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मुर्गी

गजब का कारोबार ब्रायलर मुर्गी पालन

गजब का कारोबार ब्रायलर मुर्गी पालन

देसी मुर्गी से साल में औसतन 60 से 80 अंडे प्राप्त होते हैं वाइट 11 से 240 से 3 से एवं रोड आयरन से 210 से 260 घंटे प्राप्त होते हैं। चीजों की सही देखभाल 1 दिन से लेकर 6 हफ्तों या 20 सप्ताह तक करनी होती है। अंडे वाली मुर्गी की देखभाल इससे ज्यादा करनी होती है।बीमारी के टीके लगने के बाद 3 दिन तक मुर्गियों को पानी याद आने में मिलाकर विटामिन की खुराक देनी चाहिए। इसी तरह 2 से 3 महीने में कीड़े मारने की दवा दें। ब्रायलर चीजों को जन्म लेने के बाद से 8 हफ्ते तक विकास करने के बाद ही उनका मास के लिए प्रयोग किया जाना चाहिए। मुर्गी जितना खाती है उसी अनुपात में उसके शरीर पर मांस बढ़ता है। मुर्गी का 6 हफ्ते का वजन अट्ठारह सौ से 21 सौ ग्राम हो जाता है। ब्राउज़र को दो तरह का दाना दिया जाता है। ब्राउज़र स्टार्टर यह ब्राउज़र फिनिशर।हर इलाके में मुर्गी फार्म खोलने के कारण यह दाना अब कहीं भी आसानी से मिल जाता है। सस्ता दाना बनाने के लिए किसान थोड़ी सी जानकारी हासिल करके फसल के समय पर ही दाने का इंतजाम कर सकते हैं। पोस्टिक दानों से मुर्गी काफी विकसित होती हैं और उनमें मांस की प्रचुर मात्रा तैयार होती है। 

बीमारी

  • कालरा नामक बीमारी में हरि पतली बिठाना बुखार आना पक्षियों की अचानक मौत आदि लक्षण दिखते हैं। इस बीमारी से बचाव के लिए सलमेट दवा दाने या पानी के साथ देनी चाहिए।
  • सफेद दस्त नामक बीमारी चीजों को अधिक होती है। बचाव के लिए नेफ्टिन दवा को दाना या पानी के साथ दें।
  • नीली कलगी बड़े पक्षियों में होने वाली बीमारी है। इसमें बुखार आना कल भी का नीला पढ़ना जैसे लक्षण दिखते हैं बचाव के लिए होस्टासाइक्लिन यास्टेक्लिन दवा को पानी के साथ दें।
  • सालमोनेलासिस बीमारी में बुखार आना, कलगी का रंग फीका पड़ना, हरी बीट एवं पक्षियों की मौत होती है। बचाव के लिए सलमेट दवा को पानी के साथ दें।
  • रानीखेत बीमारी मैं पक्षियों की गर्दन टेढ़ी हो जाती है तथा सांस लेने में तकलीफ होती है। इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है बचाव के लिए लाशों के रानीखेत का कोई टीका दें।
  • चिकन पॉक्स बीमारी में शरीर के बाल रहित हिस्सों पर फुंसियां उभर आती हैं। बचाव के लिए चिकन पॉक्स का टीका बराबर दें।
गमबोरो पक्षियों की रोगों से लड़ने की क्षमता कमजोर होने के कारण दूसरी बीमारियों का शिकार होता है उसी स्थिति को गम बोरो कहते हैं। इस तरह की समस्या से बचने के लिए पक्षियों को टीके समय पर लगवाएं। 1 दिन के चूजे को इस बीमारी का टीका उसके पंख में लगाएं। कोक्सिडियोसिस खूनी बीट 1 से 6 हफ्ते के पक्षियों में इस बीमारी का खतरा रहता है। इसमें खून से सनी हुई बीच पतली आती है। कॉक्सी डियोस्टैट दवा पानी के साथ दें। पेट के कीड़ों की रोकथाम के लिए महीने में एक बार पेट के कीड़े की दवा जरूर दें। अन्यथा पक्षियों का शारीरिक विकास रुक जाता है। खाए गए अन्य का भक्षण परजीवी कर जाते हैं। वेटरनरी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एंड हेड पोल्ट्री साइंस चैप्टर पीके शुक्ला कहते हैं मुर्गी पालन में अपार संभावनाएं हैं। पश्चिम बंगाल के बाद बिहार के किसानों ने भी बैकयार्ड पोल्ट्री से अपनी आमदी बढ़ाई है। 

उम्र के अनुरूप दाना

  • 1 दिन से 7 हफ्ते तक चिकमैश दाना
  • 8 से 20 हफ्ते तक ग्रोअर मैश
  • 21 से 72 हफ्ते तक लेयर मैश
  • ब्रायलर का टीकाकरण
  • 1 दिन मैरेक्स पंजे के स्नायु में
  • 5 दिन लासोटा नाक में बूंद डालना
  • 12 दिन गमबोरी आंखों में बूंद डालना
  • 35 दिन लासोटा पानी से देना
  • 42 दिन देवी का टीका पंख के नीचे जिसमें मैं चुभाएं
  • 48 दिन अरबी टीका पंख के भीतरी हिस्से में दें।

घर पर ही यह चारा उगाकर कमाएं दोगुना मुनाफा, पशु और खेत दोनों में आएगा काम

घर पर ही यह चारा उगाकर कमाएं दोगुना मुनाफा, पशु और खेत दोनों में आएगा काम

भारत के किसानों के लिए कृषि के अलावा पशुपालन का भी अपना ही एक अलग महत्व होता है। छोटे से लेकर बड़े भारतीय किसान एवं ग्रामीण महिलाएं, पशुपालन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

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ग्रामीणों की अर्थव्यवस्था को एक ठोस आधार प्रदान करने के अलावा, खेती की मदद से ही पशुओं के लिए चारा एवं फसल अवशेष प्रबंधन (crop residue management) की भी व्यवस्था हो जाती है और बदले में इन पशुओं से मिले हुए ऑर्गेनिक खाद का इस्तेमाल खेत में ही करके उत्पादकता को भी बढ़ाया जा सकता है।

एजोला चारा (Azolla or Mosquito ferns)

अलग-अलग पशुओं को अलग-अलग प्रकार का चारा खिलाया जाता है, इसी श्रेणी में एक विशेष तरह का चारा होता है जिसे 'एजोला चारा' के नाम से जाना जाता है। 

यह एक सस्ता और पौष्टिक पशु आहार होता है, जिसे खिलाने से पशुओं में वसा एवं वसा रहित पदार्थ वाली दूध बढ़ाने में मदद मिलती है। 

अजोला चारा की मदद से पशुओं में बांझपन की समस्या को दूर किया जा सकता है, साथ ही उनके शरीर में होने वाली फास्फोरस की कमी को भी दूर किया जा सकता है।

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इसके अलावा पशुओं में कैल्शियम और आयरन की आवश्यकता की पूर्ति करने से उनका शारीरिक विकास भी बहुत अच्छे से हो पाता है।

समशीतोष्ण जलवायु में पाए जाने वाला यह अजोला एक जलीय फर्न होता है।

अजोला की लोकप्रिय प्रजाति पिन्नाटा भारत से किसानों के द्वारा उगाई जाती है। यदि अजोला की विशेषताओं की बात करें तो यह पानी में बहुत ही तेजी से वृद्धि करते हैं और उनमें अच्छी गुणवत्ता वाले प्रोटीन होने की वजह से जानवर आसानी से पचा भी लेते है। अजोला में 25 से 30% प्रोटीन, 60 से 70 मिलीग्राम तक कैल्शियम और 100 ग्राम तक आयरन की मात्रा पाई जाती है।

कम उत्पादन लागत वाला वाला यह चारा पशुओं के लिए एक जैविक वर्धक का कार्य भी करता है।

एक किसान होने के नाते आप जानते ही होंगे, कि रिजका और नेपियर जैसा चारा भारतीय पशुओं को खिलाया जाता रहा है, लेकिन इनकी तुलना में अजोला पांच गुना तक अच्छी गुणवत्ता का प्रोटीन और दस गुना अधिक उत्पादन दे सकता है।

अजोला चारा उत्पादन के लिए आपको किसी विशेषज्ञ की जरूरत नहीं होगी, बल्कि किसान खुद ही आसानी से घर पर ही इसको ऊगा सकते है।

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इसके लिए आपको क्षेत्र को समतल करना होगा और चारों ओर ईंट खड़ी करके एक दीवार बनाई जाती है।

उसके अंदर क्यारी बनाई जाती है जिससे पानी स्टोर किया जाता है और प्लांट को लगभग 2 मीटर गहरे गड्ढे में बनाकर शुरुआत की जा सकती है। 

इसके लिए किसी छायादार स्थान का चुनाव करना होगा और 100 किलोग्राम छनी हुई मिट्टी की परत बिछा देनी होगी, जोकि अजोला को पोषक तत्व प्रदान करने में सहायक होती है।

इसके बाद लगभग पन्द्रह लीटर पानी में पांच किलो गोबर का घोल बनाकर उस मिट्टी पर फैला देना होगा।

अपने प्लांट में आकार के अनुसार 500 लीटर पानी भर ले और इस क्यारी में तैयार मिश्रण पर, बाजार से खरीद कर 2 किलो ताजा अजोला को फैला देना चाहिए। इसके पश्चात 10 लीटर हल्के पानी को अच्छी तरीके से छिड़क देना होगा।

इसके बाद 15 से 20 दिनों तक क्यारियों में अजोला की वर्द्धि होना शुरू हो जाएगी। इक्कीसवें दिन की शुरुआत से ही इसकी उत्पादकता को और तेज करने के लिए सुपरफ़ास्फेट और गोबर का घोल मिलाकर समय-समय पर क्यारी में डालना होगा। 

यदि आप अपने खेत से तैयार अजोला को अपनी मुर्गियों को खिलाते हैं, तो सिर्फ 30 से 35 ग्राम तक खिलाने से ही उनके शरीर के वजन एवं अंडा उत्पादन क्षमता में 20% तक की वृद्धि हो सकती है, एवं बकरियों को 200 ग्राम ताजा अजोला खिलाने से उनके दुग्ध उत्पादन में 30% की वृद्धि देखी गई है।

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अजोला के उत्पादन के दौरान उसे संक्रमण से मुक्त रहना अनिवार्य हो जाता है, इसके लिए सीधी और पर्याप्त सूरज की रोशनी वाले स्थान को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। हालांकि किसी पेड़ के नीचे भी लगाया जा सकता है लेकिन ध्यान रहे कि वहां पर सूरज की रोशनी भी आनी चाहिए।

साथ ही अजोला उत्पादन के लिए 20 से 35 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान को उचित माना जाता है।

सही मात्रा में गोबर का घोल और उर्वरक डालने पर आपके खेत में उगने वाली अजोला की मात्रा को दोगुना किया जा सकता है। 

यदि आप स्वयं पशुपालन या मुर्गी पालन नहीं करते हैं, तो उत्पादन इकाई का एक सेंटर खोल कर, इस तैयार अजोला को बाजार में भी बेच सकते है। 

उत्तर प्रदेश, बिहार तथा झारखंड जैसे राज्यों में ऐसी उत्पादन इकाइयां काफी मुनाफा कमाती हुई देखी गई है और युवा किसान इकाइयों के स्थापन में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। 

किसान भाइयों को जानना होगा कि पशुओं के लिए एक आदर्श आहार के रूप में काम करने के अलावा, अजोला का इस्तेमाल भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में हरी खाद के रूप में भी किया जाता है। 

इसे आप 15 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से अपने खेत में फैला सकते हैं, तो आपके खेत की उत्पादकता आसानी से 20% तक बढ़ सकती है। लेकिन भारतीय किसान इसे खेत में फैलाने की तुलना में बाजार में बेचना ज्यादा पसंद करते हैं, क्योंकि वहां पर इसकी कीमत काफी ज्यादा मिलती है।

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आशा करते हैं, घर में तैयार किया गया अजोला चारा भारतीय किसानों के पशुओं के साथ ही उनके खेत के लिए भी उपयोगी साबित होगा और हमारे द्वारा दी गई यह जानकारी उन्हें पूरी तरीके से पसंद आई होगी।

एकीकृत कृषि प्रणाली से खेत को बना दिया टूरिज्म पॉइंट

एकीकृत कृषि प्रणाली से खेत को बना दिया टूरिज्म पॉइंट

इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम मॉडल (Integrated Farming System Model) यानी एकीकृत या समेकित कृषि प्रणाली मॉडल (ekeekrt ya samekit krshi pranaalee Model) को बिहार के एक नर्सरी एवं फार्म में नई दशा-दिशा मिली है। पटना के नौबतपुर के पास कराई गांव में पेशे से सिविल इंजीनियर किसान ने इंटीग्रेटेड फार्मिंग (INTEGRATED FARMING) को विलेज टूरिज्म (Village Tourism) में तब्दील कर लोगों का ध्यान खींचा है। कराई ग्रामीण पर्यटन प्राकृतिक पार्क नौबतपुर पटना बिहार (Karai Gramin Paryatan Prakritik Park, Naubatpur, Patna, Bihar) महज दो साल में क्षेत्र की खास पहचान बन चुका है।

लीज पर ली गई कुल 7 एकड़ भूमि पर खान-पान, मनोरंजन से लेकर इंटीग्रेटेड फार्मिंग के बारे में जानकारी जुटाकर प्रेरणा लेने के लिए काफी कुछ मौजूद है। एकीकृत कृषि प्रणाली से खेती किसानी को ग्रामीण पर्यटन (Village Tourism) का केंद्र बनाने के लिए सिविल इंजीनियर दीपक कुमार ने क्या कुछ जतन किए, इसके बारे में जानने से पहले यह समझना जरूरी है कि आखिर इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) यानी एकीकृत या समेकित कृषि प्रणाली (ekeekrt ya samekit krshi pranaalee) क्या है।

एकीकृत या समेकित कृषि प्रणाली (Integrated Farming System)

एकीकृत कृषि प्रणाली किसानी की वह पद्धति है जिसमे, कृषि के विभिन्न घटकों जैसे फसल पैदावार, पशु पालन, फल एवं साग-सब्जी पैदावार, मधुमक्खी पालन, कृषि वानिकी, मत्स्य पालन आदि तरीकों को एक दूसरे के पूरक बतौर समन्वित तरीके से उपयोग में लाया जाता है। इस पद्धति की खेती, प्रकृति के उसी चक्र की तरह कार्य करती है, जिस तरह प्रकृति के ये घटक एक दूसरे के पूरक होते हैं। 

इसमें घटकों को समेकित कर संसाधनों की क्षमता, उत्पादकता एवं लाभ प्रदान करने की क्षमता में वृद्धि स्वतः हो जाती है। इस प्रणाली की सबसे खास बात यह है कि इसमें भूमि, स्वास्थ्य के साथ ही पर्यावरण का संतुलन भी सुरक्षित रहता है। हम बात कर रहे थे, बिहार में पटना जिले के नौबतपुर के नजदीकी गांव कराई की। यहां बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड में कार्यरत सिविल इंजीनियर दीपक कुमार ने समेकित कृषि प्रणाली को विलेज टूरिज्म का रूप देकर कृषि आय के अतिरिक्त विकल्प का जरिया तलाशा है।

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सफलता की कहानी अब तक

जैसा कि हमने बताया कि, इंटीग्रेटेड फार्मिंग में खेती के घटकों को एक दूसरे के पूरक के रूप मेें उपयोग किया जाता है, इसी तर्ज पर इंजीनियर दीपक कुमार ने सफलता की इबारत दर्ज की है। उन्होंने अपनी पुश्तैनी जमीन बेचकर, पिछले साल 2 जून 2021 को 7 एकड़ लीज पर ली गई जमीन पर अपने सपनों की बुनियाद खड़ी की थी। बचपन से कृषि कार्य में रुचि रखने वाले दीपक कुमार इस भूमि पर समेकित कृषि के लिए अब तक 30 लाख रुपए खर्च कर चुके हैं। इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम के उदाहरण के लिए उनका फार्म अब इलाके के साथ ही, देश के अन्य किसान मित्रों के लिए आदर्श मॉडल बनकर उभर रहा है। उनके फार्म में कृषि संबंधी सभी तरह की फार्मिंग का लक्ष्य रखा गया है। 

इस मॉडल कृषि फार्म में बकरी, मुर्गा-मुर्गी, कड़कनाथ, मछली, बत्तख, श्वान, विलायती चूहों, विदेशी नस्ल के पिग, जापानी एवं सफेद बटेर संग सारस का लालन-पालन हो रहा है। मुख्य फसलों के लिए भी यहां स्थान सुरक्षित है। आपको बता दें प्रगतिशील कृषक दीपक कुमार ने इंटीग्रेटेड फार्मिंग के इन घटकों के जरिए ही विलेज टूरिज्म का विस्तार कर कृषि आमदनी का अतिरिक्त जरिया तलाशा है। मछली एवं सारस के पालन के लिए बनाए गए तालाब के पानी में टूरिस्ट या विजिटर्स नौकायन का लुत्फ ले सकते हैं।

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इसके अलावा यहां तैयार रेस्टॉरेंट में वे अपनी पसंद की प्रजाति के मुर्गा-मुर्गी और मछली के स्वाद का भी लुत्फ ले सकते हैं। इस फार्म के रेस्टॉरेंट में कड़कनाथ मुर्गे की चाहत विजिटर्स पूरी कर सकते हैं। इलाके के लोगों के लिए यह फार्म जन्मदिन जैसे छोटे- मोटे पारिवारिक कार्यक्रमों के साथ ही छुट्टी के दिन सैरगाह का बेहतरीन विकल्प बन गया है।

अगले साल से होगा मुनाफा

दीपक कुमार ने मेरीखेती से चर्चा के दौरान बताया, कि फिलहाल फार्म से होने वाली आय उसके रखरखाव में ही खर्च हो जाती है। इससे सतत लाभ हासिल करने के लिए उन्हें अभी और एक साल तक कड़ी मेहनत करनी होगी। नौकरी के कारण कम समय दे पाने की विवशता जताते हुए उन्होंने बताया कि पर्याप्त ध्यान न दिए जाने के कारण लाभ हासिल करने में देरी हुई, क्योंकि वे उतना ध्यान फार्म प्रबंधन पर नहीं दे पाते जितने की उसके लिए अनिवार्य दरकार है।

हालांकि वे गर्व से बताते हैं कि उनकी पत्नी उनके इस सपने को साकार करने में हर कदम पर साथ दे रही हैं। उन्होंने अन्य कृषकों को सलाह देते हुए कहा कि जितना उन्होंने निवेश किया है, उतने मेंं दूसरे किसान लगन से मेहनत कर एकीकृत किसानी के प्रत्येक घटक से लाखों रुपए की कमाई प्राप्त कर सकते हैं।

इनका सहयोग

उन्होंने बताया कि वेटनरी कॉलेज पटना के वीसी एवं डॉक्टर पंकज से उनको समेकित कृषि के बारे में समय-समय पर बेशकीमती सलाह प्राप्त हुई, जिससे उनके लिए मंजिल आसान होती गई। वे बताते हैं कि इस प्रोजेक्ट पर उन्होंने किसी और से किसी तरह की आर्थिक मदद नहीं जुटाई है एवं अपने स्तर पर ही आवश्यक धन राशि का प्रबंध किया।

युवाओं को जोड़ने की इच्छा

समेकित कृषि को अपनाने का कारण वे बेरोजगारी का समाधान मानते हैं। उनका मानना है कि ऐसे प्रोजेक्ट्स के कारण इलाके के बेरोजगारों को आमदनी का जरिया भी प्राप्त हो सकेगा।

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नए प्रयोग

आधार स्थापना के साथ ही अब दीपक कुमार के कृषि फार्म पर गोबर गैस प्लांट ने काम करना शुरू कर दिया है। उन्होंने बताया कि उनके फार्म पर गाय, बकरी, भैंस, सभी पशुओं के प्रिय आहार, सौ फीसदी से भी अधिक प्रोटीन से भरपूर अजोला की भी खेती की जा रही है। इस चारा आहार से पशु की क्षमता में वृद्धि होती है।

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आपको बता दें अजोला घास जिसे मच्छर फर्न (Mosquito ferns) भी कहा जाता है, जल की सतह पर तैरने वाला फर्न है। अजोला अथवा एजोला (Azolla) छोटे-छोटे समूह में गठित हरे रंग के गुच्छों में जल में पनपता है। जैव उर्वरक के अलावा यह कुक्कुट, मछली और पशुओं का पसंदीदा चारा भी है। इसके अलावा समेकित कृषि प्रणाली आधारित कृषि फार्म में हाइड्रोपोनिक्स (Hydroponics) तकनीक द्वारा निर्मित हरा चारा तैयार किया जा रहा है। 

इसमेें गेहूं, मक्का का चारा तैयार होता है। आठ से दस दिन की इस प्रक्रिया के उपरांत चारा तैयार हो जाता है। अनुकूल परिस्थितियों में हाइड्रोपोनिक्स चारे में 9 दिन में 25 से 30 सेंटीमीटर तक वृद्धि दर्ज हो जाती है। इस स्पेशल कैटल डाइट में प्रोटीन और पाचन योग्य ऊर्जा का प्रचुर भंडार मौजूद है। उनके अनुभव से वे बताते हैं कि इस प्रक्रिया में लगने वाला एक किलो गेहूं या मक्का तैयार होने के बाद दस किलो के बराबर हो जाता है। अल्प लागत में प्रोटीन से भरपूर तैयार यह चारा फार्म में पल रहे प्रत्येक जीव के जीवन चक्र में प्राकृतिक रूप से कारगर भूमिका निभाता है।

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हाइड्रोपोनिक्स (Hydroponics) अर्थात जल संवर्धन विधि से हरा चारा तैयार करने में मिट्टी की जरूरत नहीं होती। इसे केवल पानी की मदद से अनाज उगाकर निर्मित किया जा सकता है। इस विधि से निर्मित चारे को ही हाइड्रोपोनिक्स चारा कहते हैं। यदि आप भी इस फार्म के आसपास से यदि गुजर रहे हों तो यहां समेकित कृषि प्रणाली में पलने बढ़ने वाले जीवों और उनके जीवन चक्र को समझ सकते हैं। 

अन्य कृषि मित्र इस तरह की खेती से अपने दीर्घकालिक लाभ का प्रबंध कर सकते हैं। (फार्म संचालक दीपक कुमार द्वारा दूरभाष संपर्क पर दी गई जानकारी पर आधारित, आप इस फार्म के बारे में फेसबुक लिंक पर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।) 

संपर्क नंबर - 8797538129, दीपक कुमार 

फेसबुक लिंक- https://m.facebook.com/Karai-Gramin-Paryatan-Prakritik-Park-Naubatpur-Patna-Bihar-100700769021186/videos/1087392402043515/

यूट्यूब लिंक-https://youtube.com/channel/UCfpLYOf4A0VHhH406C4gJ0A

भेड़, बकरी, सुअर और मुर्गी पालन के लिए मिलेगी 50% सब्सिडी, जानिए पूरी जानकारी

भेड़, बकरी, सुअर और मुर्गी पालन के लिए मिलेगी 50% सब्सिडी, जानिए पूरी जानकारी

अगर आप भी भेड़, बकरी, सुअर या मुर्गी पालन से जुड़े काम में इच्छुक हैं और इनसे जुड़ा व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं, तो आप भी इस योजना का लाभ ले सकते हैं। इसके अंतर्गत आपको 50% की सब्सिडी दी जाती है। 

हमारे देश में काफी लोग अभी भी पालतू पशुओं को पालते हैं जो उनकी जीविका का प्रमुख स्रोत है। देश में एसे ही पशुपालकों को बढ़ावा देने के साथ साथ उन्हें उचित रोजगार देने की व्यवस्था इस योजना में की गई है। 

केंद्र सरकार ने इस मिशन को नेशनल लाइवस्टॉक मिशन (National Livestock Mission) नाम से शुरु किया है।

इस मिशन के तहत अपना फार्म शुरु करने वाले किसानों को पशुपालन विभाग की तरफ से 50% सब्सिडी का प्रावधान है। 

उत्तराखंड लाइवस्टॉक डेवलपमेंट बोर्ड के अपर प्रबंधक डॉ विशाल शर्मा इस योजना के बारे में अपनी राय देते हुए कहते हैं, "ये छोटे पशुओं जैसे कि भेड़, बकरी और सुअर के लिए के लिए योजना है, इसमें कोई भी पशुपालक अपना कारोबार शुरू करना चाहता हो तो वो इसका लाभ ले सकता है।" 

इस योजना में अगर कोई पशुपालक भेड़ या बकरी पालने का इच्छुक है तो उसे 500 मादा बकरी के साथ ही 25 नर भी पालने होगें। 

अगर कोई भी व्यक्ति इस योजना का लाभ उठाना चाहता है तो वह भारत सरकार की वेबसाइट https://nlm.udyamimitra.in/ पर जाकर इसमें आवेदन कर सकता है।

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इस योजना में आगे डॉ. विशाल बताते हैं, "अगर आप इसके लिए फॉर्म भरते हैं और किसी बैंक की डिटेल सबमिट करते हैं तो उस बैंक अकाउंट में मिलने वाली कुल राशि की आधी राशि होनी चाहिए, 

जैसे कि अगर आपका प्रोजेक्ट 20 लाख का है तो आपके खाते में 10 लाख रुपए होने चाहिए, अगर आपके खाते में आधी राशि नहीं है तो इसके लिए आप बैंक से लोन भी ले सकते हैं।" 

लोन मिलने के बाद आपको आवेदन करते समय इसकी डिटेल भी सबमिट करनी होगी और अगर किसी कारणवश आपको लोन नहीं मिलता तो इसकी जानकारी आपको ऑनलाइन आवेदन करते समय देनी होगी। 

आपका फॉर्म ऑनलाइन सबमिशन के बाद उत्तराखंड के देहरादून मुख्यालय पर वरिष्ठ अधिकारी उसकी जांच करते हैं कि आपके द्वारा दिए गए सभी आंकड़े सही हैं। 

अगर आपके द्वारा दिए गए आंकड़े सही हैं तो उसे प्रिंसिपल सहमति दी जाएगी। इसके बाद आपके दस्तावेज बैंक के पास पुनः जांच के लिए जाएंगे, जिसे बैंक वेरीफाई करेगा की आपके द्वारा दी गई जानकारी सही है या नहीं। 

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इसके बाद आगे डॉ. शर्मा आगे कहते हैं, "वहां बैंक सब चेक करने के बाद आपका आवेदन एक बार फिर हमारे पास आ जाएगा, जो समिति के पास आएगा, 

वहां से सबमिट होने के बाद पशुपालन व डेयरी मंत्रालय, फिर भारत सरकार के पास जाएगा, इसके बाद आपके आवेदन में जिस बैंक की डिटेल भरी है वो बैंक सीधे लाभार्थी के खाते में 50% राशि भेज देगा।

मुर्गी पालन की आधुनिक तकनीक (Poultry Farming information in Hindi)

मुर्गी पालन की आधुनिक तकनीक (Poultry Farming information in Hindi)

हालांकि मुर्गी पालन की शुरुआत करना एक बहुत ही आसान काम है, परंतु इसे एक बड़े व्यवसाय के स्तर पर ले जाने के लिए आपको वैज्ञानिक विधि के तहत मुर्गी पालन की शुरुआत करनी चाहिए, जिससे आपकी उत्पादकता अधिकतम हो सके।

मुर्गी पालन (Poultry Farming)

किसानों के द्वारा स्थानीय स्तर पर मुर्गी पालन (पोल्ट्री फार्मिंग, Poultry farming)या कुक्कुट पालन(kukkut paalan) का व्यवसाय पिछले एक दशक में काफी तेजी से बढ़ा है। 

इसके पीछे का मुख्य कारण यह है कि पिछले कुछ सालों में प्रोटीन की मांग को पूरा करने के लिए मीट और मुर्गी के अंडों की डिमांड मार्केट में काफी तेजी से बढ़ी है।

क्या है मुर्गी पालन ?

सामान्यतया मुर्गी के छोटे बच्चों को स्थानीय स्तर पर ही एक फार्म हाउस बनाकर पालन किया जाता है और बड़े होने पर मांग के अनुसार उनके अंडे या फिर मीट को बेचा जाता है। 

हालांकि भारत में अभी भी मीट की डिमांड इतनी अधिक नहीं है, परंतु पश्चिमी सभ्यताओं के देशों में पिछली पांच सालों से भारतीय मुर्गी के मीट की डिमांड काफी ज्यादा बढ़ी है।

कब और कहां हुई थी मुर्गी पालन की शुरुआत ?

आधुनिक जिनोमिक रिपोर्ट्स की जानकारी से पता चलता है कि मुर्गी पालन दक्षिणी पूर्वी एशिया में सबसे पहले शुरू हुआ था और इसकी शुरुआत आज से लगभग 8000 साल पहले हुई थी। 

भारत में मुर्गी पालन की शुरुआत वर्तमान समय से लगभग 2000 साल पहले शुरू हुई मानी जाती है, परंतु आज जिस बड़े स्तर पर इसे एक व्यवसाय के रूप में स्थापित किया गया है, इसकी मुख्य शुरुआत भारत की आजादी के बाद ही मानी जाती है। 

हालांकि भारत में पोल्ट्री फार्मिंग के अंतर्गत मुर्गी पालन को सबसे ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है, परंतु मुर्गी के अलावा भी मेक्सिको और कई दूसरे देशों में बतख तथा कबूतर को भी इसी तरीके से पाल कर बेचा जाता है। 

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कैसे करें मुर्गी पालन की शुरुआत ?

हालांकि मुर्गी पालन की शुरुआत करना एक बहुत ही आसान काम है, परंतु इसे एक बड़े व्यवसाय के स्तर पर ले जाने के लिए आपको वैज्ञानिक विधि के तहत मुर्गी पालन की शुरुआत करनी चाहिए, जिससे आपकी उत्पादकता अधिकतम हो सके।

  • बनाएं एक बिजनेस प्लान :

मुर्गी पालन को भी आपको एक बड़े व्यवसाय की तरह ही सोच कर चलना होगा और इसके लिए आपको एक बिजनेस प्लान भी बनाना होगा, इस बिजनेस प्लान में आप कुछ चीजों को ध्यान रख सकते हैं जैसे कि- मुर्गी फार्म हाउस बनाने के लिए सही जगह का चुनाव, अलग-अलग प्रजातियों का सही चुनाव, मुर्गियों में बड़े होने के दौरान होने वाली बीमारियों की जानकारी और मार्केटिंग तथा विज्ञापन के लिए एक सही स्ट्रेटजी।

  • करें सही जगह का चुनाव :

मुर्गी पालन के लिए कई किसान छोटे फार्म हाउस से शुरुआत करते है और इसके लिए लगभग 15000 से लेकर 30000 स्क्वायर फीट तक की जगह को चुना जा सकता है, जबकि बड़े स्तर पर शुरुआत करने के लिए आपको लगभग 50000 स्क्वायर फीट जगह की जरूरत होगी।

किसान भाइयों को इस जगह को चुनते समय ध्यान रखना होगा कि यह शहर से थोड़ी दूरी पर हो और शांत वातावरण होने के अलावा प्रदूषण भी काफी कम होना चाहिए। इसके अलावा बाजार से फार्म की दूरी भी ज्यादा नहीं होनी चाहिए।

यदि आपका घर गांव के इलाके में है, तो वहां पर भी मुर्गी पालन की अच्छी शुरुआत की जा सकती है।

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  • कैसे बनाएं एक अच्छा मुर्गी-फार्म ?

किसी भी प्रकार के मुर्गी फार्म को बनाने से पहले किसान भाइयों को अपने आसपास में ही सुचारू रूप से संचालित हो रहे दूसरे मुर्गी-फार्म की जानकारी जरूर लेनी चाहिए। इसके अलावा भी, एक मुर्गी फार्म बनाते समय आपको कुछ बातों का ध्यान रखना होगा जैसे कि :-

    • अपने मुर्गी फार्म को पूरी तरीके से हवादार रखें, साथ ही उसे ऊपर से अच्छी तरीके से ढका जाना चाहिए,जिससे कि बारिश और सूरज की गर्मी से होने वाली मुर्गियों की मौत को काफी कम किया जा सकता है।
    • इसके अलावा कई जानवर जैसे कि कुत्ते,बिल्ली और सांप इत्यादि से बचाने के लिए सुरक्षा की भी उचित व्यवस्था की जानी चाहिए।
    • मुर्गियों को दाना डालने के लिए कई प्रकार के डिजाइनर बीकर बाजार में उपलब्ध है, परंतु आपको एक साधारण जार को ज्यादा प्राथमिकता देनी चाहिए, डिजाइनर बीकर देखने में तो अच्छे लगते हैं, लेकिन उनमें चूजों के द्वारा अच्छे से खाना नहीं खाया जाता है।
    • मुर्गियों को नीचे बैठने के दौरान एक अच्छा धरातल उपलब्ध करवाना होगा, जिसे समय-समय पर साफ करते रहने होगा।
    • यदि आप अंडे देने वाली मुर्गीयों का पालन करते हैं तो उनके लिए बाजार से ही तैयार अलग-अलग प्रकार के घोसले इस्तेमाल में ले सकते हैं।
    • रात के समय मुर्गियों को दाना डालने के दौरान इलेक्ट्रिसिटी की पर्याप्त व्यवस्था करनी होगी।
    • आधुनिक मुर्गी-फार्म में इस्तेमाल में होने वाले हीटिंग सिस्टम का भी पूरा ख्याल रखना चाहिए,क्योंकि सर्दियों के दौरान ब्रायलर मुर्गों में सांस लेने की तकलीफ होने की वजह से उनकी मौत भी हो सकती है।
    • अलग-अलग उम्र के चूजों को अलग-अलग क्षेत्र में बांटकर दाना डालना चाहिए, नहीं तो बड़े चूजों के साथ रहने के दौरान छोटे चूजों को सही से पोषण नहीं मिल पाता है।
  • कैसे चुनें मुर्गी की सही वैरायटी ?

वैसे तो विश्व स्तर पर मुर्गी की लगभग 400 से ज्यादा वैरायटी को पालन के तहत काम में लिया जाता है, जिनमें से 100 से अधिक प्रजातियां भारत में भी इस्तेमाल होती है, हालांकि इन्हें तीन बड़ी केटेगरी में बांटा जाता है, जो कि निम्न है :-

इस प्रजाति की वृद्धि दर बहुत अधिक होती है और यह लगभग 7 से 8 सप्ताह में ही पूरी तरीके से बेचने के लिए तैयार हो जाती है।

इसके अलावा इनका वजन भी अधिक होता है, जिससे कि इनसे अधिक मीट प्राप्त किया जा सकता है।

कम समय में अधिक वजन बढ़ने की वजह से किसान भाइयों को कम खर्चा और अधिक मुनाफा प्राप्त हो पाता है।

    • रोस्टर मुर्गे (Rooster Chickens) :-

यह भारत में दूसरे नम्बर पर इस्तेमाल की जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण प्रजाति है।इस प्रजाति के मुर्गे मुख्यतः मेल(Male) होते है।

हालांकि इनको बड़ा होने में काफी समय लगता है, परन्तु इस प्रजाति के दूसरे कई फायदे है इसीलिए भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में इस प्रकार के मुर्गों को ज्यादा पाला जाता है।

यह चिकन प्रजाति किसी भी प्रकार की जलवायु में आसानी से ढल सकती है और इसी वजह से इन्हें एक जगह से दूसरी जगह पर बड़ी ही आसानी से स्थानांतरित भी किया जा सकता है।

    • अंडे देने वाली मुर्गी प्रजाति (Layer Chicken ) :-

इस प्रजाति का इस्तेमाल अंडे उत्पादन करने के लिए किया जाता है।यह प्रजाति लगभग 18 से 20 सप्ताह के बाद अंडे देना शुरु कर देती है और यह प्रक्रिया 75 सप्ताह तक लगातार चलती रहती है।

यदि इस प्रजाति के एक मुर्गी की बात करें तो वह एक साल में लगभग 240 से 250 अंडे दे सकती है।

हालांकि इस प्रजाति का इस्तेमाल बड़ी-बड़ी कंपनियां अंडे व्यवसाय के लिए करती है क्योंकि छोटे स्तर पर इनको पालना काफी महंगा पड़ता है।

  • कैसे प्राप्त करें लाइसेंस ?

मुर्गी पालन के लिए अलग-अलग राज्यों में कई प्रकार के लाइसेंस की आवश्यकता होती है, हालांकि पिछले कुछ समय से मुर्गी पालन की बढ़ती मांग के मद्देनजर भारतीय सरकार मुर्गी पालन के लिए आवश्यक लाइसेंस की संख्या को धीरे धीरे कम कर रही है।

वर्तमान में आपको दो प्रकार के लाइसेंस की आवश्यकता होगी।

किसान भाइयों को प्रदूषण बोर्ड के द्वारा दिया जाने वाला 'नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट' (No Objection Certificate) लेना होगा, साथ ही भूजल विभाग (Groundwater Department) के द्वारा पानी के सीमित इस्तेमाल के लिए भी एक लाइसेंस लेना होगा।

इन दोनों लाइसेंस को प्राप्त करना बहुत ही आसान है, इसके लिए ऊपर बताए गए दोनों विभागों की वेबसाइट पर अपने व्यवसाय के बारे में जानकारी डालकर बहुत ही कम फीस में प्राप्त किया जा सकता है।

  • कैसे चुनें मुर्गियों के लिए सही दाना ?

एक जानकारी के अनुसार मुर्गी पालन में होने वाले कुल खर्चे में लगभग 40% खर्चा मुर्गियों के पोषण पर ही किया जाता है और दाने की गुणवत्ता अच्छी होने की वजह से मुर्गियों का वजन तेजी से बढ़ता है, जिससे कि उनकी अंडे देने की क्षमता और बाजार में बिकने के दौरान होने वाला मुनाफा भी बढ़ता है।

वर्तमान में भारत में कई कंपनीयों के द्वारा मुर्गियों में कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन की पूर्ति के लिए दाना बनाकर बेचा जाता है, जिन्हें 25 और 50 किलोग्राम की पैकिंग में 25 रुपए प्रति किलो से 40 रुपए प्रति किलो की दर में बेचा जाता है।

कई कम्पनियों के दाने बड़े और मोटे आकार के होते है, जबकि कई कंपनियां एक पिसे हुए चूरे के रूप में दाना बेचती है।

भारतीय मुर्गी पालकों के द्वारा 'गोदरेज' और 'सुगुना' कंपनी के दानों को अधिक पसंद किया जाता है।

मुर्गी पालन की आधुनिक तकनीक :

पोल्ट्री सेक्टर से जुड़े वैज्ञानिकों के द्वारा मुर्गी पालन में किए गए नए अनुसंधानों की वजह से अब मुर्गी पालन में भी कई प्रकार की आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाने लगा है।

अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में तो रोबोट के द्वारा भी मुर्गी पालन किया जा रहा है। ऐसी ही कुछ नई तकनीक भारत में भी कुछ बड़े मुर्गीपालकों के द्वारा इस्तेमाल में ली जा रही है, जैसे कि :

  • ऑटोमेटिक मशीन की मदद से मुर्गियों के अंडे को बिना छुए ही सीधे गाड़ी में लोड करना और उनकी ऑटोमैटिक काउंटिंग करना। इस विधि में खराब अंडो को उसी समय अलग कर लिया जाता है।
  • कई प्रकार के ऑटोमेटिक ड्रोन (Drone)की मदद से मुर्गियों के द्वारा किए गए कचरे को एकत्रित कर, उसे एक जगह पर डाला जा रहा है और फिर बड़े किसानों से सम्पर्क कर उसे बेचा जाता है, जिसे एक अच्छे प्राकृतिक उर्वरक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
  • हाल ही में सन-डाउन (Sundown) नाम की एक कंपनी ने मुर्गीफार्म में बने धरातल पर बिछाने के लिए एक कारपेट का निर्माण किया है जोकि इस धरातल को बिल्कुल भी गीला नहीं होने देती और मुर्गियों के यूरिन को पूरी तरह सोख लेती है। जैसे-जैसे उसे यूरिन के रूप में और नमी मिलती है वैसे ही वह और ज्यादा मुलायम होता जाता है। इस कारपेट के इस्तेमाल के बाद नमी वाले धरातल पर संपर्क में आने पर मुर्गियों में होने वाली बीमारियों से बचाव किया जा सकता है।

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कैसे अपनाएं सही मार्केटिंग स्ट्रेटजी ?

किसी भी प्रकार के व्यवसाय के दौरान आपको एक सही दिशा में काम करने वाली मार्केटिंग स्ट्रेटजी को अपनाना अनिवार्य होता है, ऐसे ही मुर्गी पालन के दौरान भी आप कुछ बातों का ध्यान रख सकते हैं, जैसे कि :

  • अपने आसपास के क्षेत्र में सही दाम वाली कंपनी से सीधे संपर्क कर उन्हें आपके फार्म से ही अंडे और मुर्गियां बेची जा सकती है।मुर्गीपालकों को ध्यान रखना होगा कि आपको बिचौलियों को पूरी तरीके से हटाना होगा, क्योंकि कई बार मुर्गी पालकों को मिलने वाली कमाई में से 50% हिस्सा तो बिचौलिए ही ले लेते है।
  • यदि आप इंटरनेट की थोड़ी समझ रखते है तो एक वेबसाइट के जरिए भी आसपास के क्षेत्र में अंडे और मीट डिलीवरी करवा सकते है। बड़े स्तर पर इस प्रकार की डिलीवरी के लिए आप किसी मल्टी मार्केट कंपनी से भी जुड़ सकते है।
  • यदि आपके आसपास कोई बड़ा रेस्टोरेंट या फिर होटल संचालित होती है तो उनसे संपर्क करें, अपने फार्म से निरन्तर आय प्राप्त कर सकते हैं।
  • यदि आपका कोई साथी भी मुर्गी पालन करता है तो ऐसे ही कुछ लोग मिलकर एक कोऑपरेटिव सोसाइटी का निर्माण कर सकते हैं, जोकि बड़ी कंपनियों को आसानी से उचित दाम पर अपने उत्पाद बेच सकते हैं।

मुर्गी पालन के दौरान मुर्गियों में होने वाली बीमारियां तथा बचाव एवं उपचार :

मुर्गी पालन के दौरान किसान भाइयों को को मुर्गी में होने वाली बीमारियों से पूरी तरीके से बचाव करना होगा अन्यथा कई बार टाइफाइड जैसी बीमारी होने पर आपके मुर्गी फार्म में उपलब्ध सभी मुर्गियों की मौत हो सकती है। 

पशुधन मंत्रालय के द्वारा ऐसे ही कुछ बीमारियों के लक्षण और बचाव तथा उपचार के लिए किसान भाइयों के लिए एडवाइजरी जारी की गई है।

  • एवियन इनफ्लुएंजा (avian Influenza) :-

एक वायरस की वजह से होने वाली इस बीमारी से मुर्गियों में सांस लेने में तकलीफ होने लगती है और यदि इसका सही समय पर इलाज नहीं किया जाए तो एक सप्ताह के भीतर ही मुर्गियों की मौत भी हो सकती है।

प्रदूषित पानी के इस्तेमाल तथा बाहर से कई दूसरे पक्षियों से संपर्क में आने की वजह से मुर्गियों में इस तरह की बीमारी फैलती है।

इसके इलाज के लिए मुर्गियों को डिहाइड्रेट किया जाता है और उन्हें कुछ समय तक सूरज की धूप में रखा जाता है।

एवियन इनफ्लुएंजा के दौरान मुर्गियों की खाना खाने की इच्छा पूरी तरीके से खत्म हो जाती है और उनके शरीर में उर्जा भी बहुत कम हो जाती है।

  • रानीखेत रोग (Newcastle Disease) :-

यह रोग आसानी से एक मुर्गी से दूसरी में फैल सकता है।भारत के मुर्गीफ़ार्मों में होने वाली सबसे भयानक बीमारी के रूप में जाने जाने वाला यह रोग मुर्गियों के पाचन तंत्र को पूरी तरह से बिगाड़ देता है और उनकी अंडा उत्पादन करने की क्षमता पूरी तरीके से खत्म हो जाती है।हालांकि वर्तमान में इस बीमारी के खिलाफ वैक्सीन उपलब्ध है।

यदि किसान भाइयों को मुर्गियों में छींक और खांसी जैसे लक्षण नजर आए तो उनके संपर्क करने से बचें, क्योंकि यह मुर्गियों से इंसानों में भी फैल सकती है।

  • टाइफाइड रोग (Pullorum-Typhoid Disease) :-

यह एक बैक्टीरिया से होने वाली बीमारी है जिसमें चूज़े के शरीर के अंदर की तरफ घाव हो जाते है।

इस बीमारी का पता लगाने के लिए एक टेस्ट किया जाता है,जिसे सिरम टेस्ट बोला जाता है।यह एक मुर्गी से पैदा हुए चूजे में फैलता है।

इस बीमारी के दौरान चूजों के पैरों में सूजन आ जाती है और वह एक जगह से हिल भी नहीं पाते है, जिससे कि नमी से होने वाली बीमारियां भी बढ़ जाती है।

एक बार मुर्गी फार्म में इस बीमारी के फैल जाने पर इसे रोकना बहुत मुश्किल होता है, इसलिए समय-समय पर सीरम टेस्ट करवा कर इसे फैलने से पहले ही रोकना अनिवार्य होता है।

इनके अलावा भी कई बीमारियां मुर्गी पालकों के सामने चुनौती बनकर आ सकती है, लेकिन सही वैज्ञानिक विधि से उन रोगों को आसानी से दूर किया जा सकता है।

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मुर्गी पालकों के लिए संचालित सरकारी स्कीम एवं सब्सिडी :

पिछले 6 सालों से भारतीय निर्यात में मुर्गी पालन का योगदान काफी तेजी से बढ़ा है और इसी को मध्य नजर रखते हुए भारत सरकार और कई सरकारी बैंक मुर्गी पलकों के लिए अलग-अलग स्कीम संचालित कर रहे हैं। जिनमें कुछ प्रमुख स्कीम जैसे कि :

  • ब्रायलर प्लस स्कीम (Broiler Plus scheme) :-

यह स्कीम स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के द्वारा संचालित की जाती है और इसमें मुख्यतया मुर्गे की ब्रायलर प्रजाति पर ही ज्यादा फोकस किया जाता है।

इस स्कीम के तहत किसानों को मुर्गी पालन के लिए जगह खरीदने और दूसरे प्रकार के कई सामानों को खरीदने के लिए कम ब्याज पर लोन दिया जाता है।

'आत्मनिर्भर भारत स्कीम' के तहत सरकार के द्वारा इस लोन पर 3% की ब्याज रियायत भी दी जाएगी।

इस स्कीम के तहत पशुधन विभाग के द्वारा किसानों के बड़े ग्रुप को मुर्गी पालन से जुड़ी नई तकनीकों की जानकारी दी जाती है और पशु चिकित्सकों की मदद से मुर्गी पालन के दौरान होने वाली बीमारियों की रोकथाम के लिए मुफ्त में दवाई वितरण भी किया जाता है।

  • महिलाओं के लिए मुर्गी पालन स्कीम :-

हाल ही में तमिलनाडु सरकार ने महिलाओं के लिए एक स्कीम लॉन्च की है जिसके तहत मुर्गी पालन के दौरान होने वाले कुल खर्चे पर गरीब परिवार की महिलाओं को 50% सब्सिडी दी जाएगी वहीं सामान्य श्रेणी की महिलाओं को 25% तक सब्सिडी उपलब्ध करवाई जाएगी।

  • राष्ट्रीय पशुधन विकास योजना :-

2014 में लॉन्च हुई इस स्कीम के तहत ग्रामीण क्षेत्र के किसानों को फसल उत्पादन के लिए नई तकनीकी सिखाई जाने के साथ ही मुर्गियों की बेहतर ब्रीडिंग के लिए आवश्यक सामग्री भी उपलब्ध करवाई जाएगी। इसके अलावा ऐसे मुर्गीपलकों को अपने व्यवसाय को बड़ा करने के लिए मार्केटिंग स्ट्रेटजी के लिए भी ट्रेनिंग दी जाएगी।

वर्तमान में केरल और गुजरात के किसानों के द्वारा इस स्कीम के तहत काफी लाभ कमाया जा रहा है।

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ऊपर बताई गई जानकारी का सम्मिलित रूप से इस्तेमाल कर कई मुर्गी पालन अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं और यदि आप भी मुर्गी पालन को एक बड़े व्यवसाय के रूप में परिवर्तित करना चाहते हैं, तो कुछ बातों का ध्यान जरूर रखें,जैसे कि :

  • किसी थर्ड पार्टी कंपनी की मदद से अपने मुर्गी फार्म के बाहर ही एक मीट पैकिंग ब्रांच शुरु करवा सकते है, इस पैक किए हुए मीट को आसानी से बड़ी सुपरमार्केट कम्पनियों को बिना बिचौलिये के सीधे ही बेचा जा सकता है।
  • अपने व्यवसाय को बड़े पैमाने पर ले जाने के लिए आप किसी सेल्स रिप्रेजेंटेटिव को भी काम पर रख सकते है, जोकि नई मार्केटिंग स्ट्रेटजी की मदद से बिक्री को काफी बढ़ा सकता है।
  • मुर्गी पालन के दौरान आने वाले खर्चों में दाने के खर्चे को कम करने के लिए स्वयं भी मुर्गियों के लिए दाना तैयार कर सकते है,बस आपको ध्यान रखना होगा कि इससे चूजों के शरीर में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और फैट की कमी की पूर्ति आसानी से की जा सके।

आशा करते है कि सभी किसान भाइयों और मुर्गी पालकों को Merikheti.com के द्वारा दी गई जानकारी पसंद आई होगी और भविष्य में बढ़ती मांग की तरफ अग्रसर होने वाले मुर्गी-पालन व्यवसाय से आप भी अच्छा मुनाफा कमा पाएंगे।

इस तकनीक का प्रयोग कर बिना मुर्गीफार्म, मुर्गीपालक कमा सकते हैं बेहतर मुनाफा

इस तकनीक का प्रयोग कर बिना मुर्गीफार्म, मुर्गीपालक कमा सकते हैं बेहतर मुनाफा

अभी के समय में किसान खेती के साथ साथ अब पशुपालन में ज्यादा ध्यान दे रहे हैं और आपको जान कर हैरानी होगी कि आज के समय में किसानों के बीच पशु पालन में मुर्गी पालन सबसे ज्यादा लोकप्रिय हो रहा है। 

लेकिन आज भी किसान इस बात से बहुत हैरान हैं कि इस व्यवसाय में काफी लागत है, जैसे की मुर्गी फार्म बनाने के लिए जमीन और पैसा। लेकिन आज इस लेख में जो मैं बताने जा रहा हूं उसको जान कर आप हैरान हो जाएंगे, 

अब आप कम लागत में भी अपने घर के पास बैकयार्ड में भी मुर्गी पालन कर सकते हैं और अच्छा मुनाफा कमा सकते है। यह किसानों के लिए काफी किफायती साबित हो रहा है।

अगर आप भी अभी तक परेशान थे कि मुर्गीपालन के लिए बहुत जगह और पैसे की आवश्यकता है, तो अब इस बात को दिमाग से निकाल दें। अब कम जगह में मुर्गी पालन कर भी कमा सकते हैं पैसा। 

अगर आपके घर के बगल में है खाली जगह, तो वहाँ पर आप मुर्गियों के लिए बेड़े बना सकते हैं और उसमें मुर्गी पालन कर सकते हैं।

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आपको यह भी बता दें की घर के आस पास जगह होने से घरेलू लोग भी आसानी से उसमे काम कर सकते हैं और इससे आपका मजदूरी भी बचेगा जिससे आपको मुनाफा होगा। 

लेकिन इन सब बातों के अलावा जो सबसे महत्वपूर्ण बात है वह है मुर्गी के सही नस्लों को चुनना, जो आपके बेड़े में आसानी से रह सकें व उसको आसानी से पाला जा सके। 

गौरतलब है की पुरे भारत में मुर्गी के सैकड़ो प्रकार की नस्ल पाली जाती हैं। लेकिन आज कल जो सबसे प्रचलित और सबसे जयादा मुनाफा देने वाली नस्ल कड़कनाथ, केरी श्याम, स्वरनाथ, ग्रामप्रिये, वनराज आदि हैं। 

अगर आप भी मुर्गी पालन से कमाना चाहते हैं तो इसी सब नस्ल के मुर्गी का पालन करें। आपको यह भी बता दें की मुर्गीपालन को बढ़ावा देने के लिए सरकार के तरफ से बहुत सारे ऋण की भी सुविधा उपलब्ध है। 

साथ ही आपको यह जान कर हैरानी होगी की ये जो ऋण है उसका दर भी बहुत कम है और उसमे अनेक प्रकार के सब्सिडी की भी सुविधा सरकार के तरफ से किसानों को दी जा रही है।

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क्या क्या है सब्सिडी

आपको बता दें की मुर्गी पालन पे नेशनल लाइवस्टॉक मिशन स्कीम के तहत किसानो को 50 प्रतिशत तक का अनुदान दिया जाता है। इसके आलावा नाबार्ड के द्वारा भी मुर्गी पालन के लिए किसानों को बेहतर सब्सिडी की सुविधा दी जाती है।

इस सब्सिडी के अंतर्गत मुर्गी के स्वास्थ से लेकर मुर्गीफार्म के सुरक्षा तक पर सरकार के द्वारा बेहतर सब्सिडी दी जाती है।

कम लागत में बम्पर मुनाफा कम सकते हैं किसान

उपरोक्त सभी नस्लों के अलावा देसी मुर्गीपालन पर भी किसानों को काफी ध्यान है, जिसमें किसान देसी मुर्गी के एक चूजे को लगभग 50 रूपए में खरीदते हैं और वह मुर्गी साल भर बाद लगभग 200 अंडे देती है। 

अभी एक अंडे का कीमत कम से कम 7 रूपए है, अगर किसान इस तरीके से अच्छी खासी संख्या में मुर्गीपालन करते हैं, तो सालाना लाखों कमा सकते हैं। जब वह अंडा देना बंद कर दे तो इसके मांस को बेचकर भी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

इस योजना के तहत मुर्गी पालन के लिए नहीं देने होंगे बिजली बिल एवं लोन पर मिलेगी बंपर छूट

इस योजना के तहत मुर्गी पालन के लिए नहीं देने होंगे बिजली बिल एवं लोन पर मिलेगी बंपर छूट

आजकल आपको देखने को मिल रहा होगा कि किसान पारंपरिक खेती के अलावा पशुपालन पे भी ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। इतना ही नहीं युवाओं का रुझान भी पशु पालन की तरफ काफी बढ़ रहा है। अलग अलग राज्य सरकारें भी पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाएं चला रही हैं, जिससे लोग पशुपालन की तरफ आकर्षित होकर ज्यादा से ज्यादा पशुपालन कर सकें और मुनाफा कमा सकें। लेकिन आज जो मैं आपको बताने वाला हूँ वह मुर्गी पालन करने वाले किसानों के लिए बहुत जरूरी एवं बेहद खास है। गौरतलब हो कि विगत कुछ दिनों में विभिन्न राज्य सरकारें मुर्गी पालन को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाओं की शुरुआत की हैं। इसको देख काफी किसान मुर्गी पालन के लिए आकर्षित भी हुए हैं, और मुर्गी पालन करने का औसत भी बढ़ा है। इसी योजनाओं की शुरुआत के क्रम में उत्तर प्रदेश सरकार ने एक नई योजना की शुरुआत की है, जिससे मुर्गी पालक किसानों को बेहद लाभ मिलेगा। इस योजनाओं के तहत विभिन्न प्रकार के रोजगार भी सृजन होंगे और अंडे का भी उत्पादन काफी बड़ी मात्रा में किया जाएगा। उत्तर प्रदेश सरकार ने कुक्कुट विकास नीती 2022 योजना का ऐलान कर दिया है।

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क्या है योगी का यह घोषणा

कुक्कुट विकास नीती 2022 योजना के अंतर्गत 700 मुर्गी पालन इकाइयों की स्थापना की जाएगी। योगी सरकार ने मुर्गी पालन इकाई बनाने के बाद 1.75 लाख रोजगार के अवसर उपलब्ध होने की भी बात कही है। यह जानकर आपको बेहद आश्चर्य होगा की इस योजना के अंतर्गत मुर्गी पालन करने वाले किसान को पोल्ट्री के लिए जमीन अगर खरीदनी है तो उनको ये स्टांप ड्यूटी में 100% का छूट भी दिया जाएगा, मतलब उनका कोई पैसा नहीं लगेगा। इतना ही नहीं अगर वह मुर्गी पालन की ईकाई शुरू करते हैं, तो 10 साल तक उनको बिजली बिल भी नहीं देना पड़ेगा, उनका बिजली बिल पशुधन विभाग प्रतिपूर्ति करेगा। इस योजना के अंतर्गत मुर्गी पालक किसान यूनिट स्थापित करने के लिए जो लोन लिए हैं, उस लोन के ब्याज की अदायगी खुद सरकार की तरफ से किया जाएगा। आपको यह भी बता दें कि उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा फार्म की स्थापना करने के लिए जो लोन की सुविधाएं किसानों को दी जाएगी, उसमें 30% सब्सिडी दिया जायेगा। वहीं इसके साथ साथ किसानों को बिजली बिल पर 10 साल तक कोई टैक्स नहीं देना होगा।

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योजना का क्या है लक्ष्य

योगी सरकार की योजना का लक्ष्य है ज्यादा से ज्यादा मात्रा में रोजगार का सृजन करना। उनका कहना है कि जब 700 इकाइयों की स्थापना की जाएगी तो उससे तकरीबन 1.75 लाख रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे। वहीं इस योजना का यह भी लक्ष्य है, कि रोजाना लगभग 2 लाख अंडों का उत्पादन किया जाए। इसके साथ साथ उन्होंने यह भी कहा की इस योजना का यह भी लक्ष्य है कि 1.75 लाख ब्रायलर चूजों का भी उत्पादन हो, जिसके लिए ब्रायलर पैरेंट फार्म की स्थापना की भी बात योगी सरकार ने की है। योगी सरकार ने इस योजना को शुरुआत करते हुए यह कहा है कि इस योजना का लक्ष्य है कि उत्तर प्रदेश में अंडे का उत्पादन बढ़ाया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि अंडे का उत्पादन ही नहीं उसके निर्यात में भी इजाफा करना सरकार का मुख्य लक्ष्य होगा। सरकार का कहना है, कि जब अंडे का उत्पादन और निर्यात बढ़ेगा तो उससे उत्तर प्रदेश सरकार की अर्थव्यवस्था भी बहुत सुदृढ़ होने की संभावना दिखाई दे रही है।
कड़कनाथ पालें, लाखों में खेलें

कड़कनाथ पालें, लाखों में खेलें

इस दौर में कड़कनाथ(Kadaknath, also called Kali Masi) पालना आसान हो गया है। आप कड़कनाथ पाल कर अपनी आर्थिक हालत सुधार सकते हैं, महीने में हजारों कमा सकते हैं। कहते हैं, मूंछें हों तो नत्थूलाल की तरह वरना ना हो। इसे थोड़ा बदल लें तो कह सकते हैं कि मुर्गा खाना है, तो कड़कनाथ खाओ, वरना ना खाओ। दरअसल, कड़कनाथ ने पूरे मार्केट को हिला कर रख दिया है। यह मुर्गे की एक ऐसी प्रजाति है, जिसने पूरे बिजनेस मॉडल को बदल कर रख दिया है। इसकी कीमत तो ज्यादा है ही, पर जो स्वाद है, उसका क्या कहना। आप कड़कनाथ का मीट खाएं और बकरे का मटन, मुकाबला टक्कर का रहेगा।

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कई रोगों में लाभकारी

कड़कनाथ का महत्व इसलिए ज्यादा हो चला है, क्योंकि मेडिकल साइंस ने भी इसके मीट को अप्रूव किया है। कहा जाता है, कि अगर आपको हाई बीपी है, शुगर है, कमजोरी है और मन मिचलाता है, तो कड़कनाथ का मीट आपको फायदा करेगा। ऐसा कई लोगों का कहना है, कि कड़कनाथ का मीट खाने के बाद उनका बीपी, शुगर आदि कंट्रोल में रहता है। अब इसमें कितनी सच्चाई है, ये तो वही बता सकते हैं जो इसे खाते हैं। लेकिन, इसकी बढ़ती डिमांड यही इंगित करती है कि मुर्गे में दम है।

धोनी भी पाल रहे हैं कड़कनाथ

मशहूर क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी ने भी अपने फार्म हाउस में कड़कनाथ रखा है। पहले 100 चूजे लाए गए थे, अब इनकी संख्या सैकड़ों में हो गई है। कड़कनाथ का स्वाद ऐसा है, कि धोनी के फार्महाउस पर लोग लाइन लगाए रहते हैं कड़कनाथ के लिए और उन्हें पता चलता है माल खत्म हो गया है। दरअसल, इसके मीट का टेस्ट ही ऐसा है।

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रेट थोड़ा ज्यादा है

कड़कनाथ का रेट थोड़ा ज्यादा है, यह प्रति मुर्गा 1000 से 1600 रुपये तक बिकता है। अमूमन एक मुर्गा 900 ग्राम से लेकर 1500 ग्राम तक का होता है। उसी के हिसाब से इसका रेट वैरी करता है, आम तौर पर अगर आप देसी मुर्गा भी खाते हैं, तो उसका रेट 400 से 500 रुपये प्रति किलो है। वैसे, कॉकरेल आपको 300 रुपये प्रति किलो भी मिल जाएगा और बॉयलर 140 से 150 रुपये प्रति किलो पर, जो टेस्ट कड़कनाथ का है, उसका कोई जवाब नहीं।

कैसे पहचानें कड़कनाथ को

कड़कनाथ का खून, मीट सब काला होता है, इसकी ब्रीड पूरी तरह काली है। अगर कोई कड़कनाथ कह कर आपको लाल खून वाला मुर्गा दे रहा है तो सतर्क रहें।

Kadaknath Hen

कैसे करें कड़कनाथ का पालन

कड़कनाथ को पालना थोड़ा कठिन है, पहले तो आप मन बना लें कि कड़कनाथ ही पालना है। जब मन बन जाए तो मध्य प्रदेश या छत्तीसगढ़ चले जाएं, वहां इसके चूजे आपको ठीक रेट पर मिल जाएंगे। चूजों को कैसे 30 दिनों तक रखना है, इसकी बाकायदा ट्रेनिंग दी जाती है। उसे बहुत ध्यान से देखें फिर, चूजा लाने के पहले ट्रेनिंग में बताए गए तरीके से ही आप पोल्ट्री फार्म बनाएं।

कड़कनाथ (Kadaknath; Kali Masi)

कड़कनाथ (Kadaknath; Kali Masi)

ध्यान रखें, कड़कनाथ की ब्रीड को खुला पसंद है, इसलिए अगर आप ठीक-ठाक जमीन वाले हैं, आपके पास खुली जमीन है तो उसे ही इस्तेमाल करें। शुरुआती निवेश अगर आप 50000 रुपये से भी करते हैं, तो काम ठीक-ठाक चल निकलेगा। इसमें चूजों का दाना-पानी आ जाएगा, बढ़ते वक्त के साथ आपको ज्यादा निवेश करने की जरूरत पड़ेगी। उसके लिए आप बैंकों से भी संपर्क कर सकते हैं। बहुत कम इंट्रेस्ट रेट पर आपको आसानी से मुर्गापालन के लिए कोई भी बैंक लोन दे देगी।

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विभिन्न राज्य सरकारें मुर्गी पालन को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाओं की शुरुआत की हैं। इससे किसानों के द्वारा स्थानीय स्तर पर मुर्गी पालन (पोल्ट्री फार्मिंग, Poultry farming)या कुक्कुट पालन(kukkut paalan) का व्यवसाय पिछले एक दशक में काफी तेजी से बढ़ा है।

 
कड़कनाथ मुर्गे का पालन कर जाने कैसे लॉक डाउन में हो गया यह किसान मालामाल

कड़कनाथ मुर्गे का पालन कर जाने कैसे लॉक डाउन में हो गया यह किसान मालामाल

नॉनवेज खाने वाले लोग यह अच्छी तरह से जानते हैं कि चिकन का स्वाद बेहद अच्छा लगता है. लेकिन अगर स्वाद के साथ-साथ यह गुणकारी भी हो तो क्या कहना.यहां पर हम कड़कनाथ मुर्गे की बात कर रहे हैं.आजकल बाजार में कड़कनाथ मुर्गी का मांस और अंडे दोनों ही काफी ज्यादा डिमांड में है जिसके कारण बहुत से युवा कड़कनाथ पालन की ओर रुख कर रहे हैं. आज हम आपको मध्य प्रदेश के एक किसान विपिन शिवहरे के बारे में बताने वाले हैं जिन्होंने लॉकडाउन के समय में कड़कनाथ पालन करना शुरू किया था. अब उनका यह व्यवसाय अच्छा खासा फल फूल गया है और वह से बढ़िया मुनाफा कमा रहे हैं. विपिन से हुई बातचीत में पता चला है कि उन्होंने यह व्यवसाय ₹2 लाख की लागत लगाकर शुरू किया था. आज उनके पास लगभग 12000 मुर्गियां हैं और वह इनको बहरीन जैसे बाहरी देशों में भी निर्यात कर रहे हैं. 

लॉकडाउन के समय शुरू किया व्यवसाय

विपिन शिवहरे के लिए यह सफर आसान नहीं रहा है. एक गरीब परिवार ताल्लुक रखने वाले ने केवल 12वीं तक पढ़ाई की है और उसके बाद वह मुंबई नौकरी की तलाश में निकल गई थी. मुंबई में उन्होंने 16 सो रुपए प्रति माह के वेतन से फूड पैकर के तौर पर नौकरी शुरू की. बाद में उन्होंने वेटर और मैनेजर के तौर पर पदोन्नति पाते हुए ₹16000  प्रतिमाह की आमदनी कम आना शुरू कर दिया था. विपिन बताते हैं कि इस दौरान उन्होंने अपनी बहन और भाई दोनों की शादी करवा दी थी और  गांव में एक छोटा सा घर बनाने में भी कामयाब रहे. 

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लेकिन लाखों की तरह उनके लिए भी कोविड-19 बहुत बड़ी समस्या सामने लेकर आए और उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ा. नौकरी छूट जाने के बाद वह मुंबई में ही रुके रहे और उन्होंने सब्जियां आदि बेचने का काम करते हुए किसी तरह अपना गुजर बसर किया लेकिन अंततः उन्हें गांव में वापस लौट कर ही आना पड़ा. विपिन के एक दोस्त कड़कनाथ पालन पहले से करते आ रहे थे तो उन्हें उसका ख्याल आया और समय के अनुसार कड़कनाथ मांस की बढ़ती हुई डिमांड के कारण उन्होंने भी यह व्यवसाय अपनाने का फैसला किया. पैसों की तंगी के कारण उन्हें बैंक से ₹200000 उधार में लेने पड़े और विपिन ने बताया कि कड़कनाथ पालन की पूरी जानकारी दी उन्होंने इंटरनेट के माध्यम से ही प्राप्त की.मध्य प्रदेश राज्य के झाबुआ और धार जिलों में भील और भिलाला में आदिवासी समुदायों द्वारा कड़कनाथ मुर्गियों को पाला जाता है.

कड़कनाथ चिकन स्वाद में तो बेहतरीन होता ही है साथ ही साथ इस के मांस की क्वालिटी और सेहत के लिए उसका गुणकारी होना भी बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है. सेहत के लिए अच्छा होने के कारण देश के बहुत से राज्यों में इसकी डिमांड आए दिन बढ़ रही है. विपिन ने अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए शुरू में झाबुआ से कड़कनाथ के पक्षी खरीदे जो उसे ₹900 प्रति पक्षी के हिसाब से दिए गए. उन्होंने बताया कि शुरू शुरू में पैसों की कमी के कारण चूजों की देखभाल करना भी काफी मुश्किल हो रहा था.बहुत बार ऐसी स्थिति भी सामने आई जब उन्हें केवल अपने पक्षियों को खाना खिलाने के लिए भी उधार पैसा  लेना पड़ा.  ऐसे में विपिन ने एक बार अपने व्यवसाय के बारे में यूट्यूब पर वीडियो अपलोड किया और कुछ ही दिनों में ओडिशा के एक बहुत बड़े व्यापारी ने उन्हें फोन किया.  इस व्यापारी ने विभिन्न से मुर्गे खरीदने को लेकर एक डील की और एडवांस में उसे ₹100000 भी दिए. 

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कितने समय में तैयार हो जाते हैं कड़कनाथ मुर्गे

कड़कनाथ मुर्गे चार से छह महीने के अंतराल में बिक्री के लिए तैयार हो जाते हैं. यह मुर्गे 5 महीने में लगभग डेढ़ किलो वजन तक पहुंच जाते हैं. ज्यादातर नर्क कड़कनाथ का वजन डेढ़ किलोग्राम के आसपास रहता है तो वहीं पर मुर्गियां 1 से 1.2 किलोग्राम वजन पर पहुंच जाती है.कड़कनाथ मुर्गी के चूजे को भी बेचा जा सकता है और विपिन भी ऐसा करते हैं. उन्होंने बताया कि वह कड़कनाथ चूजे से लगभग ₹500 में बेचते हैं. और महीने भर में वह लगभग 3,000 चूजे बेच देते हैं. पूरी तरह से व्यस्क मुर्गों को बेचकर वह लगभग महीने में ₹40000 कमा लेते हैं. इस तरह से विपिन द्वारा लिया गया एक सही कदम उनके लिए बहुत ही बेहतरीन साबित हुआ और वह आज आर्थिक रूप से बेहद सक्षम है और अच्छी तरह से अपना व्यवसाय आगे बढ़ा रही हैं.

जानें भारत में पौराणिक काल से की जाने वाली कृषि के बारे में, कमाएं कम खर्च में अधिक मुनाफा

जानें भारत में पौराणिक काल से की जाने वाली कृषि के बारे में, कमाएं कम खर्च में अधिक मुनाफा

परमाकल्चर' कृषि को 'कृषि का स्वर्ग' कहा जाए तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है, इसकी वजह फसल, मवेशी, पक्षी, मछलियां, झाड़ी, पेड़ एक पारितंत्र का निर्माण कर देते हैं। न्यूनतम व्यय करके किसानों की आमदनी बढ़ोत्तरी करने की उम्दा रणनीति है। खेती-किसानी में हुए समय समय पर नवीन परिवर्तन देखे जा रहे हैं। इस क्षेत्र में प्रयासरत कृषि वैज्ञानिकों के आविष्कार एवं कुछ किसानों के नवाचार का परिणाम है। वर्तमान में भारत भी कृषि के क्षेत्र में बहुत मजबूती से उभर कर सामने आ रहा है, यहां कृषि संबंधित काफी दिक्कतें तो हैं, साथ ही समाधान भी निकल लिया जाता है। आजकल कृषकों के समक्ष सबसे बड़ी दिक्क्त यह है कि उनको किसी भी फसल के उत्पादन हेतु काफी खर्च करना पड़ता है, जिसकी वजह से किसान समुचित लाभ अर्जित नहीं कर पते हैं। लेकिन किसानों की खेती में दिलचस्पी होने के लिए लाभ अहम भूमिका निभाता है। विदेशी किसानों के समक्ष यह चुनौती नहीं है, क्योंकि विदेशी किसान 'परमाकल्चर' कृषि पर कार्यरत हैं। इस इको-सिस्टम के अंतर्गत पशु, पक्षी, मछली, फसल, झाडियां, पेड़-पौधे आपस में ही एक-दूसरे की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। एक तरह से देखें तो भारत की एकीकृत कृषि प्रणाली के समरूप, जिसके अंतर्गत खेती-किसानी सहित पशु चारा उत्पादन, सिंचाई, बागवानी, वानिकी, पशुपालन, मुर्गी पालन, मछली पालन, खाद निर्माण इत्यादि का कार्य एक स्थाई भूमि पर किया जाता है। इसको स्थाई कृषि अथवा परमाकल्चर के नाम से जाना जाता है। एक बार आरंभ में व्यय करना आवश्यक होता है, उसके उपरांत इस इकोसिस्टम के माध्यम से आपस में प्रत्येक वस्तु की आपूर्ति होती रहती है एवं न्यूनतम व्यय में अत्यधिक पैदावार अर्जित कर सकते हैं।

परमाकल्चर फार्मिंग से हो सकता है अच्छा मुनाफा

यदि किसान चाहे तो स्वयं के खेत को परमाकल्चर में परिवर्तित कर सकता है। लघु किसानों हेतु तो यह उपाय वरदान वरदान के समरूप है। कम भूमि द्वारा बेहद लाभ अर्जित करने हेतु परमाकल्चर द्वारा बेहतरीन लाभ कमाया जा सकता है क्योंकि यह काफी अच्छा विकल्प होता है। इस कृषि पद्धति के अंतर्गत सर्वाधिक ध्यान जल के प्रबंधन एवं मृदा की संरचना को अच्छा बनाने हेतु रहता है। मृदा की संरचना यदि उत्तम रही तो 1 एकड़ भूमि द्वारा भी लाखों में लाभ लिया जा सकता है। परमाकल्चर कृषि आमदनी का बेहतरीन स्त्रोत होने के साथ साथ पर्यावरण संरक्षण एवं जैवविविधता हेतु भी बहुत ज्यादा लाभदायक होती है।
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परमाकल्चर के सबसे बेहतरीन बात यह है, कि इसके लिए किसी प्रकार का अतिरिक्त निवेश नहीं किया जाता है। विशेषरूप से किसानों के समीप गांव में हर तरह के संसाधन उपलब्ध होते हैं। परमाकल्चर की सहायता से किसान को कम व्यय में भिन्न-भिन्न प्रकार का उत्पादन (उत्पादन में विविधता) एवं अधिकाँश मात्रा में उत्पादन अर्जन करने में काफी सहायता प्राप्त होती है। परमाकल्चर को पैसा बचाकर, पैसा कमाने वाला सिस्टम भी कहा जाता है, क्योंकि पशुओं के अवशिष्ट द्वारा खाद-उर्वरक निर्मित किए जाते हैं, जिससे कि रसायनिक उर्वरकों पर किए जाने वाला व्यय बच जाता है। जिससे पशुओं को खेत से बहुत सारी फसलों के अवशेष खाने हेतु मिल जाते हैं, जो दूध के उत्पादन में भूमिका निभाता है। जल का समुचित प्रबंधन करने से सिंचाई हेतु किए जाने वाला व्यय बच जाता है। साथ ही, इसी जल के अंदर मछली पालन भी किया जा सकता है। जिसके हेतु खेत के एक भाग में तालाब निर्मित किया जाता है, जहां बारिश का जल इकत्रित किया जाता है। इस कृषि पद्धति से कोई हानि नहीं होती है। अगर किसान खेत को परमाकल्चर के जरिए सृजन करें तो पर्यावरण सहित किसान की प्रत्येक जरूरत खेत की चारदीवारी में ही पूर्ण हो सकती है।

भारत एक ऐसा देश है जहां परमाकल्चर कृषि पौराणिक काल से की जाती है

वर्तमान के आधुनिक दौर में मशीन, तकनीक एवं विज्ञान द्वारा खेती के ढ़ांचे को परिवर्तित करके रख दिया है, परंतु आज भी भारत ने अपनी परंपरागत विधियों द्वारा विश्वभर में अपना लोहा मनवाने का कार्य किया है। वर्तमान में भी देश कृषि उत्पादन में सबसे आगे है, साथ ही, भारत अनेकों देशों की खाद्य आपूर्ति को पूर्ण करने में अहम भूमिका निभाता है। देश द्वारा उच्च स्तरीय पैमाने पर कृषि खाद्य उत्पादों का निर्यात किया जा रहा है। आज हम भले ही कृषि क्षेत्र में एडवांस रहने हेतु विदेशी कल्चर एवं विधियों का प्रयोग कर रहे हों। परंतु, बहुत से ऐसी चीजें भी मौजूद हैं, जिनको विदेश में रहने वाले लोगों ने भी भारत से प्रेरित होकर आरंभ किया है। उन्हीं में से एक परमाकल्चर भी है। हो सकता है, आपको यह सुनने में अजीब सा अनुभव हो, परंतु भारत के लिए परमाकल्चर किसी नई विधि का का नाम नहीं है। देश में इस कृषि पद्धति को वैदिक काल से ही उपयोग में लिया जा रहा है। क्योंकि भारत ने आरंभ से ही जैव विविधता एवं पर्यावरण संरक्षण का कार्य करते हुए खाद्य आपूर्ति को सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई है। हालांकि मध्य के कुछ दशकों में कृषि के क्षेत्र में तीव्रता से बहुत ज्यादा परिवर्तन देखने को मिले हैं, परिणामस्वरूप हम अपने ही महत्त्व को विस्मृत करते जा रहे हैं।
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आपको जानकारी के लिए बतादें कि परमाकल्चर की भाँति कृषि भारत में युगों-युगों से चलती आ रही है। इस कृषि में किसान परंपरागत विधि से उत्पादन करते हैं। पर्यावरण संतुलन हेतु खेत के चारों तरफ वृक्ष लगाए जाते हैं। पशुओं को पाला जाता है, जिनसे खेतों में जुताई की जा सके। इन पशुओं को खेतों से उत्पन्न चारा खिलाया जाता है, बदले में पशु दूध व गोबर प्रदान करते हैं। दूध का किसान अपने व्यक्तिगत कार्य में उपयोग करते हैं अथवा बेचकर धन कमाते हैं वहीं दूसरी तरफ गोबर का उपयोग खेती करने हेतु खाद निर्माण में किया जाता है। इस प्रकार से एक-दूजे की जरूरतें पूर्ण होती रहती हैं, वो भी किसी बाहरी अतिरिक्त व्यय के बिना ही। साथ ही, आपस में संतुलन भी कायम रहता है। आजकल कृषि करने हेतु बीज खरीदने के चलन में वृद्धि हुई है, जो कि जलवायु परिवर्तन के अनुरूप है। जबकि प्राचीन काल में फसल द्वारा बीजों को बचाकर आगामी बुवाई हेतु एकत्रित करके रखा जाता था, यही वजह है, कि पौराणिक काल से ही कृषि एक संतुलन का कार्य था ना कि किसी खर्च का।
केरल के मुर्गी पालकों की बढ़ी समस्याएं, कहर बरपा रहा है बर्ड फ्लू (Bird Flu)

केरल के मुर्गी पालकों की बढ़ी समस्याएं, कहर बरपा रहा है बर्ड फ्लू (Bird Flu)

हर बार थोड़े-थोड़े समय में हमें बर्ड फ्लू की खबर सुनने को मिल जाती है। बर्ड फ्लू एक संक्रामक बीमारी है, जो पक्षियों को प्रभावित करती है। जबकि मनुष्य आमतौर पर इस वायरस के संपर्क में नहीं आते हैं। बर्ड फ्लू (Bird Flu) या एवियन इन्फ्लुएंजा टाइप ए वायरस के संक्रमण के कारण होने वाली स्थिति है। जो आमतौर पर जंगली जलीय पक्षियों में देखी जाती है। यह घरेलू पोल्ट्री, अन्य पक्षियों और जानवरों को भी संक्रमित कर सकता है। हाल ही में केरल राज्य में बर्ड फ्लू (Bird Flu) की खबर आ रही है और रिपोर्ट की मानें तो यहां पर लगभग 3000 से ज्यादा पक्षियों की मौत हो चुकी है। बर्ड फ्लू ज्यादातर बतख और मुर्गियों को प्रभावित करता है। जिससे पोल्ट्री फार्म (Poultry Farm) में एक साथ सैकड़ों की संख्या में मुर्गियों और बत्तखों सहित अन्य पक्षियों की मौत हो जाती है। जब भी बर्ड फ्लू फैलता है, यह मुर्गी पालन का व्यवसाय करने वाले लोगों के लिए बेहद परेशानी का कारण बन जाता है। साथ ही, उन्हें भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। ऐसा ही कुछ आलम आजकल केरल के मुर्गी पालकों का है। यहां भारी मात्रा में मुर्गियों की बर्ड फ्लू से मौत हो रही है। जानकारी के मुताबिक, केरल के तिरुवनंतपुरम जिला स्थित पेरुंगुझी में एक फार्म में एवियन फ्लू से 200 बत्तखों की मौत हो गई है। इसके बाद राज्य सरकार ने एहतियाती कदम उठाते हुए एडवाइजरी जारी की है। वहीं, बर्ड फ्लू के फैलाव को रोकने के लिए पशुपालन विभाग ने तिरुवनंतपुरम में कई स्थानों पर पक्षियों को मारना शुरू किया। वार्ड सदस्यों की मदद से पेरुंगुझी जंक्शन वार्ड के एक किलोमीटर के दायरे में 3000 तक पक्षियों को मार गया है।

डॉक्टर को तुरंत सूचना दें

अगर रिपोर्ट की मानें तो जिन पक्षियों को बर्ड फ्लू हुआ है उनके अंडे, मांस, चारा और गोबर का भी निस्तारण किया जा रहा है। खास बात यह है, कि सरकार ने विभाग के निगरानी क्षेत्र की घोषणा में किझुविलम, कडक्कवूर, कीझाटिंगल, चिरायिंकीझू, मंगलापुरम, अंदूरकोणम और पोथेनकोड पंचायत को शामिल किया है। इसके अलावा इस माहौल में स्वास्थ्य विभाग भी सतर्क हो गया है। स्वास्थ्य विभाग की तरफ से आदेश जारी किया गया है, कि अगर किसी भी व्यक्ति को बुखार आ रहा है और सांस लेने में दिक्कत हो रही है, तो वह इसकी सूचना तुरंत डॉक्टर को दें।

बर्ड फ्लू से संक्रमित पक्षियों को संभालते हुए कैसे रखें अपना ख्याल

मुर्गियां, बत्तख, गीज़, बटेर, टर्की और अन्य पालतू पक्षियों को राज्य में बर्ड फ़्लू होने की सूचना मिली है। हालांकि, राज्य को अभी तक लोगों में एवियन फ्लू के संक्रमण की कोई रिपोर्ट नहीं मिली है। केरल के स्वास्थ्य विभाग ने उन सभी व्यक्तियों को सतर्क रहने की सलाह दी है, जो मुर्गी पालन में लगे हैं या फिर किसी भी तरह से बर्ड फ्लू होने वाले पक्षियों के संपर्क में आए हैं। डॉक्टर कुछ शुरुआती इलाज करने के बाद इसके निवारण के लिए दवाइयां दे देते हैं। साथ ही, स्वास्थ्य विभाग द्वारा एडवाइजरी जारी की गई है। सभी लोगों को आदेश दिए गए हैं, कि जब भी वह बर्ड फ्लू से संक्रमित होने वाले किसी भी पक्षी को संभाल रहे हैं तो दस्ताने और मास्क पहनना ना भूलें।


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साथ ही, बार बार साबुन से हाथ धोने की सलाह भी दी गई है। शरीर में गंभीर दर्द, बुखार, खांसी, सांस लेने में कठिनाई, सर्दी और कफ में खून आने जैसी शिकायत आने पर तुरंत चिकित्सकीय सलाह लेने की बात कही गई है। हालांकि बर्ड फ्लू मनुष्य को ज्यादा प्रभावित नहीं करता है। लेकिन फिर भी कुछ मामले देखे गए हैं, जिसमें यह बीमारी लोगों को हो सकती है। अगर इसका सही समय पर इलाज न किया जाए तो यह खतरनाक साबित हो सकती है।
प्लायमाउथ रॉक मुर्गी करेगी मालामाल, बस करना होगा ये काम

प्लायमाउथ रॉक मुर्गी करेगी मालामाल, बस करना होगा ये काम

प्लायमाउथ रॉक मुर्गी से मालामाल भला कोई कैसे हो सकता है, इस बारे में आप भी जरूर सोच रहे होंगे. लेकिन यह सच हो सकता है. जी हां अगर आप किसान हैं, और मुर्गी पालन का काम करते हैं, तो यह खबर आपके काफी काम आने वाली है. दरअसल किसान अपनी खेती के साथ पोल्ट्री फार्म का काम बखूबी कर रहे हैं. इस काम से उन्हें मोटी कमाई भी हो रही है. हालांकि ना सिर्फ किसान बल्कि अन्य लोग भी चिकन और अंडे का बिजनेस कर रहे हैं. जो उनेक परिवार के आय का स्रोत भी है. इस बिजनेस में ज्यादा इन्वेस्ट करने की जरूरत नहीं होती. यही इस बिजनेस की सबसे खास बात है. इस बिजनेस को शुरू करने के लिए सरकार भी किसानों को सब्सिडी की देती है. अब अगर आप भी अपनी आमदनी को दोगुना करना चाहते हैं, और मालामाल होना चाहते हैं, तो पोल्ट्री फार्म को शुरू करने से पहले इस खास नस्ल की मुर्गी के बारे में जान लें.

प्लायमाउथ रॉक मुर्गी

किसान अगर अपने पोल्ट्री फार्म में प्लायमाउथ रॉक नस्ल की मुर्गी पालने लग जाएं, तो वो कम ही समय में ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं. देसी मुर्गियों के मुकाबले प्लायमाउथ रॉक मुर्गी ज्यादा तंदरुस्त होती है, और बीमार भी कम पड़ती है. इसके अलावा यह मुर्गी अंडे भी ज्यादा देती है. अब ऐसे में किसान इसका चिकन और अंडे दोनों बेचकर ज्यादा कमाई करने में सक्षम हो सकते हैं.

मार्केट में ज्यादा डिमांड

प्लायमाउथ रॉक एक अमेरिकी नस्ल की मुर्गी होती है. लेकिन मार्केट में इसकी ज्यादा डिमांड की वजह से यह अब भारत में पाली जाने लगी है. जिस वजह से इसके चिकन के रेट भी मार्केट में ज्यादा हैं. रॉक बर्रेड रॉक के नाम से भारत में जानी जाने वाली यह मुर्गी हेल्थ के लिए काफी अच्छी होती है. इसका मीट भी हेल्थ के लिए काफी अच्छा होता है. इन्हीं खूबियों की वजह से प्लायमाउथ रॉक मुर्गी की डिमांड भारत में बढ़ रही है. ये भी देखें: कड़कनाथ पालें, लाखों में खेलें

ठंड में चाहिए देखभाल

प्लायमाउथ रॉक मुर्गी का शरीर देसी मुर्गी के शरीर के मुकाबले काफी बड़ा होता है. इसका वजन आमतौर पर 3-4kg तक होता है. गहरे भूरे रंग के अंडे देने वाली प्लायमाउथ रॉक मुर्गी हर साल 200-250 तक अंडे दे सकती है. इस मुर्गी के रंगों की बात करें तो यह बफ, वाइट, ब्लू सहित कई रंगों में आती है. इसका स्वभाव काफी शांत और मिलनसार है. प्लायमाउथ रॉक हमेशा घास में रहना पसंद करती है. बीस हफ्ते की उम्र में ही अंडे देने की क्षमता रखने वाली प्लायमाउथ रॉक मुर्गी हर हफ्ते चार से पांच अंडे दे सकती है. वैसे तो यह मुर्गी हर तरह के जलवायु में रह लेती है, लेकिन सर्दियों में इसे थोड़ी बहुत देखभाल की जरूरत होती है.