फसलों में बीजों से होने वाले रोग व उनसे बचाव
कई रोग बीज जनित होते हैं। यानी कि बीज के साथ ही किसी रोग संक्रमण के कारक मौजूद होते हैं। जैसे ही उन्हें विकास करने के लिए अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थिति मिलती है रोग का प्रसार तेज हो जाता है।
इन रोगों की जानकारी होना किसानों के लिए बेहद जरूरी है। यदि वह इन रोगों के बारे में जान लेंगे तो फसलों में होने वाले व्यापक नुकसान से बचा जा सकता है।
बीजों से होने वाले रोग व उनसे बचाव
धान की फसल
धान की फसल में 1121 एवं 1509 किस्म के धान में आने वाला बकानी रोग इसका जीता जागता उदाहरण है। धान में बकानी एवं पदगलन रोग भी बीज जनित होता है।बकानी रोग में चंद पौधे सामान्य से ज्यादा लम्बे हो जाते हैं और धीरे करके जल जाते हैं। यह रोग फसल में बहुत तेजी से फैलता है। इस रोग से बचाव के लिए प्रारंभ में ही संक्रमित पौधों को उखाड देना चाहिए।
उखाड़ते समय इस बात का भी ध्यान रखें कि गीली मिट्टी खेत में ज्यादा न फैले अन्यथा मिट्टी के साथ छिटक कर रोगाणु ज्यादा जगह को प्रभावित कर सकते हैं।
उपचार
रोग रहित बीज का प्रयोग करें। दो प्रतिशत नमक का घोल बनाकर उनमें बीज को भिगोएं। थोथे बीज को फैंक देंं। बाकी बचे बीज को कई बार साफ पानी से साफ करें ताकि उसमें नमक का अंश न रहे।बृद्धि कारक नाइट्रोजन आदि उर्वरकों का रोग संक्रमण के दौरान बिल्कुल भी प्रयोग न करें। ssबीज को उपचारित करके ही बोएं।
रोग संक्रमण के लक्षण प्रदर्शित होने पर प्रभावी फफूंदनाशी का छिड़काव भी करें साथ ही बालू में मिलाकर खेत में बुरकाव भी करें।
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गेहूं की फसल
गेहूं की फसल में लगने वाला कंडुआ रोग बीज जनित ही होता है। ज्यादातर किसान बीज को उपचारित करके नहीं बेचते। बीज विक्रेता कई राज्यों में बीज में दवा नहीं मिलाते।यह काम वह दुकानदारों को दोहरी परेशानियों से बचाने के लिए करते हैं। पहला दवा मिश्रित बीज से दुकान में बैठने के दौरान दिक्कत होती है। दूसरा बीज बचने पर उसे मण्डी आदि में बेच कर नुकसान की भरपाई नहीं हो पाती।
गेहूं का कंडुआ रोग बीज के भ्रूण में होता है। वह पौधे के विकास के साथ ही बढ़ता रहता है। जब फसल में बाली आने वाली होती है तब वह अपना प्रभाव दिखाता है।
किसी भी संक्रमित बाली में लाखों रोगाणु होते हैं। जब हवा चलती है तो यह रोगाणु एक बाली से उडकर दूसरी बाली में जाते हैं। इससे अधिकांश फसल प्रभावित हो जाती है।
बचाव
फसल को इस रेाग से बचाने के लिए बीज को उपचारित करके बोना चाहिए। इसके लिए 2.5 ग्राम थायरम या बाबस्टीन आदि किसी भी गैर प्रतिबंधित फफूंदनाशक दवा से प्रति किलोग्राम बीज में मिलाकार उपचार करना चाहिए। इसके बाद ही बीज को खेत में बोना चाहिए।सरसों कुल की फसलों के रोग
बंद गोभी, फूलगोभी, ब्रोकली, सरसों एवं मूली फसल में कृष्ण गलन रोग काफी नुकसान पहुंचाता है। यह रोग जीवाणु जनित होता है।रोग का प्रसार पत्त्यिों के किनारों पर हरिमाहीन धब्बों के बनने की प्रक्रिया से शुरू होता है। पत्तियों की शिराएं भूरी होकर बाद में काली पड़ जाती हैं। धीरे धीरे पत्तियां पीली पड़कर झड़ने लगती हैं।
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बचाव
रोग रहित बीज का प्रयोग करेंं। बीज को 50 डिग्री सेल्सियस गर्म पानी में आधा घण्टे तक रखेंं। संक्रमित पौधों को उखाड़ दें। रोग से छुटकारा पाने के लिए बीज का रासायनिक उपचार करें।इसके लिए एग्रीमाइसिन 100 की एक प्रतिशत अथवा स्टेप्टोसाइक्लिन एक प्रतिशत का उपयोग करें। खडी फसल पर स्टेप्टोसाइक्लिन 18 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा कॉपरआक्सीक्लोराइड का तीन प्रतिशत की दर से छिड़काव करना चाहिए।
प्याज का बैंगनी धब्बा रोग
यह रोग समूचे प्याज लहसुन की खेती वाले इलाकों में होता है। यह रोग पहले सफेद धंसे विक्षतों के रूप में दिखाई देता है। धीरे धीरे इनका आकार बढ़ता है और बाद में यह धारी का आकार ले लेते हैं। धीरे धीरे इनका रंग भूरा हेाता है और पौधा इसी स्थान से गलना आरंभ हो जाता है। इसके बाद सूखने लगता है।बचाव
बचाव के लिए बीज का थीरम से 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करने के बाद बोना चाहिए। फसल पर कार्बेन्डाजिम एवं मेन्कोजेब के मिश्रण का छिड़काब करना चाहिए।रोग का लक्षण दिखाई देने पर टोबुकोनाजोल 50 प्रतिशत एवं ट्राइफ्लोक्सीस्ट्राबिन 25 प्रतिशत का 80 से 100 ग्राम मात्रा में 200 लीटर पानी के साथ प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए।
बाजरा की फसल
बाजरा की फसल में भी अर्गट रोग लगता है। इसके अलावा हरी बाली रोग भी लगता है। इस तरह के रोगों का पता आरंभिक अवस्था में नहीं चलता।बाद में बाली बनने की अवस्था पर पता चलने पर शुरूआत में ही यदि उपचार किए जाए तो ठीक अन्यथा बालियों में दाने ही नहीं बनते और किसानों को केवल चारे से ही संतुष्ट होना पड़ता है।
इससे बचाव के लिए प्रतिरोधी किस्मों की बिजाई करें। बीज को प्रभावी दवाओं से उपचारित करके बोएंं।
1-पूसा बासमती 1 जिस की पैदावार 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर है 135 दिन में पक कर तैयार हो जाती है।
2-पूसा बासमती 1121 जिसकी पैदावार 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर है एवं 140 दिन में पक जाती है। पकाने के दौरान चावल 4 गुना लंबा हो जाता है।
3-पूसा बासमती 6 की पैदावार 55 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। आप पकने में 150 दिन का समय लेती है।
4-पूसा बासमती 1509 का उत्पादन 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है. यह पत्नी है 120 दिन का समय लेती है. जल्दी पकने के कारण बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है.
5-पूसा बासमती 1612 का उत्पादन 51 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है . पकने में 120 दिन का समय लेती है . यह ब्लास्ट प्रतिरोधी किस्म है।
6-पूसा बासमती 1592 का उत्पादन 47.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है .यह पकने में 120 दिन का समय लेती है .बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है.
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1-एचडी 3059 का उत्पादन 42.6 कुंतल प्रति हेक्टेयर व पकाव अवधि 121 दिन है। यह पछेती की किस्में है।
2-एचडी 3086 का उत्पादन 56.3 कुंटल एवं पकाव अवधि 145 दिन है।
3-एचडी 2967 का उत्पादन 45.5 कुंतल प्रति हेक्टेयर। वह पकने में 145 से लेती है।
4-एच डी सीएसडब्ल्यू 18 का उत्पादन 62.8 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। पीला रतुआ प्रतिरोधी 150 दिन में पकती है।
5-एचडी 3117 से 47.9 कुंटल उत्पादन 110 दिन में मिल जाता है । यह किस्म करनाल बंट रतुआ प्रतिरोधी पछेती किस्म है।
6-एचडी 3226 से 57.5 कुंटल उत्पादन 142 दिन में मिल जाता है।
7-एचडी 3237 से 4 कुंतल उत्पादन 145 दिन में मिलता है।
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1-पूसा एच एम 4 संकर किस्म से 64.2 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है । यह पकने में 87 दिन का समय देती है और इसमें प्रोटीन अत्यधिक है।
2-पूसा सुपर स्वीट कॉर्न संकर सै 93 कुंतल उत्पादन 75 दिन में मिल जाता है।
3-पूसा एचक्यूपीएम 5 संकर 64.7 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन 92 दिन में मिलता है।
बाजरा (खरीफ)
1-पूसा कंपोजिट 701 से , 80 दिन में 23.5 कुंतल उत्पादन मिलता है।
2-पूसा 1201 संकर से 28.1 कुंतल उत्पादन 80 दिन में मिलता है।
1-पूसा 372 से 125 दिन में 19 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है।
2-पूसा 547 से 130 दिन में 18 कुंतल उत्पादन मिलता है।
1-अरहर की पूसा 991 किस्म 142 दिन में तैयार होती है व 16.5 कुंदन उत्पादन मिलता है।
2- पूसा 2001 से 18.7 कुंतल उत्पादन 140 दिन में मिलता है।
3- पूसा 2002 किस्म से 143 दिन में 17.7 कुंतल उपज मिलती है।
4-पूसा अरहर 16 से 120 दिन में 19.8 कुंतल उपज मिलती है।
1-पूसा विशाल 65 दिन में 11.5 कुंतल उपज देती है। यह किस्मत एक साथ पकने वाली है।
2- पूसा 9531 से 65 दिन में 11.5 कुंटल उत्पादन मिलता है। यह भी एक साथ पकने वाली किस्म है।
3- पूसा 1431 किस्म से 66 दिन में 12.9 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है।
1- एल 4076 किस्म 125 दिन में पकने वाली है । इससे 13.5 कुंतल उत्पादन मिलता है।
2- एवं 4147 से ,125 दिन में 15 कुंतल उपज मिलती है। दोनों किस्म फ्म्यूजेरियम बिल्ट रोग प्रतिरोधी है।
1-जल्द पकने वाली पीएम 25 किस्म से 105 दिन में 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिलती है।
2-प्रीति बाई के लिए उपयुक्त पीएम 26 किस्म से 126 दिन में 16.4 कुंतल तक उपज मिलती है।
3-41.5% की उच्च तेल मात्रा वाली पीएम 28 किस्म 107 दिन में 19.9 कुंतल तक उपज दे जाती है।
4-कुछ तेल प्रतिशत वाली पीएम 3100 किस्म से 23.3 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिलती है ।यह पकने में 142 दिन का समय लेती है।
5- पीएम 32 किस्म से 145 दिन में 27.1 कुंतल उपज दे ती है।
1-पुसा सोयाबीन 9712 किस्म पीला मोजेक प्रतिरोधी है। 115 दिन में 22.5 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज देती है।
2-पूसा 12 किस्म 128 दिन मैं 22.9 कुंतल उपज देती है।
