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आंदोलन

कृषि कानूनों की वापसी, पांच मांगें भी मंजूर, किसान आंदोलन स्थगित

कृषि कानूनों की वापसी, पांच मांगें भी मंजूर, किसान आंदोलन स्थगित

नई दिल्ली। कृषि कानूनों का विरोध करने वाले किसानों ने एक साल तक दिल्ली सीमा पर आंदोलन करके सरकार को झुकने को मजबूर कर दिया। सरकार जिस जोश में ये कृषि कानून लायी थी, किसानों ने उसी जोश से उनका विरोध किया और एक साल तक लगातार प्रदर्शन करके यह दिखा दिया कि वे किसी भी तरह सरकर के सामने झुकने वाले नहीं हैं। इसके बाद सरकार ने एक माह में कानून वापस भी ले लिये हैं और किसानों से उनकी पांच प्रमुख मांगों को पूरा करने का वादा भी किया है। इसके बाद किसानों नेअपना आंदोलन स्थगित करके दिल्ली सीमा से अपना डेरा हटाते हुए घरों को लौट गये। घर वापसी पर किसानों का वीरों की भांति पुष्प वर्षा करके स्वागत किया गया। जाते जाते किसानों ने सरकार को यह चेतावनी भी दी है कि यदि जरूरत पड़ी ते वह फिर दिल्ली सीमा पर आकर आंदोलन कर सकते हैं।

कृषि कानून बनते ही शुरू हो गया था विरोध

किसानों का आंदोलन सितम्बर 2020 में उस समय शुरू हो गया था जब सरकार ने कृषि कानूनों को संसद से पारित करवा कर और राष्टÑपति से हस्ताक्षर कराकर लागू करने का ऐलान किया था। उसके बाद से लगातार दिल्ली के पंजाब-हरियाणा बार्डर के सिंघू बॉर्डर और शम्भू बॉर्डर पर किसानों डेरा डालकरअपना प्रदर्शन शुरू कर दिया था वहीं उत्तर प्रदेश की ओर से गाजीपुर बॉर्डर से भाकियू सहित अनेक किसान संगठनों ने आंदोलन शुरू कर दिया था।  26 जनवरी के दिल्ली के लालकिला पर जोरदार प्रदर्शन के बाद आंदोलन की धार  कुंद पड़ गयी थी और आंदोलन समाप्ति की ओर चल दिया था।

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राकेश टिकैत के आंसुओं ने आंदोलन में जान फूंक दी

उसी समय उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश से गाजियाबाद जिला प्रशासन ने जब गाजीपुर बॉर्डर से आंदोलनकारी किसानों को हटाने का प्रयास किया तो भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने आंसू बहाकर आंदोलन को नये सिरे से खड़ा कर दिया।  राकेश टिकैत को किसानों का भावनात्मक समर्थन मिलने के बाद सरकार का पक्ष कमजोर हो गया।

सरकार की सारी कोशिशें रहीं नाकाम

इस दरम्यन सरकार ने किसानों को कृषि कानूनों की अच्छाइयों का प्रचार करना जारी रखा और लोगों को खूब समझाने की कोशिश की। इस बीच आंदोलनकारी किसानों ने स्पष्ट कर दिया कि वे कृषि कानूनों की वापसी से कम पर कोई बात नहीं मानेंगे। इस दौरान सरकार की ओर से किसानों को मनाने के लिए कई दौर की वार्ताएं हुर्इं लेकिन कोई बात नहीं बनी।

सरकार और किसानों के बीच शुरू हुई चुनावी जंग

इसके बाद  किसानों और सरकार के बीच चुनावी जंग शुरू हो गयी। कई राज्यों में भाजपा की चुनावी हार के बाद सरकार को समझ में आया कि किसानों से तकरार से कोई फायदा नहीं होने वाला बल्कि नुकसान बढ़ने वाला है।

सियासी नुकसान देख सरकार को झुकना पड़

जब उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों की विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू होने लगी तो सरकार को अपनी ही पार्टी की संभावित हार नजर आने लगी तब सरकार ने मंथन करके गुरुनानक जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय को संबोधित करते हुए कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान किया। लेकिन किसान संगठनों ने उनकी इस बात पर विश्वास नहीं किया बल्कि कहा कि जब तक सरकार कानून वापस नहीं ले लेती तब तक आंदोलन जारी रखा जायेगा।

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जितनी तेजी से कानून बने थे, उतनी तेजी से कानून वापस भी लिये गये

इसके बाद संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की प्रक्रिया पूरी की और राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद जब ये कानून वापस हो गये तो किसान संगठनों के तेवर ढीले पड़ गये और उसके बाद भी वो आंदोलन वापस लेने को तैयार नही हुए और अपनी पांच प्रमुख मांगों पर सरकार से लिखित आश्वासन देने की मांग उठा दी।

सरकार को पांच मांगें भी माननी पड़ीं

सरकार की ओर से जब किसान संगठनों के संयुक्त किसानमोचा को लिखित रूप से किसानों की सभी पांचों प्रमुख मांगों को स्वीकार करने का लिखित आश्वासन दिया तब आंदोलनकारी किसानों ने शनिवार यानी 11 दिसम्बर से सिंघू बार्डर से अपने तम्बू हटाये और अपने घर की वापसी की।  उसके बाद गाजीपुर बॉर्डर से भी तम्बू हटे और अब वहां से आंदोलनकारी किसान अपने घरों को लौट गये हैं।

किसानों ने 15 जनवरी तक का दिया है अल्टीमेटम

संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने कहा कि आगामी 15 जनवरी को किसानों की बैठक होगी जिसमें  समीक्षा की जायेगी कि सरकर ने यदि लिखित आश्वासन के बाद वादा पूर नहीं किया तो फिर आंदोलन करेंगे।

किसानों का फूलों की वर्षा करके किया स्वागत

गाजीपुर बॉर्डर से पश्चिमी उत्तरप्रदेश स्थित अपने घरों की वापसी के समय भाकियू नेता राकेश टिकैत सहित किसानों का फूलों की वर्षा करके स्वागत किय गया । पंजाब और हरियाणा के किसानों की घर वापसी के समय एक एनआरआई ने विमान को किराये पर लेकर उससे पुष्प वर्षा कर किसानों क स्वागत किया।

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वापसी से पहले किसानों ने अरदास की और मिठाई बांटी

आंदोलन को स्थगित करने के ऐलान के साथ ही किसानोंं ने शंभु बॉर्डर, सिंघू बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर से अपने तम्बू हटाये उससे पहले अरदास की उसके बाद अपना डेरा समेट कर घरवापसी की। आंदोलन में अपनी जीत मानने वाले किसानों ने घर वापसी के दौरान मिठाई बांट कर जीत का जश्न मनाया।

वे कौन सी मांगें मानने के बाद किसान घरों को लौटे

किसान नेताओं ने यह जानकारी देते हुए बताया कि केन्द्र सरकार की ओर से कृषि सचिव संजय अग्रवाल के हस्ताक्षर वाली एक चिटठी मिली है। इस चिटठी में यह बताया गया है कि सरकार ने किसान संगठनों की पांंच प्रमुख मांगों पर अपनी सहमति जताई है। ये मांगे इस प्रकार हैं:-
  1. एमएसपी के बारे में केन्द्र सरकार ने आश्वासन दिया है कि वह इस मुद्दे पर एक किसान कमेटी बनाएगी, जिसमें संयुक्त किसानमोर्चा के प्रतिनिधिलिये जायेंगे, जिन फसलों पर एमएसपी मिल रहा है वो जारी रहेगा।
  2. किसानों के मुकदमें होंगे वापस, इस मुद्दे पर यूपी, उत्तरखंड और हरियाणा की सरकार ने किसानों पर दर्ज मुकदमों को वापस लिये जाने पर सहमति जताई है। इसके अलावा दिल्ली, रेलवे और अन्य प्रदेश भी किसानों पर दर्ज मुकदमें वापस लेंगे।
  3. यूपी और हरियाणा सरकार में भी इस बात पर सहमति बन गयी है कि जिस प्रकार पंजाब किसानों को पांच लाख रुपये का मुआवजा देती है उसी प्रकार इन दोनों राज्यों की सरकार भी मुआवजा देंगी।
  4. किसानों के बिजली के बिल पर भी विचार किया जायेगा। किसानों को प्रभावित करने वाले प्रावधानों पर पहले सभी पक्षों के साथ चर्चा की जायेगी और उसके बाद किसान मोचा से वार्ता करके ही संसद में बिल पेश किया जायेगा।
  5. पराली को जलाने के मामले में केन्द्र सरकार ने जो कानून पारित किये हें, उसकी धारा 14 और 15 में आपराधिक जिम्मेदारी से किसानों को मुक्त किया जायेगा।

किसानों की जीत के मायने

किसानों ने अपनी मांगें मनवा कर कृषि कानून मुद्दे पर जीत दर्ज कर ली है। किसानों ने एक तरह से देश के समक्ष यह उदाहरण पेश किया है कि सरकार से बड़ी जनता की ताकत होती है। सरकार किसी तरह के कानून जनता पर थोप नहीं सकती बल्कि जनता चाहे तो सरकार को झुकने को मजबूर कर सकती है।

Rajasthan ka krishi budget: किसानों के लिए बहुत कुछ है राजस्थान के कृषि बजट में

Rajasthan ka krishi budget: किसानों के लिए बहुत कुछ है राजस्थान के कृषि बजट में

13 महीनों तक चले किसान आंदोलन ने यह साबित किया कि अब सरकारों को उनकी तरफ ध्यान देना होगा अन्यथा सरकारें चल नहीं पाएंगी। उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में चल रहे चुनावों के मद्देनजर ही, डैमेज कंट्रोल करने के वास्ते प्रधानमंत्री को तीनों कृषि कानून वापस लेने पड़े। यह वापसी इसलिए हुई क्योंकि देश भर के किसान एकजुट हो गए थे। किसानों की एकता का ही यह परिणाम था कि कानून वापस हुए और अब किसान अपने घरों पर हैं। लेकिन, इसके दूरगामी परिणाम को आपने देखा क्या। इसका दूरगामी परिणाम है, 23 फरवरी को राजस्थान में पेश किया गया कृषि बजट। जी हां, जब से राजस्थान बना है, तब से लेकर अब तक ऐसा कभी नहीं हुआ था कि बजट के बाद कोई कृषि बजट पेश किया गया हो। वह भी अलग से। पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था। राजस्थान में जो कृषि बजट पेश किया गया, वह किसानों के आंदोलन की ही परिणिति है, ऐसा मानना गलत नहीं होगा।

क्या है कृषि बजट में

अब बड़ा सवाल यह है कि इस किसान बजट में है क्या।

दरअसल, इस किसान बजट में कई व्यवस्थाएं दी गई हैं। इन व्यवस्थाओं को गौर से देखें तो समझ जाएंगे कि राजस्थान सरकार किसानों को लेकर कितनी चिंतित है। हां, सरकारी खजाने की अपनी एक सीमा होती है। कृषि ही सब कुछ नहीं होती पर कृषि को तवज्जो देकर सरकार ने एक सकारात्मक रुख का प्रदर्शन तो जरूर किया है। आइए समझें कि इस कृषि बजट में है क्या।

1. मुख्यमंत्री कृषक साथी का बजट बढ़ गया

दरअसल, 2021 में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उद्योग क्षेत्र में चलाई जाने वाली योजना को कृषि क्षेत्र में, थोड़े परिवर्तन के साथ लागू कर दिया। अर्थात, अगर आप किसान हैं और कृषि कार्य करते हुए आपके साथ कोई हादसा हो गया तो इस योजना के तहत आपको दो से 5 लाख रुपये तक की तात्कालिक सहायता मिलेगी। यह योजना कई क्लाउजेज की व्याख्या करती है। जैसे, यदि आपकी एक अंगुली कट जाए तो सरकार आपको 5000 रुपये देगी। दो कट जाए तो 10000 रुपये, तीन कट जाए तो 15000 रुपये और चार कट जाए तो 20000 रुपये का भुगतान करेगी सरकार। ऐसे ही अगर आपकी पांचों अंगुलियां कट जाती हैं तो सरकार आपको 25000 रुपये देगी। इस योजना के लिए बीते साल के बजट में 2000 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई थी। अब इसका दायरा बढ़ाने की गरज से सरकार ने इस योजना के लिए 5000 करोड़ रुपये की धनराशि स्वीकृत की है। धनराशि बढ़ाने को किसानों ने बेहद बढ़िया माना है।

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2. मुख्यमंत्री जैविक कृषि मिशन

कृषि बजट में सरकार ने घोषणा की है कि इसी सत्र से मुख्यमंत्री जैविक खेती मिशन शुरू कर दिया जाएगा। इसके तहत सरकार उन किसानों को ज्यादा लाभ देगी, जो शुद्ध रूप से जैविक केती के लिए तैयार होंगे। इस योजना के तहत, सरकार उन्हें आर्थिक पैकेज तो देगी ही, जरूरत पड़ी तो उनकी फसलों को भी खरीद लेगी। इसके लिए पहले 600 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है। अगले बजट में इस धनराशि को बढ़ाया भी जा सकता है।

3. बीज उत्पादन एवं विपणन तंत्र की घोषणा

इस कृषि बजट में सरकार ने एक ऐसा तंत्र विकसित करने की घोषणा की, जिसके तहत सभी किसानों तक सरकारी योजनाएं पहुंच सकें। खास कर बीज और कृषि के अन्य अवयवों को सरकार एक साथ किसानों तक पहुंचाना चाहती है। सरकार का जोर इस बात पर ज्यादा है कि राज्य के कम से कम दो लाख छोटे किसानों तक मूंग, मोठ और उड़द के प्रमाणित बीजों के मिनी किट्स मुफ्त में उपलब्ध कराए जाएं। इन चीजों के लिए ही बीज उत्पादन एवं विपणन तंत्र की घोषणा की गई है। सरकार एक सिस्टम बनाना चाह रही है जिससे समय पर और सिस्टमेटिक रुप में किसानों तक कृषि संबंधित चीजों की डिलीवरी हो सके। इस किस्म का सिस्टम छत्तीसगढ़ में पहले से चल रहा है।

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4. राजस्थान भूमि उर्वरकता मिशन की घोषणा

इस कृषि बजट में सरकार ने राजस्थान भूमि उर्वरकता मिशन की घोषणा की। इस मिशन के तहत राजस्थान के किसान यह जान सकेंगे कि उनकी जो जमीन है, उसकी उर्वरक क्षमता क्या है। किस किस्म की खेती उन्हें कब और कैसे करनी चाहिए। अभी राजस्थान में सभी किसान परंपरागत खेती कर रहे हैं। इस मिशन के शुरू हो जाने के बाद माना जा रहा है कि खेती कार्य में विविधता आएगी। समय-समय पर जब मिट्टी की जांच होगी तो किसानों को यह एडवाइस भी दिया जाएगा कि इसकी उर्वरकता बढ़ाने के लिए उन्हें क्या करना चाहिए।

5. दूध पर 5 रुपये प्रति लीटर अनुदान

राजस्थान सरकार ने अपने कृषि बजट में यह व्यवस्था की है कि जो भी किसान अपना दूध सहकारी दुग्ध उत्पादक संघों को देंगे, उन्हें 5 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से अनुदान भी मिलेगा। यह व्यवस्था इसलिए की गई है ताकि दूध सहकारी दुग्ध उत्पादक संघों के माध्यम से राजस्थान भर में बिके। 

6. कर्ज की व्यवस्था

इस कृषि बजट में घोषणा की गई है कि सरकार वर्ष 2022 में किसानों को फसली ऋण भी देगी। यह फसली ऋण 20000 करोड़ की लिमिट के भीतर होगी। ऐसे लाभार्थी किसानों की संख्या इस साल के लिए पांच लाख तय की गई है। इतना ही नहीं, जो लोग कृषि कार्य से प्रत्यक्ष रुप से नहीं जुड़े हैं, उन्हें भी कर्ज दिया जाएगा। इस साल ऐसे परिवारों की संख्या एक लाख तय की गई है। कर्ज कितना मिलेगा, यह तय नहीं है पर मिलेगा जरूर। कुल मिलाकर, यह किसानों के भीतर हौसला बुलंद करने वाला बजट है। इसे अगर अमली जामा पहना दिया जाए तो राजस्थान के किसानों की स्थिति बेहद सुदृढ़ हो सकती है। जिस भाव से बजट पेश किया गया है, वह बेहतर है। उसी भाव से इस पर अमल हो तो किसानों का सच में भला हो जाएगा।

कृषि-कृषक विकास के लिए वृहद किसान कमेटी गठित, एमएसपी पर किसान संगठन रुष्ट, नए आंदोलन की तैयारी

कृषि-कृषक विकास के लिए वृहद किसान कमेटी गठित, एमएसपी पर किसान संगठन रुष्ट, नए आंदोलन की तैयारी

विपक्ष ने लिखित में मांगा जवाब, किसान संगठन रुष्ट, नए आंदोलन की तैयारी

लीगल गारंटी ऑफ एमएसपी (Legal Guarantee of MSP) यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी संबंधी केंद्र सरकार के कदम पर विपक्ष गरम है, जबकि गारंटी की मांग करने वाले
किसान संगठनों ने नए आंदोलन की तैयारी की बात कही है।

कांग्रेस-बसपा ने पूछा सवाल -

संसद में जब कांग्रेस और बसपा सांसदों ने कमेटी के बारे में लिखित सवाल पूछा तो, जवाब में सरकार ने वृहद किसान कमेटी के गठन की मंशा के बारे में जानकारी दी। सरकार ने बताया कि, कमेटी का गठन एमएसपी व्यवस्था को और ज्यादा प्रभावी एवं पारदर्शी बनाने के लिए किया गया है। केंद्र के मुताबिक इसका गठन सुझाव देने किया गया है, न कि गारंटी प्रदान करने। ये भी पढ़े: MSP को छोड़ बहुत कुछ है किसानों के लिए इस बजट में

किसान संगठन रुष्ट

जिन किसानों के हित संवर्धन के लिए यह वृहद समिति बनाई गई है, उससे जुड़े कुछ किसान संगठन इस कमेटी से रुष्ट हैं। इनका भी आमना-सामना सरकार से बहस के मोर्चे पर हो सकता है। किसानों को फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने के लिए सरकार ने वृहद कमेटी का गठन किया है। एमएसपी के लिए इस समिति के गठन पर संयुक्त किसान मोर्चा और सरकार के बीच विरोधाभास कायम है।

विरोधाभास का कारण

आंदोलनकारी किसान संगठन कृषि उपज की एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी देने की मांग कर रहे हैं। इसके उलट केंद्र सरकार ने एमएसपी पर गारंटी देने से मना कर दिया है।

कमेटी गठन का कारण

कंपनी गठन का उद्देश्य बताते हुए केंद्र सरकार का कहना है कि, सरकार ने कमेटी का गठन एमएसपी व्यवस्था को और अधिक प्रभावी तथा पारदर्शी बनाने का सुझाव देने के लिए किया है। इसका उद्देश्य किसी तरह की गारंटी देना नहीं है। यह सिर्फ कृषि जगत सुधार संबंधी सुझाव, परामर्श के लिए गठित की गई है। कमेटी गठन के नोटिफिकेशन में गारंटी जैसी किसी बात का जिक्र नहीं है।

आंदोलन का रुख

इस बारे में सरकार द्वारा स्पष्ट किए जाने के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन की रणनीति बनानी शुरू कर दी है।

केंद्रीय कृषि मंत्री तोमर का जवाब

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने लोकसभा में इस बारे में स्थिति स्पष्ट की। उन्होंने कांग्रेस सांसद दीपक बैज और बीएसपी सांसद कुंवर दानिश अली के सवाल के जवाब में लोकसभा में उत्तर दिया। उन्होंने कहा कि, सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा को एमएसपी पर कानूनी गारंटी देने के लिए नहीं, बल्कि इसे और ज्यादा प्रभावी एवं पारदर्शी बनाने के लिए कमेटी के गठन का आश्वासन दिया था।

कमेटी का गठन

गौरतलब है 29 सदस्यीय कमेटी गठित की जा चुकी है। ऐसे में एमएसपी के विषय पर एक बार फिर सरकार और किसान संगठनों का आमना-सामना हो सकता है। ये भी पढ़े: MSP on Crop: एमएसपी एवं कृषि विषयों पर सुझाव देने वृहद कमेटी गठित, एक संगठन ने बनाई दूरी

सांसदों का सवाल

सांसदों ने पूछा था कि, क्या सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) को दिसंबर, 2021 के दौरान किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए कानूनी गारंटी प्रदान करने के लिए एक समिति गठित करने का आश्वासन दिया था। साथ ही पूछा था कि क्या सरकार का विचार किसानों के उत्थान के लिए एमएसपी हेतु कोई कानून बनाने का है। क्या सरकार की योजना एमएसपी व्यवस्था का विस्तार 22 अनिवार्य कृषि फसलों के अलावा अन्य फसलों तक भी करने का है?

एमएसपी गारंटी पर तर्क-वितर्क

कुछ कृषि अर्थशास्त्रियों की राय में एमएसपी पर गारंटी देने से देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। उनके तर्क का आधार है कि जो फसलें एमएसपी के दायरे में हैं, उनकी पूरी खरीद मौजूदा दर पर की जाए तो इस पर लगभग 17 लाख करोड़ रुपये का खर्च आएगा। तर्क दिया जाता है कि ऐसे में भारत की अर्थव्यवस्था, पाकिस्तान से भी ज्यादा खराब हो जाएगी। वहीं प्रदर्शनकारी किसान संगठनों के मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था के नुकसान की बात करने वाले इस बात को भूल जाते हैं कि देश में किसान 50 पैसे किलो प्याज, लहसुन और दो रुपये किलो आलू बेचने के लिए विवश हैं।

किसान संगठन की मांग

किसान संगठनों ने सरकार से ऐसी कानूनी व्यवस्था की मांग की है जिससे एमएसपी के दायरे में आने वाली फसलों की निजी तौर पर खरीद भी उससे कम स्तर पर नहीं हो, ताकि किसानों को नुकसान न हो। कृषक हित से जुड़े संगठनों के अनुसार एमएसपी की सार्थकता तभी है जब खरीद गारंटी कानून लागू हो। नहीं तो स्थिति जस की तस ही रहेगी।

आंदोलन की तैयारी

संयुक्त किसान मोर्चा अराजनैतिक, इस समिति के गठन से सहमत नहीं है। उसके अनुसार समिति का गठन सरकार की इच्छानुसार फैसला करने व एमएसपी पर खानापूर्ति करने के लिए किया गया है।

मोर्चा ने इस कमेटी में शामिल नहीं होने की घोषणा की है।

मोर्चा के मुताबिक स्वामीनाथन आयोग के फॉर्मूले के अनुसार एमएसपी की गारंटी का कानून बनवाने के लिए आंदोलन ही अब एकमात्र चारा बचा है। जिसके लिए तैयारी की जा रही है।
कम उर्वरा शक्ति से बेहतर उत्पादन की तरफ बढ़ती हमारी मिट्टी

कम उर्वरा शक्ति से बेहतर उत्पादन की तरफ बढ़ती हमारी मिट्टी

भारत में पाई जाने वाली मृदा का वर्गीकरण और सम्पूर्ण जानकारी

कई लाखों साल में बनकर तैयार होने वाली मिट्टी की एक छोटी सी परत, किसान भाइयों के लिए कृषि के दौरान इस्तेमाल में आने वाली एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक स्रोत है। बेहतरीन गुणवत्ता की मृदा की मदद से ही आज हम अपनी खेती से अधिक उत्पादकता प्राप्त कर पा रहे हैं, साथ ही इस मृदा में कई प्रकार के छोटे जीव जंतु भी रहते है। हर प्रकार की मिट्टी में जैविक और अजैविक तत्व पाए जाते हैं, जैविक तत्व को
ह्यूमस (humus) के नाम से जाना जाता है।

भारतीय मृदा का वर्गीकरण (Soil classification) :

अलग-अलग प्रकार की मृदा निर्माण में शामिल अलग-अलग प्रकार के कारक, उनके रंग, मृदा के कणों की मोटाई, उम्र तथा रासायनिक और भौतिक गुणों के आधार पर भारत में पायी जाने वाली मृदा को कई प्रकार से विभाजित किया जा सकता है, जो कि निम्न प्रकार से है :- अलग-अलग प्रकार की वातावरणीय परिस्थितियां और वहां पाए जाने वाली वनस्पति तथा लैंडफॉर्म (Landform) विभिन्न प्रकार की मृदा निर्माण में सहायक भूमिका निभाते है।


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जलोढ़ मिट्टी (Alluvial soil) :

भारत के कुल क्षेत्रफल में पायी जाने वाली सभी मृदाओं में सर्वाधिक योगदान जलोढ़ मिट्टी या दोमट मृदा का ही है।

उतरी भारतीय समतल मैदान पूर्णतः जलोढ़ मिट्टी (jalod mitti) से ही निर्मित है, इन मैदानों का निर्माण मुख्यतः गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु नदी के नदी तंत्र द्वारा लाए जाने वाले मिट्टी से हुआ है। राजस्थान और गुजरात के कुछ क्षेत्रों में भी जलोढ़ मृदा पाई जाती है। इसके अलावा पूर्वी भारत की नदियों के डेल्टा के द्वारा भी जलोढ़ मृदा के मैदानों को तैयार किया गया है, जिनमें महानदी, गोदावरी और कृष्णा नदियों की मुख्य भूमिका रही है।

जलोढ़ मृदा में मिट्टी और सिल्ट की अलग-अलग मात्रा पाई जाती है। जलोढ़ मृदा निर्माण में लगने वाले समय अथार्त उम्र के आधार पर, इसे दो भागों में विभाजित किया जाता है, जिन्हें बांगर (Bangar) और खादर (Khadar) के नाम से जाना जाता है।

खादर प्रकार की जलोढ़ मृदा को नई जलोढ़ कहा जाता है और इसमें पतले कणों (Fine Particles) की संख्या ज्यादा होती है और बांगर की तुलना में यह ज्यादा उर्वरा शक्ति वाली मृदा होती है

यदि बात करें जलोढ़ मृदा में पाए जाने वाले पोषक तत्वों की, तो इसमें पोटाश, फास्फोरिक अम्ल और लाइम जैसे पोषक तत्वों की उचित मात्रा पाई जाती है। इसीलिए इस प्रकार की मृदा गन्ना, धान और गेहूं के अलावा कई प्रकार की दालों के उत्पादन के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।

जलोढ़ मृदा की बेहतर उर्वरा शक्ति की वजह से जिन जगहों पर यह मृदा पाई जाती है, वहां पर अग्रसर कृषि (Intensive Cultivation) की जाती है और ऐसी जगहों का जनसंख्या घनत्व भी अधिक होता है।

सूखी और कम बारिश वाली जगह पर पाई जाने वाली मृदा में अम्लता के गुण ज्यादा होते है, लेकिन मृदा के उचित उपचार एवं बेहतर सिंचाई की मदद से इसे भी कृषि में इस्तेमाल योग्य बनाया जा सकता है।

लाल एवं पीली मृदा (Red and Yellow soil) :

आग्नेय प्रकार की चट्टानों से निर्मित होने वाली यह मृदा कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पाई जाती है। दक्कन के पठार के पूर्वी और दक्षिणी हिस्सों में इस प्रकार की मृदा का सर्वाधिक देखा जाता है। इसके अलावा उड़ीसा, छत्तीसगढ़ एवं गंगा के मैदानों के दक्षिणी क्षेत्रों में भी कुछ क्षेत्रों में यह मृदा पायी जाती है।

इस प्रकार की मृदा का रंग लाल होने का पीछे का कारण यह है कि इसके निर्माण में आयरन (iron) चट्टानों का योगदान रहता है और जब यह मृदा पूरी तरह से हाइड्रेट रूप (Hydrate Form) में होती है, तो इनका रंग पीला दिखाई देता है।

काली मृदा (Black soil) :

कपास के उत्पादन के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाने वाली इस मृदा का रंग काला होता है, इसे रेगुरु मृदा (Regur soil) भी कहा जाता है।

दक्कन के पठार (Deccan Plateau) और इसके उत्तरी पूर्वी क्षेत्रों में पाई जाने वाली काली मृदा, जमीन से निकले लावा से निर्मित हुई है, इसीलिए इसका रंग काला होता है। महाराष्ट्र और सौराष्ट्र के पठारी क्षेत्र के अलावा मालवा और मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में पाई जाने वाली रेगुर मिट्टी गोदावरी और कृष्णा नदी की घाटियों में भी फैली हुई है।

पतले पार्टीकल से बनी हुई यह मिट्टी पानी और उसकी नमी को बहुत ही अच्छे से रोक कर रख सकती है।

कई प्रकार के मृदा पोषक तत्व जैसे कि कैलशियम कार्बोनेट, मैग्नीशियम और पोटेशियम तथा लाइम की अधिकता वाली इस मिट्टी में फास्फोरस जैसे सूक्ष्म तत्वों की कमी पाई जाती है।

गर्मी के मौसम के दौरान इस प्रकार की मृदा में बड़े-बड़े क्रेक (cracks) दिखाई देते है, जो कि इस मृदा का एक बेहतरीन लक्षण है और इन क्रेक की वजह से मिट्टी के अंदर तक हवा का आसानी से आदान-प्रदान हो जाता है।

बारिश के दौरान यह मृदा चिकनी हो जाती है। कृषि वैज्ञानिकों की राय के अनुसार, काली मृदा की मॉनसून आने से पहले ही जुताई कर देना सही रहता है, क्योंकि एक बार बारिश में भीग जाने पर इसकी जुताई करना बहुत मुश्किल होता है।

लेटराइट मृदा (Laterite soil) :

इस मृदा का नामकरण लेटिन भाषा के शब्द 'लेटर' से हुआ है जिसका तात्पर्य होता ईंट।

उष्ण एवं उपोष्ण जलवायुवीय परिस्थितियों से निर्मित हुई यह मिट्टी नमी और सूखे दोनों ही प्रकार के स्थानों पर देखने को मिलती है। एक समय सामान्य प्रकार की मिट्टी के रूप में जाने जाने वाली लेटराइट मृदा उच्च स्तर पर मृदा लीचिंग (soil leaching) होने की वजह से निर्मित हुई है।

लेटराइट मृदा की pH का मान 6 से कम होता है, इसीलिए इन्हें अम्लीय मृदा भी कहा जा सकता है।

दक्षिण के कुछ राज्यों और पश्चिमी घाट से जुड़े हुए राज्य जैसे कि महाराष्ट्र और गोवा में इस प्रकार की मृदा देखने को मिलती है, साथ ही उत्तरी पूर्वी भारत के कई राज्यों में भी यह पाई जाती है।

पतझड़ और हरित वनों को आधार प्रदान करने वाली इस मिट्टी में ह्यूमस की कमी देखने को मिलती है।

लेटराइट मृदा मुख्यतः ढलाव वाली जगहों पर पाई जाती है, इसीलिए मृदा अपरदन जैसी समस्या अधिक देखने को मिलती है।

मृदा संरक्षण की बेहतरीन तकनीकों को अपनाकर केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्य इसी मृदा के इस्तेमाल से बेहतरीन गुणवत्ता की चाय और कॉफी का उत्पादन कर रहे हैं, साथ ही तमिलनाडु के कुछ क्षेत्रों में पाई जाने वाली लाल लेटराइट मृदा, काजू के उत्पादन के लिए सर्वश्रेष्ठ समझी जाती है।

शुष्क मृदा (Arid soil) :

प्रकृति में लवणीय मृदा के रूप में पहचान बना चुकी शुष्क मृदा भूरे और हल्के लाल रंग में देखी जाती है।

कई जगहों पर पाई जाने वाली शुष्क मृदा में लवणीयता का गुण इतना अधिक होता है कि इस प्रकार की मृदा से दैनिक इस्तेमाल में आने वाला नमक भी प्राप्त किया जाता है।

कम बारिश वाले शुष्क स्थानों और अधिक तापमान वाले क्षेत्रों में पाई जाने वाली इस मृदा में वाष्पोत्सर्जन की दर बहुत तेज होती है, इसी वजह से इनमें ह्यूमस और नमी की कमी भी देखने को मिलती है।

शुष्क मृदा में गहराई पर जाने पर कैल्शियम की मात्रा अधिक हो जाती है और मृदा अपरदन के दौरान ऊपर की परत हट जाने से नीचे की बची हुई मिट्टी फसल उत्पादन के लिए पूरी तरीके से अनुपयोगी हो जाती है। हालांकि, पिछले कुछ समय से कृषि विज्ञान की नई तकनीकों और बेहतर मशीनरी की मदद से राजस्थान और गुजरात के शुष्क इलाकों में पाई जाने वाली मिट्टी भी फसल उत्पादकता में वृद्धि देखने को मिली है।

वनीय मृदा (Forest soil) :

चट्टानी और पर्वतीय क्षेत्रों में पायी जाने वाली यह मृदा उस क्षेत्र की पर्यावरणीय परिस्थितियों से प्रभावित होती है।

हिमालय और उसके आसपास के क्षेत्रों में पाई जाने वाली मृदा पर बर्फ पड़ने की वजह से आच्छादन (Denudation) जैसी समस्या देखने को मिलती है और इसी वजह से उसके अम्लीय गुणों में भी वृद्धि होती है, जिस कारण ऊपरी ढलानी क्षेत्रों पर फसल और खेती का उत्पादन नहीं किया जा सकता है और केवल कठिन परिस्थितियों में उगने वाले वनों के पौधे ही विकसित हो पाते है।

घाटी के निचले स्तर पर पाई जाने वाली वनीय मृदा की उर्वरा शक्ति अच्छी होती है, इसीलिए उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के कुछ किसान घाटी से जुड़े हुए समतल मैदानों पर आसानी से कृषि उत्पादन कर सकते है।

इन सभी मृदा के प्रकारों के अलावा भारतीय मृदा को अम्लीयता एवं क्षारीयता के गुणों के आधार पर भी दो भागों में बांटा जा सकता है। वर्षा की अधिकता वाले स्थानों पर पाई जाती पायी जाने वाली और मृदा की लीचिंग होने वाली जगहों की मिट्टी की pH का मान 7 से कम होता है, इसीलिए इन्हें अम्लीय मृदा कहा जाता है और जिन मृदाओं में pH मान 7 से अधिक होता है, उन्हें क्षारीय मृदा कहा जाता हैआईसीएआर (ICAR - The Indian Council of Agricultural Research) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के कुल मृदा क्षेत्रफल में 70% हिस्सेदारी अम्लीय मृदा की है।


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भारतीय मृदाओं की समस्या :

किसानों की उपज और मुनाफे के सर्वश्रेष्ठ स्रोत कृषि उत्पादन में मुख्य भूमिका निभाने वाली भारतीय मृदा कई प्रकार की समस्याओं से जूझ रही है। अलग-अलग राज्यों में यह समस्या अलग-अलग हो सकती है, जैसे कि पंजाब और हरियाणा राज्य में पानी के अधिक इस्तेमाल की वजह से मृदा में अम्लीयता एवं लवणता की समस्या बढ़ रही है, जिससे कि समय के साथ इन राज्य में होने वाला उत्पादन भी कम होते जा रहा है। इसके अलावा मध्य भारत और उत्तरी भारत के राज्य में पशुओं के द्वारा इस्तेमाल में आने वाले चारे के कारण ओवरग्रेजिंग (Over-grazing) से खरपतवार बहुत तेजी से बढ़ रही है और इसी कारण मृदा की उर्वरा शक्ति भी कम होती जा रही है।


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इसके अलावा कृषि का आधुनिक मशीनीकरण और अधिक उत्पादन के लिए मृदा पर किए जा रहे रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध इस्तेमाल से भी नकारात्मक प्रभाव देखने को मिल रहे है और मृदा की उर्वरा शक्ति में भारी कमी होने के साथ ही मर्दा के कणों में आपस में जुड़े रहने की क्षमता भी कम हो रही है, जिससे मृदा अपरदन की समस्या भी अधिक देखने को मिल रही है।

मृदा अपरदन (Soil erosion) :

पानी और हवा की वजह से मृदा की ऊपरी परत के आच्छादन (Denudation) होने की समस्या को ही मृदा अपरदन कहते है। मृदा अपरदन कोई आधुनिक समस्या नहीं है, बल्कि प्राचीन काल से ही चली आ रही है। हालांकि प्रकृति अपने नियमों के अनुसार मृदा अपरदन और मृदा के निर्माण में एक संयम बना कर रखती थी, परंतु पिछले कुछ समय से प्रकृति के साथ मानवीय छेड़छाड़ जैसे कि वनों की कटाई और विकास के लिए किए जा रहे कंस्ट्रक्शन और माइनिंग के कार्य तथा ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं से यह बैलेंस पूरी तरीके से बिगड़ गया है और अब मृदा अपरदन समस्या बहुत तेजी से बढ़ती हुई नजर आ रही है। पानी से होने वाले मृदा अपरदन को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है :-
  • गली अपरदन (Gully erosion) :

मृदा के एक हिस्से के ऊपर से बह रहा पानी मिट्टी को काटकर धीरे-धीरे उसमें एक गहरी गली बना लेता है और धीरे-धीरे यह गली खेत की पूरी जमीन में फैल जाती है।

चंबल नदी के पानी के द्वारा किए गए गली अपरदन की वजह से ही उसके आसपास के क्षेत्र फसल उपजाऊ करने के लिए पूरी तरीके से अनुपयोगी हो चुके है, ऐसे क्षेत्रों को खड़ीन (khadin) नाम से जाना जाता है।

  • परत अपरदन (Sheet erosion) :-

ढलान वाली जगहों पर कई बार पानी एक परत के रूप में मृदा के ऊपर से बहता है और अपने साथ मृदा की ऊपरी परत को भी बहाकर ले जाता है।

किसान भाई यह तो जानते ही है कि बेहतर फ़सल उत्पादन के लिए मृदा की ऊपरी परत सर्वश्रेष्ठ होती है। अपरदन की वजह से ऊपरी परत बह जाने से नीचे बची हुई परत को फिर से उर्वरक और बेहतरीन सिंचाई की कठिन मेहनत के बाद भी उपजाऊ बनाना काफी मुश्किल होता है। पहाड़ी और ढलान वाले क्षेत्रों में मृदा अपरदन की समस्या को रोकना थोड़ा मुश्किल होता है, हालांकि फिर भी कृषि विज्ञान की नई तकनीकों और मृदा अपरदन के क्षेत्र में काम कर रहे सक्रिय एक्टिविस्ट लोगों की मदद से नई तकनीकों का विकास किया जा चुका है, इस प्रकार की तकनीकों को मृदा संरक्षण के नाम से जाना जाता है।


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मृदा अपरदन रोकने / मृदा संरक्षण (Soil Conservation) के लिए अपनाई जाने वाली तकनीक :-

गलत तरीके से जुताई करने की वजह से भी कई बार मृदा अपरदन हो सकता है, क्योंकि यदि आप खेत के एक हिस्से में कल्टीवेटर की मदद से कम गहरी जुताई करते है और दूसरे कोने में अधिक गहरी जुताई हो जाए तो वहां पर ढलान वाला क्षेत्र निर्मित हो जाता है, जिससे पानी को आसानी से लुढ़कने के लिए पर्याप्त जगह मिल जाती है और मृदा का कटाव होना शुरू हो जाता है इस प्रकार से होने वाले मृदा अपरदन को रोकने के लिए समोच्च जुताई (Contour Ploughing ) की विधि को अपनाया जाता है। समोच्च जुताई की मदद से जुताई के दौरान बनने वाली अलग-अलग पंक्तियों में जल का वितरण किया जा सकता है। मिट्टी की गुणवत्ता एवं उर्वरा शक्ति तथा संरचना को बरकरार रखने में मददगार यह विधि पहाड़ी और ढलानी क्षेत्र के किसानों के द्वारा सर्वाधिक इस्तेमाल में लाई जाती है, भारत में भी हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और आसाम तथा सिक्किम जैसे राज्यों के किसान इस विधि की मदद से मृदा अपरदन को रोकने में सफल हुए है। इसके अलावा ऐसे क्षेत्रों में सीढ़ी नुमा खेती (Terrace cultivation) भी की जाती है, जिसमें पहाड़ियों वाले क्षेत्र को अलग-अलग ब्लॉक्स में बांट दिया जाता है और एक सीढ़ी जैसी संरचना बना दी जाती है, जिससे कि पहाड़ी के ऊपरी हिस्से पर गिरने वाला पानी तेज गति से मृदा का कटाव करते हुए नीचे की तरफ ना आ पाए और ढलाव के दौरान ही पानी को रुकने के लिए थोड़ा समय मिल जाए, जिससे मृदा की ऊपरी परत के अपरदन को बचाया जा सकता है। तेज हवा चलने वाले इलाकों में मृदा अपरदन को बचाने के लिए खेत के चारों तरफ बड़े-बड़े पेड़ लगा दिए जाते है, जो कि खेत में उगने वाली फसल को तेज हवा से बचाव प्रदान करते है, इस प्रकार की विधि को शेल्टरबेल्ट / वातरोधक विधि (Shelter belt cultivation) कहा जाता है। भारत के पश्चिमी भागों और रेगिस्तानी क्षेत्रों में खेती वाली जमीन में मिट्टी के टीलों के प्रसार को रोकने के लिए भी इस विधि का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा रेगिस्तानी क्षेत्रों में कृषि के लिए प्रयासरत कुछ अरब देश जैसे सऊदी अरेबिया और संयुक्त अरब अमीरात में खेती के दौरान फसलों की पंक्तियों के बीच में घास की अलग-अलग पंक्तियां उगायी जाती है जो कि हवा के दबाव को कम करने के साथ ही वायु से होने वाले मृदा अपरदन को रोकने में सहायक होती है, इस तकनीक को स्ट्रिप क्रॉपिंग / पट्टीदार खेती (Strip Cultivation) के नाम से जाना जाता है।


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मृदा की घटती उर्वरा क्षमता और मृदा संरक्षण को बेहतर बनाने के लिए किए गए सरकारी प्रयास :

हरित क्रांति के शुरुआत में ही भारतीय सरकार और कृषि वैज्ञानिकों ने यह तो समझ लिया था कि केवल उच्च गुणवत्ता वाले बीज और अधिक सिंचाई से ही नहीं, बल्कि मृदा की बेहतर गुणवत्ता से ही अधिक उत्पादन किया जा सकता है और इसी की तर्ज पर चलते हुए भारत सरकार और कई राज्य सरकारों ने मृदा संरक्षण के लिए कुछ सरकारी स्कीम शुरू की है, जो कि निम्न प्रकार है :-

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY - Rashtriya Krishi Vikas Yojana) :

मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के अलावा अलग-अलग क्षेत्रों में पायी जाने वाली मृदा की गुणवत्ता में तुलनात्मक अंतर को किसानों तक पहुंचाकर जागरूकता लाने के उद्देश्य से प्रारम्भ की गई यह योजना काफी सफल रही है। इस योजना में मृदा की ऊपरी परत में होने वाले अपरदन को रोकने के लिए कई नए प्रयास किए गए हैं। इसके अलावा नदी-घाटियों के प्रसार को रोकने के लिए भी उपाय सुझाए गए है, जिससे कि पानी के कम फैलाव से लीचिंग तथा खडीन जैसी समस्याएं कम देखने को मिले।

मृदा स्वास्थ्य कार्ड स्कीम (Soil health card scheme) :

2015 में लांच की गई इस स्कीम के तहत भारत सरकार किसानों की मृदा की गुणवत्ता की जांच करने के लिए 'स्वस्थ धरा, खेत हरा' की तर्ज पर काम करते हुए अलग-अलग मृदा स्वास्थ्य कार्ड प्रदान कर रही है।


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मृदा स्वास्थ्य कार्ड में 12 अलग-अलग पैरामीटर के आधार पर किसान भाइयों को उर्वरकों के सीमित इस्तेमाल की सलाह दी जाती है, जिनमें कुछ सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे कि नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के अलावा द्वितीय पोषक तत्व जैसे कि जिंक, फेरस, कॉपर की मात्रा की जानकारी देने के साथ ही मृदा की अम्लीयता की जानकारी भी प्रदान की जाती है। इस स्कीम के तहत कोई भी किसान भाई अपने आसपास में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों की मदद से खेत की मिट्टी की जांच करवा सकता है और उनके द्वारा दी गई सलाह का सही पालन करके हुए मृदा की उर्वरा क्षमता बरकरार रखने के साथ ही अपनी उत्पादकता को बेहतर कर सकता है।

नाबार्ड की मृदा संरक्षण के लिए चलाई गई लोन स्कीम (NABARD loan scheme on Soil Conservation) :

2001 से लगातार संचालित हो रही यह स्कीम किसानों को समोच्च विकास (Sustainable Development) की अवधारणा पर काम करने की सलाह देती है और कुछ नई वैज्ञानिक तकनीकों की मदद से किसान भाइयों की उपज को बढ़ाने में मदद करती है। पर्यावरण के कम नुकसान के साथ मृदा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए ग्रामीण चौपालों का आयोजन किया जाता है, इन चौपालों में किसान भाइयों को मृदा अपरदन के लिए जागरूकता प्रदान की जाती है। इसके अलावा झूम कृषि समस्या से ग्रसित उत्तरी पूर्वी राज्यों में भारत की आजादी से ही मृदा संरक्षण के लिए कई प्रकार की सरकारी योजनाएं चलाई जा रही है।भारत में झूम कृषि मुख्यतः उत्तरी पूर्वी राज्यों में की जाती है। कृषि की इस विधि में कुछ किसानों के द्वारा जंगलों को काट कर साफ कर लिया जाता है और वहां पर फसल उगाई जाती है, जब दो से तीन सीजन के बाद इस जमीन की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है तो दूसरी जगह पर बने जंगलों को काट कर वहां की जमीन को इस्तेमाल में लिया जाता है। पिछले कुछ सालों से पर्यावरण के लिए एक घातक विधि के रूप में हो रही झूम खेती को रोकने के लिए किसानों में जागरूकता लाने के लिए कई पर्यावरणविद  और सरकार प्रयासरत है। ईशा फाउंडेशन के द्वारा मृदा संरक्षण के लिए चलाया जा रहा मृदा बचाओ आंदोलन (Save soil movement) अनोखी विश्वस्तरीय पहल है और अब केवल जंगल और पानी ही नहीं बल्कि मृदा संरक्षण के लिए भी कई ग्रामीण किसान भाई प्रयासरत है।
"मृदा से है जीवन अपना, इसकी सुरक्षा हमारा सपना"
की सोच पर काम करने वाले कई किसान भाई पूरे देश भर में प्राकृतिक कृषि और वैज्ञानिक विधियों की मदद से समोच्च विकास की अवधारणा पर आगे बढ़ते हुए भारतीय कृषि की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के अलावा मृदा के संरक्षण में भी एक सफल व्यक्तित्व के रूप में उभरकर सामने आए है।
किसानों की आंदोलन की चेतावनी, मांगे नहीं मानी तो फिर सड़क पर उतरेंगे

किसानों की आंदोलन की चेतावनी, मांगे नहीं मानी तो फिर सड़क पर उतरेंगे

पिछले साल का किसान आंदोलन भला किसे याद न होगा। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी से आए हजारों किसान महीनों तक दिल्ली के बॉर्डर पर डटे रहे थे और आखिरकार तीन किसान कानूनों को वापस करवाकर ही लौटे थे। लेकिन इसी बीच एक और किसान आंदोलन की आहट सुनाई दे रही है। खबरों के मुताबिक किसानों ने एक बार फिर से किसान आंदोलन की चेतावनी दे दी है और इस बार वजह गन्ने के बकाए भुगतान की है।


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लेकिन इस बार के किसान आंदोलन का केंद्र दिल्ली नहीं बल्कि पंजाब हो सकता है। खबरों के मुताबिक पंजाब राज्य के किसान अपनी राज्य सरकार से खफा चल रहे हैं। उनका कहना है कि उनके गन्ने की फसल का बकाया भुगतान नहीं किया गया है। यह मुद्दा दूसरी बार उठ रहा है। पहली बार जब यह मुद्दा उठा था, तब सीएम भगवंत मान (Bhagwant Singh Mann) के कहने पर आंदोलन टाल दिया गया था। लेकिन, जब मांगों पर कोई विचार नहीं किया गया, तो किसान फिर से उसी ढर्रे पर लौटने को मजबूर हो रहे हैं। खबरों के मुताबिक संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में 31 किसान संघ 5 सितंबर को राज्यव्यापी आंदोलन शुरू कर सकते हैं। किसानों का कहना है कि उनकी मांग राज्य सरकार से है कि उनके गन्ने का भुगतान जल्दी से जल्दी किया जाए। अगर राज्य सरकार अपने वादे पर खरी नहीं उतरती तो आंदोलन किया जाएगा। किसानों का कहना है कि 5 सितंबर से इस आंदोलन की शुरुआत असल मायनों में हो जाएगी क्योंकि इसी दिन राज्य के कैबिनेट मंत्रियों का घेराव किया जाएगा। इस दौरान किसान मंत्रियों के दफ्तरों और घरों के बाहर बैठकर धरना प्रदर्शन करेंगे।


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किसानों के बकाए की बात करें, तो खबरों के मुताबिक किसानों की 24 करोड़ रुपये की बकाया रकम है जिसका भुगतान अभी तक नहीं किया गया है। इसको लेकर तनाव पहले से ही काफी बढ़ चुका है और कुछ किसान जालंधर-फगवाड़ा हाईवे पर धरना जारी किए हुए हैं। अब इस आंदोलन को राज्यव्यापी बनाने के लिए 31 किसान संघों ने हाथ मिला लिए हैं। किसानों का कहना है कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं तो 30 अगस्त तक उनका धरना जारी रहेगा और 5 सितंबर से असली आंदोलन की शुरुआत होगी।


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अगस्त के महीने की शुरुआत में जब किसानों ने पहली बार आवाज उठाई थी, तब मुख्यमंत्री भगवंत मान उनसे मिले थे। चार घंटे की बैठक के बाद किसानों ने फैसला लिया था कि वे अपना आंदोलन निरस्त कर देंगे, क्योंकि इस बैठक में मुख्यमंत्री ने गन्ना बकाए के भुगतान समेत किसानों की ज्यादातर मांगों को मान लिया था और ये भी कहा था कि जो आपसे कहा है वह निभाऊंगा। बैठक में कहा गया था कि 7 अगस्त को सबका बकाया मिल जाएगा। लेकिन जब सभी का बकाया नहीं मिला तो किसानों ने फिर से आंदोलन करने की तैयार कर ली है। अब आने वाले दिनों में क्या सरकार फिर से किसानों से बातचीत करेगी। पल-पल की अपडेट के लिए मेरी खेती को पढ़ते रहें।
पैक्स और डेयरी से जुड़े सरकार के इस फैसले से सीधे तौर पर बढ़ जाएगी किसानों की आमदनी

पैक्स और डेयरी से जुड़े सरकार के इस फैसले से सीधे तौर पर बढ़ जाएगी किसानों की आमदनी

हाल ही में केंद्रीय मंत्री द्वारा दिए गए बयान से यह बात सामने आई है कि भारत में सरकार सहकारिता आंदोलन को और अधिक मजबूती देने के लिए कार्य कर रही है. सरकार द्वारा जमीनी स्तर पर इसे मजबूत बनाने के लिए कई तरह की सहकारी समितियों का निर्माण किया जाएगा. खबरों की मानें तो देश में एक बार फिर से सहकारिता आंदोलन जोर पकड़ने वाला है. केंद्र सरकार भी इसे लेकर बड़े लेवल पर काम कर रही है. इसके तहत अगले 5 साल में 2 लाख प्राथमिक कृषि ऋण समितियां (पैक्स; PACS), डेयरी और मत्स्य सहकारी समितियां केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा गठित की जाएगी. इस सभी कार्य को लेकर केंद्र सरकार ने प्रस्ताव को पूरी तरह से मंजूरी दे दी है. हाल ही में हमारे केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने एक मंत्रिमंडलीय बैठक में इस फैसले की जानकारी जनता को दी है.  अभी भी पूरे देश में लगभग  63,000 पैक्स समितियां कार्य कर रही है. सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर द्वारा दी गई जानकारी से पता चला है कि देश में सहकारिता आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए आने वाले समय में कई तरह की समितियों का गठन किया जाएगा.

जलाशय पंचायत में बनाई जाएंगी मत्स्य पालन समिति

इस योजना के तहत प्रत्येक पंचायत में पैक्स समिति  तो बनाई ही जाएगी इसके अलावा सभी पंचायत जहां जलाशय है वहां पर मत्स्य पालन समिति बनाने की योजना भी बनाई जा रही है. अनुराग ठाकुर ने मंत्रिमंडल की बैठक में यह जानकारी दी है कि इस योजना के प्रस्ताव को हाल ही में चल रही बाकी सभी सरकारी योजनाओं के साथ मेल मिलाप करते हुए लागू किया जाएगा. यह  सहकारी समितियां योजना को एक जरूरी और आधारभूत ढांचा बनाने में मदद करेगी और आगे चलकर यह इस योजना को एक सशक्त रूप देने में भी काफी सहायक साबित होगी. ये भी पढ़े: जानिये PMMSY में मछली पालन से कैसे मिले लाभ ही लाभ

कंप्यूटरीकरण के लिए रखा गया है बजट

इस योजना के तहत जो भी किसान सहकारी समिति के सदस्य बनते हैं उन्हें खरीद और विपणन जैसी सुविधाएं सरकार द्वारा दी जाएंगी जो उनकी आमदनी बढ़ाने में सीधे तौर पर मदद करेगी.इन सभी योजनाओं के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे जो वहां के लोगों के लिए काफी लाभकारी साबित होने वाले हैं.केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अपनी आर्थिक मामलों से जुड़ी हुई समिति के साथ मिलकर इन सभी पैक्स समितियों का कंप्यूटरीकरण करने की बात भी कही है. अगर यह पूरी प्रक्रिया डिजिटल हो जाती है तो ना सिर्फ कामकाज में पारदर्शिता आएगी बल्कि सभी जुड़े हुए व्यक्ति सही तौर पर जवाबदेह होकर अपना काम कर सकते हैं.हाल ही में देश भर में एक्टिव करीब 63,000 पैक्स समितियों के कंप्यूटरीकरण के लिए 2,516 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है और इसमें से केंद्र की हिस्सेदारी लगभग 1,528 करोड़ रुपये की  मानी जा रही है..
स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग, 20 मार्च को होगा हल्लाबोल

स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग, 20 मार्च को होगा हल्लाबोल

जल्द से जल्द स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग को लेकर अखिल भारतीय किसान सभा ने हुंकार भर दी है. जिसे लेकर वो ससंद में 20 मार्च को घेराव करते हुए हल्ला बोलेगी. कई मुद्दों को लेकर अखिल भारतीय किसान सभा ने 20 मार्च को संसद तक मार्च करने का ऐलान किया है. अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने केंद्र सरकार से मांग करते हुए कहा कि, देश में कसानों की ऋण से जुड़ी शिकायतों को दूर करने के लिए राष्ट्रीय कृषि ऋणराहत आयोग का गठन किया जाए. आपको बता दें कि, एआईकेएस के राज्य अध्यक्ष ने जूलूस का नेतृत्व किया. यह जुलूस कासरगोड से लेकर त्रिशूर तक निकाला गया. इस दौरान ध्यक्ष जे. वेणुगोपालन नायर ने सरकार पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि, अच्छे दिन लाने के लिए कोई भी कदम सरकार की तरफ से नहीं उठाये जा रहे. देश के पीएम ने अपने एक साल पुराने वादों को अब तक पूरा नहीं किया. जो किसानों को धोखा देने के बराबर है. उन्होंने कहा कि, किसानों की मांग कृषि उपज के लिए एमएसपी की क़ानूनी गारंटी है. ज्यादातर किसान अपनी उपज को उत्पादन में लगाई हुई लागत से कम में बेचने को मजबूर हैं. जिस वजह से वो कर्ज के मकड़जाल में फंसते चले जा रहे हैं. इससे बचने और कर्ज से निपटने के लिए केंद्र सरकार से अखिल भारतीय किसान सभा ने ऋण राहत आयोग के गठन की मांग उठायी है. इसके अलावा उनका कहना है कि, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को भी लागू करना चाहिए. क्योंकि यह भी एक बेहद जरूरी मांग है. केंद्र सरकार पर किसान विरोधी नीतियों का आरोप लगाते हुए अन्य किसानों से भी इस विरोध में शामिल होने की बात कही.
पंजाब के किसानों की फिर हुंकार 22 से 26 जनवरी तक करेंगे हड़ताल

पंजाब के किसानों की फिर हुंकार 22 से 26 जनवरी तक करेंगे हड़ताल

पंजाब के किसानों ने एक बार फिर हड़ताल करने का बिगुल बजा दिया है। किसानों का यह आंदोलन 22 जनवरी से शुरू होकर 26 जनवरी तक चलेगा। पंजाब में किसानों की अभी एक हड़ताल समाप्त हुई ही थी, कि अब कृषक पुनः एक बार हड़ताल करने की योजना बनाई है। अब अगर इसकी वजह पर नजर डालें तो यह नई कृषि नीति पेश करने में राज्य सरकार की "विफलता" है। इसको लेकर किसान 22 जनवरी से 26 जनवरी तक डिप्टी कमिश्नरों के कार्यालयों के समक्ष विरोध प्रदर्शन करेंगे।

कृषि नीति का मसौदा तैयार करने के लिए 11 सदस्यीय समिति का गठन

बतादें, कि विगत वर्ष जनवरी में तत्कालीन कृषि मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल ने 31 मार्च 2023 तक नई कृषि नीति का मसौदा तैयार करने के लिए 11 सदस्यीय समिति का गठन किया था। विभिन्न मीडिया एजेंसियों के अनुसार इस समिति के एक सदस्य ने नाम ना बताने की शर्त पर कहा कि फिलहाल नीति का मसौदा तैयार नहीं हुआ है। समिति के कुछ सदस्य विदेश गए थे, इसके चलते नीति पर चर्चा काफी लंबित है। शीघ्र ही, इसको अंतिम रूप देने के लिए बैठक आयोजित की जाऐगी।

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आप सरकार द्वारा जल्द किया जाऐगा ऐलान

बतादें, कि इसी कड़ी में आम आदमी पार्टी (AAP) पंजाब के मुख्य प्रवक्ता मलविंदर सिंह कांग का कहना है, कि राज्य के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने हाल ही में इस मुद्दे पर कृषकों से वार्तालाप की है। राज्य में आप सरकार के लिए कृषि नीति सर्वोच्च प्राथमिकता है। तकरीबन 5 हजार कृषकों से सुझाव पहले ही लिए जा चुके हैं। नीति में विलंब के विषय में प्रवक्ता ने कहा कि 2000 के बाद कोई कृषि नीति नहीं आई और आप सरकार ने सत्ता में आने के शीघ्र उपरांत नीति पर कार्य प्रारंभ कर दिया था। उनका कहना है, कि नीति का ऐलान जल्द ही किया जाऐगा।

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बीकेयू (एकता उग्राहन) ने पहले ही अल्टीमेटम दिया था

दरअसल, बीकेयू (एकता उग्राहन) ने पूर्व में ही सरकार को 21 जनवरी तक नीति का ऐलान करने अथवा फिर विरोध का सामना करने का अल्टीमेटम दिया हुआ है। यूनियन के महासचिव सुखदेव सिंह कोकरी कलां का कहना है, कि हमने पहले ही नीति में शामिल किए जाने वाले किसान समर्थक कदमों को लेकर ज्ञापन दिया है। मगर ऐसा लगता है, कि सरकार कॉरपोरेट्स के दबाव में आ आकर इसमें विलंब कर रही है। वहीं, बीकेयू (कादियान) के राष्ट्रीय प्रवक्ता रवनीत बराड़ का कहना है, कि सरकार ने किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए समस्त फसलों पर एमएसपी एवं नवीन कृषि नीति का वादा किया था। लेकिन, सत्ता में आने के लगभग 2 साल के पश्चात भी कुछ नहीं किया गया है।

10 और 14 मार्च को किसानों ने क्या बड़ा करने की योजना बनाई है ?

10 और 14 मार्च को किसानों ने क्या बड़ा करने की योजना बनाई है ?

किसान अपनी मांगों को सरकार से पूरा कराने के लिए विगत कई दिनों से दिल्ली से लगने वाली सीमाओं पर खड़े हुए हैं। किसान नेताओं ने आंदोलन को और बड़ा रूप देने की बात कही है।

आजकल किसान आंदोलन काफी जोरो पर है। किसान भाई प्रदर्शन करने के लिए दिल्ली पहुंचने लगे हैं। किसान नेताओं ने किसानों से यह अपील की है, कि वह विरोध जताने के लिए 6 मार्च को दिल्ली पहुंचें।

10 मार्च को चार घंटे भारत भर में रेल रोको आंदोलन की अपील

साथ ही, आंदोलन में समर्थन करने के लिए 10 मार्च को चार घंटे के लिए देश भर में रेल रोको आंदोलन की भी अपील की है। किसान नेताओं ने कहा है, कि मौजूदा विरोध स्थलों पर किसानों का आंदोलन तेज होगा। 

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किसान नेताओं का कहना है कि पंजाब और हरियाणा के किसान शंभू और खनौरी प्रदर्शन स्थल पर आंदोलन करते रहेंगे।

14 मार्च को किसानों की महापंचायत

वहीं, किसान यूनियनों ने अन्य राज्यों के किसानों और मजदूरों से 6 मार्च को दिल्ली पहुंचने की अपील की। किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने कहा है, कि 6 मार्च को पूरे देश से हमारे लोग दिल्ली आएंगे। 

10 मार्च को 12 बजे से लेकर 4 बजे तक रेल रोको आंदोलन किया जाएगा। इसके अलावा 14 मार्च को किसानों की महापंचायत भी होगी। इसके बारे में संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से कहा गया है, कि 400 से ज्यादा किसान संघ इसमें शामिल होंगे। 

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किसान चाहते हैं, कि एमएसपी को कानूनी रूप से लागू किया जाए, जिससे कि उन्हें अपनी फसलों के लिए सही मूल्य मिल सके। स्वामीनाथन आयोग ने किसानों की आय को दोगुना करने के लिए विभिन्न सिफारिशें की थीं। किसान चाहते हैं, कि सरकार इन सिफारिशों को लागू करे। 

किसान और कृषि मजदूर बुढ़ापे में आर्थिक तौर पर सुरक्षित रह सकें, इसके लिए पेंशन की मांग है। इनके अतिरिक्त किसानों की अन्य भी मांगे हैं।