Ad

गर्मी

सावधान : बढ़ती गर्मी में इस तरह करें अपने पशुओं की देखभाल

सावधान : बढ़ती गर्मी में इस तरह करें अपने पशुओं की देखभाल

फिलहाल गर्मी के दिन शुरू हो गए हैं। आम जनता के साथ-साथ पशुओं को भी गर्मी प्रभावित करेगी। ऐसे में मवेशियों को भूख कम और प्यास ज्यादा लगती है। पशुपालक अपने मवेशियों को दिन में न्यूनतम तीन बार जल पिलाएं। 

जिससे कि उनके शरीर को गर्म तापमान को सहन करने में सहायता प्राप्त हो सके। इसके अतिरिक्त लू से संरक्षण हेतु पशुओं के जल में थोड़ी मात्रा में नमक और आटा मिला देना चाहिए। 

भारत के विभिन्न राज्यों में गर्मी परवान चढ़ रही है। इसमें महाराष्ट्र राज्य सहित बहुत से प्रदेशों में तापमान 40 डिग्री पर है। साथ ही, गर्म हवाओं की हालत देखने को मिल रही है। साथ ही, उत्तर भारत के अधिकांश प्रदेशों में तापमान 35 डिग्री तक हो गया है। 

इस मध्य मवेशियों को गर्म हवा लगने की आशंका रहती है। लू लगने की वजह से आम तौर पर पशुओं की त्वचा में सिकुड़न और उनकी दूध देने की क्षमता में गिरावट देखने को मिलती है। 

हालात यहां तक हो जाते हैं, कि इसके चलते पशुओं की मृत्यु तक हो जाने की बात सामने आती है। ऐसी भयावय स्थिति से पशुओं का संरक्षण करने के लिए उनकी बेहतर देखभाल करना अत्यंत आवश्यक है।

पशुओं को पानी पिलाते रहें

गर्मी के दिनों में मवेशियों को न्यूनतम 3 बार जल पिलाना काफी आवश्यक होता है। इसकी मुख्य वजह यह है, कि जल पिलाने से पशुओं के तापमान को एक पर्याप्त संतुलन में रखने में सहायता प्राप्त होती है। 

इसके अतिरिक्त मवेशियों को जल में थोड़ी मात्रा में नमक और आटा मिलाकर पिलाने से गर्म हवा लगने की आशंका काफी कम रहती है। 

ये भी देखें: इस घास के सेवन से बढ़ सकती है मवेशियों की दुग्ध उत्पादन क्षमता; 10 से 15% तक इजाफा संभव 

यदि आपके पशुओं को अधिक बुखार है और उनकी जीभ तक बाहर निकली दिख रही है। साथ ही, उनको सांस लेने में भी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। उनके मुंह के समीप झाग निकलते दिखाई पड़ रहे हैं तब ऐसी हालत में पशु की शक्ति कम हो जाती है। 

विशेषज्ञों के मुताबिक, ऐसे हालात में अस्वस्थ पशुओं को सरसों का तेल पिलाना काफी लाभकारी साबित हो सकता है। सरसों के तेल में वसा की प्रचूर मात्रा पायी जाती है। जिसकी वजह से शारीरिक शक्ति बढ़ती है। विशेषज्ञों के अनुरूप गाय और भैंस के पैदा हुए बच्चों को सरसों का तेल पिलाया जा सकता है।

पशुओं को सरसों का तेल कितनी मात्रा में पिलाया जाना चाहिए

सीतापुर जनपद के पशुपालन वैज्ञानिक डॉ आनंद सिंह के अनुरूप, गर्मी एवं लू से पशुओं का संरक्षण करने के लिए काफी ऊर्जा की जरूरत होती है। ऐसी हालत में सरसों के तेल का सेवन कराना बेहद लाभकारी होता है। 

ऊर्जा मिलने से पशु तात्कालिक रूप से बेहतर महसूस करने लगते हैं। हालांकि, सरसों का तेल पशुओं को प्रतिदिन देना लाभकारी नहीं माना जाता है। 

डॉ आनंद सिंह के अनुसार, पशुओं को सरसों का तेल तभी पिलायें, जब वह बीमार हों अथवा ऊर्जा स्तर निम्न हो। इसके अतिरिक्त पशुओं को एक बार में 100 -200 ML से अधिक तेल नहीं पिलाना चाहिए। 

हालांकि, अगर आपकी भैंस या गायों के पेट में गैस बन गई है, तो उस परिस्थिति में आप अवश्य उन्हें 400 से 500 ML सरसों का तेल पिला सकते हैं। 

साथ ही, पशुओं के रहने का स्थान ऐसी जगह होना चाहिए जहां पर प्रदूषित हवा नहीं पहुँचती हो। पशुओं के निवास स्थान पर हवा के आवागमन के लिए रोशनदान अथवा खुला स्थान होना काफी जरुरी है।

पशुओं की खुराक पर जोर दें

गर्मी के मौसम में लू के चलते पशुओं में दूध देने की क्षमता कम हो जाती है। उनको इस बीच प्रचूर मात्रा में हरा एवं पौष्टिक चारा देना अत्यंत आवश्यक होता है। 

हरा चारा अधिक ऊर्जा प्रदान करता है। हरे चारे में 70-90 फीसद तक जल की मात्रा होती है। यह समयानुसार जल की आपूर्ति सुनिश्चित करती है। इससे पशुओं की दूध देने की क्षमता काफी बढ़ जाती है।

Fasal ki katai kaise karen: हाथ का इस्तेमाल सबसे बेहतर है फसल की कटाई में

Fasal ki katai kaise karen: हाथ का इस्तेमाल सबसे बेहतर है फसल की कटाई में

किसान भाईयों, आपने आलू, खीरा और प्याज की फसल पर अपने जानते खूब मेहनत की। फसल भी अपने हिसाब से बेहद ही उम्दा हुई। गुणवत्ता एक नंबर और क्वांटिटी भी जोरदार। लेकिन, आप अभी भी पुराने जमाने के तौर-तरीके से ही अगर फसल निकाल रहे हैं, उसकी कटाई कर रहे हैं तो ठहरें। हो सकता है, आप जिन प्राचीन विधियों का इस्तेमाल करके फसल निकाल रहे हैं, उसकी कटाई कर रहे हैं, वह आपकी फसल को खराब कर दे। संभव है, आप पूरी फसल न ले पाएं। इसलिए, कृषि वैज्ञानिकों ने जो तौर-तरीके बताएं हैं फसल निकालने के, हम आपसे शेयर कर रहे हैं। इस उम्मीद के साथ कि आप पूरी फसल ले सकें, शानदार फसल ले सकें। तो, थोड़ा गौर से पढ़िए इस लेख को और उसी हिसाब से अपनी फसल निकालिए।

प्याज की फसल

Pyaj ki kheti

ये भी पढ़े: जनवरी माह में प्याज(Onion) बोने की तैयारी, उन्नत किस्मों की जानकारी

प्याज देश भर में बारहों माह इस्तेमाल होने वाली फसल है। इसकी खेती देश भर में होती है। पूरब से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक। अब आपका फसल तैयार है। आप उसे निकालना चाहते हैं। आपको क्या करना चाहिए, ये हम बताते हैं। जब आप प्याज की फसल निकालने जाएं तो सदैव इस बात का ध्यान रखें कि प्याज और उसके बल्बों को किसी किस्म का नुकसान न हो। आपको बेहद सावधानी बरतनी पड़ेगी। हड़बड़ाएं नहीं। धैर्य से काम लें। सबसे पहले आप प्याज को छूने के पहले जमीन के ऊपर से खींचे या फिर उसकी खुदाऊ करें। बल्बों के चारों तरफ से मिट्टी को धीरे-धीरे हिलाते चलें। फिर जब मिट्टी हिल जाए तब आप प्याज को नीचे, उसकी जड़ से आराम से निकाल लें। आप जब मिट्टी को हिलाते हैं तब जो जड़ें मिट्टी के संपर्क में रहती हैं, वो धीरे-धीरे मिट्टी से अलग हो जाती हैं। तो, आपको इससे साबुत प्याज मिलता है। प्याज निकालने के बाद उसे यूं ही न छोड़ दें। आपके पास जो भी कमरा या कोठरी खाली हो, उसमें प्याज को सुखा दें। कम से कम एक हफ्ते तक। उसके बाद आप प्याज को प्लास्टिक या जूट की बोरियों में रख कर बाजार में बेच सकते हैं या खुद के इस्तेमाल के लिए रख सकते हैं। प्याज को कभी झटके से नहीं उखाड़ना चाहिए।

आलू

aalu ki kheti आलू देश भर में होता है। इसके कई प्रकार हैं। अधिकांश स्थानों पर आलू दो रंगों में मिलते हैं। सफेद और लाल। एक तीसरा रंग भी हैं। धूसर। मटमैला धूसर रंग। इस किस्म के आलू आपको हर कहीं दिख जाएंगे।

ये भी पढ़े: आलू की पछेती झुलसा बीमारी एवं उनका प्रबंधन

आपका आलू तैयार हो गया। आप उसे निकालेंगे कैसे। कई लोग खुरपी का इस्तेमाल करते हैं। यह नहीं करना चाहिए क्योंकि अनेक बार आधे से ज्यादा आलू खुरपी से कट जाते हैं। कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि इसके लिए बांस सबसे बेहतर है, बशर्ते वह नया हो, हरा हो। इससे आप सबसे पहले तो आलू के चारों तरफ की मिट्टी को ढीली कर दें, फिर अपने हाथ से ही आलू निकालें। आप बांस से आलू निकालने की गलती हरगिज न करें। बांस, सिर्फ मिट्टी को साफ करने, हटाने के लिए है।

नए आलू की कटाई

नए आलू छोटे और बेहद नरम होते हैं। इसमें भी आप बांस वाले फार्मूले का इस्तेमाल कर सकते हैं। आलू, मिट्टी के भीतर, कोई 6 ईंच नीचे होते हैं। इसिलए, इस गहराई तक आपका हाथ और बांस ज्यादा मुफीद तरीके से जा सकता है। बेहतर यही हो कि आप हाथ का इस्तेमाल कर मिट्टी को हटाएं और आलू को निकाल लें।

गाजर

gajar ki kheti गाजर बारहों मास नहीं मिलता है। जनवरी से मार्च तक इनकी आवक होती है। बिजाई के 90 से 100 दिनों के भीतर गाजर तैयार हो जाता है। इसकी कटाई हाथों से सबसे बेहतर होती है। इसे आप ऊपर से पकड़ कर खींच सकते हैं। इसकी जड़ें मिट्टी से जुड़ी होती हैं। बेहतर तो यह होता कि आप पहले हाथ अथवा बांस की सहायता से मिट्टी को ढीली कर देते या हटा देते और उसके बाद गाजर को आसानी से खींच लेते। गाजर को आप जब उखाड़ लेते हैं तो उसके पत्तों को तोड़ कर अलग कर लेते हैं और फिर समस्त गाजर को पानी में बढ़िया से धोकर सुखा लिया जाता है।

खीरा

khira ki kheti खीरा एक ऐसी पौधा है जो बिजाई के 45 से 50 दिनों में ही तैयार हो जाता है। यह लत्तर में होता है। इसकी कटाई के लिए चाकू का इस्तेमाल सबसे बेहतर होता है। खीरा का लत्तर कई बार आपकी हथेलियों को भी नुकसान पहुंचा सकता है। बेहतर यह हो कि आप इसे लत्तर से अलग करने के लिए चाकू का ही इस्तेमाल करें।

ये भी पढ़े: खीरे की खेती कब और कैसे करें?

कुल मिलाकर, फरवरी माह या उसके पहले अथवा उसके बाद, अनेक ऐसी फसलें होती हैं जिनकी पैदावार कई बार रिकार्डतोड़ होती है। इनमें से गेहूं और धान को अलग कर दें तो जो सब्जियां हैं, उनकी कटाई में दिमाग का इस्तेमाल बहुत ज्यादा करना पड़ता है। आपको धैर्य बना कर रखना पड़ता है और अत्यंत ही सावधानीपूर्वक तरीके से फसल को जमीन से अलग करना होता है। इसमें आप अगर हड़बड़ा गए तो अच्छी-खासी फसल खराब हो जाएगी। जहां बड़े जोत में ये वेजिटेबल्स उगाई जाती हैं, वहां मजदूर रख कर फसल निकलवानी चाहिए। बेशक मजदूरों को दो पैसे ज्यादा देने होंगे पर फसल भी पूरी की पूरी आएगी, इसे जरूर समझें। कोई जरूरी नहीं कि एक दिन में ही सारी फसल निकल आए। आप उसमें कई दिन ले सकते हैं पर जो भी फसल निकले, वह साबुत निकले। साबुत फसल ही आप खुद भी खाएंगे और अगर आप उसे बाजार अथवा मंडी में बेचेंगे, तो उसकी कीमत आपको शानदार मिलेगी। इसलिए बहुत जरूरी है कि खुद से लग कर और अगर फसल ज्यादा है तो लोगों को लगाकर ही फसलों को बाहर निकालना चाहिए। (देश के जाने-माने कृषि वैज्ञानिकों की राय पर आधारित)
फसलों पर गर्मी नहीं बरपा पाएगी सितम, गेहूं की नई किस्मों से निकाला हल

फसलों पर गर्मी नहीं बरपा पाएगी सितम, गेहूं की नई किस्मों से निकाला हल

फरवरी के महीने में ही बढ़ते तापमान ने किसानों की टेंशन बढ़ा दी है. अब ऐसे में फसलों के बर्बाद होने के अनुमान के बीच एक राहत भरी खबर किसानों के माथे से चिंता की लकीर हटा देगी. बदलते मौसम और बढ़ते तापमान से ना सिर्फ किसान बल्कि सरकार की भी चिंता का ग्राफ ऊपर है. इस साल की भयानक गर्मी की वजह से कहीं पिछले साल की तरह भी गेंहूं की फसल खराब ना हो जाए, इस बात का डर किसानों बुरी तरह से सता रहा है. ऐसे में सरकार को भी यही लग रहा है कि, अगर तापमान की वजह से गेहूं की क्वालिटी में फर्क पड़ा, तो इससे उत्पादन भी प्रभावित हो जाएगा. जिस वजह से आटे की कीमत जहां कम हो वाली थी, उसकी जगह और भी बढ़ जाएगी. जिससे महंगाई का बेलगाम होना भी लाजमी है. आपको बता दें कि, लगातार बढ़ते तापमान पर नजर रखने के लिए केंद्र सरकार ने एक कमेटी का गठन किया था. इन सब के बीच अब सरकार के साथ साथ किसानों को चिंता करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने वो कर दिखाया है, जो किसी ने भी सोचा भी नहीं था. दरअसल आईसीएआर ने गेहूं की तीन ऐसी किस्म को बनाया है, जो गर्मियों का सीजन आने से पहले ही पककर तैयार हो जाएंगी. यानि के सर्दी का सीजन खत्म होने तक फसल तैयार हो जाएगी. जिसे होली आने से पहले ही काट लिया जाएगा. इतना ही नहीं आईसीएआर के साइंटिस्टो का कहना है कि, गेहूं की ये सभी किस्में विकसित करने का मुख्य कारण बीट-द हीट समाधान के तहत आगे बढ़ाना है.

पांच से छह महीनों में तैयार होती है फसलें

देखा जाए तो आमतौर पर फसलों के तैयार होने में करीब पांच से छह महीने यानि की 140 से 150 दिनों के बीच का समय लगता है. नवंबर के महीने में सबसे ज्यादा गेहूं की बुवाई उत्तर प्रदेश में की जाती है, इसके अलावा नवंबर के महीने के बीच में धान, कपास और सोयाबीन की कटाई मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, एमपी और राजस्थान में होती है. इन फसलों की कटाई के बाद किसान गेहूं की बुवाई करते हैं. ठीक इसी तरह युपू में दूसरी छमाही और बिहार में धान और गन्ना की फसल की कटाई के बाद ही गेहूं की बुवाई शुरू की जाती है.

महीने के आखिर तक हो सकती है कटाई

साइंटिस्टो के मुताबिक गेहूं की नई तीन किस्मों की बुवाई अगर किसानों ने 20 अक्टूबर से शुरू की तो, गर्मी आने से पहले ही गेहूं की फसल पककर काटने लायक तैयार हो जाएगी. इसका मतलब अगर नई किस्में फसलों को झुलसा देने वाली गर्मी के कांटेक्ट में नहीं आ पाएंगी, जानकारी के मुताबिक मार्च महीने के आखिरी हफ्ते तक इन किस्मों में गेहूं में दाने भरने का काम पूरा कर लिया जाता है. इनकी कटाई की बात करें तो महीने के अंत तक इनकी कटाई आसानी से की जा सकेगी. ये भी पढ़ें: गेहूं पर गर्मी पड़ सकती है भारी, उत्पादन पर पड़ेगा असर

जानिए कितनी मिलती है पैदावार

आईएआरआई के साइंटिस्ट ने ये ख़ास गेहूं की तीन किस्में विकसित की हैं. इन किस्मों में ऐसे सभी जीन शामिल हैं, जो फसल को समय से पहले फूल आने और जल्दी बढ़ने में मदद करेंगे. इसकी पहली किस्म का नाम एचडीसीएसडब्लू-18 रखा गया है. इस किस्म को सबसे पहले साल 2016  में ऑफिशियली तौर पर अधिसूचित किया गया था. एचडी-2967 और एचडी-3086 की किस्म के मुकाबले यह ज्यादा उपज देने में सक्षम है. एचडीसीएसडब्लू-18 की मदद से किसान प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सात टन से ज्यादा गेहूं की उपज पा सकते हैं. वहीं पहले से मौजूद एचडी-2967 और एचडी-3086 किस्म से प्रति हेक्टेयर 6 से 6.5 टन तक पैदावार मिलती है.

नई किस्मों को मिला लाइसेंस

सामान्य तौर पर अच्छी उपज वाले गेंहू की किस्मों की ऊंचाई लगभग 90 से 95 सेंटीमीटर होती है. इस वजह से लंबी होने के कारण उनकी बालियों में अच्छे से अनाज भर जाता है. जिस करण उनके झुकने का खतरा बना रहता है. वहीं एचडी-3410 जिसे साल 2022 में जारी किया गया था, उसकी ऊंचाई करीब 100 से 105 सेंटीमीटर होती है. इस किस्म से प्रति हेल्तेय्र के हिसाब से 7.5 टन की उपज मिलती है. लेकिन बात तीसरी किस्म यानि कि एचडी-3385 की हो तो, इस किस्म से काफी ज्यादा उपज मिलने की उम्मीद जताई जा रही है. वहीं एआरआई ने एचडी-3385 जो किसानों और पौधों की किस्मों के पीपीवीएफआरए के संरक्षण के साथ रजिस्ट्रेशन किया है. साथ ही इसने डीसी एम श्रीरा का किस्म का लाइसेंस भी जारी किया है. ये भी पढ़ें: गेहूं की उन्नत किस्में, जानिए बुआई का समय, पैदावार क्षमता एवं अन्य विवरण

कम किये जा सकते हैं आटे के रेट

एक्सपर्ट्स की मानें तो अगर किसानों ने गेहूं की इन नई किस्मों का इस्तेमाल खेती करने में किया तो, गर्मी और लू लगने का डर इन फसलों को नहीं होगा. साथी ही ना तो इसकी गुणवत्ता बिगड़ेगी और ना ही उपज खराब होगी. जिस वजह से गेहूं और आटे दोनों के बढ़ते हुए दामों को कंट्रोल किया जा सकता है.
फायदे का सौदा है मूंग की खेती, जानिए बुवाई करने का सही तरीका

फायदे का सौदा है मूंग की खेती, जानिए बुवाई करने का सही तरीका

दलहनी फसलों में मूंग की खेती अपना एक अलग ही स्थान रखती है. मूंग की फसल को जायद सीजन में बोया जाता है. अगर किसान फायदे का सौदा चाहते हैं, तो इस सीजन में बूंग की फसल की बुवाई कर सकते हैं. 

मार्च से लेकर अप्रैल के महीने में खेत खुदाई और सरसों की कटाई के बाद खाली हो जाते हैं. जिसके बाद मूंग की बुवाई की जाती है. एमपी में मूंग जायद के अलावा रबी और खरीफ तीनों सीजन में उगाई जाति है. 

यह कम समय में पकने वाली ख़ास दलहनी फसलों में से एक है. मूंग प्रोटीन से भरपूर होती है. जो सेहत के लिए काफी फायदेमंद होती है. इतना ही नहीं यह फसल खेत और मिट्टी के लिए भी काफी फायदेमंद मानी जाती है. 

मूंग की खेती जिस मिट्टी में की जाती है, उस मिट्टी की उर्वराशक्ति बढ़ जाती है. मूंग की सबसे बड़ी खासियत यह है कि, इसकी फलियों की तुड़ाई के बाद खेत में हल से फसल को पलटकर मिट्टी में दबा दिया जाए, तो यह खाद का काम करने लगती है. अगर अच्छे ढंग से मूंग की खेती की जाए तो, किसान इससे काफी अच्छी कमाई कर सकते हैं.

पोषक तत्वों से भरपूर मूंग

जैसा की हम सबको पता है कि मूंग में प्रोटीन की भरपूर मात्रा होती है. लेकिन इसमें अन्य पोषक तत्व जैसे पोटैशियम, मैंग्निशियम, कॉपर, जिंक और कई तरह के विटामिन्स भी मिलते हैं. 

अगर इस दाल का सेवन किया जाए तो, इससे शरीर में पोषक तत्वों की कमी को पूरा किया जा सकता है. अगर किसी मरीज को इस दाल का पानी दिया जाए तो, इससे स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से राहत दिलाई जा सकती है. इसके अलावा मूंग दाल डेंगू से भी बचाने में मदद करती है. 

ये भी देखें: विश्व दलहन दिवस, जानें दालों से जुड़ी खास बातें

इन जगहों पर होती है खेती

भारत के आलवा रूस, मध्य अमेरिका, फ़्रांस, इटली और बेल्जियम में मूंग की खेती की जाती है. भारत के राज्यों में इसके सबसे ज्यादा उत्पान की बात करें तो, यूपी, बिहार, कर्नाटक, केरल और पहाड़ी क्षेत्रों में किया जाता है.

क्या है मूंग की उन्नत किस्में

मूंग के दाने का इस्तेमाल दाल के रूप में किया जाता है. मूंग की लिए करीब 8 किलोग्राम नत्रजन 20 किलोग्राम स्फुट, 8 किलोग्राम पोटाश और 8 किलो गंधक प्रति एकड़ बुवाई के समय इस्तेमाल करना चाहिए. 

इसके अलावा मूंग की फसल के उन्नत किस्मों का चयन का चुनाव उनकी खासियत के आधार पर किया जाना चाहिए.

  • टाम्बे जवाहर नाम की किस्म का उत्पादन जायद और खरीफ सीजन के लिए अच्छा माना जाता है. इसकी फलियां गुच्छों में होती है. जिसमें 8 से 11 दानें होते हैं.
  • जवाहर मूंग 721 नाम की किस्म तीनों सीजन के लिए उपयुक्त होती है. इसके पौधे की ऊंचाई लगभग 53 से 65 सेंटीमीटर होती है. इसमें 3 से 5 फलियां गुच्छों में होती है. जिसमें 10 से 12 फली होती है.
  • के 851 नाम की किस्म की बुवाई के लिए जायद और खरीफ का सीजन उपयुक्त होता है. 60 से 65 सेंटीमीटर तक इसके पौधे की लंबाई होती है. एक पौधे में 50 से 60 फलियां होती हैं. एक फली में 10 से 12 दाने होते हैं. इस किस्म की मूंग दाल के दाने चमकीले हरे और बड़े होते हैं.
  • एमयूएम 1 नाम की किस्म गर्मी और खरीफ दोनों सीजन के लिए अच्छी होती है. इसके पौधों का आकार मीडियम होता है. एक पौधे में लगभग 40 से 55 फलियां होती हैं. जिसकी एक फली में 8 से 12 दाने होते हैं.
  • पीडीएम 11 नाम की किस्म जायद और खरीफ दोनों सीजन के लिए उपयुक्त होती है. इसके पौधे का आकार भी मध्यम होता है. इसके पौधे में तीन से चार डालियां होती हैं. इसकी पकी हुई फली का आकार छोटा होता है.
  • पूसा विशाल नाम की किस्म के पौधे मध्यम आकार के होते हैं. इसकी फलियों का साइज़ ज्यादा होता है. इसके दाने का रंग हल्का हरा और चमकीला होता है.
ये भी देखें: संतुलित आहार के लिए पूसा संस्थान की उन्नत किस्में

कैसे करें जमीन तैयार?

खेत को समतल बनाने के लिए दो या तीन बार हल चलाना चाहिए. इससे खेत अच्छी तरह तैयार हो जाता है. मूंग की फसल में दीमग ना लगे, इसलिए इसे बचने के लिए क्लोरोपायरीफ़ॉस पाउडर 20 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मिट्टी में मिला लेना चाहिए. इसके अलावा खेत में नमी लंबे समय तक बनी रहे इसके लिए आखिरी जुताई में लेवलर लगाना बेहद जरूरी है.

कितनी हो बीजों की मात्रा?

जायद के सीजन में मूंग की अच्छी फसल के लिए बीजों की मात्रा के बारे में जान लेना बेहद जरूरी है. इस सीजन में प्रति एकड़ बीज की मात्रा 20 से 25 किलोग्राम तक होनी चाहिए. इसके बीजोपचार की बात करें तो उसमें 3 ग्राम थायरम फफूंदनाशक दवा से प्रति किलो बीजों के हिसाब से मिलाने से बीज, भूमि और फसल तीनों ही बीमारियों से सुरक्षित रहती है.

फसल की बुवाई का क्या है सही समय?

मूंग की फसल की बुवाई खरीफ और जायद दोनों ही सीजन में अलग अलग समय पर की जाती है. बार खरीफ के सीजन में बुवाई की करें तो, जून के आखिरी हफ्ते से लेकर जुलाई के आखिरी हफ्ते तक इसकी बुवाई करनी चाहिए. 

वहीं जायद के सीजन में इस फसल की बुवाई मार्च के पहले गते से लेकर अप्रैल के दूसरे हफ्ते तक बुवाई करनी चाहिए.

क्या है बुवाई का सही तरीका?

मून की बुवाई कतारों में करनी चाहिए. जिसमें सीडड्रिल की मदद ली जा सकती है. कतारों के बीच की दूरी कम से कम 30 से 45 सेंटीमीटर तक और 3 से 5 सेंटीमीटर की गहराई में बीज की बुवाई होनी चाहिए. 

अगर एक पौधे की दूरी दूसरे पौधे की दूरी से 10 सेंटीमीटर पर है, तो यह अच्छा माना जाता है. 

ये भी देखें: गेंहू की बुवाई का यह तरीका बढ़ा सकता है, किसानों का उत्पादन और मुनाफा

कैसी हो खाद और उर्वरक?

मूंग की फसल के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले खाद और उर्वरकों का इस्तेमाल करने से पहले मिट्टी को चेक कर लेना जरूरी है. इसमें कम से कम 5 से 12 टन तक कम्पोस्ट खाद या गोबर की खाद का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. 

इसके अलावा मून की फसल के लिए 20 किलो नाइट्रोज और 50 किलो स्फुर का इस्तेमाल बीजों की बुवाई के समय करें. वहीं जिस क्षेत्र में पोटाश और गंधक की कमी है वहां 20 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पोटाश और गंधक देना फायदेमंद होता है.

कैसे करें खरपतवार नियंत्रण?

पहली निराई बुवाई के 25 से 30 दिनों के अंदर और दूसरी 35 से 40 दिनों में करनी चाहिए. मूंग की फसल की बुवाई के एक या फिर दो दिनों के बाद पेंडीमेथलीनकी की 3 लीटर मात्रा आधे लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें. जब फसल एक महीने की हो जाए तो उसकी गुड़ाई कर दें.

कैसे करें रोग और कीट नियंत्रण?

  • फसल को दीमग से बचाने के लिए बुवाई से पहले खेत में जुताई के वक्त क्यूनालफोस या क्लोरोपैरिफ़ॉस पाउडर की 25 किलो तक की मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला लें.
  • फसल की पत्तियों में अगर पीलापन नजर आए तो यह पीलिया रोग का संकेत होता है. इससे बचाव के लिए गंधक के तेज़ाब का छिड़काव करना अच्छा होता है.
  • कातरा नाम का कीट पौधों को शुरूआती अवस्था में काटकर बर्बाद कर देता है. इससे बचाव के लिए क्यूनालफोस 1.5 फीसद पाउडर की कम से 20 से 25 किलो मात्रा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से भुरक देनी चाहिए.
  • फसलों को तना झुलसा रोग से बचाने के लिए दो ग्राम मैकोजेब से प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचार करके बुवाई की जानी चाहिए. बीजों की बुवाई के एक महीने बाद दो किलो मैकोजेब प्रति हेक्टेयर की दर से कम से कम 5 सौ लीटर पानी घोलकर स्प्रे करना चाहिए.
  • फसलों को फली छेदक से बचाने के लिए मोनोक्रोटोफास कम से कम आधा लीटर 20 से 25 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से स्प्रे करना चाहिए.

कब सिंचाई की जरूरत?

मूंग की फसल को सिंचाई की जरूरत नहीं होती लेकिन लेकिन जायद के सीजन में फसल को 10 से 12 दिनों के अंतराल में कम से कम 5 बार सिंचाई की जरूरत होती है. मूंग की फसलों की सिंचाई के लिए उन्नत तकनीकों की मदद ली जा सकती है.

कैसे करें कटाई?

मूंग की फलियों का रंग जब हरे से भूरा होने लगे तब फलियों की कटाई करनी चाहिए. बाकी की बची हुई फसल को मिट्टी में जुताई करने से हरी खाद की जरूरत पूरी हो जाती है. 

अगर फलियां ज्यादा पक जाएंगी तो उनकी तुड़ाई करने पर उनके चटकने का डर रहता है. जिसकी वजह से फसल का उत्पादन कम होता है. मूंग की फसल के बीज का भंडारण करने के लिए उन्हें अच्छे से सुखा लेना चाहिए. 

बीज में 10 फीसद से ज्यादा नमी नहीं होनी चाहिए. अगर आप भी इन बातों का ख्याल रखते हुए मूंग की फसल की बुवाई करेंगे तो, यह आपके लिए फायदे का सौदा हो सकता है.

पूसा परिसर में बिल गेट्स ने किया दौरा, खेती किसानी के प्रति व्यक्त की अपनी रुची

पूसा परिसर में बिल गेट्स ने किया दौरा, खेती किसानी के प्रति व्यक्त की अपनी रुची

गेट्स फाउंडेशन के चेयरमैन ब‍िल गेट्स (Bill Gates) द्वारा पूसा कैंपस में गेहूं एवं चने की उन प्रजातियों की फसलों के विषयों में जाना जो जलवायु पर‍िवर्तन की जटिलताओं का सामना करने में समर्थ हैं। विश्व के अरबपति बिल गेट्स (Bill Gates) द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR) का भृमण करते हुए, यहां के पूसा परिसर में तकरीबन डेढ़ घंटे का समय व्यतीत किया एवं खेती व जलवायु बदलाव के विषय में लोगों से विचार-विमर्श किया।

बिल गेट्स ने कृषि क्षेत्र में अपनी रुची जाहिर की

आईएआरआई के निदेशक ए.के. सिंह द्वारा मीडिया को कहा गया है, कि बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के सह-अध्यक्ष एवं ट्रस्टी बिल गेट्स (Bill Gates) द्वारा आईएआरआई के कृषि-अनुसंधान कार्यक्रमों, प्रमुख रूप से जलवायु अनुकूलित कृषि एवं संरक्षण कृषि में गहन रुचि व्यक्त की।

ये भी पढ़ें:
भारत के कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने पूसा कृषि विज्ञान मेला का किया दौरा
इसी मध्य गेट्स (Bill Gates) द्वारा आईएआरआई की जलवायु में बदलाव सुविधा एवं कार्बन डाइऑक्साइड के उच्च पैमाने के सहित खेतों में उत्पादित की जाने वाली फसलों के विषय में जानकारी अर्जित की है। बिल गेट्स ने मक्का-गेहूं फसल प्रणाली के अंतर्गत सुरक्षित कृषि पर एक कार्यक्रम में भी मौजूदगी दर्ज की। गेट्स ने संरक्षण कृषि के प्रति अपनी विशेष रुचि व्यक्त की। उसकी यह वजह है, कि गेट्स का एक लक्ष्य विश्व स्तर पर कुपोषण की परेशानी का निराकरण करना है। इसलिए ही वह स्थायी कृषि उपकरण विकसित करने के लिए निवेश कर रहे हैं। बिल गेट्स द्वारा खेतों में कीड़ों एवं बीमारियों की निगरानी हेतु आईएआरआई द्वारा विकसित ड्रोन तकनीक समेत सूखे में उत्पादित होने वाले छोले पर हो रहे एक कार्यक्रम को ध्यानपूर्वक देखा।

बिल गेट्स (Bill Gates) ने दौरा करने के बाद क्या कहा

संस्थान के निदेशक डॉ. अशोक कुमार स‍िंह द्वारा गेट्स के दौरा को कृषि अध्ययन एवं जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में कारगर कदम बताया है। गेट्स का कहना है, क‍ि देश में कृष‍ि के राष्ट्रीय प्रोग्राम अपनी बेहद अच्छी भूमिका निभा रहे हैं। फाउंडेशन से जुड़कर कार्य करने एवं सहायता लेने हेतु योजना निर्मित कर दी जाएगी। जलवायु परिवर्तन, बायोफोर्टिफिकेशन से लेकर फाउंडेशन सहयोग व मदद करेगा तब और बेहतर होगा। आईएआरआई को जीनोम एडिटिंग की भाँति नवीन विज्ञान के इलाकों में जीनोम चयन एवं मानव संसाधन विकास का इस्तेमाल करके पौधों के प्रजनन के डिजिटलीकरण पर परियोजनाओं हेतु धन उपलब्ध कराया जाएगा।
किसान अप्रैल माह में उगाई जाने वाली इन फसलों से कर पाएंगे अच्छी आय

किसान अप्रैल माह में उगाई जाने वाली इन फसलों से कर पाएंगे अच्छी आय

आज हम बात करने वाले हैं, अप्रैल माह में उगाई जाने वाली अच्छी फसलों के बारे में जिनसे किसानों को अच्छी आय हो सके। जैसा कि हम जानते हैं, कि अप्रैल माह तक तकरीबन समस्त रबी फसलें कट जाती हैं। 

किसान अपनी पैदावार को भी प्रबंधन करके मंडी पहुंचाने लग जाते हैं। अब जायद सीजन की फसलें बोई जानी हैं। ये फसलें मुनाफे के सहित मृदा की उपजाऊ शक्ति को भी बढ़ा देती हैं।

अप्रैल माह में उगाई जाने वाली फसलें

रबी फसलों की कटाई और खरीफ सीजन से पूर्व कुछ महीनों के मध्य में खाली बच जाते हैं, जिसे जायद सीजन भी कहा जाता है। इसके दौरान बहुत सी तिलहनी एवं दलहनी फसलों की बुवाई की जाती है, जो धान मक्का की खेती से पूर्व ही तैयार हो जाती है। 

जायद सीजन के तहत खास बागवानी फसलों की भी बुवाई की जाती है। इसके अतिरिक्त अधिकाँश किसान मृदा की उर्वरक क्षमता को बढ़ाने हेतु जायद सीजन में लोबिया, मूंग और ढेंचा का उत्पादन भी किया जाता है। इससे मृदा में नाइट्रोजन का स्तर काफी बढ़ जाता है।

बुवाई से पहले बीजोपचार अत्यंत जरुरी है

रबी फसलों की कटाई के उपरांत सर्वप्रथम खेत में गहरी जुताई कर खेत को तैयार कर लें। जायद सीजन की फसलों की बुवाई करने से पूर्व मृदा की जांच जरूर करवा लें। 

क्योंकि मृदा परिक्षण से समुचित मात्रा में खाद-उर्वरक का इस्तेमाल करने की राहत मिल सकेगी। गैर जरुरी चीजों पर होने वाले खर्चों से छुटकारा मिल पाएगा। हर फसल सीजन के उपरांत मृदा परीक्षण करवाने से इसकी खामियों की भी जानकारी मिल जाती है। जिनका समयानुसार उपचार किया जा सकता है।

बेबी कॉर्न और साठा मक्का का उत्पादन

यह समय साठी मक्का और बेबी कॉर्न की खेती के लिए उपयुक्त है। इन दोनों फसलों को पककर तैयार होने में लगभग 60 से 70 दिन का समय लगता है। फिर कटाई के उपरांत सुगमता से धान की बिजाई का कार्य भी किया जा सकता है।

वर्तमान में बेबी कॉर्न भी काफी चलन में है। बतादें, कि इस मक्का को कच्चा ही बेचा जा सकता है। इतना ही नही भोजनालयों में भी बेबी कॉर्न के पकौड़े, सूप, सलाद, सब्जी, अचार आदि बेहद प्रसिद्ध हैं। 

ये भी पढ़े: बेबी कॉर्न की खेती (Baby Corn farming complete info in hindi)

बागवानी फसलों की बुवाई

अप्रैल माह में किसान भाई बागवानी फसलों का उत्पादन करके अच्छी आय कर सकते हैं। अप्रैल माह करेला, तोरई, बैंगन, लौकी और भिंडी की खेती के लिए काफी अच्छा होता है। 

बेमौसम बारिश की मार से जायद सीजन की फसलों को संरक्षित करने के लिए किसान भाई ग्रीन हाउस, लो टनल और पॉलीहाउस की व्यवस्था कर लें। इन संरक्षित ढांचों को तैयार करने के लिए राज्य सरकारें किसानों को अनुदान भी उपलब्ध करवाती हैं।

उड़द की बुवाई

अप्रैल माह उड़द की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है। दरअसल, जलभराव वाले क्षेत्रों में इसका उत्पादन करने से बचना चाहिए। उड़द का उत्पादन करने के लिए प्रति एकड़ 6-8 किलो बीजदर का उपयोग करें। 

साथ ही, किसान अपने खेत में उड़द की बुवाई करने से पूर्व थीरम अथवा ट्राइकोडर्मा से उपचारित जरूर कर लें।

अरहर की बुवाई

किसान दलहन उत्पादन के संबंध में आत्मनिर्भर होने के तरफ अग्रसर होने के लिए अरहर की फसल उगा सकते हैं। जल निकासी वाली मृदा में कतारों में अरहर का बीजारोपण किया जाता है। 

यह फसल 60 से 90 दिनों के समयांतराल में पककर कटाई हेतु तैयार हो जाती है। अगर आप चाहें, तो अरहर की कम समयावधि वाली किस्मों का बीजारोपण कर जल्दी उत्पादन हांसिल कर सकते हैं।

सोयाबीन की बुवाई

अप्रैल माह में बोई जाने वाली सोयाबीन की फसल में संक्रमण और बीमारियों की आशंका काफी कम ही रहती है। यह फसल वातावरण में नाइट्रोजन स्थिरीकरण का कार्य करती है। 

जलभराव वाले स्थानों में सोयाबीन की बुवाई करना ठीक नहीं होता है। सोयाबीन की बेहतरीन पैदावार लेने के लिए बुवाई से पूर्व खेत की 3 गहरी जुताईयां करना काफी अच्छा माना जाता है। 

ये भी पढ़े: Soyabean Tips: लेट मानसून में भी पैदा करना है बंपर सोयाबीन, तो करें मात्र ये काम

मूँगफली की बुवाई

अप्रैल माह के आखिरी सप्ताह तक मतलब कि गेहूं की कटाई के शीघ्र उपरांत मूंगफली की फसल का बीजारोपण किया जा सकता है। यह फसल अगस्त-सितंबर तक पककर तैयार हो सकती है। 

परंतु, जलनिकासी वाले क्षेत्रों में ही मूंगफली की बुवाई करना उचित रहता है। किसान मूँगफली का बेहतर उत्पादन लेने हेतु हल्की दोमट मिट्टी में बीजोपचार के उपरांत ही मूंगफली के दानों की खेत में बिजाई कर दें।

ढेंचा की बुवाई

खरीफ सीजन की धान-मक्का की बुवाई से पूर्व किसान बाई ढेंचा मतलब कि हरी खाद की फसल उठा सकते हैं। इससे खाद-उर्वरकों पर खर्च किए जाने वाली धनराशि को सुगमता से बचाया जा सकता है। 

ढेंचा की फसल 45 दिन के समयांतराल में लगभग 5 से 6 सिंचाईयों में पककर तैयार हो जाती है। अब इसके उपरांत धान का उत्पादन करने पर फसलीय गुणवत्ता एवं पैदावार बेहतरीन मिलती है। 

गेहूं की कटाई करने के उपरांत कृषि वैज्ञानिकों से जानकारी एवं अपने स्थान-जलवायु के मुताबिक गन्ना एवं कपास की बिजाई भी कर सकते हैं। 

साथ ही, फसलीय कीट एवं रोगिक संक्रमण की आशंकाओं को समाप्त करने हेतु पूर्व से ही बीजोपचार पर कार्य जरूर कर लें।

बढ़ते तापमान और गर्मी से पशुओं को बचाने की काफी आवश्यकता है

बढ़ते तापमान और गर्मी से पशुओं को बचाने की काफी आवश्यकता है

जैसा हम जानते हैं, गर्मी के दिन आने शुरू हो चुके हैं। दिनों दिन तापमान में इजाफा होने से पशुओं में संक्रमण फैलने का खतरा अधिक हो जाता है। लंगड़ी रोग पशुओं को सबसे ज्यादा दिक्कत करता है। इस वजह से उसे रोग प्रतिरोधक टीके वक्त पर लगवाते रहें। तापमान में इजाफा होने से केवल जनता ही नहीं पशुओं की भी समस्याएं बढ़ने लगती हैं। ऐसी हालत में ज्यादा गर्मी पड़ने पर पशु दूध देना भी कम कर देते हैं। विशेष बात यह है, कि इंसान की भांति दुधारू मवेशियों को गर्म हवाऐं भी लगने का भय रहता है। विभिन्न मामलों में यह देखा गया है कि लू की चपेट में आने से पशुओं की मृत्यु भी हो जाती है। इस वजह से अप्रैल माह में विशेष कर किसान भाई अपने पशुओं को लू और गर्मी से बचाएं। क्योंकि, इस माह में मौसम में तीव्रता से परिवर्तन होता है। इससे जानवरों की सेहत पर प्रभाव पड़ने का संकट मंड़रा जाता है। यह भी पढ़ें : अपने दुधारू पशुओं को पिलाएं सरसों का तेल, रहेंगे स्वस्थ व बढ़ेगी दूध देने की मात्रा

पशुपालक बढ़ती गर्मी और तापमान से अपने पशुओं को बचाऐं

बिहार राज्य के पशु और मत्स्य संसाधन विभाग द्वारा पशुपालकों के लिए से विशेष सावधानियां बरतने की अपील की है। पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग की तरफ से किसानों को कहा है कि अप्रैल माह में गर्मी काफी हद तक बढ़ जाती है। इससे पशुओं को लू लगने का खतरा अधिक हो जाता है। साथ ही, गर्मी की वजह से दूध की पैदावार काफी कम हो जाती है। मवेशियों के शरीर में जल और नमक की मात्रा कम हो जाती है। साथ ही, गाय- भैंस को भूख भी काफी कम लगने लगती है। अगर आपकी गाय-भैंस में इस प्रकार के लक्षण नजर आ रहे हैं, तब आप समझलें कि वह लू और गर्मी की चपेट में आ चुके हैं। ऐसे में मवेशियों को अतिशीघ्र पशु चिकित्सकों से दिखाना चाहिए।

पशुओं को हरा चारा अधिक मात्रा में खिलाऐं

यदि आप अपने पशुओं को लू और गर्मी के प्रभाव से बचाना चाहते हैं, तो उन्हें असहनीय धूप होने से पूर्व ही छाया में बांध दें। साथ ही, किसानों को समयानुसार ताजा पानी पिलाया जाए, ताकि शरीर में पानी की कमी न हो पाए। साथ ही, मवेशियों को खाने के लिए हरा चारा अधिक दें। यदि हो सके तो किसान भाई अपने पशुओं को एजोला घास चारे के तौर पर प्रदान करें। इससे उसे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेड, विटामिन एवं खनिज प्रचूर मात्रा प्राप्त हो सकेंगे।

गर्मी बढ़ने पर पशुओं में फॉस्फोरस की काफी कमी आ जाती है

साथ ही, गर्मी व तापमान बढ़ने से मवेशियों में संक्रमण फैलने का खतरा काफी बढ़ जाता है। लंगड़ी रोग पशुओं को सबसे ज्यादा परेशान करता है। इस वजह से उसे रोगरोधी टीके वक्त पर लगवाते रहें। साथ ही, गर्मी बढ़ने पर मवेशियों में फॉस्फोरस की कमी आ जाती है। इससे मवेशी स्वयं का पेशाब पीना चालू कर देते हैं। साथ ही, मिट्टी भी चाटने लग जाते हैं। इससे उन्हें बीमार पड़ने की आशंका बढ़ जाती है। इस वजह से पशुओं को चारे में नमक मिलकार खिलाएं। इससे उनके शरीर में फॉस्फोरस की कमी नहीं आएगी। साथ ही, पशुओं को दिन में न्यूनतम चार बार पानी पिलाएं और हवादार स्थान पर रखें। इससे वह काफी सेहतमंद रहेंगे।
बिहार के किसान विजय कुमार ने वैज्ञानिक तरीके से गर्मी के सीजन में भी उगाई गोभी

बिहार के किसान विजय कुमार ने वैज्ञानिक तरीके से गर्मी के सीजन में भी उगाई गोभी

बिहार के पूर्वी चंपारण के किसान विजय कुमार वैज्ञानिक तौर तरीके से गर्मी के मौसम में भी गोभी का उत्पादन कर रहे हैं। विजय ने 12 कट्ठे भूमि के हिस्से पर गोभी की खेती की है। गोभी की सब्जी प्रत्येक व्यक्ति को काफी पसंद आती है। इसमें विभिन्न विटामिन्स और पोषक तत्व विघमान रहते हैं। इसके अंतर्गत विटामिन-बी6, मैंगनीज, फॉसफोरस, फाइबर, विटामिन-के, फोलेट, पोटैशियम, मैग्नीशियम और विटामिन-सी भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसका सेवन करने से शरीर को प्रचूर मात्रा में पोषक तत्व मिलते हैं। इससे इंसान की सेहत काफी अच्छी रहती है। पहले गोभी के लिए करीब 8 महीने की प्रतीक्षा करनी पड़ती थी। क्योंकि, इसकी उत्पादन केवल ठंडे मौसम में ही हुआ करता था। परंतु, फिलहाल अब ऐसा कुछ नहीं है। गर्मी के सीजन में भी गोभी की खेती की जा रही है। बिहार के एक किसान ने भी एक ऐसा ही कारनामा कर दिखाया है।

किसान विजय कुमार ने 12 कट्ठे जमीन पर गोभी की खेती चालू की है

मीडिया खबरों के अनुसार, पूर्वी चंपारण के किसान विजय कुमार वैज्ञानिक विधि से गर्मी के दिनों में भी गोभी की खेती कर रहे हैं। उन्होंने 12 कट्ठे भूमि पर गोभी की खेती शुरू की है। विशेष बात यह है, कि विजय कुमार एफएलडी के भीतर गोभी का उत्पादन कर रहे हैं। उन्होंने अपनी 12 कट्ठे की पूरी जमीन पर एफएलडी बना रखा है। हालांकि, इसके ऊपर उन्होंने बेहद खर्चा किया है। विजय का यह कहना है, कि 10 दिन के बाद गोभी की फसल पूर्णतय तैयार हो जाएगी। इसके बाद हमारे खेत में उगाई गई गोभी लोग बाजार से खरीद पाऐंगे। ये भी देखें: रंगीन फूलगोभी उगा कर किसान हो रहें हैं मालामाल, जाने कैसे कर सकते हैं इसकी खेती

एफएलडी बनाने में करीब 25 लाख का खर्चा हुआ

किसान विजय कुमार के अनुसार, एफएलडी तैयार करने में कुल 25 लाख रुपये का खर्चा हुआ था। दरअसल, इसके लिए सरकार की तरफ से उनको 90 फीसद अनुदान भी प्राप्त हुआ था। विशेष बात यह है, कि गोभी का उत्पादन चालू करने से पूर्व उन्होंने एफएलडी के भीतर ही गोभी की नर्सरी भी तैयार की थी। गोभी के बीज पर उनको 8 हजार रुपये की लागत लगानी पड़ी। इसके अतिरिक्त सिंचाई एवं लेबर चार्ज पर भी 12 हजार रुपये का व्यय करना पड़ा। परंतु, उनका यह कहना है, कि वह गोभी से बेहतरीन मुनाफा उठाऐंगे।

गोभी बाजार में 50 से 60 रूपये प्रति किलो बेची जा रही है

मुख्य बात यह है, कि विजय ने मार्च माह के आखरी सप्ताह में गोभी के पौधे रोपे थे। जून के पहले सप्ताह से खेत से गोभी निकलना शुरू हो जाऐगा। फिलहाल, शादियों का समय चल रहा है। शादियों के समय मिक्स वेज की सब्जी तैयार करने हेतु गोभी की अधिकॉंश मांग रहती है। अब ऐसी स्थिति में उनके खेत के गोभी को व्यापारी बड़ी ही आसानी से खरीद लेंगे। उनको अब ऐसे में बेहतर आमदनी होने की संभावना है। फिलहाल, बाजार में गोभी 50 से 60 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिक रही है। यदि 50 रुपये किलो के भाव से भी गोभी बिकेगी तब भी मोटी आमदनी होगी।
बढ़ती प्रचंड गर्मी से पशुओं को ऐसे बचाएं, गर्मी से दुग्ध उत्पादन में 15% प्रतिशत गिरावट

बढ़ती प्रचंड गर्मी से पशुओं को ऐसे बचाएं, गर्मी से दुग्ध उत्पादन में 15% प्रतिशत गिरावट

गर्मी में बढ़ोत्तरी होने की स्थिति में मवेशी चारा तक खाना कम कर देते हैं। इससे पशुओं की दुग्ध उत्पादक क्षमता में गिरावट आ जाती है। साथ ही, तेज धूप की तपिश की वजह से पशु तनाव में आ जाते हैं। इसकी वजह से उनके शरीर में सुस्ती बढ़ने लग जाती है। आजकल देशभर में अत्यधिक गर्मी पड़ रही है। इससे आम जनमानस के साथ- साथ मवेशियों का भी हाल-बेहाल हो चुका है। सुबह के 9 बजते ही शरीर को तपा देने वाली गर्म हवाएं चलने लगती हैं। ऊपर से चिलचिलाती प्रचंड धूप ने लोगों को परेशान कर दिया है। विभिन्न राज्यों में तापमान 40 डिग्री के भी लांघ चुका है। इसकी वजह से मुख्यतः मवेशी बहुत ज्यादा प्रभावित हुए हैं। गर्मी की वजह से दुधारू मवेशियों ने दूध देना कम कर दिया है। ऐसी स्थिति में पशुपालकों की आमदनी कम हो गई है।

दुग्ध उत्पादन में 15 प्रतिशत की गिरावट

मीडिया खबरों के अनुसार, महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में तापमान 43 डिग्री के आसपास पहुंच चुका है। तापमान में बढ़ोत्तरी होने से मवेशियों ने दूध देना तक कम कर दिया है। बतादें, कि बढ़ती गर्मी की वजह से दूध की पैदावार में 15 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। वह दूध बेच कर पशु चारे पर आने वाली लागत जैसे-तैसे निकाल पा रहे हैं। ऐसी स्थिति में किसान भाइयों का कहना है, कि यदि इसी प्रकार तापमान में वृद्धि जारी रही, तो दूध उत्पादन में और भी कमी आ सकती है। इससे उनको पशुपालन में घाटा उठाना पड़ सकता है। ये भी देखें: बढ़ते तापमान और गर्मी से पशुओं को बचाने की काफी आवश्यकता है

मवेशियों को सुबह-शाम तालाब में स्नान कराऐं

पशु चिकित्सकों के अनुसार, गर्मी बढ़ने पर मवेशी चारा खाना काफी कम कर देते हैं। इससे उनकी दुग्ध उत्पादन क्षमता में गिरावट आ जाती है। साथ ही, चिलचिलाती धूप की तपिश की वजह से पशु तनाव में आ जाते हैं। इससे उनके शरीर में सुस्ती बढ़ने लगती है, जिसका प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से दूध देने की क्षमता पर पड़ता है। ऐसी स्थिति में दूध की मात्रा में कमी आने लगती है। ऐसी स्थिति में पशुओं को गर्मी और लू से संरक्षण देने के लिए सुबह- शाम उसे नहर अथवा तालाब में नहलाना चाहिए। इससे उनके शरीर का तापमान काफी कम रहता है, जिससे वह सेहतमंद रहते हैं।

मवेशियों को प्रतिदिन 4 से 5 बार शीतल जल पिलाएं

साथ ही, मवेशियों को गर्मी से बचाव के लिए 4 से 5 बार शीतल जल पिलाएं। साथ ही, पशुओं को छायादार और हवादार स्थान पर ही बांधे। यदि दोपहर में काफी ज्यादा तापमान बढ़ गया है, तब मवेशी के बाड़े में कूलर या पंखा भी चला सकते हैं। इससे मवेशियों को गर्मी से काफी सहूलियत मिलती है। यदि मवेशी सूखा चारा नहीं खा पा रहे हैं, तो उन्हें हरी- हरी घास खाने को दें। इससे दूध की पैदावार कम नहीं होगी। अगर संभव हो तो किसान भाई अपनी गाय- भैंस को लोबिया घास खाने के लिए उपलब्ध कराऐं। इसके अंदर काफी ज्यादा मात्रा में फाइबर, प्रोटीन और अन्य पोषक तत्व विघमान रहते हैं। इससे गाय- भैंस पूर्व की तुलना में अधिक दूध देने लगती हैं।

यह घास दुग्ध उत्पादन को बढ़ा सकती है

यदि किसान भाई चाहते हैं, तो दूध की पैदावार बढ़ाने के लिए मवेशियों को अजोला घास भी खिला सकते हैं। यह घास पानी में उत्पादित की जाती है और पोषण से भूरपूर होती है। गर्मी के मौसम में इसे मवेशियों के लिए संजीवनी कहा गया है। साथ ही, प्रतिदिन 200 ग्राम सरसों के तेल में 250 ग्राम गेहूं का आटा मिलाकर मिश्रण बना लें। इस मिश्रण को प्रतिदिन सुबह- शाम चारे के साथ मिश्रित करके मवेशियों को खिलाएं। सिर्फ एक हफ्ते तक ऐसा करें, इससे पशुओं में दूध देनी की क्षमता बढ़ सकती है।
मौसम विभाग ने जारी किया पूर्वानुमान, इन राज्यों में भारी बारिश की संभावना

मौसम विभाग ने जारी किया पूर्वानुमान, इन राज्यों में भारी बारिश की संभावना

मौसम विभाग द्वारा भारत के विभिन्न राज्यों में 29 जून तक मूसलाधार बारिश के साथ आंधी एवं बिजली गिरने की चेतावनी जारी कर दी है। यहां जानें आज कहां बारिश होगी। जानकारी के लिए बतादें, कि मौसम ने अपना रुख बदलना चालू कर दिया है। यदि देखा जाए तो मानसून 2023 ने भारत के विभिन्न राज्यों में दस्तक दे दी है। ऐसी स्थिति में IMD ने भी मौसम से जुड़ी ताजा जानकारी जारी कर दी है। जिससे कि लोग बारिश और गर्मी से अपने आप को बचा कर रख सकें। आइए जानते हैं कि आज आपके शहर में मौसम का हाल कैसा रहने वाला है।

देश की राजधानी दिल्ली में हुई बारिश

दिल्ली में कल रात्रि से हो रही हल्की बारिश से दिल्ली का मौसम अचानक ठंडा हो गया है। अनुमान यह है, कि आज भी दिल्ली के विभिन्न इलाकों में प्रचंड वर्षा होने की संभावना है। मौसम विभाग का कहना है, कि दिल्ली में बारिश का यह दौर 29 जून तक बना रह सकता है। IMD के अनुसार, आज दिल्ली का न्यूनतम तापमान 30 डिग्री सेल्सियस एवं अधिकतम तापमान 36 डिग्री सेल्सियस तक दर्ज किया जा सकता है। यह भी पढ़ें: मौसम विभाग: यूपी में आने वाले दिनों में होगी हल्की बारिश

भारत के इन क्षेत्रों में प्रचंड बारिश की चेतावनी

ओडिशा में अच्छी-खासी बारिश होने की संभावना है। इसके अतिरिक्त IMD के अनुसार, आगामी दिनों में मतलब कि 28 और 29 तारीख को असम, मेघालय एवं अरुणाचल प्रदेश के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में हल्की से भारी बारिश का अलर्ट जारी किया है।मौसम विभाग का अनुमान है, कि अगले 2 दिनों के दौरान पूर्वी भारत के कुछ इलाकों में छिटपुट वर्षा होने की संभावना है। 28 जून को पूर्वी राजस्थान में तीव्र हवाओं के साथ अत्यधिक भारी बारिश होने की चेतावनी जारी की गई है। 26, 27 एवं 29 तारीख तक उत्तराखंड के भिन्न-भिन्न इलाकों में भारी बारिश हो सकती है। छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और विदर्भ में हल्की/मध्यम सी बारिश के साथ आंधी एवं बिजली गिरने की संभावना है। साथ ही, आगामी 2 दिनों के दौरान केरल, कर्नाटक और माहे में भी काफी प्रचंड वर्षा होने की संभावना है।
मौसम विभाग ने मार्च माह में गेहूं और सरसों की फसल के लिए सलाह जारी की है

मौसम विभाग ने मार्च माह में गेहूं और सरसों की फसल के लिए सलाह जारी की है

गेहूँ की फसल के लिए एडवाइजरी

  1. किसानों को सलाह दी जाती है कि वे आगे बारिश के पूर्वानुमान के कारण खेतों में सिंचाई न करें/उर्वरक न डालें।
  2. उन्हें सलाह दी जाती है कि वे अपने खेत पर नियमित निगरानी रखें क्योंकि यह मौसम गेहूं की फसल में पीला रतुआ रोग
  3. विकास के लिए अनुकूल है।
  4. किसानों को सलाह दी जाती है कि वे खेतों में सिंचाई न करें/उर्वरक न डालें। आगे बारिश के पूर्वानुमान के कारण अन्य कृषि संबंधी अभ्यास करें।
  5. पीली रतुआ की उपस्थिति के लिए गेहूं की फसल का नियमित सर्वेक्षण करें।
  6. नए लगाए गए और छोटे पौधों के ऊपर बाजरा या ईख की झोपड़ी बनाएं और इसे पूर्व-दक्षिण दिशा में खुला रखें ताकि पौधों को सूरज की रोशनी मिल सके।
  7. किसानों को गेहूं की बुआई की तकनीक जीरो टिलेज, हैप्पी सीडर या अन्य फसल अवशेष प्रबंधन अपनाने की भी सलाह दी जाती है।
  8. नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फास्फोरस की पूरी मात्रा, पोटाश तथा जिंक सल्फेट को बुआई के समय छिड़कें।
  9. किसानों को यह भी सलाह दी जाती है, कि वे तीसरी और चौथी पत्ती पर 0.5% जिंक सल्फेट के साथ 2.5% यूरिया का छिड़काव करें। पौधों का रंग पीला हो जाता है जो जिंक की कमी के लक्षण दर्शाता है।    
  10. गेहूं की बुआई के 30-35 दिन बाद "जंगली पालक" सहित गेहूं में सभी चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए मेटसल्फ्यूरॉन (एल्ग्रिप जी.पा या जी. ग्रैन) का 8.0 ग्राम (उत्पाद + सहायक) प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। हवा बंद होने पर फ्लैट फैन नोजल का उपयोग करके 200-250 लीटर पानी में मिलकर स्प्रे करें।

ये भी पढ़ें: किसान भाई ध्यान दें, खरीफ की फसलों की बुवाई के लिए नई एडवाइजरी जारी

सरसों की फसल के लिए एडवाइजरी    

  1. सिंचाई के दौरान पतला पानी ही डालें और खेत में पौधों में पानी जमा न होने दें।
  2. किसानों को यह भी सलाह दी जाती है, कि वे अपने खेत की नियमित निगरानी करते रहें। क्योंकि यह मौसम इसके लिए अनुकूल है। सफेद रतुआ रोग का विकास और सरसों में एफिड का प्रकोप। पौधे का संक्रमित भाग घटना की प्रारंभिक अवस्था में नष्ट कर दें। 
  3. देश के जिन हिस्सों में तना सड़न रोग प्रति वर्ष होता है, वहां 0.1% की दर से कार्बेन्डाजिम का पहला छिड़काव करना चाहिए। स्प्रे बिजाई के 45-50 दिन पश्चात करें। कार्बेन्डाजिम का दूसरा छिड़काव 0.1 फीसद की दर से 65-70 दिन के बाद करें।  
  4. किसान भाई अपने खेतों की लगातार निगरानी करते रहें। जब यह पुष्टि हो जाए कि सफेद रतुआ रोग ने खेतों में दस्तक दे दी है, तो 250-300 लीटर पानी में 600-800 ग्राम मैन्कोजेब (डाइथेन एम-45) मिलाएं और 15 दिनों के समयांतराल पर प्रति एकड़ 2-3 बार छिड़काव करें।

इस साल रिकॉर्ड तोड़ गर्मी की आशंका - भारतीय मौसम विज्ञान विभाग

इस साल रिकॉर्ड तोड़ गर्मी की आशंका - भारतीय मौसम विज्ञान विभाग

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा की गई घोषणा के मुताबिक, भारत में इस वर्ष गर्मी के मौसम (अप्रैल से जून) में औसत से ज्यादा गर्मी के दिन देखने को मिल जाएंगे।  

भारत के ज्यादातर इलाकों में सामान्य से भी ज्यादा तापमान दर्ज किए जाने की संभावना है। दरअसल, अनुमान यह है, कि गर्मी का सबसे ज्यादा प्रभाव दक्षिणी इलाके, मध्य भारत, पूर्वी भारत और उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों पर पड़ेगा। इसका अर्थ यह हुआ कि भारत के मैदानी क्षेत्रों में इस बार हर साल से अधिक तपिश देखने को मिलेगी। 

यह ऐलान तब किया गया जब भारत पहले से ही अपनी बिजली की मांग को पूर्ण करने के लिए संघर्ष कर रहा है, जो गर्मी के मौसम में बेहद बढ़ जाती है। 

एक विश्लेषण में कहा गया कि 31 मार्च, 2024 को समाप्त होने वाले साल में भारत का जलविद्युत उत्पादन कम से कम 38 सालों में सबसे तेज गति से गिरा है। 

ये भी पढ़ें: जानें इस साल मानसून कैसा रहने वाला है, किसानों के लिए फायदेमंद रहेगा या नुकसानदायक

आगामी महीनों में भी जलविद्युत उत्पादन शायद सबसे कम रहेगा, जिससे कोयले पर निर्भरता काफी बढ़ जाएगी। साथ ही, इससे वायु प्रदूषण अगर बढेगा तो ये गर्मी में और अधिक योगदान प्रदान करेगा।

भारतीय मौसम विभाग ने क्या कहा है ?

आईएमडी के पूर्वानुमान में कहा गया है, कि पूर्व और उत्तर-पूर्व के कुछ क्षेत्रों और उत्तर-पश्चिम के कुछ इलाकों को छोड़कर भारत के अधिकांश हिस्सों में गर्मी  सामान्य से ज्यादा ही रहेगी। यानी कि अधिकतम और न्यूनतम तापमान सामान्य से भी ऊपर रहेगा। 

भारत में इस बार अधिक गर्मी पड़ने की आशंका है ?

अल नीनो भारत में कम वर्षा और अधिक गर्मी का कारण बनती है। भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में मध्यम अल नीनो स्थितियां अभी मौजूद हैं, जिसकी वजह से समुद्र की सतह के तापमान में लगातार बढोतरी हो रही है। 

समुद्र की सतह पर गर्मी समुद्र के ऊपर वायु प्रवाह को प्रभावित करती है। चूंकि, प्रशांत महासागर धरती के करीब एक तिहाई भाग को कवर करता है। इसलिए इसके तापमान में परिवर्तन और उसके बाद हवा के पैटर्न में परिवर्तन विश्वभर में मौसम को बाधित करता रहा है। 

ये भी पढ़ें: अलनीनों का खतरा होने के बावजूद भी चावल की बुवाई का रकबा बढ़ता जा रहा है

यूएस नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन का कहना है, कि इस वर्ष की जनवरी 175 सालों में सबसे गर्म जनवरी थी। हालांकि, अगले सीजन के दौरान अल नीनो के कमजोर होने और ‘तटस्थ’ होने की संभावना है। 

कुछ मॉडलों ने मानसून के दौरान अल नीनो की स्थिति विकसित होने की भी संभावना जताई है, जिससे पूरे दक्षिण एशिया में विशेष रूप से भारत के उत्तर-पश्चिम और बांग्लादेश में तेजी से वर्षा हो सकती है।