही, जो पैदावार होगी, वह आम लोगों को भी फायदा पहुंचाएगी। आर्गेनिक खेती में किसी भी किस्म का रसायन इस्तेमाल नहीं होता। इस किस्म की खेती को जीरो बजट खेती भी कहते हैं जिसे कई प्रदेशों के राज्यपाल रहे आचार्य वेदव्रत ने जबरदस्त तरीके से आगे बढ़ाया। माना जा रहा है कि आर्गेनिक खेती का मूल कांसेप्ट उन्हीं का है जिससे प्रधानमंत्री भी सहमत थे। वही चीज आज के बजट में भी प्रभावी तरीके से सामने आई है।

बेतवा परियोजना

Betwa Project इस बजट में अनेक नदियों के किनारे विभिन्न किस्म की परियोजनाओं को भी शुरू करने की बात कही गई है। मध्य प्रदेश के बेतवा परियोजना के लिए 44650 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है। मकसद यह है कि देश भर के करीब 10 लाख हेक्टेयर भूमि को खेती योग्य जल उपलब्ध हो। वित्तमंत्री ने किसानों को और राहत देने की पेशकश की है। उन्होंने अपने बजट भाषण में कहा है कि सरकार चाहती है कि किसानों की अधिकांश फसल वह खुद खरीद ले ताकि किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत हो सके। उन्होंने उम्मीद जताई कि वर्ष 2022-23 तक केंद्र सरकार किसानों से 1000 एमएलटी धान की फसल खरीदे।

एग्रो फारेस्ट्री

agro factory इस बजट में एग्रो फारेस्ट्री को लेकर भी चर्चा हुई। वित्त मंत्री ने कहा कि आने वाला वक्त एग्रो फारेस्ट्री का है। जो भी किसान इस क्षेत्र में आना चाहें, सरकार उनकी मदद करेगी। पैसे देगी। उन्हें अन्य तरीकों से भी सहयोग करेगी। सब्सिडी देने की बात चल रही है।

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हर गांव में 2025 तक आप्टिकल फाइबर का जाल

village Technology कृषि से ही जुड़े ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए भी इस बजट में काफी बातें कही गई हैं। उनमें अहम है, देश भर के सभी गांवों में 2025 तक आप्टिकल फाइबर बिछा देना। वित्त मंत्री ने कहाः यह बेहद उम्दा योजना है। हम चाहते हैं कि देश के जितने भी गांव हैं, उन सभी गांवों में आप्टिकल फाइबर बिछाया जाए ताकि हर गांव इंटरनेट से कनेक्टेड हो। उनका कहना था कि अभी इंटरनेट की कमी के कारण देश के गांवों का एक बड़ा हिस्सा तकनीकी ज्ञान और कृषि संबंधी जानकारियों सहित अनेक फायदों और सुविधाओं से अनभिज्ञ रह जाता है। केंद्र सरकार चाहती है कि कृष् और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए इस क्षेत्र में काम हो और तेजी से हो। हमें पूरा विश्वास है कि देश के सभी गांव 2025 तक इंटरनेट की सुविधा से युक्त हो जाएंगे। एक बार जब वह इंटरनेट की सुविधा से जुड़ जाएंगे तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था का कायाकल्प होने में बहुत वक्त नहीं लगेगा।

केसीसी पर कोई चर्चा नहीं

वैसे, इस बजट से किसान यह उम्मीद लगा रहे थे कि केसीसी (किसान क्रेडिट कार्ड) की क्रेडिट क्षमता बढ़ा दी जाएगी लेकिन फिलहाल इस पर बजट में कोई चर्चा नहीं हुई। इससे किसानों में थोड़ी मायूसी देखी गई।

प्रतिक्रियाएं

सरकार जब तक MSP  गारंटी कानून नहीं बताती, किसानों को कोई फायदा नहीं होगा। इस बजट में MSP  गारंटी कानून की कोई बात ही नहीं कही गई। -राकेश टिकैत, किसान नेता यह बजट भविष्य का बजट है। यह एग्रीकल्चर सेक्टर को पूरी तरह बदल कर रख देगा। इस बजट की सबसे बड़ी खास बात यह है कि इसमें कृषि क्षेत्र में पढ़ाई को लेकर गंभीरता दिखाई गई है। यह अच्छी बात है। आप जब पढ़-लिख कर खेती करेंगे तो निश्चित तौर पर आप बढ़िया से खेती करेंगे, बढ़िया आमदनी होगी आपकी। आप सोचिए कि सरकार 2025 तक किसानों को हर गांव में आप्टिकल फाइबर तकनीक देने जा रही है। इसका सीधा असर किसानों, उन्के बच्चों या यूं कहें कि पूरे परिवार, पूरे इलाके में होगा। यह किसानों के लिए अब तक का बेहतरीन बजट है। -प्रोफेसर सीएन बी शर्मा, कृषि अर्थशास्त्री
MSP on Crop: एमएसपी एवं कृषि विषयों पर सुझाव देने वृहद कमेटी गठित, एक संगठन ने बनाई दूरी

MSP on Crop: एमएसपी एवं कृषि विषयों पर सुझाव देने वृहद कमेटी गठित, एक संगठन ने बनाई दूरी

कृषि मंत्रालय ने फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी)(MSP), प्राकृतिक खेती और फसल विविधीकरण एवं अन्य प्रमुख विषयों पर सुझाव देने के लिए 29 सदस्यीय एक वृहद कमेटी का गठन करने की जानकारी दी है।

इन्होंने किया किनारा :

न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी की मांग करने वाले किसान संगठनों ने समिति में शामिल होने के लिए नाम प्रस्तावित नहीं किया है। हालांकि इसके बाद भी सरकार ने घोषित की गई समिति में संयुक्त किसान मोर्चा (Samyukt Kisan Morcha) के तीन सदस्यों के लिए स्थान खाली रखा है।

सचिव होंगे अध्यक्ष

यदि भविष्य में मोर्चा की तरफ से नाम आता है तो इन्हें समिति में जोड़ा जाएगा। अधिसूचित समिति द्वारा दिए जाने वाले सुझावों के बारे में भी स्पष्ट किया गया है। इसके लिए तीन प्रमुख विषयों को स्पष्ट किया गया है। बताया गया है कि इस समिति की अध्यक्षता पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल करेंगे।

समिति में शामिल दिग्गज नाम :

वृहद कमेटी में नीति आयोग सदस्य रमेश चंद, कृषि अर्थशास्त्री डॉ. सीएससी शेखर, आईआईएम अहमदाबाद के डॉ. सुखपाल सिंह के अलावा उन्नत किसान भारत भूषण त्यागी के नाम शामिल हैं। किसान प्रतिनिधियों के रूप में तीन स्थान संयुक्त किसान मोर्चा के लिए खाली रखे गए हैं। अन्य किसान संगठनों में भारतीय कृषक समाज अध्यक्ष डॉ. कृष्णवीर चौधरी, गुणवंत पाटिल, प्रमोद कुमार चौधरी, गुणी प्रकाश व सैय्यद पाशा पटेल का नाम दर्ज है।

समिति में इनको जगह :

सहकारिता क्षेत्र से इफको चेयरमैन दिलीप संघानी, विनोद आनंद के अलावा सीएसीपी के सदस्य नवीन पी. सिंह को समिति में शामिल किया गया है। ये भी पढ़ें: अब सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों को मिलेगा सरकार की योजनाओं का लाभ कृषि विश्वविद्यालय व संस्थानों से डॉ. पी चंद्रशेखर, डॉ. जेपी शर्मा (जम्मू) और जबलपुर के डॉ. प्रदीप कुमार बिसेन का नाम शामिल किया गया है। केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों में कृषि सचिव, आइसीएआर के महानिदेशक, खाद्य सचिव, सहकारिता सचिव, वस्त्र सचिव और चार राज्य सरकारों कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, सिक्किम और ओडिशा के कृषि विभाग के अपर मुख्य सचिवों की समिति में भूमिका रहेगी।

प्रभावी एमएसपी व्यवस्था बनाने देगी सुझाव

संयुक्त सचिव (फसल) को इस समिति का सचिव नियुक्त किया गया है। अधिसूचना जारी करने के साथ ही इसमें समिति के गठन का उद्देश्य भी स्पष्ट किया गया है। समिति के गठन का उद्देश्य प्राथमिकता के तौर पर एमएसपी व्यवस्था को और अधिक प्रभावी बनाना है। अतः समिति भारत के किसानों के हित में लागू एमएसपी व्यवस्था को और अधिक प्रभावी एवं पारदर्शी बनाने पर अपना सुझाव देगी। ये भी पढ़ें: केन्द्र सरकार ने 14 फसलों की 17 किस्मों का समर्थन मूल्य बढ़ाया

बाजार अवसर का लाभ उठाने पर फोकस

कृषि उपज की विपणन व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए समिति देश और दुनिया में बदल रहे परिदृश्य के अनुसार लाभ के तरीकों पर ध्यान आकृष्ट कर अपनी राय रखेगी। इस समिति के गठन का मूल उद्देश्य किसानों को अधिक से अधिक लाभ दिलाना होगा।
कौशल विकास
समिति प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन प्रदान करने के तौर तरीकों पर भी अपनी सलाह प्रदान करेगी। इसके लिए किसान संगठनों को शामिल कर इसमें मूल्य श्रृंखला विकास और भविष्य की जरूरतों के लिए अनुसंधान के माध्यम से भारतीय प्राकृतिक खेती के विस्तार पर सुझाव दिए जाएंगे।

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 प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए अब यूपी में होगा बोर्ड का गठन अनुसंधान संस्थानों व कृषि विज्ञान केंद्रों को ज्ञान केंद्र बनाने और कृषि शैक्षणिक संस्थानों में प्राकृतिक खेती प्रणाली के पाठ्यक्रम और कौशल विकास की कार्यनीतियों पर भी सुझाव देना समिति की भूमिका का हिस्सा होगा।
फसल विविधीकरण
फसल विविधीकरण (क्राप डायवर्सिफिकेशन) के लिए भी समिति का उद्देश्य निर्धारित किया गया है। इसमें समिति, उत्पादक और उपभोक्ता राज्यों के मध्य जरूरतों के हिसाब से समन्वय के उपाय सुझाने का कार्य करेगी। ये भी पढ़ेंदेश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा, 30 फीसदी जमीन पर नेचुरल फार्मिंग की व्यवस्था कृषि विविधीकरण और नवीन फसलों के विक्रय के लिए लाभकारी मूल्य प्रदान करने के तरीकों पर भी समिति अपनी सलाह प्रस्तुत करेगी। यह समिति सूक्ष्म सिंचाई योजना की समीक्षा के साथ इसमें सुधार एवं किसान हितैषी सुधारों को भी प्रस्तुत करेगी।
कृषि-कृषक विकास के लिए वृहद किसान कमेटी गठित, एमएसपी पर किसान संगठन रुष्ट, नए आंदोलन की तैयारी

कृषि-कृषक विकास के लिए वृहद किसान कमेटी गठित, एमएसपी पर किसान संगठन रुष्ट, नए आंदोलन की तैयारी

विपक्ष ने लिखित में मांगा जवाब, किसान संगठन रुष्ट, नए आंदोलन की तैयारी

लीगल गारंटी ऑफ एमएसपी (Legal Guarantee of MSP) यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी संबंधी केंद्र सरकार के कदम पर विपक्ष गरम है, जबकि गारंटी की मांग करने वाले
किसान संगठनों ने नए आंदोलन की तैयारी की बात कही है।

कांग्रेस-बसपा ने पूछा सवाल -

संसद में जब कांग्रेस और बसपा सांसदों ने कमेटी के बारे में लिखित सवाल पूछा तो, जवाब में सरकार ने वृहद किसान कमेटी के गठन की मंशा के बारे में जानकारी दी। सरकार ने बताया कि, कमेटी का गठन एमएसपी व्यवस्था को और ज्यादा प्रभावी एवं पारदर्शी बनाने के लिए किया गया है। केंद्र के मुताबिक इसका गठन सुझाव देने किया गया है, न कि गारंटी प्रदान करने। ये भी पढ़े: MSP को छोड़ बहुत कुछ है किसानों के लिए इस बजट में

किसान संगठन रुष्ट

जिन किसानों के हित संवर्धन के लिए यह वृहद समिति बनाई गई है, उससे जुड़े कुछ किसान संगठन इस कमेटी से रुष्ट हैं। इनका भी आमना-सामना सरकार से बहस के मोर्चे पर हो सकता है। किसानों को फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने के लिए सरकार ने वृहद कमेटी का गठन किया है। एमएसपी के लिए इस समिति के गठन पर संयुक्त किसान मोर्चा और सरकार के बीच विरोधाभास कायम है।

विरोधाभास का कारण

आंदोलनकारी किसान संगठन कृषि उपज की एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी देने की मांग कर रहे हैं। इसके उलट केंद्र सरकार ने एमएसपी पर गारंटी देने से मना कर दिया है।

कमेटी गठन का कारण

कंपनी गठन का उद्देश्य बताते हुए केंद्र सरकार का कहना है कि, सरकार ने कमेटी का गठन एमएसपी व्यवस्था को और अधिक प्रभावी तथा पारदर्शी बनाने का सुझाव देने के लिए किया है। इसका उद्देश्य किसी तरह की गारंटी देना नहीं है। यह सिर्फ कृषि जगत सुधार संबंधी सुझाव, परामर्श के लिए गठित की गई है। कमेटी गठन के नोटिफिकेशन में गारंटी जैसी किसी बात का जिक्र नहीं है।

आंदोलन का रुख

इस बारे में सरकार द्वारा स्पष्ट किए जाने के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन की रणनीति बनानी शुरू कर दी है।

केंद्रीय कृषि मंत्री तोमर का जवाब

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने लोकसभा में इस बारे में स्थिति स्पष्ट की। उन्होंने कांग्रेस सांसद दीपक बैज और बीएसपी सांसद कुंवर दानिश अली के सवाल के जवाब में लोकसभा में उत्तर दिया। उन्होंने कहा कि, सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा को एमएसपी पर कानूनी गारंटी देने के लिए नहीं, बल्कि इसे और ज्यादा प्रभावी एवं पारदर्शी बनाने के लिए कमेटी के गठन का आश्वासन दिया था।

कमेटी का गठन

गौरतलब है 29 सदस्यीय कमेटी गठित की जा चुकी है। ऐसे में एमएसपी के विषय पर एक बार फिर सरकार और किसान संगठनों का आमना-सामना हो सकता है। ये भी पढ़े: MSP on Crop: एमएसपी एवं कृषि विषयों पर सुझाव देने वृहद कमेटी गठित, एक संगठन ने बनाई दूरी

सांसदों का सवाल

सांसदों ने पूछा था कि, क्या सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) को दिसंबर, 2021 के दौरान किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए कानूनी गारंटी प्रदान करने के लिए एक समिति गठित करने का आश्वासन दिया था। साथ ही पूछा था कि क्या सरकार का विचार किसानों के उत्थान के लिए एमएसपी हेतु कोई कानून बनाने का है। क्या सरकार की योजना एमएसपी व्यवस्था का विस्तार 22 अनिवार्य कृषि फसलों के अलावा अन्य फसलों तक भी करने का है?

एमएसपी गारंटी पर तर्क-वितर्क

कुछ कृषि अर्थशास्त्रियों की राय में एमएसपी पर गारंटी देने से देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। उनके तर्क का आधार है कि जो फसलें एमएसपी के दायरे में हैं, उनकी पूरी खरीद मौजूदा दर पर की जाए तो इस पर लगभग 17 लाख करोड़ रुपये का खर्च आएगा। तर्क दिया जाता है कि ऐसे में भारत की अर्थव्यवस्था, पाकिस्तान से भी ज्यादा खराब हो जाएगी। वहीं प्रदर्शनकारी किसान संगठनों के मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था के नुकसान की बात करने वाले इस बात को भूल जाते हैं कि देश में किसान 50 पैसे किलो प्याज, लहसुन और दो रुपये किलो आलू बेचने के लिए विवश हैं।

किसान संगठन की मांग

किसान संगठनों ने सरकार से ऐसी कानूनी व्यवस्था की मांग की है जिससे एमएसपी के दायरे में आने वाली फसलों की निजी तौर पर खरीद भी उससे कम स्तर पर नहीं हो, ताकि किसानों को नुकसान न हो। कृषक हित से जुड़े संगठनों के अनुसार एमएसपी की सार्थकता तभी है जब खरीद गारंटी कानून लागू हो। नहीं तो स्थिति जस की तस ही रहेगी।

आंदोलन की तैयारी

संयुक्त किसान मोर्चा अराजनैतिक, इस समिति के गठन से सहमत नहीं है। उसके अनुसार समिति का गठन सरकार की इच्छानुसार फैसला करने व एमएसपी पर खानापूर्ति करने के लिए किया गया है।

मोर्चा ने इस कमेटी में शामिल नहीं होने की घोषणा की है।

मोर्चा के मुताबिक स्वामीनाथन आयोग के फॉर्मूले के अनुसार एमएसपी की गारंटी का कानून बनवाने के लिए आंदोलन ही अब एकमात्र चारा बचा है। जिसके लिए तैयारी की जा रही है।