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जानिए कैसे करें उड़द की खेती

जानिए कैसे करें उड़द की खेती

उड़द की खेती भारत में लगभग सभी राज्यों में होती है. ये मनुष्यों के लिए तो फायदेमंद है ही साथ ही खेत की सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद है. हमारे देश में दालों की भारी कमी है. इस वजह से भी ये कभी महंगी और ज्यादा मांग वाली दाल है. 

भारत सरकार ने 2019-20 के दौरान 4 लाख टन के कुल उड़द आयात की अनुमति दी थी। यह दर्शाता है की दाल की मांग की पूर्ती हम अपने उत्पादन से नहीं कर पाते हैं इसके लिए हमें दाल के लिए विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता है. 

पिछले वित्त वर्ष में भारत सरकार ने 4 लाख टन के आयात की अनुमति दी थी. 2019 - 20 में उद्योग के सूत्रों का कहना है कि वर्तमान में, उड़द केवल म्यांमार में उपलब्ध है। 

म्यांमार में उड़द का हाजिर मूल्य लगभग 810 डॉलर प्रति क्विंटल है। भारत को बारिश की शुरुआत में देरी के कारण उड़द के आयात का सहारा लेना पड़ा, जिसके बाद फसल की अवधि के दौरान अधिक और निरंतर वर्षा के कारण उत्पादन में गिरावट आई। 

 उड़द या किसी भी दलहन वाली फसल के उत्पादन से किसानों को फायदा ही है. बशर्ते की आपकी जमीन उस फसल को पकड़ने वाली हो. कई बार देखा गया है की सब कुछ ठीक होते हुए भी उड़द की फसल नहीं हो पाती है. 

उसके पीछे का कारण कोई भी हो सकता है जैसे मिटटी में पोषण तत्वों की कमी, पानी का सही न होना. इसके लिए हमें अपने खेत की मिटटी और पानी का समय समय पर टेस्ट करना चाहिए. 

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खेत की तैयारी:

उड़द के लिए खेत की तैयारी करते समय पहली जुताई हैंरों से कर देना चाहिए उसके बाद कल्टीवेटर से 3 जोत लगा के पाटा लगा देना चाइए जिससे की खेत समतल हो जाये. 

उड़द की फसल के लिए खेत का चुनाव करते समय ध्यान रखें की खेत में पानी निकासी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए. जिससे की बारिश में या पानी देते समय अगर पानी ज्यादा हो जाये तो उसे निकला जा सके.

मिटटी:

वैसे उड़द की फसल के लिए दोमट और रेतीली जमीन ज्यादा सही रहती हैं लेकिन इसकी फसल को काली मिटटी में भी उगाया जा सकता है. 

हल्की रेतीली, दोमट या मध्यम प्रकार की भूमि जिसमे पानी का निकास अच्छा हो उड़द के लिये अधिक उपयुक्त होती है। पी.एच. मान 6- 8 के बीच वाली भूमि उड़द के लिये उपजाऊ होती है। अम्लीय व क्षारीय भूमि उपयुक्त नही है।

उड़द की उन्नत किस्में या उड़द के प्रकार :

उड़द की निम्नलिखित किस्में हैं जो की ज्यादातर बोई जाती है. टी-9 , पंत यू-19 , पंत यू - 30 , जे वाई पी और यू जी -218 आदि प्रमुख प्रजातियां हैं. 

बीज की दर या उड़द की बीज दर:

बुवाई के लिए उड़द के बीज की सही दर 12-15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है अगर बीज किसी अच्छी संस्था या कंपनी ने तैयार किया है तो. और अगर बीज आपके घर का है या पुराना बीज है तो इसकी थोड़ी मात्रा बढ़ा के बोना चाहिए.

खेत में अगर किसी वजह से नमी कम हो, तो 2-3 किलोग्राम बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर बढ़ाई जा सकती है जिससे की अपने खेत में पौधों की कमी न रहे. जब पौधे थोड़े बड़े हो जाएँ तो ज्यादा पास वाले पौधों को एक निश्चित दूरी के हिसाब से रोपाई कर दें.

बुवाई का समय:

फ़रवरी या मार्च में भी उड़द की फसल को लगाया जाता है तथा इस तरह से इस फसल को बारिश शुरू होने से पहले काट लिया जाता है. 

खरीफ मौसम में उड़द की बुवाई का सही समय जुलाई के पहले हफ्ते से ले कर 15-20 अगस्त तक है. हालांकि अगस्त महीने के अंत तक भी इस की बुवाई की जा सकती है. 

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उड़द में खरपतवार नियंत्रण:

बुवाई के 25 से 30 दिन बाद तक खरपतवार फसल को अत्यधिक नुकसान पहुँचातें हैं यदि खेत में खरपतवार अधिक हैं तो 20-25 दिन बाद एक निराई कर देना चाहिए और अगर खरपतवार नहीं भी है तो भी इसमें समय-समय पर निराई गुड़ाई होती रहनी चाहिए। 

जिन खेतों में खरपतवार गम्भीर समस्या हों वहॉं पर बुवाई से एक दो दिन पश्चात पेन्डीमेथलीन की 0.75 किग्रा0 सक्रिय मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्टेयर में छिड़काव करना सही रहता है। कोशिश करें की खरपतवार को निराई से ही निकलवायें तो ज्यादा सही रहेगा.

तापमान और उसका असर:

उड़द की फसल पर मौसम का ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है. इसको 40 डिग्री तक का तापमान झेलने की क्षमता होती है. इसको कम से कम 20+ तापमान पर बोया जाना चाहिए.

उड़द की खेती से कमाई:

उड़द की खेती से आमदनी तो अच्छी होती ही है और इसके साथ-साथ खेत को भी अच्छा खाद मिलता है. इसकी पत्तियों से हरा खाद खेत को मिलता है.

कृषि जलवायु क्षेत्रों के अनुसार भारत में उगाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की फसलें

कृषि जलवायु क्षेत्रों के अनुसार भारत में उगाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की फसलें

भारत एक प्रमुख कृषि राष्ट्र है, जहां कृषि एक मुख्य आधारिक व्यवसाय है और लाखों लोगों के जीवन का आधार है। भारत में, फसलें विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों के अनुसार उगाई जाती हैं, जो तापमान, वर्षा, मृदा प्रकार, और भू-परिस्थितियों जैसे कारकों द्वारा परिभाषित किए जाते हैं। 

आज के इस लेख में हम यहां भारत में विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में उगाई जाने वाली फसलों के प्रकार का एक सामान्य अवलोकन आपके सामने करेंगे।

भारत में कृषि के बारे में जानकारी

1. उष्णकटिबंधीय क्षेत्र   

चावल, गन्ना, केले, आम, पपीता, नारियल, और मसाले जैसे काली मिर्च और इलायची भारत के उष्ण और आर्द्र तटीय क्षेत्रों में उगाए जाते हैं, जैसे पश्चिमी घाट के तटीय क्षेत्र, पूर्वोत्तर राज्यों के कुछ हिस्से, और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह।

2. उपतापीय क्षेत्र       

गेहूं, मक्का, जौ, सीताफल (संतरा और किनू), सेब, खुबानी, और उष्णकटिबंधीय सब्जियाँ उत्तरी भारत के उप-उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाई जाती हैं, जैसे पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, और जम्मू और कश्मीर के कुछ हिस्से में उगाई जाती है।

3. शीतल क्षेत्र

भारत में जहाँ ठण्ड अधिक होती है वहां, सेब, चेरी, नाशपाती, बेर, और केसर जैसी उच्च ऊचाई वाली शीतल क्षेत्रों में हिमाचल प्रदेश और जम्मू और कश्मीर के हिस्सों में उगाई जाती हैं।

4. सूखे और अर्ध-सूखे क्षेत्र

बाजरा, ज्वार, चने, तिलहन, सरसों, कपास, और अंगूर आदि राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र के कुछ हिस्से, और भारत के दक्षिणी हिस्सों में सूखे और अर्ध-सूखे क्षेत्रों में उगाई जाती हैं।

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5. पर्वतीय और उच्चभूमि क्षेत्र

आलू, सेब, चेरी, मक्का, और चने जैसी फसलें हिमालय के पर्वतीय और उच्चभूमि क्षेत्रों में उगाई जाती हैं, जैसे उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, और सिक्किम के कुछ हिस्से।

6. तटीय क्षेत्र

चावल, नारियल, काजू, मसाले(जैसे काली मिर्च और लौंग), और समुद्री खाद्य पदार्थ भारत के तटीय क्षेत्रों में उगाई जाती हैं, जैसे केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, और पश्चिम बंगाल।

7. मध्य पठार और मैदानी क्षेत्र

गेहूं, सोयाबीन, चने, तिलहन, कपास, और ज्वार जैसी फसलें मध्य पठार और मैदानी क्षेत्रों में उगाई जाती हैं,  जैसे मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, और तेलंगाना के कुछ हिस्से।

8. पूर्वोत्तर हिल्ली और वन्य क्षेत्र

चावल, मक्का, बाजरा, चने, चाय, कॉफी, मसाले, फल, और सब्जियां पूर्वोत्तर राज्यों में उच्चऊन्नत हिल्ली और वन्य क्षेत्रों में उगाई जाती हैं, जैसे असम, मेघालय, नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, और अरुणाचल प्रदेश आदि राज्य शामिल है।

बरसात के मौसम में बकरियों की इस तरह करें देखभाल | Goat Farming

बरसात के मौसम में बकरियों की इस तरह करें देखभाल | Goat Farming

बरसात में बकरियों का विशेष रूप से ख्याल रखना पड़ता है। इस मौसम में उनको बीमार होने का खतरा ज्यादा रहता है। इसलिए आज हम आपको इस लेख में बताएंगे कि आप बारिश के दिनों में कैसे अपनी बकरी की देखभाल करें। गांव में गाय-भैंस की भांति बकरी पालने का भी चलन आम है। आज के वक्त में बहुत सारे लोग बकरी पालन से प्रति वर्ष मोटी आमदनी करने में सफल हैं। हालांकि, बरसात के दौरान बकरियों को बहुत सारे गंभीर रोग पकड़ने का खतरा रहता है। इस वजह से इस मौसम में पशुपालकों द्वारा उनका विशेष ख्याल रखा जाता है। आज हम आपको यह बताएंगे कि बरसात में बकरियों की देखभाल किस तरह की जा सकती है। 

बकरियों की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखें

पशुपालन विभाग द्वारा जारी सुझावों के मुताबिक, बरसात में बकरियों को जल से भरे गड्ढों अथवा खोदे हुए इलाकों से दूर रखें ताकि वे फंस न जाएं। बारिश से बचाने के लिए उन्हें घर से बाहर भी शेड के नीचे रखें। क्योंकि पानी में भीगने से उनकी सेहत पर काफी दुष्प्रभाव पड़ सकता है। 

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बकरियों के लिए चारा-जल इत्यादि की उचित व्यवस्था करें

बरसात के समय, बकरियों के लिए स्वच्छ पानी मुहैय्या कराएं। अगर वे बाहर रहते हैं, तो उनके लिए छत के नीचे पानी की व्यवस्था करें। जिससे कि वे ठंड और बरसात से बच सकें। आपको उन्हें स्वच्छ एवं सुरक्षित भोजन भी प्रदान करना होगा। बरसात में आप चारा, घास अथवा अन्य विशेष आहार उनको प्रदान कर सकते हैं। 

बकरियों के आसपास स्वच्छता का विशेष बनाए रखें

बरसात में इस बात का ध्यान रखें, कि बकरियों के आसपास की स्वच्छता कायम रहे। उनके लिए स्थायी अथवा अस्थायी शेल्टर का भी उपयोग करें, जिससे कि वे ठंड और नमी से बच सकें। 

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बकरियों का टीकाकरण कराऐं

बकरियों के स्वास्थ्य को अच्छा रखने के लिए उनको नियमित तौर पर वैक्सीनेशन उपलब्ध कराएं। इसके लिए पशु चिकित्सक से सलाह भी लें एवं उन्हें बकरियों के लिए अनुशासनिक टीकाकरण अनुसूची बनाने की बात कही है।

IMD ने इस मानसून में सामान्य से अधिक वर्षा की संभावना जताई है

IMD ने इस मानसून में सामान्य से अधिक वर्षा की संभावना जताई है

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने इस वर्ष के मानसून सीजन का आँकलन जारी किया है। मौसम विभाग के अनुसार, इस वर्ष मानसून सीजन में सामान्य से ज्यादा वर्षा होगी।

भारत मौसम विज्ञान विभाग ने मानसून सीजन 2024 को लेकर अपना अनुमान जारी किया है। आईएमडी ने भविष्यवाणी की है, कि इस बार मानसून सीजन में सामान्य से ज्यादा बरसात होगी। 

IMD ने सोमवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस बात की जानकारी साझा की है। आईएमडी का कहना है, कि मॉनसून की बारिश सामान्य से ज्यादा रहने का अनुमान है। यह अनुमान 104% प्रतिशत तक जताया गया है।

अल-नीनो की स्थिति कैसे रहेगी और इसका प्रभाव कैसे कम होगा ?

आईएमडी का कहना है, कि इस वर्ष अल-नीनो की स्थिति मध्यम रहेगी। अल-नीनो धीरे-धीरे कमजोर होगा और मॉनसून की शुरुआत तक न्यूट्रल हो जाएगा। 

मौसम विभाग के अनुसार, मॉनसून की शुरुआत से ला-नीना सक्रिय हो जाएगा, जो कि अल-नीनो के विपरीत प्रभाव दिखाता है।

मौसम विभाग के कहने के अनुसार अल-नीनो के प्रभाव को रोकने में इंडियन डायपोल ओशन (आईओडी) पूरी तरह सक्रिय रहेगा। 

सरल शब्दों में कहें तो, पश्चिमी हिंदी महासागर का पूर्वी हिंद महासागर की तुलना में बारी-बारी से गर्म व ठंडा होना ही हिंद महासागर द्विध्रुव यानी (आईओडी) कहलाता है। इससे अच्छी खासी मात्रा में वर्षा देखने को मिलेगी। 

भारत के कुछ पूर्वी एवं अन्य इलाकों को छोड़कर, इस बार बारिश सामान्य से ज्यादा होने की संभावना है। जानकारी के लिए बतादें, कि शानदार बरसात के लिए आईओडी का पॉजिटिव होना आवश्यक माना जा रहा है। 

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मौसम विभाग ने अग्रिम तौर पर कहा है, कि दक्षिण-पश्चिम के प्रदूषकों के बढ़ने पर आईओडी सक्रिय होगा और इससे बारिश बढ़ेगी।

आईएमडी के अनुसार कितनी बरसात होनी है ?

आईएमडी के अनुसार, इस वर्ष 104 प्रतिशत तक बारिश होने का अनुमान है, जो कि सामान्य से ज्यादा है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि अगर मानसून में बारिश 90% प्रतिशत से कम हो तो इसे कम बारिश ही माना जाता है। 

इसी प्रकार 90 से 96% प्रतिशत बारिश सामान्य से कम, 96 से 104 प्रतिशत बारिश को सामान्य, 104 से 110 प्रतिशत बारिश को सामान्य से ज्यादा और 110 से अधिक मॉनसूनी बारिश में दर्ज किया जाता है। 

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मौसम विभाग का कहना है, कि केवल उत्तर-पश्चिम, पूर्व और पूर्वोत्तर भारत के कुछ इलाकों को छोड़ दें तो सब जगह सामान्य से अधिक वर्षा होगी।

सितंबर के महीने में सबसे ज्यादा वर्षा होने की भविष्यवाणी   

मौसम विभाग के अनुसार, मॉनसून के मौसम जून से सितंबर के मध्य 106% प्रतिशत वर्षा हो सकती है। यह सामान्य से काफी अधिक है। महीने के अनुरूप इस साल मॉनसून के पहले माह जून में लगभग 95% प्रतिशत वर्षा दर्ज होगी। 

वहीं, जुलाई के महीने में 105% प्रतिशत बारिश होगी। इसके बाद अगस्त में थोड़ी कम 98% प्रतिशत वर्षा होगी। इसके उपरांत सबसे ज्यादा वर्षा की उम्मीद सितंबर माह में 110% प्रतिशत तक है। 

मानसून की आहट : किसानों ने की धान की नर्सरी की तैयारी की शुरुआत

मानसून की आहट : किसानों ने की धान की नर्सरी की तैयारी की शुरुआत

मानसून की आहट : मथुरा के नौहझील क्षेत्र में धान की नर्सरी तैयार करते किसान

मानसून की आहट देख किसानों ने धान की नर्सरी की तैयारी शुरू कर दी है। धान-बीज विक्रेताओं की दुकानों पर धान का बीज खरीदने को किसानों की भीड़ लगने लगी है। नर्सरी में पौध तैयार होते ही धान (Rice Paddy) की रोपाई शुरू हो जाएगी। 

किसानों को इस बार भी अच्छी वर्षा की उम्मीद है। जिसे देखकर किसान धान की पैदावार करने के लिए सक्रिय हो गए हैं। हालांकि धान की फसल की रोपाई में अभी वक्त बाकी है, लेकिन धान की रोपाई के लिए किसानों ने नर्सरी की तैयारी शुरू कर दी है। 

सिंचाई साधन मौजूद होने पर कुछ किसानों ने तो धान की पौध तैयार करने के लिए खेत तैयार कर लिए हैं। नौहझील ब्लॉक के गांव भालई निवासी किसान जितेन्द्र सिंह ने बताया कि धान की रोपाई समय से होने पर अच्छी उपज की संभावना बनी रहती है। जिससे समय से नर्सरी (पौध) की तैयारी की जा रही है। 

मथुरा के गांव मरहला मुक्खा निवासी किसान लेखराज सिंह का कहना है कि धान की उपज के लिए बाजार में विभिन्न प्रजातियों के बीज दुकानदारों द्वारा बेचे जा रहे हैं। अच्छा बीज भी पैदावार के लिए महत्वपूर्ण होता है।

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कैसे तैयार करें धान की नर्सरी

ऐसे लगाएं धान की नर्सरी: - धान की नर्सरी लगाने से पहले खेत की 2-3 बार अच्छे से जुताई कर लें। - खेत में छोटी-छोटी क्यारियां बनाकर 50-55 सेमी ऊंची मेंड़बंदी कर लें। - धान की बीजाई से पहले बीजों को अंकुरित कर लेना चाहिए।

पौध के अच्छे विकास के लिए धान नर्सरी में प्रति 500 वर्गमीटर क्षेत्र में 5 किलो नाइट्रोजन, 1.60 किलो फास्फोरस, 2.1 किलो पोटाश मिट्टी में डालकर अच्छे से मिला लें। - पौधों के अच्छे अंकुरण के लिए पानी की बेहद जरूरत होती है। शाम के समय नियमित पानी लगाएं - समय-समय पर पौधों पर कीटनाशक छिड़काव भी जरूरी है।

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नर्सरी के लिए बीज की आवश्यकता

- खेत में क्यारियां तैयार करने के बाद उपचारित धान के बीज का प्रति 100 वर्ग मीटर 500 से 800 ग्राम बीज का छिड़काव करना चाहिए। - विभिन्न किस्मों के अनुसार बीज की मात्रा थोड़ी बहुत कम या ज्यादा हो सकती है। - अत्यधिक ज्यादा बीज से पौधों की ग्रोथ (बढ़वार) कम होने की संभावना रहती है। अतः नर्सरी में तय दर के हिसाब से बीज डालना चाहिए।

नर्सरी का समय और धान रोपाई का समय

धान की कई किस्में जल्दी पककर तैयार हो जाती हैं। उनकी नर्सरी जून के दूसरे सप्ताह में शुरू हो जानी चाहिए। वहीं कुछ किस्में देर से पककर तैयार होतीं हैं, उनकी नर्सरी जून के तीसरे सप्ताह में शुरू हो जानी चाहिए। - धान रोपाई के लिए जलाई माह का दूसरा व तीसरा सप्ताह उत्तम रहता है।

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अगर किसान भाई धान की फसल की करें उचित देखभाल, तो हो जायेंगे मालामाल। ------- लोकेन्द्र नरवार

दक्षिण-पश्चिम मानसून ने समय से पहले केरल में दे दी दस्तक

दक्षिण-पश्चिम मानसून ने समय से पहले केरल में दे दी दस्तक

भारत मौसम विज्ञान विभाग की ओर से कहा गया कि 29 मई को मॉनसून ने केरल में दस्तक दे दी है, जबकि इसकी शुरुआत की सामान्य तौर पर जून से होती है| भारत मौसम विज्ञान विभाग (Indian Meteorological Department - IMD) के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने कहा, " दक्षिण-पश्चिम मानसून ने 1 जून की शुरुआत की सामान्य तारीख के मुकाबले रविवार, 29 मई को केरल में प्रवेश किया है| दक्षिण-पश्चिम मानसून अपने समय से पहले आ गया है |"

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इंडियन मेट्रोलॉजिकल डिपार्टमेंट की ओर से इस बात की जानकारी दी गई है कि 29 मई को मॉनसून ने केरल में दस्तक दे दी है, जबकि इसकी शुरुआत की सामान्य तौर पर 1 जून से होती है| दक्षिण-पश्चिम मानसून को भारत की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था  माना जाता है| लेकिन मौसम विभाग में कहा गया है कि केरल के ऊपर दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की शुरुआत के लिए स्थितियां अनुकूल बनी हुई हैं| आगे के लिए भी स्थितियां अनुकूल हैं| दक्षिण पश्चिम मॉनसून अरब सागर और लक्षद्वीप क्षेत्र के कुछ और हिस्सों में आगे बढ़ रहा है|

अगले पांच दिनों में यहां बारिश हो सकती है :

  1. 30 और 31 मई को उप-हिमालयी क्षेत्र, पश्चिम बंगाल और सिक्किम में भारी वर्षा की संभावना है|
  2. 29 मई से 01 जून के दौरान असम-मेघालय, मणिपुर, मिजोरम और त्रिपुरा में बारिश हो सकती है|
  3. केरल और लक्षद्वीप में गरज / बिजली के साथ व्यापक रूप से हल्की / मध्यम वर्षा होने की संभावना है|
  4. अगले 5 दिनों के दौरान आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु, पुडुचेरी और कराईकल में छिटपुट भारी वर्षा की संभावना है|
  5. इसके अतिरिक्त कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में अगले 5 दिनों के दौरान हल्की/मध्यम वर्षा की संभावना है. वहीं, अगले 2 दिनों के दौरान उत्तर प्रदेश और पूर्वी राजस्थान में बारिश हो सकती है|
  6. जबकि 29 मई को हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में अलग-अलग जगह ओलावृष्टि की संभावना है|
   
मौसम विभाग के अनुसार इस बार पर्याप्त मात्रा में होगी बारिश, धान की खेती का बढ़ा रकबा

मौसम विभाग के अनुसार इस बार पर्याप्त मात्रा में होगी बारिश, धान की खेती का बढ़ा रकबा

मौसम विभाग के अनुसार इस बार बारिश पिछले बीते हुए सालो की अपेक्षा ज्यादा होगी. इस बार बारिश की कमी के कारण सुखा नही पड़ेगा, न ही पानी के कमी के कारण फसलों का नुकसान होगा. इस बात से किसान बहुत खुश है. क्योंकि बारिश होने से फसल अच्छी होगी. जिसको देखते हुए खरीफ फसल के धन का रकबा बढ़ा दिया गया है. धान की खेती के लिए किसान तेजी से जुटे है. कुछ किसान धान की नर्सरी डाल चुके है वही कुछ किसान नर्सरी जल्द ही डालने वाले है. कृषि विभाग के अनुसार पहले धान की खेती के लिए 35 हजार हेक्टेयर निर्धारित किया गया था. परंतु मानसून को देखते हुए और मौसम विभाग के अनुमान की इस बार बारिश भरपूर होगी, इसकी वजह से 20 हजार हेक्टेयर रकबा बढ़ा दिया गया है. जिस वजह से अब 55 हजार हेक्टेयर में धान की खेती होगी. जिसके लिए 700 क्विटल बीज सरकारी बीज भंडार से बांटा जा चुका है. 200 क्विटल ढैंचा का बीट खेत की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए बीज भंडार से किसानों को बांटा जा चुका है. पैदावार को बढ़ाने के लिए ढैंचा की बुआई की जाती है. किसान इस बार जी जान से लगे है की पैदावार अच्छी हो क्योंकि बीते वर्ष के मुताबिक इस साल गेहूं की पदावर कम हुई है.
हल्के मानसून ने खरीफ की फसलों का खेल बिगाड़ा, बुवाई में पिछड़ गईं फसलें

हल्के मानसून ने खरीफ की फसलों का खेल बिगाड़ा, बुवाई में पिछड़ गईं फसलें

नई दिल्ली। कहावत है ''बिन पानी सब सून''। वाकई बिना पानी के सब कुछ शून्य है। बारिश बिना खरीफ के आठ फसलों का पूरा खेल बिगड़ता दिखाई दे रहा है। हल्के मानसून के चलते खरीफ की फसलों की बुवाई पिछड़ती जा रही है।

ये भी पढ़ें: किसान भाई ध्यान दें, खरीफ की फसलों की बुवाई के लिए नई एडवाइजरी जारी पिछले साल के मुकाबले, इस बार खरीफ की फसलों की बुवाई में ९.२७ फीसदी गिरावट हुई है। बुवाई का यह आंकड़ा ४१.५७ हेक्टेयर तक पीछे जा रहा है। साल २०२१ में ४४८.२३ लाख हेक्टेयर जमीन में खरीफ की फसलें बोई गईं थीं, लेकिन इस साल आठ जुलाई तक सिर्फ ४०६.६६ लाख हेक्टेयर फसल बोई गईं हैं। कम बारिश के चलते धान और तिलहन की फसलें सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहीं हैं। महाराष्ट्र, पूर्वी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड के कई क्षेत्रों में कमजोर बारिश के कारण खेती लगातार पिछड़ती जा रही है।

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पंपसेट लगाकर महंगा डीजल फूंककर धान की रोपाई कर रहे किसान

कमजोर मानसून की मार झेल रहे किसान पंपसेट लगाकर धान की रोपाई कर रहे हैं। समय पर धान की रोपाई हो जाए, इसके लिए महंगा डीजल भी फूंक रहे हैं। इससे फसल की लागत बढ़ रही है, जो भविष्य में घाटे का सौदा बन सकती है।

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धान रोपाई की क्या स्थिति है ?

चालू खरीफ सीजन २०२२ में ८ जुलाई तक ७२.२४ लाख हेक्टेयर में धान की रोपाई और बुवाई हो चुकी है। जबकि २०२१ में ८ जुलाई तक यह ९५ लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। मतलब इसमें करीब २३.९५ फीसदी की कमी है, जो २२.७५ लाख हेक्टेयर की कमी को दर्शाता है। धान सबसे ज्यादा पानी खपत वाली फसलों में से एक है। इसलिए इसकी रोपाई के लिए किसान आमतौर पर बारिश का ही इंतजार करते हैं।

बुवाई में दलहन आगे तो तिलहन की फसल हैं पीछे

पिछले साल के मुकाबले बात करें तो दलहन की फसलों की बुवाई में ०.९८ फीसदी का इजाफा है। साल २०२१ में कुल दलहन फसलों की ४६.१० लाख हेक्टेयर में बुवाई हुई थी, जबकि इस बार ४६.५५ लाख हेक्टेयर की हो चुकी है। हालांकि, अरहर की बुवाई में २८.५८ परसेंट की गिरावट है। पिछले साल मतलब २०२१ में २३.२२ लाख हेक्टेयर में अरहर की बुवाई हुई थी। जबकि इस बार १६.५८ लाख हेक्टेयर में ही हो सकी है। उड़द की बुवाई में १०.३४ फीसदी की कमी है।

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उधर तिलहन की फसलों की बुवाई में लगभग २०.२६ फीसदी की गिरावट है। साल २०२१ में ८ जुलाई तक ९७.५६ लाख हेक्टेयर में मूंगफली, सूरजमुखी, नाइजर सीड सोयाबीन और अन्य तिलहन फसलों की बुवाई हो चुकी थी। जबकि इस साल सिर्फ ७७.८० लाख हेक्टेयर में हुई है। सोयाबीन की बुवाई में २१.७४ फीसदी की कमी है। क्योंकि मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में बारिश में देरी हुई है। इसकी बुवाई के लिए खेत में नमी की जरूरत होती है।

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२०२२ में बाजरा की बुवाई की स्थिति?

बात करते हैं साल २०२२ में बाजरे के बुवाई की। बाजरा की बुवाई पिछले साल से अधिक हो चुकी है। इस साल ६५.३१ लाख हेक्टेयर में ज्वार, बाजरा, रागी, मक्का और स्माल मिलेट्स की बुवाई हुई है। जबकि २०२१ में ८ जुलाई तक सिर्फ ६४.३६ लाख हेक्टेयर में हुई थी। बाजरा की बुवाई पिछले साल के मुकाबले इस बार ७९.२६ फीसदी अधिक है. हालांकि, मक्का की बुवाई २३.५३ फीसदी जबकि रागी की ४७.४४ परसेंट पिछड़ी हुई है। ------- लोकेन्द्र नरवार
बारिश के चलते बुंदेलखंड में एक महीने लेट हो गई खरीफ की फसलों की बुवाई

बारिश के चलते बुंदेलखंड में एक महीने लेट हो गई खरीफ की फसलों की बुवाई

झांसी। बुंदेलखंड के किसानों की समस्या कम होने की बजाय लगातार बढ़ती जा रहीं हैं। पहले कम बारिश के कारण बुवाई नहीं हो सकी, अब बारिश बंद न होने के चलते बुवाई लेट हो रहीं हैं। इस तरह बुंदेलखंड के किसानों के सामने बड़ी परेशानी खड़ी हो गई है। मौसम खुलने के 5-6 दिन बाद ही मूंग, अरहर, तिल, बाजरा और ज्वर जैसी फसलों की बुवाई शुरू होगी। लेकिन बुंदेलखंड में इन दिनों रोजाना बारिश हो रही है, जिससे बुवाई काफी पिछड़ रही है।

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बारिश से किसानों पर पड़ रही है दोहरी मार

- 15 जुलाई को क्षेत्र के कई हिस्सों में करीब 100 एमएम बारिश हुई, जिससे किसानों ने थोड़ी राहत की सांस ली और किसान खेतों में बुवाई की तैयारियों में जुट गए। लेकिन रोजाना बारिश होने के चलते खेतों में अत्यधिक नमी बन गई है, जिसके कारण खेतों को बुवाई के लिए तैयार होने में वक्त लगेगा। वहीं शुरुआत में कम बारिश के कारण बुवाई शुरू नहीं हुई थी। इस तरह किसानों को इस बार दोहरी मार झेलनी पड़ रही है।

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नमी कम होने पर ही खेत मे डालें बीज

- खेत में फसल बोने के लिए जमीन में कुछ हल्का ताव जरूरी है। लेकिन यहां रोजाना हो रही बारिश से खेतों में लगातार नमी बढ़ रही है। नमी युक्त खेत में बीज डालने पर वह बीज अंकुरित नहीं होगा, बल्कि खेत में ही सड़ जाएगा। इसमें अंकुरित होने की क्षमता कम होगी। बारिश रुकने के बाद खेत में नमी कम होने पर ही किसान बुवाई कर पाएंगे।

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रबी की फसल में हो सकती है देरी

- खरीफ की फसलों की बुवाई लेट होने का असर रबी की फसलों पर भी पड़ता दिखाई दे रहा है। जब खरीफ की फसलें लेट होंगी, तो जाहिर सी बात है कि आगामी रबी की फसल में भी देरी हो सकती है।
जानें इस साल मानसून कैसा रहने वाला है, किसानों के लिए फायदेमंद रहेगा या नुकसानदायक

जानें इस साल मानसून कैसा रहने वाला है, किसानों के लिए फायदेमंद रहेगा या नुकसानदायक

मौसम विभाग ने किसानों के लिए मौस्मिक पूर्वानुमान जारी किया है। इसकी वजह से किसानों की चिंता भी काफी बढ़ गई है। मोैसमिक अनिश्चिताओं की वजह से किसानों की धड़कनें थम गई हैं। 

विगत फरवरी और मार्च माह में भी किसान बेहद हताश नजर आए थे। स्काईमेट (Skymet) की तरफ से एल नीनो के खतरे की ओर इशारा करते हुए भारत में इस वर्ष सामान्य से भी कम मानसून वर्षा होने की आशंका जताई गई है।

आजकल संपूर्ण विश्व में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव साफ तौर पर दिखाई देने लगे हैं। इस वर्ष भारत में फरवरी-मार्च माह से ही मौसमिक रुझान काफी बेकार नजर आ रहा है। 

फरवरी माह में आकस्मिक रूप से तापमान में वृद्धि तो मार्च के माह में कई दिनों तक निरंतर बेमौसम बरसात देखने को मिली है। यह मौसमिक अनियमितता खेती-किसानी के लिए बिल्कुल सही नहीं है। 

इस वर्ष मानसून को लेकर भारतीय मौसम विज्ञान विभाग एवं प्राइवेट फॉरकास्टर स्काईमेट ने पूर्वानुमान जारी कर दिया है। 

आईएमडी द्वारा जारी किए गए पूर्वानुमान के अनुरूप इस वर्ष भारत में मानसून लगभग सामान्य ही रहेगा। इससे किसान भाइयों को काफी राहत मिलेगी एवं कृषि उत्पादन की चिंता भी खत्म हो जाएगी। 

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भारतीय मौसम विज्ञान विभाग का मौसमिक पूर्वानुमान क्या कहता है

आईएमडी के अनुसार, जून-सितंबर की समयावधि के अंतर्गत बारिश की संभावना औसत से 96% प्रतिशत होने की आशंका है। 

भारत में जून से चार माह तक 50 वर्ष के औसत मतलब कि सामान्य 87 सेंटीमीटर वर्षा होने की संभावना है, जो 96% और 104% के मध्य रहेगी। 

इसके साथ-साथ मौसम विभाग द्वारा उत्तर पश्चिम भारत के कुछ क्षेत्र, पश्चिम-मध्य भारत के कुछ भागों एवं उत्तर पूर्व भारत के कुछ क्षेत्रों में सामान्य से भी कम बरसात होने का अनुमान जताया जा रहा है। 

निजी फॉरकास्टर स्काईमेट द्वारा भी इसी तरह का पूर्वानुमान जारी किया है। जिसने अलनीनो का हवाला देते हुए सोमवार को मानसून पूर्वानुमान जारी करते हुए कहा है, कि इस वर्ष भारत में मानसून की बारिश सामान्य अथवा उससे कम ही रहेगी।

मई में मौसम कैसा रहने वाला है

मई माह के दौरान भारत का तापमान काफी गर्म और 28°C से 33°C के मध्य होता है। मौसम विभाग के पूर्वानुमान के अनुसार मई माह के दौरान गर्म तापमान और बारिश होने की भी संभावना जताई जा रही है। 

तापमान एवं नमी के संयोजन के परिणामस्वरूप नम दिन हो सकते हैं, इस वजह से गर्मी और बारिश दोनों होने की आशंका जाहिर की गई है।

क्या वर्षा सामान्य से कम होने की आशंका है

स्काईमेट के वेदर सर्विसेज के अनुरूप आने वाले मानसून सीजन में जून से सिंतबर के मध्य 94 % फीसद वर्षा होनी है। इसके चलते भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में गर्म जल की वजह से अल नीनो घटना विश्वभर में मौसम के मिजाज पर काफी असर ड़ाल सकती है। 

विशेष रूप से भारत में अल नीनो शुष्क परिस्थितियों एवं कम बारिश को दर्शाता है। इस पर आईएमडी ने कहा है, कि अलनीनो के प्रभावों को मानसून के मौसम मतलब कि वर्ष के दूसरे छमाही में अनुभव किया जा सकता हैं। 

हालांकि, विशेषज्ञों का यह भी कहना है, कि समस्त अलनीनो खराब वर्षा का संकेत नहीं होती हैं। मानसून हेतु सर्वोत्तम स्थिति अलनीना होती है,जो भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में परिवर्तित हो चुकी है।

क्या यह खेती किसानी को प्रभावित करेगी ?

हालाँकि, सामान्य अथवा औसत वर्षा कृषि क्षेत्र हेतु राहत का संकेत है। परंतु, किसी कारण वश मानसून में कमी आती है, तो किसान भाइयों को अच्छी पैदावार लेने के लिए सिचाई साधन हेतु कृत्रिम संसाधनों की व्यवस्था करनी पड़ेगी।

आजकल आधुनिक तकनीकों के बावजूद भी भारत की अधिकांश कृषि मौसम पर ही निर्भर रहती है। भारत के कृषि क्षेत्र से करोड़ों की जनसँख्या का भरण-पोषण सुनिश्चित होता है। 

परंतु, राष्ट्र की 60 फीसदी आबादी स्वयं का जीवन यापन करने के लिए खेती-किसानी से जुड़ी हुई है। यह अर्थव्यवस्था के 18 प्रतिशत भाग को दर्शाती है, जो कि बेहद तीव्रता से उन्नति कर रहा है। 

परंतु, इसके चलते मौसम जनित समस्याऐं और जटिलताएं भी हावी रहती हैं। मीडिया के मुताबिक, स्पष्ट रूप से कहा गया है, कि भारत की तकरीबन आधी कृषि भूमि असिंचित है, जहां पर सिंचाई काफी कम की जाती है। 

इन क्षेत्रों में गन्ना, कपास, सोयाबीन, धान और मक्का जैसी फसल बेहतर उत्पादन हेतु जून-सितंबर की वर्षा पर आश्रित रहती हैं।

मानसून की धीमी रफ्तार और अलनीनो बढ़ा रहा किसानों की समस्या

मानसून की धीमी रफ्तार और अलनीनो बढ़ा रहा किसानों की समस्या

आपकी जानकरी के लिए बतादें, कि विगत 8 जून को केरल में मानसून ने दस्तक दी थी। इसके उपरांत मानसून काफी धीमी गति से चल रही है। समस्त राज्यों में मानसून विलंभ से पहुंच रहा है। केरल में मानसून के आने के पश्चात भी फिलहाल बारिश औसत से कम हो रही है। साथ ही, मानसून काफी धीरे-धीरे अन्य राज्यों की ओर बढ़ रही है। पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा समेत बहुत से राज्यों में लोग बारिश के लिए तरस रहे हैं। हालांकि, बिहार एवं झारखंड में मानसून की दस्तक के उपरांत भी प्रचंड गर्मी पड़ रही है। लोगों का लू एवं तेज धूप से हाल बेहाल हो चुका है। यहां तक कि सिंचाई की पर्याप्त उपलब्धता में गर्मी की वजह से फसलें सूख रही हैं। ऐसी स्थिति में किसानों के मध्य अलनीनो का खतरा एक बार पुनः बढ़ चुका है। साथ ही, जानकारों ने बताया है, कि यदि मौसम इसी प्रकार से बेईमान रहा तो, इसका असर महंगाई पर भी देखने को मिल सकता है, जिससे खाद्य उत्पाद काफी महंगे हो जाऐंगे।

अलनीनो की वजह से महंगाई में बढ़ोत्तरी हो सकती है

मीडिया खबरों के अनुसार, अलनीनो के कारण भारत में खुदरा महंगाई 0.5 से 0.6 प्रतिशत तक बढ़ सकती है। मुख्य बात यह है, कि अलनीनो की वजह से आटा, गेहूं, मक्का, दाल और चावल समेत खाने-पीने के समस्त उत्पाद भी महंगे हो जाऐंगे। साथ ही, अलनीनो का प्रभाव हरी सब्जियों के ऊपर भी देखने को मिल सकता है। इससे
शिमला मिर्च, खीरा, टमाटर और लौकी समेत बाकी हरी सब्जियों की कीमतों में काफी इजाफा हो जाऐगा।

मानसून काफी आहिस्ते-आहिस्ते चल रहा है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि केरल में 8 जून को मानसून का आगमन हुआ था। जिसके बाद मानसून काफी आहिस्ते-आहिस्ते चल रही है। यह समस्त राज्यों में विलंब से पहुँच रहा है। विशेष बात यह है, कि मानसून के आगमन के उपरांत भी अब तक बिहार समेत विभिन्न राज्यों में वर्षा समान्य से भी कम दर्ज की गई है। अब ऐसी स्थिति में सामान्य से कम बारिश होने से खरीफ फसलों की बिजाई पर प्रभाव पड़ सकता है। अगर मानसून के अंतर्गत समुचित गति नहीं आई, तो देश में महंगाई में इजाफा हो सकता है। यह भी पढ़ें: मानसून के शुरुआती जुलाई महीने में किसान भाई क्या करें

2023-24 में इतने प्रतिशत महंगाई होने की संभावना

भारत में अब तक बारिश सामान्य से 53% प्रतिशत कम दर्ज की गई है। सामान्य तौर पर जुलाई माह से हरी सब्जियां महंगी हो जाती हैं। साथ ही, ब्रोकरेज फर्म ने फाइनेंसियल ईयर 2023-24 में महंगाई 5.2 प्रतिशत रहने का अंदाजा लगाया है। उधर रिजर्व बैंक ने कहा है, कि चालू वित्त वर्ष में महंगाई 5 प्रतिशत अथवा उससे कम भी हो सकती है।

चीनी की पैदावार में इस बार गिरावट देखने को मिली है

बतादें, कि भारत में सामन्यतः चीनी की पैदावार में विगत वर्ष की अपेक्षा कमी दर्ज की गई है। साथ ही, चावल की हालत भी ठीक नहीं है। इस्मा के अनुसार, चीनी की पैदावार 3.40 करोड़ टन से घटकर 3.28 करोड़ टन पर पहुंच चुकी है। साथ ही, यदि हम चावल की बात करें तो अलनीनो के कारण इसका क्षेत्रफल इस बार सिकुड़ सकता है। वर्षा कम होने के चलते किसान धान की बुवाई कम कर पाऐंगे, क्योंकि धान की फसल को काफी ज्यादा जल की आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में धान की पैदावार में गिरावट आने से चावल महंगे हो जाएंगे, जिसका प्रभाव थोक एवं खुदरा बाजार में देखने को मिल सकता है।
टमाटर, अदरक के साथ साथ इन सब्जियों के भी बढ़ गए दोगुने दाम

टमाटर, अदरक के साथ साथ इन सब्जियों के भी बढ़ गए दोगुने दाम

भारत की राजधानी दिल्ली में टमाटर अब 200 से भी ज्यादा हो गया है। इसी प्रकार अदरक, भिंडी एवं शिमला मिर्च की कीमतें भी बढ़ चुकी हैं। जैसा कि हम सब जानते हैं, कि मानसून के दस्तक देते ही महंगाई रॉकेट की गति से बढ़ गई है। बतादें कि टमाटर के पश्चात वर्तमान में अदरक, प्याज और लहसुन समेत विभिन्न सब्जियां काफी महंगी हो गई हैं। इसकी वजह से आम जन मानस की थाली से विटामिन्स से भरपूर डिशेज विलुप्त हो गई हैं। महंगाई का कहर यहां तक है, कि 30 से 40 रुपए में उपलब्ध होने वाली हरी-सब्जियां ही खरीदना बंद कर दिया है। अब उसके स्थान पर वह चना सोयाबीन और आलू की सब्जियॉं खाकर अपने पेट का भरण पोषण करते हैं।

टमाटर की कीमतें 200 से भी ऊपर हुई

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में टमाटर 200 रुपये किलो से भी अधिक महंगा हो गया है। अदरक की तो चर्चा करना ही छोड़ दीजिए। यह 320 रुपये किलो हो गया है। जनता भाव सुनकर ही सब्जियों की दुकान से दूरियां बना ले रहे हैं। विशेष बात यह है, कि दिल्ली में इतनी महंगी सब्जियां तब है, जबकि यहां पर उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब और उत्तराखंड से खाद्य पदार्थों की आपूर्ति होती है। ये भी पढ़े: इन राज्यों में 200 रुपए किलो के टमाटर को राज्य सरकार की मदद से 60 रुपए किलो में बेचा जा रहा है

धनिया हुआ 100 के भाव

ओखला सब्जी मंडी में टमाटर के अतिरिक्त बाकी सब्जियों की कीमतों में दोगुना से ज्यादा की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। अगर हम बात दिल्ली के रिटेल मार्केट की करें, तो यहां पर सब्जियों की कीमत सांतवें आसमान पर पहुंच गई है। टमाटर 220 रुपए तो शिमला मिर्च 100 से 110 रुपए किलो बिक रही है। यही स्थिति धनिया के साथ भी है। 40 से 50 रुपये किलो खुदरा मार्केट में बिकने वाले धनिया की कीमत 100 रुपए तक पहुँच चुकी है।

इन सब्जियों की बढ़ी कीमत

इसी प्रकार खीरे की कीमत में भी आग लग चुकी है। जो खीरा एक महीने पहले तक 20 रुपये किलो था, अब इसकी कीमत में दोगुना से भी ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। लोगों को एक किलो खीरा खरीदने पर 40 से 50 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। इसी प्रकार भिंडी भी 50 रुपये किलो हो गई है। विशेष बात यह है, कि फूलगोभी तीन गुना महंगा हो गया है। जानकारी के लिए बतादें, कि 30 से 35 दिन पहले तक फूलगोभी 40 रुपये किलो था। वर्तमान में फूलगोभी कीमत 120 रुपये किलो हो गई है। इस कड़ी में 80 रुपये किलो नींबू 100 रुपये किलो हरी मिर्च और 60 रुपये किलो करेला बिक रहा है।