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नांदेड स्थित कपास अनुसंधान केंद्र ने विकसित की कपास की तीन नवीन किस्में

नांदेड स्थित कपास अनुसंधान केंद्र ने विकसित की कपास की तीन नवीन किस्में

किसान भाइयों की जानकारी के लिए बतादें, कि नांदेड़ मौजूद कपास अनुसंधान केंद्र ने विगत छह साल के शोध के उपरांत कपास की तीन बीटी किस्में विकसित की हैं। 

इन किस्मों को हाल ही में नई दिल्ली में आयोजित केंद्रीय किस्म चयन समिति की बैठक में स्वीकृत दी गई है। दावा यह भी किया गया है, क‍ि इनके बीजों का तीन वर्ष तक इस्तेमाल किया जा सकता है। 

वसंतराव नाइक मराठवाड़ा कृषि विश्वविद्यालय, परभणी के नांदेड़ मौजूद कपास अनुसंधान केंद्र ने कपास की तीन नवीन किस्में इजात की हैं। अब इन किस्मों से किसानों को अधिक फायदा होगा। 

किसानों के लिए बीज की लागत को कम करने में सहायता मिलेगी। बतादें, कि पैदावार भी काफी अच्छी होगी। इन क‍िस्मों को शुष्क जमीन वाले इलाकों में भी उगाया जा सकता है। 

यह बीटी क‍िस्म है, बीटी कॉटन के बीज के ल‍िए किसानों को निजी कंपनियों पर आश्रित रहना पड़ता था, ज‍िससे उन्हें बीज पर अधिक धनराशि खर्च करनी पड़ती थी। वर्तमान में नवीन क‍िस्में किसानों को एक विकल्प मुहैय्या कराएगी। यूनिवर्सिटी की तरफ से यह दावा किया गया है।

कपास की तीन नई किस्में इजात की गई

नांदेड़ मौजूद कपास अनुसंधान केंद्र ने विगत छह साल के शोध के पश्चात कपास की तीन बीटी किस्में इजात की हैं। इनमें एनएच 1901 बीटी, एनएच 1902 बीटी एवं एनएच 1904 बीटी शम्मिलित हैं। 

इन किस्मों को वर्तमान में नई दिल्ली में आयोजित केंद्रीय किस्म चयन समिति की बैठक में स्वीकृति दी गई है। इनकी बिजाई लागत संकर किस्मों की तुलना में कम होने का दावा क‍िया गया है। दावा यह भी किया गया है, क‍ि इनके बीजों का तीन वर्ष तक इस्तेमाल किया जा सकता है। 

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ये किस्में क‍िन राज्यों के ल‍िए विकसित की गई हैं

बतादें, कि इन किस्मों में खादों का उपयोग भी कम होगा। हालांकि, किसानों की तरफ से कपास की ऐसी किस्मों की मांग है। परंतु, किस्मों की अनुपलब्धता की वजह राज्य में सबसे ज्यादा संकर कपास की खेती की गई है। 

इस जरूरत को ध्यान में रखते हुए ही नवीन क‍िस्में तैयार की गई हैं। महाराष्ट्र प्रमुख कपास उत्पादक राज्य है। यहां बड़े पैमाने पर क‍िसान कॉटन की खेती पर न‍िर्भर हैं। ये तीन नवीन क‍िस्में महाराष्ट्र, गुजरात एवं मध्य प्रदेश के ल‍िए उपयुक्त हैं।

दक्ष‍िण भारत के ल‍िए विकसित की गई अलग क‍िस्म

यह दावा किया गया है, क‍ि परभणी कृषि विश्वविद्यालय कपास की सीधी किस्मों को बीटी तकनीक में परिवर्तित करने वाला राज्य का पहला कृषि विश्वविद्यालय बन चुका है। 

इससे पूर्व यह प्रयोग नागपुर के केंद्रीय कपास अनुसंधान केंद्र ने किया था। यह किस्म अब किसानों को आगामी वर्ष में खेती के लिए उपलब्ध होगी।

साथ ही, परभणी के मेहबूब बाग कपास अनुसंधान केंद्र ने स्वदेशी कपास की एक सीधी किस्म 'पीए 833' विकसित की है, जो दक्षिण भारत के लिए अनुकूल है। 

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विकसित की गई इन तीन नवीन क‍िस्मों की विशेषता

कपास की इन तीन नवीन क‍िस्मों में संकर किस्म के मुकाबले में कम रासायनिक उर्वरकों की जरूरत होती है। इस किस्म में रस चूसने वाले कीट, जीवाणु झुलसा रोग और पत्ती धब्बा रोग नहीं लगता है। 

यह इन रोगों के प्रत‍ि बेहद सहनशील है। इस किस्म की कपास का उत्पादन 35 से 37 प्रतिशत है। धागों की लंबाई मध्यम है। मजबूती और टिकाऊपन भी काफी अच्छा है। यूनिवर्सिटी का दावा है, कि यह किस्म सघन खेती के लिए भी अच्छी है।

फसल की कटाई के आधुनिक यंत्र

फसल की कटाई के आधुनिक यंत्र

जैसे जैसे किसान की खेती की जोत छोटी होती जा रही है उसी तरह से आजकल नए नए कृषि यन्त्र भी बाजार में आ रहे हैं. अभी रबी की फसल खेतों में शान से लहलहा रही है, किसान अपनी फसल के रंग और आकार को देख कर ही फसल के उत्पादन का अंदाज लगा लेता है. 

अभी किसान की रबी की फसल की कटाई मार्च से शुरू हो जाएगी और जैसा की सभी की फसल की कटाई इसी समय होती है तो जाहिर सी बात है मजदूरों की कमी किसान को होती है. 

कहते हैं न कि "आवश्यकता अविष्कार कि जननी है" तो किसानों कि इसी आवश्यकता को पूरा करने के लिए हमारे कृषि वैज्ञानिक रात दिन मेहनत कर रहे हैं. 

जब किसान अपने पूरे खेत कि जुताई बुबाई बैलों से नहीं कर पाता था तो ट्रेक्टर आया और जब खेत में फसल की कटाई समय से नहीं हो रही थी तो उसके लिए फसल कटाई के लिए मशीन भी बाजार में आ गई. आज हम इन्हीं मशीनों के बारे में चर्चा करेंगें:

रीपर बाइंडर (Reaper Binder):

reaper-binder

रीपर बाइंडर मशीन इंजन द्वारा चलती है और इसको चलाना भी आसान होता है. इससे किसान कम डीजल खर्चा में ज्यादा काम कर सकता है तथा इससे उसको भूसा भी पूरा मिल जाता है तथा किसान को फसल को इकठ्ठा करने में भी दिक्कत नहीं होती है क्यों की इसको रीपर काटने के साथ साथ उसकी पूरै भी बना देती है. 

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इससे किसानों को मजदूरों की समस्या से कुछ हद तक छुटकारा मिल जाता है. आजकल खेती में कुशल मजदूरों की बहुत ही समस्या है. 

कई बार किसान की पाकी हुई फसल मजदूर न मिलने की वजह से काफी नुकसान होता है. इस नुकसान से बचने के लिए ये छोटी कटाई मशीन बहुत ही काम की मशीन है.

हाथ का रीपर:

हाथ से काटने वाला रीपर भी आता है लेकिन वो फसल के पूरै नहीं बनता है वो एक साइड में कटी हुई फसल को डालता जाता है. बाद में उसे मजदूरों की सहायता से पूरै बना दिया जाता है. 

कंबाइन हार्वेस्टर मशीन: यह मशीन बहुत महँगी होती है तथा ये बड़े किसानों के लिए उपयोगी है. छोटे किसान इसको किराये पर लेकर भी अपनी फसल की कटाई करा सकते हैं. 

इससे कम समय में ज्यादा काम किया जा सकता है. ये फसल को ज्यादा ऊपर से काटती है जिससे बाद में इसके तूरे से भूसा बनाया जा सकता है. 

इसमें किसान अपनी फसल को समय से लाकर बाजार में ले जा सकता है. इसमें कम समय में किसान की फसल भूसे से अलग हो जाती है. कंबाइन हार्वेस्टर मशीन की ज्यादा जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें.

स्ट्रा-रीपर (Straw Reaper) या भूसा बनाने वाली मशीन:

स्ट्रा-रीपर या आप कह सकते हैं की भूसा बनाने वाली मशीन छोटे और बड़े दोनों किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है. जो किसान कंबाइन हार्वेस्टर मशीन से खेत को भूसा न बनने की वजह से कटवाने से डरते थे अब वो भी कंबाइन हार्वेस्टर से अपनी फसल कटवाने लगे हैं. 

क्यों की अब स्ट्रा-रीपर से भूसा बनाना आसान हो गया है. चूँकि किसान पशु भी पालते हैं और इसके लिए उन्हें भूसा भी चाहिए. तो भूसा की जरूरत रखने वाले किसानों के लिये तो हाथ से फसल कटवाना मजबूरी भी थी लेकिन जो किसान पशु नहीं पालते हैं,  वो कंबाइन मशीन से फसल कटवाने के इच्छुक भी थे लेकिन वो परेशान भी भी कम नहीं थे. 

क्योंकि कम्बाइन मशीन 30 से 35 सेंटीमीटर ऊपर से ही गेहूं की बालियों को काटती है इसलिए मशीन से कटवाने पर अनाज के नुकसान होने का खतरा रहता है. कम्बाइन मशीन नीचे गिरी हुई बालियों को उठा नहीं पाती है. 

ऐसे में भूसा बनाने वाली मशीन लोगों के लिये वरदान साबित हो रही है. इससे फसल कटवाने पर किसानों कई प्रकार का फायदा होता है. 

पहली बात तो ये कि उन्हें गेहूं के दानों के साथ साथ भूसा भी मिल जाता है. इससे पशुओं के लिये चारे की समस्या खड़ी नहीं होती. 

दूसरा जो दाना मशीन से खेत में रह जाता है उसको ये मशीन उठा लेती है. जिसको की किसान अपने पशु के दाने के रूप में प्रयोग कर लेता है क्योंकि इसमें मिटटी आने की सम्भावना रहती है.

कटर थ्रेसर (Cutter Thresher):

अगर हम कटर थ्रेसर की बात करें तो इसने भी किसानों की जिंदगी बहुत आसान कर दी है. जब किसान हाथ से फसल कटवाते थे तो अनाज को अलग करने के लिए फसल की मिडाई करने के लिए बैल या ट्रेक्टर चला के अनाज को अलग किया जाता था. 

उसके बाद थ्रेसर से करने लगे. 40 क्विंटल अनाज निकालने में 15 घंटे का समय लग जाता था जो की एक बड़े किसान के लिए बहुत ही मेहनत का काम था. 

उसके बाद कटर थ्रेसर आया जो की बहुत ही जल्दी अनाज और भूसा अलग कर देता है. आज के समय में कटर थ्रेसर बहुत ही उपयोगी मशीनरी बनी हुई है। 

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चारा काटने की मशीन:

पशुपालन और खेती दोनों एक दूसरे के पूरक हैं. किसान खेती के साथ साथ पशु पालन भी करता है. खेती से उसके पशुओं का चारा भी आ जाता है और उसके लिए पैसे कमाने का दूसरा जरिया भी बन जाता है. 

पुराने समय में चारा काटने के लिए किसान को बहुत मेहनत करनी पड़ती थी. कम से कम 3  आदमी चारा काटने की मशीन को चलाने के लिए चाहिए होते थे. 

लेकिन अब किसान ने भी इसका समाधान ढूंढ लिया और आज एक ही आदमी 10 - 15 पशुओं का चारा काट देता है वो भी 10 से 15 मिनट में.

चारा काटने की मशीन कैसे काम करती है:

चारा काटने की मशीन को दो आदमी उसके चक्र को हत्था के द्वारा घुमाते हैं तथा एक उसमें चारा डालने का काम करता है. यह बहुत ही मेहनत वाला काम है. इसमें किसान को बहुत समय लगता था और मेहनत भी बहुत होती थी.

इंजन से चलाने वाली मशीन:

इस मशीन को इंजन या बिजली से भी चलाया जा सकता है. इससे सिर्फ एक आदमी की आवश्यकता होती है वही आदमी अकेला ४ आदमी के बराबर काम कर लेता है. 

नीचे दिए वीडियो में देखें अंत में  हम कह सकते हैं की "Technology is a great servant, but a bad master." मशीनीकरण को हम अपने भले के लिए प्रयोग करें तो अच्छा है अन्यथा इसके दुष्परिणाम भी हम को ही झेलने पड़ते हैं.

जैसे की खड़ी फसल को कटवाने के अपने फायदे है तो कुछ नुकसान भी हैं. अगर हम फसल के अवशेष का भूसा बनवा लेते हैं तो ये हमारे लिए लाभदायक है और अगर हम इसके अवशेषों को जलाते हैं तो ये प्रक्रिया हमारी बहुत ही उपजाऊ जमीन को भी बंजर बनाने में बहुत ज्यादा समय नहीं लेती है. 

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भूमि की तैयारी के लिए आधुनिक कृषि यंत्र पावर हैरो (Power Harrow)

भूमि की तैयारी के लिए आधुनिक कृषि यंत्र पावर हैरो (Power Harrow)

किसान भाइयों को एक फसल पकने के बाद दूसरी फसल के लिए खेत को तैयार करना होता है। उस समय खेत की मिट्टी सख्त हो जाती है और पूर्व फसल के अंश रह जाते हैं और खरपतवार भी होता है। इन सबको कम्पोस्ट खाद बनाने और मिट्टी पलटने के लिए कृषि यंत्र हैरो(Harrow) का  इस्तेमाल किया जाता है। ट्रैक्टर चालित यंत्र हैरो खेत की मिट्टी को इस तरह से पलटता है कि खेत में मौजूद कूड़ा-कचड़ा व हरियाली जमीन में दब जाती है। जो जैविक खाद में परिवर्तित हो जाती हैं। इससे खेत को उपजाऊ बनाने में मदद मिलती है। आइये जानते हैं कि हैरो किस तरह से खेत को तैयार करने का काम करना है और खेती के लिए कितना उपयोगी है।

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नई फसल के लिए खेत को तैयार करने के लिए पहले बैलों के बीचे गहरी जुताई करने वाले हल का प्रयोग किया जाता था। इससे खेत की कई बार जुताई करनी होती थी। उसकी खरपतवार हटाने के लिए मजदूरों को लगाना होता था और उसके बाद खेत की मिट्टी को महीन करने के लिए यानी ढेले फोड़ने के लिए पाटा चलाना पड़ता था। इसमे किसान भाइयों का समय अधिक लगता था और मेहनत भी अधिक करनी होती थी। खास बात यह है कि फसल कटाई के बाद अप्रैल,मई व जून की भीषण गर्मी की प्रचण्ड धूप में किसान भाइयों को पसीना बहाना पड़ता था। लेकिन अब हैरो नामक कृषि यंत्र ने किसानों की इन सारी समस्याओं का हल निकाल लिया है। कृषि यंत्र हैरो

कहां-कहां काम कर सकता है हैरो(Harrow)

जुताई के अन्य यंत्र जहां सामान्य एवं मुलायम मिट्टी वाले खेतों को तैयार करने के काम में आते हैं, वहीं हैरो सख्त जमीन व पथरीली जमीन, अधिक खरपतवार वाली जमीन में आसानी से काम करता है। इसकी डिस्क यानी वर्टिकल टाइन आसानी से सख्त से सख्त मिट्टी को काट कर पलट देती है। साथ ही जमीन में चाहे ही कितनी भी अधिक खरपतवार हो उसे जमीन में दबा देती है। किसान भाइयों मिट्टी पलटने से जहां जैविक खाद का लाभ मिलता है वहीं इसको खुला छोड़ने से जमीन लगने वाली व्याधियां व कीट भी नष्ट हो जाते हैं। इससे अगली फसल में अच्छा उत्पादन भी मिलता है।

क्यारियां व बाग-बगीचा बनाने के काम आता है हैरो(Harrow)

खेत की जुताई के साथ नर्सरी के लिए क्यारियों या बैड बनाने के काम में हैरो का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके अलावा सख्त जमीन की जुताई में सक्षम होने के कारण हैरो का इस्तेमाल बाग-बगीचा लगाने के लिए भी जमीन को तैयार करने में किया जाता है।

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हैरों(Harrow) के खेती से जुड़े मुख्य काम

हैरो विभिन्न धारदार कटिंग पहियों, डिस्क या टाइन के सेट को कहा जाता है। अब पहियों व कांटे जैसे स्पाइक वाले हैरो(Harrow) भी आ गये हैं। इस हैरों से खेत में क्या-क्या काम होते हैं, जानिये
  1. हैरो(Harrow) मिट्टी को पलटने का काम सबसे पहले करता है।
  2. हैरो(Harrow) खेत की पूर्व फसल के अवशेष व खरपतवार को जमीन में दबा देता है, जो खाद बन जाती है
  3. यदि नई फसल को नुकसान देने वाली सामग्री खेत में होती है उसको खेत से बाहर निकालने का भी काम हैरो करता है
  4. हैरो(Harrow) मिट्टी की गहरी जुताई करने के साथ उसके ढेलों को फोड़ने का भी काम करता है।
  5. हैरो(Harrow) जमीन की ऊपरी सतह को चिकनी व उपजाऊ बनाने का काम करता है
कृषि यंत्र हैरो

चार प्रकार के हैरो(Harrow) होते हैं

खेती को कई बार जुताई करने, पाटा चलाने, खरपतवार नियंत्रण करने के अलग-अलग कामों के लिए अलग-अलग प्रकार के हैरों(Harrow) का इस्तेमाल किया जाता है। खेती की आवश्यकता को देखते हुए परम्परागत कार्यों के लिए हैरो को चार भागों में विभाजित किया गया है, जो इस प्रकार हैं:-
  1. डिस्क हैरो: हल्की जुताई, मिट्टी के ढेलों को तोड़ने तथा खेत की मिट्टी को भुरभुरी बनाने के लिए सबसे अच्छा माना जाता है।
  2. स्प्रिंग टूथ हैरो: यह हैरो जुताई के बाद ढेले तोड़ने तथा उनको ऊपर लाने ताकि पाटा से आसानी से टूट सकें जैसे काम के लिए उपयोगी होता है।
  3. चेन डिस्क हैरो: यह हैरो खेतों में खाद फैलाने और खरपतवार को एकत्रित करने के लिए सबसे अच्छा माना जाता है।
  4. लीवर हैरो या स्पाइक टूथ हैरो: बोये हुए खेत में उचित जमाव या हल्की वर्षा पड़ी हुई पपड़ी को तोड़ने के काम में आता है। इसका प्रयोग लाइन में या छिड़काव कर बोई फसल के छह-सात इंच तक बढ़ने के समय आसानी से किया जा सकता है।
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पहले ये हैरो बैलों से खिंचवा कर खेतों की तैयारी का काम कराया जाता था लेकिन अब ट्रैक्टर के पीछे हैरो को लगाकर काम किया जाता है। जो कम समय में अच्छा खेत तैयार करता है।

रोटरी पावर हैरो(Rotary Power Harrow) है सबसे अधिक लोकप्रिय

वर्तमान समय में हैरों के काफी संशोधन किये गये हैं और पारम्परिक हैरो की जगह पर रोटरी पॉवर हैरो यानी पॉवर हैरो(Power Harrow) आ गया है। यह पॉवर हैरो कम समय में बहुत अच्छा काम करता है। 50 हॉर्स पॉवर के ट्रैक्टर से चलने वाले इस हैरो से जहां मिट्टी पलटाने से लेकर खेत को बुवाई के लिए बहुत जल्दी तैयार करने में मदद मिलती है।

हैरों(Harrow) की कुछ खास जानकारियां

  1. हैरो की अनेक किस्में होतीं हैं । इन किस्मों में सिंगल टाइन सेट, डबल टाइन सेट या मल्टी टाइन सेट वाले हैरो शामिल हैं। इनके प्रयोग को देखते हुए इनकी टाइन में कटिंग वाले टाइन, सेमी कटिंग वाले टाइन, स्पाइक आदि को लगाया जाता है।
  2. हैरो का वजन 400 किलो से लेकर 2000 किलो तक होता है। ये छह ब्लेड से लेकर 28 ब्लेड वाले होते हैं। इनकी चौड़ाई एक मीटर से लेकर पांच मीटर तक की होती है। इसके अलावा ये 35 हॉर्स पावर से लेकर 100 हार्स पावर तक के होते हैं।

कृषि यंत्र हैरो

हैरो(Harrow)की कीमत

हैरो(Harrow) की कीमत उनकी लम्बाई, चौड़ाई व वजन, ब्लेडों की संख्या, व हॉर्स पॉवर आदि पर निर्भर करती है। वैसे यह अनुमान लगाया जाता है कि हैरो की कीमत उनके काम करने की क्षमता उपयोगिता के अनुसार 50,000 से लेकर 1.5 लाख रुपये तक होती है।
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हैरों(Harrow) की विशेषताएं

जो किसान भाई अपनी खेत की सेहत का ध्यान रखते हैं, अपने मन मुताबिक फसल लेना चाहते हैं, कम समय, कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली खेती करना चाहते हैं, वे कृषि यंत्रों का सहारा लेते हैं। इन कृषि यंत्रों में सबसे पहले हैरो का इस्तेमाल किया जाता है। पॉवर हैरो एक बार में ही मिट्टी जुताई, ढेले फोड़ने पाटा चलाने का काम करता है। पॉवर हैरो या अन्य हैरो में वर्टिकल टाइन के कई सेट लगे होते हैं।  पॉवर हैरो(Power Harrow) के टाइन का पहला सेट खेत की मिट्टी को पलटने का काम करता है तो दूसरा सेट उस मिट्टी के ढेले को फोड़ने और उसे महीन बनाने का करता है। हैरो(Harrow) का प्रयोग करने से खेत की जमीन समतल ही हो जाती है। गहरी जुताई के कारण खेत में नमी अधिक समय तक रहती है । इससे बीजों का अंकुरन अच्छी तरह से हो सकता है। इस तरह से हैरो(Harrow) से एक या दो बार की जुताई से खेत बुवाई के लिए तैयार हो जाता है। खेत में नर्सरी लगाने के लिए हैरो की एक ही जुताई काफी होती है। उसके बाद खाद प्रबंधन करके बुवाई शुरू कर दी जाती है।

हैरो(Harrow) की खरीद पर कितनी सब्सिडी(Subsidy) मिलती है

सरकार द्वारा कृषि यंत्रों के उपयोग करके फसल को बढ़ाने तथा किसान भाइयों की आमदनी बढ़ाने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रहीं है। इन योजनाओं में कृषि यंत्रों की खरीद पर सब्सिडी(Subsidy) भी दिया जाना शामिल है।
  1. यह सब्सिडी(Subsidy) गरीब व दलित किसानों व छोटे काश्त वो किसानों को अलग-अलग तरह से दी जाती है।
  2. प्रत्येक राज्य ने अपने राज्य के किसानों की सुविधा के लिए सब्सिडी(Subsidy) के अलग-अलग नियम व कानून बना रखे हैं। इन नियमों व कानूनों के बारे में जानकार या सम्बन्धित विभाग के अधिकारियों से पूरी प्रक्रिया को जानकर आवेदन करके उसका लाभ प्राप्त करें।
  3. हैरो(Harrow) की खरीद के बारे में जानकार लोगों का अनुमान है कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसानों और महिला किसान को हैरो की खरीद पर 63 हजार रुपये की सब्सिडी(Subsidy) मिलती है। इसके अलावा सामान्य किसानों को हैरो(Harrow) की खरीद पर 50,000 रुपये की सब्सिडी(Subsidy) मिलती है। विस्तृत जानकारी विभागीय अधिकारियों से प्राप्त करें।

किराये पर भी चलाकर उठा सकते हैं लाभ

कृषि यंत्र काफी महंगे होते हैं और हमारे देश में छोटी काश्त वाले किसानों की संख्या अधिक है, जो इन महंगे कृषि यंत्रों को आसानी से नहीं खरीद सकते हैं। इनकी खरीद के लिए सरकार द्वारा लाभ दिये जाने के लिए शर्तें  भी ऐसी होती हैं जो अधिकांश किसान पूरी नहीं कर पाते हैं। इसके बावजूद उन्हें इन कृषि यंत्रों की सेवाओं की जरूरत होती है। इसके लिए सरकार ने भी सेवा केन्द्र खोल रखे हैं जहां किराये पर कृषि यंत्रों की सेवाएं ली जा सकतीं हैं। इसके साथ ही कुछ हमारे किसान भाई भी अपनी क्षमता के अनुसार कृषि यंत्रों को खरीद कर उन्हें किराये पर चला कर लाभ कमाते हैं। जहां हैरो के मालिक को किराया मिलता है वहीं सेवाएं लेने वाले किसानों को जल्दी व बिना मेहनत के खेत तैयार करने का लाभ मिलता है।
उदयपुर शहर के (एमपीयूएटी) द्वारा विकसित की गई मक्का की किस्म 'प्रताप -6'

उदयपुर शहर के (एमपीयूएटी) द्वारा विकसित की गई मक्का की किस्म 'प्रताप -6'

उदयपुर शहर के महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एमपीयूएटी) की तरफ से विकसित की गई मक्का की नवीन किस्म 'प्रताप-6' किसानों के लिए बेहद फायदेमंद सिद्ध हो सकती है। दरअसल, मक्का की यह प्रजाति प्रति हेक्टेयर 70 क्विंटल तक उत्पादन देने में सक्षम है। किसान अपनी फसल से बेहतरीन उत्पादन पाने के लिए विभिन्न प्रकार के कार्य करते हैं। साथ ही, वह फसल के उन्नत बीजों का भी चुनाव करते हैं। जिससे कि वह कम समयावधि में ज्यादा से ज्यादा पैदावार उठा सकें। इसी कड़ी में आज हम किसान भाइयों के लिए मक्का के नवीन व उन्नत किस्म के बीजों की जानकारी लेकर आए हैं, जो प्रति हेक्टेयर लगभग 70 क्विंटल तक उत्पादन देगी। यह किस्म खेत में तकरीबन 80-85 दिन में पककर तैयार हो जाती है। मक्का की यह प्रजाति 'प्रताप-6' है, जिसे उदयपुर शहर के महाराणा प्रताप कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एमपीयूएटी) के द्वारा तैयार किया गया है। वर्तमान में मक्का की प्रताप-6 किस्मों को लेकर केंद्र सरकार के लिए प्रस्ताव भेज दिया गया है। बतादें, कि जैसे ही इस प्रस्ताव पर सरकार की मंजूरी मिल जाती है, तो यह किस्म किसानों के हाथों में सौंप दी जाएगी।

मक्का की प्रताप-6 किस्म से कितने सारे लाभ होते हैं

मक्का मानव शरीर की ऊर्जा के लिए सबसे बेहतरीन स्त्रोत कहा जाता है। वह इसलिए कि इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और विटामिनों की भरपूर मात्रा पाई जाती है। इसके अतिरिक्त इसमें शरीर के लिए जरूरी खनिज तत्व जैसे कि फास्फोरस, मैग्नीशियम, मैंगनीज, जिंक, कॉपर, आयरन इत्यादि उपस्थिति होते हैं। इसके चलते बाजार में किसानों को मक्का की बेहतरीन कीमत सहजता से मिल जाती है।

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 साथ ही, मक्का की नवीन किस्म प्रताप-6 किसानों के साथ-साथ पशुओं के लिए भी बेहद लाभकारी होती है। बतादें, कि इस नवीन किस्म के मक्के के पौधे को पकने के उपरांत भी हरा ही रहता है, जिसे मवेशी को खिलाने से उनके स्वास्थ्य में बेहतरी देखने को मिल सकती है। ऐसा कहा जा रहा है, कि प्रताप-6 किस्म का पौधा मवेशियों के लिए शानदार गुणवत्ता का हरा चारा है। अंदाजा यह है, कि भारतीय बाजार के अतिरिक्त विदेशी बाजार में भी प्रताप-6 किस्म के मक्का की मांग ज्यादा देखने को मिल सकती है। मक्का की प्रताप-6 किस्म तना सड़न रोग, सूत्र कृमि एवं छेदक कीट इत्यादि के प्रतिरोधी है।

भारतभर में मक्का की कुल कितनी खेती होती है

हिन्दुस्तान के किसानों के द्वारा तकरीबन 90 लाख हेक्टेयर में मक्का की खेती करके किसान मोटी आमदनी अर्जित कर रहे हैं। वहीं, महज केवल उदयपुर में मक्का की 1.50 लाख हेक्टेयर में खेती की जाती है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि संपूर्ण राज्य में मक्का की खेती लगभग 9 लाख से ज्यादा हेक्टेयर भूमि में की जाती है।

कृषि वैज्ञानिकों ने मटर की 5 उन्नत किस्मों को विकसित किया है

कृषि वैज्ञानिकों ने मटर की 5 उन्नत किस्मों को विकसित किया है

कृषक भाइयों रबी सीजन आने वाला है। इस बार रबी सीजन में आप मटर की उन्नत किस्म से काफी अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। बेहतरीन किस्मों के लिए भारत के कृषि वैज्ञानिक नवीन-नवीन किस्मों को तैयार करते रहते हैं। इसी कड़ी में वाराणसी के काशी नंदिनी भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान द्वारा मटर की कुछ बेहतरीन किस्मों को विकसित किया है। भारत में ऐसी बहुत तरह की फसलें हैं, जो किसानों को कम खर्चे व कम वक्त में अच्छा उत्पादन देती हैं। इन समस्त फसलों को किसान भाई अपने खेत में अपनाकर महज कुछ ही माह में मोटा मुनाफा कमा सकते हैं।

सब्जियों की खेती से भी किसान अच्छा-खासा मुनाफा कमा सकते हैं

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि ऐसी फसलों में
सब्जियों की फसल भी शम्मिलित होती है, जो किसान को हजारों-लाखों का फायदा प्राप्त करवा सकती है। यदि देखा जाए तो किसान अपने खेत में खरीफ एवं रबी सीजन के मध्य में अकेले मटर की बुवाई से ही 50 से 60 दिनों में काफी मोटी पैदावार अर्जित कर सकते हैं। जैसा कि हम सब जानते हैं, कि देश-विदेश के बाजार में मटर की हमेशा मांग बनी ही रहती है। बतादें, कि मटर की इतनी ज्यादा मांग को देखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के कृषि वैज्ञानिकों ने मटर की बहुत सारी शानदार किस्मों को इजात किया है। जो कि किसान को काफी शानदार उत्पादन के साथ-साथ बाजार में भी बेहतरीन मुनाफा दिलाएगी।

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काशी अगेती

इस किस्म की मटर का औसत वजन 9-10 ग्राम होता है। बतादें, कि इसके बीज सेवन में बेहद ही ज्यादा मीठे होते हैं। इसकी फलियों की कटाई बुवाई के 55-60 दिन उपरांत किसान कर सकते है। फिर किसानों को इससे औसत पैदावार 45-40 प्रति एकड़ तक आसानी से मिलता है।

काशी मुक्ति

मटर की यह शानदार व उन्नत किस्म चूर्ण आसिता रोग रोधी है। यह मटर बेहद ही ज्यादा मीठी होती है। यह किस्म अन्य समस्त किस्मों की तुलना में देर से पककर किसानों को काफी अच्छा-खासा उत्पादन देती है। यदि देखा जाए तो काशी मुक्ति किस्म की प्रत्येक फलियों में 8-9 दाने होते हैं। इससे कृषक भाइयों को 50 कुंतल तक बेहतरीन पैदावार मिलती है।

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अर्केल मटर

यह एक विदेशी प्रजाति है, जिसकी प्रत्येक फलियों से किसानों को 40-50 कुंतल प्रति एकड़ पैदावार प्राप्त होती है। इसकी प्रत्येक फली में बीजों की तादात 6-8 तक पाई जाती है।

काशी नन्दनी

मटर की इस किस्म को वाराणसी के काशी नंदिनी भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान ने इजात किया है। इस मटर के पौधे आपको 45-50 सेमी तक लंबे नजर आऐंगे। साथ ही, इसमें पहले फलियों की उपज बुवाई के करीब 60-65 दिनों के उपरांत आपको फल मिलने लगेगा। बतादें, कि इसकी किस्म की हरी फलियों की औसत पैदावार 30-32 क्विंटल प्रति एकड़ तक अर्जित होती है। साथ ही, बीज उत्पादन से 5-6 क्विंटल प्रति एकड़ तक अर्जित होती है। ऐसे में यदि देखा जाए तो मटर की यह किस्म जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल, पंजाब, उत्तर प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के कृषकों के लिए बेहद शानदार है।

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काशी उदय

इस किस्म के पौधे संपूर्ण तरीके से हरे रंग के होते हैं। साथ ही, इसमें छोटी-छोटी गांठें और प्रति पौधे में 8-10 फलियां मौजूद होती हैं, जिसकी प्रत्येक फली में बीजों की तादात 8 से 9 होती है। इस किस्म से प्रति एकड़ कृषक 35-40 क्विंटल हरी फलियां अर्जित कर सकते हैं। किसान इस किस्म से एक नहीं बल्कि दो से तीन बार तक सुगमता से तुड़ाई कर सकते हैं।
ICAR ने बताए सोयाबीन कीट एवं रोग नियंत्रण के उपाय

ICAR ने बताए सोयाबीन कीट एवं रोग नियंत्रण के उपाय

मानसून की लेटलतीफी के कारण भारत के राज्यों में सोयाबीन की खेती की तैयारी में भी इस साल देरी हुई। अवर्षा और अतिवर्षा की मार के बाद किसी तरह खेत में बोई गई सोयाबीन की फसल पर अब कीट पतिंगों का खतरा मंडरा रहा है।

इस खतरे के समाधान के लिए भारत के कृषि विज्ञानियों ने अनुभव एवं शोध के आधार पर उपयोगी तरीके सुझाए हैं।

सोयाबीन कृषकों के लिए ICAR की उपयोगी सलाह

भाकृ.अनु.प. के भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान सस्थान (ICAR-Indian Institute of Soybean Research) इन्दौर, ने सोयाबीन फसल की रक्षा के लिए उपयोगी एडवायजरी (Advisory) जारी की है। 

आपको बता दें, इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (Indian Council of Agricultural Research/ICAR) यानी भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (भाकृअनुप) कृषि कल्याण हित में काम करने वाली संस्था है। 

भाकृअनुप (ICAR) भारत सरकार के कृषि मंत्रालय में कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के अधीन एक स्वायत्तशासी संस्था के तौर पर कृषि जगत के कल्याण संबंधी सेवाएं प्रदान करती है।

सोयाबीन पर मौजूदा खतरा

सोयाबीन की खेती आधारित भारत के प्रमुख राज्यों मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं राजस्थान पर विविध रोगों का प्रभाव देखा जा रहा है। 

इन राज्यों के कई जिलों में सोयाबीन की फसल पर तना मक्खी, चक्र भृंग एवं पत्ती खाने वाली इल्ली तथा रायजोक्टोजनिया एरिअल ब्लाइट, पीला मोजेक वायरस रोग के संक्रमण की स्थिति देखी जा रही है। 

भाकृअनुप (ICAR) की इस संबंध में कृषकों को सलाह है कि, वे अपनी फसल की सतत निगरानी करें एवं किसी भी कीट या रोग के प्रारंभिक लक्षण दिखते ही, नियंत्रण के उपाय अपनाएं।

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तम्बाखू की इल्ली

सोयाबीन की फसल में तम्बाखू की इल्ली एवं चने की इल्ली के प्रबंधन के लिए बाजार में उपलब्ध कीट-विशेष फिरोमोन ट्रैप्स का उपयोग करने की आईसीएआर (ICAR) ने सलाह दी है। 

इन फेरोमोन ट्रैप में 5-10 पतंगे दिखने का संकेत यह दर्शाता है कि इन कीड़ों का प्रादुर्भाव आप की फसल पर हो गया है। इसका संकेत यह भी है कि, यह प्रादुर्भाव अभी प्रारंभिक अवस्था में है। 

अतः शीघ्र अतिशीघ्र इनके नियंत्रण के लिए उपाय अपनाने चाहिए। खेत के विभिन्न स्थानों पर निगरानी करते हुए यदि आपको कोई ऐसा पौधा मिले जिस पर झुंड में अंडे या इल्लियां हों, तो ऐसे पौधों को खेत से उखाड़कर अलग कर दें।

तना मक्खी

तना मक्खी के नियंत्रण के लिए पूर्व मिश्रित कीटनाशक थायोमिथोक्सम (Thiamethoxam) 12.60%+लैम्ब्डा साह्यलोथ्रिन (Lambda-cyhalothrin) 09.50% जेडसी (ZC) (125 ml/ha) का छिड़काव करने की सलाह भाकृअनुप (ICAR) के वैज्ञानिकों ने दी है। 

चक्र भृंग-(गर्डल बीटल) के नियंत्रण हेतु प्रारंभिक अवस्था में ही टेट्रानिलिप्रोल 18.18 एस.सी. (250- 300 मिली/हे) या थायक्लोप्रिड 21.7 एस.सी. (750मिली/हे) या प्रोफेनोफॉस 50 ई.सी.(1 ली/हे.) या इमामेक्टीन बेन्जोएट (425 मिली/हे.) का छिड़काव करने की कृषकों को सलाह दी गई है। 

इसके अलावा रोग के फैलाव की रोकथाम हेतु प्रारंभिक अवस्था में ही पौधे के ग्रसित भाग को तोड़कर नष्ट करने की भी सलाह दी गई है।

इल्लियों का नियंत्रण

चक्र भृंग तथा पत्ती खाने वाली इल्लियों के एक साथ नियंत्रण हेतु पूर्वमिश्रित कीटनाशक क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल 09.30 % + लैम्ब्डा साह्यलोथ्रिन 04.60 % ZC (200 मिली/हे) या बीटासायफ्लुथ्रिन + इमिडाक्लोप्रिड (350 जमली/है) या पूर्वमिश्रित थायमिथोक्सम़ + लैम्बडा साह्यलोथ्रिन (125 मिली/है) का जिड़काव करने की सलाह दी गई है। 

इनके छिड़काव से तना मक्खी का भी नियत्रंण किया जा सकता है। पत्ती खाने वाली इल्लियां (सेमीलूपर, तम्बाकू की इल्ली एवं चने की इल्ली) होने पर इनके नियंत्रण के लिए किनालफॉस 25 ई.सी. (1 ली/हे), या ब्रोफ्लानिलिड़े 300 एस.सी. (42-62 ग्राम/है) आदि में से किसी एक का प्रयोग करने की सलाह कृषकों को दी गई है।

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पौधों को उखाड़ दें

पीला मोजेक रोग के नियंत्रण हेतु सलाह है कि तत्काल रोगग्रस्त पौधों को खेत से उखाड़कर अलग कर दें। इन रोगों को फैलाने वाले वाहक सफेद मक्खी की रोकथाम हेतु पूर्वमिश्रित कीटनाशक थायोमिथोक्सम + लैम्ब्डा साह्यलोथ्रिन (125 मिली/है) रसायन का छिड़काव करने की सलाह दी गई है। 

इसके छिड़काव से तना मक्खी का भी नियंत्रण किया जा सकता है। सफेद मक्खी के नियंत्रण हेतु कृषकगण, अपने खेत में विभिन्न स्थानों पर पीला स्टिकी ट्रैप लगाकर सोयाबीन की फसल की रक्षा कर सकते हैं। 

कुछ क्षेेत्रों में रायजोक्टोनिया एरिअल ब्लाइट का प्रकोप होने की सूचना प्राप्त होने की आईसीएआर (ICAR) ने जानकारी दी है। 

इसके उपचार के लिए वैज्ञानिकों ने हेक्साकोनाझोल %5ईसी (1 मिली/ली पानी) का छिड़काव करने का सुझाव दिया गया है।

जैविक सोयाबीन उत्पादन

जैविक सोयाबीन उत्पादन में रुची रखने वाले कृषक, पत्ती खाने वाली इल्लियों (सेमीलूपर, तम्बाखू की इल्ली) की छोटी अवस्था में रोकथाम हतु बेसिलस थुरिन्जिएन्सिस आदि का निर्धारित मात्रा में प्रयोग कर सकते हैं। प्रकाश प्रपंच का उपयोग करने की भी सलाह दी गई है।

कीट एवं रोग प्रबंधन के अन्य उपाय

सोयाबीन पर लगने वाले कीट एवं रोग के प्रबंधन के रासायनिक छिड़काव के अलावा अन्य प्रकृति आधारित उपाय भी हैं।

बर्ड पर्चेस

सोयाबीन की फसल में पक्षियों के बैठने के लिए ”T“ आकार के बर्ड पर्चेस लगाने की भी वैज्ञानिकों ने कृषि मित्रों को सलाह दी है। इससे कीट-भक्षी पक्षियों द्वारा भी इल्लियों की संख्या कम करने में प्राकृतिक तरीके से सहायता मिलती है।

सावधानियां

  • कीट एवं रोग नियंत्रण के लिए केवल उन्ही रसायनों का प्रयोग करें जो सोयाबीन की फसल में अनुशंसित हों।
  • कीटनाशक या फफूंद नाशक के छिड़काव के लिए सदैव पानी की अनुशंसित मात्रा का ही उपयोग करें।
  • किसी भी प्रकार का कृषि-आदान क्रय करते समय दुकानदार से हमेशा पक्का बिल लें जिस पर बैच नंबर एवं एक्सपायरी दिनांक आदि का स्पष्ट उल्लेख हो।

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सोयाबीन कीट एवं रोग नियंत्रण प्रबंधन पर आधारित यह लेख भारतीय कृषक अनुसंधान परिषद, भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान, इन्दौर द्वारा जारी कृषि आधारित सलाह पर आधारित है। 

लेख में वर्णित रसायन एवं उनकी मात्रा का उपयोग करने के पहले कृषि सलाहकारों, केवीके के वैज्ञानिकों, दवा विक्रेता से उचित परामर्श अवश्य प्राप्त करें। 

इस बारे में आईसीएआर (ICAR) की विस्तृत जानकारी के लिए लिंकhttps://www.icar.org.in/weather-based-crop-advisory पर क्लिक करें। 

यहां वेदर बेस्ड क्रॉप एडवाइज़री (Weather based Crop Advisory) विकल्प में आपको सोयाबीन की सलाह संबंधी पीडीएफ फाइल डाउनलोड करने मिल जाएगी।

फसलों पर गर्मी नहीं बरपा पाएगी सितम, गेहूं की नई किस्मों से निकाला हल

फसलों पर गर्मी नहीं बरपा पाएगी सितम, गेहूं की नई किस्मों से निकाला हल

फरवरी के महीने में ही बढ़ते तापमान ने किसानों की टेंशन बढ़ा दी है. अब ऐसे में फसलों के बर्बाद होने के अनुमान के बीच एक राहत भरी खबर किसानों के माथे से चिंता की लकीर हटा देगी. बदलते मौसम और बढ़ते तापमान से ना सिर्फ किसान बल्कि सरकार की भी चिंता का ग्राफ ऊपर है. इस साल की भयानक गर्मी की वजह से कहीं पिछले साल की तरह भी गेंहूं की फसल खराब ना हो जाए, इस बात का डर किसानों बुरी तरह से सता रहा है. ऐसे में सरकार को भी यही लग रहा है कि, अगर तापमान की वजह से गेहूं की क्वालिटी में फर्क पड़ा, तो इससे उत्पादन भी प्रभावित हो जाएगा. जिस वजह से आटे की कीमत जहां कम हो वाली थी, उसकी जगह और भी बढ़ जाएगी. जिससे महंगाई का बेलगाम होना भी लाजमी है. आपको बता दें कि, लगातार बढ़ते तापमान पर नजर रखने के लिए केंद्र सरकार ने एक कमेटी का गठन किया था. इन सब के बीच अब सरकार के साथ साथ किसानों को चिंता करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने वो कर दिखाया है, जो किसी ने भी सोचा भी नहीं था. दरअसल आईसीएआर ने गेहूं की तीन ऐसी किस्म को बनाया है, जो गर्मियों का सीजन आने से पहले ही पककर तैयार हो जाएंगी. यानि के सर्दी का सीजन खत्म होने तक फसल तैयार हो जाएगी. जिसे होली आने से पहले ही काट लिया जाएगा. इतना ही नहीं आईसीएआर के साइंटिस्टो का कहना है कि, गेहूं की ये सभी किस्में विकसित करने का मुख्य कारण बीट-द हीट समाधान के तहत आगे बढ़ाना है.

पांच से छह महीनों में तैयार होती है फसलें

देखा जाए तो आमतौर पर फसलों के तैयार होने में करीब पांच से छह महीने यानि की 140 से 150 दिनों के बीच का समय लगता है. नवंबर के महीने में सबसे ज्यादा गेहूं की बुवाई उत्तर प्रदेश में की जाती है, इसके अलावा नवंबर के महीने के बीच में धान, कपास और सोयाबीन की कटाई मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, एमपी और राजस्थान में होती है. इन फसलों की कटाई के बाद किसान गेहूं की बुवाई करते हैं. ठीक इसी तरह युपू में दूसरी छमाही और बिहार में धान और गन्ना की फसल की कटाई के बाद ही गेहूं की बुवाई शुरू की जाती है.

महीने के आखिर तक हो सकती है कटाई

साइंटिस्टो के मुताबिक गेहूं की नई तीन किस्मों की बुवाई अगर किसानों ने 20 अक्टूबर से शुरू की तो, गर्मी आने से पहले ही गेहूं की फसल पककर काटने लायक तैयार हो जाएगी. इसका मतलब अगर नई किस्में फसलों को झुलसा देने वाली गर्मी के कांटेक्ट में नहीं आ पाएंगी, जानकारी के मुताबिक मार्च महीने के आखिरी हफ्ते तक इन किस्मों में गेहूं में दाने भरने का काम पूरा कर लिया जाता है. इनकी कटाई की बात करें तो महीने के अंत तक इनकी कटाई आसानी से की जा सकेगी. ये भी पढ़ें: गेहूं पर गर्मी पड़ सकती है भारी, उत्पादन पर पड़ेगा असर

जानिए कितनी मिलती है पैदावार

आईएआरआई के साइंटिस्ट ने ये ख़ास गेहूं की तीन किस्में विकसित की हैं. इन किस्मों में ऐसे सभी जीन शामिल हैं, जो फसल को समय से पहले फूल आने और जल्दी बढ़ने में मदद करेंगे. इसकी पहली किस्म का नाम एचडीसीएसडब्लू-18 रखा गया है. इस किस्म को सबसे पहले साल 2016  में ऑफिशियली तौर पर अधिसूचित किया गया था. एचडी-2967 और एचडी-3086 की किस्म के मुकाबले यह ज्यादा उपज देने में सक्षम है. एचडीसीएसडब्लू-18 की मदद से किसान प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सात टन से ज्यादा गेहूं की उपज पा सकते हैं. वहीं पहले से मौजूद एचडी-2967 और एचडी-3086 किस्म से प्रति हेक्टेयर 6 से 6.5 टन तक पैदावार मिलती है.

नई किस्मों को मिला लाइसेंस

सामान्य तौर पर अच्छी उपज वाले गेंहू की किस्मों की ऊंचाई लगभग 90 से 95 सेंटीमीटर होती है. इस वजह से लंबी होने के कारण उनकी बालियों में अच्छे से अनाज भर जाता है. जिस करण उनके झुकने का खतरा बना रहता है. वहीं एचडी-3410 जिसे साल 2022 में जारी किया गया था, उसकी ऊंचाई करीब 100 से 105 सेंटीमीटर होती है. इस किस्म से प्रति हेल्तेय्र के हिसाब से 7.5 टन की उपज मिलती है. लेकिन बात तीसरी किस्म यानि कि एचडी-3385 की हो तो, इस किस्म से काफी ज्यादा उपज मिलने की उम्मीद जताई जा रही है. वहीं एआरआई ने एचडी-3385 जो किसानों और पौधों की किस्मों के पीपीवीएफआरए के संरक्षण के साथ रजिस्ट्रेशन किया है. साथ ही इसने डीसी एम श्रीरा का किस्म का लाइसेंस भी जारी किया है. ये भी पढ़ें: गेहूं की उन्नत किस्में, जानिए बुआई का समय, पैदावार क्षमता एवं अन्य विवरण

कम किये जा सकते हैं आटे के रेट

एक्सपर्ट्स की मानें तो अगर किसानों ने गेहूं की इन नई किस्मों का इस्तेमाल खेती करने में किया तो, गर्मी और लू लगने का डर इन फसलों को नहीं होगा. साथी ही ना तो इसकी गुणवत्ता बिगड़ेगी और ना ही उपज खराब होगी. जिस वजह से गेहूं और आटे दोनों के बढ़ते हुए दामों को कंट्रोल किया जा सकता है.
गेहूं की यह नई किस्म मोटापे और डायबिटीज के लिए रामबाण साबित होगी

गेहूं की यह नई किस्म मोटापे और डायबिटीज के लिए रामबाण साबित होगी

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के प्लांट ब्रीडिंग जेनेटिक्स डिपार्टमेंट ने गेंहू की PBW RS1 किस्म को विकसित किया है। इससे किसानों को कम लागत। यह किस्म मोटापे और शुगर के इंसुलेशन के स्तर को बढ़ने नहीं देती है। यह किस्म हमारे शरीर के लिए काफी फायदेमंद साबित होगी। गेंहू रबी सीजन की एक सबसे प्रमुख फसल है। साथ ही, यह खाने के मकसद से काफी पौष्टिक अनाज है। इसको अधिकांश लोग आहार के रूप में उपयोग किया जाता है। ज्यादातर लोग गेंहू के आटे से निर्मित रोटियों का सेवन करते हैं। किसान गेंहू की फसल से काफी अच्छी आमदनी भी कर लेते हैं। साथ ही, लुधियाना स्थित पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के प्लांट ब्रीडिंग एंड जेनेटिक्स डिपार्टमेंट ने गेहूं की एक ऐसी किस्म तैयार की है, जो मोटापे एवं शुगर के इन्सुलिन स्तर को बढ़ने नहीं देगी। इस वजह से गेहूं की ये किस्म सेहत के लिए काफी लाभदायक साबित होगी। इस बार रबी के सीजन में किसानों को यह बीज लगाने के लिए प्रदान किया जाएगा। साथ ही, इसकी फसल को किस तरह तैयार करना है, इसका प्रशिक्षण भी किसान भाइयों को दिया जाएगा।

गेहूं की PBW RS1 किस्म कितने समय में तैयार होती है

सामान्य तौर पर आपने सुना होगा कि जो भी लोग मोटापे से ग्रसित होते हैं, उन्हें गेहूं का सेवन करने के लिए डॉक्टर मना कर देते हैं। परंतु, पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के प्लांट ब्रीडिंग एंड जेनेटिक्स डिपार्टमेंट के कृषि वैज्ञानिकों ने लगभग 8 से 10 साल में गेहूं की बहुत सी किस्मों पर शोध कर के PBW RS1 किस्म तैयार किया है, जिसको खाने से अब डॉक्टर भी मना नहीं करेंगे। क्योंकि गेहूं की ये नई किस्म मोटापे को रोकने में सहायता करेगी।

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PBW RS1 गेहूं के क्या-क्या लाभ हैं

कृषि वैज्ञानिकों द्वारा गेहूं की ये जो स्पेशल किस्म विकसित की है इसके अनेकों लाभ हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी ही फायदेमंद साबित होगा। इस गेहूं का नियमित सेवन करने से मोटापे एवं शुगर जैसी समस्या पर काबू पाया जा सकता है। इस गेहूं की किस्म में न्यूट्रा सिटिकल वैल्यूज अधिक हैं। इसमें रेजिस्टेंस स्टार्च का कॉन्टेंट भी उपलब्ध है।

विकसित की गई गेहूं की यह नवीन किस्म 2024 अप्रैल माह के पश्चात बाजार में मिलेगी

इसके दाने डायबिटिक मरीजों के लिए भी काफी लाभकारी साबित होंगे। यह फाइबर की भांति शीघ्र ही डाइजेस्ट हो जाएगी। यह गेहूं 2024 अप्रैल महीने के बाद से बाजार में मौजूद रहेगी। वहीं, इस नए बीज की फसल तो कम होगी, परंतु बाजार में इसका भाव ज्यादा मिलेगा।
खजूर की खेती के लिए सरकार दे रही है सब्सिडी , किसान  कमा सकते है अब ज्यादा मुनाफा

खजूर की खेती के लिए सरकार दे रही है सब्सिडी , किसान कमा सकते है अब ज्यादा मुनाफा

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत ,उद्दान विभाग किसानों को खजूर की खेती के लिए सब्सिडी प्रदान कर रही है। इस योजना में 17 जिलों का चयन किया गया है जो, ऑफशॉट और टिश्यू कल्चर तकनीक के जरिये खजूर की खेती करेंगे।  इस योजना में खजूर की खेती करने के लिए किसानों को 75% सब्सिडी प्रदान की जाएगी। इस योजना का मुख्य उद्देश्य किसानों को विभिन्न फसलों के उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करना है। इस कड़ी में राजस्थान सरकार किसानों को सब्सिडी प्रदान कर रही है , ताकि वो कम लागत पर फसल का उत्पादन कर सके। साथ ही सरकार फलो और सब्जियों के लिए भी सब्सिडी प्रदान कर रही है। 

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना बाड़मेर , चूरू , सिरोही , जैसलमेर , श्रीगंगानगर , हनुमानगढ़ , जोधपुर ,पाली , जालोर ,नौगर ,बीकानेर और झुंझुनू जिलों में शुरू की जाएगी। यदि इन जिलों में को किसान खजूर की खेती करता है , तो उसे इस योजना के तहत लाभ प्रदान किया जायेगा। इसमें टिश्यू और ऑफशॉट तकनीक से उत्पादित खजूर की फसल की रोपाई के लिए किसानों को 75% सब्सिडी प्रदान की जाएगी। 

खजूर की खेती के लिए इन तकनीकों का किया जायेगा इस्तेमाल 

खजूर की खेती के लिए टिश्यू कल्चर और ऑफशॉट तकनीक का इस्तेमाल किया जायेगा। इसमें किसानों को 0.5 से 4 हेक्टेयर की खेती के लिए किसानों को अनुदान दिया जायेगा। इन तकनीकों के द्वारा उगाये पौधे से खजूर के बगीचे तैयार किये जाते है। टिश्यू कल्चर तकनीक से उगाये गए पौधे लगाने पर किसानों को 3000 रुपया प्रति पौधा या इकाई लागत 75% अनुदान दिया जायेगा। यदि किसान ऑफशॉट तकनीक से खजूर की खेती करता है तो 1100 रुपया प्रति पौधा का 75% का मूल्य मिलेगा। खजूर के पौधे खरीदने के साथ साथ , खजूर की जड़ो के जमने पर 1500 रुपए का भी 75% मूल्य प्रदान किया जायेगा। 

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प्रति हेक्टेयर में खजूर की बुवाई के लिए किसानों को 8  नर पौधे और 148 मादा पौधो की जरुरत पड़ेगी। खजूर की मादा किस्मों में शामिल है : बराही , मेडजूल , खद्राबी , खूनेजी , खलास , सागई और हलावी।  यही नर किस्मों में केवल घानामी और अल इन सिटी पर ही सब्सिडी प्रदान की जाएगी। 

सरकार द्वारा रोपड़ सामग्री पर 70 -75 के साथ साथ एक नया बाग़ स्थापित करने करने के लिए लगभग 3.7 लाख रुपए से भी ज्यादा कीमत आती है। खजूर की फसल में बुवाई के 3 साल बाद फल आना शुरू हो जाते है। खजूर की फसल प्रति हेक्टेयर 3000 किलोग्राम के आस पास उत्पादित कर ली जाती है। किसान ताजे फलो को बेचकर एक हेक्टेयर में 4.8 लाख रुपए आसानी से कमा सकते है।  पांच साल बाद खजूर की फसल की उपज ज्यादा हो जाती है , प्रति हेक्टेयर 10 -12 टन की उपज किसान खजूर की फसल से प्राप्त कर सकता है। बाजार भाव के जरिये किसान प्रति हेक्टेयर में 3.5 लाख रुपया का शुद्ध मुनाफा कमा सकता है। 

किसान नवीन तकनीक से उत्पादन कर आलू, मूली और भिंडी से कमाएं बेहतरीन मुनाफा

किसान नवीन तकनीक से उत्पादन कर आलू, मूली और भिंडी से कमाएं बेहतरीन मुनाफा

फिलहाल मंडी में आलू, भिंडी एवं मूली का समुचित भाव प्राप्त करने के लिए काफी मशक्क्त करनी होती है। अगर किसान नई तकनीक और तरीकों से कृषि करते हैं, तो वह अपनी पैदावार को अन्य देशों में भी भेज करके बेहतरीन मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। वर्तमान दौर में खेती-किसानी ने आधुनिकता की ओर रुख कर लिया है, जिसकी वजह से किसान अपने उत्पादन से मोटी आमदनी भी करते हैं। किसानों को यह बात समझने की बहुत जरूरत है, कि पारंपरिक तौर पर उत्पादन करने की जगह किसान विज्ञान व वैज्ञानिकों की सलाह के अनुसार खेती करें। क्योंकि किसानों की इस पहल से वह कम खर्च करके अच्छा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं, साथ ही, किसानों को नवाचार की अत्यंत आवश्यकता है। अगर न्यूनतम समयावधि के अंतर्गत किसान कृषि जगत में प्रसिद्धि एवं धन अर्जित करना चाहते हैं तो किसानों को बेहद जरूरत है कि वह नवीन रूप से कृषि की दिशा में अग्रसर हों। किसान उन फसलों का उत्पादन करें जो कि बाजार में अपनी मांग रखते हैं साथ ही उनसे अच्छा लाभ भी मिल सके। किसान हरी भिंडी की जगह लाल भिंडी, सफेद मूली के स्थान पर लाल मूली एवं पीले आलू की बजाय नीले आलू का उत्पादन करके किसान अपना खुद का बाजार स्थापित कर सकते हैं। इस बहुरंगी कृषि से किसान बेहद मुनाफा कमा सकते हैं। इसकी वजह यह है, कि इन रंग बिरंगी सब्जियों की मांग बाजार में बहुत ज्यादा रहती है। परंतु फिलहाल भारत में भी सब्जियां केवल खाद्यान का माध्यम नहीं है, वर्तमान में इनकी बढ़ती मांग से किसान सब्जियों को विक्रय कर बहुत मोटा लाभ कमा सकते हैं। इसके अतिरिक्त भी लाल भिंडी में कैल्शियम, जिंक एवं आयरन जैसे तत्व प्रचूर मात्रा में पाए जाते हैं। ऐसे बहुत सारे गुणों से युक्त होने की वजह से बाजार में इस भिंडी का भाव 500 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से अर्जित होता है। यह साधारण सी फसल आपको बेहतरीन मुनाफा प्रदान कर सकती है।
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नीले आलू के उत्पादन से कमाएं मुनाफा

हम सब इस बात से भली भांति परिचित हैं, कि आलू की फसल को सब्जियों का राजा कहा जाता है। इसलिए आलू प्रत्येक रसोई में पाया जाता है, आजतक आपने सफेद या पीले रंग के बारे में सुना होगा और खाए भी होंगे। परंतु फिलहाल बाजार में आपको नीले रंग का आलू भी देखने को मिल जायेगा, बहुत सारे पोषक तत्वों से युक्त है। केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, मेरठ के वैज्ञानिकों ने नीले रंग के आलू की स्वदेशी किस्म को विकसित कर दिया है। इस किस्म को कुफरी नीलकंठ के नाम से जाना जाता है, इस आलू में एंथोसाइनिल एवं एंटी-ऑक्सीडेंट्स भी पाए जाते हैं। एक हैक्टेयर में नीले आलू की बुवाई करने के उपरांत किसान 90 से 100 दिन की समयावधि में तकरीबन 400 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में नीला आलू दोगुने भाव में विक्रय हो बिकता है, इस अनोखी सब्जी के उत्पादन से पूर्व मृदा परीक्षण करके कृषि वैज्ञानिकों से सलाह-जानकारी ले सकते हैं।

लाल मूली के उत्पादन से होगा लाभ

मूली एक ऐसी फसल है,जो कि सभी को बहुत पसंद आती है। मूली का उपयोग घर से लेकर ढाबे तक सलाद के रूप में किया जाता है। परंतु वर्तमान दौर में अन्य सब्जियों की भाँति मूली का रंग भी परिवर्तित हो गया है। आपको बतादें कि आजकल बाजार में लाल रंग की मूली भी उपलब्ध है। लाल रंग की मूली का उत्पादन सर्दियों के दिनों में किया जाता है। जल-निकासी हेतु अनुकूल बलुई-दोमट मिट्टी लाल मूली के उत्पादन हेतु सबसे बेहतरीन मानी जाती है। किसान नर्सरी में भी लाल मूली की पौध को तैयार कर इससे अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं। मूली कतारों में उत्पादित की जाती है। इसकी 40 से 60 दिनों के अंदर किसान कटाई कर सकते हैं, जिससे 54 क्विंटल तक उत्पादन लिया जा सकता है। साधारण-सफेद मूली का बाजार में भाव 50 रुपये प्रति किलोग्राम होता है। परंतु देश-विदेश में लाल रंग की मूली का भाव 500 से 800 रुपये किलोग्राम है।
Rajasthan ka krishi budget: किसानों के लिए बहुत कुछ है राजस्थान के कृषि बजट में

Rajasthan ka krishi budget: किसानों के लिए बहुत कुछ है राजस्थान के कृषि बजट में

13 महीनों तक चले किसान आंदोलन ने यह साबित किया कि अब सरकारों को उनकी तरफ ध्यान देना होगा अन्यथा सरकारें चल नहीं पाएंगी। उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में चल रहे चुनावों के मद्देनजर ही, डैमेज कंट्रोल करने के वास्ते प्रधानमंत्री को तीनों कृषि कानून वापस लेने पड़े। यह वापसी इसलिए हुई क्योंकि देश भर के किसान एकजुट हो गए थे। किसानों की एकता का ही यह परिणाम था कि कानून वापस हुए और अब किसान अपने घरों पर हैं। लेकिन, इसके दूरगामी परिणाम को आपने देखा क्या। इसका दूरगामी परिणाम है, 23 फरवरी को राजस्थान में पेश किया गया कृषि बजट। जी हां, जब से राजस्थान बना है, तब से लेकर अब तक ऐसा कभी नहीं हुआ था कि बजट के बाद कोई कृषि बजट पेश किया गया हो। वह भी अलग से। पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था। राजस्थान में जो कृषि बजट पेश किया गया, वह किसानों के आंदोलन की ही परिणिति है, ऐसा मानना गलत नहीं होगा।

क्या है कृषि बजट में

अब बड़ा सवाल यह है कि इस किसान बजट में है क्या।

दरअसल, इस किसान बजट में कई व्यवस्थाएं दी गई हैं। इन व्यवस्थाओं को गौर से देखें तो समझ जाएंगे कि राजस्थान सरकार किसानों को लेकर कितनी चिंतित है। हां, सरकारी खजाने की अपनी एक सीमा होती है। कृषि ही सब कुछ नहीं होती पर कृषि को तवज्जो देकर सरकार ने एक सकारात्मक रुख का प्रदर्शन तो जरूर किया है। आइए समझें कि इस कृषि बजट में है क्या।

1. मुख्यमंत्री कृषक साथी का बजट बढ़ गया

दरअसल, 2021 में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उद्योग क्षेत्र में चलाई जाने वाली योजना को कृषि क्षेत्र में, थोड़े परिवर्तन के साथ लागू कर दिया। अर्थात, अगर आप किसान हैं और कृषि कार्य करते हुए आपके साथ कोई हादसा हो गया तो इस योजना के तहत आपको दो से 5 लाख रुपये तक की तात्कालिक सहायता मिलेगी। यह योजना कई क्लाउजेज की व्याख्या करती है। जैसे, यदि आपकी एक अंगुली कट जाए तो सरकार आपको 5000 रुपये देगी। दो कट जाए तो 10000 रुपये, तीन कट जाए तो 15000 रुपये और चार कट जाए तो 20000 रुपये का भुगतान करेगी सरकार। ऐसे ही अगर आपकी पांचों अंगुलियां कट जाती हैं तो सरकार आपको 25000 रुपये देगी। इस योजना के लिए बीते साल के बजट में 2000 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई थी। अब इसका दायरा बढ़ाने की गरज से सरकार ने इस योजना के लिए 5000 करोड़ रुपये की धनराशि स्वीकृत की है। धनराशि बढ़ाने को किसानों ने बेहद बढ़िया माना है।

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2. मुख्यमंत्री जैविक कृषि मिशन

कृषि बजट में सरकार ने घोषणा की है कि इसी सत्र से मुख्यमंत्री जैविक खेती मिशन शुरू कर दिया जाएगा। इसके तहत सरकार उन किसानों को ज्यादा लाभ देगी, जो शुद्ध रूप से जैविक केती के लिए तैयार होंगे। इस योजना के तहत, सरकार उन्हें आर्थिक पैकेज तो देगी ही, जरूरत पड़ी तो उनकी फसलों को भी खरीद लेगी। इसके लिए पहले 600 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है। अगले बजट में इस धनराशि को बढ़ाया भी जा सकता है।

3. बीज उत्पादन एवं विपणन तंत्र की घोषणा

इस कृषि बजट में सरकार ने एक ऐसा तंत्र विकसित करने की घोषणा की, जिसके तहत सभी किसानों तक सरकारी योजनाएं पहुंच सकें। खास कर बीज और कृषि के अन्य अवयवों को सरकार एक साथ किसानों तक पहुंचाना चाहती है। सरकार का जोर इस बात पर ज्यादा है कि राज्य के कम से कम दो लाख छोटे किसानों तक मूंग, मोठ और उड़द के प्रमाणित बीजों के मिनी किट्स मुफ्त में उपलब्ध कराए जाएं। इन चीजों के लिए ही बीज उत्पादन एवं विपणन तंत्र की घोषणा की गई है। सरकार एक सिस्टम बनाना चाह रही है जिससे समय पर और सिस्टमेटिक रुप में किसानों तक कृषि संबंधित चीजों की डिलीवरी हो सके। इस किस्म का सिस्टम छत्तीसगढ़ में पहले से चल रहा है।

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4. राजस्थान भूमि उर्वरकता मिशन की घोषणा

इस कृषि बजट में सरकार ने राजस्थान भूमि उर्वरकता मिशन की घोषणा की। इस मिशन के तहत राजस्थान के किसान यह जान सकेंगे कि उनकी जो जमीन है, उसकी उर्वरक क्षमता क्या है। किस किस्म की खेती उन्हें कब और कैसे करनी चाहिए। अभी राजस्थान में सभी किसान परंपरागत खेती कर रहे हैं। इस मिशन के शुरू हो जाने के बाद माना जा रहा है कि खेती कार्य में विविधता आएगी। समय-समय पर जब मिट्टी की जांच होगी तो किसानों को यह एडवाइस भी दिया जाएगा कि इसकी उर्वरकता बढ़ाने के लिए उन्हें क्या करना चाहिए।

5. दूध पर 5 रुपये प्रति लीटर अनुदान

राजस्थान सरकार ने अपने कृषि बजट में यह व्यवस्था की है कि जो भी किसान अपना दूध सहकारी दुग्ध उत्पादक संघों को देंगे, उन्हें 5 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से अनुदान भी मिलेगा। यह व्यवस्था इसलिए की गई है ताकि दूध सहकारी दुग्ध उत्पादक संघों के माध्यम से राजस्थान भर में बिके। 

6. कर्ज की व्यवस्था

इस कृषि बजट में घोषणा की गई है कि सरकार वर्ष 2022 में किसानों को फसली ऋण भी देगी। यह फसली ऋण 20000 करोड़ की लिमिट के भीतर होगी। ऐसे लाभार्थी किसानों की संख्या इस साल के लिए पांच लाख तय की गई है। इतना ही नहीं, जो लोग कृषि कार्य से प्रत्यक्ष रुप से नहीं जुड़े हैं, उन्हें भी कर्ज दिया जाएगा। इस साल ऐसे परिवारों की संख्या एक लाख तय की गई है। कर्ज कितना मिलेगा, यह तय नहीं है पर मिलेगा जरूर। कुल मिलाकर, यह किसानों के भीतर हौसला बुलंद करने वाला बजट है। इसे अगर अमली जामा पहना दिया जाए तो राजस्थान के किसानों की स्थिति बेहद सुदृढ़ हो सकती है। जिस भाव से बजट पेश किया गया है, वह बेहतर है। उसी भाव से इस पर अमल हो तो किसानों का सच में भला हो जाएगा।

दुनिया को दिशा देने वाली हो भारतीय कृषि – तोमर कृषि मंत्री

दुनिया को दिशा देने वाली हो भारतीय कृषि – तोमर कृषि मंत्री

कृषि क्षेत्र में तकनीकों का उपयोग बढ़ाते हुए गांवों में ढांचागत विकास की दिशा में सरकार सतत संलग्नत है। सरकार खेती में रोजगार के अवसर बढाते हुए शिक्षत युवाओं को आकर्षित करना चाहती है ताकि युवाओं का ग्रामीण अंचल से पलायन रोका जा सके। खेती में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और पढ़े-लिखे युवा गांवों में ही रहकर कृषि की ओर आकर्षित होंगे। टेक्नालाजी व इंफ्रास्ट्रक्चर का लाभ किसानों को होगा, साथ ही कृषि के क्षेत्र को और सुधारने में कामयाबी मिलेगी। यह विचार कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (Union Minister of State for Agriculture and Farmer Welfare Narendra Singh Tomar) ने बीते दिनों व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि “जब देश की आजादी के 100 वर्ष पूरे होंगे, यानी आजादी के अमृत काल तक भारतीय कृषि सारी दुनिया को दिशा देने वाली होनी चाहिए। अमृत काल में हिंदुस्तान की कृषि की विश्व प्रशंसा करे, लोग यहां ज्ञान लेने आएं, ऐसा हमारा गौरव हों, विश्व कल्याण की भूमिका निर्वहन करने में भारत समर्थ हो,” ।

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केंद्रीय मंत्री श्री तोमर ने यह बात भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर - ICAR) द्वारा आयोजित व्याख्यान श्रंखला की समापन कड़ी में कही। “प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से उद्बोधन में भी कृषि क्षेत्र को पुनः महत्व दिया है, जो इस क्षेत्र में तब्दीली लाने की उनकी मंशा प्रदर्शित करता है। पीएम ने आह्वान किया था कि किसानों की आय दोगुनी होनी चाहिए, कृषि में टेक्नालाजी का उपयोग व छोटे किसानों की ताकत बढ़नी चाहिए, हमारी खेती आत्मनिर्भर कृषि में तब्दील होनी चाहिए, पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर होना चाहिए, कृषि की योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदर्शिता होनी चाहिए, अनुसंधान बढ़ना चाहिए, किसानों को महंगी फसलों की ओर जाना चाहिए, उत्पादन व उत्पादकता बढ़ने के साथ ही किसानों को उनकी उपज के वाजिब दाम मिलना चाहिए।

पीएम के इस आह्वान पर राज्य सरकारें, किसान भाई-बहन, वैज्ञानिक पूरी ताकत के साथ जुटे हैं और इसमें आईसीएआर (ICAR - Indian Council of Agricultural Research) की भी प्रमुख भूमिका हो रही है। पिछले दिनों में किसानों में एक अलग प्रकार की प्रतिस्पर्धा रही है कि आमदनी कैसे बढ़ाई जाएं, साथ ही पीएम श्री मोदी के आह्वान के बाद कार्पोरेट क्षेत्र को भी लगा कि कृषि में उनका योगदान बढ़ना चाहिए,” उन्होंने कहा। एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड योजना के दिशानिर्देशों का पूरा सरकारी दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें श्री तोमर ने कहा कि “खाद्यान्न की अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ अन्य देशों को भी उपलब्ध करा रहे हैं। यह यात्रा और बढ़े, इसके लिए भारत सरकार प्रयत्नशील है। खेती व किसानों को आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ाना है। 

आईसीएआर व कृषि वैज्ञानिकों ने कृषि के विकास में बहुत अच्छा काम किया है। उनकी कोशिश रही है कि नए बीजों का आविष्कार करें, उन्हें खेतों तक पहुंचाएं, उत्पादकता बढ़े, नई तकनीक विकसित की जाएं और उन्हें किसानों तक पहुंचाया जाएं। जलवायु अनुकूल बीजों की किस्में, फोर्टिफाइड किस्में जारी करना इसमें शामिल हैं। सभी क्षेत्रों में वैज्ञानिकों ने कम समय में अच्छा काम किया, जिसका लाभ देश को मिल रहा है। आईसीएआर बहुत ही महत्वपूर्ण संस्थान हैं, जिसकी भुजाएं देशभर में फैली हुई हैं। कृषि की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संस्थान लगा हुआ है।


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किसानों की माली हालत सुधारना हमारे लिए महत्वपूर्ण है। इसके लिए 6,865 करोड़ रुपये के खर्च से दस हजार नए कृषक उत्पादक संगठन (एफपीओ) बनाना शुरू किया गया है। इनमें से लगभग तीन हजार एफपीओ बन भी चुके हैं। इनके माध्यम से छोटे-छोटे किसान एकजुट होंगे, जिससे खेती का रकबा बढ़ेगा और वे मिलकर तकनीक का उपयोग कर सकेंगे, अच्छे बीज थोक में कम दाम पर खरीदकर इनका उपयोग कर सकेंगे, वे आधुनिक खेती की ओर अग्रसर होंगे, जिससे उनकी ताकत बढ़ेगी और छोटे किसान आत्मनिर्भर बन सकेंगे। 

श्री तोमर ने कहा कि कृषि क्षेत्र में निजी निवेश के लिए सरकार ने एक लाख करोड़ रुपये के इंफ्रास्ट्रक्चर फंड का प्रावधान किया है। साथ ही अन्य संबद्ध क्षेत्रों को मिलाकर डेढ़ लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का फंड तय किया गया है। एग्री इंफ्रा फंड (Agri Infra Fund) के अंतर्गत 14 हजार करोड़ रु. के प्रोजेक्ट आ चुके हैं, जिनमें से 10 हजार करोड़ रु. के स्वीकृत भी हो गए हैं। सिंचाई के साधनों में भी बढ़ोत्तरी हो रही है, जल सीमित है इसलिए सूक्ष्म सिंचाई पर फोकस है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का लाभ आम किसानों तक पहुंचाने के लिए सूक्ष्म सिंचाई कोष 5 हजार करोड़ रु. से बढ़ाकर 10 हजार करोड़ रु. किया गया है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि छोटे किसानों के लिए वरदान साबित हुई है। इस स्कीम में अभी तक लगभग साढ़े 11 करोड़ किसानों के बैंक खातों में 2 लाख करोड़ रु. से ज्यादा राशि जमा कराई जा चुकी हैं। 

Source : PIB (Press Information Bureau) Government of India आजादी का अमृत महोत्सव में केंद्रीय कृषि मंत्री के उद्बोधन के साथ संपन्न हुई आईसीएआर की 75 व्याख्यानों की श्रंखला का पूरा सरकारी दस्तावेज पढ़ने के लिए, यहां क्लिक करें प्रारंभ में आईसीएआर के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक ने स्वागत भाषण दिया। संचालन उप महानिदेशक डा. आर.सी. अग्रवाल ने किया।