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यूटूब की मदद से बागवानी सिखा रही माधवी को मिल चुका है नेशनल लेवल का पुरस्कार

यूटूब की मदद से बागवानी सिखा रही माधवी को मिल चुका है नेशनल लेवल का पुरस्कार

अपनी उम्र के युवा दिनों से ही पादप विज्ञान(Plant Science) और वनस्पति विज्ञान(Botany) में रुचि रखने वाली एक ग्रहणी, आज यूट्यूब पर एक चैनल के माध्यम से अपनी जैसे ही दूसरी गृहणियों को भी, जैविक खेती की मदद से प्राकृतिक उर्वरकों का इस्तेमाल कर छत पर बागवानी यानी रूफटॉपबागवानी (Roof / Terrace gardening) के बारे में जानकारियां उपलब्ध करवा रही है। यूट्यूब पर माधवी (Mrs. Madhavi Guttikonda) के 'मैडगार्डनर' (MAD GARDENER) नाम के चैनल पर लगभग 5 लाख से अधिक सब्सक्राइबर (subscriber) हैं

Mrs. Madhavi Guttikonda - Youtube Chanel - MAD GARDENER

अपने घर की छत पर ही फूल और फलों से शुरुआत करने वाली माधवी पिछले 10 सालों से जैविक खेती की मदद से सब्जियां उगा रही है। इस प्रकार की जैविक सब्जी उत्पादन की शुरूआत माधवी ने 25 वर्ष की उम्र में अपनी शादी के बाद की थी।

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पुराने दिनों को याद कर माधवी बताती हैं कि शुरुआती दिनों में वह एक किराए के एक अपार्टमेंट में रहते थे और वहीं पर कुछ अलग-अलग प्रकार के अच्छे दिखने वाले फूलों के पौधों की बागवानी करना शुरू किया था, 

इस समय माधवी का फोकस बागवानी से पैसा कमाना नहीं था बल्कि केवल अपने शौक के खातिर ही फूलों के पौधे लगाए थे। माधवी बताती है कि आज उनका फोकस खाने वाली सब्जियों के उत्पादन की तरफ है और उनके घर में इस्तेमाल होने वाली एक सप्ताह की सब्जियों में से लगभग पांच दिन की सब्जी उनके खुद के उगाए हुए रूफटॉप गार्डन से ही इस्तेमाल की जाती है।

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अपने बेटे और बेटी के कहने पर 2018 में यूट्यूब चैनल की शुरुआत करने वाली माधवी को शुरुआत में कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। भारत के अधिकतर कृषि उत्पादन क्षेत्र में हिंदी भाषी लोग होने के बावजूद इन्हें हिंदी नही आने के कारण, तेलुगु भाषा में बागवानी का यह चैनल शुरू करना पड़ा। 

लेकिन पहले ही महीने में उन्हें काफी सफलता मिली और पिछले कुछ सालों से कमाए गए अनुभव को वह आज भी सोशल मीडिया और यूट्यूब की मदद से आसानी से लोगों तक पहुंचाने में सफल रही हैं। 

माधवी वर्तमान में कम समय में पक कर तैयार होने वाली मौसमी सब्जियों का उत्पादन करना पसंद करती है, जिनमें टमाटर, मिर्ची और लौकी को अच्छी सब्जी मानती है। इसके अलावा वह ड्रैगन फ्रूट, पपीता और नींबू तथा केले जैसे छोटे पौधे भी अपनी छत पर बने हुए 18 स्क्वायर फीट के गार्डन में लगाकर परीक्षण कर चुकी हैं।

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माधवी का मानना है कि खेती और किसानी में यदि बेहतरीन तरीके की वैज्ञानिक तकनीक और नए विचारों वाली विधियों का इस्तेमाल किया जाए तो खेती उतनी मुश्किल नहीं होती, जितनी दिखाई देती है। 

पिछले कुछ समय से लोगों से हुए जुड़ाव को लेकर माधवी कहती हैं कि वह जब भी किसी नई प्रकार की सब्जी के उत्पादन के बारे में सोचती है तो वीडियो बनाने से पहले वह किसी भी प्रकार का रिसर्च नहीं करती और अपने चैनल के माध्यम से लोगों से ही उस सब्जी के लिए नए इनोवेटिव आईडिया लेने की कोशिश करती हैं। 

यदि कोई अनुभवी किसान माधवी को अपनी राय देते हैं, तो वह स्वयं उनसे पूरी बात कर जानकारी प्राप्त करती हैं और फिर उसे अपने अगले वीडियो में किसान भाइयों तक शेयर करती हैं। 

कंपोस्ट खाद के अलग-अलग बॉक्स में अपनी सब्जियों उगाने को प्राथमिकता देने वाली माधवी बताती हैं कि यदि मिट्टी का पूरा ध्यान रखा जाए और बीज को पूरे उपचार के बाद इस्तेमाल किया जाए, तो पौधे की उत्पादकता बढ़ाने के अलावा उसमें लगने वाले हानिकारक कीटनाशक और दूसरे कई प्रकार के मक्खियों से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है।

माधवी बताती है कि यदि सही समय पर उनके पास अच्छा विकल्प होता तो वह अवश्य एक बड़ी किसान के रूप में काम करना पसंद करती, लेकिन शहर में रहने की वजह से और जमीन ना होने के कारण केवल रूफटॉप बागवानी की मदद से ही वह खेती में अपने पैशन को बरकरार बनाए रख सकती थी। 

माधवी ने बताया कि उनके यूट्यूब चैनल 'मैड गार्डनर' की मदद से उन्हें महीने में लगभग एक लाख रुपए तक का रेवेन्यू प्राप्त हो जाता है। पिछले कुछ महीनों से से माधवी अपने यूट्यूब से प्राप्त होने वाली आय का 50% हिस्सा शहर के ही गरीब बच्चों को खाना खिलाने के लिए करती है।

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कृषि से जुड़ी एक मैगजीन के द्वारा साल 2021 में माधवी को टेरेस बागबानी के लिए राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार दिया गया था, इन लम्हों को याद करते हुए माधवी कहती है कि भारत के उपराष्ट्रपति से मिलने वाले इस पुरुस्कार के बारे में उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था, 

लेकिन कृषि में अपने पैशन की वजह से आज उन्होंने यह मुकाम हासिल किया है। माधवी यहां तक कहती है कि कई बार तो वह हैरान हो जाती है जब 10 साल से छोटे बच्चे भी उनके वीडियो देख, कृषि में अपना पैशन विकसित कर पा रहे हैं।

भविष्य की नीतियों के बारे में जब माधवी से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि वह जल्द ही आसपास के क्षेत्र में ही खुद की जमीन खरीद कर स्वयं के इस्तेमाल में आने वाले खाने का उत्पादन करना चाहती है और बड़ी संस्थाओं के साथ मिलकर कृषि में इस्तेमाल होने वाले नई तकनीकों को किसान भाइयों तक पहुंचाने के लिए भी प्रयासरत है।

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माधवी अपने चैनल के माध्यम से लोगों में जागरूकता फैलाकर उनकी आय बढ़ाने के अलावा कृषि क्षेत्र में नए इनोवेटिव विचार के प्रसार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, भले ही बड़े किसानों की तरह माधवी लाखों-करोड़ों रुपए का मुनाफा कर दूसरे लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत ना बन पाए, लेकिन अपने अनुभव का इस्तेमाल कर कई किसानों को इस लायक बनाने में सफल रही है। 

आशा करते हैं कि हमारे किसान भाई भी उनके इस चैनल की मदद से छत पर की जाने वाली बागबानी के बारे में कुछ सीख कर अपने घर में इस्तेमाल होने वाली सब्जियों की जैविक खेती जरूर कर पाएंगे और भविष्य में बड़ी संस्थाओं से जुड़कर नई तकनीकों का इस्तेमाल कर कृषि व्यवसाय में भी मुनाफा कमा पाएंगे।

किसान संजय सिंह आम की बागवानी करके वार्षिक 20 लाख की आय कर रहे हैं  

किसान संजय सिंह आम की बागवानी करके वार्षिक 20 लाख की आय कर रहे हैं  

बिहार के इस किसान ने आम की बागवानी आरंभ कर अपनी तकदीर बदल दी है। आज वह तकरीबन 20 लाख रुपये तक वार्षिक आमदनी कर रहे हैं। बिहार के सहरसा के जनपद के निवासी किसान संजय सिंह ने पारंपरिक खेती को छोड़ आम की बागवानी चालू की। आज वह प्रति वर्ष लगभग 20 लाख से अधिक आम का टर्नओवर कर रहे हैं। इसके पहले संजय सब्जियों की खेती किया करते थे। परंतु, उनके एक दोस्त की सलाह पर उन्होंने आम की बागवानी के विषय में सोचा और वह आज अपने क्षेत्र में लोगों के लिए एक मिशाल बन गए हैं।  

किसान संजय सिंह ने 20 बीघे में बागवानी शुरू की 

संजय जी ने अपनी विरासत की भूमि पर आम के पौधों को लगाने के विषय में विचार किया। उन्होंने जनपद के कृषि विभाग से आम की नवीन प्रजातियों की खरीदारी की एवं जैविक तरीके से इसकी बुआई की। संजय का कहना है, कि शुरु में उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। परंतु, परिवार की सहायता से उन्हें काफी हौसला मिला। वहीं, आज उनकी सफलता की कहानी सबको पता है। वह विगत 8 वर्षों से आम की बागवानी कर रहे हैं। पारंपरिक खेती के मुकाबले में बागवानी फसलों का उत्पादन करना काफी फायदेमंद होता है।  

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संजय सिंह की आर्थिक स्थिति में भी आया सुधार 

संजय सिंह का कहना है, कि आम की खेती से बेहतरीन आमदनी होने लगी। साथ ही, उनके घर की स्थिति भी अच्छी हो गई। पहले खेती से उनको कोई फायदा नहीं होता था। परंतु, अब वह काफी बेहतरीन आमदनी कर अपने परिवार की देख भाल कर रहे हैं। 

 

संजय सिंह प्रतिवर्ष लाखों की आय करते हैं 

किसान संजय सिंह का कहना है, कि उन्होंने शुरुआत में कुछ ही पेड़ों से आम का उत्पादन कर बेचना शुरु किया था। परंतु, मांग बढ़ने के उपरांत उन्होंने इसकी खेती बड़े पैमाने पर चालू की और इससे उनको आमदनी काफी ज्यादा होने लगी। वह इन आमों की बिक्री से प्रति वर्ष 20 लाख रुपये तक की आमदनी कर लेते हैं। संजय जी ने अपने खेतो में कुल 300 से ज्यादा आम के पेड़ लगा रखे हैं। आपको बतादें, एक आम के पौधे की कीमत 400 रुपये के आसपास थी। यह 5 से 6 वर्ष तक फल देने योग्य होता है।

किसान भाई किचन गार्डनिंग के माध्यम से सब्जियां उगाकर काफी खर्च से बच सकते हैं

किसान भाई किचन गार्डनिंग के माध्यम से सब्जियां उगाकर काफी खर्च से बच सकते हैं

किचन गार्डनिंग के माध्यम से आप भी घर में ही सब्जियों को उगा सकते हैं। यह सब्जी शुद्ध होंगी साथ ही बाजार से इन्हें खरीदने का झंझट भी समाप्त हो जाएगा। महंगाई के दौर में आप घर में ही सब्जियों की पैदावार कर सकते हैं, जिससे आप काफी रुपये बचा सकते हैं। ये सब्जियां घर में थोड़ी जगह में ही उग जाती हैं, जिसमें आपकी ज्यादा लागत भी नहीं आती है। विशेषज्ञों की मानें तो बालकनी में सब्जियां पैदा करने के दौरान आपको कुछ विशेष बातों का ख्याल रखना होता है, जिससे कि आप कम लागत में शानदार पैदावार अर्जित कर सकते हैं। आपको आसमान में पहुंचे टमाटर के भाव तो याद ही होंगे, इसी प्रकार की परेशानियों से संरक्षण के लिए आप किचन गार्डनिंग की मदद ले सकते हैं। इसमें आप टमाटर, मिर्च, भिंडी अथवा धनिया के अतिरिक्त बहुत सारी और सब्जियां भी उगा सकते हैं। इसके लिए मिट्टी से भरे कुछ गमले एवं धूप जरूरी है।

किसान भाई बड़े गमलों के अंदर ही रोपाई करें

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि अधिकांश सभी के घर की बालकनी में धूप आती है। ऐसी स्थिति में बालकनी में सब्जियां उगाना एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है। इससे आपके घर में सदैव हरियाली बनी रहेगी। पैसे बचेंगे एवं शुद्ध सब्जियां आपको अपने घर में मिल जाएंगी। किचन गार्डनिंग के दौरान इस बात का विशेष ख्याल रखें कि सब्जियों के पौधों की रोपाई बड़े गमलों में की जाए, जिससे जड़ों को फैलने का पर्याप्त अवसर मिलता है।

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किसान भाई मौसम का विशेष ख्याल रखें

बतादें कि इसके अतिरिक्त बड़े गमले में पौधे मजबूत बनेंगे और पौधों में फल भी अच्छी मात्रा में आएंगे। विशेषज्ञ कहते हैं, कि किचन गार्डनिंग में भी मौसम का ध्यान रखना काफी आवश्यक है। बिना मौसम के लगाई गई सब्जियों से फल हांसिल कर पाना काफी मुश्किल होता है। बालकनी में खेती कर आप महीने के हजारों रुपये आसानी से बचा सकते हैं। आप स्वयं ही घर में टमाटर, भिन्डी, धनिया और मिर्च उगाकर उपयोग में ले सकते हैं। किसानों को रसोई बागवानी के विषय में जानकारी होनी काफी आवश्यक है। क्योंकि किचन गार्डनिंग के दौरान थोड़ा बहुत मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं। किसानों को बेहद आरंभिक तोर पर किचन गार्डनिंग का उपयोग करना चाहिए। मौसम की वजह से किसानों को टमाटर की काफी अधिक कीमत चुकानी पड़ी।
इन सब्जियों को आप अपने घर पर ही उगा सकते हैं

इन सब्जियों को आप अपने घर पर ही उगा सकते हैं

आज हम आपको घर में सब्जियां उगाने के कुछ अहम तरीकों के बारे में जानकारी देंगे। यहां आज हम आपको सबसे आसान, सस्ता एवं टिकाऊ तरीका बताने वाले हैं। बतादें, कि इन पांच सब्जियों का उत्पादन आप घर में भी बड़े आराम से कर सकते हैं।  भारत के प्रत्येक घर में सब्जियों का प्रतिदिन उपयोग होता है। महीने के खर्च के मुताबिक, देखें तो केवल सब्जियों के लिए आपको प्रति माह हजारों रुपये खर्च करने होते हैं। ऐसी स्थिति में यदि हम कहें कि आप अपने घर में ही कुछ सब्जियां बड़ी आसानी से उगा सकते हैं तो आप क्या कहेंगे। आइए आज हम आपको पांच ऐसी सब्जियों के विषय में बताऐंगे, जिन्हें आप अपने घर में किसी पुराने डिब्बे अथवा बाल्टी के अंदर भी उगा सकते हैं।

आप टमाटर और बैंगन भी घर में उगा सकते हैं 

सर्दियों का मौसम है, ऐसे में टमाटर का उपयोग भारतीय घरों में काफी होता है। सब्जी बनानी हो अथवा फिर चटनी खानी हो टमाटर तो चाहिए ही। यदि आप अपने घर के अंदर टमाटर उगाना चाहते हैं, तो इसके लिए पहले एक पुरानी खाली बाल्टी अथवा टब लीजिए। उसके बाद उसमें मिट्टी एवं कोकोपीट आधा भर दीजिए। वर्तमान में टमाटर के अथवा बैंगन के पौधे लगा दीजिए। सुबह-शाम इसमें थोड़ा-थोड़ा पानी डालें। आप देखेंगे कि कुछ ही समय के अंदर ये पौधे सब्जी देने लायक हो जाएंगे।

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धनिया और लहसुन सहजता से घर में ही उगा सकते हैं

सर्दियों में सर्वाधिक मांग धनिया की पत्ती एवं लहसुन की पत्ती की होती है। बाजार में ये काफी ज्यादा कीमतों पर बिकती हैं। इसके साथ ही बहुत बार ये ताजा भी नहीं मिलते। हालांकि, आप इन दोनों को बड़ी सहजता से घर में उगा सकते हैं। इन्हें उगाने के लिए आपको बस कोई टब अथवा पुरानी बाल्टी लेनी है, उसके बाद उसमें कोकोपीट एवं मिट्टी को मिलाकर आधा भर देना है। इसके उपरांत यदि आप धनिया उगाना चाहते हैं, तो उसके बीज इस के अंदर लगा सकते हैं। यदि आप लहसुन उगाना चाहते हैं, तो पहले लहसुन की कलियों को भिन्न-भिन्न कर लीजिए, फिर उनको सिरे की तरफ से मिट्टी में घुसा दीजिए। सुबह शाम इसमें थोड़ा-थोड़ा पानी डालिए। आप देखेंगे कि कुछ ही दिनों में आपकी बाल्टी अथवा टब हरी-हरी पत्तियों से भर जाएगी।

शिमला मिर्च भी आप घर पर ही उगा सकते हैं

शिमला मिर्च स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होती है। सर्दियों में इसकी खूब मांग होती है। अब ऐसे में यदि आप अपने घर में शिमला मिर्च उगाना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको ऊपर दी गई प्रक्रिया को दोहराना पड़ेगा। फिर उस बाल्टी अथवा टब में शिमला मिर्च के एक या दो पौधे लगा देने होंगे। इन पौधों को लगाने के कुछ दिनों पश्चात इनमें शिमला मिर्च लगने शुरू हो जाएंगे। 
शहर में रहने वाले लोगों के लिए आयी, बिहार सरकार की ‘छत पर बाग़बानी योजना’, आप भी उठा सकते हैं फ़ायदा

शहर में रहने वाले लोगों के लिए आयी, बिहार सरकार की ‘छत पर बाग़बानी योजना’, आप भी उठा सकते हैं फ़ायदा

बढ़ते शहरीकरण और जमीन की उर्वरा क्षमता में कमी आने की वजह से पिछले 4 से 5 वर्षों में रूफटॉप गार्डन (Roof / Terrace gardening) यानी छत पर बागवानी विधि का इस्तेमाल काफी तेजी से बढ़ा है। इसी बढ़ते हुए प्रभाव को मध्यनजर रखते हुए बिहार सरकार के बागवानी विभाग ने भी बिहार के शहरों में रहने वाले लोगों के लिए 'छत पर बागवानी योजना' नाम से नई परियोजना शुरू कर शहरों में बागबानी की उपज को बढ़ाने के लिए कमर कस ली है।

क्या है रूफटॉप गार्डन ?

रूफटॉप गार्डन मुख्यतः बड़े अपार्टमेंट और शहरों में बने घरों की छत पर बने हुए गार्डन होते हैं, जो सामन्यतः डेकोरेशन में इस्तेमाल होने के अलावा घर में रहने वाले स्थानीय लोगों के लिए भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करता है। कई प्रकार के हाइड्रोलॉजिकल फायदे (Hydrological benefit) होने के अलावा, रूफटॉप गार्डन की मदद से घर के तापमान को भी नियंत्रित किया जा सकता है तथा छत पर होने वाली बारिश के पानी (Rain Water Harvesting) का भी बेहतर प्रबंधन किया जा सकता है।

क्या है बिहार सरकार की 'छत पर बागवानी योजना' का मुख्य उद्देश्य ?

कृषि मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले बागवानी विभाग की वेबसाइट के अनुसार इस योजना को मुख्यतः शहरी क्षेत्रों में बने घरों की छत पर फूल और फल तथा सब्जियां उगा कर दैनिक जीवन में इस्तेमाल करने योग्य बनाना है। महाराष्ट्र, गुजरात तथा कर्नाटक जैसे राज्यों में छत पर बागवानी से जुड़ी योजनाओं की सफलता के बाद बिहार सरकार का यह प्रयास 'आत्मनिर्भर भारत' की राह पर एक प्रबल कदम है। वर्तमान में इस योजना में बिहार के 4 जिले पटना, गया तथा मुजफ्फरपुर और भागलपुर को शामिल किया गया है। पटना के पटना सदर और फुलवारी तथा गया के बोधगया तथा मानपुर प्रखंडो में इस योजना को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में चलाया जाएगा। पायलट प्रोजेक्ट की सफलता के बाद इसे मुजफ्फरपुर के मुशहरी और भागलपुर के जगदीशपुर तथा नाथनगर जैसे प्रखंडों के निवासियों के लिए भी उपलब्ध करवाया जाएगा।


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क्या है योजना की पात्रता ?

बिहार सरकार की इस योजना का फायदा उठाने के लिए केवल वही लोग पात्र है, जिनके पास शहरी इलाकों में अपना खुद का घर हो या फिर वो किसी प्राइवेट अपार्टमेंट में किराए के फ्लैट में रहते हैं या उनका खुद का फ्लैट हो। यदि किसी व्यक्ति के पास स्वयं का मकान है तो छत पर 300 स्क्वायर फीट की खाली जगह होनी चाहिए, साथ ही यह क्षेत्र किसी कानूनी लड़ाई में सम्मिलित नहीं होना चाहिए। यदि आवेदक अपार्टमेंट के निवासी है तो उन्हें अपार्टमेंट की पंजीकृत सोसाइटी से अनापत्ति प्रमाण पत्र (No objection Certificate) लेने की आवश्यकता होगी। यदि आपके पास अपना खुद का मकान है, तो एक इकाई में अधिकतम 75% तक क्षेत्रफल में ही योजना का लाभ दिया जाएगा। पिछड़ी जातियों का खासतौर पर ध्यान रखते हुए किसी भी जिले में योजना के लिए प्राप्त सभी आवेदनों में से 16% आवेदन अनुसूचित जाति और 1% अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए आरक्षित किए जाएंगे। इसके अलावा बिहार सरकार के कृषि और बागवानी में महिलाओं की भूमिका बढ़ाने के फ्लैगशिप प्रोजेक्ट के तहत, कुल भागीदारी में से 30% आवेदन महिलाओं के लिए आरक्षित किए जाएंगे।


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योजना का लाभ उठाने की संपूर्ण प्रक्रिया :

ऊपर बताए गए चार जिलों में रहने वाले आवेदकों को सबसे पहले उद्यान निदेशालय की वेबसाइट पर जाकर ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया पूरी करनी होगी। नीचे दिए गये लिंक की मदद से आप सीधे ही आवेदन कर सकते हैं :- यहाँ क्लिक कर सीधे कर सकते हैं आवेदन योजना का लाभ लेने के इच्छुक लोगों को ध्यान रखना होगा कि संपूर्ण प्रक्रिया ऑनलाइन ही संपादित होगी और इस प्रक्रिया में आवेदक को नाम और जाति संबंधित सभी जानकारियां देने के अलावा, योजना के कार्यान्वयन करने वाली कंपनी की जानकारी भी उपलब्ध करवानी होगी। यदि कोई भी व्यक्ति इस योजना के लिए अलग से पैसे की मांग करता है तो उसकी शिकायत वेबसाइट पर ही उपलब्ध शिकायत निवारण पोर्टल (Grievance redressal portal) पर कर सकते हैं। एक बार आवेदन जमा हो जाने के बाद आपको एक रसीद दी जाएगी, इस प्राप्त रसीद में एक बैंक खाता संख्या और अन्य प्रकार के विवरण दिए जाएंगे। योजना का लाभ प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्तियों को दिए गए बैंक खाते में 25000 रुपए की एकमुश्त राशि जमा करवानी होगी। इस बात का ध्यान रखें कि आगे की संपूर्ण प्रक्रिया इस राशि के जमा होने के बाद ही हो पाएगी। यदि कोई व्यक्ति अपने घर की छत पर इस योजना का फायदा उठाना चाहता है तो वह अधिकतम 2 इकाइयों के लिए आवेदन कर सकता है और एक अपार्टमेंट या एक सोसायटी में रहने वाले लोग अधिकतम 5 इकाइयों का आवेदन कर सकते हैं।


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एक इकाई योजना में निम्न उपकरणों और सुविधाओं को शामिल किया गया है :

  • जैविक बाग (organic garden) बनाने के लिए 4 किट
  • ट्रे (Tray) के साथ आने वाली प्लास्टिक की पीएसटी
  • 10 फ्रूट बैग (Fruit Bag)
  • 10 फ्रूट प्लांट्स (Fruit Plants)
  • सैपलिंग (sapling) में इस्तेमाल आने वाली 3 ट्रे
  • हाथ से इस्तेमाल किया जाने वाला एक स्प्रे
  • खुदाई और निराई गुड़ाई करने के लिए 2 खुरपी
इसके अलावा एक बार बागान बनने के बाद कृषि से जुड़े विशेषज्ञों की जानकारियां और ट्रेनिंग जैसी खास सुविधाएं भी उपलब्ध करवाई जाएगी। आशा करते हैं कि Merikheti.com के द्वारा उपलब्ध करवाई गई यह जानकारी, 'छत पर बागवानी' करने के विषय में इच्छुक व्यक्तियों को पसंद आई होगी और खास तौर पर बिहार के निवासी, सरकार की इस स्कीम का फायदा उठाकर आने वाले समय में अच्छा मुनाफा कमाने के साथ ही जैविक सब्जियों का इस्तेमाल भी कर पाएंगे।
इस फूल की खेती कर किसान हो सकते हैं करोड़पति, इस रोग से लड़ने में भी सहायक

इस फूल की खेती कर किसान हो सकते हैं करोड़पति, इस रोग से लड़ने में भी सहायक

कैमोमाइल फूल में निकोटीन नहीं होता है, यह पेट से जुड़े रोगों से लड़ने में काफी सहायक है। इसके अतिरिक्त इन फूलों का प्रयोग सौंदर्य उत्पाद निर्माण हेतु किया जाता है। कैमोमाइल फूल की खेती किसानों के अच्छे दिन ला सकती है। देश में करीब समस्त प्रदेश फूलों की खेती अच्छे खासे अनुपात में करते हैं क्योंकि फूलों के उत्पादन से किसानों को बेहतर लाभ अर्जित होता है। भारत के फूलों की मांग देश-विदेशों में भी काफी होती है। राज्य सरकारें भी फूलों की खेती को प्रोत्साहित करने हेतु विभिन्न प्रकार का अनुदान प्रदान कर रही हैं। अब हम बात करेंगे एक ऐसे फूल के बारे में जिसकी खेती किसानों को मालामाल कर सकती है। इस फूल की विशेषता यह है, कि इस फूल की खेती करने में बेहद कम लागत लगती है, जबकि आमंदनी अच्छी खासी होती है। इसी कारण से इस फूल की खेती को अद्भुत व जादुई व्यापार भी बोलते हैं। मतलब इसमें हानि होने का जोखिम काफी कम होता है।


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बतादें कि जिस फूल के बारे में हम बता रहे हैं, उस फूल का नाम है कैमोमाइल फूल इसका उत्पादन कर बेचने से किसान काफी लाभ उठा सकते हैं। उत्तर प्रदेश राज्य के जनपद हमीरपुर में व बुंदेलखंड में इस फूल का उत्पादन अच्छे खासे पैमाने पर हो रहा है, निश्चित रूप से वहां के कृषकों की आय में भी वृद्धि हुई है। फायदा देख अन्य भी बहुत सारे किसान कैमोमाइल फूल की खेती करना शुरू कर रहे हैं। इस जादुई फूल का उपयोग होम्योपैथिक व आयुर्वेदिक औषधियों के निर्माण में किया जाता है। औषधियाँ बनाने के लिए इन फूलों को दवा बनाने वाली निजी कंपनियों द्वारा खरीदा जाता है।

कैमोमाइल फूल किस रोग में काम आता है

न्यूज वेबसाइट मनी कंट्रोल के अनुसार, कैमोमाइल फूल में निकोटीन नहीं होता है। यह पेट से संबंधित रोगों के लिए बहुत लाभकारी है। इसके अतिरिक्त भी इन फूलों का उपयोग सौंदर्य उत्पादों के निर्माण में होता है। स्थानीय किसानों ने बताया है, कि इस फूल के उत्पादन करने के आरंभ से किसानों की किस्मत बदल गई है। कम लागत में अधिक मुनाफा अर्जित हो रहा है, किसानों के मुताबिक आयुर्वेद कंपनी में जादुई फूलों की मांग बहुत ज्यादा बढ़ गयी है। अब फायदा देखते हुए बहुत से किसानों ने इस फूल की खेती शुरू कर दी है।

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जल्द ही करोड़पति बन सकते हैं

कैमोमाइल फूल की विशेषता यह है, कि इसे बंजर भूमि पर भी उत्पादित किया जा सकता है। इसकी वजह इस फूल के उत्पादन में जल खपत का कम होना है। साथ ही, एक एकड़ में इसकी खेती कर आप ५ क्विंटल कैमोमाइल फूल अर्जित कर सकते हैं, वहीं एक हेक्टेयर में करीब १२ क्विंटल जादुई फूल पैदा होते हैं। किसानों के अनुसार, इस फूल की खेती में आने वाले खर्च से ५-६ गुना अधिक आय प्राप्त हो सकती है। इसकी फसल तैयार होने में ६ महीने का समय लगता है। यानी किसान ६ माह में लाखों की आमंदनी कर सकते हैं। यदि आप इस कैरोमाइल फूल का उत्पादन आरंभ करते हैं, तो शीघ्र ही करोड़पति भी बन सकते हैं।
गमले में कैसे उगाएं गुलाब के खूबसूरत फूल

गमले में कैसे उगाएं गुलाब के खूबसूरत फूल

गुलाब के फूल की सुंदरता और उसकी बेहद मोहक खुशबू के बारे में कौन नहीं जानता है। सदियों से गुलाब का फूल सुंदरता और प्रेम का प्रतीक माना गया है और बहुत से लोग चाहते हैं, कि वह अपने घर में यह गुलाब का पौधा लगा सकें। गुलाब का पौधा लगाते समय एक समस्या यह हो जाती है, कि यह पौधा बाकी फूलों के पौधे के मुकाबले जरा ज्यादा जगह लेता है। लेकिन अगर आपके घर में जगह की कमी है तो भी आपको निराश होने की जरूरत नहीं है। क्योंकि हम किसी कंटेनर या गमले में गुलाब की किसी भी प्रजाति को विकसित कर सकते हैं। ऐसे में अगर आपके घर में छोटी सी बालकनी है या फिर गार्डनिंग (Gardening) के लिए आपने बहुत कम जगह रखी है। तब भी आप गुलाब की अलग-अलग किस्में अपने घर में उगा सकते हैं।

कभी भी गुलाब का पौधा लगाने से पहले आपको नीचे दी गई चीजों के बारे में जानकारी होना बेहद जरूरी है;

  • गुलाब के लिए गमले का चुनाव
  • गमले के लिए मिट्टी
  • गुलाब के लिए सर्वश्रेष्ठ खाद
  • गमले के लिए गुलाब प्रजातियों
  • गुलाब में होने वाले रोग
  • देखभाल

किसी भी बर्तन में कैसे लगाएं गुलाब का पौधा

1. कंटेनर या गमले का चुनाव

सबसे पहले आपको गुलाब का पौधा लगाते समय किसी भी कंटेनर या गमले के चुनाव करने की जरूरत है। आप गुलाब की अलग-अलग किस्मों के हिसाब से कंटेनर का चुनाव कर सकते हैं। अगर आप छोटे गुलाब लगाना चाहते हैं, तो आप लगभग 12 इंच के गमले में यह कैसे लगा सकते हैं। जबकि फ्लोरिबुंडा और हाइब्रिड के लिए १५ इंच (38 सेमी) की आवश्यकता होती है। बड़े संकर और वृक्ष गुलाब 18 इंच (45.7 सेमी) या इससे अधिक बड़े मापने वाले कंटेनरों में होना चाहिए। एक बात को ध्यान में रखना चाहिए कि कंटेनर में अच्छा जल निकासी होनी चाहिए।
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अगर आप चाहते हैं, कि एक बार गुलाब का पौधा उग जाने के बाद आप कंटेनर को एक जगह से दूसरी जगह पर ले जाना चाहते हैं। हमेशा ही हल्के कंटेनर या गमले का इस्तेमाल करें। आप चाहे तो प्लास्टिक के बने हुए गमले का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।

2. गुलाब के पौधे के लिए मिट्टी

गुलाब के पौधे के लिए सही तरह की मिट्टी का इस्तेमाल किया जाना बेहद जरूरी है। आप चार चीजों को मिलाकर इसके लिए उचित मिट्टी बना सकते हैं। वह है, साधारण मिट्टी 50%, गोबर खनिज 30%, नीम केक पाउडर 10% और रेत 10% इस संयोजन की मात्रा अगर थोड़ी से कम या ज्यादा रहती है। आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है, लेकिन फिर भी कोशिश करें कि आप इस मात्रा को इसी प्रतिशत में रखें। ऐसा करने से आप के पौधे को अच्छी तरह से बढ़ने में बेहद मदद मिलेगी।

3. गुलाब के लिए सर्वश्रेष्ठ खाद

गुलाब पौधे के लिए सबसे अच्छा खाद जैव खाद जैसे गोबर खनिज, वर्मीकंपोस्ट, कंपोस्ट है। गुलाब का पौधा एक ऐसा पौधा है, जिसे बहुत ज्यादा मात्रा में पोषक तत्वों की जरूरत होती है। इसके अलावा अगर आप बहुत ज्यादा केमिकल गया फिर रासायनिक उर्वरक का इस्तेमाल करते हैं, तो आप का पौधा खराब भी हो सकता है। अपने पौधे में आप गोबर खनिज आदि जैसी खादे हर 15 दिन के अंतराल पर डाल सकते हैं।

4. गमले के लिए गुलाब की प्रजातियों

हालांकि गुलाब प्लांट में हजारों प्रजातियां हैं, जैसे भारतीय दैनिक, इंग्लिश रोज, डच रोज, ऑस्ट्रेलियाई रोज हैं। लेकिन गमले के लिए आप चीनी गुलाब के पौधे बहुत आसानी से विकसित कर सकते हैं।

5. गुलाब में लगने वाले रोग

गुलाब के पौधे में बहुत सी बीमारियां लग सकती हैं, जिसमें से ब्लैक स्पॉट और पाउडर मिल्डेव सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली बीमारियां है। गुलाब के पौधे पर बहुत ज्यादा फंगल से जुड़ी हुई बीमारियां होने का खतरा भी रहता है। इसलिए समय-समय पर इस पर कीटनाशकों का इस्तेमाल करते रहना चाहिए।
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6. गुलाब पौधे लगाने के लिए कुछ देखभाल युक्तियाँ

अगर आप घर में गमले में गुलाब का पौधा लगा रहे हैं, तो आपको कुछ बातों पर ध्यान देने की जरूरत है। जो इस प्रकार से हैं;
  • हमेशा गुलाब के पौधे का कमला ऐसी जगह पर रखें जहां पर सूरज की रोशनी अच्छी तरह से आती है। इस पौधे को दिन में लगभग 6 से 7 घंटे सूरज की रोशनी की जरूरत पड़ती है।
  • अगर आप बेहद गर्मी के मौसम में इस पौधे को लगाना चाहते हैं, तो दिन में लगभग 2 बार गमले में पानी जरूर डालें।
  • हमेशा पौधे में पानी डालने से पहले मिट्टी की नमी की जांच जरूर कर लें। अगर हाथ लगाने से मिट्टी एकदम सुखी लग रही है, तो पौधे को तुरंत पानी की जरूरत है और आप उसमें पानी डाल दें।
  • जब भी आप गुलाब के पौधे में पानी डाल रहे हैं, तो इस बात का बेहद ख्याल रखें कि आप बार-बार पौधे के पत्तों को गिला ना करें ऐसा करने से पौधे के पत्तों में अलग-अलग तरह के रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है।
  • अगर आप बार-बार पानी नहीं डाल पा रहे हैं, तो एक बार पानी डालने के बाद आप पौधे की सतह पर गीली घास बिछा दें। ऐसा करने से पौधे में से बार-बार पानी का वाष्पीकरण नहीं होगा और नमी बरकरार रहेगी। अगर बारिश का मौसम है तो आप यह घास हटा दें वरना यह पौधे की जड़ों को खराब कर सकती हैं।
  • हम सभी यह जानते हैं, कि गुलाब के पौधे में कांटे होते हैं, जिससे आपके हाथों को हानि पहुंच सकती हैं। इसलिए किसी भी तरह का रखरखाव करते समय दस्ताने पहनना ना भूलें।
  • एक बार जब आप के पौधे पर फूलों के मौसम में फूल आने शुरू हो जाए तो गुलाब की छटाई जरूर करें। ऐसा करने से आप का पौधा एक आकर्षक आकार में बना रहता है और इससे बाद में और ज्यादा अच्छे फूल आने की संभावना भी बढ़ जाती है।
  • गुलाब के पौधे के आस पास प्रत्येक वसंत ऋतु में एप्सॉन नमक (Epson Salt) का एक बड़ा चमचा डाले। पौधे के आधार के आसपास नमक छिड़कें यह पत्ते के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए मैग्नीशियम की एक अतिरिक्त खुराक प्रदान करता है।
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इस तरह से इन सभी छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखते हुए आप अपने घर के छोटे या फिर बड़े बगीचे में गुलाब के खूबसूरत फूल उगा सकते हैं।
भारत में ऐसे करें डेज़ी फूल की खेती

भारत में ऐसे करें डेज़ी फूल की खेती

डेजी एक सजावटी पौधा है जिसे दुनिया भर में उगाया जाता है। इसे अफ्रीकी डेज़ी, ट्रांसवाल डेज़ी और जरबेरा के फूल के नाम से भी जाना जाता है। फिलहाल मुख्य तौर पर इसका उत्पादन नीदरलैण्ड, इटली, पोलैण्ड, इजरायल और कोलम्बिया आदि देशों में किया जाता है। पिछले कुछ वर्षों से देखा गया है कि भारत में भी इस फूल की मांग तेजी से बढ़ी है। जिसके कारण कई राज्यों के किसानों ने डेज़ी फूल की खेती करना शुरू कर दी है। फिलहाल इस फूल की खेती मुख्य तौर पर महाराष्ट्र, उत्तरांचल, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, कर्नाटक और गुजरात आदि राज्यों में हो रही है।

डेजी फूल की खेती (Daisy flower Farming)

यह एक बहुत ही लोकप्रिय फूल है, जिसका उपयोग घर की साज सज्जा में किया जाता है। इसके साथ ही इन फूलों का उपयोग गुलदस्ते बनाने में और विवाह में सजावट के दौरान भी बहुतायत में हो रहा है। इसलिए बाजार में इन फूलों की मांग बढ़ गई है, जिसके कारण भारत के किसान इस खेती की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। मांग के अनुसार डेजी फूल की खेती करके किसान भाई अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं।

डेजी फूल के लिए इस प्रकार की जलवायु होती है उपयुक्त

डेजी फूल की खेती उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में की जाती है। इसकी खेती के लिए ठंड में धूप तथा गर्मियों में छायादार जगह की जरूरत होती है। अगर दिन का तापमान 20°C-25°C और रात का तापमान 12°C-15°C के बीच हो तो यह डेजी फूल की खेती के लिए उपयुक्त वातावरण हो सकता है। इसलिए इसकी खेती के लिए ग्रीन हाउस या पॉलीहाउस सबसे उपयुक्त विकल्प माना जाता है। उष्णकटिबंधीय जलवायु में डेजी फूल की खेती खुले मैदानों में भी की जा सकती है।

इस प्रकार से करें मिट्टी का चयन

डेजी फूल की खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन लेटराइट मृदा इसके लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। मिट्टी से जल के उचित निकास के लिए व्यवस्था होना बहुत जरूरी है। इसके साथ ही मिट्टी का पीएचमान 5.0 से 7.2 के बीच होना चाहिए। मिट्टी में जीवांश पदार्थों की उपयुक्त मात्रा मिलाने पर डेजी फूल  के पौधों की वृद्धि तेजी से होती है। ये भी पढ़े: बारह महीने उपलब्ध रहने वाले इस फूल की खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे किसान

ये हैं डेजी फूल की उन्नत किस्में

डेजी फूल की लगभग 70 अलग-अलग किस्में है जो विभिन्न रंगों के फूल देती हैं। इसलिए हम आपको फूलों के रंगों के आधार पर किस्मों को बताने जा रहे हैं।
  • सफ़ेद फूल की उन्नत किस्में : फरीदा, व्हाइट मारिया, विंटर क्वीन, डेल्फी और स्नोफ्लेक।
  • नारंगी रंग के फूल की किस्में : कोजक, ऑरेंज क्लासिक, कैरेरा, मारा सोल और गोलियथ।
  • जामुनी रंग के फूल की किस्में : ब्लैक जैक और ट्रीजर।
  • पीले रंग वाले फूल की किस्में  : तलासा, फ्रेडकिंग, नाडजा, पनामा, फूलमून, डोनी, सुपरनोवा, मेमूट और यूरेनस।
  • लाल रंग के फूल वाली किस्में : साल्वाडोर, रेड इम्पल्स, फ्रेडोरेल्ला, रुबीरेड, वेस्टा और तमारा।
  • गुलाबी रंग के फूल की किस्में :  रोसलिन, मारा, सल्वाडोर, पिंक एलिगेंस, रोसलिन, टेरा क्वीन और वेलेंटाइन।

ऐसे करें खेत की तैयारी

खेत में पलाऊ की सहायता से जुताई करके पुरानी फसल के बचे हुए अवशेषों और खरपतवारों को नष्ट करके मिट्टी में मिला दें। इसके बाद कम से कम 2 से 3 बार जुताई करके खेत की मिट्टी को भुरभुरी बना लें। खेत की जुताई करते समय गोबर की खाद मिलाएं। इससे खेत की उर्वराशक्ति बढ़ाने में मदद मिलेगी। मिट्टी भुरभुरी होने के उपरांत अंत में खेत में पाटा चलाकर खेत की मिट्टी को पूरी तरह से समतल कर दें।

डेजी फूल की खेती के लिए इस प्रकार से तैयार करें बेड

डेजी फूल की खेती के लिए ऐसे बेड तैयार करने चाहिए जिनमें पानी निकास की उचित व्यवस्था हो। ताकि पानी जल्द से जल्द खेत से बाहर भेजा जा सके। फूलों के पौधों की रोपाई के लिए 1.5 फीट ऊंचे और 2 से 3 फीट चौड़े बेड बनाने चाहिए। इसके साथ ही कतार से कतार की दूरी 1 फीट होना चाहिए। अगर किसान बेड बनाते समय नीम की खली का प्रयोग करते हैं तो पौधों में नेमाटोड जैसा रोग नहीं लगेगा।

इस समय पर करें डेजी फूल की बुवाई

डेजी फूल की बुवाई साल में तीन बार की जा सकती है। साल की शुरुआत में जनवरी से मार्च के बीच इसकी बुवाई की जा सकती है, इसके बाद जून से जुलाई और नवंबर से दिसंबर के बीच इसकी बुवाई की जा सकती है।

डेजी फूल की रोपाई

जब इस फूल के पौधों की रोपाई करें तो यह ध्यान रखें कि पौधे का क्राउन मिट्टी से 2-3 सेमी ऊपर होना चाहिए। इसके साथ ही कतार से कतार की दूरी 35-40 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 25-30 सेमी होना चाहिए। एक बेड पर दो कतारों में डेजी फूल के पौधों को लगाया जा सकता है।

इस प्रकार से करें खाद एवं उर्वरक का प्रयोग

डेजी फूल की खेती करते समय खेत तैयार होने के पहले 20 टन प्रति एकड़ के हिसाब से गोबर की सड़ी हुई खाद डालें। इसके साथ ही वर्मी कंपोस्ट का भी प्रयोग किया जा सकता है। साथ ही प्रति एकड़ के हिसाब से 40 किलो फास्फोरस और 40 किलो पोटाश का प्रयोग करें। मिट्टी में आयरन की कमी होने की स्थिति में 10 ग्राम प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से फेरस सल्फेट का का भी प्रयोग किया जा सकता है। ये भी पढ़े: ऐसे करें रजनीगंधा और आर्किड फूलों की खेती, बदल जाएगी किसानों की किस्मत उर्वरक का प्रयोग फसल के अच्छे उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऐसे में खेतों में उर्वरक का उचित प्रबंध किया जाना आवश्यक है। शुरूआती दिनों में पानी में घोलकर एनपीके खाद का भी प्रयोग किया जा सकता है। जब पौधे में फूल आना शुरू हो जाएं तब कैल्शियम, बोरॉन, मैग्नेशियम और कॉपर जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों का छिड़काव करना चाहिए। इससे फूलों का उचित विकास होता है। यह छिड़काव तीन से चार सप्ताह के बाद 2 से 3 बार करना चाहिए।

सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण

डेजी फूल की खेती में रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई करना चाहिए। इसके बाद एक महीने तक लगातार सिंचाई करते रहें। डेजी फूल के पौधों को अन्य पौधों की अपेक्षा ज्यादा पानी की जरूरत होती है। ये पौधे प्रतिदिन औसतन 700 मिलीलीटर पानी लेते हैं। खरपतवार नियंत्रण के लिए फसल की समय समय पर आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। इससे खरपतवार खेत में बढ़ने नहीं पाएगा और नष्ट हो जाएगा।

डेजी फूल की खेती में रोग और कीटों का प्रयोग

इस फसल में कली सड़न, ख़स्ता फफूंदी आदि रोगों का प्रकोप होता है। इसके साथ ही डेजी फूल की खेती में चेपा, थ्रिप्स, सफ़ेद मक्खी, रेड स्पाइडर माइट और नेमाटोड जैसे कीट भी आक्रमण कर देते हैं। इनसे निपटने के लिए कृषि विशेषज्ञों की सलाह लें और उचित दवाइयों का प्रयोग करें।

डेजी फूल की तुड़ाई

इसके पौधों में रोपाई के 12 सप्ताह बाद ही फूल आने लगते हैं, लेकिन शुरुआत में अच्छी गुणवत्ता न होने के कारण फूलों कि तुड़ाई 14 सप्ताह बाद शुरू की जाती है। डेजी फूल को डंठल के साथ तोड़ा जाता है जिसकी लंबाई 55 सेंटीमीटर के आस पास होती है। डेजी के फूलों को बहुत सावधानी से तोड़ना चाहिए नहीं तो फूल खराब हो जाएंगे। तोड़ने के बाद इन्हें साफ पानी से भारी हुई बाल्टी में रखा जाता है ताकि फूलों की गुणवत्ता बरकरार रहे। एक साल में डेजी का एक पौधा औसतन 45 फूल तक दे सकता है। ये भी पढ़े: गुलाब में लगने वाले ये हैं प्रमुख कीड़े एवं उनसे बचाव के उपाय

डेजी फूलों की मांग एवं विपणन

अगर उत्पादन की बात करें तो डेजी फूलों का उत्पादन ज्यादातर पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, कर्नाटक, गुजरात, उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल और अरुणाचल प्रदेश में किया जाता है। लेकिन इसकी मांग दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, हैदराबाद, बंगलौर, कोलकाता जैसे बाजारों में ज्यादा है। इसका प्रयोग ज्यादातर शादियों में साज सज्जा में किया जाता है। इसलिए इसकी बिक्री पर किसानों को अच्छी खासी कमाई होती हैं। डेजी फूल की खेती करके किसान कम समय में ज्यादा से ज्यादा कमाई कर सकते हैं।
घर पर इस तरीके से उगायें चेरी टमाटर, होगा जबरदस्त मुनाफा

घर पर इस तरीके से उगायें चेरी टमाटर, होगा जबरदस्त मुनाफा

भारत में इन दिनों खेती किसानी में लगातार नई तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है। जिससे देश में विदेशी फसलों की खेती भी बेहद आसानी से होने लगी है। अब किसान इन विदेशी फसलों का उत्पादन करके फसल को बाजार में आसानी से बेंच सकते हैं। भारत के बाजार में देखा गया है कि यहां विदेशी फसलों की उपलब्धता कम होती है, ऐसे में  किसानों को बाजार में उन फसलों का मनचाहा दाम मिलता है। जिससे देश के किसान नई तकनीक के द्वारा विदेशी फसलों की खेती करने के लिए प्रोत्साहित हो रहे हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं चेरी टमाटर की खेती के बारे में। यह फसल पिछले कुछ सालों से भारतीय किसानों के बीच मशहूर हो रही है। इसे आप अपने बगीचे में भी उगा सकते हैं। चेरी टमाटर की बाजार में कई किस्में उपलब्ध हैं। इनमें काली चेरी ,चेरी रोमा, टोमेटो टो, कर्रेंट और येलो पियर प्रमुख हैं।

किचन गार्डन में इस तरह से उगायें चेरी टमाटर

चेरी टमाटर को आप अपने किचन गार्डन में आसानी से उगा सकते हैं। इसके लिए आप मिट्टी के बर्तनों या गमलों का उपयोग कर सकते हैं। गमलों को तैयार करने के लिए उनकी निचली सतह पर रेत डालें। इसके बाद उसे मिट्टी से भर दें। मिट्टी के साथ वर्मी कंपोस्ट को भी डाल सकते हैं। चेरी टमाटर की बुवाई बीजों के माध्यम से होती है। जिन्हें आप अपने नजदीकी नर्सरी या कृषि बीज भंडार से खरीद सकते हैं। बीजों की गमले में बुवाई कर दें और इसके बाद उनमें समय-समय पर पानी देते रहें। ये भी पढ़े: टमाटर की खेती में हो सकती है लाखों की कमाई : जानें उन्नत किस्में चेरी टमाटर के पौधे को गर्मियों में ज्यादा तो सर्दियों में कम पानी की जरूरत होती है। इसके पौधों को बीमारियों से ज्यादा खतरा रहता है। चेरी टमाटर के पौधों में ज्यादातर फंगल इंफेक्शन का खतरा होता है। इससे बचने के लिए गमले की मिट्टी में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड के घोल का छिड़काव किया जा सकता है। यह छिड़काव महीने में ज्यादा से ज्यादा 2 बार कर सकते हैं।

जल्द ही मिलने लगता है उत्पादन

बुवाई के 2 माह के भीतर चेरी टमाटर का पौधा फल देने लगता है। इसका उपयोग सब्जी के साथ-साथ दवाई के रूप में भी किया जाता है। चेरी टमाटर का उपयोग कब्ज की बीमारी में किया जाता है। साथ ही इसका उपयोग कैंसर की कोशिकाओं को खत्म करने में भी किया जाता है। चेरी टमाटर के उपयोग से वजन कम करने में और गठिया रोग को खत्म करने में भी मदद मिलती है।
आंवला की खेती से संबंधित संपूर्ण जानकारी

आंवला की खेती से संबंधित संपूर्ण जानकारी

आंवला को सामान्यतः भारतीय गूज़बैरी एवं नेल्ली के नाम से जाना जाता है। आंवला को उसके अंदर मौजूद औषधीय गुणों के लिए भी जाना जाता है। इसके फल कई सारी दवाइयां बनाने के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं। आंवला से निर्मित दवाइयों से डायरिया, दांतों में दर्द, अनीमिया, बुखार एवं जख्मों का इलाज किया जाता है। कई प्रकार के शैंपू, बालों में लगाने वाला तेल, डाई, दांतो का पाउडर एवं मुंह पर लगाने वाली क्रीमें तक आंवला से तैयार की जाती हैं। यह एक मुलायम एवं समान शाखाओं वाला पेड़ है, जिसकी औसत उंचाई 8-18 मीटर तक होती है। इसके फूल हरे-पीले रंग के होते हैं एवं यह दो प्रजातियों के होते हैं। नर फूल और मादा फूल। इसके फल हल्के पीले रंग के होते हैं,जिनका व्यास 1.3-1.6 सैं.मी तक होता है। भारत में उत्तर प्रदेश व हिमाचल प्रदेश आंवला के मुख्य उत्पादक राज्य माने जाते हैं।

आंवला की खेती के लिए उपयुक्त मृदा कौन-सी होती है

आंवला सख्त होने के चलते इसको हर प्रकार की मृदा में उत्पादित किया जा सकता है। आंवला को हल्की तेजाबी एवं नमकीन व चूने वाली मृदा में पैदा किया जा सकता है। यदि इसकी खेती समुचित जल निकास वाली एवं उपजाऊ-दोमट मृदा में की जाती है, तो यह बेहतरीन उत्पादन प्रदान करती है। यह खारी मृदा को भी सहयोग्य है।
आंवला की खेती के लिए मृदा का pH 6.5-9.5 होना चाहिए। भारी भूमि पर इसकी खेती करने से बचें।

आंवला की प्रमुख किस्में

बनारसी - यह शीघ्रता से तैयार होने वाली प्रजाति है, जो कि मध्य अक्तूबर से मध्य नवंबर में पक जाती है। इसके फ्लूनों का आकार बढ़ा, कम से कम भार 48 ग्राम, छिल्का मुलायम होता है एवं फल भंडारण योग्य नहीं होते। इस प्रजाति में 1.4% रेशा उपलब्ध होता है। इसका औसतन उत्पादन 120 किलो प्रति पेड़ होती है। कृष्णा - यह भी जल्दी पककर तैयार होने वाली किस्म है, जो कि मध्य अक्तूबर से मध्य नवंबर तक पककर तैयार हो जाती है। इस प्रजाति के फलों का आकार सामान्य से बढ़ा, भार 44.6 ग्राम, छिल्का मुलायम व फल धारियों वाले होते हैं। इस प्रजाति में 1.4% रेशा पाया जाता है। इसका औसतन उत्पादन 123 किलो प्रति पेड़ होता है। एनऐ-9 - यह भी एक जल्दी पकने वाली किस्म है, जो कि मध्य अक्तूबर से मध्य नवंबर में पक जाती है। इसके फल बड़े आकार के, भार 50.3 ग्राम, लम्भाकार, छिल्का मुलायम एवं पतला होता है। इस प्रजाति में रेशे की 0.9% मात्रा उपलब्ध होती है। विटामिन सी की मात्रा सर्वाधिक 100 ग्राम होती है। इससे कैंडीज, जैम एवं जैली इत्यादि बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। एनऐ-10 - यह भी जल्दी पकने वाली प्रजाति है, जो मध्य अक्तूबर से मध्य नवंबर में तैयार हो जाती है। इसके फल मध्यम से बड़े आकार, भार 41.5 ग्राम, छिल्का खुरदरा होता है एवं इसके 6 भिन्न-भिन्न हिस्से होते हैं। इसका गुद्दा हरे-सफेद रंग का होता है व इसमें 1.5 % रेशे की मात्रा उपलब्ध होती है। फ्रांसिस - यह दरमियाने मौसम की फसल है, जो मध्य नवंबर से मध्य दिसंबर तक की जाती है। इसके फल बड़े आकार के, भार 45.8 ग्राम, और रंग हरा-सफेद होता है। इसमें रेशे की मात्रा लगभग 1.5% होती है। इस प्रजाति को हाथी झूल के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि इसकी शाखाएं लटकी हुई होती हैं। यह भी पढ़ें: किसान इस विदेशी फल की खेती करके मोटा मुनाफा कमा सकते हैं एनऐ-7 - यह दरमियाने मौसम की फसल है, जो मध्य नवंबर से मध्य दिसंबर तक होती है। इसके फल मध्यम से बड़े आकार के, भार 44 ग्राम, और रंग हरा-सफेद होता है। इसमें रेशे की मात्रा 1.5% मौजूद रहती है। कंचन - यह दरमियाने मौसम की फसल है, जो मध्य नवंबर से मध्य दिसंबर तक की होती है। इसके फल लघु आकार के, भार 30.2 ग्राम, इसमें रेशे की मात्रा 1.5% होती है। साथ ही, इसमें विटामिन सी की सामान्य मात्रा उपलब्ध होती है। इस प्रजाति का औसतन उत्पादन 121 किलो प्रति रुख होती है। एनऐ-6 - यह दरमियाने मौसम की फसल है, जो मध्य नवंबर से मध्य दिसंबर तक की होती है। इसके फल मध्यम आकार के, भार 38.8 ग्राम, इसमें रेशे की मात्रा सबसे कम 0.8% होती है। इसमें विटामिन सी की मात्रा 100 ग्राम एवं कम मात्रा में फैनोलिक उपलब्ध होता है। इसे जैम और कैंडीज बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। चकिया - यह विलंभ से पकने वाली प्रजाति है, जो मध्य दिसंबर से मध्य जनवरी में पक जाती है। इसके फल मध्यम आकार के, भार 33.4 ग्राम, इसमें 789 मि.ग्रा. प्रति 100 ग्राम विटामिन सी की मात्रा, 3.4% पैक्टिन और 2% रेशा विघमान होता है। इसे आचार और शुष्क टुकड़े निर्मित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

आंवला की खेती हेतु भूमि की तैयारी

आंवला की खेती के लिए बेहतर ढ़ंग से जोताई एवं जैविक मृदा की जरूरत होती है। मिट्टी को बेहतर ढ़ंग से भुरभुरा करने के लिए बिजाई से पूर्व जमीन की जोताई करें। जैविक खाद जैसे कि रूड़ी की खाद को मृदा में मिलादें। फिर 15×15 सैं.मी. आकार के 2.5 सैं.मी. गहरे नर्सरी बैड तैयार करें।

आंवला की बिजाई की विधि

बिजाई के समय की बात करें तो, आंवला की खेती जुलाई से सितंबर के माह में की जाती है। उदयपुर में इसकी खेती जनवरी से फरवरी माह में की जाती है। वहीं, मई-जून के महीने में कलियों वाले पौधों को 4.5x4.5 मी की दूरी पर ही लगाएं। साथ ही, बीज की गहराई 1 मीटर गहरा वर्गाकार गड्डे खोदें एवं सूरज की रोशनी में 15-20 दिनों के लिए खुला छोड़ दें। बिजाई के ढंग की बात की जाए तो कलियों वाले नए पौधों की पनीरी को मुख्य खेत में लगाया जाता है। साथ ही, बेहतरीन पैदावार के लिए 200 ग्राम बीजों को प्रति एकड़ जमीन में उपयोग करें।

आंवला की फसल हेतु बीज का उपचार

आंवला की फसल को मृदा से उत्पन्न होने वाली बीमारियों एवं कीटों से बचाने के लिए और अच्छे अंकुरन के लिए, बीजों को जिबरैलिक एसिड 200-500 पी पी एम से उपचार करें। रासायनिक उपचार के उपरांत बीजों को हवा में सुखा दें। यह भी पढ़ें: घर पर करें बीजों का उपचार, सस्ती तकनीक से कमाएं अच्छा मुनाफा

आंवला की फसल हेतु खरपतवार नियंत्रण

खेत को नदीन मुक्त करने के लिए समय पर गोड़ाई करें। साथ ही, कटाई एवं छंटाई भी करें। टेढ़ी-मेढ़ी शाखाओं को काट दें एवं केवल 4-5 सीधी टहनियां ही अधिक विकास के लिए रखें। नदीनों का नियंत्रण करने हेतु मलचिंग का तरीका भी काफी प्रभावशाली है। गर्मियों में मलचिंग पौधे के शिखर से 15-10 सैं.मी. के तने तक करें।

आंवला की फसल में सिंचाई किस तरह करें

गर्मियों में सिंचाई 15 दिनों के समयांतराल पर करें एवं सर्दियों में अक्तूबर-दिसंबर के माह में हर दिन चपला सिंचाई द्वारा 25-30 लीटर प्रति वृक्ष डालें। मानसून के मौसम में सिंचाई की जरुरत नहीं होती। फूल निकलने के दौरान सिंचाई ना करें।

आंवला की फसल में हानिकारक कीट एवं उनकी रोकथाम

छाल खाने वाली सुंडी:

  • यह तने और छाल को खाकर काफी क्षति पहुंचाती है।
  • इनकी रोकथाम के लिए क्विनलफॉस 0.01% या फैनवलरेट 0.5% घोल को छेदों में भरें।
  • पित्त वाली सुंडी
  • पित्त वाली सुंडी: यह सुंडी तनेके शिखर में जन्म लेती हैं और सुरंग बना देती हैं।
  • इनकी रोकथाम के लिए डाइमैथोएट 0.03% डालें।

कुंगी:

  • कुंगी पत्तों और फलों पर गोल आकार में लाल रंग के धब्बे पड़ जाते है।
  • इसकी रोकथाम के लिए इंडोफिल एम-45 0.3% को दो बार डालें। पहली सितंबर की शुरूआत में और दूसरी 15 दिनों के उपरांत डालें।

अंदरूनी गलन

  • यह बीमारी प्रमुख रूप से बोरोन की कमी के चलते होती है। इस बीमारी की वजह टिशु भूरे रंग के, बाद में काले रंग के हो जाते हैं।
  • इस बीमारी से संरक्षण के लिए बोरोन 0.6% सितंबर से अक्तूबर के माह में डालें।
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फल का गलना

फल का गलना: इस बीमारी के चलते फलों पर सोजिश पड़ जाती है और रंग परिवर्तित हो जाता है। इसकी रोकथाम के लिए बोरेक्स और क्लोराइड 0.1%- 0.5% डालें।

आंवला की फसल की कटाई

बिजाई से 7-8 वर्ष के उपरांत पौधे उत्पादन देना शुरू कर देते हैं। जब फूल हरे रंग के हो जाएं एवं इनमें विटामिन सी की ज्यादा मात्रा होने पर तो फरवरी के माह में तुड़ाई कर दें। इसकी तुड़ाई वृक्ष को तेज-तेज हिलाकर की जाती है। जब फल पूरी तरह से पक जाते हैं, तो यह हरे पीले रंग के हो जाते हैं। बीजों के लिए पके हुए फूलों का इस्तेमाल किया जाता है।

आंवला की फसल की कटाई के बाद क्या करें

तुड़ाई के उपरांत छंटाई करनी चाहिए। छंटाई के पश्चात फलों को बांस की टोकरी एवं लकड़ी के बक्सों में पैक कर दें। फलों को बर्बाद होने से बचाने के लिए बेहतर ढ़ंग से पैकिंग करें एवं जल्दी से जल्दी खरीदने वाली जगहों पर ले जाएं। आंवले के फलों से बहुत सारे उत्पाद जैसे आंवला पाउडर, चूर्ण, च्यवनप्राश, अरिष्ट, एवं मीठे उत्पाद बनाए जाते हैं।
अमरूद की खेती को बढ़ावा देने के लिए इस राज्य में मिल रहा 50 प्रतिशत अनुदान

अमरूद की खेती को बढ़ावा देने के लिए इस राज्य में मिल रहा 50 प्रतिशत अनुदान

बेगूसराय जनपद में किसान केला, नींबू, पपीता और आम की खेती काफी बड़े पैमाने पर करते हैं। परंतु, अमरूद की खेती करने वाले किसान भाइयों की तादात आज भी बहुत कम है। बिहार राज्य में किसान दलहन, तिलहन, धान और गेहूं के साथ-साथ बागवानी फसलों की भी बड़े पैमाने पर खेती करते हैं। दरभंगा, हाजीपुर, मुंगेर, मधुबनी, पटना, गया और नालंदा समेत तकरीबन समस्त जनपदों में किसान फल और सब्जियों का उत्पादन कर रहे हैं। विशेष कर इन जनपदों में किसान सेब, आलू, भिंडी, लौकी, आम, अमरूद, केला और लीची की खेती बड़े स्तर पर की जाती है। परंतु, वर्तमान में उद्यान विभाग द्वारा बेगूसराय जनपद में अमरूद का क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए शानदार योजना तैयार की है। इस योजना के अंतर्गत अमरूद की खेती चालू करने वाले उत्पादकों को मोटा अनुदान दिया जाएगा।

केवल इतनी डिसमिल भूमि वाले किसान उठा पाएंगे लाभ

मीडिया एजेंसियों के अनुसार, मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना के अंतर्गत बेगूसराय जनपद में अमरूद की खेती करने वाले किसान भाइयों को 50 प्रतिशत अनुदान दिया जाएगा। मुख्य बात यह है, कि इस योजना के अंतर्गत जनपद में 5 हेक्टेयर भूमि पर अमरूद की खेती की जाएगी। जिन किसान भाइयों के पास न्यूनतम 25 डिसमिल भूमि है, वह अनुदान का फायदा प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए कृषकों को कृषि विभाग की आधिकारिक वेवसाइट पर जाकर आवेदन करना पड़ेगा। यह भी पढ़ें: अब सरकार बागवानी फसलों के लिए देगी 50% तक की सब्सिडी, जानिए संपूर्ण ब्यौरा

अमरुद उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए 40 प्रतिशत अनुदान

बतादें, कि बेगूसराय जनपद में किसान केला,नींबू, पपीता और आम की बड़े स्तर पर खेती करते हैं। लेकिन, जनपद में अमरूद की खेती करने वाले कृषकों की तादात आज भी जनपद में बेहद कम होती है। यही कारण है, कि कृषि विभाग द्वारा मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना के अंतर्गत जनपद में अमरूद की खेती का क्षेत्रफल में बढ़ोत्तरी करने की योजना बनाई और किसानों को 50 प्रतिशत अनुदान देने का फैसला लिया है। किसान रामचंद्र महतो ने कहा है, कि यदि सरकार अनुदान प्रदान करती है, तो वह अमरूद की खेती अवश्य करेंगे।

बेगूसराय में कितने अमरुद लगाने का लक्ष्य तय किया गया है

साथ ही, जिला उद्यान पदाधिकारी राजीव रंजन ने कहा है, कि सरदार अमरूद एवं इलाहाबादी सफेदा जैसी प्रजातियों के पौधे कृषकों को अनुदान पर मुहैय्या कराए जाऐंगे। उनका कहना है, कि अमरूद के बाग में 3×3 के फासले पर एक पौधा लगाया जाता है। यदि किसान भाई एक हेक्टेयर भूमि में खेती करेंगे तो उनको 1111 अमरूद के पौधे लगाने होंगे। साथ ही, बेगूसराय जनपद में 5555 अमरूद के पौधे लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
इस प्रकार घर पर सब्जियां उगाकर आप बिना पैसे खर्च किए शुद्ध और ताजा सब्जियां पा सकते हैं

इस प्रकार घर पर सब्जियां उगाकर आप बिना पैसे खर्च किए शुद्ध और ताजा सब्जियां पा सकते हैं

अगर आप घर में सब्जियां उगाना चाहते हैं, तो आपके लिए ये बड़े काम की खबर है। यहां दिए गए टिप्स को अपनाकर आपका घर हरा भरा रहेगा। महंगाई से लाल हुए टमाटर तो आपको अच्छे से याद ही होंगे। टमाटर के भाव पहले से कुछ कम अवश्य हुए हैं पर अभी भी बहुत सी सब्जियों के भाव आसमान पर हैं। घर में सब्जियां पैदा करने के कुछ टिप्स ना सिर्फ आपकी जेब हल्की होने से बचाएंगे। साथ ही, यह हरियाली आपके मन को भी हल्का रखने में सहायता करेगी।

किसान भाई छोटी जगह से शुरुआत करें

अगर आपको बागवानी का अनुभव नहीं है तो कम जगह से शुरुआत करें। उत्पादन के लिए चार-पांच प्रकार की सब्जियां चुनें और हर एक तरह के कुछ पौधे लगाऐं। कंटेनरों में सब्जियां उगाना भी काफी अच्छा तरीका है। धूपदार बालकनी भी बेहतर रहेगी। याद रखें जिन सब्जियों को खाएं उन्हीं सब्जी को उगाएं। ये भी पढ़े: बारिश में लगाएंगे यह सब्जियां तो होगा तगड़ा उत्पादन, मिलेगा दमदार मुनाफा

उत्तम किस्मों का चयन बेहद जरूरी

बीज पैकेट, टैग अथवा लेबल पर दिए गए विवरण पर भरपूर ध्यान दें। हर एक सब्जी की कुछ विशेषताएं होती हैं। बहुत सारी किस्में बेहतर रोग प्रतिरोधक क्षमता, बेहतर पैदावार अथवा बेहतर गर्मी या ठंड सहनशीलता प्रदान करती हैं।

किसान भाई उत्पादकता पर ध्यान दें

आरंभ में लोग बहुत ज्यादा पौधे लगाने की गलती करते हैं। टमाटर, मिर्च जैसी सब्जियाँ संपूर्ण मौसम में मौजूद रहती हैं। इस वजह से आपको अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बहुत सारे पौधों की जरूरत नहीं हो सकती है। बाकी सब्जियां, जैसे गाजर, मूली आदि सिर्फ एक बार काटी जा सकती हैं। उसके बाद उन्हें दोबारा लगाने की जरूरत होगी। ये भी पढ़े: मूली की खेती (Radish cultivation in hindi)

मौसम के मुताबिक फसल चयन करना चाहिए

ठंडे और गर्म मौसम दोनों में सब्जियां लगाने से आपको बसंत, गर्मी एवं पतझड़ के दौरान निरंतर सब्जियों की फसल मिलेगी। शुरुआती बसंत में, सलाद, जैसे मटर, मूली, गाजर और ब्रोकली की फसल उगाएं। बतादें, कि ठंडे मौसम के उपरांत गर्म मौसम की पसंदीदा फसलें जैसे टमाटर, मिर्च, बैंगन लगाएँ। पतझड़ में आप आलू, पत्तागोभी एवं केले की फसल ले सकते हैं। बेल वाली फसलें लगाकर आप बगीचे में ऊधर्वाधर भूमि का उपयोग कर प्रति वर्ग फुट पैदावार बढ़ा सकते हैं।

सब्जियों की खेती के लिए धूप और पानी अत्यंत आवश्यक है

बतादें, कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप अपना बगीचा कहां लगाते हैं। आपके बगीचे को पानी एवं भरपूर धूप की दो बुनियादी जरूरतें पूरी करनी होंगी। अगर आपकी साइट को दिन में कम से कम 4 घंटे सीधी धूप मिलती है तो गाजर, मूली और चुकंदर जैसी जड़ वाली सब्जियां पैदा की जा सकती हैं। इससे अधिक धूप मिलने पर आप तुलसी, मेंहदी, टमाटर, खीरा और बीन्स जैसी धूप पसंद सब्जियां उगा सकते हैं। ये भी पढ़े: बैंक की नौकरी की बजाए सब्जियों की खेती को चुनकर किसान हुआ मालामाल बीजों के अंकुरित होने अथवा रोपाई के पश्चात पहले कुछ सप्ताहों के दौरान आपको बार-बार पानी देने की जरूरत पड़ेगी। इसके माध्यम से नाजुक पौधों को मजबूत जड़ें एवं तने पैदा करने में सहायता मिल सके। एक बार जब आपके पौधे स्थापित हो जाएं, तो अच्छा होगा कि आप अपने बगीचे को प्रति दिन थोड़ा छिड़काव करने की जगह हर कुछ दिनों में एक लंबा पानी दें। उसके बाद पानी मिट्टी में गहराई तक चला जाएगा, जो जड़ों को गहराई तक बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता है।