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पशुपालन विभाग की तरफ से निकाली गई बंपर भर्ती, उम्मीदवार 5 जुलाई से आवेदन कर सकते हैं

पशुपालन विभाग की तरफ से निकाली गई बंपर भर्ती, उम्मीदवार 5 जुलाई से आवेदन कर सकते हैं

बीपीएनएल के ओर से सर्वे इंचार्ज एवं सर्वेयर पद पर अच्छी खासी संख्या में भर्तियां निकाली हैं। इस भर्ती में सर्वे इंचार्ज पद के लिए 574 वहीं सर्वेयर पद के लिए 2870 भर्तियां निर्धारित की गई हैं। भारतीय पशुपालन निगम लिमिटेड में बंपर भर्ती निकली है। यदि आप सरकारी नौकरी करना चाहते हैं एवं पशुपालन में आपकी रुचि है तो ये भर्ती आपके लिए ही है। सबसे खास बात यह है, कि इस भर्ती में 10वीं पास लोग भी हिस्सा ले सकते हैं। जो भी इच्छुक उम्मीदवार इस भर्ती परीक्षा में बैठना चाहते हैं, उनको 5 जुलाई से पूर्व इस परीक्षा के लिए आवेदन फॉर्म भरना पड़ेगा। इस भर्ती से जुड़ी समस्त जानकारी आपको बीपीएनएल की आधिकारिक वेबसाइट पर प्राप्त हो जाएगी।

भर्ती हेतु आवेदनकर्ता पर क्या-क्या होना चाहिए

भारतीय पशुपालन निगम लिमिटेड मतलब कि बीपीएनएल द्वारा सर्वे इंचार्ज और सर्वेयर पद पर बंपर भर्तियां निकाली हैं। इस भर्ती में सर्वे इंचार्ज पद के लिए 574 एवं सर्वेयर पद के लिए 2870 भर्तियां निर्धारित की गई हैं। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि जो लोग भी सर्वे इंचार्ज पद पर आवेदन करना चाहते हैं, उन उम्मीदवारों की आयु सीमा 21 से 40 वर्ष के मध्य होनी अति आवश्यक है। इसके साथ ही उनके पास भारत के किसी मान्यता प्राप्त कॉलेज से 12वीं पास का रिजल्ट भी होना अनिवार्य है। वहीं, सर्वेयर पद के लिए जो उम्मीदवार इच्छुक हैं, उनकी आयु सीमा 18 से 40 वर्ष के मध्य होनी चाहिए। साथ ही, उनके पास 10वीं पास का रिजल्ट अवश्य होना चाहिए। हालांकि, ऐसा नहीं है, कि इस भर्ती के लिए केवल 10वीं अथवा 12वीं पास लोग ही आवेदन कर सकते हैं। यदि आप इससे अधिक पढ़े लिखे हैं, तब भी आप इस भर्ती के लिए आवेदन कर सकते हैं। यह भी पढ़ें: इन पशुपालन में होता है जमकर मुनाफा

भर्ती परीक्षा हेतु कितनी फीस तय की गई है

भारतीय पशुपालन निगम लिमिटेड की भर्ती परीक्षा की फीस की बात की जाए तो सर्वे इंचार्ज पद पर आवेदन करने के लिए उम्मीदवारों को 944 रुपये की फीस जमा करनी पड़ेगी। इसके अतिरिक्त सर्वेयर पद के लिए जो उम्मीदवार आवेदन करना चाहते हैं, उनकी फीस 826 रुपये निर्धारित की गई है। समस्त उम्मीदवारों का चयन ऑनलाइन टेस्ट एवं इंटरव्यू के अनुसार होगा। सबसे खास बात यह है, कि आवेदन की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है और अंतिम तिथि 5 जुलाई 2023 है।
जून में उगाई जाने वाली फसलों की खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

जून में उगाई जाने वाली फसलों की खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

खेती किसानी में बहुत से आतंरिक और बाहरी कारक फसलीय उत्पादन को प्रभावित करते हैं। इनमें से एक प्रमुख कारक फसल बुवाई के समय का चयन करना है। 

किसान भाइयों को बेहतर उपज हांसिल करने के लिए हर एक माह के मुताबिक फसलों की बुवाई और कृषि कार्य करना चाहिए। साथ ही, फसल की बुवाई के लिए उन्नत किस्मों का चुनाव करना चाहिए, 

ताकि बंपर उत्पादन हांसिल किया जा सके। ऐसे में कृषकों के पास प्रति महीने कृषि कार्यों की जानकारी होनी चाहिए, ताकि ज्यादा उपज के साथ उच्च गुणवत्ता प्राप्त हो सके।

भारत में मौसम के आधार पर भिन्न-भिन्न फसलों की खेती की जाती है। इसी प्रकार प्रत्येक महीने मौसम को मद्देनजर रखते हुए अलग-अलग कृषि कार्य भी किया जाता है, ताकि फसलों की सही ढ़ंग से देखभाल की जा सके। 

इससे फसल की अच्छी-खासी वृद्धि होती है। साथ ही, उपज की गुणवत्ता में भी सुधार होता है। ऐसे में आवश्यक है, कि कृषकों को मौसम के आधार पर किए जाने वाले कृषि कार्यों की सटीक जानकारी होनी चाहिए।

धान की नर्सरी से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी 

यदि किसान भाई मई के अंतिम सप्ताह में धान की नर्सरी नहीं लगा पाए हैं, तो जून के प्रथम सप्ताह तक यह कार्य पूर्ण कर लें। वहीं, सुगंधित किस्मों की नर्सरी जून के तीसरे सप्ताह तक लगा लें। 

धान की मध्यम और देरी से पकने वाली किस्मों को काफी अच्छा माना गया है। इसमें स्वर्ण, पंत-10, सरजू-52, नरेन्द्र-359, जबकि टा.-3, पूसा बासमती-1, हरियाणा बासमती सुगंधित एवं पंत संकर धान-1 तथा नरेन्द्र संकर धान-2 प्रमुख उन्नत संकर किस्में हैं। 

धान की बारीक किस्मों के लिए प्रति हेक्टेयर बीज दर 30 किलोग्राम, मध्यम धान के लिए 35 किलोग्राम, मोटे धान के लिए 40 किलोग्राम और बंजर भूमि के लिए 60 किलोग्राम, जबकि संकर किस्मों के लिए 20 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है। 

ये भी पढ़ें: किसान पूसा से धान की इन किस्मों का बीज अब ऑनलाइन खरीद सकते हैं

अगर नर्सरी में खैरा रोग नजर आए तो 20 ग्राम यूरिया, 5 ग्राम जिंक सल्फेट प्रति लीटर पानी में घोलकर 10 वर्ग मीटर क्षेत्र में छिड़काव करना चाहिए।

मक्का की जून में बुवाई से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी   

जून में मक्का की खेती से किसान अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं। इसलिए अगर आप मक्का की बुवाई करना चाहते हैं, तो इसकी बुवाई 25 जून तक कर लेनी चाहिए। अगर सिंचाई की सुविधा हो तो इसकी बुवाई 15 जून तक भी की जा सकती है। 

मक्का की उन्नत किस्मों में शक्तिमान-1, एच.क्यू.पी.एम.-1, तरुण, नवीन, कंचन, श्वेता और जौनपुरी की सफेद और मेरठ की पीली स्थानीय किस्में अच्छी मानी जाती हैं।

किसान पशु चारा की फसलों की बुवाई करें  

पशुओं के लिए हरे चारे का अभाव ना हो इसलिए आप इस महीने में ज्वार, लोबिया और चरी जैसे चारे वाली फसलों की बुवाई कर सकते हैं। बारिश न होने की स्थिति में खाद देकर बुवाई की जा सकती है। 

जून के महीने में किसान इन सब्जियों की खेती करें

जून के महीने में आप बैंगन, मिर्च, अगेती फूलगोभी की रोपाई कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त लौकी, खीरा, चिकनी तोरी, सावन तोरी, करेला और टिंडा की बुवाई भी इसी माह की जा सकती है। 

भिंडी की उन्नत किस्मों में परभणी क्रांति, आजाद भिंडी, अर्का अनामिका, वर्षा, उपहार, वी.आर.ओ.-5, वी.आर.ओ.-6 और आईआईवीआर-10 अच्छी मानी जाती है।

गर्मियों में हरे चारे के अभाव में दुधारू पशुओं के लिए चारा

गर्मियों में हरे चारे के अभाव में दुधारू पशुओं के लिए चारा

आज हम बात करेंगे कि गर्मियों में हरे चारे के अभाव में दुधारू पशुओं के लिए चारा किस प्रकार का देना चाहिए, जिसके आधार पर वो ज्यादा से ज्यादा दूध का उत्पादन कर सकें, जैसे, गेंहू/मक्के की दलिया और भी किसी दलहनी फसल की दलिया पका कर दिया जाता है, ताकि चारा सुपाच्य रहे और दूध भी ज्यादा दे।

गर्मियों में हरे चारे के अभाव में दुधारू पशुओं के लिए चारा (Fodder for milch animals in the absence of green fodder in summer)

गर्मियों के मौसम में पशुओं द्वारा दूध बड़ी कठिनाई से प्राप्त होता है। दुधारू पशुओं में दूध का उत्पादन देने की क्षमता गर्मियों के तापमान की वजह से काफी कम हो जाती है। सेंटीग्रेड मापन के अनुसार तापमान गर्मियों में लगभग 30 से 45 डिग्री हो जाता है कभी-कभी तापमान इससे भी ज्यादा बढ़ जाता है।जिसकी वजह से पशुओं में दुधारू की क्षमता काफी कम हो जाती है। यदि पशुओं को गर्मियों में हरा चारा दिया जाए, तो या भारी नुकसान होने से किसान भाई बच सकते हैं। पशुओं को हरा चारा देने से दूध उत्पादन में काफी वृद्धि होती है।गर्मियों के मौसम में पशुओं के आहार व्यवस्था पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए।

दूध के लिए जरूरी उन्नत चारा :

unnat chara ke fayde दुधारू पशुओं को साल भर हरा चारा खिलाने से दूध कारोबारियों में वृद्धि होती है। इसीलिए दुधारू पशुओं को हरा चारा देना चाहिए। हरा चारा ना सिर्फ पशुओं के लिए दूध वृद्धि  बल्कि कई प्रकार के विटामिंस की भी पूर्ति करता है। हरे चारे की एक नई लगभग विभिन्न प्रकार की किस्में होती है लेकिन जो किस्में किसान अपने पशुओं के लिए उपयोगी समझता है , वह ज्वार और बरसीम है जो पूर्ण रूप से फसलों पर ही निर्भर होती है। ये भी पढ़े: साइलेज बनाकर करें हरे चारे की कमी को पूरा

गर्मियों में हरे चारे के अभाव में दुधारू पशुओं के लिए उत्थान अनाज का चारा

गर्मियों के मौसम में पशुओं द्वारा दूध उत्पादन प्राप्त करने के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना जरूरी है:
  • गर्मियों के मौसम में पशुओं के तापमान को संतुलित बनाए रखने के लिए ऊर्जा की जरूरत पड़ती हैं। ऊर्जा के लिए पशुओं को जौ , मक्का आदि की आवश्यकता होती है। जिससे कि पशुओं को पूर्ण रूप से ऊर्जा की प्राप्ति हो सके।
  • ध्यान रखने योग्य बातें पशुओं को हो सके, तो आप ज्यादा चारा नहीं दें। क्योंकि चारों की वजह से शरीर में गर्मी बढ़ जाती है।जो कि गर्मियों के मौसम में पशुओं के लिए लाभदायक नहीं होती है। ऐसे में आप चारे की कम मात्रा पशुओं को दें।
  • पशुओं का आहार संतुलित बनाए रखने के लिए पशुओं को आहार के रूप में प्रोटीन ,खनिज विटामिन, ऊर्जा आदि को देना आवश्यक है।

पशुओं से ज्यादा दूध प्राप्त करने के लिए उनको गेंहू/मक्के के चारे देना:

हरे चारे के अभाव में दुधारू पशुओं के लिए चारा - gehu makka ka chara गर्मियों के मौसम में पशुओं से ज्यादा दूध प्राप्त करने के लिए उनको मक्का, जौ, गेंहू, बाजरा आदि के चारे देना बहुत ही लाभदायक होता है। क्योंकि गेहूं और मक्का बाजरा आदि में लगभग 35% पोषक तत्व मौजूद होते हैं जिसे खाकर गाय, भैंस भरपूर दूध की मात्रा का उत्पादन करती है।अगर आप मक्का ,बाजरा, जौ इन तीनों में से किसी एक को भी भोजन के रूप में देना चाहते हैं तो कम से कम आपको 35%भाग देना होगा। जिसे खाकर गाय, भैंस पूर्ण रूप से दुधारू का निर्यात कर सकें। ये भी पढ़े: पशुओं का दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए करे ये उपाय, होगा दोगुना फायदा

गाय, भैंस को दलिया खिलाने के फायदे:

मनुष्य हो या फिर पशु दोनों को भोजन पचाने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। गायों और भैंस को दलिया खिलाने से पूर्ण रूप से ऊर्जा प्राप्त होती है। पशुओं को अपने भोजन को पचाने के लिए ऊर्जा की काफी जरूरत होती है इसीलिए दलिया पकाकर खिलाने से पशुओं को ऊर्जा मिलती हैं। प्रसूति से पहले और बाद में इन दोनों ही अवस्थाओं में पशुओं को दलिया खिलाना बहुत ही लाभदायक होता है। दलिया को बचाने में काफी कम उर्जा लगती हैं।

गाय को मक्का खिलाने के फायदे:

गर्मियों में हरा चारा के अभाव में पशुओं के लिए चारा, सूखा चारा खाता गाय का बछड़ा दुधारु पशुओं में दूध की मात्रा को बढ़ाने के लिए मक्का की खली बहुत ही लाभदायक है क्योंकि मक्का में मौजूद पोषक तत्व आसानी से पच जाते हैं। मक्के की खली भिगोने के बाद काफी फूल जाती है जिससे इसका वजन भी काफी बढ़ जाता है। मक्के की खली को भोजन के रूप में देने से दुधारू पशुओं में दूध उत्पादन की मात्रा में बहुत बढ़ोतरी होता है। इस तरह से हम हरे चारे के अभाव में दुधारू पशुओं के लिए चारा का इंतज़ाम कर सकते हैं।

दुधारू पशुओं के लिए साल भर हरे चारे का इंतजाम करना:

किसानों के लिए अपने दुधारू पशुओं का पालन करने के लिए साल भर हरे चारे दे पाना बहुत ही मुश्किल होता है। वहीं दूसरी ओर दुधारू पशुओं को चारे के साथ-साथ पौष्टिक दानों की भरपूर मात्रा वह हरे चारे की बहुत ही ज्यादा आवश्यकता होती है,पशुओं को भोजन के रूप में देने के लिए। हरा चारा न केवल दूध उत्पादन बल्कि विभिन्न प्रकार के रोगों से भी सुरक्षा प्रदान करता है। पशु इसे खाकर विभिन्न प्रकार के रोग से खुद का बचाव करते हैं तथा निरोग रहते हैं। किसान अपने पशुओं को जई, मक्का ,बाजरा लोबिया, बरसीम, नैपियर घास ,मूंग उड़द आदि को हरे चारे के रूप में पशुओं को देते हैं। परंतु यह सभी चारे गर्मियों के मौसम में नहीं मिल पाते और पशु पालन करने वाले निराश होकर अपने पशुओं को सूखा चारा व दाना खिलाने पर पूरी तरह से मजबूर हो जाते हैं। इन सभी स्थिति के कारण पशुओं में दूध देने की क्षमता काफी कम हो जाती है जो किसान भाइयों के व्यापार के लिए काफी नुकसानदायक साबित होती है।

पशुओं के लिए हरा चारा बनाना:

hara chara साइलेज द्वारा हरे चारे का इस्तेमाल किया जाता है। साइलेज बनाने के लिए हरे चारे और पोषक तत्वों से भरपूर खाद्यानन को अच्छी तरह से मिस किया जाता है। साइलेज की सहायता से पशुओं में दूध देने की क्षमता तेजी से बढ़ती है। इसकी सहायता से हरे चारे काफी लंबे टाइम तक सुरक्षित रखने में मदद मिलती है।साइलेज की सहायता से हरे चारों में मौजूद पौष्टिक तत्व नष्ट नहीं हो पाते तथा और भी पोषक तत्व की बढ़ोतरी होती रहती है। किसान भाई हरे चारे की प्राप्ति के लिए अपनी फसल की कटाई के दौरान हरे चारे को धूप में सुखाकर अच्छे से रख लेते हैं। ताकि सालभर हरा चारा ना मिलने पर वह अपने पशुओं को सूखे हुए हरे चारों का इस्तेमाल कर पशुओं से दूध की प्राप्त कर सकें। इस तरह से हम हरे चारे के अभाव में दुधारू पशुओं के लिए चारा का इंतज़ाम कर सकते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारी इस पोस्ट के द्वारा गर्मियों में हरे चारे की उपयोगिता और या किस तरह से पशुओं में दूध की वृद्धि को बढ़ाते हैं आदि की पूर्ण जानकारी हमारी इस पोस्ट में मौजूद है। यदि आप हमारी दी हुई जानकारियों से संतुष्ट है। तो आप हमारी इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा अपने सोशल मीडिया और दोस्तों के साथ शेयर करें। धन्यवाद।
गेहूं निर्यात पर रोक, फिर भी कम नहीं हो रहीं कीमतें

गेहूं निर्यात पर रोक, फिर भी कम नहीं हो रहीं कीमतें

नई दिल्ली। गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध (Wheat Export Ban - May 2022) के बावजूद भी घरेलू बाजार में गेहूं की कीमतें कम नहीं हो रहीं हैं। रोक के बाद 14 दिन में खुदरा बाजार में गेहूं की कीमत में महज 56 पैसे की गिरावट हुई है। उछलते वैश्विक दाम और गेहूं उत्पादन में कमी के चलते गेहूं की कीमतों में वृद्धि हुई है। भारत में 13 मई को गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया था। उस वैश्विक बाजार में इसका भाव 1167.2 डॉलर प्रति बशल था। 18 मई को यह बढ़कर 1284 डॉलर प्रति बशल (27.216 रूपये प्रति किलो) तक पहुंच गया। हालांकि 25 मई को इसमें फिर गिरावट हुई। और 26 मई को इसकी कीमतें घटकर 1128 डॉलर प्रति बशल हो गईं। केडिया एडवाइजरी के निदेशक अजय केडिया का कहना है कि वैश्विक बाजार में गेहूं की कीमतों में तेजी आ रही है। इसके अलावा भारत में गेहूं उत्पादन में गिरावट भी महंगाई का मुख्य कारण है। वैश्विक बाजार में जब तक दाम नहीं घटेंगे, तब तक घरेलू बाजार में भी गेहूं के भाव में गिरावट की संभावना कम है।

अभी कुछ महीने और महंगाई के आसार

केडिया एडवाइजरी के निदेशक अजय केडिया के अनुसार रूस-यूक्रेन युद्ध कारण आपूर्ति प्रभावित होने से वैश्विक बाजार में तेजी है। भारत को थोड़ी राहत इसलिए है कि पिछले तीन-चार सालों से गेहूं उत्पादन बेहतर होने के कारण हमारे पास गेहूं का अच्छा भंडारण बन हुआ है। फिर भी गेहूं के सस्ते होने के लिए कुछ महीने और इंतजार करना होगा।

उत्पादन कम हुआ, मांग बढ़ी

- इस साल गेहूं का उत्पादन कम हुआ है, जबकि वैश्विक स्तर पर गेहूं की मांग ज्यादा बढ़ी है। देश मे गेहूं भंडारण पेट भरने के लिए ही काफी है।

गरम तवे पर छींटे सी राहत :

तारीख - 13 मई 2022, कीमत प्रति क्वांटल - 2334, कीमत प्रति किलो - 23.34 तारीख - 26 मई 2022, कीमत प्रति क्विंटल - 2278, कीमत प्रति किलो - 22.78 सस्ता - प्रति क्विंटल 56 पैसे

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◆ देश में इस साल गेहूं उत्पादन में 7-8% कई कमी की आंशका है।

◆ साल 2021-22 में 10.95 करोड़ गेहूं का उत्पादन हुआ है। 

 ◆ भारत 21 मार्च 2022 तक कुल 70.30 लाख टन गेहूं निर्यात (wheat export) कर चुका है। 

 ◆ वैश्विक स्तर पर 14 साल बाद गेहूं पर महंगाई हुई है। "मौजूदा हालात के चलते गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध जारी रहेगा। दुनियाभर में अनिश्चितता बनी हुई है, अगर ऐसे में हम निर्यात शुरू कर दें तो जमाखोरी की आशंका बढ़ सकती है। इससे उन देशों को कोई लाभ नहीं होगा, जिनको अनाज की बेहद जरूरत है। हमारे इस फैसले से वैश्विक बाजार पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। क्योंकि वैश्विक बाजार में भारत का निर्यात एक फीसदी से भी कम है।"

श्री पीयूष गोयल भारत सरकार में रेलवे मंत्री तथा वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री हैं (Shri Piyush Goyal Commerce minister)

- पीयूष गोयल, केन्द्रीय वाणिज्य मंत्री (फोटो सहित)


लोकेन्द्र नरवार

 
भारत में आई गेहूं के दाम में गिरावट, सरकार के इस कदम से हुआ असर

भारत में आई गेहूं के दाम में गिरावट, सरकार के इस कदम से हुआ असर

हाल फिलहाल में देश और दुनिया में गेहूं के रेट बहुत तेज़ी से बढ़े थे, जिसको देखते हुए सरकार ने भारत से आटा निर्यात (Flour Export) को कुछ दिन के लिए बंद कर दिया था। अब आटा निर्यात प्रतिबन्ध का असर भी दिख रहा है और देश में गेहूं का दाम पहले के मुकाबले काफी गिर गया है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि बिल्कुल ही सस्ता हो गया है।

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आटा, मैदा और सूजी के निर्यात को अब देना होगा गुणवत्ता प्रमाण पत्र अभी भी गेहूं का दाम MSP से ज्यादा ही है। गौर करने वाली बात है कि हर साल तेज गर्मी पड़ने की वजह से देश में गेहूं का उत्पादन प्रभावित हुआ था, जिसके चलते देश में गेहूं संकट गहरा गया है। उसके परिणामस्वरूप गेहूं और आटे के दाम में बेतरतीब बढ़ोतरी देखने को मिली है। मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक 14 सालों में ये पहली बार है जब गेहूं का स्टॉक अगस्त माह आते-आते इतना कम हो गया है। मौजूदा समय में गेहूं का MSP 2015 चल रहा है। पिछले दिनों आटे के निर्यात में प्रतिबंध के साथ गेहूं के दाम 25 रुपये प्रति क्विंटल तक कम हुए हैं। वैसे बाजार में गेहूं के मौजूदा रेट की बात करें तो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में इसका भाव 2500 रुपये प्रति क्विंटल है। ये भाव 25 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट के बाद के हैं। आटे के निर्यात पर सरकार ने अभी फैसला लिया है, लेकिन गेहूं के निर्यात पर सरकार ने बहुत पहले ही फैसला ले लिया था और 13 मई को ही इसके निर्यात पर रोक लगा दी थी। असल में सिर्फ हमारा देश ही गेहूं संकट का सामना नहीं कर रहा, बल्कि दुनियाभर में यह संकट अपना असर डाल रहा है। वैसे दुनियाभर में इस संकट की असल वजह यूक्रेन-रूस युद्ध (Ukraine-Russia War) है। गौर करने वाली बात है कि यूक्रेन दुनियाभर में अपना गेहूं निर्यात करता है। युद्ध की वजह से वह अपना गेहूं कहीं नहीं भेज रहा था। जिसकी वजह से भारत के गेहूं कि दुनियाभर में डिमांड बढ़ गई थी। चूंकि, भारत में गेहूं संकट होने के कारण 13 मई को ही सरकार ने इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। वैसे 13 मई के पहले जो डील हो गई थीं, उन्हीं के शिप 13 मई के बाद भारत से गेहूं लेकर रवाना हुए थे।

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इस साल वक्त के पहले गर्मी शुरू होने से देश में तीन-चार महीने तापमान बहुत तेज रहा जिसकी वजह से मध्यप्रदेश और पंजाब में गेहूं की पैदावार पर जोरदार असर पड़ा है। कृषि विभाग के मुताबिक इस साल 3 प्रतिशत कम पैदावार हुई है। इसी की वजह से देश यह संकट झेल रहा है। यही नहीं अगस्त आते-आते देश का गेहूं स्टॉक अपने सबसे निचले स्तर पर है। गौर करने वाली बात है कि भारत गेहूं पैदा करने के मामले में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। लेकिन निर्यात करने में भारत टॉप-10 में भी नहीं है। इसमें पहले नंबर पर रूस और पांचवें नंबर पर यूक्रेन है। ये दोनों ही देश युद्ध में उलझे हुए हैं। ऐसे में दुनियाभर में गेहूं की कमी आना स्वभाविक है।
जानें चुकंदर कैसे पोषक तत्वों से भरपूर और स्वास्थ्य के लिए है फायदेमंद है ?

जानें चुकंदर कैसे पोषक तत्वों से भरपूर और स्वास्थ्य के लिए है फायदेमंद है ?

चुकंदर में बहुत सारे न्यूट्रिशनल गुण पाए जाते है , जो की स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते है। चुकंदर का वैज्ञानिक नाम वल्गेरिस है। चुकंदर एक जड़ वाली सब्जी होती है , इसका उत्पादन बहुत से देशो में किया जाता है। 

चुकंदर में उपस्तिथ एक्टिव कंपाउंड स्वास्थ्य को लाभ प्रदान करते है , इसी कारन इसे फंक्शनल फ़ूड भी कहा  जाता है। बहुत से लोगो द्वारा इसे कच्चा खाया जाता है , सलाद और अन्य सब्जियों में भी इसका प्रयोग किया जाता है।  

हृदय रोगो में है लाभकारी 

चुकंदर हृदय से जुड़े रोगो के लिए लाभकारी है। हाइपरटेंशन बीमारी की वजह से रक्त वाहिकाएँ प्रभावित होती है ,जिससे दिल के दोहरे पड़ने और साँस रुकने की समस्या बढ़ जाती है। 

चुकंदर शरीर के अंदर रक्त के प्रवाह को बनाये रखती है , साथ ही ब्लड प्रेशर और कैलेस्ट्रोल की समस्याओ को भी दूर करती है। हृदय रोगो से जुडी कोई भी समस्या के लिए, चुकंदर का उपयोग डॉक्टर की परामर्श लेकर करें। 

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दिमाग को स्वस्थ बनाये रखता है 

शरीर में अच्छे से ब्लड सर्कुलेट ना होने की वजह से बहुत से परेशानिया हो सकती है जैसे : अच्छे से कोई चीज याद न रहना ,तर्क बिगड़ना और अन्य कई परेशानिया हो सकती है। 

चुकंदर खाने से शरीर में ब्लड सर्कुलेशन अच्छा बना रहता है। दिमाग में ब्लड सर्कुलेशन अच्छे से न होने की वजह से लोगो में ब्रेन डैमेज की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है। 

दिमाग से जुडी समस्याओ में राहत पाने के लिए लोगो द्वारा चुकंदर के जूस या चुकंदर को साबुत भी खाया जा सकता है। 

इंफ्लेमेशन जैसी समस्याओ में है लाभकारी 

चुकंदर इन्फ्लेमेशन जैसी समस्याओ में भी सहायक रहता है ,यह सूजन साथ ही इन्फेक्शन जैसी समस्याओ में राहत देती है। इन्फ्लेमेशन के प्रभाव से इससे प्रभावित जगह लाल पड जाती है और दर्द होना शुरू हो जाता है। 

यदि शरीर में कही  भी सूजन हो तो उससे राहत पाने के लिए चुकंदर का उपयोग किया जा सकता है। यदि आप पहले से इस बीमारी से सम्बंधित कोई दवा ले रहे है , तो चुकंदर का उपयोग डॉक्टर के परामर्श द्वारा ही करें। 

थकावट को दूर करने में उपयोगी 

चुकंदर का उपयोग थकावट को दूर करने के लिए भी किया जाता है। शरीर में होने वाले दर्द या स्ट्रेस को दूर करने के लिए लोगो द्वारा चुकंदर का सेवन किया जाता है। 

शरीर में थकावट होना, ज्यादा व्यायाम करने की वजह से शरीर में होने वाला दर्द, इन्फेक्शन या गर्मियों में शरीर में पानी की कमी से आने वाली कमजोरी, को भी कम करता है। 

चुकंदर में  एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते है, जो वाहिकाओं में स्ट्रेस की वजह से आने वाली परेशानियों को कम करता है।  

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कैंसर जैसे रोग में है सहायक 

चुकंदर में एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते है, जो की कैंसर जैसी बीमारियों में राहत देते है। चुकंदर में उपस्तिथ गुण कैंसर के विकास की रोकथाम करने में सहायक होते है। 

कैंसर के रोगियों में अनिद्रा, थकान और कई गंम्भीर समस्याएँ देखने को मिलती है। स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाले कार्यात्मक भोजन के लिए चुकंदर का प्रयोग किया जाता है। 

चुकंदर में मौजूद पोषक तत्व कैंसर के रोगियों को लाभ प्रदान करते है, और स्वास्थ से जुडी  परेशानियों को भी कम करते है। 

खून की कमी को दूर करता है 

जिन व्यक्तियों के अंदर खून की कमी होती है, उन्हें चुकंदर खाने की सलाह दी जाती है। चुकंदर के अंदर भरपूर मात्रा में आयरन पाया जाता है, जो की शरीर के अंदर खून की कमी को पूरा करने में सहायक रहता  है। 

चुकंदर अनीमिया की बीमारी में भी राहत प्रदान करता है। शरीर के अंदर खून की कमी को पूरा करने के लिए चुकंदर का उपयोग किया जाता है। चुकंदर को कच्चा भी  खाया जा सकता है, इसका उपयोग सब्जी में, सलाद में या फिर जूस के रूप में भी किया जा सकता है।

ये भी पढ़ें: इस प्रकार घर पर सब्जियां उगाकर आप बिना पैसे खर्च किए शुद्ध और ताजा सब्जियां पा सकते हैं

पाचन शक्ति को बढ़ाने में सहायक होता है 

चुकंदर को रोजाना सुबह खाली पेट खाने से पाचन किर्या स्वस्थ बनी रहती है। चुकंदर का उपयोग खाने के वक्त सलाद के रूप में भी कर सकते है। चुकंदर में भरपूर मात्रा में फाइबर पाया जाता है, जो पाचन सम्बन्धी किर्यो में सहायक रहता है। 

रोजाना चुकंदर का सेवन करने से पेट में कब्ज और गैस जैसी समस्याओ में राहत मिलती है। पाचन किर्या को स्वस्थ बनाये रखने के लिए रोजाना चुकंदर के जूस का सेवन करना लाभकारी माना जाता है।

त्वचा के निखार के लिए है फायदेमंद 

चुकंदर का उपयोग त्वचा के निखार के लिए फायदेमंद होता है। चुकंदर के रस का उपयोग चेहरे पर रोजाना करने से , होने वाले कील और मुहासे में फायदा होता है। 

चुकंदर में भरपूर मात्रा में फोलेट और फाइबर पाया जाता है , जो त्वचा के निखार के लिए बेहद उपयोगी माना जाता है।  चुकंदर को डाइट का हिस्सा भी बनाया जा सकता है। 

चुकंदर में बहुत से पोषक तत्व पाए जाते है ,जो स्वास्थ के लिए बेहद लाभकारी होते है। चुकंदर का उपयोग मेमोरी पावर को भी बढ़ाने के लिए किया जाता है। 

साथ ही चुकंदर में कार्बोहायड्रेट भी पाया जाता है, जो शरीर के अंदर एनर्जी लेवल को बढ़ाने में सहायक होता है। इसके साथ ही दिल से जुडी समस्याओ को कम करने के लिए भी चुकंदर का उपयोग किया जाता है, चुकंदर में मौजूद नाइट्रेट खून के दवाब को कम करने में उपयोगी होता है।  

लौकी की खेती कैसे की जाती है जानिए सम्पूर्ण जानकारी के बारे में

लौकी की खेती कैसे की जाती है जानिए सम्पूर्ण जानकारी के बारे में

लौकी भारत में सब्जी के रूप में बड़े पैमाने पर उगाई जाती है और इसके फल साल भर उपलब्ध रहते हैं। लौकी नाम फल के बोतल जैसे आकार और अतीत में कंटेनर के रूप में इसके उपयोग के कारण पड़ा। नरम अवस्था में फलों का उपयोग पकी हुई सब्जी के रूप में और मिठाइयाँ बनाने के लिए किया जाता है। परिपक्व फलों के कठोर छिलकों का उपयोग पानी के जग, घरेलू बर्तन, मछली पकड़ने के लिए जाल के रूप में किया जाता है। सब्जी के रूप में यह आसानी से पचने योग्य है। इसकी तासीर ठंडी होती है और कार्डियोटोनिक गुण के कारण मूत्रवर्धक होता है।  लोकि से कई रोग जैसे की कब्ज, रतौंधी और खांसी को नियंत्रित किया जा सकता है। पीलिया के इलाज के लिए पत्ते का काढ़ा बनाकर सेवन किया जाता है। इसके बीजों का उपयोग जलोदर रोग में किया जाता है।  

लौकी की फसल के लिए उपयुक्त जलवायु

लौकी एक सामान्य गर्म मौसम की सब्जी है। खरबूजा और तरबूज की तुलना में लोकि की फसल ठंडी जलवायु को बेहतर सहन करती है। लोकि की फसल पाले को बर्दाश्त नहीं कर सकती। अच्छी जल निकास वाली उपजाऊ गाद दोमट होती है।  यह भी पढ़ें:
लौकी की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी इसकी खेती के लिए गर्म और नम जलवायु अनुकूल होती है। रात का तापमान 18- 22°C और  दिन का तापमान 30-35  इसकी उचित वृद्धि और उच्च फल के लिए इष्टतम होता है। 

खेत की तैयारी     

फसल की बुवाई से पहले खेत को तैयार किया जाता है। खेत को प्लॉव से एक बार गहरी जुताई करके तैयार करें उसके बाद इसके बाद 2 बार हैरो की मदद से खेत को अच्छी तरह से जोते। आखरी जुताई के समय खेत में 4 टन प्रति एकड़ की दर से गोबर की खाद या कम्पोस्ट को अच्छी तरह मिट्टी में मिला दें।             

बीज की बुवाई

यदि आप चाहे तो सीधे बीजो को खेत में लगाकर भी इसकी खेती कर सकते है | इसके लिए आपको तैयार की गयी नालियों में बीजो को लगाना होता है| बीजो की रोपाई से पहले तैयार की गयी नालियों में पानी को लगा देना चाहिए उसके बाद उसमे बीज रोपाई करना चाहिए।  यह भी पढ़ें: जानिए लौकी की उन्नत खेती कैसे करें लौकी की जल्दी और अधिक पैदावार के लिए इसके पौधों को नर्सरी में तैयार कर ले फिर सीधे खेत में लगा दे। पौधों को बुवाई के लगभग 20 से 25 दिन पहले तैयार कर लेना चाहिए। इसके अतिरिक्त बीजो को रोग मुक्त करने के लिए बीज रोपाई से पहले उन्हें गोमूत्र या बाविस्टीन से उपचारित कर लेना चाहिए। इससे बीजो में लगने वाले रोगो का खतरा कम हो जाता है, तथा पैदावार भी अधिक होती है। 

रोपाई का समय और तरीका

बारिश के मौसम में इसकी खेती करने के लिए बीजो की जून के महीने में रोपाई कर देनी चाहिए। इसके अतिरिक्त पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी रोपाई को मार्च या अप्रैल के महीने में करना चाहिए।  समतल भूमि में की गयी लौकी की खेती को किसी सहारे की जरूरत नहीं होती है | ऐसी स्थिति में इसकी बेल जमीन में फैलती है, किन्तु जमीन से ऊपर इसकी खेती करने में इसे सहारे की जरूरत होती है। इसके लिए खेत में 10 फ़ीट की दूरी पर बासो को गाड़कर जल बनाकर तैयार कर लिया जाता है, जिसमे पौधों को चढ़ाया जाता है। इस विधि को अधिकतर बारिश के मौसम में अपनाया जाता है।  

फसल में खरपतवार नियंत्रण  

खरपतवार नियंत्रण करने के लिए फसल में समय समय पर निराई गुड़ाई करते रहे ताकि फसल को खरपतवार मुक्त रखा जा सकें।  यह भी पढ़ें: सही लागत-उत्पादन अनुपात को समझ सब्ज़ी उगाकर कैसे कमाएँ अच्छा मुनाफ़ा, जानें बचत करने की पूरी प्रक्रिया रासायनिक तरीके से खरपतवार पर नियंत्रण के लिए ब्यूटाक्लोर का छिड़काव जमीन में बीज रोपाई से पहले तथा बीज रोपाई के तुरंत बाद करनी चाहिए| खरपतवार के नियंत्रण से पौधे अच्छे से वृद्धि करते है, तथा पैदावार भी अच्छी होती है | 

फसल में उर्वरक और पोषक तत्व प्रबंधन

फसल से उचित उपज प्राप्त करने के लिए 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 15 - 20 किलोग्राम फॉस्फोरस और 20 किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ की दर से खेत में डालें।    

लौकी के प्रमुख रोग और उनका नियंत्रण

  • लौकी (घीया) एक प्रमुख फलीय सब्जी है जो भारतीय खाद्य पदार्थों में आमतौर पर प्रयोग होती है। यह कई प्रमुख रोगों के प्रभावित हो सकती है, जिनमें से कुछ मुख्य हैं:
  • लौकी मोजैक्यूलर वायरस रोग (Luffa Mosaic Virus Disease):
  • इस रोग में पत्तियों पर पीले या हरे रंग के पट्टे दिखाई देते हैं। यह रोग पौधों की वृद्धि और उत्पादन पर असर डालता है।
  • नियंत्रण के लिए, स्वस्थ बीजों का उपयोग करें और बीमार पौधों को नष्ट करें।
  • लौकी मॉसेक वायरस रोग (Luffa Mosaic Virus Disease):
  • इस रोग में पत्तियों पर सफेद या हरे रंग के दाग दिखाई देते हैं। यह पौधों की वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
  • नियंत्रण के लिए, स्वस्थ बीजों का उपयोग करें और संक्रमित पौधों को नष्ट करें।
  • दाग रोग (Powdery Mildew): यह रोग पात्र प्रभावित करके पौधों पर धूल की तरह सफेद दाग उत्पन्न करता है। इसके नियंत्रण के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाएं:
  • दाग रोग से प्रभावित पौधों को हटाएं और उन्हें जला दें।
  • पौधों की पर्यावरण संगठना को सुधारें, उचित वेंटिलेशन प्रदान करें और पानी की आपूर्ति को नियमित रखें।
  • दाग रोग के लिए केमिकल फंगिसाइड का उपयोग करें, जैसे कि सल्फर युक्त फंगिसाइड।

लौकी के फल की तुड़ाई और पैदावार

फसल की बुवाई और रोपाई के लगभग 50 दिन बाद लौकी उड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। जब लौकी सही आकर की दिखने लगे तब उसकी तुड़ाई कर ले। तुड़ाई करते समय किसी धारदार चाकू या दराती का इस्तेमाल करें। लौकी को तोड़ते समय फल के ऊपर थोड़ा सा डंठल छोड़ दें जिससे फल कुछ समय तक फल ताजा रहें। लौकी की तुड़ाई के तुरंत बाद पैक कर बाजार में बेचने के लिए भेज देना चाहिए | फलो की तुड़ाई शाम या सुबह दोनों ही समय की जा सकती है। एक एकड़ भूमि से लगभग 200 क्विंटल का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। 
नरेंद्र शिवानी किस्म की लौकी की लंबाई जानकर आप दंग रह जाऐंगे

नरेंद्र शिवानी किस्म की लौकी की लंबाई जानकर आप दंग रह जाऐंगे

किसान भाई नरेंद्र शिवानी प्रजाति की लौकी की खेती कर बेहतरीन कमाई कर सकते हैं। लौकी सब्जी के अतिरिक्त मिठाई, रायता, आचार, कोफ्ता, खीर इत्यादि तैयार करने में उपयोग की जाती हैं। 

इससे विभिन्न प्रकार की औषधियां भी निर्मित होती हैं। लौकी खाने में फायदेमंद होने की वजह से चिकित्सक भी रोगियों को इसका सेवन करने की सलाह देते हैं। 

इन दिनों उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में स्थित मंगलायतन विश्वविद्यालय के कृषि संकाय की ओर से उगाई गई लौकी आकर्षण का केंद्र बनी है। कारण यह है, कि इसका रंग और स्वाद तो आम लौकी जैसा ही है। 

परंतु, देखने में यह बिल्कुल अलग है। नरेंद्र शिवानी प्रजाति की लौकी की लंबाई लगभग पांच फीट है। कृषि संकाय के प्राध्यापकों और विद्यार्थियों ने अभी लौकी की इस फसल को बीज प्राप्त करने के लिए तैयार किया है। 

इस किस्म की फसल की पैदावार से किसान बेहतरीन मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं। 

लौकी किसानों को जागरुक किया जा रहा है

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. पीके दशोरा का कहना है, कि विश्वविद्यालय में यह लौकी किसानों को जागरूक करने और शुद्ध बीज तैयार करने के लिए उगाई जा रही है। 

उनका कहना है, कि लौकी एक अनोखी सब्जी है जो औषधि, वाद्ययंत्र, सजावट इत्यादि के रूप में भी इस्तेमाल की जाती है। उन्होंने बताया है, कि विश्वविद्यालय किसानों को जागरूक करने के साथ-साथ उन्हें उन्नत किस्मों से काफी अच्छा लाभ कमाने के लिए प्रशिक्षित करेगा।

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विशेषज्ञों का इस पर क्या कहना है

बतादें, कि कृषि विभाग के अध्यक्ष प्रो. प्रमोद कुमार का कहना है, कि इस लौकी की फसल की बुवाई जुलाई माह में की गई थी। इस किस्म का औसत उत्पादन 700-800 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। 

एक हजार कुंतल प्रति हेक्टेयर तक इसकी पैदावार अर्जित की जा सकती है। इस किस्म का स्वाद एवं पोषक तत्व बाकी प्रजातियों के समान ही होते हैं। 

इसमें प्रोटीन 0.2 प्रतिशत, वसा 0.1 प्रतिशत, फाइबर 0.8 प्रतिशत, शर्करा 2.5 प्रतिशत, ऊर्जा 12 किलो कैलोरी, नमी 96.1 प्रतिशत है। साथ ही, गोल फलों वाली किस्म नरेंद्र शिशिर भी पैदा की गई है। दिसंबर तक इसका बीज भी तैयार हो जाएगा। 

लौकी की खेती कैसे करें

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इस प्रजाति की लौकी की खेती करने के लिए अच्छे गुणवत्ता वाले लौकी के बीजों का चुनाव करें। लौकी के खेत का चयन करते समय अच्छे स्थान का चयन करें। 

इसके बीजों को बोने के लिए मार्च-अप्रैल के बीच अच्छे मौसम का चयन करें। लौकी की पौधों के बीच की दूरी 1.5-2.5 मीटर तक होनी चाहिए। पौधों की नियमित रूप से सिंचाई करें।

आम के बागों से अत्यधिक लाभ लेने के लिए फूल (मंजर ) प्रबंधन अत्यावश्यक, जाने क्या करना है एवं क्या नही करना है ?

आम के बागों से अत्यधिक लाभ लेने के लिए फूल (मंजर ) प्रबंधन अत्यावश्यक, जाने क्या करना है एवं क्या नही करना है ?

उत्तर भारत खासकर बिहार एवम् उत्तर प्रदेश में आम में मंजर, फरवरी के द्वितीय सप्ताह में आना प्रारम्भ कर देता है, यह आम की विभिन्न प्रजातियों तथा उस समय के तापक्रम द्वारा निर्धारित होता है। आम (मैंगीफेरा इंडिका) भारत में सबसे महत्वपूर्ण उष्णकटिबंधीय फल है। भारतवर्ष में आम उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश एवं बिहार में प्रमुखता से इसकी खेती होती है। भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के वर्ष 2020-21 के संख्यिकी के अनुसार भारतवर्ष में 2316.81 हजार हेक्टेयर में आम की खेती होती है, जिससे 20385.99 हजार टन उत्पादन प्राप्त होता है। आम की राष्ट्रीय उत्पादकता 8.80 टन प्रति हेक्टेयर है। बिहार में 160.24 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में इसकी खेती होती है जिससे 1549.97 हजार टन उत्पादन प्राप्त होता है। बिहार में आम की उत्पादकता 9.67 टन प्रति हे. है जो राष्ट्रीय उत्पादकता से थोड़ी ज्यादा है।

आम की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए आवश्यक है कि मंजर ने टिकोला लगने के बाद बाग का वैज्ञानिक ढंग से प्रबंधन कैसे किया जाय जानना आवश्यक है ? आम में फूल आना एक महत्वपूर्ण चरण है,क्योंकि यह सीधे फल की पैदावार को प्रभावित करता है । आम में फूल आना विविधता और पर्यावरणीय परिस्थितियों पर अत्यधिक निर्भर है। इस प्रकार, आम के फूल आने की अवस्था के दौरान अपनाई गई उचित प्रबंधन रणनीतियाँ फल उत्पादन को सीधे प्रभावित करती हैं।

आम के फूल का आना

आम के पेड़ आमतौर पर 5-8 वर्षों के विकास के बाद परिपक्व होने पर फूलना शुरू करते हैं , इसके पहले आए फूलों को तोड़ देना चाहिए । उत्तर भारत में आम पर फूल आने का मौसम आम तौर पर मध्य फरवरी से शुरू होता है। आम के फूल की शुरुआत के लिए तेज धूप के साथ दिन के समय 20-25 डिग्री सेल्सियस और रात के दौरान 10-15 डिग्री सेल्सियस की आवश्यकता होती है। हालाँकि, फूल लगने के समय के आधार पर, फल का विकास मई- जून तक शुरू होता है। फूल आने की अवधि के दौरान उच्च आर्द्रता, पाला या बारिश फूलों के निर्माण को प्रभावित करती है। फूल आने के दौरान बादल वाला मौसम आम के हॉपर और पाउडरी मिल्डीव एवं एंथरेक्नोज बीमारियों के फैलने में सहायक होता है, जिससे आम की वृद्धि और फूल आने में बाधा आती है।

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आम में फूल आने से फल उत्पादन पर क्या प्रभाव पड़ता है?

आम के फूल छोटे, पीले या गुलाबी लाल रंग के आम की प्रजातियों के अनुसार , गुच्छों में गुच्छित होते हैं, जो शाखाओं से नीचे लटकते हैं। वे उभयलिंगी फूल होते हैं लेकिन परागणकों द्वारा क्रॉस-परागण अधिकतम फल सेट में योगदान देता है। आम परागणकों में मधुमक्खियाँ, ततैया, पतंगे, तितलियाँ, मक्खियाँ, भृंग और चींटियाँ शामिल हैं। उत्पादित फूलों की संख्या और फूल आने की अवस्था की अवधि सीधे फलों की उपज को प्रभावित करती है। हालाँकि, फूल आना कई कारकों से प्रभावित होता है जैसे तापमान, आर्द्रता, सूरज की रोशनी, कीट और बीमारी का प्रकोप और पानी और पोषक तत्वों की उपलब्धता। ये कारक फूल आने के समय और तीव्रता को प्रभावित करते हैं। यदि फूल आने की अवस्था के दौरान उपरोक्त कारक इष्टतम नहीं हैं, तो इसके परिणामस्वरूप कम या छोटे फल लगेंगे। उत्पादित सभी फूलों पर फल नहीं लगेंगे। फल के पूरी तरह से सेट होने और विकसित होने के लिए उचित परागण आवश्यक है। पर्याप्त परागण के बाद भी, मौसम की स्थिति और कीट संक्रमण जैसे कई कारकों के कारण फूलों और फलों के बड़े पैमाने पर गिरने के कारण केवल कुछ अनुपात में ही फूल बनते हैं। इससे अंततः फलों की उपज और गुणवत्ता प्रभावित होती है। फूल आने का समय, अवधि और तीव्रता आम के पेड़ों में फल उत्पादन को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है।

आम के फूलों का प्रबंधन

1. कर्षण क्रियाएं

फल की तुड़ाई के बाद आम के पेड़ों की ठीक से कटाई - छंटाई करने से अच्छे एवं स्वस्थ फूल आते हैं। कटाई - छंटाई की कमी से आम की छतरी (Canopy) घनी हो जाती है, जिससे प्रकाश पेड़ के आंतरिक भागों में प्रवेश नहीं कर पाता है और इस प्रकार फूल और उपज कम हो जाती है। टहनियों के शीर्षों की छंटाई करने से फूल आने शुरू होते हैं। छंटाई का सबसे अच्छा समय फल तुडाई के बाद होता है, आमतौर पर जून से अगस्त के दौरान। टिप प्रूनिंग, जो अंतिम इंटरनोड से 10 सेमी ऊपर की जाती है, फूल आने में सुधार करती है। गर्डलिंग आम में फलों की कलियों के निर्माण को प्रेरित करने के लिए उपयोग की जाने वाली एक विधि है। इसमें आम के पेड़ के तने से छाल की पट्टी को हटाना शामिल है। यह फ्लोएम के माध्यम से मेटाबोलाइट्स के नीचे की ओर स्थानांतरण को अवरुद्ध करके करधनी के ऊपर के हिस्सों में पत्तेदार कार्बोहाइड्रेट और पौधों के हार्मोन को बढ़ाकर फूल, फल सेट और फल के आकार को बढ़ाता है। पुष्पक्रम निकलने के समय घेरा बनाने से फलों का जमाव बढ़ जाता है। गर्डलिंग की गहराई का ध्यान रखना चाहिए। अत्यधिक घेरेबंदी की गहराई पेड़ को नुकसान पहुंचा सकती है। यह कार्य विशेषज्ञ की देखरेख या ट्रेनिंग के बाद ही करना चाहिए।

2. पादप वृद्धि नियामक (पीजीआर)

पादप वृद्धि नियामक (पीजीआर) का उपयोग पौधों की वृद्धि और विकास को नियंत्रित करने वाली शारीरिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करके फूलों को नियंत्रित करने और पैदावार बढ़ाने के लिए किया जाता है।एनएए फूल आने, कलियों के झड़ने और फलों को पकने से रोकने में भी मदद करते हैं। वे फलों का आकार बढ़ाने, फलों की गुणवत्ता और उपज बढ़ाने और सुधारने में मदद करते हैं। प्लेनोफिक्स @ 1 मी.ली. दवा प्रति 3 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव फूल के निकलने से ठीक पूर्व एवं दूसरा छिड़काव फल के मटर के बराबर होने पर करना चाहिए ,यह छिड़काव टिकोलो (आम के छोटे फल) को गिरने से रोकने के लिए आवश्यक है।लेकिन यहा यह बता देना आवश्यक है की आम के पेड़ के ऊपर शुरुआत मे जीतने फल लगते है उसका मात्र 5 प्रतिशत से कम फल ही अंततः पेड़ पर रहता है , यह पेड़ की आंतरिक शक्ति द्वारा निर्धारित होता है । कहने का तात्पर्य यह है की फलों का झड़ना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है इसे लेकर बहुत घबराने की आवश्यकता नहीं है । पौधों की वृद्धि और विकास पर नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिए पीजीआर का सावधानीपूर्वक प्रबंधन किया जाना चाहिए, जैसे अत्यधिक शाखाएं, फलों का आकार कम होना, या फूल आने में देरी। उपयोग से पहले खुराक और आवेदन के समय की जांच करें।

3. पोषक तत्व प्रबंधन

आम के पेड़ों में फूल आने के लिए पोषक तत्व प्रबंधन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नाइट्रोजन पौधों की वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक है। हालाँकि, अत्यधिक नाइट्रोजन फूल आने के बजाय वानस्पतिक विकास को बढ़ावा देकर आम के फूल आने में देरी करती है। इससे फास्फोरस(पी) और पोटाश (के) जैसे अन्य पोषक तत्वों में भी असंतुलन हो सकता है जो फूल आने के लिए महत्वपूर्ण हैं। नाइट्रोजन के अधिक उपयोग से वानस्पतिक वृद्धि के कारण कीट संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है। फूलों के प्रबंधन के लिए नत्रजन (एन) की इष्टतम मात्रा का उपयोग किया जाना चाहिए। फास्फोरस आम के पेड़ों में फूल लगने और फल लगने के लिए आवश्यक है। फूल आने को बढ़ावा देने के लिए फूल आने से पहले की अवस्था में फॉस्फोरस उर्वरक का प्रयोग करें। पर्याप्त पोटेशियम का स्तर आम के पेड़ों में फूलों को बढ़ा सकता है और फूलों और फलों की संख्या में वृद्धि करता है। पोटेशियम फल तक पोषक तत्वों और पानी के परिवहन में मदद करता है, जो इसके विकास और आकार के लिए आवश्यक है। यह पौधों में नमी के तनाव, गर्मी, पाले और बीमारी के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी मदद करता है। सूक्ष्म पोषक तत्वों के प्रयोग से फूल आने, फलों की गुणवत्ता में सुधार और फलों का गिरना नियंत्रित करके बेहतर परिणाम मिलते हैं।

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4. कीट एवं रोग प्रबंधन

फूल और फल बनने के दौरान, कीट और बीमारी के संक्रमण की संभावना अधिक होती है, जिससे फूल और समय से पहले फल झड़ने का खतरा होता है। मैंगो हॉपर, फ्लावर गॉल मिज, मीली बग और लीफ वेबर आम के फूलों पर हमला करने वाले प्रमुख कीट हैं। मैंगो पाउडरी मिल्ड्यू, मैंगो मैलफॉर्मेशन और एन्थ्रेक्नोज ऐसे रोग हैं जो आम के फूलों को प्रभावित करते हैं जिससे फलों का विकास कम हो जाता है। फलों की पैदावार बढ़ाने के लिए आम के फूलों में कीटों और बीमारियों के लक्षण और प्रबंधन की जाँच करें - आम के फूलों में रोग और कीट प्रबंधन करना चाहिए।

विगत 4 – 5 वर्ष से बिहार में मीली बग (गुजिया) की समस्या साल दर साल बढ़ते जा रही है। इस कीट के प्रबंधन के लिए आवश्यक है कि दिसम्बर- जनवरी में बाग के आस पास सफाई करके मिट्टी में क्लोरपायरीफास 1.5 डी. धूल @ 250 ग्राम प्रति पेड का बुरकाव कर देना चाहिए तथा मीली बग (गुजिया)  कीट पेड़ पर न चढ सकें इसके लिए एल्काथीन की 45 सेमी की पट्टी आम के मुख्य तने के चारों तरफ सुतली से बांध देना चाहिए। ऐसा करने से यह कीट पेड़ पर नही चढ़ सकेगा । यदि आप ने पूर्व में ऐसा नही किया है एवं गुजिया कीट पेड पर चढ गया हो तो ऐसी अवस्था में डाएमेथोएट 30 ई.सी. या क्विनाल्फोस 25 ई.सी.@ 1.5 मीली दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। जिन आम के बागों का प्रबंधन ठीक से नही होता है वहां पर हापर या भुनगा कीट बहुत सख्या में हो जाते है अतः आवश्यक है कि सूर्य का प्रकाश बाग में जमीन तक पहुचे जहां पर बाग घना होता है वहां भी इन कीटों की सख्या ज्यादा होती है।

पेड़ पर जब मंजर आते है तो ये मंजर इन कीटों के लिए बहुत ही अच्छे खाद्य पदार्थ होते है,जिनकी वजह से इन कीटों की संख्या में भारी वृद्धि हो जाती है।इन कीटों की उपस्थिति का दूसरी पहचान यह है कि जब हम बाग के पास जाते है तो झुंड के झुंड  कीड़े पास आते है। यदि इन कीटों को प्रबंन्धित न किया जाय तो ये मंजर से रस चूस लेते है तथा मंजर झड़ जाता है । जब प्रति बौर 10-12 भुनगा दिखाई दे तब हमें इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल.@1मीली दवा प्रति 2 लीटर पानी में घोल कर छिडकाव करना चाहिए । यह छिड़काव फूल खिलने से पूर्व करना चाहिए अन्यथा बाग में आने वाले मधुमक्खी के किड़े प्रभावित होते है जिससे परागण कम होता है तथा उपज प्रभावित होती है ।

पाउडरी मिल्डयू/ खर्रा रोग के प्रबंधन के लिए आवश्यक है कि मंजर आने के पूर्व घुलनशील गंधक @ 2 ग्राम / लीटर पानी मे घोलकर छिड़काव करना चाहिए। जब पूरी तरह से फल लग जाय तब इस रोग के प्रबंधन के लिए हेक्साकोनाजोल @ 1 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए। जब तापक्रम 35 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हो जाता है तब इस रोग की उग्रता में कमी अपने आप आने लगती है।

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गुम्मा व्याधि से ग्रस्त बौर को काट कर हटा देना चाहिए। बाग में यदि तना छेदक कीट या पत्ती काटने वाले धुन की समस्या हो तो क्विनालफोस 25 ई.सी. @ 2 मीली दवा / लीटर पानी मे घोलकर छिड़काव करना चाहिए। लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है की फूल खिलने के ठीक पहले से लेकर जब फूल खिले हो उस अवस्था मे कभी भी किसी भी रसायन, खासकर कीटनाशकों का छिडकाव नहीं करना चाहिए, अन्यथा परागण बुरी तरह प्रभावित होता है एवं फूल के कोमल हिस्से घावग्रस्त होने की संभावना रहती है । 

5. परागण

आम के फूल में एक ही फूल में नर और मादा दोनों प्रजनन अंग होते हैं। हालाँकि, आम के फूल अपेक्षाकृत छोटे होते हैं और बड़ी मात्रा में पराग का उत्पादन नहीं करते हैं। इसलिए, फूलों के बीच पराग स्थानांतरित करने के लिए वे मक्खियों, ततैया और अन्य कीड़ों जैसे परागणकों पर बहुत अधिक निर्भर होते हैं। परागण के बिना, आम के फूल फल नहीं दे सकते हैं, या फल छोटा या बेडौल हो सकता है। पर-परागण से आम की पैदावार बढ़ती है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पूर्ण ब्लूम(पूर्ण रूप से जब फूल खिले होते है) चरण के दौरान कीटनाशकों और कवकनाशी का छिड़काव नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि इस समय कीटों द्वारा परागण प्रभावित होगा जिससे उपज कम हो जाएगी। आम के बाग से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए आम के बाग में मधुमक्खी की कालोनी बक्से रखना अच्छा रहेगा,इससे परागण अच्छा होता है तथा फल अधिक मात्रा में लगता है।

6. मौसम की स्थिति

फूल आने के दौरान अनुकूलतम मौसम की स्थिति से सफल फल लगने की दर और पैदावार में वृद्धि होती है। उदाहरण के लिए, अत्यधिक हवा की गति के कारण फूल और फल बड़े पैमाने पर गिर जाते हैं। इस प्रकार, विंडब्रेक या शेल्टरबेल्ट लगाकर आम के बागों को हवा से सुरक्षा प्रदान करना आवश्यक है।

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7. जल प्रबंधन

आम के पेड़ों को विशेष रूप से बढ़ते मौसम के दौरान पर्याप्त मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। अपर्याप्त या अत्यधिक पानी देने से फल की उपज और गुणवत्ता कम हो सकती है। उचित जल प्रबंधन बीमारियों और कीटों को रोकने में भी मदद करता है, जो नम वातावरण में पनपते हैं। गर्म और शुष्क जलवायु में, सिंचाई आर्द्रता के स्तर को बढ़ाने और तापमान में उतार-चढ़ाव को कम करने में मदद कर सकती है, जिससे आम की वृद्धि के लिए अधिक अनुकूल वातावरण मिलता है। अत्यधिक सिंचाई से मिट्टी का तापमान कम हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप पौधों की वृद्धि और विकास कम हो जाता है। दूसरी ओर, अपर्याप्त पानी देने से मिट्टी का तापमान बढ़ सकता है, पौधों की जड़ों को नुकसान पहुँच सकता है और पैदावार कम हो सकती है। इस प्रकार, स्वस्थ पौधों की वृद्धि और फल उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी जल प्रबंधन आवश्यक है। फूल निकलने के 2 से 3 महीने पहले से लेकर फल के मटर के बराबर होने के मध्य सिंचाई नही करना चाहिए ।कुछ बागवान आम में फूल लगने एवं खिलने के समय सिंचाई करते है इससे फूल झड़ जाते है । इसलिए सलाह दी जाती है सिंचाई तब तक न करें जब तक फल मटर के बराबर न हो जाय।

सारांश

अधिक पैदावार के लिए आम के फूलों के प्रबंधन में पौधों की वृद्धि को अनुकूलित करने, कीटों और बीमारियों का प्रबंधन करने और फूलों के विकास और परागण के लिए इष्टतम पर्यावरणीय परिस्थितियों को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से रणनीतियों का संयोजन शामिल है। इन प्रबंधन प्रथाओं का पालन करने से फूलों और फलों के उत्पादन में वृद्धि हो सकती है, जिससे उच्च पैदावार और फलों की गुणवत्ता में सुधार होगा।


Dr AK Singh
डॉ एसके सिंह प्रोफेसर (प्लांट पैथोलॉजी) एवं विभागाध्यक्ष,
पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी,
प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना,डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा-848 125, समस्तीपुर,बिहार
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जानिए लौकी की उन्नत खेती कैसे करें

जानिए लौकी की उन्नत खेती कैसे करें

लौकी की खेती करके किसान अपनी दैनिक जरूरतों के लिए रोजाना के हिसाब से आमदनी कर सकता है.लौकी आम से लेकर खास सभी के लिए लाभप्रद है. ताजगी से भरपूर लौकी कद्दूवर्गीय में खास सब्जी है. इससे बहुत तरह के व्यंजन जैसे रायता, कोफ्ता, हलवा व खीर, जूस वगैरह बनाने के लिए भी इस्तेमाल करते हैं. आजकल मोटापा भी एक रोग बनकर उभर रहा है. इसके नियंत्रण के लिए भी लौकी का जूस पीने की सलाह दी जाती है बशर्ते यह पूरी तरह से आर्गेनिक उत्पादन हो. अगर किसी कीटनाशक या इंजेक्शन का प्रयोग करके इसे उगाया गया हो तो ये काफी नुकसान दायक हो जाती है. यह कब्ज को कम करने, पेट को साफ करने, खांसी या बलगम दूर करने में बहुत फायदेमंद है. इस के मुलायम फलों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट व खनिजलवण के अलावा प्रचुर मात्रा में विटामिन पाए जाते हैं. लौकी की खेती पहाड़ी इलाकों से ले कर दक्षिण भारत के राज्यों तक की जाती है. निर्यात के लिहाज से सब्जियों में लौकी खास है.

लौकी उगाने का सही समय:

लौकी एक
कद्दूवर्गीय सब्जी है. इसकी खेती गांव में किसान कई तरह से करते हैं इसकी खेती अपने घर के प्रयोग के लिए माता और बहनें अपने बिटोड़े और बुर्जी पर लगा कर भी करती हैं. बाकी किसान इसको खेत में भी करते हैं. लौकी की फसल वर्ष में तीन बार उगाई जाती है. जायद, खरीफ और रबी में लौकी की फसल उगाई जाती है। इसकी बुवाई मध्य जनवरी, खरीफ मध्य जून से प्रथम जुलाई तक और रबी सितम्बर अन्त और प्रथम अक्टूबर में लौकी की खेती की जाती है। जायद की अगेती बुवाई के लिए मध्य जनवरी के लगभग लौकी की नर्सरी की जाती है. अगेती बुबाई से किसान भाइयों को अच्छा भाव मिल जाता है. लौकी उगाने का सही समय

मौसम और जलवायु:

इसके बीज को अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री के आसपास तापमान की आवश्कयता होती है. बाकी इसके फल लगाने के लिए कोई भी सामान्य मौसम सही रहता है. अगर हम बात करें किसान के बुर्जी या बिटोड़े के फल की तो इसकी बुबाई पहली बारिश के बाद की जाती है जो की जून और जुलाई के महीने में होता है और इस पर फल सर्दियों में लगना शुरू होता है. बाकी इसको सभी सीजन में उगाया जा सकता है. बारिश के मौसम में अगर इसको कीड़ों से बचाना हो तो इसको जाल लगा कर जमीन से 5 फुट के ऊपर कर देना चाहिए. इससे मिटटी की वजह से फल खराब नहीं होते तथा इनका रंग भी चमकदार होता है. ये भी पढ़ें: तोरई की खेती में भरपूर पैसा

मिटटी की गुणवत्ता और खेत की तैयारी:

लौकी की फसल के लिए खेत में पुराणी फसल के जो अवशेष हैं उनको गहरी जुताई करके नीचे दबा देना चाहिए. इससे वो खरपतवार भी नहीं बनेंगें और खाद का भी काम करेंगें.इसको किसी भी तरह की मिटटी में उगाया जा सकता है लेकिन ध्यान रहे इसके खेत में पानी जमा नहीं होना चाहिए इससे इसकी फसल और फल दोनों ही ख़राब होते हैं. खेत से पानी निकासी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए. और अगर संभव हो तो इसके खेत में गोबर की सड़ी हुई खाद कम से कम 50 से 60 कुंतल की हिसाब से मिला दें. इससे खेत को ज्यादा रासायनिक खाद पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा.इसकी तैयारी करते समय पलेवा के बाद इसकी जुताई ऐसे समय करें जबकि न तो खेत ज्यादा गीला हो और नहीं ज्यादा सूखा जिससे जुताई करते समय इसकी मिटटी भुरभुरी होकर फेल जाये. इसके बात इसमें हल्का पाटा लगा देना चाहिए जिससे की खेत समतल हो जाये और पानी रुकने की संभावना न हो. ये भी पढ़ें: अच्छे मुनाफे को तैयार करें बेलों की पौध

लौकी की कुछ उन्नत किस्में:

सामान्यतः हमारे देश में जिस फसल या सब्जी की किस्म बनाई जाती है वो किसी न किसी कृषि संस्थान द्वारा बनाई जाती है तथा वो संस्थान उस किस्म को अपने संस्थान के नाम से जोड़ देते हैं. जैसे नीचे दिए गए किस्मों के नाम इसी को दर्शाते हैं. नीचे दी गई पैदावार के आंकड़े स्थान, मौसम और जमीन की पैदावार आदि पर निर्भर करते हैं.

कोयम्बटूर‐१:

तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयंबटूर द्वारा उत्पादित यह किस्म उसी के नाम से भी जानी जाती है .यह जून व दिसम्बर में बोने के लिए उपयुक्त किस्म है, इसकी उपज 280 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है जो लवणीय क्षारीय और सीमांत मृदाओं में उगाने के लिए उपयुक्त होती हैं

अर्का बहार:

यह किस्म खरीफ और जायद दोनों मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त है. बीज बोने के 120 दिन बाद फल की तुडाई की जा सकती है. इसकी उपज 400 से 450 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है.

पूसा समर प्रोलिफिक राउन्ड:

इसको पूसा कृषि संस्थान द्वारा विकसित किया गया है. यह अगेती किस्म है. इसकी बेलों का बढ़वार अधिक और फैलने वाली होती हैं. फल गोल मुलायम /कच्चा होने पर 15 से 18 सेमी. तक के घेरे वाले होतें हैं, जों हल्के हरें रंग के होतें है. बसंत और ग्रीष्म दोंनों ऋतुओं के लिए उपयुक्त हैं.

पंजाब गोल:

इस किस्म के पौधे घनी शाखाओं वाले होते है. और यह अधिक फल देने वाली किस्म है. फल गोल, कोमल, और चमकीलें होंते हैं. इसे बसंत कालीन मौसम में लगा सकतें हैं. इसकी उपज 175 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है.

पुसा समर प्रोलेफिक लाग:

यह किस्म गर्मी और वर्षा दोनों ही मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त रहती हैं. इसकी बेल की बढ़वार अच्छी होती हैं, इसमें फल अधिक संख्या में लगतें हैं. इसकी फल 40 से 45 सेंमी. लम्बें तथा 15 से 22 सेमी. घेरे वालें होते हैं, जो हल्के हरें रंग के होतें हैं. उपज 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.

नरेंद्र रश्मि:

यह फैजाबाद में विकसित प्रजाती हैं. प्रति पौधा से औसतन 10‐12 फल प्राप्त होते है. फल बोतलनुमा और सकरी होती हैं, डन्ठल की तरफ गूदा सफेद औैर करीब 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है.

पूसा संदेश:

इसके फलों का औसतन वजन 600 ग्राम होता है एवं दोनों ऋतुओं में बोई जाती हैं. 60‐65 दिनों में फल देना शुरू हो जाता हैं और 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है.

पूसा हाईब्रिड‐३:

फल हरे लंबे एवं सीधे होते है. फल आकर्षक हरे रंग एवं एक किलो वजन के होते है. दोंनों ऋतुओं में इसकी फसल ली जा सकती है. यह संकर किस्म 425 क्ंवटल प्रति हेक्टेयर की उपज देती है. फल 60‐65 दिनों में निकलनें लगतें है.

पूसा नवीन:

यह संकर किस्म है, फल सुडोल आकर्षक हरे रंग के होते है एवं औसतन उपज 400‐450 क्ंवटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है, यह उपयोगी व्यवसायिक किस्म है.

लौकी की फसल में लगने वाले कीड़े :

1 - लाल कीडा (रेड पम्पकिन बीटल):

उपाय: निंदाई गुडाई कर खेत को साफ रखना चाहिए. फसल कटाई के बाद खेतों की गहरी जुताई करना चाहिएए जिससे जमीन में छिपे हुए कीट तथा अण्डे ऊपर आकर सूर्य की गर्मी या चिडियों द्वारा नष्ट हो जायें.सुबह के समय जब ओस हो तब राख का छिड़काव करना चाहिए.

2 - फल मक्खी (फ्रूट फ्लाई):

क्षतिग्रस्त तथा नीचे गिरे हुए फलों को नष्ट कर देना चाहिए.सब्जियों के जो फल भूमी पर बढ़ रहें हो उन्हें समय समय पर पलटते रहना चाहिए.

लोकी में लगने वाले मुख्य रोग:

  • चुर्णी फफूंदी
  • उकठा (म्लानि)
आलू की यह किस्में मोसमिक मार से भी लड़ती हैं और अधिक पैदावार भी देती हैं

आलू की यह किस्में मोसमिक मार से भी लड़ती हैं और अधिक पैदावार भी देती हैं

भारत में सम्पूर्ण आलू की पैदावार में 33% फीसदी कुफरी पुखराज से ही होता है। इसी वजह से बड़े स्तर पर आलू उत्पादन करने वाले कृषक इसी किस्म से बुवाई करके 100 दिन की समयावधि में 400 क्विंटल तक पैदावार उठा सकते हैं। जैसा कि हम जानते हैं, आलू रबी सीजन की मुख्य नकदी फसल है, जिसकी मांग तो पुरे वर्ष होती ही रहती है। परंतु आलू का अच्छा उत्पादन ठंडे तापमान में ही होता है। इस वजह से किसान ऐसी किस्मों की खोज में लगे हुए रहते हैं, जो कि एक ही सीजन में बेहतरीन पैदावार दे सकें। क्योंकि देश में हो रही आलू की पैदावार से घरेलू आपूर्ति सहित अंतर्राष्ट्रीय बाजार की मांग की भी पूर्ति की जा रही है। इसी तीव्रता से आलू की पैदावार करने हेतु कुफरी पुखराज किस्म के जरिये बुवाई करने की सलाह दी जाती है। यह किस्म कम समय में आलू का बेहतरीन उत्पादन प्रदान करती है। भारत के कृषक कुफरी पुखराज आलू के जरिये ही व्यावसायिक कृषि करते हैं। ऐसी किस्मों को उगाने से लेकर उनका भंडारण एवं निर्यात भी बहुत ज्यादा सुगम रहता है।


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कुफरी पुखराज किस्म के प्रसिद्ध होने की क्या वजह है

उच्च स्तर पर आलू का उत्पादन करने वाले किसानों हेतु कुफरी पुखराज किस्म से बुवाई करना अत्यंत लाभदायक और अच्छा मुनाफा अर्जित कराता है। उत्तर भारत की ये सुप्रसिद्ध किस्म कम वक्त में आलू का काफी अत्यधिक पैदावार दे जाती है। आईसीएआर ने यह दावा किया है, कि इस किस्म द्वारा उगाई गयी फसल में कीट-रोग होने का खतरा बहुत कम रहता है। पाला एवं झुलसने जैसी मोसमिक चुनौतियों से भी 'कुफरी पुखराज' आलू अत्यधिक प्रभावित नहीं होता है। इसकी एक और खास बात यह है, कि यह किस्म बुवाई के 100 दिनों की समयावधि में ही तैयार हो जाती है, इससे हम 400 क्विंटल तक पैदावार उठा सकते हैं।

किन क्षेत्रों में की जानी चाहिये आलू की खेती

हालाँकि ठंडे तापमान वाले प्रत्येक क्षेत्र में कुफरी पुखराज की कृषि की जा सकती है। परंतु आईसीएआर(ICAR) के विशेषज्ञों का कहना है, कि आज उत्तर भारत में आलू की पैदावार पर कुफरी पुखराज किस्म की 80 प्रतिशत हिस्सेदारी है। पश्चिम बंगाल से लेकर पंजाब, हरियाणा, गुजरात, असम, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश में इसका उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जा रही है। आईसीएआर (ICAR) की रिपोर्ट के अनुसार सामने आया है, कि वर्ष 2021-22 के चलते कुफरी पुखराज किस्म द्वारा वार्षिक 4,729 करोड़ की आर्थिक सहायता का अनुमान है।

आलू की कौनसी किस्में बंपर पैदावार देती हैं

आलू की कुफरी किस्मों को केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला (Central Potato Research Institute, Shimla) द्वारा विकसित किया गया है। यहां की बेहतरीन किस्में साधारण किस्मों की अपेक्षा में 152 से 400 क्विंटल तक ज्यादा उत्पादन प्रदान करती हैं। कुफरी की अधिकाँश किस्में कम समयावधि वाली रहती हैं, जिनको पूर्ण रूप से तैयार होने में 70 से 135 दिन लगते हैं। नवीनतम किस्मों के अंतर्गत कुफरी आनंद, कुफरी गिरिराज, कुफरी चिप्सोना-1 और कुफरी चिप्सोना-2 का नाम भी प्रथम स्थान पर आता है। बतादें कि इसके बाद किसान सीजन की अन्य दूसरी फसल भी उगा सकते हैं। इन किस्मों में कुफरी ज्योति, कुफरी लालिमा, कुफरी शीलमान, कुफरी स्वर्ण, कुफरी सिंदूरी, कुफरी देवा, कुफरी अलंकार, कुफरी चंद्र मुखी, कुफरी नवताल जी 2524 सम्मिलित हैं।
आलू बुखारा की खेती से किसान स्वास्थ्य के साथ-साथ धन भी अर्जित कर सकते हैं

आलू बुखारा की खेती से किसान स्वास्थ्य के साथ-साथ धन भी अर्जित कर सकते हैं

आलू बुखारा स्वास्थ्य के लिए काफी अधिक फायदेमंद फल है। बतादें, कि इसका नियमित तौर पर सेवन करने से पाचन क्रिया की दिक्कत को दूर किया जा सकता है। इसके साथ-साथ यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में भी बेहद सहायता करता है। आलू बुखारा एक ऐसा फल है, जिसकी खेती भारत में बेहद कम होती है। इसका स्वाद बिल्कुल ही खट्टा मीट्ठा होता है। आलू बुखारा को अलूचा के नाम से भी जानते हैं। बतादें, कि इसका वनस्पति नाम प्रूनस डोमेस्टिका है। यह एक गुठलीदार फल होता है। आलू बुखारा पीला, काला, लाल, भूरा और कभी-कभी हरे रंग का पाया जाता है। दरअसल, इसका गूदा अत्यधिक रसदार होता है। आलू बुखारा की खेती ठंडे राज्यों में होती है। साथ ही, आलू बुखारा का सेवन विभिन्न प्रकार से सेहत के लिए फायदेमंद है। यह फाइबर का एक अच्छा माध्यम है, जो पाचन क्रिया को दुरुस्त करने में सहायता करता है। यह विटामिन सी एवं एंटीऑक्सिडेंट का भी एक अच्छा स्रोत है, जो कि हृदय स्वास्थ्य को अच्छा बनाने में बेहद सहयोग करता है।

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आलू बुखारा बहुत सारी बीमारियों में फायदेमंद है

बतादें, कि अगर पाचन क्रिया में कोई दिक्कत आ रही हो उसको दुरुस्त करने में आलू बुखारा बेहद सहायता करता है। आलू बुखारा में फाइबर की उच्च मात्रा होती है, जो पाचन तंत्र को मजबूत करने में सहायता करता है। यह कब्ज को रोकने एवं पाचन स्वास्थ्य को अच्छा बनाने में भी काफी सहयोग करता है। हम आपको बतादें, कि आलू बुखारा में विटामिन सी की भरपूर मात्रा पाई जाती है, जो प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में बेहद सहयोग करता है। इसके साथ-साथ यह इन्फेक्शन से लड़ने और बीमारियों पर लगाम लगाने में भी मददगार है। आलू बुखारा में एंटीऑक्सिडेंट होते हैं, जो हृदय को हानि से बचाने में सहायता कर सकते हैं। यह कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने और रक्तचाप को काबू करने में भी बेहद फायदेमंद साबित होता है।

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आलू बुखारा का इस्तेमाल कहां-कहां कर सकते हैं

आलू बुखारा एक स्वस्थ एवं स्वादिष्ट फल है, जिसे आप अपने आहार में शम्मिलित कर सकते हैं। ताजे आलू बुखारा को संपूर्ण फल के रूप में खाया जा सकता है अथवा इसका इस्तेमाल सलाद, स्मूदी या बाकी व्यंजनों में किया जा सकता है। सुखाया हुआ आलू बुखारा भी एक लोकप्रिय फल है, जिसे स्नैक्स अथवा बेकिंग में उपयोग किया जा सकता है। आलू बुखारा से शराब भी तैयार की जाती है। इसके साथ ही इसके नियमित सेवन से तनाव जैसी समस्या भी दूर हो जाती हैं। वहीं, प्रतिदिन इसका सेवन करने से नींद ना आने की परेशानी से भी निजात मिलती है।