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पशुओं का दाना न खा जाएं पेट के कीड़े (Stomach bug)

पशुओं का दाना न खा जाएं पेट के कीड़े (Stomach bug)

पशुओं के पेट में अंतः परजीवी पाए जाते हैं। यह पशु के हिस्से का आहार खा जाते हैं। इसके चलते पशु दुग्ध उत्पादन की दृष्टि से कमजोर पड़ जाता है और शारीरिक विकास दृष्टि से भी कमजोर हो जाता है। यह कई अन्य बीमारियों के कारण भी बनते हैं।

लक्षण

आंतरिक परजीवी से ग्रस्त पशु सामान्यतः बेचैन रहता है। पर्याप्त दाना पानी खिलाने के बाद भी उसका शारीरिक विकास ठीक से नहीं होता। यदि
दुधारू पशु है तो उसके दूध का उत्पादन लगातार गिरता जाता है। प्रभावित पशु मिट्टी खाने लगता है। दीवारें चाटने लगता है। पशु के शरीर की चमक कम हो जाती है। बाल खड़े हो जाते हैं। इसके अलावा कभी कबार पशु के गोबर में रक्त और कीड़े भी दिखते हैं। पशुओं में इन की अधिकता मृत्यु का कारण तक बन सकती है। कई पशुओं में दूध की कमी, पुनः गाभिन होने में देरी, गर्भधारण में परेशानी एवं शारीरिक विकास दर में कमी जैसे लक्षण क्रमियों से ग्रसित होने के कारण बनते हैं। gaay ke rog

कृमि रोग का निदान

कर्मी रोग का परीक्षण सबसे सरलतम गोबर के माध्यम से किया जा सकता है। ब्रज में अनेक वेटरनरी विश्वविद्यालय स्थित है वहां यह परीक्षण 5 से ₹7 में हो जाता है।
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दवाएं

अंतर है पर जीबीओ को खत्म करने के लिए पशु को साल में दो बार पेट के कीड़ों की दवा देनी चाहिए। गाभिन और गैर गाभिन पशुओं को दवा देते समय इस बात का ध्यान रखा जाए कि कौन सी दवा गाभिन पशु के लिए है कौन सी गैर गाभिन पशु के लिए। ट्राई क्लब एंड आजोल गर्भावस्था के लिए सुरक्षित दवा है। इसे रोटी या गुड़ के साथ मुंह से खिलाया जा सकता है। गाय भैंस के लिए इसकी 12 मिलीग्राम मात्रा पशु के प्रति किलो वजन के हिसाब से दी जाती है। बाजार में स्वस्थ पशु के लिए एक संपूर्ण टेबलेट आती है। दूसरी दवा ऑक्सीक्लोजानाइड है। इसलिए दवा रेड फॉक्स नइट गर्भस्थ पशु के लिए भी सुरक्षित है और संपूर्ण विकसित पशु के लिए इसकी भी एक खुराक ही आती है। आम तौर पर प्रचलित अल्बेंडाजोल गोली भी बहुतायत में प्रयोग की जाती है।
आवारा पशुओं से फसल सुरक्षा का तरीका

आवारा पशुओं से फसल सुरक्षा का तरीका

बुन्देलखण्ड में प्रचलित अन्ना प्रथा उत्तर प्रदेश सरीखे कई प्रदेशों के किसानों के जीका जंजाल बन रही है। इसका कारण बन रहे हैं आवारा गौवंशीय नर। इन्हें यहां सांड के रूप में पहचाना जाता है। यूंतो एक सांड 10 से 12 वर्ष के जीवन काल में तकरीबन तीन लाख का सूखा भूसा खा जाता है। किसानों की फसलों का नुकसान इसमें शामिल नहीं है। इतना ही नहीं यह सांड नगरीय क्षेत्रों में डिवायडर आदि के मध्म जब मस्ती में आते हैं तो भीड़भाड़ वाले इलाकों एवं मंडियों आदि में लोगों के लिए दुर्घटना का कारण भी बन जाते हैं। अनेक लोग इनके आतंक के चलते दुर्घटनाओं का शिकार हो काल कवलित भी हो जाते हैं। खेती में इनसे प्रमुख समस्या फसलों को नुकसान पहुंचाने की है। किसान फसलों को बचाने के लिए मोटा पैसा खर्च कर तार फेंसिंग करा रहे हैं लेकिन भूखे जानवर इन तार और खंभों का भी उखाड़ फेंकते हैं। इससे बचाव के कुछ सामान्य तरीके हैं जिनका प्रयोग कर किसान अपनी फसल को सुरक्षित कर सकते हैंं।

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नीलगाय एवं आवारा पशुओं से फसल सुरक्षा के लिए खेत के आसपास गिरे नीलगाय के गोबर एवं आवारा पशुओं के गोबर का आधा एक से दो किलोग्राम अंश लेकर उसे पानी में घोलकर छान लें। इसमें थोड़े बहुत नीम के पत्ते कूटकर मिला लें। दो  तीन दिन में सड़ने के बाद इसको छानकर खेत में छिड़काव करें। प्रयास करें खेत के चारों तरफ पशुओं के घुसने वाले स्थानों पर गहराई तक छिड़काव हो जाए।  कारण यह होता है अपने मल की गंध आने के कारण पशु उस फसल को नहीं खाते। वह फिर ऐसा खेत तलाशने निकलते हैं जहां ​गंध नहो। इधर नीलगाय अपने खाने के लिए जहां फसलें अच्छी होती हैं। उस इलाके का चयन करती है। उस इलाके तक पहुंचने के लिए वहां हर दिन ताजी गोबर छोड़कर आती है। इसकी गंध के आधार पर ही वह दोबारा उस इलाके तक पहुंचती है। लिहाजा खेतों के आस पास जहां भी नीलगाय का गोबर पड़ा हो उसे एकत्र कर गहरे गड्ढे में दबाने से भी वह रास्ता भटक सकती हैं।

गाय भैंस का बच्चा पेट में घूम जाए तो क्या करें किसान

गाय भैंस का बच्चा पेट में घूम जाए तो क्या करें किसान

गर्भित पशुओं में गर्भाशय का अपने लम्बे अक्ष पर घूम जाने को गर्भाशय में ऐंठन आना कहा जाता है। यह समस्या गाय भैंस में ज्यादा मिलती है। कभी-कभी घोड़ी, भेड़ तथा बकरी में भी यह परेशानी देखी जाती है। जो पशु पहले बच्चे दे चुके हैं उनमें इस बीमारी की सम्भावना अधिक होती है। यह समस्या गर्भावस्था की अन्तिम 2 माह में होने की ज्यादा सम्भावना होती है। इस दशा के होने पर पशु बहुत ही अधिक पीड़ा में होता है और तुरंत निवारण न होने पर पशु की मृत्यु हो सकती है। 

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 अन्य पशुओं की तुलना में गाय और भैंसों में गर्भाशय की शारीरिक रचना में अन्तर होने के अतिरिक्त गर्भित पशुओं के गर्भाशय का कम स्थिर होना इस दशा का मुख्य कारण है। गर्भाशय में अस्थिरता के कई कारण हो सकते हैं जैसे - पशु के उठने तथा बैठने दोनों ही दशाओं में शरीर का पिछला हिस्सा अधिक ऊॅचाई पर होता है और इस दशा में दूसरे पशु से धक्का लगने, फिसलने या गिरने पर गर्भाशय आसानी से घूम जाता है। बच्चे का गर्भाशय के दो में से किसी एक हार्न में होने के कारण भी गर्भाशय की स्थिरता कम रहती है और गर्भाशय आसानी से घूम जाता है। बच्चे के बहुत अधिक हलचल के कारण भी गर्भाशय में ऐंठन आ सकती है। गर्भित पशुओं का गर्भावस्था के अन्तिम महीनों में वाहन में लम्बी यात्रा, दूसरे पशुओं सेे झगड़ा, गिरना, कूदना, भागना इत्यादि भी गर्भाशय के घूम जाने के कारण हो सकते हैं। भैंसों का पानी या कीचड़ में लोटने की आदत भी गर्भाशय के घूम जाने का एक मुख्य कारण है। पशुओं के भोजन मेें पोषक तत्वों की कमी, पशुओं के रखने के स्थान का समतल न होना आदि भी इस समस्या के लिये उत्तरदायी हो सकता हैै। 

गर्भाशय में बच्चा घूमने से बचने के उपाय:

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लक्षण

जब गर्भाशय में बहुत कम डिग्री की ऐंठन होती है तो पशु में सामान्यतः कोई लक्षण नहीं मिलते हैं परंतु अधिक डिग्री होने पर कई प्रकार के लक्षण दिख सकते है। इस समस्या के चलते पशु के पेट में दर्द, भूख न लगना, जुगाली न करना तथा शरीर के ताप का गिर जाना, बार-बार उठना, बैठना तथा जमीन पर लोटना पैर खींचना अथवा पेट में लात मारना, बेचैन होना, ब्याने के लिए जोर लगाना इत्यादि दिक्कतें आमतौर पर दिखती हैं। गर्भावस्था के पूर्ण होने पर भी बच्चा न होना तथा योनी से किसी प्रकार के द्रव्य का स्राव न होना इस दशा के लक्षण है। कभी-कभी दशा अधिक खराब होने पर या समय पर उपचार न होने पर पशु की मृत्यु भी हो जाती है। 

रोकथाम के उपाय

गर्भावस्था के अंतिम दिनों में गर्भित पशु को लम्बी यात्रा पर न जायें। गर्भित पशुओं को दूसरे पशुओं से अलग स्थान पर रखने की व्यवस्था करें। गर्भित पशु को रखने का स्थान समलत होना चाहिए। गर्भित पशु को गर्भावस्था के दौरान बहुत अधिक हलचल जैसे - कूदना, भागना इत्यादि न करने दें। भैंसों को गर्भावस्था के अंतिम दिनों में पानी या कीचड़ में न छोड़ें । गर्भित पशुओं को पोषक तत्वों से भरपूर संतुलित आहार दें। गर्भावस्था के अंतिम दिनों में बताये गये लक्षणों के दिखने पर बिना विलम्ब किये किसी पशु चिकित्सक को पशु दिखायें अथवा सलाह लें।

ठंड के दिनों में घटी दूध की आपूर्ति

ठंड के दिनों में घटी दूध की आपूर्ति

दूध के बाजार में इस बार अजीब उथल पुथल की स्थिति है। यह ओमेक्रोन के खतरे के चलते है या महंगे भूसे, दाने चारे के कारण या किसी और वजह से कह पाना आसान नहीं है लेकिन हालात अच्छे नहीं हैं। गुजरे कोरोनाकाल में दूध के कारोबार पर बेहद बुरा असर पड़ा। यह बात अलग है दूधिए और डेयरियों को किसी तरह की बंदिश में नहीं रखा गया लेकिन दूध से बनने वाले अनेक उत्पादों पर रोक से दूध की खपत बेहद घटी। चालू सीजन में बाजार में दूध की आवक करीब 25 फीसद कम है। दूध की आवक में कमी के चलते देश के कई कोआपरेटिव संघ एवं मितियां दूध के दाम बढ़ाने की दिशा में निर्णय कर चुके हैं। कुछने तो दाम बढ़ा भी दिए हैं। एक एक संघ रेट बढ़ाता है तो दूसरों को भी कीमत बढ़ानी पड़ती है। नवंबर माह में पिछले साल के मुकाबले इस बार दूध की कीमत दो से तीन रुपए लीटर ज्यादा हैं। 

15 रुपए किलो हुआ भूसा

सूखे चारे पर महंगाई की मार से पशुपालक आहत हैं। गेहूं का भूूसा 15 रुपए प्रति किलोग्राम तक पहुंच गया है। एक भैंस को दिन में तकरीबन 10 किलोग्राम सूखे भूसे की आवश्यकता होती है। सूखे चारे पर महंगाई की मार से किसान भी कराहने लगे हैं। इसके चलते पशुपालन में लगे लोगों ने भी अपने पशुओं की संख्या बढ़ाने के बजाय सीमित की हुई है। इसी का असर है कि ठंड के दिनों में भी बड़ी डेयरियों पर दूध की आवक कमजोर बीते सालों के मुकाबले कमजोर चल रही है। 

घाटे का सौदा है दूध बेचना

आईए 10 लीटर दूध की कीमत का आकलन करते हैं। 10 लीटर दूध देने वाली भैंस के लिए हर दिन 10 किलोग्राम भूसे की जरूरत होती है। इसकी कीमत 150 रुपए बैठती है। इसके अलावा एक किलोग्राम दाना शरीर के मैनेजमेंट के लिए जरूरी होता है। इसकी कीमत भी करीब 25 रुपए बैठती है। तकनीबन 300 ग्राम दाना प्रति लीटर दूध पर देना होता है। इस हिसाब से 10 लीटर दूध वाले पशु को करीब तीन किलोग्राम दाना, खल, चुनी चोकर आदि चाहिए। यह भी 250 रुपए से कम नहीं बैठता। 

इसके अलावा हरा चारा, नमक, गुड़ और कैल्सियम की पूर्ति के लिए  खडिया जैसे सस्ते उत्पादों की कीमत जोड़ें तो दुग्ध उत्पादन से पशुपलकों को बिल्कुल भी आय नहीं मिल रही है। गांवों में दूध 40 रुपए लीटर बिक रहा है। यानी 10 लीटर दूध 400 का होता है और पशु की खुराब 500 तक पहुंच रही है। उक्त सभी उत्पादों की कीमत जोड़ें तो 10 लीटर दूध देने वाले पशु से आमदनी के बजाय नुकसान हो रहा है। पशु पालक के श्रम को जोड़ दिया जाए को घाटे की भरपाई असंभव है। किसान दूध से मुनाफा लेने के लिए पशु की खुराक में कटौती करते हैं लेकिन इसका असर उसकी प्रजनन क्षमता एवं स्वास्थ्य पर पड़ता है। इसके चलते पशु समय से गर्मी पर नहीं आता। इसके चलते पशु पालक को पशुओं का कई माह बगैर दूध के भी चारा दाना देना होता है। इस स्थिति में तो पशुपालक की कमर टूट जाती है।

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दूध नहीं घी बनाएं किसान

देश के अधिकांश ग्रामीण अंचल में अधिकतर पशु पालक 40 रुपए लीटर ही दूध बेच रहे हैं। भैंस के दूध में औसतन 6.5 प्रतिशत फैट होता है। इस हिसाब से 10 लीटर दूध में करीब 650 ग्राम घी बनता है। गांवों में भी 800 से 1000 रुपए प्रति किलोग्राम शुद्ध घी आसानी से बिक जाता है। घी बनाते समय मिलने वाली मठा हमारे पशुपालक परिवार के पोषण में वृद्धि करती है। इस लिहाज से दूध बेचने से अच्छा तो घी बनाना है। दूध बेचने में खरीददार दूधियों द्वारा भी पशु पालकों के पैसे को रोक कर रखा जाता है। उन्हें समय पर पूरा पैसा भी नहीं मिलता। इसके अलावा ठंड के दिनों में जो दूधिया दूध खरीदता है उसे गर्मियों में दूध देना पशु पालक की मजबूरी बना जाता है।

सरकार द्वारा जारी पांच एप जो बकरी पालन में बेहद मददगार साबित होंगे

सरकार द्वारा जारी पांच एप जो बकरी पालन में बेहद मददगार साबित होंगे

बकरी पालन एक लाभकारी व्यवसाय है। अगर आप भी वैज्ञानिकों की सलाह के अनुरूप अच्छी नस्ल की बकरी का पालन करना चाहते हैं, तो ये 5 मोबाइल एप आपकी सहायता करेंगे। ये ऐप 4 भाषाओं में मौजूद हैं। किसान भाई खेती के साथ-साथ पशुपालन भी हमेशा से करते आ रहे हैं। परंतु, कुछ ऐसे किसान भी हैं, जो अपनी आर्थिक तंगी की वजह से गाय-भैंस जैसे बड़े-बड़े पशुओं का पालन नहीं कर पाते हैं। इसलिए वह मुर्गी पालन और बकरी पालन आदि करते हैं। भारतीय बाजार में इनकी मांग भी वर्षभर बनी रहती है। यदि देखा जाए तो किसानों के द्वारा बकरी पालन सबसे ज्यादा किया जाता है। यदि आप भी छोटे पशु मतलब कि बकरी पालन (Goat Farming) से बेहतरीन मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो आपको नवीन तकनीकों की सहायता से इनका पालन करना चाहिए। साथ ही, केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (Central Goat Research Institute) के द्वारा निर्मित बकरी पालन से जुड़े कुछ बेहतरीन मोबाइल ऐप का उपयोग कर आप अच्छे से बकरी पालन कर सकते हैं। इन ऐप्स में वैज्ञानिक बकरी पालन, बकरियों का सही प्रबंधन, उत्पादन एवं कीमत आदि की जानकारी विस्तार से साझा की गई है।

बकरी पालन से संबंधित पांच महत्वपूर्ण एप

बकरी गर्भाधान सेतु

बकरी की नस्ल में सुधार करने के लिए बकरी गर्भाधान सेतु एप को निर्मित किया गया है। इस एप में वैज्ञानिक प्रोसेस से बकरी पालन की जानकारी प्रदान की गई है।

गोट ब्रीड ऐप

यह एप बकरियों की बहुत सारी नस्लों की जानकारी के विषय में विस्तार से बताता है, ताकि आप बेहतरीन नस्ल की बकरी का पालन कर उससे अपना एक अच्छा-खासा व्यवसाय खड़ा कर पाएं।

गोट फार्मिंग ऐप

यह एप लगभग 4 भाषाओं (हिंदी, तमिल, कन्नड़ और अंग्रेजी) में है। इसमें बकरी पालन से जुड़ी नवीन तकनीकों के विषय में बताया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें देसी नस्ल की बकरी, प्रजनन प्रबंधन, बकरी की उम्र के हिसाब से डाइट, बकरी का चारा, रखरखाव एवं देखभाल के साथ-साथ मांस और दूध उत्पादन आदि की जानकारी के विषय में जानकारी प्रदान की गई है।

बकरी उत्पाद ऐप

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इस एप के अंदर बाजार में कौन-कौन की बकरियों की मूल्य वर्धित उत्पादों की बाजार में मांग। साथ ही, कैसे बाजार में इससे अच्छा मुनाफा उठा सकते हैं। यह एप भी हिंदी, तमिल, कन्नड़ और अंग्रेजी भाषा में उपलब्ध है।

बकरी मित्र

इस एप में बकरियों के प्रजनन प्रबंधन, मार्केटिंग, आश्रय, पोषण प्रबंधन, स्वास्थ्य प्रबंधन एवं खान-पान से संबंधित जानकारी प्रदान की जाती है। साथ ही, इसमें बकरी पालन के प्रशिक्षण कार्यक्रम भी होते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें किसानों की सहायता के लिए कॉल की सुविधा भी दी गई है। जिससे कि किसान वैज्ञानिकों से बात कर बेहतर ढ़ंग से बकरी पालन कर सकें। बकरी मित्र एप को विशेषतौर पर यूपी एवं बिहार के किसानों के लिए तैयार किया गया है।
गौमूत्र से बना ब्रम्हास्त्र और जीवामृत बढ़ा रहा फसल पैदावार

गौमूत्र से बना ब्रम्हास्त्र और जीवामृत बढ़ा रहा फसल पैदावार

छत्तीसगढ़ पहला राज्य जहां गौमूत्र से बन रहा कीटनाशक

इस न्यूज की हेडलाइन पढ़कर लोगों को अटपटा जरूर लगेगा, पर यह खबर किसानों के लिए बड़ी काम की है। जहां गौमूत्र का बड़ा धार्मिक महत्व माना जाता है और गांवों में आज भी लोग इसका सेवन करते हैं, उनका कहना है कि गौमूत्र पीने से कई बीमारियों से बच पाते हैं। वहीं, गौमूत्र अब किसानों के खेतों में कीटनाशक के रूप में, उनकी जमीन की सेहत सुधारकर फसल उत्पादन का बढ़ाने में उनकी काफी मदद करेगा। जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं कि आधुनिकता के युग में खान-पान सही नहीं होने और फसलों में बेतहासा
जहरीले कीटनाशक के प्रयोग से हमारा अन्न जहरीला होता जा रहा है। वैज्ञानिकों ने भी सिद्ध कर दिया है कि जहरीले कीटनाशक के प्रयोग से लोगों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है और आयु घटती जा रही है। लोगों की इस तकलीफ को किसानों ने भी समझा और अब वे भी धीरे-धीरे जैविक खाद के उपयोग को बढ़ावा दे रहे हैं। इससे वे अपनी आमदनी तो बढ़ा ही रहे हैं, साथ-साथ देश के लोगों और भूमि की सेहत भी सुधार रहे हैं। इसी के तहत लोगों की सेहत का ख्याल रखते हुए छत्तीसगढ़ सरकार ने किसान हित में एक बड़ा कदम उठाया है और पशुपालकों से गौमूत्र खरीदने की योजना शुरू की है, जिससे कीटनाशक बनाया जा रहा है। इसका उत्पादन भी सरकार द्वारा शुरू कर दिया गया है।

चार रुपए लीटर में गौमूत्र की खरीदी

पहले राज्य सरकार ने किसानों को जैविक खेती के प्रति प्रोत्साहित किया, जिसके सुखद परिणाम भी सामने आने लगे हैं, इसके बाद पशुपालकों से गौमूत्र खरीदकर उनको एक अतिरिक्त आय भी दे दी। राज्य सरकार पशुपालक किसानों से चार रुपए लीटर में गौमूत्र खरीद रही है। राज्य के लाखों किसान इस योजना का फायदा उठाकर गौमूत्र बेचने भी लगे हैं।


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हरेली पर मुख्यमंत्री ने गौमूत्र खरीद कर की थी शुरूआत

हरेली पर्व पर 28 जुलाई से गोधन न्याय योजना के तहत गोमूत्र की खरीदी शुरू की गई है। मुताबिक छत्तीसगढ़ गौ-मूत्र खरीदी करने वाला देश का पहला राज्य है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री निवास कार्यालय में हरेली (हरियाली अमावस्या) पर्व के अवसर पर गोमूत्र खरीदा और वे पहले ग्राहक बने। वहीं मुख्यमंत्री ने खुद भी गौमूत्र विक्रय किया था।

अन्य राज्य भी अपना रहे

छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है, जो पशुपालक ग्रामीणों से चार रुपए लीटर में गोमूत्र खरीद रहा है। गोधन न्याय योजना के बहुआयामी परिणामों को देखते हुए देश के अनेक राज्य इसे अपनाने लगे हैं। इस योजना के तहत, अमीर हो या गरीब, सभी को लाभ मिल रहा है।


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गौमूत्र से बने ब्रम्हास्त्र व जीवामृत का किसान करे उपयोग

अब आते हैं गौमूत्र से बने कीटनाशक की बात पर। विदित हो कि किसान अब जैविक खेती को अपना रहे हैं। ऐसे में गौमूत्र से बने ब्रम्हास्त्र व जीवामृत का उपयोग किसान अपने क्षेत्र में करने लगे हैं। राज्य की महत्वकांक्षी सुराजी गांव योजना के अंतर्गत, गोधन न्याय योजना के तहत अकलतरा विकासखण्ड के तिलई गौठान एवं नवागढ़ विकासखण्ड के खोखरा गौठान में गौमूत्र खरीदी कर, गोठान समिति द्वारा जीवामृत (ग्रोथ प्रमोटर) एवं ब्रम्हास्त्र (जैविक कीट नियंत्रक) का उत्पादन किया जा रहा है।


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गौठानों में सैकड़ों लीटर गौमूत्र की खरीदी की जा चुकी है। जिसमें निर्मित जैविक उत्पाद का उपयोग जिले के कृषक कृषि अधिकारियों के मार्गदर्शन में अपने खेतों में कर रहे हैं। इससे कृषि में जहरीले रसायनों के उपयोग के विकल्प के रूप में गौमूत्र के वैज्ञानिक उपयोग को बढ़ावा मिलेगा, रसायनिक खाद तथा रसायनिक कीटनाशक के प्रयोग से होने वाले हानिकारक प्रभाव में कमी आयेगी, पर्यावरण प्रदूषण रोकने में सहायक होगा तथा कृषि में लगने वाली लागत में कमी आएगी।

50 रुपए लीटर ब्रम्हास्त्र और जीवामृत (वृद्धि वर्धक) का मूल्य 40 रुपए लीटर

गौमूत्र से बनाए गए कीट नियंत्रक ब्रम्हास्त्र का विक्रय मूल्य 50 रूपये लीटर तथा जीवामृत (वृद्धि वर्धक) का विक्रय 40 रूपये लीटर है। इस प्रकार गौमूत्र से बने जैविक उत्पादों के दीर्घकालिन लाभ को देखते हुए जिले के कृषक बंधुओं को इसके उपयोग की सलाह कृषि विभाग द्वारा दी जा रही है।
इस राज्य के पशुपालकों को मिलेगा भूसे पर 50 फीसदी सब्सिडी, पशु आहार पर भी मिलेगा अब ज्यादा अनुदान

इस राज्य के पशुपालकों को मिलेगा भूसे पर 50 फीसदी सब्सिडी, पशु आहार पर भी मिलेगा अब ज्यादा अनुदान

उत्तराखंड सरकार अपने राज्य के किसानों का ख्याल रखने में कोई कसर नही छोड़ रही है। राज्य सरकार का प्रयास है, कि राज्य में होने वाली खेती को फायदे का सौदा बनाया जाए तथा जल्द से जल्द किसानों की आय दोगुनी की जाए, ताकि उत्तराखंड के गावों से किसानों और लोगों का पलायन रोका जा सके। इसी कड़ी में उत्तराखंड सरकार नित नई घोषणाएं करती रहती हैं, ताकि किसान अपने आपको इस पर्वतीय राज्य में मजबूती के साथ खड़ा रख पाए। अभी हाल ही में उत्तराखंड सरकार ने पशुपालकों को राहत देते हुए घोषणा की है, कि सरकार की ओर से भूसे की खरीद पर 50 प्रतिशत की सब्सिडी दी जाएगी। सरकार ने यह निर्णय भूसे के बढ़ते हुए दामों को लेकर लिया है। वर्तमान में राज्य में भूसे का दाम 1600 रुपये प्रति क्विंटल है। जिस पर सरकार 800 रुपये प्रति क्विंटल की सब्सिडी देने जा रही है। इस हिसाब से अब राज्य के किसानों और पशुपालकों को 1 क्विंटल भूसे की खरीद पर मात्र 800 रुपये ही चुकाने होंगे। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=wdZnodFWSB8&t=17s[/embed] इसके साथ ही सरकार ने पशु आहार पर मिलने वाले अनुदान में भी बढ़ोत्तरी की है। जहां पहले पशु आहार पर 2 रुपये प्रति किलो की सब्सिडी दी जाती थी। उसे बढ़ाकर सरकार ने राज्य के मैदानी क्षेत्रों के लिए 4 रुपये प्रति किलो कर दिया गया है। इसी के साथ अब राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में पशु आहार पर मिलने वाली सब्सिडी को बढ़ाकर 6 रुपये प्रति किलो कर दिया गया है।


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सरकारी अधिकारियों ने नोटिफिकेशन के माध्यम से बताया है, कि सहकारिता विभाग की तरह ही अब दुग्ध विकास विभाग के माध्यम से भी पशुपालकों को साइलेज पर 75 फीसद की सब्सिडी प्रदान की जाएगी। अगर सरकारी आंकड़ों की बात करें तो प्रदेश में 8 लाख से ज्यादा पशुपालक हैं। जो सीधे तौर पर पशुपालन के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। इनमें से लगभग 52 हजार दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियों से जुड़े हुए हैं। इन सभी की पहचान करके भूसे पर तथा पशु आहार पर सब्सिडी प्रदान की जाएगी। इस योजना को कैबिनेट की तरफ से मंजूरी मिल गई है। राज्य सरकार का अनुमान है, कि सरकार के इन फैसलों से राज्य के किसानों और दुग्ध उत्पादकों को फायदा होगा। जिससे उनकी आमदनी में भी बढ़ोत्तरी हो सकेगी। जो राज्य में पशुपालन को बड़े स्तर पर बढ़ाने में सहायक होगा। अगर किसानों की खेती और पशुपालन के माध्यम से आमदनी बढ़ती है, तो यह राज्य में लगातार हो रहे पलायन को रोकने में मददगार साबित हो सकता है।
इस योजना से मिलेगा इतने लाख लोगों को रोजगार का अवसर 50 प्रतिशत अनुदान भी

इस योजना से मिलेगा इतने लाख लोगों को रोजगार का अवसर 50 प्रतिशत अनुदान भी

यदि पशुपालन तथा डेयरी फार्मिंग के व्यवसाय में कुछ खास करने में रुचि रखते हैं, तो आपके लिए एक खुशखबरी है। शीघ्र ही सरकार 50 लाख से अधिक किसानों को इस व्यवसाय हेतु सब्सिडी प्रदान करने जा रही है। कृषि के उपरांत पशुपालन तथा डेयरी व्यवसाय द्वारा कृषकों की आय में बढ़ोत्तरी का कार्य किया है। डेयरी के क्षेत्र में निरंतर बढ़ते फायदे को देखते हुए फिलहाल शहरों से युवा एवं प्रोफेशनल इस व्यवसाय से जुड़ते जा रहे हैं। दूध एवं डेयरी उत्पाद की बढ़ती मांग द्वारा इस व्यवसाय के सफलता का मार्ग प्रसस्त कर दिया है। बतादें, कि इस व्यवसाय के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों को रोजगार का अवसर प्राप्त होगा इसके लिए सरकार विभिन्न योजनाओं पर कार्य कर रही है।
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अब शीघ्र ही इस व्यवसाय हेतु कृषकों को 50% प्रतिशत अनुदान भी प्रदान करवाएगी। केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी राज्य मंत्री डॉ. संजीव बालियान ने जानकारी देते हुए बताया है, कि देश के युवा एवं किसान वर्तमान में सरकार द्वारा इस योजना का फायदा लेकर अपना स्वयं का व्यवसाय आरंभ कर सकते हैं।

किस तरह का व्यवसाय शुरू किया जाए

कोरोना महामारी के उपरांत से ही खेती किसानी एवं डेयरी क्षेत्र में नवीन स्टार्टअप एवं व्यवसाय देखने को मिले हैं। इन्हीं प्रयासों को देखते हुए वर्तमान में सरकार द्वारा आर्थिक सहायता की तैयारी कर दी है। दूध-डेयरी को प्रोत्साहन देने वाली राष्ट्रीय गोकुल मिशन योजना के चलते सुअर, मुर्गी, गाय, भैंस एवं बकरी का ब्रीडिंग फार्म खोलने हेतु अत्यधिक साइलेज यूनिट्स निर्माण हेतु सरकार 50% अनुदान देने जा रही है। अगर आपके डेयरी अथवा पशुपालन से संबंधित व्यवसाय में 50 लाख से लेकर 60 लाख, 1 करोड़ एवं 4 करोड़ व्यय किये जा चुके हैं, तो आपको आधार धनराशि सरकार मुहैय्या कराएगी। इससे संबंधित व्यवसाय हेतु आप कर्ज भी प्राप्त करेंगे तो AHIDF Scheme से प्रीमियम पर 3% प्रतिशत तक की छूट भी प्रदान की जाएगी।

आप किस प्रकार बन सकते हैं आत्मनिर्भर

मीडिया खबरों के अनुसार, केंद्रीय राज्य मंत्री डॉ. संजीव बालियान ने कहा है, कि मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी क्षेत्र में सरकार प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से 50 लाख से अधिक लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए तैयार है। इस क्षेत्र में स्वयं का व्यवसाय अथवा स्टार्ट अप करने एवं युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने हेतु सरकार निरंतर कोशिश किए जा रही है।

राष्ट्रीय गोकुल मिशन योजना से क्या लाभ होगा

संजीव बालियान ने कहा कि राष्ट्रीय गोकुल मिशन योजना के जरिये देसी नस्ल की गाय के पालन-पोषण को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसी योजना के चलते पशुओं के इलाज हेतु सरकार द्वारा फिलहाल 4332 से ज्यादा पशु मेडिकल यूनिट भी स्थापित करने की तैयारी की है। युवा, किसान अथवा कोई भी प्रोफेशनल वर्तमान में मंत्रालय की ऑफिशियल वेबसाइट पर जाकर के इस संबंध में ज्यादा जानकारी ले सकते हैं।
बिना गाय और भैंस पालें शुरू करें अपना डेयरी सेंटर

बिना गाय और भैंस पालें शुरू करें अपना डेयरी सेंटर

गाय और भैंस पालना हर किसी के बस की बात नहीं है, लेकिन फिर भी बहुत से लोग ऐसे हैं जो डेयरी सेक्टर से जुड़ना चाहते हैं। बहुत बार जगह के अभाव के कारण या फिर इस क्षेत्र में अनुभव की कमी के कारण लोग गाय या भैंस पाल नहीं सकते हैं। लेकिन फिर भी दुग्ध से जुड़ा हुआ व्यापार करना चाहते हैं। इसी समस्या का समाधान करने के लिए सरकार ने एक बहुत ही अच्छी पहल की है। देश में जगह-जगह पर मिल्क कलेक्शन सेंटर बनाए जा रहे हैं।

क्या है मिल्क कलेक्शन सेंटर

बहुत से गांवों और शहरों में मिल्क कलेक्शन सेंटर का निर्माण किया जा रहा है। यह एक ऐसी जगह है, जहां पर आपके क्षेत्र के आसपास के दुग्ध उत्पादक लोग आकर अपने गाय या भैंस का दूध जमा करवा सकते हैं। मिल्क कलेक्शन सेंटर में कोई भी जानवर नहीं पाला जाता है, बल्कि जानवर रखने वाले व्यापारी स्वयं ही आकर वहां पर दूध जमा करवा देते हैं। यहां पर दूध को जमा करने के लिए बड़े-बड़े कंटेनर और कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था की जाती है। इसके बाद दूध को इकट्ठा करते हुए बड़ी-बड़ी कंपनियों को बेच दिया जाता है। मिल्क कलेक्शन सेंटर का फायदा कंपनी और सेंटर वालों को तो हो ही रहा है। साथ ही, अब दुग्ध उत्पादन करने वाले किसानों को भी अपना दूध बेचने के लिए किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ रहा है। पहले उन्हें दूध बेचने के लिए अपने घर और गांव से दूर शहर की ओर जाना पड़ता था। लेकिन आजकल वह गांव में रहते हुए ही दूध बेच सकते हैं।


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दूध को इकठ्ठा करने का है अच्छा तरीका

यहां पर आने वाले दूध का सैंपल चेक किया जाता है और इस सैंपल के बाद यह निर्धारित किया जाता है कि दूध में कितना फैट है। फैट के आधार पर ही दूध को अलग-अलग कंटेनर में डाल दिया जाता है और डिमांड के हिसाब से कंपनियों को दे दिया जाता है।

कंपनियों का रहता है कॉन्ट्रैक्ट

आप एक दुकान या कलेक्शन यूनिट बनवाकर मिल्क कलेक्शन सेंटर खोल सकते हैं। साथ ही, आपको कुछ बड़े बर्तन एक टैंक एवं कोल्ड स्टोरेज बनाना पड़ता है। केंद्र सरकार की डेयरी उद्यमिता योजना के चलते इस तरह का बिजनेस शुरू करने के लिए वित्तीय और तकनीकी दोनों ही तरह की मदद की जाती है। आप एक बार अपना सेटअप करने के बाद किसी भी दूध वाली कंपनी के साथ अपना कॉन्ट्रैक्ट शुरू कर सकते हैं और अपने मिल्क सेंटर में आने वाला सारा दूध इकट्ठा करके कंपनी तक पहुंचा देते हैं। ज्यादातर कंपनियां खुद ही अपने टैंक मिल्क कलेक्शन सेंटर तक भेज देते हैं और आप अपना दूध उनके द्वारा दी गई सुविधा के तहत ही कंपनी तक पहुंचा आते हैं। इस बिजनेस में सहकारी संघ काफी मदद करते हैं और एक समिति बनाकर आस-पास के गांव से दूध को इकट्ठा करके कंपनी के साथ एक कॉन्ट्रैक्ट कर लेते हैं। कंपनी समिति को तो पैसा देती ही है और यह समिति दूध बेचने वाले ग्रामीणों को भुगतान कर देती है।
दूध बेचने पर राजस्थान सरकार दे रही है 5 रुपए अनुदान, जानें कैसे ले सकते हैं लाभ

दूध बेचने पर राजस्थान सरकार दे रही है 5 रुपए अनुदान, जानें कैसे ले सकते हैं लाभ

राजस्थान सरकार ने अपने राज्य में पशुपालकों को प्रोत्साहन देने के लिए एक बहुत ही अच्छी पहल की है। यहां पर दुग्ध उत्पादन करने वाले लोगों के लिए सरकार ने एक स्कीम शुरू की है। जिसे दूध उत्पादक संबल योजना का नाम दिया गया है। इस योजना के तहत प्रति लीटर दूध बेचने पर पशुपालकों को सरकार की तरफ से ₹5 अनुदान के तौर पर दिया जाएगा। राजस्थान सरकार द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार फरवरी 2019 में इस स्कीम को लागू किया गया था। उसके बाद से अभी तक 764 करोड रुपए अनुदान राशि के तौर पर पशुपालकों को दिए जा चुके हैं।

पहले दी जाती थी ₹2 अनुदान राशि

दूध उत्पादक संबल योजना की शुरुआत की बात की जाए तो सरकार ने इसे 2013 में ही लागू कर दिया था। लेकिन कुछ कारणों से इसे बीच में ही बंद करना पड़ा। 2019 में इस स्कीम को पुनः लागू किया गया और इसके तहत पशुपालकों को प्रति लीटर दूध बेचने पर ₹2 अनुदान राशि दी जाती थी। सरकार की तरफ से 2022 में यह अनुदान राशि बढ़ाकर ₹5 कर दी गई है। सरकार द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार राजस्थान सरकार ने लगभग 550 करोड रुपए बजट में इस योजना के लिए रखें हैं। राजस्थान सरकार में 9 लाख से भी ज्यादा पशु पालक इस योजना के तहत लाभ उठा रहे हैं।

कौन-कौन से पशुपालक उठा सकते हैं लाभ

राजस्थान में जो भी पशु पालक राज्य के सरकारी दुग्ध उत्पादन संघ को दूध बेचते हैं। वह इस स्कीम के तहत अनुदान राशि ले सकते हैं। बहुत से पशुपालक ऐसे भी हैं, जो प्राइवेट कंपनी को अपना दूध बेचते हैं। लेकिन उन्हें इस स्कीम के तहत लाभार्थी नहीं बनाया गया है। हालांकि, यह पशुपालक भी लंबे समय से अनुदान राशि की मांग कर रहे हैं। अभी केवल सहकारी दुग्ध उत्पादन संघ को दूध बेचने वाले पशुपालकों को भी इसके तहत रखा गया है। प्राइवेट कंपनी को दूध बेचने वाले पशुपालकों के लिए सरकार की तरफ से कोई खबर सामने नहीं आई है। ये भी देखें: पशुओं का दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए करे ये उपाय, होगा दोगुना फायदा

कैसे उठा सकते हैं पशुपालक लाभ

इस योजना के तहत दूध बेचने वाले सभी लोगों को डीबीटी के माध्यम से यह अनुदान राशि भेजी जाती है। पशुपालकों को इस स्कीम का लाभ उठाने के लिए कुछ दस्तावेज भी जमा करवाना जरूरी है। ताकि अच्छी तरह से उनकी पहचान हो सके। इन दस्तावेज में स्थाई निवास प्रमाण पत्र, आधार कार्ड, आय प्रमाण पत्र, संबंधित पशु का ब्यौरा, बैंक अकाउंट डीटेल और रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर शामिल है। अगर आप इस योजना के तहत लाभ उठाना चाहते हैं। तो आप सरकार द्वारा ही जारी किए गए डेयरी बूथ पर जाकर इसके बारे में जानकारी ले सकते हैं। इसके अलावा अधिक जानकारी के लिए आप अपने जिले के पशुपालन विभाग के कार्यालय में जाकर भी संपर्क कर सकते हैं। दूध उत्पादक संबल योजना का लाभ उठाने के लिए सरकार की ओर से जारी किए डेयरी बूथ पर संपर्क कर सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए अपने जिले के पशुपालन विभाग के कार्यालय में भी संपर्क कर सकते हैं।
हरियाणा कृषि बजट की अहम घोषणाएं, किसानों की होगी अच्छी आय

हरियाणा कृषि बजट की अहम घोषणाएं, किसानों की होगी अच्छी आय

केंद्र सरकार ने अपने वित्त वर्ष साल 2023 से 2024 के लिए 1 फरवरी को नया बजट पेश किया था. जिसके बाद देश के अन्य राज्यों की सरकारें भी नये साल के बजट के साथ अपने मास्टर प्लान बताने लगी है. जिसमें उत्तर प्रदेश के साथ साथ राजस्थान और हरियाणा का बजट भी शामिल है. जहां हरियाणा की बात की जाए, तो राज्य के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी हरियाणा का नया बजट गुरुवार को पेश कर चुके हैं. वित्त वर्ष साल 2023  से 2024 के लिए पशुपालन के साथ कृषि, बागवानी, सहकारिता और बागवानी मुख्य बिंदु रहे. इन सभी क्षेत्रों के लिए सरकार की तरफ से 8 हजार 316 करोड़ रुपये का आवंटन प्रस्ताव रखा गया. हालांकि यह प्रस्ताव पीछले साल के बजट से लगभग 19 फीसद ज्यादा है. ऐसे में वित्त वर्ष 2023 से 2024 के लिए राज्य सरकार ने किसी तरह की कोई भी नई योजना का ऐलान नहीं किया है. ये भी पढ़ें: यूपी के बजट में किसानों पर दिया गया है ख़ास ध्यान; जानें क्या है नई घोषणाएं इन सबके बीच किसानों के हित के बारे में सोचते हुए सरकार ने पहले से चली आ रही योजनाओं में कुछ खास बदलाव करते हुए राहत अनुदान पैकेज में बढ़ोतरी कर दी गयी है.

जानिए क्या हैं कृषि बजट की महत्वपूर्ण योजनाएं

  • हरियाण में भूजल संकट गहराता जा रहा है. जिसे ध्यान में रखते हुए खरीफ सीजन में धान की सीधी बिजाई का प्रस्ताव सामने रखा है.
  • इस साल राज्य में लगभग दो लाख हेक्टेयर के हिसाब से रकबा धान की सीधी बिजाई का मास्टर प्लान है.
  • ढेंचा खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जाएगा.
  • ढेंचा खेती के लिए लगने वाली लागत सरकार ने प्रति एकड़ के हिसाब से 720 रुपये रखी है. जिसके तहत किसानों को लगभग 80 फीसद का अनुदान दिया जाएगा.
  • हरियाणा में गर्मीं के सीजन में मूंग का उत्पादन बढ़ाने का भी प्लान है.
  • मूंग के अच्छे उत्पादन के लिए करीब एक लाख एकड़ से ज्यादा जगह को कवरेज किया जाएगा.
  • ड्रोन तकनीक के जरिये खेती किसानी से जुड़े काम को आसान बनाने में मदद दिलाई जाएगी.
  • 500 युवा किसानों को ड्रोन चालने की ट्रेनिंग का भी प्रस्ताव रखा गया है.
  • लगभग 50 हजार एकड़ जमीन को कृषि योग्य बनाया जाएगा.
  • अच्छी गुणवत्ता वाले शहद का उत्पादन बढ़ाने के लिए हनी क्वालिटी लैब की स्थापना की जाएगी.
  • शहद व्यापार में नीति भी लागू की जाएगी.
  • पंचकूला, पिनगवां, नूह, झज्जर और मणिपुर में बागवानी फसलों के लिए तीन सेंटर फॉर एक्सीलेंस बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.
  • पराली खरीद के लिए 1 हजार रुपये देने का प्रस्ताव दिया गया है.
  • पराली जलाने से जुड़ी समस्या को निपटाने के लिए चयनित एजेंसियों को खर्चों के लिए 15 सौ रुपये प्रति टन के हिसाब से दिया जाएगा.

नेचुरल फार्मिंग की ओर ज्यादा ध्यान

कृषि में लगने वाली लागत को कम करने के लिए नेचुरल फार्मिंग की तरफ ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है, गाय पालन से लेकर कम बजट में अच्छी फसलों का उत्पादन करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है. इसी तरफ पर हरियाणा की सर्कन ने भी अपने इस नये बजट में 20 हजार एकड़ रकबे को नेचुरल फार्मिंग के लिए निर्धारित किया है. बता दें सरकार के इस कदम से कृषि विशेषज्ञों को मदद मिलेगी. इसके अलावा जींद और सिरसा जिले में कुल तीन नेचुरल फार्मिंग से जुड़े ट्रेनिंग सेंटर भी खोले जाएंगे.

पशु पालन के लिए भी महत्वपूर्ण घोषणाएं

हरियाणा को दूध के उत्पादन का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है. किसान अपनी किसानी के साथ पशु पालन का भी काम करते हैं. हालांकि पशु पालन के विकास को लेकर सरकार पहले से ही कई तरह की योजनाएं चला रही है. लेकिन वित्त वर्ष 2023 से 2024 में इस सेक्टर में विकास के लिए हरियाणा पशुधन उत्थान की भी शुरुआत करने का प्लान है.
  • पशुधन की स्वास्थ्य से जुड़ी सुरक्षा के लिए 70 नई मोबाइल पशु चिकित्सा युनिट की शुरुआत की जाएगी.
  • राज्य के कई हिस्सों में पशु चिकित्सा पालीटेक्निक की भी स्थापना की जाएगी.
  • दो हाईटेक वेटनरी पेट क्लिनिक फरीदाबाद और गुरुग्राम में शुरू किया जाएगा.
  • हरियाणा गौ सेवा आयोग ने 4 सौ करोड़ का बजट आवारा पशुओँ की सुरक्षा के लिए देने का ऐलान किया है. यह बजट पहले सिर 40 करोड़ रुपये ही था.
  • ग्राम पंचायतों की सहमती के बाद नई गौशालाओं की स्थापना की जाएगी.

नहीं झेलनी पड़ेगी पानी की किल्लत

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि, सरकार ने पिछले कुछ सालों में सूक्ष्म सिंचाई की तरफ खास ध्यान दिया है. जिससे भूजल को संरक्षित करने में काफी मदद मिली है. जिसके बाद इसी कड़ी में बजट 2023 से 2024 के लिए सरकार उन गांवों में एक हजार पोजोमीटर की स्थापना करवाएगी जहां पानी की किल्लत है. इस योजना को नाम अटल भूजन योजना रखा गया है. हरियाणा सरकार का इस साल करीब ढ़ाई लाख एकड़ कृषि क्षेत्रफल को सूक्ष्म सिंचाई से जोड़ेगी. जिसके लिए 4 हजार ऑन फार्म वाटर टैंक का निर्माण किया जाएगा. बात गन्ने के उत्पान को बढ़ाने की करें तो उसके लिए भी सरकार के पिटारे से काफी कुछ निकला है. जहां राज्य में 2 लाख एकड़ पर जल संचय के लिए कई तरह के ढांचों की स्थापना करवाई जाएगी.
दुधारू पशु खरीदने पर सरकार देगी 1.60 लाख रुपये तक का लोन, यहां करें आवेदन

दुधारू पशु खरीदने पर सरकार देगी 1.60 लाख रुपये तक का लोन, यहां करें आवेदन

भारत सरकार किसानों की आय बढ़ाने को लेकर नए प्रयास करती रहती है। जिसके अंतर्गत किसानों को खेती बाड़ी के अलावा पशुपालन के लिए भी प्रोत्साहित करती है। इसी कड़ी में अब हरियाणा की सरकार किसानों को दुधारू गाय और भैंस पालने पर लोन तथा सब्सिडी की सुविधा प्रदान कर रही है। जिसको देखते हुए सरकार ने पशु क्रेडिट कार्ड योजना की शुरुआत की है। इस योजना के माध्यम से पशुपालन के इच्छुक किसानों को बिना कुछ गिरवी रखे 1.60 लाख रुपये तक का लोन दिया जा रहा है। पशु क्रेडिट कार्ड के माध्यम से गाय या भैंस खरीदने पर किसानों को 7 फीसदी ब्याज देना होता है। यदि किसान समय से अपना ब्याज चुकाते हैं तो इन 7 फीसदी में 3 फीसदी ब्याज सरकार वहन करती है। किसानों को वास्तव में मात्र 4 फीसदी ब्याज का ही भुगतान करना होता है। जिसे किसान अगले 5 साल तक चुका सकते हैं। जिन किसानों के पास खुद की जमीन है और उसमें वो पशु आवास या चारागाह बनाना चाहते हैं, वो भी इस योजना के अंतर्गत लोन प्राप्त कर सकते हैं। ये भी पढ़े: ये राज्य सरकार दे रही है पशुओं की खरीद पर भारी सब्सिडी, महिलाओं को 90% तक मिल सकता है अनुदान हरियाणा की सरकार ने भिन्न-भिन्न पशुओं पर भिन्न-भिन्न लोन की व्यवस्था की है। कृषि वेबसाइट के अनुसार, पशु किसान क्रेडिट कार्ड का उपयोग करके गाय खरीदने पर 40,783 रुपये, भैंस खरीदने पर 60,249 रुपये, सूअर खरीदने पर 16,237 रुपये और भेड़ या बकरी खरीदने पर 4,063 रुपये का लोन मुहैया करवाया जाएगा। इसके साथ ही मुर्गी खरीदने पर प्रति यूनिट 720 रुपये का लोन प्रदान किया जाएगा। इस योजना के अंतर्गत लोन लेने के लिए किसानों को किसी भी प्रकार की कोई चीज गिरवी नहीं रखनी होगी। साथ ही किसान भाई पशु क्रेडिट कार्ड का उपयोग बैंक के भीतर डेबिट कार्ड के रूप में भी कर सकते हैं। इस योजना के अंतर्गत अभी तक हरियाणा के 53 हजार से ज्यादा किसान लाभ प्राप्त कर चुके हैं। इन किसानों को सरकार के द्वारा 700 करोड़ रुपये से ज्यादा का लोन मुहैया करवाया जा चुका है। योजना के अंतर्गत दुधारू पशु खरीदने के लिए अभी तक 5 लाख किसान आवेदन कर चुके हैं, जिनमें से 1 लाख 10 हजार किसानों के आवेदनों को मंजूरी मिल चुकी है। जिन किसानों को हाल ही में मंजूरी दी गई है उन्हे भी जल्द से जल्द पशु क्रेडिट कार्ड उपलब्ध करवा दिया जाएगा।

पशु क्रेडिट कार्ड योजना के अंतर्गत ये बैंक देते हैं लोन

किसानों को 'पशु क्रेडिट कार्ड योजना' का लाभ देने के लिए सरकार ने कुछ बैंकों का चयन किया है। जिनके माध्यम से किसान जल्द से जल्द अपना 'पशु क्रेडिट कार्ड' बनवा सकते हैं। इनमें सरकार ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक, एचडीएफसी बैंक, एक्सिस बैंक, बैंक ऑफ़ बड़ौदा और आईसीआईसीआई बैंक को शामिल किया है।

पशु क्रेडिट कार्ड योजना के लिए आवश्यक दस्तावेज

आवेदक हरियाणा राज्य का स्थायी निवासी  होना चाहिए, इसके साथ ही लोन लेने के लिहाज से सिविल ठीक होना चाहिए। आवेदक के पास आधार कार्ड ,पेन कार्ड ,वोटर आईडी कार्ड, बैंक खाता डिटेल, मोबाइल नंबर और पासपोर्ट साइज फोटो होना चाहिए। ये भी पढ़े: यह राज्य सरकार किसानों को मुफ़्त में दे रही है गाय और भैंस

ऐसे करें 'पशु क्रेडिट कार्ड' बनवाने के लिए आवेदन

जो भी व्यक्ति 'पशु क्रेडिट कार्ड' बनवाना चाहता है उसे ऊपर बताए गए किसी भी बैंक की नजदीकी शाखा में जाना चाहिए। इसके बाद वहां पर आवेदन पत्र लेकर आवेदन को सावधानी पूर्वक भरें। साथ ही आवेदन के साथ दस्तावेजों की फोटो कॉपी चस्पा करें। ये सभी दस्तावेज बैंक अधिकारी के पास जमा कर दें। आवेदन सत्यापन के एक महीने बाद किसान को पशु केडिट कार्ड दे दिया जायेगा।