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महंगाई

फसलों पर गर्मी नहीं बरपा पाएगी सितम, गेहूं की नई किस्मों से निकाला हल

फसलों पर गर्मी नहीं बरपा पाएगी सितम, गेहूं की नई किस्मों से निकाला हल

फरवरी के महीने में ही बढ़ते तापमान ने किसानों की टेंशन बढ़ा दी है. अब ऐसे में फसलों के बर्बाद होने के अनुमान के बीच एक राहत भरी खबर किसानों के माथे से चिंता की लकीर हटा देगी. बदलते मौसम और बढ़ते तापमान से ना सिर्फ किसान बल्कि सरकार की भी चिंता का ग्राफ ऊपर है. इस साल की भयानक गर्मी की वजह से कहीं पिछले साल की तरह भी गेंहूं की फसल खराब ना हो जाए, इस बात का डर किसानों बुरी तरह से सता रहा है. ऐसे में सरकार को भी यही लग रहा है कि, अगर तापमान की वजह से गेहूं की क्वालिटी में फर्क पड़ा, तो इससे उत्पादन भी प्रभावित हो जाएगा. जिस वजह से आटे की कीमत जहां कम हो वाली थी, उसकी जगह और भी बढ़ जाएगी. जिससे महंगाई का बेलगाम होना भी लाजमी है. आपको बता दें कि, लगातार बढ़ते तापमान पर नजर रखने के लिए केंद्र सरकार ने एक कमेटी का गठन किया था. इन सब के बीच अब सरकार के साथ साथ किसानों को चिंता करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने वो कर दिखाया है, जो किसी ने भी सोचा भी नहीं था. दरअसल आईसीएआर ने गेहूं की तीन ऐसी किस्म को बनाया है, जो गर्मियों का सीजन आने से पहले ही पककर तैयार हो जाएंगी. यानि के सर्दी का सीजन खत्म होने तक फसल तैयार हो जाएगी. जिसे होली आने से पहले ही काट लिया जाएगा. इतना ही नहीं आईसीएआर के साइंटिस्टो का कहना है कि, गेहूं की ये सभी किस्में विकसित करने का मुख्य कारण बीट-द हीट समाधान के तहत आगे बढ़ाना है.

पांच से छह महीनों में तैयार होती है फसलें

देखा जाए तो आमतौर पर फसलों के तैयार होने में करीब पांच से छह महीने यानि की 140 से 150 दिनों के बीच का समय लगता है. नवंबर के महीने में सबसे ज्यादा गेहूं की बुवाई उत्तर प्रदेश में की जाती है, इसके अलावा नवंबर के महीने के बीच में धान, कपास और सोयाबीन की कटाई मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, एमपी और राजस्थान में होती है. इन फसलों की कटाई के बाद किसान गेहूं की बुवाई करते हैं. ठीक इसी तरह युपू में दूसरी छमाही और बिहार में धान और गन्ना की फसल की कटाई के बाद ही गेहूं की बुवाई शुरू की जाती है.

महीने के आखिर तक हो सकती है कटाई

साइंटिस्टो के मुताबिक गेहूं की नई तीन किस्मों की बुवाई अगर किसानों ने 20 अक्टूबर से शुरू की तो, गर्मी आने से पहले ही गेहूं की फसल पककर काटने लायक तैयार हो जाएगी. इसका मतलब अगर नई किस्में फसलों को झुलसा देने वाली गर्मी के कांटेक्ट में नहीं आ पाएंगी, जानकारी के मुताबिक मार्च महीने के आखिरी हफ्ते तक इन किस्मों में गेहूं में दाने भरने का काम पूरा कर लिया जाता है. इनकी कटाई की बात करें तो महीने के अंत तक इनकी कटाई आसानी से की जा सकेगी. ये भी पढ़ें: गेहूं पर गर्मी पड़ सकती है भारी, उत्पादन पर पड़ेगा असर

जानिए कितनी मिलती है पैदावार

आईएआरआई के साइंटिस्ट ने ये ख़ास गेहूं की तीन किस्में विकसित की हैं. इन किस्मों में ऐसे सभी जीन शामिल हैं, जो फसल को समय से पहले फूल आने और जल्दी बढ़ने में मदद करेंगे. इसकी पहली किस्म का नाम एचडीसीएसडब्लू-18 रखा गया है. इस किस्म को सबसे पहले साल 2016  में ऑफिशियली तौर पर अधिसूचित किया गया था. एचडी-2967 और एचडी-3086 की किस्म के मुकाबले यह ज्यादा उपज देने में सक्षम है. एचडीसीएसडब्लू-18 की मदद से किसान प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सात टन से ज्यादा गेहूं की उपज पा सकते हैं. वहीं पहले से मौजूद एचडी-2967 और एचडी-3086 किस्म से प्रति हेक्टेयर 6 से 6.5 टन तक पैदावार मिलती है.

नई किस्मों को मिला लाइसेंस

सामान्य तौर पर अच्छी उपज वाले गेंहू की किस्मों की ऊंचाई लगभग 90 से 95 सेंटीमीटर होती है. इस वजह से लंबी होने के कारण उनकी बालियों में अच्छे से अनाज भर जाता है. जिस करण उनके झुकने का खतरा बना रहता है. वहीं एचडी-3410 जिसे साल 2022 में जारी किया गया था, उसकी ऊंचाई करीब 100 से 105 सेंटीमीटर होती है. इस किस्म से प्रति हेल्तेय्र के हिसाब से 7.5 टन की उपज मिलती है. लेकिन बात तीसरी किस्म यानि कि एचडी-3385 की हो तो, इस किस्म से काफी ज्यादा उपज मिलने की उम्मीद जताई जा रही है. वहीं एआरआई ने एचडी-3385 जो किसानों और पौधों की किस्मों के पीपीवीएफआरए के संरक्षण के साथ रजिस्ट्रेशन किया है. साथ ही इसने डीसी एम श्रीरा का किस्म का लाइसेंस भी जारी किया है. ये भी पढ़ें: गेहूं की उन्नत किस्में, जानिए बुआई का समय, पैदावार क्षमता एवं अन्य विवरण

कम किये जा सकते हैं आटे के रेट

एक्सपर्ट्स की मानें तो अगर किसानों ने गेहूं की इन नई किस्मों का इस्तेमाल खेती करने में किया तो, गर्मी और लू लगने का डर इन फसलों को नहीं होगा. साथी ही ना तो इसकी गुणवत्ता बिगड़ेगी और ना ही उपज खराब होगी. जिस वजह से गेहूं और आटे दोनों के बढ़ते हुए दामों को कंट्रोल किया जा सकता है.
इस वजह से लहसुन की कीमतों में आया जबरदस्त उछाल

इस वजह से लहसुन की कीमतों में आया जबरदस्त उछाल

आजकल सब्जी, मसाले और अनाजों की कीमतें सातवें आसमान पर हैं। विगत वर्ष लहसुन का अच्छा-खासा उत्पादन हुआ था। इसकी वजह से होलसेल मार्केट में इसकी काफी कीमत गिर गई। ऐसी स्थिति में किसान फसल पर किया गया खर्चा तक भी नहीं निकाल पाए। भारत में महंगाई बिल्कुल भी कम होने का नाम नहीं ले रही है। टमाटर की भाँति वर्तमान में भी लहसुन का भाव 170 रुपये किलो के पार ही है। बहुत सारे शहरों में तो इसकी कीमत 180 रुपये किलो के आसपास पहुंच चुकी है। पटना में अभी एक किलो लहसुन का भाव 172 रुपये है। साथ ही, कोलकता में यह 178 रुपये किलो बिक्रय किया रहा है। जबकि, तीन से चार महीने पहले यह बेहद सस्ता था। मार्च महीने तक रिटेल बाजार में यह 60 से 80 रुपये किलो बिक रहा था। परंतु, मानसून के दस्तक देने के साथ ही इसके दाम भी महंगे हो गए।

उत्तर प्रदेश इतने प्रतिशत लहसुन की पैदावार करता है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि मध्य प्रदेश के पश्चात राजस्थान एवं उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा लहसुन की खेती होती है। ये तीनों राज्य मिलकर 85 प्रतिशत लहसुन का उत्पादन करते हैं। राजस्थान 16.81 प्रतिशत लहसुन का उत्पादन करता है, जबकि उत्तर प्रदेश की भागीदारी 6.57 फीसद है।

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मध्य प्रदेश भारत का सबसे बड़ा लहसुन उत्पादक राज्य है

लहसुन के व्यापारियों के मुताबिक, मध्य प्रदेश भारत का सबसे बड़ा लहसुन उत्पादक राज्य है। यहां का मौसम एवं मिट्टी लहसुन की खेती के लिए अनुकूल मानी जाती है। राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, भारत में कुल उत्पादित लहसुन में मध्य प्रदेश की भागीदारी 62.85 प्रतिशत है। परंतु, पिछले साल समुचित भाव न मिलने की वजह से लहसुन उत्पादक किसानों को बेहद हानि का सामना करना पड़ा। बहुत सारे किसान कर्ज में डूब गए है। ऐसी स्थिति में किसानों ने इस वर्ष लहसुन की खेती करना कम किया, जिससे तकरीबन 50 प्रतिशत लहसुन का रकबा कम हो गया। ऐसी स्थिति में मांग के हिसाब से बाजार में लहसुन की आपूर्ति नहीं हो पाई। इसकी वजह से अचानक कीमतें बढ़ गईं।

मध्य प्रदेश अन्य राज्यों में भी लहसुन की आपूर्ति करता है

बतादें कि संपूर्ण भारत में मध्य प्रदेश से लहसुन की सप्लाई होती है। यहां से दक्षिण भारत, दिल्ली और महाराष्ट्र समेत विभिन्न राज्यों में लहसुन की सप्लाई की जाती है। नतीजतन, मध्य प्रदेश की मंडियों में लहुसन महंगे होने की वजह से दूसरे राज्यों में भी इसकी कीमतें बढ़ गईं। साथ ही, रतलाम जनपद के लहसुन उत्पादकों का कहना है, कि किसानों ने विगत वर्ष हुई हानि की वजह से लहसुन की खेती आधी कर दी थी। परंतु, इस बार की कीमतों को ध्यान में रखते हुए पुनः रकबे में इजाफा करेंगे। ऐसे में आशा है, कि लहसुन की नवीन फसल आने के बाद कीमतों गिरावट शुरू हो जाएगी।
मुंबई में आज भी टमाटर की कीमतें सातवें आसमान पर हैं

मुंबई में आज भी टमाटर की कीमतें सातवें आसमान पर हैं

मुंबई में जून में, टमाटर की कीमतें 30 रुपये प्रति किलोग्राम के रेगुलर भाव से तकरीबन दोगुनी होकर 13 जून को 50-60 रुपये हो गईं। जून के समापन तक 100 रुपये को पार कर गईं।

मुंबई में टमाटर की कीमतें

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि कंज्यूमर अफेयर के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में टमाटर के मैक्सीमम प्राइस 200 रुपये से नीचे आ गए थे। साथ ही, बात यदि मुंबई की करें तो विभाग के मुताबिक टमाटर का खुदरा भाव 160 रुपये प्रति किलोग्राम था। परंतु, वीकेंड पर टमाटर के रिटेल भावों के सारे रिकॉर्ड तोड़ने की खबरें सामने आ रही हैं। जी हां, मुंबई में टमाटर का भाव 200 रुपये प्रति को पार करते हुए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। कीमतों में बढ़ोतरी के कारण खरीदारों की संख्या पर भी प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिला है। यह अब तक के सबसे निचले स्तर पर आ चुकी है, जिससे ग्राहकों की कमी की वजह से कुछ इलाकों में टमाटर की दुकानें बंद करनी पड़ीं।

टमाटर की कीमत विगत सात हफ्ते में 7 गुना तक बढ़ी है

मूसलाधार बारिश की वजह से कुल फसल की कमी एवं बड़े पैमाने पर क्षतिग्रस्त होने की वजह से बहुत सारी जरूरी सब्जियों के अतिरिक्त टमाटर की कीमतें जून से लगातार बढ़ रही हैं। जून में, टमाटर की कीमतें 30 रुपये प्रति किलोग्राम के रेगुलर भाव से तकरीबन दोगुनी होकर 13 जून को 50-60 रुपये हो गईं। जून के आखिर तक 100 रुपये को पार कर गईं। 3 जुलाई को इसने 160 रुपये का एक नया रिकॉर्ड बनाया, सब्जी विक्रेताओं ने भविष्यवाणी की कि रसोई का प्रमुख उत्पाद अंतिम जुलाई तक 200 रुपये की बाधा को तोड़ देगा, जो उसने किया है। ये भी पढ़े: सरकार अब 70 रुपए किलो बेचेगी टमाटर

किस वजह से टमाटर के भाव में आया उछाल

टीओआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एपीएमसी वाशी के डायरेक्टर शंकर पिंगले के मुताबिक टमाटर का थोक भाव 80 रुपये से 100 रुपये प्रति किलोग्राम के मध्य है। हालांकि, लोनावाला लैंडस्लाइड की घटना, उसके पश्चात ट्रैफिक जाम और डायवर्जन की वजह से वाशी मार्केट में प्रॉपर सप्लाई की बाधा खड़ी हो गई, जिसकी वजह से कीमतों में अस्थायी तौर पर इजाफा देखने को मिला। डायरेक्टर ने बताया है, कि कुछ दिनों के भीतर सप्लाई पुनः आरंभ हो जाएगी।

जानें भारत में कहाँ कहाँ टमाटर 200 से ऊपर है

बतादें, कि वाशी के एक और व्यापारी सचिन शितोले ने यह खुलासा किया है, कि टमाटर 110 से 120 रुपये प्रति किलोग्राम पर विक्रय किया जा रहा है। दादर बाजार में रोहित केसरवानी नाम के एक सब्जी विक्रेता ने कहा है, कि वहां थोक भाव 160 से 180 रुपये प्रति किलो है। अचंभित करने वाली बात यह है, कि उस मुख्य दिन पर वाशी बाजार में अच्छी गुणवत्ता वाले टमाटर मौजूद नहीं थे। माटुंगा, फोर बंगलोज, अंधेरी, मलाड, परेल, घाटकोपर, भायखला, खार मार्केट, पाली मार्केट, बांद्रा और दादर मार्केट में विभिन्न विक्रेताओं ने टमाटर की कीमतें 200 रुपये प्रति किलोग्राम तक बताईं। लेकिन, कुछ लोग 180 रुपये किलो बेच रहे थे।

बहुत सारे विक्रेताओं ने बंद की अपनी दुकान

रविवार को ग्राहकों की कमी के चलते फोर बंगलों और अंधेरी स्टेशन इलाके में टमाटर की दोनों दुकानें बिल्कुल बंद रहीं। टमाटर विक्रेताओं का कहना है, कि जब टमाटर की कीमतें गिरेंगी तब ही वो दुकान खोलेंगे। वैसे कुछ विक्रेताओं ने यह कहा है, कि त्योहारी सीजन जैसे कि रक्षाबंधन अथवा फिर जन्माष्टमी के दौरान दुकान खोलेंगे। बाकी और भी बहुत सारे दूसरे सब्जी दुकानदारों ने अपने भंडार को कम करने अथवा इसे प्रति दिन मात्र 3 किलोग्राम तक सीमित करने जैसे कदम उठाए गए हैं। विक्रेताओं में से एक ने हताशा व्यक्त की क्योंकि ज्यादातर ग्राहक सिर्फ और सिर्फ कीमतों के बारे में पूछ रहे हैं और बिना कुछ खरीदे वापिस लौट रहे हैं।

बारिश की वजह से इस राज्य में बढ़े सब्जियों के भाव

बारिश की वजह से इस राज्य में बढ़े सब्जियों के भाव

ज्यादा बारिश की वजह से फसलों को काफी क्षति हुई है। इसके चलते परवल, मूली, फूलगोभी और बैंगन समेत कई प्रकार की सब्जियों की पैदावार में गिरावट आई है। बतादें, कि बारिश से मंडियों में सब्जियों की आवक बेहद प्रभावित होने के चलते सब्जियों का भाव एक बार पुनः बढ़ गया है। बिहार में विगत बहुत दिनों से रूक-रूक कर हो रही बरसात ने एक बार पुनः महंगाई बढ़ा दी है। विशेष कर सब्जियों के भाव में आग लग चुकी है। महंगाई का मामला यह है, कि गुरुवार शाम को बहुत सारी सब्जियों का भाव 100 रुपये किलो के लगभग हो चुका है। ऐसी स्थिति में आम आदनी की थाली से हरी सब्जियां विलुप्त हो गई हैं। साथ ही, व्यापारियों का कहना है, कि बारिश के साथ-साथ जितिया पर्व की वजह से भी सब्जियों की कीमत में इतनी ज्यादा वृद्धि दर्ज की गई है।

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परंपरागत खेती छोड़ हरी सब्जी की खेती से किसान कर रहा अच्छी कमाई दरअसल, राजधानी पटना सहित संपूर्ण बिहार राज्य में विगत चार- पांच दिन से थम-थम कर बारिश हो रही है। इसकी वजह से हरी सब्जियों की कीमत सातवें आसमान पर पहुंच चुकी है। ऐसा कहा जा रहा है, कि खराब मौसम के कारण मंडियों में सब्जियों की आवक भी काफी प्रभावित हुई है। इससे इनकी कीमत में 10 से 20 रुपये प्रति किलो की वृद्धि दाखिल की गई है।

कितनी कीमत पर बिक रही सब्जियां

पटना के स्थानीय सब्जी दुकानदारों का कहना है, कि विगत चार से पांच दिनों में सब्जियों की कीमत में अत्यधिक वृद्धि देखने को मिली है। चार दिन पूर्व जो फूलगोभी 40 रुपये किलो थी, अब वह 60 से 80 रूपये किलो रुपए किलो बिक रही है। इसी प्रकार टमाटर एवं नेनुआ भी काफी महंगे हो गए हैं। ये दोनों ही सब्जियां 30 रुपये किलो तक बिक रही हैं।

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नवरात्री के दिनों में कीमतें बढ़ेंगी

विशेष बात यह है, कि सरपुतिया (तुरई) सबसे अधिक लोगों को रूला रही है। गुरुवार शाम को यह 200 रुपये किलो हो गई थी, जब कि ऐसी स्थिति में यह 10 से 20 रुपये किलो बिकती थी। साथ ही, बहुत सारे लोग 10 रुपये पीस भी सरपुतिया (तुरई) खरीद रहे थे। साथ ही, किसानों का कहना है कि अक्टूबर माह में हुई मूसलाधार बारिश की वजह से सब्जियों के फूल झड़ गए हैं। वहीं, बैंगन, गोभी और मूली समेत बाकी सब्जियों की फसल खेत में ही खराब हो गई। ऐसे में सब्जियों की पैदावार में गिरावट देखने को मिली है। पटना बाजार समिति के फल सब्जी संघ के उपाध्यक्ष जय प्रकाश वर्मा ने बताया है, कि फलों की कीमत फिलहाल स्थिर है। परंतु, नवरात्र के दौरान इनकी कीमतों में भी उछाल देखने को मिल सकता है।
अत्यधिक गर्मी होने से बाजार में फलों की उपलब्धता में आएगी कमी

अत्यधिक गर्मी होने से बाजार में फलों की उपलब्धता में आएगी कमी

आजकल गर्मी बढ़ने की वजह से भारत के विभिन्न क्षेत्रों में फलों एवं सब्जियों के उत्पादन में 10 से 30% फीसद तक की कमी देखने को मिलेगी। जैसे-जैसे गर्मी पास आ रही है। भारत में सब्जियों और फलों के उत्पादन का संकट बढ़ता दिख रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, आगामी दिनों में फल एवं सब्जियों के भाव सातवें आसमान पर हैं। इसका यह कारण है, कि वक्त से पूर्व गर्मी में बढ़ोत्तरी होने से फलों और सब्जियों के उत्पादन में करीब 30% प्रतिशत तक की गिरावट हो सकती है। नतीजतन इसका प्रभाव फलों के राजा आम पर वर्तमान से ही पड़ना शुरू हो गया है। किसानों के अनुसार, इस बार आम की बौर एवं फलों में काफी गिरावट देखने को मिली है। साथ ही, तापमान में अधिक वृद्धि होने की वजह से नींबू, तरबूज, केले, काजू और लीची की फसल भी प्रभावित हुई है।

(IIHR) के डायरेक्टर एसके सिंह ने इस विषय पर क्या कहा है

बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हॉर्टिकल्चर रिसर्च (IIHR) के डायरेक्टर एसके सिंह के अनुसार, गर्मी में अचानक वृद्धि की वजह से भारत के विभिन्न क्षेत्रों में फलों एवं सब्जियों के उत्पादन में 10 से 30% तक की कमी हो सकती है। इसकी वजह समय से पहले गर्मी का होना है। इसकी वजह से आम, लीची, केले, अवाकाडो, कीनू, और संतरे की फसल प्रभावित हुई है। फरवरी माह का औसत तापमान भारत में 29.5 डिग्री सेल्सियस रहा था जो कि एक रिकॉर्ड है।

आपूर्ति में गिरावट आने की संभावना है

मौसम विभाग के जरिए मार्च से मई माह के मध्य भारत के नार्थ वेस्ट क्षेत्रों में गर्म हवा चलने की संभावना जताई गई है। वहीं, गर्मी में वृद्धि होने की वजह से सब्जियां वक्त से पूर्व पक रही हैं। इसी कारण से सब्जियों की आपूर्ति आवश्यकता से अधिक हो सकती है। लेकिन, कुछ समयोपरांत इसमें गिरावट भी हो सकती है। साथ ही, इसकी आपूर्ति में कमी आने से सब्जियों के भाव में वृद्धि देखने को मिलेगी।

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भारत में अधिक आबादी होने से फलों व सब्जियों की होगी किल्लत

जैसा सा कि हम सब भली भाँति जानते हैं, कि भारत एक बड़ी आबादी वाला देश है। इसलिए यहां खाद्यान आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए केंद्र व राज्य सरकारें काफी सजग और जागरूक रहती हैं। इसके साथ ही भारत एक कृषि प्रधान देश भी है। उपरोक्त में सब्जिओं और फलों के विषय में जैसा वर्णन किया गया है। उसका एक कारण यहां की घनी आबादी भी है। यदि अनाज और बागवानी फसलों में कमी आती है, तो इसका प्रत्यक्ष रूप से इसका असर आम जनता पर पड़ता है।
सब्जियों की बढ़ती कीमतों के साथ साथ अब दूध भी बिगड़ेगा रसोई का बजट

सब्जियों की बढ़ती कीमतों के साथ साथ अब दूध भी बिगड़ेगा रसोई का बजट

तकरीबन प्रति वर्ष दूध की कीमतों में इजाफा होता है। विशेष कर विशेष 12 साल में दूध के दाम 57 प्रतिशत बढ़े हैं। परंतु, कीमतों में सर्वाधिक बढ़ोत्तरी साल 2022 के दौरान हुई है।

सब्जियों के साथ साथ दूध के बढ़ते दाम

महंगाई का भार आम आदमी के ऊपर से कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है। बतादें, कि हरी सब्जी, दाल, चावल एवं मसालों के उपरांत फिलहाल दूध भी रसोई का बजट खराब करने वाला है। एक अगस्त से कर्नाटक में लोगों के लिए दूध खरीदना काफी महंगा हो जाएगा। कर्नाटक सरकार ने नंदिनी दूध की कीमत में 3 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से इजाफा करने का निर्णय लिया है। मुख्य बात यह है, कि बढ़ी हुईं कीमतें 1 अगस्त से लागू की जाऐंगी। हालांकि, कर्नाटक मिल्क फेडरेशन (केएमएफ) ने भी
दूध के दाम बढ़ाने को लेकर सरकार से मांग की थी। उसने कीमतों में 5 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से बढ़ोतरी करने की मांग की थी।

कर्नाटक में अन्य राज्यों के मुकाबले दूध का रेट सस्ता है

दूध में बढ़ोत्तरी के बाद भी कर्नाटक में अन्य राज्यों की तुलना में दूध का भाव सस्ता ही रहेगा। बतादें, कि कर्नाटक में दूध की शुरूआती कीमत 39 रुपए प्रति लीटर है। वहीं, आंध्र प्रदेश में दूध 56 रुपये लीटर बिकता है। इसी तरह से तमिलनाडु में 44 रुपये तो केरल में की स्टार्टिंग कीमत 50 रुपये लीटर है। लेकिन, दिल्ली, गुजरात एवं महाराष्ट्र में टोंड दूध 54 रुपये प्रति लीटर पर बिकता है।

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विगत वर्ष प्रतिदिन 94 लाख लीटर दूध खरीदा जाता था

खबरों के अनुसार नंदिनी दूध की कीमतों में वृद्धि का प्रभाव दूसरे ब्रांडों पर भी पड़ सकता है। देखा-देखी दूसरे राज्य में दूसरी डेयरी कंपनियां भी दूध की कीमतों में वृद्धि कर सकती हैं। इससे इस महंगाई में जनता का बजट और डगमगा जाएगा। हालांकि, केएमएफ अधिकारियों ने बताया है कि दूध की खरीद में पिछले साल की तुलना में भारी गिरावट दर्ज की गई है। विगत वर्ष प्रति दिन 94 लाख लीटर दूध खरीदा जाता था, जो अब घटकर 86 लाख लीटर पर पहुंच चुका है। उनका कहना है, कि किसान अत्यधिक कीमत मिलने के चलते निजी कंपनियों के हाथों दूध बेच रहे हैं। इससे दूध की किल्लत हो गई है। यही वजह है, कि दूध की कीमतों में वृद्धि करने का फैसला लिया गया।

कंपनियां भी कीमतों में इजाफा कर रही हैं

केएमएफ के अधिकारियों की चाहे जो भी दलीले हों, परंतु उत्तर भारत में भी आने वाले दिनों में दूध की कीमतों में 3 रुपये लीटर के अनुरूप इजाफा हो सकता है। क्योंकि, उत्तर भारत में चारे के साथ-साथ पशु आहार भी 25% तक महंगे हो गए हैं। इसका प्रत्यक्ष तौर पर प्रभाव दूध के उत्पादन पर पड़ रहा है। अब किसानों को दुधारू पशुओं के चारे पर अधिक धनराशि खर्च करनी पड़ रही है। अब ऐसी स्थिति में वे लागत निकाल कर डेयरी कंपनियों को महंगे भाव पर दूध बेच रहे हैं। यही वजह है, कि महंगी खरीद होने की वजह से डेयरी कंपनियां भी कीमतों में इजाफा कर सकती हैं।

किचन का बजट काफी प्रभावित होगा

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि लगभग प्रतिवर्ष दूध की कीमतों में बढ़ोतरी होती है। विशेष कर पिछले 12 साल में दूध के भाव 57 प्रतिशत बढ़े हैं। लेकिन, सबसे ज्यादा पिछले साल कीमतों में वृद्धि हुई है। साल 2022 में दूध की कीमतों में उछाल आने से 10 रुपये तक महंगा हो गया। इसके अलावा इस साल भी फरवरी माह में दूध की कीमतों में 3 रुपये का इजाफा हुआ। ऐसी स्थिति में लोगों को काफी डर सता रहा है, कि नंदिनी को देखकर कहीं बाकी कंपनियां भी दूध का रेट न बढ़ा दे। अगर ऐसा होता है, तो इस महंगाई में किचन का बजट बहुत ही ज्यादा डगमगा जाएगा।

दूध इस वजह से भी महंगा हो सकता है

आजकल पंजाब व हरियाणा समेत बहुत सारे राज्यों में बाढ़ की वजह से धान की फसल चौपट हो गई है, जिसका प्रत्यक्ष तौर पर प्रभाव आने वाले महीनों में चारे पर पड़ेगा। इसकी वजह यह है, कि धान की पराली का सबसे ज्यादा उपयोग चारे में तौर पर किया जाता है। साथ ही, दक्षिण भारत में औसत से काफी कम बारिश हुई है, जिससे धान के क्षेत्रफल में कमी आने की संभावना है। इसका प्रभाव भी मवेशियों के चारे पर पड़ेगा। ऐसी स्थिति में चारा हद से ज्यादा महंगा होने पर दूध की कीमतों में भी इजाफा देखने को मिलेगी है।
इस राज्य में सरकार का महंगाई पर वार, लोगों को घर पर ही उपलब्ध करा रही आटा और गेंहू

इस राज्य में सरकार का महंगाई पर वार, लोगों को घर पर ही उपलब्ध करा रही आटा और गेंहू

पंजाब की जनता को वर्तमान में बारिश में गेहूं एवं आटा खरीदने के लिए कतारों में खड़ा होकर अपनी बारी का प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी। बतादें, कि उनके घर पर आटा एवं गेहूं पहुंच जाएगा। पंजाब की जनता के लिए बहुत बड़ी खुशखबरी है। राज्य के लोगों को शीघ्र ही महंगाई से राहत मिलने वाली है। इसके लिए सरकार ने पूरी योजना बना ली है। साथ ही, उसके ऊपर कैबिनेट की मुहर भी लग चुकी है। अब पंजाब में पैकेटबंद आटा एवं गेहूं की होम डिलीवरी होगी। विशेष बात यह है, कि पैकेटबंद आटा और गेहूं की होम डिलीवरी का कार्य फेयर प्राइस शॉप के माध्यम से किया जाएगा। कहा जा रहा है, कि गेहूं और आटे के निरंतर बढ़ते दामों पर रोक लगाने के लिए पंजाब सरकार ने यह निर्णय लिया है।

सरकार के फैसले से पंजाब की आवाम खुश

जानकारी के अनुसार, शनिवार को मुख्यमंत्री भगवंत मान की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद की एक बैठक बुलाई गई थी, जिसके अंतर्गत आटा और गेहूं की होम डिलीवरी को लेकर निर्णय लिया गया। फैसले में कहा गया है, कि पैकेटबंद आटे की होम डिलीवरी वजन करने के उपरांत की जाएगी। साथ ही, लाभार्थियों के कहने पर खुले गेहूं की डिलीवरी होगी। साथ ही, सरकार के इस निर्णय से पंजाब की आम जनता काफी प्रशन्न है।

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गेहूं और आटा की घर तक पहुँचाने की कवायद

आपकी जानकारी के लिए बतादें कि, पंजाब में पिछले कई दिनों से बरसात हो रही है। इससे गांव से लेकर शहरों में तक जलभराव देखने को मिल रहा है। ऐसी स्थिति में आटा और गेहूं खरीदने के लिए लोगों को लंबी कतारों में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करना पड़ रहा है। जिसके चलते लोगों की समस्या बढ़ गई है। यही कारण है, कि परेशानी से लोगों को सहूलियत प्रदान करने के लिए पंजाब सरकार ने गेहूं और आटे की होम डिलीवरी का निर्णय लिया है।

जनता में महंगाई से त्राहिमाम

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि मानसून की दस्तक के साथ भारत में महंगाई बढ़ गई है। परवल, खीरा, टमाटर, करेला, भिंडी और लौकी समेत सभी सब्जियां महंगी हो गई हैं। इसके अतिरिक्त मसाले भी काफी महंगे हो गए हैं। विशेष बात यह है, कि चावल के साथ- साथ आटा और गेहूं की कीमतों में भी उछाल दर्ज की गई है। इससे आम जनता के किचन का बजट डगमगा गया है। ऐसी स्थिति में पंजाब सरकार द्वारा खाद्य पदार्थों की होम डिलीवरी करने का लिया गया निर्णय एक बेहतरीन कदम है।
Spices or Masala price hike: पहले सब्जी अब दाल में तड़का भी हो गया महंगा, मसालों की कीमतों में हुई रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी

Spices or Masala price hike: पहले सब्जी अब दाल में तड़का भी हो गया महंगा, मसालों की कीमतों में हुई रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी

जैसा कि हम जानते हैं, कि चरम सीमा पर महंगाई होने की वजह से आम जनता की रसोई का बजट खराब हो गया है। टमाटर और हरी सब्जियों के उपरांत फिलहाल मसालों ने भी लोगों की परेशानियां बढ़ाना शुरू कर दिया है। इनकी कीमतों में कई गुना इजाफा दर्ज किया गया है। बारिश के चलते देश में महंगाई सातवें आसमान पर पहुंच गई है। इससे आम जनता के साथ- साथ खास लोगों के किचन का भी बजट डगमगा चुका है। हरी सब्जियों के पश्चात यदि किसी खाद्य पदार्थ की कीमतों में सबसे ज्यादा बढ़वार हुई है, तो वो हैं मसालें। पिछले एक महीने में मसालों के भाव में कई गुना वृद्धि दर्ज की गई है। विशेष बात यह है, कि विगत 15 दिन में ही कुछ मसालों की कीमत में दोगुनी वृद्धि हुई है। इससे प्रत्येक वर्ग की जेब पर बोझ बढ़ गया है।

दूध, मसाले, हरी सब्जियों सहित कई सारे खाद्य पदार्थों की कीमत बढ़ी हैं

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बारिश की वजह से केवल हरी सब्जियां ही नहीं बल्कि दूध, मसाले और अन्य खाद्य उत्पाद की कीमतें भी बढ़ गई हैं। महंगाई का आंकलन इस बात से किया जा सकता है, कि जो जीरा थोक भाव में विगत वर्ष 300 रुपये किलो था, अब उसकी कीमत 700 रुपये से भी ज्यादा हो गई है। साथ ही, खुदरा बाजार में यह 1000 रुपये लेकर 1200 रुपये किलो बिक रहा है। इससे ग्राहक के साथ-साथ व्यापारी भी चिंता में आ गए हैं।

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लाल मिर्च की कीमतों में दोगुना उछाल

इसी संदर्भ में व्यापारियों का कहना है, कि जीरा इतना ज्यादा महंगा हो जाएगा, उन्हें ऐसी कभी आशंका ही नहीं थी। साथ ही, कृषि विशेषज्ञ की माने तो इस वर्ष फरवरी और मार्च महीने में हुई बेमौसम बारिश ने जीरे की फसल को काफी ज्यादा प्रभावित किया है। यही वजह है, कि 2 महीने की समयावधि में जीरा बहुत ज्यादा महंगा हो गया। परंतु, मानसून के आगमन के पश्चात अचानक दूसरे मसाले भी महंगे हो गए। विशेष कर हल्दी एवं लाल मिर्च की कीमत दोगुनी से भी ज्यादा बढ़ गई है।

मसालों की कीमत में एक वर्ष दौरान कितना उछाल आया (मसालों की कीमत किलो में है)

मसाले बीते वर्ष का रेट होलसेल रेट रिटेल प्राइस
जीरा ₹300 ₹700 ₹1000-1200
हल्दी ₹80-90 ₹160 ₹300
लाल मिर्च ₹110-120 ₹260 ₹400
लौंग ₹600 ₹1100 ₹1500-1800
दालचीन ₹500  ₹700 ₹1100-1400
सौंठ ₹130 ₹500 ₹700-800
जानें दिल्ली की उन मंडियों के बारे में जहां सबसे ज्यादा उचित रेट पर सब्जी और फल मिलते हैं

जानें दिल्ली की उन मंडियों के बारे में जहां सबसे ज्यादा उचित रेट पर सब्जी और फल मिलते हैं

दिल्ली में महंगाई सातवें आसमान पर पहुंच गई है। यहां पर आज भी टमाटर 140 रुपये किलो बिक रहा है। साथ ही, बाकी हरी सब्जियां भी बेहद महंगी हैं। भारत में महंगाई से त्राहिमाम मचा हुआ है। लौकी, परवल, शिमला मिर्च, टमाटर, प्याज और करेला समेत समस्त तरह की सब्जियों की कीमत में आग लगी हुई है। 30 से 40 रुपये किलो मिलने वाला टमाटर 150 से 180 रुपये किलो बिक रहा है। इसी प्रकार प्याज के भाव में भी 20 प्रतिशत से ज्यादा का इजाफा हुआ है। 15 से 20 रुपये किलो वाला प्याज फिलहाल 25 से 30 रुपये में बिक रहा है। इसी प्रकार शिमला मिर्च भी काफी गुना ज्यादा महंगी हो गई है। जून से पूर्व जो शिमला मिर्च 20 रुपये किलो बिक रही थी, अब उसकी कीमत 80 से 120 रुपये किलो हो गई है।

दिल्ली में कई सब्जी मंडी ऐसी हैं जहां उचित रेट पर सब्जी व फल मिलते है

परंतु, आप राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में रहते हैं, तो आपको चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। दिल्ली में ऐसी कई मंडी हैं, जहां पर आप इस महंगाई में भी उचित भाव पर सब्जियां खरीद सकते हैं। परंतु, मंडियों में प्रथम स्थान पर आजादपुर सब्जी मंडी का नाम आता है। यह एशिया की सबसे बड़ी सब्जी मंडी में से है। इस सब्जी मंडी की स्थापना 1977 में की गई थी। इस मंडी में समस्त प्रकार की सब्जी और फल कम कीमत पर मिल जाते हैं। यहां पर आप थोक में फल और सब्जियों की खरीदारी कर सकते हैं। विशेष बात यह है, कि रिटेल मार्केट से न्यूनतम 20 प्रतिशत कम भाव पर आजादपुर मंडी में आपको फल और सब्जियां मिल जाऐंगी।

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ओखला मंडी की स्थापना सन 1987 में की गई थी

इसके उपरांत ओखला सब्जी मंडी का स्थान आता है। इसकी स्थापना 1987 में की गई थी। इस सब्जी मंडी में 300 से अधिक फल और सब्जियों की दुकानें हैं। इसी मंडी की खासियत है, कि यहां पर दुकानदारों के मध्य प्रतिस्पर्धा बहुत ज्यादा हैं। ऐसे में दुकानदार ग्राहकों को बहुत सस्ती दर पर फल और सब्जी बेचते हैं। यह सब्जी मंडी 24 घंटे खुली रहती है।

शहादरा सब्जी मंडी की कीमत बहुत कम रहती है

शाहदरा सब्जी मंडी भी अपने सही भाव के लिए मशहूर है। यह पूर्वी दिल्ली जनपद में मौजूद है। यहां पर आप कश्मीरी गेट से रेड लाइन मेट्रो से पहुंच सकते हैं। अगर आपके घर में पार्टी अथवा कोई कार्यक्रम है और आपको होलसेल में फ्रूट- सब्जियां खरीदने हैं, तो आप यहां से खरीदारी कर सकते हैं। इस मंडी में सब्जियां डायरेक्ट किसान के खेतों से आती हैं। ऐसे में सब्जी और फलों की कीमत काफी कम रहती है।

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आर्यपुरा दिल्ली की एक प्रसिद्ध सब्जी मंडी है

इसी प्रकार आर्यपुरा मंडी में भी आपको हर तरह की सब्जी और फल मिल जाएंगे। यह दिल्ली की एक प्रमुख सब्जी मंडी है। इस मंडी में फल और सब्जियों की बार्गेनिंग काफी ज्यादा होती है। ऐसी स्थिति में आप मोल भाव कर सब्जियों की कीमत भी तोड़ सकते हैं। विशेष बात यह है, यहां पर सभी तरह की सब्जी और फलों के बीज भी बिकते हैं। अगर आप घर की छत पर सब्जियों की खेती करने की योजना बना रहे हैं, तो आप यहां से बीज भी खरीद सकते हैं।
आने वाले समय में तिलहन, दलहन व खाद्य तेलों की कीमतों में इजाफा हो सकता है

आने वाले समय में तिलहन, दलहन व खाद्य तेलों की कीमतों में इजाफा हो सकता है

विशेषज्ञों का कहना है, कि खरीफ फसलों के लिए अगस्त एवं सितंबर माह की बारिश काफी महत्व रखती है। अगर इन दो महीनों में अच्छी-खासी वर्षा होती है, तो दलहन एवं तिलहन का उत्पादन बढ़ जाता है। परंतु, इस वर्ष अगस्त में औसत से कम वर्षा हुई है, जिसका प्रभाव धान, दलहन, तिलहन और गन्ने की पैदावार पर भी देखने को मिल सकता है। वर्तमान में महंगाई से सहूलियत मिलने की संभावना नहीं दिखाई दे रही है। आगामी दिनों में तिलहन एवं दलहन के भाव में और इजाफा हो सकता है। इससे आम जनता के ऊपर महंगाई का भार और अधिक बढ़ जाएगा। ऐसा बताया जा रहा है, कि अगस्त में औसत से भी कम बारिश हुई है और सितंबर तक ऐसी ही स्थिति बनी रहेगी. यानि कि अगले महीने भी मानसून कमजोर ही रहेगा. ऐसे में दलहन और तिलहन की पैदावार पर असर पड़ेगा, जिससे उत्पादन भी प्रभावित हो सकता है. ऐसे में आने वाले दिनों में दलहन और तिलहन की कीमतों में और बढ़ोतरी हो सकती है। किसान इस बार दलहनी फसलों का उत्पादन करके अच्छा मुनाफा कमाने के साथ साथ बेहतर ढंग से खाद्य सुरक्षा भी सुनिश्चित कर सकते हैं। बतादें कि बारिश का प्रभाव पड़ने से दलहन और तिलहन फसलों की कीमतों में वृद्धि देखी गई है।

इस बार अगस्त में विगत 8 वर्षों से कम बारिश दर्ज की गई है

भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, इस वर्ष अगस्त माह में 8 वर्षों के अंतर्गत काफी कम बारिश दर्ज की गई है। दरअसल, अलनीनो फैक्टर के कारण आगामी महीनों में भी औसत से कम बारिश होने की संभावना है। बतादें, कि भारत भर में दलहन और तिलहन की बुआई हो चुकी है। अब कुछ दिनों के उपरांत फसलों में फूल आने शुरू हो जाएंगे। ऐसी स्थिति में फसलों की सिंचाई की अधिक आवश्यकता पड़ती है। परंतु, पानी के अभाव की वजह से दलहन और तिलहन के उत्पादन पर प्रभाव पड़ेगा, जिससे पैदावार में कमी भी देखने को मिल सकती है। यह भी पढ़ें: दलहन की फसलों की लेट वैरायटी की है जरूरत

भारत के केवल इन हिस्सों में अच्छी-खासी वर्षा दर्ज की गई है

मौसम विभाग ने बताया है, कि भारत के केवल उत्तर पश्चिम भाग में ही बेहतरीन वर्षा रिकॉर्ड की गई है। इन हिस्सों में विगत वर्ष की तुलना में 6 प्रतिशत अधिक बरसात दर्ज की गई है। साथ ही, मध्य भारत में औसत से 7 प्रतिशत कम, पूर्व उत्तर भारत में 15 प्रतिशत कम और दक्षिण भारत में औसत से 17 प्रतिशत कम वर्षा रिकॉर्ड की गई है। ऐसी स्थिति में मौसम विभाग के अधिकारियों ने बताया है, कि अगस्त माह के दौरान संपूर्ण भारत में विगत वर्ष की तुलना में 35 प्रतिशत कम बारिश रिकॉर्ड की गई है। अधिकारियों की मानें तो अगर सितंबर में सामान्य से अधिक भी बारिश होती है, तो भी अगस्त महीने की कमी की भरपाई नहीं की जा सकती है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य 332 मिलियन टन निर्धारित किया गया है। हालांकि, फसल सीजन 2022-23 में भारत में खाद्यान्न पैदावार में 5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई थी। भारत का खाद्यान्न भंडार 330.5 मिलियन टन पर पहुंच गया था। वहीं, इस वर्ष खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य 332 मिलियन टन निर्धारित किया गया है।
देशवासियों को त्योहारी सीजन में नहीं लगेगा महंगाई का झटका - खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा

देशवासियों को त्योहारी सीजन में नहीं लगेगा महंगाई का झटका - खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा का कहना है कि महंगाई पर रोकथाम करने के लिए केंद्र सरकार भरपूर प्रयास कर रही है। खाद्य पदार्थों की जमाखोरी करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा रही है। केंद्र और राज्य सरकार की टीमें जगह-जगह पर छापेमारी कर रही हैं। दरअसल, त्योहारी सीजन की शुरुआत होने से पूर्व महंगाई की रोकथाम करने के लिए केंद्र सरकार ने सारी तैयारी कर ली है। अब ऐसे में आम जनता को महंगाई को लेकर चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। गणेश चतुर्थी, दुर्गा पूजा एवं दिवाली पर समुचित कीमत पर खाद्य पदार्थ मिलेंगे। केंद्र सरकार ने बताया है, कि उसके पास चीनी का पर्याप्त भंडार है। अब जनता को त्योहारी सीजन में चीनी की कमी नहीं होगी। बाजार में चीनी की आपूर्ति मांग के हिसाब से होती रहेगी, जिससे कि कीमतें नियंत्रित रहें। उन्होंने कहा कि सरकारी भंडार में अभी चीनी का 85 लाख टन स्टॉक मौजूद है। ऐसे में आम जनता को महंगाई को लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं है।

गन्ने की पैदावार पर कोई प्रभाव नहीं होगा

संजीव चोपड़ा का कहना है, कि गेहूं के भाव आर्टिफिशियल तरीके से अधिक हो रहे हैं। परंतु, शीघ्र ही इसके ऊपर भी नियंत्रण पा लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि ऐसी अफवाह है कि इस वर्ष औसत से कम बरसात दर्ज होने से गन्ने की पैदावार में गिरावट आ सकती है। परंतु, यह बिल्कुल सच नहीं है। उनके कहने के अनुसार तो गन्ने के उत्पादन में किसी तरह की गिरावट नहीं आएगी।

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चावल की कीमतों में हुई 10% प्रतिशत बढ़ोत्तरी

उन्होंने कहा कि अफवाह की वजह से ही चावल के भाव 10% प्रतिशत तक बढ़े हैं। परंतु,, फसल सीजन 2023-24 में धान की बेहतरीन पैदावार होगी। अब ऐसी स्थिति में बाजार के अंदर नवीन चावल आने से कीमतों में गिरावट आएगी। उन्होंने कहा है, कि गेहूं पर भंडारण सीमा कम की गई है। किसानों को चावल के भाव में बढ़ोत्तरी होने पर बेहद खुशी का अनुभव भी हुआ। क्योंकि, धान एक खरीफ की फसल है। इस खरीफ फसल की कटाई के लिए उपयुक्त समय आ गया है। खरीफ की फसल चावल की कटाई का समय चल रहा है। अब ऐसे में यदि चावल की कीमत बढ़ेगी तो निश्चित रूप से किसानों को काफी लाभ मिलेगा।

भारत में धान का कितना उत्पादन होता है

भारत धान उत्पादन के मामले में दूसरे नंबर पर आने वाला देश है। भारत द्वारा विदेशों तक चावल का निर्यात किया जाता है। विश्वभर में भारत चावल की खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित करता है। भारत के ऊपर बहुत सारे देश निर्भर होते हैं। यदि भारत में चावल की पैदावार कम होती है तो उससे पूरे विश्वभर की खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है। भारत को चावल की विभिन्न किस्मों के उत्पादन के लिए काफी जाना जाता है। भारत से नेपाल चावल के लिए काफी हद तक आश्रित रहता है।
अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चीनी की महंगाई ने तोड़ा 12 साल का रिकॉर्ड

अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चीनी की महंगाई ने तोड़ा 12 साल का रिकॉर्ड

महंगाई से केवल भारत की जनता ही परेशान नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व में महंगाई से हाहाकार मचा हुआ है। महंगाई का आलम यह है, कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चीनी 12 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। एक वर्ष में यह 48 प्रतिशत महंगी हो गई है। चीनी की बढ़ती कीमत से संपूर्ण विश्व में लोगों की रसोई का बजट डगमगा गया है। सप्लाई और डिमांड में भारी अंतराल आने की वजह से चीनी की कीमत 12 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी है। 19 सितंबर को चीनी की कीमत बढ़कर 27.5 डॉलर पर पहुंच गई। ऐसे में कहा जा रहा है, कि इस वर्ष अभी तक चीनी की कीमत में लगभग 30 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। विशेष बात यह है, कि चीनी की बढ़ती कीमत से अमेरिका भी बचा नहीं है। यहां पर आज भी चीनी 27 डॉलर के लगभग कारोबार कर रही है।

संपूर्ण विश्व में महँगाई बढ़ गई है

व्यवसाय विशेषज्ञों का कहना है, कि भारत में चीनी का उत्पादन प्रभावित होने से केवल इंडिया ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में महंगाई बढ़ गई है। तकरीबन सभी देशों में चीनी की कीमत सातवें आसमान पर पहुंच गई है। हालांकि, भारत में केंद्र सरकार ने त्योहारी सीजन को देखते हुए चीनी की बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने के लिए कमर कस ली है। सरकार 13 लाख टन चीनी का कोटा खुले बाजार में जारी कर सकती है।

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निरंतर सरकार चीनी की निगरानी कर रही है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि एग्रीमंडी के को-फाउंडर हेमंत शाह का कहना है कि विगत दो महीने से सरकार निरंतर चीनी की मॉनिटर कर रही है। सरकार समय-समय पर एक्शन भी ले रही है। सरकार का यही प्रयास है, कि दुर्गा पूजा और दिवाली जैसे त्योहार के दौरान बाजार में चीनी की सप्लाई प्रभावित न हो, जिससे कीमतें नियंत्रण में रहें।

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एक वर्ष में चीनी 48 प्रतिशत महंगी हो चुकी है

जानकारी के अनुसार, सूखे एवं कम बारिश की वजह से भारत के साथ- साथ थाईलैंड में भी चीनी के उत्पादन में गिरावट देखने को मिली है। इसके चलते चीनी की कीमतों में इजाफा हो रहा है। वहीं, ब्राजील में चीनी की बेहतरीन पैदावार हुई है। इसके बावजूद भी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमत बढ़ती ही जा रही है। विगत एक हफ्ते के अदंर अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चीनी 0.22 प्रतिशत महंगी हुई है। साथ ही, बीते 1 महीने में चीनी की कीमत में 13 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। वहीं, 1 साल में यह 48 प्रतिशत महंगी हो गई है।