Ad

बिहार

मनरेगा पशु शेड योजना और इसके लिए आवेदन से संबंधित जानकारी

मनरेगा पशु शेड योजना और इसके लिए आवेदन से संबंधित जानकारी

खेती के उपरांत पशुपालन किसानों के लिए दूसरा सबसे बड़ा कारोबार है। बहुत सारे किसान खेती के साथ पशुपालन करना बेहद पसंद करते हैं, क्योंकि खेती के साथ पशुपालन काफी मुनाफे का सौदा होता है। 

पशुओं के लिए ज्यादा से ज्यादा हरा और सूखा चारा खेती से ही प्राप्त हो जाता है। यही कारण है, कि सरकार पशुपालक किसानों के लिए भी विभिन्न अच्छी योजनाएं लाती हैं, जिससे पशुपालक किसानों को ज्यादा से ज्यादा लाभान्वित किया जा सके। 

किसान की आमदनी का मुख्य साधन कृषि होता है, जिसके माध्यम से भारत के ज्यादातर पशुपालक आवश्यकताओं को भी पूरा कर सकते हैं। अधिकांश किसान कमजोर आर्थिक स्थिति की वजह से पशुओं के लिए मकान निर्मित नहीं कर पाते हैं। 

ठंड के मौसम में समान्यतः पशुओं को परेशानी होती है। क्योंकि ठंड के समय ही मकान की जरूरत सबसे ज्यादा होती है। बारिश और ठंड से पशुओं को बचाने के लिए जरूरी है, कि पशुओं के लिए शेड का निर्माण किया जाए। 

सरकार पशुओं के लिए शेड या घर बनाने के लिए किसानों को 1 लाख 60 हजार रुपए का अनुदान प्रदान कर रही है।

कितना मिलेगा लाभ

मनरेगा पशु शेड योजना से किसानों को व्यापक स्तर पर लाभ मिलेंगे। गौरतलब यह है, कि किसानों को ठंड के मौसम में सामान्य तौर पर दुधारू पशुओं में दूध की कमी का सामना करना पड़ता है। 

दरअसल, इसकी बड़ी वजह पशुओं के लिए ठंड के मौसम में उचित घर या शेड का न होना भी है। मनरेगा पशु शेड योजना के अंतर्गत पशुओं के लिए घर निर्मित पर सरकार द्वारा किसानों को अनुदान उपलब्ध किया जाता है। 

इससे पशुओं की सही तरह से देखभाल सुनिश्चित हो सकेगी। शेड में यूरिनल टैंक इत्यादि की व्यवस्था भी कराई जा सकेगी। इससे पशुओं की देखभाल तो होगी ही साथ ही किसानों की आमदनी में भी बढ़ोतरी होगी। साथ ही, किसानों के जीवन स्तर में सुधार देखने को मिलेगा।

ये भी पढ़ें: ठण्ड में दुधारू पशुओं की देखभाल कैसे करें

मनरेगा पशु शेड योजना

पशुपालक किसानों को पशुओं के लिए घर बनाने पर यह अनुदान प्रदान किया जाता है। इस योजना से ठंड या बारिश से पशुओं को बचाने के लिए घर बनाने के लिए धनराशि मिलती है। 

पशुओं का घर बनाकर किसान अपने पशु की देखभाल कर सकेंगे और पशु के दूध देने की क्षमता में भी वृद्धि कर सकेंगे। मनरेगा पशु शेड योजना से किसानों को व्यापक लाभ मिल पाएगा।

मनरेगा पशु शेड से कितना लाभ मिलता है

मनरेगा पशु शेड योजना के तहत किसानों को पशु शेड बनाने पर 1 लाख 60 हजार रुपए का अनुदान दिया जाता है। इस योजना का लाभ किसानों को बैंक के माध्यम से दिया जाता है। इस योजना से मिलने वाला पैसा एक तरह से किसानों के लिए ऋण होता है जिसकी ब्याज दर बहुत कम होती है।

ये भी पढ़ें: पशुपालक इस नस्ल की गाय से 800 लीटर दूध प्राप्त कर सकते हैं

योजना के तहत किसको लाभ मिलेगा

मनरेगा पशु शेड योजना के तहत मिलने वाले लाभ की कुछ पात्रता शर्तें इस प्रकार है।

इस योजना का फायदा केवल भारतीय किसानों को ही मुहैय्या कराया जाएगा। पशुओं की तादात कम से कम 3 अथवा इससे अधिक होनी आवश्यक है।

योजना के लिए अनिवार्य दस्तावेज

पशुओं के लिए घर बनाने वाली इस योजना में आवेदन करने के लिए कुछ जरूरी दस्तावेजों का होना अनिवार्य है। जैसे कि - आधार कार्ड, पैन कार्ड, कृषक पंजीयन, बैंक पासबुक, मोबाइल नम्बर, ईमेल आईडी (अगर हो)

योजना में आवेदन करने की प्रक्रिया

पशुओं के लिए घर निर्मित करने की योजना में अनुदान लेने के लिए नजदीकी सरकारी बैंक शाखा में संपर्क करें। एसबीआई, इस योजना के अंतर्गत लोन प्रदान करती है। शाखा में ही आवेदन फॉर्म भर कर जमा करें। इस प्रकार इस योजना का लाभ किसानों को प्राप्त हो जाएगा।

टिश्यू कल्चर तकनीक से इस राज्य में केले की खेती हो रही है

टिश्यू कल्चर तकनीक से इस राज्य में केले की खेती हो रही है

किसान भाई टिश्यू कल्चर तकनीक की सहायता से केले उगा सकते हैं। इससे कृषकों की आमदनी में काफी इजाफा होगा। साथ ही, फसल की गुणवत्ता भी अच्छी होगी। भारत के अंदर प्रमुख तोर पर बड़े पैमाने पर केले की खेती की जाती है। सब्जी से लगाकर चिप्स निर्मित करने तक केले की बेहद मांग है। अब ऐसी स्थिति में किसान भाई इसकी खेती कर काफी शानदार मुनाफा हांसिल कर सकते हैं। परंतु, किसान भाई केला उत्पादन के लिए टिश्यू कल्चर तकनीक का उपयोग कर सकते हैं।

टिश्यू कल्चर तकनीक से केला उत्पादन 

टिश्यू कल्चर तकनीक से
केले की खेती करना एक बेहद फायदेमंद व्यवसाय सिद्ध हो सकता है। इस तकनीक के माध्यम से निर्मित किए गए पौधे रोगमुक्त और एक जैसे ही होते हैं, जिससे फसल की गुणवत्ता के साथ-साथ पैदावार में सुधार होता है। इसमें पौधे के एक छोटे टुकड़े को एक खास माध्यम में उत्पादित किया जाता है। इस माध्यम में पोषक तत्व एवं हार्मोन होते हैं जो पौधे की कोशिकाओं को बड़ी तीव्रता से विभाजित करने में सहयोग करते हैं। कुछ ही, माह में पौधे पर्याप्त ढ़ंग से विकसित हो जाते हैं एवं उन्हें खेत के अंदर लगाया जा सकता है। ये भी पढ़ें: केले की खेती के लिए सबसे महत्वपूर्ण पोषक तत्व पोटाश की कमी के लक्षण और उसे प्रबंधित करने की तकनीक

बिहार में टिश्यू कल्चर तरीके से खेती हो रही है 

बिहार राज्य के कृषक भाई भी टिश्यू कल्चर ढ़ंग से केले का उत्पादन कर रहे हैं, जिससे बिहार में केला उत्पादन में गुणवत्ता के साथ आमदनी बढ़ोतरी हो रही है। केले के पौधे का उत्पादन बेहतर तरीके से सूखा हुआ और रेतीली दोमट मिट्टी में सबसे शानदार होता है। मृदा को अच्छे तरीके से ढीला करें और खरपतवार को पूरी तरह से हटा दें। 

टिश्यू कल्चर तकनीक के क्या लाभ होते हैं ?

  • टिश्यू कल्चर तकनीक से निर्मित किए गए पौधे रोग से मुक्त होते हैं, जिससे फसल को बीमारियों से संरक्षण देने में सहयोग मिलता है।
  • टिश्यू कल्चर तकनीक से तैयार किए गए पौधे एक जैसे आकार के होते हैं, जिससे फसल की गुणवत्ता में काफी सुधार होता है।
  • टिश्यू कल्चर तकनीक से निर्मित किए गए पौधे आम तरीके से तैयार किए गए पौधों के मुकाबले में शीघ्र फल देने लगते हैं।
  • टिश्यू कल्चर तकनीक से तैयार किए गए पौधे परंपरागत तरीके से तैयार किए गए पौधों के मुकाबले में ज्यादा उत्पादन देते हैं।
गेंदे की खेती के लिए इस राज्य में मिल रहा 70 % प्रतिशत का अनुदान

गेंदे की खेती के लिए इस राज्य में मिल रहा 70 % प्रतिशत का अनुदान

गेंदे के फूल का सर्वाधिक इस्तेमाल पूजा-पाठ में किया जाता है। इसके साथ-साथ शादियों में भी घर और मंडप को सजाने में गेंदे का उपयोग होता है। यही कारण है, कि बाजार में इसकी निरंतर साल भर मांग बनी रहती है। 

ऐसे में किसान भाई यदि गेंदे की खेती करते हैं, तो वह कम खर्चा में बेहतरीन आमदनी कर सकते हैं। बिहार में किसान पारंपरिक फसलों की खेती करने के साथ-साथ बागवानी भी बड़े पैमाने पर कर रहे हैं। 

विशेष कर किसान वर्तमान में गुलाब एवं गेंदे की खेती में अधिक रूची एवं दिलचस्पी दिखा रहे हैं। इससे किसानों की आमदनी पहले की तुलना में अधिक बढ़ गई है। 

यहां के किसानों द्वारा उत्पादित फसलों की मांग केवल बिहार में ही नहीं, बल्कि राज्य के बाहर भी हो रही है। राज्य में बहुत सारे किसान ऐसे भी हैं, जिनकी जिन्दगी फूलों की खेती से पूर्णतय बदल गई है।

बिहार सरकार फूल उत्पादन रकबे को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन दे रही है

परंतु, वर्तमान में बिहार सरकार चाहती है, कि राज्य में फूलों की खेती करने वाले कृषकों की संख्या और तीव्र गति से बढ़े। इसके लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने फूलों के उत्पादन क्षेत्रफल को राज्य में बढ़ाने के लिए मोटा अनुदान देने की योजना बनाई है। 

दरअसल, बिहार सरकार का कहना है, कि फूल एक नगदी फसल है। यदि राज्य के किसान फूलों की खेती करते हैं, तो उनकी आमदनी बढ़ जाएगी। ऐसे में वे खुशहाल जिन्दगी जी पाएंगे। 

यह भी पढ़ें: इन फूलों की करें खेती, जल्दी बन जाएंगे अमीर

बिहार सरकार 70 % प्रतिशत अनुदान मुहैय्या करा रही है

यही वजह है, कि बिहार सरकार ने एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना के अंतर्गत फूलों की खेती करने वाले किसानों को अच्छा-खासा अनुदान देने का फैसला किया है। 

विशेष बात यह है, कि गेंदे की खेती पर नीतीश सरकार वर्तमान में 70 प्रतिशत अनुदान प्रदान कर रही है। यदि किसान भाई इस अनुदान का फायदा उठाना चाहते हैं, तो वे उद्यान विभाग के आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर आवेदन कर सकते हैं। 

किसान भाई अगर योजना के संबंध में ज्यादा जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, तो horticulture.bihar.gov.in पर विजिट कर सकते हैं।

बिहार सरकार द्वारा प्रति हेक्टेयर इकाई लागत तय की गई है

विशेष बात यह है, कि गेंदे की खेती के लिए बिहार सरकार ने प्रति हेक्टेयर इकाई खर्च 40 हजार निर्धारित किया है। बतादें, कि इसके ऊपर 70 प्रतिशत अनुदान भी मिलेगा। 

किसान भाई यदि एक हेक्टेयर में गेंदे की खेती करते हैं, तो उनको राज्य सरकार निःशुल्क 28 हजार रुपये प्रदान करेगी। इसलिए किसान भाई योजना का फायदा उठाने के लिए अतिशीघ्र आवेदन करें।

लीची : लीची के पालन के लिए अभी से करे देखभाल

लीची : लीची के पालन के लिए अभी से करे देखभाल

सन;1780 मे पहली बार भारत देश मे दस्तक देने वाला फल लीची , जिसकी जरूरत आज भी शहरी और ग्रामीण बाजारों में काफी तेज़ी मे है। 

लीची एक मात्र ऐसा फल है जो हमारे शरीर को डी हाइड्रेशन यानी की पानी की कमी की पूर्ति करता है।इसी कारण भारत के पश्चिमी इलाको मे इसकी मांग बहुत है। 

इसी के साथ साथ इसमें विटामिन सी होता है, जो हमारे शरीर मे कैल्शियम की कमी की पूर्ति करता है। इसमें केरोटिन और नियोसीन भी होता है जो शरीर मे इम्यूनिटी को बढ़ाता हैं। 

ये भी पढ़े: सामान्य खेती के साथ फलों की खेती से भी कमाएं किसान: अमरूद की खेती के तरीके और फायदे 

भारत मे लीची का उत्पादन सबसे ज्यादा त्रिपुरा मे होता है। इसके अलावा अन्य राज्य झारखंड , पश्चिम बंगाल , बिहार , उतरप्रदेस और पंजाब मे। 

भारत मे किसानों के लिए लीची की फसल से अच्छा मुनाफा होता है ,लेकिन साथ ही साथ अच्छी देखभाल भी करनी पड़ती है।

लीची की फसल को तैयार होने मे काफी समय लगता है, इसलिए किसानों को काफी परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है । ऐसे मे किसानों को संपूर्ण फसल को तैयार करने मे लागत खर्चा भी ज्यादा लगता है।

लीची के पालन के लिए सिंचाई और खाद उर्वरक का इस प्रकार करे इस्तेमाल :

insect pest in litchi

लीची की फसल के लिए हमेशा आपको थाला विधि से ही सिंचाई करनी चाहिए। हमें केवल तब तक सिंचाई करनी है ,जब तक पौधों मे फूल आना न लग जाए। 

उसके बाद हमें नवंबर माह से फरवरी माह तक लीची की फसल की सिंचाई नहीं करनी चाहिए। लीची के पौधों को पानी देने का सबसे अच्छा समय शाम का होता है, क्योंकि इससे दिन की गर्मी की वजह से वाष्पीकरण भी नहीं होता है और पौधों को अच्छी तरह से जल की पूर्ति भी होती हैं। 

ये भी पढ़े: अधिक पैदावार के लिए करें मृदा सुधार 

इसके अलावा अच्छी खाद और उर्वरक का इस्तेमाल करें और साथ ही साथ पौधे के आस पास बिल्कुल भी खरपतवार ना रहने दे। खरपतवार सभी प्रकार की फसलों के लिए सबसे खतरनाक होता है। 

इस से बचाव के लिए समय समय पर लीची के पौधों के आस पास ध्यान रखे और खरपतवार बिल्कुल भी न रहने दे। जब पौधे 6 से 7 माह के हो जाते है, तो उसके बाद आप पौधों मे फव्वारे के द्वारा पानी की छटाई अवस्य रूप से करे। 

अप्रैल महीने से लेकर नवंबर महीने तक लीची के पौधे की पूर्ण रूप से सिंचाई करे । इस समय तेज गर्मी के कारण पौधों को पानी की पूर्ति सही ढंग से नहीं करवाने पर संपूर्ण फसल पर बहुत असर पड़ता है।

लीची के पौधों की इस प्रकार करे कांट - छांट और रख - रखाव :

production of litchi crops

लीची के पौधों की रख - रखाव करना सबसे महत्वपूर्ण काम होता है ,क्योंकि इसके बिना पूरी फसल भी खराब हो सकती है। 

इसके लिए आप गर्मी और सर्दी की ऋतू मे जब पोधा 4-5 साल का होता है, तो इस समय उसकी अवांछित टहनियों और साखाओ को हटा देना चाहिए । इससे जो भी कीट पतंग और मकड़िया बिना धूप पहुंचने के कारण शाखाओं में छिप जाती हैं वे नष्ट हो जाएंगी। 

ये भी पढ़े: केले की खेती की सम्पूर्ण जानकारी 

इससे पौधे का अच्छे से भरण-पोषण होगा और फसल की उपज भी अच्छी होगी। फलों की तुड़ाई करने के बाद आप पौधे की जितनी भी रोग ग्रसित ,अवांछित, खराब टहनियों और पत्तियों को हटा दे। 

संपूर्ण खेत के चारों तरफ से बाढ करना बहुत जरूरी है,इससे आसपास के पशु फसल को नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे। साथ ही साथ इससे फसल की उपज मे भी इजाफा होगा।

लीची की फसल मे आने वाली समस्याओं का इस प्रकार करे समाधान :

litchi farming

लीची की फसल का सही से रखरखाव और अच्छी उपज के लिए किसानों को काफी समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है, जिनके बारे मे आज हम आपको बताएंगे की किस प्रकार आप इन समस्याओं से निदान पा सकते है। एक अच्छी फसल का उत्पादन कर सकते हैं तो चलिए जानते है इनके बारे मे

  1. लीची के फलों का फटना और छोटा होने से बचाव :- लीची के पौधों को गर्म और तेज हवाओं के कारण इनके फलों पर इसका सबसे ज्यादा असर दिखाई देता है क्योंकि इससे फल फटना तथा छोटा होना शुरू हो जाते है। ऐसे मे आप  बोरेक्स  ( 5ग्राम लिटर ) या बोरिक अम्ल (4 ग्रा./ली.) के घोल का 2-3 बार छिड़काव करें । इससे फसल की अच्छी पैदावार होगी।फलों के फटने की समस्या भी दूर हो जायेगी ।
  2. लीची मे मकड़ी का लग जाने से बचाव : लीची मे अगर एक बार मकड़ी लग जाती है, तो पूरी फसल को बर्बाद कर देती है। यह मकड़ी लीची के पौधों की टहनियां ,पत्ते और फलों को चुस्ती रहती है। जिसके कारण पूरा पौधा कमजोर पड़ जाता है और नष्ट हो जाता है। इससे बचाव के लिए आप सितंबर और अक्टूबर माह मे केलथेन या फ़ॉसफामिडान (1.25 मि.ली./लीटर) का घोल बनाकर 10- 15 दिन का अंतराल लेकर छिड़काव करें।
  3. लीची के फलों को झड़ने से रोकने के सुझाव :लीची के फलों का झड़ना संपूर्ण फसल के लिए काफी नुकसानदायक होता है। ऐसा पानी की कमी और किटों के कारण होता है।इससे बचाव के लिए आप पौधे मे फल लगने के मात्र सप्ताह भर के अंदर - अंदर क्रॉनिक्सएक्स 2 मिलीलीटर / 4. 8 लीटर या फिर आप ए एन ए 20 मिलीग्राम प्रति लीटर के घोल का बारी-बारी से छिड़काव करें। इससे फलों का झड़ना बंद हो जाएगा।

लीची के पौधे का पूर्ण विकास और प्रबंध इस प्रकार करें :

Litchi farmers

लीची के पौधे का संपूर्ण तरह से विकास होने मे 15 से 20 साल तक का समय लगता है। ऐसे मे पौधे का पूर्ण विकास और सही रखरखाव होना बहुत ही जरूरी होता है।अच्छी उपजाऊ जमीन और अच्छी जलवाष्प का होना भी काफी आवश्यक होता है। 

ये भी पढ़े: ड्रैगन फ्रूट की खेती करके लाखों कमा रहे किसान 

लीची के पौधों को लगाते समय प्रति पौधे के बीच मे 5 मीटर की दूरी होनी चाहिए। किसान भाई प्रत्येक एक हेक्टर में 90 से 200 लीची के पौधे लगाएं। 

लीची के पौधों का अच्छे से विकास करने के लिए उनको क्रमबद्ध कतारों मे जरूर लगाए। नियमित रूप से सिंचाई और समय-समय पर पौधों की जरूरत के अनुसार खाद और उर्वरक का छिड़काव करना ना भूलें।

भारत मे लीची का बढ़ता हुआ आयात इस प्रकार :

litchi production in india

भारतीय बाजार की तुलना मे अंतरराष्ट्रीय बाजार मे नवंबर माह से लेकर मार्च माह तक काफी ज्यादा लीची की मांग होती है। भारत मे लीची का फल जुलाई महीने तक संपूर्ण रूप से तैयार होकर बाजार मे उपलब्ध होता है। 

ऐसे समय पर अंतरराष्ट्रीय बाजार मे लीची की मांग बढ़ जाती है। भारत से निर्यात को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा एपीडी कार्यक्रम की भी प्रमुख भूमिका है। 

भारत से सबसे ज्यादा लीची का निर्यात सऊदी अरेबिया संयुक्त अरब अमीरात, ओमान , कुवैत  ,बेल्जियम  ,बांग्लादेश और नार्वे जैसे देशों को होता है। 

ये भी पढ़े: सामान्य खेती के साथ फलों की खेती से भी कमाएं किसान: अमरूद की खेती के तरीके और फायदे 

भारतीय बाजार मे लीची की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार की तुलना में काफी कम है , लेकिन पिछले कुछ सालों मे इसकी कीमत मे इजाफा हुआ है। 

साथ ही साथ भारत सरकार द्वारा किसान भाइयों के लिए फसलों की रखरखाव और जानकारी के लिए कई सारे कार्यक्रम भी किए जाते हैं। 

इसके अलावा लॉकडाउन लगने के कारण किसानों को लीची की फसल को भारतीय बाजार मे बेचने के लिए काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा लेकिन आने वाले सालों मे लीची का आयात बहुत ज्यादा बढ़ने वाला है। 

अतः हमारे द्वारा बताए गए इन सभी सुझाव समस्याओं एवं उनके निदान जो की लीची की फसल के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होते है। साथ ही साथ इसके अलावा किसान भाई समय-समय पर लीची के पौधों का उचित रखरखाव और खाद रूप का छिड़काव करते रहे।

आम के बागों से अत्यधिक लाभ लेने के लिए फूल (मंजर ) प्रबंधन अत्यावश्यक, जाने क्या करना है एवं क्या नही करना है ?

आम के बागों से अत्यधिक लाभ लेने के लिए फूल (मंजर ) प्रबंधन अत्यावश्यक, जाने क्या करना है एवं क्या नही करना है ?

उत्तर भारत खासकर बिहार एवम् उत्तर प्रदेश में आम में मंजर, फरवरी के द्वितीय सप्ताह में आना प्रारम्भ कर देता है, यह आम की विभिन्न प्रजातियों तथा उस समय के तापक्रम द्वारा निर्धारित होता है। आम (मैंगीफेरा इंडिका) भारत में सबसे महत्वपूर्ण उष्णकटिबंधीय फल है। भारतवर्ष में आम उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश एवं बिहार में प्रमुखता से इसकी खेती होती है। भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के वर्ष 2020-21 के संख्यिकी के अनुसार भारतवर्ष में 2316.81 हजार हेक्टेयर में आम की खेती होती है, जिससे 20385.99 हजार टन उत्पादन प्राप्त होता है। आम की राष्ट्रीय उत्पादकता 8.80 टन प्रति हेक्टेयर है। बिहार में 160.24 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में इसकी खेती होती है जिससे 1549.97 हजार टन उत्पादन प्राप्त होता है। बिहार में आम की उत्पादकता 9.67 टन प्रति हे. है जो राष्ट्रीय उत्पादकता से थोड़ी ज्यादा है।

आम की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए आवश्यक है कि मंजर ने टिकोला लगने के बाद बाग का वैज्ञानिक ढंग से प्रबंधन कैसे किया जाय जानना आवश्यक है ? आम में फूल आना एक महत्वपूर्ण चरण है,क्योंकि यह सीधे फल की पैदावार को प्रभावित करता है । आम में फूल आना विविधता और पर्यावरणीय परिस्थितियों पर अत्यधिक निर्भर है। इस प्रकार, आम के फूल आने की अवस्था के दौरान अपनाई गई उचित प्रबंधन रणनीतियाँ फल उत्पादन को सीधे प्रभावित करती हैं।

आम के फूल का आना

आम के पेड़ आमतौर पर 5-8 वर्षों के विकास के बाद परिपक्व होने पर फूलना शुरू करते हैं , इसके पहले आए फूलों को तोड़ देना चाहिए । उत्तर भारत में आम पर फूल आने का मौसम आम तौर पर मध्य फरवरी से शुरू होता है। आम के फूल की शुरुआत के लिए तेज धूप के साथ दिन के समय 20-25 डिग्री सेल्सियस और रात के दौरान 10-15 डिग्री सेल्सियस की आवश्यकता होती है। हालाँकि, फूल लगने के समय के आधार पर, फल का विकास मई- जून तक शुरू होता है। फूल आने की अवधि के दौरान उच्च आर्द्रता, पाला या बारिश फूलों के निर्माण को प्रभावित करती है। फूल आने के दौरान बादल वाला मौसम आम के हॉपर और पाउडरी मिल्डीव एवं एंथरेक्नोज बीमारियों के फैलने में सहायक होता है, जिससे आम की वृद्धि और फूल आने में बाधा आती है।

ये भी पढ़ें: आम में फूल आने के लिए अनुकूल पर्यावरण परिस्थितियां एवं बाग प्रबंधन

आम में फूल आने से फल उत्पादन पर क्या प्रभाव पड़ता है?

आम के फूल छोटे, पीले या गुलाबी लाल रंग के आम की प्रजातियों के अनुसार , गुच्छों में गुच्छित होते हैं, जो शाखाओं से नीचे लटकते हैं। वे उभयलिंगी फूल होते हैं लेकिन परागणकों द्वारा क्रॉस-परागण अधिकतम फल सेट में योगदान देता है। आम परागणकों में मधुमक्खियाँ, ततैया, पतंगे, तितलियाँ, मक्खियाँ, भृंग और चींटियाँ शामिल हैं। उत्पादित फूलों की संख्या और फूल आने की अवस्था की अवधि सीधे फलों की उपज को प्रभावित करती है। हालाँकि, फूल आना कई कारकों से प्रभावित होता है जैसे तापमान, आर्द्रता, सूरज की रोशनी, कीट और बीमारी का प्रकोप और पानी और पोषक तत्वों की उपलब्धता। ये कारक फूल आने के समय और तीव्रता को प्रभावित करते हैं। यदि फूल आने की अवस्था के दौरान उपरोक्त कारक इष्टतम नहीं हैं, तो इसके परिणामस्वरूप कम या छोटे फल लगेंगे। उत्पादित सभी फूलों पर फल नहीं लगेंगे। फल के पूरी तरह से सेट होने और विकसित होने के लिए उचित परागण आवश्यक है। पर्याप्त परागण के बाद भी, मौसम की स्थिति और कीट संक्रमण जैसे कई कारकों के कारण फूलों और फलों के बड़े पैमाने पर गिरने के कारण केवल कुछ अनुपात में ही फूल बनते हैं। इससे अंततः फलों की उपज और गुणवत्ता प्रभावित होती है। फूल आने का समय, अवधि और तीव्रता आम के पेड़ों में फल उत्पादन को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है।

आम के फूलों का प्रबंधन

1. कर्षण क्रियाएं

फल की तुड़ाई के बाद आम के पेड़ों की ठीक से कटाई - छंटाई करने से अच्छे एवं स्वस्थ फूल आते हैं। कटाई - छंटाई की कमी से आम की छतरी (Canopy) घनी हो जाती है, जिससे प्रकाश पेड़ के आंतरिक भागों में प्रवेश नहीं कर पाता है और इस प्रकार फूल और उपज कम हो जाती है। टहनियों के शीर्षों की छंटाई करने से फूल आने शुरू होते हैं। छंटाई का सबसे अच्छा समय फल तुडाई के बाद होता है, आमतौर पर जून से अगस्त के दौरान। टिप प्रूनिंग, जो अंतिम इंटरनोड से 10 सेमी ऊपर की जाती है, फूल आने में सुधार करती है। गर्डलिंग आम में फलों की कलियों के निर्माण को प्रेरित करने के लिए उपयोग की जाने वाली एक विधि है। इसमें आम के पेड़ के तने से छाल की पट्टी को हटाना शामिल है। यह फ्लोएम के माध्यम से मेटाबोलाइट्स के नीचे की ओर स्थानांतरण को अवरुद्ध करके करधनी के ऊपर के हिस्सों में पत्तेदार कार्बोहाइड्रेट और पौधों के हार्मोन को बढ़ाकर फूल, फल सेट और फल के आकार को बढ़ाता है। पुष्पक्रम निकलने के समय घेरा बनाने से फलों का जमाव बढ़ जाता है। गर्डलिंग की गहराई का ध्यान रखना चाहिए। अत्यधिक घेरेबंदी की गहराई पेड़ को नुकसान पहुंचा सकती है। यह कार्य विशेषज्ञ की देखरेख या ट्रेनिंग के बाद ही करना चाहिए।

2. पादप वृद्धि नियामक (पीजीआर)

पादप वृद्धि नियामक (पीजीआर) का उपयोग पौधों की वृद्धि और विकास को नियंत्रित करने वाली शारीरिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करके फूलों को नियंत्रित करने और पैदावार बढ़ाने के लिए किया जाता है।एनएए फूल आने, कलियों के झड़ने और फलों को पकने से रोकने में भी मदद करते हैं। वे फलों का आकार बढ़ाने, फलों की गुणवत्ता और उपज बढ़ाने और सुधारने में मदद करते हैं। प्लेनोफिक्स @ 1 मी.ली. दवा प्रति 3 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव फूल के निकलने से ठीक पूर्व एवं दूसरा छिड़काव फल के मटर के बराबर होने पर करना चाहिए ,यह छिड़काव टिकोलो (आम के छोटे फल) को गिरने से रोकने के लिए आवश्यक है।लेकिन यहा यह बता देना आवश्यक है की आम के पेड़ के ऊपर शुरुआत मे जीतने फल लगते है उसका मात्र 5 प्रतिशत से कम फल ही अंततः पेड़ पर रहता है , यह पेड़ की आंतरिक शक्ति द्वारा निर्धारित होता है । कहने का तात्पर्य यह है की फलों का झड़ना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है इसे लेकर बहुत घबराने की आवश्यकता नहीं है । पौधों की वृद्धि और विकास पर नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिए पीजीआर का सावधानीपूर्वक प्रबंधन किया जाना चाहिए, जैसे अत्यधिक शाखाएं, फलों का आकार कम होना, या फूल आने में देरी। उपयोग से पहले खुराक और आवेदन के समय की जांच करें।

3. पोषक तत्व प्रबंधन

आम के पेड़ों में फूल आने के लिए पोषक तत्व प्रबंधन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नाइट्रोजन पौधों की वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक है। हालाँकि, अत्यधिक नाइट्रोजन फूल आने के बजाय वानस्पतिक विकास को बढ़ावा देकर आम के फूल आने में देरी करती है। इससे फास्फोरस(पी) और पोटाश (के) जैसे अन्य पोषक तत्वों में भी असंतुलन हो सकता है जो फूल आने के लिए महत्वपूर्ण हैं। नाइट्रोजन के अधिक उपयोग से वानस्पतिक वृद्धि के कारण कीट संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है। फूलों के प्रबंधन के लिए नत्रजन (एन) की इष्टतम मात्रा का उपयोग किया जाना चाहिए। फास्फोरस आम के पेड़ों में फूल लगने और फल लगने के लिए आवश्यक है। फूल आने को बढ़ावा देने के लिए फूल आने से पहले की अवस्था में फॉस्फोरस उर्वरक का प्रयोग करें। पर्याप्त पोटेशियम का स्तर आम के पेड़ों में फूलों को बढ़ा सकता है और फूलों और फलों की संख्या में वृद्धि करता है। पोटेशियम फल तक पोषक तत्वों और पानी के परिवहन में मदद करता है, जो इसके विकास और आकार के लिए आवश्यक है। यह पौधों में नमी के तनाव, गर्मी, पाले और बीमारी के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी मदद करता है। सूक्ष्म पोषक तत्वों के प्रयोग से फूल आने, फलों की गुणवत्ता में सुधार और फलों का गिरना नियंत्रित करके बेहतर परिणाम मिलते हैं।

ये भी पढ़ें: आम के पत्तों के सिरे के झुलसने (टिप बर्न) की समस्या को कैसे करें प्रबंधित?

4. कीट एवं रोग प्रबंधन

फूल और फल बनने के दौरान, कीट और बीमारी के संक्रमण की संभावना अधिक होती है, जिससे फूल और समय से पहले फल झड़ने का खतरा होता है। मैंगो हॉपर, फ्लावर गॉल मिज, मीली बग और लीफ वेबर आम के फूलों पर हमला करने वाले प्रमुख कीट हैं। मैंगो पाउडरी मिल्ड्यू, मैंगो मैलफॉर्मेशन और एन्थ्रेक्नोज ऐसे रोग हैं जो आम के फूलों को प्रभावित करते हैं जिससे फलों का विकास कम हो जाता है। फलों की पैदावार बढ़ाने के लिए आम के फूलों में कीटों और बीमारियों के लक्षण और प्रबंधन की जाँच करें - आम के फूलों में रोग और कीट प्रबंधन करना चाहिए।

विगत 4 – 5 वर्ष से बिहार में मीली बग (गुजिया) की समस्या साल दर साल बढ़ते जा रही है। इस कीट के प्रबंधन के लिए आवश्यक है कि दिसम्बर- जनवरी में बाग के आस पास सफाई करके मिट्टी में क्लोरपायरीफास 1.5 डी. धूल @ 250 ग्राम प्रति पेड का बुरकाव कर देना चाहिए तथा मीली बग (गुजिया)  कीट पेड़ पर न चढ सकें इसके लिए एल्काथीन की 45 सेमी की पट्टी आम के मुख्य तने के चारों तरफ सुतली से बांध देना चाहिए। ऐसा करने से यह कीट पेड़ पर नही चढ़ सकेगा । यदि आप ने पूर्व में ऐसा नही किया है एवं गुजिया कीट पेड पर चढ गया हो तो ऐसी अवस्था में डाएमेथोएट 30 ई.सी. या क्विनाल्फोस 25 ई.सी.@ 1.5 मीली दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। जिन आम के बागों का प्रबंधन ठीक से नही होता है वहां पर हापर या भुनगा कीट बहुत सख्या में हो जाते है अतः आवश्यक है कि सूर्य का प्रकाश बाग में जमीन तक पहुचे जहां पर बाग घना होता है वहां भी इन कीटों की सख्या ज्यादा होती है।

पेड़ पर जब मंजर आते है तो ये मंजर इन कीटों के लिए बहुत ही अच्छे खाद्य पदार्थ होते है,जिनकी वजह से इन कीटों की संख्या में भारी वृद्धि हो जाती है।इन कीटों की उपस्थिति का दूसरी पहचान यह है कि जब हम बाग के पास जाते है तो झुंड के झुंड  कीड़े पास आते है। यदि इन कीटों को प्रबंन्धित न किया जाय तो ये मंजर से रस चूस लेते है तथा मंजर झड़ जाता है । जब प्रति बौर 10-12 भुनगा दिखाई दे तब हमें इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल.@1मीली दवा प्रति 2 लीटर पानी में घोल कर छिडकाव करना चाहिए । यह छिड़काव फूल खिलने से पूर्व करना चाहिए अन्यथा बाग में आने वाले मधुमक्खी के किड़े प्रभावित होते है जिससे परागण कम होता है तथा उपज प्रभावित होती है ।

पाउडरी मिल्डयू/ खर्रा रोग के प्रबंधन के लिए आवश्यक है कि मंजर आने के पूर्व घुलनशील गंधक @ 2 ग्राम / लीटर पानी मे घोलकर छिड़काव करना चाहिए। जब पूरी तरह से फल लग जाय तब इस रोग के प्रबंधन के लिए हेक्साकोनाजोल @ 1 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए। जब तापक्रम 35 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हो जाता है तब इस रोग की उग्रता में कमी अपने आप आने लगती है।

ये भी पढ़ें: आम का पेड़ ऊपर से नीचे की तरफ सूख (शीर्ष मरण) रहा है तो कैसे करें प्रबंधित?

गुम्मा व्याधि से ग्रस्त बौर को काट कर हटा देना चाहिए। बाग में यदि तना छेदक कीट या पत्ती काटने वाले धुन की समस्या हो तो क्विनालफोस 25 ई.सी. @ 2 मीली दवा / लीटर पानी मे घोलकर छिड़काव करना चाहिए। लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है की फूल खिलने के ठीक पहले से लेकर जब फूल खिले हो उस अवस्था मे कभी भी किसी भी रसायन, खासकर कीटनाशकों का छिडकाव नहीं करना चाहिए, अन्यथा परागण बुरी तरह प्रभावित होता है एवं फूल के कोमल हिस्से घावग्रस्त होने की संभावना रहती है । 

5. परागण

आम के फूल में एक ही फूल में नर और मादा दोनों प्रजनन अंग होते हैं। हालाँकि, आम के फूल अपेक्षाकृत छोटे होते हैं और बड़ी मात्रा में पराग का उत्पादन नहीं करते हैं। इसलिए, फूलों के बीच पराग स्थानांतरित करने के लिए वे मक्खियों, ततैया और अन्य कीड़ों जैसे परागणकों पर बहुत अधिक निर्भर होते हैं। परागण के बिना, आम के फूल फल नहीं दे सकते हैं, या फल छोटा या बेडौल हो सकता है। पर-परागण से आम की पैदावार बढ़ती है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पूर्ण ब्लूम(पूर्ण रूप से जब फूल खिले होते है) चरण के दौरान कीटनाशकों और कवकनाशी का छिड़काव नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि इस समय कीटों द्वारा परागण प्रभावित होगा जिससे उपज कम हो जाएगी। आम के बाग से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए आम के बाग में मधुमक्खी की कालोनी बक्से रखना अच्छा रहेगा,इससे परागण अच्छा होता है तथा फल अधिक मात्रा में लगता है।

6. मौसम की स्थिति

फूल आने के दौरान अनुकूलतम मौसम की स्थिति से सफल फल लगने की दर और पैदावार में वृद्धि होती है। उदाहरण के लिए, अत्यधिक हवा की गति के कारण फूल और फल बड़े पैमाने पर गिर जाते हैं। इस प्रकार, विंडब्रेक या शेल्टरबेल्ट लगाकर आम के बागों को हवा से सुरक्षा प्रदान करना आवश्यक है।

ये भी पढ़ें: इस राज्य में प्रोफेसर आम की खेती से कमा रहा है लाखों का मुनाफा

7. जल प्रबंधन

आम के पेड़ों को विशेष रूप से बढ़ते मौसम के दौरान पर्याप्त मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। अपर्याप्त या अत्यधिक पानी देने से फल की उपज और गुणवत्ता कम हो सकती है। उचित जल प्रबंधन बीमारियों और कीटों को रोकने में भी मदद करता है, जो नम वातावरण में पनपते हैं। गर्म और शुष्क जलवायु में, सिंचाई आर्द्रता के स्तर को बढ़ाने और तापमान में उतार-चढ़ाव को कम करने में मदद कर सकती है, जिससे आम की वृद्धि के लिए अधिक अनुकूल वातावरण मिलता है। अत्यधिक सिंचाई से मिट्टी का तापमान कम हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप पौधों की वृद्धि और विकास कम हो जाता है। दूसरी ओर, अपर्याप्त पानी देने से मिट्टी का तापमान बढ़ सकता है, पौधों की जड़ों को नुकसान पहुँच सकता है और पैदावार कम हो सकती है। इस प्रकार, स्वस्थ पौधों की वृद्धि और फल उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी जल प्रबंधन आवश्यक है। फूल निकलने के 2 से 3 महीने पहले से लेकर फल के मटर के बराबर होने के मध्य सिंचाई नही करना चाहिए ।कुछ बागवान आम में फूल लगने एवं खिलने के समय सिंचाई करते है इससे फूल झड़ जाते है । इसलिए सलाह दी जाती है सिंचाई तब तक न करें जब तक फल मटर के बराबर न हो जाय।

सारांश

अधिक पैदावार के लिए आम के फूलों के प्रबंधन में पौधों की वृद्धि को अनुकूलित करने, कीटों और बीमारियों का प्रबंधन करने और फूलों के विकास और परागण के लिए इष्टतम पर्यावरणीय परिस्थितियों को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से रणनीतियों का संयोजन शामिल है। इन प्रबंधन प्रथाओं का पालन करने से फूलों और फलों के उत्पादन में वृद्धि हो सकती है, जिससे उच्च पैदावार और फलों की गुणवत्ता में सुधार होगा।


Dr AK Singh
डॉ एसके सिंह प्रोफेसर (प्लांट पैथोलॉजी) एवं विभागाध्यक्ष,
पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी,
प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना,डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा-848 125, समस्तीपुर,बिहार
Send feedback sksraupusa@gmail.com/sksingh@rpcau.ac.in
सेवानिवृत फौजी महज 8 कट्ठे में सब्जी उत्पादन कर प्रति माह लाखों की आय कर रहा है

सेवानिवृत फौजी महज 8 कट्ठे में सब्जी उत्पादन कर प्रति माह लाखों की आय कर रहा है

राजेश कुमार का कहना है, कि उन्होंने वीएनआर सरिता प्रजाति के कद्दू की खेती की है। बुवाई करने के एक माह के उपरांत इसकी पैदावार शुरू हो गई। नौकरी से सेवानिवृत होने के उपरांत अधिकतर लोग विश्राम करना ज्यादा पसंद करते हैं। उनकी यही सोच रहती है, कि पेंशन के सहयोग से आगे की जिन्दगी आनंद और मस्ती में ही जी जाए। परंतु, बिहार में सेना के एक जवान ने रिटायरमेंट के उपरांत कमाल कर डाला है। उसने गांव में आकर हरी सब्जियों की खेती चालू कर दी है। इससे उसको पूर्व की तुलना में अधिक आमदनी हो रही है। वह वर्ष में सब्जी बेचकर लाखों रुपये की आमदनी कर रहे हैं। 

राजेश कुमार पूर्वी चम्पारण की इस जगह के निवासी हैं

सेवानिवृत फौजी पूर्वी चम्पारण जनपद के पिपरा कोठी प्रखंड मोजूद सूर्य पूर्व पंचायत के निवासी हैं। उनका नाम राजेश कुमार है, उन्होंने रिटायरमेंट लेने के पश्चात विश्राम करने की बजाए खेती करना पसंद किया। जब उन्होंने खेती आरंभ की तो गांव के लोगों ने उनका काफी मजाक उड़ाया। परंतु, राजेश ने इसकी परवाह नहीं की और अपने कार्य में लगे रहे। परंतु, जब मुनाफा होने लगा तो समस्त लोगों की बोलती बिल्कुल बंद हो गई। 

ये भी देखें: कद्दू उत्पादन की नई विधि हो रही है किसानों के बीच लोकप्रिय, कम समय में तैयार होती है फसल

कद्दू की बिक्री करने हेतु बाहर नहीं जाना पड़ता

विशेष बात यह है, कि राजेश कुमार को अपने उत्पाद की बिक्री करने के लिए बाजार में नहीं जाना पड़ता है। व्यापारी खेत से आकर ही सब्जियां खरीद लेते हैं। सीतामढ़ी, शिवहर, गोपालगंज और सीवान से व्यापारी राजेश कुमार से सब्जी खरीदने के लिए उनके गांव आते हैं। 

कद्दू की खेती ने किसान को बनाया मालामाल

किसान राजेश कुमार की मानें तो 8 कट्ठा भूमि में कद्दू की खेती करने पर 10 से 20 हजार रुपये की लागत आती थी। इस प्रकार उनका अंदाजा है, कि लागत काटकर इस माह वह 1.30 लाख रुपये का मुनाफा हांसिल कर लेंगे।

 

किसान राजेश ने 8 कट्ठे खेत में कद्दू का उत्पादन किया है

विशेष बात यह है, कि पूर्व में राजेश कुमार ने प्रयोग के रूप में पपीता की खेती चालू की थी। प्रथम वर्ष ही उन्होंने पपीता विक्रय करके साढ़े 12 लाख रुपये की आमदनी कर डाली। इसके पश्चात सभी लोगों का मुंह बिल्कुल बंद हो गया। मुनाफे से उत्साहित होकर उन्होंने आगामी वर्ष से केला एवं हरी सब्जियों की भी खेती शुरू कर दी। इस बार उन्होंने 8 कट्ठे भूमि में कद्दू की खेती चालू की है। वह 300 कद्दू प्रतिदिन बेच रहे हैं, जिससे उनको 4 से 5 हजार रुपये की आय अर्जित हो रही है। इस प्रकार वह महीने में डेढ़ लाख रुपये के आसपास आमदनी कर रहे हैं।

बिहार में धान की दो किस्में हुईं विकसित, पैदावार में होगी बढ़ोत्तरी

बिहार में धान की दो किस्में हुईं विकसित, पैदावार में होगी बढ़ोत्तरी

बेगूसराय जनपद में 17061 हेक्टेयर के करीब बंजर जमीन है। वहीं, 11001 हेक्टेयर पर किसान खेती नहीं करते हैं। अब ऐसी स्थिति में इन जगहों पर किसान राजेंद्र विभूति प्रजाति की खेती कर सकते हैं। बतादें कि धान बिहार की मुख्य फसल है। नवादा, औरंगाबाद, पटना, गया, नालंदा और भागलपुर समेत तकरीबन समस्त जनपदों में धान की खेती की जाती है। मुख्य बात यह है, कि समस्त जनपदों में किसान मृदा के अनुरूप भिन्न-भिन्न किस्मों के धान की खेती किया करते हैं। सबका भाव एवं स्वाद भी भिन्न-भिन्न होता है। पश्चिमी चंपारण जनपद में सर्वाधिक मर्चा धान की खेती की जाती है। विगत अप्रैल महीने में इसको जीआई टैग भी मिला था। इसी प्रकार पटना जनपद में किसान मंसूरी धान अधिक उत्पादित करते हैं। यदि बेगूसराय के किसान धान की खेती करने की तैयार कर रहे हैं। तो उनके लिए आज हम एक शानदार समाचार लेकर आए हैं, जिसकी खेती चालू करते ही उत्पादन बढ़ जाएगा।

बेगूसराय जनपद की मृदा एवं जलवायु के अनुरूप दो किस्में विकसित की गईं

मीड़िया खबरों के अनुसार, कृषि विज्ञान केंद्र पूसा ने बेगूसराय जनपद की मृदा एवं जलवायु को ध्यान में रखते हुए धान की दो बेहतरीन प्रजातियों को विकसित किया है। जिसका नाम राजेन्द्र श्वेता एवं राजेन्द्र विभूति है। इन दोनों प्रजातियों की विशेषता यह है, कि यह कम वक्त में पक कर तैयार हो जाती है। मतलब कि किसान भाई इसकी शीघ्र ही कटाई कर सकते हैं। इसकी पैदावार भी शानदार होती है। साथ ही, कृषि विज्ञान केंद्र खोदावंदपुर के कृषि वैज्ञानिक डॉ. रामपाल ने बताया है, कि जून के प्रथम सप्ताह से बेगूसराय जनपद में किसान इन दोनों धान की नर्सरी को तैयार कर सकते हैं।

यहां राजेंद्र विभूति की खेती की जा सकती है

खोदावंदपुर के कृषि विशेषज्ञ अंशुमान द्विवेदी ने राजेंद्र श्वेता व राजेंद्र विभूति धान की प्रजाति का बेगूसराय में परीक्षण किया है। दोनों प्रजातियां ट्रायल में सफल रहीं। इसके उपरांत कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को इसकी रोपाई करने की सलाह दी है। यदि किसान भाई राजेन्द्र श्वेता एवं राजेन्द्र विभूति की खेती करना चाहते हैं, तो नर्सरी तैयार कर सकते हैं। साथ ही, कृषि विज्ञान केंद्र खोदावंदपुर में आकर खेती करने का प्रशिक्षण भी ले सकते हैं। विशेषज्ञों के बताने के मुताबिक, बेगूसराय जनपद के ग्रामीण क्षेत्रों में राजेंद्र विभूति की खेती की जा सकती है।

ये भी पढ़ें:
इस राज्य में धान की खेती के लिए 80 फीसद अनुदान पर बीज मुहैय्या करा रही राज्य सरकार

विकसित दो किस्मों से प्रति हेक्टेयर चार क्विंटल उत्पादन बढ़ जाता है

बतादें, कि बेगूसराय जनपद में 17061 हेक्टेयर बंजर भूमि पड़ी है। वहीं, 11001 हेक्टेयर भूमि पर किसान खेती नहीं करते हैं। अब ऐसी स्थिति में इन जमीनों पर किसान राजेंद्र विभूति प्रजाति की खेती कर सकते हैं। इस किस्म की विशेषता यह है, कि यह पानी के बिना भी काफी दिनों तक हरा भरा रह सकता है। मतलब कि इसके ऊपर सूखे का उतना प्रभाव नहीं पड़ेगा। साथ ही, यह बेहद कम पानी में पककर तैयार हो जाती है। तो उधर राजेंद्र श्वेता प्रजाति को खेतों में पानी की आवश्यकता होती है। परंतु, इतना भी ज्यादा नहीं होती। दोनों प्रजाति की खेती से प्रति हेक्टेयर चार क्विंटल उत्पादन बढ़ जाता है।
बारिश की वजह से इस राज्य में बढ़े सब्जियों के भाव

बारिश की वजह से इस राज्य में बढ़े सब्जियों के भाव

ज्यादा बारिश की वजह से फसलों को काफी क्षति हुई है। इसके चलते परवल, मूली, फूलगोभी और बैंगन समेत कई प्रकार की सब्जियों की पैदावार में गिरावट आई है। बतादें, कि बारिश से मंडियों में सब्जियों की आवक बेहद प्रभावित होने के चलते सब्जियों का भाव एक बार पुनः बढ़ गया है। बिहार में विगत बहुत दिनों से रूक-रूक कर हो रही बरसात ने एक बार पुनः महंगाई बढ़ा दी है। विशेष कर सब्जियों के भाव में आग लग चुकी है। महंगाई का मामला यह है, कि गुरुवार शाम को बहुत सारी सब्जियों का भाव 100 रुपये किलो के लगभग हो चुका है। ऐसी स्थिति में आम आदनी की थाली से हरी सब्जियां विलुप्त हो गई हैं। साथ ही, व्यापारियों का कहना है, कि बारिश के साथ-साथ जितिया पर्व की वजह से भी सब्जियों की कीमत में इतनी ज्यादा वृद्धि दर्ज की गई है।

ये भी पढ़ें:
परंपरागत खेती छोड़ हरी सब्जी की खेती से किसान कर रहा अच्छी कमाई दरअसल, राजधानी पटना सहित संपूर्ण बिहार राज्य में विगत चार- पांच दिन से थम-थम कर बारिश हो रही है। इसकी वजह से हरी सब्जियों की कीमत सातवें आसमान पर पहुंच चुकी है। ऐसा कहा जा रहा है, कि खराब मौसम के कारण मंडियों में सब्जियों की आवक भी काफी प्रभावित हुई है। इससे इनकी कीमत में 10 से 20 रुपये प्रति किलो की वृद्धि दाखिल की गई है।

कितनी कीमत पर बिक रही सब्जियां

पटना के स्थानीय सब्जी दुकानदारों का कहना है, कि विगत चार से पांच दिनों में सब्जियों की कीमत में अत्यधिक वृद्धि देखने को मिली है। चार दिन पूर्व जो फूलगोभी 40 रुपये किलो थी, अब वह 60 से 80 रूपये किलो रुपए किलो बिक रही है। इसी प्रकार टमाटर एवं नेनुआ भी काफी महंगे हो गए हैं। ये दोनों ही सब्जियां 30 रुपये किलो तक बिक रही हैं।

ये भी पढ़ें:
इस प्रकार घर पर सब्जियां उगाकर आप बिना पैसे खर्च किए शुद्ध और ताजा सब्जियां पा सकते हैं

नवरात्री के दिनों में कीमतें बढ़ेंगी

विशेष बात यह है, कि सरपुतिया (तुरई) सबसे अधिक लोगों को रूला रही है। गुरुवार शाम को यह 200 रुपये किलो हो गई थी, जब कि ऐसी स्थिति में यह 10 से 20 रुपये किलो बिकती थी। साथ ही, बहुत सारे लोग 10 रुपये पीस भी सरपुतिया (तुरई) खरीद रहे थे। साथ ही, किसानों का कहना है कि अक्टूबर माह में हुई मूसलाधार बारिश की वजह से सब्जियों के फूल झड़ गए हैं। वहीं, बैंगन, गोभी और मूली समेत बाकी सब्जियों की फसल खेत में ही खराब हो गई। ऐसे में सब्जियों की पैदावार में गिरावट देखने को मिली है। पटना बाजार समिति के फल सब्जी संघ के उपाध्यक्ष जय प्रकाश वर्मा ने बताया है, कि फलों की कीमत फिलहाल स्थिर है। परंतु, नवरात्र के दौरान इनकी कीमतों में भी उछाल देखने को मिल सकता है।
अब सरकार बागवानी फसलों के लिए देगी 50% तक की सब्सिडी, जानिए संपूर्ण ब्यौरा

अब सरकार बागवानी फसलों के लिए देगी 50% तक की सब्सिडी, जानिए संपूर्ण ब्यौरा

देश की बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण के कारण बागवानी फसलों अर्थात फलों और सब्जियों की मांग में तेजी से वृद्धि हुई है। जिसके फलस्वरूप किसानों का ध्यान बागवानी फसलों के उत्पादन की ओर ज़्यादा हो गया है। 

किसान इनके उत्पादन में रुचि भी ले रहे हैं। जिसके चलते केंद्र सरकार एसे किसानों की मदद करने, किसानों की आय बढ़ाने और बागवानी उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अनेक प्रकार की योजनाएं चला रही है। 

इसी बीच बिहार सरकार द्वारा बागवानी फसल उत्पादन करने वाले किसानों के लिए एक योजना चलाई गई है। जिसके अंतर्गत किसानों को बागवानी उत्पादन के लिए सब्सिडी की व्यवस्था की गई है।

ये भी पढ़ें: प्रधानमंत्री कुसुम योजना: किसानों को बड़ा तोहफा, सोलर पंप (Solar Pump) पर 90 प्रतिशत तक की सब्सिडी बिहार बागवानी विभाग 

ने विभिन्न प्रकार के फलों और सब्जियों के उत्पादन में 50% की सब्सिडी एवं पपीता की खेती करने वाले किसानों को उत्पादन लागत का सिर्फ 25% खर्च करना होगा। मतलब किसानों को पपीता खेती पर 75% तक की मदद दी जा रही है।

बागवानी फसलें जिन पर सब्सिडी का प्रावधान :-

इस योजना के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की बागवानी फसलों में सब्सिडी का प्रावधान है जैसे पपीता की खेती करने में कृषक को 75% तक की सब्सिडी दी जाती है।

इसके साथ ही कुछ अन्य फसलें जैसे आंवला, जामुन, कटहल, अनानास, आम, लीची, अमरूद आडियानेक प्रकार की बागवानी करने वाले किसानों के लिए 50% की सब्सिडी का प्रावधान है।

ये भी पढ़ें: भेड़, बकरी, सुअर और मुर्गी पालन के लिए मिलेगी 50% सब्सिडी, जानिए पूरी जानकारी

इस योजना का लाभ उठाने के लिए निम्न नियमों का पालन करना होगा :-

इस योजना में किसान को 50% लगभग 62 हजार रुपए सब्सिडी के तौर पर दी जाती है। जिसके कारण बिहार बागवानी विभाग इस योजना का लाभ कुछ नियमों के अंतर्गत दे रही है। 

जैसे जो भी किसान स्ट्रॉबेरी की खेती करना चाहते हैं उन्हें 1 एकड़ में 2500 स्ट्रॉबेरी पौधे लगाने होंगे और शर्त यह है कि उन्हें 2 मीटर की दूरी पर स्ट्रॉबेरी का पौधा लगाना होगा। इसके लिए विभाग द्वारा 1.25 लाख रुपए की लागत रखी गई है जिसका 50% रुपए सरकार किसान को सब्सिडी के तौर पर देगी। 

अगर किसान इन नियमों का पालन करते हैं तो वे इस योजना का लाभ उठाने के लिए आवेदन कर सकते हैं। इसके बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए बिहार बागवानी विभाग में संपर्क कर सकते हैं।

ये भी पढ़ें: भारत सरकार द्वारा लागू की गई किसानों के लिए महत्वपूर्ण योजनाएं (Important Agricultural schemes for farmers implemented by Government of India in Hindi)

आवेदन करने की तिथि :-

इस योजना में आवेदन करने की आखिरी तिथि 7 जुलाई रखी गई है। अर्थात जो किसान इस योजना का लाभ उठाना चाहते हैं वे इस योजना में 7 जुलाई तक आवेदन कर सकते हैं। 

लेकिन इसके पूर्व जो शर्तें इस योजना के अंतर्गत रखी गई है वह पूरी होना आवश्यक है इसके लिए किसानों का नियमानुसार खेत तैयार होना चाहिए। 

इस योजना में ऑनलाइन आवेदन करने के लिए बिहार सरकार ने ऑनलाइन आवेदन मांगे हैं जिसके लिए उनके द्वारा एक लिंक तैयार की गई है। horticulture.bihar.gov.in पर जाकर आप इस योजना के लिए आवेदन कर सकते हैं।

अमेरिकी वैज्ञानिक टीम बिहार में बनाएगी न्यू कृषि मॉडल, पसंद आया बिहार का जलवायु

अमेरिकी वैज्ञानिक टीम बिहार में बनाएगी न्यू कृषि मॉडल, पसंद आया बिहार का जलवायु

पटना। विश्व के कई देश कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने की जुगत में लगे हुए हैं। लेकिन जलवायु अनुकूल न होने के कारण कई स्थानों पर खेती को मदद नहीं मिल पाती है। अमेरिकन वैज्ञानिकों की टीम भी भारत में कृषि मॉडल बनाने के लिए सर्वे कर रही है। अमेरिकन वैज्ञानिकों की टीम को बिहार की जलवायु पसंद आयी है। वह जल्दी ही बिहार में न्यू कृषि मॉडल बनाने जा रहे हैं, जिससे खेती और किसानों फायदा मिलेगा। बिहार में बीसा समिट (BISA-CIMMYT) की तरफ से जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इस कार्यक्रम को बिहार सरकार ने सभी 38 जिलों में लागू कर दिया है। बीते तीन दिनों से अमेरिका के कोर्नेल विश्वविद्यालय से वैज्ञानिकों की टीम बिहार में जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम संचालित कर रही है। इस दौरान अमेरिकी वैज्ञानिकों की टीम को बिहार की जलवायु बेहद पसंद आयी है।
ये भी पढ़े: प्राकृतिक खेती ही सबसे श्रेयस्कर : ‘सूरत मॉडल’

टीम ने जुटाई फसल अवशेष प्रबंधन की जानकारी

- अमेरिकन वैज्ञानिकों की टीम ने बिहार के भगवतपुर जिले के एक गांव, जो की सीआरए (Climate Resilient Agriculture (CRA) Programme under Jal-Jeevan-Haryali Programme) यानी जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम के जल-जीवन-हरियाली कार्यक्रम के अंतर्गत आता है, का दौरा किया है। यहां मुआयना के बाद टीम ने फसल अवशेष प्रबंधन (Crop Residue Management) की जानकारी भी जुटाई है। इसके अलावा बीसा पूसा ( बोरोलॉग इंस्टीच्यूट फॉर साऊथ एशिया - Borlaug Institute for South Asia (BISA)) में चल रहे लांग ट्रर्म ट्राइल्स, जीरो टिलेज विधि और मेड़ विधि के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारियां जुटाई हैं। जल्दी ही बिहार में इसका असर देखने को मिलेगा।
ये भी पढ़े: फसलों के अवशेषों के दाम देगी योगी सरकार
- बिहार सरकार द्वारा चलाए जा रहे जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम की पूरे विश्व में सराहना हो रही है। यहां आकर कई देशों के वैज्ञानिक जानकारी प्राप्त कर रहे हैं। बिहार समेत देश के अन्य कई कृषि संस्थानों के साथ मिलकर जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम किसानों तक पहुंच रहे हैं। इससे फसल का विविधीकरण करके और नई तकनीकी का उपयोग करके किसानों को फायदा देने की योजना बनाई जा रही है। जो आगामी दिनों में प्रभावी रूप से दिखाई देगी। ------ लोकेन्द्र नरवार
सूखे से निपटने के लिए किसानों की मदद कर रही है बिहार सरकार

सूखे से निपटने के लिए किसानों की मदद कर रही है बिहार सरकार

लगातार प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून की बेरुखी दिनोंदिन बढ़ती जा रही है, जो कि धरती पर रह रहे लोगों के लिए चिंता का विषय है। क्योंकि पानी एक मूलभूत संसाधन है जिसकी जरुरत धरती में रहने वाले प्राणियों के साथ-साथ पेड़ पौधों एवं पशु पक्षियों को भी है। इन दिनों मानसून की बेरुखी के कारण कई राज्य सूखे की मार झेल रहे हैं, जिसका असर उस राज्य के किसानों पर पड़ रहा है। किसान बिना पानी के अपनी खेती को उपजाने में समर्थ नहीं हैं। ऐसे में कुछ राज्य सरकारें इस मामले में किसानों की सहायता के लिए आगे आई हैं। बिहार सरकार ने सूखे से निपटने के लिए कमर कस ली है। इस बार बिहार में बेहद क़म बरसात हुई है जिसके कारण बिहार के कई जिले सूखे की चपेट में हैं। इस सूखे का असर बिहार में खरीफ की फसल पर पड़ा है। सूखे के कारण बिहार के एक बड़े क्षेत्र में धान की फसल बुरी तरह प्रभावित हुई है, जिसके बाद बिहार सरकार सूखे से निपटने के लिए एक योजना लागू करने जा रही है। इसके अंतर्गत सरकार किसानों को कम समय में फसल देने वाले बीज उपलब्ध करवा रही है, ताकि सूखे से होने वाले नुकसान की थोड़ी बहुत भरपाई की जा सके। कम समय में फसल देने वाले बीजों से किसान बेहद जल्दी फसल ले सकते हैं। ऐसे बीजों को परम्परागत बीजों के जितना पानी की जरुरत नहीं होती है। इस योजना को बिहार सरकार ने 'आकस्मिक फसल योजना' (Bihar Aaksmik Fasal Yojana 2022) का नाम दिया है।


ये भी पढ़ें:
हल्के मानसून ने खरीफ की फसलों का खेल बिगाड़ा, बुवाई में पिछड़ गईं फसलें
बिहार के कृषि मंत्री सुधाकर सिंह (Sudhakar Singh) ने बताया, "आकस्मिक फसल योजना" के अंतर्गत प्रभावित जिलों के लिए 18,153 क्विंटल बीज की आपूर्ति की मांग की गई है, जिसकी जल्द से जल्द आपूर्ति कर दी जाएगी। यह आपूर्ति बिहार बीज निगम द्वारा 3 सितम्बर तक की जाएगी, जिसका वितरण जल्द से जल्द प्रभावित किसानों को कर दिया जाएगा। इस वितरण को 15 सितम्बर के पहले पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।" उन्होंने आगे बताया, अभी तक बीज निगम द्वारा राज्य के किसानों को बड़ी मात्रा में बीजों का आवंटन किया जा चुका है, जिसमें 1,201 क्विंटल अरहर, 159 क्विंटल उड़द, 150 क्विंटल ज्वार तथा 803 क्विंटल मक्का के बीज सम्मिलित हैं। कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने बताया कि सूखे जैसे हालातों से निपटने के लिए बिहार सरकार का मुख्य फोकस राज्य के 11 जिलों पर है, जिनमें जमुई, भागलपुर, बांका, जहानाबाद, मुंगेर, लखीसराय, शेखपुरा, नालंदा, औरंगाबाद, नवादा, जहानाबाद और गया को सम्मिलित किया गया है। इन जिलों में कम समय में फसल तैयार होने वाले बीज उपलब्ध करवाए जायेंगे, क्योंकि इन जिलों में सूखे की वजह से धान की खेती बुरी तरह से प्रभावित हुई है। बीज वितरण के तहत इनमें से कई जिलों में जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति में बीज वितरण का कार्य प्रारम्भ भी किया जा चुका है। बिहार के कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने बताया कि बिहार सरकार सूखे को देखते हुए प्रदेश के किसानों की मदद करने के लिए डीजल में भी अनुदान दे रही है। डीजल अनुदान प्राप्त करने के लिए किसान कृषि विभाग की वेबसाइट में ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। यह अनुदान 29 जुलाई 2022 से देना प्रारम्भ किया गया है। इस योजना के तहत लाभ प्राप्त करने के लिए अभी तक 4,36,820 किसानों ने ऑनलाइन अप्लाई किया है, साथ ही 1,86,108 किसानों के आवेदनों को सत्यापन करके उनके बैंक खाते में डीजल की अनुदान राशि डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के माध्यम से पहुंचाई जा चुकी है। इनके आवेदनों को हर पंचायत में कृषि समन्वयक द्वारा सत्यापित किया जाता है, जिसके बाद ही सरकार सम्बंधित किसानों को अनुदान राशि मुहैया करवाती है।
सेब की खेती संवार सकती है बिहारी किसानों की जिंदगी, बिहार सरकार का अनोखा प्रयास

सेब की खेती संवार सकती है बिहारी किसानों की जिंदगी, बिहार सरकार का अनोखा प्रयास

आप अभी बाजार में सेब (seb or apple) देखते होंगे तो आपको लगता होगा कि ये सेब या तो जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश या किसी ठंडे प्रदेशों से आया है, क्योंकि अब तक आप यही जानते थे कि सेब सिर्फ ठंडे प्रदेशों में होता है। लेकिन जब आप यह जानेंगे कि अब सेब बिहार में भी उगने लगा है तो आपको हैरानी होगी। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि बिहार सरकार के प्रयास से बीते साल बेगूसराय जिले में सेब की खेती (seb ki kheti or apple farming) की शुरुआत की गई थी, जिसमें वहां के किसानों ने काफी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। आपको यह भी बता दे कि अब तक सेब सिर्फ हिमालयी प्रदेशों में हुआ करता था। लेकिन सब कुछ अच्छा रहा तो अब सेब बिहार में भी उगेगा, यह एक अनोखा प्रयास है बिहार सरकार का, जिससे यहां के किसानों को काफी फायदा और लाभ मिलेगा।

ये भी पढ़ें: सेब के गूदे से उत्पाद बनाने को लगाएं उद्यम

वैज्ञानिक की राय

भारत के सुप्रसिद्ध फल वैज्ञानिक, जो बिहार में फलों को लेकर बहुत दिनों से शोध करते हुए आ रहे हैं और किसानों को नई दिशा दे रहे हैं, उनके अनुसार सेब की खेती बिहार में किसानों के लिए वरदान है। उन्होंने बताया कि जब इसकी शुरुआत बेगूसराय में की गई तो शुरुआती दिनों में मौसम के कारण कुछ परेशानियां सामने आई, जिसे बिहार सरकार की मदद से ठीक कर लिया गया है और अब सेब की खेती सामान्य गति से हो रही है। गौरतलब है कि पूरे बिहार के किसान अब सेब की खेती में काफी बढ़ चढ़कर नई ऊर्जा और विश्वास के साथ हिस्सा ले रहे हैं। आने वाले दिनों में किसान को काफी लाभ होगा। बिहार में सेब की खेती एक खास किस्म के पौधों से संभव हो पायी है, जिसको वैज्ञानिकों के द्वारा तैयार किया गया है, इसका नाम है, हरमन 99 या हरिमन 99 एप्पल (HRMN-99 Apple or Hariman 99 apple)। आपको जान कर आश्चर्य होगा कि इस नए किस्म की उपज 40-45 डिग्री तापमान पर भी संभव है और इसी गुण के कारण यह बिहार ही नहीं अपितु राजस्थान में भी इसको उगाने का प्रयास किया जा रहा है और यह लगभग सफल होता भी साबित हो रहा है।

ये भी पढ़ें: ऐसे एक दर्जन फलों के बारे में जानिए, जो छत और बालकनी में लगाने पर देंगे पूरा आनंद
यही खूबी है कि इसकी उपज आने वाले कुछ दिनों में और भी अच्छी हो जाएंगी और बिहारी सेब भी भारतीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में जगह बना लेगा। आपको बता दें कि इसका प्रजनन भी स्वपरागण (self pollination) के द्वारा होगा, ताकि इसे किसी भी बगीचे में आसानी से उगाया जा सकता है। आपको बता दे कि बिहार के बेगूसराय और औरंगाबाद के कुछ जिलों में किसान अपने स्तर से इसकी खेती कर रहे हैं। यह भी बताया जा रहा है कि इसका पैदावार भी बहुत उन्नत किस्म का है, इससे ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले दिनों में बिहार के सेब का स्वाद और रंग कश्मीर और हिमाचल वाले सेब से कम नही होगा।

ये भी पढ़ें: अब सरकार बागवानी फसलों के लिए देगी 50% तक की सब्सिडी, जानिए संपूर्ण ब्यौरा

किसानों को विशेष प्रशिक्षण

बिहार सरकार बिहारी सेब की खेती को बढ़ावा देने के लिए इसे एक अभियान की तरह चला रही है। इसके पैदावार को बढ़ाने के लिए इच्छुक किसान को प्रशिक्षण भी देने की बात कही है, ताकि वे सेब की खेती से जुड़े हर तकनीक को समझ सके। बिहार सरकार और वैज्ञानिक डॉक्टर एस के सिंह का भी मानना है कि अगर किसान पारंपरिक खेती जैसे धान, गेहूं आदि के अलावा सेब की खेती पर ध्यान देते हैं, तो यह वाकई में उनके लिए एक वरदान से कम नही होगा और उनकी आय भी आने वाले दिनों में दुगुनी, तिगुनी हो सकती है।