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मक्का की खेती करने के लिए किसान इन किस्मों का चयन कर अच्छा मुनाफा उठा सकते हैं

मक्का की खेती करने के लिए किसान इन किस्मों का चयन कर अच्छा मुनाफा उठा सकते हैं

आज हम आपको इस लेख में मक्के की खेती के लिए चयन की जाने वाली बेहतरीन किस्मों के बारे में बताने वाले हैं। क्योंकि मक्के की अच्छी पैदावार लेने के लिए उपयुक्त मृदा व जलवायु के साथ-साथ अच्छी किस्म का होना भी बेहद महत्वपूर्ण होता है। 

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि खरीफ सीजन में मक्का उत्पादक कृषकों के लिए खुशखबरी है। आज हम मक्का उत्पादक किसानों के लिए मक्के की ऐसी प्रजाति लेकर आए हैं, जिसकी खेती से किसान कम खर्चे में अधिक लाभ उठा सकते हैं। 

साथ ही, उनको मक्के की इन प्रजातियों की सिंचाई भी कम करनी पड़ेगी। मुख्य बात यह है, कि विगत वर्ष ICAR का लुधियाना में मौजूद भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान द्वारा इन किस्मों को विकसित किया था। 

इन किस्मों में रोग प्रतिरोध क्षमता काफी ज्यादा है एवं पौष्टिक तत्वों की भी प्रचूर मात्रा है। यदि किसान भाई मक्के की इन प्रजातियों की खेती करते हैं, तो उनको अच्छी-खासी उपज मिलेगी।

मक्का की IMH-224 किस्म

IMH-224 किस्म: IMH-224 मक्के की एक उन्नत प्रजाति है। इसको वर्ष 2022 में भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित किया गया था। यह एक प्रकार की मक्के की संकर प्रजाति होती है। 

अब ऐसे में झारखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडिशा के किसान खरीफ सीजन में इसकी बिजाई कर सकते हैं। क्योंकि IMH-224 एक वर्षा आधारित मक्के की प्रजाति होती है। IMH-224 मक्के की किस्म में सिंचाई करने की जरूरत नहीं होती है। 

बारिश के जल से इसकी सिंचाई हो जाती है। इसका उत्पादन 70 क्टिंल प्रति हेक्टेयर के करीब होता है। मुख्य बात यह है, कि इसकी फसल 80 से 90 दिनों के समयांतराल में तैयार हो जाती है। 

रोग प्रतिरोध होने के कारण से इसके ऊपर चारकोल रोट, मैडिस लीफ ब्लाइट एवं फुसैरियम डंठल सड़न जैसे रोगों का प्रभाव नहीं पड़ता है। 

यह भी पढ़ें: मक्का की खेती के लिए मृदा एवं जलवायु और रोग व उनके उपचार की विस्तृत जानकारी

मक्का की IQMH 203 किस्म

IQMH 203 किस्म: मक्के की इस प्रजाति को वैज्ञानिकों द्वारा वर्ष 2021 में इजात किया गया था। यह एक प्रकार की बायोफोर्टिफाइड प्रजाति होती है। वैज्ञानिकों ने राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के मक्का उत्पादक किसानों को ध्यान में रखते हुए विकसित किया था।

IQMH 203 प्रजाति 90 दिनों की समयावधि में पककर कटाई हेतु तैयार हो जाती है। जैसा कि हम जानते हैं, कि मक्का एक खरीफ फसल है। कृषक मक्का की IQMH 203 किस्म का उत्पादन खरीफ सीजन में कर सकते हैं। 

इसके अंदर प्रोटीन इत्यादि पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इतना ही नहीं मक्के की इस किस्म को कोमल फफूंदी, चिलोपार्टेलस एवं फ्युजेरियम डंठल सड़न जैसे रोगों से भी अधिक क्षति नहीं पहुँचती है।

मक्का की PMH-1 LP किस्म

PMH-1 LP किस्म: पीएमएच-1 एलपी मक्के की एक कीट और रोग रोधी प्रजाति है। मक्का की इस प्रजाति पर चारकोल रोट एवं मेडिस लीफ ब्लाइट रोगों का प्रभाव बेहद कम होता है। 

पीएमएच-1 एलपी किस्म को दिल्ली, उत्तराखंड, हरियाणा एवं पंजाब के किसानों को ध्यान में रखते हुए इजात किया गया है। यदि इन प्रदेशों में किसान इसका उत्पादन करते हैं, तो प्रति हेक्टेयर 95 क्विंटल की पैदावार मिल सकती है। 

मक्का की खेती से किसान भाई अच्छी-खासी आय कर सकते हैं। मक्का की खेती कृषकों के किए काफी फायदेमंद साबित होती है।

केले की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

केले की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

आज हम केले की फसल के बारे में बात करने जा रहे हैं हमारे यूजर  ने पूछा था कि केला की फसल के बारे में जानकारी दें तो पहले तो हम अपने सभी रीडर को धन्यवाद कहना चाहेंगे जिनका हमें इतना प्यार और सहयोग मिल रहा है आप सभी का दिल से धन्यवाद. केला यह ऐसी फसल है जिससे पैसे के साथ-साथ आपको तंदुरुस्ती और ऊर्जा मिलती है. हमारे शरीर के लिए जो भी विटामिन जरूरी होती हैं वह हमें केले से मिल जाती है केले का यूज़ हमारे रोजमर्रा के जीवन में भी काम आता है जैसे मिल्क से बनाना शेक,चिप्स, जैम और भी बहुत तरह की चीजें बनती हैं केले के पेड़ थैला और रस्सी भी बनती है. कहने का तात्पर्य है कि केले का हमारे जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है. केला ज्यादा मुनाफा देने वाली फसल है तो इस वजह से उसकी देखरेख भी उतनी ही करनी होती है जितना केले से फायदा हो सकता है उतना ही जल्दी अगर उसकी देखरेख ढंग से ना हुई हो तो नुकसान हो सकता है इसलिए उसकी सुरक्षा भी बहुत जरूरी है चाहे वह मौसम से हो चाहे वह कीड़ों से हो. इस फसल में कीड़े भी बहुत लगते हैं इस को बचाने के लिए हमें खेत को साफ रखना चाहिए और ध्यान रहे कि इसकी फसल को ढंग से हवा और पानी की निकासी की समुचित व्यवस्था हो और केले को ज्यादा से ज्यादा फायदेमंद बनाने के लिए जरूरी है कि इसकी खेती वैज्ञानिक तकनीकी से की जाए उससे आप लोगों को फायदा के साथ-साथ उच्च गुणवत्ता की फसल मिलेगी. अगर फसल में कोई रोग नहीं होगा तो फसल अच्छी आएगी और फसल अच्छी आने पर आपको बाजार का रेट भी अच्छा मिलेगा. कोई भी फसल करने से पहले हमें अपने खेत की मिट्टी की जांच जरूर करा लेनी चाहिए उससे हमारा डबल फायदा होता है एक तो हमें बिना मतलब के कोई भी कीटनाशक और खाद नहीं डालना पड़ता ऊपर से हमारी पैदावार भी बढ़ जाती है क्योंकि जिस चीज की जरूरत हमारी मिट्टी और फसल को होती है फिर हम उसका उपचार उसी तरह से करते हैं.

केले की खेती के लिए मिट्टी का चुनाव

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मिट्टी का उपचार

पहले तो हमें अपने खेत की मिट्टी की जाँच करानी चाहिए उसके हिसाब से ही आगे की खाद या उपचार की व्यवस्था करानी चाहिए अगर भूमि की मिट्टी की जाँच संभव नहीं है तो नीचे लिखे तरीकें भी अपना सकते हैं. एक खाद जो सभी फसलों के लिए आवश्यक है वो केला की फसल के लिए भी बहुत उपयोगी है वो है गोबर की बनी हुई या सड़ी हुई खाद. 1. बिवेरिया बेसियान- पांच किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 250 क्विंटल गोबर की सड़ी हुई या बनी हुई खाद में मिलाकर भूमि में प्रयोग करें। यदि खेत में सूत्र कृमि की समस्या है तो पेसिलोमाईसी (जैविक फंफूद) की पांच किलोग्राम मात्रा गोबर की सड़ी हुई खाद में मिलाकर करें। 2.जड़ गाठ सूत्र कृमि केले की फसल को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे फसल की वृद्धि रुक जाती है, एवं पौधे का पूरा पोषक तत्व नहीं मिल पाता है। खड़ी फसल नियंत्रण के लिए नीम की खली 250 ग्राम या कार्बोफ्यूरान 50 ग्राम प्रति पौधा (जड़ के पास) प्रयोग करें। 3.कीटों और बीमारियों से बचने के लिए खेत को बिल्कुल साफ सुथरा रखें, सत्रु कीटों की संख्या कम करने के लिए फसल के बीच बीच में रेडी या अरंडी के पौधे भी लगा सकते हैं। 4.मित्र जीवों की संख्य़ा बढ़ाने के लिए फूलदार वृक्ष (सूरजमुखी, गेंदा, धनिया, तिल्ली आदि) मेढ़ों के किनारे-किनारे लगा सकते हैं। 5.फसल तैयार होने की दशा में पत्ते और तनों के अवशेष खेत से हटाकर गड्ढों में दबाते रहें। फसल की लगातार निगरानी करें। 6.कीटों की संख्या कम करने के लिए पीला चिपचिपा पाष एवं लाइट ट्रैप का इस्तेमाल करें।

केले की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

केले की खेती केले की फसल 13-14 से लेकर 40 डिग्री तापमान तक हो सकती है लेकिन इसके लिए इससे ज्यादा तापमान फसल को झुलसा सकता है तो गर्मी में इसके विशेष देखभाल की जरूरत होती है. अच्छी बारिश की जगह पर ये अपने पूरे लय में होती है या कह सकते हो की बारिश वाली जगह इनके फलने फूलने के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त होती है.

पोषक तत्व :

गोबर की खाद के साथ-साथ आप हरी खाद को भी इसमें मिला सकते हैं इससे आपको कम से कम रासायनिक खाद का प्रयोग करना पड़ेगा और फसल को भी पूर्ण पोषक तत्व मिल जायेंगें. हरी खाद में जैसे ढेंचा,लोबिया जैसी फलों का प्रयोग कर सकते हैं तथा 45 से 60 दिन के अंदर ही उनको रोटावेटर से जुताई करा दें. जिससे उसे जमीन में बारीक़ कण के साथ मिलने में  ज्यादा समय न लगे. केले को लगाने के लिए जून और जुलाई का महीना सही होता है क्यों की उस समय बारिश का मौसम आने लगता है इससे पौधे को ज़माने में दिक्कत नहीं होती है. पौधा ज़माने के बाद अपनी बढ़वार पकड़ने लगता है. जैसा की हमने ऊपर बताया है, टिश्यू कल्चर से लगाए गए पौधों की ग्रोथ अच्छी होती है तथा वो १ साल में ही फसल देने लगते हैं. जून के महीने में केले के पौधों के लिए गड्ढे खोदकर उनमे गोबर की बनी हुई खाद डाल दें अगर दीमक की समस्या हो तो उसका विशेष ध्यान रखें और उसमे दीमक का उपचार के लिए नीम या अन्य दवा का प्रयोग करें जिससे की केले की जड़ों को कोई नुकसान न हो.

केले की फसल का रखरखाब

केले की खेती केला की फसल लम्बी अवधी के लिए होती है तो उसके ध्यान भी उसी तरह रखना चाहिए जैसे उसकी हवा पानी, और निराई गुड़ाई का विशेष ध्यान रखें. कई किसान केले में मल्चिंग तकनीक को अपना रहे है इससे निराई गुड़ाई मजदूरों से नहीं करानी पड़ती है. लेकिन जो किसान सीधे खेत में रोपाई करवा रहे हैं वो रोपाई के ४-५ महीने बाद पौधों पर मिटटी जरूर चढ़ाएं. अगर पानी की निकासी का उचित प्रबंध नहीं होगा तो उससे पौधे को नुकसान हो सकता है इस स्थिति में ड्राप से सिंचाई का तरीका अपनाएं इससे आपको पानी पर भी ज्यादा खर्चा नहीं करना पड़ेगा.

पोषण प्रबंधन

केले की खेती में भूमि की ऊर्वरता के अनुसार प्रति पौधा 300 ग्राम नाइट्रोजन,100 ग्राम फॉस्फोरस तथा 300 ग्राम पोटाश की आवश्यकता पड़ती है। फॉस्फोरस की आधी मात्रा पौधरोपण के समय तथा शेष आधी मात्रा रोपाई के बाद देनी चाहिए। नाइट्रोजन की पूरी मात्रा पांच भागों में बांटकर अगस्त, सितम्बर, अक्टूबर तथा फरवरी एवं अप्रैल में देनी चाहिए। एक हेक्टेयर में करीब 3,700 पुतियों की रोपाई करनी चाहिए। केले के बगल में निकलने वाली पुतियों को हटाते रहें। बरसात के दिनों में पेड़ों के अगल-बगल मिट्टी चढ़ाते रहें। सितम्बर महीने में विगलन रोग तथा अक्टूबर महीने में छीग टोका रोग के बचाव के लिए प्रोपोकोनेजॉल दवाई 1.5 एमएल प्रति लीटर पानी के हिसाब से पौधों पर छिड़काव करें
इस तरह लगाएं केला की बागवानी, बढ़ेगी पैदावार

इस तरह लगाएं केला की बागवानी, बढ़ेगी पैदावार

तमिलनाडु। केले की प्रोसेसिंग से आज कई तरह के उत्पाद बनाए जा रहे हैं, जैसे चिप्स, पापड़ । केले के तने और पत्ते से पत्तल, दोना, कपड़े के लिए रेसा आदि । अगर आप भी केला की खेती करके अच्छी कमाई करना चाहते हैं, तो केला की बागवानी का यह तरीका अधिक फायदेमंद साबित होगा। अपने देश में केला की लगातार मांग बढ़ती जा रही है। किसानों में भी केला की खेती को लेकर जबरदस्त उत्साह है। किसान केला की फसल से बंपर पैदावार ले रहे हैं।

केला की इस प्रजाति के पौधे लगाएं

- प्रत्येक पेड़-पौधों के लिए प्रजाति का बड़ा महत्व होता है। अच्छी और बेहतर क्वालिटी के पेड़-पौधों की प्रजाति हमेशा फायदेमंद रहती है। केला की रोबस्टा एवं बसराई प्रजाति के पौधे ज्यादा कारगर होते हैं। इस प्रजाति के पौधों से अधिक उत्पादन होता है।

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इस तकनीकी से लगाएं केला बागवानी

- तमिलनाडु विश्वविद्यालय में हुए एक विशेष शौध में यह निष्कर्ष निकाला गया कि केला की बागवानी लगाने के लिए प्रत्येक पंक्ति के बीच की दूरी 2×3 मीटर और उतनी ही दूरी पर पौधे से पौधा लगाया जाए। एक हेक्टेयर खेत में तकरीबन 5000 पौधे लगाए जाएं। इसमें पोटाश, नाइट्रोजन व फास्फोरस की मात्रा थोड़ी बढ़ाई जाए। इस विधि से उत्पादन में वृद्धि की संभावना बढ़ सकती है। इस तरह आप केला की प्रथम फसल केवल 12 महीने में ही ले सकते हैं। और इसमें उपज भी बेहतर मिलेगी।

बीटिंग एंड ब्लास्ट रोग से चिंतित हैं केला किसान

- केला की खेती करने वाले किसानों को विभिन्न सावधानी बरतने की जरूरत होती है। केला में एक विशेष प्रकार के रोग के कारण केरल और गुजरात के किसानों की चिंता बढ़ गई है। केला में बीटिंग एंड ब्लास्ट नाम के रोग ने किसानों को चिंतित किया है। इससे किसानों को काफी नुकसान झेलना पड़ रहा है।

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कैसे मिलेगी केला में रोग से निजात

- केला में होने वाले बीटिंग एंड ब्लास्ट रोग से निजात पाने के लिए किसानों को फिलहाल कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। केला में पाए जाने वाले इस रोग से किसानों को काफी नुकसान हो रहा है। ऐसे में जरुरी है कि इस रोग का बचाव सही समय पर किया जाए। यदि केले की फसल में इस रोग का प्रकोप हो जाए, तो इसके लिए आपको सबसे पहले बाज़ार में मिलने वाले फफूंदनाशक में से कोई भी एक का चयन कर घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल में 2 बार पौधों पर छिड़क दें। ध्यान रहे कि छिड़काव केले के फलों के बंच को निकालने के बाद ही करना चाहिए। इस तरह आप बीटिंग एंड ब्लास्ट रोग से फसल का बचाव कर सकते हैं। ------ लोकेन्द्र नरवार
तर वत्तर सीधी बिजाई धान : भूजल-पर्यावरण संरक्षण व खेती लागत बचत का वरदान (Direct paddy plantation)

तर वत्तर सीधी बिजाई धान : भूजल-पर्यावरण संरक्षण व खेती लागत बचत का वरदान (Direct paddy plantation)

* सीधी बिजाई धान क्रांतिकारी संरक्षण/टिकाऊ कृषि तकनीक *

* पर्यावरण हितेषी संरक्षण कृषि तकनीक * भूजल संरक्षण- ग्रीन हाउस गैसें का कम विसर्जन- सुगम फसल अवशेष पराली प्रबंधन! * किसान हितेषी टिकाऊ खेती तकनीक * एक तिहाही भूजल सिचाई, खेती की लागत, श्रम, डीज़ल, बिजली आदि की बचत * झंडा रोग मुक्त फसल व पूरी पैदावार ! फसल विविधिकरण किसान हितेषी वैकल्पिक फसल चक्र से ही सम्भव है! वर्षा ऋतु में आधा प्रदेश जल भराव ग्रस्त होने से, धान फसल का कोई व्यवहायरिक विकल्प नही है। सिवाय भूजल बर्बादी वाली धान की रोपाई पर, क़ानूनी प्रतिबंध 15 जुन की बजाय पहली जुलाई तक बढाकर, भूजल व खेती लागत बचत वाली तर-वत्तर
सीधी बिजाई धान तकनीक को प्रोत्साहन दिया जाए। वैसे भी धान फसल किसान हितेषी (40,000 रूपये/एकड लाभ) होने के साथ-2, राष्ट्रहित मे भी है जो भारत की खाध्य सुरक्षा और 63,000 करोड रूपये वार्षिक निर्यात भी सुनिश्चित करती है ! धान फ़सल से लगातार हो रही भूजल बर्बादी एक गंभीर समस्या है लेकिन लाइलाज नही है। ज़िसे किसान हितेषी व वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित “तर- वत्तर सीधी बिजाई धान" तकनीक को अपनाकर आसानी से हल किया जा सकता है। जो पिछले वर्ष पंजाब में लगभग सात लाख हेक्टर (यानि प्रदेश के कुल धान क्षेत्र के चोथाई हिस्से) और हरियाना मे लगभग 2 लाख हेक्टर भूमि पर सफलता से बहुत बड़े स्तर पर अपनायी गई और लगभग 28 किवंटल प्रति एकड़ की दर से रोपाई धान के बराबर ही पैदावार मिली। तर-वत्तर सीधी धान तकनीक अपनाने से रोपाई धान के बेकार झंझटों (बुआई से पहले खेत में पानी खड़ा करके पाड़े काटना/ कद्दु करना, पौध बोना, उखाड़ना और फिर से लगाना और तीन महीने खेत में पानी खड़ा रखना आदि) से मुक्ति मिलती है और फसल का झंडा/बकानी रोग से भी प्रभावी बचाव होता है । तर- वत्तर सीधी बिजाई धान तकनीक मे बुआई मूँग व गेंहू आदि फ़सलो की तरह बिल्कुल आसान है। जिसे इच्छुक किसान निम्नलिखित विधि अपनाकर, आने वाली पीढ़ियों के भूजल-पर्यावरण संरक्षण और खेती की लागत में भारी बचत कर सकते है। ये भी पढ़े: धान की कटाई के बाद भंडारण के वैज्ञानिक तरीका

* तर-वत्तर सीधी बीजाई धान तकनीक *

तर वत्तर सीधी बिजाई धान की तकनीक से बने खेत औरधान की फसल [Paddy fields after direct plantation ]

1) तर-वत्तर सीधी बीजाई धान की किस्मे

धान की सभी किस्मे कामयाब है!

2) बुआई का समय

25 मई से 5 जुन तक अच्छी नमी वाले तर- वत्तर खेत मे करे (मानसुन आगमन से एक महीना पहले बुआई करे) यानि सीधी बीजाई धान की बुआई रोपाई धान की पौध नर्सरी की बुआई के समय पर ही करनी है !

3) सीधी बिजाई धान के लिए खेत की तैयारी

पहले खेत को समतल बनाए, फिर गहरी सिचाई, जुताई व तर-वत्तर (अच्छी नमी) तैयार खेत मे शाम के समय बुआई करे !

4) बीज की मात्रा व उपचार

बुआई से पहले बीज उपचार बहुत ज़रुरी है ! एक एकड के लिए 8 किलो बीज को 12 घंटे 25 लीटर पानी मे डूबोये, फिर 8 घंटे छाया मे सुखाकर, 2 ग्राम बाविस्टीन और एक मि.ली. क्लोरोपायरीफास प्रति किलो बीज उपचार करे !

5) सीधी बिजाई धान की बुआई का तरीका

लाईन से लाईन की दूरी : 8-9 इंच , बीज की गहराई: मात्र एक इंच रखे!  बुआई बीज मशीन के ईलावा छींटा विधि से भी हो सकती है ! बुआई के बाद खेत की नमी बचाने के लिए हलका पाटा(सुहागा) लगाये!

6) खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार ज़माव रोकने को, बुआई के तुरंत बाद 1.5 लीटर पेंडामेथेलीन प्रति एकड 200 लीटर पानी मे  छिडकाव ज़रूर करे और आवश्कता पड़ने पर 20- 25 दिन बाद 100 लीटर पानी प्रति एकड मे 100 मि. ली. नामिनी गोल्ड (बिस्पाईरीबेक सोडीयम), या 400 मि.ली. राईस स्टार (फेनोक्सापरोप पी ईथाइल) या 8 ग्राम अलमिक्स (क्लोरीम्यूरान ईथाइल मेटसल्फूरान मिथाइल) या 90 ग्राम कौंसील एकटीव (ट्राईमाफोन 20: एथोक्सीसल्फूरान 10) य़ा 250 ग्राम  2,4- डी 80 प्रतिशत सोडीयम साल्ट का छिडकाव करे!

7) सीधी बिजाई धान की सिचाई

पहली सिचाई देर से 21 दिन के बाद और बाद की सिचाई 10 दिन के अंतराल पर गीला - सुखा प्रणाली से वर्षा आधारित करे ! बुआई के बाद अगर पहले सप्ताह मे बे-मौसम वर्षा से भूमि की ऊपरी सतह पर करंड (मिट्टी सख्त हो), तो तुरंत हलकी सिचाई करे वर्ना धान के उगे नये पौधे भूमि की सतह से बाहर नही निकल पायेंगे ! धान के तर बत्तर खेत [watered paddy fields]  

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8) खाद की मात्रा

रोपाई धान की अनुमोदित दर और विधि से ही करे ! धान फसल मे प्रति एकड सामान्यता 40 किलो नाईट्रोजन, 16 किलो फासफोरस और 8-10 किलो पोटाश की ज़रूरत होती है!नाईट्रोजन की एक तिहाही और फासफोरस की पूरी मात्रा बुआई के समय प्रयोग करे, जो एक बेग डी.ए. पी. प्रति एकड से पूरी हो जाती  है! यूरिया और म्यूरेट आफ पोटाश (MOP) उर्वरको का प्रयोग मशीन के खाद बक्से मे नही रखना चाहिए! इन उर्वरको का प्रयोग टाप ड्रेसिंग के रुप मे पहली सिचाई यानि 21दिन बाद करना  चाहिए, उसी समय 10 किलो ज़िंक सल्फेट प्रति एकड भी डालना  चाहिए ! इस विधि से ऊगाई धान फसल की शुरुवाती अवस्था मे अक्सर , आयरन की कमी से पौधो मे पीलापन देखा जाता है उसके लिए, एक प्रतिशत आयरन सल्फेट का छिडकाव एक सप्ताह अंतराल पर दो बार करे ! फसल मे बालिया निसरने पर एक किलो  घूलनशील इफको उर्वरक 13:0:45 प्रति एकड छिडकाव करे !

9) कीट-बिमारीया प्रबंधन

रोपाई धान की अनुमोदित दर और विधि से ही करे, लेकिन ध्यान रखे कि रसायनिक दवायो का प्रयोग अनुमोदित दर से ज्यादा कभी नही करे ! तने की सुंडी (गोभ के  कीडे) के 25-35 दिन के फसल अवस्था पर 8 किलो कारटेप रेत मे  मिलाकर तथा पत्ता लपेट/ तना छेदक के लिए 200 मि .ली . मोनोक्रोटोफास या कलोरोपायरीफास या 400 मि .ली. क्वीनलफास 100 लीटर पानी मे प्रति एकड प्रयोग करे! धान  निसरने के समय, ह्ल्दी रोग या ब्लास्ट से बचाव के लिए 200 ग्राम  कार्बेंडाज़िम या प्रोपीकानाजोल (टिलट) 200 लीटर पानी प्रति एकड छिडकाव करे ! शीट ब्लाईट के लिए 400 मि. ली. वैलिडामाईसिन (अमीस्टार/लस्टर आदि) 200 लीटर पानी प्रति  एकड छिडकाव करे ! फसल मे दीमक की शिकायत होने पर , एक  लीटर कलोरोपायरीफास प्रति एकड सिचाई पानी के साथ चलाये ! धान की लह लहाती फसल [lush green paddy field]

10) सीधी बीजाई तकनीक के बारे मे सावधानिया

- इस विधि से बोयी गई फसल रोपाई धान के मुकाबले पहले 40 दिन हलकी नजर आयेंगी, इसलिये किसान होसला बनाए रखे! - सीधी बुआई धान खारे पानी और सेम व लवनीय भूमि मे खास सफल नही है ! ऐसे क्षेत्रो मे किसान रोपाई धान ही लगाये! - 15 जुन के बाद धान की सीधी बिजाई नही करे और तब रोपाई विधि से धान की खेती फायदेमन्द रहेंगी ! -बुआई समय पर कम तापमान व फसल पकाई समय पर मानसुन वर्षा के कारण साठी धान (मार्च-अप्रेल बुआई) मे सीधी बीजाई तकनीक कामयाब नही है !

11) सुगम पराली (फसल अवशेष) प्रबंधन

सीधी बिजाई धान फसल आमतौर पर रोपाई धान के मुकाबले 7-10 दिन पहले पकती है ज़िससे किसानो को पराली प्रबंधन मे धान कटाई के बाद ज्यादा मिलने से भी पराली प्रबंधन मे सहायता मिलती है ! इस विधि मे किसान जल्दी पकने वाली कम अवधी (125 दिन) की किस्मो पूसा बासमती- 1509, पी.आर -126 आदि की खेती से, धान फसल की कटाई सितम्बर महीने मे कर सकते है! ज़िससे फसल अवशेष (पराली) को भूमि मे दबाकर, गेंहू फसल की बुआई से पहले ढ़ेंचा या मूँग की हरी खाद के लिए फसल ली ज़ा सकती है! जो भूमि ऊर्वरा शक्ती बढाने और पराली जलाने से उत्पन होने वाले वायु प्रदूषण को रोकने मे भी रामबाण साबित होगी !

डा. वीरेन्द्र सिह लाठर , पूर्व प्रधान वैज्ञानिक, भारतीय कृषि  अनुसंधान संस्थान, नयी  दिल्ली drvslather@gmail.com

आदत बदलने पर छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना में 3 साल तक मिलेंगे पूरे इतने हजार

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किसान पंचायत समिति से जुड़ी स्कीम

फसल चक्र बदलने सीएम बघेल का प्लान

इमारती लकड़ी, फल, बाँस, लघु वनोपज बढ़ाने का संकल्प

निरंतर एक सी खेती के लती किसानों को यदि छत्तीसगढ़ सरकार की आर्थिक मदद से जुड़ी एक योजना का तीन सालों तक लाभ हासिल करना है, तो उन्हें पहले अपनी आदतों में भी बदलाव करना होगा। जी हां, छत्तीसगढ़ प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी योजना की यह प्रथम एवं अनिवार्य शर्त है। अब कौन सी आदत किसान मित्र को बदलनी होगी, सरकार के कहने पर चले तो किसान का क्या भला होगा, आदत बदलने पर कितना आर्थिक लाभ होगा, इन सवालों के जानिये जवाब मेरी खेती के साथ। पर्यावरण एवं मृदा संरक्षण के लिए कृषि वैज्ञानिक खेत पर उपज बदल-बदल कर खेती करने की सलाह किसानोें को देते हैं। पारंपरिक फसल चक्र से जुड़े किसानों को अन्य फसलों, पौधों, बागवानी, वानिकी आधारित कृषि आय से जोड़ने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें कई प्रोत्साहन योजनाएं संचालित कर रही हैं।

छग में भूपेंद्र सरकार की अभिनव पहल

इस तारतम्य में छत्तीसगढ़ सरकार ने कृषि भूमि की उर्वरता की रक्षा एवं वृद्धि के साथ ही पर्यावरण सहेजने के लिए महत्वाकांक्षी चीफ मिनिस्टर ट्री प्लांटेशन इंसेंटिव स्कीम (Chhattisgarh Chief Minister Tree Plantation Incentive Scheme) स्टार्ट की है।


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इस योजना के तहत, छत्तीसगढ़ राज्य में वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार की ओर से जारी किए गए दिशा-निर्देशों के अनुसार किसानों, किसान समितियों के साथ ही निजी भूमि में भी पौधरोपण (शासकीय योजनानुसार वृक्षारोपण) से जुड़े खेती-किसानी कार्य को प्रोत्साहित किया जाएगा।

दबाव होगा कम

छत्तीसगढ़ प्रदेश सरकार का मानना है कि इस अभिनव योजना से जंगल की आग से रक्षा, चारा, लकड़ी और औद्योगिक सेक्टर के लिए जरूरी भू-जनित उत्पाद के दबाव को कम करने में मदद मिलेगी। साथ ही आधुनिक खेती से पर्यावरण पर मंडराने वाले खतरों को कम करने में भी आसानी होगी।

एक साल पहले हुई घोषणा

फसल चक्र में बदलाव के लिए किसानों को प्रेरित करने की दिशा में प्रयासरत देश की राज्य सरकारों के मध्य छत्तीसगढ़ राज्य सरकार (Chhattisgarh State Government) ने बीते साल 1 जून 2021 को अहम योजना की घोषणा की थी। इस दिन छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा आदिवासी बहुल प्रदेश छत्तीसगढ़ राज्य में मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना का शुभारंभ किया गया। गौरतलब है कि, 18 मई 2021 को मंत्रिमंडल की बैठक में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (Chief Minister Bhupesh Baghe) ने चीफ मिनिस्टर ट्री प्लांटेशन इंसेंटिव स्कीम (Chief Minister Tree Plantation Incentive Scheme) को छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) राज्य में लागू करने का निर्णय लिया था।

किसका कितना भला

चीफ मिनिस्टर ट्री प्लांटेशन इंसेंटिव स्कीम (Chief Minister Tree Plantation Incentive Scheme) अर्थात मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना का छत्तीसगढ़ राज्य में किसको, कितना, क्या लाभ हासिल होगा, इन विषयों पर सवाल दर जानिये जवाब।


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इनको मिलेगा लाभ

छत्तीसगढ़ प्रदेश सरकार ने यह पेशकश राज्य के सभी किसानों, ग्राम एवं संयुक्त वन प्रबंधन समितियों के हित में जारी की है। निजी भूमि में भी पौधरोपण (शासकीय योजनानुसार वृक्षारोपण) से जुड़े खेती-किसानी कार्य को छत्तीसगढ़ राज्य सरकार द्वारा प्रोत्साहित किया जाएगा।

योजना का मकसद

छत्तीसगढ़ में पौधरोपण (वृक्षारोपण) योजना शुरू करने का मूल मकसद नागरिकों एवं किसानों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करते हुए राज्य में जल, जंगल एवं जमीन का संरक्षण एवं संवर्धन करते हुए पर्यावरण में सुधार लाना है। पिछले वर्ष जून 2021 से शुरू की गई प्लांटेशन स्कीम के तहत छत्तीसगढ़ राज्य सरकार जागरूकता कार्यक्रमों एवं शिविरों के माध्यम से लोगों को जल-जंगल-जमीन के महत्व से परिचित करा रही है। छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना का मूल उद्देश्य वृक्षों की कमी के कारण जल-जंगल-जमीन, प्राणी और पर्यावरण के स्वास्थ्य पर पड़ रहे बुरे प्रभावों को रोककर प्राकृतिक घटक आधारित उत्पाद को मानव एवं पर्यावरण हितकारी बनाना है। छत्तीसगढ़ राज्य सरकार की मंशा पौधरोपण कर वृक्ष का स्वरूप प्रदान करने वाले किसानों को आर्थिक मदद प्रदान करना है, ताकि पारंपरिक कृषि चक्र अपनाने वाले अन्य किसान भी, बदलाव करने वाले कृषकों से सीख लेकर फसल चक्र में बदलाव के लिए प्रेरित हो सकेें। इस योजना को शुरू करने के पीछे राज्य सरकार का उद्देश्य छत्तीसगढ़ राज्य में हो रहे जलवायु परिवर्तन के कुप्रभाव को कम करके, इसे स्थिर करना एवं प्रदूषण को कम करने वृक्षों की संख्या में वृद्धि करना है।

लेकिन बदलना होगी आदत

चूंकि प्रदेश सरकार की योजना का मकसद फसल चक्र में बदलाव करना है, अतः परंपरागत फसल चक्र के बजाए पौधरोपण के जरिए वृक्ष संवर्धन करने वाले किसानों को छग सरकार प्रोत्साहित करेगी। खरीफ वर्ष 2020 में धान की फसल की पैदावार करने वाले किसानों को इस बार अपनी आदत में बदलाव करना होगा। यदि इस बार वे धान के बदले अपने खेतों में वृक्षारोपण (पौधरोपण) करते हैं, तो वे योजना हितग्राही पात्रता की प्रथम अनिवार्य शर्त की पूर्ति कर योजना का लाभ ले सकेंगे। ग्राम पंचायतें भी स्वयं की उपलब्ध राशि से वाणिज्यिक उपयोग के लिए वृक्षारोपण (पौधरोपण) कर मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना का लाभ प्राप्त कर सकती हैं। यह सुविधा भविष्य में पंचायतों की आय में वृद्धि करने का लाभ भी प्रदान करेगी।

CMTPIS का क्रियान्वन

चीफ मिनिस्टर ट्री प्लांटेशन इंसेंटिव स्कीम (सीएमटीपीआईएस) (Chief Minister Tree Plantation Incentive Scheme/ CMTPIS) अर्थात मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना का छत्तीसगढ़ राज्य में क्रियान्वयन करने के लिए राज्य सरकार ने विशेष रूपरेखा बनाई है। राज्य स्तर पर योजना के क्रियान्वयन के लिए प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं कृषि उत्पादन आयुक्त की सहभागिता खास तौर पर सुनिश्चित की गई है। जिला स्तर पर स्कीम के सफल क्रियान्वन की जिम्मेदारी क्षेत्रीय वन मंडल अधिकारियों को सौंपी गई है। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना में किसानों को प्रदान करने के लिए उच्च गुणवत्ता के पौधे तैयार किए जा रहे हैं। इन पौधों का रोपण वन अधिकार प्रदत्त वन एवं राजस्व वन भूमि पर हितग्राहियों की सहमति से किया जाएगा।


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योजना में शामिल किस्में

मुख्यमंत्री वृक्षारोपण (पौधरोपण) प्रोत्साहन योजना के तहत गैर वन क्षेत्रों में इमारती, गैर इमारती लकड़ी, फलदार वृक्षों, बांस, अन्य लघु वनोपज एवं औषधीय पौधों की खेती करने वाले किसानों को लाभान्वित किया जाएगा। इमारती लकड़ी, फल, बाँस, लघु वनोपज एवं औषधीय पौधे खेत में लगाने वाले किसानों को प्रदेश सरकार से बदले में आर्थिक मदद प्राप्त होगी। इसके अलावा निजी क्षेत्र में तैयार परिपक्व एवं उम्र दराज पेड़ों, वृक्षों को काटने के बारे में लागू अनुमति संबंधी प्रावधानों को अपेक्षाकृत रूप से पहले के मुकाबले और अधिक आसान बनाया गया है। हितग्राही द्वाला लगाए जा रहे पौधों के परिपक्व पेड़ बनने के बाद उसकी कटाई से जुड़े अनुमति के प्रावधानों के बारे में भी राज्य सरकार ने प्रबंध किए हैं।

योजना पात्रता मानदंड

मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना का लाभ अव्वल तो सिर्फ छत्तीसगढ़ राज्य के स्थाई निवासी को ही प्रदान किया जाएगा। सीएम ट्री प्लांटेशन इंसेंटिव स्कीम के तहत लाभ लेने के इच्छुक किसानों, ग्राम पंचायतों या संयुक्त वन प्रबंधन समितियों के पास कम से कम 1 एकड़ भूमि की अनिवार्यता योजना में एक अन्य अहम शर्त है। मतलब एक एकड़ भूमि के मालिक हितग्राही ही योजना का लाभ ले सकेंगे। कृषक मित्र याद रखें कि छत्तीसगढ़ चीफ मिनिस्टर ट्री प्लांटेशन इंसेंटिव स्कीम 2022 के हितग्राही को योजना का लाभ केवल तब ही प्रदान किया जाएगा जब स्कीम के तहत पौधरोपण का एक साल सफलतम रूप से पूरा हो चुका हो। यह योजना की तीसरी प्रमुख शर्त कही जा सकती है।

योजना आवेदन प्रक्रिया

छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना 2022 का लाभ हासिल करने आवेदन के लिए ऑनलाइन प्रोसेस अभी शुरू नहीं हो पाई है। राज्य के इच्छुक लाभार्थी मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना लिए लाभ प्राप्त करने फिलहाल ऑफलाइन आवेदन कर सकते हैं। जिले के वन परिक्षेत्र कार्यालय में योजना अहर्ता फॉर्म आवेदक को प्राप्त होंगे। फॉर्म में अनिवार्य जानकारी दर्ज करने एवं जरूरी दस्तावेजों की प्रतिलिपि संलग्न कर आवेदक को कार्यालय में फॉर्म जमा करना होगा।


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अहम सवाल, कितना लाभ मिलेगा

छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना 2022 के तहत योजना की पात्रता रखने वाले किसानों को राज्य सरकार द्वारा अगले 3 सालों तक 10 हजार रुपये प्रति एकड़, प्रति वर्ष की दर से प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाएगी। स्वयं के पास उपलब्ध राशि से योजना के तहत पौधरोपण करने वाली ग्राम पंचायतों को एक साल बाद सफल पौधरोेपण की स्थिति में शासन की ओर से योजना के लाभ बतौर 10 हजार रूपये प्रति एकड़ की दर से प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाएगी। इससे पंचायतों की आय में वृद्धि के साथ ही पर्यावरण संवर्धन हेतु सामूहिक प्रयास की कोशिश भी साकार होगी। संयुक्त वन प्रबंधन समिति भी स्वयं के खर्चे पर राजस्व भूमि पर व्यवसायिक उपयोग आधार संबंधी पौधरोपण कर योजना का लाभ हासिल कर सकती है। योजना में पात्र वन प्रबंधन समिति को पंचायत की ही तरह एक साल बाद शासन की ओर से 10 हजार रुपये प्रति एकड़ की दर से प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाएगी। योजना के तहत तैयार किए जाने वाले पौधों, वृक्षों, पेड़ों की कटाई एवं विक्रय के अधिकार योजना के अनुसार संबंधित समिति के पास सुरक्षित रखे गए हैं। सरकार पात्र हितग्राहियों को चीफ मिनिस्टर ट्री प्लांटेशन इंसेंटिव स्कीम अर्थात मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना के तहत 3 साल तक 10000 रुपये प्रति वर्ष प्रति एकड़ की दर से प्रदान किए जाएंगे। आपको बता दें राज्य सरकार की योजनाओं के बारे में आधिकारिक वेबसाइट पर महत्वपूर्ण सूचनाएं उपलब्ध हैं : https://chhattisgarh.nic.in/ भू, जल एवं पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन के लिए छत्तीसगढ़ सरकार का यह प्रयास निश्चित ही अनुकरणीय कहा जा सकता है। पेड़ पौधों को सहेजने के लिए भले ही वर्तमान पीढ़ी ने देर कर दी हो, लेकिन इस बारे में ताकीद पहले की अनुभवी पीढ़ी यह कहते हुए पहले ही दे चुकी है कि, “इन टहनियों को मत काटो, ये चमन का जेवर हैं, इन्हीं में से कल आफताब उभरेगा।” छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना 2022 का लाभ हासिल करने आवेदन के लिए ऑनलाइन प्रोसेस अभी शुरू नहीं हो पाई है। इस बारे में पुष्टि जरूर कर लें।
बोगेनवेलिया फूल की खेती से किसान जल्द ही हो सकते हैं मालामाल, ऐसे लगाएं पौधे

बोगेनवेलिया फूल की खेती से किसान जल्द ही हो सकते हैं मालामाल, ऐसे लगाएं पौधे

देश में पारंपरिक खेती के इतर अब किसान बागवानी की तरफ रुख कर रहे हैं। इसका कारण है कि बागवानी में पारंपरिक खेती की अपेक्षा ज्यादा आमदनी होने की संभावनाएं ज्यादा हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं बोगेनवेलिया फूल की खेती के बारे में। यह बेहद सुंदर और रंगीन फूल होता है, जिसे कागज फूल के नाम से भी जाना जाता है। यह मूलतः दक्षिण अमेरिका में पाया जाने वाला फूल है, जिसे विभिन्न देशों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इस फूल की खोज सर्वप्रथम फिलबरट कॉमर्रसन और लुई एंटोनी डी बोगनविले नाम के दो वैज्ञानिकों ने की थी। दूसरे वैज्ञानिक के नाम पर ही इस फूल का नाम बोगेनवेलिया पड़ा है। इस फूल का पौधा कई औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसलिए इसके पौधे का उपयोग खांसी, दमा, पेचिश, पेट या फेफड़ों की तकलीफ जैसे रोगों में किया जाता है।

बोगेनवेलिया के पौधों के लिए उपयुक्त जलवायु

इन पौधों में उच्च तापमान की जरूरत होती है। बोगेनवेलिया के लिए आदर्श स्थिति होती है कि वातावरण का तापमान 20 डिग्री सेल्सियस के ऊपर होना चाहिए। जिन जगहों पर ठंड होती हैं वहां इन पौधों को प्लास्टिक की शीट से संरक्षित किया जाता है। इन पौधों के लिए उच्च आर्द्रता की आवश्यकता नहीं होती है। इनके लिए वातावरण में मौजूद आर्द्रता पर्याप्त होती है, इसलिए इन पौधों के लिए पत्तियों पर स्प्रे करना या वातावरण को बनाए रखना आवश्यक नहीं है। यह भी पढ़ें: अद्भुत खूबियों वाले गुलनार फूल की खेती से किसान हो रहे मालामाल

बोगेनवेलिया के पौधों की बुवाई

इनके पौधों की बुवाई आमतौर पर दो प्रकार से की जाती है। पहला कटिंग के माध्यम से और दूसरा बीजों के माध्यम से। दोनों ही माध्यमों में अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी और पर्याप्त धूप की जरूरत होती है। बीजों के अंकुरण के 30 दिन बाद पौधे को गमले में स्थानांतरित कर सकते हैं।

सिंचाई और उर्वरक

इन पौधों के लिए ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती। ज्यादा पानी देने के कारण इस पौधे की जड़ें सड़ सकती हैं। इसलिए सतर्क रहने की जरूरत है। हालंकी गर्मियों के तापमान में पौधों को पानी की ज्यादा जरूरत महसूस होती है, इसलिए तब नियमित रूप से पानी देना चाहिए। हालांकि ध्यान रहे कि पौधे में पानी तभी डालें जब मिट्टी पूरी तरह से सूख जाए। यह भी पढ़ें: जरबेरा के फूलों की खेती से किसानों की बदल सकती है किस्मत, होगी जबरदस्त कमाई बोगेनवेलिया के पौधों में फास्फोरस और पोटेशियम से भरपूर खाद डाली जा सकती है, इससे पौधों का विकास तेजी के साथ होगा और ज्यादा मात्रा में फूल आएंगे।

पौधों का रखरखाव

बोगेनविलिया के पौधों को रखरखाव की बेहद आवश्यकता होती है। नहीं तो यह पौधा जल्द ही सूख जाएगा। पौधे की समय-समय पर कटिंग करते रहें जिससे उनकी शाखाएं परिपक्व होंगी ताकि वो ज्यादा से ज्यादा फूलों का उत्पादन कर सकें। हमेशा ऐसे पत्तों की कटिंग करनी चाहिए जिसमें मुकुट के बाहर या वांछित दिशा में एक कली हो। इसकी छंटाई ज्यादातर वसंत और सर्दियों के बीच वाले समय में की जाती है।
चंदन के समान मूल्यवान इन पेड़ों की लकड़ियां बेचकर होश उड़ाने वाला मुनाफा हो सकता है

चंदन के समान मूल्यवान इन पेड़ों की लकड़ियां बेचकर होश उड़ाने वाला मुनाफा हो सकता है

भारत एक कृषि प्रधान देश है। इसी कड़ी में यहां वृक्षों की विभिन्न प्रकार की प्रजातियां पाई जाती हैं। कुछ वृक्ष तो व्यावसायिक उपयोग में लिए जाते हैं। वहीं, कुछ वृक्षों में औषधीय गुण विघमान होते हैं। बाजार में औषधीय पेड़ के बीज, पत्ती, छाल, जड़ एवं लकड़ी की अच्छी-खासी कीमत मिल जाती है। विश्वभर में पेड़ों के उत्पादन का चलन बढ़ता जा रहा है। यह पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में अहम भूमिका अदा करता हैं। मृदा को बांधे रखने एवं भूजल स्तर को अच्छा करने में भी वृक्षों की अहम भूमिका है। फर्नीचर और औषधियों के लिए पेड़ों की खेती का प्रचलन बढ़ रहा है। देश में कुछ पेड़ों की लकड़ी के सहित छाल, जड़ों, फल और पत्ती में भी औषधीय गुण विघमान होते हैं। यही वजह है, जो बाजार में इन वृक्षों की अच्छी खासी कीमत प्राप्त हो रही है।

चंदन की खेती

चंदन के पेड़ के औषधीय गुणों से आज कौन रूबरू नहीं होगा। देश दुनिया में सफेद एवं लाल चंदन की बेहद मांग है। परंतु, मांग के अनुरूप उत्पादन नहीं है, क्योंकि
चंदन के पेड़ को तैयार होने में भी काफी वर्ष लग जाते हैं। इसके उपयोग द्वारा परफ्यूम से लेकर शराब, साबुन, सौंदर्य उत्पाद आदि विभिन्न उत्पाद निर्मित किए जाते हैं। इन्हीं सब कारणों के चलते सफेद एवं लाल दोनो तरह के चंदन करोड़ों की कीमत पर विक्रय किए जाते हैं।

महोगनी की खेती

अगर किसान धैर्यपूर्वक महोगनी की खेती करे तो वह महोगनी के उत्पादन से करोडों की आमदनी कर सकता है। बतादें, कि महोगनी के इस पेड़ के लकड़ी, पत्तियां व बीज से लेकर छाल तक काफी अच्छे भाव पर बेचे जाते हैं। परंतु, इस पेड़ को तैयार करने में लगभग 12 वर्ष का समय लग जाता है। अगर हम इसके बीज और लकड़ी की कीमत पर नजर ड़ालें तो इसका बीज 1,000 रुपये किलो वहीं लकड़ी 2000-2200 रुपये क्यूबिक फीट के भाव से बिकती है। साथ ही, इस महोगनी पेड़ के औषधीय गुणों वाली फूल, पत्ती और छाल भी काफी महँगे भावों पर बेची जाती है। इसकी खेती से तकरीबन 1 करोड़ तक की आमदनी की जा सकती है। यह भी पढ़ें: यह पेड़ आपको जल्द ही बना सकता है करोड़पति, इसकी लकड़ी से बनते हैं जहाज और गहने

नीम की खेती

नीम के औषधीय गुणों की बात करें तो यह कलयुग की संजीवनी के समान हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है, कि नीम प्रत्येक गली, मौहल्ले में देखने को मिल जाती है। परंतु, नीम की गुणवत्ता एवं इसके लाभ को जानने के बाद भी लोग इसका उपयोग नहीं करते हैं। जानकारी के लिए बतादें, कि एंटी-बैक्टीरियल एवं एंटीसेप्टिक, गुणों से युक्त निबौरी, छाल, लकड़ी और नीम की पत्तियों से बनते हैं। जिनको बाजार में काफी ज्यादा कीमत पर बेचा जाता है। इसकी विशेषताओं को ध्यान में रखके लोग मालाबार नीम की खेती करने में रुचि दिखा रहे हैं।

दालचीनी की खेती

अगर हम दालचीनी की बात करें तो रसोई के सर्वाधिक पंसदीदा मसालों में आने वाली दालचीनी अपने आप में एक औषधी है। दालचीनी पेड़ की छाल को मसाले के रूप में उपयोग किया जाता है। दक्षिण भारत में दालचीनी का उत्पादन बड़े स्तर पर किया जा रहा है। यहां इससे सौंदर्य और स्वास्थ्य उत्पाद के साथ तेल निकाला जाता है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में दालचीनी का व्यवसाय करोड़ों रुपए का है।

आम की खेती

आम के मीठे स्वाद को तो सब जानते हैं, सबने इसका स्वाद भी खूब चखा होगा। परंतु, क्या आपको यह पता है, कि इसकी पत्ती एवं लकड़ी की भी बाजार में काफी मांग रहती है। आम की लकड़ी से समस्त बैक्टीरिया दूर भाग जाते हैं। भारत में हवन पूजा यानी शुभ कार्यों में आम के पत्ते एवं लकड़ी का उपयोग किया जाता है। इसकी लकड़ी बैक्टीरिया नाशक है। यही कारण है, कि पूरे वर्ष इसकी मांग रहती है।
इस औषधीय गुणों वाले बोगनविलिया फूल की खेती से होगी अच्छी-खासी कमाई

इस औषधीय गुणों वाले बोगनविलिया फूल की खेती से होगी अच्छी-खासी कमाई

भारतीय किसानों को पारंपरिक खेती से घाटा होने के चलते उनको अन्य फसलों की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया है। फिलहाल, औषधीय पौधों एवं फूलों की खेती की जा रही है। ऐसी स्थिति में आपको बोगेनवेलिया फूल की जानकारी प्रदान की जा रही हैं। जो केवल दिखने में अच्छी लगने के साथ-साथ विभिन्न एलोपैथिक व आयुर्वेदिक इलाज के लिए गुणकारी मानी जाती है। भारत में बागवानी की तरफ किसान फिलहाल ज्यादा रुची रखने लगे हैं। इस वजह से किसानों को खेती करने हेतु बोगेनवेलिया फूल के संबंध में बताया जा रहा है। माना जा रहा है, कि जैसा नाम वैसा बहार क्योंकि इसको कागजी फूल के नाम से जाना जाता है। जो कि काफी कम देखभाल करने से भी रंगीन एवं सुंदर बनता जा रहा है। बतादें, कि विभिन्न देशों में इसको विभिन्न नामों से जाना जाता है। मुख्य तौर पर यह दक्षिण अमेरिका के देशों में पाया जाता है। इसकी खोज फिलबरट कॉमर्रसन एवं लुई एंटोनी डी बोगनविले नाम के दो वैज्ञानिकों द्वारा की गई थी। इनमें से एक वैज्ञानिक के नाम पर इस पौधे का नामकरण किया गया है। यह पौधा आयुर्वेद में पेचिश, पेट, फेफड़ों, खांसी और दमा की तकलीफ से राहत दिलाने का कार्य करती है।

बोगनविलिया की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

इन पौधों को अधिक तापमान की आवश्यकता होती है। आदर्श रूप से 20 डिग्री से ऊपर तापमान होना चाहिए। अगर उस जगह पर जहां पौधों में सामान्य तौर पर ठंड होती है, तो उन्हें प्लास्टिक से अच्छी तरह से संरक्षित करना चाहिए अथवा उनको अंदर रखना चाहिए। यह भी पढ़ें: इन फूलों का होता है औषधियां बनाने में इस्तेमाल, किसान ऐसे कर सकते हैं मोटी कमाई

बोगनविलिया कटिंग के द्वारा इस प्रकार लगाएं

सर्वप्रथम एक विकसित पौधे से 5-6 इंच की कटिंग निकाल लें, उसके बाद एक पारदर्शी जार में जल भरें पानी में बिल्कुल थोड़ी मात्रा में रूटिंग हॉर्मोन डालें। अब जल में कटिंग को डालकर ऐसे स्थान पर रखें जहां छनकर हल्की धूप आती हो। लगभग 5-6 दिनों में जल परिवर्तित कर दें। लगभग 10 दिन के उपरांत कटिंग से छोटी-छोटी जड़ें निकलने लगती हैं। तब इस कटिंग को गमले में लगाया जा सकता है।

बीज से बोगनविलिया इस तरह लगाई जाती है

बोगनविलिया बीज से उगाने हेतु एक परिपक्व पौधे के बराबर आवश्यकता होती है। यह बेहतरीन जल निकासी वाली मृदा, पर्याप्त धूप एवं अनुकूल बढ़ती परिस्थितियों की जरूर मांग करता है। सर्व प्रथम बीज की मोटाई के 2-3 गुना की गहराई तक उनको रेक करके बोए बीजों को नियमित तौर पर पानी दें। मिट्टी को नम रखें जिससे कि अंकुरण में सहायता मिल सके। अंकुरित होने में लगभग 30 दिन लगेंगे। जब बीज अंकुरित हो जाएं तब उन्हें गमले में स्थापित कर सकते हैं। यह भी पढ़ें: ऐसे करें रजनीगंधा और आर्किड फूलों की खेती, बदल जाएगी किसानों की किस्मत

सिंचाई कब और कैसे करें

जड़ सड़न बोगनविलिया की मृत्यु का सबसे आम वजह होती है। इसलिए सतर्क रहने एवं अत्यधिक सिंचाई करने से बचने की आवश्यकता होती है। विशेषकर जब पौधे गमलों में तैयार होते हैं। अधिक सिंचाई करने से फूलों की कीमत पर अस्थायी रूप से अंकुर, पत्तियों के उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा, परंतु, आखिर में जड़-सड़न और पौधे की मृत्यु जैसे असर देखने को मिलेंगे। हालांकि, गर्मियों के कड़े तापमान में पौधे को प्रति दिन सिंचाई की आवश्यकता होगी। परंतु, सिंचाई केवल गमले की मिट्टी सूखने की स्थिति में करें।
फलों का राजा कहलाने वाले आम को बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से लाखों का हुआ नुकसान

फलों का राजा कहलाने वाले आम को बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से लाखों का हुआ नुकसान

जैसा कि हम जानते हैं, कि किसानों की जिंदगी कठिनाइयों और समस्याओं से भरी रहती है। कभी प्राकृतिक आपदा तो कभी फसल का समुचित मूल्य ना मिल पाना। इतना ही नहीं मौसमिक अनियमितता के चलते किसानों की फसल कीट एवं रोगों की भी काफी हद तक ग्रसित होने की आशंका रहती है। बेमौसम बारिश एवं ओलावृष्टि की मार पड़ रही है। उत्तर प्रदेश एवं ओड़िशा सहित बहुत सारे राज्यों में बारिश की वजह से किसानों की आम की फसलें काफी हद तक चौपट हो चुकी है। बेमौसम बरसात ने किसान भाइयों की फसल को काफी हद तक हानि पहुंचाई है। किसानों का लाखों का नुकसान होने के चलते किसान बेहद दुखी दिखाई दे रहे हैं। वर्तमान में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश से लेकर बाकी राज्यों में बारिश की वजह से गेहूं, सरसों की फसल को नुकसान हुआ था। परंतु, सिर्फ अनाज एवं सब्जियां ही नहीं, फलों को भी मोटा नुकसान हुआ है। भारत के विभिन्न राज्यों में बेमौसम बारिश के साथ ओलावृष्टि से आम काफी क्षतिग्रस्त हुआ है। किसान प्रदेश सरकार से मुआवजे की गुहार कर रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में भी आम के बागों पर काफी बुरा असर पड़ा है

उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में आम के बागों पर बारिश के साथ ओलावृष्टि का दुष्प्रभाव देखने को मिल रहा है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है, कि इस मौसम में चित्रकूट में आम के पेड़ों पर बौर दिखाई देने लगती थी। हालाँकि, परिवर्तित एवं खराब हुए मौसम के चलते आम के पेड़ों से बौर ही छिन सी गई है। बेमौसम बारिश की वजह जो नमी उत्पन्न हुई है। इससे आम के फल में रोग भी आने लग गया है। स्थानीय किसानों का कहना है, कि बेमौसम बारिश की वजह 4 से 5 लाख रुपये की हानि हुई है।

ओड़िशा में भी आम की फसल चौपट हो गई है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि ओड़िशा में भी बारिश का प्रभाव आम पर देखने को मिल रहा है। ओडिशा के अंदर पूर्व में हुई बेमौसम बारिश एवं हाल ही में हुई अचानक तापमान में वृद्धि की वजह से आम की पैदावार काफी बुरी तरह प्रभावित हुई है। प्रदेश के कोरापुट जनपद में 70 प्रतिशत तक आम की फसल खराब हो गयी है। व्यापारी प्रदेश की खपत पूर्णतय सुनिश्चित करने के लिए अन्य राज्यों से आम मंगा रहे हैं। सेमिलीगुडा, लक्ष्मीपुर, कुंद्रा, दसमंतपुर, जेपोर और बोरिगम्मा क्षेत्रों में भी आम की फसल काफी ज्यादा प्रभावित हुई है। व्यापारियों ने बताया है, कि इस वर्ष प्रदेश में कम खपत का अंदाजा है। इसी वजह से आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ से भी व्यापारी आम खरीद रहे हैं। ये भी पढ़े: अल्फांसो आम की पैदावार में आई काफी गिरावट, आम उत्पादक किसान मांग रहे मुआवजा

बेमौसम बारिश के साथ हुई ओलावृष्टि ने किसान की उम्मीदों पर पानी फेर दिया

विगत कई वर्षों से किसानों को मौसमिक मार की वजह से काफी नुकसान वहन करना पड़ रहा है। इस संबंध में किसानों का कहना है, कि इस बार उन्हें अच्छी फसल उपज की संभावना थी। लेकिन बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि की वजह से किसानों की उमीदों पर पानी फिर गया है। फसलों को कुछ कच्चा काटा जा सकता है। लेकिन, आम की भौर का किसान कुछ कर भी नहीं सकते हैं। ऐसी स्थिति में किसानों की हुई हानि की भरपाई नहीं हो सकेगी।
इस राज्य में वन विभाग ने जंगलों में हर्बल प्लांटेशन करने की तैयारी की

इस राज्य में वन विभाग ने जंगलों में हर्बल प्लांटेशन करने की तैयारी की

बरसात के दिनों में हमीरपुर के जंगलों में 70 हजार पौधे लगाए जाएंगे। इसके लिए प्रत्येक फॉरेस्ट रेंज में हर्बल वन तैयार किया जाएगा। इस हर्बल प्लांट के कमर्शियल लाभ भी होंगे। हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर फॉरेस्ट डिविजन के अंतर्गत बरसात के इस सीजन में जनपद की समस्त पांचों वन रेंजो में लगभग 70 हजार भिन्न-भिन्न किस्म के पौधे जंगलों में लगाए जाएंगे। वन विभाग ने इसी महीने से इनको लगाने की पूरी तैयारियां कर ली हैं। बरसात ने भी फिलहाल दस्तक दे दी है। अब ऐसी स्थिति में फिलहाल प्लांटेशन का कार्य चालू होने जा रहा है।

इतने हेक्टेयर भूमि में पौधरोपण किया जाएगा

डीएफओ हमीरपुर राकेश कुमार का कहना है, कि वन विभाग ने एक रोडमैप बनाया है, जिसके अंतर्गत हर वन रेंज में पहली बार हर्बल वन तैयार किए जाएंगे। साथ ही, 157 हेक्टेयर वन रकबे में पौधरोपण किया जाएगा। उनका कहना है, कि
हर्बल वन से जहां किसानों एवं आम जनता को हर्बल प्लांट के प्रति जागरूक किया जाएगा। वहीं, इस पौधरोपण को कमर्शियल स्तर आमदनी का माध्यम भी बनाया जा सकता है। ये भी पढ़े: Sagwan: एक एकड़ में मात्र इतने पौधे लगाकर सागवान की खेती से करोड़ पक्के !

जंगलो में नए पौधरोपण की तैयारी

मॉनसून सीजन के दस्तक देते ही वन विभाग ने जंगलों के अंदर नवीन पौधरोपण की प्रक्रिया चालू कर दी है। इसको लेकर वन विभाग की समस्त सरकारी नर्सरियों में इन पोधों को पहले ही तैयार कर लिया गया है। फिलहाल, इनको जंगलों में लगाने के लिए रेंज स्तर पर मुहैय्या करवाया जाएगा। इस बार 157 हेक्टेयर वन इलाके में पौधरोपण किया जाएगा। जिसमें से 49 हेक्टेयर नॉर्मल स्तर के पौधे लगाए जाएंगे, वहीं 108 हेक्टेयर में चौड़े पत्तेदार पौधे लगाए जाऐंगे।

हर्बल प्लांट बनेगा आमदनी का बेहतरीन जरिया

वन विभाग ने एक रोडमैप तैयार किया है, जिसके अंतर्गत प्रत्येक वन रेंज में पहली बार हर्बल वन निर्मित किए जाएंगे। जिसमें हरड़ बहेड़ा एवं आंवले के पौधे रोपे जाऐंगे। इनको लगाने से दो लाभ होते हैं। पहला इससे किसानों एवं आम लोगों को हर्बल प्लांट के प्रति जागरूक किया जाएगा। वहीं दूसरा यह कि इन इन हर्बल पौधों को लगाकर इनको कमर्शियल स्तर पर आमदनी का जरिया कैसे बनाया जाए, इस बात पर बल दिया जाएगा। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि हमीरपुर जनपद की जलवायु एवं वातावरण हरड़ बहेड़ा और आंवला के पौधे लगाने के लिए अनुकूल माना जाता है। इसको कमर्शियल स्तर पर लोग अपनाएं इस पर काफी जोर दिया जाएगा।

हरड़ बहेड़ा में 70 हजार पौधरोपण किया जाएगा

वन विभाग के डीएफओ राकेश कुमार ने बताया है, कि विभाग बरसात के इस सीजन में लगभग 70 हजार पौधरोपण करेगा। पोधरोपण में भिन्न-भिन्न किस्मों के पोधे शम्मिलित होंगे। उन्होंने कहा है, कि वन विभाग हमीरपुर द्वारा इस बार हर फॉरेस्ट रेंज में एक हर्बल वन लगाए जाने का निर्णय लिया गया है, जिसके अंतर्गत एक चिन्हित इलाके में हरड़ बहेड़ा एवं आंवला के पौधे भी रोपे जाऐंगे। उन्होंने कहा है, कि हर्बल स्थापित करने से जहां किसानों को हर्बल पौधारोपण करने के प्रति जागरूक किया जाएगा। वहीं, दूसरी तरफ इन पौधों के फलों से विभाग को आमदनी होने की भी संभावना होगी।
धन का पौधा कहे जाने वाले मनी प्लांट की इस प्रकार देखभाल करें ?

धन का पौधा कहे जाने वाले मनी प्लांट की इस प्रकार देखभाल करें ?

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि मनी प्लांट को भारत के अधिकांश लोग एक अच्छी आय प्रदान करने वाला पौधा मानते हैं। इस लेख में हम आपको मनी प्लांट की जानकारी देंगे। इसको अपनाकर आप पौधे को मुरझाने से कैसे रोक सकते हैं। बतादें, कि विभिन्न बार मौसमिक परिवर्तन की वजह से पौधे मुरझा जाते हैं। परंतु, बहुत बार पौधे की बिल्कुल भी देखरेख ना होने अथवा अत्यधिक देखभाल भी उसके मुरझाने की प्रमुख वजह बन सकती है। हम आज आपको जानकारी देंगे कि कैसे आप पौधे को मुरझाने की समस्या से संरक्षित कर सकते हैं। इसके अलावा भी मुरझाए हुए पौधे को एक बार पुनः तैयार कर सकते हैं। इस बात से सभी परिचित हैं, कि हाउस प्लांट्स को जल की आवश्यकता होती है। परंतु, अधिक पानी पौधे को नष्ट भी कर सकता है। बतादें, कि पौधे को कितना जल चाहिए, इसकी जानकारी उसकी मृदा से लगाई जा सकती है। यदि मृदा काफी ज्यादा सूखी है, तो पौधे की अच्छे से सिंचाई करें। अगर हल्की नमी दिखती है, तो बहुत ज्यादा पानी नहीं देना चाहिए। इसके अतिरिक्त आप एक निश्चित वक्त निर्धारित करें की कब सिंचाई करें।

पौधे के विकास के समय इन कार्यों को करना अहम   

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि जब पौधा पूर्ण रूप से सूखने लगा हो, तब उसे प्रूनिंग करना सबसे शानदार होगा। ऊपरी मृदा की गुड़ाई करने के पश्चात सूखी पत्तियों को हटा दें। इसके पश्चात गोबर की खाद इसके अंदर डालें। गोबर की खाद सूखे हुए पौधों के लिए शानदार विकल्प है। इस वक्त पौधे को लिक्विड फर्टिलाइजर से भी हानि हो सकती है। धूप हाउस प्लांट्स के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। ओवर-सनलाइट अथवा अंडर-सनलाइट के अभाव से भी विभिन्न पौधे मर जाते हैं। इस वजह से आप धूप का भी प्रमुख रूप से ध्यान रखें।

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पौधे के विकास के दौरान इन बातों का विशेष ध्यान रखें 

पौधे के विकास की समयावधि के दौरान पौधे को पोषक तत्वों को मिलने के लिए उर्वरकों की अहम जरूरी होती है। अगर मृदा में पोषक तत्व रहेंगे, तो पौधा बिल्कुल भी नहीं मरेगा। इस वजह से आप खाद कर सकते हैं। हाउस प्लांट्स बीमार हो सकते हैं अथवा कीड़ों से खत्म हो सकते हैं। इस वजह से समय-समय पर कीटनाशक छिड़काव करते रहें। गुलाब, गुड़हल एवं बाकी फूलों को फंगस से संरक्षित करने के लिए दवा भी उपलब्ध है। साथ ही, दवाओं अथवा कीटनाशकों को प्रत्यक्ष तौर से पौधे पर बिल्कुल भी ना डालें।