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पशुओं का दाना न खा जाएं पेट के कीड़े (Stomach bug)

पशुओं का दाना न खा जाएं पेट के कीड़े (Stomach bug)

पशुओं के पेट में अंतः परजीवी पाए जाते हैं। यह पशु के हिस्से का आहार खा जाते हैं। इसके चलते पशु दुग्ध उत्पादन की दृष्टि से कमजोर पड़ जाता है और शारीरिक विकास दृष्टि से भी कमजोर हो जाता है। यह कई अन्य बीमारियों के कारण भी बनते हैं।

लक्षण

आंतरिक परजीवी से ग्रस्त पशु सामान्यतः बेचैन रहता है। पर्याप्त दाना पानी खिलाने के बाद भी उसका शारीरिक विकास ठीक से नहीं होता। यदि
दुधारू पशु है तो उसके दूध का उत्पादन लगातार गिरता जाता है। प्रभावित पशु मिट्टी खाने लगता है। दीवारें चाटने लगता है। पशु के शरीर की चमक कम हो जाती है। बाल खड़े हो जाते हैं। इसके अलावा कभी कबार पशु के गोबर में रक्त और कीड़े भी दिखते हैं। पशुओं में इन की अधिकता मृत्यु का कारण तक बन सकती है। कई पशुओं में दूध की कमी, पुनः गाभिन होने में देरी, गर्भधारण में परेशानी एवं शारीरिक विकास दर में कमी जैसे लक्षण क्रमियों से ग्रसित होने के कारण बनते हैं। gaay ke rog

कृमि रोग का निदान

कर्मी रोग का परीक्षण सबसे सरलतम गोबर के माध्यम से किया जा सकता है। ब्रज में अनेक वेटरनरी विश्वविद्यालय स्थित है वहां यह परीक्षण 5 से ₹7 में हो जाता है।
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दवाएं

अंतर है पर जीबीओ को खत्म करने के लिए पशु को साल में दो बार पेट के कीड़ों की दवा देनी चाहिए। गाभिन और गैर गाभिन पशुओं को दवा देते समय इस बात का ध्यान रखा जाए कि कौन सी दवा गाभिन पशु के लिए है कौन सी गैर गाभिन पशु के लिए। ट्राई क्लब एंड आजोल गर्भावस्था के लिए सुरक्षित दवा है। इसे रोटी या गुड़ के साथ मुंह से खिलाया जा सकता है। गाय भैंस के लिए इसकी 12 मिलीग्राम मात्रा पशु के प्रति किलो वजन के हिसाब से दी जाती है। बाजार में स्वस्थ पशु के लिए एक संपूर्ण टेबलेट आती है। दूसरी दवा ऑक्सीक्लोजानाइड है। इसलिए दवा रेड फॉक्स नइट गर्भस्थ पशु के लिए भी सुरक्षित है और संपूर्ण विकसित पशु के लिए इसकी भी एक खुराक ही आती है। आम तौर पर प्रचलित अल्बेंडाजोल गोली भी बहुतायत में प्रयोग की जाती है।
अपने दुधारू पशुओं को पिलाएं सरसों का तेल, रहेंगे स्वस्थ व बढ़ेगी दूध देने की मात्रा

अपने दुधारू पशुओं को पिलाएं सरसों का तेल, रहेंगे स्वस्थ व बढ़ेगी दूध देने की मात्रा

पशुपालन या डेयरी व्यवसाय एक अच्छा व्यवसाय माना जाता है। पशुपालन करके लोग को अच्छा लाभ मिल रहा हैं। गाय भैंस के दूध से पनीर मक्खन आदि सामग्री बनती है, जिनका बाजार में काफी अच्छा पैसा मिलता है। कई बार आपके पशु बीमार हो जाते हैं, जिसके कारण उनमें दूध देने की क्षमता कम हो जाती है। आपका पशु स्वस्थ होगा तभी वह अच्छी मात्रा में दूध दे सकेगा। पशु के अच्छे स्वास्थ्य के लिए पशु के अच्छे आहार का होना जरूरी है।


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सरसों का तेल ऊर्जा बढ़ाने में सहायक

डॉक्टर के अनुसार, जब आपके पशु बीमार हो तो उन्हें सरसों का तेल पिलाना चाहिए। क्योंकि सरसों के तेल में वसा की मात्रा अधिक होती है  तथा वह उनके शरीर को पर्याप्त ऊर्जा व ताक़त प्रदान करती है‌।

पशुओं को कब देना चाहिए सरसों का तेल ?

गाय भैंस के बच्चे होने के बाद भी उन्हें सरसों का तेल पिलाया जा सकता है, जिससे कि उनके अंदर आई हुई कमजोरी को दूर किया जा सके। पशु चिकित्सकों के अनुसार, गर्मियों में पशुओं को सरसों का तेल पिलाना चाहिए, जिससे कि लू लगने की संभावना कम हो तथा उनमें लगातार ऊर्जा का संचार होता रहे। इसके अलावा, सर्दियों में भी पशुओं को सरसों का तेल पिलाया जा सकता है, जिससे कि उनके अंदर गर्मी बनी रहे।

पशुओं के दूध देने की बढ़ेगी क्षमता

सरसों का तेल पिलाने से पशुओं में पाचन प्रक्रिया दुरूश्त रहती है। इससे पशु को एक अच्छा आहार मिलता है। पशु का स्वास्थ्य सही रहता है तथा स्वस्थ दुधारू पशु, दूध भी अच्छी मात्रा में देते हैं।

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क्या पशुओं को रोज पिलाना चाहिए सरसों का तेल ?

पशु चिकित्सकों के अनुसार, रोज सरसों का तेल पिलाना पशुओं के लिए फायदेमंद नहीं होगा। पशुओ को सरसों का तेल तभी देना चाहिए जब वे अस्वस्थ हो, ताकि उनके अंदर ऊर्जा का संचार हो सके।

क्या गैस बनने पर भी पिलाना चाहिए सरसों का तेल ?

यदि आपके पशुओं के पेट में गैस बनी है, तो उन्हें सरसों का तेल अवश्य पिलाना चाहिए। सरसों का तेल पीने से उनका पाचन प्रक्रिया या डाइजेशन सही होगा, जिससे कि वह स्वस्थ रहेंगे।
गाय भैंसों की देखभाल गर्मी के दिनों में कैसे करें (Taking care of cow & buffaloes in summer in Hindi)

गाय भैंसों की देखभाल गर्मी के दिनों में कैसे करें (Taking care of cow & buffaloes in summer in Hindi)

आज हम बात करेंगे, कि बेहद गर्मियों के मौसम में गाय और भैंसों की देखभाल किस तरह से करनी चाहिए। ताकि उनको गर्मी के मौसम में किसी भी तरह का कोई नुकसान ना हो सके और वह किसी भी प्रकार से रोग ग्रस्त ना हो। 

गाय भैंसों की देखभाल गर्मियों के मौसम में

पशुपालन के लिए गर्मी का मौसम बहुत ही नुकसानदायक होता है क्योंकि गर्मियों के मौसम में पशुओं की देखभाल करना बेहद मुश्किल हो जाता है। ऐसे में पशुपालन अपनी कमर कस लेते हैं और अपने पशुओं जैसे: गाय-भैंसों की देखभाल की स्थिति को बनाए रखने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रयास करते हैं ताकि वह गाय-भैंसों को इस भीषण गर्मी के तापमान से बचा सके। गर्मियों के मौसम में वातावरण का तापमान लगभग 42 - 48 °c सेल्सियस तक पहुंच जाता है कभी-कभी और ज्यादा भी हो सकता है। जिसके चलते गर्मी में पशुपालन करते समय पशुओं की विशेष रूप से देखभाल की जरुरत होती है।तापमान के इस दबाव के चलते पशुओं की पाचन प्रणाली तथा दूध उत्पादन में भी काफी बुरा प्रभाव पड़ता है। जब यह पशु नवजात शिशु को जन्म देते हैं, और इस गर्मी के मौसम में उनकी ज़रा भी देखभाल में की गई कमी उनकी जान के लिए घातक साबित हो सकती है।थोड़ी भी लापरवाही नवजात शिशुओं की जान पर बन आती है।

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गर्मियों के मौसम में पशुओं की स्वास्थ्य की देखभाल

गर्मियों के मौसम में  किसी भी स्थिति में पशुओं के स्वास्थ्य के साथ की गई लापरवाही।उनके स्वास्थ्य पर काफी हानिकारक प्रभाव डालती है। जिसके चलते पशु पालन करने वालो का निर्यात का साधन भी बंद हो सकता है ऐसे में पशुपालन को चाहिए कि अपना निर्यात का साधन बनाए रखने के लिए पशुओं की खास देखभाल करें।पशुओं की खास देखभाल करने के लिए निम्न बातों का पूर्ण रुप से ध्यान रखे:

  • सर्वप्रथम पशु पालन करने वाले भाइयों को हरा चारा अधिक से अधिक गर्मियों के मौसम में गाय और भैंसों को देना चाहिए। क्योंकि गाय और भैंस इन हरे चारों को बहुत ही चाव से खाते हैं , हरे चारे में मौजूद 70 से 90% जल की पूर्ण मात्रा होती है जिससे पशुओं के शरीर में जल की पूर्ति होती है।
  • गर्मियों के मौसम में गाय भैंस और अन्य पशुओं को भूख कम लगती हैं अथवा प्यास ज्यादा लगती हैं। ऐसी स्थिति में पशुपालन को दिन में कम से कम 3 बार स्वच्छ और साफ सुथरा पानी गाय ,भैंसों को देना चाहिए। जिसे पीकर उनके शरीर का तापमान पूर्ण रूप से नियंत्रण में रहता है, कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार पानी में थोड़ा सा आटा व नमक मिलाकर पिलाना पशुओं के लिए उपयोगी होता है।शुष्क मौसम के लिए ऐसा करना लाभदायक होता है तथा शरीर में पानी की कमी को पूरा करता है।
  • पशुपालन गर्मियों के दिनों में अपने पशुओं को चारे में एमिनो पाउडर तथा ग्रो बी-प्लेक्स का मिश्रण देते हैं जो पशुओं के लिए बहुत ही उपयोगी होता है।
  • बढ़ती गर्मी के कारण पशुओं को भूख कम लगना शुरू हो जाती है ऐसी स्थिति में पशुपालन उनको ग्रोलिव फोर्ट (Grow live Forte) देते हैं। जिसे खाकर उनके शरीर में भोजन का पूर्ण निर्यात हो सके। गर्मियों के प्रभाव से पशुओं की पाचन प्रणाली पर काफी बुरा असर पड़ता है। ऐसे में ग्रोलिव फोर्ट पशुओं में खुराक की मात्रा को बढ़ाता है।
  • पशुओं से दूध प्राप्त करने के बाद उन्हें हो सके, तो ठंडा पानी पिलाएं ऐसा करने से उनके शरीर में ठंडक पहुंचेगी। तीन से चार बार पशुओं को ताजा ठंडा पानी पिलाना बहुत ही जरूरी है प्रतिदिन गर्मियों के मौसम में पशुपालन को अपने पशुओं को ठंडे पानी से स्नान कराना चाहिए।पशुपालन भैंसों को तीन से चार बार गर्मियों के दिनों मे स्नान कराते हैं तथा गायों को दो बार नहलाते हैं।
  • गर्मियों के मौसम में गाय भैंस आदि पशुओं को खाद पदार्थ जैसे रोटी, आटा ,चावल आदि पशुओं को नहीं खिलाना चाहिए।यह कार्बोहाइड्रेट की अधिकता वाले खाद्य पदार्थ हैं।पशुओं को संतुलित आहार के रूप में चारे तथा दाना जिसकी मात्रा 40 और 60 के बीच की हो आहार के रूप में दें।
  • आने वाली बरसात से पशुओं को बचाने के लिए उनका टीकाकरण जरूर कराएं। टीकाकरण कराने से पशु कई प्रकार की बीमारियां जैसे गलाघोंटू , खुरपका मुंहपका , लंगड़ी बुखार आदि से खुद का बचाव कर सकेंगे। समय-समय पर गाय भैंस पशुओं को एलेक्ट्रल एनर्जी की भी आवश्यकता होती है। ऐसे में इन को समय-समय पर आपको एलेक्ट्रल एनर्जी एनर्जी देनी होगी

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गर्मियों के दिनों में पशु आवास की व्यवस्था

  • गर्मियों के दिनों में गाय और भैंसों के लिए उचित आवास व्यवस्था करनी चाहिए , क्योंकि गर्मियों के दिनों में तापमान तेज होने के कारण भूमि पूरी तरह से गर्म रहती है जिसके चलते उनके शरीर पर काफी बुरा प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे में आपको कुछ सावधानी बरतनी चाहिए यह सावधानियां कुछ इस प्रकार हैं:
  • सर्वप्रथम गर्मियों के दिनों में गाय और भैंसों को हमेशा पेड़ की छांव के नीचे बांधना चाहिए जिससे उनका धूप से बचाव हो सके।
  • जिस भी जगह पर आप अपने पशुओं को बांधे उसकी छत पर आपको सूखी घास या फिर आपको कडबी रखनी चाहिए। ऐसा करने से छत को गर्म होने से पूरी तरह से रोका जा सकता है और छत का तापमान ठंडा रहेगा। पशुपालकों को पशुओं के आवास के लिए अपने पक्के मकानों में इस तरह की व्यवस्था करनी चाहिए।
  • जरूरत से ज्यादा आपको पशुओं को बांधकर नहीं रखना है। जैसे ही शाम होने लगे आपको पशुओं को चरने के लिए छोड़ देना है और जहां भी पशु आवास करते हैं। उन जगहों पर बोरे की छाल लगा देनी चाहिए जिससे कि ताजी और ठंडी हवा उन तक पहुंच सके।
  • यदि पशुपालन करने वाले पशुओं को छायादार वृक्षों के नजदीक पशुशाला का निर्माण करते हैं। तो इससे पशुओं का तापमान संतुलित बनाए रखने में सहायता मिलती हैं।
  • इन आसान तरीकों को अपनाकर नवजात पशु तथा गाय-भैंसों वह दुधारू पशुओं की उच्च ढंग से देखभाल की जा सकती है। तथा इन उपायों के अनुसार गर्मियों के भयानक प्रकोप से पशुओं का बचाया किया जा सकता है और उनसे विभिन्न प्रकार के उत्पादन की भी प्राप्ति की जा सकती है।

हमारी इस पोस्ट में गाय और भैंसों की देखभाल करने की पूर्ण जानकारी दी गई है। कि किस प्रकार गर्मियों के दिनों में उनकी खास देखभाल की जरूरत है ताकि उनको किसी भी तरह की कोई भी परेशानी ना हो और वह ज्यादा से ज्यादा उत्पादन कर सकें। यदि आपको हमारी दी हुई जानकारी अच्छी लगी हो, तो आप हमारी इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।

गंगातीरी गाय कहाँ पाई जाती है और किन विशेषताओं की वजह से जानी जाती है

गंगातीरी गाय कहाँ पाई जाती है और किन विशेषताओं की वजह से जानी जाती है

गंगातीरी गाय की अद्भुत विशेषता के विषय में जानकर आप भौंचक्के हो जाएंगे। यह एक दिन के अंदर दस लीटर से भी अधिक दूध प्रदान करती है। क्या आपने कभी गंगातीरी गाय के विषय में सुना है? यदि आप पशुपालन का व्यवसाय करते होंगे, तो इस गाय के संबंध में आपको भली भांति जानकारी है। दरअसल, यह गाय उत्तर प्रदेश एवं बिहार में काफी मशहूर है। इस गाय की विशेषता के संबंध में जानकर आप पूरी तरह से दंग रह जाएंगे। गंगातीरी गाय रखने वाले लोगों का कहना है, कि यह एक दिन में 10 से 16 लीटर तक दूध प्रदान करती है। इतना ही नहीं, इस गाय की और भी बहुत सारी विशेषताएं हैं, जिसके बारे में हम इस कहानी के जरिए से बताने जा रहे हैं। तो चलिए आज हम इस लेख में गंगातीरी गाय के संबंध में विस्तार पूर्वक जानें। 

गंगातीरी गाय के संबंध में विस्तृत जानकारी

इस प्रजाति की गाय कहाँ कहाँ पाई जाती है

गंगातीरी गाय एक प्रकार से देसी प्रजाति की गाय है। बतादें कि इस नस्ल की गायें अधिकांश उत्तर प्रदेश और बिहार के जनपदों में देखी जाती हैं। यह प्रमुख तौर पर उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर, वाराणसी, गाजीपुर और बलिया तो वहीं बिहार के रोहतास और भोजपुर जनपद के अंतर्गत पाई जाती हैं। उत्तर प्रदेश में गंगातीरी गायों की तादात तकरीबन 2 से 2.5 लाख रुपए तक है। यह गाय भी दूसरी आम गायों की भांति ही दिखती है। परंतु, इसे पहचानना काफी ज्यादा आसान रहता है। गंगातीरी नस्ल की गायें भूरे और सफेद रंग की होती हैं। 

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जानें इस गाय की पहचान किस प्रकार की जाती है

दरअसल, हम पहले भी बता चुके हैं, कि गंगातीरी गाय का रंग भूरा और सफेद होता है। इसके अतिरिक्त इन गायों के सिंघ छोटे व नुकीले होते हैं, जो कि दोनों तरफ से फैले होते हैं। वहीं, इस गाय के कान थोड़ी नीचे की ओर झुके होते हैं। इस प्रजाति के जो बैल होते हैं, उनकी ऊंचाई तकरीबन 142 सेन्टमीटर होती है। वहीं, गाय की ऊंचाई की बात की जाए तो 124 सेन्टीमीटर तक होती है।

गंगातीरी गायों का वजन तकरीबन 235-250 किलो तक रहता है। इस नस्ल की गायें बाजार में बेहद ही महंगी बिकती हैं। इनकी कीमत 40 से 60 हजार रुपये तक होती है। यहां ध्यान देने योग्य जो बात है, वह यह कि इन गायों का ख्याल थोड़ा ज्यादा रखने की आवश्यकता पड़ती है। क्योंकि, पर्याप्त आहार न मिलने की स्थिति में यह गायें बीमार भी हो सकती हैं। इस गाय के दूध में फैट तकरीबन 4.9 प्रतिशत तक पाया जाता है। इसका दूध साधारण गायों के मुकाबले ज्यादा कीमतों पर बिकता है।

जानें कांकरेज नस्ल की गाय की कीमत, पालन का तरीका और विशेषताओं के बारे में

जानें कांकरेज नस्ल की गाय की कीमत, पालन का तरीका और विशेषताओं के बारे में

भारत के अंदर बहुत सारी नस्लों की गाय पाई जाती हैं। प्रत्येक नस्ल की गाय की अपनी अपनी खूबियां होती हैं। इसी कड़ी में आज हम बात करेंगे कांकरेज नस्ल की गाय के बारे में। इस नस्ल की गाय राजस्थान और गुजरात में पाई जाती है, जो कि बहुत ही प्रसिद्ध गाय है। बतादें कि यह एक दिन में 10 से 15 लीटर दूध का उत्पादन करती है। कांकरेज गाय देशी नस्ल की गाय होती है। यह भारत के गुजरात एवं राजस्थान राज्य में पाई जाती है। यह गाय देश में अपनी दूध उत्पादन की क्षमता के लिए काफी मशहूर है। इस नस्ल की गाय दिन में 6 से 10 लीटर दूध देती है। कांकरेज नस्ल की गाय और बैल दोनों की ही बाजार में बहुत मांग है। बतादें कि इनका इस्तेमाल दूध के साथ-साथ कृषि कार्यों के लिए भी किया जाता है। इसे लोकल भाषा में बोनाई, तलबाडा, वागडिया, वागड़ और नागर आदि नामों से जाना जाता है। चलिए आज हम आपको कांकरेज नस्ल की इस गाय से संबंधित विशेषताओं के विषय में बताते हैं। 

कांकरेज गाय की कितनी कीमत होती है

आपकी जानकारी के लिए बतादें कि इन गायों की कीमत बाजार में सामान्य तौर पर उम्र और नस्ल के आधार पर निर्धारित की जाती है। बाजार में इस गाय की कीमत 25 हजार रुपये से लेकर 75 हजार रुपये तक की है। बहुत सारे राज्यों में इसकी कीमत और भी अधिक होती है।

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कांकरेज गाय का किस प्रकार पालन किया जाता है

कांकरेज गायों को गर्भ के दौरान विशेष देखभाल की आवश्यकता पड़ती है। इस दौरान इसे रोगों से संरक्षण के लिए वक्त - वक्त पर टीकाकरण की आवश्यकता होती रहती है। इससे बछड़े बेहतर एवं स्वस्थ पैदा होते हैं। साथ ही, दूध की पैदावार भी काफी ज्यादा होती है। 

कांकरेज गाय की खासियतें

कांकरेज नस्ल की गायें एक महीने में औसतन 1730 लीटर तक दूध प्रदान करती है। इस गाय के दूध में वसा 2.9 और 4.2 प्रतिशत के मध्य विघमान रहता है। इसके वयस्क बच्चों की लंबाई 25 सेमी है, जबकि वयस्क बैल की औसत ऊंचाई 158 सेमी होती है। इन गायों का वजन 320 से 370 किलोग्राम तक होता है। कांकरेज नस्ल के मवेशी सिल्वर-ग्रे एवं आयरन ग्रे रंग के होते हैं। इसका खान-पान बेहद ही अच्छा होता है। इन गायों के लिए पर्याप्त चारे, पानी, खली और चोकर की बेहद जरूरत होती है।

पशुपालक इस नस्ल की गाय से 800 लीटर दूध प्राप्त कर सकते हैं

पशुपालक इस नस्ल की गाय से 800 लीटर दूध प्राप्त कर सकते हैं

किसान भाइयों यदि आप पशुपालन करने का विचार कर रहे हो और एक बेहतरीन नस्ल की गाय की खोज कर रहे हैं, तो आपके लिए देसी नस्ल की डांगी गाय सबसे बेहतरीन विकल्प है। इस लेख में जानें डांगी गाय की पहचान और बाकी बहुत सारी महत्वपूर्ण जानकारियां। किसान भाइयों के समीप अपनी आमदनी को बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार के बेहतरीन पशु उपलब्ध होते हैं, जो उन्हें प्रति माह अच्छी आय करके दे सकते हैं। यदि आप पशुपालक हैं, परंतु आपका पशु आपको कुछ ज्यादा लाभ नहीं दे रहा है, तो चिंतित बिल्कुल न हों। आज हम आपको आगे इस लेख में ऐसे पशु की जानकारी देंगे, जिसके पालन से आप कुछ ही माह में धनवान बन सकते हैं। दरअसल, हम जिस पशु के विषय चर्चा कर रहे हैं, उसका नाम डांगी गाय है। बतादें कि डांगी गाय आज के दौर में बाकी पशुओं के मुकाबले में ज्यादा मुनाफा कमा कर देती है। इस वहज से भारतीय बाजार में भी इसकी सर्वाधिक मांग है। 

डांगी नस्ल की गाय कहाँ-कहाँ पाई जाती है

जानकारी के लिए बतादें, कि यह गाय देसी नस्ल की डांगी है, जो कि मुख्यतः गुजरात के डांग, महाराष्ट्र के ठाणे, नासिक, अहमदनगर एवं हरियाणा के करनाल एवं रोहतक में अधिकांश पाई जाती है। इस गाय को भिन्न-भिन्न जगहों पर विभिन्न नामों से भी जाना जाता है। हालाँकि, गुजरात में इस गाय को डांग के नाम से जाना जाता है। किसानों व पशुपालकों ने बताया है, कि यह गाय बाकी मवेशियों के मुकाबले में तीव्रता से कार्य करती है। इसके अतिरिक्त यह पशु काफी शांत स्वभाव एवं शक्तिशाली होते हैं। 

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डांगी गाय कितना दूध देने की क्षमता रखती है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इस देसी नस्ल की गाय के औसतन दूध देने की क्षमता एक ब्यांत में तकरीबन 430 लीटर तक दूध देती है। वहीं, यदि आप डांगी गाय की बेहतर ढ़ंग से देखभाल करते हैं, तो इससे आप लगभग 800 लीटर तक दूध प्राप्त कर सकते हैं। 

डांगी गाय की क्या पहचान होती है

यदि आप इस गाय की पहचान नहीं कर पाते हैं, तो घबराएं नहीं इसके लिए आपको बस कुछ बातों को ध्यान रखना होगा। डांगी गाय की ऊंचाई अनुमान 113 सेमी एवं साथ ही इस नस्ल के बैल की ऊंचाई 117 सेमी तक होती है। इनका सफेद रंग होता है साथ ही इनके शरीर पर लाल अथवा फिर काले धब्बे दिखाई देंगे। साथ ही, यदि हम इनके सींग की बात करें, तो इनके सींग छोटे मतलब कि 12 से 15 सेमी एवं नुकीले सिरे वाले मोटे आकार के होते हैं। 

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इसके अतिरिक्त डांगी गायों का माथा थोड़ा बाहर की ओर निकला होता है और इनका कूबड़ हद से काफी ज्यादा उभरा हुआ होता है। गर्दन छोटी और मोटी होती है। अगर आप डांगी गाय की त्वचा को देखेंगे तो यह बेहद ही चमकदार व मुलायम होती है। इसकी त्वचा पर काफी ज्यादा बाल होते हैं। इनके कान आकार में छोटे होते है और अंदर से यह काले रंग के होते हैं।

गो-पालकों के लिए अच्छी खबर, देसी गाय खरीदने पर इस राज्य में मिलेंगे 25000 रुपए

गो-पालकों के लिए अच्छी खबर, देसी गाय खरीदने पर इस राज्य में मिलेंगे 25000 रुपए

चंडीगढ़। हरियाणा से गोपालकों के लिए एक अच्छी खबर आ रही है। हरियाणा सरकार ने एक देसी गाय खरीदने पर किसान को 25000 रुपए की सब्सिडी देने की घोषणा की है। 

प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए सबसे बड़ा फैसला लिया गया है। हरियाणा सरकार के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने एक देसी गाय की खरीद पर किसान को 25 हजार रुपए देने का फैसला लिया है। 

साथ ही किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए जीवामृत का घोल तैयार करने के लिए चार बड़े ड्रम निःशुल्क दिए जाएंगे। हरियाणा राज्य इस तरह की घोषणा करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है।

पीएम की मुहिम को सफल बनाने का प्रयास

- हरियाणा सरकार द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नेचुरल फार्मिंग वाली मुहिम को सफल बनाने का प्रयास किया जा रहा है। इससे जहरीले केमिकल वाली खेती पर अंकुश लग सके।

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50 हजार एकड़ भूमि में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने का लक्ष्य

- मनोहरलाल खट्टर सरकार ने प्रदेश की 50 हजार एकड़ भूमि में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखा गया है। इस योजना के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए प्रत्येक ब्लॉक में 'खेत प्रदर्शनी' कार्यक्रम लगाए जाएंगे, 

जिससे दूसरे किसान भी जहरीली खेती करने से तौबा करें और जैविक खेती की ओर रुख करें। प्राकृतिक खेती से किसानों की आमदनी में इजाफा होगा और लोगों का स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा।

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इस तरह किया गया है एलान

- हरियाणा के करनाल स्थित डॉ. मंगलसैन ऑडिटोरियम में प्राकृतिक खेती पर राज्यस्तरीय समीक्षा बैठक का आयोजन किया गया। 

बैठक में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि पोर्टल पर रजिस्टर्ड 2 से 5 एकड़ भूमि वाले किसानों को स्वेच्छा से प्राकृतिक खेती अपनाने की अपील की गई है। 

ऐसे सभी किसानों को देसी गाय खरीदने के लिए 50 प्रतिशत सब्सिडी देने का प्रावधान तय किया गया है। सीएम ने कृषि वैज्ञानिकों से सीधा संवाद किया और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को जागरूक करने की बात कही। और जिम्मेदार अधिकारियों को इस संबंध में आवश्यक निर्देश भी दिए। ------ लोकेन्द्र नरवार

देसी और जर्सी गाय में अंतर (Difference between desi cow and jersey cow in Hindi)

देसी और जर्सी गाय में अंतर (Difference between desi cow and jersey cow in Hindi)

2021-22 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार विश्व के कुल दुग्ध उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 23% है और वर्तमान में भारत में 209 मिलियन टन दूध का उत्पादन किया जाता है, जो कि प्रतिवर्ष 6% की वृद्धि दर से बढ़ रहा है। 

भारतीय किसानों के लिए खेती के साथ ही दुग्ध उत्पादन से प्राप्त आय जीवन यापन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। भारत को विश्व दुग्ध उत्पादन में पहले स्थान तक पहुंचाने में गायों की अलग-अलग प्रजातियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 

हालांकि, उत्तरी भारतीय राज्यों में भैंस से प्राप्त होने वाली दूध की उत्पादकता गाय की तुलना में अधिक है, परंतु मध्य भारत वाले राज्यों में भैंस की तुलना में गाय का पालन अधिक किया जाता है। 

भारत में पाई जाने वाली गायों की सभी नस्लों को दो मुख्य भागों में बांटा जा सकता है, जिन्हें देसी गाय (देशी गाय - Desi or deshi cow - Indegenous or Native cow variety of India) और जर्सी गाय (Jersey Cow / jarsee gaay) की कैटेगरी में वर्गीकृत किया जा सकता है।

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क्या है देसी और जर्सी गाय में अंतर ? (Difference between desi cow and jersey cow)

वैसे तो सभी गायों की श्रेणी को अलग-अलग नस्लों में बांटे, तो इन में अंतर करना बहुत ही आसान होता है।

  • देसी गाय की विशेषताएं एवं पहचान के लक्षण :

भारत में पाई जाने वाली देसी गायें मुख्यतः बीटा केसीन (Beta Casein) वाले दूध का उत्पादन करती है, इस दूध में A2-बीटा प्रोटीन पाया जाता है।

देसी गायों में एक बड़ा कूबड़ होता है, साथ ही इनकी गर्दन लंबी होती है और इनके सींग मुड़े हुए रहते है।

एक देसी गाय से एक दिन में, दस से बीस लीटर दूध प्राप्त किया जा सकता है।

प्राचीन काल से ग्रामीण किसानों के द्वारा देसी गायों का इस्तेमाल कई स्वास्थ्यवर्धक फायदों को मद्देनजर रखते हुए किया जा रहा है, क्योंकि देसी गाय के दूध में बेहतरीन गुणवत्ता वाले विटामिन के साथ ही शारीरिक लाभ प्रदान करने वाला गुड कोलेस्ट्रोल (Good cholesterol) और दूसरे कई सूक्ष्म पोषक तत्व पाए जाते हैं।

देसी गायों की एक और खास बात यह है कि इन की रोग प्रतिरोधक क्षमता जर्सी गायों की तुलना में अधिक होती है और नई पशुजन्य बीमारियों का संक्रमण देसी गायों में बहुत ही कम देखने को मिलता है।

देसी गायें किसी भी गंदगी वाली जगह पर बैठने से परहेज करती हैं और खुद को पूरी तरीके से स्वच्छ रखने की कोशिश करती हैं।

इसके अलावा इनके दूध में हल्का पीलापन पाया जाता है और इनका दूध बहुत ही गाढ़ा होता है, जिससे इस दूध से अधिक घी और अधिक दही प्राप्त किया जा सकता है।

देसी गाय से प्राप्त होने वाले घी से हमारे शरीर में ऊर्जा स्तर बढ़ने के अलावा आंखों की देखने की क्षमता बेहतर होती है, साथ ही शरीर में आई विटामिन A, D, E और K की कमी की पूर्ति की जा सकती है। पशु विज्ञान के अनुसार देसी गाय के घी से मानसिक सेहत पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

हालांकि पिछले कुछ समय से किसान भाई, देसी गायों के पालन में होने वाले अधिक खर्चे से बचने के लिए दूसरी प्रजाति की गायों की तरह फोकस कर रहे है।

यदि बात करें देसी गाय की अलग-अलग नस्लों की, तो इनमें मुख्यतया गिर, राठी, रेड सिंधी और साहिवाल नस्ल को शामिल किया जाता है।

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  • जर्सी या हाइब्रिड गायों की विशेषता और पहचान के लक्षण :

कई साधारण विदेशी नस्लों और सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक विधि की मदद से की गई ब्रीडिंग से तैयार, हाइब्रिड या विदेशी गायों को भारत में जर्सी श्रेणी की गाय से ज्यादा पहचान मिली है।

जर्सी गाय से प्राप्त होने वाले दूध में A1 और A2 दोनों प्रकार के बीटा केसीन प्राप्त होते है, जो कि हमारे शरीर में विटामिन और एंजाइम की कमी को दूर करने में मददगार साबित होते है।

हाइब्रिड गायों को आसानी से पहचानने के कुछ लक्षण होते है, जैसे कि इनमें किसी प्रकार का कोई कूबड़ नहीं होता है और इनकी गर्दन देसी गायों की तुलना में छोटी होती है, साथ ही इनके सिर पर उगने वाले सींग या तो होते ही नहीं या फिर उनका आकर बहुत छोटा होती है।

किसान भाइयों की नजर में जर्सी गायों का महत्व इस बात से है कि एक जर्सी गाय एक दिन में 30 से 35 लीटर तक दूध दे सकती है, हालांकि इस नस्ल की गायों से प्राप्त होने वाला दूध, पोषक तत्वों की मात्रा में देसी गायों की तुलना में कम गुणवत्ता वाला होता है और इसके स्वास्थ्य लाभ भी कम होते हैं।

न्यूजीलैंड में काम कर रही पशु विज्ञान से जुड़ी एक संस्थान के अनुसार, हाइब्रिड नस्ल की गाय से प्राप्त होने वाले उत्पादों के इस्तेमाल से उच्च रक्तचाप और डायबिटीज ऐसी समस्या होने के अलावा, बुढ़ापे में मानसिक अशांति जैसी बीमारियां होने का खतरा भी रहता है।

भारत में पाई जाने वाली ऐसे ही कई हाइब्रिड गायें अनेक प्रकार की पशुजन्य बीमारियों की आसानी से शिकार हो जाती हैं, क्योंकि इन गायों का शरीर भारतीय जलवायु के अनुसार पूरी तरीके से ढला हुआ नहीं है, इसीलिए इन्हें भारतीय उपमहाद्वीप में होने वाली बीमारियां बहुत ही तेजी से ग्रसित कर सकती है।

जर्सी या हाइब्रिड गाय कैटेगरी की लगभग सभी गायें कम चारा खाती है, इसी वजह से इनको पालने में आने वाली लागत भी कम होती है।

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उत्तरी भारत के राज्यों में मुख्यतः हाइब्रिड किस्म की गाय की जर्सी नस्ल का पालन किया जाता है, परन्तु उत्तरी पूर्वी राज्यों जैसे कि आसाम, मणिपुर, सिक्किम में तथा एवं दक्षिण के कुछ राज्यों में शंकर किस्म की कुछ अन्य गाय की नस्लों का पालन भी किया जा रहा है, जिनमें होल्सटीन (Holstein) तथा आयरशिर (Ayrshire) प्रमुख है। 

भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के द्वारा गठित की गई एक कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार, देसी गायों को पालने वाले किसान भाइयों को समय समय पर टीकाकरण की आवश्यकता होती है, जबकि हाइब्रिड नस्ल की गायें कम टीकाकरण के बावजूद भी अच्छी उत्पादकता प्रदान कर सकती है।

पशु विज्ञान से जुड़े वैज्ञानिकों के अनुसार गिर जैसी देसी नस्ल की गाय में पाए जाने वाले कूबड़ की वजह से उनके दूध में पाए जाने वाले पोषक तत्व अधिक होते हैं, क्योंकि, यह कूबड़ सूरज से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को अपने अंदर संचित कर लेता है, साथ ही विटामिन-डी (Vitamin-D) को भी अवशोषित कर लेता है। 

इस नस्ल की गायों में पाई जाने वाली कुछ विशेष प्रकार की शिराएं, इस संचित विटामिन डी को गाय के दूध में पहुंचा देती है और अब प्राप्त हुआ यह दूध हमारे शरीर के लिए एक प्रतिरोधक क्षमता बूस्टर के रूप में काम करता है। वहीं, विदेशी या हाइब्रिड नस्ल की गायों में कूबड़ ना होने की वजह से उनके दूध में पोषक तत्वों की कमी पाई जाती है।

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पिछले कुछ समय से दूध उत्पादन मार्केट में आई नई कंपनियां देसी गायों की तुलना में जर्सी गाय के पालन के लिए किसानों को ज्यादा प्रोत्साहित कर रही है, क्योंकि इससे उन्हें कम लागत पर दूध की अधिक उत्पादकता प्राप्त होती है।

लेकिन किसान भाइयों को ध्यान रखना चाहिए कि यदि उन्हें अपने लिए या अपने परिवार के सदस्यों के लिए गायों से दूध और घी प्राप्त करना है, तो उन्हें देसी नस्ल की गायों का पालन करना चाहिए और यदि आपको दूध को बेचकर केवल मुनाफा कमाना है, तो आप भी हाइब्रिड नस्ल की गाय पाल सकते है।