भारत में बड़ी मात्र में मसूर की खेती होती है. भारत विश्व में मसूर का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश माना जाता है. महत्वपूर्ण दलहन फसलों में से एक मसूर (lentil) को माना जाता है. मसूर में भरपूर मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है. मसूर में स्टार्च भी उपलब्ध होता है जो छपाई और कपड़ा उद्योग में इस्तेमाल होता है. इसका उपयोग ब्रेड और केक बनाते समय गेहूं के आटे में मिलाकर किया जाता है.
डाइट एक्सपर्ट डॉक्टर रंजना सिंह के अनुसार, मसूर की दाल ऊर्जा का अच्छा स्रोत होने के साथ ही सुपाच्य भी हैं। इसमें मौजूद सूक्ष्म पोषक तत्व (micronutrients) और प्रीबायोटिक कार्बोहाइड्रेट सेहत के लिए लाभदायक हैं। एक कप मसूर दाल में लगभग २३० कैलोरी होती है और १५ ग्राम के करीब डाइटरी फाइबर, साथ में १७ ग्राम प्रोटीन होता है. आयरन और प्रोटीन से परिपूर्ण यह दाल शाकाहारियों के लिए बहुत ही उपयुक्त है. मसूर खून को बढ़ाके शारीरिक कमजोरी दूर करती है, स्पर्म क्वालिटी को दुरुश्त रखती है. पीठ व कमर दर्द में इससे आराम मिलता है. मसूर दाल में मौजूद फोलिक एसिड त्वचा रोगों, जैसे चेहरे के दाग, आंखों में सूजन आदि के लिए रामबाण है। यही कारण है कि मसूर की मांग और मूल्य हमेशा ज्यादा रहती है. मसूर कि खेती से किसान ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं.
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मसूर दाल की खेती के लिये ठंडे वातावरण की जरूरत पड़ती है. यह कठोर सर्दियों और ठंड का सामना आसानी से कर सकता है.
मसूर की खेती के लिये मिट्टी की बात करें, तो इसे उगाने के लिए सूखी दोमट मिट्टी अच्छी होती है. लेकिन देश में अलग अलग वातावरण और मिट्टी का प्रकार है. इसीलिये, आज राज्यों के वातावरण और मिट्टी के अनुरूप मसूर के किस्मों की जानकारी देंगें, जिससे मसूर की खेती करने वाले किसानों को इसका ज्यादा से ज्यादा फायदा मिल सके.
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मसूर की खेती के बारे में तकनीकि जानकारी कृषि विशेषज्ञों से लेना श्रेयस्कर होगा. फसल उत्पादन के बारे में तकनीकी जानकारी के लिए जिला केवीके या निकटतम केवीके से संपर्क करना चाहिए.
छत्तीसगढ़ राज्य गठन के उपरान्त पिछले 20 वर्षों में प्रदेश में दलहनी फसलों के रकबे में 26 प्रतिशत, उत्पादन में 53.6 प्रतिशत तथा उत्पादकता में 18.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसके बावजूद प्रदेश में दलहनी फसलों के विस्तार एवं विकास की असीम संभावनाएं हैं। इसी के तहत देश में दलहनी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अनुसंधान एवं विकास हेतु कार्य योजना एवं रणनीति तैयार करने, देश के विभिन्न राज्यों के 100 से अधिक दलहन वैज्ञानिक, 17 एवं 18 अगस्त को कृषि विश्वविद्यालय रायपुर में जुटेंगे। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के सहयोग से यहां दो दिवसीय रबी दलहन कार्यशाला एवं वार्षिक समूह बैठक का आयोजन किया जा रहा है। कृषि महाविद्यालय रायपुर के सभागृह में आयोजित इस कार्यशाला का शुभारंभ प्रदेश के कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे करेंगे। शुभारंभ समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रदेश के कृषि उत्पादन आयुक्त डॉ. कमलप्रीत सिंह, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के उप महानिदेशक डॉ. टी.आर. शर्मा, सहायक महानिदेशक डॉ. संजीव शर्मा, भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर के निदेशक डॉ. बंसा सिंह तथा भारतीय धान अनुसंधान संस्थान हैदराबाद के निदेशक डॉ. आर.एम. सुंदरम भी उपस्थित रहेंगे। समारोह की अध्यक्षता इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल करेंगे। इस दो दिवसीय रबी दलहन कार्यशाला में चना, मूंग, उड़द, मसूर, तिवड़ा, राजमा एवं मटर का उत्पादन बढ़ाने हेतु नवीन उन्नत किस्मों के विकास एवं अनुसंधान पर विचार-मंथन किया जाएगा।
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"केंद्र सरकार के रबी 2022-23 के लिए दलहन और तिलहन के बीज मिनीकिट वितरण" से सम्बंधित सरकारी प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) रिलीज़ का दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें।ये भी पढ़े: किस क्षेत्र में लगायें किस किस्म की मसूर, मिलेगा ज्यादा मुनाफा अगर आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले 3 सालों के दौरान देश में दलहन और तिलहन के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि देखने को मिली है। अगर साल 2018-19 तक अब की तुलना करें तो दलहन के उत्पादन में 34.8% की वृद्धि दर्ज की गई है। जहां साल 2018-19 में दलहन का उत्पादन 727 किग्रा/हेक्टेयर था। जबकि मौजूदा वर्ष मे दलहन का उत्पादन बढ़कर 1292 किग्रा/हेक्टेयर पहुंच गया है।